Rajasthan Board RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान Important Questions and Answers.
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का विकिरण होता है
(क) लघु तरंगों के रूप में
(ग) दीर्घ तरंगों के रूप में
(ख) मध्य तरंगों के रूप में
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) लघु तरंगों के रूप में
प्रश्न 2.
'पार्थिव विकिरण' होता है
(क) लघु तरंगों के रूप में
(ख) मध्यम तरंगों के रूप में
(ग) दीर्घ तरंगों के रूप में
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ग) दीर्घ तरंगों के रूप में
प्रश्न 3.
पृथ्वी सूर्य के सबसे नजदीक कब होती है?
(क) 3 जनवरी
(ख) 4 जुलाई
(ग) 16 सितम्बर
(घ) 12 नवम्बर।
उत्तर:
(क) 3 जनवरी
प्रश्न 4.
आकाश का नीला रंग व सूर्य की लालिमा निम्न में से किस प्रक्रिया का परिणाम है
(क) प्रकीर्णन
(ख) परावर्तन
(ग) अवशोषण
(घ) परिसंचरण।
उत्तर:
(क) प्रकीर्णन
प्रश्न 5.
वायुमण्डल के लम्बवत् तापन की प्रक्रिया को कहते हैं
(क) परिचालन
(ख) संवहन
(ग) अभिवहन
(घ) अवशोषण।
उत्तर:
(ख) संवहन
प्रश्न 6.
निम्न में से तापक्रम व्युत्क्रमण की स्थिति क्या है?
(क) ऊँचाई के साथ तापमान घटता है
(ख) ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ता है
(ग) ऊँचाई के साथ तापमान कभी घटता है और कभी बढ़ता है
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ता है
सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ 'अ' को स्तम्भ 'ब' से सुमेलित कीजिए
स्तम्भ 'अ' |
स्तम्भ 'ब' |
(i) पृथ्वी से सूर्य की निकटतम दूरी |
(अ) 15.2 करोड़ किमी. |
(ii) पृथ्वी से सूर्य की अधिकतम दूरी |
(ब) 15 करोड़ किमी. |
(iii) पृथ्वी से सूर्य की औसत दूरी |
(स) 19 प्रतिशत |
(iv) संघनन में प्रयुक्त पार्थिव विकिरण |
(द) 14.7 करोड़ किमी. |
उत्तर:
स्तम्भ 'अ' |
स्तम्भ 'ब' |
(i) पृथ्वी से सूर्य की निकटतम दूरी |
(द) 14.7 करोड़ किमी. |
(ii) पृथ्वी से सूर्य की अधिकतम दूरी |
(अ) 15.2 करोड़ किमी. |
(iii) पृथ्वी से सूर्य की औसत दूरी |
(ब) 15 करोड़ किमी. |
(iv) संघनन में प्रयुक्त पार्थिव विकिरण |
(स) 19 प्रतिशत |
रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न
निम्न वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
सत्य-असत्य कथन सम्बन्धी प्रश्न-
निम्न कथनों में से सत्य-असत्य कथन की पहचान कीजिए
उत्तर:
अतिलघ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पवन किसे कहते हैं?
उत्तर:
गतिमान वायु को ही पवन कहते हैं।
प्रश्न 2.
वायुमंडल क्या है?
उत्तर:
हमारे चारों ओर मिलने वाला गैसीय आवरण वायुमंडल कहलाता है।
प्रश्न 3.
पृथ्वी अपनी ऊर्जा का लगभग सम्पूर्ण भाग किससे प्राप्त करती है ?
उत्तर:
सूर्य से।
प्रश्न 4.
सूर्यातप किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी द्वारा प्राप्त सौर विकिरण को सूर्यातप कहते हैं।
प्रश्न 5.
पृथ्वी सौर ऊर्जा के बहुत न्यून अंश को किस कारण से प्राप्त करती है ?
उत्तर:
पृथ्वी की आकृति भू-आभ है। सूर्य की किरणें वायुमण्डल के ऊपरी भाग में तिरछी पड़ती हैं। जिसके कारण सौर ऊर्जा के बहुत न्यून अंश को ही प्राप्त कर पाती है।
प्रश्न 6.
पृथ्वी औसतन वायुमण्डल से कितनी ऊर्जा प्राप्त करती है ?
उत्तर:
पृथ्वी औसतन वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर 1.94 कैलोरी/प्रतिवर्ग सेण्टीमीटर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है।
प्रश्न 7.
अपसौर क्या है ?
उत्तर:
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान प्रतिवर्ष 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर (15.20 करोड़ किमी.) होती है। पृथ्वी की इस दूरस्थ स्थिति को अपसौर कहते हैं।
प्रश्न 8.
उपसौर क्या है ?
उत्तर:
पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान प्रतिवर्ष 3 जनवरी को सूर्य से सबसे कम दूरी (14.70 करोड़ किमी.) पर स्थित होती है। पृथ्वी की इस समीपस्थ स्थिति को उपसौर कहते हैं।
प्रश्न 9.
सूर्यातप में होने वाली विभिन्नता के प्रमुख कारण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 10.
सर्वाधिक सूर्यातप कहाँ प्राप्त होता है?
उत्तर:
उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थलों में।
प्रश्न 11.
वायुमण्डल से गर्म और ठण्डा होने की स्थितियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 12.
चालन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सम्पर्क द्वारा गरम पदार्थ से अपेक्षाकृत ठण्डे पदार्थ की ओर ऊष्मा के स्थानान्तरण को ऊष्मा का चालन कहते हैं।
प्रश्न 13.
संवहन क्या है ?
उत्तर:
वायुमण्डल के लम्बवत् तापन की प्रक्रिया को संवहन कहते हैं।
प्रश्न 14.
अभिवहन क्या है ?
उत्तर:
वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला ताप का स्थानान्तरण अभिवहन कहलाता है।
प्रश्न 15.
हमारा वायुमण्डल किससे गर्म होता है ?
उत्तर:
हमारा वायुमण्डल पार्थिव विकिरण से गर्म होता है।
प्रश्न 16.
पार्थिव विकिरण क्या है?
उत्तर:
सूर्य से प्राप्त ऊष्मा को पृथ्वी द्वारा लौटाने की प्रक्रिया पार्थिव विकिरण कहलाती है।
प्रश्न 17.
पृथ्वी के एल्बिडो से क्या आशय है ?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही सौरताप की 100 इकाइयों में से 35 इकाइयाँ विभिन्न माध्यमों से । परावर्तित होकर लौट जाती हैं। अतः सौर विकिरण की परिवर्तित मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहते हैं।
प्रश्न 18.
तापमान क्या है?
उत्तर:
सूर्यातप की अन्योन्य क्रिया द्वारा जनित ऊष्मा तापमान के रूप में जानी जाती है।
प्रश्न 19.
सामान्य ह्रास दर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सामान्यतः ऊँचाई के साथ तापमान घटता जाता है इसे सामान्य ताप पतन दर कहते हैं।
प्रश्न 20.
सामान्य ह्रास दर प्रति 1000 मीटर क्या है ?
उत्तर:
सामान्य ह्रास दर प्रति 1000 मीटर की ऊँचाई बढ़ने पर 6.5° सेल्सियस है।
प्रश्न 21.
मानचित्र पर तापमान के क्षैतिज वितरण को दिखाने वाली रेखाओं को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
समताप रेखाएँ।
प्रश्न 22.
समताप रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
समान ताप वाले स्थानों को दर्शाने वाली रेखा समताप रेखा कहलाती है।
प्रश्न 23.
सर्वाधिक तापान्तर कहाँ मिलता है?
उत्तर:
यूरेशिया महाद्वीप के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में।
प्रश्न 24.
सबसे कम तापांतर कहाँ मिलता है?
उत्तर:
15° उत्तरी व 20° दक्षिणी अक्षांशों के बीच।
प्रश्न 25.
तापमान का व्युत्क्रमण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
तापमान ऊँचाई के साथ घटता है जिसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। परन्तु अनेक बार स्थिति बदल जाती है और सामान्य ह्रास दर उलट जाती है जिसे तापमान का व्युत्क्रमण कहते हैं।
प्रश्न 26.
धरातलीय प्रतिलोम के लिए अनुकूल दशाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
लम्बी रातें स्वच्छ आकाश शुष्क एवं शान्त वायु बर्फ आच्छादित धरातल तथा स्थलरूप रेखीय गर्मों वाला धरातल आदि।
प्रश्न 27.
विशिष्ट ऊष्मा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
एक ग्राम पदार्थ का तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है वह विशिष्ट ऊष्मा कहलाती है। -
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1 प्रश्न)
प्रश्न 1.
क्या कारण है कि पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है और न ही अधिक ठण्डी।
उत्तर:
पृथ्वी अपनी ऊर्जा का लगभग सम्पूर्ण भाग सूर्य से प्राप्त करती है। इसके बदले पृथ्वी सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस विकिरित कर देती है। जिस कारण पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है और न ही अधिक ठण्डी होती है।
प्रश्न 2.
पवनों द्वारा ताप का स्थानान्तरण क्यों किया जाता है ?
उत्तर:
धरातल के विभिन्न भागों में प्राप्त होने वाली ताप की मात्रा समान नहीं होती है। तापमान की भिन्नता के कारण विभिन्न स्थानों पर वायुमण्डल के दबाव में भिन्नता पाई जाती है। वायुदाब की भिन्नता के कारण ही पवनों द्वारा ताप का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता है।
प्रश्न 3.
धरातल पर सूर्यातप में भिन्नता लाने वाले कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा धरातल पर सर्वत्र समान नहीं होती है। इसमें दैनिक मौसमी तथा वार्षिक परिवर्तन देखने को मिलता है। सूर्यातप में भिन्नता लाने में कई कारकों की सामूहिक भूमिका होती है। सूर्यातप की मात्रा में भिन्नता लाने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 4.
उत्तुंगता किस प्रकार तापमान को प्रभावित करती है?
उत्तर:
वायुमंडल पार्थिव विकिरण द्वारा नीचे की परतों में पहले गर्म होता है। यही कारण है कि समुद्र तल के पास के स्थानों पर तापमान अधिक व ऊँचे भागों में तापमान कम मिलता है। अर्थात् उत्तुंगता के बढ़ने के साथ तापमान घटता जाता है।
प्रश्न 5.
समुद्र से दूरी तापमान को कैसे प्रभावित करती है?
उत्तर:
समुद्र तापमान का एक महत्वपूर्ण नियंत्रक है। स्थल की अपेक्षा समुद्र देर से गर्म तथा देर से ठण्डा होता है। इसलिए समुद्र के ऊपर स्थल की अपेक्षा तापमान में भिन्नता कम होती है। समुद्र के निकट स्थित क्षेत्रों पर समुद्र व स्थलीय समीर का सामान्य प्रभाव पड़ता है जिसके कारण तापमान सम रहता है।
प्रश्न 6.
भूपृष्ठीय व्युत्क्रमण की उत्पत्ति किस प्रकार होती है ? अथवा धरातलीय विलोमता की उत्पत्ति को बताइए।
उत्तर:
भूपृष्ठीय व्युत्क्रमण वायुमण्डल के निचले स्तर में स्थिरता को बढ़ावा देता है। जब धुआँ और धूलकण व्युत्क्रमण स्तर से नीचे एकत्रित होकर चारों ओर फैल जाते हैं जिससे वायुमण्डल का निचला स्तर भर जाता है। इससे सर्दियों में सुबह के समय घने कोहरे का निर्माण हो जाता है। यह विलोमता कुछ ही समय रहती है। सूर्य के ऊपर चढ़ने एवं पृथ्वी के गर्म होने के साथ-साथ यह समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 7.
पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में व्युत्क्रमण की उत्पत्ति किस प्रकार होती है ?
उत्तर:
पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में वायु अपवाह के कारण व्युत्क्रमण की उत्पत्ति होती है। पहाड़ियों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में रात्रि के समय ठण्डी हुई हवा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से भारी व ठण्डी होने के कारण लगभग जल के समान कार्य करती है तथा ढाल के साथ नीचे उतरती है। यह घाटी की तली में गर्म वायु के नीचे एकत्रित हो जाती है। इसे वायु अपवाह के नाम से जाना जाता है। यह पाले से पौधों की रक्षा करती है।
प्रश्न 8.
प्लैंक का नियम क्या है ?
उत्तर-प्लैंक का नियम यह बताता है कि एक वस्तु जितनी अधिक गर्म होगी, वह उतनी अधिक ऊर्जा का विकिरण करती है और उससे निकलने वाली तरंगें उतनी ही छोटी होती हैं। इसीलिए सूर्य से निकलने वाली तरंगें, लघु तरंगें होती हैं।
जो वस्तु कम गर्म होगी वह उतनी ही कम ऊर्जा का विकिरण करेगी और उससे निकलने वाली तरंगें उतनी ही अधिक दीर्घ होंगी। अतः पार्थिव विकिरण द्वारा जो ऊर्जा निकलती है वह दीर्घ तरंगों के रूप में होती है। -
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2 प्रश्न)
प्रश्न 1.
वायुमण्डल को प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रतिवर्ष परिवर्तन क्यों होता है ?
उत्तर:
वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रतिवर्ष थोड़ा परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन का मुख्य कारण सूर्य एवं पृथ्वी की दूरी में अन्तर होना है। पृथ्वी का कक्ष (Orbit) अण्डाकार है। अतः पृथ्वी एवं सूर्य के बीच की दूरी सदैव समान नहीं रहती, इसमें परिवर्तन होता रहता है। सूर्य एवं पृथ्वी के बीच की औसत दूरी 14 करोड़ 95 लाख किमी. है। यह दूरी 4 जुलाई को सबसे अधिक 15 करोड़ 20 लाख किमी. होती है। यह स्थिति 'अपसौर' (Aphelion) कहलाती है। सूर्य एवं पृथ्वी के बीच की सबसे कम दूरी 3 जनवरी को होती है। यह दूरी 14 करोड़ 70 लाख किमी. होती है। इस स्थिति को 'उपसौर' (Perihelion) कहते हैं। सूर्यातप की भिन्नता का यह प्रभाव अन्य कारकों; जैसे-जल एवं स्थल के वितरण तथा वायुमण्डल परिसंचरण आदि के कारण कम हो जाता है। अतः इसका यह अन्तर दैनिक मौसमी परिवर्तन पर विशेष प्रभावी नहीं होता है।
प्रश्न 2.
उदय एवं अस्त होते समय सूर्य का रंग लाल तथा आकाश का रंग नीला क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर:
लघु तरंगदैर्ध्य वाले सौर विकिरण के लिए वायुमण्डल अधिकांशतया पारदर्शी होता है। पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से पहले सूर्य की किरणें वायुमण्डल से होकर गुजरती हैं। क्षोभमण्डल में उपस्थित जलवाष्प, ओजोन एवं अन्य किरणें अतिरिक्त विकिरण का अवशोषण कर लेती हैं। क्षोभमण्डल में उपस्थित छोटे-छोटे निलम्बित कण दिखने वाले स्पेक्ट्रम को अंतरिक्ष एवं पृथ्वी की सतह की तरफ विकीर्ण कर देते हैं। यही प्रक्रिया आकाश में रंग के लिए उत्तरदायी होती है। इसी के कारण उदय एवं अस्त होते समय सूर्य लाल रंग का दिखता है तथा आकाश का रंग नीला दिखाई देता है।
प्रश्न 3.
परिचालन (Conduction) एवं संवहन (Convection) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पार्थिव विकिरण द्वारा धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु परत गरम होती है। निचली परतों के सम्पर्क में आने वाली ऊपरी वायु परत भी गर्म होने लगती है। इस प्रक्रिया को परिचालन कहते हैं। परिचालन की क्रिया तब होती है जब असमान तापमान वाले दो पिण्ड एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं। गर्म पिण्ड, ठण्डे पिण्ड की ओर ऊर्जा का स्थानान्तरण करता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक दोनों पिण्ड समान रूप से गर्म नहीं हो जाते। ऊष्मा के स्थानान्तरण की यह क्रिया परिचालन कहलाती है। पृथ्वी के सम्पर्क में आने वाली वायु गर्म होकर संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है और वायुमण्डल में ताप का संचरण करती है। वायुमण्डल के लम्बवत् तापन की क्रिया संवहन कहलाती है। संवहन की प्रक्रिया वायुमण्डल के निचले स्तर अर्थात् क्षोभमण्डल तक ही सीमित है।
प्रश्न 4.
धी किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा ज्यादा सूर्यातप प्रदान करती हैं, क्यों ?
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करने में सूर्य की किरणों के नति कोण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। सूर्य की सीधी किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा ज्यादा सूर्यातप प्रदान करती हैं। यह निम्न दो प्रकार से सम्भव होता है
(1) सीधी किरणों को वायुमण्डल की कम मोटी परत को पार करना होता है, अतः उनकी कम ऊर्जा वायुमण्डल में नष्ट होती है जबकि तिरछी किरणें वायुमण्डल के अधिक चौड़े भाग को पार करती हैं इसलिए उनकी अधिक ऊर्जा वायुमण्डल में नष्ट होती है।
(2) सीधी किरणें धरातल के कम भाग को गर्म करती हैं जबकि तिरछी किरणों की उतनी ही मात्रा धरातल के अधिक भाग को गर्म करती हैं। इसलिए सीधी किरणें, तिरछी किरणों की अपेक्षा अधिक सूर्यातप प्रदान करती हैं।
प्रश्न 5.
सूर्यातप की मात्रा पर स्थल विन्यास के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा में स्थानिक वितरणों में काफी अधिक भिन्नता मिलती है। यह मात्रा उष्ण कटिबन्ध में 320 वाट प्रतिवर्ग मीटर से लेकर ध्रुवों पर 70 वाट प्रतिवर्ग मीटर तक होती है। सबसे अधिक सूर्यातप दोनों गोलार्डों में अयन रेखाओं के पास 20° से 30° अक्षांशों के मध्य मिलता है क्योंकि यहाँ सूर्य की किरणों के सीधेपन व दिन की अवधि अधिक होने के.साथ ही प्रतिचक्रवातीय दशाएँ मिलती हैं जिससे मौसम साफ होता है। विषुवरेखीय भागों में अधिक सूर्यातप की उपयुक्त दशाएँ मिलती हैं किन्तु प्रतिदिन वर्षा होने तथा आकाश के बादलों से घिरे होने के.कारण सूर्यातप कम हो जाता है। महाद्वीप एवं महासागरों की भिन्न प्रकृति के कारण सूर्यातप की मात्रा में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इसी प्रकार उच्च एवं मध्य अक्षांशों में शीतऋतु की अपेक्षा गर्मियों में अधिक सूर्यातप मिलता है।
प्रश्न 6.
सूर्यातप की मात्रा पर वायुमण्डल के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्य की किरणों को वायुमण्डल की एक मोटी परत से होकर गुजरना होता है इसलिए वायुमण्डल का प्रभाव सूर्यातप की मात्रा पर पड़ता है। वायुमण्डल में व्याप्त गैसें, जलवाष्प एवं धूलिकण सूर्यातप की मात्रा को अनेक रूपों में प्रभावित करते हैं। सूर्यातप की कुल मात्रा का लगभग 49 प्रतिशत भाग निम्नांकित तीन प्रक्रियाओं द्वारा वायुमण्डल में नष्ट हो जाता है
प्रक्रियाएँ |
कुल मात्रा का प्रतिशत |
1. प्रकीर्णन द्वारा |
6 |
2. परावर्तन |
29 |
3. अवशोषण |
14 |
इस प्रकार सूर्यातप की कुल मात्रा का करीब 51 प्रतिशत भाग धरातल को प्राप्त होता है जिससे धरातल एवं वायुमण्डल गर्म होता है।
प्रश्न 7.
सूर्यातप एवं पार्थिव विकिरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप-धरातल तथा वायुमण्डल की ऊष्मा का प्रधान स्रोत सूर्य है। सौर ऊर्जा को ही सूर्यातप कहते हैं। यह 1,86,000 मील प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से भ्रमण करती हुई धरातल पर पहुँचती है। ट्रिवार्था के अनुसार, "लघु तरंगों के रूप में संचालित तथा एक लाख छियासी हजार मील प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से भ्रमण करती हुई धरातल पर प्राप्त ऊर्जा को ही सूर्यातप कहते हैं।" पार्थिव विकिरण-पृथ्वी सूर्यातप द्वारा ही ऊष्मा प्राप्त करती है। जब धरातल गर्म हो जाता है तो उससे विकिरण होता है क्योंकि प्रत्येक गर्म वस्तु विकिरण करती है। पृथ्वी से होने वाला विकिरण दीर्घ तरंगों के रूप में होता है। वायुमण्डल प्रत्यक्ष रूप से सूर्य से प्राप्त ऊष्मा से गर्म नहीं होता बल्कि पृथ्वी से विकिरण द्वारा प्राप्त ऊष्मा से गर्म होता है। इसे ही पार्थिव विकिरण कहते हैं।
प्रश्न 8.
पृथ्वी तथा वायुमण्डल के ऊष्मा बजट को संक्षेप में दर्शाइए।
उत्तर:
पृथ्वी तथा वायुमण्डल के ऊष्मा बजट को अग्र प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है -
[अ] प्रवेशी सौर्य विकिरण की मात्रा
प्रश्न 9.
दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अधिक अनियमित क्यों होती हैं ?
उत्तर:
उत्तरी गोलार्द्ध को 'स्थल गोलार्द्ध' भी कहा जाता है क्योंकि उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलों की अधिकता है। इस प्रकार उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल एवं जल दोनों की अवस्थिति मिलती है। ताप ग्रहण करने की दृष्टि से स्थल एवं जल की प्रकृति एक-दूसरे के विपरीत होती है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ अधिक अनियमित होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग की अधिकता है। महाद्वीपीय भाग बहुत कम मिलते हैं इसलिए समताप रेखाएँ अधिक नियमित होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग की अधिकता के कारण समताप रेखाएँ अक्षांश रेखाओं के लगभग समानान्तर चलती हैं। संक्षेप में, समताप रेखाओं की प्रवृत्ति स्थल एवं जल के वितरण द्वारा पूर्णतः प्रभावित होती है।
प्रश्न 10.
जुलाई माह में समताप रेखाओं का वितरण कैसा मिलता है?
अथवा
जुलाई माह में उत्तरी गोलार्द्ध व दक्षिणी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ किस प्रकार मिलती हैं?
उत्तर:
जुलाई माह के दौरान सूर्य की स्थिति उत्तरी गोलार्द्ध की ओर होती है। जून माह में सूर्य कर्क रेखा पर सीधा चमकता है। इस स्थिति में उत्तरी गोलार्द्ध में महाद्वीपों के भीतरी भागों व उष्ण मरुस्थलों पर सबसे ऊँचे तापमान रहते हैं। विषुवत रेखा पर तापमान लगभग 27° मिलता है। जुलाई में उत्तरी गोलार्द्ध में समताप रेखाएँ महाद्वीपों में अत्यधिक वक्रता लिए हुए मिलती हैं जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रायः अक्षांशों के समानान्तर होती हैं। साइबेरिया के उत्तरी भाग, यूरोप के उत्तरी भाग व अलास्का में 10°C की समताप रेखा मिलती है। मध्य एशियाई भाग, जापान के उत्तरी भाग, दक्षिणी-पश्चिमी यूरोप व कनाडा में मुख्यत: 20°C की समताप रेखा मिलती है। दक्षिणी एशिया, अफ्रीका के उत्तरी भाग व मैक्सिको क्षेत्र में 30°C की समताप रेखा मिलती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में मध्य आस्ट्रेलिया, दक्षिणी व मध्यवर्ती दक्षिणी अमेरिका में 20°C की समताप रेखा जबकि दक्षिणी आस्ट्रेलिया व दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी भाग में 10°C की समताप रेखा फैली हुई मिलती है।
प्रश्न 11.
समताप रेखाओं के खिसकने की प्रवृत्ति किस ओर होती है ? स्थल की ओर या जल की ओर, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समताप रेखाएँ वे रेखाएँ हैं जो धरातल या सागर तल पर समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती हुई खींची जाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में जनवरी में समताप रेखाएँ महासागरों पर ध्रुवों की ओर तथा महाद्वीपों पर भूमध्य रेखा की ओर झुकी होती हैं जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में महासागरों पर भूमध्य रेखा की ओर तथा महाद्वीपों पर धुव्रों की ओर झुक जाती हैं। 50° दक्षिणी अक्षांश के बाद समताप रेखाएँ अक्षांशों के लगभग समानान्तर चलती हैं। यहाँ उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा समताप रेखाओं में विचलन की प्रवृत्ति कम मिलती है। 20° से., 10° से. एवं 0° से. की समताप रेखाएँ क्रमशः 35° द., 45° द. तथा 60° दक्षिण के समानान्तर चलती हैं। ताप प्रवणता ग्रीष्म ऋतु में शीत ऋतु की अपेक्षा मन्द होती है। समताप रेखाएँ उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक नियमित होती हैं। समताप रेखाएँ सामान्य रूप से स्थलखण्ड की ओर खिसकती हैं क्योंकि स्थल, जल की अपेक्षा ऊष्मा को जल्दी ग्रहण करके तापमान को बढ़ा देता है जबकि जलीय भाग देर से ऊष्मा को ग्रहण करता है। इसी प्रकार स्थलीय भाग जल्दी ठण्डा भी हो जाता है और जलीय भाग देर से। अत: समताप रेखाएँ ग्रीष्मकाल से ध्रुवों की ओर और शीतकाल में भूमध्यरेखा की ओर खिसकती हैं। ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वायुमण्डल के ऊष्मन एवं शीतलन की प्रक्रियाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए। अथवा वायुमण्डल के गर्म एवं ठण्डा होने के तरीकों का वर्णन कीजिए। उत्तर- वायुमण्डल के ऊष्मन (गर्म) एवं शीतलन (ठण्डा) होने की निम्न प्रक्रियाएँ (तरीके) हैं
(i) चालन-जब दो विभिन्न तापमान वाली वस्तुएँ एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो अधिक तापमान वाली वस्तु से कम तापमान वाली वस्तु की ओर उष्णता तब तक प्रवाहित होती रहती है जब तक कि दोनों वस्तुओं का तापमान एक समान न हो जाए। उष्णता के इस प्रवाह को चालन या संचालन कहते हैं। सूर्य से आने वाला सूर्यातप लघु तरंगों के रूप में होता है और उसका अधिकांश भाग वायुमण्डल से सीधा धरातल पर आता है तथा उसे गर्म कर देता है। वायुमण्डल की वायु धरातल के सम्पर्क में आती है और गर्म हो जाती है। इस विधि से वायुमण्डल की निचली परतें गर्म होती हैं। निचली परतों के सम्पर्क में आने वाली वायुमण्डल की ऊपरी परतें भी गर्म हो जाती हैं। अतः वायुमण्डल की निचली परतों को गर्म करने से चालन बहुत महत्त्वपूर्ण है।
(ii) संवहन-किसी पदार्थ में उसके तत्वों के साथ एक भाग से दूसरे भाग की ओर ऊष्मा के संचार को संवहन कहते हैं। जब किसी स्थान की वायु बहुत अधिक गर्म हो जाती है तो वह फैलती है तथा हल्की होकर ऊपर उठती है। इस प्रकार वह नीचे की ऊष्मा ऊपर ले जाती है, इस ऊपर को उठी हुई वायु का स्थान लेने के लिए ठण्डी और भारी वायु नीचे आती है और कालान्तर में वह भी गर्म हो जाती है। इस प्रकार संवहन धाराओं का निर्माण हो जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के सम्पर्क • में आने वाली वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लम्बवत् ऊपर उठकर वायुमण्डल में ताप का संचरण करती है।
(iii) अभिवहन-वायु के क्षैतिज संवहन से होने वाला ताप का स्थानान्तरण अभिवहन कहलाता है। वायु के लम्बवत् संचलन की अपेक्षा उसका क्षैतिज संचलन सापेक्षिक रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। मध्य अक्षांशों में दैनिक मौसम में आने वाली भिन्नताएँ केवल अभिवहन के कारण ही होती हैं। उच्च कटिबन्धीय प्रदेशों विशेषकर उत्तरी भाग में ग्रीष्म काल में चलने वाली स्थानीय पवन 'लू' इसी अभिवहन की क्रिया का ही परिणाम है।
(iv) पार्थिव विकिरण-कोई भी वस्तु निश्चित तापमान पर विभिन्न प्रकार की ऊष्मा तरंगें प्रसारित करती है जिसे विकिरण कहते हैं। पृथ्वी से होने वाले विकिरण को पार्थिव विकिरण कहते हैं। सूर्य से आने वाली ऊष्मा लघु तरंगों के रूप में होती है जिसे वायुमण्डल अधिक मात्रा में नहीं सोख सकता। जब ये लघु तरंगें भूतल पर आती हैं तो ये पृथ्वी की सतह को गर्म करती हैं। पृथ्वी स्वयं गर्म होने के पश्चात् एक विकिरण पिण्ड बन जाती है तथा वायुमण्डल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। यह ऊर्जा वायुमण्डल को नीचे से गर्म करती है। इस प्रक्रिया को पार्थिव विकिरण कहा जाता है। दीर्घ तरंगों के रूप में विकिरण वायुमण्डलीय गैसों मुख्यतया कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस प्रकार वायुमण्डल पार्थिव विकिरण अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होता है। इसके पश्चात् वायुमण्डल विकीर्णन द्वारा ताप को अन्तरिक्ष में संचरित कर देता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह एवं वायुमण्डल का तापमान स्थिर रहता है। वायुमण्डल के लम्बवत् तापन की यह प्रक्रिया संवहन कहलाती है। ऊष्मा का इस प्रकार का स्थानान्तरण केवल क्षोभमण्डल तक ही सीमित है।
प्रश्न 2.
धरातल पर तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तापमान किसी पदार्थ या स्थान के गर्म या ठण्डा होने का डिग्री में माप है। सूर्यातप से प्राप्त ऊर्जा का कुछ भाग वायुमण्डल में तथा अन्य विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा नष्ट हो जाता है। वह भाग जो धरातल पर पहुँचता है और उससे धरातल गर्म होता है, उसे तापमान कहते हैं। धरातल पर तापमान सर्वत्र समान नहीं होता। किसी भी स्थान पर तापमान निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता है
(1) अक्षांश रेखा-तापमान पर अक्षांश रेखाओं का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। भूमध्य रेखा पर सालभर दिन-रात की लम्बाई बराबर होती है तथा सूर्य की लम्बवत् किरणों के कारण उच्च तापमान रहता है। किन्तु उच्चतम तापमान दोनों गोला? में 20°-30° अक्षांशों के बीच मिलता है क्योंकि यहाँ उक्त दशाओं के साथ ही प्रतिचक्रवातीय दशाओं के कारण मौसम शुष्क रहता है जबकि भूमध्यरेखीय भागों में सालभर वर्षा होती है जिससे तापमान कुछ कम हो जाता है। इसके अतिरिक्त ध्रुवों की ओर तापमान क्रमशः कम होता जाता है।
(2) समुद्र तल से ऊँचाई (उत्तुंगता)-तापमान ऊँचाई के साथ घटता जाता है। तापमा 1 के घटने की यह दर प्रति 1000 मीटर पर 6.5° सेल्सियस है। इसे 'सामान्य ह्रास दर' कहते हैं।
(3) समुद्र से दूरी-स्थल की अपेक्षा जल धीरे-धीरे गर्म एवं ठण्डा होता है। स्थल जल्दी गर्म एवं जल्दी ठण्डा हो जाता है इसलिए समुद्री भागों में स्थल की अपेक्षा तापीय भिन्नता कम मिलती है। समुद्र के तटीय भागों में समुद्री हवाओं के कारण तापमान सम बना रहता है।
(4) वायुराशियों की प्रकृति-वायुराशियाँ जिस क्षेत्र से होकर गुजरती हैं वे अपनी प्रकृति के अनुकूल उस क्षेत्र के तापमान में परिवर्तन कर देती हैं। गर्म वायुराशियों के कारण तापमान अधिक तथा ठण्डी वायुराशियों के कारण कम हो जाता है।
(5) जल एवं स्थल का वितरण-जलीय भाग स्थल की अपेक्षा देर से गर्म और देर से ठण्डा होता है इसलिए दोनों के तापमान में पर्याप्त अन्तर मिलता है। जिन भागों में जल स्थल दोनों हैं वहाँ औसत तापमान अधिक तथा जहाँ केवल जलीय भाग है, औसत तापमान कम पाया जाता है।
(6) प्रचलित पवनें-प्रचलित पवनें अपनी प्रकृति के अनुरूप अपने क्षेत्र के तापमान को परिवर्तित कर देती हैं। पछुवा हवाओं के कारण उस क्षेत्र में तापमान अधिक हो जाता है जबकि ध्रुवीय हवाओं के कारण सम्बन्धित क्षेत्रों में तापमान कम हो जाता है।
(7) महासागरीय धाराएँ-धाराएँ जिस क्षेत्र में जाती हैं अपनी प्रकृति के अनुरूप वहाँ के तापमान को परिवर्तित कर देती हैं। गल्फस्ट्रीम एवं क्यूरोशिवा की गर्म जलधाराओं के कारण उनके क्षेत्रों का तापमान बढ़ जाता है जबकि लैब्रोडोर की धारा अपने क्षेत्र के तापमान को कम कर देती है।
(8) पर्वतीय ढाल-वह पर्वतीय ढाल जो सूर्य के सामने होता है वहाँ तापमान अधिक होता है जबकि विपरीत ढालों पर तापमान कम होता है।
(9) स्थानीय कारक-उपर्युक्त कारकों के अलावा कुछ स्थानीय कारक; जैसे-तूफान, बादल, ओस आदि भी तापमान को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 3.
तापक्रम की विलोमता से क्या अभिप्राय है ? गरम वायु तापमान की विलोमता के प्रकारों को बताइए।
अथवा
तापमान के व्युत्क्रम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामान्य नियम के अनुसार जैसे-जैसे हम ऊँचाई पर जाते हैं तापक्रम क्रमशः कम होता जाता है। तापक्रम के कम होने की यह दर प्रति 1000 मीटर पर 6.5° सेल्सियस है। तापक्रम के इस पतन को 'सामान्य पतन दर' कहते हैं। स्पष्टतः वायुमण्डल के निचले भाग में जहाँ हम धरातल के सम्पर्क में आते हैं, तापक्रम अधिक होता है किन्तु ऊँचाई के साथ निरन्तर कम होता जाता है। यह स्थिति केवल क्षोभमण्डल में ही होती है। इस सामान्य ताप पतन के विपरीत कभी-कभी कालिक या स्थानीय रूप से तापक्रम घटने के बजाय बढ़ने लगे तो इसे 'ऋणात्मक ताप पतन दर' कहते हैं। इस क्रिया में सामान्यतः नीचे ठण्डी वायु की परत तथा ऊपर गर्म वायु की परत हो जाती है। इसी स्थिति को तापीय विलोमता, तापीय प्रतिलोमन अथवा ताप का व्युत्क्रमण कहते हैं। घाटी की तली। तापक्रम की विलोमता के प्रकार-तापमान की विलोमता को अग्र प्रकारों से विभाजित किया जा सकता है
1. तापीय विलोमता-
(अ) तलीय या धरातलीय विलोमता,
(ब) उच्च वायुमण्डलीय विलोमता।
2. अभिवहनीय या सम्पर्कीय विलोमता-
(अ) चक्रवाती विलोमता,
(ब) क्षैतिज प्रवाही विलोमता,
(स) घाटी विलोमता या लम्बवत् प्रवाही विलोमता।
3. यान्त्रिक विलोमता-धरातलीय विलोमता उच्च अक्षांशों से जाड़े की लम्बी रातों में हिमाच्छादित भागों में होती है। उच्च वायुमण्डलीय विलोमता वायुमण्डल में व्याप्त ओजोन आदि गैसों द्वारा ऊष्मा के शोषण से उत्पन्न होती है। अभिवहनीय या सम्पकीय विलोमता में वायुमण्डल की अस्थिरता तथा प्रबल क्षैतिज पवन संचार आवश्यक होता है। यह स्थिति चक्रवातीय दशाओं में गर्म एवं ठण्डी हवाओं व जलधाराओं के क्षैतिज प्रवाह के कारण तथा घाटियों में उत्पन्न होती है। यान्त्रिक प्रतिलोमन धरातल से ऊपर वायुमण्डल में वायु के ऊपर-नीचे गतिशील होने के कारण उत्पन्न होता है। यह प्रतिलोमन प्रतिचक्रवातीय दशाओं के साथ अधिक होता है।
प्रश्न 4.
तापीय विलोमता के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख करते हुए इसके महत्त्व को बताइए।
उत्तर:
तापीय विलोमता की स्थिति में धरातल के पास वायु की ठण्डी परतें तथा ऊपर गर्म परतों का विस्तार हो जाता है, जिससे धरातल के पास तापमान कम और ऊँचाई पर तापमान अधिक हो जाता है। यही तापक्रम की विलोमता है। तापक्रम की विलोमता के लिए निम्नांकित भौगोलिक परिस्थितियाँ उत्तरदायी हैं
(1) लम्बी रात्रि-रात्रि के समय पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल की निचली परत ठण्डी हो जाती है जबकि इसके ऊपर गर्म वायु की परतें होती हैं। रात्रि जितनी लम्बी होगी धरातल से विकिरण उतना ही अधिक होगा। इस तरह की विलोमता धरातल के निचले भागों में अधिक होती है।
(2) स्वच्छ वायुमण्डल-स्वच्छ वायुमण्डल द्वारा पार्थिव विकिरण से निकलने वाली ऊर्जा बिना किसी बाधा के ऊपर चली जाती है। इस प्रकार लगातार विकिरण से धरातल ठण्डा हो जाता है जबकि उसके ऊपर गर्म वायु की परतें होती
(3) शीतल एवं शुष्क वायु-शीतल एवं शुष्क वायु में पार्थिव विकिरण से उत्पन्न ताप को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। अतः धरातल ठण्डा हो जाता है और वायु इस विकिरित ऊर्जा को ग्रहण करके ऊपर अपने तापक्रम को बढ़ा लेती है।
(4) शान्त वायु-तापीय विलोमता के लिए वायु का शान्त होना आवश्यक है। ऐसे भागों में लगातार पार्थिव विकिरण के कारण धरातल शीघ्र ठण्डा हो जाता है और नीचे ठण्डी वायु बनी रहती है जबकि ऊपरी भागों में तापमान बढ़ जाता है और विलोमता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
(5) हिमाच्छादित प्रदेश-हिमाच्छादित भागों में धरातल पर तापमान कम पाया जाता है क्योंकि वायु धरातल से सूर्यातप का अधिकांश परावर्तन हो जाता है और धरातल ताप ग्रहण नहीं
कर पाता। इस प्रकार उत्पन्न विलोमता की स्थिति को ही तापीय विलोमता कहा जाता है।
(6) घाटियों में रात्रि के समय निचले भागों में संवहन के कारण तापमान कम हो जाता है जबकि घाटी के दोनों ओर ढालों पर तापमान अधिक होता है नीचे ठण्डी वायु रहती है। इस प्रकार की विलोमता घाटी विलोमता कहलाती है। तापीय विलोमता का महत्त्व-तापीय विलोमता एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके कुछ लाभ और कुछ हानियाँ हैं। आर्थिक दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक प्रक्रिया है। तापीय विलोमता बहुत कुछ मौसमी परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी है जिसका प्रभाव मानव पर पड़ता है। तापीय विलोमता के कारण कुहरा उत्पन्न हो जाता है। जाड़ों में यह स्थिति विशेष रूप से आती है।
तापीय विलोमता के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं-
तापीय विलोमता लाभ के बजाय हानिकर अधिक है। इससे समुद्री जहाजों के टकराने का खतरा बढ़ जाता है। यह सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान 203) फसलों के लिए हानिकारक होती है। कैलिफोर्निया में पाले के द्वारा बागानों को जो भयंकर हानि सन् 1913, 1917 एवं 1923 में हुई वह आज भी लोगों को स्मरण है। पाले द्वारा व्यापक क्षेत्र में कृषि की हानि होती है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वायु के क्षैतिज संचरण के कारण ऊष्मा के स्थानान्तरण को कहते हैं?
(क) अभिवहन
(ख) संचालन
(ग) विकिरण
(घ) संवहन।
उत्तर:
(क) अभिवहन
प्रश्न 2.
प्रमुख रूप से वायुमण्डल का तापन होता है?
(क) दीर्घतरंग पार्थिव विकिरण द्वारा
(ख) लघुतरंग सौर्यिक विकिरण द्वारा
(ग) प्रत्यावर्तित सौर्यिक विकिरण द्वारा
(घ) प्रकीर्णित सौर्यिक विकिरण द्वारा ।
उत्तर:
(क) दीर्घतरंग पार्थिव विकिरण द्वारा
प्रश्न 3.
अन्य कारकों के समान रहने पर पृथ्वी के द्वारा सूर्यातप की प्राप्ति अधिकतम होगी?
(क) 3 जनवरी को
(ख) 3 मई को
(ग) 4 अगस्त को
(घ) 4 जुलाई को।
उत्तर:
(क) 3 जनवरी को
प्रश्न 4.
अक्षांशीय ऊष्मा संतुलन के अनुसार निम्नलिखित में से कौन सा प्रदेश सर्वाधिक ऊर्जा न्यून प्रदेश है?
(क) दोनों गोलार्डों में 30° से 70° अक्षांशों के बीच
(ख) केवल 70° उ. से 90° उ. अक्षांशों के बीच
(ग) केवल 80° द. से 90° द. अक्षांशों के बीच
(घ) दोनों गोलार्डों में 80°–90° अक्षांशों के बीच।
उत्तर:
(ग) केवल 80° द. से 90° द. अक्षांशों के बीच
प्रश्न 5.
लम्बी रातें, स्थिर मौसम, स्वच्छ आकाश आदर्श दशायें हैं?
(क) वाताग्री तापमान प्रतिलोमन हेतु
(ख) विकिरण तापमान प्रतिलोमन हेतु
(ग) घाटी तापमान प्रतिलोमन हेतु
(घ) अवतल तापमान प्रतिलोमन हेतु।
उत्तर:
(ख) विकिरण तापमान प्रतिलोमन हेतु
प्रश्न 6.
किस दिन पृथ्वी सूर्य के सबसे निकट होती है?
(क) 21 जून
(ख) 3 जनवरी
(ग) 23 सितम्बर
(घ) 4 जुलाई।
उत्तर:
(ख) 3 जनवरी
प्रश्न 7.
निम्नलिखित अक्षांशों में से किस पर पृथ्वी की घूर्णन गति लगभग 1700 किमी प्रति घंटा है?.
(क) विषुवत वृत
(ख) कर्क वृत
(ग) आर्कटिक वृत
(घ) 45° उत्तरी दक्षिणी।
उत्तर:
(क) विषुवत वृत
प्रश्न 8.
धरातल को गर्म करने वाला वाले सार्थक कारक है/हैं-
(A) सौर विकिरण की लघु तरंगें
(B) प्रति विकिरण की दीर्घ तरंगें'
(C) भूगर्भीय ताप
(D) प्रचलित पवन।
(क) A व B
(ख) A, B व C
(ग) A, B C व D
(घ) केवल AI
उत्तर:
(क) A व B
प्रश्न 9.
समताप रेखाएँ उन स्थानों को मिलाती हैं, जहाँ
(क) अभिलिखित तापमान समान हो
(ख) समुद्र तल पर समायोजित तापमान समान हो
(ग) अभिलिखित न्यूनतम तापमान समान हो ।
(घ) अभिलिखित उच्चतम तापमान समान हो।
उत्तर:
(ख) समुद्र तल पर समायोजित तापमान समान हो
प्रश्न 10.
एल्बिडो से तात्पर्य है?
(क) ऊष्मा को सोखने की क्षमता
(ख) सूर्य की किरणों के मार्ग को परिवर्तित करने की क्षमता
(ग) धरातल से सौर विकिरण की परावर्तित मात्रा
(घ) धरातल से वायु में स्थानान्तरित ऊष्मा की मात्रा।
उत्तर:
(ग) धरातल से सौर विकिरण की परावर्तित मात्रा
प्रश्न 11.
किसी वस्तु की सतह पर पहुँचने वाले विकिरण ऊर्जा का जितना भाग परावर्तन होता है, कहलाता है
(क) अवशोषण
(ख) प्रकीर्णन
(ग) विसरण
(घ) धवलता।
उत्तर:
(घ) धवलता।
प्रश्न 12.
अपसौर (सूर्य उच्च) दूरी कितनी है
(क) 152 मिलियन किमी.
(ख) 147 मिलियन किमी.
(ग) 142 मिलियन किमी.
(घ) 157 मिलियन किमी.।
उत्तर:
(क) 152 मिलियन किमी.
प्रश्न 13.
तापमान की सामान्य ह्रास (पतन) दर है
(क) 4°C किमी
(ख) 6°C किमी
(ग) 8°C किमी
(घ) 10°C किमी.।
उत्तर:
(ख) 6°C किमी
प्रश्न 14.
पृथ्वी की सतह तथा वायुमण्डल द्वारा सूर्य की बाह्य सतह अर्थात् फोटोस्फीयर से प्राप्त विकीर्ण ऊर्जा को क्या कहते हैं?
(क) सौर कलंक
(ख) सूर्यातप
(ग) सौर ज्वाला
(घ) सौर पवन।
उत्तर:
(ख) सूर्यातप
प्रश्न 15.
पृथ्वी का 'अलबिडो' मुख्यतः प्रभावित होता है
(क) मेघाच्छादन से
(ख) वायुमण्डल में धूलिकणों से
(ग) वायुमण्डलीय परतों से
(घ) पृथ्वी के धरातल की प्रकृति से।
उत्तर:
(घ) पृथ्वी के धरातल की प्रकृति से।
प्रश्न 16.
समताप रेखाओं के वितरण और प्रतिरूप के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. उत्तर गोलार्द्ध में, शीतकाल में समताप रेखाएँ महाद्वीपों पर तीक्ष्णता से भूमध्य रेखा की ओर मुड़ती हैं।
2. उत्तरी गोलार्द्ध में, ताप प्रवणताएँ गर्मियों में शीतकाल की अपेक्षा ज्यादा होती हैं।
(क) केवल 1
(ख) केवल 2
(ग) 1 और 2 दोनों
(घ) न तो 1 और न ही 2।
उत्तर:
(क) केवल 1
प्रश्न 17.
उपसौर व अपसौर की स्थिति क्रमानुसार कब होती है?
(क) 3 जनवरी व 4 जुलाई
(ख) 5 जनवरी व 4 जुलाई
(ग) 3 जनवरी व 6 जुलाई
(घ) 2 जनवरी व 3 जुलाई।
उत्तर:
(क) 3 जनवरी व 4 जुलाई
प्रश्न 18.
पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने वाली सूर्य ऊर्जा क्या कहलाती है?
(क) सूर्य तपन
(ख) ऊर्जा ताप
(ग) तापमान
(घ) धूल।
उत्तर:
(क) सूर्य तपन
प्रश्न 19.
तापमान संक्रमणांक (व्युत्क्रमण) इंगित करता है
(क) बढ़ती हुई ऊँचाई के साथ घटते तापमान को
(ख) बढ़ती हुई ऊँचाई के साथ स्थिर तापमान को
(ग) बढ़ती हुई ऊँचाई के साथ बढ़ते तापमान को
(घ) बढ़ती हुई ऊँचाई के साथ अनियमित तापमान को।
उत्तर:
(ग) बढ़ती हुई ऊँचाई के साथ बढ़ते तापमान को
प्रश्न 20.
भूमण्डलीय ऊष्मा बजट में एल्बिडो का प्रतिशत क्या है?
(क) 5 प्रतिशत
(ख) 20 प्रतिशत
(ग) 70 प्रतिशत
(घ) 35 प्रतिशत।
उत्तर:
(घ) 35 प्रतिशत।
प्रश्न 21.
भूमण्डलीय ऊष्मा संतुलन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
पृथ्वी पर औसत तापमान लगभग एकसमान रहता है क्योंकि सूर्य से प्राप्त होने वाला सूर्यातप तथा पृथ्वी द्वारा छोड़े जाने वाले पार्थिव विकिरण की मात्रा लगभग एकसमान है। हमारी पृथ्वी को सूर्य से निकलने वाली कुल ऊष्मा का केवल दो अरबवाँ भाग ही प्राप्त होता है। वायुमण्डल तथा सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान 205) पृथ्वी के धरातल द्वारा इस थोड़े से अंश का एक बड़ा हिस्सा अवशोषण, परावर्तन एवं प्रकीर्णन हो जाता है। माना कि वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाला ताप 100 इकाई है, इसमें से केवल 51 इकाई ताप ही पृथ्वी पर पहुँचता है।
49 इकाई ताप वायुमण्डल तथा अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है। 35 इकाई तो पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है। इनमें से 6 इकाई अंतरिक्ष में प्रकीर्णन द्वारा, 27 इकाई ताप बादलों द्वारा परावर्तित हो जाता है तथा 2 इकाई पृथ्वी द्वारा परावर्तित हो जाता है। सौर विकिरण की इस परावर्तित मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहते हैं। शेष 65 इकाइयों में से 14 इकाई ताप वायुमंडल द्वारा अवशोषित होता है।
इस प्रकार 100 इकाइयों में से 51 इकाई ताप ही पृथ्वी पर पहुँच पाता है। पृथ्वी द्वारा अवशोषित 51 इकाइयाँ पुनः पार्थिव विकिरण के रूप में लौट जाती हैं। इनमें से 17 इकाइयाँ तो सीधे अंतरिक्ष में लौट जाती हैं तथा 34 इकाइयाँ वायुमण्डल द्वारा अवशोषित हो जाती हैं। इन उप इकाइयों में से 6 इकाइयाँ स्वयं वायुमण्डल द्वारा, 9 इकाइयाँ संवहन द्वारा तथा 19 इकाइयाँ वाष्पीकरण के रूप में अवशोषित होती हैं। वायुमण्डल द्वारा अवशोषित 48 इकाइयाँ पुनः अंतरिक्ष में लौट जाती हैं। इस प्रकार पृथ्वी तथा उसके वायुमण्डल को प्राप्त ऊष्मा द्वारा छोड़ी गयी ऊष्मा के बराबर है। इस प्रकार पृथ्वी तथा वायुमण्डल द्वारा प्राप्त ताप तथा उनके द्वारा ताप के ह्रास के संतुलन को भूमण्डलीय ऊष्मा संतुलन या ऊष्मा बजट कहते हैं।
प्रश्न 22.
सूर्यातप तथा पार्थिव विकिरण क्या है ? वायुमण्डलीय ऊष्मा बजट को समझाइए।
उत्तर:
सूर्यातप-पृथ्वी तथा वायुमण्डल के लिए समस्त ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। सूर्य के तल से ऊष्मा निरन्तर लघु तरंगों के रूप में विकरित होती रहती है। सूर्य से विकिरित होने वाले इस ताप को सूर्यातप कहते हैं। पार्थिव विकिरण-पृथ्वी सूर्यातप द्वारा ही ऊष्मा प्राप्त करती है। जब धरातल गर्म हो जाता है तो उससे विकिरण होता है क्योंकि प्रत्येक गर्म वस्तु विकिरण करती है। पृथ्वी से होने वाला विकिरण दीर्घ तरंगों के रूप में होता है। वायुमण्डल प्रत्यक्ष रूप से सूर्य से प्राप्त ऊष्मा से गर्म नहीं होता बल्कि पृथ्वी से विकिरण द्वारा प्राप्त ऊष्मा से गर्म होता है, इसे ही पार्थिव विकिरण कहते हैं। वायुमण्डलीय पृथ्वी तथा वायुमण्डल के ऊष्मा बजट को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है -
[आ प्रवेशी सौर्य विकिरण की मात्रा
प्रश्न 23.
तापमान विलोमता (ताप व्युत्क्रम)
उत्तर:
क्षोभमण्डल में सामान्यतया ऊँचाई के साथ तापमान कम होने के स्थान पर बढ़ने लगता है तो इसे तापीय विलोमता कहते हैं।
प्रश्न 24.
सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
प्रश्न 25.
पतन दर। (उत्तर सीमा 20 शब्द)
उत्तर:
धरातलीय सतह से वायुमण्डल में ऊँचाई की ओर जाने पर तापमान में होने वाले ह्रास को क्षय दर कहते हैं जो प्रति 1000 मीटर पर 6.5° सेल्सियस है।
प्रश्न 26.
ऊष्मा बजट। (20 शब्दों में उत्तर दें)
उत्तर:
सौर विकिरण के द्वारा पृथ्वी जितनी ऊष्मा प्राप्त करती है, उतनी ही ऊष्मा पृथ्वी पार्थिव विकिरण के द्वारा अंतरिक्ष में वापस लौटा देती है। इस संतुलन को ऊष्मा बजट कहते हैं।
प्रश्न 27.
तापक्रम की विलोमता की व्याख्या कीजिए। यह किन अवस्थाओं में होता है ? (50 शब्दों में उत्तर दें)
उत्तर:
सामान्यतया क्षोभमण्डल में ऊँचाई के साथ तापक्रम कम होने के स्थान पर बढ़ने लगता है। इसे ही तापक्रम की विलोमता कहते हैं। तापक्रम की विलोमता हेतु जाड़े की दीर्घ रात्रि, स्वच्छ व बादलरहित आकाश, शुष्क पवन, शांत व स्थिर वायुमण्डल व हिमाच्छादित धरातल आदि आवश्यक अवस्थाएँ हैं।
प्रश्न 28.
ताप व्युत्क्रमण। (200 शब्दों में उत्तर दें)
उत्तर:
सामान्य परिस्थितियों में जैसे-जैसे हम ऊँचाई पर जाते हैं, तापक्रम क्रमशः कम होता जाता है। तापक्रम के घटने की दर प्रति 1000 मीटर पर 6.5 सेन्टीग्रेड है। इसे सामान्य पतन दर भी कहते हैं। परन्तु कुछ परिस्थितियों में ऊँचाई के साथ-साथ तापमान घटने के स्थान पर बढ़ने लगता है। ऊँचाई के साथ-साथ तापमान के बढ़ने को ताप व्युत्क्रम कहते हैं। स्पष्ट है कि तापमान व्युत्क्रमन की स्थिति में धरातल के समीप ठण्डी वायु तथा ऊपर की ओर गर्म वायु होती है। इसके लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियाँ सहयोग देती हैं
(1) लम्बी रातें-रात्रि के समय पार्थिव विकिरण द्वारा वायुमण्डल की निचली परत ठण्डी हो जाती है जबकि इसके ऊपर गर्म वायु की परतें होती हैं। रात्रि जितनी लम्बी होगी धरातल से विकिरण उतना अधिक होगा। इस तरह की विलोमता धरातल के निचले भागों में अधिक होती है।
(2) स्वच्छ वायुमण्डल-स्वच्छ वायुमण्डल द्वारा पार्थिव विकिरण से निकलने वाली ऊर्जा बिना किसी बाधा के ऊपर चली जाती है। इस प्रकार लगातार विकिरण से धरातल ठण्डा हो जाता है जबकि उसके ऊपर गर्म वायु की परतें होती हैं।
(3) शीतल एवं शुष्क वायु-शीतल एवं शुष्क वायु में पार्थिव विकिरण से उत्पन्न ताप को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। अतः धरातल ठण्डा हो जाता है और वायु इस विकिरित ऊर्जा को ग्रहण करके ऊपर अपने तापक्रम को बढ़ा लेती है।
(4) शान्त वायु-तापीय विलोमता के लिए वायु का शान्त होना आवश्यक है। ऐसे भागों में लगातार पार्थिव विकिरण के कारण धरातल शीघ्र ठण्डा हो जाता है और नीचे ठण्डी वायु बनी रहती है जबकि ऊपरी भागों में तापमान बढ़ जाता है और विलोमता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
(5) हिमाच्छादित प्रदेश-हिमाच्छादित भागों में धरातल पर तापमान कम पाया जाता है क्योंकि वायु धरातल से सूर्यातप का अधिकांश परावर्तन हो जाता है और धरातल ताप ग्रहण नहीं कर पाता। इस प्रकार उत्पन्न विलोमता की स्थिति को ही तापीय विलोमता कहा जाता है।
(6) ढालू घाटियाँ-घाटियों में रात्रि के समय निचले भागों में संवहन के कारण वायुमण्डल कम हो जाता है जबकि घाटी के दोनों ओर ढालों पर तापमान अधिक होता है तथा नीचे ठण्डी वायु रहती है। इस प्रकार की विलोमता घाटी विलोमता कहलाती है।
प्रश्न 29.
परावर्तन गुणांक (एल्बिडो)।
उत्तर:
सूर्य विकिरण के रूप में पृथ्वी पर आपतित मात्रा एवं अंतरिक्ष में परावर्तित मात्रा के अनुपात को पृथ्वी का परावर्तन गुणांक (एल्बिडो) कहते हैं। सामान्यतया पृथ्वी का एल्बिडो 35 प्रतिशत है।
प्रश्न 30.
अपसौर।
उत्तर:
जब पृथ्वी 4 जुलाई को अपनी कक्षा में सूर्य से अधिकतम दूरी (लगभग 15.20 करोड़ किमी.) पर होती है तो उसे अपसौर कहते हैं।
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