RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

Rajasthan Board RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा  Important Questions and Answers. 

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा 

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
मृदा की परतों को कहा जाता है?
(क) परत
(ख) संस्तर
(ग) पर्पटी
(घ) शैल।
उत्तर:
(ख) संस्तर

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा  

प्रश्न 2
मृदा परिच्छेदिका में कितनी परतें मिलती हैं ?
(क) 2
(ख) 3
(ग) 4
(घ) 5
उत्तर:
(ख) 3

प्रश्न 3. 
भारत के सर्वाधिक क्षेत्र पर कौनसी मदाएँ मिलती हैं?
(क) इनसेप्टीसोल्स 
(ख) एंटीसोल्स 
(ग) वर्टीसोल्स 
(घ) मालीसोल्स। 
उत्तर:
(क) इनसेप्टीसोल्स 

प्रश्न 4. 
पुरानी जलोढ़ कहलाती है
(क) बाँगर
(ख) खादर 
(ग) रेगुर 
(घ) पीट। 
उत्तर:
(क) बाँगर

प्रश्न 5. 
भारत में काली मिट्टी है
(क) विस्थापित
(ख) दलदली 
(ग) लावा जन्य
(घ) विक्षालन जन्य। 
उत्तर:
(ग) लावा जन्य

प्रश्न 6. 
लैटेराइट मृदाओं में पर्याप्त मात्रा मिलती है
(क) नाइट्रोजन व पोटाश की
(ख) पोटाश व फॉस्फेट की 
(ग) लौह ऑक्साइड व नाइट्रोजन की
(घ) लौह ऑक्साइड व पोटाश की। 
उत्तर:
(घ) लौह ऑक्साइड व पोटाश की। 

प्रश्न 7. 
उत्खात भूमि स्थलाकृतियाँ प्रमुख रूप से देखी जाती हैं
(क) पश्चिमी घाट में
(ख) पूर्वी घाट में 
(ग) गोदावरी नदी की द्रोणी में
(घ) चम्बल नदी की द्रोणी में। 
उत्तर:
(घ) चम्बल नदी की द्रोणी में। 

प्रश्न 8. 
भारत में पाई जाने वाली काली मिट्टी निम्न में से किस फसल से संबंधित है?
(क) तंबाकू
(ख) चाय 
(ग) कपास
(घ) गेहूँ। 
उत्तर:
(ग) कपास

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सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए

1.

1. स्तम्भ अ

स्तम्भ ब

(i) पुरातन कौँप

(अ) पर्वतीय

(ii) नूतन काँप

(ब) बांगर

(iii) नूतनतम काँप

(स) काली

(iv) रेगुर

(द) खादर

(v) अपरिपक्व मृदा

(य) डेल्टाई

उत्तर:

1. स्तम्भ अ

स्तम्भ ब

(i) पुरातन कौँप

(ब) बांगर

(ii) नूतन काँप

(द) खादर

(iii) नूतनतम काँप

(य) डेल्टाई

(iv) रेगुर

(स) काली

(v) अपरिपक्व मृदा

(अ) पर्वतीय

2. 

2. ससम्भ अ (क्षेत्र का नाम)

स्तम्भ ब (अपरदन का कारक)

(i) थार का मरुस्थल

(अ) नदी जात (प्रवाहित जल जात)

(ii) मैदानी भाग

(ब) सागरीय तरंग जात

(iii) समुद्र तटीय भाग

(स) हिमानी जात

(iv) उच्च हिमालय क्षेत्र

(द) वायु जात

उत्तर:

2. ससम्भ अ (क्षेत्र का नाम)

स्तम्भ ब (अपरदन का कारक)

(i) थार का मरुस्थल

(द) वायु जात

(ii) मैदानी भाग

(अ) नदी जात (प्रवाहित जल जात)

(iii) समुद्र तटीय भाग

(ब) सागरीय तरंग जात

(iv) उच्च हिमालय क्षेत्र

(स) हिमानी जात

उत्तर:

रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न

निम्न वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. मृदा............की सबसे महत्वपूर्ण परत है। 
  2. मृदा सर्वेक्षण विभाग...........में स्थापित किया गया। 
  3. मध्यवर्ती मैदान में...........मृदाएँ मिलती हैं। 
  4. शुष्क जलवायु वाली दशाओं में अत्यधिक सिंचाई.........को बढ़ावा देती है। 
  5. अवनालिकाओं को.................खेत बनाकर समाप्त किया जा सकता है। 

उत्तर:

  1. भूपर्पटी 
  2. 1956 
  3. खादर 
  4. कोशिका क्रिया
  5. सीढ़ीदार।

सत्य-असत्य कथन सम्बन्धी प्रश्न

निम्न कथनों में से सत्य-असत्य कथन की पहचान कीजिए

  1. मृदा एक मूल्यवान संसाधन है।
  2. क संस्तर सबसे निम्नवर्ती खंड होता है।
  3. काली मृदाएँ मरुस्थल में मिलती हैं।
  4. भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है।
  5. वनोन्मूलन मृदा अपरदन के कारणों में से एक है।

उत्तर:

  1. सत्य 
  2. असत्य 
  3. असत्य 
  4. सत्य 
  5. सत्य। 

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
भू पर्पटी की सबसे महत्वपूर्ण परत कौन-सी है ? 
उत्तर:
मृदा भूपर्पटी की सबसे महत्वपूर्ण परत है। 

प्रश्न 2. 
मृदा किसका सम्मिश्रण होती है ? 
उत्तर:
मृदा शैल मलबा एवं जैव सामग्री का सम्मिश्रण होती है जो कि पृथ्वी की सतह पर विकसित होते हैं। 

प्रश्न 3. 
मृदा को नियंत्रित व प्रभावित करने वाले कारक कौनसे हैं? 
उत्तर:
जलवायु वनस्पति उच्चावच जनक सामग्री व जीवरूप तथा समय। 

प्रश्न 4. 
मृदा के प्रमुख घटक लिखिए।
उत्तर:
खनिज कण जीवांश जल तथा वायु मृदा के प्रमुख घटक हैं। 

प्रश्न 5. 
संस्तर क्या है ? 
उत्तर:
भूमि पर गड्ढा खोदने पर मृदा की तीन परतें दिखाई देती हैं जिन्हें संस्तर कहा जाता है। 

प्रश्न 6. 
मृदा का 'क' संस्तर क्या है ?
उत्तर:
मृदा का 'क' संस्तर सबसे ऊपरी खण्ड होता है जहाँ पौधों की वृद्धि के लिए अनिवार्य जैव पदार्थों का निर्माण खनिज पदार्थ पोषक तत्वों एवं जल के संयोग से होता है।

प्रश्न 7. 
मृदा का 'ख' संस्तर क्या होता है।
उत्तर:
यह संस्तर 'क' व ग संस्तर के बीच एक संक्रमण खंड होता है। जिसे नीचे व ऊपर दोनों से पदार्थ प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8. 
मृदा के 'ग' संस्तर का निर्माण कैसे होता है ? 
उत्तर:
मृदा के 'ग' संस्तर का निर्माण ढीली जनक सामग्री से होता है।

प्रश्न 9. 
मृदा परिच्छेदिका किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी की ऊपरी परत से नीचे की ओर मृदा का ऊर्ध्वाधर खण्ड जिससे कि मृदा की परतों के अनुक्रम का जनक सामग्री तक पता चलता है। मृदा परिच्छेदिका कहलाती है।

प्रश्न 10. 
जनक चट्टान या आधारी चट्टान क्या है ? 
उत्तर:
मृदा के तीन संस्तरों क ख व ग के नीचे एक चट्टान होती है जिसे जनक चट्टान या आधारी चट्टान कहते हैं। 

प्रश्न 11.
प्राचीनकाल में मृदा को कितने भागों में बाँटा गया था? उत्तर-दो भागों में- 

  1. उर्वर 
  2. ऊसर (अनुर्वर)। 

प्रश्न 12. 
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारतीय मिट्टियों को कितने वर्गों में विभाजित किया है?
उत्तर:

  1. इंसेप्टीसोल्स 
  2. एंटीसोल्स 
  3. एल्फीसोल्स 
  4. वर्टीसोल्स 
  5. एरीडीसोल्स 
  6. अल्टीसोल्स 
  7. मॉलीसोल्स 
  8. अन्य मिट्टियाँ।

प्रश्न 13. 
उत्पत्ति रंग-संयोजन तथा अवस्थिति के आधार पर मिट्टियों को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:

  1. जलोढ़ मृदाएँ 
  2. काली मृदाएँ 
  3. लाल और पीली मृदाएँ 
  4. लैटेराइट मृदाएँ 
  5. शुष्क मृदाएँ 
  6. लवण मृदाएँ 
  7. पीटमय मृदाएँ 
  8. वन मृदाएँ।


प्रश्न 14. 
जलोढ़ मृदाएँ कहाँ पायी जाती हैं ? 
उत्तर:
जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान तथा नदी घाटियों के विस्तृत भागों पर मिलती हैं। 

प्रश्न 15. 
जलोढ़ मृदाओं का रंग कैसा होता है ? 
उत्तर:
जलोढ़ मृदाओं का रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है। 

प्रश्न 16. 
जलोढ़ मृदाएँ किस प्रकार की मृदाएँ हैं? 
उत्तर:
निक्षेपण जन्य मृदाएँ। 

प्रश्न 17. 
खादर मृदाएँ कहाँ मिलती हैं? 
उत्तर:
गंगा के ऊपरी व मध्यवर्ती मैदानी भागों में जहाँ भूमि निम्न मिलती है। 

प्रश्न 18. 
बाँगर क्या है? 
उत्तर:
मध्यवर्ती मैदानी भाग की पुरातन जलोढ़ बांगर कहलाती है। 

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प्रश्न 19. 
काली मृदाएँ कहाँ पायी जाती हैं? 
उत्तर:
दक्कन के पठार के अधिकांश भाग पर। 

प्रश्न 20. 
काली मृदाओं में किन तत्वों की प्रधान होती है ? 
उत्तर:
काली मृदाओं में चूना लौह मैग्नीशियम तथा ऐल्युमिना के तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। 

प्रश्न 21. 
लाल व पीली मृदाएँ कहाँ मिलती हैं ?
उत्तर:
दक्कन पठार के पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले उन क्षेत्रों में जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टानें मिलती हैं लाल व पीली मृदाएँ मिलती हैं।

प्रश्न 22. 
लैटेराइट मृदाओं का रंग कैसा होता है? 
उत्तर:
ईंट के समान। 

प्रश्न 23. 
लैटेराइट मृदा किन क्षेत्रों में विकसित होती है ? 
उत्तर:
लैटेराइट मृदा उच्च तापमान तथा भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है। 

प्रश्न 24. 
लैटेराइट मृदाओं में किन तत्वों की कमी होती है ? 
उत्तर:
लैटेराइट मृदाओं में जैव पदार्थ नाइट्रोजन फॉस्फेट तथा कैल्शियम तत्वों की कमी होती है। 

प्रश्न 25. 
लैटेराइट मृदाएँ भारत के किन क्षेत्रों में प्रमुख रूप से मिलती हैं ?
उत्तर:
लैटेराइट मृदा प्रमुख रूप से कर्नाटक केरल तमिलनाडु मध्य प्रदेश तथा उड़ीसा राज्यों के अलावा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में मिलती हैं।

प्रश्न 26. 
काजू की कृषि के लिये कौन-सी मृदा उपयुक्त होती है ? 
उत्तर:
लैटेराइट मृदा।। 

प्रश्न 27.
शुष्क मृदाएँ प्रमुख रूप से कहाँ मिलती हैं ? 
उत्तर:
पश्चिमी राजस्थान में। 

प्रश्न 28. 
शुष्क मृदाओं का निर्माण कैसे हुआ है? 
उत्तर:
शुष्क जलवायु उच्च तापमान व तीव्र वाष्पीकरण के कारण। 

प्रश्न 29. 
लवण मृदाओं में किन लवणों की पर्याप्तता रहती है ? 
उत्तर:
लवण मृदाओं में सोडियम पोटेशियम तथा मैग्नीशियम तत्वों की पर्याप्तता मिलती है। 

प्रश्न 30. 
लवण मृदाओं के प्रमुख क्षेत्र लिखिए।
उत्तर:
पश्चिमी गुजरात पश्चिमी बंगाल के सुन्दर वन क्षेत्र तथा पूर्वी तट के डेल्टाई भाग भारत में लवण मृदाओं के प्रमुख क्षेत्र हैं।

प्रश्न 31. 
लवणीय मृदाओं को कृषि योग्य बनाने के लिए क्या करना चाहिए? 
उत्तर:
जिप्सम का प्रयोग। 

प्रश्न 32. 
पीट मृदाओं का रंग कैसा होता है? 
उत्तर:
गाढ़ा व काले रंग की होती है। 

प्रश्न 33. 
पीटमय मृदाएँ प्रमुख रूप से किन क्षेत्रों में मिलती हैं ?
उत्तर:
पीटमय मृदाएँ प्रमुख रूप से बिहार के उत्तरी भाग उत्तराखण्ड के दक्षिणी भाग पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्रों के अलावा उड़ीसा तथा तमिलनाडु के कुछ भागों में मिलती हैं।

प्रश्न 34. 
मृदा अवकर्षण क्या है ? 
उत्तर:
मृदा की उर्वरता में हास को मृदा अवकर्षण कहा जाता है। 

प्रश्न 35. 
मृदा अवकर्षण की दर भिन्न क्यों होती है? 
उत्तर:
भूआकृति पवनों की गति व वर्षा की मात्रा के कारण। 

प्रश्न 36.
मृदा अपरदन से क्या आशय है ? 
उत्तर:
मृदा आवरण का विनाश मृदा अपरदन कहलाता है। 

प्रश्न 37. 
मृदा अपरदन के दो मुख्य कारक कौनसे हैं? 
उत्तर;

  1. जल 
  2. पवन। 

प्रश्न 38. 
मृदा अपरदन के दो रूप कौन से होते हैं? 
उत्तर:
परत अपरदन तथा अवनालिका अपरदन मृदा अपरदन के दो रूप हैं। 

प्रश्न 39. 
अवनालिका अपरदन कहाँ होता है? 
उत्तर:
तीव्र ढालों पर। 

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 40. 
बीहड़ क्या होते हैं ?
उत्तर:
नदी द्रोणियों तथा पहाड़ी ढालों पर अत्यधिक अवनालिका अपरदन से कृषि भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में खण्डित हो जाती है। ऐसी स्थलाकृति बीहड़ कहलाती है।

प्रश्न 41. 
उत्खात भूमि स्थलाकृति किसे कहते हैं?
उत्तर:
अवनालिका अपरदन द्वारा बनी ऊबड़-खाबड़ अथवा बीहड्नुमा स्थलाकृति उत्खात भूमि स्थलाकृति कहलाती है।

प्रश्न 42. 
मृदा संरक्षण से क्या आशय है ?
उत्तर:
मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है मिट्टी के अपरदन व क्षय को रोका जाता है तथा मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।

प्रश्न 43. 
भूमि के प्राकृतिक आवरण को किसने प्रभावित किया है? 
उत्तर;
अति चराई व स्थानांतरित कृषि ने। 

प्रश्न 44. 
पश्चिमी राजस्थान में बालू के टीलों के स्थिरीकरण के क्षेत्र में कौन-सा संस्थान कार्यरत है ? 
उत्तर;
केन्द्रीय शुष्क भूमि अनुसन्धान संस्थान (Central Arid Zone Research Institute) या काजरी। 

प्रश्न 45. 
अवनालिका अपरदन क्या होता है?
उत्तर:
चट्टान तथा मृदा के जल के सान्द्रित वाह से होने वाला ऐसा अपरदन जिसमें अवनालिकाएँ निर्मित हो जाती हैं अवनालिका अपरदन कहलाता है। 

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1)प्रश्न)

प्रश्न 1. 
मृदा के प्रमुख घटकों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मृदा के प्रमुख घटक खनिज कण जीवांश जल तथा वायु होते हैं। इनमें से प्रत्येक घटक की वास्तविक मात्रा मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है। कुछ मृदाओं में ये घटक कम मात्रा में होते हैं जबकि अन्य कुछ मृदाओं में इन घटकों का संयोजन भिन्न प्रकार का पाया जाता है।

प्रश्न 2. 
जलोढ़ मृदाओं का क्षेत्र एवं कोई दो विशेषताएँ बताइए। 
उत्तर:
जलोढ़ मृदाओं का क्षेत्र-जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदानी भाग एवं नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पायी जाती हैं। विशेषताएँ-

  1. इस मृदा में पोटाश की मात्रा अधिक व फास्फोरस की मात्रा कम मिलती है। 
  2. इन मृदाओं का रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है। 

प्रश्न 3. 
खादर व बांगर में क्या अन्तर है?
उत्तर:
भारत में गंगा के ऊपरी व मध्यवर्ती मैदानी भाग में मिलने वाली नवीन जलोढ़ मृदा को खादर जबकि पुरातन जलोढ़ मृदा को बांगर के नाम से जाना जाता है। खादर प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होती रहती है जबकि बांगर पुराना जलोढ़क होता है।

प्रश्न 4. 
काली मृदा कहाँ-कहाँ पायी जाती है ? इनकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
काली मृदाएँ-दक्कन के पठार के अधिकांश भाग पर मिलती हैं। इन मृदाओं को रेगर तथा कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है।
विशेषताएँ-

  1. सूखने पर इन मिट्टियों में दरारें पड़ जाती हैं।
  2. रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूना लौह मैग्नीशिया तथा एल्यूमिना के तत्व काफी मात्रा में मिलते हैं लेकिन फॉस्फोरस नाइट्रोजन तथा जैव पदार्थों की कमी होती है।

प्रश्न 5. 
काली मृदाओं की रासायनिक संरचना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काली मृदाएँ रासायनिक दृष्टि में चूना लौह मैग्नीशिया व ऐलुमिना की प्रधानता को दर्शाती है। इनमें पोटाश की मात्रा भी पाई जाती है। फास्फोरस नाइट्रोजन व जैव पदार्थों की इनमें कमी मिलती है। इनका रंग गाढ़े काले व स्लेटी रंग के बीच के स्वरूप को दर्शाता है।

प्रश्न 6.
लाल व पीली मृदा के क्षेत्र व कोई दो विशेषताएँ लिखिए। उत्तर-लाल और पीली मृदाएँ उड़ीसा राज्य छत्तीसगढ़ के कुछ भागों तथा मध्य गंगा के दक्षिणी भागों में मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  1. इस मृदा का लाल रंग इनमें उपस्थित लोहांश के कारण होता है जबकि जलयोजित होने पर यह पीली दिखायी देती है।
  2. इन मृदाओं में नाइट्रोजन फॉस्फोरस तथा जीवांश की कमी होती है। ... 

प्रश्न 7. 
लैटेराइट मृदाएँ कहाँ-कहाँ पायी जाती हैं ? इनकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लैटेराइट मृदाएँ कर्नाटक केरल तमिलनाडु मध्य प्रदेश उड़ीसा एवं असम के पहाड़ी क्षेत्रों में भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  1. ये मृदाएँ उच्च तापमान एवं भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती हैं। 
  2. इन मदाओं में लौह आक्साइड व पोटाश की अधिकता होती है। 

प्रश्न 8. 
लैटेराइट मृदाओं की क्या उपयोगिता है? 
उत्तर:

  1. ये मृदाएँ ईंट बनाने में प्रयुक्त होती हैं। 
  2. इन मृदाओं के क्षेत्र काजू व चाय के उत्पादन में सहायक सिद्ध होते हैं। 
  3. ये मृदाएँ आवास बनाने में उपयोगी सिद्ध होती हैं। 

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 9.
शुष्क मृदाएँ क्या हैं ? इनकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए। उत्तर-शुष्क मृदाएँ पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में मिलती हैं। 
विशेषताएँ-

  1. इन मृदाओं में नमक पर्याप्त मात्रा में होता है जबकि जीवांशों की कमी होती है। 
  2. इन मृदाओं में नीचे की ओर चूने की मात्रा बढ़ते जाने के कारण निचली परतों में कंकड़ मिलते हैं। 

प्रश्न 10. 
लवण मृदाएँ कहाँ-कहाँ पायी जाती हैं ? इनकी कोई दो विशेषताएँ लिखिए। 
उत्तर:
लवण मृदाएँ पश्चिमी गुजरात पूर्वी तट के डेल्टाई भाग एवं पश्चिमी बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्रों में मिलती हैं। विशेषताएँ-

  1. इन मृदाओं में सोडियम पोटेशियम एवं मैग्नीशियम तत्वों की अधिकता मिलती है। 
  2. यह एक अनुर्वर मिट्टी है। इसकी संरचना बलुई से लेकर दुमटी तक होती है। 

प्रश्न 11. 
भारत में मृदा लवणता की समस्या का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग अति सिंचाई के प्रभाव से लवणीय होता जा रहा है। मृदा के निचले संस्तरों में जमा हुआ नमक या लवण होता है। शुष्क जलवायु वाली दशाओं में अत्यधिक सिंचाई केशिका क्रिया को बढ़ावा देती है। इसके परिणामस्वरूप नमक ऊपर की ओर आकर मृदा की सबसे ऊपरी परत में जमा हो जाता है जिससे मिट्टी की उर्वरता नष्ट होने लगती है। पंजाब तथा हरियाणा इस समस्या से ग्रस्त भारत के प्रमुख राज्य हैं।

प्रश्न 12. 
पीट मृदाओं की विशेषता बताइए। 
उत्तर:

  1. ये मृदाएँ भारी वर्षा व उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों में मिलती हैं।
  2. इन मृदाओं में जैव तत्वों की कमी मिलती है। 
  3. ये गाढ़े व काले रंग की होती हैं। 
  4. इन मृदाओं के क्षेत्र में मृत जैव पदार्थों का संग्रहण देखने को मिलता है।

प्रश्न 13. 
वन मृदाओं का निर्माण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
वन मृदाओं का निर्माण पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में होता है। इन मृदाओं का निर्माण पर्वतीय क्षेत्रों में होता है। इस पर्यावरण में परिवर्तन के अनुसार मृदाओं का गठन एवं संरचना परिवर्तित होती रहती है। हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों में इन मृदाओं का अपक्षय व अपरदन होता रहता है। ये अम्लीय व कम ह्यूमस वाली होती हैं। निचली घाटियों में पायी जाने वाली मृदाएँ उर्वर होती हैं।

प्रश्न 14. 
वन मृदाओं की विशेषता बताइए। 
उत्तर:

  1. ये मृदाएँ पर्याप्त वर्षा व वन वाले क्षेत्रों में बनती हैं। 
  2. पर्यावरणीय दशाओं के अनुसार इनका स्वरूप बदलता रहता है। 
  3. ये अम्लीय व कम ह्यूमस वाली होती हैं। 
  4. ये मृदाएँ जीवित तंत्र की तरह होती हैं। 
  5. ये दुमटी व पांशु होती हैं। 

प्रश्न 15. 
मृदा अवकर्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मृदा की उर्वरता के ह्रास को मृदा अवकर्षण कहते हैं। भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारण मृदा अवकर्षण है। मृदा अवकर्षण की दर भू-आकृति पवनों की गति एवं वर्षा की मात्रा के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है। मृदा अवकर्षण से मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है एवं अपरदन व दुरुपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है।

प्रश्न 16. 
मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों को बताइए। 
उत्तर:
मृदा अपरदन के निम्नलिखित कारक महत्वपूर्ण हैं

  1. भारी वर्षा से धरातल की ऊपरी परत शीघ्रता से अपरदित हो जाती है 
  2. भूमि का तीव्र ढाल मृदा अपरदन की गति को बढ़ाता है 
  3. वनोन्मूलन के कारण वनस्पति विहीन क्षेत्रों में मृदा की अपरदनात्मक शक्तियाँ तेजी से सक्रिय हो जाती हैं 
  4. अनियन्त्रित पशुचारण 
  5. अनियन्त्रित जुताई 
  6. स्थानान्तरित कृषि आदि अन्य प्रमुख कारण है।

प्रश्न 17. 
मृदा संरक्षण के तीन उपाय बताइए। 
उत्तर:
मृदा संरक्षण के तीन उपाय निम्नलिखित हैं

  1. 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग सीढ़ीदार खेत बनाकर करना चाहिए 
  2. स्थानान्तरित कृषि तथा अनियन्त्रित पशुचारणता वाले क्षेत्रों में इन क्रिया-कलापों पर प्रतिबन्ध लगाना 
  3. अधिक से अधिक भूमि पर वनारोपण करना। 

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2) प्रश्न)

प्रश्न 1. 
मृदा से क्या आशय है ? मृदा के महत्त्व को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
मृदा से आशय चट्टानों पर बिछी धरातल की सबसे ऊपरी परत से है जो असंगठित या ढीले पदार्थों से निर्मित होती है तथा जिस पर पौधों की वृद्धि हो सकती है। मानव समाज के लिए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों में मृदा सबसे मूल्यवान तथा आधारभूत संसाधन है जिसने समस्त जीव-जगत् के अस्तित्व को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक आधार प्रदान किया है। यदि पृथ्वी पर मृदा की उपस्थिति न हो तो पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विश्व की जनसंख्या को भोजन उपलब्ध कराने का सर्वप्रमुख माध्यम मृदा ही है। मृदा पर कृषि कार्य कर विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं जिससे मानव का भरण-पोषण होता है।

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

प्रश्न 2. 
जलोढ़ मृदाओं के प्रकार एवं विशेषताओं को संक्षेप में बताइए। 
उत्तर:
जलोढ़ मृदाओं के प्रकार- जलोढ़ मृदाएँ दो प्रकार की होती हैं

  1. खादर-यह मिट्टी नदी घाटियों के ऐसे क्षेत्रों में मिलती है जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा मिट्टी की नई परत धरातल पर जमा हो जाती है। इनमें चीका की मात्रा अधिक होती है।
  2. बाँगर-नदी घाटियों के ऐसे क्षेत्र जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता और धरातल पर पुराने जलोढ़ के लिये होते हैं ऐसे क्षेत्रों को बाँगर कहा जाता है।

मृदा 501) विशेषताएँ-

  1. जलोढ़ मृदाएँ गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी जैसी होती हैं। 
  2. इनमें पोटाश की मात्रा अधिक तथा फास्फोरस की मात्रा कम पायी जाती है। 
  3. इन मृदाओं के कुछ क्षेत्रों में कंकड़ मिलते हैं। 
  4. पश्चिम से पूर्व की ओर इन मृदाओं में बालू की मात्रा घटती जाती है।
  5. इनका रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है। 

प्रश्न 3. 
लाल व पीली मृदाओं का वितरण एवं विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लाल व पीली मृदाओं का वितरण-लाल व पीली मृदाएँ प्रमुख रूप से प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती हैं। तमिलनाडु कर्नाटक आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा राज्य की अधिकांश भूमि पर लाल बलुई मृदा मिलती है। पश्चिमी घाट के गिरिपद क्षेत्र की एक लम्बी पट्टी में लाल दोमट मृदाएँ मिलती हैं। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ राज्य के कुछ भागों में तथा मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भाग में लाल व पीली मृदाएँ मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  1. इस मिट्टी का लाल रंग मिट्टी में उपस्थित लौह ऑक्साइड के कारण होता है। इस मिट्टी में लौह ऑक्साइड की मात्रा कम होने पर मिट्टी का रंग पीला हो जाता है जबकि अधिक मात्रा मिलने पर इसका रंग गहरा लाल हो जाता है
  2. महीन कणों वाली लाल व पीली मृदाएँ सामान्यतया उर्वर होती हैं। इसके विपरीत उच्च भूमियों पर मिलने वाली मोटे कणों की मृदाएँ अनुर्वर होती हैं। 
  3. इन मृदाओं में सामान्यतया नाइट्रोजन फॉस्फोरस तथा जीवांश की कमी होती है।

प्रश्न 4. 
लैटेराइट मृदाओं का वितरण एवं विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लैटेराइट मृदाओं का वितरण-लैटेराइट मृदाएँ विशेष रूप से उन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में मिलती हैं जहाँ मौसमी भारी वर्षा होती है। इन मृदाओं का विकास मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय पठार के उच्च क्षेत्रों में हुआ है। ये मृदाएँ सामान्यतया कर्नाटक केरल तमिलनाडु मध्य प्रदेश उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  1. भारी वर्षा के जल से मृदाओं में चूना तथा सिलिका निक्षालित हो जाते हैं तथा लौह के ऑक्साइड तथा एल्यूमिनियम के यौगिक मृदा में शेष रह जाते हैं। 
  2. उच्च तापमानों में तेजी से पनपने वाले जीवाणु मिट्टी के जीवांश को तेजी से नष्ट कर देते हैं। 
  3. इन मृदाओं में नाइट्रोजन फॉस्फेट तथा चूने की कमी होती है जबकि लौह ऑक्साइड तथा पोटाश की अधिकता होती है। 
  4. मकान बनाने के लिए इस मृदा से प्रायः ईंटों का निर्माण किया जाता है।

प्रश्न 5. 
शुष्क मृदाओं का वितरण एवं विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शुष्क मृदाओं का वितरण-विशिष्ट मरुस्थलीय स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थलीय मृदाएँ विशेष रूप से विकसित रूप में देखने को मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  1. इन मृदाओं का रंग लाल से लेकर किशमिशी तक होता है। 
  2. ये मृदाएँ बालू प्रधान होती हैं जिनमें बालू के मोटे-मोटे कण मिलते हैं। 
  3. इनमें अधिक मात्रा में घुलनशील नमक होता है जो जल में शीघ्र घुल जाता है। 
  4. जीवांश तथा नाइट्रोजन की कमी होती है जबकि फॉस्फेट सामान्य मात्रा में होता है। 
  5. इन मिट्टियों में नीचे की ओर चूने की मात्रा बढ़ती जाती है जिससे मिट्टी के निचले संस्तरों में कंकड़ों की परतें मिलती हैं। 
  6. जीवांश तथा जैव पदार्थ न्यून मात्रा में मिलने के कारण ये मृदाएँ अनुर्वर होती हैं।

प्रश्न 6. 
लवण मृदाओं का वितरण एवं विशेषताएँ बताइए। 
उत्तर:
लवण मृदाओं को क्षारीय मृदाएँ भी कहते हैं। इनका वितरण एवं विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
वितरण-ये मृदाएँ पश्चिमी गुजरात पूर्वी तट के डेल्टाई भागों तथा पश्चिमी बंगाल के सुन्दर वन क्षेत्रों में मिलती हैं। पश्चिमी गुजरात में स्थित कच्छ के रन में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ आये नमक के कण एक पपड़ी के रूप में ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं जबकि डेल्टाई क्षेत्रों में सागरीय जल के भर जाने से लवणीय मिट्टी धरातल पर बिछ जाती है।
विशेषताएँ-

  1. इन मृदाओं में सोडियम पोटेशियम तथा मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है। अतः यह ऊसर या अनुर्वर मृदाएँ होती हैं।
  2. इनमें नाइट्रोजन तथा चूने की कमी होती है। 
  3. इन मिट्टियों की संरचना बलुई से लेकर दोमट तक होती है। 
  4. अत्यधिक सिंचाई वाले गहन क्षेत्रों में विशेष रूप से हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में केशिका क्रिया के कारण उपजाऊ जलोढ़ मृदाएँ भी लवणीय होती जा रही हैं।

प्रश्न 7. 
पीटमय एवं वन मृदाओं का वितरण एवं विशेषताएँ बताइए। 
उत्तर:
पीटमय मृदाएँ वितरण-ये मृदाएँ प्रमुख रूप से बिहार के उत्तरी भाग उत्तराखण्ड के दक्षिणी भाग पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्रों उड़ीसा तथा तमिलनाडु में पायी जाती हैं।
विशेषताएँ:

  1. ये मृदाएँ भारी वर्षा तथा उच्च आर्द्रता युक्त उन क्षेत्रों में मिलती हैं जहाँ सघन वनस्पति होती है। 
  2. इन मृदाओं को पर्याप्त जैव पदार्थ उपलब्ध होने के कारण इनमें जैव पदार्थों की मत्रा 40 से 50 प्रतिशत तक मिलती है। 
  3. ये मृदाएँ सामान्यतः गहरे और काले रंग की होती हैं।

वन मृदाएँ वितरण-ये मृदाएँ उन पर्वतीय क्षेत्रों में मिलती हैं जहाँ पर्याप्त वर्षा जनित वन मिलते हैं। हिमालय पर्वतीय भागों के वन क्षेत्रों में यह प्रमुख रूप से मिलती है।
विशेषताएँ-

  1. घाटियों में ये मिट्टियाँ दोमट तथा गादयुक्त होती हैं जबकि ऊपरी ढालों पर यह मोटे कण वाली होती हैं। 
  2. हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों में ये मृदाएँ अम्लीय तथा कम उपजाऊ होती हैं जबकि निचली घाटियों में ये मृदाएँ उर्वरक होती हैं।

प्रश्न 8. 
मृदा अपरदन के विभिन्न रूपों को संक्षेप में बताइए। उत्तर-मृदा अपरदन के दो रूप-मृदा अपरदन के निम्नलिखित दो रूप होते हैं
1. परत अपरदन-जब मिट्टी की क्षैतिज परतें तेज हवा या भारी वर्षा द्वारा उड़ाकर या बहाकर ले जायी जाती हैं तो इस प्रकार का अपरदन परत अपरदन कहलाता है। इस अपरदन से मिट्टी का उपजाऊपन क्रमशः कम होता चला जाता है। परत अपरदन प्रमुख रूप से वनस्पतिविहीन क्षेत्रों के अलावा जलोढ़ मिट्टी वाले क्षेत्रों में होता है।

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 6 मृदा

2. अवनालिका अपरदन-जब मिट्टी की लम्बवत् परतें भारी वर्षा द्वारा बहाकर ले जायी जायें तो इस प्रकार का अपरदन अवनालिका अपरदन कहलाता है अर्थात् इस अपरदन में गहरी नालियाँ खड्डे तथा गड्ढे बन जाते हैं जिसके फलस्वरूप धरातल का स्वरूप ऊबड़-खाबड़ हो जाता है। इस प्रकार के अपरदन से कृषि योग्य भूमि शीघ्र ही बेकार हो जाती है। वर्षा से गहरी हुई अवनालिकाएँ कृषि भूमियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट देती हैं। जिस क्षेत्र में अवनालिकाएँ अथवा बीहड़ अधिक संख्या में होते हैं उसे उत्खात भूमि स्थलाकृति कहा जाता है। चम्बल नदी की द्रोणी में इस प्रकार की स्थलाकृतियाँ बहुलता से मिलती हैं।

प्रश्न 9. 
मृदा अपरदन एवं मृदा संरक्षण क्या है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मृदा अपरदन से आशय-मृदा के आवरण का विनाश मृदा अपरदन कहलाता है। बहता हुआ जल पवन की अपरदनात्मक प्रक्रियाएँ तथा मानवीय गतिविधियाँ मृदा अपरदन के लिये प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं। शुष्क और अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में पवन तथा भारी वर्षा वाले खड़े ढालों पर बहता जल प्रभावशाली मृदा अपरदन के कारक हैं। वनोन्मूलन भी मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों में से एक है। मृदा संरक्षण से आशय-मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता कायम रखी जाती है मिट्टी के अपरदन तथा क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है। भारत सरकार के केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड ने मृदा संरक्षण के लिए देश के विभिन्न भागों में कई योजनाएँ चला रखी हैं।

प्रश्न 10. 
मृदा संरक्षण के लिए कौन-कौन से उपाय महत्वपूर्ण हैं ? संक्षेप में विवरण दीजिए। 
उत्तर:
मृदा संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय महत्वपूर्ण है

  1. 5 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग कृषि कार्यों के लिये नहीं किया जाना चाहिए। यदि ऐसी ढालयुक्त जमीन पर कृषि कार्य करना आवश्यक है तो इस पर सीढ़ीदार खेत निर्मित कर कृषि कार्य करने चाहिए।
  2. भारत के विभिन्न भागों में अतिचारणता तथा स्थानान्तरित कृषि अपनाये जाने के कारण प्रभावित क्षेत्र में भूमि अपरदन बढ़ जाता है। स्थानीय लोगों को भूमि अपरदन के दुष्परिणामों के बारे में जानकारी प्रदान कर पशुचारणता तथा स्थानान्तरित कृषि पर नियन्त्रण करना चाहिए।
  3. समोच्च रेखाओं के अनुसार खेतों की मेड़बन्दी समोच्चरेखीय सीढ़ीदार खेतों का निर्माण नियन्त्रित चराई नियमित वानिकी आवरण फसलों की कृषि मिश्रित खेती तथा फसलों का हेर-फेर जैसे उपाय भी भूमि अपरदन को कम करके मृदा संरक्षण में सहायक होते हैं।
  4. आर्द्र प्रदेशों में अवनालिका अपरदन को कम करने के लिये रोक बाँधों की एक श्रृंखला बना देनी चाहिए तथा मरुस्थलीय व अर्द्ध-मरुस्थलीय प्रदेशों में पवन अपरदन को रोकने के लिये वृक्षों की रक्षक मेखला बना देनी चाहिए।

प्रश्न 11. 
"मृदा संरक्षण का सर्वोत्तम उपाय भूमि उपयोग की समुचित योजनाएँ ही हैं।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत सरकार द्वारा संचालित केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड ने देश के विभिन्न भागों में मृदा संरक्षण हेतु अनेक योजनाओं का निर्माण किया है। ये योजनाएँ जलवायु की दशाओं भूमि संरक्षण एवं लोगों के सामाजिक व्यवहार पर आधारित हैं। इन योजनओं का संचालन भी एक-दूसरे के तालमेल से किया जाना चाहिए तथा भूमि का उसकी क्षमता के अनुसार ही वर्गीकरण होना चाहिए। भूमि उपयोग के मानचित्रों का निर्माण किया जाना चाहिए तथा भूमि का सर्वदा सही उपयोग किया जाना आवश्यक है। मृदा संरक्षण का निर्णायक दायित्व उन लोगों पर है जो कि उसका उपयोग करते हैं एवं उससे लाभ उठाते हैं। अतः स्पष्ट है कि मृदा संरक्षण के सर्वोत्तम उपयोग की समुचित योजनाएँ ही हैं। 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 
भारत में पायी जाने वाली मृदाओं का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा 
उत्पत्ति रंग संयोजन एवं अवस्थिति के आधार पर भारत की मिट्टियों को वर्गीकृत कीजिए।
अथवा 
भारत की मिट्टियों को वर्गीकृत कर उनका विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा 
भारत में प्रमुख मृदा प्रकारों के स्वरूप एवं उनके प्रतिरूप पर चर्चा कीजिए। 
उत्तर:
उत्पत्ति रंग संयोजन एवं अवस्थिति के आधार पर मिट्टियों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

  1. जलोढ़ मृदा 
  2. काली मृदा 
  3. लाल व पीली मृदा 
  4. लैटेराइट मृदा 
  5. वन मृदा 
  6. शुष्क मृदा 
  7. लवण मृदा 
  8. पीटमय मृदा।

1. जलोढ़ मृदा-यह भारत की मिट्टी का सबसे महत्वपूर्ण एवं बड़ा वर्ग है। यह भारतीय धरातल के 40% भाग पर आच्छादित है। इसका निर्माण मुख्यतः नदियों द्वारा बिछाई गई अवसादों से हुआ है परन्तु तटीय भागों के सहारे इसका निर्माण मुख्यतः समुद्री तरंगों से हुआ है। इसमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है। गंगा के ऊपरी और मध्यवर्ती मैदान में क्रमशः 'खादर' और 'बांगर' नाम की मृदाएँ विकसित हुई हैं।

2. काली मृदा-इस मृदा का विकास दक्कन के लावा क्षेत्र नीस और ग्रेनाइट चट्टानों के ऊपर अर्द्ध शुष्क जलवायु में हुआ है। इसका रंग गहरा काला से लेकर हल्का काला एवं चेस्टनट जैसा होता है। प्रायः इसमें नाइट्रोजन फॉस्फोरस अम्ल और ह्यूमस की कमी होती है। परन्तु इसमें पोटाश चूना कैल्शियम एल्युमिनियम एवं मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। यह मृदा शुष्क खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। इसे 'रेगर' या कपासी काली उष्ण कटिबन्धीय चरचोनम तथा दक्कन लावा मृदा के नाम से जाना जाता है। यह महाराष्ट्र गुजरात मध्य प्रदेश (मालवा पठार), कर्नाटक आन्ध्र प्रदेश तमिलनाडु उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के 5.18 लाख वर्ग किमी. क्षेत्रों में फैली हुई है।

3. लाल मृदा एवं पीली मृदा-इस मृदा का निर्माण रवेदार और रूपान्तरित चट्टानों वाले उस क्षेत्र में हुआ है जहाँ तुलनात्मक रूप से कम वर्षा होती है। इसमें बालू के कणों की अधिकता एवं मृत्तिका की कमी होती है। इसमें नाइट्रोजन फॉस्फोरस एवं चूना की मात्रा कम होती है। यह लैटेराइट की भाँति अम्लीय मिट्टी है। यह प्रायद्वीपीय भारत के 5.18 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर व्याप्त है। यह मृदा अत्यधिक रन्ध्रयुक्त है। बारीक एवं गहरी होने के बावजूद यह उपजाऊ होती है,।

4. लैटेराइट मृदा-इस मृदा का निर्माण ऊँचे तापमान वाले क्षेत्र में होता है। यह 1.26 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर फैली है। नाइट्रोजन फॉस्फोरिक अम्ल पोटाश मैग्नीशियम की कमी होती है तथा अम्लीय होती है। यह मृदा पूर्वी घाट उड़ीसा में पश्चिमी घाट का दक्षिणी भाग (केरल), रत्नागिरि जिले के तटीय क्षेत्र एवं मालाबार तट पर इसका अच्छा विकास हुआ है।

5. वन मृदा या पर्वतीय मृदा-इस मृदा में ह्यूमस की अधिकता होती है। भूरा रंग उन सभी पर्वतीय एवं पठारी भागों में पाया जाता है जहाँ घने जंगल हैं। यह 2.85 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत है। यह मृदा चाय कॉफी मसाले की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

6. शुष्क या मरुस्थलीय मृदा-यह मृदा शुष्क जलवायु प्रदेशों में पाई जाती है। यह मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी भारत में लगभग 1.42 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर फैली है। यह मृदा खारी होती है। घुले हुए लवण एवं फॉस्फेट में घनी परन्तु ह्यूमस और नाइट्रोजन कम होती है।

7. लवण मृदा-यह मृदा रेह कल्लर तथा ऊसर नाम से भी जानी जाती है। अनुपजाऊ मृदा जो पंजाब हरियाणा राजस्थान तथा बिहार एवं उत्तर प्रदेश के शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में पायी जाती है। यह 1.10 लाख हेक्टेयर भूमि पर आच्छादित है। इसमें सोडियम एवं अन्य लवणों की प्रधानता होती है जबकि क्षारीय मृदा में सोडियम क्लोराइड की अधिकता होती है।

8. पीटमय मृदा-इस मृदा का विकास अत्यधिक आर्द्र प्रदेश में होता है जिसमें ह्यूमस की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। यह पदा केरल प. बंगाल उड़ीसा तमिलनाडु बिहार और उत्तर प्रदेश में पाई जाती है।

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प्रश्न 2. 
भारत की मृदाओं को वर्गीकृत कीजिए। जलोढ़ लाल व पीली तथा लैटेराइट मृदाओं का विस्तार से विवरण दीजिए।
भारतीय मृदाओं को उनकी उत्पत्ति रंग संयोजन तथा अवस्थिति के आधार पर आठ प्रकारों में विभक्त किया जाता है। 

  1. जलोढ़ मृदाएँ 
  2. काली मृदाएँ 
  3. लाल और पीली मृदाएँ
  4. लैटराइट मृदाएँ 
  5. शुष्क मृदाएँ 
  6. लवण मृदाएँ
  7. पाटमय मृदाएँ 
  8. वन मृदाएँ। 

(1) जलोढ़ मृदाएँ
तरण-जलोढ़ मृदा भारत की सबसे उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण मिट्टी है। ये मृदाएँ उत्तरी मैदान तथा नदी घाटियों के विभागों में पायी जाती हैं। मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर मिलती हैं। उत्तरी मैदान के मदाएँ राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे में होती हुई गुजरात के मैदान तक विस्तृत मिलती हैं। प्रायद्वीपीय भारत : नेत्रों तट की नदियों के डेल्टाई भागों तथा नदी घाटियों में मिलती हैं।

जलोढ़ मिट्टियों के प्रकार-
उत्तर भारत के मैदानी भागों में दो प्रकार की जलोढ़ मृदाएँ विकसित मिलती हैं

  • खादर-यह मृदा नदी घाटियों के ऐसे क्षेत्रों में मिलती हैं जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ द्वारा मिट्टी की नई परत धरातल पर जमा हो जाती है। इनमें चीका की मात्रा अधिक होती है।
  • बांगर-नदी घाटियों के ऐसे क्षेत्र जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता और धरातल पर पुराने जलोढ़क बिछे होते हैं ऐसे क्षेत्रों को बांगर कहा जाता है।

विशेषताएँ-

  • ये मृदाएँ गठन में बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी जैसी होती हैं। 
  • इनमें पोटाश की मात्रा अधिक तथा फोस्फोरस की मात्रा कम पाई जाती है। 
  • इन मृदाओं के कुछ क्षेत्रों में कंकड़ मिलते हैं।
  • पश्चिम से पूर्व की ओर इन मृदाओं में बालू की मात्रा घटती जाती है। 
  • इनका रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है। 

(2) लाल व पीली मृदाएँ-
वितरण-लाल व पीली मृदाएँ प्रमुख रूप से प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाती हैं। तमिलनाडु कर्नाटक आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा राज्य की अधिकांश भूमि पर लाल बलुई मिट्टी मिलती है। पश्चिमी घाट के गिरिपाद क्षेत्र की एक लम्बी पट्टी में लाल दोमट मृदाएँ मिलती हैं। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ राज्य के कुछ भागों में तथा मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भाग में लाल व पीली मृदाएँ मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  • इस मिट्टी का लाल रंग मिट्टी में उपस्थित लौह ऑक्साइड के कारण होता है। इस मिट्टी में लौह ऑक्साइड की मात्रा कम होने पर मिट्टी का रंग पीला हो जाता है जबकि अधिक मात्रा मिलने पर इसका रंग गहरा लाल हो जाता है। 
  • महीन कणों वाली लाल व पीली मृदाएँ सामान्यतः उर्वरक होती हैं। इसके विपरीत उच्च भूमियों पर मिलने वाली मोटे कणों की मृदाएँ अनुर्वरक होती हैं। 
  • इन मृदाओं में सामान्यत: नाइट्रोजन फॉस्फोरस तथा जीवांश की कमी होती है। 

(3) लैटेराइट मृदाएँ
वितरण-लैटेराइट मृदाएँ विशेष रूप से उन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में मिलती हैं जहाँ मौसमी भारी वर्षा होती है। इन मनाओं का विकास मुख्य रूप से प्रायद्वीपीय पठार के उच्च क्षेत्रों में हुआ है। ये मृदाएँ सामान्यतः कर्नाटक केरल तमिलाद मध्य प्रदेश उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में मिलती हैं।
वशेषताएँ-

  • भारी वर्षा के जल से मृदाओं में चूना तथा सिलिका निक्षालित हो जाते हैं तथा लौह के ऑक्साइड तथा मिनियम के यौगिक मृदा में शेष रह जाते हैं। 
  • उच्च तापमानों में तेजी से पनपने वाले जीवाणु मिट्टी के जीवांश को ते नी सो नष्ट कर देते हैं। 
  • इन मृदाओं में नाइट्रोजन फॉस्फेट तथा चूने की कमी होती है जबकि लौह ऑक्साइड तथा पोटाश की अधिकता होती है। 
  • मकान बनाने के लिये इस मिट्टी से प्रायः ईंटों का निर्माण किया जाता है।

प्रश्न 3. 
भारत में मिलने वाली शुष्क मृदाओं लवण मृदाओं पीटमय मृदाओं तथा वन मृदाओं का विस्तार से विवरण दीजिए।
उत्तर:
(1) शुष्क या मरुस्थलीय मृदाएँ वितरण-विशिष्ट मरुस्थलीय स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में मरुस्थलीय मृदाएँ विशेष रूप से विकसित रूप में देखने को मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  • इन मृदाओं का रंग लाल व किशमिशी होता है। 
  • ये मिट्टियाँ बालू प्रधान होती हैं जिनमें बालू के मोटे-मोटे कण मिलते हैं। 
  • इनमें अधिक मात्रा में घुलनशील नमक होता है जो जल में शीघ्रता से चल जाता है। 
  • जीवांश तथा नाइट्रोजन की कमी होती है जबकि फॉस्फेट सामान्य मात्रा में होती है। 
  • इन मिट्टियों में नीले नी ओर चूने की मात्रा बढ़ती जाती है जिससे मिट्टी के निचले संस्तरों में कंकड़ों की परतें मिलती हैं। 
  • जीवांश तथा ने पदार्थ न्यून मात्रा में मिलने के कारण यह मृदाएँ अनुर्वरक होती हैं। 

(2) लवण या क्षारीय मृदाएँ-
वितरण-ये मृदाएँ पश्चिमी गुजरात पूर्वी तट के डेल्टाई भागों तथा पश्चिमी बंगाल के सुन्दर वन क्षेत्रों में मिलती हैं। पश्चिमी गुजरात में स्थित कच्छ के रन में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ आये नमक के कण एक पाली के रूप में ऊपरी सतह पर जमा हो जाते हैं जबकि डेल्टाई क्षेत्रों में सागरीय जल के भर जाने से लवणीय मिट्टी का बिछ जाती है।
विशेषताएँ-

  1. इन मृदाओं में सोडियम पोटेशियम तथा मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है अत: यह ऊसर या अनुर्वरक मृदाएँ होती हैं। 
  2. इनमें नाइट्रोजन तथा चूने की कमी होती है। 
  3. इन मिट्टियों की संरचना बलुर से लेकर दोमट तक होती है। 
  4. अत्यधिक सिंचाई वाले गहन क्षेत्रों में विशेष रूप से हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में केशिका क्रिया के कारण उपजाऊ जलोढ़ मृदाएँ भी लवणीय होती जा रही हैं। 

(3) पीटमय मृदाएँ-
वितरण-ये मृदाएँ प्रमुख रूप से बिहार के उत्तरी भाग उत्तराखण्ड के दक्षिणी भाग पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्रों उड़ीसा तथा तमिलनाडु में पायी जाती हैं।
विशेषताएँ-

  • ये मृदाएँ भारी वर्षा तथा उच्च आर्द्रता युक्त उन क्षेत्रों में मिलती हैं जहाँ सघन वनस्पति की है। 
  • इन मृदाओं को पर्याप्त जैव पदार्थ उपलब्ध होने के कारण इनमें जैव पदार्थों की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत त रलतो है। 
  • ये मृदाएँ सामान्यतः गहरे और काले रंग की होती हैं। 

(4) वन मृदाएँ-
वितरण-ये मृदाएँ उन पर्वतीय क्षेत्रों में मिलती हैं जहाँ पर्याप्त वर्षा जनित वन मिलते हैं। हिमालय पर्वत : भागों के वन क्षेत्रों में यह प्रमुख रूप से मिलती हैं।
विशेषताएँ-

  • घाटियों में ये मिट्टियाँ दोमट तथा गादयुक्त होती हैं जबकि ऊपरी ढालों पर यह मोटे का; वाली होती हैं। 
  • हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों में ये मृदाएँ अम्लीय तथा कम उपजाऊ होती हैं जबकि निचली मों में ये मृदाएँ उर्वरक होती हैं।

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प्रश्न 4. 
मृदा अपरदन से क्या आशय है ? मृदा अपरदन के दो रूपों को बताते हुए मृदा अपरदन के लिये उत्तरदायी कारकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मृदा अपरदन से आशय-मृदा के आवरण का विनाश मृदा अपरदन कहलाता है। जल तथा वायु जैसे प्राकृतिक कारकों तथा मानवीय व जन्तुओं के हस्तक्षेप से मिट्टी की ऊपरी परत का हट जाना मृदा अपरदन कालता है। प्रवाहित जल तथा पवनों की अपरदनात्मक प्रक्रियाएँ तथा मिट्टी की निर्माणकारी प्रक्रियाएँ साथ-साथ चलती रहती हैं। सामान्यतः उक्त दोनों प्रक्रियाओं में एक सन्तुलन कायम रहता है। कई बार प्राकृतिक अथवा मानवीय कारकों से यह सन्तुलन बिगड़ जाता है जो मृदा अपरदन का प्रमुख कारण है। पवन तथा जल मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारक हैं। एक ओर पवन द्वारा होने वाला मृदा अपरदन शुष्क तथा अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण होता है तो दूसरी ओर भारी वर्षा व खड़े ढालों वाले प्रदेशों में बहते हुए जल द्वारा मृदा अपरदन सबसे अधिक होता है। 

मृदा अपरदन के दो रूप-मृदा अपरदन के निम्नलिखित दो रूप होते हैं-
1. परत अपरदन-जब मिट्टी की क्षैतिज परतें तेज हवा या भारी वर्षा द्वारा उड़ाकर या बहाकर ले जायी जाती हैं तो इस प्रकार का मृदा कटाव परत अपरदन कहलाता है। इस अपरदन से मिट्टी का उपजाऊपन क्रमशः कम होता चला जाता है। परत अपरदन प्रमुख रूप से वनस्पतिविहीन क्षेत्रों के अलावा जलोढ़ मिट्टी वाले क्षेत्रों में होता है।

2. अवनालिका अपरदन-जब मिट्टी की लम्बवत् परतें भारी वर्षा द्वारा बहाकर ले जायी जायें तो इस प्रकार का अपरदन अवनालिका अपरदन कहलाता है अर्थात् इस अपरदन में गहरी नालियाँ खड्डे तथा गड्ढे बन जाते हैं जिसके फलस्वरूप धरातल का स्वरूप ऊबड़-खाबड़ हो जाता है। इस प्रकार के अपरदन से कृषि योग्य भूमि शीघ्र ही बेकार हो जाती है। वर्षा से गहरी हुई अवनालिकाएँ कृषि भूमियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट देती हैं। जिस क्षेत्र में अवनालिकाएँ अथवा बीहड़ अधिक संख्या में होते हैं उसे उत्खात भूमि स्थलाकृति कहा जाता है। चम्बल नदी की द्रोणी में इस प्रकार की स्थलाकृतियाँ बहुतायत में मिलती हैं। 

मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारक-
भारत में मृदा अपरदन के निम्नलिखित सात कारण प्रमुख हैं
1. भारत में होने वाली वर्षा का स्वभाव मात्रा एवं वितरण यहाँ होने वाले मृदा अपरदन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं। वर्षाकाल में जब भी दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं द्वारा घनघोर वर्षा होती है दक्षिणी प्रायद्वीप के पश्चिमी घाट उत्तर के हिमालय पर्वतीय क्षेत्र तथा उत्तर के मैदानी भागों पर बृहद् स्तर पर भू-अपरदन होता है। भारत के उत्तरी पर्वतीय भागों में अत्यधिक ढाल वाले भू-भागों में वर्षा होने पर मिट्टी की परतें शीघ्रता से अपरदित होती चली जाती हैं। ऐसे भू-भागों में अत्यधिक वर्षा होने से भूस्खलन की घटनाएँ होने लगती हैं।

2. उत्तर भारत के अधिकांश भागों में मुलायम व घुलनशील मिट्टी की प्रधानता मिलती है जो वर्षा होने पर शीघ्र ही घुलकर बह जाती है।

3. उत्तर भारत की नदियों में वर्षाकाल में प्राय: बाढ़ें आ जाती हैं जिसके कारण समीपवर्ती भूमि की मिट्टी की ऊपरी परत पानी के साथ शीघ्र ही बह जाती है। वस्तुतः भारत में वर्षाकाल में तीव्र गति से होने वाले जलीय मृदा अपरदन को नियन्त्रित करने के लिए न तो सघन वन आवरण हैं और न ही पर्याप्त संख्या में गहरे व विस्तृत जलाशय।

4. भारत के अधिकांश भागों में होने वाले अनियन्त्रित पशुचारण से भी मृदा अपरदन की दर बढ़ती है। पर्वतीय ढालों पर अनियन्त्रित पशुचारण से मृदा अपरदन की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है।

5. वनों की अविवेकपूर्ण कटाई से भी मिट्टी की अपरदन दर बढ़ती है। वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रखती हैं। वनस्पतिविहीन भू-भागों पर मिट्टी के कण हवा या वर्षा द्वारा शीघ्र ही अपरदित हो जाते हैं।

6. हिमालय पर्वत श्रेणी के पूर्वी भागों में स्थानान्तरित कृषि प्रणाली का प्रचलन भी मृदा अपरदन की दर को बढ़ाने में सहयोग करता है।

7. उत्तरी भारत के मैदानी भागों में ग्रीष्मकाल में आने वाली प्रचण्ड आँधियाँ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत को उड़ाकर ले जाती हैं।

प्रश्न 5. 
मृदा संरक्षण से क्या आशय है ? मृदा संरक्षण की प्रमुख विधियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मृदा संरक्षण से आशय-मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है। मिट्टी के अपरदन व क्षय को रोका जाता है तथा मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
मृदा संरक्षण की विधियाँ-मृदा संरक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं
(i) समोच्च रेखीय जुताई या बोआई-ढालू धरातल पर यदि ऊपर से नीचे की ओर जुताई कर कृषि की जाती है तो वर्षा का जल या सिंचाई के लिए प्रयुक्त जल शीघ्रता से मिट्टी का कटाव करता है। इस समस्या से निपटने के लिए ढालू भूमि पर समोच्च रेखाओं के साथ-साथ बाँध बनाकर जुताई कर अधिक ढाल को धीमे ढाल में परिवर्तित कर दिया जाता है।

(ii) वेदिकाकरण-पर्वतीय क्षेत्रों के ढालों में सीढ़ीदार खेत बनाकर प्रत्येक खेत के किनारे मेड़बन्दी कर दी जाती है जिससे भूमि कटाव में कमी आ जाती है तथा अपरदित मिट्टी निचले सीढ़ीदार खेतों में जमा होती चली जाती है। वेदिकाकरण विधि ढालू भूमि पर प्रयुक्त की जाती है।

(iii) मेडबन्दी करना-अपेक्षाकृत हल्के ढाल वाले मैदानी भागों में स्थित खेतों की मेड़ों को ऊँचा कर देना चाहिए जिससे भूमि का कटाव रुकता है तथा भूमिगत जल के स्तर में वृद्धि होती है।

(iv) फसल आवर्तन-एक कृषि भूमि पर कई वर्षों तक एक फसल बार-बार न बोकर अन्य फसलों को उगाना जैसे एक स्थान पर फलीदार फसल (leguminous crop) जैसे-मटर चना आदि बोई जाती है तो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा पहले से अधिक हो जाती है क्योंकि फलीदार फसलों की जड़ों में स्थित असंख्य जीवाणु वायु की नाइट्रोजन को ग्रहण करके उपयोगी नाइट्रोजन के यौगिकों में बदल देते हैं। फलीदार फसल के बाद यदि बिना फलीदार फसल बोई जाये तो उनको मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन यौगिक मिल जाते हैं। वस्तुतः फसलों के समुचित आवर्तन से भूमि की उर्वरकता बनी रहती है।

(v) वृक्षारोपण एवं घास रोपण-मिट्टी अपरदन की समस्या से ग्रस्त क्षेत्रों में विस्तृत पैमाने पर वृक्षारोपण एवं घास का रोपण करना आवश्यक होता है। इससे मृदा अपरदन की दर में अधिक गिरावट आती है। साथ ही भूमि की जल अवशोषण क्षमता में वृद्धि होती है।

(vi) नियन्त्रित पशुचारणता-नियन्त्रित पशुचारणता से भूमि कटाव की प्रक्रिया रुकती है तथा घासों तथा अन्य वनस्पति की वृद्धि भी सुचारु रूप में होती है।

(vii) अस्थाई कृषि पर प्रतिबन्ध-जिन क्षेत्रों में परम्परागत रूप से अस्थाई कृषि या झूमिंग कृषि का प्रचलन है। उन क्षेत्रों में एक तो भूमि की उर्वरता शीघ्र समाप्त हो जाती है। दूसरे मृदा अपरदन की दर में तेजी से वृद्धि होती है। अतः अस्थाई कृषि पर कड़ाई से प्रतिबन्ध लगाकर उन क्षेत्रों का मृदा संरक्षण किया जा सकता है।

(viii) नदियों पर बाँधों का निर्माण-नदियों में आने वाली बाढ़ों को रोकने के लिए नदियों पर स्थान-स्थान पर बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण करना चाहिए जिससे नदियों के जल के तीव्र प्रवाह को नियन्त्रित किया जा सकता है। जल विद्युत उत्पादित की जा सकती है।

(ix) अन्य विधियाँ- भूमि को जल अपरदन से बचाने के लिए खाली भूमि में घासें तथा फलियाँ वाली आवरण फसलों को लगाना वायु अपरदन वाले क्षेत्रों में बालू बन्धक पौधे लगाना मिट्टी के प्रदूषण से सुरक्षा तथा मिट्टी को पर्याप्त सिंचाई साधनों की उपलब्धता कराना अन्य मिट्टी संरक्षण विधियाँ हैं।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
निम्न में से किस भारतीय मृदा में ग्रीष्म ऋतु में गहरी दरारें पड़ जाती हैं जिससे मृदा में पर्याप्त आक्सीकरण संभव . हो पाता है?
(क) काली मृदा
(ख) जलोढ़ मृदा 
(ग) मरुस्थलीय मृदा 
(घ) जैविक मृदा।। 
उत्तर:
(क) काली मृदा

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प्रश्न 2. 
कौनसा सुमेलित नहीं है?

मृदा प्रकार

राज्य क्षेत्र

(क) लैंटेराइट मृदा

पशिचम बंगाल

(ख) काली मृदा

आन्त्र प्रदेश

(ग) जलोढ़ मृदा

राजस्थान का पश्चिमी भाग

(घ) पीट मृदा

ओडिशा तटीय क्षेत्र

उत्तर:
(ग) जलोढ़ मृदा,राजस्थान का पश्चिमी भाग

प्रश्न 3. 
निम्नलिखित में से कौन भारत के सम्बन्ध में सही नहीं है?
(क) लाल मृदा में लौह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। 
(ख) काली मृदा में फास्फोरस नाइट्रोजन और जैविक पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। 
(ग) जलोढ़ मृदा में पोटाश पर्याप्त मात्रा में होता है लेकिन इसमें फास्फोरस काफी कम मात्रा में होता है। 
(घ) लाल मृदा दलहन और मोटे अनाजों की पैदावार के लिए उपयुक्त होती है। 
उत्तर:
(ख) काली मृदा में फास्फोरस नाइट्रोजन और जैविक पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। 

प्रश्न 4. 
भारत में कौन से संवर्ग की मृदायें सर्वाधिक क्षेत्रफल पर पायी जाती हैं?
(क) एरीडोसॉल
(ख) मोलीसॉल 
(ग) एंटीसॉल
(घ) इंसेप्टीसॉल। 
उत्तर:
(घ) इंसेप्टीसॉल। 

प्रश्न 5. 
भारत के निम्नलिखित राज्यों में से किसमें लैटेराइट मृदा का केन्द्रीयकरण अधिकतम है?
(क) ओडिशा
(ख) गुजरात 
(ग) जम्मू एवं कश्मीर
(घ) अरुणाचल प्रदेश। 
उत्तर:
(क) ओडिशा

प्रश्न 6. 
नीचे दो कथन दिये गये हैं। जिनमें से एक को अभिकथन (क) और दूसरे को कारण (ख) का नाम दिया गया है। नीचे दिए गए कूट में से अपने उत्तर का चयन कीजिए।
अभिकथन (क) : लैटेराइट मृदाएँ केरल में सुविकसित हैं। 
कारण (ख) : मानसून मौसम के दौरान केरल में भारी वर्षा होती है।

कूट: 
(क) (क) तथा (ख) दोनों सही हैं और 
(ख) (क) को स्पष्ट करता है। (ख) (क) सही है पर (ख) गलत है। 
(ग) (क) गलत है पर (ख) सही है।
(घ) (क) और (ख) दोनों सही है परन्तु (ख) (क) को स्पष्ट नहीं करता। 
उत्तर:
(घ) (क) और (ख) दोनों सही है परन्तु (ख) (क) को स्पष्ट नहीं करता। 

प्रश्न 7. 
गंगा मैदान में नदियों के तट के सहारे पाई जाने वाली जलोढ़ मृदा को कहते हैं? 
(क) खादर
(ख) बांगर 
(ग) भूड़
(घ) लोयस। 
उत्तर:
(क) खादर

प्रश्न 8. 
इनमें से भारत के किस क्षेत्र में लैटेराइट मृदा पाई जाती है ? 
(क) उत्तरी भारत
(ख) दक्षिण का पठार 
(ग) गंगा का मैदान 
(घ) मध्य भारत। 
उत्तर:
(ख) दक्षिण का पठार 

प्रश्न 9. 
डेल्टाई भागों में किस प्रकार की मिट्टी पायी जाती है ? 
(क) पुरातन कछार 
(ख) नवीन कछार 
(ग) नवीनतम कछार 
(घ) लैटेराइट मिट्टी। 
उत्तर:
(ग) नवीनतम कछार 

प्रश्न 10. 
निम्न में से किस मिट्टी के लिए न्यूनतम उर्वरक की आवश्यकता होती है? 
(क) लाल मिट्टी 
(ख) जलोढ़ मिट्टी 
(ग) काली मिट्टी 
(घ) लैटेराइट मिट्टी। 
उत्तर:
(ख) जलोढ़ मिट्टी 

प्रश्न 11. 
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य भारत में काली मिट्टी के बारे में सही नहीं है?
(क) इसमें लोहांश अधिक होता है।
(ख) इसमें पोटाश अधिक होता है। 
(ग) इसमें जीवांश अधिक होता है।
(घ) इसमें नाइट्रोजन अधिक होता है। 
उत्तर:
(ग) इसमें जीवांश अधिक होता है।

प्रश्न 12.
भारत में कौन-सी मिट्टी सर्वाधिक क्षेत्रफल पर फैली है?
(क) काली मिट्टी 
(ख) लाल मिट्टी 
(ग) लैटेराइट मिट्टी 
(घ) जलोढ़ मिट्टी। 
उत्तर:
(घ) जलोढ़ मिट्टी। 

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प्रश्न 13. 
छत्तीसगढ़ के अधिकांश भाग की विशेषता है
(क) काली मिट्टी 
(ख) लैटेराइट मिट्टी 
(ग) पीस मिट्टी 
(घ) लाल मिट्टी। 
उत्तर:
(घ) लाल मिट्टी। 

प्रश्न 14. 
भारत में मिट्टी कटाव की समस्या का सम्बन्ध है
(A) अत्यधिक वर्षा 
(B) वनों का ह्रास 
(C) अत्यधिक जुताई 
(D) अत्यधिक धारवाही 
कूट : 
(क) A एवं B सही है 
(ख) A B व C सही है
(ग) B C व D सही है 
(घ) B C D सही है।
उत्तर:
(घ) B C D सही है।

प्रश्न 15. 
भारत में लैटेराइट मृदा क्षेत्र का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत में लैटेराइट मृदाएँ सामान्यतः कर्नाटक केरल तमिलनाडु मध्यप्रदेश उड़ीसा एवं असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पायी जाती हैं।

प्रश्न 16. 
भारतीय पठार की मिट्टियों का मोटे तौर पर वर्गीकरण कीजिए। 
उत्तर:
भारतीय पठारी क्षेत्र में काली लाल लैटेराइट वनीय एवं पहाड़ी मृदाएँ पायी जाती हैं।

प्रश्न 17. 
भारतीय पठार की मिट्टियाँ तथा सतलुज-गंगा के मैदान की मिट्टियाँ किस प्रकार बनी हैं ?
उत्तर:
भारतीय पठारी भाग में काली लाल व लैटेराइट तथा मैदानी भाग में जलोढ़ मिट्टियाँ पायी जाती हैं। 

प्रश्न 18. 
भारत में लाल मृदा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में लाल मृदा का निर्माण प्राचीन रवेदार एवं कायान्तरित चट्टानों के विखण्डन से हुआ है। इस कम उर्वर मृदा में नाइट्रोजन फास्फोरस व ह्यूमस का अंश कम होता है।

प्रश्न 19. 
भारत में लैटेराइट मृदा के निर्माण से सम्बद्ध प्रक्रम का निरूपण कीजिए।
उत्तर:
भारत में लैटेराइट मृदा क्रमिक रूप से उच्च तापमान एवं नियमित रूप से उच्च वर्षा के कारण होने वाले तीव्र निक्षालन से बनती है। इस प्रक्रिया से मिट्टी के पोषक तत्व अपवहन द्वारा नीचे चले जाते हैं।

प्रश्न 20. 
भारत में काली मिट्टी के रंग का मुख्य घटक बताइए।
उत्तर:
भारत में काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी विस्फोट से निकले लावा से हुआ है। इसमें चूना लोहा मैग्नीशियम व एल्यूमिनियम अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। 

प्रश्न 21. 
लैटेराइट मिट्टियों का उपयोग क्या है ?
उत्तर:
लैटेराइट मिट्टियों का मुख्य उपयोग मकान बनाने के लिए ईंट निर्माण में होता है। इसके अतिरिक्त काजू जैसी फसलों की खेती के लिए ये मृदाएँ अधिक उपयुक्त हैं। 

प्रश्न 22. 
भारत में मृदा अपरदन का स्थानिक प्रतिरूप।
उत्तर:
मृदा के आवरण का विनाश मृदा अपरदन कहलाता है। भारत में विभिन्न क्षेत्रों में अपरदन के विभिन्न साधनों द्वारा 1 लाख हेक्टेअर से अधिक भूमि का अपरदन हो चुका है तथा प्रतिवर्ष 1800 हेक्टेअर में अधिक भूमि का अपरदन हो रहा है। भारत में सर्वाधिक भूमि अपरदन राजस्थान राज्य में होता है। भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान का पश्चिमी भाग पूर्णतः रेगिस्तानी है। यहाँ अपरदन सर्वाधिक वायु द्वारा होता है। राजस्थान के पश्चिमी भाग में लाखों हेक्टेअर भूमि अपरदन का शिकार है। यहाँ परत अपरदन अधिक होता है।

मध्य प्रदेश के भिण्ड मुरैना एवं गुना क्षेत्र में अवनालिका अपरदन अधिक होता है। यहाँ चम्बल नदी ने विस्तृत बीहड़ों का निर्माण किया है। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित झाबुआ आदि तथा दक्षिण में आदिवासी क्षेत्रों में भी स्थानान्तरी कृषि के कारण मृदा अपरदन की समस्या बढ़ी है। पश्चिमी घाट व विदर्भ क्षेत्र में भी मृदा अपरदन से लाखों हेक्टेयर भूमि अपरदित हो चुकी है। तेलंगाना आन्ध्र प्रदेश के नदी तटीय क्षेत्रों तथा गुजरात के खम्भात की खाड़ी के पूर्वी भाग एवं उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में जल अपरदन के कारण लाखों हेक्टेअर भूमि प्रभावित है। झारखण्ड में छोटा नागपुर व राजमहल के क्षेत्र में अवैज्ञानिक खनन एवं झूमिंग कृषि के कारण मृदा अपरदन बढ़ा है।
पश्चिम बंगाल असम व बिहार आदि राज्यों में गंगा ब्रह्मपुत्र व कोसी आदि नदियों ने अपरदन किया है। पंजाब व तमिलनाडु के क्षेत्र भी अपरदन से प्रभावित हैं। 

प्रश्न 23. 
काली मृदाएँ।
उत्तर:
रेगुर के नाम से प्रसिद्ध काली मृदाएँ लावा पदार्थों के विखण्डन से निर्मित हुई हैं। ये मृदाएँ मुख्यतः दक्कन के पठार के अधिकांश भाग पर पायी जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र के कुछ भाग गुजरात आन्ध्रप्रदेश व तमिलनाडु के कुछ भाग सम्मिलित हैं। यह कपास की खेती के लिए प्रसिद्ध है। 

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प्रश्न 24. 
लैटेराइट मिट्टी।
उत्तर:
उच्च तापमान व भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित यह मिट्टी कर्नाटक केरल तमिलनाडु मध्यप्रदेश उड़ीसा व असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पायी जाती है। लैटेराइट मिट्टी का प्रयोग ईंटें बनाने में होता है।

प्रश्न 25. 
भारत में मिट्टी के कटाव एवं भूमि संरक्षण की समस्या की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ अनेक प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं। इन मिट्टियों में कई कारणों से कटाव की समस्या उत्पन्न हो गयी है। जिससे कृषि उत्पादन में निरन्तर कमी आ रही है। भारतीय मृदा का अवकर्षण मुख्य रूप से चार रूपों में क्रियाशील है-

  1. परत अपरदन 
  2. अवनालिका अपरदन 
  3. वायु अपरदन 
  4. मृदा प्रदूषण।

भारत में मिट्टी कटाव के कारण-भारत में मिट्टी कटाव के निम्नलिखित कारण प्रमुख हैं

1. भारत में होने वाली वर्षा का स्वभाव मात्रा एवं वितरण यहाँ होने वाले मृदा अपरदन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। वर्षाकाल में जब भी दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी हवाओं द्वारा घनघोर वर्षा होती है दक्षिणी प्रायद्वीप के पश्चिमी घाट उत्तर के हिमालय पर्वतीय क्षेत्र तथा उत्तर के मैदानी भागों पर वृहद् स्तर पर भू-अपरदन होता है। भारत के उत्तरी पर्वतीय भागों में अत्यधिक ढाल वाले भू-भागों में वर्षा होने पर मिट्टी की परतें शीघ्रता से अपरदित होती चली जाती हैं। ऐसे भू-भागों में अत्यधिक वर्षा होने से भूस्खलन की घटनाएँ होने लगती हैं।

2. उत्तर भारत के अधिकांश भागों में मुलायम व घुलनशील मिट्टी की प्रधानता मिलती है जो वर्षा होने पर शीघ्र ही घुलकर बह जाती है।

3. उत्तर भारत की नदियों में वर्षाकाल में प्रायः बाढ़ें आ जाती हैं जिसके कारण समीपवर्ती भूमि की मिट्टी की ऊपरी परत पानी के साथ शीघ्र ही बह जाती है। वस्तुतः भारत में वर्षाकाल में तीव्र गति से होने वाले जलीय मृदा अपरदन को नियन्त्रित करने के लिए न तो सघन वन आवरण हैं और न ही पर्याप्त संख्या में गहरे व विस्तृत जलाशय।

4. भारत के अधिकांश भागों में होने वाले अनियन्त्रित पंशुचारण से भी मृदा अपरदन की दर बढ़ती है। पर्वतीय ढालों पर अनियन्त्रित पशुचारण से मृदा अपरदन की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है।

5. वनों की अविवेकपूर्ण कटाई से भी मिट्टी की अपरदन दर बढ़ती है। वृक्षों की जड़ें मिट्टी के कणों को बाँधे रखती हैं। वनस्पतिविहीन भू-भागों पर मिट्टी के कण हवा या वर्षा द्वारा शीघ्र ही अपरदित हो जाते हैं।

6. हिमालय पर्वत श्रेणी के पूर्वी भागों में स्थानान्तरित कृषि प्रणाली का प्रचलन भी मृदा अपरदन की दर को बढ़ाने में सहयोग करता है।

7. उत्तरी भारत के मैदानी भागों में ग्रीष्मकाल में आने वाली प्रचण्ड आँधियाँ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी की ऊपरी परत को उड़ाकर ले जाती हैं।
भूमि संरक्षण-भूमि संरक्षण निम्न प्रकार से किया जा सकता है

(i) समोच्च रेखीय जुताई या बोआई-ढालू धरातल पर यदि ऊपर से नीचे की ओर जुताई कर कृषि की जाती है तो वर्षा का जल या सिंचाई के लिए प्रयुक्त जल शीघ्रता से मिट्टी का कटाव करता है। इस समस्या से निपटने के लिए ढालू भूमि पर समोच्च रेखाओं के साथ-साथ बाँध बनाकर जुताई कर अधिक ढाल को धीमे ढाल में परिवर्तित कर दिया जाता है।

(ii) वेदिकाकरण-पर्वतीय क्षेत्रों के ढालों में सीढ़ीदार खेत बनाकर प्रत्येक खेत के किनारे मेड़बन्दी कर दी जाती है, जिससे भूमि कटाव में कमी आ जाती है तथा अपरदित मिट्टी निचले सीढ़ीदार खेतों में जमा होती चली जाती है। वेदिकाकरण विधि ढालू भूमि पर प्रयुक्त की जाती है।

(iii) मेड़बन्दी करना-अपेक्षाकृत हल्के ढाल वाले मैदानी भागों में स्थित खेतों की मेड़ों को ऊँचा कर देना चाहिए जिससे भूमि का कटाव रुकता है तथा भूमिगत जल के स्तर में वृद्धि होती है।

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(iv) फसल आवर्तन-एक कृषि भूमि पर कई वर्षों तक एक फसल बार-बार न बोकर अन्य फसलों को उगाना जैसे एक स्थान पर फलीदार फसल (leguminous crop) जैसे-मटर, चना आदि बोई जाती है तो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा पहले से अधिक हो जाती है क्योंकि फलीदार फसलों की जड़ों में स्थित असंख्य जीवाणु वायु की नाइट्रोजन को ग्रहण करके उपयोगी नाइट्रोजन के यौगिकों में बदल देते हैं। फलीदार फसल के बाद यदि बिना फलीदार फसल बोई जाये तो उनको मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन यौगिक मिल जाते हैं। वस्तुतः फसलों के समुचित आवर्तन से भूमि की उर्वरकता बनी रहती है।

(v) वृक्षारोपण एवं घास रोपण-मिट्टी अपरदन की समस्या से ग्रस्त क्षेत्रों में विस्तृत पैमाने पर वृक्षारोपण एवं घास का रोपण करना आवश्यक होता है। इससे मृदा अपरदन की दर में अधिक गिरावट आती है। साथ ही भूमि की जल अवशोषण क्षमता में वृद्धि होती है।

(vi) नियन्त्रित पशुचारणता-नियन्त्रित पशुचारणता से भूमि कटाव की प्रक्रिया रुकती है तथा घासों तथा अन्य वनस्पति की वृद्धि भी सुचारु रूप से होती है।

(vii) अस्थाई कृषि पर प्रतिबन्ध-जिन क्षेत्रों में परम्परागत रूप से अस्थाई कृषि या झूमिंग कृषि का प्रचलन है। उन क्षेत्रों में एक तो भूमि की उर्वरता शीघ्र समाप्त हो जाती है। दूसरे मृदा अपरदन की दर में तेजी से वृद्धि होती है। अतः अस्थाई कृषि पर कड़ाई से प्रतिबन्ध लगाकर उन क्षेत्रों का मृदा संरक्षण किया जा सकता है।

(viii) नदियों पर बाँधों का निर्माण-नदियों में आने वाली बाढ़ों को रोकने के लिए नदियों पर स्थान-स्थान पर बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण करना चाहिए, जिससे नदियों के जल के तीव्र प्रवाह को नियन्त्रित किया जा सकता है। जल विद्युत उत्पादित की जा सकती है।
आज भी भारतीय किसान मिट्टी सम्बन्धी समस्याओं के प्रति जागरूक नहीं हो पाया है। सरकार ने मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रम, बीहड़ पुनरुत्थान कार्यक्रम, विकास कार्यक्रम एवं कमाण्ड एरिया विकास कार्यक्रम संचालित किए हैं। किन्तु मिट्टी कटाव को रोकने में सफलता जनसहभागिता एवं समन्वित कार्यक्रम से ही मिल सकती है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 25, 2022, 1:02 p.m.
Published Aug. 24, 2022

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