RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

Rajasthan Board RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ Important Questions and Answers. 

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

बहुविकल्पीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 
समुद्र तल पर औसत वायुदाब कितना मिलता है? 
(क) 1013.2
(ख) 1000 
(ग) 990
(घ) 985.25। 
उत्तर:
(क) 1013.2

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प्रश्न 2. 
पवनों की गतिशीलता का प्रमुख कारण है ? 
(क) वायुदाब का समान होना
(ख) वायुदाब में वृद्धि होना 
(ग) वायुदाब में परिवर्तन
(घ) वायुदाब में अन्तर का होना। 
उत्तर:
(घ) वायुदाब में अन्तर का होना। 

प्रश्न 3. 
उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में वायु परिसंचरण को कहते हैं ? 
(क) हेडले कोष्ठ
(ख) फैरल कोष्ठ 
(ग) ध्रुवीय कोष्ठ
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) हेडले कोष्ठ

प्रश्न 4. 
उत्तरी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की दिशा होती है? 
(क) दक्षिण-पश्चिम की ओर
(ख) दक्षिण-पूर्व की ओर
(ग) उत्तर-पश्चिम की ओर
(घ) उत्तर-पूर्व की ओर। 
उत्तर:
(क) दक्षिण-पश्चिम की ओर

प्रश्न 5. 
अश्व अक्षांश किस पेटी में मिलते हैं?
(क) भूमध्यरेखीय पेटी में
(ख) उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी में 
(ग) उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी में
(घ) ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी में। 
उत्तर:
(ख) उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी में 

प्रश्न 6. 
निम्न में से जो गतिजन्य पेटी है वह है
(क) भूमध्यरेखीय निम्न दाब पेटी
(ख) ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी 
(ग) उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी
(घ) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(ग) उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी

प्रश्न 7. 
वायुदाब के वितरण हेतु मुख्यतः किन महीनों को चुना गया है? 
(क) फरवरी व अप्रैल
(ख) मार्च व अगस्त 
(ग) मई व सितम्बर
(घ) जनवरी व जुलाई। 
उत्तर:
(घ) जनवरी व जुलाई। 

प्रश्न 8. 
जुलाई में सूर्य लम्बवत् होता है
(क) भूमध्य रेखा पर
(ख) कर्क रेखा पर 
(ग) मकर रेखा पर
(घ) आर्कटिक वृत्त पर।
उत्तर:
(ख) कर्क रेखा पर 

प्रश्न 9. 
पश्चिम से आ रही पवनें कहलाती हैं
(क) व्यापारिक पवनें
(ख) पछुआ पवनें 
(ग) ध्रुवीय पवनें
(घ) मानसूनी पवनें।
उत्तर:
(ख) पछुआ पवनें 

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प्रश्न 10. 
जब शीतल व भारी वायु आक्रामक होती है तो इस प्रकार बने वाताग्र को कहते हैं
(क) शीत वाताग्र
(ख) उष्ण वाताग्र 
(ग) अचर वाताग्र
(घ) अधिविष्ट वाताग्र। 
उत्तर:
(क) शीत वाताग्र

प्रश्न 11. 
सामान्यत: उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति होती है ? 
(क) महासागरों पर
(ख) महाद्वीपीय समतल मैदानों में
(ग) तराई क्षेत्रों में
(घ) पर्वतीय ढालों के सहारे। 
उत्तर:
(क) महासागरों पर

प्रश्न 12. 
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में कहते हैं ? 
(क) चक्रवात
(ख) विली-विलीज 
(ग) हरीकेन
(घ) टाइफून। 
उत्तर:
(ख) विली-विलीज 

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए

स्तम्भ अ (वायुदाब पेटी)

स्तम्भ ब (अक्षांशीय विस्तार)

(i) भूमध्यरेखीय निम्न दाब पेटी

(अ) दोनों गोलार्डों में 60°-65° अक्षांशों के मध्य

(ii) उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पेटी

(ब) दोनों गोलार्डों में ध्रुवों के निकट

(iii) उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी

(स) दोनों गोलार्डों में 30°-35° अक्षांशों के मध्य

(iv) ध्रुवीय उच्च दाब पेटी

(द) 5° उत्तर से 5° दक्षिण अक्षांशों के मध्य

उत्तर:

स्तम्भ अ (वायुदाब पेटी)

स्तम्भ ब (अक्षांशीय विस्तार)

(i) भूमध्यरेखीय निम्न दाब पेटी

(द) 5° उत्तर से 5° दक्षिण अक्षांशों के मध्य

(ii) उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पेटी

(स) दोनों गोलार्डों में 30°-35° अक्षांशों के मध्य

(iii) उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी

(अ) दोनों गोलार्डों में 60°-65° अक्षांशों के मध्य

(iv) ध्रुवीय उच्च दाब पेटी

(ब) दोनों गोलार्डों में ध्रुवों के निकट


2. 

स्तम्भ अ (पवनों)

स्तम्भ ब (पवनों की दिशा)

(i) दक्षिणी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवन

(अ) दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम

(ii) उत्तरी गोलार्द्ध में पछुवा पवन

(ब) उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व

(iii) दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुवा पवन

(स) दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व

(iv) दक्षिणी गोलार्द्ध में ध्रुवीय पवन

(द) दक्षिण-पूर्व से उपध्रुवीय भाग की ओर

उत्तर:

स्तम्भ अ (पवनों)

स्तम्भ ब (पवनों की दिशा)

(i) दक्षिणी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवन

(अ) दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम

(ii) उत्तरी गोलार्द्ध में पछुवा पवन

(स) दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व

(iii) दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुवा पवन

(ब) उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व

(iv) दक्षिणी गोलार्द्ध में ध्रुवीय पवन

(द) दक्षिण-पूर्व से उपध्रुवीय भाग की ओर


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रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न 

निम्न कथनों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. वायुदाब को मापने की इकाई..........है। 
  2. विषुवत वृत्त के निकट वायुदाब............मिलता है। 
  3. धरातल पर...............सर्वाधिक होता है। 
  4. पीरू तट पर गर्म धाराओं को............कहा जाता है। 
  5. समुद्री पवनें..............में चलती हैं। 

उत्तर:

  1. मिलीबार 
  2. कम 
  3.  घर्षण 
  4. एल-निनो 
  5. दिन में। 

सत्य-असत्य कथन सम्बन्धी प्रश्न 

निम्न कथनों में से सत्य-असत्य कथन की पहचान कीजिए

  1. दाब व ताप में विपरीत सम्बन्ध होता है।
  2. उच्च दाब प्रणाली के केन्द्र में निम्न दाब होता है।
  3. ध्रुवों के निकट वायुदाब अधिक होता है।
  4. समदाब रेखाओं के पास-पास होने पर दाब प्रवणता कम होती है।
  5. टाइफून हिन्द महासागर में चलते हैं।

उत्तर:

  1. सत्य 
  2. असत्य 
  3. सत्य 
  4. असत्य
  5. असत्य। 

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
पवन क्या होती है? 
उत्तर:
क्षैतिज रूप से गतिमान वायु को ही पवन कहते हैं। 

प्रश्न 2. 
वायुमण्डलीय दाब किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मानक समुद्रतल से वायुमण्डल की अन्तिम सीमा तक एक इकाई क्षेत्रफल के वायुस्तम्भ के भार को वायुमण्डलीय दाब कहते हैं। अथवा प्रति इकाई क्षेत्र पर पड़ने वाले वायु/गैसों के भार को ही वायुदाब कहते हैं।

प्रश्न 3. 
धरातल के समीप वायुदाब अधिक क्यों होता है ? 
उत्तर:
गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरातल के समीप वायु सघन होती है जिस कारण वायुदाब अधिक होता है। 

प्रश्न 4. 
वायुदाब को मापने के उपकरण को किस नाम से जानते हैं ? 
उत्तर:
पारद वायुदाब मापी या निर्द्रव बैरोमीटर। 

प्रश्न 5. 
वायु में गति का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर:
जैसे-जैसे ऊँचाई की ओर जाते हैं वायुदाब घटता जाता है। ऊँचाई पर वायुदाब भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है और यह निश्चित ही वायु में गति का प्रमुख कारण है।

प्रश्न 6. 
समदाब रेखाएँ क्या हैं ? 
उत्तर:
समुद्र तल से समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ समदाब रेखाएँ कहलाती हैं। 

प्रश्न 7. 
भूमध्यरेखा के निकट वायुदाब कम क्यों मिलता है? 
उत्तर:
क्योंकि यहाँ वर्षभर उच्च तापमान पाया जाता है। 

प्रश्न 8. 
उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र किसे कहते हैं? 
उत्तर:
30°- 35° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के बीच मिलने वाले क्षेत्रों को उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र कहते हैं। 

प्रश्न 9. 
वायुदाब पेटियाँ विस्थापित क्यों होती हैं?
उत्तर:
सूर्य की स्थिति व तापीय दशा के कारण। 

प्रश्न 10. 
कॉरिऑलिस बल क्या है ?
उत्तर:
पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कॉरिऑलिस बल कहा जाता है। इस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी ओर व दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर विक्षेपित हो जाती हैं।

प्रश्न 11. 
पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें किन प्रभावों का परिणाम हैं ? 
उत्तर:

  1. दाब प्रवणता 
  2. घर्षण बल 
  3. कॉरिऑलिस बल 
  4. गुरुत्वाकर्षण बल। 

प्रश्न 12.
दाब प्रवणता किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब मुख्यतः एक बल उत्पन्न करता है अतः दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता कहलाती है।

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प्रश्न 13. 
घर्षण बल कहाँ सर्वाधिक होता है? 
उत्तर:
धरातल पर। 

प्रश्न 14. 
कॉरिऑलिस बल कहाँ शून्य मिलता है? 
उत्तर:
भूमध्य रेखा पर। 

प्रश्न 15. 
चक्रवाती परिसंचरण क्या है ? 
उत्तर:
निम्न दाब क्षेत्र के चारों ओर पवनों का परिक्रमण चक्रवाती परिसंचरण कहलाता है। 

प्रश्न 16. 
प्रतिचक्रवाती परिसंचरण किसे कहते हैं? 
उत्तर:
उच्च वायुदाब क्षेत्र के चारों तरफ पवनों का परिक्रमण होना प्रति चक्रवाती परिसंचरण कहलाता है।

प्रश्न 17. 
वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
वायुमंडलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण कहा जाता है।

प्रश्न 18. 
कोष्ठ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ कहते हैं।

प्रश्न 19.
हैडले कोष्ठ किसे कहते हैं? 
उत्तर:
व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में होने वाले विपरीत परिसंचरण को हैडले कोष्ठ कहते हैं। 

प्रश्न 20. 
फेरेल कोष्ठ किसे कहते हैं? 
उत्तर:
पछुवा पवनों के क्षेत्र में होने वाले विपरीत परिसंचरण को फैरेल कोष्ठ कहते हैं। 

प्रश्न 21. 
ध्रुवीय कोष्ठ किसे कहते हैं? 
उत्तर:
ध्रुवीय पवनों के क्षेत्र में होने वाले विपरीत परिसंचरण को ध्रुवीय कोष्ठ कहते हैं। 

प्रश्न 22. 
मौसमी पवनें किसे कहते हैं? 
उत्तर:
मौसमी दशाओं के अनुसार चलने वाली पवनों को मौसमी पवनें कहते हैं। 

प्रश्न 23. 
व्यापारिक पवनें किसे कहते हैं?
उत्तर:
दोनों गोलार्डों में उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी की ओर चलने वाली हवाओं को व्यापारिक पवनें कहते हैं।

प्रश्न 24. 
पछुआ पवनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दोनों गोलार्डों में उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियों की ओर चलने वाली पवनों को पछुआ पवन कहते हैं।

प्रश्न 25. 
ध्रुवीय पवनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दोनों गोलार्डों में ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी की ओर चलने वाली हवाओं को ध्रुवीय पवनें कहते हैं।

प्रश्न 26. 
स्थलीय समीर क्यों प्रवाहित होती है? ।
उत्तर:
दाब प्रवणता स्थल से समुद्र की तरफ होने पर स्थलीय समीर प्रवाहित होती है। 

प्रश्न 27. 
पर्वतीय समीर क्या होती है? 
उत्तर:
रात्रि के समय पर्वतीय ढालों के ठंडे हो जाने पर सघन वायु घाटी में नीचे उतरती है जिसे पर्वतीय पवन कहते

प्रश्न 28. 
घाटी समीर किसे कहते हैं?
उत्तर:
दिन के समय पर्वतीय प्रदेशों के ढाल गर्म हो जाते हैं और वायु ढाल के साथ-साथ ऊपर उठती है और इस स्थान को भरने के लिए वायु घाटी से बहती है इन पवनों को घाटी समीर कहते हैं।

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प्रश्न 29. 
वायुराशि किसे कहते हैं ? 
उत्तर:
तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी विशिष्ट गुणों वाली वायु को वायुराशि कहते हैं। 

प्रश्न 30. 
वाताग्र किसे कहते हैं ? 
उत्तर:
जब दो विभिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। 

प्रश्न 31. 
वाताग्र कहाँ निर्मित होते हैं ?
उत्तर:
वाताग्र मध्य अक्षांशों में निर्मित होते हैं। 

प्रश्न 32. 
वाताग्र कितने प्रकार के होते हैं ? 
उत्तर:
कालाय चार प्रकार के होते हैं

  1. उष्ण वाताग्र 
  2. शीत वाताग्र 
  3. अचर वाताग्र 
  4. अधिविष्ट वाताग्र। 

प्रश्न 33
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात किसे कहते हैं ? 
अथवा 
बहिरुष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या है ?
उत्तर:
टो चक्रजातीय आयु प्रणालियाँ जो कि उष्ण कटिबन्ध से दूर मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं उन्हें शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात व अहिरुष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं।

प्रश्न 34
अहिर ष्ण कालका शीय चक्रवात की चलने की दिशा बताइए। 
उत्तर:
बहिष्ण कटिबंधीय चक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं।

प्रश्न 35. 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात किसे कहते हैं? 
उत्तर:
ऐसे चक्रवात जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर उत्पन्न होते हैं उन्हें उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।

प्रश्न 36. 
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की चलने की दिशा बताइए।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर चलते हैं। 

प्रश्न 37. 
टाइफून चक्रवात कहाँ उत्पन्न होते हैं ? 
उत्तर:
चीन सागर में। 

प्रश्न 38. 
अटलांटिक महासागर में उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को किस नाम से जाना जाता है ? 
उत्तर:
हरीकेन। 

प्रश्न 39. 
हिन्द महासागर में आने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को किस नाम से जाना जाता है ? 
उत्तर:
चक्रवात।

प्रश्न 40. 
चक्रवात की आँख किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब चक्रवात के केन्द्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण मिलता है तो उसे चक्रवात की आँख कहा जाता है।

प्रश्न 41. 
तड़ित झंझा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
तड़ित झंझा (Thunderstorms) उष्ण आई दिनों में प्रबल संवहन के कारण उत्पन्न होते हैं। ये पूर्ण विकसित कपासी वर्षी मेघ हैं जो गरज व बिजली के साथ अल्प समय के लिए उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 42. 
टोरनेडो किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर;
तड़ित झंझा से कभी-कभी वायु आक्रामक रूप में सर्पिल अवरोहण करती है। इसमें केन्द्र पर अत्यन्त कम वायुदाब होता है और यह व्यापक रूप से भयंकर विनाशकारी होते हैं जिन्हें 'टोरनेडो' कहते हैं।

प्रश्न 43. 
जलस्तम्भ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
समुद्र पर टोरनेडो को जलस्तम्भ (Water spouts) कहते हैं।-

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1 प्रश्न)

प्रश्न 1. 
ऊर्ध्वाधर पवनें अधिक शक्तिशाली नहीं होती। क्यों ?
उत्तर:
वायुमण्डल के निचले भाग में वायुदाब ऊँचाई के साथ तीव्र गति से घटता जाता है। वायुदाब के घटने की दर प्रति 10 मीटर की ऊँचाई पर 1 मिलीबार होती है। वायुदाब सदैव एक दर से कम नहीं होता है। ऊर्ध्वाधर दाब प्रवणता क्षैतिज दाब प्रवणता की अपेक्षा अधिक होती है। लेकिन इसके विपरीत दिशा में कार्यरत गुरुत्वाकर्षण बल से यह सन्तुलित हो जाती है। जिस कारण ऊर्ध्वाधर पवनें अधिक शक्तिशाली नहीं होती हैं।

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प्रश्न 2. 
वायुदाब के क्षैतिज वितरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वायुदाब के क्षैतिज वितरण का तात्पर्य वायुदाब के अक्षांशीय वितरण से होता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समान अंतराल पर खींची गई समदाब रेखाओं द्वारा किया जाता है। समदाब रेखाओं से ही निम्न दाब प्रणाली व उच्च दाब प्रणाली को प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 3. 
दाब प्रवणता किस प्रकार पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करती है?
उत्तर:
वायुमण्डलीय दाब में भिन्नता के कारण ही वायु गतिमान होती है-किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। समदाब रेखाएँ जितनी नजदीक होंगी दाब प्रवणता उतनी ही अधिक होगी और पवनों की गति उतनी ही अधिक तीव्र होगी। दाब प्रवणता तथा पवनों के सम्बन्ध में निम्न दो बातें महत्वपूर्ण हैं 

  1. पवनें समदाब रेखाओं को काटती हुई उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं। 
  2. पवनों की गति दाब प्रवणता पर आधारित होती है। 

प्रश्न 4. 
घर्षण बल का पवन की दिशा और गति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
घर्षण बल का पवन की दिशा और गति पर विशेष प्रभाव पड़ता है। जब हवाएँ धरातल के नजदीक निम्न स्तर से होकर चलती हैं तो घर्षण बल अधिक प्रभावी होता है। घर्षण बल धरातल पर अधिक और जलीय भागों पर कम प्रभावी होता है। घर्षण बल सदैव वायु के विपरीत अवरोध का कार्य करता है। जहाँ घर्षण बल निष्क्रिय होता है वहाँ पवन विक्षेपण बल तथा प्रवणता बल में सन्तुलन पाया जाता है। अतएव इन भागों में पवन की दिशा समदाब रेखाओं के समानान्तर होती है। घर्षण बल के कारण पवन का वेग मन्द हो जाता है और हवाएँ समदाब रेखाओं के समानान्तर न चलकर कुछ विक्षेपित हो जाती हैं।

प्रश्न 5. 
कॉरिऑलिस बल क्या है ? यह किस प्रकार पवनों की दिशा व वेग पर प्रभाव डालता है ?
उत्तर:
दाब प्रवणता की दिशा समदाब रेखाओं के समकोण होती है अतएव हवाओं की दिशा भी वही होनी चाहिए। किन्तु पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण उत्पन्न कॉरिऑलिस बल से हवाओं की दिशा में विक्षेपण हो जाता है। इस बल को 'विक्षेपण बल' कहते हैं। इस बल की 'बोज सबसे पहले फ्रांसीसी विद्वान 'कॉरिऑलिस' ने की थी। अतएव इस बल को 'कॉरिऑलिस बल के नाम से भी जाना जाता है। इस बल के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएँ प्रवणता की दिशा की दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाी ओर मुड़ जाती हैं। कॉरिऑलिस बल अक्षांशों के कोण के समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक तथा विषुवत् रेखा पर नगण्य होता है।

प्रश्न 6. 
चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात में पवनों की दिशा के प्रारूप को बताइए।
उत्तर:
चक्रवात में पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत चलती हैं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप चलती हैं। प्रतिचक्रवात में पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत चलती हैं।

प्रश्न 7. 
भूमण्डलीय पवनों के प्रारूप को निर्धारित करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए। उत्तर-भूमण्डलीय पवनों का प्रारूप मुख्यतया निम्न बातों पर निर्भर करता है

  1. वायुमण्डलीय ताप में अक्षांशीय भिन्नता 
  2. वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति 
  3. वायुदाब पेटियों का सौर किरणों के साथ विस्थापित होना 
  4. धरातल पर महाद्वीप एवं महासागरों की अवस्थिति 
  5. पृथ्वी की घूर्णन गति।

वायुमण्डलीय पवनों का प्रवाह प्रारूप वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण कहलाता है जो महासागरीय जल को भी गतिशील बनाता है जिससे धरातल पर विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु प्रभावित होती है।

प्रश्न 8. 
जनवरी में वायुदाब की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
जनवरी में सूर्य दक्षिण गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लगभग लम्बवत् चमकता है। इस कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान अधिक तथा वायुभार कम होता है। इस अवधि में निम्न वायुदाब का क्षेत्र दक्षिणी अमेरिका दक्षिणी अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया के आन्तरिक भागों में विकसित हो जाता है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में पूर्णतः विकसित उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र महाद्वीपों पर मिलते हैं।

प्रश्न 9. 
पृथ्वी की परिभ्रमण गति का पवनों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण पवनें विक्षेपित हो जाती हैं। इसे कॉरिऑलिस बल और इस बल के प्रभाव को कॉरिऑलिस प्रभाव कहते हैं। इस प्रभाव के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इस प्रभाव को फेरेल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था इसलिए इसे फेरेल का नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 10. 
व्यापारिक पवनों का नामकरण कैसे हुआ है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में समुद्र के अन्दर पालयुक्त जलयानों को इन पवनों द्वारा व्यापार में सुविधा मिलती थी इसलिए इन्हें व्यापारिक पवन कहा गया है। ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनें एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के नाम से जानी जाती हैं।

प्रश्न 11. 
व्यापारिक पवनों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
व्यापारिक पवनों की निम्न विशेषताएँ हैं

  1. उपोष्ण उच्च वायुदाब के पास हवाओं के नीचे उतरने के कारण ये हवाएँ शुष्क व शांत होती हैं। 
  2. ये पवनें जैसे-जैसे अग्रसर होती हैं मार्ग में जलराशियों से जलवाष्प ग्रहण कर लेती हैं। 
  3. विषुवत रेखा के पास पहुँचते-पहुँचते ये हवाएँ जलवाष्प से लगभग संतृप्त हो जाती हैं। 
  4. दोनों गोलार्डों की व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा के पास आपस में टकराती हैं और ऊपर उठकर घनघोर वर्षा करती हैं।

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प्रश्न 12. 
ध्रुवीय पवनों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ध्रुवीय पवनों की निम्न विशेषताएँ होती हैं

  1. ये पवनें ध्रुवीय क्षेत्रों से उपध्रुवीय क्षेत्रों की ओर चलती हैं।
  2. उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है।
  3. ध्रुवीय शीत क्षेत्रों से चलने के कारण ये हवाएँ अत्यन्त ठण्डी व शुष्क होती हैं। 
  4. तापमान कम होने के कारण इनकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता भी कम होती है। 
  5. उत्तरी गोलार्द्ध में तीव्र गति से चलने के कारण ध्रुवीय पवनों को नारईस्टर कहा जाता है। 

प्रश्न 13. 
मौसमी पवनें क्या हैं ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मौसमी पवनें वे पवनें हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदल देती हैं। मानसूनी हवाएँ मौसमी पवनों की श्रेणी में आती हैं। ये दक्षिणी-पूर्वी एशिया में मौसम के अनुसार अपनी दिशा में व्यापक परिवर्तन कर देती हैं। ये हवाएँ छ: महीने उत्तर-पश्चिमी दिशा से दक्षिण-पूर्व की ओर तथा छः महीने दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर चलती हैं।

प्रश्न 14.
ईएनएसओ (ENSO) क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मध्य प्रशान्त महासागर की गर्म जलधाराएँ दक्षिणी अमेरिका के तट की ओर प्रवाहित होती हैं और पीरू की ठण्डी धाराओं का स्थान ले लेती हैं। पीरू के तट पर इन गर्म जलधाराओं की उपस्थिति एलनीनो कहलाती है। एलनीनो घटना का मध्य प्रशान्त महासागर और आस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से घनिष्ठसम्बन्ध है। प्रशान्त महासागर पर वायुदाब में यह परिवर्तन दक्षिणी दोलन कहलाता है। इन दोनों (एलनीनो एवं दक्षिणी दोलन) की संयुक्त घटना को ENSO के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 15. 
घाटी व पर्वतीय पवनें क्या हैं ?
उत्तर:
दिन के समय पर्वतीय भागों में घाटियों के किनारे के ढाल गर्म हो जाते हैं। उनके सम्पर्क में आने वाली वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। इस स्थान को भरने के लिए वायु घाटी से ऊपर आती है। इन पवनों को ही घाटी पवनें कहते हैं। रात्रि के समय घाटियों के ढाल जल्दी ठण्डे हो जाते हैं। इनके सम्पर्क में आने वाली वायु ठण्डी हो जाती है। यह ठण्डी और भारी हवा नीचे घाटी में उतरती है। इसे पर्वतीय पवनें कहते हैं।

प्रश्न 16. 
वायुराशियों के प्रमुख उद्गम क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
वायुराशियों के पाँच प्रमुख उद्गम क्षेत्र हैं-

  1. उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय महासागर 
  2. उपोष्ण कटिबंधीय उष्ण मरुस्थल 
  3. उच्च अक्षांशीय ठंडे महासागर 
  4. उच्च अक्षांशीय अति शीत बर्फ आच्छादित महाद्वीपीय क्षेत्र 
  5. स्थायी रूप से बर्फ आच्छादित महाद्वीप अंटार्कटिक व आर्कटिक क्षेत्र।

प्रश्न 17. 
वायुराशियों के प्रमुख प्रकारों को बताइए। 
उत्तर:
उद्गम क्षेत्र के आधार पर वायुराशियों को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. उष्ण कटिबन्धीय महासागरीय वायुराशि (mT)
  2. उष्ण कटिबन्धीय महाद्वीपीय वायुराशि (CT)
  3. ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि (MP)
  4. ध्रुवीय महाद्वीपीय वायुराशि (cP)
  5. महाद्वीपीय आर्कटिक वायुराशि (CA)
    उष्ण कटिबन्धीय वायुराशियाँ गर्म तथा ध्रुवीय वायुराशियाँ ठण्डी होती हैं। 

प्रश्न 18. 
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात क्या है ? इनका निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर: 
मध्य अक्षांशों में (शीतोष्ण कटिबन्धीय भागों में) उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। इनका निर्माण दो विपरीत स्वभाव वाली उष्णार्द्र हवाओं के मिलने से होता है। ये पछुआ हवाओं के साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं और किसी स्थान के मौसम को प्रभावित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। .

प्रश्न 19. 
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के विभिन्न नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का स्वरूप आक्रामक व तूफानी होता है। इनमें पवनों की गति अत्यन्त तेज होती है। ये चक्रवात महासागरों से तटीय भागों की ओर प्रवाहित होते हैं। इनकी भयंकरता के कारण इन्हें विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिन्द महासागर में इन्हें 'चक्रवात', अटलाण्टिक महासागर में 'हरीकेन'; पश्चिमी प्रशान्त व दक्षिणी चीन सागर में 'टाइफून' तथा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में 'विली-विलीज' कहते हैं।

प्रश्न 20. 
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा विकास की अनुकूल परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात मुख्यत: उष्ण कटिबन्धीय महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होते हैं। इनकी उत्पत्ति का समय मुख्यतः ग्रीष्मकाल होता है। शीतकाल में ये दिखाई नहीं पड़ते। उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति व विकास की अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं

  1. वृहद् सामुद्रिक भाग जहाँ तापमान 27° से. से अधिक हो
  2. कॉरिऑलिस बल का अधिक होना
  3. ऊर्ध्वाकार पवनों की गति तथा उनमें कम अन्तर
  4. कमजोर निम्न दाब क्षेत्र अथवा न्यून चक्रवातीय परिसंचरण
  5. समुद्री तल पर ऊपरी परिसंचरण आदि।

प्रश्न 21. 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की दिशा व गति का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की दिशा-उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सामान्यतः व्यापारिक हवाओं के साथ पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर चलते हैं। ये एक निश्चित समय में ही आते हैं। इसका समय मुख्यतया ग्रीष्मकाल होता है। जाड़ों में ये विलीन हो जाते हैं। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की तुलना में इनकी आवृत्ति व क्षेत्र कम होता है। गति इन चक्रवातों की गति अत्यन्त तीव्र होती है तथा ये बड़े भयंकर और विनाशकारी होते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक टिके रहते हैं तथा इनसे घनघोर वर्षा होती है। महासागरों के तटवर्ती क्षेत्रों में इनसे अपार क्षति होती है। अब तक के कई भयंकर तूफानों से तटीय भागों में लाखों की क्षति व जनहानि हुई है। 0 

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2 प्रश्न)

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 1. 
वायुदाब की पेटियों के खिसकाव का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
धरातल पर वायुदाब की पट्टियों एवं उसके स्थानान्तरण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धरातल पर विषुवत् वृत्त के समीप वायुदाब कम मिलता है इसे विषुवतीय निम्न वायुदाब क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के साथ उच्च दाब क्षेत्र पाए जाते हैं जिन्हें उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च दाब क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। ध्रुवों की ओर 60° उत्तरी व 60° दक्षिणी अक्षांशों पर निम्न दाब की पेटियाँ पायी जाती हैं जिन्हें अधोध्रुवीय (उपध्रुवीय) निम्न दाब की पेटियों के नाम से जाना जाता है। ध्रुवों के निकट उच्च वायुदाब की पेटियाँ पायी जाती हैं। ये वायुदाब पेटियाँ प्रकृति में अस्थायी होती हैं जो सूर्य की किरणों के विस्थापन के साथ-साथ विस्थापित होती रहती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु में ये पेटियाँ दक्षिण की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में उत्तर दिशा की ओर स्थानान्तरित हो जाती हैं।

प्रश्न 2. 
समदाब रेखाएँ क्या हैं ? विभिन्न वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाओं की आकृति का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानचित्र पर वायुदाब के वितरण को समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ हैं जो धरातल पर या समुद्र तल पर समान दबाव वाले स्थानों को मिलाती हुई खींची जाती हैं। विभिन्न वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। समदाब रेखाओं का प्रदर्शन निम्न दो रूपों में किया जा सकता है

  1. निम्न अथवा चक्रवातीय स्थिति 
  2. उच्च अथवा प्रतिचक्रवातीय स्थिति।

निम्न दाब प्रणाली के केन्द्र में निम्न वायुदाब होता है और वह एक से अधिक समदाब रेखाओं से घिरी होती है। उच्च दाब प्रणाली के केन्द्र में उच्च वायुदाब होता है तथा उनके चारों ओर एक या दो समदाब रेखाएँ होती हैं। यह शुष्क मौसम का द्योतक है।

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ - 1

प्रश्न 3. 
स्थलीय समीर और सागरीय समीर में मिलने वाले अन्तर को स्पष्ट कीजिए। 
अथवा 
स्थलीय समीर सागरीय समीर से किस प्रकार भिन्न है? 
उत्तर:
स्थलीय समीर व सागरीय समीर में मिलने वाले अन्तर निम्नानुसार हैं 

अन्तर का आधार

स्थलीय समीर

सागरीय समीर

1. चलने की स्थिति

स्थलीय समीर स्थल से सागर की ओर चलती हैं।

सागरीय समीर सागर से स्थल की ओर चलती हैं।

2. चलने का कारण

स्थलीय समीर स्थलीय भाग पर उच्च दाब विकसित होने व सागरों पर निम्न दाब की स्थिति के कारण चलती हैं।

ये पवनें सागरीय भागों पर उच्च दाब व स्थलीय भाग पर न्यून वायदाब विकसित होने के कारण चलती हैं।

3. चलने की अवधि

स्थलीय समीर रात्रि के समय स्थलीय भाग में जल की अपेक्षा तीव्र गति से पार्थिव विकिरण होने से ऊष्मा के अधिक हास के परिणामस्वरूप चलती हैं।

सागरीय समीर दिन के समय सूर्य की किरणों से स्थलीय भाग के जल की तुलना में शीघ्र गर्म हो जाने के कारण चलती हैं।

4. नमी की स्थिति

स्थलीय समीर स्थल से चलने के कारण प्रायः शुष्क होती हैं।

सागरीय समीर समुद्रों से चलने के कारण नमी से युक्त होती हैं।

5. तापमान की स्थिति

इस प्रकार की हवायें प्रायः ताप वृद्धि करती हैं

इस प्रकार की समीर प्रायः ताप को कम करती हैं।

6. जलवायु पर प्रभाव

इस प्रकार की समीरों से समुद्र तटीय भागों की जलवायु सम बनी रहती है।

इस प्रकार की समीरों से मौसम सुहावना व स्वास्थ्यप्रद हो जाता है।

7. संचार

इस प्रकार की समीर वर्ष में अधिकांश समय चलती हैं।

इस प्रकार की समीर का संचार केवल गर्मियों में दिन के समय ही हो पाता है।

प्रश्न 4. 
पर्वतीय समीर व घाटी समीर में अन्तर स्पष्ट कीजिए। 
अथवा 
पर्वतीय समीर व घाटी समीर किस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न हैं?
उत्तर:
पर्वतीय एवं घाटी समीरों में निम्न अन्तर पाये जाते हैं 

अन्तर का आधार

पर्वतीय समीर

घाटी समीर

1. समय

पर्वतीय समीर रात्रिकालीन अवधि के दौरान चलती हैं।

घाटी समीर दिन के समय चलती हैं।

2. दाब की स्थिति

पर्वतीय समीर के दौरान पर्वतीय ढालों पर उच्च दाब और घाटी तल में निम्न दाब मिलता है।

घाटी समीर की स्थिति में पर्वतीय ढालों पर निम्न दाब व घाटी के तल में उच्च वायुदाब मिलता है।

3. तापमान

सूर्यास्त के बाद पर्वतीय ढालों पर विकिरण द्वारा ताप ह्रास अधिक होता है। जिससे ऊपरी भाग में कम ताप व घाटी तली में अधिक ताप मिलता है।

दिन के समय सूर्य की किरणों से पर्वतों के ढाल घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं जबकि घाटी तल तक किरणें नहीं पहुँचने से कम दाब मिलता है।

4. नामकरण

इन उतरती हुई पवनों को केटाबेटिक समीर भी कहते हैं।

इस प्रकार की पवनें ऊपर की ओर चढ़ती हैं इन्हें एनाबेटिक हवायें कहा जाता है।

5. प्रारम्भ

इन पवनों का प्रारम्भ सूर्यास्त के बाद होता है।

इन पवनों का प्रारम्भ दिन में 9-10 बजे से होता है।


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प्रश्न 5. 
वायुराशियाँ क्या हैं ? इनके उद्गम क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वायुराशि वायुमण्डल के उस विस्तृत क्षेत्र को कहते हैं जिसमें विभिन्न ऊँचाइयों पर क्षैतिज अवस्था में जलवायु सम्बन्धी विशेषताओं तापक्रम एवं आर्द्रता में समानता मिलती है। वायुराशि जिस क्षेत्र में उत्पन्न होती है वहाँ के गुणों को ग्रहण कर लेती है और जिस क्षेत्र से होकर गुजरती है वहाँ के तापमान और आर्द्रता में परिवर्तन कर देती है। वह समांग क्षेत्र जहाँ वायुराशियों की उत्पत्ति होती है वायुराशि के उद्गम क्षेत्र कहे जाते हैं। वायुराशियों के प्रमुख उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

  1. उष्ण व उपोष्ण कटिबन्धीय महासागर 
  2. उपोष्ण कटिबन्धीय उष्ण मरुस्थल 
  3. उच्च अक्षांशीय अपेक्षाकृत ठण्डे पहासागर 
  4. उच्च अक्षाशीय अतिशीत हिमाच्छादित महाद्वीपीय क्षेत्र
  5. सतत् हिमाच्छादित महाद्वीप अण्टार्कटिका एवं आर्कटिक क्षेत्र।

प्रश्न 6. 
वाताग्र (Fronts) क्या हैं ? वाताग्र के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वातान वायुमण्डल के निचले भाग में वह ढलवाँ क्षेत्र है जिसमें तापमान एवं घनत्व सम्बन्धी संक्रमण प्राप्त होते हैं। दूसरे शब्दों में जहाँ दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं।
वातारों की निर्माण प्रक्रिया को वाताग्र जनन कहते हैं। वाताग्र चार प्रकार के होते हैं

  • शीत वाताग्र
  • उष्ण वाताग्र
  • अचर वातान
  • अधिविष्ट वाताग्र।

जब शीतल वायु आक्रामक होती है और उष्ण वायुराशि को ऊपर ढकेलती है तो इस सम्पर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र कहते हैं। जब गर्म वायुराशियाँ तीवगति से ठण्डी वायुराशियों के ऊपर चढ़ती हैं तो इस सम्पर्क क्षेत्र के कारण इसे उष्ण वाताग्र कहते हैं। जब वाताग्र स्थिर हो जाय तो उसे अचर वाताग्र कहा जाता है और जब एक वायुराशि का सम्पर्क धरातल से समाप्त हो जाय तो अधिविष्ट वानव कहते हैं।

प्रश्न 7.
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात किसे कहते हैं ? इसकी मौसमी दशाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीतोष्ण कटिबधीय चक्रवात-मध्य अक्षांशों में उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं।
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में मौसम शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के मध्य भाग में न्यून दाब होता है अतएव हवाएँ बाहर से केन्द्र की ओर चलती हैं। इससे वायु प्रणाली अभिसारी होती है। इसमें उष्ण एवं शीत वाताग्र में वायु की दिशा अलग-अलग होती है। चक्रवात के दक्षिणी भाग में गर्म हवाएँ होती हैं जबकि उत्तर-पूर्वी तथा उत्तर-पश्चिमी भागों में तापमान न्यूनतम होता है। चक्रवात के विभिन्न भागों में विभिन्न गुणों वाली वायुराशियाँ तथा तापक्रम के कारण मौसम अनियमित रहता है।

चक्रवात आगमन के समय पक्षाभ व पक्षाभ स्तरी बादलों की झीनी चादरें बन जाती हैं। धीरे-धीरे उमस बढ़ती है तथा वायु की दिशा दक्षिण-पूर्व होने लगती है और बादल घने व काले हो जाते हैं। उष्ण वाताग्र के आगमन के समय वर्षास्तरी मेघों से तीव्र वर्षा होती है समस्त आकाश बादलों से ढका रहता है। इसके बाद शीत वाताग्र के आगमन के समय तापमान कम होने लगता है आकाश.बादलों से ढक जाता है तथा वर्षा प्रारम्भ हो जाती है। आकाश में काले कपासी बादल बन जाते हैं तथा मूसलाधार वर्षा होती है। जैसे-जैसे चक्रवात आगे की ओर बढ़ता है मौसम स्वच्छ एवं शान्त होता जाता है।

प्रश्न 8. 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या है ? इनकी उत्पत्ति के कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। ये चक्रवात रातल के बजाय महासागरों पर उत्पन्न होकर तीव्र गति से प्रवाहित होते हैं। उष्ण कटिबन्धीय महासागरों पर इन चक्रवातों को उत्पत्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  • वृहद् समुद्री क्षेत्र का होना। यहाँ तापमान 27° सेग्रे. से अधिक होता है। समुद्री भागों में लगातार आर्द्रता की आपूर्ति हो रहने से इनकी गति अधिक प्रबल हो जाती है।
  • इन क्षेत्रों में कॉरिऑलिस बल अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है जो उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति में सहायक होता है।
  • यहाँ पवनें लम्बवत् धाराओं के रूप में ऊपर उठती हैं। इनकी गति में अन्तर कम होता है। 
  • उच्च तापक्रम तथा निम्न वायुदाब के कारण चक्रवातीय परिसंचरण मन्द होता है। 
  • समुद्री तल तन्त्र पर ऊपरी अपसरण आदि।

प्रश्न 9. 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में मौसम को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के मध्य भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और हवाएँ बड़ी तीव्र गति से चलती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन चक्रवातों को विध्वंसक बनाने वाली ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है जो इस तूफान के केन्द्र को घेरे होती है। उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के केन्द्र के चारों ओर प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण होता है। इसे इसकी आँख कहते हैं। इसका केन्द्रीय क्षेत्र शान्त होता है जहाँ पवनें नीचे उतरती हैं। चक्रवात चक्षु के चारों ओर 'चक्षुभित्ति' होती है जहाँ वायु प्रबल रूप से ऊपर उठती है। ये पवनें क्षोभ सीमा की ऊँचाई तक पहुँचकर इसी क्षेत्र में अधिकतम वेग वाली पवनों को उत्पन्न करती हैं जिनकी गति 250 किमी. प्रति घण्टा तक होती है। इनसे इस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है। चक्रवात की आँख से रेनबैण्ड विकसित होते हैं तथा कपासी वर्षा बादलों की पंक्तियाँ बाहरी क्षेत्रों की ओर विस्थापित हो जाती हैं। समुद्री क्षेत्रों में लगातार आर्द्रता प्राप्ति के कारण ये चक्रवात तूफानी रूप ग्रहण कर लेते हैं और इनसे तटीय इलाकों में घनघोर वर्षा होती है।

प्रश्न 10. 
चक्रवातों की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। अथवा चक्रवातों में मिलने वाले भौतिक लक्षणों को स्पष्ट कीजिए। उत्तर-चक्रवातों की विशेषताएँ

  • चक्रवात निम्न दाब के केन्द्र होते हैं तथा इनमें वायुदाब केन्द्र से बाहर की ओर बढ़ता है।
  • इनमें हवाएँ परिधि से केन्द्र की ओर चलती हैं। 
  • चक्रवातों का आकार अण्डाकार गोलाकार या V अक्षर के समान होता है।
  • चक्रवात मौसम को प्रभावित करते हैं जिसमें वायुदाब का गिरना चन्द्रमा व सूर्य के चारों तरफ प्रभामण्डल का स्थापित होना तीव्र वर्षा का होना इत्यादि शामिल है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएँ घड़ी की सुई के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के अनुकूल होती है। 

प्रश्न 11. 
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की विशेषताएँ बताइए। अथवा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में मिलने वाले विविध भौतिक लक्षणों को स्पष्ट कीजिए। उत्तर-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में मिलने वाले विविध भौतिक लक्षण निम्नानुसार हैं

  • इन चक्रवातों के आने से पूर्व आकाश में सफेद बादलों की लम्बी लेकिन पतली टुकड़ियाँ दिखाई देने लगती हैं। 
  • इनके आने से पूर्व बैरोमीटर में निरन्तर पारा गिरने लगता है। 
  • सूर्य व चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामण्डल बनना इनके आने का लक्षण होता हैं। 
  • इनके आने से पूर्व हवाएँ अपनी दिशा बदलने लगती हैं। 
  • हवा के बंद होने से नालियों में बदबू आने लगे तो इनके आने की सम्भावना स्पष्ट हो जाती है। 

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प्रश्न 12. 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। अथवा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात किन लक्षणों से युक्त होते हैं? उत्तर-उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में मिलने वाली दशाएँ निम्नानुसार हैं

  • इनके केन्द्र में न्यूनदाब होता है तथा इनकी समदाब रेखाओं का आकार गोलाकार होता है।
  • इनकी गति में भिन्नता पाई जाती है। कहीं पर इनकी गति 32 किमी. प्रति घण्टा तथा कहीं पर 200 किमी. प्रति घण्टा होती है।
  • इनके आकारों में काफी भिन्नता होती है। साधारणतया इनका व्यास 80 से 300 किमी. तक होता है। 
  • ये चक्रवात स्थायी होते हैं। एक स्थान पर कई दिनों तक वर्षा करते हैं। 
  • ये चक्रवात अधिक विनाशकारी होते हैं। 
  • ये चक्रवात सागरों के ऊपर तीव्र गति से चलते हैं परन्तु स्थल पर आते ही कमजोर पड़ जाते हैं। 

प्रश्न 13. 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की तुलना कीजिए। 
अथवा 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात किस प्रकार शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों से भिन्न हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय तथा शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की तुलना निम्न बिन्दुओं के आधार पर की गई है

तुलना का आधार

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

1. उत्पत्ति क्षेत्र

उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति 8°-15° उत्तरी अक्षांशों के मध्य महासागरों पर होती है।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति मुख्य रूप से ध्रुवीय वातानों पर होती है। किन्तु अयनवृत्तीय क्षेत्रों से बाहर इनकी उत्पत्ति कहीं भी हो सकती है।

2. उत्पत्ति की ऋतु

इनकी उत्पत्ति मुख्यतः ग्रीष्मकाल के दौरान होती है।

इन चक्रवातों की उत्पति मुख्यतः शीत ऋतु में होती है।

3. समदाब रेखाएँ

इनकी समदाब रेखाएँ गोलाकार होती हैं।

इनकी समदाब रेखाएँ प्राय:V आकार की होती है।

4. वायुदाब प्रवणता

इन चक्रवातों में दाब प्रवणता बहुत तीव्र मिलती है।

इन चक्रवातों में दाब प्रवणता हल्की होती

5. वायु का वेग

इन चक्रवातों में वायु का वेग तीव्र होता है। इनकी गति प्राय: 120 किलोमीटर प्रति घंटा या इससे भी अधिक होती है।

इन चक्रवातों में वायु का वेग अधिक तीव्र नहीं मिलता है।

6. विस्तार

इनका विस्तार बहुत कम होता है।

इस प्रकार के चक्रवात हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले होते हैं।

7. ताप भिन्नता

इन चक्रवातों में ताप भिन्नता नहीं मिलती है।

इस प्रकार के चक्रवातों में विभिन्न सेक्टरों में ताप भिन्नता मिलती है।

8. चलने की दिशा

इन चक्रवातों की दिशा प्रायः पूर्व से पश्चिम की ओर होती है।

इस प्रकार के चक्रवातों की दिशा प्रायः पश्चिम से पूर्व की ओर होती है।

9. वर्षा की स्थिति

ऐसे चक्रवातों में वर्षा अत्यधिक तीव्र गति से होती है।

इन चक्रवातों में वर्षा धीमी होती है।

10. वर्षा की अवधि

वर्षा कम समय तक होती है।

वर्षा कभी-कभी तीव्र बौछारों से पड़ती है। वर्षा कई दिनों तक होती है।

प्रश्न 14. 
तड़ित झंझा व टोरनेडो क्या है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
तड़ित झंझा की उत्पत्ति उष्णाई दिनों में प्रबल संवहन के कारण होती है। यह एक पूर्ण विकसित कपासी वर्षी मेघ है जो गरज व बिजली उत्पन्न करते हैं। अधिक ऊँचाई पर पहुँचकर बादलों से ओलों की वर्षा होती है। आर्द्रता की कमी होने पर इनसे धूलभरी आँधियाँ चलती हैं। तड़ित झंझा उष्ण वायु का प्रबल ऊर्ध्व प्रवाह है। इनसे बादल बनते हैं और अधिक ऊँचाई पर पहुँचकर वर्षण करते हैं। तड़ित झंझा का भयानक रूप वायु का हाथी की सैंड की तरह सर्पिल अवरोहण है। इसमें केन्द्र में वायुदाब कम होता है। यह व्यापक रूप से भयंकर विनाशकारी होते हैं। इस परिघटना को 'टोरनेडो' कहते हैं। टोरनेडो सामान्यतः मध्य अक्षांशों में उत्पन्न होते हैं। समुद्र पर इन्हें 'जलस्तम्भ' कहते हैं।-

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
वायुदाब' क्या है ? वायुदाब पेटियों की उत्पत्ति के कारण बताइए।
उत्तर:
वायुदाब–वायु में दबाव होता है यह दबाव धरातल पर सर्वाधिक होता है। ऊँचाई के साथ वायुदाब कम होता जाता है। पारिभाषिक रूप में "धरातल पर या सागर तल के प्रति इकाई क्षेत्रफल पर वायुमण्डल की समस्त वायु परतों के भार को वायुदाब कहते हैं।" वायुदाब धरातल पर सर्वाधिक 14.7 पौण्ड प्रति वर्ग इंच क्षेत्रफल पर होता है। वायुदाब को मिलीबार में नापते हैं तथा इसे बैरोमीटर द्वारा मापा जाता है। वायुदाब पेटियों की उत्पत्ति के कारण मानचित्र पर वायुदाब का वितरण समदाब रेखाओं द्वारा व्यक्त किया जाता है। जल एवं स्थल के असमान वितरण के कारण वायुदाब पेटियों का एक निश्चित क्रम नहीं मिलता। उत्तरी गोलार्द्ध में ये क्रोड के रूप में मिलती हैं जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की अधिकता के कारण इनका क्रमिक वितरण प्राप्त होता है।

वायुदाब पेटियों की उत्पत्ति में निम्न दो कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है -

(1) तापमान तापमान वायुदाब की उत्पत्ति का महत्वपूर्ण कारक है। तापमान तथा वायुदाब में विपरीत सम्बन्ध मिलता है। जहाँ तापमान अधिक होता है वहाँ वायुदाब कम होता है और जहाँ तापमान कम होता है वहाँ वायुदाब अधिक होता है। भूमध्यरेखीय भागों में उच्च तापमान के कारण निम्न वायुदाब पेटी मिलती है और ध्रुवों पर कम तापमान के कारण उच्च वायुदाब पेटियाँ पाई जाती हैं। ये पेटियाँ 'तापजन्य वायुदाब पेटियाँ' कहलाती हैं।

(2) पृथ्वी की घूर्णन गति वायुदाब पेटियों की उत्पत्ति में पृथ्वी की घूर्णन गति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण ही भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब क्षेत्र तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब से ऊपर उठी हुई हवाओं का पतन उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों में होता है और वहाँ का दबाव बढ़ जाता है। पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण ही उपध्रुवीय क्षेत्रों से हवाओं का विसरण होता है और वहाँ हवाओं के अपसरण के कारण निम्न वायुदाब क्षेत्र बन जाता है। इसी प्रकार उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में हवाओं के पतन के कारण उच्च वायुदाब क्षेत्र बन जाता है। इन दोनों पेटियों की उत्पत्ति पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण होती है अतः इन्हें 'गतिजन्य वायुदाब पेटियाँ' कहते हैं।

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प्रश्न 2. 
धरातल पर वायुदाब पेटियों के वितरण की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
वायुदाब पेटियों का वितरण-भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक वायुदाब पेटियों के वितरण का कोई निश्चित क्रम नहीं मिलता। भूमध्य रेखा पर उच्च ताप मिलता है जिससे यहाँ निम्न वायुदाब पेटी मिलती है। उपोष्ण कटिबन्ध में उच्च तापक्रम के बावजूद उच्च वायुदाब पेटी मिलती है। इसी प्रकार उपध्रुवीय क्षेत्रों में निम्न तापक्रम मिलता है फिर भी यहाँ निम्न वायुदाब पेटी मिलती है। ध्रुवों पर उच्च वायुदाब पेटियाँ पाई जाती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि वायुदाब पेटियों के वितरण पर तापक्रम के साथ-साथ पृथ्वी की घूर्णन गति का प्रभाव भी पड़ता है। धरातल पर वायुदाब पेटियों के वितरण को निम्नांकित रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ - 2

(क) तापजन्य वायुदाब पेटियाँ 

  1. भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब पेटी
  2. उत्तर ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी 
  3. दक्षिण ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी।

(ख) गतिजन्य वायुदाब पेटियाँ-

  1. उत्तर उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी 
  2. दक्षिण उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी 
  3. उत्तर उपध्रवीय निम्न वायुदाब पेटी 
  4. दक्षिण उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी।

(1) भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब पेटी-यह पेटी भूमध्य रेखा के 5° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य स्थित है। यहाँ सालभर सूर्य की किरणें लम्बवत् चमकती हैं दिन-रात की लम्बाई बराबर होती है। इसलिए यहाँ वर्षभर उच्च तापक्रम बना रहता है। उच्च तापक्रम के कारण यहाँ निम्न वायुदाब मिलता है। इसे तापजन्य वायुदाब पेटी कहते हैं। 

(2) धुवीय उच्च वायुदाब पेटियाँ-दोनों गोलार्द्धों में ध्रुवीय क्षेत्रों में वर्षभर तापक्रम बहुत कम रहता है। अतः निम्न तापक्रम के कारण इन भागों में उच्च वायुदाब पेटियाँ स्थापित हो जाती हैं। इन्हें तापजन्य वायुदाब पेटियाँ कहते हैं।

(3) उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटियाँ-इन पेटियों का विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 30° से 35° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इन भागों में भी वर्ष के कुछ महीनों को छोड़कर सालभर उच्च तापक्रम बना रहता है। ग्लोब का अधिकतम तापक्रम इन्हीं अक्षांशों में अंकित किया जाता है किन्तु फिर भी उच्च वायुदाब मिलता है। वास्तव में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण इन अक्षांशों में भूमध्य रेखीय क्षेत्रों से तथा उपध्रुवीय क्षेत्रों से ऊपर उठी हवाओं का अवतलन होता है इस कारण यहाँ उच्च वायुदाब पेटियाँ बन जाती हैं। ये गतिजन्य वायुदाब पेटियाँ कहलाती हैं।

(4) उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियाँ—उपध्रुवीय क्षेत्रों में 60°-65° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्डों में निम्न तापक्रम के बावजूद निम्न वायुदाब पेटियाँ मिलती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण इन अक्षांशों से
हवाएँ ऊपर उठकर अपसरित होती हैं। अतः हवाओं के अपसरण के कारण इन भागों में निम्न वायुदाब क्षेत्र बन जाता है। इन्हें गतिजन्य वायुदाब पेटियाँ कहते हैं।

प्रश्न 3. 
स्थायी पवनें क्या हैं ? इनका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थायी पवनें वे पवनें जो वर्षभर एक निश्चित दिशा एवं क्षेत्र में प्रवाहित होती हैं उन्हें स्थायी पवनें कहा जाता है। इन्हें सनातनी तथा ग्रहीय पवनें भी कहा जाता है। निम्नलिखित पवनें स्थायी पवनें हैं

  1. सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें
  2. पछुआ पवनें 
  3. ध्रुवीय पवनें।

(1) सन्मार्गी या व्यापारिक पवनें-जो पवनें दोनों गोलार्डों में उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्रों से भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब क्षेत्र की और चलती है उन्हें सन्मार्गीं पवनें कहते हैं। प्राचीनकाल में जब पाल वाले जहऩ चला करते थे तब इन हवाओं द्वारा व्यापार में काफी सुविधा होती थी अतः इन्हें व्यापारिक पवनें भी कहते हैं।
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(2) पहुआ पवनें-जो हवाणँ दोनों गोलाद्धों में उपोण्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से उपभ्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्रों की और चलती हैं उन्हें पहुआआ हवाएँ कहा जाता है। उत्तरी गोलाद्य में इनकी दिशा दक्षिण-पशिचम से उत्तर-पूर्व तथा दंधिणी गोलाई में उत्तर-पशिचम से दाधिण-पूर्व की ओर होती है।

(3) ध्रवीय पवनें-जो क्षाएँ दोनों गोलाद्धों में ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से उपध्रवीय निम्न वायुदाब क्षेत्र की और प्रवाहित होती हैं उन्हें ध्रुवीय हवाएँ कहा जाता है। उत्तरी गोलाद्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दभ्षिण-पशिचम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है। गर्मियों में वायुदाब पेटियों के खिसकाव के कारण इनका क्षेत्र सीमित हो जाता है जबकि सर्दी में इनका क्षेत्र अपेक्षाकृतं विस्तृत हो जाता हैं। 

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प्रश्न 4. 
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की परिभाषा प्रकार तथा इनसे सम्बन्धित मौसमों का वर्णन कीजिए।
अथवा 
बहिरुष्ण कटिबंधीय चक्रवात के प्रकार एवं इनसे सम्बन्धित मौसमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात-मध्य अक्षांशों में (शीतोष्ण कटिबन्धीय भागों में) उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं। इनका निर्माण दो विपरीत स्वभाव वाली उष्णार्द्र हवाओं के मिलने से होता है। ये पछुआ हवाओं के साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं और किसी स्थान के मौसम को प्रभावित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
शीतोष्ण चक्रवातों के प्रकार-शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) तापीय चक्रवात-शीतोष्ण कटिबन्धों में गर्मियों में अधिक ताप के कारण महाद्वीपों पर न्यून दाब केन्द्र बन जाते हैं जिनमें बाहर से केन्द्र की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। ये चक्रवात प्रायः स्थायी होते हैं।
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(2) गतिक चक्रवात-ये मुख्य शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात हैं जिनकी उत्पत्ति ठण्डी ध्रुवीय तथा आर्द्र एवं सागरीय वायुराशियों के वाताग्र के सहारे मिलने के कारण होती है। ये चक्रवात विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करते हैं तथा इनसे विभिन्न प्रकार के वातारों का पूर्ण विकास होता है।

प्रश्न 5. 
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से आप क्या समझते हैं ? इनके प्रकारों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
उष्ठा कटिबन्धीय चक्रवात-कर्क तथा मकर रेखाओं के बीच उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते है। इनकी उर्पन्चि सामान्यत: मह्वासागरों पर होती है। इनके आकार में पयांप्त अन्तर होता है तथा ये विभिन्न गतियों से आगे बढ़ते है। इन चक्रवातों के केन्द्र में वायुदाब बहुत कम होता है। समदाब रेखाएँ वृत्ताकार होती हैं परन्तु इनकी संख्या बहुत कम होती है। उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से विभिन्न भागों में वर्षा होती है। ये सदैव गतिशील नहीं होते हैं। कभी-कभी एक ही स्थान पर कई दिनों तक बने रहते हैं और घनघोर वर्षा करते हैं। उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात सामान्यतः व्यापारिक हवाओं के साथ पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर चलते हैं। ये एक निश्चित संमय में ही आते है। इसका समय मुख्यतः ग्रीष्यकाल होता है। जाड़ों में से चक्रबात विलीन हो जाते हैं। शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की तुलना में इनकी आवृति व क्षेत्र कम होता है।

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इन चक्रवातों की गति अत्यन्त तीस्र होती है तथा ये बड़े भयंकर और विनाशकारी होते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर कई दिनों तक टिके रहते हैं तथा इनसे घनघोर वर्षा होती है। महासागरों के तटवर्ती क्षेत्रों में इनसे अपार क्षति होती है। अब तक के कई भयंकर तूफानों से तटीय भागों में लाखों की क्षति व जनहानि हुई है।-उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के प्रकार उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के आकार मौसम तथा इनके स्वभाव में इतना अधिक अन्तर होता है कि इन्हें कुछ निर्दिष्ट प्रकारों में विभाजित नहीं किया जा सकता। तीव्रता के आधार पर इन चक्रवातों को निम्न भागों में विभाजित किया गया है
(क) क्षीण चक्रवात-

  • उष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ 
  • उष्ण कटिबन्धीय अवदाब। 

(ख) प्रचण्ड चक्रवात

  • हरीकेन या टाइफून
  • टोरनेडो।

उष्ण कटिबन्धीय विक्षोभ अत्यन्त क्षीण चक्रवात है। एक अधिक घिरी समदाब रेखाओं वाले छोटे आकार के उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात को अवदाब कहते हैं। हरीकेन या टाइफून भयंकर तूफान हैं जिनकी गति 120 किमी. प्रति घण्टा से भी अधिक होती है। टोरनेडो हरीकेन से भी अधिक भयंकर होते हैं।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1.
कोरिऑलिस बल व दाब प्रवणता बल के सन्तुलन से उत्पन्न रेखाओं के समानान्तर बहने वाली पवन है।
(क) भूमण्डलीय पवन
(ख) भू-विक्षेपी पवन 
(ग) अवरोही पवन
(घ) स्ट्रोग्य पवन। 
उत्तर:
(ख) भू-विक्षेपी पवन 

प्रश्न 2. 
प्रतिचक्रवात में उत्तरी गोलार्द्ध में पवन संचरण होता है। 
(क) घड़ी की सुईयों के अनुकूल
(ख) घड़ी की सुईयों के प्रतिकूल 
(ग) कोई पवन संचरण नहीं होता
(घ) समदाब रेखाओं के समानान्तर। 
उत्तर:
(क) घड़ी की सुईयों के अनुकूल

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प्रश्न 3. 
समुद्र समीर उत्पन्न होती है?
(A) स्थल व समुद्र के ऊष्मा अवशोषण व स्थानांतरण की अलग-अलग दर के कारण। 
(B) कोरिओलिस बल के कारण। 
(C) दबाव प्रवणता बल के कारण। नीचे दिये गये कूट से सही उत्तर का चयन कीजिए
(क) केवल A व C
(ख) A B व C 
(ग) केवल C
(घ) केवल 'AI 
उत्तर:
(क) केवल A व C
            
प्रश्न 4. 
वायु राशि की स्थिरता या अस्थिरता की डिग्री के निर्धारण के लिए किस उपकरण का उपयोग किया जाता है- 
(क) विस्कोमीटर 
(ख) रेडियोसानडेस 
(ग) सोनार
(घ) pH मीटर। 
उत्तर:
(क) विस्कोमीटर 

प्रश्न 5. 
भूमध्य रेखा से लेकर ध्रुवों तक दाब व वात् के सही सतही घटक क्रम निम्न में से कौनसा है
(क) ध्रुवीय पुरवा हवा पश्चिमी हवाएँ उपोष्ण उच्च दाब व्यापारिक पवन 
(ख) उपोष्ण उच्च दाब पश्चिमी हवाएँ व्यापारिक पवन ध्रुवीय पुरवा हवा 
(ग) व्यापारिक पवन ध्रुवीय पुरवा हवा पश्चिमी हवाएँ उपोष्ण उच्च दाब
(घ) व्यापारिक पवन उपोष्ण उच्च दाब पश्चिमी हवाएँ ध्रुवीय पुरवा हवा। 
उत्तर:
(घ) व्यापारिक पवन उपोष्ण उच्च दाब पश्चिमी हवाएँ ध्रुवीय पुरवा हवा। 

प्रश्न 6. 
नीचे दो कथन दिए गए हैं एक को अभिकथन (A) व दूसरे को कारण (R) के रूप में दिया गया है। नीचे दिए गए कूट में से सही उत्तर चुनिए
अभिकथन (A) : व्यापारिक पवनें प्रमुखतया पुरवा हवाएँ होती हैं। 
कारण (R) : पुरवा हवा पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है।
कूट

(क) (A) व (R) दोनों सही हैं व (R) (A) की सही व्याख्या है। 
(ख) (A) व (R) दोनों सही हैं परन्तु (R) (A) की सही व्याख्या नहीं है। 
(ग) (A) सही है परन्तु (R) गलत है।
(घ) (A) गलत है परन्तु (R) सही है। 
उत्तर:
(ग) (A) सही है परन्तु (R) गलत है।

प्रश्न 7. 
गतिजन्य वायुदाब पेटी/पेटियाँ है/हैं
(क) केवल उपोष्ण उच्च दाब
(ख) केवल उप-ध्रुवीय निम्न दाब 
(ग) उपोष्ण उच्चदाब व उप-ध्रुवीय निम्न दाब दोनों 
(घ) ध्रुवीय उच्च दाब। 
उत्तर:
(ग) उपोष्ण उच्चदाब व उप-ध्रुवीय निम्न दाब दोनों 

प्रश्न 8. 
यदि धरातल सर्वत्र समतल होता व पृथ्वी घूर्णन नहीं करती तो पवनें समदाब रेखाओं के परिप्रेक्ष्य में चलती
(क) समानान्तर
(ख) तिर्यक
(ग) समकोण 
(घ) अनियत। 
उत्तर:
(ग) समकोण 

प्रश्न 9. 
कॉरियोलिस बल जिन पर अधिकतम पड़ता है वह है
(क) थल समीर
(ख) जल समीर 
(ग) व्यापारिक पवन 
(घ) ध्रुवीय पवन। 
उत्तर:
(घ) ध्रुवीय पवन। 

प्रश्न 10. 
पछुआ हवाएँ और व्यापारिक हवाएँ निम्नलिखित में से किन हवाओं के उदाहरण हैं? 
(क) मेमोस्केल
(ख) टोपोस्केल 
(ग) मैक्रोस्केल 
(घ) माइक्रोस्केल। 
उत्तर:
(ग) मैक्रोस्केल 

प्रश्न 11. 
विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर बहने वाली भूमण्डलीय हवाओं का सही क्रम क्या है?
(क) पछुआ व्यापारिक ध्रुवीय पवन
(ख) व्यापारिक पछुआ ध्रुवीय पवन
(ग) व्यापारिक ध्रुवीय पछुआ पवन
(घ) ध्रुवीय पछुआ व्यापारिक पवन
उत्तर:
(ख) व्यापारिक पछुआ ध्रुवीय पवन

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प्रश्न 12.
संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य मैदानों पर चिनूक हवाओं का क्या प्रभाव पड़ता है? 
(क) जाड़े का तापमान बढ़ जाता है।
(ख) गर्मी का तापमान कम हो जाता है। 
(ग) समान तापमान रहता है।
(घ) तापमान पर कोई असर नहीं पड़ता है। 
उत्तर:
(क) जाड़े का तापमान बढ़ जाता है।

प्रश्न 13. 
सर्वाधिक वायुदाब पाया जाता है ?  
(क) पर्वतों पर 
(ख) रेगिस्तान में 
(ग) वन क्षेत्र में
(घ) सागर तल पर। 
उत्तर:
(घ) सागर तल पर। 

प्रश्न 14. 
डोलड्रम्स बेल्ट स्थित है
(क) कर्क रेखा पर 
(ख) मकर रेखा पर 
(ग) भूमध्य रेखा के समीप 
(घ) ध्रुवों के समीप। 
उत्तर:
(ग) भूमध्य रेखा के समीप 

प्रश्न 15. 
शांत पेटी पर्याय है
(क) उपध्रुवीय न्यून वायुदाब पेटी
(ख) ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी 
(ग) विषुवत रेखीय न्यून वायुदाब पेटी
(घ) उपोष्ण उच्च वायु दाब पेटी।। 
उत्तर:
(ग) विषुवत रेखीय न्यून वायुदाब पेटी

प्रश्न 16. 
हरिकेन का चलन क्षेत्र है
(क) दक्षिणी चीन
(ख) बंगाल की खाड़ी 
(ग) पश्चिमी द्वीप समूह एवं संयुक्त राज्य अमेरिका 
(घ) ऑस्ट्रेलियाई तटीय प्रदेश। 
उत्तर:
(ग) पश्चिमी द्वीप समूह एवं संयुक्त राज्य अमेरिका 

प्रश्न 17. 
जिन पवनों को 'डॉक्टर' भी कहा जाता है वे हैं
(क) बोरा
(ख) मिस्ट्रल 
(ग) हरमट्टन
(घ) फोहन। 
उत्तर:
(ग) हरमट्टन

प्रश्न 18. 
उत्तरी गोलार्द्ध में ध्रुवीय पवनों की दिशा होती है
(क) दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व
(ख) उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व 
(ग) दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम
(घ) उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम। 
उत्तर:
(घ) उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम। 

प्रश्न 19. 
निम्न में से तापजन्य वायुदाब पेटी है ?
(क) उत्तरी उपध्रुवीय न्यून वायुदाब पेटी
(ख) दक्षिण ध्रुवीय उच्च दाब पेटी 
(ग) दक्षिणी उपध्रुवीय न्यून वायुदाब पेटी
(घ) उत्तरी उपोष्ण उच्च दाब पेटी। 
उत्तर:
(ख) दक्षिण ध्रुवीय उच्च दाब पेटी

प्रश्न 20. 
ध्रुवीय वाताग्र किसे कहते हैं ? इस वाताग्र के साथ-साथ चक्रवात किस प्रकार पैदा हो जाता है ? इससे सम्बद्ध मौसमी दशाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा 
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के जीवन-चक्र को सचित्र स्पष्ट कीजिए। (लगभग 200 शब्दों में है।)
उत्तर:
ध्रुवीय वाताग्र—जब दो विभिन्न तापमान वाली वायुराशियाँ विपरीत दिशाओं से आकर आमने-सामने मिलती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता है। इनमें से एक वायुराशि ध्रुवीय होती है जो कि ठंडी भारी तथा उत्तरी-पूर्वी होती है। दूसरी वायुराशि उष्ण कटिबंधीय होती है जो उष्ण आर्द्र एवं दक्षिणी-पश्चिमी होती है। जब ये वायुराशियाँ एक-दूसरे से घर्षण करती हैं तो अस्थिर लहरें उत्पन्न होती हैं जो कि चक्रवात की उत्पत्ति में सहायक होती हैं। प्रारम्भ में दोनों प्रकार की वायुराशियों का पृथक्कारी तल सीधा होता है परन्तु उष्ण वायु शीत वायु प्रदेश तथा शीतल ध्रुवीय वायु उष्ण वायु प्रदेश में बलात प्रविष्ट होने का प्रयास करती है जिस कारण वाताग्र लहरनुमा हो जाता है। इसे ही ध्रुवीय वाताग्र कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में ध्रुवीय वाताग्र मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में पाये जाते हैं।

  1. अल्यूशियन द्वीप समूह के निकट
  2. आइसलैंड के निकट
  3. भूमध्य सागर के निकट। एक चक्रवात की उत्पत्ति से लेकर उसकी समाप्ति तक के इतिहास को चक्रवात का जीवन-चक्र


कहा जाता है। यह चक्र छः क्रमिक अवस्थाओं में सम्पन्न होता है।

  1. प्रथम अवस्था इस अवस्था में गर्म व ठंडी वायुराशि एक-दूसरे के समान्तर चलती है तथा वाताग्र स्थायी होता है।
  2. द्वितीय अवस्था-इस अवस्था में दोनों हवाओं के एक-दूसरे के प्रदेश में प्रविष्ट होने के कारण लहरनुमा वाताग्र का निर्माण होता है।
  3. तृतीय अवस्थाइस अवस्था में चक्रवात का रूप प्राप्त हो जाता है तथा उष्ण व शीत वातारों का पूर्ण विकास हो जाता है। 
  4. चतुर्थ अवस्था इस अवस्था में शीत वाताग्र के तीव्र गति से आगे बढ़ने के कारण उष्ण वृत्तांश संकुचित होने
  5. लगता है।
  6. पंचम अवस्था-इस अवस्था में चक्रवात का अवसान प्रारम्भ हो जाता है।
  7. छठी अवस्था-यह चक्रवात की अन्तिम अवस्था होती है जिसमें उष्ण वृत्तांश विलीन हो जाता है और चक्रवात का अन्त हो जाता है।

मौसमी दशाएँ-चक्रवात विशेषकर शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के आगमन से क्षेत्र विशेष के जलवायु कारकों में परिवर्तन होता है। चक्रवात के आगमन से पहले पूर्वी हवाएँ चलती हैं तथा आकाश में पक्षाभ मेघों की सफेद पतली परतें फैल जाती हैं। सूर्य पीला दिखाई देता है तथा चन्द्रमा के आसपास ज्योति मंडल बन जाता है। चक्रवात के आते ही तापमान बढ़ जाता है तथा वायुदाब घट जाता है। पवन की दिशा बदल जाती है। लगभग 24 घण्टे तक मंद बौछार पड़ती रहती है। उष्ण वाताग्र के आने पर वर्षा रुक जाती है तथा वायुदाब स्थिर हो जाता है। इसके अतिरिक्त आसमान में मेघों का आवरण भी हल्का हो जाता है उष्ण वाताग्र के गुजर जाने पर ताप गिरने लगता है। यह स्थिति शीतल वाताग्र के आने की सूचक है। शीतल वाताग्र के आते ही कपासी वर्षी मेघ घिर जाते हैं तथा वर्षा होने लगती है। प्रायः ओले भी पड़ना प्रारम्भ हो जाता है तथा बिजली भी चमकने लगती है। शीत वाताग्र के गुजर जाने के पश्चात् मौसम साफ हो जाता है। 

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प्रश्न 21. 
स्थानीय पवनों के विकास पर तथा स्थानीय मौसम पर उनके प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
धरातल पर स्थायी पवनों के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी पवन प्रवाह पाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति केवल स्थानीय कारणों से होती है एवं जिनके प्रभाव क्षेत्र सीमित होते हैं। ऐसी पवनों को स्थानीय पवन प्रवाह कहा जाता है। इनकी उत्पत्ति स्थानीय तापान्तर के कारण होती है। यद्यपि स्थानीय पवनों का मौसम विज्ञान की दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं है तथापि स्थानीय मौसम एवं जलवायु के वर्णन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ स्थानीय पवन अत्यन्त शुष्क व गर्म होती हैं तो कुछ अत्यन्त ठण्डी। ये पवन जिस ओर प्रवाहित होती हैं तो वहाँ के मौसम पर अपना प्रभाव डालती हैं।

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इनका प्रभाव अत्यन्त तीव्र होता है। स्षल समीर-रात्रि में इसके बिल्कुल विपरीत प्रक्रिया होती है। स्थल समुद्र की अपेक्षा शीछ्र ठंडा हो जाता है तथा वहाँ उच्च वायुदाब बन जाता है। इस कारण पवनें स्थल से जल की ओर चलने लगती हैं जिन्हें स्थलीय समीर कहा जाता है। पर्वत एवं घाटी पवनें-पर्वत एवं घाटी समीर भी सामयिक पवनें होती हैं साथ ही साथ स्थानीय भी। इन्हें दैनिक समीर भी कहते हैं। क्योंकि 24 घण्टे के अन्दर इनकी दिशा में दो बार पूर्ण परिवर्तन होता है।

घाटी समीर-दिन के समय पर्वतीय प्रदेशों में ढाल गर्म हो जाते हैं तथा वायु ढ़ाल के साथ-साथ ऊपर उठती है तथा इस स्थान को भरने के लिए वायु घाटी से बहती है। इन पवनों को घाटी समीर कहते हैं। ये हवाएँ पर्वत की चोटी तक पहुँच जाती हैं तथा वहाँ पर वर्षा प्रदान करती हैं। पर्वत समीर-रात्रि के समय पर्वतीय ढालों तथा ऊपरी भागों में विकिरण द्वारा ताप ह्रस अधिक होता है जिस कारण हवाएँ ठंडी हो जाती हैं। ये ठंडी एवं भारी हवाएँ ढालों के सहारे घाटियों के नीचे उतरती हैं। इन्हें पर्वतीय समीर कहते हैं। 

प्रश्न 22. 
वायुराशियों की संकल्पना की विवेचना कीजिए तथा उनका वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
वायुराशियों की संकल्पना-वायुराशि वास्तव में वायुमण्डल का विस्तृत भाग है जिसमें क्षैतिज तल में तापमान एवं आर्द्रता जैसे मौसमी लक्षणों में समानता पायी जाती है। जलवायु विज्ञान के क्षेत्र में वायुराशि की संकल्पना का पर्याप्त महत्व है। इसके द्वारा मौसम में होने वाले व्यापक परिवर्तनों को समझने एवं मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में बहुत अधिक जानकारी मिलती है। विश्व के विभिन्न भागों में मौसम परिवर्तन मुख्यतः विभिन्न वायुराशियों की क्रिया-प्रतिक्रिया एवं स्वयं उनके भीतर पायी जाने वाली प्रक्रियाओं के कारण होते हैं।वायुराशियों के द्वारा ही महासागरों से आर्द्रता भारी मात्रा में महाद्वीपों के ऊपर लायी जाती है जिसके फलस्वरूप वहाँ वृष्टि होती है। गतिशील वायुराशियों द्वारा ही एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तक ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है। वायुराशि संकल्पना एक नवीन संकल्पना है।

इसका विकास बीसर्वी शताब्दी के तीसरे दशक में हुआ। इस संकल्पना के विकास में वर्गरान व बर्कनीज आदि का विशेष योगदान रहा है। वायुराशि की उत्पत्ति के लिए यह आवश्यक है कि उत्पत्ति क्षेत्र का तल विस्तृत तथा समान स्वभाव वाला हो तथा धरातल के निकट पवन का प्रवाह मंद एवं प्रतिचक्रवातीय हो। इसके साथ ही उस प्रदेश के वायुमंडल से सम्बन्धित दशाएँ लम्बे समय तक स्थिर होनी चाहिए ताकि वायु धरातल की मौसमी विशेषताओं को आत्मसात कर सके। वायुराशि अपने उत्पत्ति क्षेत्र से उष्ण प्रदेशों की ओर गतिशील होती है।

आगे बढ़ने पर वे सम्पर्क में आने वाले क्षेत्र के तापमान, आर्द्रता आदि दशाओं को परिवर्तित करती हैं तथा स्वयं वायुराशियों में भी अत्यन्त मन्द गति से परिवर्तन होता है। इसके बावजूद इस सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उनके शीर्ष भाग में मौसमी विशेषताएँ लम्बी अवधि तक संरक्षित रहती हैं। प्रत्येक वायुराशि तापमान एवं आर्द्रता आदि से सम्बन्धित विशेषता अपने उत्पत्ति क्षेत्र से प्राप्त करती हैं। इसके अलावा आगे बढ़ती हुई वायुराशि के मार्ग में पड़ने वाले तल की मौलिक विशेषताएँ अर्थात् तापमान, आर्द्रता एवं धरातल की प्रकृति आदि उसमें अनेक परिवर्तन ला देती हैं। अतः वायुराशियों के वर्गीकरण हेतु उत्पत्ति क्षेत्र की विशेषताओं एवं मार्ग में हुए संशोधनों को ध्यान में रखना आवश्यक है।

उत्पत्ति क्षेत्र एवं प्रकृति के आधार पर वायुराशियों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. उष्ण कटिबंधीय महासागरीय वायुराशि (mT)
  2. उष्ण कटिबंधीय महाद्वीपीय (cT)
  3. ध्रुवीय महासागरीय ( $\mathrm{mP}$ )
  4. ध्रुवीय महाद्वीपीय (cP)
  5. महाद्वीपीय आर्कटिक (cA)

प्रश्न 23. 
उष्ण शीतोष्ण कटिबंधीय और उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
चक्रवात निम्न दाब के केन्द्र होते हैं जिनके चारों ओर संकेन्द्रीय समवायुदाब रेखाएँ विस्तृत होती हैं तथा केन्द्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है। फलस्वरूप परिधि से केन्द्र की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। जिनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल होती है। चक्रवातों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात, 
  2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात।

इन दोनों प्रकार के चक्रवातों में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. स्थितिं-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात स्थल और सागर दोनों पर पाये जाते हैं जबकि उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात प्रायः जल पर ही उत्पन्न व विकसित होते हैं।
  2. आकार-शीतोष्ण चक्रवात की समदाब रेखाएँ प्रायःmathrm V आकार की होती हैं जबकि उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की समदाब रेखाएँ प्राय: गोलाकार पूर्ण वृत्त होती हैं।
  3. विस्तार-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात हजारों वर्ग किमी. में फैले होते हैं जबकि उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विस्तार बहुत कम होला है।
  4. दिशा-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं जबकि उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं।
  5. वायु वेग-शीतोष्ण चक्रवातों में वायु वेग अधिक तीव्र नहीं होता है जबकि उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में वायु वेग प्राय: 120 किमी. प्रति घण्टा या इससे भी अधिक होता है।
  6. वायु दाब प्रवणता-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में वायुदाब प्रवणता बहुत कम होती है जबकि दूसरी ओर उष्ण कटिबंधीय चक़वातों की वायुदाब प्रवणता बहुत तीव्र होती है।
  7. वर्षा-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात में वर्षा धीरे-धीरे होती है और यह कई दिनों तक चलती है। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में वर्षा कुछ घंटे से अधिक होती है परन्तु यह वर्षा बहुत तीव्र गति से होती है।
  8. वातात्र्र-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति में वाताग्र की प्रमुख भूमिका होती है तथा इसमें दो वाताग्र होते हैं जबकि उष्ण कटि ज्रंधीय चक्रवात में वाताग्र प्राय: अनुपस्थित होते हैं। 
  9. तापमान शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के विभिन्न भागों में तापक्रम भिन्न-भिन्न होता है। चक्रवात के दक्षिणी भाग में तापक्रम अपेक्षाकृत अधिक होता है। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केन्द्र पर ताप का वितरण लगभग समान होता है।
  10. ऋतु-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात शीत ऋतु में अधिक उत्पन्न होते हैं। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः ग्रीष्म ऋतु में उत्पन्न होते हैं।
  11. केन्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केन्द्र में कोई स्थान नहीं होता है जहाँ पवन शान्त हो या बिल्कुल रुक जाए जबकि उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केन्द्र को नेत्र कहते हैं तथा यहाँ वायु शान्त और वर्षा रुक जाती है। 

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ

प्रश्न 24.
अधिधारण।
उत्तर:
वायुमण्डलीय अवदाब में शीत वाताग्र के उष्ण वाताग्र की ओर बढ़ने तथा दोनों के मिल जाने पर शीतल वायु धरातल से ऊपर उठ जाती है जिससे उसका धरातल से पूर्णतया सम्पर्क टूट जाता है इस अवस्था को अधिधारण कहते हैं। 

प्रश्न 25. 
अधिविशिष्ट वाताग्र।
उत्तर:
जब शीत वाताग्र अधिक शक्तिशाली होता है तो तीव्र गति से चलकर उष्ण वाताग्र से मिल जाता है एवं गर्म वायु को धरातल से ऊपर उठा देता है जिस कारण उष्ण वाताग्र का नीचे से सम्पर्क खत्म हो जाता है तो ऐसे वाताग्र को अधिविशिष्ट वाताग्र कहते हैं। 

प्रश्न 26. 
वाताग्र जनन एवं इसकी उत्पत्ति के क्षेत्र।
उत्तर:
जब दो विपरीत दिशाओं से आने वाले विपरीत स्वभाव वाली पवनों के मिलने से वाताग्र का निर्माण एवं विकास होता है तो उसे वाताग्र जनन कहते हैं।
वाताग्र उत्पत्ति के क्षेत्र-

  1. उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय महासागर। 
  2. उपोष्ण कटिबंधीय उष्ण मरुस्थल। 
  3. उच्च अक्षांशीय अपेक्षाकृत ठंडे महासागर। 
  4. उच्च अक्षांशीय अति शीत बर्फ आच्छादित महाद्वीप अंटार्कटिक तथा आर्कटिक। 

प्रश्न 27. 
एलनिनो।
उत्तर:
दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर प्रशांत महासागर के पूर्वी तटीय भाग में पेरू तट के समीप उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली गर्म जल धारा जिसके कारण पेरू तट पर तीव्र गति से वर्षा होती है। इसे एलनिनो कहते हैं। 

प्रश्न 28. 
स्थल तथा सागर समीर दर्शाने हेतु एक चित्र बनाइए।
उत्तर:
RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ - 7

प्रश्न 29.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात को दिखाने के लिए एक आरेख बनाइए।
उत्तर:

RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ - 9

प्रश्न 30. 
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
अयन रेखाओं के मध्य चलने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। इनमें विभिन्नताएँ अधिक पायी जाती हैं। इनका व्यास 80 से 300 किलोमीटर के मध्य होता है। इनकी सामान्य गति 30-35 किमी. प्रति घण्टा होती है परन्तु टाइफून व हरिकेन जैसे प्रतिचक्रवात प्रचण्ड गति से चलते हैं। ये अधिकांशतया ग्रीष्म ऋतु में चलते हैं। इनमें तापमान की विभिन्नता नहीं होती है। इस कारण इनमें उष्ण व शीत वाताग्र नहीं पाये जाते हैं।

Prasanna
Last Updated on Aug. 18, 2022, 12:15 p.m.
Published Aug. 17, 2022

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