Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचन्द का जो शब्द-चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचन्द के व्यक्तित्व की कौन-कौनसी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर :
प्रस्तुत शब्द-चित्र से प्रेमचन्द के व्यक्तित्व की निम्न विशेषताएं व्यक्त होती हैं -
इस प्रकार प्रस्तुत व्यंग्य-निबन्ध से प्रेमचन्द के व्यक्तित्व को संघर्षशील, अपराजेय, मर्यादित, स्वाभिमानी, सादगीयुक्त एवं घिसी-पिटी परम्पराओं का विरोधी बताया गया है।
प्रश्न 2.
सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आयी है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचवाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य-मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अंगूठे से इशारा करते हो।
उत्तर :
(क) (✓), (ख) (✓), (ग) (✗), (घ) (✗)
प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए -
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं।
उत्तर :
व्यंग्य-टोपी सम्मान की प्रतीक और जूता सामर्थ्य या अधिकार का प्रतीक है। व्यंग्य यह है कि शक्तिशाली व्यक्ति के चरणों में अनेक लोग झुकते हैं। आज की दुनिया में गुणी लोग भी अपने स्वाभिमान को भुलाकर शक्तिशाली अर्थात् धनवान लोगों की सेवा में खड़े रहते हैं। जूता देना एक मुहावरा भी है। इस तरह अब जूतों की कीमत बढ़ गई है।
(ख) तुम परदे का महत्त्व नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
उत्तर :
व्यंग्य-लोगों के द्वारा असलियत को छिपाने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य है। लोग अपनी बुराइयों को ढकने का निरन्तर प्रयास करते हैं, परन्तु प्रेमचन्द के पास परदे में छिपाने लायक कुछ भी नहीं था। वे स्वभाव से जैसे बाहर थे, वैसे ही भीतर भी थे।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो।
उत्तर :
व्यंग्य-व्यक्ति जिन चीजों को घृणा योग्य समझता है, उनकी तरफ हाथ की बजाय पाँव की अंगुली से इशारा करता है। प्रेमचन्द ने भी जिसे समाज में घृणा योग्य समझा उसकी ओर अपने पाँव की अंगुली से इशारा किया अर्थात् उसे अपने जूते की नोक पर रखा, उसके विरुद्ध संघर्ष किया।
प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि 'फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?' लेकिन अगले ही पल में वह विचार बदलता है कि नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होगी।' आपके अनुसार इस सन्दर्भ में प्रेमचन्द के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती है?
उत्तर :
लेखक ने पहले सोचा कि संसार में अधिकतर लोग अपने घर पर पहनने के और बाहर पहनने के कपड़ों में अन्तर रखते हैं। परन्तु प्रेमचन्द का व्यक्तित्व सादगी भरा था। वे जैसे बाहर थे वैसे ही मन से भी थे। प्रायः देखने में आता है कि लोगों के व्यक्तित्व में एकरूपता नहीं होती है। इस कारण वे दिखाई कुछ देते हैं और होते कुछ और हैं। फिर लेखक ने सोचा कि प्रेमचन्द के व्यक्तित्व में ऐसी भिन्नता या बनावटीपन नहीं हो सकता। वे तो सदा एक जैसे सहज रहे। इसी से लेखक ने अपना विचार बदला।
उक्त विचार बदलने का अन्य कारण यह भी व्यंजित हुआ है कि प्रेमचन्द का जीवन अर्थाभाव से ग्रस्त रहा। इस कारण उनके पास पोशाकों की भी कमी रही होगी और वे अलग-अलग पोशाकें नहीं पहन सके होंगे। एक महान साहित्यकार के जीवन में यह विडम्बना की बात थी।
प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौनसी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ को पढ़कर लेखक की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं
प्रश्न 6.
पाठ में 'टीले' शब्द का प्रयोग किन सन्दर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में 'टीले' से तात्पर्य है मार्ग की रुकावटें अथवा बाधा उपस्थित करने वाले लोग, सामन्तवादी और पुरातनपंथी लोग। टीले पर ठोकर मारने का उल्लेख करने से लेखक ने बाधक तत्त्वों जैसे - तत्कालीन समाज में व्याप्त शोषण की प्रवृत्ति, अन्याय, छुआछूत, जाति-पांति आदि बुराइयों को ध्वस्त करने का संकेत किया है। सुविधाभोगी लेखक ऐसे तत्त्वों से समझौता कर लेते हैं, या उन्हें अनदेखा कर बगल से आगे निकल जाते हैं, लेकिन प्रेमचन्द का स्वभाव समझौतावादी नहीं था, वे तो सामने से ठोकर मारकर बाधक तत्त्वों को ध्वस्त करना चाहते थे।
रचना और अभिव्यक्ति -
प्रश्न 7.
प्रेमचन्द के फटे जूते को आधार बनाकर परसाईजी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर :
स्वदेशी आन्दोलन को लक्ष्य कर गाँधीजी ने नेताओं से खद्दर पहनने के लिए कहा। फलस्वरूप तब से स्वयं को सच्चा गाँधीवादी जनसेवक दिखाने के लिए झक सफेद खद्दर पहनने की परम्परा बन गई है। वस्तुतः जनता को दिखाने के लिए नेतागण सफेद् बेदाग कपड़े पहनते हैं, परन्तु जनसेवा के नाम पर वे कितने काले कारनामे करते हैं, कितनी भेंट-पूजा डकार जाते हैं, यह अब आम जनता को मालूम है।
वे संसद में किसी की माँग या समस्या को उठाने के लिए मोटी रकम चुपचाप डकार लेते हैं। जन-कल्याण के कार्यक्रमों के लिए आवण्टित धन को काले तरीकों से हजम कर जाते हैं। इस तरह वे अन्दर से काले, स्वार्थी एवं भ्रष्ट रहते हैं, जबकि बाहर से उजले, जनहितकारी एवं बेदाग खद्दरधारी बनते फिरते हैं। ऐसे नेताओं का चरित्र तो अन्दर से कुछ और बाहर से कुछ और रहता है।
प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि से वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर :
आज वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में काफी परिवर्तन आया है। वस्तुतः वेश-भूषा से व्यक्तित्व का पता चलता है; उसके स्वभाव, आचरण, आर्थिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा, मानसिक स्थिति, रुचि आदि का पता चलता है। आजकल लोग वेश-भूषा के प्रति अधिक सतर्क रहते हैं। यथासम्भव अच्छी काट के और नये फैशन के कपड़े पहनते हैं, जूतों के पहनावे में भी काफी सतर्कता दिखाते हैं। सामान्य गरीब लोग भी जितना सम्भव हो, ठीक-ठाक ढंग की वेशभूषा अपनाने का प्रयास करते हैं। अब लोग वेश-भूषा को आर्थिक सम्पन्नता, शिष्ट आचरण एवं सभ्यता से जोड़कर देखते हैं, तो कुछ लोग दिखावा भी करते हैं।
भाषा-अध्ययन -
प्रश्न 9.
पाठ में आये मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
पाठ में काफी मुहावरे प्रयुक्त हुए हैं, यथा-कुर्बान होना, जूता आजमाना, हौसले पस्त होना, दृष्टि अटकना, रो पड़ना, परदा होना, पछतावा होना, टीला खड़ा होना, पहाड़ फोड़ना, उँगली से इशारा करना, चक्कर काटना, जूते घिसना इत्यादि। इनमें कुछेक वाक्य-प्रयोग कुर्बान होना-न्यौछावर होना। जब भारतवासी अपने देश पर कुर्बान हुए, तभी हमें आजादी मिली।
ठोकर मारना-चोट मारना, अपमानित करना। व्यक्तिगत सुख-भोग की लालसा को ठोकर मारने वाले ही महापुरुष बनते हैं। पहाड़ फोड़ना-बाधाएँ नष्ट करना। नदियों की तरह पहाड़ फोड़कर आगे बढ़ने वाले ही जीवन में प्रगति कर पाते हैं। हौसले पस्त होना-उत्साह कम होना। निरन्तर बढ़ती महंगाई को देखकर अब मध्यमवर्ग के हौसले पस्त हो रहे हैं। टीला खड़ा होना-बाधाएँ आना, रुकावट आना। वर्तमान में मानव सभ्यता के विकास में अनेक टीले खड़े हो रहे हैं।
प्रश्न 10.
प्रेमचन्द के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है, उनकी सूची बनाइए।
उत्तर :
प्रेमचन्द के लिए विशेषण
साहित्यिक पुरखे, महान् कथाकर, उपन्यास सम्राट्, युग प्रवर्तक, मेरी जनता के लेखक।
पाठेतर सक्रियता -
महात्मा गाँधी भी अपनी वेश-भूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इनके पीछे क्या कारण रहे होंगे? पता लगाइए।
उत्तर :
महात्मा गाँधी जीवन में सादगी और मितव्यय को बहुत महत्त्व देते थे। उस समय भारत में बहुत से लोगों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं थे। इसी कारण गाँधीजी स्वयं भी कम वस्त्र पहनते थे। देश के गरीब लोगों के प्रति सहानुभूति रखने के लिए वे अधिक वस्त्र पहनना गलत मानते थे। वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर उससे बने वस्त्र-धोती और चादर धारण करते थे।
प्रश्न 1.
'प्रेमचन्द के फटे जूते' निबन्ध में व्यंग्य किया गया है
(क) प्रेमचंद के फटे जूतों को लक्ष्य करके लेखकों की दुर्दशा पर
(ख) आज के दिखावे की प्रवृत्ति और अवसरवादिता पर
(ग) प्रेमचन्द की वेशभूषा पर
(घ) तत्कालीन समाज में व्याप्त अमीरी-गरीबी और छुआछूत पर
उत्तर :
(ख) आज के दिखावे की प्रवृत्ति और अवसरवादिता पर
प्रश्न 2.
बाएँ जूते में बड़ा छेद होने का परिणाम हुआ-
(क) प्रेमचन्द की गरीबी झलक आयी।
(ख) उनकी वास्तविकता का पता लग गया।
(ग) अंगुली बाहर निकल आयी।
(घ) जूता फटा होने का पता चल गया।
उत्तर :
(ग) अंगुली बाहर निकल आयी।
प्रश्न 3.
तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। कथन में 'तुम' शब्द का प्रयोग हुआ है
(क) महाजन के लिए
(ख) ग्रामीणजन के लिए
(ग) असभ्यजन के लिए
(घ) प्रेमचंद के लिए।
उत्तर :
(घ) प्रेमचंद के लिए।
प्रश्न 4.
"टोपी आठ आने में मिल जाती है।" यहाँ 'टोपी' का प्रतीकार्थ है
(क) मान-सम्मान
(ख) तुच्छता
(ग) बड़प्पन
(घ) श्रेष्ठता।
उत्तर :
(क) मान-सम्मान
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न :
निर्देश-निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर उनसे सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अंगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका जरा भी एहसास नहीं है? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अंगुली ढक सकती है? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है। फोटोग्राफर ने जब 'रेडी प्लीज' कहा होगा, तब परम्परा के अनुसार तुमने मुस्कान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुएँ के तल में वहीं पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही 'क्लिक' करके फोटोग्राफर ने 'बैंक यू' कह दिया होगा। विचित्र है यह अधूरी मुस्कान। इसमें मुसकान नहीं, उसमें उपहास है, व्यंग्य है।
प्रश्न 1. लेखक ने 'साहित्यिक पुरखे किसके लिए कहा है?
प्रश्न 2. प्रेमचन्द की मुसकान अधूरी क्यों रह गई?
प्रश्न 3. प्रेमचन्द अपनी अंगुली कैसे ढक सकते थे?
प्रश्न 4. इस गद्यांश से प्रेमचन्द की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर :
1. लेखक ने मुंशी प्रेमचन्द को 'साहित्यिक पुरखे' कहा है।
2. फोटो खिंचाते समय फोटोग्राफर ने प्रेमचन्द से मुसकराने के लिए कहा। तब उन्होंने उसके कथनानुसार मुसकराने की कोशिश की होगी और धीरे-धीरे चेहरे पर मुसकान ला रहे होंगे कि तभी फोटोग्राफर ने फोटो खींच लिया। इस तरह प्रेमचन्द के पूर्णतया न मुस्करा पाने से उनकी मुसकान अधूरी रह गई।
3. फोटो खिंचवाते समय प्रेमचन्द अपनी धोती को यदि थोड़ा-सा नीचे की ओर खींच लेते, अर्थात् सिद्धान्तों से समझौता कर लेते, तो अंगुली ढक सकती थी। नया जूता पहनकर भी वे अपने पैर की अंगुली ढक सकते थे।
4. इस गद्यांश से प्रेमचन्द की इस विशेषता का पता चलता है कि वे सरल और सहज स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वे वास्तव में जैसे थे, वैसे ही दिखाना चाहते थे। वे अपनी वेश-भूषा एवं बाहरी पहनावे के प्रति बेपरवाह रहते थे क्योंकि वे गम्भीर स्वभाव के एवं विचारों में डूबे हुई से दिखाई देते थे।
2. यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हँस भी रहा है। फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम 'अच्छा, चल भई' कहकर बैठ गये होंगे। मगर यह कितनी बड़ी 'ट्रेजडी' है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द-भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है।
प्रश्न 1. यदि प्रेमचन्द को फोटो का महत्त्व ज्ञात होता, तो वे क्या करते?
प्रश्न 2. गद्यांश में प्रेमचन्द द्वारा फोटो खिंचवाने का क्या कारण बताया गया है?
प्रश्न 3. फोटो को देखकर लेखक क्या करना चाहता हुआ भी नहीं कर पाता है?
प्रश्न 4. गद्यांश में लेखक ने किस 'ट्रेजडी' की ओर संकेत किया है?
उत्तर :
1. यदि प्रेमचन्द को फोटो का महत्त्व ज्ञात होता, तो वे अपनी धोती नीचे की ओर सरका कर फटे जूते को ढक लेते या फोटो खिंचाने के लिए किसी से जूता माँग कर पहन लेते।
2. फोटो खिंचवाने का यह कारण बताया गया है कि प्रेमचन्द को न चाहते हुए भी पत्नी का आग्रह मानना पड़ा होगा।
3. फोटो को देखकर लेखक को महसूस होता है कि प्रेमचन्द किसी बड़े क्लेश से आक्रान्त थे, उनके हृदय में कोई दर्द भरा था। इस बात पर लेखक रोना चाहता था, परन्तु प्रेमचन्द की फोटो में उनकी आँखों में भरे हुए तीखे व्यंग्य को देखकर वह वैसा नहीं कर पाता है।
4. प्रेमचन्द जैसे महान साहित्यकार के पास आर्थिक दशाहीनता के कारण फोटो खिंचवाने के लिए एक जोड़ी अच्छे जूते नहीं थे और पत्नी के आग्रह पर फटे हुए जूते में ही फोटो खिंचवाने को विवश रहे। यह सबसे बड़ी ट्रेजडी थी, जिस ओर लेखक ने संकेत किया है।
3. तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर दिखाई करते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचवाने के लिए बीवी तक माँग ली जाती है, तुम से जूते माँगते नहीं बने। तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इन चुपड़कर फोटो खिंचवाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। गन्दे से गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है।
प्रश्न 1. 'तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते।' लेखक ने यह किसके लिए और क्यों कहा है?
प्रश्न 2. लोग सुन्दर फोटो खिंचवाने के लिए क्या-क्या करते हैं?
प्रश्न 3. 'तुम से जूते ही माँगते नहीं बने।' लेखक का यह कथन प्रेमचन्द के किस गुण की ओर संकेत है?
प्रश्न 4. 'गंदे से गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है।' निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. लेखक ने यह साहित्यकार प्रेमचन्द के लिए कहा है। क्योंकि लेखक ने प्रेमचन्द का एक फोटो देखा जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ खड़े हुए थे। उस फोटो में उनके जूते फटे हुए और बेतरतीब थे यहाँ तक कि बाएँ जूते से पैर की अंगुली बाहर निकल रही थी। यह देखकर लेखक को लगा कि प्रेमचन्द फोटो का महत्त्व नहीं जानते थे।
2. लेखक ने बतलाया है कि लोग अपनी सुन्दर फोटो खिंचवाने के लिए उधार के जूते, उधार का कोट और यहाँ तक कि उधार की बीवी तक माँग लेते हैं। इसके साथ ही कई लोग इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो भी महकती रहे।
3. प्रेमचंद अपने जीवन में सरल और सहज रहे। उन्होंने कभी भी दिखावटीपन का जीवन नहीं जिया। लेखक का यह कथन उनकी आडम्बरहीनता के गुण की ओर संकेत है।
4. इस कथन में निहित व्यंग्य यह है कि गंदे आदमी भी अपनी छवि दूसरे के सामने सुन्दर बना कर पेश करते हैं। वे अपनी हर प्रकार की गन्दगी छिपाने की हर संभव कोशिश करते हैं और इस प्रदर्शन से वे अपनी स्वच्छ छवि दूसरों के सामने बनाये रखने का प्रयास करते हैं।
4. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिले होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडम्बना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान् कथाकार, उपन्यास सम्राट्, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है।
प्रश्न 1. टोपी और जूते के मूल्य में क्या सम्बन्ध रहा है?
प्रश्न 2. 'एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर हो रही हैं' इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 3. प्रस्तुत गद्यांश में टोपी और जूते के माध्यम से क्या व्यंग्य किया गया है?
प्रश्न 4. हमारे देश में साहित्यकारों के साथ क्या विडंबना है?
उत्तर :
1. टोपी और जूते के मूल्य में अनुपातिक सम्बन्ध रहा है, अर्थात् टोपी की कीमत सदैव जूते की कीमत से कम रही है। कहने का आशय यह है कि प्रेमचन्द टोपी के समान देश के सम्मानित साहित्यकार थे लेकिन वे जूते के सामने अर्थात् धनी लोगों के सामने झुके नहीं। उन्हें गरीबी में ही जीवन यापन करना पड़ा।
2. इसका आशय यह है कि वर्तमान भौतिकतावादी युग में धनवानों अर्थात् वैभव-सम्पन्न लोगों को सम्मान के योग्य माना जाता है। अब गुणवान लोगों को भी पैसे वालों के सामने मजबूरी में झुकना पड़ता है।
3. प्रस्तुत गद्यांश में टोपी और जूते के माध्यम से यह व्यंग्य किया गया है कि समाज में टोपी अर्थात् इज्जत एवं गुणों को अब उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है। अब जूते अर्थात् आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न या ताकतवर को ही श्रेष्ठ माना जाता है। अतः गुणी को धनी से कमतर मानने पर व्यंग्य किया गया है।
4. हमारे देश में न तो साहित्यकारों को मान-सम्मान मिलता है और न धन। प्रेमचन्द जैसे महान साहित्यकार लेखन से अपनी आजीविका नहीं कमा पाए। यह बहुत बड़ी विडंबना है।
5. मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो। कोई चीज जो परत-दर-परत सदियों से जम गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया। तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी निकल सकते थे। टीलों से समझौता भी तो हो जाता है। सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती हैं.....तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो।
प्रश्न 1. लेखक के अनुसार प्रेमचन्द ने किस पर अपना जूता आजमाया?
प्रश्न 2. 'टीले' से समझौता भी तो हो जाता है-इसका आशय क्या है?
प्रश्न 3. लेखक को प्रेमचन्द का जूता फटने का क्या कारण प्रतीत होता है?
प्रश्न 4. इस गद्यांश में प्रेमचन्द के व्यक्तित्व की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर :
1. लेखक के अनुसार प्रेमचन्द ने सामयिक उत्थान के मार्ग की बाधक जो असामाजिक तत्त्व थे, उन पर अपना जूता आजमाया।
2. सामाजिक जीवन में अनेक बाधक तत्त्व टीलों की तरह मार्ग रोक देते हैं। समझौतावादी लोग या स्वार्थी एवं कमजोर लोग उनसे समझौता कर लेते हैं, परन्तु सिद्धान्तवादी लोग बाधक तत्वों से समझौता नहीं करते, अपितु वे उन्हें ठोकर मारकर आगे बढ़ते हैं। समझौता करना तो अपनी कमजोरी व्यक्त करना जैसा है।
3. हमारे समाज में अनेक बुराइयों की परतें जमी हुई हैं, वे बुराइयाँ हमारे सामाजिक-जीवन के मार्ग में बाधाओं के टीले जैसे हैं। एक सामाजिक चेतना का साहित्यकार उन बुराइयों का विरोध करता है, उन्हें मिटाना भी चाहता है। इसी कारण प्रेमचन्द उन बुराइयों पर ठोकरें मारते रहे, जिससे उनके जूते फट गये।
4. इस गद्यांश में प्रेमचन्द के व्यक्तित्व की यह विशेषता बतायी गयी है कि वे न तो सुविधाभोगी थे और न समझौतावादी थे। वे तो सामाजिक जीवन में व्याप्त अनेक बुराइयों तथा कुरीतियों को मिटाना चाहते थे।
बोधात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
प्रेमचन्द की फोटो में उनके जूते देखकर लेखक क्या सोचने लगता है?
उत्तर :
प्रेमचन्द की फोटो में उनके बेतरतीब बँधे जूतों को और बाएं पैर के फटे जूते को देखकर लेखक सोचने लगता है कि जिस आदमी की फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो प्रतिदिन पहनने की पोशाक कैसी होगी? क्या इस आदमी के पास अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी या इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं होगा?
प्रश्न 2.
प्रेमचन्दजी फटा जूता भी ठाठ से क्यों पहन सके? उत्तर : प्रेमचन्दजी सहज स्वभाव के थे। उन्होंने अपनी गरीबी को स्वीकार कर लिया था इसलिए उनके मन में हीनता की गाँठ और दिखावे का भाव नहीं था। वे अपनी गरीबी को छिपाने का प्रयास नहीं करते थे, इसलिए वे गरीबी के बावजूद ठाठ से जिए और फटा जूता भी ठाठ से पहन सके।
प्रश्न 3.
जो लोग फोटो का महत्त्व समझते हैं, लेखक के अनुसार वे क्या करते हैं?
उत्तर :
जो लोग फोटो का महत्त्व समझते हैं, वे लोग अपनी फोटो को सुन्दर सी बनाने के लिए किसी से जूते, कोट आदि परिधान माँग लेते हैं। यहाँ तक उधार की बीबी तक माँग लेते हैं। कई लोग तो फोटो खिंचवाने के लिए इत्र लगाकर बैठते हैं ताकि फोटो में भी उसकी खुशबू आ जाए।
प्रश्न 4.
लेखक ने अपने तथा प्रेमचन्द के जूतों में क्या अन्तर बताया? निबंध के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
लेखक प्रेमचन्द की फोटो के आधार पर बताता है कि उनके जूते केनवस के थे, उनके बन्द के सिरों पर लोहे की पतरी निकल आयी थी। उनके दाहिने पैर का जूता ठीक था, परन्तु बायें पैर के जूते में बड़ा छेद हो गया था, जिसमें से एक अंगुली बाहर निकल आई थी। लेखक बताता है कि मेरा जूता ऊपर से अच्छा दिखता है, इसमें से अंगुली बाहर तो नहीं निकलती है, परन्तु अंगूठे के नीचे का तला फटा हुआ है, इस कारण अंगूठा जमीन से घिसता रहता है और पैनी मिट्टी की रगड़ खाकर लहूलुहान हो जाता है। इस प्रकार लेखक ने अपने और प्रेमचन्द के जूतों में काफी अन्तर बताया है।
प्रश्न 5.
कुम्भनदास कौन थे? उनका जूता कैसे घिस गया था?
उत्तर :
कुम्भनदास भक्ति-काल में कृष्ण-भक्ति शाखा में अष्टछाप के कवि एवं वल्लभाचार्य के शिष्य थे। एक बार बादशाह अकबर के बुलावे पर वे उनसे मिलने फतेहपुर सीकरी गये थे। वह स्थान उनके निवास से काफी दूर था। इस कारण फतेहपुर सीकरी जाने व लौट आने में उनके जूते घिस गये थे। इसीलिए उन्होंने कहा कि, "आवत-जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम।" अर्थात् फतेहपुर सीकरी आते-जाते पैरों की जूतियाँ तो घिसी ही, ईश्वर के नाम-स्मरण में भी बाधा पडी।
प्रश्न 6.
होरी और प्रेमचन्द की कमजोरी क्या थी? बताइये।
उत्तर :
'गोदान' उपन्यास के मुख्य पात्र होरी और प्रेमचन्द की एक ही कमजोरी थी। वे दोनों नेम-धरम' के पक्के थे। उन्होंने कभी भी अपनी नैतिकता को गिरने नहीं दिया और अपनी मर्यादाओं की रक्षा के लिए चुपचाप गरीबी झेलकर भी संघर्ष करते रहे। अत्याचार, अन्याय, उपेक्षा आदि से व्यथित होने पर भी उन्होंने अपनी सादगी, सज्जनता और भलमनसाहत का त्याग नहीं किया। इस कारण होरी एवं प्रेमचन्द जीवनभर अभावग्रस्त रहे।
प्रश्न 7.
जनता का लेखक किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द को जनता का लेखक कहा गया है। उन्होंने जीवनभर आम जनता के दुःख-दर्द, उसकी समस्याओं आदि के बारे में लिखा। साथ ही उन्होंने किसानों की गरीबी, शोषण और बदहाली के बारे में लिखा। उदाहरण के लिए 'पूस की रात' कहानी का हलकू हो चाहे 'कफन' का माधो, चाहे 'मंत्र' का सुजान भगत और चाहे 'गोदान' उपन्यास का होरी हो, ये सभी जनता वर्ग के प्रतिनिधि पात्र हैं। इसीलिए प्रेमचन्द को जनता का लेखक कहा गया है।
प्रश्न 8.
लेखक ने प्रेमचन्द के जूते फटने का क्या कारण सोचा? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
लेखक ने प्रेमचन्द के जूते फटने को लेकर यह अनुमान लगाया कि वे जीवनभर समाज की कुरीतियों रूपी टीलों को ठोकरें मारते रहे. समाज की बुराइयों से संघर्ष करते रहे, इस कारण उनका जूता फट गया। दूसरा कारण यह कि वे आर्थिक तंगी से ग्रस्त रहे और तगादों से बचने के लिए लम्बा चक्कर लगाकर घर लौटते रहे। उन्होंने लेखन-कार्य में काफी परिश्रम किया, परन्तु उससे उचित धन-लाभ नहीं हुआ। वैसे भी उन्होंने गरीबों एवं दीन-दलितों को लक्ष्यकर लिखा, तो उनसे उन्हें कुछ नहीं मिला। फलस्वरूप जीवन के कठिन-मार्ग पर चलने से उनके जूते फट गये।
प्रश्न 9.
"गन्दे से गन्दे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है।" इसके माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
इस कथन के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि समाज में दिखावे की प्रवृत्ति और फैशनपरस्ती चल रही है। लोग अपनी अच्छी फोटो खिंचवाने के लिए दूसरों से कोट-पेंट, जूते आदि उधार माँग लाते हैं। अपने बाल संवारते हैं तथा चेहरे पर क्रीम-पाउडर, इत्र आदि लगाकर सजते हैं। फोटो खिंचवाने के लिए बैठने के ढंग, मुख मुद्रा एवं हाव-भाव का पूरा ध्यान रखते हैं। इस प्रकार वे अच्छी फोटो खिंचवाने के लिए पूरा दिखावा करते रहते हैं। लेखक ने समाज में व्याप्त इस तरह की प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है।
प्रश्न 10.
"तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं...... फोटो तो जिन्दगीभर इस तरह नहीं खिंचाऊँ।" लेखक ने ऐसी फोटो खिंचवाने से क्यों मना किया?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द को जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा, अर्थाभाव से गुजरना पड़ा, परन्तु वे दिखावे की प्रवृत्ति से ग्रस्त नहीं रहे। वे यथार्थ को स्वीकार करने वाले थे और अन्दर से जैसे थे बाहर भी वैसा ही दिखते थे। इसी से उन्होंने फटे जूते में फोटो खिंचा ली, लेकिन लेखक ऐसी फोटो नहीं खिंचवाता, क्योंकि इससे हीनभावना एवं व्यक्तित्व में कमी नजर आती है। लेखक वर्तमान समाज के अनुसार दिखावा पसन्द एवं फैशनपरस्त होने से उस दशा में फोटो नहीं खिंचा सकता।
प्रश्न 11.
'प्रेमचन्द सहज जीवन में विश्वास रखते थे।' पठित पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
प्रेमचन्द दिखावा पसन्द स्वभाव के नहीं थे। इसी कारण वे अन्दर और बाहर की वेशभूषा या पहनावे में अन्तर नहीं करते थे। वे अपनी आर्थिक कमजोरी, फटेहाली और दुर्दशा को छिपाना नहीं चाहते थे, साथ ही वे कोरे दिखावे से दूर रहना चाहते थे, इसलिए उन्होंने फोटो खिंचवाते समय बनावटी वेशभूषा धारण करने का प्रयास नहीं किया। वस्तुतः वे सहज एवं सादा जीवन में विश्वास करते थे।
प्रश्न 12.
प्रेमचन्द की वेशभूषा का वर्णन पठित पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द यद्यपि कलम के धनी थे, दूरदर्शी विचारों से मण्डित थे, परन्तु वे दिखावे की बजाय सहज जीवन तथा साधारण देहातियों की भाँति साधारण जीवन जीते थे। प्रबुद्ध एवं प्रसिद्ध साहित्यकार होने से उनमें जरा भी घमण्ड नहीं था, थोड़ा भी आडम्बर नहीं था। वे साधारण धोती-कुर्ता पहनते थे। उनके एकदम साधारण से एवं फटे जूतों को देखकर उनकी सादी वेशभूषा और साधारण जीवन का परिचय मिल जाता था।
प्रश्न 13.
'प्रेमचन्द के फटे जूते' पाठ के आधार पर पर्दे के महत्व पर लेखक और प्रेमचन्द की विचारधारा में अन्तर बताइये।
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में बताया गया है कि लोग अपने जीवन के कमजोर पक्ष पर या अपनी बुराइयों पर पर्दा डालकर जीना चाहते हैं। इसी कारण गरीबी एवं फटेहाली में भी लोग सुन्दर वेशभूषा में फोटो खिंचवाने का पूरा प्रयास करते हैं। लेखक का विचार है कि जीवन में अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालना जरूरी है, परन्तु प्रेमचन्द का मानना था कि जैसी वास्तविक स्थिति हो, उसे वैसा ही दिखाओ, जीवन में पर्दा डालकर अपने चरित्र को मत गिराओ। इस प्रकार पर्दे के महत्व को लेकर लेखक और प्रेमचन्द के विचारों में काफी अन्तर दिखाई देता है।
प्रश्न 14.
"सभी नदियाँ पहाड़ी थोड़े ही तोड़ती हैं।" 'प्रेमचन्द के फटे जूते' पाठ के आधार पर इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक ने व्यंग्य रूप में कहा कि समाज के विकास में अनेक कुरीतियाँ, अनेक चुनौतियाँ बाधक बनती हैं। उन चुनौतियों एवं बाधाओं से हर कोई नहीं जूझता है। अनेक लेखक अपने आस-पास की समस्याओं से बचकर चला करते हैं। समाज की बुराइयों को दूर करने का जरा भी प्रयास नहीं करते हैं। परन्तु प्रेमचन्द ऐसे नहीं थे। उन्होंने अपने समय की अनेक चुनौतियों को तोड़ने या ठोकर मारने का पूरा प्रयास अपने लेखन-कर्म से किया। इस विशेषता से वे अन्यतम साहित्यकार थे।
प्रश्न 15.
प्रेमचन्द फोटो में मुस्कुराकर क्या व्यंग्य कर रहे हैं? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
प्रेमचन्द फोटो में मुस्कुराकर लेखक पर यह व्यंग्य कर रहे हैं कि तुम अंगुली को सुरक्षित रखकर तलुआ घिसाये चल रहे हो। ऊपर से दिखावा कर अन्दर के दर्द को छिपाने का प्रयास कर रहे हो। ऐसा करना कदापि ठीक नहीं है। समाज के द्वारा प्रदत्त दुःख-दर्द एवं अभावग्रस्त जीवन के यथार्थ को खुलकर प्रकट करना चाहिए, उसे छिपाना तो कायरता है, कोरा दिखावा है और आत्मबल की कमी की पहचान है। इसलिए यथार्थ का सामना करते हुए आगे बढ़ते रहो।
प्रश्न 16.
'प्रेमचन्द के फटे जूते' व्यंग्य-निबन्ध में हिन्दी के लेखकों पर क्या व्यंग्य किया गया है?
उत्तर :
प्रस्तुत व्यंग्य-निबन्ध में हिन्दी के लेखकों की दयनीय दशा पर व्यंग्य किया गया है। हिन्दी के लेखक समाज की अनेक बुराइयों पर लिखते रहते हैं, परन्तु उनकी आर्थिक स्थिति सदा कमजोर रहती है। उन्हें समाज में सम्मान तो मिलता है, परन्तु उनका शोषण भी खूब होता है। वे अपनी कमजोरी छिपाने का प्रयास भी करते हैं, ऊपर से दिखावा भी करते हैं। लेखक स्वयं कहता है कि "मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है।" परन्तु प्रेमचन्द की तरह बुराइयों पर ठोकर मारने की क्षमता हिन्दी लेखकों में उतनी प्रखर नहीं है।
प्रश्न 17.
'प्रेमचन्द के फटे जूते' व्यंग्य-निबन्ध से युवाओं को क्या शिक्षा दी गई है?
उत्तर :
'प्रेमचन्द के फटे जूते' व्यंग्य-निबन्ध से युवाओं को यह शिक्षा दी गई है कि वे कोरे दिखावे की प्रवृत्ति, फैशनपरस्ती और बनाव शृंगार या आडम्बरों से दूर रहें। वे प्रेमचन्द की तरह सादा जीवन और उच्च विचार अपनाएँ। समाज की भलाई के लिए संघर्ष करें, शोषण-उत्पीड़न का विरोध करें तथा जीवन में मानवीय आदर्शों को उतारें। आज के युवा बनावटी जीवन जीने की आदत छोडें और सादगी भरा जीवन जीना सीखें।
प्रश्न 18.
"तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे।" इस कथन का आशय 'प्रेमचन्द के फटे जूते' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन का आशय यह है कि टोपी सिर पर धारण की जाती है, उसे सम्मान दिया जाता है, जबकि जूता पैर में पहना जाता है। सम्मान की दृष्टि से टोपी का मूल्य अधिक होना चाहिए, परन्तु टोपी सस्ती एवं जूता अधिक मूल्य का होता है। मुंशी प्रेमचन्द उच्च कोटि के साहित्यकार और सम्मानित लेखक थे, परन्तु अपनी आर्थिक दुर्दशा के कारण मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में विवश थे। वे अपने जीवन की इस विडम्बना से ग्रस्त थे और अच्छा जूता पहनने में शायद समर्थ नहीं थे।
प्रश्न 19.
लेखक ने प्रेमचन्द को 'मेरे साहित्यिक पुरखे' क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक ने प्रेमचन्द को 'मेरे साहित्यिक परखे इसलिए कहा है कि प्रेमचन्द ने हिन्दी कहानी एवं उपन्यास-विधा में नयी शैली-शिल्प का प्रवर्तन किया। उन्होंने आम जनता से पात्र लिये तथा उस समय की सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक स्थितियों का यथार्थ चित्रण किया। इन विशेषताओं के कारण प्रेमचन्द अपने युग में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में सर्वोच्च स्थान रखते हैं और हिन्दी गद्य तथा हिन्दी भाषा को समृद्ध करने में बेजोड़ एवं अग्रणी लेखक माने जाते हैं।
लेखक परिचय - हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश में होशंगाबाद जिले के जमानी. गाँव में हुआ। प्रारम्भ में अध्यापन कार्य किया, फिर स्वतन्त्र लेखन करने लगे और 'वसुधा' नामक पत्रिका का सम्पादन किया। सन् 1995 में परसाईजी का निधन हो गया। इन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध लेखन के साथ व्यंग्य-लेखन में उल्लेखनीय कार्य किया। वस्तुतः उनके व्यंग्य-लेखन में भारतीय जीवन में व्याप्त अनेक बुराइयों का चुभता हुआ चित्रण हुआ है।
पाठ-सार - हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित प्रस्तुत पाठ उपन्यास-सम्राट् एवं कथाकार मुंशी प्रेमचन्द को लक्ष्य कर लिखा गया व्यंग्य-लेख है। लेखक के सामने प्रेमचन्द का एक फोटो है, जिसमें उन्होंने धोती-कुरता और टोपी पहन रखी है। प्रेमचन्द के पैरों में बेतरतीब बँधे जूतों से पतरी निकल रही है और बायें पैर के जूते के छेद से एक अंगुली बाहर झाँक रही है। उस फोटो को देखकर लेखक सोचने लगा कि जो व्यक्ति फोटो में ऐसा दिखता है, वह अपने वास्तविक जीवन में कैसा होगा।
फोटो में प्रेमचन्द की व्यंग्यपूर्ण हँसी देखकर लेखक सोचने लगा कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए सब-कुछ माँग कर ले आते हैं, तो प्रेमचन्द को भी जूते किसी से माँग लेने चाहिए थे। उस फोटो में मुस्कान को लक्ष्य कर लेखक उसका आशय जानना चाहता है। वह पूछता है कि क्या होरी का गोदान हो गया? या पूस की रात में नील गाय हल्कू का खेत चर गई? क्या सुजान भगत का लड़का मर गया? लेखक यह अर्थ भी लता है कि माधो औरत के 'कफन' के चन्दे की शराब पी गया।
लेखक फिर प्रश्न करता है कि प्रेमचन्द का जूता फट कैसे गया? क्या बनिए के तगादे से बचने के लिए रोज मील-दो मील का चक्कर काट कर घर आते थे? क्या बुराइयों को ठोकर मारते-मारते जूते फाड़ डाले? लेखक इस तरह प्रेमचन्द की कहानियों एवं उपन्यासों के पात्रों को लेकर सोचता है कि जिसे प्रेमचन्द घणित समझते थे, उस पर ठोकर मारने से जूता फट गया, क्योंकि वे जीवन में किसी से समझौता नहीं कर सके और घृणित समझे जाने वाले के प्रति हाथ की अंगुली से नहीं, अपितु फटे जूते से झांक रही अंगुली से ही मानो संकेत करते रहे। चेहरे की व्यंग्य-भरी मुस्कान भी यही व्यक्त कर रही है।
कठिन-शब्दार्थ :