Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 17 बच्चे काम पर जा रहे हैं Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने से आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है, उसे लिखकर व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
कविता की पहली दो पंक्तियाँ पढ़कर और विचार करने पर हमारे मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है वह करुणा और चिंता से पूरित है। करुणा इस बात को लेकर जागती है कि कहाँ तो इन बच्चों की खेलने कूदने और पढ़ने-लिखने की अवस्था है। वह इस स्थिति से वंचित होकर अपने पेट की भूख मिटाने के लिए इतनी कड़ाके की सर्दी में बाल श्रमिक रूप में मजदूरी करने जा रहे हैं, जहाँ इनका शोषण हो रहा है। चिन्ता का भाव इसलिए उभरता है कि इनकी मजबूरी, विवशता और शोषण का जो चक्र दुनिया में चल रहा है, वह कब समाप्त होगा और उन्हें सम्पन्न लोगों के बच्चों की तरह कब जीवन जीने का अवसर प्राप्त होगा?
प्रश्न 2.
कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?' कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
उत्तर :
किसी बात की सामान्य जानकारी, सूचना या क्रमिक वर्णन को विवरण कहा जाता है। विवरण को सरसरी दृष्टि से देखकर-पढ़कर भुला देते हैं या सुना-अनसुना भी कर देते हैं। विवरण उतना आकर्षक नहीं होता है। इसके विपरीत जब प्रश्न के रूप में पूछा जाता है, तो उसके उत्तर की अपेक्षा बनी रहती है तथा प्रश्न का मस्तिष्क पर असर बना रहता है। इसलिए ऐसा पूछा जाना चाहिए कि ये बच्चे स्कूल न जाकर मजदूरी करने क्यों जा रहे हैं? इनके सामने ऐसी क्या विवशता है? इन्हें बाल-श्रम जैसे अपराध में क्यों धकेला जा रहा है? ऐसा प्रश्न करने पर समस्या को लेकर चिन्तन किया जायेगा, समाधान खोजने का प्रयास होगा तथा उन बच्चों के बचपन को बचाया जा सकेगा।
प्रश्न 3.
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर :
सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे निम्नलिखित कारणों से वंचित हैं
प्रश्न 4.
दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर :
बच्चों को काम पर जाते देखकर भी उस ओर उदासीनता रखने के अनेक कारण हो सकते हैं। इन कारणों में पहला कारण यह है कि अधिकतर लोग धन प्राप्ति की दौड़ में अपने आप में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें दूसरों के सुख-दुःख से कोई लेना-देना ही नहीं रहता है। दूसरा कारण यह है कि उनमें जागरूकता का अभाव है जिसके कारण अधिकतर लोग यह सोच ही नहीं पाते कि हर बच्चे को प्राथमिक सुख-सुविधा दिलाना सरकार का कर्तव्य है। इसलिए वे भगवान और भाग्य को दोष देकर कोई प्रयत्न करने से रह जाते हैं। साथ ही लोगों की अपनी विवशता भी होती है। वे केवल इतना ही सोचकर रह जाते हैं कि हम अकेले कुछ भी नहीं कर सकते। धीरे-धीरे उनकी विवशता उदासीनता में बदल जाती है।
प्रश्न 5.
आपने अपने शहर में बच्चों को कब-कब और कहाँ-कहाँ काम करते हुए देखा है?
उत्तर :
हमने अपने शहर में बच्चों को अनेक स्थलों पर काम करते देखा। जैसे-ढाबों पर, चाय की दुकानों पर, बीड़ी, माचिस, अगरबत्ती एवं आतिशबाजी के कारखानों पर, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों पर चाय बेचते और बूट पालिश करते हुए, मोटर गैराजों और खैराद मशीनों पर तथा सुबह-शाम मोहल्लों एवं गलियों में कचरा बीनने का काम करते हुए देखा।
प्रश्न 6.
बच्चों का काम पर जाना.धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?
उत्तर :
बच्चों का काम पर जाना एक बड़े हादसे के समान इसलिए है कि उनकी जो अवस्था खेलने-कदने और पढ़ने की होती है, उस अवस्था में गरीबी के कारण उन्हें अपने और अपने परिवार के पेटों की भूख मिटाने के लिए काम पर जाना पड़ता है। यह उनके साथ अन्याय है। इससे उनका भविष्य अंधकार में डूब जाता है। उनका बचपन में मजबूरी के कारण काम करना धरती के एक बड़े हादसे से कम नहीं है।
रचना और अभिव्यक्ति -
प्रश्न 7.
काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने-आप को रखकर देखिए।आपको जो महसूस होता . है, उसे लिखिए।
उत्तर :
सुबह काम पर जाते हुए बच्चों को देखकर जब मैं स्वयं को एक वैसा बच्चा मानकर सोचने लगता हूँ तो मुझे महसूस होता है कि स्कूल जाने वाले अन्य बच्चों की तरह मैं भी होता और ड्रेस पहनकर बैग लेकर स्कूल जाता। सुबह कोहरे में कई माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल-बस में बिठाने जाते हैं, कुछ उन्हें स्वयं स्कूल तक छोड़ने जाते हैं। उन्हें देखकर मेरा भी मन करता कि मैं किसी स्कूल में पढूँ, रंग-बिरंगी किताबें देखू और मनोरंजन के साधनों से आनन्द प्राप्त करूँ। परन्तु परिवार की आमदनी में अपना योगदान बना रहे, अपनी पेट-पूर्ति की यथासम्भव व्यवस्था होती रहे, उस विचार से स्कूल की बजाय काम पर जाना अपने भाग्य का खेल मानता हूँ।
प्रश्न 8.
आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए?
उत्तर :
मेरे विचार में बच्चों को काम पर भेजने की बजाय उन्हें स्कूल में पढ़ने के लिए भेजना चाहिए। माता पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर योग्य बनावें, इससे उसके सुन्दर भविष्य का निर्माण करें। बच्चों , की कच्ची उम्र होती है, कोमल भावनाएँ होती हैं, कमजोर शरीर होता है और भावुक मन होता है। अतएव उनका त सानन्द बनाने के लिए उन्हें पढ़ने-लिखने के साथ खेलने-कूदने के अवसर मिलने चाहिए। ऐसा करने से ही बच्चे भविष्य के श्रेष्ठतम नागरिक बन सकते हैं तथा अपनी., समाज की एवं देश की उन्नति में पूरा योगदान कर सकते हैं।
पाठेतर सक्रियता -
'वर्तमान युग में सभी बच्चों के लिए खेलकूद और शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हैं'-इस विषय पर वाद-विवाद आयोजित कीजिए।
उत्तर :
पक्ष में विचार-वर्तमान काल में सभी बच्चों के लिए खेलकूद और शिक्षा के समान अधिकार प्राप्त हैं। सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान चला रखा है, जिसमें चौदह वर्ष तक के हरेक बच्चे को निःशुल्क शिक्षा सुविधा दी जा रही है। दोपहर का भोजन, पाठ्य-पुस्तकें तथा लेखन-सामग्री भी दी जा रही है। अब सरकारी स्कूलों में बारहवीं कक्षा तक शिक्षण-शुल्क नहीं लिया जाता है और पाठ्य-पुस्तकें भी निःशुल्क मिलती हैं। इस प्रकार सभी बच्चों को इन सभी सुविधाओं का लाभ उठाकर अपना बचपन सुधारना चाहिए।
विपक्ष में विचार-हमारे देश में शासन की ओर से सभी बच्चों को खेलकूद और शिक्षा के समान अवसर दिये गये हैं, परन्तु यह बात कुछ असंगत है। क्योंकि एकदम गरीब, बेसहारा या अनाथ बच्चों को पहले रोटी की चिन्ता रहती है। वे यदि काम न करें तो भूखे रह जाते हैं, उन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं है। वे मैले-कुचैले, झोंपड़ियों या खुले आसमान में भूखे रहकर खेलकूद एवं शिक्षा की बात कैसे सोच सकते हैं? इन कारणों से वे मजबूरी में कोई काम करके जीवनयापन करते हैं। उनके लिए सर्वशिक्षा अभियान कोरा नारा है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि ने अपने युग की सबसे भयानक समस्या माना है -
(क) बच्चों का पढ़ने न जाने को
(ख) बच्चों द्वारा मजदूरी पर जाने को
(ग) बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को
(घ) बढ़ती हुई महंगाई को।
उत्तर :
(ख) बच्चों द्वारा मजदूरी पर जाने को
प्रश्न 2.
कवि की पीड़ा का विषय है -
(क) देश में बढ़ती हुई जनसंख्या
(ख) देश में बढ़ती हुई बेरोजगारी
(ग) देश में बढ़ता हुआ शोषण-अन्याय
(घ) देश में बच्चों को मजदूरी करने को विवश होना।
उत्तर :
(घ) देश में बच्चों को मजदूरी करने को विवश होना।
प्रश्न 3.
बच्चे काम पर जाते हैं। इसका कारण है -
(क) खेल-कूद के साधनों का न होना
(ख) विद्यालयों का ढह जाना
(ग) उनकी किताबों का फट जाना
(घ) माँ-बाप का गरीब होना।
उत्तर :
(घ) माँ-बाप का गरीब होना।
प्रश्न 4.
कवि के अनुसार सबसे अधिक भयानक स्थिति है -
(क) बच्चों के न खेलने की
(ख) बच्चों के न पढ़ने की
(ग) बच्चों के काम पर जाने की
(घ) बच्चों के उदंड होने की।
उत्तर :
(ग) बच्चों के काम पर जाने की
बोधात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
बच्चों को काम पर जाते देखकर कवि ने क्या-क्या प्रश्न उठाये?
उत्तर :
सुबह-सुबह बच्चों को काम पर जाते देखकर कवि ने अनेक प्रश्न उठाए। उसने प्रश्न किये कि
क्या सारी गेंदें अन्तरिक्ष में गिर गई हैं?
क्या रंगीन किताबों को दीमक चट कर गई है?
क्या सारे खिलौने काले पहाड़ के नीचे दब गये हैं?
क्या सारे स्कूल भूकम्प से नष्ट हो गये हैं?
क्या सारे मनोरंजन के स्थल खत्म हो गये हैं?
प्रश्न 2.
बच्चों को काम पर जाते देखकर कवि क्यों चिन्तित है?
उत्तर :
बच्चों की उम्र पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने एवं मनोविनोद करने की होती है, लेकिन जब वे पेट की भूख मिटाने की मजबूरी के कारण काम पर जाते रहेंगे तो वे अनपढ़ रह जायेंगे। अनपढ़ता देश और समाज के लिए कलंक है। साथ ही उनका शारीरिक तथा मानसिक शोषण होता है। इन बातों को लेकर कवि चिन्तित हो रहा है।
प्रश्न 3.
कवि के अनुसार वर्तमान काल की सबसे भयानक समस्या क्या है?
उत्तर :
कवि के अनुसार वर्तमान काल की सबसे भयानक समस्या बाल-श्रम की है। जो उम्र बच्चों के पढ़ने लिखने की होती है उस अवस्था में वे विद्यालय न जाकर कारखानों, होटलों, ढाबों और दुकानों पर मजदूरी करने के लिए बेबसी में जाते हैं। यही बाल-मजदूरी वर्तमान काल की सबसे भयंकर समस्या है।
प्रश्न 4.
बच्चे काम पर जा रहे हैं। यह एक भयानक प्रश्न क्यों बनता है?
उत्तर :
खेलने-खाने और पढ़ने की उम्र में बच्चों का रोजी-रोटी के लिए काम पर जाना निश्चित रूप से एक भयानक प्रश्न या समस्या है। इस कारण उनका बचपन मारा जाता है और भविष्य अंधकारमय हो जाता है। इसलिए उनका काम पर जाना एक भयानक प्रश्न है।
प्रश्न 5.
'बच्चे काम पर जा रहे हैं' कविता का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता का उद्देश्य बाल मजदूरी रोकने के लिए समाज को जागरूक करना है जिससे बच्चों का बचपन उनसे न छिने और उन्हें पढ़ाई-लिखाई, खेल-कूद का सुअवसर प्राप्त हो सके। इस दृष्टि से कवि काम पर जाने वाले बच्चों के प्रति चिन्ता व्यक्त करता है। दूसरी ओर सरकार ने बाल-श्रम की रोकथाम के लिए कानून बना रखा है, परन्तु उसका पालन नहीं हो रहा है। कवि इस आशय से सरकारी-तन्त्र को और समाज को इस समस्या के निवारण हेतु सचेत कर बच्चों को उनका अधिकार दिलवाने की बात कहता है।
प्रश्न 6.
'बच्चे काम पर जा रहे हैं' कविता में समाज के लिए क्या सन्देश दिया गया है?
अथवा
'बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता में कवि ने समाज को किस तरह जगाने का प्रयास किया है?
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में कवि ने बच्चों के काम पर जाने की समस्या को प्रमुखता से उभारा है। इसे लक्ष्यकर कवि ने समाज को सजग करने का प्रयास किया है। गरीब बच्चों को लेकर समाज की संवेदनाहीनता एवं भावशून्यता पर व्यंग्य किया गया है। कवि समाज की ऐसी स्थिति को दूर करना चाहता है। वह समाज में करुणा, कर्तव्य भावना एवं मानवीय संवेदना जगाना चाहता है, ताकि सब लोग बालश्रम को देखकर चिन्तित हों और सभी मिलकर ऐसे बच्चों को पढ़ने लिखने का सुअवसर प्रदान करें।
प्रश्न 7.
'कोहरे से ढंकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं'-इसमें बाल-श्रम की समस्या को सड़क पर क्यों दर्शाया गया है?
उत्तर :
कवि बच्चों को काम पर जाते हुए किसी गाँव की पगडंडी पर नहीं देखता है, अपितु वह उन्हें कोहरे से ढंकी शहर की सड़क पर देखता है। गांवों के लोग कुछ संवेदनाशील एवं सहयोगी होते हैं, जबकि शहरी लोगों में सहृदयता तथा संवेदनशीलता का स्तर घटता जा रहा है। वे बच्चों से काम लेते हैं, परन्तु उन पर उतनी दया नहीं दिखाते हैं। शहर की सड़कों के आसपास ही प्रायः गरीबों की झोंपड़ियाँ होती हैं। वहाँ से बच्चे रोजाना काम पर जाते हैं। इस तरह कवि ने इसे शहरों या कस्बों की समस्या दर्शाया है।
प्रश्न 8.
'काले पहाड़ के नीचे दब गये हैं सारे खिलौने'-इससे किस व्यवस्था की ओर संकेत किया गया है? पठित कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
कवि ने समाज में प्रचलित शोषण-उत्पीड़न की व्यवस्था को काला पहाड़ कहा है। गरीब बच्चों से काम तो पूरा लिया जाता है, परन्तु उन्हें तो पूरी मजदूरी दी जाती है और न कोई सुविधा दी जाती है। कवि चाहता है कि समाज में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि बच्चे खेलें-कूदें और पढ़ें। वे खिलौनों से वंचित न होवें। वे बचपन में सुलभ मनोविनोद के सभी साधन प्राप्त करें। परन्तु हमारे समाज में इतनी सहृदयता एवं सुव्यवस्था नहीं है। स्वार्थी लोग शोषण करना ही जानते हैं। कवि ने ऐसी व्यवस्था पर व्यंग्य किया है।
प्रश्न 9.
बच्चों के काम पर जाने के वास्तविक कारण क्या हो सकते हैं? कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
बच्चों के काम पर जाने का मुख्य कारण है, जीवन जीने की मजबूरी। जो बच्चे एकदम गरीब परिवार के होते हैं, कच्ची झोंपड़ियों या.खुली जमीन पर कच्चे घरों में रात बिताते हैं, जो बच्चे अनाथ होते हैं या माता-पिता बीमार, बेरोजगार या असमर्थ होते हैं और आजीविका का कोई भी साधन नहीं रहता है, ऐसे बच्चे पेट भरने की खातिर, तन ढकने और जिन्दा रहने की मजबूरी से काम पर जाते हैं। अत: काम पर जाने का वास्तविक कारण बच्चों की हर तरह से विवशता ही होती है।
प्रश्न 10.
बच्चों के काम पर जाने की स्थिति समाज और देश के लिए भयानक कैसे है? इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं?।
उत्तर :
बच्चों के लिए बचपन का समय खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने के लिए होता है। स्वाभाविक रूप से बच्चों के मानसिक एवं शारीरिक विकास हेतु उनका खेलना-कूदना एवं पढ़ना-लिखना सर्वथा उचित माना गया है। इससे ही उनके जीवन की नींव मजबूत होती है, व्यक्तित्व का सही विकास हो पाता है। परन्तु इसके विपरीत बच्चों को काम पर भेजा जाए, उनसे मजदूरी करायी जाए और बचपन को मजबूरी से दबा दिया जाए, तो उनका जीवन एकदम कष्टमय, असन्तुलित एवं तनावग्रस्त हो जायेगा और वे देश के श्रेष्ठ नागरिक नहीं बन पायेंगे। अतः बच्चों के काम पर जाने के परिणाम देश व समाज के लिए अच्छे नहीं रहेंगे।
प्रश्न 11.
क्या बच्चों को काम पर भेजा जाना उचित है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर :
यह सभी का मानना है कि बचपन खुशहाल होना चाहिए। बच्चों को बचपन में खेलने-कूदने तथा पढ़ने लिखने का अवसर देना चाहिए। बचपन से ही धन कमाने या पेट की भूख शान्त करने के लिए उन्हें विवश नहीं किया जाना चाहिए। यदि बच्चों पर उनके परिवार का बोझ डाला जायेगा, तो उनका जीवन सदा कष्टमय एवं कुरूप बना रहेगा। उनके व्यक्तित्व का सही विकास नहीं हो पायेगा और वे अनेक बुराइयों से ग्रस्त हो जायेंगे। अतएव बच्चों को काम पर भेजा जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं रहता है।
प्रश्न 12.
बच्चों को काम पर न भेजा जाए या उनसे काम न लिया जाए, इस सम्बन्ध में सरकार ने क्या नियम बनाए हैं?
उत्तर :
हमारे संविधान के अनुच्छेद 24 में कारखानों, ढाबों, दुकानों आदि में बच्चों को काम पर नियुक्त करने का निषेध किया गया है। चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी कारखाने, खान या अन्य स्थानों पर काम करने या मजदूरी पर रखने के लिए कठोर प्रतिबन्ध है। कुछ लोग कम मजदूरी देने से या केवल पेटपूर्ति की विवशता रखने वाले बच्चों से मनचाहा काम लेते हैं। उन्हें बंधुआ श्रमिक बना लेते हैं और प्रताड़ना के साथ बेगार लेते हैं। सरकार ने इस तरह की स्थिति के लिए कठोर नियम बनाये हैं। इस तरह बच्चों से परिसंकटमय काम लेना कानूनी तौर पर अपराध माना गया है।
प्रश्न 13.
'बच्चे काम पर जा रहे हैं' कविता का मूल भाव या प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'बच्चे काम पर जा रहे हैं' कविता का मूल भाव बच्चों से बचपन छीन लिये जाने की पीड़ा व्यक्त करना है। बच्चों की जो उम्र खेलने-कूदने, पढ़ाई करने एवं निश्चिन्त खाने-पहनने की होती है, उस उम्र में उन्हें मजबूरी में काम पर जाना पड़े, यह हमारे समाज की घोर विडम्बना है। समाज की संवेदनशीलता मर गई है, घोर आर्थिक विषमता एवं शोषण का चक्र मानव को पशु जैसा हृदयहीन बना रहा है। प्रस्तुत कविता का प्रतिपाद्य ऐसी सामाजिक-आर्थिक विडम्बना की ओर इशारा या व्यंग्य करना है, जिसमें कुछ बच्चे खेल, शिक्षा एवं जीवन की उमंग से वंचित हों। बच्चों का बचपन बचे, उनका शोषण न हो, यही इस कविता का कथ्य है।
कवि-परिचय - राजेश जोशी हिन्दी के प्रमुख कवियों में माने जाते हैं। इनका जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में सन् 1946 में हुआ। इन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद पत्रकारिता प्रारम्भ की और कुछ वर्षों तक अध्यापन भी किया। इन्होंने कविताओं के अतिरिक्त कहानियों, नाटकों तथा निबन्धों की भी रचना की। इनके कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं। ये माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्यप्रदेश शिखर सम्मान तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं।
पाठ-परिचय - पाठ्यक्रम में राजेश जोशी की कविता 'बच्चे काम पर जा रहे हैं संकलित है। सामाजिक-आर्थिक विडम्बना के कारण आज लाखों बच्चे काम पर जाने को विवश हैं। काम पर जाने वाले बच्चों से उनका बचपन छिन जाता है। वे बच्चे खेल, शिक्षा एवं जीवन की उमंग से वंचित हो जाते हैं। श्रमिक रूप में उनका हर तरह से शोषण उत्पीड़न भी होता है। प्रस्तुत कविता में इसी आधार पर हार्दिक पीड़ा की अभिव्यक्ति हुई है।
भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न
बच्चे काम पर जा रहे हैं
1. कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ - कवि भावुकता के साथ कहता है कि सुबह-सवेरे घने कोहरे से ढकी हुई सड़क पर भीषण ठंड से जूझते हुए बच्चे मजदूरी करने अपने काम पर जा रहे हैं। कवि कहता है कि यह हमारे समय की सबसे भयानक स्थिति है कि बच्चों को खेलने-कूदने की जगह काम करना पड़ रहा है और इससे भी भयानक बात यह है कि इस समस्या को सामान्य वर्णन की तरह कहा जा रहा है। इस वर्णन को कहते हुए किसी की संवेदनाएँ इनके प्रति नहीं जागतीं और न किसी को क्रोध ही आता है।
इस कारण इसका क्रमिक वर्णन करना भी अत्यधिक भयानक है। इस बात को तो प्रश्न रूप में लिखा जाना चाहिए, अर्थात् बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं, उनके सामने ऐसी क्या मजबूरी है? इस तरह प्रश्नात्मक रूप में लिखा जाना अपेक्षित है। इस उम्र में उन्हें तो स्कूल जाना चाहिए था, फिर क्यों उन्हें मजदूरी करनी पड़ रही है, क्यों अपना बचपन इस तरह बिताना पड़ रहा है?
प्रश्न 1. कवि ने 'भयानक पंक्ति' किसे बताया है?
प्रश्न 2. कवि ने प्रस्तत कविता में किस समस्या की ओर संकेत किया है?
प्रश्न 3. 'लिखा जाना चाहिए सवाल की तरह'-इसका आशय क्या है?
प्रश्न 4. कवि की पीड़ा क्या है?
उत्तर :
1. कवि ने भयंकर सर्दी के इस मौसम में सुबह-सुबह बच्चों का काम पर जाने की विवशता को भयानक समस्या बताया है। ऐसे कथन को ही भयानक पंक्ति बताया है।
2. प्रस्तुत कविता में कवि ने वर्तमानकाल की उस भयानक सामाजिक-आर्थिक समस्या की ओर संकेत किया है, जिससे निम्न-मध्यम वर्ग के बच्चों का बचपन छिन गया है। उन बच्चों को खेलने-कूदने, पढ़ने आदि से वंचित होकर कम उम्र में मजदूरी करने या धन कमाकर पेट-पूर्ति करने को विवश होना पड़ता है।
3. 'लिखा जाना चाहिए सवाल की तरह' का आशय यह है-बाल मजदूरी की समस्या की गहराई में जाकर उसके कारणों को जानना और समाधान के उपाय करना।
4. कवि की पीड़ा यह है कि बच्चों को मजदूरी करने के लिए मजबूर होना।
2. क्या अन्तरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग-बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकम्प में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : सुबह-सुबह घने कोहरे से ढकी सड़कों पर बच्चों को काम पर जाते देखकर कवि व्यथित होकर पूछता है कि आखिर ये बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं? क्या इन बच्चों के द्वारा खेली जाने वाली सारी गेंदें आकाश में गिर गई हैं अर्थात् खो गई हैं? गेंदें न मिलने से ये काम पर जा रहे हैं? क्या इन्हें शिक्षा, प्राप्ति में सहायक पुस्तकें नहीं मिल रही हैं? क्या उन सारी रंग-बिरंगी पुस्तकों को दीमकों ने चट कर दिया है? क्या इनके खेलने में काम आने वाले सारे खिलौने किसी काले पहाड के नीचे दब गये हैं. जहाँ से उन्हें निकाल पाना संभव नहीं है? अथवा इन्हें ज्ञान-प्रदान करने वाली सारी पाठशालाओं की इमारतें किसी भूकम्प में नष्ट हो गई हैं? इन बच्चों को खेलने के लिए मैदान, बाग-बगीचे और घरों के आँगन चाहिए, परन्तु क्या ये सारे ही साधन अचानक नष्ट हो गये हैं? यदि ऐसा नहीं है तो फिर किस कारण ये बच्चे काम पर जा रहे हैं? किन कारणों से इन्हें मजदूरी करने को विवश होना पड़ रहा है? यह अतीव चिन्तनीय विषय है।
प्रश्न 1. 'अन्तरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें' इससे कवि क्या कहना चाहता है?
प्रश्न 2. 'काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं?'-कथन में 'काले पहाड़' किसका प्रतीक लगता है?
प्रश्न 3. कवि ने सारे विद्यालयों की इमारतों को भूकम्प में ढह जाने की बात क्यों की है?
प्रश्न 4. 'खत्म हो गए हैं एकाएक कथन से कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?
उत्तर :
1. 'अन्तरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें' से कवि यह कहना चाहता है कि इन बाल मजदूरों की अभी अवस्था खेलने की है, इन्हें काम पर अभी नहीं भेजना चाहिए बल्कि उन्हें उनका सहज बचपन लौटा देना चाहिए।
2. इसमें काला पहाड भयंकर आर्थिक विषमता, शोषण-उत्पीडन एवं स्वार्थपरता को बढावा देने वाली विचारधारा का प्रतीक है। शोषक लोग ही इस समस्या के मूल कारण हैं, जिससे आर्थिक विषमता एक अतीव भयानक मजबूरी बन गई है।
3. अगर विद्यालयों की इमारतें होतीं, तो सारे बच्चे वहाँ पढ़ने जाते, वहाँ पर अपना बचपन ज्ञान-प्राप्ति में व्यतीत करते। परन्तु सुबह-सुबह सब बच्चे काम पर जा रहे हैं, इससे प्रतीत होता है कि विद्यालयों की इमारतें भूकम्प में ढह गई हैं। बच्चों को पढ़ने-लिखने का अवसर या सुविधा न मिलने से कवि ने ऐसा कहा है।
4. इससे कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि बचपन के सुख छिन जाने से बच्चों का जीवन यातनामय बन गया है। पढ़ने-लिखने की उम्र में वे काम के बोझ से दब रहे हैं, उनके सारे सुख समाप्त हो गये हैं तथा उनका जीवन एकदम मनोरंजन- विहीन हो गया है।
3. तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितनी भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
कठिन-शब्दार्थ :
हस्बमामूल = यथावत्।
भावार्थ : कवि सोचता है कि यदि बच्चे सुबह-सुबह मजदूरी करने जा रहे हैं, तो इसका अर्थ है कि दुनिया में खिलौने, पुस्तकें, मनोरंजन के उपकरण, खेल के साधन एवं पाठशालाएँ आदि सब नष्ट हो चुके हैं। बच्चों के मनोरंजन एवं उपयोग की चीजें नहीं रहीं, तो फिर इस दुनिया में बचा ही क्या है? वस्तुतः यदि ऐसा हो जाता, तो कितनी बड़ी भयानक बात हो जाती? परन्तु सच तो यह है कि इस संसार में खेलने-कूदने और मनोरंजन की सारी चीजें ज्यों की त्यों उपलब्ध हैं फिर भी देश के बच्चे इनसे वंचित हैं, क्योंकि इस संसार की हजारों सड़कों पर अर्थात् सर्वत्र ही बहुत छोटे-छोटे बच्चे रोजाना काम पर जाते हैं। अर्थात् यह समस्या केवल हमारे देश की नहीं है, अपितु सारे विश्व के गरीब देशों की समस्या है। इस कारण बच्चों का सुखमय बचपन छिन रहा है और वे रोजाना काम पर जा रहे हैं। यह बाल-मजदूरी की समस्या वास्तव में ही चिन्ता का विषय है।
प्रश्न 1. 'अगर ऐसा होता' कथन से कवि ने क्या संकेत किया है?
प्रश्न 2. इससे भी ज्यादा भयानक स्थिति क्या है?
प्रश्न 3. 'दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए' से कवि का क्या आशय है?
प्रश्न 4. 'बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे' कथन से कवि ने क्या व्यंजना की है?
उत्तर :
1. इससे कवि ने संकेत किया है कि अगर बच्चों के खेलने-कूदने के साधन, रंग-बिरंगी पुस्तकें, खिलौने, पढने-लिखने के विद्यालय तथा बचपन के मनोरंजन के सारे उपकरण नष्ट हो जाते, तो तब इस दुनि हो जाती और इसमें बचपन का सरस जीवन पूरी तरह बेजान हो जाता।
2. इससे भी अधिक भयानक स्थिति यह है कि बच्चों के मनोरंजन के सारे साधन, खिलौने, खेलने-कूदने आदि की सब चीजें संसार में उपलब्ध हैं, पर वे गरीब जरूरतमन्द बच्चों को नहीं मिल रही हैं, वे उनसे वंचित हो रहे हैं, क्योंकि उनके सामने पेट भरने की विकराल समस्या आ खड़ी हुई है।
3. इससे यह आशय है कि बच्चों का काम पर जाना किसी एक देश की समस्या नहीं है। बाल-श्रम की यह समस्या आर्थिक विषमता से ग्रस्त समस्त गरीब देशों में रहने वाले बच्चों की है इसलिए यह समस्त विश्व की भयानक मानवीय समस्या है।
4. इससे कवि ने यह व्यंजना की है कि आर्थिक विषमता से ग्रस्त समाज में बच्चों का किस तरह शोषण होता है, किस तरह उन्हें बचपन के सखों से वंचित किया जाता है? बाल-श्रम की समस्या समाज पर कितना बडा कलंक है, मानव-समाज का कितना बड़ा अभिशाप है?