Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
'इस विजन में ......अधिक है'-पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि का क्या आक्रोश है और क्यों?
उत्तर :
इन पंक्तियों में नगरीय संस्कृति के प्रति कवि ने आक्रोश और व्यंग्य एक-साथ व्यक्त किया है। नगरों में सच्चे प्यार एवं अपनत्व की कमी है। नगरीय संस्कृति में भागम-भाग, शोर-शराबा और व्यापारिक गतिविधियों के कारण लोग आत्म-केन्द्रित हो गये हैं। वहाँ मनुष्य मशीन जैसा संवेदनाहीन बन गया है। वह प्रकृति से भी कट गया है।
प्रश्न 2.
सरसों को 'सयानी' कहकर कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
कवि ने सरसों का मानवीकरण कर उसे युवती या नायिका बताया है। वह युवती अब बड़ी एवं समझदार हो गयी है। वह अपने हाथ पीले करने स्वयं ही स्वयंवर-मण्डप में आ बैठी है कि कोई उसका वरण कर ले। सामान्य अर्थ यह है कि सरसों अब सयानी हो गई है और उस पर पीले फूल खिल आये हैं। अब वह फसल रूप में तैयार हो गयी है।
प्रश्न 3.
अलसी के मनोभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कवि ने अलसी को भी एक हठीली नवयुवती कहा है। उसकी कमर लचीली है और देह पतली है। वह ले फूल रखकर कह रही है कि जो इसका स्पर्श कर लेगा, मैं उसे अपना हृदय का दान दे दूंगी, अर्थात् उसे समर्पित हो जाऊँगी तथा उसका वरण
प्रश्न 4.
अलसी के लिए 'हठीली' विशेषण का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर :
अलसी के लिए हठीली विशेषण का प्रयोग इसलिए किया गया है कि वह हठपूर्वक अपने आप चने के पौधे के पास उग आई है। वह लचीले शरीर वाली है और बार-बार झूमती-झुकती है और फिर चने के पौधे के पास खड़ी हो जाती है। उसका हठ है कि वह उसे ही अपने हृदय को समर्पित करेगी जो उसके सिर के नीले फूल का स्पर्श करे।
प्रश्न 5.
'चाँदी का बड़ा-सा गोल-खम्भा में कवि की किस सूक्ष्म कल्पना का आभास मिलता है?
उत्तर :
कवि ने तालाब के जल में सूर्य का प्रतिबिम्ब और उसकी किरण जाल की चमक देखकर कल्पना की है कि वह चाँदी का बड़ा-सा गोल खम्भा है। सूर्य का बिम्ब गोल तथा किरणों से चमकीला है; इस तरह रूप-रंग, आकार आदि की समानता के कारण इस कल्पना में कवि के सूक्ष्म ज्ञान का आभास होता है।
प्रश्न 6.
कविता के आधार पर हरे चने' का सौन्दर्य अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर :
हरे चने का पौधा ठिगना-सा होता है। वह एक बालिश्त ऊँचा है। कवि ने उसे ऐसा युवक या नायक बताया है, जो माथे पर गुलाबी फूलों के गुच्छे को पगड़ी के रूप में धारण करता है और दूल्हे की तरह बन-ठन कर खड़ा है।
प्रश्न 7.
कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कहाँ-कहाँ किया है?
उत्तर :
अचेतन या जड़ पदार्थों पर मानव के क्रिया-कलापों आदि का आरोप करने को मानवीकरण कहते हैं। प्रस्तुत कविता के सभी प्रसंगों में मानवीकरण किया गया है, फिर भी ये स्थल विशेष द्रष्टव्य हैं -
प्रश्न 8.
कविता में से उन पंक्तियों को ढूंढ़िए जिनमें निम्नलिखित भाव व्यंजित हो रहा है -
"और चारों तरफ सूखी और उजाड़ जमीन है लेकिन वहाँ भी तोते का मधुर स्वर मन को स्पन्दित कर रहा है।"
उत्तर :
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ-भूमि पर
इधर-उधर रीवा के पेड़
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें।
रचना और अभिव्यक्ति -
प्रश्न 9.
और सरसों की न पूछो'-इस पंक्ति में बात को कहने का एक खास अंदाज है। हम इस प्रकार की शैली का प्रयोग कब और क्यों करते हैं?
उत्तर :
जब कभी किसी वस्तु या बात की विशेषता का वर्णन किया जाता है, तब हम ऐसा प्रारम्भ करते हैं पछो या बात ही मत करो। इसका यह आशय रहता है कि वह सबसे भिन्न और विशिष्ट है। इस प्रकार कथ्य में रोचकता बढ़ाने, प्रशंसा करने और प्रभाव पैदा करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 10.
काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया आपकी दृष्टि में किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हो सकती है?
उत्तर :
केदारनाथ मार्क्सवाद से प्रभावित प्रगतिवादी कवि रहे हैं। उन्होंने सामाजिक विषमता आदि पर आक्षेप किया है। प्रस्तुत कविता में उन्होंने काले माथे और सफेद पंखों वाली चिड़िया को स्वार्थी, अवसरवादी और शोषण करने वालों की प्रतीक बताया है। वह 'मुँह में राम बगल में छुरी' वाले लोगों की प्रतीक है, जो दिखने में सफेद-उज्ज्वल होते हैं, परन्तु मौका मिलते ही झपटा मारकर अपना पेट भर लेते हैं। ऐसे लोगों के माथे काले अर्थात् मस्तिष्क कुत्सित विचारों से भरे होते हैं।
भाषा अध्ययन -
प्रश्न 11.
बीते के बराबर, ठिगना, मुरैठा आदि सामान्य बोलचाल के शब्द हैं, लेकिन कविता में इन्हीं से सौन्दर्य उभरा है और कविता सहज बन पड़ी है। कविता में आये ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
ब्याह, फाग, पोखर, लहरियाँ, झपट, अनगढ़, सुग्गा, जुगुल जोड़ी, चुप्पे-चुप्पे, मेड़, हठीली, सयानी, चट।
प्रश्न 12.
कविता को पढ़ते समय कुछ मुहावरे मानस-पटल पर उभर आते हैं, उन्हें लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयक्त कीजिए।
उत्तर :
पाठेतर सक्रियता -
प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर उसके नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
देहात का दृश्य
अरहर कल्लों से भरी हुई फलियों से झुकती जाती है,
उस शोभासागर में कमला' ही कमला बस लहराती है।
सरसों दानों की लड़ियों से दोहरी-सी होती जाती है,
भूषण का भार सँभाल नहीं सकती है कटि बलखाती है।
है चोटी उसकी हिरनखुरी के फूलों से गुँथ कर सुंदर,
अन-आमंत्रित आ पोलंगा है इंगित करता हिल-हल कर।
हैं मसें भींगती गेहूँ की तरुणाई फूटी आती है,
यौवन में माती मटरबेलि अलियों से आँख लड़ाती है।
लोने-लोने वे घने चने क्या बने-बने इठलाते हैं,
हौले-हौले होली गा-गा घुघरू पर ताल बजाते हैं।
हैं जलाशयों के ढालू भीटों पर शोभित तृण शालाएँ,
जिनमें तप करती कनक वरण हो जाग बेलि-अहिबालाएँ।
हैं कंद धरा में दाब कोष ऊपर तक्षक बन झुम रहे।
अलसी के नील गगन में मधुकर दृग-तारों से घूम रहे।
मेथी में थी जो विचर रही तितली सो सोए में सोई,
उसकी सुगंध-मादकता में सुध-बुध खो देते सब कोई।
प्रश्न 1. इस कविता के मुख्य भाव को अपने शब्दों में लिखिए।
प्रश्न 2. इन पंक्तियों में कवि ने किन-किनका मानवीकरण किया है?
प्रश्न 3. इस कविता को पढ़कर आपको किस मौसम का स्मरण हो आता है?
प्रश्न 4. मधुकर और तितली अपनी सुध-बुध कहाँ और क्यों खो बैठते हैं?
उत्तर :
1. इस कविता में गाँव के खेतों में उपजने वाली अनेक फसलों, तिलहनों, दलहनों, सब्जियों आदि के सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। अरहर कल्लों के भार से दबी है, गेहूँ पक गए हैं, मटर में दाने लग गये हैं, चना आदि फसलें पक गई हैं। भीटों पर घास छा गई है, धरती के नीचे कन्द बन गये हैं। अलसी खड़ी है, मेथी और सोया भी सजे हुए हैं। इस तरह सारे खेत फसलों आदि से समृद्ध हैं।
2. इन पंक्तियों में कवि ने अरहर, सरसों, गेहूँ, मटर, चना, केले, अलसी, मेथी और सोया आदि का मानवीकरण किया है।
3. इस कविता को पढ़कर शीतकाल और वसंत ऋतु के मध्य शिशिर ऋतु के मौसम का स्मरण हो जाता है।
4. मधुकर अर्थात् भौरे अलसी के नीले फूलों पर मँडरा कर उसकी मादकता में अपनी सुध-बुध खो रहे हैं। तितली पहले तक तो मेथी की फसल पर विचरण कर रही थी, वह अब सोए की सुगन्ध से मस्त होकर अपनी सुध-बुध खो बैठी है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
प्रश्न 1.
कवि ने चने के पौधे का कद बताया है -
(क) हठीला
(ख) ठिगना
(ग) छोटा
(घ) बड़ा।
उत्तर :
(ख) ठिगना
प्रश्न 2.
कवि ने 'सबसे सयानी' कहा है -
(क) सारस की जोड़ी को
(ख) अलसी को
(ग) सरसों की तैयार फसल को
(घ) काले माथे वाली चिड़िया को।
उत्तर :
(ग) सरसों की तैयार फसल को
प्रश्न 3.
'प्रेम की प्रिय भूमि' कवि ने कहा है -
(क) प्रकृति को
(ख) अलसी को
(ग) सरसों को
(घ) गाँव की भूमि को।
उत्तर :
(घ) गाँव की भूमि को।
प्रश्न 4.
मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर उड़ जाती है -
(क) बगुला
(ख) सारस
(ग) चील
(घ) काले माथे वाली चिड़िया।
उत्तर :
(घ) काले माथे वाली चिड़िया।
प्रश्न 5.
कवि ने रीवा के पेड़ को बताया है -
(क) सुन्दर-झाड़ीदार
(ख) काँटेदार-कुरूप
(ग) गठीला-चौड़ा
(घ) लम्बा-टहनीदार।
उत्तर :
(ख) काँटेदार-कुरूप
बोधात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
चन्द्रगहना से लौटते समय कवि कहाँ और क्यों रुक जाता है?
उत्तर :
चन्द्रगहना से लौटते समय कवि गांव के एक खेत की मेड़ पर रुक जाता है। वहाँ पर प्रकृति का सौन्दर्य कवि को अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। वहाँ हरे-भरे खेतों की तथा समीप में स्थित चित्रकूट की पहाड़ियों की प्राकृतिक सुषमा को देखकर कवि भावुक होकर मनोरम कल्पना करने लगता है।
प्रश्न 2.
अलसी के पौधे की सुन्दरता और उसके लिए प्रयुक्त कवि-कल्पना का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
चने के पौधे के पास ही अलसी का पौधा खड़ा हुआ है। अलसी दुबले-पतले शरीर वाली प्रेमिका है। उसने अपने सिर पर नीला ला फल लगा रखा है। वह संकेत कर रही है कि वह अपने शरीर का स्पर्श करने वाले को ही अपना हृदय दान करेगी अर्थात् उसका वरण करेगी।
प्रश्न 3.
कवि ने खेत में खड़े चने के पौधे का सौन्दर्य-वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर :
कवि ने खेत में खड़े चने के पौधे का सौन्दर्य-वर्णन आलंकारिक शैली में किया है। चने का पौधा एक के दूल्हे के समान खड़ा है। उसके सिर पर गुलाबी फूल उग आया है, मानो वह सिर पर गुलाबी साफा बाँधे हुए खड़ा है। वह अपनी प्रेमिका या दुल्हन के स्वागत की तैयारी में कुछ उत्सुक-सा लगता है।
प्रश्न 4.
'प्रेम प्रिय की भूमि उपजाऊ अधिक है।' इससे कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने गाँव की एकान्त भूमि को प्रिय की प्रेममयी उपजाऊ भूमि बताया है। क्योंकि गाँवों में दूर-दूर तक हरे-भरे खेत फैले हैं। उनमें रंग-बिरंगे फूलों से सजकर धरती प्रेम प्रकट कर रही है। मानो वहाँ पर प्रकृति रूपी नायिका श्रृंगार किए खड़ी है और स्वयंवर रचा जा रहा है तथा विविध पौधे रूपी दूल्हा-दुल्हन परस्पर वरण करने को अथवा प्रेमालिंगन करने को उद्यत हैं। इसी कारण वह भूमि प्रिय प्रेम की उपजाऊ अधिक लगती है।
प्रश्न 5.
'चुप खड़ा बगुला डुबाए टांग जल में। ध्यानमग्न खड़े बगुले की गतिविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
बगला अपने स्वभाव के अनुसार जल में तैरती हुई मछलियों के शिकार के लिए चुपचाप ध्यान लगाए खडा है। उसकी दोनों टांगें जल में डूबी हैं तथा शेष शरीर ऊपर है। जैसे ही कोई मछली अपनी ओर आती दिखाई देती है तो वह बड़ी फुर्ती से ध्यान-निद्रा तोड़कर जल में चोंच चलाता है और मछली को चोंच में दबाकर अपने गले में निगल जाता है।
प्रश्न 6.
काले माथ वाली चिड़िया क्या करती है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
काले माथ वाली चंचल चिड़िया अपने सफेद पंखों की सहायता से जल की सतह पर जोर से झपट्टा मारती है। वह जल के अन्दर तैरती हुई एक उजली चंचल मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर आकाश में उड़ जाती है। वह चिड़िया बहुत ही चतुर होती है और तेजी से झपट्टा मारकर मछलियों का शिकार कर आकाश में उड़ जाती है।
प्रश्न 7.
'चन्द्रगहना से लौटती बेर' कविता के अनुसार सुग्गे एवं सारस का स्वर कवि को कैसा लगा और उसे कैसी अनुभूति हुई?
उत्तर :
कवि को सुग्गे अर्थात् तोते का स्वर 'टें-टें-टें' करता हुआ सारे परिवेश में मिठास भर देता है। कवि को उसके स्वर से मीठा-मीठा रस टपकने की अनुभूति होती है। सारस की 'टिरटों-टिरटों' स्वर सारे वनभाग में उठता गिरता हुआ फैल जाता है। उसे सुनकर कवि को सारस के साथ आकाश में उड़ जाने की इच्छा होती है तथा प्रेमी-युगलों की प्रेम कहानी सुनने का मन करता है।
प्रश्न 8.
कवि ने ऐसा क्यों कहा कि गाँव की भूमि शहर की अपेक्षा प्रेम के लिए अधिक उपजाऊ है?
उत्तर :
शहरी जीवन में सरसता का कुछ अभाव-सा है। वहाँ पर युवक-युवतियाँ आपस में प्यार करते तो दिखाई देते हैं, परन्तु अन्य लोग प्रेम की स्मृति से कुछ दूर रहते हैं। इसकी अपेक्षा गाँव के वातावरण में स्वाभाविक प्रेम की अधिकता दिखाई देती है। यहाँ मानवों के साथ ही पेड़-पौधे भी प्रेम-व्यवहार में निमग्न दिखाई देते हैं। इसीलिए कवि ने कहा है-'प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।'
प्रश्न 9.
कवि ने जल में खड़े बगुले तथा मछली को किसका प्रतीक माना है और क्यों?
उत्तर :
बगुला पानी में ध्यान लगाए खड़ा रहता है तथा मछलियों को अपने आसपास आने की इन्तजार में रहता है। ज्यों ही कोई मछली पास आती है, वह शीघ्रता से चोंच में दबाकर खा जाता है। इस प्रकार प्रस्तुत कविता में बगुला शोषक-उत्पीड़क वर्ग का प्रतीक है। वह घोर स्वार्थी एवं धोखेबाज लोगों का चरित्र प्रदर्शित करता है, जबकि मछली अतीव भोली सामान्य जनता और शोषित-पीड़ित वर्ग की प्रतीक है। हर कोई उसका शोषण करता रहता है।
प्रश्न 10.
'ट्रेन का टाइम नहीं है,मैं यहाँ स्वच्छन्द हैं।'ऐसा कहकर कवि ने क्या व्यंजित किया है?
उत्तर :
कवि जिस स्थान पर खड़ा है वहीं पास में रेल की पटरी बिछी हुई है, लेकिन उस पर रेल के आने-जाने का समय निश्चित नहीं है। यह रेल-प्रशासन में व्याप्त अव्यवस्था का ही दुष्परिणाम है। कवि का मानना है कि इस प्राकृतिक परिवेश में मैं पूरी तरह स्वच्छन्द हूँ। इसके आकर्षण के घेरे में घिर कर मुझे भी कहीं आना-जाना नहीं, इसलिए रेल के आने या जाने से मेरा कोई सरोकार नहीं है।
प्रश्न 11.
'सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ'-इससे कवि ने किनकी ओर संकेत किया है और क्या इच्छा व्यक्त की है?
उत्तर :
कवि सारस की स्वर-लहरी सुनकर संकेत करता है कि मैं भी उन सारसों के साथ आकाश में उडूं और जल-सिंचित हरे-भरे खेतों में खड़े सारस के जोड़ों को निहारूँ, जो आपस में प्रेम का व्यवहार करते हैं। उनकी प्रेम व्यवहार की मूक भाषा को सुनें और उनको नजदीक से छिप कर धीरे-धीरे देखू। इस प्रेम-दृश्य के प्रति जहाँ कवि की जिज्ञासा बढ़ जाती है वहीं आत्मीयता भी जागृत हो जाती है।
प्रश्न 12.
'चन्द्रगहना से लौटती बेर' कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि कहता है कि प्रकृति की गोद में बैठकर प्रकृति के उपादानों के द्वारा मनुष्य में प्रेम, अनुराग, आत्मीयता, मानसिक विश्राम जैसे आनंद का जितना अनुभव होता है, उतना नगर के हलचलपूर्ण जीवन में संभव नहीं है। प्रकृति की शान्त गोद में बैठकर मनुष्य को सम्पूर्ण वातावरण अनुरागमय दिखाई देता है।
प्रश्न 13.
"और पैरों के तले है एक पोखर"-कवि द्वारा पोखर के सौन्दर्य का वर्णन किस तरह किया गया
उत्तर :
कवि पोखर के सौन्दर्य का वर्णन करता है कि गांव के पास स्थित पोखर का पानी स्वच्छ है। उसके जल में वायु के स्पर्श से लहरें उठ रही हैं। उन लहरों से उसके तले में उगी भूरी घास हिल-डुल रही है। सूर्य का प्रतिबिंब पोखर के जल में पड़कर चाँदी का बड़ा गोल सा खंभा सा दिखाई पड़ता है। तालाब के किनारे पड़े पत्थर मानो लगातार पानी पीकर भी अपनी प्यास नहीं बुझा पा रहे हैं। पोखर में मछलियों का शिकार करने के लिए बगुला ध्यान-मुद्रा में खड़ा है। साथ ही काले माथे वाली चिड़िया पोखर के ऊपर मँडरा रही है। मछली दिखने पर वह उसे पीली चोंच में दबा कर आकाश में उड़ जाती है।
प्रश्न 14.
खेतों के प्राकृतिक दृश्यों को देखकर कवि क्या कल्पना करने लगता है? पठित कविता के आधार पर बताइये।
उत्तर :
चन्द्रगहना से लौटते समय कवि जब एक गाँव के खेतों के पास से गुजरता है तो वह वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों को देखकर कल्पना करने लगता है कि चना रूपी दूल्हा अपने सिर पर गुलाबी पगड़ी बाँधे सज-धजकर खड़ा है और सरसों रूपी दुल्हन हाथ पीले कर साथ में खड़ी है। फागुन मास रूपी गायक फाग गाता हुआ खड़ा है। पतली लचीली कमरवाली एवं हठीली अलसी भी सिर पर नीला फूल रखकर पास में खड़ी है। इस तरह कवि को ऐसा लगता है जैसे वहाँ पर स्वयंवर हो रहा है।
प्रश्न 15.
'पी रहे चुपचाप यानी, प्यास जाने कब बुझेगी!' पठित कविता के आधार पर उसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि को गाँव के पास एक पोखर दिखाई देता है। उसके किनारे छोटे-बड़े कई पत्थर पड़े हैं जो पोखर के जल का स्पर्श कर रहे हैं। उन्हें देखकर कवि कल्पना करता है कि वे पत्थर लगातार पानी पी रहे हैं, पत वे पोखर का पानी पीने में लगे हैं, परन्तु उनकी प्यास नहीं बुझ रही है। सामान्यतः काफी देर तक पानी पीने से प्यास शान्त हो जाती है, परन्तु उन पत्थरों की प्यास शान्त नहीं हो रही है। यह अत्यन्त आश्चर्य की बात है।
प्रश्न 16.
कवि केदारनाथ अग्रवाल के अनुसार चित्रकूट की पहाड़ियों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
कवि केदारनाथ अग्रवाल के अनुसार चन्द्रगहना से लौटते समय वे मार्ग में प्राकृतिक सौन्दर्य निहारने लगते हैं। कवि को सामने चित्रकूट की पहाड़ियाँ दिखाई देती हैं। वे पहाड़ियाँ आकार में चौड़ी हैं तथा कम ऊँची हैं। वे काफी दूर तक फैली हुई हैं। पहाड़ियाँ ऊबड़-खाबड़ हैं, अनगढ़ पत्थरों वाली हैं। उन पहाड़ियों के पास की भूमि अनुपजाऊ है। उन पर रीवा नामक काँटेदार कुरूप पेड़ खड़े हैं। उन कटीले झाड़ीनुमा पेड़ों के अलावा अन्य कोई वनस्पति नहीं उगी हुई है। इस कारण चित्रकूट की पहाड़ियों से घिरा वह भूभाग एकदम बंजर है।
प्रश्न 17.
'चन्द्रगहना से लौटती बेर' कविता में अलसी को हठीली, पतली और लचीली क्यों कहा गया है?
उत्तर :
अलसी का पौधा कुछ लम्बा एवं पतला होता है। वह हवा के झोंकों से इधर-उधर लहराता रहता है। वह दलहनी फसलों के मध्य में अपने आप ही उग आता है और अपनी जगह बना लेता है। स्वयंवर मण्डप में स्वयं ही बन ठनकर आयी कृशगात्री नायिका की तरह अलसी किसी की परवाह नहीं करती है। इसी आशय से कवि ने अलसी को क्रमशः पतली देहवाली, कमर की लचीली और हठीली कहा है।
प्रश्न 18.
'चन्द्रगहना से लौटती बेर' कविता में नगरीय एवं ग्रामीण संस्कृति में जो अन्तर वर्णित है, उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में ग्रामीण संस्कृति की अनेक विशेषताएं बतायी गई हैं। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण अनुराग से भरा रहता है, प्रकृति यहाँ पर नित्य नये-नये रूप धारण करती है। ग्रामीण कृषक सरल स्वभाव के होते हैं। यहाँ पर प्रेम, सौन्दर्य एवं शान्ति का प्रसार रहता है। इसके विपरीत नगरीय परिवेश में कृत्रिमता, स्वार्थपरता, प्रेम का कपटी रूप, लोभ-लालच एवं भागमभाग के कारण जीवन अशान्त रहता है। इस कारण गाँव प्रेम की उपजाऊ भूमि तथा नगर व्यापार का क्षेत्र बताया गया है।
प्रश्न 19.
'चन्द्रगहना से लौटती बेर' कविता के द्वारा कवि ने क्या सन्देश दिया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता के द्वारा कवि ने यह सन्देश दिया है कि गाँवों का प्राकृतिक वातावरण सब तरह से आकर्षणमय होता है। गाँवों में किसान अपने खेत-खलिहान में श्रमरत रहते हैं। उनके जीवन में प्रेम, आस्था, विश्वास एवं शान्ति रहती है। गाँवों में प्रकृति और संस्कृति में एकरूपता दिखाई देती है। अतएव हमें भी ग्रामीण परिवेश के अनुरूप जीवन ढालना चाहिए, अपनी प्राकृतिक सुषमा एवं सांस्कृतिक गरिमा की रक्षा करनी चाहिए।
प्रश्न 20.
'चन्द्रगहना से लौटती बेर' कविता में कवि ने किसकी अभिव्यक्ति की है?
उत्तर :
'चन्द्रगहना से लौटती बेर' कविता में कवि ने प्रकृति के प्रति अपना गहन अनुराग व्यक्त किया है। उसे वहाँ का प्राकृतिक परिवेश एवं खेत-खलिहान आदि का दृश्य सहज आकर्षित कर लेता है। इससे प्रस्तुत कविता में कवि ने उस सृजनात्मक कल्पना की अभिव्यक्ति की है जो साधारण चीजों में भी असाधारण सौन्दर्य देखती है तथा उस.सौन्दर्य को शहरीकरण की तीव्र गति के मध्य अपनी संवेदना में सुरक्षित रखना चाहती है। इस तरह कवि ने इसमें ग्राम्य-संस्कृति की अभिव्यक्ति की है।
कवि-परिचय - केदारनाथ अग्रवाल का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के कमासिन गाँव में सन् 1911 में हुआ। इनकी शिक्षा इलाहाबाद और आगरा विश्वविद्यालय से हुई। पेशे से वकील होते हुए भी इनका साहित्यिक आन्दोलन | से गहरा जुड़ाव रहा है। प्रारम्भ में ये मार्क्सवाद से प्रभावित रहे, फिर प्रगतिवादी धारा के प्रमुख की कविताओं में प्रकृति तथा जन-सामान्य के संघर्ष का सुन्दर चित्रण हुआ है। इनकी अनेक काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हैं। इनका निधन सन् 2000 में हुआ।
पाठ-परिचय - पाठ में केदारनाथ अग्रवाल की 'चन्द्रगहना से लौटती बेर' नामक कविता संकलित है। इसमें चन्द्रगहना नामक स्थान से लौटते समय कवि ने जिन खेत-खलिहानों, किसानों तथा खेतिहर मजदूरों को देखा, उनका चित्रण करते हुए वहाँ के प्राकृतिक परिवेश को देखकर अपनी भाव-विह्वलता व्यक्त की है। कवि स्वयं खेत की मेड़ पर बैठा, खेत में लहलहाती फसलों को तथा सुदूर तक फैली चित्रकूट की पहाड़ियों तथा उन पर उगे वृक्षों को निहारता रहा। इस प्रकार प्रस्तुत कविता में प्रकृति और संस्कृति का मनोरम चित्रण किया गया है।
भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न :
चन्द्रगहना से लौटती बेर
1. देख आया चन्द्र गहना।
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजकर खड़ा है।
पास ही मिलकर उगी है।
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली,
नीले फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
कह रही है जो छुए यह
हृदय का दान उसको।
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : हरे-भरे ग्रामीण परिवेश का चित्रण करते हुए कवि केदारनाथ कहते हैं कि मैं चन्द्रगहना नामक स्थान को देखकर लौट आया हूँ। अब मैं खेत की मेड़ पर अकेला बैठकर यहाँ के प्राकृतिक दृश्य देखता हूँ। इसी प्रसंग में त पर एक बालिश्त के बराबर चने का हरा, ठिगना अर्थात् छोटे कद का पौधा है जिसने छोटे-से सिर पर गुलाबी रंग की पगड़ी बाँधे खड़ा है, अर्थात् चने के पौधे के ऊपर छोटा-सा गुलाबी रंग का फूल खिल रहा है और उस फूल रूपी पगड़ी को पहनकर वह सजकर खड़ा है।
खेत के बीच में अलसी का पौधा है, वह हठीली नायिका की तरह है, उसका शरीर पतला और कमर लचकदार है, अर्थात् अलसी का पौधा पतला एवं लोचदार है तथा उसके सिर पर नीला फूल खिला हुआ है, मानो वह उस नीले फूल को सिर पर चढ़ाकर कह रही है कि जो इस फूल का स्पर्श करे, उसे मैं अपना हृदय दान कर दूंगी। आशय यह है कि अलसी का पौधा कृशगात्री नायिका के समान अलंकृत है तथा स्पर्श करने के लिए अपने प्रेमी को आकृष्ट कर रही है।
प्रश्न 1. कविता के आधार पर चने के पौधे की रूप-सज्जा का वर्णन कीजिए।
प्रश्न 2. चने के पौधे को ठिगना क्यों कहा गया है?
प्रश्न 3. कवि ने अलसी को हठीली क्यों कहा है?
प्रश्न 4. कवि ने अलसी के किस रूप की कल्पना की है?
उत्तर :
1. चने का पौधा एक बालिश्त बराबर ऊँचा है। उस पर गुलाबी रंग के फूल आये हैं। इससे ऐसा लगता है कि कोई दूल्हा गुलाबी रंग की पगड़ी पहने हुए खड़ा हो अथवा गुलाबी साफा सिर पर लपेटकर बन-ठन कर खड़ा हो।
2. चने का पौधा अन्य फसली पौधों से आकार में छोटा होता है। यह पौधा झाड़ीदार होता है, छोटी-छोटी टहनियों वाला होता है। इसकी ऊँचाई कम तथा चौड़ाई-मोटाई ज्यादा होती है। इसी कारण इसे कवि ने ठिगना कहा है।
3. अलसी चने के ठिगने पौधे के पास जबरदस्ती उग आयी है। हवा के झोंकों के कारण बार-बार झुक जाने पर भी खड़ी होकर लहराने लगती है। वह विपरीत स्थितियों में खड़ी रहने की पूरी कोशिश करती है। इसी कारण कवि ने उसे हठीली कहा है।
4. कवि ने अलसी के पौधे को देखकर कल्पना की है कि वह पतले शरीर वाली, कोमलांगी एवं सिर पर नीले फूल का जूड़ा बाँधकर खड़ी है। वह अपने रूप-सौन्दर्य पर गर्व करने वाली नायिका के समान है, जो कि अपने शरीर का स्पर्श करने वाले को समर्पित होने की शर्त लगाकर प्रेमी को आकृष्ट कर रही है।
2. और सरसों की न पूछो
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिये हैं
ब्याह-मण्डप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे
देखता हूँ मैं स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है।
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है
और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवि वर्णन करते हुए कहता है कि खेत में उगी हुई सरसों अब काफी बड़ी हो गई है और उस पर पीले फूल आ गये हैं। सरसों पर युवती का आरोप करते हुए कवि कहता है कि सरसों अब समझदार युवती हो गई है, अब उसने विवाह के लिए हाथ पीले कर लिये हैं और वह विवाह-मण्डप में आ गयी है। फाल्गुन का पास मानो फाग गाता हुआ आ गया है, उससे कवि को कुछ-कुछ आश्चर्य भी हो रहा है कि क्या खेत में कोई स्वयंवर हो रहा है? सरसों के खेतों की पीली आभा के रूप में प्रकृति का प्रेम से भरा हुआ आँचल हिल रहा है, पीली सरसों के खेत लहरा रहे हैं। इस तरह इस एकान्त स्थान पर प्रेम का प्रसार हो रहा है।
कवि कहता है कि व्यापारिक नगर से दूर इस गाँव के खेतों में प्रेम-भाव की प्रिय भूमि अधिक उपजाऊ है, यहाँ प्रेम-भाव का व्यवहार अधिक दिखाई देता है। उस खेत या गाँव के पैरों तले अर्थात् नीचे एक पोखर है, उसमें जल की छोटी-छोटी लहरें उठ रही हैं। उस पोखर के नीचे तले में जो घास उगी हुई है, वह भूरी है तथा वह भी छोटी-छोटी लहरों के साथ हिल-डुल रही है। अर्थात् ग्रामीण परिवेश का प्राकृतिक वातावरण अतीव मनोरम है।
प्रश्न 1. सरसों के पौधों को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है?
प्रश्न 2. 'देखता हूँ मैं स्वयंवर हो रहा है' कवि ने ऐसा किस कारण कहा है?
प्रश्न 3. 'प्रकृति का अनुराग-अंचल' से कवि का आशय क्या है?
प्रश्न 4. भूरी घास में लहरियाँ क्यों उठ रही हैं?
उत्तर :
1. सरसों पर पीले फूल खिल रहे थे। उसे देखकर कवि ने ऐसी मुग्धा नायिका पर आरोप किया है जो अब यौवन से परिपूर्ण हो गयी है और मिलन की चाह लिए हुए अपने हाथ पीले करके विवाह-मण्डप में आ गई है।
2. खेतों में अलसी, चने और सरसों के पौधों पर फूल आ गये हैं, उनकी फसल अपनी-अपनी सज-धज के साथ खड़ी है। फाग भी गाया जा रहा है। चना का पौधा नायक तथा सरसों के पौधे सुसज्जित नायिका के समान लग रहे हैं। इसलिए कवि को लगता है कि वहाँ पर स्वयंवर हो रहा है।
3. कवि को प्रकृति का आँचल अनुराग-पूरित प्रतीत होता है। उसे लगता है कि चना दूल्हा है और सरसों दुलहिन है। अलसी अल्हड़ नायिका है। इस तरह सभी प्रेम के आनन्द में मग्न दिखाई पड़ रहे हैं।
4. पोखर के आसपास हवा चलने से उसके पानी में लहरें उठ रही हैं। इस कारण पोखर के तल में उगी हुई भूरी घास भी उन लहरों के साथ लहरा रही है अर्थात् हिल-डुल रही है और उसमें लहरियाँ उठ रही हैं।
3. एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खम्भा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!
चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
चट दबाकर चोंच में।
नीचे गले के डालता है।
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में!
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवि गाँव के पास पोखर आदि प्राकृतिक दृश्यों एवं बगुला आदि पक्षियों को देखकर कहता है कि गाँव के नीचे एक बड़ा पोखर है। उसके किनारे पर चाँदी का-सा एक बड़ा गोल खम्भा है जो कि देखने पर करता है। उस पोखर के किनारे कई पत्थर पडे हए हैं जो पोखर का पानी चुपचाप पी रहे हैं। वे लगातार पानी पी रहे हैं, न जाने उनकी प्यास कब शान्त होगी? यह आश्चर्य की बात है। उस पोखर में एक बगुला अपनी टाँग पानी में डुबाए चुपचाप खड़ा है।
जब वह चंचल मछली को देखता है तो अपनी ध्यान-निद्रा (नकली नींद) को त्याग कर तुरन्त उस मछली को चोंच में दबाकर अपने गले में डालता है, अर्थात् उसका आहार करता है। वहीं पर एक काले माथे वाली चालाक चिड़िया अपने सफेद पंखों के झपाटे मारकर जल से भरे पोखर के मध्य भाग पर टूट पड़ती है, अर्थात् शीघ्रता से झपट्टा मारकर आक्रमण करती है और एक चंचल सफेद छोटी मछली को अपनी पीली चोंच में दबाकर दूर आकाश में उड़ जाती है। आशय यह है कि गाँव के पोखर पर। शिकारी पक्षी अपने आहार के रूप में मछलियों को पकड़ लेती है।
प्रश्न 1. पोखर के चाँदी का खम्भा किसे कहा गया है? बताइए।
प्रश्न 2. 'प्यास जाने कब बुझेगी!' कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
प्रश्न 3. बगुला ध्यान-निद्रा में जल में क्यों खड़ा है?
प्रश्न 4: काले माथे की चिड़िया कहाँ से और किस पर टूट पड़ती है?
उत्तर :
1. पोखर पर सूर्य एवं उसकी किरणों का ऐसा प्रतिबिम्ब पड़ रहा है, जो कि दूर से चाँदी का खम्भा-सा प्रतीत होता है, अर्थात् चाँदी की तरह चमकीला और गोल भी दिखाई दे रहा है।
2. तालाब के किनारे पर छोटे-छोटे कई पत्थर पड़े हुए हैं। उन पत्थरों को पोखर का पानी लगातार छू रहा है। इसी सम्बन्ध में कवि कहता है कि वे पत्थर लगातार पानी पीते जा रहे हैं, परन्तु उनकी प्यास नहीं बुझ रही है। पता नहीं कब इनकी प्यास बुझेगी!
3. बगुला पानी में चुपचाप खड़ा है ताकि मछलियाँ निर्भय होकर उसके पास आवें और वह उन्हें पकड़कर अपना आहार बना ले। इस तरह मछलियों को पकड़ने के लिए ही बगुला ध्यान-निद्रा में जल में खड़ा है।
4. काले माथे वाली चिड़िया आकाश से आकर पानी में तैरती मछली पर झपट्टा मारकर उसे चोंच में दबाकर आकाश में उड़ जाती है।
4. औ' यहीं से भूमि ऊँची है जहाँ से रेल की पटरी गई है। ट्रेन का टाइम नहीं है। मैं यहाँ स्वच्छन्द हूँ, जाना नहीं है। चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ दूर दिशाओं तक फैली हैं। बाँझ भूमि पर इधर-उधर रीवा के पेड़ काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवि वर्णन करता है कि गाँव के उस पोखर के पास से ही भूमि कुछ ऊँची है, उस भूमि पर से रेल की पटरी गई है, अर्थात् रेल-लाइन बिछी हुई है। रेलगाड़ी के आने-जाने का समय निश्चित नहीं है और मुझे भी कहीं नहीं जाना है, मैं स्वतन्त्र होकर यहाँ प्राकृतिक सुषमा देख रहा हूँ। इस स्थान के पास में चित्रकूट की अनगढ़, चौड़ी एवं कुछ कम ऊँची पहाड़ियाँ दूर तक फैली हुई हैं। आशय यह है कि पास का क्षेत्र छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है और उसकी बंजर भूमि पर जो काँटेदार एवं कुरूप पेड़ हैं, वहाँ पर रीवा नामक काँटेदार पेड़ सर्वत्र दिखाई देते हैं। कवि बताना चाहता है कि चित्रकूट के आसपास की पहाड़ियों पर काँटेदार झाड़ियाँ एवं पेड़ हैं तथा वह क्षेत्र उपजाऊ है।
प्रश्न 1. कवि ने अपने को स्वच्छंद क्यों कहा है?
प्रश्न 2. चित्रकूट की पहाड़ियों को अनगढ़ क्यों कहा गया है?
प्रश्न 3. पहाड़ियों के आसपास की भूमि को बाँझ क्यों कहा गया है?
प्रश्न 4. रीवा के वृक्षों को कवि ने कुरूप क्यों कहा है?
उत्तर :
1. कवि ने अपने आप को स्वच्छंद इसलिए कहा है, क्योंकि अभी रेलगाड़ी का समय नहीं हुआ है और उसे अन्य कहीं जाना नहीं है।
2. चित्रकूट की पहाड़ियाँ स्वाभाविक अर्थात् प्रकृति द्वारा निर्मित हैं। वे मानव द्वारा निर्मित नहीं हैं। कुदरती बनावट के कारण वे पहाड़ियाँ ऊँची-नीची, ऊबड़-खाबड़ और अव्यवस्थित हैं।
3. पहाड़ियों के आसपास की भूमि को बाँझ इसलिए कहा गया है, क्योंकि वह पथरीली होने के कारण अनुपजाऊ है। वहाँ केवल अपने आप उगे कुछ झाड़-झंखाड़ खड़े हुए हैं।
4. रीवा नामक वृक्ष आकार में छोटे एवं झाड़ीदार होते हैं। उन पर पत्तियाँ भी छोटी-छोटी तथा भूरी होती हैं, साथ ही काँटे भी. अधिक होते हैं। वह छायादार भी नहीं होता है। इसीलिए कवि ने उसे कुरूप कहा है।
5. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों, टिरटों;
मन होता है -
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवि कहता है कि चित्रकूट के समीप की पहाड़ियों पर जब तोते का मीठा-मीठा रस टपकाता हुआ, टें टें 2 टें कां स्वर सुनाई देता है, तो अतीव आनन्द की अनुभूति होती है। इसी प्रकार जब वन-भाग की हरियाली को चीरता हुआ सारस का टिरटों-टिरटों स्वर उठता-गिरता अर्थात् कभी मन्द और कभी प्रखर सुनाई देता है, तो मन होता है कि उस सारस के साथ मैं भी मुक्त गगन में उड़ जाऊँ और प्रत्येक पानी लगते खेत में जो सारस की जोड़ी रहती है उस सारस की जोड़ी की सच्ची प्रेम-भरी बातें चुपचाप सुनता रहूँ।
प्रश्न 1. कवि को सुग्गे का स्वर कैसा लगता है?
प्रश्न 2. सारस का स्वर कैसा प्रतीत होता है?
प्रश्न 3. सारस का स्वर सुनकर कवि के मन में क्या इच्छा होती है?
प्रश्न 4. 'वनस्थली का हृदय चीरता हुआ' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
1. कवि को सुग्गे का स्वर कानों में मीठा रस टपकाता हुआ-सा लगता है, अर्थात् तोते का स्वर अतीव कर्णप्रिय और सरस लगता है।
2. सारस का टिरटों-टिरटों का स्वर कहीं दूर वन-भाग से कभी तेज और कभी मन्द सुनाई देता है। वह स्वर ऐसा लगता है कि मानो सुनसान जंगल का हृदय चीरता हुआ आया हो।
3. सारस का स्वर सुनकर कवि के मन में इच्छा होती है कि वह पंख फैलाकर सारस के साथ उड़े और खेतों में जहाँ सारसों की जोड़ी मधुर वार्तालाप करती है, उसे सुनता रहे तथा उनके प्रेमालाप का आनन्द प्राप्त करे।
4. 'वनस्थली का हृदय चीरता हुआ' से कवि का आशय है कि वन में पूरी तरह से गुंजाता हुआ सुग्गे और सारस का स्वर।