RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11 सवैये

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये

RBSE Class 9 Hindi सवैये Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है? 
उत्तर : 
ब्रजभूमि के प्रति कवि के मन में गहरा प्रेम है। वह इस जन्म में ही नहीं, अगले जन्म में भी ब्रजभूमि में ही रहना चाहता है, चाहे उसे ईश्वर ग्वाला बनाएँ, पक्षी बनाएँ, पशु बनाएँ या फिर पत्थर बनाएँ। वह इन रूपों के माध्यम से श्रीकृष्ण और.उनकी प्रिय वस्तुओं का ही सामीप्य पाना चाहता है। 

प्रश्न 2.
कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण है? 
उत्तर : 
कवि रसखान के आराध्य श्रीकृष्ण ने ब्रजभूमि के वन, बाग़ और तालाबों में गोप-गोपियों के साथ अनेक लीलाएँ कीं। इसीलिए कवि उन सभी स्थलों को नजदीक से निहारकर धन्य हो जाना चाहता है। 

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प्रश्न 3. 
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्यौछावर करने को क्यों तैयार है? 
उत्तर : 
कवि के आराध्य कृष्ण हैं। इसलिए कवि अपने आराध्य की प्रत्येक प्रिय चीज पर सर्वस्व न्यौछावर करना चाहता है। यही कारण है कि वह श्रीकृष्ण की लाठी और कम्बल के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार है। 

प्रश्न 4. 
सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए। 
उत्तर :
सखी ने गोपी से कृष्ण का वैसा रूप धारण करने के लिए आग्रह किया, जिसमें सिर पर मोरपंखों का मुकुट तथा गले में घुघुची की माला धारण कर रखी हो। शरीर पर पीला वस्त्र हो तथा हाथ में लाठी लेकर ग्वाल-बालों के साथ वन में गायों के पीछे चल रहे हों। अर्थात् रसिक स्वरूप लीलाधारी ग्वाल रूप धारण करने का आग्रह किया था। 

प्रश्न 5. 
आपके विचार में कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में श्रीकृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है? 
उत्तर :
मेरे विचार से कवि (रसखान) श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। वे किसी भी सूरत में अपने आराध्य का सान्निध्य चाहते हैं। इसमें ही उनकी भक्ति-भावना तृप्त होती है। इसलिए वे पशु-पक्षी और पहाड़ बनकर भी अपने आराध्य का सामीप्य पाना चाहते हैं। 

प्रश्न 6. 
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आपको क्यों विवश पाती हैं? 
उत्तर : 
श्रीकृष्ण की मुरली की तान अतीव मधुर एवं मनमोहक है। गोपियाँ उससे आकृष्ट होकर सब कुछ भूल जाती हैं। परन्तु श्रीकृष्ण के मुखमण्डल की मोहक मुस्कान और भी मादक लगती है। इस कारण वे स्वयं पर नियन्त्रण नहीं रख पाती हैं तथा विवश होकर उनकी वशीभूत हो जाती हैं। 

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प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए 
(क)कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं। 
उत्तर : 
ब्रजभूमि के करील कुंजों में रसिक शिरोमणि श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीलाएँ की थीं, वहाँ पर उन्होंने स्वैर-विहार किया था। इस कारण आराध्य के लिए वे प्रिय-क्षेत्र थे। अतएव उनके प्रति अनन्य भक्ति रखने से कवि उन करील-कुंजों पर सैकड़ों स्वर्ण-महलों को न्यौछावर करने की बात कहता है।
 
(ख) माइ रीवा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै। 
उत्तर : 
कोई गोपी कृष्ण की मधुर मोहिनी मुस्कान पर इतनी मुग्ध है कि उससे कृष्ण की मोहकता झेली नहीं जाती। वह पूरी तरह से उस पर समर्पित हो गयी है।
 
प्रश्न 8. 
'कालिन्दी-कूल कदम्ब की डारन' में कौन-सा अलंकार है? 
उत्तर : 
इसमें 'क' वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलकार है। 

प्रश्न 9. 
काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी। 
उत्तर : 
भाव-सौन्दर्य-गोपी का मुरली के प्रति ईर्ष्या भाव है। इस कारण वह कृष्ण की वेशभूषा धारण करना चाहती हुई भी मुरली को होंठों से नहीं लगाना चाहती है। इसमें गोपी का सौतिया भाव व्यक्त हुआ है। शिल्प-सौन्दर्य-'मुरली-मुरलीधर' तथा 'अधरान अधरा न' में शब्द (वर्ण समूह) की सार्थक आवृत्ति होने से यमक अलंकार है। वैसे 'म', 'ध' और 'र' वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार भी है। ब्रजभाषा का लालित्य और सवैया छन्द की गति-यति प्रशस्य है। 

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रचना और अभिव्यक्ति - 

प्रश्न 10. 
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को व्यक्त कीजिए। 
उत्तर : 
मैं अपनी मातभमि से अत्यधिक लगाव रखता हैं। मेरा जन्म जयपर के आमेर रोड पर बसे पुरानी आबादी क्षेत्र में हुआ। इसी मार्ग पर सुन्दर जल-महल, कनक वृन्दावन, यज्ञ-स्तूप आदि क्षेत्र हैं, जहाँ पर देशी-विदेशी पर्यटक आते रहते हैं। मातृभूमि राजस्थान वीरों की भूमि रही है। यहाँ की संस्कृति एवं परम्पराएँ अपने आप में अनुपम मानी जाती हैं। अतिथियों की सेवा करना यहाँ पवित्र कर्तव्य माना जाता है। आमेर की पहाड़ी पर अनेक तरह के हरे-भरे वृक्ष हैं, पहाड़ी औषधियाँ मिलती हैं, नाहरगढ़ तथा आमेर का पुराना किला है, पुराने कई ऐतिहासिक स्थल हैं। यहाँ की जलवायु भले ही शुष्क है, परन्तु स्वास्थ्य के अनुकूल है। इन सभी विशेषताओं के कारण मैं मातृ भूमि से अतिशय प्रेम करता हूँ और इसकी खुशहाली के लिए सदा तत्पर रहता हूँ।

RBSE Class 9 Hindi सवैये Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
रसखान अगले जन्म में पत्थर बनना चाहते हैं 
(क) गोवर्धन पर्वत की शोभा बढ़ा सकें। 
(ख) कृष्ण उन्हें अंगुली पर धारण कर सकें। 
(ग) कृष्ण का हित साध सकें। 
(घ) ब्रज की रक्षा कर सकें। 
उत्तर : 
(ख) कृष्ण उन्हें अंगुली पर धारण कर सकें। 

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प्रश्न 2. 
रसखान अपनी आँखों से देखना चाहते हैं 
(क) श्रीकृष्ण की लीलाओं को। 
(ख) ब्रज प्रदेश के वन, बाग और तालाबों को। 
(ग) ग्वाल-बालों की क्रीड़ाओं को। 
(घ) गोवर्धन पर्वत के सौन्दर्य को। 
उत्तर : 
(ख) ब्रज प्रदेश के वन, बाग और तालाबों को। 

प्रश्न 3. 
श्रीकृष्ण के सब स्वांग करने को तैयार है 
(क) श्रीदामा 
(ख) हलधर
(ग) एक अनुरागिनी गोपी 
(घ) राधा। 
उत्तर : 
(ग) एक अनुरागिनी गोपी 

प्रश्न 4. 
गोपी अपने कानों में अंगुली देना चाहती है 
(क) श्रीकृष्ण के वश में हो जाने के खतरे के कारण। 
(ख) श्रीकृष्ण की बाँसुरी की मधुर आवाज न सुनने के कारण।
(ग) श्रीकृष्ण से रूठ जाने के कारण।
(घ) श्रीकृष्ण की मनमोहक बातों के प्रति आकर्षित न हो जाने के कारण। 
उत्तर : 
(क) श्रीकृष्ण के वश में हो जाने के खतरे के कारण। 

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बोधात्मक प्रश्न -

प्रश्न 1. 
"मानुष हों तो वही रसखानि"-कहते हुए रसखान ने जीवन की सार्थकता किसमें मानी है? 
उत्तर : 
भक्त-कवि रसखान ने अपनी अभिलाषा व्यक्त करते हुए बतलाया है कि मनुष्य योनि में जन्म मिलने पर हर हालत में ईश्वर-भक्ति में मन लगाना चाहिए। यदि मनुष्य-योनि के अतिरिक्त किसी अन्य योनि में भी जन्म मिले, तो भी आराध्य की भक्ति करने का अवसर मिलना चाहिए अथवा भक्ति में निमग्न रहने का प्रयास करना चाहिए। अतः रसखान ने भक्ति-भावना तथा आराध्य की समीपता प्राप्त करने में ही जीवन की सार्थकता मानी है। 

प्रश्न 2. 
इन्द्र को पुरन्दर क्यों कहा जाता है? 
उत्तर : 
वैदिक विधान के यज्ञों में जिसका हवन करते समय अत्यधिक आह्वान किया जाता है, उसे पुरन्दर कहते हैं, अथवा यज्ञ करते समय आचार्य जिसके नाम को अनेक बार यज्ञ-रक्षार्थ पुकारते हैं, उसे पुरन्दर कहते हैं। यह इन्द्र का एक नाम है। इन्द्र को पुरन्दर इसलिए भी कहा गया है कि वह शत्रुओं के पुरों (नगरों) को शीघ्र नष्ट करने वाला देवराज है। 

प्रश्न 3. 
'स्वांग' किसे कहते हैं? 
उत्तर : 
दसरे के रूप. वेश-भषा तथा हाव-भाव की नकल करना. अर्थात वैसा ही रूप धारण करना स्वांग कहलाता है। जैसे नाटक में उसके मूल पात्रों के स्वरूप, वेशभूषा, वस्त्र-आभूषण आदि को अपनाया जाता है। खेल-तमाशे में भी अनेक रंग-बिरंगी पोशाकों एवं मुखौटे के द्वारा जो रूप धारण किये जाते हैं, उन्हें स्वांग कहते हैं। 

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प्रश्न 4. 
'काननि दै अंगुरी.............मुसकानि सम्हारी न जैहै'-कथन से मुरली की तान और मुस्कान में से किसे विशिष्ट माना गया है और क्यों? 
उत्तर : 
श्रीकृष्ण की मुरली की तान मधुर मुस्कान में से मधुर मुस्कान को विशिष्ट माना गया है. क्योंकि मरली की तान के प्रति गोपी का ईर्ष्यात्मक भाव होने के कारण वह उसे सुनने की बजाय अपने कानों में अंगुली डाल लेती है, परन्तु वह मधुर. मुस्कान की ओर खिंची चली जाती है। 

प्रश्न 5. 
ब्रजभूमि के प्रति रसखान के प्रेम का वर्णन कीजिए। 
उत्तर : 
रसखान ने ब्रजभूमि के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति अनेक रूपों में की है। अगले जन्म में मनुष्य बनने पर गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच, पशु बनने पर नन्द की गायों के बीच, पत्थर बनने पर गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनकर, पक्षी बनने पर कदंब की डालों के बीच रहने की कामना की है। इस प्रकार वे ब्रज के वन, बाग और तड़ाग को देखने तथा वहीं रहने की तीव्र लालसा रखकर ब्रज के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति करते हैं। 

प्रश्न 6. 
रसखान श्रीकृष्ण की भूमि में क्या-क्या बनकर जन्म लेना चाहते हैं? 
अथवा 
कवि रसखान की भावी जन्म में क्या बनने की इच्छा है? 
उत्तर : 
वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित होकर रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त बन गये थे। इस कारण वे भावी जन्म में भी अपने आराध्य का सामीप्य पाने के लिए अनेक रूपों में ब्रज में रहना चाहते हैं। वे मनुष्य बनकर गोकुल गाँव में बसना चाहते हैं, गाय बनने पर नन्द की गायों के मध्य रहना चाहते हैं, तो पत्थर बनने पर श्रीकृष्ण के हाथों का स्पर्श पाने वाला पाषाण बनना चाहते हैं और पक्षी बनने पर यमुना के तटवर्ती कदम्ब के वृक्षों पर कलरव करना चाहते हैं। अर्थात् वे हर योनि में और हर जन्म में अपने आराध्य का सामीप्य पाना चाहते हैं। 

प्रश्न 7. 
'टेरि कहाँ सिगर ब्रज लोगनि' गोपी पुकार कर ब्रजवासियों से क्या कहना चाहती है? 
उत्तर : 
गोपी पुकार कर ब्रजवासियों से यह कहना चाहती है कि यदि उस कृष्ण की बंशी की मधर ध्वनि मेरे कानों में पड़ गयी तो फिर चाहे मुझे कोई कितना भी समझाए मेरी भक्ति किसी भी स्थिति में कम नहीं होगी। मैं अपने आप में कृष्ण की बंशी के प्रति दीवानी हो जाऊँगी।
 
प्रश्न 8.
रसखान के काव्य-सौन्दर्य का संक्षेप में निरूपण कीजिए। 
उत्तर :
संकलित काव्यांश में कवि रसखान ने भाव पक्ष की दृष्टि से अपने आराध्य श्रीकृष्ण और उनकी लीला भूमि ब्रज के प्रति अगाध प्रेम व्यक्त किया है। वे अगले जन्म में भी उन्हें चाहे जो योनि मिले, कृष्ण से सम्बन्धित वस्तुओं का ही साथ चाहते हैं। साथ ही कवि ने गोपियों के प्रेम-भाव का हृदयस्पर्शी रूप में वर्णन किया है। गोपी द्वारा कृष्ण रूप धारण करना, बंशी के प्रति रोष व्यक्त करना, उनकी मधुर मुस्कान पर न्यौछावर हो जाना उसकी प्रेम की पवित्रता तथा दनिष्ठता की और संकेत करता है। कला पक्ष की दृष्टि से ब्रज भाषा का ललित प्रयोग हुआ है। छन्द सवैया सुगेय, उचित गति-यति से मण्डित है। इस तरह रसखान का काव्य सौन्दर्य दोनों दृष्टियों से समृद्ध है। 

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प्रश्न 9. 
रसखान द्वारा रचित एवं पाठ में संकलित सवैयों का प्रतिपाद्य बताइए। 
उत्तर : 
रसखान मुसलमान होकर भी परम वैष्णव भक्त थे। वे वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित थे। उनके संकलित सवैयों में यह अभिव्यक्त हुआ है कि रसखान हर दशा में श्रीकृष्ण से सम्बन्धित वस्तुओं से लगाव रखते रहे। वे चाहे किसी भी योनि में या किसी भी रूप में जन्म मिले, सदैव बृजभूमि में ही रहना चाहते थे। वे अपने आराध्य के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध थे तथा आठों सिद्धियों एवं नवों निधियों के सुख को नन्द बाबा की गाय चराने में न्यौछावर करना चाहते थे। इस प्रकार प्रस्तुत सवैयों का प्रतिपाद्य आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण भाव तथा रागानुगा प्रेमाभक्ति की सुन्दर व्यंजना करना रहा है। 

प्रश्न 10. 
गोपी श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती है? 
उत्तर : 
गोपी में स्त्री-सुलभ सौतेया डाह दिखाई देता है। श्रीकृष्ण हर समय मुरली को अधरों पर लगाये रहते हैं। वे मुरली वादन के समय गोपियों की ओर नहीं देखते हैं और मुरली वादन में ही लीन रहते हैं। इससे गोपियाँ सोचती हैं कि श्रीकृष्ण उनसे ज्यादा मुरली को चाहते हैं। इस कारण उनके और प्रियतम श्रीकृष्ण के बीच में मुरली बाधक बन गई है तथा उनका सरस सामीप्य नहीं मिलता है। गोपी ऐसा सोचकर तथा सौतिया डाह से ग्रस्त होकर मुरली को अपने अधरों पर नहीं रखना चाहती है। 

प्रश्न 11. 
गोपियों एवं ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण ने किस प्रकार अपने वश में कर रखा था? 
उत्तर : 
श्रीकृष्ण का रूप-सौन्दर्य अतीव आकर्षक है। वे जब अटारी पर चढ़कर गोधन गीत गाते हैं तथा मुरली की तान छेड़ते हैं, तब उनके गायन-वादन से सभी ब्रजवासी उत्साहित हो जाते हैं। फिर वे अपनी मधुर मुस्कान से जिसे भी देखते हैं, उस पर जादू का-सा प्रभाव हो जाता है। इस प्रकार गोपियों एवं ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण ने अपने रूप-सौन्दर्य, मधुर मुस्कान तथा गायन-वादन से अपने वश में कर रखा था। 

प्रश्न 12. 
श्रीकृष्ण ने किस कारण गोवर्धन पर्वत को उठाया था? 
उत्तर : 
इन्द्र को वर्षा का देवता तथा बादलों का स्वामी बताया जाता है। एक बार ब्रजवासियों ने इन्द्र का पूजन न करके उसकी उपेक्षा की। इससे नाराज होकर इन्द्र ने ब्रज में मूसलाधार वर्षा की, जिससे चारों ओर बाढ़ आ गई। तब अतिवृष्टि और बाढ़ में डूबते-बहते ब्रजवासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया तथा उससे इन्द्र का प्रकोप शान्त किया। 

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प्रश्न 13. 
पठित सवैयों के आधार पर रसखान की भक्ति-भावना को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
भक्तिकाल में कृष्णभक्त कवियों ने सख्य भाव एवं माधुर्य भाव की भक्ति को प्राथमिकता दी। वल्लभ सम्प्रदाय में रागानुगा प्रेमाभक्ति की प्रधानता मानी जाती है। रसखान वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित थे। अतः उन्होंने भी आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति रागानुगा भक्ति प्रकट की है। उनका यह अनुराग न केवल अपने आराध्य के प्रति, अपितु समस्त कृष्ण-भूमि के प्रति व्यक्त हुआ है। इसी से वे प्रेम की तन्मयता, भाव-विह्वलता और प्रेमासक्ति से अपनी भक्ति-भावना प्रकट करते हैं। इस तरह रसखान की माधुर्य भाव की प्रेमाभक्ति मार्मिकंता एवं सरसता सहित व्यक्त हुई है। 

प्रश्न 14.
गोपी ने अपनी संखी के कहने पर श्रीकृष्ण का स्वांग (स्वरूप)धारण करने का निश्चय क्यों किया? 
उत्तर :
सखी ने गोपी से प्रियतम श्रीकृष्ण का स्वांग (स्वरूप) धारण करने के लिए इसलिए कहा कि अतिशय प्रेम-अनुराग रखने पर भी श्रीकृष्ण उसकी ओर नहीं देखते थे। वह अपनी ऐसी उपेक्षा नहीं सह पा रही थी। वह श्रीकृष्ण का स्वरूप धारण कर उनके प्रेम में डूब जाना चाहती थी और प्रियतम को अपनी ओर आकृष्ट करना चाहती थी। उसे वैसा स्वरूप धारण करना अच्छा भी लग रहा था, वह प्रियतम का भावता रूप था। इसी से गोपी ने वैसा स्वांग धारण करने का निश्चय किया। 

प्रश्न 15. 
गोपियों को श्रीकृष्ण का कौन-सा गीत अच्छा लगता है तथा वे ब्रजवासियों से क्या कहती हैं? 
उत्तर : 
गोपियों को श्रीकृष्ण के द्वारा सुन्दर-मधुर तान के साथ गाया जाने वाला गोधन नामक गीत अच्छा लगता है। वह गीत मुरली की धुन पर गाये जाने पर अत्यधिक मोहक लगता है और उससे गोपियाँ कृष्ण के वश में हो जाती हैं। तब गोपियाँ गाँव वालों से कहना चाहती हैं कि कृष्ण की मरली की मधर तान और मोहक मुस्कान का ऐसा मोहक जादू है कि उसकी मादकता से बचना कठिन है। कोई भी उनकी मधुर तान एवं गोधन गीत को सुनकर सुध-बुध खो बैठता है। 

प्रश्न 16. 
"या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।" इसमें निहित भाव एवं शिल्प सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
गोपी मानती है कि प्रियतम कृष्ण मुरली के वश में होकर उसकी ओर नहीं निहारते हैं। वह मुरली गोपी को सौत की तरह कष्टदायी लगती है। इसीलिए ईर्ष्या-भाव या सौतिया-डाह से वह मुरली को अपने होंठों पर नहीं लगाना चाहती।। इस पंक्ति में 'मुरली-मुरलीधर' तथा 'अधरान धरी अधरा न' में शब्दगत सार्थक-निरर्थक आवृत्ति होने से यमक अलंकार का शिल्प-सौन्दर्य दर्शनीय है। वर्णावृत्ति से इसमें अनुप्रास अलंकार भी है। 

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प्रश्न 17.
'काननि दै अंगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि...।' इत्यादि कथन के द्वारा गोपी अपनी सहेली से क्या कहती है? 
उत्तर : 
कोई गोपी अपनी सहेली से कहती है कि जब श्रीकृष्ण मन्द-मधुर तान में मुरली बजायेंगे, तो मैं अपने कानों पर अंगुली रख दूँगी ताकि मुरली का मधुर-मादक स्वर मुझ पर अपना जादू न चला सके। जब से श्रीकृष्ण ने मुरली की मधुर तान छेड़ी है और गोधन गीत गाया है, तब से सारे ब्रजवासी मानो उनके भक्त हो गये हैं तथा उनकी जबान पर केवल वंशी की चर्चा छायी रहती है। यदि मेरे कानों में मुरली की मधुर तान पड़ गई तो मेरा मन विवश हो जायेगा और मैं प्रियतम कृष्ण के मुख की मोहिनी मुस्कान से स्वयं को संभाल नहीं पाऊँगी।

सवैये Summary in Hindi 

कवि-परिचय - कृष्णभक्त कवियों में प्रमुख स्थान रखने वाले कवि रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था। ये पठान कुल में सन् 1548 में उत्पन्न हुए थे। रसखान इनका उपनाम था। इन्होंने कृष्णभक्ति में लीन रहकर काव्य साधना की। गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा लेकर ये वैष्णव-भक्त बन गये थे। कृष्ण-भक्तों की संगति से इनका लौकिक-प्रेम कृष्ण-प्रेम में बदला। इनका निधन सन् 1628 के लगभग हुआ। इनकी तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं - प्रेम वाटिका, सुजान रसखान और राग रत्नाकर। 'रसखान रचनावली' नाम से इनकी रचनाओं को संकलित किया गया है। 

पाठ-परिचय - पाठ में रसखान द्वारा रचित चार सवैये संकलित हैं। प्रथम एवं द्वितीय सवैये में कवि ने अपने आराध्य कृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अपना अनुराग एवं समर्पण भाव व्यक्त किया है। तीसरे सवैये में श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य के प्रति गोपियों की मुग्धता का चित्रण किया गया है। अन्तिम सवैये में मुरली की धुन और उनकी मुसकान के अचूक प्रभाव का तथा गोपियों की विवशता का वर्णन हुआ है। इस तरह संकलित सवैयों में कवि रसखान की आराध्य के प्रति अतीव सामीप्य, प्रेमाभक्ति तथा उनकी लीलाओं के प्रति मधुर-भाव की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। 

भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न 

सवैये 

1. मानुष हाँ तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। 
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन। 
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन। 
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिली कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • मानुष = मनुष्य। 
  • बसौं = बसेरा करूँ। 
  • पसु = पशु। 
  • मँझारन = मध्य में।
  • पाहन = पत्थर। 
  • धेनु = गाय। 
  • गिरि = पर्वत। 
  • पुरन्दर = इन्द्र। 
  • खग = पक्षी। 
  • कालिन्दी = यमुना। 
  • कूल = किनारा। 
  • डारन = डालियों पर। 

भावार्थ - हर दशा में अपने आराध्य श्रीकृष्ण का सामीप्य पाने की इच्छा से कवि रसखान कहते हैं कि यदि मैं अगले जन्म में मनुष्य योनि में जन्म लूँ, तो मेरी उत्कट इच्छा है कि मैं ब्रज में गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच ही अर्थात् एक ग्वाला बनकर निवास करूँ। यदि मैं पशु बनूं तो फिर मेरे वश में क्या है? अर्थात् पशु योनि में जन्म लेने पर मेरा कोई वश नहीं है, फिर भी चाहता हूँ कि मैं नन्द की गायों के मध्य में चरने वाला एक पशु अर्थात् उनकी गाय बन। 

यदि पत्थर बनें, तो उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनें, जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र के कोप से ब्रज की रक्षा करने के लिए छत्र की तरह हाथ में उठाया था या धारण किया था। यदि मैं पक्षी योनि में जन्म लूँ तो मेरी इच्छा है कि मैं यमुना के तट पर स्थित कदम्ब की डालियों पर बसेरा करने वाला पक्षी बनूँ। अर्थात् मैं हर योनि और हर जन्म में अपने आराध्य श्रीकृष्ण और ब्रजभूमि का सामीप्य चाहता हूँ और यही मेरी प्रभु से विनती है। 

प्रश्न 1. कवि रसखान अगले जन्म में ब्रज में ही क्यों रहना चाहते हैं? 
प्रश्न 2. रसखान अगले जन्म में कौनसा पशु बनना चाहते हैं और क्यों? 
प्रश्न 3. प्रस्तुत सवैये से कवि रसखान ने क्या व्यंजना की है? 
प्रश्न 4. 'हरि छत्र पुरन्दर धारन' से कवि ने किस कथा की ओर संकेत किया है? 
उत्तर : 
1. कवि रसखान परम वैष्णव एवं श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण और उनकी लीलाभूमि का सामीप्य पाने की उत्कट अभिलाषा रखते थे। इसी कारण उन्होंने अगले जन्म में ब्रज में ही रहने की इच्छा व्यक्त की। 
2. रसखान अगले जन्म में गाय (पशु) बनना चाहते हैं और नन्दजी की गायों के बीच रहना चाहते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि इसी बहाने उन्हें श्रीकृष्ण का सामीप्य मिलता रहे। 
3. प्रस्तुत सवैये से कवि रसखान ने आराध्य श्रीकृष्ण एवं ब्रजभूमि के प्रति अतिशय अनुराग एवं अनन्य भक्ति की व्यंजना की है। 
4. इससे कवि ने इन्द्र द्वारा ब्रज पर कोप करके मूसलाधार जल-वर्षण करना तथा श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर इन्द्र के गर्व को नष्ट करना इत्यादि कथा की ओर संकेत किया गया है। 

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2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। 
आठहु सिद्धि नवौ निधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसारौं। 
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तडाग निहारौं। 
कौटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • या = इस। 
  • लकटी = लकडी लाठी। 
  • अरु = और। 
  • कामरिया = कम्बल। 
  • तिहूँ पुर = तीनों लोक-स्वर्ग, पृथ्वी व पाताल। 
  • तजि = त्यागना। 
  • बिसारौं = भुला दूं, छोड़ दूँ। 
  • तडाग = तालाब। 
  • कबौं = कब। 
  • निहारौं = देख लूँ। 
  • कोटिक = करोड़ों। 
  • कलधौत = सोना। 
  • धाम = महल, घर। 
  • करील = एक कंटीला पौधा, कैर की झाड़ी। 
  • वारौं = न्यौछावर कर दूँ। 

भावार्थ - श्रीकृष्ण की प्रिय वस्तुओं के प्रति अपना अतिशय अनुराग दर्शाते हुए कवि रसखान कहते हैं कि मैं श्रीकृष्ण की लाठी या छड़ी और कम्बल मिल जाने पर तीनों लोकों का सुख-साम्राज्य छोड़ने को तैयार हूँ अथवा छोड़ दूं। यदि नन्द की गायें चराने का सौभाग्य मिले, तो मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को की गायें चराने का सुख मिलने पर अन्य सब सुख त्याग सकता हूँ। जब मेरे इन नेत्रों को ब्रजभूमि के बाग, तालाब आदि देखने को मिल जाएँ और करील के कुंजों में विचरण करने का सौभाग्य या अवसर मिल जाए, तो मैं उस सुख पर सोने के करोड़ों महलों को न्यौछावर कर सकत। कवि रसखान यह कहना चाहते हैं कि मुझे अपने आराध्य श्रीकृष्ण से सम्बन्धित सभी वस्तुओं से जो सुख प्राप्त हो सकता है, वह अन्य किसी भी वस्तु से नहीं मिल सकता।

प्रश्न 1. कवि ने श्रीकृष्ण की लाठी और कम्बल के बदले क्या छोड़ना चाहा है? 
प्रश्न 2. 'लकुटी और कामरिया' का क्या महत्त्व है? बताइए। 
प्रश्न 3. 'आठहु सिद्धि' से क्या अभिप्राय है? बताइए। 
प्रश्न 4. प्रस्तुत सवैये से कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है?
प्रश्न 5. कवि रसखान करील के कुंजों पर क्या न्यौछावर करने को उद्यत है? और क्यों? 
उत्तर : 
1. कवि रसखान ने श्रीकृष्ण की लाठी और कम्बल के बदले तीनों लोकों से प्राप्त होने वाले सुख रूपी साम्राज्य को छोड़ना चाहा है। 
2. श्रीकृष्ण जब गायें चराने जाते थे, वे लाठी (लकुटी) और कामरिया (कम्बल) साथ में लेकर जाते थे। ग्वाल रूप में ये दोनों ही वस्तुएँ उन्हें अतिशय प्रिय थीं। 
3. इससे यह अभिप्राय है कि आठ सिद्धियों का सुख भी त्यागा जा सकता है। वे आठ सिद्धियाँ हैं-अणिमा, गरिमा, लघिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व और वशित्व। इन सिद्धियों से मनचाहा कार्य सध जाता है। 
4. प्रस्तुत सवैये से कवि रसखान ने यह भाव व्यक्त किया है कि भक्त को भौतिक सुख एवं कीमती वस्तुओं की अपेक्षा अपने आराध्य के सान्निध्य की सर्वाधिक लालसा होती है तथा उनसे पूरी श्रद्धा रखता है। 
5. कवि रसखान करील के कुंजों पर सोने के करोड़ों महलों को न्यौछावर करने को उद्यत है, क्योंकि उन करील की कुंजों में श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास-लीला रचाई थी। भक्त की दृष्टि से वे पवित्र स्थान थे। 

RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11 सवैये

3. मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी। 
ओढि पितम्बर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी। 
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी। 
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • मोरपखा = मोर के पंखों से बना मुकुट।
  • गुंज = गुंजा, धुंघुची। 
  • पितम्बर = पीला वस्त्र, पीताम्बर। 
  • लकुटी = छड़ी, लाठी। 
  • गोधन = गाएं। 
  • भावतो - अच्छा लगता है, प्रिय हो। 
  • स्वांग = रूप धारण करना, भेष बनाना। 
  • मुरलीधर में कृष्ण। 
  • अधरान = अधरों पर। 

भावार्थ - श्रीकष्ण के प्रति प्रेमाभक्ति रखने वाली कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि मैं प्रियतम कष्ण की रूप-छवि को अपने शरीर पर धारण करना चाहती हूँ। इस कारण मैं अपने सिर पर मोरपंखों का मुकुट धारण करूँगी और गले में घुघुची की वनमाला पहनूंगी। मैं शरीर पर पीला वस्त्र पहन कर कृष्ण के समान ही हाथ में लाठी लेकर अर्थात् उन्हीं के वेश में ग्वालों के साथ वन-वन में गायों के साथ पीछे फिरूँगी, अर्थात् गायें चराऊँगी। जो-जो बातें उन आनन्द के भण्डार कृष्ण को अच्छी लगती हैं, वे सब मैं करूँगी और तेरे कहने पर कृष्ण की तरह ही वेशभूषा, स्वांग-दिखावा, व्यवहार आदि करूँगी। रसखान कवि के अनुसार उस गोपी ने कहा कि लेकिन मैं मुरलीधर कृष्ण की मुरली को अपने होंठों पर कभी धारण नहीं करूँगी, क्योंकि वह मुरली तो उसके लिए सौतन के समान है। 

प्रश्न 1. गोपी श्रीकृष्ण की किस रूप-छवि को धारण करना चाहती थी? 
प्रश्न 2. गोपी के ऐसे आग्रह से उसका कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है? 
प्रश्न 3. गोपी श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं रखना चाहती थी? 
प्रश्न 4. 'स्वांग करौंगी' से क्या आशय है? 
उत्तर : 
1. गोपी अपने सिर पर मोरपंखों का मुकुट, गले में धुंघुची की माला, पीताम्बर ओढ़ना, हाथ में लाठी और गायों के साथ घूमना-यह रूप छवि धारण करना चाहती थी। 
2. गोपी के ऐसे आग्रह से उसका श्रीकृष्ण की रूप-छवि के प्रति अनुराग-भाव तथा प्रेमाभक्ति की दृढ़ता का भाव 
व्यक्त हुआ है। 
3. श्रीकृष्ण पर मुरली ने अपना पूरा हक जमा रखा था। वे मुरली बजाते समय गोपियों की ओर ध्यान नहीं देते थे इसलिए ईर्ष्या-भाव के कारण गोपी मुरली को अपने अधरों पर नहीं रखना चाहती थी। 
4. इसका आशय यह है कि वेशभूषा और व्यवहार आदि का अभिनय करना, रूप-छवि की वैसी ही नकल करना। गोपी भी कृष्ण का स्वांग करना चाहती थी, अपनी अनन्य प्रेमाभक्ति दिखलाना चाहती थी। 

RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 11 सवैये

4. काननि दै अंगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मन्द बजैहै। 
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै। 
टेरि कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै। . 
माइरी वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • काननि = कानों में। 
  • रहिबो = रहूँगी। 
  • बजैहै = बजायेगा। 
  • मोहनी = मनमोहक, आकर्षक। 
  • तानन = रागों। 
  • अटा चढ़ि = अटारी पर चढ़कर। 
  • गैहै तौ गैहै = गाना चाहे तो गावे। 
  • टेरि = पुकारकर, टेर लगाकर। 
  • सिगरे = सब। 
  • काल्हि = कल। 
  • सम्हारि न जैहै = सँभाली नहीं जाती। 

भावार्थ - श्रीकृष्ण की मुरली तथा उनकी मुस्कान पर आसक्त कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि जब श्रीकृष्ण मन्द-मन्द मधुर स्वर में मुरली बजायेंगे, तो मैं अपने कानों में उँगली डाल दूंगी, ताकि मुरली की मधुर तान मुझे अपनी ओर आकर्षित न कर सके। या फिर श्रीकृष्ण ऊँची अटारी पर चढ़कर मुरली की मधुर तान छेड़ते हुए गोधन (ब्रज में गाया जाने वाला लोकगीत) गाने लगें, तो गाते रहें, परन्तु मुझ पर उसका कोई असर नहीं हो पायेगा। 

मैं ब्रज के समस्त लोगों को पुकार पुकार कर अथवा चिल्लाकर कहना चाहती हूँ कि कल कोई मुझे कितना ही समझा ले, चाहे कोई कुछ भी करे या कहे, परन्तु यदि मैंने श्रीकृष्ण की आकर्षक मुसकान देख ली तो मैं उसके वश में हो जाऊँगी। हाय री माँ! उसके मुख की मुसकान इतनी मादक है कि उसके प्रभाव से बच पाना या सम्भल पाना अत्यन्त कठिन है। मैं उससे प्राप्त सुख को नहीं सँभाल सकूँगी। 

प्रश्न 1. गोपी अपने कानों में अंगुली क्यों देना चाहती है? 
प्रश्न 2. 'सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै' कथन से गोपी ने क्या भाव व्यक्त किया है? 
प्रश्न 3. 'गोधन गैहै तौ गैहै'-इसमें 'गोधन' का क्या आशय है? 
प्रश्न 4. 'टेरि कहौं' कथन से गोपी क्या कहना चाहती है? 
उत्तर : 
1. गोपी श्रीकृष्ण की माधुरी की मधुर तान सुन न सके, उनके वश में न हो जाये, इसलिए वह कानों में अंगुली देना चाहती है। 
2. इससे गोपी ने यह भाव व्यक्त किया है कि मुरली की मधुर तान तो सहन हो सकती है, परन्तु श्रीकृष्ण की मधुर मुसकान से स्वयं को सँभाल पाना अतीव कठिन है। मैं उनकी मुस्कान के वश में हो जाऊँगी। 
3. 'गोधन' शब्द गायों के लिए भी प्रयुक्त होता है, परन्तु उक्त प्रसंग में इसका आशय ब्रज-प्रदेश में गोचारण के समय गाया जाने वाला लोकगीत है। 
4. गोपी कहना चाहती है कि अब उसे श्रीकृष्ण की मोहक मुस्कान के वश में होना ही पड़ेगा। इस सम्बन्ध में मैं स्पष्टतया सभी को बता देना चाहती हूँ, फिर बाद में मुझे उलाहना मत देना।

Prasanna
Last Updated on May 13, 2022, 12:41 p.m.
Published May 13, 2022