RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Hindi Solutions Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

RBSE Class 9 Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
वह ऐसी कौन-सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया? 
उत्तर : 
उस समय लेखक शमशेर बहादुर सिंह के पास कोई काम नहीं था। उनके घर के सदस्य ने अथवा किसी मित्र ने यह कह दिया होगा कि 'तुम अपना समय व्यर्थ गवा रहे हो, कोई काम सीख लो। पेंटिंग में रुचि हो तो दिल्ली जाकर सीख लो।' लेखक के हृदय पर इस बात का अत्यधिक प्रभाव पड़ा होगा। इसी कारण वह तुरन्त ही दिल्ली जाने के लिए बाध्य हो गया होगा। 

प्रश्न 2.
लेखक को अंग्रेजी में कविता लिखने का अफ़सोस क्यों रहा होगा? 
उत्तर : 
लेखक ने अंगरेजी में कविता लिखी थी जिसे पढ़कर बच्चनजी ने लेखक के लिए एक नोट लिख छोड़ा था जिसका आशय था कि यह जन-भाषा नहीं है। इस बात पर लेखक को अफ़सोस हुआ होगा और वह हिन्दी में लिखने लगा होगा। 

RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 3. 
अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए 'नोट' में क्या लिखा होगा? 
उत्तर : 
जैसा कि लेखक ने बताया कि "वह एक नोट छोड़ गए मेरे लिए। मुझे याद नहीं कि उसमें क्या लिखा था, मगर वह एक बहुत मुख्तसर-सा और अच्छ-सा नोट था। इस कथन को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि उस नोट में लेखक को अपना भविष्य उज्ज्वल करने की प्रेरणा दी गई होगी और लिखा होगा कि पेन्टिंग की शिक्षा भी कविता की तरह ही मनोभावों को व्यक्त करने का अच्छा साधन है। 

प्रश्न 4. 
लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है?
उत्तर : 
प्रस्तुत ललित-गद्य में लेखक ने हरिवंश राय बच्चन का उल्लेख विशेष रूप से किया है। इससे पता चलता है कि बच्चन अत्यन्त सहयोगी, परोपकारी, उदार, कर्तव्यनिष्ठ तथा दृढ़ संकल्पी थे। वे संघर्षशील व्यक्ति होने से लेखक के लिए आदर्श प्रेरणा-स्रोत थे। बच्चन का स्वभाव मक्खन के समान कोमल एवं तुरन्त पिघल जाने वाला था। वे मित्रों का हर तरह से सहयोग-सहायता करते थे। एक कवि के रूप में अत्यन्त भावुक एवं निश्छल व्यक्ति थे। वे वचन के पक्के एवं वाणी के धनी थे। वे समय के महत्त्व को समझने वाले और उसका उचित उपयोग करने वाले थे। लेखक को वे ही इलाहाबाद लाये थे और उसे कविता-रचना करना भी उन्होंने ही सिखाया था। बच्चन कर्मठ अध्यवसायी एवं उत्साही व्यक्तित्व के थे। साहित्य-जगत् में उनका विशिष्ट सम्मान होता था। 

प्रश्न 5. 
बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला? 
उत्तर : 
लेखक को जीवन में कवि हरिवंश राय बच्चन का पूरा सहयोग मिला। उनके अतिरिक्त लेखक को जिनका सहयोग मिला, वे इस प्रकार हैं 

  • लेखक को उनके बी.ए. के सहपाठी एवं कवि मित्र नरेन्द्र शर्मा का सहयोग मिला। 
  • लेखक को देहरादून में अपनी ससुराल से सहयोग मिला। वहाँ पर उन्होंने उनकी दवाइयों की दुकान पर कम्पाउंडरी सीखी। 
  • इलाहाबाद में पन्तजी ने उन्हें इण्डियन प्रेस में अनुवाद का काम दिलाया। वहीं पर पन्त एवं निराला से प्राप्त संस्कारों से. तथा वहाँ के साहित्यिक वातावरण से काव्य-रचना का प्रोत्साहन मिला। 
  • दिल्ली में आर्ट स्कूल में प्रशिक्षण लेते समय लेखक को बड़े भाई तेज बहादुर सिंह से आर्थिक सहायता प्राप्त। 

प्रश्न 6. 
लेखक के हिन्दी-लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिए। 
उत्तर : 
लेखक शमशेर बहादुर सिंह प्रारंभ में उर्दू में गजल तथा अंग्रेजी में सॉनेट लिखते थे। परन्तु इलाहाबाद आने पर और वहाँ पर बच्चनजी. पन्तजी. निराला एवं अन्य मित्रों की प्रेरणा से वे हिन्दी में लिखने लगे। स न् 1933 में लेखक की कुछ रचनाएँ 'सरस्वती' और 'चाँद' पत्रिका में प्रकाशित हुई। सन् 1937 के बाद लेखक ने बच्चनजी की प्रेरणा से हिन्दी में चौदह व्यक्तियों का एक बन्द रचा। निशा-निमंत्रण' का अनुमान कर लेखक ने कुछ कविताएँ रची। साथ ही पन्तजी ने लेखक की कविताओं में संशोधन किया जो 'रूपाभ' में छपी। रूपाभ' और 'सरस्वती' पत्रिका में कविताएँ छपने के बाद लेखक 'हंस' पत्रिका में चला गया। लेखक के प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बच्चन ही रहे जो उसे हिन्दी-साहित्य प्रांगण में घसीट लाए। 

RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 5 किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया

प्रश्न 7. 
लेखक ने अपने जीवन में जिन कठिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए। 
उत्तर : 
लेखक ने अपने जीवन में अनेक विषम परिस्थितियों के रूप में कठिनाइयों का सामना किया। आरम्भ में लेखक बेरोजगार था। आर्थिक समस्या उसके सामने थी। उस समस्या से निबटने के लिए घर छोड़कर दिल्ली चला आया। वहाँ साइनबोर्ड पेन्ट करके कुछ कमाने लगा। फिर आर्ट स्कूल में उसे निःशुल्क दाखिला मिला। उसके भाई तेज बहादुर ने उसकी आर्थिक सहायता की। फिर बच्चन की प्रेरणा से लेखक ने इलाहाबाद जाकर एम.ए. में प्रवेश लिया। इस प्रकार लेखक को काफी समय तक गरीबी झेलनी पड़ी और पत्नी-वियोग की पीड़ा भी, फिर भी संघर्षरत रहकर जीवन-पथ पर आगे ही बढ़ता रहा।

RBSE Class 9 Hindi किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने दिल्ली में आकर अपने जीवन का निर्माण किस प्रकार किया? 
उत्तर : 
लेखक दिल्ली में उकील आर्ट स्कूल में अध्ययन एवं कला-प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए प्रविष्ट हुआ। वह करौल बाग में एक कमरे में किराये पर रहने लगा। वहाँ से वह प्रतिदिन कनाट प्लेस में सुबह की क्लास में जाने लगा। रास्ते में चलते समय कभी कविताएं लिखता तो कभी ड्राइंग भी बनाता। कविताएँ अंग्रेजी में सॉनेट तथा उर्दू में गजल या शेर रूप में लिखता। लेखक प्रत्येक वस्तु एवं व्यक्ति को गौर से देखता और उनसे अपनी ड्राइंग के लिए कुछ तत्व खोजता रहता।

वहाँ पर कभी-कभी बड़े भाई से आर्थिक सहायता मिल जाती और कभी साइन बोर्ड पेंट करके कुछ अर्जित कर लेता था। लेखक के साथ महाराष्ट्र का एक पत्रकार भी रहने लगा। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के होस्टलों के वातावरण का जिक्र करता। वहीं पर बच्चनजी का लिखा एक नोट मिला, जिससे लेखक को अपने जीवन-निर्माण की प्रेरणा विशेष रूप से प्राप्त हुई। 

प्रश्न 2. 
इलाहाबाद जाने पर बच्चन ने लेखक का क्या सहयोग किया? 
उत्तर : 
लेखक बच्चन के आग्रह पर ही इलाहाबाद गया था। वहाँ पर बच्चन ने लेखक को विश्वविद्यालय में एम.ए. में प्रवेश दिलाया। बच्चन के पिता लेखक के लोकल गार्जियन बने। बच्चन ने प्रीवियस और फाइनल के दोनों सालों का खर्चा वहन करने का जिम्मा लिया। बच्चन के सहयोग से लेखक को हिन्दू बोर्डिंग हाउस के कॉमन रूम में एक सीट फ्री मिल गई थी। तब पन्तजी की कृपा से इण्डियन प्रेस में अनुवाद का काम मिल गया। बच्चन ने हिन्दी में लेखन की प्रेरणा दी। लेखक बताता है कि "बच्चन मेरे साहित्यिक मोड़, मेरे हिन्दी के पुनः संस्कार के प्रमुख कारण बने।" लेखक ने यद्यपि बीच में ही पढ़ना छोड़ दिया था, परन्तु बच्चन के आग्रह पर उसे पूरा किया। तत्पश्चात् हिन्दी कविता की रचना करते हुए लेखक साहित्यिक क्षेत्र में प्रविष्ट हुआ। 

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प्रश्न 3. 
जुमला कहने का लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा? उससे लेखक के जीवन में क्या परिवर्तन आया? 
उत्तर : 
जुमला कहने का लेखक पर यह प्रभाव पड़ा कि लेखक की सोच की दिशा ही बदल गयी और उससे रहा नहीं गया। वह पहली बस से ही दिल्ली आ गया। उसने अपनी रुचि के अनुसार उकील आर्ट स्कूल में दाखिला लेने का निश्चय किया। प्रवेश क्रम में स्कूल वालों ने ड्राइंग के प्रति उसके शौक को देखकर निःशुल्क भर्ती कर लिया इससे लेखक के जीवन में एक नया परिवर्तन आ गया। करौल बाग में किराया का कमरा लेकर रोजाना प्रातः पढ़ने जानने लगा। पैदल चल कर वह हर चीज और हर चेहरे को गौर से देखकर उसमें ड्राईंग के लिए नये तथ्य खोजता, कविता लिखता और काम मिलने पर साइनबोर्ड बनाता। कुछ पैसा उसका भाई देता, इस प्रकार वह अपना खर्चा चलाता था। 

प्रश्न 4.
"आज मैं स्पष्ट देख रहा हूँ कि जो तूफान उनके मनमस्तिष्क की दुनिया में गुजर रहा था वह इससे भी कहीं प्रबल था।"बच्चनजी के मन-मस्तिष्क में गुजरने वाला तूफान किस तूफान से भी अधिक प्रबल था? लेखक ने उस तूफान को किस प्रकार अभिव्यक्त किया है? 
उत्तर : 
बच्चनजी के मन-मस्तिष्क में गुजरने वाला वह तफान पत्नी-वियोग का था जो उन्हें बहत अधिक व्यथित कर रहा था। यह तूफान देहरादून में एकाएक आने वाली आँधी और बारिश से भी भयानक था, क्योंकि उस तूफान में गिरने वाली वृक्ष की डाल से वे बच गये थे लेकिन पत्नी की मृत्यु से आए तूफान से आन्तरिक रूप में घायल ही नहीं, असहाय भी हो गये थे। उनकी इस वेदनापूरित स्थिति की अभिव्यक्ति लेखक ने करते हुए कहा है कि उनकी पत्नी उनके जीवन में उतनी ही महत्त्वपूर्ण थी जितनी कि मस्त नृत्य करते शिव के जीवन में उमा। अतः पत्नी के वियोग से जैसे भगवान् शिव अपनी पार्वती को गोद में लिए-लिए संसार में भटके थे, उसी प्रकार बच्चन भी पत्नी के वियोग के दुःख को लेकर पीड़ित रहे। उनकी पत्नी उनकी सच्ची संगिनी थी। वे उनके भावुक सपनों, उत्साहों और संघर्षों की प्रेरणा थी। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न  :

प्रश्न 1. 
लेखक को बिना फीस के उकील आर्ट स्कूल में भर्ती क्यों कर लिया गया था? . 
उत्तर : 
लेखक की पेन्टिंग कार्य में रुचि थी। उसका इम्तिहान लेकर और उसके शौक को देखकर लेखक को बिना फीस के ही भर्ती कर लिया गया था। 

प्रश्न 2. 
दिल्ली में प्रशिक्षण लेते समय लेखक अपना खर्चा कैसे चलाता था? 
उत्तर : 
दिल्ली में प्रशिक्षण लेते समय कभी-कभी साइन बोर्ड पेन्ट कर लेता था तो कभी उसके रुपये भेज देते थे। इस तरह आर्थिक तंगी में रहकर लेखक अपना खर्चा चला लेता था। 

प्रश्न 3. 
"अन्दर से मेरा हृदय बहुत उद्विग्न रहता" लेखक ने अपनी इस उद्विग्नता का क्या कारण बताया? 
उत्तर : 
लेखक की उद्विग्नता का प्रमुख कारण यह था कि टी. बी. से उसकी पत्नी का देहान्त हो गया था और वह दिल्ली की सड़कों पर अकेला भटकने के लिए विवश था। 

प्रश्न 4. 
लेखक हर चेहरे, गति और स्थिति को बड़े ध्यान से क्यों देखता था? 
उत्तर : 
लेखक को हर चेहरे में अपनी ड्राइंग के लिए कोई न कोई विषय मिल जाता था। उसे हर गति, स्थिति और दृश्य में कोई न कोई विशिष्ट अर्थ मिल जाता था। इसलिए वह हर चेहरे, गति और स्थिति को बड़े ध्यान से देखता था। 

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प्रश्न 5. 
लेखक अपनी खोली में आकर बोर क्यों हो जाता था? 
उत्तर : 
लेखक को अकेलापन बहुत अच्छा लगता था। वह अपने अकेलेपन में डूबकर नई-नई रचनाओं की विषय वस्तु तैयार कर लेता था। परन्तु खोली में अन्य लोग भी रहते थे इसलिए वह खोली में आकर बोर हो जाता था। 

प्रश्न 6. 
लेखक ने अपनी सबसे बुरी आदत क्या बतायी?  
उत्तर : 
लेखक की सबसे बुरी आदत यह थी कि वह आए हुए पत्रों का जवाब नहीं देता था। वह उन आए हुए पत्रों के जवाब मन ही मन तैयार कर हवा के साथ बिखेरता रहता था। 

प्रश्न 7. 
लेखक दिल्ली से देहरादून आकर क्या करने लगा था? 
उत्तर : 
लेखक देहरादून आकर अपनी ससुराल की केमिस्ट्स एण्ड ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कम्पाउंडरी सीखने लगा था। उसने वहाँ रहकर डॉक्टरों द्वारा लिखे गये टेड़े-मेढ़े वाक्यों एवं शब्दों में लिखे नुस्खों को पढ़ने में महारत हासिल कर ली थी। 

प्रश्न 8. 
बच्चनजी लेखक से पहली बार कहाँ और कैसे मिले थे? 
उत्तर : 
लेखक द्वारा भेजे सॉनेट से प्रभावित होकर गर्मियों की छुट्टियों में जब बच्चनजी देहरादून आए थे तब वे लेखक से मिलने उसकी डिस्पेंसरी में गये थे और वे एक दिन के लिए उसके घर भी ठहरे थे। 

प्रश्न 9.
देहरादून में बच्चनजी के साथ कौनसा हादसा होते-होते बचा था? 
उत्तर : 
जब बच्चनजी देहरादून में थे तो उसी समय एक दिन बहुत जोर की आँधी और बारिश आई। इस आँधी बारिश में गिरता हुआ एक पेड़ बच्चनजी पर गिरते-गिरते बचा था। इस प्रकार हादसा होते-होते टल गया।

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प्रश्न 10. 
"बच्चनजी दृढ़संकल्पी और वक्त के पाबन्द थे।" कैसे? 
उत्तर : 
एक बार उन्हें देहरादून से इलाहाबाद जाना था। जैसे ही वे स्टेशन की ओर चले, तेज बरसात होने लगी। उस स्थिति में कुली और वाहन न मिलने पर स्वयं सामान को कन्धे पर लाद कर रेलवे स्टेशन पहुँचना उनके दृढ़ संकल्पी और समय के पाबन्द होने का बोध कराता है। 

प्रश्न 11. 
बच्चनजी ने लेखक को एम. ए. में दाखिला क्यों दिलवाया था? 
उत्तर : 
बच्चनजी ने लेखक को एम. ए. में इसलिए दाखिला दिलवाया कि वे अपनी बेरोजगारी से मुक्ति पा सकें और भविष्य में अपने पैरों पर खड़े हो सकें। 

प्रश्न 12. 
लेखक के मन में सरकारी नौकरी के प्रति वितृष्णा क्यों जाग गयी थी? 
उत्तर : 
लेखक के पिता ने जीवन भर सरकारी नौकरी की थी। उन्हीं को देखकर लेखक के मन में सरकारी नौकरी न करने की बात जाग गयी थी। 

प्रश्न 13.
"यह बस घोंचपन की हद थी।" लेखक का वह घोंचपन क्या था? 
उत्तर : 
लेखक ने सरकारी नौकरी न करने का जो निर्णय लिया था, वह उसका घोंचूपन था। बाद की सोच के अनुसार उसने इस निर्णय से अपनी बहादुरी का प्रदर्शन नहीं किया बल्कि भूल ही की। 

प्रश्न 14. 
शमशेर बहादुर सिंह ने किस-किस भाषा में साहित्य की रचना की? 
उत्तर : 
शमशेर बहादुर सिंह ने अंग्रेजी, उर्दू तथा हिन्दी भाषाओं में साहित्य रचना की। उन्हें अंग्रेजी में लिखने का अभ्यास था ही, उर्दू वातावरण में वे पले थे, पर हिन्दी में लिखने के लिए उन्हें अभ्यास करना पड़ा था। 

प्रश्न 15. 
लेखक ने अपने परिवार एवं अपने बचपन को किस लिए धन्यवाद दिया? 
उत्तर : 
लेखक के जाट परिवार में किसी भी भाषा को अपनाने की छट थी। इसलिए लेखक बचपन से ही अंग्रेजी और उर्दू को व्यवहार में लाने लगा था। इसी बात पर लेखक ने अपने परिवार एवं अपने बचपन को धन्यवाद दिया। 

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प्रश्न 16. 
हिन्दी ने क्यों मुझे उस समय अपनी ओर खींचा? लेखक ने उसका क्या कारण बताया? 
उत्तर : 
बच्चन के आग्रह पर इलाहाबाद आकर निराला और पंत ने उसकी चेतना को हिन्दी की ओर आकृष्ट किया। इसके साथ ही बच्चन की प्रेरणा और मित्रों के प्रोत्साहन ने हिन्दी में लिखने के प्रति रुचि जगायी। 

प्रश्न 17.
लेखक की प्रारम्भिक रचनाएँ कब तथा किन पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई? 
उत्तर : 
सन् 1933 में लेखक की प्रारम्भिक रचनाएँ 'सरस्वती' और 'चाँद' पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। इसके साथ ही 'अभ्युदय', 'रूपाभ' और 'हंस' पत्रिकाओं में भी कुछ रचनाएँ छपी। 

प्रश्न 18.
बच्चन की 'निशा निमंत्रण' कविता से आकृष्ट होकर लेखक ने क्या किया? 
उत्तर : 
'निशा निमंत्रण' कविता से प्रभावित होकर लेखक ने भी उसी तरह की कुछ कविताओं को लिखने का प्रयास किया लेकिन इस प्रकार की रचना में उसे कठिनाई की अनुभूति हुई। अन्ततोगत्वा उसने सफलता प्राप्त की। 

प्रश्न 19. 
बच्चनजी ने किस कारण लेखक पर क्षोभ व्यक्त किया? 
उत्तर : 
बच्चनजी ने लेखक को एम. ए. पाठ्यक्रम में दाखिला दिलाया लेकिन लेखक ने इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया और न ही वार्षिक परीक्षा दी। इसी लापरवाही पर बच्चनजी लेखक पर क्षुब्ध हुए। 

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प्रश्न 20. 
लेखक को बच्चनजी के व्यक्तित्व के कौन से गुण उनकी कविताओं से भी महान् प्रतीत होते हैं? 
उत्तर : 
लेखक को बच्चनजी के व्यक्तित्व में समाये उदारता, प्रेरकता और सहयोगी भाव के गुण उनकी कविताओं से भी अधिक महान् प्रतीत होते हैं। 

किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया Summary in Hindi

लेखक-परिचय - स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी कविता के प्रमुख कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म देहरादून में सन् 1911 में हुआ। इन्होंने देहरादून एवं इलाहाबाद से शिक्षा प्राप्त की। प्रसिद्ध चित्रकार उकील-बन्धुओं से उन्होंने चित्रकला का प्रशिक्षण लिया। ये अनूठे काव्य-बिम्बों का सृजन करने वाले असाधारण कवि माने जाते हैं। इनका गद्य लेखन भी अपनी विशिष्टता का परिचायक रहा है। 'दोआब' और 'प्लाट का मोर्चा' जैसी गद्य-रचनाओं के कारण ये विशिष्ट गद्यकार माने जाते हैं। इनके अनेक काव्य-संग्रह एवं गद्य संग्रह प्रकाशित हैं। जनवादी कवि शमशेर का निधन सन् 1993 में हुआ। ' 

पाठ-सार - प्रस्तुत ललित गद्य-रचना के प्रारंभ में लेखक बताता है कि किसी ने एक ऐसा वाक्य कह दिया, जिससे वह उसी समय दिल्ली जाने वाली पहली बस में सवार हो गया। दिल्ली जाकर लेखक ने उकील आर्ट स्कूल में प्रवेश लिया और करोल बाग में किराये के कमरे पर रहने लगा। लेखक का खर्चा बड़े भाई के सहयोग से तथा साइन बोर्ड पेन्ट करने से चल जाता था। 

वहीं पर एक दिन हरिवंश राय बच्चन' से लेखक की मुलाकात हुई तथा अंग्रेजी का एक सॉनेट लिखकर उन्हें भेज दिया। तत्पश्चात् लेखक देहरादून आया और अपनी ससुराल की केमिस्ट्स एण्ड ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कम्पाउंडरी सीखने लगा। इसी दौरान बच्चनजी गर्मियों में देहरादून आये और ब्रजमोहन गुप्त के यहाँ ठहरे। तब वे डिस्पेंसरी में आकर लेखक से मिले। 

लेखक की बच्चन से घनिष्ठता बढ़ती गई। परिणामस्वरूप लेखक को बच्चन इलाहाबाद खींच लाये। वहाँ पर एम.ए. में प्रवेश लिया, उसका सारा खर्चा वहन करने का जिम्मा बच्चन ने ही लिया। वहीं पर हिन्दू बोर्डिंग हाउस में कॉमन रूम में रहने की जगह निःशुल्क मिल गयी और पन्तजी की कृपा से इण्डियन प्रेस में अनुवादक का काम मिल गया। 

उन्हीं दिनों लेखक का हिन्दी के प्रति रुझान बढ़ा और पन्त व निराला आदि के प्रोत्साहन से हिन्दी में कविता रचना करने लगा। बच्चन के नजदीक रहने से लेखक हिन्दी में आकर लेखन-कर्म में प्रवृत्त हुआ। इस तरह लेखक का जीवन-मार्ग निश्चित-सा हो गया। इसका सारा श्रेय लेखक ने बच्चनजी के विशेष सहयोग, सदाशय एवं सहज स्वभाव को दिया और उनके कारण स्वयं को गौरवान्वित माना। 

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कठिन-शब्दार्थ :

  • मख्तसर = संक्षिप्त, सार रूप। 
  • वहमो गमान = भ्रम या अनुमान।
  • टीस = वेदना।
  • स्केच = रेखाचित्र। 
  • नोट = कागज पर लिखा सन्देश। 
  • ड्रगिस्ट्स = दवाइयाँ विक्रेता। 
  • नुस्खा = तरीका। 
  • अदब-लिहाज = शर्म संकोच। 
  • इत्तिफाक = संयोग।
  • झंझावात = आँधी। 
  • बरखा = वर्षा। 
  • वहम = भ्रम। 
  • लोकल गार्जियन = स्थानीय अभिभावक। 
  • प्रीवियस = पहली साल। 
  • घोंचूपन = नालायकी। 
  • फर्स्ट फार्म = पहली भाषा। 
  • बहरहाल = खैर। 
  • पछांही = पश्चिम दिशा का। 
  • विन्यास = रचना। 
  • संशोधन = सुधार। 
  • अजब = अजीब, अद्भुत।
Prasanna
Last Updated on May 16, 2022, 5:55 p.m.
Published May 16, 2022