Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kritika Chapter 4 माटी वालीड्डी Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
'शहरवासी सिर्फ माटी वाली को नहीं, उसके कंटर को भी अच्छी तरह पहचानते हैं।' आपकी समझ से वे कौन-से कारण रहे होंगे, जिनके रहते 'माटी वाली' को सब पहचानते थे?
उत्तर :
माटी वाली को लोग निम्नलिखित कारणों से पहचानते थे -
प्रश्न 2.
माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?
उत्तर :
माटी वाली सेमल तप्पड की ओर शहर के आखिरी छोर पर रहती थी। उसे शहर पहँचने में एक घण्टा लगता था। इसी बीच माटाखान जाना, मिट्टी खोदना, कनस्तर में भरकर घर-घर पहुंचाना उसका रोज का काम था। उसके पास कोई खेत नहीं था और माटी बेचकर ही वह अपना तथा अपने बूढ़े पति का पेट भरती थी। यहाँ से उजड़ने के बाद उसका क्या होगा? उसे यही चिन्ता सताती रहती थी। इसलिए उसे अपने अच्छे-बुरे भाग्य के बारे में सोचने का वक्त नहीं था।
प्रश्न 3.
'भूख मीठी कि भोजन मीठा' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
यह एक कहावत है कि जब खूब भूख लगी हो तो साधारण भोजन भी स्वादिष्ट लगता है। अतः भोजन का स्वाद भूख में ही है, परन्तु भूख न हो तो स्वादिष्ट भोजन भी बेस्वाद लगता है।
प्रश्न 4.
पुरखों की गाढ़ी कमाई से हासिल की गई चीजों को हराम के भाव से बेचने को मेरा दिल गवाही नहीं देता।'-मालकिन के इस कथन के आलोक में विरासत के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
परिवार में पीढ़ियों से चली आयी सम्पत्ति, जमीन-जायदाद आदि धरोहर ही विरासत कही जाती है। ऐसी विरासत या पैतृक सम्पत्ति की कीमत नहीं आंकी जाती है, क्योंकि उसे अर्जित करने में पुरखों को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी, उनका कितना समय व्यतीत हुआ होगा, इसका चिन्तन करना पड़ता है। इसलिए ऐसी पुरानी चीजों को सस्ते भाव में बेचकर उनके स्थान पर नयी चीजें खरीद लेना उचित नहीं है। वस्तुतः हमें विरासत की रक्षा करनी चाहिए, और उसे पूर्वजों की पवित्र निशानी समझना चाहिए, क्योंकि पुरुषों की विरासत का मोह जीवन से बड़ा नहीं होता है।
प्रश्न 5.
माटी वाली का रोटियों का इस तरह हिसाब लगाना उसकी किस मजबूरी को प्रकट करता है?
उत्तर :
माटी के कनस्तर की मजदूरी के रूप में जो रोटियाँ मिलती थीं, माटी वाली उनका हिसाब लगाती थी। इस बात से उसकी गरीबी प्रकट होती है। वह ऐसा काम करती है, जिससे जीवन-निर्वाह मुश्किल से हो पाता है। मिट्टी खरीदने वाली महिलाएँ उसे जो रोटियाँ देतीं, वह उनमें से कुछ रोटियाँ अपने बूढ़े अशक्त पति के लिए ले जाती और हिसाब लगाती कि वह कितनी रोटी खा पायेगा और अब मेरे पास कितनी हैं।
प्रश्न 6.
'आज माटी वाली बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं देगी'-इस कथन के आधार पर माटी वाली के हृदय के भावों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
माटी वाली को एक घर से दो रोटियाँ मिल गईं। तब वह उन्हें कपड़े के छोर पर बाँधकर सोचने लगी कि आज वह अपने बुड्ढे को कोरी रोटियाँ नहीं खिलायेगी। माटी बेचने से हुई आमदनी से उसने एक पाव प्याज खरीदा और निश्चय किया कि वह जल्दी-जल्दी प्याज को कूटकर तल देगी, अर्थात् उसकी सब्जी बना देगी, तब पति को रोटियाँ देगी, क्योंकि उसके मन में अपने पति के प्रति गहरा प्रेम और लगाव है। इसी कारण उस समय अपने पति के प्रति सहानुभूति, दयाभाव, वेदना और संवेदना आदि भावों की अभिव्यक्ति हुई।
प्रश्न 7.
'गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।' इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
बड़े बाँधों एवं विशाल उद्योगों की स्थापना से अनेक लोगों को अपने मूल स्थान से विस्थापित होना पड़ता है। इस तरह विस्थापित होने की पीड़ा उस व्यक्ति के लिए मृत्यु हो जाने के समान होती है। तब उसके लिए वह अपना मूल स्थान, अपना घर या गाँव और श्मशान में कोई अन्तर नहीं रह जाता। मानसिक पीड़ा से वह वहीं पर मरना चाहता हुआ भी नहीं मर पाता है।
माटी वाली भी इसी तरह की मानसिकता से गुजर रही थी। उसका सोचना था कि विकास की इस अंधी दौड़ में गरीब आदमी का मूल निवास स्थान नहीं उजड़ना चाहिए, क्योंकि उजड़ने से वह मारा-मारा फिरता है। उसे टिकने की स्थायी जगह नहीं मिलती है। उसे अपने मूल स्थान पर ही अन्तिम साँस लेने का अधिकार होना चाहिए। इसीलिए वह हर आने-जाने वाले से एक ही बात कहती थी कि 'गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।'
प्रश्न 8.
'विस्थापन की समस्या' पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
इस भौतिकवादी यान्त्रिक युग में सभी देश प्रगति की दौड़ में सम्मिलित हो रहे हैं। प्रगति के लिए बिजली एवं ऊर्जा चाहिए, औद्योगीकरण एवं परिवहन चाहिए। इस कारण देश में बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण हुआ और हो रहा है। जिन स्थानों पर बड़े बाँध, उद्योग या उत्पादन केन्द्र बनाये जा रहे हैं, वहाँ पर रहने वाले मूल निवासियों, गाँवों या आबादी क्षेत्रों को वहाँ से अन्यत्र विस्थापित किया जा रहा है। इस तरह लोग अपने पैतृक घरों से बेघर हो रहे हैं। परन्तु अपनी माटी से अलग होने और अपने घरों से उजड़ने का दर्द उन्हें व्यथित करता रहता है। अपनी माटी का मोह सभी को होता है, इसलिए उससे विस्थापित होना तो मौत के समान लगता है। आज विस्थापन की यह समस्या भारत के अनेक क्षेत्रों में बढ़ रही है, जिससे जनता आन्दोलनरत है।
प्रश्न 1.
'माटी वाली कहानी में किस समस्या को उभारा गया है?
उत्तर :
'माटी वाली' कहानी में मूल रूप से विस्थापितों की समस्या को उभारा गया है। भागीरथी पर विशाल बाँध बनाये जाने के कारण टिहरी और उसके आसपास के गाँव उसकी डूब में आने के कारण सम्बन्धित क्षेत्र के लोगों को अन्यत्र जमीन और मुआवजा देकर बसाया तो गया लेकिन उनके मन में अपनी मूल जगह छोड़ने की कसक बनी ही रही। लेकिन जिनके पास अधिवासी होने का कोई प्रमाण पत्र नहीं था उन्हें न तो पुनर्वास का लाभ मिला और न मुआवजा। माटी वाली के सामने भी यही स्थिति थी। प्रस्तुत कहानी में विस्थापन एवं पुनर्वास की समस्या के साथ प्रशासनिक अव्यवस्था, आर्थिक विवशता आदि का भी यथार्थ चित्रण किया गया है।
प्रश्न 2.
जिनके पास जमीन-जायदाद या अपने घर का प्रमाण-पत्र नहीं हो, उन्हें पुनर्वास न देना कहाँ तक उचित है? सतर्क लिखिए।
उत्तर :
सरकारी नियमों के अनुसार विस्थापित होने वाले के पास कोई जमीन या मकान हो, तो उसे पुनर्वास की सुविधा दी जाती है और उचित मुआवजा भी मिलता है। प्रशासनिक व्यवस्था कागजों पर अर्थात् प्रमाण-पत्रों पर चलती है। अगर प्रशासन प्रमाण-पत्र की अनिवार्यता न रखे, कागज को प्रमाण न माने, तो कोई भी सरकार को धोखे में रख सकता है और विस्थापित होने का लाभ उठा सकता है। इस तरह की अव्यवस्था से बचने के लिए प्रशासन प्रमाण-पत्र माँगता है। परन्तु कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो उस क्षेत्र के मूल निवासी होते हैं, लेकिन मजदूरी करके जीवनयापन करते हैं अथवा किरायेदार बनकर रहते हैं। ऐसे लोगों से प्रमाण-पत्र माँगना उचित नहीं है, उन्हें भी अन्य लोगों के साथ पुनर्वास का लाभ दिया जाना चाहिए। गरीब मजदूरों का पुनर्वास जनहितकारी कार्य माना जाता है।
प्रश्न 3.
'माटी वाली' के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में 'माटी वाली' को अत्यधिक गरीब चित्रित किया गया है। वह प्रतिदिन माटयखान जाकर माटी लाती और उसे बेचकर अपने पति के साथ अपना पेट भरती है। वह कठिन परिश्रमी एवं मेहनती है। वह सन्तोषी स्वभाव की भी है। कोई उसे दो रोटी दे दे, तो वह उसी से सन्तुष्ट हो जाती है। वह अपने बूढ़े एवं अशक्त पति का पूरा ख्याल रखती है। इस कारण काफी संवेदनाशील, दयालु, भावुक एवं विचारशील है। अन्त में पति की मृत्यु हो जाने पर वह अकेली रह जाती है।
उसके पास कोई प्रमाण-पत्र न होने से वह पुनर्वास के साहब से सरलता से जिज्ञासा व्यक्त करती है। वह विस्थापन को अपनी जड़ से अपने मूल स्थान से उखाडा जाना मानती है। इसी कारण अपनी गरीबी का ध्यान रखकर वह कहती है कि 'गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।' इस प्रकार माटी वाली के चरित्र की विशेषताएँ उभर कर सामने आयी हैं।
प्रश्न 4.
'माटी वाली कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आज देश में बढ़ते औद्योगीकरण और परिवहन के कारण देश में बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण हुआ और हो रहा है। इनके कारण विस्थापन की समस्या उत्पन्न हुई और हो रही है। इस कहानी से इसी समस्या को उद्देश्य रूप में उभारा गया है। माटी वाली का जन-जीवन में बहुत महत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा मायाखान से लाई गयी लाल चिकनी मिट्टी से टेहरीवासियों के चल्हे लीपे जाते हैं। उसकी जीविका भी मिट्टी लाने के आधार पर ही चलती है। इसी क्रम में कहानीकार ने प्रश्न उठाया है कि उसके पास अधिवासी प्रमाण-पत्र न होने पर उसका विस्थापन कैसे होगा? सरकारी अधिकारी उसे जिस आधार पर विस्थापन देंगे, उसका आधार क्या होगा? उसका भविष्य क्या रहेगा? यह सब कहानी में अनुत्तरित प्रश्न हैं। यही सब प्रश्न उठाना और विस्थापन की समस्या की ओर पाठकों का ध्यानाकर्षित करना भर कहानी का उद्देश्य है।
प्रश्न 5.
माटी वाली के वृद्ध पति की दशा का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
माटी वाली का वृद्ध पति बहुत ही अशक्त और लाचार है। वह अपनी शारीरिक असक्षमता के कारण कोई भी कार्य करने में समर्थ नहीं है। वह झोंपड़ी में रहता हुआ अपने जीवन के शेष दिन काटता है। उसका उसकी पत्नी के सिवाय कोई नहीं है। जैसे ही मिट्टी वाली मिट्टी बेचकर थकी-हारी शाम को अपनी झोपड़ी में आती है, वह कातर नजरों से उसकी ओर निहारता रहता है। दिनभर बेबसी में वह भूख को सहन करता है। भूख को शान्त करने के लिए रोटी पाने की इच्छा से पूरित होकर वह रसोई में भी पहुँच जाता है। बुढ़ापे और लाचारी ने उसे गठरी जैसा बना छोड़ा है। कमजोरी के कारण अब उसे दो रोटियाँ भी ठीक से नहीं पचतीं। वह कभी एक तो कभी डेढ़ रोटी ही खाता है। इस प्रकार लेखक ने उसकी अशक्तता और लाचारी की दशा का शोचनीय चित्रण किया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
'माटी वाली' कहानी में किन बिन्दुओं को आधार बनाया गया है?
उत्तर :
'माटी वाली' कहानी में मुख्यतया निम्न बिन्दुओं को आधार बनाया गया है
प्रश्न 2.
टिहरी शहर में माटी वाली का कोई प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं था?
उत्तर :
वह टिहरी शहर के घर-घर में अकेले ही वर्षों से लाल मिट्टी देने का काम कर रही थी। इस कारण उसका कोई भी प्रतिद्वंद्वी नहीं था।
प्रश्न 3.
टेहरी वासियों को लाल मिट्टी की जरूरत क्यों पड़ती रहती है?
उत्तर :
वहाँ के निवासी चौका-चूल्हा पोतने के अलावा साल दो साल में मकान पोतने में भी लाल मिट्टी का उपयोग करते हैं। इसलिए टेहरी वासियों को लाल मिट्टी की जरूरत रहती है।
प्रश्न 4.
टिहरी बाँध कहाँ और किस नदी पर बना हुआ है?
उत्तर :
टिहरी बाँध उत्तराखण्ड राज्य की भागीरथी व भिल गाँना नदियों पर बना हुआ एक विशाल बाँध है। इस बाँध के बनने पर सारा टिहरी शहर और आसपास के अनेक गाँव डूब गये हैं। अत: उन्हें विस्थापित करना पड़ा।
प्रश्न 5.
सभी टिहरी वासी लोग माटी वाली के ग्राहक क्यों बन जाते हैं?
उत्तर :
टिहरी वासी लोग अपने घरों में स्थित चौके-चूल्हे की लिपाई लाल चिकनी मिट्टी से करते हैं परन्तु शहर से उपलब्ध मिट्टी रेतीली है। इसलिए सभी माटी वाली के ग्राहक बनकर उससे मिट्टी खरीदते रहते हैं।
प्रश्न 6.
माटी वाली ने दो रोटियों में से एक रोटी को कपड़े में लपेटकर अपने पास क्यों रख ली थी? '
उत्तर :
माटी वाली गरीब थी। उसने दो रोटियों में से एक रोटी कपड़े में लपेट कर अपने वृद्ध पति को खिलाने के लिए चुपचाप रख ली थी।
प्रश्न 7.
'चाय तो बहुत अच्छा साग हो जाती है।' माटी वाली के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
माटी वाली गरीब थी। जब उसे कोई रोटी और चाय देता तो वह उस रोटी को चाय में डुबाकर खा लेती थी। भूख और गरीबी के कारण उसे वह चाय साग से भी अच्छी लगती है। इसलिए वह चाय को साग से भी अच्छा मानती है।
प्रश्न 8.
'माटाखाना तो मेरी रोजी है साहब।' माटी वाली के इस कथन में उसकी किस विवशता की व्यंजना हुई है।
उत्तर :
माटी वाली के इस कथन में उसकी असहाय स्थिति की व्यंजना हुई है, क्योंकि माटाखाना उसका नाम न होकर एक सार्वजनिक स्थल है जहाँ से रोजाना मिट्टी लाकर बेचती और अपनी जीविका चलाती है।
प्रश्न 9.
टिहरी शहर में आपाधापी मचने का प्रमुख कारण क्या था?
उत्तर :
टिहरी बाँध के सुरक्षाकर्मियों द्वारा बाँध की सुरंगों को बन्द करने पर जब शहर में पानी भरने लगा और मकान उसमें डूबने लगे, लोग मकान छोड़कर इधर-उधर भागने लगे। यह शहर में आपाधापी मचने का प्रमुख कारण था।
प्रश्न 10.
माटी वाली की अपनी झोंपड़ी थी, फिर भी उसे पुनर्वास का लाभ क्यों नहीं मिला?
उत्तर :
माटी वाली के पास झोंपड़ी तो थी लेकिन उसके पास उस झोंपड़ी के होने का प्रमाण-पत्र नहीं था। प्रमाण पत्र न होने के कारण उसे पुनर्वास का लाभ नहीं मिला।
लेखक-परिचय - समसामयिक कथा-लेखक विद्यासागर नौटियाल का जन्म सन् 1933 में टिहरी जिले के माली देवल गाँव में हआ। उन्होंने उच्च शिक्षा वाराणसी से प्राप्त की। इन्होंने पहाड़ी जीवन का यथार्थ चि से किया है। इनकी भाषा में स्थानीय मिट्टी की सुगन्ध रची-बसी है। इनके 'टिहरी की कहानियाँ', 'सुच्ची डोर', 'कहानी-संग्रह', 'उलझे रिश्ते', 'बीम अकेली', 'सूरज सबका है', 'झुण्ड से बिछुड़ा' उपन्यास एवं 'मोहन गाता जाएगा' आत्मकथा प्रकाशित हैं।
पाठ-सार - टिहरी शहर में सेमल का तप्पड़ मोहल्ले की ओर बने आखिरी घर की खोली में एक माटी वाली रहती थी। वह शहर के घर-घर में लाल मिट्टी पहुँचाती और उसी से उसका जीवन चलता। वह एक कनस्तर में मिट्टी भरकर लाती, उससे लोग घरों की लिपाई-पुताई करते। पूरे शहर में वह माटी वाली के नाम से जानी जाती थी। एक दिन वह माटी का कनस्तर लेकर एक घर में गई। इस घर की मालकिन ने उसे दो रोटियाँ दीं। उसने एक रोटी अपने सिर पर रखे गन्दे कपड़े पर बाँध ली और एक वहीं पर चाय के साथ खा ली। माटी वाली को पुरानी चीजों का मोह था। उसका कहना था कि वैसे भी अपनी चीज का मोह बहुत बुरा होता है। टिहरी का मोह भी वैसा ही है। अब हम यहाँ से उजड़ कर कहाँ जायेंगे।
टिहरी में भागीरथी नदी पर विशाल बाँध बनने से पूरा टिहरी शहर और आसपास के अनेक गाँव डूबने लगे, तो माटी वाली से कहा कि मुआवजा उन्हीं को मिलेगा, जिनकी कोई जमीन या सम्पत्ति डूब में गई है। परन्तु उस जैसी बेघर मजदूरों का क्या होगा? माटी वाली कई घरों में मिट्टी पहुँचाकर तथा वहाँ से रोटियाँ लेकर अपने बूढ़े पति के लिए लायी थी।
उसका पति उसी की आस में बैठा रहता था। टिहरी से उखड़े हुए लोगों को अन्यत्र बसाने वाले साहब ने जब उससे कहा कि वह अपने घर का प्रमाण-पत्र ले आवे, तो वह कहाँ से लाती? उसके पास कोई ऐसा कागज नहीं था। उसे अब सरकारी मदद भी नहीं मिल सकती थी। टिहरी बाँध भरने लगा, उसमें शहर डूबने लगा, तो माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठी लोगों से कह रही थी-"गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।"
कठिन-शब्दार्थ :