RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 शांति

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 शांति Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Political Science Solutions Chapter 9 शांति

RBSE Class 11 Political Science शांति InText Questions and Answers

प्रश्न 1. 
चिंतन-मंथन निम्न में से किस विचार से आप सहमत हैं और क्यों ? 
(i) सभी दुष्कर्म मन के कारण उपजते हैं। यदि मन रूपान्तरित (परिवर्तित) हो जाए तो क्या दुष्कर्म बने रह सकते- गौतम बुद्ध 
(ii) मैं हिंसा का विरोध करता हूँ क्योंकि जब यह कोई अच्छा कार्य करती प्रतीत होती है तब अच्छाई अस्थायी होती है जबकि इससे जो बुराई पैदा होती है वह स्थायी होती है।" -महात्मा गांधी 
(iii) हम वैसे हों जिसकी आँखें हमेशा दुश्मन की तलाश में हों, हम शान्ति को नए-नए युद्धों का साधन मानकर उससे प्रेम करें और छोटी शान्ति को लम्बी शान्ति से अधिक प्रेम करें। मैं तुम्हें काम करने की नहीं, जीतने की सलाह देता हूँ। तुम्हारा काम एक युद्ध हो, तुम्हारी शान्ति एक विजय हो। फ्रेडरिक नीत्शे
उत्तर:
(i) सभी दुष्कर्म मन के कारण उपजते हैं। यदि मन रूपान्तरित (परिवर्तित) हो जाए तो क्या दुष्कर्म बने रह सकते
गौतम बुद्ध हम इस कथन से सहमत हैं, क्योंकि 'मन' हमारे कार्यों व व्यवहार के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होता है। यदि हमारा मन पढ़ने में लगता है तो हम एक मेधावी विद्यार्थी बन जाते हैं। हमारा मन गलत कामों में लगता है तो हम चोर, लुटेरे, डाकू बन जाते हैं। अत: महात्मा बुद्ध का यह विचार बहुत ही सत्य व गहरा है। यदि हम अपने मन को शान्तिपूर्ण उपायों और अच्छे  कामों में लगायें तो काफी हद तक दुनिया में बुरे कामों और हिंसा पर लगाम लग सकती है।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 शांति  

(ii) मैं हिंसा का विरोध करता हूँ क्योंकि जब यह कोई अच्छा कार्य करती प्रतीत होती है तब अच्छाई अस्थायी होती है जबकि इससे जो बुराई पैदा होती है वह स्थायी होती है।" -महात्मा गांधी हम इस कथन से सहमत हैं, क्योंकि गाँधीजी का यह कथन स्थायी शान्ति की स्थापना के लिए एक सर्वोत्तम मार्ग दिखाता है। यह पूरी तरह सत्य है कि हिंसा पर आधारित शान्ति या अच्छाई कुछ समय तक ही रहती है, बाद में इसके एक बुराई के रूप में परिवर्तित हो जाने की सम्भावना बहुत अधिक रहती है। यह बुराई लम्बे समय तक जड़ें जमाये रखती है। उदाहरण के लिए हमने कम्बोडिया में खमेर रूज का शासन देखा। यह क्रान्तिकारी हिंसा से प्राप्त हुआ था परन्तु यह स्वयं व्यापक नरसंहार और अशान्ति का प्रतीक बन गया था।

(iii) हम वैसे हों जिसकी आँखें हमेशा दुश्मन की तलाश में हों, हम शान्ति को नए-नए युद्धों का साधन मानकर उससे प्रेम करें और छोटी शान्ति को लम्बी शान्ति से अधिक प्रेम करें। मैं तुम्हें काम करने की नहीं, जीतने की सलाह देता हूँ। तुम्हारा काम एक युद्ध हो, तुम्हारी शान्ति एक विजय हो। फ्रेडरिक नीत्शे हम इस कथन से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं क्योंकि इन विचारों को अपनाने का सीधा सा मतलब यह है कि हम दुनिया को एक युद्ध का मैदान बना दें। ऐसी दुनिया में प्रेम, भाईचारा, सहयोग कुछ भी नहीं होगा। हर व्यक्ति केवल संघर्ष और युद्ध को ही अपनी समस्या का समाधान मानेगा। लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए योग्यता व कार्य की अपेक्षा छीनने की प्रवृत्ति अपनाने लगेंगे। इससे पूरी दुनिया एक जंगल बन जायेगी।

प्रश्न 2. 
आओ कुछ करके सीखें नोबल शान्ति पुरस्कार पाने वाले कुछ लोगों के नाम लिखें। इनमें से किसी एक पर टिप्पणी भी लिखें।
उत्तर:
नोबल शान्ति पुरस्कार पाने वाले कुछ प्रमुख लोग हैं

  1. मदर टेरेसा (भारत) 
  2. नेल्सन मण्डेला (दक्षिण अफ्रीका) 
  3. दलाईलामा (तिब्बत) 
  4. आंग सान सू की (म्यांमार) 
  5. जिम्मी कार्टर (संयुक्त राज्य अमेरिका) 
  6. मार्टिन लूथर किंग (संयुक्त राज्य अमेरिका) 
  7. कोफी अन्नान (पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव) 
  8. लिउ शियाओबो (चीन)

नेल्सन मण्डेला नेल्सन मण्डेला दक्षिण अफ्रीका में स्वतन्त्रता और अधिकारों की रक्षा तथा माँग के लिए एक लम्बा संघर्ष चलाने वाले अग्रणी नेता रहे हैं। मण्डेला ने दक्षिण अफ्रीका में गोरों की सरकार द्वारा काले लोगों के साथ किये जा रहे भेदभावों का विरोध किया तथा सरकारी नीतियों को समान व भेदभाव रहित बनाने का प्रयास किया। मण्डेला ने अपनी मांगों को मनवाने के लिए 'अहिंसा' का रास्ता अपनाया। उनका आन्दोलन दुनिया के सामने शान्तिपूर्वक अपनी असहमति व्यक्त करने व अधिकारों की लड़ाई लड़ने की मिसाल बन गया। वह गाँधीजी से बहुत प्रभावित रहे।

इसी कारण उनके आन्दोलन में गाँधी जी के सत्य, अहिंसा जैसे आदर्शों की झलक दिखाई पड़ी। उनके शान्तिपूर्ण आन्दोलन ने दुनिया को सन्देश दिया कि किसी भी व्यवस्था या समाज में हम शान्तिपूर्वक भी अपनी असहमति जता सकते हैं। उनके इस आन्दोलन ने दुनिया को 'शान्ति' का सन्देश दिया। इसी कारण उन्हें दुनिया में शान्ति के लिये किये गये प्रयासों को दिये जाने वाले 'नोबेल शान्ति पुरस्कार' से सन् 1993 में सम्मानित किया गया।

प्रश्न 3. 
वाद-विवाद-संवाद क्या आपको लगता है कि हिंसा का सहारा लेना कभी-कभी जरूरी हो सकता है ? आखिरकार जर्मनी के नाजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए बाहरी सैन्य-हस्तक्षेप करना पड़ा था।
उत्तर:
यह महत्वपूर्ण मुद्दा है कि क्या कुछ स्थितियों में हिंसा का सहारा लेना जरूरी होता है या नहीं। इस मुद्दे पर एक उचित निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए हमें इसके पक्ष और विपक्ष में प्रचलित मतों को जानना होगा
पक्ष में तर्क (वाद)-
(i) कई बार समाज अथवा राज्य के सामने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिनमें बिना हिंसा के शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती, जैसे देश में दो धर्मों के लोगों के बीच हिंसा फैल जाए तो राज्य के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह बल प्रयोग द्वारा लोगों को शान्त करे। ऐसी परिस्थितियों में केवल शान्तिपूर्ण उपाय जैसे समझाना, बातचीत करना, अपील करना पर्याप्त नहीं होते।

(ii) आज दुनिया का प्रत्येक राष्ट्र अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए हिंसा का ही सहारा लेता है। उदाहरण के लिए भारत जैसे शान्तिप्रिय देश को भी न चाहते हुए कई बार युद्ध करने पड़े।

विपक्ष में तर्क (विवाद)-
(i) यदि दुनिया में सभी राष्ट्र मिलकर शान्ति की स्थापना करना चाहें तो युद्धों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। युद्ध तो उनकी शान्ति के प्रति वचनबद्धता की कमजोरी को दर्शाते हैं।

(ii) सैन्य हस्तक्षेप या बल प्रयोग द्वारा शान्ति की स्थापना नहीं की जा सकती। इससे केवल अशान्ति को कुछ समय के लिए दबाया जा सकता है। उदाहरण के लिए दंगों की स्थिति में राज्य को लोगों से अपील करनी पड़ती है, उन्हें समझाना पड़ता है तभी शान्ति की स्थापना हो पाती है। निष्कर्ष-उपर्युक्त दोनों पक्षों को देखने के बाद हम यह कह सकते हैं कि शान्ति की स्थापना के लिए 'हिंसा' और 'अहिंसा' दोनों ही रास्ते अपना अलग महत्व रखते हैं। यदि किसी देश पर दुश्मन देश की सेना हमला कर दे तो उसे तुरन्त तो इसका जवाब सैन्य कार्यवाही से ही देना पड़ेगा। परन्तु यदि राष्ट्र इस स्थिति को आने से पहले ही उचित बातचीत, सन्धि, समझौते का मार्ग अपनाये तो हिंसा से बचा जा सकता है। अतः स्थायी शान्ति की स्थापना तो केवल अहिंसात्मक उपायों द्वारा ही की जा सकती है, परन्तु अति आवश्यक परिस्थितियों में कुछ समय के लिए हिंसा का भी सहारा लेना जरूरी हो जाता है। आओ कुछ करके सीखें

प्रश्न 4. 

  1. गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका, चंपारण में किए गए सत्याग्रह और नमक सत्याग्रह की पद्धति पर सामग्री एकत्र करो।
  2. मार्टिन लूथर किंग जूनियर के नागरिक अधिकार आन्दोलन के बारे में जानकारी खोजो। वह गाँधी से किस प्रकार प्रेरित थे ?

उत्तर:
(i) गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका, चंपारण और नमक सत्याग्रह 
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी का आन्दोलन गाँधी जी ने राजनीति में अहिंसा पर आधारित प्रतिरोध का सर्वप्रथम प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में प्रारम्भ कर दिया था। वहाँ पर उस समय ब्रिटिश शासन था और ब्रिटिश सरकार गोरे और काले लोगों में भेदभाव करती थी। गाँधीजी ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने काले लोगों को एक संगठित अहिंसात्मक आन्दोलन चलाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इसके लिए धरना, प्रदर्शन, अनशन, सत्याग्रह आदि तरीकों का सुझाव दिया।

चम्पारण सत्याग्रह गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर सर्वप्रथम चम्पारण (बिहार) के नील किसानों ने उन्हें अपनी समस्याएँ बताईं और मदद की अपील की। फलस्वरूप गाँधीजी सन् 1917 में स्वयं वहाँ गये और किसानों की समस्याओं को देखा। उन्होंने किसानों को यह मार्ग बताया कि वे अंग्रेजों को अपने खेत न दें तथा सरकार को लगान देना बन्द कर दें। फिर भी समस्या का समाधान न हो तो वे इस स्थान को छोड़कर दूसरी जगह चले जाएँ।

इसे 'देशान्तरण' का नाम दिया गया। यह भी गाँधीजी के सत्याग्रह की एक पद्धति थी। नमक सत्याग्रह -गाँधीजी ने भारत में चम्पारण से अपने राजनीतिक आन्दोलनों की शुरुआत की। वहाँ की सफलता से उन्हें अपनी पद्धति और विचारों पर पूरा विश्वास हुआ। इसके चलते गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया। इसकी शुरूआत उन्होंने सन् 1930 में दाण्डी नामक स्थान तक पैदल यात्रा करके नमक बनाकर सरकारी कानून की अवज्ञा करके की। इसे 'नमक सत्याग्रह' का नाम दिया गया। इसके चलते अंग्रेजों को नमक बनाने पर लगाये गये प्रतिबन्ध को हटाना पड़ा। इस आन्दोलन में उनकी पद्धति 'आज्ञा पालन से इनकार' की थी।

(ii) मार्टिन लूथर किंग जूनियर--1950 के दशक में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अमेरिका में काले लोगों को समान नागरिक अधिकार दिलाने के लिए आन्दोलन चलाया। इसके अन्तर्गत किंग ने काले लोगों को भी मानव होने के नाते गोरों के समान अधिकार दिये जाने की माँग की तथा रंग आधारित भेदभाव का भरपूर विरोध किया। किंग गाँधीजी से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। उन्हें गाँधी जी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के विचारों में बहुत विश्वास था। इसी कारण उन्होंने अपने आन्दोलन को भी अहिंसात्मक आन्दोलन के रूप में आगे बढ़ाया और अपार सफलता व समर्थन प्राप्त किया। आओ कुछ करके सीखें

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 शांति

प्रश्न 5. 
कल्पना करें कि आपको शान्ति पर एक पुरस्कार प्रारम्भ करना है। इस पुरस्कार का प्रतीक चिह्न और डिजाइन बनाएँ। आपकी राय में 'शान्ति' के बारे में आपकी समझ को कौन-सा प्रतीक चिह्न सबसे बेहतर ढंग से व्यक्त करता है ? आप यह पुरस्कार किसे देना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर:
यदि हमें शान्ति पर एक पुरस्कार प्रारम्भ करना हो तो हम निम्न प्रतीक चिह्न और डिजाइन बनाएँगे हमारे शान्ति पुरस्कार का प्रतीक चिह्न व डिजाइन हमारी राय में शान्ति के बारे में हमारी समझ को प्रतीक चिह्न के रूप में 'सफेद कबूतर' सबसे बेहतर ढंग से व्यक्त करता है। इसका कारण यह है कि कबूतर स्वभाव से शान्तिप्रिय पक्षी है और इसका 'सफेद रंग' दुनिया में पहले से ही शान्ति व सद्भाव का प्रतीक माना जाता है।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 शांति 1

अतः 'सफेद कबूतर' दुनिया में 'शान्ति' का बेहतर प्रतीक है। हम यह पुरस्कार वर्तमान भारत में अहिंसात्मक रूप से असहमति और माँग रखने के लिए एक व्यापक आन्दोलन चलाने वाले प्रसिद्ध समाजसेवी श्री अन्ना हजारे को देना चाहेंगे।
इसके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाया गया आन्दोलन अनुशासन और अहिंसा की मिसाल पेश करता है।
  2. अन्ना हजारे ने अपने आन्दोलन में स्वयं 12 दिनों के आमरण अनशन द्वारा आत्म-त्याग की प्रेरणा प्रदान की।
  3. अन्ना का आन्दोलन यह सन्देश देता है कि यदि हमें व्यवस्था (सरकार) से किसी बात पर असहमति हो तो उसे शान्तिपूर्वक अहिंसात्मक उपायों से व्यवस्था के सामने जाहिर करके उचित व स्थायी समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए। 

प्रश्न 6. 
वाद-विवाद-संवाद
समकालीन विश्व में परमाण्विक हथियार युद्ध रोकने में सहायक हैं।
उत्तर:
यह वर्तमान विश्व में वाद-विवाद का प्रमुख विषय है कि समकालीन विश्व में परमाणु हथियार युद्ध रोकने में सहायक हैं या ये हिंसा को बढ़ाने वाले हैं। इस विषय में कोई अन्तिम निष्कर्ष निकालने से पहले हमें इसके पक्ष व विपक्ष में दिये जाने वाले तर्कों को देखना होगा
पक्ष में तर्क (वाद)-
(i) परमाणु हथियारों का प्रयोग आक्रमण करने वाले और जिस पर आक्रमण किया जाता है, उन दोनों ही देशों को समान रूप से नुकसान पहुंचाते हैं। अतः राष्ट्र इनके प्रयोग से बचता है और युद्ध की बजाय अन्य उपायों को अपनाता है।

(ii) परमाणु हथियारों से सम्पन्न एक राष्ट्र दूसरे परमाणु हथियार सम्पन्न राष्ट्र पर हमला करने से बचता है और इससे उन दोनों राष्ट्रों में भीषण तबाही होने से बच जाती है।

विपक्ष में तर्क (विवाद)-
(i) परमाणु हथियार दुनिया के लिए घातक हैं। यह कुछ समय के लिए शान्ति का माहौल जरूर बनाते हैं परन्तु इनसे लम्बे समय तक स्थायी शान्ति की कल्पना करना व्यर्थ है। यह कभी भी भीषण तबाही को अन्जाम दे सकते

(ii) परमाणु हथियार दुनिया में देशों के बीच परमाणु शस्त्रों की होड़ को जन्म देते हैं। प्रत्येक राष्ट्र इन्हें पाकर अपनी शक्ति बढ़ाना चाहता है। ऐसे में ये भले ही युद्ध रोकने में सहायक लगते हों परन्तु ये भीषण युद्धों का कारण भी बन सकते हैं। निष्कर्ष (संवाद) उपर्युक्त दोनों पक्षों को देखने के बाद अन्त में हम यह कह सकते हैं कि परमाणु हथियारों ने आवश्यक रूप से दुनिया में राष्ट्रों के बीच प्रत्यक्ष युद्धों को तो रोका है परन्तु इसने छिपे युद्धों जैसे आतंकवाद, घुसपैठ इत्यादि घटनाओं में वृद्धि की है। अतः परमाणु हथियारों को युद्ध रोकने का साधन मानना हमारी भारी भूल होगी। यह बाहर से ऐसे लगते भले हों परन्तु वास्तविकता यह है कि ये युद्धों को और भयानक बना सकते हैं।

RBSE Class 11 Political Science शांति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
क्या आप जानते हैं कि एक शान्तिपूर्ण दुनिया की ओर बदलाव के लिए लोगों के सोचने के तरीके में बदलाव जरूरी है ? क्या मस्तिष्क शान्ति को बढ़ावा दे सकता है ? और क्या मानव मस्तिष्क पर केन्द्रित रहना शान्ति स्थापना के लिए पर्याप्त है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में यदि हम एक शांतिपूर्ण दुनिया चाहते हैं तो लोगों के सोचने के तरीकों में बदलाव लाना आवश्यक है क्योंकि यदि लोगों के मस्तिष्क शांति के बारे में सोचेंगे तो हिंसात्मक गतिविधियाँ अपने आप कम हो जाएँगी। हाँ, मस्तिष्क शान्ति को बढ़ावा दे सकता है। हमारे सोचने के तरीके पर ही निर्भर करता है कि हम विभिन्न समस्याओं के निपटारे शान्ति से खोजते हैं या बल और हिंसा का सहारा लेते हैं। उदाहरण के लिए किसी विद्यार्थी को कक्षा के कुछ विद्यार्थी परेशान करते हैं, तो वह अपने मस्तिष्क की प्रकृति के आधार पर इस समस्या से निबटने के रास्ते खोजेगा।

यदि वह हिंसक प्रवृत्ति का है तो अपने पक्ष में कुछ और विद्यार्थियों को बुलाकर खुद को परेशान करने वाले विद्यार्थियों को डरा-धमकाकर शान्त करने की कोशिश करेगा। यदि वह शान्तिप्रिय है तो पहले उन विद्यार्थियों को समझायेगा नहीं तो फिर कक्षाध्यापक या प्रधानाचार्य से शिकायत करेगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि मस्तिष्क अनिवार्य रूप से शान्ति को बढ़ावा दे सकता है। नहीं, मानव मस्तिष्क पर केन्द्रित रहना शान्ति स्थापना के लिए पर्याप्त नहीं है। क्योंकि हम दुनिया में प्रत्येक मानव के नैतिक होने की कल्पना नहीं कर सकते। मानव के स्वभाव में अपनी प्रभुता स्थापित करने की प्रवृत्ति होती है। इसी कारण समाज में आए दिन हिंसक संघर्ष होते रहते हैं। इसी प्रकार देश की रक्षा भी युद्धों के चलते खतरे में पड़ जाती है। अतः केवल मानव मस्तिष्क के सहारे शान्ति स्थापना की उम्मीद करना गलत होगा। शान्ति स्थापना के लिए बल का उचित समय पर उचित मात्रा में प्रयोग भी आवश्यक होता है।

प्रश्न 2. 
राज्य को अपने नागरिकों के जीवन और अधिकारों की रक्षा अवश्य ही करनी चाहिए। हालाँकि कई बार राज्य के कार्य इसके कुछ नागरिकों के खिलाफ हिंसा के स्रोत होते हैं। कुछ उदाहरणों की मदद से इस पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
राज्य को अपने नागरिकों के जीवन और अधिकारों की रक्षा अवश्य ही करनी चाहिए। विशेषकर वर्तमान युग लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का युग है। ऐसे में प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का एक बड़ा दायित्व बनता है। फिर भी वर्तमान में प्रत्येक राज्य अपने आपको पूर्ण रूप से एक स्वतन्त्र और सर्वोच्च इकाई के रूप में देखता है। शान्ति का अनुसरण करने के लिए यह जरूरी होता है कि हम स्वयं को वृहत्तर मानवता के एक हिस्से के रूप में देखें। लेकिन इस बात से अलग वर्तमान में राज्यों में लोगों में अन्तर करके देखने की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है। राज्य अपने नागरिकों के हितों के नाम पर अक्सर बाकी लोगों को हानि पहुँचाने के लिए तैयार हो जाते हैं।

इसके अलावा आजकल प्रत्येक राज्य ने बल प्रयोग के अपने उपकरणों को मजबूत किया है। हालांकि राज्य से यह उम्मीद की जाती है कि वह सेना या पुलिस का प्रयोग अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए करेगा लेकिन व्यवहार में इन शक्तियों का प्रयोग राज्य द्वारा अपने ही नागरिकों के विरोध के स्वर को दबाने के लिए किया जाने लगा है। उदाहरण के लिए हम म्यांमार में सैनिक तानाशाही का उल्लेख कर सकते हैं। वहाँ सेना नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले स्रोत की बजाय स्वयं जनता पर तानाशाही करने वाला उपकरण बन गया है। अपने ही भीतर अपने ही लोगों की असहमति को दबाने के लिए वहाँ बल प्रयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार राज्य द्वारा सेना व पुलिस जैसे स्रोतों का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में भी नागरिकों के खिलाफ हिंसा करने वाले स्रोतों के रूप में किया जाता रहा है।

प्रश्न 3. 
शान्ति को सर्वोत्तम रूप में तभी पाया जा सकता है जब स्वतन्त्रता, समानता और न्याय कायम हो। क्या आप सहमत हैं ?
उत्तर:
हाँ, हम इस बात से सहमत हैं कि शांति को सर्वोत्तम रूप में तभी पाया जा सकता है जब स्वतंत्रता, समानता और न्याय कायम हो। यदि किसी राज्य में स्वतंत्रता, समानता और न्याय की स्थापना नहीं हुई है, तो वहाँ प्रायः इनकी प्राप्ति के लिए आंदोलन चलते रहते हैं, जिस कारण वहाँ शांति की स्थापना नहीं हो पाती। अतः वर्तमान लोकतांत्रिक देशों में सर्वप्रथम स्वतंत्रता, समानता और न्याय की स्थापना ही की जाती है ताकि देश में शांति व्यवस्था बनी रहे।

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प्रश्न 4. 
हिंसा के माध्यम से दूरगामी न्यायोचित उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं ?
उत्तर:
हिंसा के माध्यम से दूरगामी न्यायपूर्ण उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता। हमारा इस कथन के बारे में सोचना यह है कि ये कथन शान्ति की स्थापना में हिंसा की भूमिका की सही स्थिति बताता है। अक्सर यह दावा किया जाता है कि हिंसा एक बुराई है, लेकिन कभी-कभी यह शान्ति लाने का अनिवार्य साधन जैसी होती है। वास्तव में ऐसा सच नहीं होता। दिया गया कथन इसी सच्चाई को उजागर करने वाला है। हिंसा के पक्ष में यह तर्क भी दिया जाता है कि तानाशाहों और उत्पीड़क शासकों, सरकारों को बलपूर्वक हिंसा द्वारा हटाकर ही जनता को उनसे होने वाले नुकसानों से बचाया जा सकता है। लेकिन हम देख चुके हैं कि कई बार अच्छे उद्देश्य के लिए हिंसा का सहारा लेना आत्मघाती हो सकता है। यह जनता के लिए ही नुकसानदेह बन जाती है।

एक बार हिंसा से समाधान खोजने की प्रवृत्ति की शुरूआत हो जाए तो यह शीघ्र ही नियन्त्रण से बाहर हो जाती है और उन्हीं लोगों को नुकसान पहुँचाने लगती है जिनके अधिकारों की रक्षा के लिए इसका उदय हुआ था। विश्व में ऐसे कई उदाहरण अब तक सामने आ चुके हैं, जैसे कम्बोडिया में खमेर रूज का शासन 'क्रान्तिकारी हिंसा' का रूप था परन्तु शीघ्र ही यह उन्हीं नागरिकों के नरसंहार का पर्याय बन गया जिनके हितों के लिए क्रान्तिकारी हिंसा को अपनाया गया था। अतः हमें यह समझने की जरूरत है कि शान्ति एक बार में हमेशा के लिए हासिल की जा सकने वाली चीज नहीं है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यापकतम अर्थों में मानव कल्याण की स्थापना के लिए जरूरी नैतिक और भौतिक संसाधनों के सक्रिय क्रियाकलाप शामिल होते हैं। ऐसे में हिंसा के माध्यम से दूरगामी न्यायपूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 5. 
विश्व में शान्ति स्थापना के जिन दृष्टिकोणों की अध्याय में चर्चा की गई है, उनके बीच क्या अन्तर
उत्तर:
विश्व में शान्ति स्थापना के उद्देश्य की पूर्ति हेतु वर्तमान में तीन दृष्टिकोण प्रमुख रूप से मौजूद हैं, जिनकी अध्याय में चर्चा की गई है। ये दृष्टिकोण हैं-

  1. राष्ट्रों द्वारा परस्पर सम्प्रभुता का सम्मान, 
  2. राष्ट्रों के बीच विकास के उद्देश्य से आर्थिक व सामाजिक सहयोग तथा 
  3. राष्ट्र आधारित व्यवस्था के स्थान पर विश्व समुदाय की स्थापना।

यह तीनों ही दृष्टिकोण अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं। फिर भी इनके बीच निम्नलिखित अन्तर बताए जा सकते हैं

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प्रथम दृष्टिकोण (राष्ट्रों द्वारा परस्पर सम्प्रभुता का सम्मान)

द्वितीय दृष्टिकोण (राष्ट्रों के बीच विकास के उद्देश्य से आर्थिक व सामाजिक सहयोग)

तृतीय दृष्टिकोण (राष्ट्र आधारित व्यवस्था के स्थान पर विश्व समुदाय की स्थापना)

1. यह दृष्टिकोण शान्ति बनाए रखने के लिए विभिन्न राष्ट्रों के बीच एक-दूसरे की सत्ता का सम्मान करने पर बल देता है।

यह दृष्टिकोण स्वयं को राष्ट्रों के बीच परस्पर सम्प्रभुता के सम्मान तक सीमित नहीं रखता। यह उससे आगे बढ़कर विभिन्न राष्ट्रों के बीच आर्थिक व सामाजिक सहयोग को भी आवश्यक मानता है।

यह दृष्टिकोण बाकी दोनों दृष्टिकोणों से बिल्कुल ही अलग है। इसके अन्तर्गत दुनिया में राष्ट्र आधारित व्यवस्था को समाप्त करके एक विश्व समुदाय की स्थापना को ही शान्ति का एकमात्र मार्ग माना जाता है।

2. यह दृष्टिकोण राष्ट्रों के अस्तित्व को बनाए रखते हुए शान्ति स्थापित करना चाहता है।

यह दृष्टिकोण राष्ट्रों को बनाए रखने के साथ-साथ उन्हें सहयोगी के रूप में बनाये रखकर शान्ति की कामना करता है।

यह दृष्टिकोण शान्ति कायम करने के लिए राष्ट्रों के अस्तित्व को पूरी तरह समाप्त करना चाहता है.।

3. यह दृष्टिकोण राष्ट्रों के एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने को शान्ति की स्थापना का प्रमुख मार्ग मानता है।

इस दृष्टिकोण में दुनिया में शान्ति स्थापित करने के लिए राष्ट्रों के बीच विकास के नाम पर आर्थिक व सामाजिक सहयोग को जरूरी मार्ग बताया गया है।

इस दृष्टिकोण में राष्ट्रों के अस्तित्व को समाप्त करके एक सीमा रहित दुनिया की स्थापना को शान्ति का प्रमुख आधार बताया गया है।

Prasanna
Last Updated on Sept. 7, 2022, 10:34 a.m.
Published Sept. 1, 2022