Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 संघवाद Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Political Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Political Science Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
एक संघीय व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार की शक्तियाँ कौन तय करता है ?
उत्तर:
हमारे संविधान द्वारा केन्द्र सरकार की शक्तियाँ तय की गई हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने विविधताओं से भरे हमारे देश में संविधान निर्माण के दौरान अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए कुछ ऐसे प्रावधान किये हैं जो केन्द्र सरकार को सशक्त बनाते हैंजैसे कि एकल नागरिकता एकल संविधान एकल सर्वोच्च न्यायालय संविधान संशोधन नए राज्यों का निर्माण अथवा सीमा-निर्धारण आपातकालीन घोषणा राज्यपाल की नियुक्ति राज्य के लिए कानून बनाना आदि। संविधान द्वारा प्रदान किए गए ये समस्त प्रावधान केन्द्रीय सरकार को सशक्त बनाते हैं।
प्रश्न 2.
संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र सरकार और राज्यों में टकराव का समाधान कैसे होता है ?
उत्तर:
संघात्मक व्यवस्था में केन्द्र सरकार और राज्यों के टकराव का समाधान स्वतंत्र न्यायपालिका द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 3.
क्या आप समझते हैं कि अवशिष्ट शक्तियों का अलग से उल्लेख करना जरूरी है ? क्यों ?
उत्तर:
नहीं अवशिष्ट शक्तियों का अलग से उल्लेख करना आवश्यक नहीं है क्योंकि अवशिष्ट शक्तियों से आशय यह है कि भविष्य में इन शक्तियों या विषयों के अलावा अन्य कोई विषय उभरें जो इस समय तक नहीं उभर पाए हैं वे विषय अवशिष्ट हैं इसलिए इनका उल्लेख नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 4.
बहुत-से राज्य शक्ति-विभाजन से असंतुष्ट क्यों रहते हैं ?
उत्तर:
संविधान द्वारा केन्द्र और राज्य के मध्य शक्तियों का बँटवारा किया गया है। इस बँटवारे में आर्थिक और वित्तीय शक्तियाँ केन्द्र सरकार को सौंपी गई हैं एवं राज्यों को वित्तीय मदद के लिए केन्द्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। इसी कारण से बहुत-से राज्य शक्ति विभाजन से असंतुष्ट रहते हैं।
प्रश्न 5.
अरे ! लगता तो यह है कि केन्द्र सरकार के पास ही सारी शक्तियाँ हैं। क्या राज्य इसकी शिकायत नहीं करते ?
उत्तर:
संविधान ने केन्द्र को बहुत अधिक शक्तियाँ प्रदान की हैं। यद्यपि संविधान विभिन्न क्षेत्रों की अलग-अलग पहचान की मान्यता देता है लेकिन फिर भी वह केन्द्र को ज्यादा शक्ति देता है। एक बार जब 'राज्य की पहचान' के सिद्धान्त को मान्यता मिल जाती है तब यह स्वाभाविक ही है कि पूरे देश के शासन में और अपने शासकीय क्षेत्र में राज्य ज्यादा शक्ति की माँग करते हैं। समय-समय पर राज्यों ने ज्यादा शक्ति और स्वायत्तता देने की मांग उठाई है। इससे केन्द्र और राज्यों के बीच संघर्ष और विवादों का जन्म होता है। केन्द्र और राज्य अथवा विभिन्न राज्यों के आपसी कानूनी विवादों का समाधान न्यायपालिका करती है। प्रश्न 6. इस दृष्टिकोण के पक्ष में दो तर्क दें कि हमारा संविधान एकात्मकता की ओर झुका हुआ है ?
उत्तर:
निम्नलिखित तर्कों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है कि हमारा संविधान एकात्मकता की ओर झुका हुआ है
प्रश्न 7.
क्या आप मानते हैं कि
(क) शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है।
(ख) शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है।
उत्तर:
(क) शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है-हम यह नहीं कह सकते कि शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है। जहाँ शक्तियों का स्पष्ट बँटवारा है केन्द्र और राज्यों के अपने दायित्व हैं और जब तक यह दोनों अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन सही तरीके से करते रहें तो यह सवाल ही नहीं उठता कि शक्तिशाली केन्द्र से राज्य कमजोर हो जाए।
(ख) शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है-हम यह नहीं कह सकते हैं कि शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है। राज्य तभी शक्तिशाली हो सकते हैं जब उन्हें शक्तिशाली बनाया जाए उन्हें अधिक स्वायत्तता दी जाए और ऐसा करना मुमकिन नहीं है।
प्रश्न 8.
संघवाद का मतलब झगड़ा है क्या ? पहले हमने केन्द्र और राज्य के झगड़े के बारे में बात की और अब राज्यों के आपसी झगड़ों की बात चल रही है। क्या हम साथ-साथ शांतिपूर्वक नहीं रह सकते ?
उत्तर:
संघवाद का मतलब झगड़ा कतई नहीं है। 'संघ' का अर्थ होता है समूह' और एक समूह की सफलता आपसी सहयोग एकता आदि पर निर्भर करती है। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारा देश विविधताओं से भरा पड़ा है जहाँ अनेक भौगोलिक इकाइयाँ हैं एवं प्रत्येक इकाई की अपनी अलग आर्थिक सामाजिक राजनैतिक व ऐतिहासिक पहचान रही है। जब इन पहचानों का एक-दूसरे राज्य के द्वारा अतिक्रमण अथवा एक-दूसरे पर दावा पेश किया जाता है तो विवाद की स्थिति पैदा होती है जिसका समाधान न्यायपालिका द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 9.
भारत के राज्यों की सूची बनाएँ और पता करें कि प्रत्येक राज्य का गठन किस वर्ष किया गया ?
उत्तर
वर्तमान में भारत में 28 राज्य एवं 8 केन्द्र शासित क्षेत्र हैं ये राज्य निम्नलिखित हैं-
8 केन्द्रशासित-
सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा भारत के समस्त राज्यों को पुनर्गठित कर दो श्रेणियों में विभाजित किया गया-
1956 में प्रमुख 14 राज्य थे-
इसके उपरान्त 14 नए राज्यों का गठन निम्नलिखित वर्षों में हुआ1.
31 अक्टूबर 2019 में जम्मू और कश्मीर राज्य को समाप्त कर उसके स्थान पर दो केन्द्र शासित प्रदेश-
(ख) शक्तिशाली राज्यों से केन्द्र कमजोर होता है।
उत्तर:
(क) शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है-हम यह नहीं कह सकते कि शक्तिशाली केन्द्र राज्यों को कमजोर करता है। जहाँ शक्तियों का स्पष्ट बँटवारा है केन्द्र और राज्यों के अपने दायित्व हैं और जब तक यह दोनों अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन सही तरीके से करते रहें तो यह सवाल ही नहीं उठता कि शक्तिशाली केन्द्र से राज्य कमजोर हो जाए।
(ख) राज्यों के उत्तरदायित्व बहुत हैं और आय के साधन कम । आर्थिक एवं वित्तीय सहायता के लिए राज्यों को केन्द्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है।
(ग) प्रशासन पर केन्द्रीय नियंत्रण से राज्य नाराज रहते हैं।
(घ) कुछ स्थानीय समस्यायें जो राज्य के भीतर होती हैं उन पर नियंत्रण करने के लिए या कानून बनाने के लिए केन्द्र की मंजूरी आवश्यक होती है।
प्रश्न 11.
स्वायत्तता और अलगाववाद में क्या फर्क है ?
उत्तर:
स्वायत्तता का सीधा-सा अर्थ होता है स्वतंत्रता अपनी जरूरतों के लिए अथवा स्वशासन को चलाने के लिए अधिक स्वतंत्रता की माँग करना। जबकि अलगाववाद का अर्थ बिल्कुल अलग होने की प्रवृत्ति से हैं।
प्रश्न 1.
नीचे कुछ घटनाओं की सूची दी गई है। इनमें से किसको आप संघवाद की कार्य-प्रणाली के रूप में चिह्नित करेंगे और क्यों ?
(क) केन्द्र सरकार ने मंगलवार को जीएनएलएफ के नेतृत्व वाले दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल को छठी अनुसूची में वर्णित दर्जा देने की घोषणा की। इससे पश्चिम बंगाल के इस पर्वतीय जिले के शासकीय निकाय को ज्यादा स्वतन्त्रता प्राप्त होगी। दो दिन के गहन विचार-विमर्श के बाद नई दिल्ली में केन्द्र सरकार प म बंगाल सरकार और सुभाष घीसिंग के नेतृत्व वाले गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जी. एन. एल. एफ.) के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
(ख) वर्षा प्रभावित प्रदेशों के लिए सरकार कार्य-योजना लाएगी-केन्द्र सरकार ने वर्षा प्रभावित प्रदेशों से पुनर्निर्माण की विस्तृत योजना भेजने को कहा है ताकि वह अतिरिक्त राहत प्रदान करने की उनकी माँग पर तुरन्त कार्रवाई कर सके।
(ग) दिल्ली के लिए नए आयुक्त-देश की राजधानी दिल्ली में नए नगरपालिका आयुक्त को बहाल किया जायेगा। इस बात की पुष्टि करते हुए एमसीडी के वर्तमान आयुक्त राकेश मेहता ने कहा कि उन्हें अपने तबादले के आदेश मिल गए हैं और संभावना है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अशोक कुमार उनकी जगह सँभालेंगे। अशोक कुमार अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव के पद पर काम कर रहे हैं। सन् 1975 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राकेश मेहता पिछले साढ़े तीन साल से आयुक्त के पद पर काम कर रहे हैं।
(घ) मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा-राज्यसभा ने मणिपुर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान करने वाला विधेयक पारित किया। मानव संसाधन विकास मंत्री ने वायदा किया है कि अरुणाचल प्रदेश त्रिपुरा और सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में भी ऐसी संस्थाओं का निर्माण होगा।
(ङ) केन्द्र ने धन दिया-केन्द्र सरकार ने अपनी ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत अरुणाचल प्रदेश को 553 लाख रुपये दिए हैं। इस धन की पहली किश्त के रूप में अरुणाचल प्रदेश को 466 लाख रुपये दिए गए हैं।
(च) हम बिहारियों को बताएंगे कि मुंबई में कैसे रहना है-करीब 100 शिवसैनिकों ने मुम्बई के जे. जे. अस्पताल में उठा-पटक करके रोजमर्रा के कामधंधे में बाधा पहुँचाई नारे लगाए और धमकी दी कि गैर मराठियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की गई तो इस मामले को वे स्वयं ही निपटाएँगे।
(छ) सरकार को भंग करने की माँग काँग्रेस विधायक दल ने प्रदेश के राज्यपाल को हाल में सौंपे एक ज्ञापन में सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक एलांयस ऑफ नगालैण्ड (डीएएन) की सरकार को तथाकथित वित्तीय अनियमितता और सार्वजनिक धन के गबन के आरोप में भंग करने की माँग की है।
(ज) एनडीए सरकार ने नक्सलियों से हथियार रखने को कहा-विपक्षी दल राजद और उसके सहयोगी काँग्रेस तथा सीपीआई (एम) के वॉक आउट के बीच बिहार सरकार ने आज नक्सलियों से अपील की कि वे हिंसा का रास्ता छोड़ दें। बिहार को विकास के नए युग में ले जाने के लिए बेरोजगारी को जड़ से खत्म करने के अपने वादे को भी सरकार ने दोहराया।
उत्तर:
प्रश्न 2.
बताएँ कि निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही होगा और क्यों ?
(क) संघवाद से इस बात की सम्भावना बढ़ जाती है कि विभिन्न क्षेत्रों के लोग मेल-जोल से रहेंगे और उन्हें इस बात का भय नहीं रहेगा कि एक की संस्कृति दूसरे पर लाद दी जायेगी।
(ख) अलग-अलग किस्म के संसाधनों वाले दो क्षेत्रों के बीच आर्थिक लेन-देन को संघीय प्रणाली से बाधा पहँचेगी। (ग) संघीय प्रणाली इस बात को सुनिश्चित करती है कि जो केन्द्र में सत्तासीन हैं उनकी शक्तियाँ सीमित रहें।
उत्तर:
1. कथन (क) सही है क्योंकि संघवाद में लोग मिलजुलकर रहते हैं। भारत में विभिन्नता में एकता पायी जाती है। सभी लोग मिल जुलकर रहते हैं। संविधान के मौलिक अधिकारों में अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक व शैक्षिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
2. कथन (ग) सही है क्योंकि संघीय प्रणाली में केन्द्र और राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन तो किया जाता है परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि केन्द्र सरकार की शक्तियाँ सीमित रहें। सं त राज्य अमेरिका और भारत में समय के अनुसार केन्द्रीय सरकार की शक्तियों में वृद्धि हुई है।
प्रश्न 3.
बेल्जियम के संविधान के कुछ प्रारम्भिक अनुच्छेद नीचे लिखे गए हैं। इसके आधार पर बताएँ कि बेल्जियम में संघवाद को किस रूप में साकार किया गया है। भारत के लिए ऐसा ही अनुच्छेद लिखने का प्रयास करके देखें।
शीर्षक-I: संघीय बेल्जियम इसके घटक और इसका क्षेत्र
अनुच्छेद 1. बेल्जियम एक संघीय राज्य है जो समुदायों और क्षेत्रों से बना है।
अनुच्छेद 2. बेल्जियम तीन समुदायों से बना है-फ्रैंच समुदाय फ्लेमिश समुदाय और जर्मन समुदाय।
अनुच्छेद 3. बेल्जियम तीन क्षेत्रों को मिलाकर बना है-वैलून क्षेत्र फ्लेमिश क्षेत्र और ब्रूसेल्स क्षेत्र।
अनुच्छेद 4. बेल्जियम में चार भाषाई क्षेत्र हैं-फ्रेंच-भाषी क्षेत्र डच- भाषी क्षेत्र ब्रूसेल्स की राजधानी का द्विभाषी क्षेत्र तथा जर्मन भाषी क्षेत्र । राज्य का प्रत्येक ‘कम्यून' इन भाषाई क्षेत्रों में से किसी एक का हिस्सा है।
अनुच्छेद 5. वैलून क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले प्रांत हैं-वैलून ब्राबैंट हेनॉल्ट लेग लक्जमबर्ग और नामूर। फ्लेमिश क्षेत्र के अन्तर्गत शामिल प्रांत हैं- एंटीवर्प फ्लेमिश ब्राबैंट वेस्ट फ्लैंडर्स ईस्ट फ्लैंडर्स और लिंबर्ग।
उत्तर:
बेल्जियम के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि बेल्जियम समाज एक बहुसंख्यक (संघीय) समाज है जिसमें विभिन्न जाति भाषा तथा बोली बोलने वाले लोग रहते हैं। ये अलग-अलग क्षेत्रों तथा प्रान्तों में रहते हैं। बेल्जियम के संविधान के अंतर्गत सहयोगी संघीय व्यवस्था को अपनाया गया। बेल्जियम संघवाद समुदाय एवं क्षेत्रों पर आधारित है। बेल्जियम में तीन समुदाय एवं तीन क्षेत्र हैं। उनमें चार भाषायी क्षेत्र हैं। प्रत्येक समुदाय का यह अधिकार है कि वह अपनी संस्कृति एवं भाषा आदि को अपनाए। भारत में भी संघीय व्यवस्था को अपनाया गया है। बेल्जियम की तरह भारत के संविधान के लिए निम्नलिखित ढंग से अनुच्छेद लिखे जा सकते हैं।
शीर्षक-1: संघीय भारत इसके घटक एवं इसका क्षेत्र।
अनुच्छेद-1. भारत एक संघीय राज्य है जो विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों से निर्मित है।
अनुच्छेद-2. भारत में हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जैन बौद्ध पारसी आदि विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग रहते हैं।
अनुच्छेद-3. भारत 28 प्रांतों और नौ संघीय क्षेत्रों से बना है।
अनुच्छेद-4. भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं जिनमें से 22 भाषाएँ मुख्य हैं।
प्रश्न 4.
कल्पना करें कि आपको संघवाद के संबंध में प्रावधान लिखने हैं। लगभग 300 शब्दों का एक लेख जिसमें निम्नलिखित बिन्दुओं पर आपके सुझाव हों
(क) केन्द्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा
(ख) वित्त-संसाधनों का वितरण
(ग) राज्यपाल की नियुक्ति
उत्तर:
(क) केन्द्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों का बँटवारा- वर्तमान समय में भारतीय संविधान में केन्द्र और प्रदेशों के बीच शक्तियों के बँटवारे के लिए
तीन सूचियों की अपेक्षा दो सूचियाँ ही होनी चाहिए-
संघ सूची में सम्मिलित सभी विषयों पर संसद का एकाधिकार होना चाहिए तथा राज्य सूची में शामिल विषयों पर राज्यों का एकाधिकार होना चाहिए। शेष शक्तियाँ संसद के पास होनी चाहिए। सामान्य परिस्थितियों में संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए।
(ख) वित्त-संसाधनों का वितरण- संघात्मक व्यवस्था का यह मान्य सिद्धान्त है कि केन्द्र एवं राज्यों के पास इतने वित्तीय संसाधन होने चाहिए कि वे अपने वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्यों का भलीभाँति संपादन कर सकें। भारत में वित्तीय शक्तियाँ भी केन्द्र व राज्यों में विभाजित की गई हैं। केन्द्र व राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों का बिल्कुल स्पष्ट विभाजन होना चाहिए।
(ग) राज्यपाल की नियुक्ति-राज्यपाल राज्यों का संवैधानिक मुखिया कहलाता है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति राज्यपालों की नियुक्ति केन्द्र सरकार की सलाह पर करता है। राज्यपाल का पद राज्यों में महत्वपूर्ण पद है जो संवैधानिक मुखिया के साथ-साथ केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। राज्यपाल के पद की इस स्थिति के कारण इसका राजनीतिकरण हो गया है। अतः संघीय व्यवस्था की सफलता के लिए आवश्यक है कि इस पद का दुरुपयोग न हो इसलिए योग्य एवं निष्पक्ष व्यक्ति की नियुक्ति की जानी चाहिए।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सा प्रांत के गठन का आधार होना चाहिए और क्यों?
(क) सामान्य भाषा
(ख) सामान्य आर्थिक हित
(ग) सामान्य क्षेत्र
(घ) प्रशासनिक सुविधा।
उत्तर:
प्रांत के गठन का आधार प्रशासनिक सुविधा होनी चाहिए। क्योंकि प्रायः बड़े राज्यों में प्रशासनिक व्यवस्था ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाती जबकि उसको बाँटकर एक और राज्य बनाने से प्रशासनिक व्यवस्था ठीक प्रकार से कार्य कर सकती है।
प्रश्न 6.
उत्तर भारत के प्रदेशों-राजस्थान मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश तथा बिहार के अधिकांश लोग हिंदी बोलते हैं। यदि इन सभी प्रान्तों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाय तो क्या ऐसा करना संघवाद के विचार से संगत होगा ? तर्क दीजिए।
उत्तर:
यदि सभी हिंदी बोलने वाले प्रांतों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाता है तो यह संघवाद के सिद्धान्त से मेल नहीं खाता। संघवाद का यह अर्थ नहीं है कि सभी हिंदी बोलने वाले प्रांतों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाए। बहुत बड़ा राज्य प्रशासनिक व्यवस्था की दृष्टि से उचित नहीं होगा। एक विशाल राज्य बनने से लोगों को स्वशासन के अवसर कम प्राप्त होंगे। लोगों की सत्ता में सहभागिता कम होगी क्योंकि शक्तियों का केन्द्र राज्य सरकार होगी।
लोगों के विकास तथा सभी क्षेत्रों के विकास के लिए छोटे राज्य होने चाहिए न कि बड़े राज्य। उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है। कई राजनीतिक दलों ने उत्तर प्रदेश के विभाजन की माँग की फलस्वरूप सन् 2000 में उत्तर प्रदेश में से उत्तरांचल (उत्तराखंड) राज्य बनाया गया। इसी प्रकार बिहार में से झारखंड तथा मध्यप्रदेश में से छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया। अतः प्रशासनिक सुविधा के आधार पर छोटे राज्य उचित होते हैं। इस प्रकार केवल हिन्दी भाषा को आधार बनाकर चार राज्यों का एक राज्य बनाना संघवाद के सिद्धांत के विरूद्ध है।
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की ऐसी चार विशेषताओं का उल्लेख करें जिसमें प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान की गई है।
उत्तर:
भारतीय संविधान की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं जिनमें प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान की गई है
(1) स्वतन्त्र एवं सर्वोच्च न्यायपालिका-भारत के संविधान में न्यायपालिका को सर्वोच्च माना गया है। न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है। न्यायाधीश की नियुक्ति में राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इसी प्रकार निर्वाचन आयोग नियंत्रक व महालेखा परीक्षक व लोकसेवा आयोग के मामले में केन्द्र सरकार ही नियुक्ति से लेकर अन्य सुविधाओं के निर्णय का अधिकार रखती है।
(2) राज्यपाल की नियुक्ति- राज्य के मुखिया की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी है। राष्ट्रपति ही राज्यपाल को पद से हटा सकता है। राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के बावजूद भी राज्यपाल केंद्रीय सरकार का प्रतिनिधि है।
(3) संकटकालीन घोषणा- जब राष्ट्रपति बाहरी आक्रमण युद्ध या सशस्त्र विद्रोह के कारण संकटकालीन अवस्था की घोषणा करें तो वह राज्यों को अपनी कार्यपालिका शक्ति को विशेष ढंग से प्रयोग करने का आदेश दे सकता है।
(4) राज्य में राष्ट्रपति शासन- यदि राष्ट्रपति राज्यपाल की रिपोर्ट मिलने पर अथवा किसी अन्य तरीके से सन्तुष्ट हो कि किसी राज्य का शासन विधिपूर्वक नहीं चलाया जा रहा है तो संविधान के अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राष्ट्रपति विधान सभा को विघटित करके राज्य के प्रशासन को अपने हाथ में ले सकता है।
प्रश्न 8.
बहुत से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश क्यों हैं ?
उत्तर:
भारतीय राजनीति में वर्तमान में सर्वाधिक चर्चित पद राज्यपाल का है। भारतीय संविधान के निर्माता राज्यपाल की भूमिका को लेकर बिल्कुल स्पष्ट थे। राज्यपाल को दोहरी भूमिका में कार्य करना था- एक तो राज्य के संवैधानिक अध्यक्ष के रूप में तथा दूसरे केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में। यह माना गया कि सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल राज्य में प्रभावशाली ढंग से कार्य करेगा परन्तु संकटकालीन स्थिति में वह केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करेगा। भारत के बहुत से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश हैं।
क्योंकि वह दोनों प्रकार की परिस्थितियों में तालमेल नहीं बिठा पाया है। राज्यपाल पर यह आरोप लगाया जाता है कि वह सदैव केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में ही कार्य करता है। इसका प्रमुख कारण यह माना जाता है कि अधिकांश राज्यपालों की राजनीतिक पृष्ठभूमि होती है जिसके आधार पर केन्द्र के शासक दल द्वारा उनकी नियुक्ति की जाती है। इस कारण राज्यपाल निरपेक्ष रूप से अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते। इसकी भूमिका केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में होती है जिसके आधार पर इनकी जिम्मेदारी केन्द्र के हितों की रक्षा करना होता है परन्तु ये केन्द्र में जिस दल की सरकार होती है उसके रक्षक बन जाते हैं जिससे राज्यों की सरकारों और राज्यपालों में टकराव उत्पन्न हो जाता है।
प्रश्न 9.
यदि शासन संविधान के प्रावधानों के अनुकूल नहीं चल रहा तो ऐसे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। बताएँ कि निम्नलिखित में कौन-सी स्थिति पी प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिहाज से संगत है और कौन सी नहीं। संक्षेप में कारण भी दें।
(क) राज्य की विधान सभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया है और विपक्षी दल प्रदेश की सरकार को भंग करने की माँग कर रहा है।
(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाएँ बढ़ रही हैं। महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में इजाफा हो रहा है।
(ग) प्रदेश में हुए हाल के विधान सभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला है। भय है कि एक दल दूसरे दल के कुछ विधायकों को धन देकर अपने पक्ष में उनका समर्थन हासिल कर लेगा।
(घ) केन्द्र सरकार और प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन है और दोनों एक-दूसरे के कट्टर शत्रु हैं।
(ङ) साम्प्रदायिक दंगे में 200 से ज्यादा लोग मारे गए हैं
(च) दो प्रदेशों के बीच चल रहे जल-विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इन्कार कर दिया है।
उत्तर:
(क) राज्य की विधान सभा के मुख्य विपक्षी दल के दो सदस्यों की अपराधियों द्वारा हत्या कानून व व्यवस्था का मामला है न कि संवैधानिक प्रावधानों का असफल होना हत्या का अन्य कारण हो सकता है। अतः राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता।
(ख) फिरौती वसूलने के लिए छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाओं एवं महिलाओं के विरूद्ध अपराधों का बढ़ना कानूनव्यवस्था का मामला है। पुलिस को उचित व्यवस्था करके अपराधों को कम करना चाहिए। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना औचित्यपूर्ण नहीं है।
(ग) राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए यह उचित कारण है क्योंकि यदि चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला तथा एक दल दूसरे दल के विधायकों को धन देकर अपने पक्ष में करता है तो इस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
(घ) केन्द्र एवं प्रदेश में अलग-अलग दलों का शासन होना और उनका आपस में कट्टर शत्रु होना संविधानिक प्रावधानों का असफल होना नहीं है अत: प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाना उचित नहीं है।
(ङ) सांप्रदायिक दंगों के आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाना तर्कसंगत नहीं है। भारत में अनेक संप्रदाय रहते हैं। सांप्रदायिक दंगों को रोकना पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी है।
(च) इस कथन में बताया गया है कि दो प्रदेशों के बीच चल रहे विवाद में एक प्रदेश ने सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से इन्कार कर दिया है। उक्त कथन के आधार पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का औचित्य नहीं है। देश का सर्वोच्च न्यायालय न्याय के क्षेत्र में सर्वोपरि है परन्तु दो राज्यों के बीच जल के बँटवारे को आपसी समझौता तथा केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप से सुलझाया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन लगाना इसका उचित समाधान नहीं है।
प्रश्न 10.
ज्यादा स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों ने क्या माँगें उठाई हैं ?
उत्तर:
1960 से निरन्तर विभिन्न राज्यों से प्रान्तीय स्वतन्त्रता की माँग निरन्तर उठाई जाती रही है। पश्चिमी बंगाल पंजाब तमिलनाडु व कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों से विशेष रूप से यह माँग आती रही है
(1) राज्यपाल के पद का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए व राज्यपाल की नियुक्ति में राज्यों के मुख्यमंत्रियों का परामर्श लिया जाना चाहिए।
(2) राज्यों के पास आय के स्वतन्त्र साधन होने चाहिए और संसाधन पर उनका ज्यादा नियन्त्रण होना चाहिए। इसे वित्तीय स्वायत्तता भी कहते हैं। सन् 1977 में पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने केन्द्र-राज्य सम्बन्धों को पुनः परिभाषित करने के लिए एक दस्तावेज प्रकाशित किया। इसमें तमिलनाडु और पंजाब को स्वायत्तता की तथा ज्यादा वित्तीय अधिकार हासिल करने की मंशा छुपी हुई थी।
(3) विभिन्न राज्य प्रशासनिक तन्त्र पर केन्द्रीय नियन्त्रण से नाराज रहते हैं उन्होंने स्वायत्तता में प्रशासनिक शक्तियों की माँग उठाई।
(4) कुछ प्रदेशों ने सांस्कृतिक और भाषाई मुद्दों की मांग उठाई। तमिलनाडु में हिन्दी के वर्चस्व का विरोध और पंजाब में पंजाबी भाषा और संस्कृति को प्रोत्साहन की माँग इसके कुछ उदाहरण हैं।
(5) कुछ राज्यों ने ज्यादा स्वायत्तता की चाह में अधिक वित्तीय अधिकार हासिल करने की मांग उठाई।
प्रश्न 11.
क्या कुछ प्रदेशों में शासन के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए ? क्या इससे दूसरे प्रदेशों में नाराजगी पैदा होती है ? क्या इन विशेष प्रावधानों के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता मजबूत करने में मदद मिलती है ? ।
उत्तर:
संघीय प्रशासन के सिद्धान्त के अनुसार सभी राज्यों के साथ समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए। सभी राज्यों में विकास-कार्य एक समान होने चाहिए। हमारे देश में ऐसा नहीं है। भारत में कुछ छोटे तथा कुछ बड़े राज्य हैं। राज्यसभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व है। उत्तर-पूर्वी राज्यों असम नागालैण्ड मणिपुर अरुणाचल प्रदेश एवं त्रिपुरा के विकास के लिए विशेष प्रावधान है। इन राज्यों के राज्यपाल को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं। कमजोर तथा पिछड़े राज्यों के विकास हेतु विशेष सुविधाएँ देना अनुचित नहीं है और न ही अन्य प्रदेशों को इससे असहमत होना चाहिए । यद्यपि इन विशेष प्रावधानों से कुछ राज्यों में नाराजगी अवश्य होती है लेकिन ये विशेष प्रावधान देश की एकता और अखण्डता बनाए रखने के लिए अति आवश्यक हैं।