Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 5 विधायिका Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Political Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Political Science Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
इन समाचारों पर विचार करें और सोचें कि यदि विधायिकाएँ न होतीं, तो क्या होता ? प्रत्येक रिपोर्ट को पढ़ने के बाद बताएं कि कैसे कार्यपालिका को नियंत्रित करने में विधायिका सफल या असफल रही ?
(अ) 28 फरवरी, 2002 केन्द्रीय वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने केन्द्रीय बजट प्रस्तावों में 50 किलोग्राम यूरिया खाद की बोरी की कीमत 12 रुपए बढ़ाने तथा दो अन्य खादों के दामों में भी कुछ वृद्धि करने के प्रस्ताव की घोषणा की। इससे खाद के दामों में 5 प्रतिशत वृद्धि हुई। यूरिया खाद के वर्तमान मूल्य ₹ 4830 प्रति टन पर 80 प्रतिशत सब्सिडी है।
(ब) 11 मार्च, 2002 विपक्ष के जबर्दस्त विरोध के कारण वित्तमंत्री को खाद के दामों में वृद्धि के प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा। (द हिन्दू, 12 मार्च, 2002)
(स) 4 जून, 1998 को लोकसभा में यूरिया खाद और पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में वृद्धि को लेकर विवादास्पद स्थिति बन गई। पूरे विपक्ष ने सदन से बहिर्गमन किया। इस मुद्दे पर सदन में दो दिनों तक गर्मा-गर्मी रही। वित्त मंत्री ने अपने बजट प्रस्तावों में यूरिया खाद के दामों में मात्र 50 पैसे प्रति किलोग्राम की वृद्धि का प्रस्ताव किया था जिससे उस पर सब्सिडी कम की जा सके। इस विरोध के परिणामस्वरूप, वित्त मंत्री यशवन्त सिन्हा को मूल्य वृद्धि के प्रस्तावों को वापस लेना पड़ा। (हिन्दुस्तान टाइम्स, 4-5 जून, 1998)
(द) 22 फरवरी, 1983 एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए आज लोकसभा ने सर्वसम्मति से सरकारी काम-काज को स्थगित करने तथा असम पर बहस को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया। गृहमंत्री पी. सी. सेठी ने बयान दिया "असम में रहने वाले सभी समुदायों
और समूहों के बीच सद्भाव कायम करने के लिए मैं अलग-अलग विचार और नीतियों से प्रतिबद्धता रखने वाले आप सभी सदस्यों का सहयोग चाहता हूँ। यह समय विवाद का नहीं वरन् घाव पर मरहम लगाने का है।" (हिन्दुस्तान टाइम्स, 22 फरवरी, 1983)
(य) लोकसभा में काँग्रेस सदस्यों ने आंध्र प्रदेश में हरिजनों के उत्पीड़न के प्रति विरोध जताया। (द हिन्दू, 3 मार्च, 1985)
उत्तर:
कार्यपालिका को नियंत्रित करने में विधायिका निम्नलिखित प्रकार सफल रह
(अ), (ब) एवं (स) में दिए गए समाचार बजट प्रस्तावों से सम्बन्धित हैं। यह कार्यपालिका पर विधायिका के वित्तीय नियंत्रण को स्पष्ट करते हैं। सरकार के कार्यक्रमों को लागू करने के लिए वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था बजट के द्वारा की जाती है। संसदीय स्वीकृति के लिए बजट बनाना और उसे पेश करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। लोकहित को देखते हुए सरकार के किसी बजट प्रस्ताव को स्वीकृत करने से विधायिका मना कर सकती है। उपर्युक्त समाचारों में विधायिका ने बजट प्रस्तावों में यूरिया खाद तथा पेटोलियम के बढ़ाए गए दामों का विरोध किया और इस विरोध के फलस्वरूप अन्ततः वित्तमंत्री को इन प्रस्तावों को वापस लेना पड़ा। इससे स्पष्ट होता है कि वित्तीय नियंत्रण द्वारा विधायिका सरकार की नीतियों पर भी नियंत्रण करती है।
(द) 22 फरवरी, 1983 के अन्तर्गत दिए गए समाचार में स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से विधायिका द्वारा कार्यपालिका पर सफल नियंत्रण को दर्शाया गया है। लोकहित के मामले में विधायिका स्थगन प्रस्ताव रखकर विधायिका में चल रहे किसी कार्य को रोककर उस लोकहित के मुद्दे पर विचार करने तथा उस पर ध्यान देने के लिए कार्यपालिका को बाध्य करने का प्रयास करती है। 22 फरवरी, 1983 को जब लोकसभा में गृहमंत्री के समक्ष स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से असम की समस्या पर विचार करने के लिए प्राथमिकता देने का प्रश्न उठाया गया तो गृहमंत्री ने विधायिका के दबाव को समझते हुए सरकारी कामकाज स्थगित करने और असम पर बहस करने को प्राथमिकता देने की बात को स्वीकार कर लिया।
(य) 3 मार्च 1985 को 'द हिन्दू' समाचार पत्र में दिए गए समाचार के अनुसार लोकसभा में कांग्रेस के सदस्यों ने आन्ध्रप्रदेश में हरिजनों के उत्पीड़न के प्रति विरोध जताकर सरकार का ध्यान इस मुद्दे की तरफ आकर्षित किया है।
इस प्रकार विधायिका ने अनेक रूपों में कार्यपालिका को नियंत्रित किया है।
प्रश्न 2.
मुझे समझ में नहीं आता कि खिलाड़ी, कलाकार और वैज्ञानिकों को मनोनीत करने का प्रावधान क्यों है ? वे किसका प्रतिनिधित्व करते हैं और क्या वे वास्तव में राज्यसभा की कार्यवाही में कुछ खास योगदान दे पाते हैं ?
उत्तर:
हमारे संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि राज्यसभा में निर्वाचित सदस्यों के अतिरिक्त 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं। मनोनयन का प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि किसी विशेष क्षेत्र की उपयोगिता साबित हो सके, क्योंकि यह लोग किसी क्षेत्र का विशेष ज्ञान एवं व्यावहारिक अनुभव' रखते हैं। ऐसे 'विशिष्ट व्यक्तियों को सम्मान देने हेतु यह प्रावधान किया गया है । वे राज्यसभा की कार्यवाही में अन्य सदस्यों की भाँति ही योगदान देते हैं, परन्तु उन्हें सदन में वोट देने का अधिकार नहीं होता है।
प्रश्न 3.
क्या आप मानते हैं कि राज्यसभा की संरचना ने भारत में राज्यों की स्थिति को संरक्षित किया है ?
उत्तर:
हम जानते हैं कि राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य के हितों का संरक्षण करना है। इसलिए राज्यों के हितों को प्रभावित करने वाला प्रत्येक मुद्दा इसकी सहमति और स्वीकृति के लिए भेजा जाता है, जैसे अगर केन्द्र सरकार राज्यसूची के किसी विषय (जिस पर केवल राज्य की विधान सभा कानून बना सकती है) को राष्ट्रहित में, संघीय सूची या समवर्ती सूची में हस्तांतरित करना चाहे, तो उसमें राज्यसभा की स्वीकृति आवश्यक है। इसलिए हम कह सकते हैं कि राज्यसभा की संरचना ने भारत में राज्यों की स्थिति को संरक्षित किया है।
प्रश्न 4.
क्या राज्यसभा के चुनाव अप्रत्यक्ष न होकर प्रत्यक्ष होने चाहिए ? उससे क्या फायदा या नुकसान होगा ?
उत्तर:
हमारे संविधान निर्माताओं ने किसी प्रावधान को शामिल करने से पूर्व उसे अनेक बार परखा तभी उसे अपनाया है। यदि उन्होंने राज्यसभा के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को अपनाया है, तो इसके पीछे भी उनकी कोई दूरदर्शिता रही होगी। यदि प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को अपनाया जाता, तो उसके भी अपने फायदे और नुकसान होते, जो कि निम्नलिखित हैं
फायदे -1. लोग अपने प्रतिनिधि को सीधे चुन सकते। 2. प्रतिनिधि एक निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते एवं उसी के हितों का संरक्षण करते। नुकसान-1. प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में अत्यधिक धन खर्च होता एवं चुनावी मशीनरी को काफी मशक्कत करनी पड़ती। 2. चुने गये प्रतिनिधि सम्पूर्ण राज्य के स्थान पर एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते ! 3. प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अपनायी जाती तो राज्यसभा को भंग भी करना पड़ता, जबकि अप्रत्यक्ष प्रणाली में ऐसा प्रावधान नहीं है।
प्रश्न 5.
1971 की जनगणना से लोकसभा में सीटों की संख्या नहीं बढ़ी है। क्या आप मानते हैं कि इसे बढ़ाना चाहिए ? इसके लिए क्या आधार होना चाहिए ?
उत्तर:
हम मानते हैं कि लोकसभा की सीटें जो कि 1971 की जनगणना से अभी तक नहीं बढ़ी हैं, बढ़नी चाहिए। इसके लिए जनसंख्या को ही आधार मानना चाहिए।
प्रश्न 6.
संसद एक हाकिम है और यहाँ मंत्रिगण बड़े-न-हीन लग रहे है। विभिन्न मंत्रालयों को धन आवंटित करने की संसद की शक्ति का यह परिणाम है। उपर्युक्त कार्टून कोते हुए उसका आशय समझाइए।
उत्तर:
देश के धन पर संसद का अधिकार होता है। हमारे देश की संघीय व्यवस्था में केन्द्र के पास राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्तियाँ है। केन्द्र अथवा संसद का निर्माण सभी राज्यों से चुने हुए सदस्य, मिलकर करते हैं। देश के विभिन्न मंत्रालयों को अपनी-अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू करने के लिए धन की जरूरत होती है। धन प्रत्येक मंत्रालय को संसद ही आवंटित करती है। वे विनम्रता से ही अपने मंत्रालय के लिए अधिक से अधिक धनराशि प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 7.
तो लोकसभा का खजाने पर नियंत्रण है। इसलिए वह ज्यादा शक्तिशाली है। (पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 110)
उत्तर:
यह सही है कि लोकसभा का खजाने पर नियंत्रण है। धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं एवं वहीं उसे संशोधित या अस्वीकृत किया जा सकता है। लोकसभा इन्हीं कारणों से शक्तिशाली नहीं है, बल्कि इसके और भी कारण हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अंतिम शक्ति जनता के पास होती है। जनता ही प्रत्यक्ष विधि से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है, जो कि लोकसभा के सदस्य बनते हैं। इसी तर्क के अनुसार लोकसभा शक्तिशाली है, तात्पर्य जनता शक्तिशाली है।
प्रश्न 8.
सरकार से विरोध दर्ज कराने का एक आम तरीका है, सदन से 'वाकआउट' करना, क्या यह काम जरूरत से ज्यादा हुआ है ?
उत्तर:
प्रश्नकाल में संसद में अधिकतर प्रश्न लोकहित के विषयों; जैसे-अनाज की उपलब्धता, मूल्य वृद्धि, समाज के कमजोर वर्गों के विरुद्ध अत्याचार, दंगे, कालाबाजारी आदि पर सरकार से सूचनाएँ माँगने के लिए होते हैं। प्रश्नकाल के दौरान वाद-विवाद इतने तीखे हो जाते हैं कि अनेक सदस्यों द्वारा अपनी बात रखने के लिए प्राय: सदन से बहिर्गमन करने जैसे कदम उठाए जाते हैं। इसमें सदन का बहुत समय बर्बाद हो जाता है। लेकिन यह कदम सरकार से रियायत प्राप्त करने के राजनीतिक तरीके हैं और इससे कार्यपालिका का उत्तरदायित्व सुनिश्चित होता है। यह काम संसद में विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे लोकहित के मुद्दों से जुड़ा रहा है। यदि सरकार किसी समस्या के प्रति संवेदनहीन हुई तो विधायिका में प्रश्नकाल में ये मुद्दे पुरजोर तरीके से उठे हैं और वाक आउट' जैसे कदम भी उठे हैं। अत: इन कदमों को जरूरत से ज्यादा नहीं कहा जा सकता बल्कि यह कहा जा सकता है कि देश में लोकहित सम्बन्धी समस्याएँ बढ़ी हैं।
प्रश्न 9.
अच्छा ! तो कानून बनाने वालों पर भी कुछ कानून लागू होते हैं ? (पाठ्य पुस्तक पृ. सं. 119)
उत्तर:
कानून बनाने वाले यानि संसद.सदस्यों पर भी कानून लागू होते हैं जैसे कि सदन की कार्यवाही में अनुशासित ढंग से भाग लेना एवं सदन की गरिमा बनाये रखना। सदन में अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना। इसके अलावा देश में प्रचलित अन्य कानून भी इन पर लागू होते हैं।
प्रश्न 10.
मुझे समझ में नहीं आता कि नेता अपना दल क्यों बदलते हैं ? क्या वे कभी अपनी उस पार्टी में लौटकर आते भी हैं जो उन्होंने छोड़ी थी?
उत्तर:
कुछ नेता अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए अपना दल बदल लेते हैं। दल बदलने वाला नेता अगर चाहे तो अपनी पहली पार्टी में आ सकता है, परन्तु इसके लिए पार्टी का अध्यक्ष एवं अन्य पार्टी सदस्यों में उस नेता को पार्टी में शामिल करने की सहमति हो तभी यह संभव है।
प्रश्न 1.
आलोक मानता है कि किसी देश को कारगर सरकार की जरूरत होती है जो जनता की भलाई करे। अत: यदि हम सीधे-सीधे अपना प्रधानमंत्री और मन्त्रिगण चुन लें और शासन का काम उन पर छोड़ दें तो हमें विधायिका की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्या आप इससे सहमत हैं ? अपने उत्तर का कारण बताइए।
उत्तर:
आलोक के विचार से हम सहमत नहीं हैं क्योंकि विधायिका कार्यपालिका पर अंकुश लगाने का कार्य करती है। सदन में वाद-विवाद (बहस), बहिर्गमन, विरोध तथा प्रदर्शन इत्यादि द्वारा मन्त्रिमण्डल पर दबाव रहता है जिसकी वजह से प्रधानमन्त्री एवं उसका मन्त्रिमण्डल तानाशाह, स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश इत्यादि नहीं बन पाता है। संसद विभिन्न क्रियाकलापों द्वारा मन्त्रिपरिषद् पर नियन्त्रण रखती है, जिससे कि वह स्वेच्छाचारी न बन पाए। उदाहरणार्थ, काम रोको प्रस्ताव, मन्त्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछकर मन्त्रिपरिषद् के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करना, मन्त्रियों के कार्यों की जाँच हेतु समितियाँ गठित करना तथा बजट की माँगों में कटौती कार व प्रस्तुत करके विधायिका प्रधानमन्त्री एवं उसकी मन्त्रिपरिषद् को उचित रास्ते पर चलने के लिए बाध्य करके लोककल्याणकारी कार्यों को क्रियान्वित करने हेतु प्रेरित करती है। चूँकि विधायिका उक्त प्रावधानों द्वारा मन्त्रिपरिषद् की मनमर्जी पर प्रभावी नियन्त्रण लगाती है अतः विधायिका की अत्यन्त आवश्यकता है।
प्रश्न 2.
किसी कक्षा में द्वि-सदनीय प्रणाली के गुणों पर बहस चल रही थी। चर्चा में निम्नलिखित बातें उभरकर सामने आयीं। इन तर्कों को पढ़िए और इनसे अपनी सहमति-असहमति के कारण बताइए।
(क) नेहा ने कहा कि द्वि-सदनीय प्रणाली से कोई उद्देश्य नहीं सधता।
(ख) शमा का तर्क था कि राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए।
(ग) त्रिदेव ने कहा कि यदि देश संघीय नहीं है तो फिर दूसरे सदन की जरूरत नहीं रह जाती।
उत्तर:
(क) हम नेहा के विचार से सहमत नहीं हो सकते, क्योंकि द्विसदनीय प्रणाली से कई उद्देश्यों की पूर्ति होती है। दूसरा सदन पहले सदन की निरंकुशता को रोकता है एवं दूसरा सदन पहले सदन द्वारा अविचारपूर्ण एवं जल्दी में पास किए गए कानूनों को रोकता है।
(ख) हम शमा के तर्क से सहमत हैं, कि राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए, क्योंकि इससे वे देश के निर्माण में अपने महत्वपूर्ण विचारों तथा अनुभवों का प्रयोग कर सकते हैं।
(ग) हम त्रिदेव के तर्क से सहमत नहीं हैं, क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि द्विसदनीय प्रणाली सदैव संघात्मक राज्यों में ही होगी, इंग्लैण्ड एकात्मक राज्य है, परन्तु वहाँ भी दो सदन हैं। इंग्लैण्ड में हाउस ऑफ लार्ड्स कई शताब्दियों से चला आ रहा है लार्ड्स सदन हाउस ऑफ कॉमन्स से आए हुए विधेयकों पर विचार करता है। लॉर्डस् सदन में विवादहीन और विरोधहीन विधेयकों को पेश किया जाता है। लॉर्ड्स सदन विवादहीन एवं विरोधहीन विधेयकों पर खूब छानबीन करता है तथा सोच-विचार कर उस विधेयक को कॉमन्स सदन में भेजता है।
प्रश्न 3.
लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में क्यों कारगर ढंग से नियन्त्रण में रख सकती है?
उत्तर:
लोकसभा कार्यपालिका को राज्यसभा की तुलना में अधिक कारगर ढंग से नियंत्रित कर सकती है। राज्यसभा कार्यपालिका से प्रश्न तो पूछ सकती है परन्तु इसे अविश्वास प्रस्ताव पारित करके हटा नहीं सकती, जबकि लोकसभा के सदस्य मंत्रियों से उनके कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछ सकते है एवं सम्बन्धित मंत्री को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। लोकसभा के सदस्य सरकार की नीतियों की आलोचना भी कर सकते हैं एवं मंत्रिपरिषद् के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी पारित कर सकते हैं जिससे मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव के अतिरिक्त बजट को अस्वीकृत करके, मंत्रियों के वेतन में कटौती करके अथवा सरकार के महत्वपूर्ण विचारों को अस्वीकार करके मंत्रिपरिषद को त्याग-पत्र देने के लिए मजबूर कर सकती है।
प्रश्न 4.
लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियन्त्रण रखने की नहीं, बल्कि जनभावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। क्या आप इससे सहमत हैं ? कारण बताइए।
उत्तर:
यह सत्य है कि लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण की नहीं, अपितु जन भावनाओं एवं जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। क्योंकि लोकसभा में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं एवं उनके द्वारा जो विषय उठाए जाते हैं, वे जनता की भावनाओं के अनुरूप होते हैं लोकसभा के सदस्यों का कार्य जनता की शिकायतों को सरकार तक पहुँचाकर उनका समाधान करवाना है।
प्रश्न 5.
नीचे संसद को ज्यादा कारगर बनाने के कुछ प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अपनी सहमति अथवा असहमति का उल्लेख करें। यह भी बताएँ कि इन सुझावों को मानने के क्या प्रभाव होंगे ?
(क) संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए।
(ख) संसद को सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।
(ग) अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने पर सदस्य को दण्डित कर सके।
उत्तर:
(क) हम पहले कथन से सहमत है कि संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए, इससे कार्य समय पर होंगे एवं संसद के पास काम का बोझ नहीं रहेगा। कल्याणकारी राज्य होने के कारण सरकार के कार्यों में बहुत वृद्धि हो गई है जिससे संसद के कार्यों में भी वृद्धि हुई है। अतः संसद का अधिवेशन अधिक समय तक चलना चाहिए ताकि विधेयकों तथा अन्य विषयों पर पूरा विचार-विमर्श किया जा सके।
(ख) हम दूसरे कथन से सहमत है कि संसद के सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए, इसका प्रभाव यह होगा कि किसी जनहित के विषय पर अधिक अच्छे ढंग से विचार-विमर्श होगा।
(ग) अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने वाले सदस्यों को दंडित करने का अधिकार होना चाहिए। इससे सदन की कार्यवाही सुचारू ढंग से चल सकेगी।
प्रश्न 6.
आरिफ यह जानना चाहता था कि अगर मन्त्री ही अधिकांश महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करते हैं और बहुसंख्यक दल अक्सर सरकारी विधेयक को पारित कर देता है तो, फिर कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की भूमिका क्या है ? आप आरिफ को क्या उत्तर देंगे ?
उत्तर;
आरिफ का मानना सही है कि संसदीय शासन प्रणाली में अधिकांश विधेयक सरकारी होते हैं जिन्हें तैयार कराने एवं प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व सम्बन्धित मन्त्री का होता है। बहुसंख्यक दल भले ही उन विधेयकों को पारित करा दे, लेकिन संवैधानिक रूप से वे राज्यसभा से पारित हुए बिना तथा राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हुए बिना कानून का स्वरूप धारण नहीं कर सकते। विधेयक का संसद के दोनों सदनों में बहुमत से पारित होना जरूरी होता है। विधेयक पर दोनों सदनों में तीन-तीन वाचन होते हैं। जिनमें संसद विधेयक की एक-एक धारा का गहराई से अध्ययन करती है। और यदि संसद चाहे तो किसी विधेयक को पारित होने से रोक भी सकती है।
यदि किसी भी आपत्ति के बिना संसद के दोनों सदन अलग-अलग अथवा संयुक्त रूप से विधेयक को पारित कर देते हैं तो वह विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। यदि राष्ट्रपति उसे हस्ताक्षरित करके वापस भेजते हैं, तो वह कानून का रूप धारण कर लेता है। राष्ट्रपति उस विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित विचार हेतु फिर से संसद को वापस लौटा सकते हैं। जब तक विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर एवं स्वीकृति नहीं मिलेगी। विधेयक कानून नहीं बनेगा और न ही देश में प्रभावी हो सकेगा।
प्रश्न 7.
आप निम्नलिखित में से किस कथन से सबसे ज्यादा सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण दें।
(क) सांसद/विधायकों को अपनी पसन्द की पार्टी में शामिल होने की छूट होनी चाहिए।
(ख) दल-बदल विरोधी कानून के कारण पार्टी के नेता का दबदबा पार्टी के सांसद/विधायकों पर बढ़ा है।
(ग) दल-बदल हमेशा स्वार्थ के लिए होता है और इस कारण जो विधायक/सांसद दूसरे दल में शामिल होना चाहता है उसे आगामी दो वर्षों के लिए मन्त्री पद के अयोग्य करार कर दिया जाना चाहिए।
उत्तर:
हम कथन
(ग) से सबसे ज्यादा सहमत हैं। यह सत्य है कि विधायक अथवा सांसद हमेशा स्वार्थ के वशीभूत होकर ही
दूसरे दल में सम्मिलित होते हैं। उसमें जनसाधारण का हित नाममात्र का भी नहीं होता। वे जनता के सच्चे प्रतिनिधि न होकर स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कार्य करते हैं। भारतीय संविधान के 52वें तथा 91वें संवैधानिक संशोधन भी दलबदल पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए किए गए हैं। इनके द्वारा सदन के अध्यक्ष को दल बदल से सम्बन्धित विवादों पर अन्तिम फैसला लेने की शक्ति प्रदान की गई है। दल-बदल निरोधक कानून' इस दिशा में एक प्रभावकारी कदम था परन्तु इसके भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। अतः सुझाव उचित है कि दल-बदल रोकने के लिए कोई कठोर दण्ड अवश्य निर्धारित किया जाना चाहिए। दण्ड का सुझाव भी उचित है कि जो विधायक/सांसद दूसरे दल में शामिल होना चाहता है उसे आगामी दो वर्षों के लिए मंत्री पद के अयोग्य कराकर दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 8.
डॉली और सुधा में इस बात पर चर्चा चल रही थी कि मौजूदा वक्त में संसद कितनी कारगर और प्रभावशाली है। डॉली का मानना था कि भारतीय संसद के कामकाज में गिरावट आई है। यह गिरावट एकदम साफ दिखती है, क्योंकि अब बहस-मुबाहिसे पर समय कम खर्च होता है और सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करने अथवा वॉक आउट (बहिर्गमन)
करने में ज्यादा। सुधा का तर्क था कि लोकसभा में अलग-अलग सरकारों ने मुँह की खाई है, धराशायी हुई है। आप सुधा या . डॉली के तर्क के पक्ष अथवा विपक्ष में कौन-सा तर्क देंगे ?
उत्तर:
हम डॉली के पक्ष में तर्क देते हुए कहेंगे कि वर्तमान में सदन का बहुमूल्य समय व्यर्थ की बहस एवं गतिविधियों में चला जाता है तथा आवश्यक एवं उपयोगी कार्य कम ही हो पाते हैं। संसदीय वातावरण एवं कार्यविधि में निरन्तर गिरावट आती जा रही है। इनकी बैठकों में कमी आने से कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित होने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। भारतीय संसद में आये दिन गैर संसदीय भाषा के प्रयोग तथा शोर-शराबे के वातावरण के बीच अच्छी बातें दबकर रह जाती हैं। सदन के अध्यक्ष अनुशासन बनाए रखने में अपने आप को असहाय महसूस करते हैं। सांसद छोटी-छोटी बातों पर वॉकआउट करके संसद का बहुमूल्य समय खराब करते हैं। अब संसदीय कार्यवाही के दूरदर्शन पर प्रसारण होने से आम जनता देखती है कि उनके प्रतिनिधि परस्पर किस प्रकार का व्यवहार करते हैं। सांसदों के इस आचरण से संसदीय प्रणाली का अस्तित्व ही खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। सुधा का कथन भी सही है कि बार-बार सरकारें गिरती हैं। अर्थात् जिस सरकार का संसद में अल्पमत हो जाता है वह सरकार गिर जाती है परन्तु संसदीय लोकतंत्र के लिए यह एक अच्छा लक्षण नहीं है। यह भी संसद की गिरती गरिमा का परिचायक है।
प्रश्न 9.
किसी विधेयक को कानून बनाने के क्रम में जिन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है उन्हें क्रमवार सजाएँ
(क) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।
(ख) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है-बताएँ कि वह अगर इस पर हस्ताक्षर नहीं करता/करती है तो क्या होता है ?
(ग) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहाँ इसे पारित कर दिया जाता है।
(घ) विधेयक का प्रस्ताव जिस सदन में हुआ है, उसमें यह विधेयक पारित होता है।
(ङ) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।
(च) विधेयक उप-समिति के पास भेजा जाता है। समिति उसमें कुछ फेरबदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।
(छ) सम्बद्ध मन्त्री विधेयक की जरूरत के बारे में प्रस्ताव करता है।
(ज) विधि-मन्त्रालय का कानून विभाग विधेयक तैयार करता है।
उत्तर:
1. (ज) विधि मन्त्रालय का कानून विभाग विधेयक तैयार करता है।
2. (छ) सम्बद्ध मन्त्री विधेयक की जरूरत के बारे में प्रस्ताव करता है।
3. (क) किसी विधेयक पर चर्चा के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है।
4. (च) विधेयक उपसमिति के पास भेजा जाता है। समिति उसमें कुछ फेर-बदल करती है और चर्चा के लिए सदन में भेज देती है।
5. (ङ) विधेयक की हर धारा को पढ़ा जाता है और प्रत्येक धारा पर मतदान होता है।
6. (घ) विधेयक का प्रस्ताव जिस सदन में हुआ है, उसमें यह विधेयक पारित होता है।
7. (ग) विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है और वहाँ इसे पारित कर दिया जाता है।
8. (ख) विधेयक भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और अगर राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर नहीं करता/करती तो वह इसे पुनर्विचार हेतु संसद को वापस भेज देता है। फिर से दोनों सदनों में पुनर्विचार होने के बाद पारित होकर जब वह विधेयक राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षरित होने के लिए पहुंचता है तो उन्हें इस पर अपने हस्ताक्षर करने होते हैं, तभी वह कानून का रूप लेता है।
प्रश्न 10.
संसदीय समिति की व्यवस्था से संसद के विधायी कामों के मूल्यांकन और देखरेख पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
संसदीय समिति व्यवस्था से संसद के विधायी कार्यों के मूल्यांकन और देख-रेख पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। संसद समितियाँ किसी विधेयक पर गहराई से विचार-विमर्श करके संसद को भेजती हैं। जिससे संसद को उन विधेयकों पर अधिक समय नहीं लगाना पड़ता। संसदीय समिति व्यवस्था से संसद के कार्यभारत को कम करने में सहायता प्रदान की है। कई बार समितियाँ महत्वपूर्ण विधेयकों में संशोधन करके उन्हें अधिक उपयोगी बना देती है। समितियों के होने के कारण कोई भी विधेयक जल्दबाजी में पारित नहीं किया जाता, जो कि लोकतंत्र में आवश्यक है। प्रायः संसदीय समिति की सिफारिशों को संसद स्वीकार कर लेती है।