RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 4 सामाजिक न्याय

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 4 सामाजिक न्याय Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Political Science Solutions Chapter 4 सामाजिक न्याय

RBSE Class 11 Political Science सामाजिक न्याय InText Questions and Answers

प्रश्न 1. 
चिन्तन-मंथन नीचे दी गई स्थितियों की जाँच करें और बताएं कि क्या वे न्यायसंगत हैं ? अपने तर्क के साथ यह भी बताएँ कि प्रत्येक स्थिति में न्याय का कौन-सा सिद्धान्त काम कर रहा है
(i) एक दृष्टिहीन छात्र सुरेश को गणित का प्रश्न-पत्र हल करने के लिए साढ़े तीन घण्टे मिलते हैं, जबकि अन्य सभी छात्रों को केवल तीन घण्टे।
उत्तर:
हाँ, यह स्थिति न्याय संगत है। चूंकि सुरेश एक दृष्टिहीन छात्र है, अत: वह अन्य छात्रों के पूर्णतः समान नहीं है। सुरेश को विशेष सुविधा की जरूरत है ताकि वह भी अन्य छात्रों के समान अपनी प्रतिभा को सिद्ध कर सके। इस स्थिति में न्याय का 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' का सिद्धान्त लागू होता है।

(ii) गीता बैसाखी की सहायता से चलती है। अध्यापिका ने गणित का प्रश्न-पत्र हल करने के लिए उसे भी साढ़े तीन घण्टे का समय देने का निश्चय किया।
उत्तर:
नहीं, यह स्थिति न्यायसंगत प्रतीत नहीं होती। हालांकि गीता एक विकलांग है परन्तु उसकी विकलांगता का परीक्षा में लिखने से कोई सम्बन्ध नहीं है। उसे अपने हाथों के प्रयोग से लिखना है, जो कि अन्य छात्रों के समान है। अत: उसे अतिरिक्त समय दिया जाना अन्य छात्रों के साथ अन्याय होगा। इस स्थिति में 'समान लोगों के साथ समान बरताव' के न्याय-सिद्धान्त का उल्लंघन हो रहा है। 

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 4 सामाजिक न्याय  

(iii) एक अध्यापक कक्षा के कमजोर छात्रों के मनोबल को उठाने के लिए कुछ अतिरिक्त अंक देते हैं।
उत्तर:
नहीं, यह स्थिति न्यायसंगत नहीं है। कमजोर छात्रों को अध्यापक अतिरिक्त कक्षाएँ देकर सभी छात्रों के समान बना सकते हैं। परन्तु अतिरिक्त अंक दिया जाना अन्य योग्य व मेहनती छात्रों के साथ अन्याय होगा।
इस स्थिति में न्याय के 'समानुपातिक न्याय सिद्धान्त' का दुरुपयोग हो जाएगा। 

(iv) एक प्रोफेसर अलग-अलग छात्राओं को उनकी क्षमताओं के मूल्यांकन के आधार पर अलग-अलग प्रश्नपत्र बाँटते हैं।
उत्तर:
नहीं, यह स्थिति भी न्यायसंगत नहीं है। ऐसा करने से उच्च शिक्षा का स्तर गिर जाएगा। अतः यहाँ 'न्यायपूर्ण बँटवारे का सिद्धान्त' लागू नहीं होता।

(v) संसद में एक प्रस्ताव विचाराधीन है कि संसद की कुल सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी जाएँ।
उत्तर:
हाँ, यह स्थिति बिल्कुल न्यायसंगत है। संसद में महिलाओं को आरक्षण देने से उन्हें भी पुरुषों के समान राजनीतिक सहभागिता प्राप्त होगी। यहाँ न्याय का 'विशेष जरूरतों के लिए विशेष ध्यान सिद्धान्त' लागू हो रहा है। 

प्रश्न 2. 
न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी क्यों बंधी है ?
उत्तर:
यह बड़ी ही रोचक एवं महत्वपूर्ण बहस है कि 'न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी क्यों बंधी है' ? इस सन्दर्भ में दो पक्ष प्रस्तुत किये गये हैं। इन दोनों पक्षों का तार्किक विश्लेषण करके एक निष्कर्ष निकाला जा सकता है
(i) न्याय की देवी आँखों पर पट्टी इसलिए बाँधे रखती है क्योंकि उसे निष्पक्ष रहना है।
न्याय के सम्बन्ध में यह पक्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण है। न्याय की प्रक्रिया में कई बार न्यायाधीश के सामने अपने सगे सम्बन्धियों, परिचितों के खिलाफ भी मुकदमे आते हैं। इसी प्रकार अन्य प्रकार के पक्षपातों, जैसे- जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, आर्थिक-राजनीतिक लाभ आदि का भी सामना न्यायाधीशों को करना होता है। अतः न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी बांधी गयी ताकि न्याय की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जा सके। परन्तु वर्तमान में व्यावहारिकता में इस आदर्श का बड़ी मात्रा में दुरुपयोग किया जा रहा है।

(ii) बिल्कुल ठीक उसे निष्पक्ष रहना है। लेकिन अगर वह आँखों पर पट्टी बाँधे रहेगी तो लोगों की विशेष जरूरतों को कैसे देखेगी ?
न्याय के सम्बन्ध में यह पक्ष भी बहुत महत्वपूर्ण है। व्यावहारिकता में देखा जाए तो न्यायपालिका लोगों की विशेष जरूरतों का ख्याल रखने लगी है। 'जनहित याचिकाएँ' और इनमें दिये गये निर्णय व दिशा-निर्देश इस बात का प्रमाण हैं। हालांकि कभी-कभी न्याय की देवी न्याय पर खरी नहीं उतर पाती। परन्तु ऐसा उसकी आँखों पर पट्टी की वजह से नहीं बल्कि व्यावहारिकता में फैल चुके भ्रष्टाचार, उदासीनता और संवेदनहीनता की वजह से होता है। निष्कर्ष-दोनों पक्षों के विश्लेषण के उपरान्त हम कह सकते हैं कि न्याय में पक्षपात नहीं होना चाहिए। इस दृष्टि से न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी बंधी होना किसी भी प्रकार से गलत नहीं, बल्कि अच्छा है। हाँ, न्याय में लोगों की विशेष जरूरतों का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए न्याय की देवी की आँखों से पट्टी हटाने के बजाय हमें संवेदनशीलता व जागरूकता को उत्पन्न करना होगा। साथ ही साथ भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाना भी जरूरी है। विधायिका को कानून बनाने में अधिक लचीलापन दिखाना होगा तभी न्यायपूर्ण समाज की स्थापना की जा सकती है।

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प्रश्न 1. 
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का क्या मतलब है ? हर किसी को उसका प्राप्य देने का मतलब समय के साथ-साथ कैसे बदला ?
उत्तर:
हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का मतलब-समाज में अनेक वर्ग के लोग हैं। इन सबकी क्षमताएँ और योग्यताएँ भी अलग-अलग होती हैं। समाज के हर व्यक्ति की योग्यता के आधार पर उसे कुछ प्राप्ति की कामना और आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता और लाभ को उस व्यक्ति का 'प्राप्य' कहते हैं। इस प्रकार हर व्यक्ति को उसका प्राप्य (चित या वालि । का मतलब यह है कि व्यक्ति को उसकी योग्यता, क्षमता एवं आवश्यकताओं के अनुरूप जो हक व लाभ मिलने चाहिए, वह उसको दिए जाएँ। हर व्यक्ति को जब उसका उचित हक मिलने लगेगा तभी न्यायपूर्ण समाज की स्थापना की जा सकेगी। उदाहरण-समाज में आज भी लोग भूख से मर रहे हैं।

एक मानव होने के नाते ये उनका उचित हक (प्राप्य) बनता है कि उन्हें भी अपनी भूख मिटाने हेतु भोजन प्राप्त हो। अतः हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने का सीधा सा मतलब है कि उसकी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाए तथा उसकी योग्यता के बदले उसे उचित पारिश्रमिक और अन्य लाभ प्राप्त हों। हर व्यक्ति को उसका प्राप्य देने के मतलब का समय के साथ बदलना-समाज में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। इसी कारण व्यक्तियों की जरूरतें भी बदलती रहती हैं। एक समय पर जो चीजें पर्याप्त होती हैं तथा जो बातें मान्य लगती हैं, दूसरे समय पर वे ही चीजें कम लगने लगती हैं और बातें अमान्य हो जाती हैं। इसी कारण हर व्यक्ति को मिलने वाले उचित हक (प्राप्य) के मतलब भी समय के साथ बदल जाते हैं। समाज में जैसे-जैसे विकास की प्रक्रिया तेज होती गयी, वैसे-वैसे समाज में असन्तुलन व असमानता भी बढ़ती चली गयी। अतः इस परिवर्तन प्रक्रिया में हर व्यक्ति को उसके प्राप्य देने का मतलब स्वाभाविक तौर पर बदलता रहता है।

प्रश्न 2. 
अध्याय में दिए गए न्याय के तीन सिद्धान्तों की संक्षेप में चर्चा करो। प्रत्येक को उदाहरण के साथ समझाइए।
उत्तर:
हमारी पाठ्य-पुस्तक के अध्याय में दिए गए न्याय के सिद्धान्तों में से तीन प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
(i) समान लोगों के प्रति समान बरताव का सिद्धान्त-न्याय का एक प्रमुख सिद्धान्त 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' का सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त में यह माना जाता है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसीलिए उनके साथ समान बरताव किया जाना चाहिए। इस सिद्धान्त में लोगों को मानव होने के नाते समान अधिकार दिये जाने पर भी बल दिया जाता है। यह सिद्धान्त समान परिस्थितियों में समान बरताव पर आधारित है। उदाहरण के लिए दो व्यक्ति मजदूरी करते हैं, उनमें से एक को उतने ही श्रम के 100 रु. दिये जाएँ और दूसरे को उतने ही काम के 60 रु. दिये जाएँ तो 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' के सिद्धान्त के अनुसार यह गलत और अन्यायपूर्ण है।

(ii) 'समानुपातिक न्याय' का सिद्धान्त-न्याय का दूसरा प्रमुख सिद्धान्त 'समानुपातिक न्याय' का सिद्धान्त है। यह आवश्यक नहीं है कि सभी परिस्थितियों में सभी के साथ समान व्यवहार हो, सभी के साथ समान व्यवहार अन्याय हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी विद्यालय की कक्षा 12 में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों को बराबर-बराबर अंक देना अन्याय होगा। न्याय की यह माँग है कि प्रत्येक विद्यार्थी को परीक्षा में अंक उसकी कार्यकुशलता के आधार पर मिलने चाहिए।

(iii) 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' का सिद्धान्त-समाज में कई वर्ग ऐसे हैं जिन्हें कुछ विशेष सुविधाओं, लाभ इत्यादि की जरूरत होती है। इन्हें समाज में समान दर्जा दिलाने के लिए कुछ विशेष सहायता की जरूरत होती है। इस स्थिति में न्याय का 'विशेष जरूरतों के लिए विशेष ख्याल' का सिद्धान्त लागू होता है। उदाहरण के लिए समाज में महिलाओं, विकलांग व्यक्तियों, शोषित व अति पिछड़े वर्गों को मुख्य धारा में शामिल करना है तो उन्हें कुछ विशेष रियायतें दी जानी अनिवार्य हैं। 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' का सिद्धान्त इसी आधार पर कार्य करता है।

प्रश्न 3. 
क्या 'विशेष जरूरतों का सिद्धान्त', 'सभी के साथ समान बरताव के सिद्धान्त' के विरुद्ध है ?
उत्तर:
नहीं, लोगों की विशेष जरूरतों का सिद्धांत सभी के साथ समान बरताव के सिद्धान्त के विरूद्ध नहीं है। बल्कि उसका विस्तार है क्योंकि समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत में यह समाहित है कि जो लोग कुछ महत्वपूर्ण संदर्भो जैसे-विकलांगता अथवा वंचितता आदि में अन्य के समान नहीं है, उनके साथ भिन्न तरीके से व्यवहार किया जाए।

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 4 सामाजिक न्याय

प्रश्न 4. 
निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराया जा सकता है। रॉल्स ने इस तर्क को आगे बढ़ाने में 'अज्ञानता के आवरण' के विचार का उपयोग किस प्रकार किया ?
उत्तर:
रॉल्स ने निष्पक्ष और न्यायपूर्ण वितरण को युक्तिसंगत आधार पर सही ठहराते हुए अज्ञानता के आवरण का उपयोग किया है। रॉल्स के अनुसार 'अज्ञानता के आवरण' के अन्तर्गत समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपने संभावित स्थान और पद के बारे में सर्वथा अज्ञान रहेगा, उसे स्वयं अपने विषय में भी जानकारी नहीं होगी। अतः वह एकदम बुरी स्थिति के अन्तर्गत समाज की कल्पना करेगा। वह समाज के विषय में सोचते हुए इस बात का अवश्य ध्यान रखेगा, कि यदि किसी व्यक्ति का जन्म सुविधा सम्पन्न परिवार में होता है तो उसे विकास के उचित अवसर प्राप्त होंगे, परन्तु यदि व्यक्ति का जन्म पिछड़े एवं समाज के अत्यधिक निम्न वर्ग में होता है, तब अवश्य ही ऐसे समाज की कल्पना करेगा जो समाज के कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा कर सकें। वह व्यक्ति ऐसे नियमों की वकालत करेगा, जिससे कमजोर वर्गों को विकास के उचित अवसर मिल सकें। इससे यह स्पष्ट हो जायेगा कि शिक्षा, स्वास्थ्य तथा आवास जैसे महत्वपूर्ण संसाधन सभी लोगों को प्राप्त हों, चाहे वे उच्च वर्ग के हों और चाहे कमजोर वर्ग के हों। अतः 'अज्ञानता के आवरण' के कारण प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने आपको बुरी स्थिति में रखकर सोचना ही उचित होगा। इस प्रकार 'अज्ञानता के आवरण' वाली स्थिति की विशेषता यह है, कि यह लोगों को विवेकशील बनाए रखती है।.

प्रश्न 5. 
आमतौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतें क्या मानी गयी है? इस न्यूनतम को सुनिश्चित करने में सरकार की क्या जिम्मेदारी है ?
उत्तर:
आमतौर पर एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतें --आमतौर पर यह माना जाता है कि मानव एक विवेकशील प्राणी है। अतः उसे अपना सर्वांगीण विकास करने का अवसर मिलना ही चाहिए। इस अवसर का लाभ व्यक्ति तभी उठा पायेगा जब वह अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सके। अत: व्यक्ति की न्यूनतम बुनियादी जरूरतों में स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक तत्व भोजन, आवास, शुद्ध पेयजल, शिक्षा एवं चिकित्सा, रोजगार और उचित पारिश्रमिक शामिल है। इन न्यूनतम जरूरतों को सुनिश्चित करने में सरकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सरकार विभिन्न प्रकार के कानूनों का निर्माण करके ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकती है, जिससे सभी व्यक्तियों की न्यूनतम जरूरतें पूरी हो सकें। उदाहरण के लिए भारत में सरकार द्वारा महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) लागू की गई है। यह सरकार की जिम्मेदारी को प्रमाणित करती है।

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प्रश्न 6. 
सभी नागरिकों को जीवन की न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ उपलब्ध कराने के लिए राज्य की कार्यवाही को निम्न में से कौन-से तर्क से वाजिब ठहराया जा सकता है ?
(क) गरीब और जरूरतमंदों को निःशुल्क सेवाएँ देना एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है।
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध कराना 'अवसरों की समानता' सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
(ग) कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं और हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।
(घ) सभी के लिए बुनियादी सुविधाएँ और न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करना साझी मानवता और मानव अधिकारों की स्वीकृति है।
उत्तर:
(ख) सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध कराना 'अवसरों की समानता' सुनिश्चित करने का एक तरीका है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 30, 2022, 5:39 p.m.
Published Aug. 30, 2022