Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
अगर लालुंग धनी और ताकतवर होता तब क्या होता? यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले लोग इंजीनियर होते तो क्या होता? क्या उनके साथ भी अधिकारों का इसी तरह से हनन होता?
उत्तर:
अगर लालँग धनी और ताकतवर होता तो वह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं रहता। वह अपनी इच्छा से अपना पक्ष अधिवक्ता अथवा वकील के माध्य से रखता एवं अपने जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को बहाल करवाता। यदि निर्माण करने वाले ठेकेदार के साथ काम करने वाले लोग इंजीनियर होते तो उनको सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से भी कम मजदूरी देना संभव नहीं होता, उनका शोषण नहीं हो सकता था। उनके अधिकारों का हनन भी नहीं होता, क्योंकि शिक्षित लोग अपने अधिकारों से भली-भाँति परिचित होते हैं। वे अपने अधिकारों का हनन नहीं होने देते।
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों की तुलना दक्षिण अफ्रीका के संविधान में दिए गए अधिकारों के घोषणा-पत्र से करें। उन अधिकारों की एक सूची बनाएँ जो
(अ) दोनों संविधानों में पाए जाते हों।
(ब) दक्षिण अफ्रीका में हों, पर भारत में नहीं।
(स) दक्षिण अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिए गए हों, पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं।
उत्तर:
(अ) भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों के संविधान में पाए जाने वाले अधिकार हैं-
(क) सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी समुदायों का अधिकार (धार्मिक स्वतंत्रता तथा शिक्षा और संस्कृति सम्बन्धी अधिकार)
(ख) निजता का अधिकार अर्थात् व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
(ग) श्रम सम्बन्धी समुचित व्यवहार का अधिकार अर्थात् रोजगार में अवसर की समानता, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा कोई भी पेशा 'चुनने एवं व्यापार चुनने की स्वतंत्रता।
(ब) वे अधिकार जो दक्षिणी अफ्रीका में हैं, लेकिन भारत के संविधान में नहीं-
(क) सूचना प्राप्त करने का अधिकार
(ख) स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण सरंक्षण का अधिकार
(ग) बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार
(घ) स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार।
(स) वे अधिकार जो दक्षिणी अफ्रीका के संविधान में स्पष्ट रूप से दिए गए हों, पर भारतीय संविधान में निहित माने जाते हैं-
(क) समुचित आवास का अधिकार
(ख) गरिमा का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में उपुर्यक्त दोनों अधिकारों को निहित माना है।
प्रश्न 3.
क्या ऐसी बातें हमारे देश में होती हैं ? या ये सब केवल काल्पनिक हैं ?
उत्तर:
यहाँ ऐसी बातों से तात्पर्य संविधान द्वारा प्रदत्त समता के अधिकार से है। हमारा संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है; जैसे कि कानून के समक्ष समानता एवं समान संरक्षण का अधिकार । सभी को सार्वजनिक स्थलों; जैसे-दुकान, होटल, मनोरंजन-स्थल, कुआँ, स्नान-घाट और पूजा-स्थलों में समानता के आधार पर प्रवेश देना। जाति, नस्ल, रंग, लिंग, धर्म या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव न होना, रोजगार में अवसर की समानता एवं छूआछूत की समाप्ति। यह सब काल्पनिक प्रतीत जरूर होता है, पर है नहीं। हमारे संविधान में उपरोक्त वर्णित बातें मौलिक अधिकार के रूप में हमें प्रदान की गई हैं।
प्रश्न 4.
आप एक न्यायाधीश हैं, आपको उड़ीसा के पुरी जिले के 'दलित समुदाय के एक सदस्य' हादिबंधु से एक पोस्टकार्ड मिलता है। उसमें लिखा है कि उसके समुदाय के पुरुषों ने उस प्रथा का पालन करने से इंकार कर दिया जिसके अनुसार उन्हें उच्च जातियों के विवाहोत्सव में दूल्हे और सभी मेहमानों के पैर धोने पड़ते थे। इसके बदले उस समुदाय की चार महिलाओं को पीटा गया और उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाया गया। पोस्टकार्ड लिखने वाले के अनुसार, "हमारे बच्चे शिक्षित हैं और वे उच्च जातियों के पुरुषों के पैर धोने, विवाह में भोज के बाद जूठन हटाने और बर्तन माँजने का परम्परागत काम करने को तैयार नहीं हैं।" यह मानते हुए कि उपर्युक्त तथ्य सही है, आपको निर्णय करना है कि क्या इस घटना में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है ? आप इसमें सरकार को क्या करने का आदेश देंगे ?
उत्तर:
उपर्युक्त घटना में 'शोषण के विरुद्ध अधिकार' तथा कोई भी पेशा चुनने तथा व्यापार करने की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। हमारे देश में करोड़ों लोग गरीब, दलित, शोषित और वंचित हैं या लोगों द्वारा उनका शोषण बेगार अथवा बन्धुआ मजदूरी के रूप में किया जाता रहा है। ऐसे शोषणों पर संविधान प्रतिबंध लगाता है। इसे अपराध घोषित कर दिया जाता है और यह शोषण कानून द्वारा दण्डनीय है। अतः शोषण का विरोध करने पर उस समुदाय की चार महिलाओं को जिन व्यक्तियों ने निर्वस्त्र करके घुमाया, उन पर मैं कानून-सम्मत दण्ड निर्धारित करूँगा तथा सरकार को आदेश दूँगा कि समाज में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करें कि सभी बिना किसी बाधा के स्वतंत्रतापूर्वक अपने व्यवसाय का चुनाव करें। जो व्यक्ति, समुदाय इसमें बाधा डालता है, उसे रोकें और दण्डित करें।
प्रश्न 5.
क्या इसका मतलब यह है कि कुछ ऐसे मामले भी हो सकते हैं जिनमें कानून.एक आदमी की जिन्दगी ले सकता है ? यह तो अजीब बात है। क्या आपको कोई ऐसा मामला याद आता है ?
उत्तर:
कानून आदमी की जिन्दगी तभी ले सकता है जब किसी नागरिक को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए दोषी ठहराया गया हो। हमारे देश में कानूनी अथवा न्यायिक प्रक्रिया पर इतना बोझ हो गया है कि न्यायालयों में व्यक्ति के मुकदमे की सुनवाई लम्बे समय तक पूर्ण नहीं हो पाती है जिससे न्याय मिलने में अनावश्यक देरी हो जाती है एवं व्यक्ति का जीवन व्यर्थ ही जेलों में बरबाद हो जाता है। लालुंग का मामला एक ऐसा ही मामला है जिसमें कि उसके मुकदमे की सुनवाई नहीं हो सकी एवं उसका जीवन जेल में व्यर्थ ही बीत गया।
प्रश्न 6.
क्या आप जानते हैं कि निम्न परिस्थितियाँ स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग करती हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें।
(क) शहर में सांप्रदायिक दंगों के बाद लोग शांति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं।
(ख) दलितों को मंदिर में प्रवेश की मनाही है। मंदिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है।
(ग) सैकड़ों आदिवासियों ने सड़क जाम कर दिया है। वे माँग कर रहे हैं कि कोई कारखाना बनाने के लिए ली गईं उनकी जमीन वापस की जाए। अधिग्रहीत खाली जमीन उन्हें लौटाई जाए।
(घ) किसी जाति की पंचायत की बैठक यह तय करने के लिए बुलाई गई कि जाति से बाहर विवाह करने के लिए एक नवदंपति को क्या दंड दिया जाए।
उत्तर
(क) शहर में सांप्रदायिक दंगों के बाद लोग शांति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं-यह परिस्थिति स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग नहीं करती है क्योंकि यहाँ पर लोग सांप्रदायिक दंगों के बाद शांति मार्च के लिए एकत्र हुए हैं और हमारे संविधान में शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। इस परिस्थिति में लोग उसी अधिकार के अनुसार एकत्रित हो रहे हैं इसलिए यह परिस्थिति स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग नहीं करती है।
(ख) दलितों को मंदिर में प्रवेश की मनाही है। मंदिर में जबर्दस्ती प्रवेश के लिए एक जुलूस का आयोजन किया जा रहा है-यह परिस्थिति स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की मांग नहीं करती है क्योंकि हमारे संविधान में समता के अधिकार का प्रावधान है जिसके अन्तर्गत धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है। संविधान में आस्था और धर्म में विश्वास की आजादी का प्रावधान भी किया गया है और यहाँ पर लोग अपने अधिकार के लिए जुलूस का आयोजन कर रहे हैं लेकिन यह आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से होना चाहिए।
(ग) सैकड़ों आदिवासियों ने सड़क जाम कर दिया है। वे माँग कर रहे हैं कि कोई कारखाना बनाने के लिए ली गई उनकी जमीन वापस की जाए- यहाँ पर परिस्थिति स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग करती है, संविधान में प्रावधान है कि नागरिक अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से संगठित हो सकते हैं, पर यहाँ आदिवासी सड़क जाम कर इस प्रावधान का दुर्पयोग कर रहे हैं इसलिए यहाँ परिस्थिति स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग करती है।
(घ) किसी जाति की पंचायत की बैठक यह तय करने के लिए बुलाई गई कि जाति से बाहर विवाह करने के लिए एक नवदंपति को क्या दंड दिया जाए-यहाँ परिस्थिति नवदंपति के स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्धों की माँग नहीं करती है, क्योंकि जब संविधान में प्रावधान है कि धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जायेगा। यहाँ पर पंचायत को कोई अधिकार नहीं है कि एक नवदंपति को दंड दे। नवदंपति ने जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग किया है। इसलिए परिस्थिति उनके स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबन्ध की माँग नहीं कर सकती है।
प्रश्न 7.
(i) अपने गाँव या शहर में होने वाले सार्वजनिक धार्मिक गतिविधियों की सूची बनाएँ।
(ii) इनमें से कौन-कौन सी गतिविधियाँ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग दिखलाती हैं?
(ii) इस पर चर्चा करें कि यदि आपके क्षेत्र में लोगों को यह अधिकार नहीं होता, तो क्या होता?
उत्तर:
(i) हमारे गाँव या शहर में होने वाली सार्वजनिक धार्मिक गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं
(अ) अपने लिए इच्छित पूजा स्थल जैसे मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारा, चर्च का निर्माण करना।
(ब) लोगों द्वारा अपने आराध्य देवी-देवता, खुदा, गुरु, मसीहा आदि की अपनी इच्छानुसार पूजा अर्चना/पाठ या इबादत करना।
(स) सभी धर्मावलम्बी अपने-अपने धार्मिक ग्रन्थों यथा रामायण/कुरान/गुरुग्रन्थ साहब/बाइबिल का अध्ययन करते हैं।
(द) वे सभी लोग अपने-अपने धार्मिक उत्सवों को शांतिपूर्ण ढंग से मनाते हैं और एक दूसरे के धार्मिक उत्सवों में भी भाग लेते
(ii) उपर्युक्त समस्त गतिविधियाँ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग दिखलाती हैं।
(iii) यदि हमारे क्षेत्र में लोगों को यह अधिकार नहीं होता तो धार्मिक उन्माद को बढ़ावा मिलता। धार्मिक घृणा, धार्मिक तनाव अथवा धार्मिक झगड़े भी प्रारम्भ हो सकते थे।
प्रश्न 8.
मैं अपने मुहल्ले में तो अल्पसंख्यक हूँ पर शहर में बहुसंख्यक। भाषा के हिसाब से तो अल्पसंख्यक हूँलेकिन धर्म के लिहाज से मैं बहुसख्यक हूँ। क्या हम सभी अल्पसंख्यक नहीं हैं ?
उत्तर:
जिस क्षेत्र में आप निवास कर रहे हैं, उस क्षेत्र के बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय के भिन्न जो दूसरे धार्मिक समुदाय के लोग निवास करते हैं, चाहे वे बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य हैं, अल्पसंख्यक कहलाएंगे। अल्पसंख्यक वह समूह है जिनकी अपनी एक भाषा अथवा धर्म होता है और देश के किसी एक भाग में या पूरे देश में संख्या के आधार पर ही नहीं, बल्कि भाषा एवं संस्कृति के आधार पर भी अल्पसंख्यक माना जाता है। हम सभी अल्पसंख्यक नहीं हैं। चूँकि आप बहुसंख्यक धर्म वाले समुदाय के सदस्य हैं, लेकिन इस क्षेत्र की भाषा आपकी मातृभाषा नहीं है। इसलिए भाषा की दृष्टि से आप अल्पसंख्यक हैं।
दूसरे, उस क्षेत्र के ऐसे लोग जो बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय और बहुसंख्यक भाषायी समुदाय के सदस्य हैं वे अल्पसंख्यक नहीं कहलायेंगे।
प्रश्न 9.
ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। इनमें से 5 प्रतिशत लोगों के लिए रात में सोने की जगह भी नहीं है। इनमें सैकड़ों बूढ़े और बीमार बेघर लोगों की जाड़े में शीतलहर से मृत्यु हो जाती है। उन्हें निवास का प्रमाण' न दे पाने के कारण राशन कार्ड या मतदाता पहचान पत्र नहीं मिल पाते। इसके अभाव में उन्हें जरूरतमंद मरीजों के रूप में सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती। इनमें एक बड़ी संख्या में लोग दिहाड़ी मजदूर हैं जिन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती है। वे मजदूरी की तलाश में देश के विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं। आप इन तथ्यों के आधार पर 'संवैधानिक उपचारों के अधिकार' के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक याचिका भेजें। आपकी याचिका में निम्न दो बातों का उल्लेख होना चाहिए
(क) इन बेघर लोगों के कौन-से मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है ?
(ख) आप सर्वोच्च न्यायालय से किस प्रकार का आदेश देने की प्रार्थना करेंगे?
उत्तर:
सेवा में,
श्रीमान् मुख्य न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय,
भारत महोदय,
निवेदन यह है कि 'ऐसा अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग शहरों में बेघर हैं। वे मजदूरी की तलाश में विभिन्न हिस्सों से शहरों में आते हैं।'
(क) महोदय, उपर्युक्त तथ्य से स्पष्ट होता है कि इन लोगों के 'जीवन जीने' के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। क्योंकि आपके न्यायालय द्वारा पूर्व में दिए गए एक निर्णय के अनुसार, इस अधिकार में शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमा से जीने का पूर्ण अधिकार अन्तर्निहित है। इस प्रकार न्यायालय ने माना है कि व्यक्ति को आश्रय एवं आजीविका का अधिकार हो क्योंकि इसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता।
(ख) उपर्युक्त उदाहरण में दिए गए तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग आवास एवं मजदूरी के अभाव में सर्दी की शीतलहर में मृत्यु के शिकार हो जाते हैं। सरकार इन लोगों के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार की ओर उदासीन है। अतः आप सरकार को ऐसा आदेश अथवा निर्देश दें कि ये लोग गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उपभोग कर सकें और भविष्य में ऐसे लोगों के बेघर होने तथा आजीविका के अभाव के कारण शीतलहर में मृत्यु न हो सके।
प्रश्न 10.
मुझे बताओ कि संविधान में अच्छी-अच्छी बातें कहने का क्या मतलब यदि उसे किसी न्यायालय में लागू ही नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
यहाँ अच्छी बातों से तात्पर्य नीति-निर्देशक तत्वों से है। हमारे संविधान में नीति-निर्देशक तत्व तो दिये गये हैं, पर उन्हें लागू करवाने की व्यवस्था नहीं की गई है। संविधान निर्माताओं को आभास था कि स्वतंत्र भारत में अनेक चुनौतियाँ होंगी, इसी संदर्भ में नागरिकों में समानता की भावना लाना और सबका कल्याण करना सबसे बड़ी चुनौती थी अर्थात् एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना, बहुत बड़ी चुनौती थी इसलिए संविधान निर्माताओं ने नीतिगत निर्देश तो रखे पर उन्हें बाध्यकारी नहीं बनाया। उनका मानना था कि इन निर्देशक तत्वों के पीछे जो नैतिक शक्ति है, वह सरकार को बाध्य करेगी कि सरकार इन तत्वों को गम्भीरता से ले। वे सोचते थे कि जनता उन्हें लागू करने की जिम्मेदारी भावी सरकारों पर डालेगी।
प्रश्न 11.
आपकी राय में सम्पत्ति के अधिकार' को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से क्या फर्क पड़ता है?
उत्तर:
मेरी राय में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बनाने से यह फर्क पड़ता है कि अब सरकार कोई कानून बनाकर लोक कल्याण के लिए जब किसी सम्पत्ति का अधिग्रहण करेगी तो उसका मालिक सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के हनन के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के खिलाफ याचिका प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। अब उसे सम्पत्ति के सामान्य कानून के अन्तर्गत ही न्यायालय में वाद दायर करना होगा। सम्पत्ति के मौलिक अधिकार के कारण ही नीति-निर्देशक तत्व और मूल-अधिकारों के मध्य विवाद पैदा हुए। अब ऐसा कोई विवाद पैदा नहीं होगा।
प्रश्न 12.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों के घोषणा-पत्र और भारतीय संविधान में दिए गए नीति-निर्देशक तत्वों को पढ़ें। दोनों सूचियों में आपको कौन-सी बातें एक समान लगती हैं ? ।
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों के घोषणा-पत्र और भारतीय संविधान में दिए नीति-निर्देशक तत्वों की सूची में निम्न बातें एक समान लगती हैं
(क) स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा
(ख) स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण
(ग) बुनियादी एवं उच्च शिक्षा का अधिकार
प्रश्न 13.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में क्यों रखा ?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका का संविधान तब बनाया गया था जब रंगभेद वाली सरकार के हटने के बाद दक्षिणी अफ्रीका गृहयुद्ध के खतरे से जूझ रहा था। ऐसी स्थिति में लिंग, नस्ल, गर्भधारण, जातीय, वैवाहिक स्थिति या सामाजिक मूल्य, रंग, आयु, धर्म, आस्था, संस्कृति, भाषा और जन्म के आधार पर भेदभाव वर्जित करने के लिए नागरिकों को व्यापक अधिकार देना आवश्यक था। यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका के संविधान में संवैधानिक अधिकारों को अधिकारों के घोषणा-पत्र में रखा।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि यह सही है या गलत
(क) अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
(ख) अधिकार-पत्र व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है।
(ग) विश्व के हर देश में अधिकार पत्र होता है।
उत्तर:
(क) सही।
(ख) सही।
(ग) गलत।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है ?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार
(ख) कानून द्वारा नागरिकों को प्रदत्त समस्त अधिकार
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त और सुरक्षित समस्त अधिकार।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएँ कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे ?
(क) राष्ट्रीय एयर लाइन के चालक-परिचालक दल (Cabin-crew) के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है, नौकरी में तरक्की दी गई, लेकिन उनकी ऐसी महिला सहकर्मियों को दण्डित किया गया जिनका वजन बढ़ गया था।
(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाता है जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।
(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकालते हैं।
(घ) आन्ध्र-सोसायटी आन्ध प्रदेश के बाहर तेलुगु माध्यम के विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) यह उदाहरण समता के अधिकार का उल्लंघन करता हैं, क्योंकि इसमें लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है। यह संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।
(ख) यह उदाहरण विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है। निर्देशक ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के द्वारा अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है।
(ग) इस उदाहरण में लोग अपनी स्वतंत्रता का उपयोग कर रहे हैं, क्योंकि लोगों को शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतंत्रता है।
(घ) यह उदाहरण सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार से संबंधित है। क्योंकि प्रत्येक संस्था या सोसायटी को शिक्षण संस्थान की स्थापना करने का अधिकार है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है ?
(क) शैक्षिक-संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे इस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।
(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।
(ग) भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।
(घ) भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढ़ेंगे।
उत्तर:
(ग) भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।
प्रश्न 5.
इनमें कौन-मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों ?
(क) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ख) किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाना।
(ग) 9 बजे रात के बाद लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(घ) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
(क) इस उदाहरण में शोषण के विरूद्ध अधिकार का उल्लंघन है। क्योंकि मजदूरों को न्यूनतम देय मजदूरी नहीं दी जा रही है।
(ख) इस उदाहरण में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। क्योंकि एक पुस्तक पर प्रतिबंध लगाया गया है। पुस्तक किसी एक व्यक्ति या समूह के विचारों को व्यक्त करती है।
(ग) इस उदाहरण में किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है, क्योंकि रात के समय ऊँची आवाज में लाउडस्पीकर बजाना उचित नहीं है।
(घ) भाषण तैयार करना किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि नागरिकों को विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है।
प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की जरूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति निर्देशक सिद्धान्तों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाए। क्या आप इससे सहमत हैं ? अपने उत्तर का कारण बताएँ।
उत्तर:
हम कार्यकर्ता के विचारों से सहमत नहीं है, क्योंकि यदि नीति-निर्देशक सिद्धांतों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना भी दिया जाए तो भी गरीबों को मौलिक अधिकारों की आवश्यकता रहेगी। मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति निर्धन हो या धनवान के विकास के लिए आवश्यक है। मौलिक अधिकारों के माध्यम से ही नागरिकों को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त होता है। परंतु राज्यनीति के निर्देशक सिद्धांतों को बाध्यकारी बनाना संभव नहीं है। नीति निर्देशक सिद्धांतों का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। यदि इन सिद्धांतों को बाध्यकारी बना दिया जाए तो उसके लिए बहुत अधिक संसाधनों की व्यवस्था करनी पड़ेगी जोकि एक अति कठिन कार्य है।
प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं, उन्हें अब भी मजबूरन यही काम करना पड़ रहा है। जो लोग अधिकार-पद पर बैठे हैं वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है ?
उत्तर:
इस उदाहरण में समता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि कुछ लोगों के साथ जाति एवं कार्य के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। समस्त नागरिकों को सरकारी नौकरी अथवा पदों पर बिना किसी भेदभाव के कार्य करने का अधिकार है। छुआछूत को अनुच्छेद 17 के अंतर्गत समाप्त कर दिया गया है।
प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भुखमरी की स्थिति की तरफ खींचा। भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हआ था। शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया है कि वह सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(क) इस मामले में कौन-कौन से अधिकार शामिल हैं ? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं ?
(ख) क्या ये अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंग हैं ?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त मामले में संवैधानिक उपचारों का अधिकार तथा स्वतन्त्रता का अधिकार शामिल है। ये अधिकार परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। भूख से मरने के कारण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। मानवाधिकार समूह द्वारा न्यायालय से यह प्रार्थना की गई कि वह सरकार को सार्वजनिक प्रणाली में सुधार करने का आदेश पारित करे। इस कार्य हेतु संवैधानिक उपचारों के अधिकार की सहायता ली गई।
(ख) हाँ ये अधिकार जीवन के अधिकार का एक अंग हैं।
प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धृत सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान सभा में दिए गए वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं ? यदि हाँ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि नहीं तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
हम सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान सभा में दिए गए वक्तव्य से सहमत नहीं है। नि:संदेह भारतीय संविधान प्रत्येक व्यक्ति को विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, परंतु साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से नागरिकों के विचारों पर प्रतिबंध लगा सकता है। लगभग सभी अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। परंतु मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि अधिकार एक हाथ से देकर दूसरे हाथ से वापस ले लिए गए हैं। वास्तव में स्वतंत्रता या समानता नकारात्मक न होकर सकारात्मक है। सभी नागरिकों को अधिकार तभी प्राप्त हो सकते हैं, जब उन पर उचित और नैतिकपूर्ण प्रतिबंध हो। अधिकार कभी भी असीमित नहीं हो सकते। इसके अतिरिक्त देश की सुरक्षा अति महत्वपूर्ण है और संकटकाल की स्थिति में देश की सुरक्षा के लिए अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना एकदम उचित है।
प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौन-सा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है ? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यों महत्वपूर्ण है ?
उत्तर:
भारत के संविधान में संवैधानिक उपचारों का अधिकार सर्वाधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है। क्योंकि इसके अस्तित्व पर ही समस्त अधिकारों का अस्तित्व आधारित है। इसके अन्तर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन किए जाने पर सीधे उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है तथा न्यायपालिका, शासन को मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आदेश अथवा निर्देश जारी कर सकती है। संविधान के 32वें अनुच्छेद की प्रशंसा करते हुए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने 'संविधान सभा में कहा था, "यदि मुझसे पूछा जाए कि संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद कौन-सा है, जिसके बिना संविधान शून्य रह जाएगा तो मैं इस अनुच्छेद के अतिरिक्त और किसी दूसरे अनुच्छेद की ओर संकेत नहीं करूँगा। यह संविधान की आत्मा, उसका हृदय है। संवैधानिक उपचारों के अधिकार के महत्वपूर्ण होने के कारण मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत संवैधानिक उपचारों के अधिकार को महत्वपूर्ण मानते हुए डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि, "यह उपबन्ध संविधान का हृदय एवं आत्मा है।"
हम संक्षेप में इसके महत्वपूर्ण होने के निम्न कारणों का उल्लेख कर सकते हैं