Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 10 विकास Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Political Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Political Science Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
आओ कुछ करके सीखें
उन चीजों की सूची बनाओ जिन्हें हम कूड़ा समझकर फेंकते रहते हैं। जरा सोचिये कि हम कूड़े की बढ़ती मात्रा से होने वाली हानियों को कम करने के लिए इन फेंकी हुई चीजों का नव-निर्माण या पुनर्प्रयोग कर सकते हैं।
उत्तर:
वह वस्तुएँ जिन्हें हम कूड़ा समझकर फेंक देते हैं और इनके पुनर्प्रयोग की सूची निम्नलिखित है
वस्तु |
नव-निर्माण या पुनः प्रयोग का रूप |
1. कागज एवं अखबार |
कागज को पानी में गलाकर इसकी लुग्दी - नाकर हम घर पर ही दफ्ती और कार्ड शीट बना सकते हैं। अखबारों से लिफाफे बनाए जा सकते हैं। |
2. प्लास्टिक |
प्लास्टिक को कूड़े में डालने की बजाए हमें कबाड़ी को देना चाहिए। उसके जरिये यह फैक्ट्रियों तक पहुँच जाती है और इसे गलाकर पुन: प्लास्टिक के डिब्बे, बाल्टियाँ इत्यादि बना ली जाती हैं। |
3. सब्जियों के छिलके, पत्ते, सड़े-गले फल इत्यादि |
इन्हें हम पशुओं को खिला सकते हैं। इन्हें एक स्थान पर एकत्र कर जैविक खाद भी बनाई जा सकती है। जिसे हम अपने गमलों, खेतों इत्यादि में उपयोग कर सकते हैं। |
प्रश्न 2.
वाद-विवाद संवाद
नदियाँ समाज की धरोहर हैं, सरकार की नहीं। इसलिए नदी के पानी के बारे में कोई भी निर्णय लोगों की अनुमति के बिना नहीं लिया जाना चाहिए। इस विषय में आपकी क्या राय है ?
उत्तर:
यह वर्तमान में वाद-विवाद का एक प्रमुख विषय है कि वास्तव में प्राकृतिक संसाधनों, नदियों, वनों आदि पर निर्णय करने का अधिकार केवल सरकार को है या लोगों की अनुमति भी आवश्यक है। इस विषय पर कोई निष्कर्ष निकालने से पहले हमें पक्ष व विपक्ष के तर्कों को जानना होगा।
पक्ष में तर्क (वाद)-
विपक्ष में तर्क (विवाद)-
(i) लोकतांत्रिक सरकार का गठन जनता ही करती है। अतः यदि सरकार नदियों के जल पर कोई निर्णय करती है तो इसमें जनप्रतिनिधियों के रूप में लोगों की सलाह मौजूद होती है। इस स्थिति में सरकार को अलग से अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं।
(ii) सरकार राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति करने का माध्यम है और उसे सम्प्रभुता प्राप्त है। अतः वह जो करना चाहे, कर सकती है। निष्कर्ष (संवाद) उपर्युक्त दोनों पक्षों के जानने के बाद हम कह सकते हैं कि- यह सच है कि सरकार सम्प्रभु होती है परन्तु लोकतंत्र में जनता से बढ़कर कोई नहीं होता। नदियों के जल का मामला जनता के हक का मामला है और इस नाते सरकार इसमें कोई भी निर्णय करने से पहले जनता का परामर्श लेने हेतु प्रतिबद्ध है। यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो यह नागरिकों के अधिकारों का हनन है और लोकतन्त्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। प्राकृतिक संसाधन पूरे समाज की धरोहर होते हैं। नदियाँ भी उनमें शामिल हैं। ऐसे में सरकार मनमाने तरीके से इनके विषय में निर्णय नहीं कर सकती।
प्रश्न 3.
चिन्तन-मंथन
उत्तर:
1. बड़े बाँधों के निम्नलिखित गुण व दोष होते हैं गुण
(क) ये बेहतर सिंचाई व्यवस्था निश्चित करते हैं।
(ख) इनकी मदद से विद्युत उत्पादन में सहायता मिलती है।
(ग) शहरों में पेयजल की कमी को पूरा करते हैं। दोष
(क) स्थानीय लोगों के सामने जीवनयापन की मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
(ख) परियोजना से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को अपने पैतृक निवास स्थानों से हटना पड़ता है।
(ग) काफी उपजाऊ भूमि, वन इत्यादि पानी के डूब क्षेत्र में आ जाते हैं।
2. नहीं, सरदार सरोवर बाँध पानी की कमी की समस्या को हल करने का सही तरीका नहीं कहा जा सकता। इसका कारण यह है कि इससे बड़ी संख्या में लोग बेघर हुए, उपजाऊ भूमि पानी में डूब गयी। लोगों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया। जहाँ तक पानी की कमी की समस्या के निदान की बात है तो इसे छोटे बाँध बनाकर, शहरों में जल स्तर की रक्षा करके तथा हरियाली की स्थापना करके भी हल किया जा सकता है। परन्तु एक तरफ शहरी लोगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए दूसरी तरफ निर्धन-दुर्बल लोगों की रोजी-रोटी, निवास, आदि छीन लेना न्यायोचित नहीं है।
3. हाँ, कार्यकर्ताओं द्वारा सरदार सरोवर बाँध परियोजना का विरोध करना पूरी तरह न्यायोचित था क्योंकि यह उनके जीवनयापन, निवास स्थान आदि से जुड़ा मामला था जो प्रत्येक व्यक्ति की बुनियादी आवश्यकताएँ होती हैं और इनके लिए आवाज उठाना सदैव न्यायोचित होता है।
प्रश्न 1.
आप 'विकास' से क्या समझते हैं ? क्या 'विकास' की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है ?
उत्तर:
विकास से अभिप्राय हमारे विचार में समाज में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा से सम्बन्धित होने वाले सकारात्मक परिवर्तनों की प्रक्रिया ही 'विकास' है। 'विकास' ही किसी समाज में प्रगति की दशा व दिशा को निर्धारित करने वाला प्रमुख तत्व होता है। विकास की प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों व लोगों का समान हित निहित होता है। विकास की प्रचलित परिभाषाएँ और समाज के सभी वर्गों को लाभ विकास की अधिकांश प्रचलित परिभाषाएँ इसकी संकुचित व्याख्या प्रस्तुत करती हैं। आम तौर पर विकास शब्द का प्रयोग केवल आर्थिक प्रगति की दर और समाज के आधुनिकीकरण जैसे संकुचित क्षेत्रों में ही होता रहा है। इन अर्थों में विकास को केवल ऐसी प्रक्रिया माना जाता है जिसमें किसी देश में उद्योगों की स्थापना हो, व्यापार में वृद्धि हो, विदेशी मुद्रा प्राप्त हो तथा कुल मिलाकर आर्थिक सम्पन्नता आए। परन्तु यह सम्पन्नता केवल अमीर वर्गों तक ही सीमित रह जाती है।
एक ओर बड़े-बड़े उद्योग स्थापित होते हैं तो दूसरी ओर इन्हीं उद्योगों में श्रमिकों का अत्यधिक शोषण होता है। जबकि विकास का वास्तविक अर्थ तो सभी लोगों के लिए समान सम्पन्नता की बात करना है। इसी प्रकार समाज के आधुनिकीकरण की बात की जाए तो यह भी विकास का संकुचित और अधूरा अर्थ है क्योंकि समाज में एक ओर लोग विदेशी कपड़े, सुख-सुविधा का प्रयोग करते हैं तो वहीं दूसरी ओर तथाकथित आधुनिक समाजों में ही निम्न वर्ग के दबे-कुचले लोग आज भी निर्वस्त्र व साधनहीन जीवन जी रहे हैं। अतः विकास की जो परिभाषाएँ प्रचलित हैं वह समाज के कुछ वर्गों के लाभ तक ही सीमित हैं। विकास का वास्तविक अर्थ जो समाज के सभी लोगों के लाभों की बात करता है, वह दुर्भाग्यवश प्रचलन में ही नहीं है।
प्रश्न 2.
जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अधिकतर देशों में विकास के पश्चिमी देशों के मॉडल को अपनाया गया है। इससे इन देशों पर व्यापक सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़े हैं, जो निम्नलिखित हैं विकास के सामाजिक प्रभाव-विकास के पश्चिमी मॉडल की देशों को बहुत बड़ी सामाजिक कीमत चुकानी पड़ी है। अन्य चीजों के अलावा बड़े बाँधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्यों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों को उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन झेलना पड़ा। इस विस्थापन का परिणाम लोगों के लिए आजीविका (रोजी-रोटी) खोने और दरिद्रता में वृद्धि के रूप में सामने आया है।
बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में ग्रामीण विकास व खेतों के काम करने वाले समुदाय अपने परम्परागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होते हैं, तो वे समाज के हाशिए पर चले जाते हैं। बाद में वे शहरी और ग्रामीण गरीबों की विशाल आबादी में शामिल हो जाते हैं। उनके लम्बी अवधि में अर्जित परम्परागत कौशल नष्ट हो जाते हैं। इससे समाज में संस्कृति का भी विनाश होता है। विकास के पर्यावरण पर प्रभाव-विकास की वजह से अनेक देशों में पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है और इसके परिणामों को विस्थापित लोग ही नहीं, बल्कि पूरी आबादी महसूस करने लगी है।
वर्तमान में धरती के तापमान में वृद्धि की नई समस्या विकास द्वारा पर्यावरण को पहुँचाए नुकसान का ही परिणाम है। आज पर्यावरण प्रदूषण के चलते धरती के तापमान में वृद्धि के साथ-साथ ओजोन परत में छेद भी बढ़ता जा रहा है। विकास की यह प्रक्रिया ऐसे ही चलती रही तो आने वाले समय में हम पारिस्थितिकी संकट से भी बुरी तरह प्रभावित होंगे। तीव्र औद्योगीकरण ने वायु प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि की है। वायु-प्रदूषण ऐसी समस्या है जो अमीर और गरीब में अन्तर नहीं करता परन्तु फिर भी संसाधनों के अभाव के कारण इससे गरीब सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। इस प्रकार विकास आज हमारे पर्यावरण के लिए एक चुनौती बन गया है।
प्रश्न 3.
विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में विकास की प्रक्रिया में अधिकांश लाभ अमीर न ताकतवर लोगों को प्राप्त हुआ है जबकि समाज में निर्धन और दुर्बल लोगों को इस विकास की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। इसी कारण इस पीड़ित वर्ग द्वारा आज नए-नए अधिकारों के दावे किये जा रहे हैं, जो निम्नलिखित हैं
(i) संरक्षण का दावा-इसके अन्तर्गत समाज के निम्न व दुर्बल लोग राज्य व समाज से विशेष परिस्थितियों में संरक्षण की माँग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि विकास की प्रक्रिया से होने वाले नुकसानों व शोषण से उनकी रक्षा हो सके।
(ii) निर्णयों में सलाह का दावा-आज विकास परियोजनाओं से प्रभावित लोगों की ओर से यह भी माँग की जा रही है कि विकास की प्रक्रिया से सम्बन्धित वह निर्णय जो उन्हें व उनके जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं, उनमें उनसे भी राय ली जाए। देखा जाए तो इस अधिकार की माँग उचित भी है क्योंकि लोगों को विस्थापन के रूप में भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
(iii) आजीविका का अधिकार-आज विकास परियोजनाओं से प्रभावित लोगों की दुर्दशा को देखते हुए समाज में अधिकांश निम्नवर्गीय लोगों द्वारा आजीविका के अधिकार की भी मांग की जा रही है ताकि वे ऐसी किसी परिस्थिति में सरकार को अपनी आजीविका का हवाला दे सकें।
(iv) नैसर्गिक संसाधनों पर दावा नैसर्गिक संसाधन वे संसाधन हैं जिनसे लोगों का पूरा जीवन, सभ्यता व संस्कृति जुड़ी है। इन लोगों में वनवासी, आदिवासी इत्यादि लोग आते हैं। इनके द्वारा नैसर्गिक संसाधनों जैसे वनों इत्यादि पर दावा जताया जा रहा है जिससे कि वे विकास की प्रक्रिया से अपनी सभ्यता, आजीविका व जीवन की रक्षा कर सकें।
प्रश्न 4.
विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किए जाएँ, यह सुनिश्चित करने में अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतांत्रिक व्यवस्था के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किए जाएँ, यह सुनिश्चित करने में अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतांत्रिक व्यवस्था के निम्नलिखित लाभ हैं
(i) संसाधनों व बेहतर जीवन से जुड़े निर्णयों का न थोपा जाना-लोकतांत्रिक व्यवस्था का विकास के सन्दर्भ में पहला लाभ यह है कि इसमें संसाधनों के वितरण या जीवन की बेहतरी से जुड़े मामलों पर सरकार कोई भी निर्णय करके जनता पर थोप नहीं सकती। इसमें लोगों की आकांक्षाओं, उम्मीदों व आवश्यकताओं को पूरा सम्मान दिया जाता है। अतः इससे किसी भी निर्णय में आवश्यक रूप से सामान्य हित की भावना आ जाती है।
(ii) निर्णय-प्रक्रिया में जनता की साझेदारी लोकतांत्रिक देशों में निर्णय प्रक्रिया में जनता की साझेदारी (भाग) लेने के अधिकार पर जोर दिया जाता है। यदि उच्च जीवन-स्तर प्राप्त करने में समाज का प्रत्येक व्यक्ति साझीदार है, तो विकास की योजना बनाने एवं क्रियान्वयन के तरीके ढूँढ़ने में भी प्रत्येक व्यक्ति को शामिल होने की आवश्यकता है और यह व्यवस्था लोकतंत्र में संभव इस प्रकार स्पष्ट है कि विकास सम्बन्धी निर्णयों में सामान्य हित (जनता के हित) को बढ़ावा देने में अन्य सरकारों की अपेक्षा लोकतंत्रात्मक व्यवस्था अधिक बेहतर है और इसके उपर्युक्त महत्वपूर्ण लाभ हैं।
प्रश्न 5.
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में लोकप्रिय संघर्ष और आन्दोलन कितने सफल रहे हैं ?
उत्तर:
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति लोग सदैव शान्त व निष्क्रिय नहीं रहते। लोगों द्वारा इसके विरोध में कई बार संघर्ष व आन्दोलन चलाए जाते रहे हैं। ये संघर्ष व आन्दोलन सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में काफी हद तक सफल रहे हैं। इन आन्दोलनों के चलते, सरकार को विकास से सम्बन्धित परियोजनाओं के लोगों और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए भारत में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध बनाए जाने की योजना विकास से जुड़ी महत्वपूर्ण योजना है।
इससे प्रभावित हो रहे लोगों ने 'नर्मदा बचाओ आन्दोलन' की शुरूआत की। धीरे-धीरे यह एक बड़ा और लोकप्रिय जन-आन्दोलन बन गया। फलस्वरूप सरकार को इस परियोजना पर पुनः विचार करने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसी प्रकार भारत में हिमालय के वन क्षेत्र में वनों की अन्धाधुन्ध कटाई को रोकने के लिए 'चिपको आन्दोलन' चलाया गया था। इस आन्दोलन ने वृक्षों व वनों के संरक्षण के लिए सरकार को विवश कर दिया था। लोकप्रिय संघर्ष व जन आन्दोलन केवल लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही नहीं बल्कि सैन्य शासन में भी सरकार को प्रभावित करने में कामयाब रहे हैं।
इसका ज्वलन्त उदाहरण 'केन सारो वीवा' द्वारा 1990 ई. में नाइजीरिया में ओगोनी प्रान्त के लोगों के हितों की रक्षा के लिए चलाया गया 'मूवमेंट फार सरवाइवल ऑफ ओगोनी पीपल' (ओगोनी लोगों के अस्तित्व के लिए आन्दोलन) हमारे सम्मुख है। यह आन्दोलन इतना सफल हुआ कि 1993 ई. तक ओगोनी प्रान्त से तेल कम्पनियों को वापस जाना पड़ा था। अतः हम कह सकते हैं कि विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरण की क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनाने में लोकप्रिय संघर्ष और आन्दोलन हर व्यवस्था में अत्यधिक सफल रहे हैं।