Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 1 संविधान - क्यों और कैसे? Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1
यूरोपीय संघ के देशों ने एक यूरोपीय संविधान बनाने की कोशिश की। उनकी कोशिश असफल हो गई। कार्टूनिस्ट ने संविधान निर्माण के उनके प्रयास को मार-पीट और झगड़े से भरी कोशिश के रूप में देखा। क्या संविधान निर्माण की प्रक्रिया हमेशा ऐसी ही होती है?
उत्तर:
नहीं। प्रायः संविधान निर्माण की प्रक्रिया शांति एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण में परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करके होती है। इससे संबंधित सभा में विचार-विनिमय और जन-संचार माध्यमों द्वारा लोगों के विचार, सुझावों तथा अनुभवों से पूरा-पूरा लाभ उठाया जाता है।
प्रश्न 2.
संविधान-निर्माताओं को लोगों की अलग-अलग आकांक्षाओं से जूझना पड़ा। यहाँ पर नेहरू को अनेक भावी कल्पनाओं और विचारधाराओं में संतुलन करते दिखाया गया है। क्या आप पहचान सकते हैं कि ये विभिन्न समूह क्या चाहते हैं? आपको क्या लगता है, संतुलन करने का अंतिम परिणाम क्या हुआ?
उत्तर:
उपर्युक्त कार्टून में एक ओर पश्चिमी विचारधारा और संगीत से प्रभावित लोग हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति के कट्टर समर्थक लोग। दोनों में समन्वय और संतुलन के लिए निर्णय हुआ कि 'जन-गण-मन' को राष्ट्रीय गान तथा 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता प्राप्त होगी। भारत के लोगों में सांस्कृतिक मिश्रण की बहुत बड़ी ताकत है। भारत में विभिन्न विचारधाराओं के साथ-साथ फलने-फूलने, जीओ और जीने दो या मध्यम मार्ग ही सर्वाधिक उपयुक्त है।
प्रश्न 3.
राज्य के नीति-निर्देशक तत्व भी सरकार से लोगों की कुछ आकांक्षाएँ पूरी करने की अपेक्षा करते हैं। संविधान में अच्छी बातें लिखने में क्या जाता है ? लेकिन ऐसी ऊँची आकांक्षाओं
उत्तर:
राज्य के नीति निर्देशक तत्व उन नैतिक सिद्धान्तों की सूची है जो कि मौलिक रूप से शासन को चलाने के लिए आवश्यक हैं। संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि भारतीय संविधान पूर्ण व्यावहारिक एवं जनोपयोगी हो, अर्थात् समाज के प्रत्येक व्यक्ति को बुनियादी भौतिक आवश्यकताओं और शिक्षा सहित वह सब कुछ उपलब्ध हो, जिसके आधार पर वह गरिमा और आत्मसम्मान से भरा जीवन जी सके। संविधान निर्माताओं द्वारा राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों द्वारा एक लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने का उद्देश्य था। परन्तु यह सब ऊँची आकांक्षाओं का लक्ष्य संविधान में लिख भर जाने से कुछ भी हासिल नहीं होगा जब तक कि सरकार इन प्रावधानों को लागू करने के लिये ठोस कदम न उठाये अर्थात् सरकार को चाहिए कि कानून बनाकर, इन नीति-निर्देशक तत्वों को अनिवार्य रूप से लागू किया जाये जिससे कि लोगों की न्यायोचित आकांक्षायें पूरी हो सकें एवं एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु उचित परिस्थितियों का निर्माण हो सके।
प्रश्न 4.
नीचे भारतीय और अन्य संविधानों के कुछ प्रावधान दिए गए हैं। बताएँ कि इनमें प्रत्येक प्रावधान का क्या कार्य है?
उत्तर:
प्रश्न 5.
संविधान कितना प्रभावी है ?
उत्तर:
यदि संविधान सैनिक शासकों या ऐसे अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाए जाते हैं जिनके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती, तो वे संविधान कम प्रभावी या निष्प्रभावी होते हैं। यदि संविधान सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद लोकप्रिय नेताओं द्वारा निर्मित किया जाता है तो उसमें समाज के सभी वर्गों को एक साथ ले चलने की क्षमता होती है। इससे स्पष्ट होता है कि संविधान निर्माण सभा के सदस्यों में जितनी अधिक लोकप्रियता, जनहित की भावना और समाज के सभी वर्गों को साथ ले चलने की क्षमता होगी संविधान उतना ही अधिक प्रभावी होगा। संसार के सर्वाधिक सफल व प्रभावी संविधान भारत, द. अफ्रीका एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के हैं जिन्हें एक सफल राष्ट्रीय आन्दोलन के बाद बनाया गया है।
प्रश्न 6.
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है तो वे क्या करते हैं ? ऐसे लोगों का क्या होता है जिनका संविधान केवल कागज पर ही होता है ?
उत्तर:
लोगों को जब यह पता चलता है कि उनका संविधान न्यायपूर्ण नहीं है, तो वे संविधान के प्रावधानों का आदर न करते हुए आन्दोलित हो उठते हैं। कभी-कभी यह आन्दोलन सशस्त्र आन्दोलन में भी बदल जाता है एवं लोग वर्षों से स्थापित सत्ता या सरकार को उखाड़ फेंकते हैं। आन्दोलनकारियों के आगे सत्तापक्ष को झुकना पड़ता है एवं एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु अग्रसर होना पड़ता है। जिन देशों का संविधान केवल कागज पर होता है, वहाँ की जनता को बुनियादी न्याय प्राप्त करने का ढाँचा उपलब्ध नहीं हो पाता। संविधान राज्य के बारे में कई प्रावधान करता है, जैसे कि राज्य का गठन कैसे होगा, राज्य का शासन कैसे चलेगा आदि। लिखित संविधान में प्रत्येक पहलू को गम्भीरतापूर्वक विचार कर लिखा जाता है जिससे कि शासक एवं शासित दोनों को संविधान को दैनिक जीवन के व्यवहार में लाने में कठिनाई न आये।
प्रश्न 7.
कार्टून बनाने वाले ने नये इराकी संविधान को 'ताश के पत्तों का महल' क्यों कहा? क्या यह वर्णन भारतीय संविधान पर लागू होगा?
उत्तर:
कार्टून बनाने वाले ने इराकी संविधान को ताश के पत्तों का महल इसलिए कहा क्योंकि यह जबर्दस्ती थोपा गया संविधान है। यह सम्पूर्ण जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नहीं बनाया गया है। यह ताश के पत्तों की तरह अस्थाई होगा और समाप्त हो जायेगा। भारतीय संविधान के साथ ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि इसे लोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाया गया है और इसमें समाज के समस्त वर्गों को साथ लेकर चलने की क्षमता है। यह जबरदस्ती थोपा गया संविधान नहीं है। आज इसे बने और लागू हुए लगभग 70 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो चुका है। कुछ संशोधनों के साथ यह समय की कसौटी पर सदैव ही खरा उतरा है।
प्रश्न 8.
यदि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो क्या होता ? क्या वह उस संविधान सभा से भिन्न होती जो बनाई गई ?
उत्तर:
भारत की संविधान सभा यदि सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित होती तो इसका परिदृश्य कुछ और भी हो सकता था। विदित हो कि हमारी संविधान सभा का गठन सन् 1935 में स्थापित प्रान्तीय विधान सभाओं के सदस्यों के द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से कैबिनेट मिशन योजना' के अन्तर्गत हुआ था। इस योजना का उद्देश्य यह था कि इस सभा को सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हासिल हो। यद्यपि भारत की संविधान सभा देश के सभी लोगों के द्वारा निर्वाचित नहीं थी पर उसको समस्त वर्गों, जातियों एवं राजनैतिक संगठनों का प्रतिनिधित्व प्राप्त था। यदि संविधान सभा सभी लोगों द्वारा निर्वाचित होती तो यह उस संविधान सभा से भिन्न होती जो बनाई गई, क्योंकि निर्वाचन की प्रक्रिया द्वारा कुछ अयोग्य व्यक्ति भी चुनकर आ सकते थे जो कि संविधान निर्माण की भूमिका में खरे नहीं उतरते। पर जैसा विदित है कि इसके लिए निर्वाचन एक वर्ग विशेष द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से हुआ था जिन्होंने केवल योग्य व्यक्तियों को ही चुना और जिन्होंने संविधान निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 9.
यदि हमें 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती तो क्या होता? हमें 1957 तक इंतजार करना पड़ता तो क्या होता ? क्या तब बनाया गया संविधान हमारे वर्तमान संविधान से भिन्न होता ?
उत्तर:
यदि हमें सन् 1937 में स्वतंत्रता मिल जाती तो हम दस साल पहले स्वतंत्र हो गये होते एवं अपने संविधान का निर्माण कर अपने देश के शासनतंत्र को दकता प्रदान करते हुए विकास की गति को आगे बढ़ाकर आर्थिक रूप से काफी सुदृत हो गये होते एवं विश्व पटल पर काफी पहले ही अपनी एक पहचान बना चुके होते। यदि हमैं सन् 1957 तक इन्तजार करना पड़ता तो हम बस साल बाब स्वतंत्र होते अधषा स्वतन्त्रता पाने के लिए हमें दस साल और स्वतंत्रता आन्दोलमें जारी रखना पड़ता एवं हर क्षेत्र में हम काफी पिछड़ गये होते, संविधान निर्माण एवं अन्य प्रक्रिया, जैसे विकास की गति और सुदृढीकरण आदि विलम्बित होता और विश्वषटल पर हम और दस साल पीछे चले गधे होते। स्वतन्त्रता हमें कभी भी मिलती परन्तु संविधान वर्तमान संविधान से शायद ही भिन्न होता, क्योंकि स्वतंत्रता के समय विभाजन की परिस्थितियाँ इसी प्रकार की होती तथा संविधान निर्माताओं का लोकहित का दृष्टिकोण भी वैसा ही रहता।
प्रश्न 10.
क्या यह संविधान उपार का था ? हम ऐसा संविधान क्यों नहीं बना सके जिसमें कहीं से कुछ भी उमार न लिया गया हो।
उत्तर:
हमारा संविधान उधार का है, अगर इस पर हम गम्भीरतापूर्वक विचार करें तो पायेंगे कि कुछ देशों से उनके संविधान के कुछ प्रावधान अवश्य लिये गये हैं, परन्तु हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा प्रत्येक प्रावधान का बारीकी से परीक्षण किया गया है कि वह प्रावधान भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुरूप हैं या नहीं। इसलिए यह कहना पूर्णतया गलत होगा कि हमारा संविधान उधार का था, बल्कि उधार लेकर उन्हें अपने अनुरूप ढालना हमारे संविधान निर्माताओं की बुद्धिमता एवं दूरदृष्टिता का परिचायक है। सर्वप्रथम तो वर्तमान परिस्थितियों में जहाँ विश्व के देश एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, संविधान का सर्वथा नवीन ढाँचा तैयार करना सम्भव नहीं था। दूसरे, उधार लिये गये प्रावधान दूसरे देशों में प्रयोग और अनुभव किये जा चुके हैं। उनका सफल संचालन ही हमारे संविधान निर्माताओं का उन प्रावधानों को शामिल करने हेतु प्रेरणास्रोत बना।
प्रश्न 1.
इनमें कौन-सा संविधान का कार्य नहीं है ?
(क) यह नागरिकों के अधिकार की गारण्टी देता है।
(ख) यह शासन की विभिन्न शाखाओं की शक्तियों के अलग-अलग क्षेत्र का रेखांकन करता है।
(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आएँ।
(घ) यह कुछ साझे मूल्यों की अभिव्यक्ति करता है।
उत्तर:
(ग) यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता में अच्छे लोग आएँ।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन इस बात की एक बेहतर दलील है कि संविधान की प्रामाणिकता संसद से ज्यादा है ?
(क) संसद के अस्तित्व में आने से कहीं पहले संविधान बनाया जा चुका था।
(ख) संविधान के निर्माता संसद के सदस्यों से कहीं ज्यादा बड़े नेता थे।
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाए और इसे कौन-कौन-सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(घ) संसद, संविधान संशोधन नहीं कर सकती।
उत्तर:
(ग) संविधान ही यह बताता है कि संसद कैसे बनायी जाए और इसे कौन-कौन-सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
प्रश्न 3.
बतायें कि संविधान के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत।
(क) सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज है।
(ख) संविधान सिर्फ लोकतान्त्रिक देशों में होता है और उसकी जरूरत ऐसे ही देशों में होती है।
(ग) संविधान एक कानूनी दस्तावेज है और आदर्शों तथा मूल्यों से इसका कोई सरोकार नहीं।
(घ) संविधान एक नागरिक को नई पहचान देता है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत
(घ) सही।
प्रश्न 4.
बतायें कि भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में निम्नलिखित अनुमान सही है या नहीं ? अपने उत्तर का कारण बताएं।
(क) संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्योंकि उस समय नैताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है।
मार-
(क) यह अनुमान सही नहीं है, क्योंकि भले ही संविधान सभा का निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था, परन्तु फिर भी संविधान सभा भारतीय जनता की नुमाइंदगी करती थी, संविधान सभा में भारतीय जनता के सभी वर्गों, क्षेत्रों एवं धर्मों के प्रतिनिधि सम्मिलित थे। पदि पपस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव होता तो लगभग वही सदस्य चुने जाते जो संविधान सभा के सदस्य थे।
(ख) यह अनुमान सही नहीं है क्योंकि संविधान सभा में अधिकांश प्रावधानों पर बहुत वाद-विवाद के बाद ही आम सहमति बन पाई थी और उसके पश्चात् ही निर्णय लिए गए थे।
(ग) यह अनुमान सही नहीं है, क्योंकि हमें मौलिक संविधान की आवश्यकता नहीं थी, बल्कि एक ऐसे संविधान की आवश्यकता थी, जो भारतीय समाज के आदर्शों एवं मूल्यों के अनुरूप हो। संविधान की अधिकांश धाराएँ 1935 के भारत शासन अधिनियम से ली गई हैं और ये अधिनियम भारत में पहले से ही लागू किया गया था और हमारे नेतागण भी इससे परिचित थे।
प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें:
(क) संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। उनके लिए जनता के मन में आदर था।
(ख) संविधान ने शक्तियों का बँटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।
(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है।
उत्तर:
(क) (i) भारतीय संविधान निर्माता उच्च कोटि के विद्वान थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे जो स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति बने।
(ii) संविधान सभा के उद्देश्य संबंधी प्रस्ताव पं. जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तुत किया जो भारतीय गणराज्य के प्रथम प्रधानमंत्री बने। डॉ. भीमराव अंबेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। जो स्वतत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री बने।
(ख) (i) संविधान के अंतर्गत सरकार की शक्तियों का बँटवारा विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में इस प्रकार किया गया कि कोई एक संस्था संविधान के ढाँचे को नष्ट नहीं कर सकती।
(ii) संविधान के अंतर्गत केन्द्र और राज्यों में कानून बनाने की शक्तियों का बँटवारा करने के लिए तीन सूचियाँ बनाई गई हैं(अ) संघीय सूची ( ब ) राज्य सूची (स) समवर्ती सूची। कानून बनाने की इन शक्तियों के बँटवारे में परिवर्तन करना एक कठिन कार्य है।
(ग) (i) भारतीय संविधान भारतीय समाज के आदर्शों एवं मूल्यों के अनुकूल है। छुआछूत को संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा समाप्त कर दिया गया है। आज कानून के समक्ष सभी समान हैं।
(ii) संविधान भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है।
प्रश्न 6.
किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है ? इस तरह का निर्धारण न हो, तो क्या होगा ?
उत्तर:
किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण इसलिए आवश्यक है, ताकि
यदि किसी देश के संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का निर्धारण साफ-साफ न हो तो इसके निम्नलिखित परिणाम होंगे:
प्रश्न 7.
शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए क्यों जरूरी है ? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे ?
उत्तर:
शासकों की सीमा का निर्धारण करना संविधान के लिए इसलिए आवश्यक है ताकि शासक निरंकुश व तानाशाह न बन सकें। विश्व में कोई भी संविधान ऐसा नहीं है जो कि अपने राज्य के नागरिकों को किसी भी प्रकार के अधिकारों से वंचित रखे। सिर्फ तानाशाही और साम्राज्यवादी शासन प्रणाली में ही इस प्रकार की सम्भावनाएँ हैं जहाँ कि लोग शासक के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाते हैं। यदि किसी देश का संविधान अपने नागरिकों को अधिकारों से वंचित करता है तो सम्बन्धित देश का शासन लम्बी सम . धि तक नहीं चल पाएगा।
प्रश्न 8.
जब जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना असम्भव था जो अमेरिकी सेना को पसन्द न हो। क्या आपको लगता है कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?
उत्तर:
जापान का संविधान तत्कालीन अमेरिकी जनरल मैक आर्थर की निगरानी में बनाया गया था। यह संविधान जापान के लोगों ने अपनी इच्छा से नहीं बनाया था बल्कि यह संविधान उन पर थोपा गया था। इस प्रकार के संविधान बनाने में कठिनाई अवश्य आती है क्योंकि विदेशी लोगों को स्थानीय लोगों के मूल्यों और आदर्शों की जानकारी नहीं होती। भारत में संविधान बनाने का अनुभव जापान से अलग था, क्योंकि संविधान बनाते समय भारत स्वतंत्रता प्राप्त कर चुका था तथा भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा ने किया था। यद्यपि भारतीय संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं किया गया था। इसके बावजूद संविध न सभा के अंदर भारत के सभी वर्गों व क्षेत्रों के लोकप्रिय नेता इसके सदस्य थे। संविधान सभा में सभी निर्णय वाद-विवाद और आम सहमति से लिए गए थे। इस प्रकार भारतीय संविधान बनाने का अनुभव जापानी संविधान से एकदम अलग व अनूठा है।
प्रश्न 9.
रजत ने अपने शिक्षक से पूछा-"संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँर यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बताएँ कि मैं इस दस्तावेज की बातों का पालन क्यों करूँ ?"अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते ?
उत्तर:
यदि मैं शिक्षक होता तो रजत को समझाते हुए कहता, कि बेशक भारतीय संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है लेकिन इसमें समय और परिस्थितियों के अनुसार सदैव परिवर्तन करके इसे आधुनिक और अधिक व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया गया है। यदि संविधान की भाषा कठिन एवं कानून के अनुसार न हो, तो कोई भी शासक या व्यक्ति इसका गलत अर्थ में प्रयोग कर सकता है और कठिन भाषा के होते हुए भी यह लोगों के अधिकारों की रक्षा का पूरा वचन देता है, अत: तुम्हें (रजत) इसका पालन करना चाहिए।
प्रश्न 10.
संविधान के क्रियाकलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने तीन अलग-अलग पक्ष
लिए
(क) हरबंस-भारतीय संविधान एक लोकतान्त्रिक ढाँचा प्रदान करने में सफल रहा है।
(ख) नेहा-संविधान में स्वतन्त्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत् वादा है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।
(ग) नाजिमा-संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया। क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं, यदि हाँ तो क्यों? यदि नहीं तो आप अपना पक्ष बताएँ।
उत्तर:
हम हरबंस एवं नाजिमा के विचारों से सहमत हैं। भारतीय संविधान निस्संदेह एक लोकतांत्रिक ढाँचा प्रदान करने में सफल रहा है और संविधान को कुछ असफलता मिली भी हैं, तो यह हमारे संविधान की नहीं बल्कि इसको चलाने वाले लोगों की असफलता है।