Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से संबंध और मेल-जोल Textbook Exercise Questions and Answers.
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समीक्षात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परिवार शब्द को परिभाषित करें। विभिन्न प्रकार के परिवारों के बारे में बताइए।
उत्तर:
हम परिवार को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं: व्यक्तियों का एक समूह जो विवाह के बंधन, खन के रिश्ते या गोद लिए जाने से बंधकर एक परिवार का निर्माण करते हैं, जो पति और पत्नी, माता और पिता, पुत्र और पुत्री, भाई और बहन की अपनी: अपनी सामाजिक भूमिकाओं में एक: दूसरे के साथ परस्पर व्यवहार करते हैं और एक समान संस्कृति का सृजन करते हैं।
परिवारों के प्रकार: परिवारों के प्रकारों को निम्न प्रमुख आधारों पर वर्गीकृत कर स्पष्ट किया गया है
(अ) वंश के आधार: वंश के आधार पर परिवारों को निम्नलिखित दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है
(ब) आवास व्यवस्था का आधार: आवास व्यवस्था के आधार पर परिवारों को निम्नलिखित दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है
(स) परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर: इस आधार पर परिवार को निम्नलिखित तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है
प्रश्न 2.
परिवार के किन्हीं तीन कार्यों की उदाहरण के साथ चर्चा करें।
उत्तर:
परिवार अपने सदस्यों, विशेष रूप से बच्चों के लिए कुछ अनिवार्य कार्य प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिनमें से तीन निम्नलिखित हैं
1. पालन:
पोषण करना: सभी परिवार, दंपत्ति के जीवनयापन, संतान उत्पन्न करने और वंश को आगे बढ़ाने के लिए विधिसम्मत आधार प्रदान करते हैं। सभी परिवार अपने बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनका पालन: पोषण करते हैं। अपनत्व की भावना को बढ़ावा देने में देखभाल के माध्यम से भावात्मक जरूरतों का प्रावधान भी उतना ही महत्व रखता है। अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता हर उम्र में रहती है, एक किशोर लड़के को भी देखभाल करने वाले स्नेहपूर्ण परिवार की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए दादी भी अपना समय व्यतीत करने के लिए अपने नाती: पोतों का बेसब्री से इंतजार करती है। इस तरह से परिवार हर उम्र में विभिन्न अनुभवों और परिस्थितियों द्वारा अपने सदस्यों को महत्वपूर्ण प्यार और देखभाल देने का प्रयास करता है।
2. समाजीकरण:
यह दैनिक पारस्परिक क्रियाओं द्वारा युवा पीढ़ी को सामाजिक प्रक्रियाओं से अवगत कराने की प्रक्रिया है। उदाहरणतः परिवार में 'हम' की भावना अभिवृत्तियों और भावनाओं को अभिव्यक्त करने में सहायक होती है। आपने कितनी बार अपने माता या पिता को यह कहते सुना होगा कि "नहीं तुम यह नहीं कर सकते क्योंकि हमारे परिवार में ऐसा नहीं होता।"
3. परिवार के सदस्यों को दर्जा प्रदान करना और उनकी भूमिका:
अपने घर में आपका दर्जा भिन्न होता है और हर परिवार में भिन्नता हो सकती है। जैसे, किशोर लड़का पुत्र, भाई या देवर/साले की भूमिका में हो सकता है। प्रत्येक भूमिका की कुछ जिम्मेदारी और विशेषताएँ होती हैं, जो सामाजिक रूप से परिभाषित होती हैं।
प्रश्न 3.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(i) पारिवारिक जीवन चक्र
(ii) पारिवारिक विकासात्मक कार्य
(iii) पारिवारिक क्रियाकलाप
(iv) परिवार में विरोध (द्वन्द्व) की स्थितियाँ।
उत्तर:
1. पारिवारिक जीवन चक्र:
अपने आसपास के परिवारों को देखने पर आपको अलग: अलग परिवारों में विभिन्न अवस्थाएँ दिखाई देंगी। यदि हम किसी नवदंपत्ति का उदाहरण लें तो जब शीघ्र ही उनके बच्चे होंगे जो नवजात से वयस्क बन जाएंगे और तब वे खुद का परिवार बसाएंगे। जहाँ संभवतः वृद्ध दंपत्ति घर में पतिपत्नी के रूप में रहेंगे। जो चक्र उनके दंपत्ति बनने से आरम्भ हुआ था वह उन्हें पुनः दंपत्ति बना देगा। इस प्रकार से आप देखेंगे कि वस्तुतः संपूर्ण पारिवारिक जीवन चक्रीय है। इसलिए यह 'पारिवारिक जीवन चक्र' कहलाता है। विवाह से लेकर मृत्यु तक पारिवारिक जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं। प्रत्येक अवस्था में चुनौतियाँ और दायित्व होते हैं जो पारिवारिक जीवन के उस चरण में उसके सदस्यों के विकास के लिए लाभकारी होते
2. पारिवारिक विकासात्मक कार्य:
पारिवारिक विकासात्मक कार्य ऐसी जिम्मेदारियाँ हैं जो परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं से विशिष्ट रूप से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, कुमार दंपत्ति अपने नवजात शिशु की और स्कूल जाने वाली बड़ी बेटी की देख: रेख करते हैं। पटेल परिवार अपने स्कूल जाने वाले बच्चों को स्कूल में मिलने वाले अंकों के बारे में परेशान रहता है। जबकि उनके पड़ोसी रवि के परिवार में आने वाली नौकरानी अपनी लड़की को लेकर चिंतित है क्योंकि वह अपनी लड़की को आगे पढ़ाना चाहती है परंतु उसके पास इसके लिए पैसा नहीं है। इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि माता: पिता परिवार के लिए विभिन्न कार्य कर रहे हैं। माता: पिता द्वारा किए जाने वाले कार्यों की भिन्नताएँ बच्चों के आयु: वर्ग पर निर्भर करती हैं।
3. पारिवारिक क्रियाकलाप:
परिवार के सदस्य एक: दूसरे के साथ पारस्परिक क्रिया करते समय अपनीअपनी भूमिका निभाते हैं। इसके लिए सभी सदस्यों को एक: दूसरे को महत्व और आदर देना चाहिए। प्रत्येक परिवार का पारस्परिक क्रियाओं का अपना पैटर्न होता है। ये पैटर्न पारिवारिक क्रियाकलाप कहलाते हैं। ये कुछ कारकों जैसे कि परिवार की संरचना, बच्चों और वयस्कों की संख्या और उनके पारस्परिक सम्बन्ध: परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, मूल्य और व्यक्तिगत या पारिवारिक अनुभव द्वारा प्रभावित होते हैं।
माता: पिता को समझना और उनके साथ अच्छे सम्बन्ध बनाना परिवार की सबसे महत्वपूर्ण क्रियाओं में से एक है। क्योंकि माता: पिता का बच्चों के व्यक्तित्व और भावी जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब माता: पिता और किशोर एक साथ बैठकर सकारात्मक समझ के साथ सहज संवाद एवं बातचीत करते हैं तब वे एक खुशहाल एवं सफल पारिवारिक जीवन का निर्माण कर सकते हैं।
4. परिवार में विरोध (द्वंद्व) की स्थितियाँ:
व्यवसाय का चुनाव, युवाओं द्वारा पहने जाने वाले परिधान, मित्रों का चुनाव, घर की जिम्मेदारियों में शामिल होना, टेलीविजन देखना आदि परिवार के सदस्यों के बीच असहमति और विरोध के कुछ क्षेत्र हैं। प्रत्येक परिवार का ऐसे विरोधों से निपटने का अलग: अलग तरीका होता है। साथ ही, दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण को समझना परिवार में विरोध से निपटने का प्रभावी तरीका है।
एकल माता या पिता वाले परिवार में जिसमें किसी कारणवश माता या पिता कोई एक अनुपस्थित रहता है तो दूसरे (माता या पिता) की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हो जाती है। अत: एक युवा के रूप में किशोर को ऐसे माता/ पिता के प्रति अतिरिक्त संवेदना दर्शाने की आवश्यकता होती है, जो माता: पिता दोनों ही का दायित्व निभा रहा है।
माता: पिता और दूसरे वयस्कों को यह समझना चाहिए कि बच्चों को परिवार और समाज में अपनी जगह बनानी है। अतः प्रत्येक सदस्य के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह बिना विरोध और तनाव के दूसरों की जिम्मेदारियों को समझे।
प्रश्न 4.
परिवार में संप्रेषण का क्या महत्व है? अपने परिवार को उदाहरण के रूप में प्रयोग करते हुए संप्रेषण पैटर्न का वर्णन करें। सुझाव दें कि कैसे परिवार के सदस्यों के बीच संप्रेषण को सुधारा जा सकता है?
उत्तर:
परिवार में संप्रेषण का महत्व: परिवार में आपसी संप्रेषण (बातचीत) बहुत अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सदस्यों को अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं और सरोकारों को एक: दूसरे के साथ बाँटने और सामाजिक एवं भावात्मक सहायता प्रदान करने के योग्य बनाता है। यह एकता के सूत्र में बाँधने वाला तत्व है क्योंकि बोलने और सुनने के व्यवहार एक: दूसरे से जुड़े हुए हैं। संप्रेषण में दूसरे क्या सोचते और अनुभव करते हैं इसके प्रति ध्यान देने की क्षमता शामिल है। दूसरे शब्दों में, संप्रेषण का महत्वपूर्ण भाग केवल बात करना ही नहीं बल्कि दूसरे क्या कहना चाहते हैं उसे ध्यान से सुनना भी इसमें शामिल है। परस्पर बातचीत के द्वारा परिवार के सदस्य कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान कर पाते हैं। स्पष्ट और निष्कपट संप्रेषण ऐसा माहौल बनाता है जिससे परिवार के सदस्य अपना विरोध तथा एक: दूसरे के लिए प्रेम एवं सराहना को व्यक्त कर सकते हैं।
संप्रेषण पैटर्न (शैली): संप्रेषण की चार महत्वपूर्ण शैलियाँ निम्नलिखित हैं
पारिवारिक संप्रेषण में सुधार
परिवार के सदस्यों के बीच स्वस्थ संप्रेषण बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तरीके निम्नलिखित हैं
1.परिवार में संप्रेषण बढ़ायें:
मुद्दों को रोकने और बात करने के लिए अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालें। यहाँ तक कि आपके और आपके बच्चे के बीच बात करने के लिए 10 मिनट भी अच्छी आदतें बनाने में काफी मायने रखते हैं। आप अपने रेडियो या टेलीविजन को बंद करें और अपने बच्चे को अपना अविभाजित ध्यान दें। अपने बच्चे से बात करते समय बैठ कर देखें। इस प्रकार उन कुछ मिनटों का एक दिन अच्छा महत्व सकता है जो कि संवाद न करने की तुलना में बेहतर परिणाम दे सकता है।
2. एक सक्रिय श्रोता बनें:
प्रभावी संप्रेषण का अनिवार्य पहलू है: दूसरे जो कह रहे हैं, उसे सुनना तथा उसके विचारों को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास करना । जब आप अपने बच्चे को सुनते हैं, तो अपने बच्चे को स्नेहिल एवं मूल्यवान महसूस करने में मदद करते हैं। किसी भी विषय पर अपने बच्चे से उसकी भावनाओं के बारे में पूछे। यदि आप इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि आपका बच्चा क्या कह रहा है, तो भी यह जताएँ कि आप जो कुछ भी सुन रहे हैं, वह सभी कुछ आप बेहतर ढंग से समझते हैं। सक्रिय सुनने में दूसरे के विचारों को सुनने, उन्हें बेहतर ढंग से समझने के साथ: साथ उसके विचार को स्वीकार करना और उसका सम्मान करना भी शामिल है।
3. सहानुभूति प्रदर्शित करें:
इससे अभिप्राय है कि आपके बच्चे की भावनाओं के बारे में जानना और उसे आपको समझने में मदद करना। यदि आपका बच्चा उदास या परेशान है, तो कोमल स्पर्श या गले लगने से उसे पता चल सकता है कि उसकी दुःखी या बुरी भावनाओं को आप समझते हैं। आप अपने बच्चे को यह कभी नहीं बताएँ कि वह क्या सोचता एवं महसूस करता है, उसे स्वयं अपनी भावनाएं व्यक्त करने दें। साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि आप अपने बच्चे की भावनाओं को कम करके न कहें, जैसे: "जब आप बड़े हो जाएंगे तब आप समझेंगे।" याद रखें कि आपके बच्चे की भावनाएँ उसके प्रति वास्तविक हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
4. स्पष्ट रूप से संप्रेषण करना:
प्रायः प्रसन्न दिखने वाले परिवार साधारणत: अपने विचार और अनुभव स्पष्ट तरीके से व्यक्त करते हैं। परिवार के सदस्यों के मध्य उत्पन्न समस्याओं का समाधान करने में यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अप्रत्यक्ष और अस्पष्ट संप्रेषण न केवल समस्याओं का समाधान करने में विफल रहेगा अपितु इससे परिवार के सदस्यों के बीच अंतरंग और भावात्मक सम्बन्ध भी विकसित नहीं हो पाएंगे।
5. एक अच्छा रोल मॉडल बनें:
बच्चे आदर्शों के द्वारा सीखते हैं। आप सदैव अपनी आवाज में उन्हीं शब्दों एवं स्वरों को प्रयुक्त करें जिन्हें आप चाहते हैं कि आपका बच्चा प्रयुक्त करे। यह सुनिश्चित करें कि आपके स्वरों व कार्यों में समानताएँ हों। यदि अभिभावक बच्चों की गलतियों पर चिल्लाने के बजाय अपने भावों को शब्दों में व्यक्त करते हैं, जैसे: "यह मुझे दुःखी करता है जब आप वह नहीं करते हैं जो आपसे करने के लिए कहा जाता है" तो बच्चे भी ऐसा ही सीखते हैं और वह किसी पर चिल्लाते नहीं हैं।
प्रश्न 5.
स्पष्ट करें कि विद्यालय कैसे अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध बनाने और अंतःक्रिया करने का स्थान है?
उत्तर:
विद्यालय एक ऐसी जगह है जहाँ आप अपने मित्रों से मिलते हैं और इनमें से कुछ मित्रता काफी समय तक रहती है, यहाँ तक कि जीवन भर कायम रहती है। आप अध्यापकों की भूमिका में वयस्कों से भी मिलते हैं और उनमें से अधिकांश सीखने के प्रति, नए विषयों के प्रति और जीवन के प्रति आपके रवैया को निर्धारित करते हैं।
इस प्रकार विद्यालय हमारे जीवन में शैक्षिक कार्य करने के अलावा सामाजिक सम्बन्धों के नेटवर्क के रूप में भी कार्य करते हैं जो हमारे मूल्य, व्यवहार और सोच को अध्ययन: अध्यापन की प्रक्रिया द्वारा प्रत्यक्ष रूप से और विद्यालय में समकक्षों और शिक्षकों के साथ अंतःक्रिया करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 6.
बताएँ कि शैशवावस्था से किशोरावस्था में मित्रता की प्रकृति कैसे बदलती है?
उत्तर:
1.शैशवावस्था से किशोरावस्था तक मित्रता की प्रकृति में परिवर्तन:
(1) 6 माह से 1 वर्ष तक की शिशु अवस्था: छह माह के शिशु भी दूसरे शिशुओं में रुचि दिखाते हैं। जब उन्हें एक साथ रखा जाता है तो वे एकदूसरे को छूने का प्रयास करते हैं, एक: दूसरे को देख कर मुस्कुराते हैं और एक: दूसरे को निहारते हैं। परंतु इस अवस्था में वे एक: दूसरे को केवल एक वस्तु समझते हैं क्योंकि वे हमारे समान एक: दूसरे के प्रति अनुक्रिया नहीं करते या एक: दूसरे को व्यक्ति के रूप में नहीं देखते हैं।
2. एक से तीन वर्ष की आयु की बाल्यावस्था:
एक से तीन वर्ष की आयु के बीच बच्चा यह महसूस करने लगता है कि दूसरे बच्चे व्यक्ति हैं और उनके साथ सामाजिक अंतःक्रिया करना आरंभ करते हैं। इस काल में मित्र वह होता है जो आपके इर्द: गिर्द रहता है। इस मित्रता का व्यक्ति की पसंद या नापसंद या उसके गुणों से कोई लेना: देना नहीं होता। इस उम्र में अधिकांश बच्चे किसी एक साथी के साथ खेलने में अपनी रुचि नहीं दर्शाते हैं। वे अक्सर एक: दूसरे के साथ खेलने में अन्त:क्रिया करते हैं, परन्तु अधिकांश समय वे अपने: आप खेलते हैं।
3. पाठशाला पूर्व के बच्चे:
पाठशाला पूर्व वर्षों में बच्चा अधिक स्थायी तरीके से दूसरों से सम्बन्ध बनाना शुरू करता है। परंतु आरम्भिक मित्रता सतही होती है, यह मित्रता तुरंत बनती है और तुरंत टूट भी जाती है।
4. विद्यालय पूर्व के उत्तरार्द्ध के बच्चे:
बड़े विद्यालय पूर्व बच्चे एक: दूसरे के साथ खेलते हैं, सहयोग करते हैं और खेल के दौरान अपनी बारी लेते हैं। वे औरों की तुलना में कुछ हमउम्र को अधिक पसंद करते हैं।
5. प्रारंभिक विद्यालयी बच्चे:
मध्य बचपन के वर्षों के आरम्भ तक बच्चा यह महसूस करने लगता है कि मित्र वे हैं जिनके साथ वे सामान्य रुचि और भावना का आदान: प्रदान करते हैं। इस दौरान बच्चे की मित्रता का दायरा साधारणत: बढ़ता है, बच्चा मित्रों के साथ अधिक समय बिताता है और उनका प्रभाव अधिक शक्तिशाली हो जाता है।
6. किशोरावस्था:
किशोरावस्था तक मित्रता गहरी हो जाती है और मित्र एक: दूसरे से अंतर्विचार तथा अनुभव साझा करते हैं। इस अवस्था में किशोर के लिए उसके मित्र माता: पिता से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अधिकांश किशोरों का जिगरी दोस्तों का एक समूह होता है, जिसे गुट टोली 'क्लिक' कहा जाता है और बड़ी संख्या में मित्र जिनसे ज्यादा सम्पर्क नहीं होता, उनका समूह 'जनसंकुल' कहलाता है। छोटे बच्चे जो मंच पर कार्यक्रम देखते हैंमंडली/जनसंकुलों का निर्माण करते हैं और किशोरों का वह समूह जो एकसाथ बाहर जाने की योजना बनाते हैं, वे टोली का हिस्सा होते हैं।
प्रश्न 7.
मित्रता क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर:
मित्रता प्रत्येक आयु में महत्व रखती है क्योंकि इसमें यह भावना होती है कि जो उसे पसंद करते हैं वे उसे स्वीकार करते हैं। यह बच्चे को भावात्मक सुरक्षा प्रदान करती है जो वयस्क जीवन में सामाजिक और भावनात्मक सम्बन्ध विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
वस्तुत: जिन भावनाओं और अनुभवों को किशोर घर पर व्यक्त नहीं कर पाते उन्हें मित्रों के समक्ष व्यक्त करना किशोरों को 'सामान्य' और अकेले न होने की अनुभूति कराने में सहायता करता है, क्योंकि वे महसूस करते हैं कि उनके मित्रों की भी इसी तरह की चिंताएँ और अनुभव हैं।
प्रश्न 8.
'हम दबाव' पद का क्या आशय है? कैसे यह किशोरों के लिए दबाव का कारण बन सकता?
उत्तर:
'हम दबाव' का आशय: यह एक ऐसी भावना होती है कि किसी व्यक्ति या किशोर को वही कार्य सीखना, करना या दोहराना चाहिए जो उसके हमउम्र अथवा सामाजिक समूह के लोग करते हैं ताकि उन्हें भी अन्यों के समान पसंद किया जाए या सम्मान दिया जाए। उदाहरणत: सहपाठियों के दबाव के कारण किशोर का धूम्रपान करना अथवा सहकर्मियों के दबाव के कारण किसी व्यक्ति द्वारा शराब पिया जाना।
किशोरों पर 'हमउम्र दबाव' का प्रभाव: किशोरावस्था के दौरान किशोर पर हमउम्र समूह द्वारा स्वीकृत मूल्यों का अनुसरण करने और उनके द्वारा उपयुक्त माने जाने वाले तरीकों से व्यवहार करने के लिए बहुत अधिक दबाव होता है। ये मूल्य और व्यवहार माता: पिता द्वारा निर्धारित मूल्यों के विपरीत हो सकते हैं और माता: पिता के अनुरूप नहीं होते हैं जिसके कारण माता: पिता के साथ बहुत अधिक विरोध होता है तथापि सदृश्यता के लिए हमउम्र वालों के दबाव का अनुभव करना विकासशील अवस्था की सामान्य विशेषता है।
यह भी सच है कि अनुरूपता के दबाव के कारण बहुत से किशोर समाज विरोधी क्रियाकलापों में शामिल हो जाते हैं जो उनके स्वयं के लिए और समाज के लिए भी खतरनाक है। इन गतिविधियों में नशीली दवाओं का प्रयोग करना और बिना पर्याप्त सुरक्षा एवं सूचना के यौन सम्बन्ध शामिल हैं।
प्रश्न 9.
शिक्षक और उनका व्यवहार छात्रों की उपलब्धि और प्रेरणा को कैसे प्रभावित करते हैं? चर्चा करें।
उत्तर:
विद्यालय में अध्यापकों का बहुत अधिक प्रभाव होता है। वे माता: पिता के समान सीमाएँ निर्धारित करते हैं, अपेक्षाएँ रखते हैं, मूल्यों से अवगत कराते हैं और विकास को बढ़ावा देते हैं। अध्यापक शक्तिशाली 'रोल मॉडल' यानी 'आदर्श' होते हैं और बहुधा बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं। बच्चे अध्यापकों के उस व्यवहार का अनुकरण करते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं और महत्व देते हैं। वे अपने पसंदीदा अध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए विषयों में आनंद का अनुभव करते हैं।
अध्यापकों की अपेक्षाएँ अक्सर छात्रों के निष्पादन और व्यवहार पर मुख्य प्रभाव डालती हैं। ये छात्रों की उपलब्धि, प्रेरणा, आत्मसम्मान, सफलता की आशा और वास्तविक उपलब्धि को प्रभावित करती हैं। जिन छात्रों से उन्हें बहुत अधिक उम्मीद होती है उनके प्रति अध्यापक अधिक सकारात्मक होते हैं। उनको देखकर वे मुस्कुराते हैं, उनकी बारबार प्रशंसा करते हैं, उनके कार्यों का अच्छी तरह पर्यवेक्षण करते हैं और उत्तर पाने के लिए उन पर अधिक दबाव डालते हैं। जब उनका निष्पादन खराब होता है तो अध्यापक उन्हें कठिन परिश्रम करने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। इस प्रकार इन छात्रों को वे संदेश देते हैं कि वे सफल होंगे।
शिक्षक की अपेक्षाएँ स्वतः साधक भविष्योक्ति बन जाती हैं जिसके अनुसार शिक्षक विद्यार्थी से जो आशा करते हैं तद्नुसार बच्चे बनते हैं, उपलब्धि हासिल करते हैं और बर्ताव करते हैं।
प्रश्न 10.
संक्षेप में समुदाय का अर्थ बताइए। समुदाय के कुछ कार्यों की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
समुदाय का अर्थ: समुदाय लोगों का एक छोटा समूह हो सकता है जिनकी कोई साझी गतिविधि हो, या लोगों का कोई समूह भी जो अस्थायी रूप से किसी साझे उद्देश्य के लिए एकत्र हुए हों, जैसे: इंटरनेट पर गपशप करने वाला समदाय, या मैदान में नियमित खेल खेलने के लिए एकत्र होने वाले बच्चों का समूह।
इस प्रकार समुदाय लोगों के किसी समूह की एक निरपेक्ष धारणा है जो साझे मूल्यों, विश्वासों, स्थानों, हितों तथा एक साझी विरासत को बाँटता है। समूह के आकार से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसे एक अधिक सम्बद्ध इकाई वाला समूह माना जाता है। परिवार और रिश्तेदारी समुदायों के उदाहरण हैं।
समुदाय के कार्य: कोई भी समुदाय अपने सदस्यों के लिए निम्नलिखित कार्यों को करने का प्रयास करता है
प्रश्न 11.
'समाज' शब्द से आप क्या समझते हैं? यह समुदाय से किस प्रकार भिन्न या समान है?
उत्तर:
'समाज' शब्द का अर्थ: समाज शब्द संस्कृत के दो शब्दों 'सम्' एवं 'अज' से मिलकर बना है। सम् का अर्थ है इकट्ठा व एक साथ तथा अज का अर्थ है साथ रहना। इस प्रकार समाज शब्द का अर्थ हुआ एक साथ रहने वाला समूह। मनुष्य चिंतनशील प्राणी है, उसने अपने लंबे इतिहास में एक संगठन का निर्माण किया है। वह जैसे: जैसे मस्तिष्क जैसी अमूल्य शक्ति का प्रयोग करता गया, उसकी जीवन पद्धति बदलती गई। जीवन पद्धतियों के बदलने से मनुष्य की आवश्यकताओं में परिवर्तन हुआ और इन आवश्यकताओं ने मनुष्य को एक सूत्र में बाँधना आरंभ किया। इस प्रकार के बंधन से संगठन बने और यही संगठन समाज कहलाए। अतः समाज मानव समूह की एक विशाल तथा निरपेक्ष संकल्पना है।
समाज और समुदाय: 'समाज' या 'सजातीय समूह' शब्द का आशय भी वही साझी वास्तविकता है जो 'समुदाय' का अर्थ है। सामान्य व्यवहार में इन शब्दों का प्रयोग एक: दूसरे के स्थान पर किया जा सकता है। फिर भी, समाज विज्ञान में 'समुदाय' और 'समाज' पदों के अर्थ में थोड़ा अंतर है। समाज में मानव समूह की एक विशाल, अधिक निरपेक्ष संकल्पना आती है, जबकि समुदाय को एक अधिक संबद्ध इकाई वाला समूह माना जाता है। परिवार और रिश्तेदारी समुदायों के उदाहरण हैं जिनमें बड़ी मात्रा में साझा ज्ञान और अनुभव, विश्वास तथा मूल्य होते हैं। इसके विपरीत, समाज अधिक वृहद एवं व्यापक होते हैं जिनमें कई समुदायों का अस्तित्व पाया जा सकता है, जैसे अमेरिकी व यूरोपीय समाज के अंतर्गत अनेक राष्ट्र एवं समुदाय शामिल हैं।
प्रश्न 12.
संस्कृति क्या है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संस्कृति शब्द मूलतः किसी जाति की जीवन शैली का द्योतक है। संस्कृति के अंतर्गत किसी व्यक्ति या किसी समूह के परिवेश के सभी तत्व समाहित होते हैं, इसमें दोनों तरह के यानी मूर्त (भौतिक वस्तुएं) और अमूर्त (विश्वास, मूल्य, रीतियाँ) तत्व शामिल होते हैं जो लोगों द्वारा स्वयं अपने प्रयोग के लिए बनाए गए हैं। संस्कृति शब्द साधारण भाषा में बहुत सारी बातों के लिए प्रयोग किया जाता है। कई बार संस्कृति का प्रयोग 'उच्च समाज' के अर्थ में किया जाता है, जैसे किसी व्यक्ति को 'सुसंस्कृत' कहना। जबकि हम संस्कृति का प्रयोग लोगों की धारणाएँ और उनकी जीवन शैली के अर्थ में करते हैं। जैसे, जो भोजन हम खाते हैं, जो कपड़े हम पहनते हैं, जिस भाषा का हम प्रयोग करते हैं और जिन उत्सवों में हिस्सा लेते हैं, आदि सभी कार्य इसमें सम्मिलित हैं। संस्कृति में लोगों के विचार भी शामिल हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृति उन विभिन्न बातों की एक सक्रिय एवं जटिल रचना है जो हमारे वर्तमान, अतीत और भविष्य का भी अंग है।
प्रश्न 13.
टीवी और इंटरनेट का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
आधुनिक समाज में अपने प्रतिदिन के जीवन में जिन मीडिया के साथ हमारा वास्ता पड़ता है उनमें टीवी और इंटरनेट दोनों शामिल हैं।
टीवी का समाज पर प्रभाव: टेलीविजन एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो दृश्य व श्रव्य दोनों माध्यमों को एक साथ प्रसारित करता है जिसके कारण कोई भी प्रसारण जीवंत मालूम होता है। इसलिए इसका प्रभाव भी लोगों पर त्वरित व सर्वाधिक होता है। इसके द्वारा मनोरंजन, जनमत का निर्माण, सूचनाओं का प्रसार, भ्रष्टाचार एवं घोटालों का पर्दाफाश तथा समाज की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करना, इत्यादि उद्देश्यों की पूर्ति होती है। टेलीविजन के माध्यम से लोगों को देश: विदेश की हर गतिविधियों की जानकारी तो मिलती ही है, चुनाव एवं अन्य परिस्थितियों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों से जन: साधारण को अवगत कराने में भी टेलीविजन प्रसारण की भमिका महत्वपूर्ण होती है। इस प्रकार, यह माध्यम सरकार एवं जनता के मध्य सेतु का कार्य करता है। देखा गया है कि टेलीविजन के विज्ञापनों का उनके दर्शकों के उपयोग के दंग पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसीलिए व्यवसायी अपने उत्पादों के विज्ञापन के लिए टेलीविजन का उपयोग करते हैं।
इंटरनेट का समाज पर प्रभाव: टीवी के अलावा, हम इंटरनेट के माध्यम से भी संसार के साथ जुड़े हुए हैं। आज छोटे कस्बों तथा गाँवों में भी साइबर कैफे दिखाई देते हैं। इंटरनेट पर मिलने वाली जानकारी किसी भी अन्य मीडिया स्रोत से बहुत अधिक विविधतापूर्ण एवं विस्तृत होती है। हर शक्तिशाली माध्यम की तरह इंटरनेट स्रोत भी उतना ही नुकसान पहुंचा सकता है और किसी भी अन्य मीडिया स्रोत की तरह इंटरनेट का विवेकपूर्ण प्रयोग समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के तौर पर, जब हम इंटरनेट से जानकारी लेते हैं, तब हम उन साइटों में भी जा सकते हैं, जिनमें वह सामग्री होती है जो युवाओं के मन: मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। इंटरनेट अपराधियों द्वारा सूचना के आदान: प्रदान का भी एक शक्तिशाली स्रोत है जो सामान्यतः समाज के लोगों को हानि पहुँचाने के लिए काम करते हैं।
प्रश्न 14.
चर्चा करें कि कोई व्यक्ति समाज के लिए कैसे योगदान दे सकता है?
उत्तर:
हम सभी को विदित होना चाहिए कि यदि कोई समदाय हमें सुरक्षा प्रदान करता है और यदि किसी समुदाय एवं देश ने हमें अधिकार प्रदान किए हैं, तो हमारे भी उनके प्रति वैयक्तिक और सामूहिक उत्तरदायित्व होते हैं। अर्थात् जिस समाज और समुदायों से हमने इतना कुछ लिया है, उन्हें वापस करना उसके प्रत्येक सदस्य का बहुत महत्वपूर्ण दायित्व है।
याद रहे, व्यक्तियों की इच्छा तथा भागीदारी के बिना समुदायों का अस्तित्व नहीं बना रह सकता। इसलिए आपको अपने परिवार, समुदाय, समाज, देश तथा संसार का सक्रिय सदस्य बनने का संकल्प लेना होगा ताकि आप आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभा सकें। यह किसी व्यक्ति और समूह के बीच संबंध की ताकत है; यह पारस्परिक निर्भरता, अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों का आदान: प्रदान है जिसे हम सभी को मिलकर पूर्ण करना होगा।