Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Rachana संवाद-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
RBSE Class 9 Hindi Rachana संवाद-लेखन
संवाद का स्वरूप - नाटक, उपन्यास, कहानी, फिल्म या टेलीविजन धारावाहिक नाटकों एवं दृश्यों में पात्रों के द्वारा जो वार्तालाप किया जाता है, उसे संवाद या कथोपकथन कहते हैं।
वर्तमान में टेलीविजन पर प्रसारित धारावाहिक, टेली फिल्म, साक्षात्कार तथा रेडियो नाटक आदि में सटीक संवादों के माध्यम से कथानक का सुन्दर विकास दिखाया जाता है। इस कारण दृश्य-श्रव्य प्रसारण माध्यमों में संवाद-लेखन का विशेष महत्त्व है।
संवाद-लेखन की विशेषताएँ - टेलीविजन हो या फिल्म या नाटक, उपन्यास, कहानी आदि हों, इनमें संवाद को कथानक का विकास तथा पात्रों के चरित्र का उद्घाटन करने वाला माना जाता है। संवाद-लेखन की जो विशेषताएँ मान्य हैं, वे इस प्रकार हैं -
- संवाद नाटकीय प्रयोजन को सिद्ध करते हैं।
- संवाद पात्रों के आन्तरिक चरित्र का उद्घाटन करते हैं।
- संवाद पात्रों के कार्य-कलाप एवं क्रिया-प्रतिक्रिया को व्यक्त करते हैं।
- संवाद पात्र और घटना के द्वन्द्व को उभारते हैं।
- संवाद वर्णित परिवेश से सामंजस्य स्थापित करते हैं।
- संवाद वर्णित दृश्यों के साथ पात्रों के स्वगत भावों को सूचित करते हैं।
संवाद-लेखन की विधियाँ - संवाद-लेखन की इन विधियों पर ध्यान रखना चाहिए -
- संवाद लेखन में पात्रों की बातचीत स्वाभाविक ढंग से दिखानी चाहिए।
- संवाद-लेखन सरल तथा संक्षिप्त होना चाहिए।
- संवाद-लेखन रोचक, नाटकीय, हास्य-विनोद और व्यंग्य से मिश्रित होना चाहिए।
- संवाद-लेखन दृश्यगत तथा प्रभावात्मक होना चाहिए।
- संवाद-लेखन में दृश्य की परिकल्पना, दृश्य का समय व दिन, दृश्य के पात्र तथा घटनाओं के आधार पर लिखे जाने चाहिए।
- नाटकों एवं फिल्मों के संवाद उनके दृश्यों के अनुसार अर्थ एवं सन्देश. को व्यक्त करने वाले होने चाहिए।
- संवाद की भाषा सरल तथा सम्प्रेष्य होनी चाहिए।
इस प्रकार संवाद-लेखन में अनेक बातों का ध्यान रखना पड़ता है। संवाद-लेखन एक कला भी है तो एक तकनीक या शिल्प-शैली भी है। इसमें परिवेश एवं पात्रों का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए मुंशी प्रेमचन्द की 'पूस की रात' कहानी का यह संवाद द्रष्टव्य है-
- हल्कू - सहना आया है।
- मुन्नी - आया है तो आने दो ............ मैं क्या करूँ?
- हल्कू - (घबराकर) वह अपना उधार मांगने आया है!
- मुन्नी - (उदासीनता से) पैसे हैं कहाँ?
- हल्कू - (विनती से) लाओ जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ .......... किसी तरह गला तो छूटे।
- मुन्नी - रुपये उसे दे दोगे तो कम्बल कहाँ से आयेगा? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी? उसे कह दो फसल पर दे देंगे। अभी पैसा नहीं है।
- हल्कू - (समझाते हुए) तुम तो सहना को अच्छी तरह जानती हो, ...... वह न मानेगा ......... गालियाँ अलग देगा .......... हाथ-पैर तोड़ने की धमकियाँ देगा इत्यादि।
सोदाहरण संवाद-लेखन :
1. आपने टेलीविजन पर समाचारों में सुना कि मुंबई में आतंकवादियों का हमला। कई लोग मारे गये और सैकड़ों घायल। इस घटित स्थिति पर दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखिए।
- अजय - मित्र विजय! कल तुमने मुंबई में हुए आतंकवादियों के हमले का समाचार सुना।
- विजय - हाँ मित्र ! समाचार सुन कर बहुत ही दुःख हुआ।
- अजय - ये आतंकवादी हमारे देश में कहाँ से आते हैं?
- विजय - ये आतंकवादी पड़ोसी देशों से आते हैं।
- अजय - इन आतंकवादियों का हमारे देश में आने का प्रमुख कारण क्या है?
- विजय - हत्याएँ करना, दहशत फैला कर शान्ति भंग करना।
- अजय - इन आतंकी को रोकने के लिए हमारी सरकार क्या करती है?
- विजय - इनकी गतिविधियों को रोकने के लिए सरकार द्वारा बनाया गया विशेष कमांडो दल, पुलिस व सेना आतंकवादियों का मुकाबला करती है। उन्हें मार गिराती है।
- अजय - इतना होने पर भी आतंकी गतिविधियाँ इतना विकराल रूप क्यों धारण कर रही हैं?
- विजय - आतंकवादियों का लक्ष्य ही ऐसा होता है। वे अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
- अजय - इनका आतंक लगातार क्यों बढ़ रहा है?
- विजय - इसका प्रमुख कारण हमारी सरकार की लाचारी है। अजय वह कैसे?
- विजय - वह ऐसे कि जिस आतंकवादी को न्यायालय ने फाँसी की सजा सुना रखी है उसे सरकार अब तक टाले जा रही है और फाँसी नहीं दे पा रही है। अजय - यह तो बिल्कुल गलत बात है।
- विजय - यह गलत ही नहीं बहुत ही सोचनीय बात है। जिस आतंकवादी ने बेकसूर लोगों की हत्या की हो, उसे जिन्दा क्यों रखा जावे?
- अजय - तुम ठीक कहते हो मित्र ! उसे तुरन्त फांसी पर लटकवा दिया जाना चाहिए।
- विजय - हमारी सरकार जब तक आतंकवादियों के विरुद्ध देश-प्रेम की भावना से पूरित होकर स्पष्ट नीति नहीं अपनायेगी तब तक यह इस देश में चलता ही रहेगा।
- अजय - आज देश-प्रेम की भावना की ही तो कमी है।
- विजय - आज देश-प्रेम केवल स्वतंत्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस पर ही हमारे नेताओं और जनता में छलकता हुआ दिखाई पड़ता है। वह भी दो-चार घण्टों के लिए।
- अजय - धन्य हो मित्र ! क्या खरी बात कही।
- विजय - अच्छा, अब मैं चलता हूँ। नमस्ते मित्र !
2. आपका मित्र इस वर्ष 'माध्यमिक शिक्षा बोर्ड' की माध्यमिक परीक्षा में प्रथम आया है। उसे बधाई देते हुए एक संवाद की रचना कीजिए।
- सौरभ - स्वागत है, आओ निखिल ! बहुत-बहुत बधाई हो!
- निखिल - धन्यवाद !
- सौरभ - इस बार पूरे बोर्ड में अपनी परीक्षा में प्रथम आकर भाई तुमने कमाल कर दिया। बहुत-बहुत बधाई!
- निखिल - धन्यवाद सौरभ भाई ! मुझे खुद सचमुच विश्वास नहीं हो रहा है।
- सौरभ - अरे ! इसमें विश्वास की क्या बात है? तुमने अपने परिश्रम का फल प्राप्त किया है।
- निखिल - तुम्हारा कहना अपनी जगह ठीक है लेकिन यह फल मुझे बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद से ही मिला है और तुम्हारे जैसे मित्र की शुभकामनाओं से।
- सौरभ - अरे ! इसमें आशीर्वाद और शुभकामनाएँ क्या करेंगी? तुम्हें तुम्हारी मेहनत का फल मिला है। मेहनत करने से ही भाग्य बनता है।
- निखिल - हाँ ! यह तो तुम ठीक कहते हो। मेहनत तो की, पर इतनी नहीं, जितना अच्छा फल प्राप्त हुआ
- सौरभ - जो मेहनत करता है, भगवान् भी उसी का साथ देता है।
- निखिल - यह तो ठीक है। मुझ से योग्य न जाने कितने और परीक्षार्थी परीक्षा में बैठे। मेरा भाग्य था जो मैं प्रथम आ गया और बधाई का पात्र बन गया।
- सौरभ - यह भाग्य की बात नहीं। दृढ़ संकल्प का फल है, क्योंकि अडिग संकल्प से ही भाग्य बनता है।
- निखिल - यह तुम ठीक कह रहे हो। मनुष्य को दृढ़-संकल्प के साथ मेहनत करनी चाहिए। सो मैंने की।
- सौरभ - अब आ गये ना तुम सही रास्ते पर। इसी तरह मेहनत करो और अपने माता-पिता की आकांक्षाओं को पूरा कर योग्य पिता की योग्य संतान कहलाने का अवसर प्राप्त करो।
- निखिल - मैं भविष्य में भी इस हेतु पूरी कोशिश करूँगा और तुम्हारा अच्छा मित्र कहलाऊँगा।
- सौरभ - अच्छा ठीक है। मुझे तुझ पर गर्व है। अब बता, मिठाई कब खिलाएगा?
- निखिल - जब तुम कहो। चाहे तो अभी चलो।
- सौरभ - चल मित्र ! मिठाई खाने के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूँ।
3. विद्यालय के पास स्थित उद्यान में वृक्षारोपण का कार्यक्रम चल रहा है। मंत्रीजी वृक्षारोपण कर भाषण दे रहे हैं। इस स्थिति को देखकर दो मित्रों के बीच हुई बातचीत को संवाद के रूप में लिखिए।
- मनीष - आओ मित्र मनोहर ! चलें।
- मनोहर - कहाँ चलोगे?
- मनीष - सामने उद्यान में मंत्रीजी का भाषण सुनने चलें।
- मनोहर - मंत्रीजी का भाषण सुनकर क्या करेंगे? मन्त्रीजी सुभाष या गाँधीजी तो हैं नहीं। जो किया और कहा उस पर अटल रहेंगे।
- मनीष - बात तो ठीक है।
- मनोहर - आज के मंत्री तो मौकापरस्त हैं। वे अवसर देखकर अपनी बात जनता को रिझाने के लिए करते हैं।
- मनीष - यह तो ठीक है उनकी कथनी और करनी में बहुत अन्तर होता है।
- मनोहर - आज के सफेदपोश नेतागण केवल जन-मन को अपने पक्ष में करके वोट लूटने की राजनीति करते हैं। किसी के सुख-दुःख से उनका कोई सरोकार नहीं होता है। वे तो अपना काम निकालना अच्छी तरह से जानते हैं।
- मनीष - ठीक ही तो है। वे भ्रष्टाचार के जनक हैं।
- मनोहर - यदि हमारे नेतागण भ्रष्टाचारी न होते तो देश की दुर्दशा क्यों होती?
- मनीष - इनके कारण ही तो हमारे देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला है।
- मनोहर - बात तो ठीक है। आज जिधर देखो, उधर ही भ्रष्टाचार का बोलबाला है। हमारे समाचार-पत्रों में - भ्रष्टाचार का कोई न कोई समाचार छपता ही रहता है।
- मनीष - भ्रष्टाचार आज की बहुत भयंकर समस्या है। देश के माथे पर लगा एक कलंक है।
- मनोहर - वृक्षारोपण को ही लीजिए। मंत्रीजी द्वारा बहुत ही उत्साहित होकर वृक्षारोपण किया गया है। उनके नाम की पट्टिका लगायी गयी है। यह पौधा कल हरा रहेगा या सूख जायेगा! इसकी न तो मंत्रीजी को चिन्ता है और न आयोजकों को!
- मनीष - इनको फिर किससे मतलब है?
- मनोहर - इनको मतलब है तो सिर्फ नाम कमाने से, धन खर्च करने से और स्वार्थ साधने से!
- मनीष - धन्यवाद ! यथार्थ कहने के लिए।
4. विद्यालय प्रांगण में विद्यार्थी और अनुशासन' विषय पर भाषण हो रहा है। वक्ता अपने-अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। इस संबंध में हुए दो मित्रों के संवाद को लिखिए।
- प्रखर - मित्र भास्कर! तुमने 'विद्यार्थी और अनुशासन' विषय पर आयोजित चर्चा सुनी।
- भास्कर - हाँ, सुनी! तुम्हें सुनकर कैसा लगा?
- प्रखर - बहुत अच्छा लगा। समझ में आया कि जीवन में अनुशासन का पालन बहुत जरूरी है, क्योंकि बिना अनुशासन के जीवन का निर्माण नहीं किया जा सकता।
- भास्कर - बात तो तम्हारी सत्य है। अनशासन में रहकर ही मनष्य अपने जीवन में आगे बढ़ता है।
- प्रखर - वह आगे ही नहीं बढ़ता है, समाज और परिवार में प्रतिष्ठा भी प्राप्त करता है।
- भास्कर - लेकिन आज तो अनुशासन की बात रही ही नहीं है। जिधर देखो, उधर स्वच्छन्दता ही दिखाई पड़ती है।
- प्रखर - तुम ठीक कहते हो। शिक्षण संस्थाओं, कार्यालयों, राजमार्गों यहाँ तक कि परिवारों में भी अनुशासन नाम की चिड़िया दिखाई नहीं पड़ रही है। सब अपने मन से आचरण कर रहे हैं।
- भास्कर - ऐसा क्यों हो रहा है?
- प्रखर - इसके लिए जहाँ भौतिकवादी विचारधारा का अन्धानुकरण दोषी है, वहीं हमारी सरकार की दुलमुल नीतियाँ और लचर व्यवस्था भी दोषी है।
- भास्कर - वह कैसे?
- प्रखर - समय पर कर्मचारी काम पर नहीं पहुँचते हैं, पहुँच कर भी मन से काम नहीं करते हैं। कक्षाओं में विद्यार्थी पढ़ने के बजाय बाहर घूमने में रुचि लेते हैं। मौज-मस्ती कर अपना समय बरबाद करते हैं। उन्हें कहने वाला कोई नहीं है।
- भास्कर - हाँ, यह तो सब होता हुआ दिखाई पड़ रहा है। अब क्या होगा?
- प्रखर - अब तो तुलसीदास का ही कथन ठीक लगता है -
होइ है सोई जो राम रचि राखा।
को करि तरक बढ़ावहि साखा॥
5. सड़क दुर्घटना-प्रसंग पर दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखिए।
- राहुल - अरे मयंक ! यह माथे पर क्या हुआ जो तुमने पट्टी बाँध रखी है?
- मयंक - कुछ न पूछो मित्र ! कल तो ईश्वर की कृपा से मरते-मरते बचा हूँ।
- राहुल - क्या कोई सड़क दुर्घटना हो गयी थी? मयंक हाँ, कल रात को मेरी बाइक खड्ढे में जा गिरी।
- राहुल - कैसे और कब?
- मयंक - रात को आठ बजे जब मैं दुकान बढ़ा कर घर लौट रहा था। घर के पास सड़क के किनारे
- बिजली विभाग के कर्मचारियों ने पोल गाड़ने के लिए खड्ढा खोद रखा था। उसी में बाइक
- सहित गिर पड़ा। राहुल फिर ?
- मयंक - लाइट न होने के कारण खुदा खड्ढा दिखाई नहीं पड़ा।
- राहुल - बाइक का क्या हुआ?
- मयंक - बाइक भी खड्ढे में गिरते समय पहिया बड़ा होने के कारण उलझ गयी और मेरा माथा गिरने के कारण खड्ढे के पास पड़े पत्थर से टकरा गया।
- राहुल - क्या चोट बहुत लग गयी है?
- मयंक - हाँ, चोट तो लगी ही है। माथे में आठ टाँके लगे हैं और जाँघ पर भी खरोंच आई है।
- राहुल - यह तो बहुत बुरा हुआ।
- मयंक - हाँ मित्र ! यह तो ईश्वर की दया रही कि बाइक अधिक स्पीड में नहीं थी।
- राहुल - सचमुच, जितना बचे, उतना अच्छा। ऐसे बिजली विभाग पर मुकदमा कर देना चाहिए। तभी इन कर्मचारियों की बुद्धि ठिकाने आयेगी।
- मयंक - हाँ, हमने कंज्यूमर फोरम में लिखित शिकायत दायर कर दी है। देखते हैं, अब क्या होता है?
- राहुल - यह तुमने बहुत अच्छा किया। मेरे योग्य कोई काम हो तो बताना।
- मयंक - हाँ जरूर बताऊँगा। धन्यवाद!
6. वर्तमान में सब ओर बेरोजगारी व्याप्त है। इसी को लक्ष्य कर दो मित्रों के मध्य जो संवाद हुआ, उसे लिखिए।
- नरेश - हलो परेश ! कैसे हो?
- परेश - अच्छा हूँ ! तुम कैसे हो?
- नरेश - बिल्कुल ठीक ! (पास आकर) सुनाओ, अब क्या करने का इरादा है?
- परेश - क्या बताऊँ? आज के बेरोजगारी के जमाने में जो हो जाए, वही अच्छा है।
- नरेश - फिर भी।
- परेश - सोचता हूँ आर.ए.एस. बन जाऊँ तो अच्छा है।
- नरेश - भाई तुम्हारा इरादा तो नेक है। मेहनत करो। लक्ष्य जरूर प्राप्त हो जायेगा, क्योंकि जहाँ चाह है, वहीं राह है।
- परेश - इसीलिए तो फार्म भरा है और पढ़ाई भी कर रहा हूँ। आगे ईश्वर की इच्छा।
- नरेश - ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा। लगे रहो। एक दिन आर.ए.एस. बनकर अपने माता-पिता का नाम अवश्य रोशन करोगे।
- परेश - इच्छा तो यही है कि आर.ए.एस. बनकर ही दिखाऊँ और तुम बताओ। तुम क्या करने जा रहे
- नरेश - अपना तो वही पुराना इरादा है शिक्षक बनने का।
- परेश - अच्छा है। शिक्षक बनकर भारत के भविष्य का निर्माण करो।
- नरेश - बी.टी.सी. की परीक्षा दी है, परिणाम आये तो कहीं आवेदन करूँगा।
- परेश. - बिना दौड़-भाग के कहाँ रखी है नौकरी?
- नरेश - हाँ, वह तो है।।
- परेश - लगे रहो भाई, तुम तकदीर वाले हो!
- नरेश - अच्छा ! अब हम चलते हैं? बॉय।
7. यात्री और बस संवाहक के बीच हुए संवाद को लिखिए।
- यात्री - भाईजी! यह बस कितने बजे चलेगी?
- संवाहक - छह बजे।
- यात्री - अरे! छह तो बज गये हैं फिर यह देरी क्यों हो रही है?
- संवाहक - आपकी घड़ी में छह बज गये हैं। अभी टाइम है।
- यात्री - अभी कितनी देर लगेगी।
- संवाहक - मेरी घडी में अभी पाँच मिनट शेष हैं। ठीक छह बजे बस रवाना हो जायेगी।
- यात्री - आजकल बसों का चलने का कोई समय नहीं है। आप लोगों की जब इच्छा होती है, तब चलते हो।
- संवाहक - आप बिना वजह हम पर आरोप लगा रहे हैं। हमारी बसों की निश्चित समय सारिणी है। हमारी बस उसी के अनुसार चलती है।
- यात्री - अच्छा, यह बताइए कि आपकी बस आगरा कब पहुँचेगी?
- संवाहक - अपने निश्चित समय पर ही पहुंचेगी।
- यात्री - यदि आपको कष्ट न हो, तो कृपा करके पहुंचने का समय बताने का कष्ट करें।
- संवाहक - रात्रि के एक बजे।
- यात्री - रात्रि के एक बजे क्यों? यहाँ से तो आगरा पहुंचने में छह घंटे ही लगते हैं।
- संवाहक - तुम ठीक कहते हो, लेकिन रात में हम लोग खाना खाने के लिए भी रुकते हैं।
- यात्री - धन्यवाद ! अब तो चलवाओ बस!
- संवाहक - अपनी सीट पर बैठो। देखो! बस स्टार्ट हो रही है।
8. हमारे देश में खेल के गिरते स्तर पर दो मित्रों के बीच हुए संवाद को लिखिए।
निखिल - हमारे देश ने कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में भले ही कुछ प्रगति कर ली है लेकिन अभी भी एक क्षेत्र में सबसे पीछे है।
अभय - तुम किस क्षेत्र में देश के पीछे होने की बात कर रहे हो?
निखिल - मैं खेल-कूद के क्षेत्र में देश के गिरते हुए स्तर की बात कर रहा हूँ। आज तक हमारे देश के खिलाड़ियों ने किसी भी ओलम्पिक में स्वर्ण पदक प्राप्त नहीं किया।
अभय - इस बार लिएंडर पेस ने कांस्य पदक प्राप्त करके खाता तो खोल दिया।
निखिल - लेकिन कांस्य पदक से क्या होता है? दुनिया के अनेक छोटे-छोटे देश जो हमारे एक राज्य के बराबर हैं, पदक तालिका में अपना अच्छा स्थान बना लेते हैं। लेकिन दुनिया के देशों में जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे नम्बर पर आने वाला भारत देश खेल के मैदान से स्वर्ण पदक के अभाव में खाली हाथ लौटता है। ऐसा क्यों होता है?
अभय - विचारणीय यह है कि हमारे देश में खेल-कूद में राजनीतिक दाँव-पेंच चलते हैं। सही खिलाड़ियों का चयन नहीं किया जाता है। यदि दुर्भाग्यवश सही खिलाड़ी का चयन भी कर लिया जाता है तो उसके प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था नहीं हो पाती है। इसके साथ ही खिलाड़ियों पर पूरा ध्यान और सुविधाएँ भी नहीं दी जाती हैं।
निखिल - क्या इसके लिए खिलाड़ी भी कुछ हद तक जिम्मेदार नहीं हैं? अफ्रीका जैसे गरीब देशों के खिलाड़ी भी पदक जीत लाते हैं। क्या उन्हें हमसे अधिक सुविधाएँ प्राप्त हैं?
अभय - तुम ठीक कह रहे हो। हमारे खिलाडियों में स्वाभिमान और राष्ट-भावना का अभाव है। यदि वे पूरी लगन से, निष्ठा से और दृढ़ निश्चय करके खेल-अभ्यास में जुट जाएँ और देश के लिए खेलना शुरू कर दें तो सफलता उनके कदम अवश्य ही चूमेगी।
9. आँखों देखी बस दुर्घटना के सम्बन्ध में पिता और पुत्र के मध्य हुए संवाद को लिखिए।
- पिता - मुदित! आज तो तुमने बहुत देर कर दी।
- मुदित - पिताजी! आज हमारे विद्यालय के एक छात्र का बस टना में निधन हो गया। हम उसके प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए उसके घर गये थे।
- पिता - बस दुर्घटना कैसे हुई?
- मुंदित - विद्यालय के पास लालबत्ती पर बस रुकी थी। उसी समय वह छात्र बस से उतर रहा था। तभी पीछे से मिनी बस ने आकर उसके टक्कर मार दी। वह वहीं गिर गया और मिनी बस का पीछे का पहिया उसे कुचलता हुआ उसके ऊपर से गुजर गया।
- पिता - वह कौनसी कक्षा का छात्र था?
- मुदित - वह हमारी ही कक्षा का छात्र था।
- पिता - उफ्! उसके घर में कौन-कौन है?
- मुदित - पिताजी! एक माह पूर्व उसके पिताजी का कार दुर्घटना में निधन हो गया था। बस अब घर में माँ और एक छोटा भाई रह गया है।
- पिताजी - विधाता का भी खेल निराला है बेटा!
- मुदित - हाँ! पिताजी! भगवान् भी सज्जन आदमियों को ही दुःख देता है!
- पिताजी - ऐसा नहीं है बेटा! विधाता तो सबके साथ न्याय करता है। उसके लिए सभी समान हैं। हम सबको अपने-अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
- मुदित - पिताजी! उसकी माताजी ने खाट पकड़ रखी है।
- पिताजी - हाँ पुत्र! जिस पर बीतती है, वही अपनी पीड़ा समझता है।
- मुदित - उसे देखकर हमें काफी दुःख हो रहा है। क्या करें!
- पिताजी - प्रभु से प्रार्थना करो कि उन्हें शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ दे। दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करे और दिवंगत आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करे।
10. बस में बैठे दो यात्रियों के मध्य संवाद को लिखिए।
पहला यात्री - अरे भाई! क्या समय आ गया है? पाँच रुपये में सौ ग्राम मूंगफली।
दूसरा यात्री - गनीमत समझिए जनाब! अभी क्या हुआ पाँच रुपये में सौ ग्राम मूंगफली तो मिलती है। यदि इसी तरह महँगाई बढ़ती रही तो तुम देखना अगली सर्दी में यही आठ रुपये में बिकेगी।
पहला यात्री - भाई! महँगाई तो जमाखोरों के लिए एक बहाना है। हमारे देश में किसी चीज की कमी नहीं है। मगर चीजें आम आदमी के हाथ से दूर होती जा रही हैं। लौकी ही को लो तीस रुपया किलो बिक रही है। टमाटर चालीस रुपये किलो बिक रहे हैं। दालों के भावों की क्या बात करते हो एकदम आसमान छू रहे हैं !
दूसरा यात्री - हाँ, भाई! गरीब आदमी आलू के सहारे पेट भर लेता था। मगर आजकल वह भी बीस रुपये किलो बिक रहा है। हरी सब्जियों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। सब्जी वाले भी अब तो ग्रामों के दाम बोलने लगे हैं।
पहला यात्री - उन बेचारों का क्या दोष? मण्डी से जैसा लायेंगे वैसा ही बेचेंगे। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दाम और यातायात की परेशानी के कारण किसान अपनी सब्जियों को शहर की मण्डी में पहुँचाने को राजी नहीं हैं। इस साल पानी की कमी के कारण सब्जियों की आमद में 60% की कमी हुई है। आबादी निरन्तर बढ़ने के कारण उनकी माँग बढ़ गई है। सो दाम तो चढ़ेंगे ही।
दूसरा यात्री - यह महँगाई चाहे किसी कारण से हो। इसमें पिसता है तो मध्यम वर्ग ही।
यात्री - आप ठीक कह रहे हो। नौकरीपेशा लोगों का भी यही हाल है। वेतन तों तीन सप्ताह के बाद दिखाई नहीं देती। शेष दिन तो बनिए, दूध वाले, सब्जी वाले आदि की दया पर ही बीतते हैं। हाँ, तन पर उनके सफेदपोशी अवश्य नज़र आती है।
दूसरा यात्री - हाँ, भाई! अब तो नई सरकार पर थोड़ी उम्मीद लगी है। प्रधानमंत्री बराबर महँगाई कम करने पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।
पहला यात्री - विचार व्यक्त करने से क्या होता है? ये नेता लोग सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। बस, ईश्वर पर ही विश्वास रखो। शायद छप्पर फाड़कर वही कुछ मदद कर दे। अच्छा, नमस्ते! मुझे यहीं उतरना है।
दूसरा यात्री - बहुत-बहुत धन्यवाद! नमस्तेजी!
11. दो परीक्षार्थियों का प्रश्न-पत्र को लेकर हुए संवाद को लिखिए।
- पहला परीक्षार्थी - भाई! आज का प्रश्न-पत्र कैसा रहा?
- दूसरा परीक्षार्थी - प्रश्न-पत्र तो सामान्यतया ठीक था लेकिन निबन्ध कुछ अटपटे थे।
- पहला परीक्षार्थी - ऐसी बात तो नहीं है भाई!
- दूसरा परीक्षार्थी - तुमने किस पर निबन्ध लिखा?
- पहला परीक्षार्थी - मैं तो 'आपका प्रिय दिवंगत नेता' विषय पर निबन्ध लिखकर आया हूँ, क्योंकि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर मेरी पूरी तैयारी थी।
- दूसरा परीक्षार्थी - लिखा तो मैंने भी इसी विषय पर ही। प्रधानमंत्री पर मेरा निबन्ध तैयार था। सो उसमें ही थोड़ा अदल-बदल कर लिख आया हूँ।
- पहला परीक्षार्थी - तब तो निबन्ध में तुम्हें शून्य अंक ही मिलेगा।
- दूसरा परीक्षार्थी - (घबराकर) क्यों भाई?
- पहला परीक्षार्थी - तुम 'दिवंगत' का अर्थ नहीं समझे क्या?
- दूसरा परीक्षार्थी - मैंने केवल अनुमान से अर्थ लिया। मुझे सोचने का मौका ही नहीं मिला।
- पहला परीक्षार्थी - अरे, इतना भी नहीं सोचा कि दिवंगत का अर्थ होता है मरा हुआ। प्रधानमंत्री तो वर्तमान में जीवित हैं।
- दूसरा परीक्षार्थी - उफ् ! यह तो गलत हो गया। इसी प्रश्न में अच्छे अंक प्राप्त होने की आशा थी।
- पहला परीक्षार्थी - भाई! अब पछताने से कोई लाभ नहीं है। जो होना था, सो हो गया। भविष्य में ध्यान रखो, जब तक प्रश्न-पत्र में आए प्रश्न को ठीक तरह से पढ़कर समझ न लो, तब तक उसे हल करने के लिए कलम मत उठाओ।
- दूसरा परीक्षार्थी - ठीक कहते हो भाई! तुम्हारी सीख को भविष्य में मैं याद रखूगा।
12. मालिक और नौकर के मध्य हुए संवाद को लिखिए।
- मालिक - आज तुमने आने में बहुत देर कर दी।
- नौकर - क्या करूँ? आज सब्जी मण्डी में बहत भीड थी।
- मालिंक - आज भीड़ होने का क्या कारण था? क्या कल कोई त्योहार है?
- नौकर - नहीं, मालिक! कल कोई त्योहार नहीं है।
- मालिक - फिर झूठ क्यों बोलते हो?
- नौकर - झूठ नहीं बोलता हूँ मालिक! कल पूर्णिमा है, इसलिए सब्जी मण्डी का अवकाश रहेगा।
- मालिक - अच्छा ................. ठीक है। पैसे वापिस करो।
- नौकर - (पैसे लौटाता हुआ) यह लीजिए तीन रुपये बचे हैं।
- मालिक - तीन रुपये?
- नौकर - हाँ, मालिक! कल की अपेक्षा आज सब्जी महँगी मिली है।
- मालिक - कोई बात नहीं, महँगाई तो दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। ईश्वर जाने, यह महँगाई कब कम होगी।
13. बाबा भारती और डाकू खड्गसिंह के मध्य संवाद लिखिए।
- बाबा भारती - खड्गसिंह, क्या हाल है?
- खड्गसिंह - (सिर झुकाते हुए) आपकी दया है।
- बाबा भारती - कहो, इधर कैसे आना हुआ?
- खड्गसिंह - सुलतान की चाह खींच लायी।
- बाबा भारती - विचित्र जानवर है। देखोगे, तो प्रसन्न हो जाओगे। खड्गसिंह मैंने भी उसकी बड़ी प्रशंसा सुनी है।
- बाबा भारती - उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी।
- खड्गसिंह - कहते हैं, देखने में बड़ा सुन्दर है।
- बाबा भारती - क्या कहना, जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।
- खड्गसिंह - बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो
- बाबा भारती - मैं तो इसे जान से भी प्यारा मानता हूँ।
- खड्गसिंह - संन्यासी होकर भी आप इसकी सवारी करते हैं!
- बाबा भारती - क्या करूँ? इसकी चाल गजब की है, उसी के मोह में सवारी करता हूँ।
- खड्गसिंह - क्या मैं भी इसकी चाल देख सकता हूँ?
- बाबा भारती - क्यों नहीं? लो लगाम, सवार हो जाओ, पर जरा सावधान रहना।
- खड्गसिंह - आप चिन्ता न करें। (घोड़े पर सवार होता है और उसे लेकर भाग जाता है।)
14. विद्यालयों में प्रवेश की समस्या को लेकर दो अभिभावकों के मध्य संवाद लिखिए।
- अजय - अरे मित्र! कुछ परेशान से दिखाई दे रहे हो। क्या बात है? सब कुशल-मंगल तो है न?
- देवेश - सब कुशल-मंगल है। पर मैं अपने पुत्र के किसी अच्छे विद्यालय में प्रवेश की समस्या को लेकर बहुत परेशान हूँ।
- अजय - क्या कहीं प्रवेश नहीं मिला?
- देवेश - जिस विद्यालय में भी जाता हूँ, वहाँ एक ही उत्तर मिलता है, "स्थान नहीं है।" एकाध विद्यालयों में यदि स्थान है भी तो वे हजारों रुपये डोनेशन के रूप में माँगते हैं।
- अजय - हाँ, यह बात तो है। राधाजी ने कल ही एक विद्यालय में अपनी पुत्री को ग्यारह हजार रुपये बिल्डिंग फण्ड में डोनेशन देकर प्रवेश दिलाया है।
- देवेश - अरे भाई! उनका क्या है, वे तो व्यवसायी की पत्नी हैं। इतने रुपये आसानी से दे सकती हैं। पर मुझ जैसा सरकारी कर्मचारी इतनी बड़ी रकम कहाँ से लाये?
- अजय - बुरा न मानो तो एक बात कहूँ।
- देवेश - हाँ, हाँ, अवश्य कहो।
- अजय पब्लिक स्कूलों और अंग्रेजी माध्यम के नाम पर ठगने वाले इन अधिकांश विद्यालयों का मोह त्यागकर तुम अपने बच्चे को किसी राजकीय विद्यालय में प्रवेश दिलाने की कोशिश क्यों नहीं करते?
- देवेश - यह धारणा है कि राजकीय विद्यालयों में पढाई का स्तर अत्यन्त निम्न है। अजय यह धारणा इन विद्यालयों के लिए ठीक नहीं है, क्योंकि प्रतिभाशाली छात्र राजकीय विद्यालयों में पढ़कर भी जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं और उच्च पदों पर पहुँचते हैं।
15. आपके विद्यालय की फुटबाल टीम रंजिता की सुस्ती के कारण फुटबाल मैच हार गयी। विद्यालय की इस पराजय पर दो छात्राओं के मध्य हुए संवाद को लिखिए।
- पहली छात्रा - आज बहुत बुरा हुआ, हमारे विद्यालय की फुटबाल टीम हार गई!
- दूसरी छात्रा - सुना तो मैंने भी है, पर टीम हारी क्यों?
- पहली छात्रा - रंजिता के कारण।
- दूसरी छात्रा - अकेले रंजिता के कारण टीम हार नहीं सकती।
- पहली छात्रा - रंजिता वैसे ही मोटी है। उसमें चुस्ती-फुर्ती नहीं है। वह गोल करने के अवसर चूक जाती है।
- दूसरी छात्रा - क्या वह अग्रिम पंक्ति में खेल रही थी ?
- पहली छात्रा - हाँ।
- 'दूसरी छात्रा - फिर उसे उसी समय बाहर क्यों नहीं निकाल दिया?
- पहली छात्रा - अरे तुम नहीं जानतीं। वह शारीरिक शिक्षक की भतीजी है।
- दूसरी छात्रा - यह भतीजीवाद ठीक नहीं है। यह विद्यालय की नाक का प्रश्न था।
- पहली छात्रा - तुम ठीक कहती हो बहिन! लेकिन क्या किया जाए। हमारे विद्यालय में ही नहीं, पूरे देश में भाई-भतीजावाद का प्रभाव छाया हुआ है।
- दूसरी छात्रा - तुम ठीक कहती हो। इसी से हमारा सिर झुकता है।
- पहली छात्रा - परन्तु क्या हम उसकी शिकायत प्रधानाध्यापक से नहीं कर सकते?
- दसरी छात्रा - मैं भी यही सोच रही हैं। पर क्या ये हमारी बात मानेंगे?
- पहली छात्रा - क्यों नहीं मानेंगे भला?
- दूसरी छात्रा - क्योंकि शारीरिक शिक्षक को पूरा ईमानदार मानते हैं।
- पहली छात्रा - क्या इनमें भी कोई साँठ-गाँठ है?
- दूसरी छात्रा - वही तो रोना है ! ............ ये सब मिले हुए हैं।
16. आपके दादाजी तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं, पर पिताजी इससे सहमत नहीं हैं। दोनों के मध्य होने वाले संभावित संवाद को लिखिए।
- दादाजी - सुनते हो राजू! मैं भी अमरनाथ यात्रा पर जाना चाहता हूँ।
- पिताजी - आप तो हमेशा साथ चलने के लिए तैयार रहते हो। चला जाए या नहीं।
- दादाजी - चला क्यों नहीं जाता? नहीं चला जायेगा तो बँहगी पर बैठ जाऊँगा।
- पिताजी - ता है इस पर कितना खर्च लगेगा? मेरे पास तो इतने पैसे नहीं हैं।
- दादाजी - न ले चलने के सौ बहाने।
- पिताजी - थोड़ी दूर तक चलने में तो हाँफ जाते हो। वहाँ तबीयत खराब हो गयी तो और मुसीबत!
- दादाजी - सबके लिए तो सब कुछ है; मेरे लिए कुछ नहीं है।
- पिताजी - चलो, ऐसा ही समझ लो। मैं आपको साथ ले जाकर खतरा मोल नहीं लेना चाहता हूँ।
- दादाजी - हाय! कैसा जमाना आ गया! अच्छे-खासे, चलते-फिरते पिता को खतरा बता रहे हो! तुम ....................।
- पिताजी - यात्रा पर जाने में घर जैसी सुविधा थोड़े ही मिलती है, फिर बूढ़े आदमी ..........., कुछ हो जाय तो!
- दादाजी - अमरनाथ-यात्रा में प्राण चले जायेंगे ............ यही तुम्हारा आशय है? तो ठीक ही है, वहीं पर पुण्यदायी मौत मिलने से जीवन से छुटकारा मिल जायेगा! - पुण्यदायी मौत! इससे तो लोग मुझे अधर्मी कहेंगे ! मुझ पर क्या बीतेगी?
- दादाजी - कुछ नहीं बीतेगी! (चुप रहकर, फिर) यदि तुम नहीं चाहते हो, तो न सही, मैं यात्रा पर नहीं जाऊँगा।
17. शिक्षा अधिकारी के कार्यालय के बाहर कुछ लोग उनसे मिलना चाहते हैं। कल्पना के आधार पर उनके संवाद लिखिए।
- संगीता - (चपरासी से) मुझे साहब से मिलना है, अभी!
- चपरासी - अभी साहब बहुत बिजी चल रहे हैं। आप इन्तजार करें। बैठ जाइये।
- रहमान - (चपरासी से) भई, मेरी पर्ची अन्दर पहुँचा दो, मुझे जरूरी काम से बात करनी है।
- चपरासी - साहब की घंटी बजेगी, तब जाकर तुम्हारी पर्ची दे आऊँगा। तब तक प्रतीक्षा करो।
- संगीता - (चपरासी से) कितनी देर और बैठना होगा?
- चपरासी - मैं क्या बोल सकता हूँ .......... जब साहब घंटी बजायेंगे, बुलायेंगे, तभी तो अन्दर जा सकेंगे।
- रहमान - (चपरासी से) क्या कोई अन्दर साहब के पास बैठा है?
- चपरासी - पता नहीं, साहब किसी काम में लगे होंगे, तभी तो देर हो रही है! संगीता (अपने आप से) यह तो लोगों से मिलने का समय है। इस समय न जाने किसमें बिजी बनकर बैठ जाते हैं।
- चपरासी - साहब लोगों की मर्जी ..........! मैं क्या कर सकता ............ ?
- रहमान - (चपरासी के हाथ में पर्ची के साथ बीस का नोट रखकर) भई, मेरी पर्ची अन्दर पहुँचा दो न!
- चपरासी - (भीतर जाता है और लौटकर रहमान को इशारा करता है) आप अन्दर जाइये।
- संगीता - घंटी तो मिलने का समय खत्म होने तक बजेगी भी नहीं। (तमतमाती हुई दरवाजा धकेलकर भीतर जाने लगती है।)
- चपरासी - अरे! अरे! क्या अभी घंटी बजी है। बिना घंटी बजे कहाँ जाती हो? रुको, रुको।
- संगीता - तुम्हारी घंटी तो अब मैं बजाऊँगी! तुम्हारी भी और तुम्हारे साहब की भी घंटी बज के रहेगी! (दनदनाती अन्दर चली जाती है।)