Rajasthan Board RBSE Class 7 Science Important Questions Chapter 3 रेशों से वस्त्र तकग Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
भेड़ों की किस नस्ल से अच्छी गुणवत्ता की ऊन प्राप्त होती है?
(अ) नाली
(ब) पाटनवाड़ी
(स) लोही
(द) बाखरवाल
उत्तर:
(स) लोही
प्रश्न 2.
अंगोरा नस्ल की बकरियाँ पायी जाती हैं।
(अ) जम्मू एवं कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में
(ब) सिक्किम के पहाड़ी क्षेत्रों में
(स) हरियाणा एवं राजस्थान के मैदानी क्षेत्रों में
(द) गुजरात के कच्छ में
उत्तर:
(अ) जम्मू एवं कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में
प्रश्न 3.
भेड़ों की मारवाड़ी नस्ल कहाँ पायी जाती है?
(अ) राजस्थान
(ब) हरियाणा
(स) पंजाब
(द) गुजरात
उत्तर:
(द) गुजरात
प्रश्न 4.
रेशम कीट पालन कहलाता है?
(अ) एपीकल्चर
(ब) सेरीकल्चर
(स) पीसीकल्चर
(द) सिल्विकल्चर
उत्तर:
(ब) सेरीकल्चर
प्रश्न 5.
ऊन संसाधन का अंतिम चरण है।
(अ) अभिमार्जन
(ब) छंटाई
(स) रीलिंग
(द) रंगाई
उत्तर:
(स) रीलिंग
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:
प्रश्न 1.
ऊन बनाने के लिए भेड़ों के ............... रेशे प्रदान करते हैं।
उत्तर:
तंतुरूपी बाल
प्रश्न 2.
कश्मीरी बकरी की त्वचा के निकट मुलायम बाल (फर) होते हैं, जिनसे ............ बनाई जाती है।
उत्तर:
पश्मीना शॉल
प्रश्न 3.
रेशम फाइबर ............. से बने होते हैं।
उत्तर:
प्रोटीन
प्रश्न 4.
रेशम और ऊन ............. हैं।
उत्तर:
जातव रेशे।
निम्न कथनों में से सत्य एवं असत्य कथनों का चयन कीजिए:
प्रश्न 1.
रेशम के फाइबर रेशम कीट के कोकून से प्राप्त होते हैं।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
जन्तुओं से प्राप्त किए जाने वाले रेशों को जांतव रेशे कहते हैं।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 3.
याक की ऊन जम्मू और कश्मीर में प्रचलित है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 4.
सबसे सामान्य रेशम कीट टसर रेशम कीट है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 5.
रेशम उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर
उत्तर:
असत्य
कॉलम - A में दिए गए शब्दों का मिलान कॉलम - B से कीजिए:
प्रश्न 1.
कौलम - A |
कॉलम - B |
(1) लोही |
(A) अच्छी गुणवत्ता की ऊन |
(2) नाली |
(B) भूरी ऊन |
(3) मारवाड़ी |
(C) गलीचे की ऊन |
(4) रामपुर बुशायर |
(D) रुक्ष / मोटी ऊन |
उत्तर:
कौलम - A |
कॉलम - B |
(1) लोही |
(A) अच्छी गुणवत्ता की ऊन |
(2) नाली |
(C) गलीचे की ऊन |
(3) मारवाड़ी |
(D) रुक्ष / मोटी ऊन |
(4) रामपुर बुशायर |
(B) भूरी ऊन |
प्रश्न 2.
कॉलम - A |
कॉलम - B |
(1) ऐल्पेका |
(A) गुजरात |
(2) याक |
(B) जम्मू एवं कश्मीर |
(3) अंगोरा बेकरी |
(C) तिब्बत और लद्दाख |
(4) पाटनवाड़ी भेड़ |
(D) दक्षिण अमेरिका |
उत्तर:
कॉलम - A |
कॉलम - B |
(1) ऐल्पेका |
(D) दक्षिण अमेरिका |
(2) याक |
(C) तिब्बत और लद्दाख |
(3) अंगोरा बेकरी |
(B) जम्मू एवं कश्मीर |
(4) पाटनवाड़ी भेड़ |
(A) गुजरात |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
जातव रेशे किसे कहते हैं?
उत्तर:
जन्तुओं से प्राप्त किए जाने वाले रेशों को जांतव रेशे कहते हैं।
प्रश्न 2.
याक की ऊन किन क्षेत्रों में प्रचलित है?
उत्तर:
तिब्बत और लद्दाख में।
प्रश्न 3.
दक्षिण अमेरिका में पाए जाने वाले ऐसे दो जन्तुओं के नाम लिखिए, जिनसे ऊन प्राप्त होती है।
उत्तर:
लामा और ऐल्पेका।
प्रश्न 4.
खली क्या है?
उत्तर:
बीज में से तेल निकाल लेने के बाद बचा पदार्थ 'खली' कहलाता है।
प्रश्न 5.
'बर' से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भेड़ के बालों में पाये जाने वाले छोटे - छोटे कोमल व फूले हुए रेशे 'बर' कहलाते हैं।
प्रश्न 6.
रेशम (सिल्क) की किन्हीं चार किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शहतूत रेशम, टसर रेशम, एरी रेशम और कोसा रेशम।
प्रश्न 7.
कितने दिनों पश्चात् कैटरपिलर खाना लेना बंद कर लेते हैं?
उत्तर:
लगभग 25 से 30 दिनों के बाद कैटरपिलर खाना बंद कर देते हैं।
प्रश्न 8.
प्यूपा या कोशित किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कैटरपिलर अपने जीवनचक्र की अगली अवस्था में प्रवेश करने के लिए तैयार होता है, तो यह प्यूपा/ कोशित कहलाता है।
प्रश्न 9.
शहतूत रेशम कीट के कोकून से प्राप्त होने वाले रेशम फाइबर के कोई तीन गुण लिखिए।
उत्तर:
यह मृदु, चमकदार और लचीला होता है।
प्रश्न 10.
'अंगोरा ऊन' से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जम्मू एवं कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली अंगोरा नस्ल की बकरियों से प्राप्त ऊन 'अंगोरा ऊन' कहलाती है।
प्रश्न 11.
'पश्मीना शॉल' क्या होती हैं?
उत्तर:
कश्मीरी बकरी की त्वचा के निकट मुलायम बाल (फर) होते हैं, इनसे बेहतरीन शॉले बनाई जाती हैं, जिन्हें पश्मीना शॉल कहा जाता हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
क्या आप जानते हैं कि जन्तुओं के आवरण पर बालों की मोटी परत क्यों होती है?
उत्तर:
बालों के बीच अधिक मात्रा में वायु आसानी से भर जाती है तथा वायु ऊष्मा की कुचालक होती है, जिस के कारण बाल जन्तुओं को गर्म रखते हैं। इसी कारण जन्तुओं के आवरण पर बालों की मोटी परत होती है।
प्रश्न 2.
भेड़ की त्वचा पर कितने प्रकार के रेशे होते हैं? क्या आप बता सकते हैं कि भेड़ के शरीर के किस भाग से फाइबर मिलते हैं?
उत्तर:
प्रश्न 3.
'वरणात्मक प्रजनन' को समझाइये।
उत्तर:
सामान्यतः भेड़ों में दो प्रकार के रेशे पाये जाते हैं-दाढ़ी के रूखे बाल और त्वचा के निकट स्थित तंतुरूपी मुलायम बाल। परन्तु भेड़ों की कुछ नस्लों में केवल तंतुरूपी मुलायम बाल ही होते हैं। इनके जनकों का विशेष रूप से ऐसी भेड़ों को जन्म देने के लिए चयन किया जाता है, जिनके शरीर पर सिर्फ मुलायम बाल हों। तंतुरूपी मुलायम बालों जैसे विशेष गुणयुक्त भेड़ें उत्पन्न करने के लिए जनकों के चयन की यह प्रक्रिया वरणात्मक प्रजनन' कहलाती है।
प्रश्न 4.
भेड़ के बालों को गमी के मौसम में ही क्यों काटा जाता है?
उत्तर:
सामान्यतः भेड़ के बालों को गर्मी के मौसम में काटा जाता है, ताकि भेड़ बालों के सुरक्षात्मक आवरण के न रहने पर भी जीवित रह सके। सर्दी के मौसम तक इनके बाल पुनः उग आते हैं जिससे इन्हें सर्दी से सुरक्षा मिलती है।
प्रश्न 5.
भेड़ों की कुछ भारतीय नस्लों के नाम, क्षेत्र एवं उनकी ऊन की गुणवत्ता के विषय में लिखिए।
उत्तर:
नस्ल का नाम |
ऊन की गुणवत्ता |
राज्य जहाँ पाई जाती हैं |
1.लोही |
अच्छी गुणवत्ता की ऊन |
राजस्थान, पंजाब |
2. रामपुर बुशायर |
भूरी ऊन |
उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश |
3. नाली (नली) |
गलीचे की ऊन |
राजस्थान, हरियाणा, |
4. बाखरवाल |
ऊनी शालों के लिए |
पंजाब |
5. मारवाड़ी |
मोटी / रूक्ष ऊन |
जमू और कश्मीर |
6. पाटनवाड़ी |
हौजरी के लिए |
गुजरात |
प्रश्न 6.
'सिल्क रूट' से आप क्या समझते हो? स्पष्ट करें।
उत्तर:
एक प्राचीन चीनी किंवदंती के अनुसार रेशम उद्योग का प्रारम्भ चीन में हुआ था और सैकड़ों वर्षों तक इसे कड़ी पहरेदारी में गुप्त रखा गया। बाद में यात्रियों और व्यापारियों ने रेशम को अन्य देशों में प्रचलित किया । जिस मार्ग से उन्होंने यात्रा की थी, उसे आज भी 'सिल्क रुट' कहते हैं।
प्रश्न 7.
व्यावसायिक संकट किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक संकट: ऊन उद्योग हमारे देश में अनेक व्यक्तियों के लिए जीविकोपार्जन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। लेकिन उँटाई करने वालों का कार्य जोखिम भरा होता है, क्योंकि कभी - कभी वे एन्पैक्स नामक जीवाणु द्वारा संक्रमित हो जाते हैं, जो एक घातक रक्त रोग का कारक है, जिसे 'सोर्टर्स रोग' कहते हैं। किसी भी उद्योग में कारीगरों द्वारा ऐसे जोखिमों को झेलना 'व्यावसायिक संकट' कहलाता है।
निबन्धात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
भेड़ पालन और इनके प्रजनन के विषय में लिखिए।
उत्तर:
भेड़ पालन: हमारे देश के अनेक भागों - जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के पहाड़ी क्षेत्रों तथा हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के मैदानों में ऊन प्राप्त करने के लिए भेडों की कई किस्मों को पाला जाता है। भेड शाकाहारी होती है और वह घास और पत्तियाँ पसन्द करती है । भेड़ पालक इन्हें हरे चारे के अतिरिक्त दालें, मक्का, ज्वार, खली और खनिज भी खिलाते हैं। सर्दियों में, भेड़ों को घरों के अन्दर रखा जाता है और इन्हें पत्तियाँ, अनाज और सूखा चारा खिलाया जाता है।
प्रजनन: भेड़ों की कुछ नस्लों के शरीर पर बालों की घनी परत होती है, जिससे बड़ी मात्रा में अच्छी गुणवत्ता की ऊन प्राप्त होती है। इन भेड़ों को 'वरणात्मक प्रजनन' द्वारा उत्पन्न किया जाता है, जिनमें से एक जनक किसी अच्छी नस्ल की भेड़ होती है।
प्रश्न 2.
भेड़ से प्राप्त रेशों को स्वेटर बुनने में उपयोग की जाने वाली ऊन में कैसे परिवर्तित किया जाता है?
उत्तर:
रेशों को ऊन में परिवर्तित करना: स्वेटर बुनने वाली अथवा शॉल बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली ऊन एक लम्बी प्रक्रिया द्वारा प्राप्त उत्पाद होती है, जिसमें निम्नलिखित चरण सम्मिलित हैं
चरण 1:
भेड़ के बालों को त्वचा की पतली परत के साथ शरीर से उतार लिया जाता है। यह प्रक्रिया ऊन की कटाई' कहलाती है। सामान्यत: बालों को गर्मी के मौसम में काटा जाता है। बाल ऊनी रेशे प्रदान करते हैं। इन्हीं ऊनी रेशों को संसाधित करके ऊन का धागा बनाया जाता है।
चरण 2: त्वचा सहित उतारे गये बालों को टंकियों में डालकर अच्छी तरह से धोया जाता है, जिससे उनकी चिकनाई, धूल और गर्त निकल जाए। यह प्रक्रम अभिमार्जन' कहलाता है। आजकल, अभिमार्जन मशीनों द्वारा किया जाता है।
चरण 3: अभिमार्जन के बाद छंटाई करके रोमिल अथवा रोयेंदार बालों को कारखानों में भेज दिया जाता है, जहाँ विभिन्न गठन वाले बालों को पृथक् किया जाता है।
चरण 4:
इसमें बालों में से छोटे-छोटे कोमल व फूले हुए रेशों को छाँट लिया जाता है, जो 'बर' कहलाते हैं। इसके बाद रेशों का पुनः अभिमार्जन कर उन्हें सुखा लेते हैं। इस प्रकार प्राप्त उत्पाद ही धागों के रूप में काते जाने के लिए उपयुक्त ऊन होती है।
चरण 5:
रेशों की विभिन्न रंगों में रंगाई की जाती है, क्योंकि भेड़ अथवा बकरी की सामान्य ऊन काली, भूरी अथवा सफेद होती है।
चरण 6:
इस चरण को 'रीलिंग' कहते हैं। इसमें रेशों को सीधा करके सुलझाया जाता है और फिर लपेटकर उनसे धागा बनाया जाता है। लम्बे रेशों को कातकर स्वेटरों की ऊन के रूप में और अपेक्षाकृत छोटे रेशों को कात कर ऊनी वस्त्र बुनने में उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 3.
रेशम के कीट के जीवनचक्र के बारे में लिखिए।
उत्तर:
रेशम कीट का जीवनचक्र: रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम के कीटों को पालना 'रेशम कीट पालन (सेरीकल्चर)' कहलाता है। मादा रेशम कीट अंडे देती है, जिनसे लार्वा निकलते हैं, जो कैटरपिलर/इल्ली या रेशम कीट कहलाते हैं। ये आकार में वृद्धि करते हैं और जब कैटरपिलर अपने जीवन-चक्र की अगली अवस्था में प्रवेश करने के लिए तैयार होता है, तो यह प्यूपा/कोशित कहलाता है, जो अपने इर्द - गिर्द एक जाल बुन लेता है। यह जाल उसे अपने स्थान में बने रहने में सहायता करता है। फिर यह अंग्रेजी संख्या आठ (8) के रूप में अपने सिर को एक सिरे से दूसरे सिरे तक ले जाता है। सिर की इस गति के समय कैटरपिलर पतले तार के रूप में प्रोटीन से बना एक पदार्थ स्रावित करता है जो कठोर होकर (सूखकर) रेशम का रेशा बन जाता है। जल्दी ही कैटरपिलर स्वयं को पूरी तरह से रेशम के रेशों से ढक लेता है। यह आवरण कोकून कहलाता है। कीट का इसके आगे का विकास कोकून के भीतर होता है। कोकून से प्राप्त रेशों से रेशम का धागा तैयार किया जाता है।
प्रश्न 4.
ऊन के जलने की गंध कृत्रिम रेशम के जलने जैसी होती है अथवा शुद्ध रेशम जैसी? क्या आप इसका कारण बता सकते हैं? रेशम की विभिन्न किस्मों के विषय में भी लिखिए।
उत्तर:
(i) ऊन के जलने की गंध शुद्ध रेशम जैसी आती है।
(ii) ऊन और रेशम, दोनों प्राकृतिक पदार्थ हैं और इनका संघटन भी लगभग एक जैसा होता है, इसलिए ऊन के जलने की गंध शुद्ध रेशम जैसी होती है।
(iii) रेशम का धागा रेशम कीट के कोकून से प्राप्त रेशों से तैयार किया जाता है । रेशम कीट अनेक किस्म के होते हैं, जो एक - दूसरे से काफी अलग दिखाई देते हैं और उनसे प्राप्त होने वाला रेशम का धागा गठन अर्थात् रूक्षता, चिकनाहट, चमक आदि में भिन्न होता है। अत: टसर रेशम, मूगा रेशम, कोसा रेशम, शहतूत रेशम, ऐरी रेशम तथा अन्य प्रकार के रेशम विभिन्न किस्म के रेशम कीटों द्वारा काते गए कोकूनों से प्राप्त किए जाते हैं। सबसे सामान्य रेशम कीट 'शहतूत रेशम कीट' है। इस कीट के कोकून से प्राप्त होने वाला रेशम फाइबर मृदु, चमकदार और लचीला होता है तथा इसे सुन्दर रंगों में रंगा जा सकता है।
प्रश्न 5.
रेशम कीट पालन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेशम कीट पालन: रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीटों को पाला जाता है और उनके कोकूनों को एकत्रित करके रेशम के फाइबर प्राप्त किए जाते हैं। एक मादा रेशम कीट एक बार में सैकड़ों अंडे देती है। अंडों को सावधानी से कपड़े की पट्टियों अथवा कागज पर संग्रहित करके रेशम कीट पालकों को बेचा जाता है। ये पालक/किसान अंडों को स्वास्थ्यकर स्थितियों, उचित ताप एवं आर्द्रता की अनुकूल परिस्थितियों में रखते हैं। अंडों को उपयुक्त ताप तक गर्म रखा जाता है, जिससे अंडों में से लार्वा निकल आए।
यह तब किया जाता है जब शहतूत के वृक्षों पर नई पत्तियाँ आती हैं। लार्वा, जो कैटरपिलर अथवा रेशम कीट कहलाते हैं, दिन - रात खाते रहते हैं और आमाप (साइज) में काफी बड़े हो जाते हैं। कीटों को शहतूत की ताजी कटी पत्तियों के साथ बाँस की स्वच्छ ट्रे में रखा जाता है। 25 से 30 दिनों के बाद कैटरपिलर खाना बंद कर देते हैं और कोकून बनाने के लिए वे बाँस के बने छोटे - छोटे कक्षों में चले जाते हैं। (इसके लिए ट्रे में छोटी रैक या टहनियाँ रख दी जाती हैं, जिनसे कोकून जुड़ जाते हैं।) कैटरपिलर अथवा रेशम कीट कोकून बनाते हैं, जिसके भीतर प्यूपा विकसित होता है।
प्रश्न 6.
रेशम के फाइबर से रेशम कैसे बनाया जाता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
रेशम का संसाधन: रेशम फाइबर प्राप्त करने के लिए कोकूनों की बड़ी ढेरी का उपयोग किया जाता है। वयस्क कीट में विकसित होने से पहले ही कोकूनों को धूप में रखा जाता है अथवा पानी में उबाला जाता है या भाप में रखा जाता है। इस प्रक्रम में रेशम के फाइबर पृथक् हो जाते हैं। रेशम के रूप में उपयोग के लिए कोकून में से रेशे निकालने के पश्चात् उनसे धागे बनाने की प्रक्रिया 'रेशम की रीलिंग' कहलाती है। रीलिंग विशेष मशीनों में की जाती है, जो कोकून में से फाइबर या रेशों को निकालती है। फिर रेशम के फाइबरों की कताई की जाती है, जिससे रेशम के धागे प्राप्त हो जाते हैं। यह रेशम का मृदु रेशा स्टील के तार जितना मजबूत होता है। बुनकरों द्वारा रेशम के इन्हीं धागों से वस्त्र बुने जाते हैं।