Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Anivarya Rachana फीचर लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
फीचर विधा की पृष्ठभूमि - फीचर लेखन हिन्दी पत्रकारिता की एक सशक्त गद्य-विधा है। अन्य विधाओं के समान ही इसमें भी निरन्तर अभ्यास से निपुणता प्राप्त हो सकती है। फीचर लेखन मानवीय रुचि के समाचार को विशिष्ट प्रकार से प्रस्तुत कर पाठक की आशा व आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। समाचार के समान ही फीचर भी मानव-जीवन को प्रभावित करने वाली समस्त गतिविधियों का संस्पर्श करता है।
फीचर मनोरंजक ढंग से लिखा गया ऐसा प्रासंगिक लेख अथवा नवीन हलचलों का शब्द-चित्र होता है, जिसका विकास स्वतन्त्रता के बाद हुआ है। स्वाधीनता आन्दोलन के युग में भारतीय पत्रकार का ध्यान पत्रकारिता की कलात्मक प्रवृत्तियों की अपेक्षा राजनीतिक गतिविधियों की ओर अधिक था। उनमें यह सामान्य भावना थी कि वे मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए हो रहे आन्दोलन रूपी धर्मयुद्ध के 'कलम के सिपाही' हैं। इस प्रवृत्ति के कारण उनमें कलात्मक प्रयोगों तथा गैर राजनीतिक विषयों के प्रति विशेष अभिरुचि नहीं रही।
स्वाधीनता-प्राप्ति के पश्चात् मुद्रण एवं सम्पादन कला में तीव्र गति से हुई प्रगति के कारण पत्रकारों का ध्यान कलात्मक लेखन तथा जीवन के विविध पक्षों को गहराई से समझकर उसे भावाभिव्यक्ति प्रदान करने की ओर गया। इस तरह समाचार-पत्रों में समाचारों के अतिरिक्त जिन नवीन गद्य-विधाओं में पत्रकारीय लेखन का प्रचलन बढ़ा, उनमें फीचर प्रमुख है।
फीचर की परिभाषा-'फीचर' शब्द लैटिन के ‘Fuctura' से बना है, जिसके हिन्दी में कई अर्थ होते हैं, यथा-आकृति, विशेषता, लक्षण, व्यक्तित्व, चेहरा-मोहरा, अनुहारि और नाक-नक्श आदि। लेकिन इस सबके मध्य एक देखा जाये तो फीचर के लिए अब 'रूपक' शब्द रूढ़ हो गया है।
फीचर की परिभाषा देते हुए कुछ विद्वान् इसे "मनोरंजक ढंग से लिखा गया प्रासंगिक लेख", तो कुछ इसे "विविध क्षेत्रों की हलचलों का शब्द-चित्र" बताते हैं, तो कुछ इसे "त्रिविध शाब्दिक चित्रण" कहते हैं। डॉ. संजीव भानावत के अनुसार, "फीचर किसी भी सामाजिक घटना की रोचक व्याख्या हो सकती है। इसमें सामयिक तथ्यों का यथेष्ट समावेश तो होता ही है, अतीत की घटनाओं तथा भविष्य की सम्भावनाओं से भी वह जुड़ा रहता है। समय की धड़कनें इसमें गूंजती हैं।" इसमें चित्रित घटना का मनोरम, कलात्मक, विशद और जिज्ञासापूर्ण प्रस्तुतीकरण होता है।
फ़ीचर पाठक की चेतना को नहीं जगाता बल्कि वह उसकी भावनाओं और संवेदनाओं को उत्प्रेरित करता है। यह यथार्थ की वैयक्तिक अनुभूति है। इसमें लेखक पाठक को अपने अनुभव से समाज के सत्य का भावनात्मक रूप में परिचय कराता है। इसमें समाचार दृश्यात्मक रूप में पाठक के सामने उभरकर आ जाता है। यह सूचनाओं को सम्प्रेषित करने का ऐसा साहित्यिक रूप है जो भाव और कल्पना के रस से आप्त होकर पाठक को भी इसमें भिगो देता है।
फीचर के प्रकार - फीचर-लेखक के बद्धि-कौशल और कल्पना की उर्वरा शक्ति पर निर्भर होने से फीचर के कई प्रकार हो जाते हैं। इसके प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं -
फीचर की विशेषताएँ - फ़ीचर लेखन के विविध पक्षों एवं लेखक की रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित पहलुओं पर प्रकाश डालने से पहले फ़ीचर की विशेषताओं के बारे में जान लेना आवश्यक है।
1. सत्यता या तथ्यात्मकता - किसी भी फ़ीचर लेख के लिए सत्यता या तथ्यात्मकता का गण अनिवार्य है। तथ्यों से रहित किसी अविश्वसनीय सूत्र को आधार बनाकर लिखे गए लेख फ़ीचर के अन्तर्गत नहीं आते हैं।
2. गम्भीरता एवं रोचकता - फ़ीचर में भावों और कल्पना के आगमन से उसमें रोचकता तो आ जाती है किन्तु ऐसा नहीं कि वह विषय के प्रति गम्भीर न हो। उसके गम्भीर चिंतन के परिणामों को ही फ़ीचर द्वारा रोचक शैली में सम्प्रेषित किया जाता है।
3. मौलिकता - सामान्यतः एक ही विषय को आधार बनाकर अनेक लेखक उस पर फ़ीचर लिखते हैं। उनमें से जो फ़ीचर अपनी मौलिकता पहचान बना पाने में सफल होता है वही फ़ीचर एक आदर्श फ़ीचर कहलाता है।
4.सामाजिक दायित्व बोध - कोई भी रचना निरुद्देश्य नहीं होती। उसी तरह फ़ीचर भी किसी न किसी विशिष्ट उद्देश्य से युक्त होता है । फ़ीचर का उद्देश्य सामाजिक दायित्व बोध से सम्बद्ध होना चाहिए क्योंकि फ़ीचर समाज के लिए ही लिखा जाता है।
5. संक्षिप्तता एवं पूर्णता - फ़ीचर लेख का आकार अधिक बड़ा नहीं होना चाहिए। कम से कम शब्दों में गागर में सागर भरने की कला ही फ़ीचर लेख की प्रमुख विशेषता है।
6. चित्रात्मकता - फ़ीचर सीधी-सपाट शैली में न होकर चित्रात्मक होना चाहिए। सीधी और सपाट शैली में लिखे गए फ़ीचर पाठक पर अपेक्षित प्रभाव नहीं डालते।
7. लालित्ययुक्त भाषा - फ़ीचर की भाषा सहज, सरल और कलात्मक होनी चाहिए। उसमें बिम्बविधायिनी शक्ति द्वारा ही उसे रोचक बनाया जा सकता है। इसके लिए फ़ीचर की भाषा लालित्यपूर्ण होनी चाहिए।
8. उपयुक्त शीर्षक - एक उत्कृष्ट फ़ीचर के लिए उपयुक्त शीर्षक भी होना चाहिए। शीर्षक ऐसा होना चाहिए जो फ़ीचर के विषय, भाव या संवेदना का पूर्ण बोध करा पाने में सक्षम हो।
फीचर-लेखन की शैली - फीचर-लेखन की शैली पूर्णतया कलात्मक होती है। इसमें सरलता, स्पष्टता, सजीवता, मर्मस्पर्शिता, प्रभावोत्पादकता और विनोद का पुट रहता है। कम शब्दों में अधिक कहना, साहित्यिक पुट; ओजपूर्ण भाषा,
षयानुरूप भाषिक - प्रयोग इत्यादि विशेषताओं का पूरा ध्यान रखा जाता है। इसके लेखन में शैली के परिमार्जन का प्रयास रहता है, सरलता एवं बोधगम्यता भी रहती है और विषय-प्रतिपादन ज्ञानवर्द्धक एवं मनोरंजक रूप में किया जाता है।
पत्रकारिता के अनेक स्तम्भों की तरह फीचर-लेखन के सम्बन्ध में विद्वानों के अनेक मत हैं । जोवेट का कथन है कि विषय की मूल वस्तु तक प्रत्यक्ष तथा तत्काल प्रवेश करो और अनावश्यक शब्दों और विशेषणों से बचो। किन्तु कबेट का मत है कि जो तुमने सोचा है, उसे लिखने बैठ जाओ, और यह मत सोचो कि तुमने क्या लिखा है। निस्संकोच लिखो जैसे विचार और शब्द आते हैं। शब्दों के चयन के चक्कर में मत पड़ो।
उत्तम शैली के लिए स्वचेतना के प्रति सजग रहो। मन में क्या है और तुम क्या कहना चाहते हो? विषय-वस्तु को.सदैव सामने रखो तथा अनावश्यक नहीं हो। वही करो, जो तुम्हें कहना हो, और वह भी कम से कम शब्दों में सीधे प्रकार से कहो। उन शब्दों का प्रयोग करो जो विषय को मूर्त रूप प्रदान करें और छोटे आकार में सामने लायें।
इस विषय में प्रायः सभी एक मत हैं कि भावों एवं विचारों को व्यक्त करने के लिए अधिक शब्दों का अपव्यय मत करो। अधिक से अधिक विचारों को कम से कम शब्दों में व्यक्त करना ही लेखक की प्रतिभा का सूचक है।
फीचर-लेखन के मख्य तत्त्व - फीचर को समाचार-पत्र की आत्मा और प्राण माना जाता है। अच्छे फीचर लेखन के ये तत्त्व माने जाते हैं -
फीचर लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें - फ़ीचर लिखते समय अग्रलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
फीचर तथा समाचार में अन्तर - फीचर-लेखन और समाचार-लेखन में पर्याप्त अन्तर होता है, यथा -
फीचर लेखक के गुण - फ़ीचर लेखक में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है
1. विशेषज्ञता - फ़ीचर लेखक जिस विषय को आधार बनाकर उस पर लेख लिख रहा है उसमें उनका विशेषाधिकार होना चाहिए। चुनौतीपूर्ण होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक विषय पर न तो शोध कर सकता है और न ही उस विषय की बारीकियों को समझ सकता है। इसलिए विषय से सम्बन्धित विशेषज्ञ व्यक्ति को अपने क्षेत्राधिकार के विषय पर लेख लिखने चाहिए।
2. बहुज्ञता - फ़ीचर लेखक को बहुज्ञ होना चाहिए। उसे धर्म, दर्शन, संस्कृति, समाज, साहित्य, इतिहास आदि विविध विषयों की समझ होनी चाहिए। उसके अन्तर्गत अध्ययन की प्रवृत्ति भी प्रबल होनी चाहिए जिसके द्वारा वह अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न लेखकं अपने फ़ीचर को आकर्षक, प्रभावशाली तथा तथ्यात्मकता से परिपूर्ण बना सकता है।
3. परिवेश के प्रति जागरूक - फ़ीचर लेखक को समसामयिक परिस्थितियों के प्रति सदैव जागरूक रहना चाहिए। अपनी सजगता से ही वह जीवन की घटनाओं को सूक्ष्मता से देख, समझ और महसूस कर पाता है। जिसके आधार पर वह एक अच्छा फ़ीचर तैयार कर सकने योग्य विषय को ढूँढ़ लेता है। समाज की प्रत्येक घटना आम आदमी के लिए सामान्य घटना हो सकती है। लेकिन जागरूक लेखक के लिए वह घटना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन सकती है।
4. आत्मविश्वास - फ़ीचर लेखक को अपने ऊपर दृढ़ विश्वास होना चाहिए। उसे किसी भी प्रकार के विषय के भीतर झाँकने और उसकी प्रवृत्तियों को पकड़ने की क्षमता के लिए सबसे पहले स्वयं पर ही विश्वास करना होगा। अपने ज्ञान और अनुभव पर विश्वास करके ही वह विषय के भीतर तक झाँक सकता है।
5. निष्पक्ष दृष्टि - फ़ीचर लेखक के लिए आवश्यक है कि वह जिस उद्देश्य की प्रतिपूर्ति के लिए फ़ीचर लेख लिख रहा है उस विषय के साथ वह पूर्ण न्याय कर सके। विभिन्न तथ्यों और सूत्रों के विश्लेषण के आधार पर वह उस पर अपना निर्णय प्रस्तुत करता है। लेकिन उसका निर्णय विषय के तथ्यों और प्रमाणों से आबद्ध होना चाहिए। उसे अपने निर्णय या दृष्टि को उस पर आरोपित नहीं करना चाहिए। उसे संकीर्ण दृष्टि से मुक्त हो किसी वाद या मत के प्रति अधिक आग्रहशील नहीं रहना चाहिए।
6. भाषा पर पूर्ण अधिकार - फ़ीचर लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए। भाषा के द्वारा ही वह फ़ीचर को लालित्यता और मधुरता से युक्त कर सकता है। उसकी भाषा माधुर्यपूर्ण और चित्रात्मक होनी चाहिए। इससे पाठक को भावात्मक रूप से अपने साथ जोड़ने में लेखक को कठिनाई नहीं होती। विषय में प्रस्तुत भाव और विचार के अनुकूल सक्षम भाषा में कलात्मक प्रयोगों के सहारे लेखक अपने मंतव्य तक सहजता से पहुँच सकता है।
फ़ीचर लेखन की तैयारी - फ़ीचर लेखन से पूर्व लेखक को निम्नलिखित तैयारियां करनी पड़ती हैं -
1. विषय चयन - फीचर लेखन के विविध प्रकार होने के कारण इसके लिए विषय का चयन करना चाहिए जो रोचक और ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ उसकी अपनी रुचि का भी हो। यदि लेखक की रुचि उस विषय क्षेत्र में नहीं होगी तो वह उसके साथ न्याय नहीं कर पाएगा। रुचि के साथ उस विषय में लेखक की विशेषज्ञता भी होनी चाहिए अन्यथा वह महत्त्वपूर्ण से महत्त्वपूर्ण तथ्यों को भी छोड़ सकता है और गौण से गौण तथ्यों को भी फ़ीचर में स्थान दे सकता है।
इससे विषय व्यवस्थित रूप से पाठक के सामने नहीं आ पाएगा। फ़ीचर का विषय ऐसा होना चाहिए जो समय और परिस्थिति के अनुसार प्रासंगिक हो। नई से नई जानकारी देना समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं का उद्देश्य होता है। लेखक को विषय का चयन करते समय पत्र-पत्रिकाओं के स्तर, वितरण क्षेत्र और पाठक-वर्ग की रुचि का भी ध्यान रखना चाहिए। दैनिक समाचार-पत्रों में प्रतिदिन के जीवन से जुड़े फ़ीचर विषयों की उपयोगिता अधिक होती है।
2. सामग्री-संकलन - फ़ीचर के विषय निर्धारण के उपरान्त उस विषय से सम्बन्धित सामग्री का संकलन करना फ़ीचर लेखक का अगला महत्त्वपूर्ण कार्य है। जिस विषय का चयन लेखक द्वारा किया गया है उस विषय के सम्बन्ध में विस्तृत शोध एवं अध्ययन के द्वारा उसे विभिन्न तथ्यों को एकत्रित करना चाहिए। सामग्री संकलन के लिए वह विभिन्न माध्यमों का सहारा ले सकता है। इसके लिए उसे विषय से सम्बन्धित व्यक्तियों के साक्षात्कार लेने से फ़ीचर लेखक के लेख की शैली अत्यन्त प्रभावशाली बन जाएगी।
फ़ीचर लेखक अपने लेख को अत्यधिक पठनीय और प्रभावी बनाने के लिए साहित्य की प्रमुख गद्य विद्याओं में से किसी का सहारा ले सकता है। आजकल कहानी, रिपोर्ताज, डायरी, पत्र, लेख, निबन्ध, यात्रा-वृत्त आदि आधुनिक विधाओं में अनेक फ़ीचर लेख लिखे जा रहे हैं। पाठक की रुचि और विषय की उपयोगिता को दृष्टिगत रखकर फ़ीचर लेखक इनमें से किसी एक या मिश्रित रूप का प्रयोग कर सकता है।
3. अंत या उपसंहार - फ़ीचर का अन्तिम भाग सारांश की तरह होता है। इसके अन्तर्गत फ़ीचर लेखक अपने लेख के अन्तर्गत. प्रस्तुत की गई विषयवस्तु के आधार पर समस्या का समाधान सुझाव या अन्य विचार सूत्र देकर कर सकता है। लेकिन लेखक के लिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वह अपने दृष्टिकोण या सुझाव को किसी पर अनावश्यक रूप से न थोपे। अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को ध्यान में रखकर वह उस लेख का समापन इस तरह से करे कि वह पाठक की जिज्ञासा को शान्त भी कर सके और उसे मानसिक रूप से तृप्ति भी प्रदान हो। अन्त को आकर्षक बनाने के लिए फ़ीचर लेखक चाहे तो किसी कवि की उक्ति या विद्वान के विचार का भी सहारा ले सकता है।
फ़ीचर लेखक को अपना लेख लिखने के उपरान्त एक बार पुनः उसका अध्ययन करके यह देखना चाहिए कि कोई ऐसी बात उस लेख के अन्तर्गत तो नहीं आई जो अनावश्यक या तथ्यों से परे हो। अपने लेख को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए फीचर अपने लेख के साथ विषय से सम्बन्धित सुन्दर और आकृष्ट छायाचित्रों का चयन भी कर सकता है। छायाचित्रों से फीचर में जीवन्तता और आकर्षण का भाव भर जाता है। छायाचित्रों से युक्त फ़ीचर विषयवस्तु को प्रतिपादित करने वाले और उसे परिपूर्ण बनाने में सक्षम होने चाहिए।
फ़ीचर का महत्त्व - प्रत्येक समाचार-पत्र एवं पत्रिका में नियमित रूप से प्रकाशित होने के कारण फ़ीचर की उपयोगिता स्वतः स्पष्ट है। समाचार की तरह यह भी सत्य का साक्षात्कार तो कराता ही है। लेकिन साथ ही पाठक को विचारों के जंगल में भी मनोरंजन और औत्सुक्य के रंग-बिरंगे फूलों के उपवन का भान भी करा देता है। फ़ीचर समाज के विविध विषयों पर अपनी सटीक टिप्पणियाँ देते हैं। इन टिप्पणियों में लेखक का चिंतन और उसकी सामाजिक उपादेयता प्रमुख होती है।
लेखक फ़ीचर के माध्यम से प्रतिदिन घटने वाली विशिष्ट घटनाओं और सूचनाओं को अपने केन्द्र में रखकर उस पर गम्भीर चिन्तन करता है। उस गम्भीर चिन्तन की अभिव्यक्ति इस तरह से की जाती है कि पाठक उस सूचना को न केवल प्राप्त कर लेता है बल्कि उसमें केन्द्रित समस्या का समाधान खोजने के लिए स्वयं ही बाध्य हो जाता है।
फ़ीचर का महत्त्व केवल व्यक्तिगत नहीं होता, बल्कि यह सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी समाज के सामने अनेक प्रश्न उठाते हैं और उन प्रश्नों के उत्तर के रूप में अनेक वैचारिक बिन्दुओं को भी समाज के सामने रखते हैं। वर्तमान समय में फ़ीचर की महत्ता इतनी अधिक बढ़ गयी है कि विविध विषयों पर फीचर लिखने के लिए समाचार पत्र उन विषयों के विशेषज्ञ लेखकों से अपने पत्र के लिए फीचर लिखवाते हैं जिसके लिए वह लेखक को अधिक पारिश्रमिक भी देते हैं।
आजकल अनेक विषयों में अपने-अपने क्षेत्र में लेखक क्षेत्र से जुड़े लेखकों की माँग इस क्षेत्र में अधिक है लेकिन इसमें साहित्यिक प्रतिबद्धता के कारण वही फीचर लेखक ही सफलता की ऊँचाइयों को छू सकता है जिसकी संवेदनात्मक अनुभूति की प्रबलता और कल्पना की मुखरता दूसरों की अपेक्षा अधिक हो।
प्रश्न 1.
फीचर क्या है? बताते हुए फीचर एवं समाचार में कोई तीन अन्तर लिखिए।
उत्तर :
फीचर क्या है-इस सम्बन्ध में कुछ विद्वान् 'मनोरंजक ढंग से लिखे गये प्रासंगिक लेख' को फीचर मानते हैं तथा कुछ इसे 'विविध क्षेत्र की हलचलों का शब्द-चित्र' बतलाते हैं । वस्तुतः फीचर सामाजिक घटनाओं के पूर्वापर सम्बन्धों एवं सम्भावनाओं की रोचक व्याख्या या कलात्मक प्रस्तुतीकरण होता है।
फीचर एवं समाचार में पर्याप्त अन्तर होता है। इनमें तीन अन्तर ये हैं-
प्रश्न 2.
फ़ीचर की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर :
फ़ीचर पत्रकारिता की अत्यन्त आधुनिक विधा है। भले ही समाचार पत्रों में समाचार की प्रमुखता अधिक होती है। लेकिन एक समाचार-पत्र की प्रसिद्धि और उत्कृष्टता का आधार समाचार नहीं होता बल्कि उसमें प्रकाशित ऐसी सामग्री से होता है जिसका सम्बन्ध न केवल जीवन की परिस्थितियों और परिवेश से सम्बन्धित होता है प्रत्युत् वह जीवन की विवेचना भी करती है।
समाचारों के अतिरिक्त समाचार पत्रों में मुख्य रूप से जीवन की नैतिक व्याख्या के लिए 'सम्पादकीय' एवं जीवनगत् यथार्थ की भावात्मक अभिव्यक्ति के लिए 'फ़ीचर' लेखों की उपयोगिता असंदिग्ध है। 'फ़ीचर' का स्वरूप कुछ सीमा तक निबन्ध एवं लेख से निकटता रखता है, लेकिन अभिव्यक्ति की दृष्टि से इनमें भेद होने के कारण इनमें पर्याप्त भिन्नता स्पष्ट दि
फीचर-लेखन के उदाहरण -
प्रश्न 1.
निम्नांकित विषयों में से किसी एक विषय पर फीचर लिखिए :
(अ) फिल्म-जगत् की शान : अमिताभ बच्चन
(ब) रेल दुर्घटना
(स) विद्यालय का खेल-मैदान।
उत्तर :
(अ) फिल्म-जगत् की शान : अमिताभ बच्चन अभिनय-कला द्वारा समस्त घटनाओं को साकार-सजीव प्रस्तुत करने में चलचित्र-संसार या फिल्म-जगत् का सर्वोपरि महत्त्व है। बीसवीं शताब्दी में फिल्म-जगत् में अनेक चमत्कारी आविष्कार हुए, सवाक् टेक्नीकलर फिल्मों के साथ ही सुपरस्टारों का उदय हुआ। ऐसे सुपरस्टार रूप में अमिताभ बच्चन को समकालीन महान् अभिनेता और महानायक माना जाता है।
कविवर हरिवंशराय बच्चन के ज्येष्ठ पुत्र, कवित्य प्रतिभासम्पन्न पिता सुयोग्य तनय और अनेक फिल्मों में अविस्मरणीय अभिनय कर प्रसिद्धि अर्जित करने वाले अमिताभ बच्चन को मुम्बई फिल्म-जगत् की शान माना जाता है। वैसे उनकी कला को सारे संसार में सम्मान प्राप्त है। ढलती अवस्था में भी अभिनय के साथ सामाजिक जीवन में निरन्तर सक्रिय रहने से अमिताभ बच्चन आज फिल्म-संसार के अनुपम प्रतिमान माने जाते हैं।
(ब) रेल दुर्घटना दुर्घटना तो सदा भयानक ही होती है, फिर रेल दुर्घटना क्या कहें, इससे अनेक लोग जिन्दगीभर के लिए अपाहिज हो जाते हैं, उनके हाथ-पैर कट जाते हैं। हमारे देश में कुछ रेल दुर्घटनाएँ इतनी हृदय विदारक होती हैं कि उनका विवरण देना भी कठिन लगता है। अभी कुछ दिनों पूर्व अजमेर से आगरा जाने वाली रेलगाड़ी भरतपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।
उस दुर्घटना में रेल के तीन डिब्बे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए, जिनमें चालीस लोग अकाल मौत के शिकार हुए और पचास से अधिक लोगों के अंगभंग हो गये। वे चिन्ताजनक धायलों के रूप में अस्पतालों में जिन्दगी-मौत से जूझते रहे। यात्रियों का कीमती सामान नष्ट हुआ। रेलवे विभाग का भारी नुकसान हुआ। ऐसी भयानक दुर्घटनाओं पर कब नियन्त्रण लग सकेगा और कब तक यात्रियों का जीवन सुरक्षित हो पायेगा, इस पर रेलवे को तुरन्त कारगर उपाय करने चाहिए।
(स) विद्यालय का खेल - मैदान विद्यालय में खेल का मैदान अवश्य होता है। वह खेल का मैदान चाहे छोटा हो या बड़ा, परन्तु उससे प्रत्येक विद्यार्थी जुड़ा रहता है। खेलने में रुचि रखने वाला तो उसमें खेलता है, परन्तु खेलने में रुचि न रखने वाला भी उसमें चहलकदमी करता ही है तथा साथियों को खेलते देखकर अपना मनोरंजन करता है।
विद्यालय के खेल-मैदान में फुटबाल, वालीबॉल, हॉकी, क्रिकेट आदि के खेल चलते रहते हैं। कभी-कभार लम्बी कूद, ऊँची कूद, दौड़ आदि अनेक तरह की प्रतियोगिताएँ भी आयोजित होती हैं। वैसे भी उसमें विद्यार्थियों का दौड़ना-भागना, चहलकदमी करना एवं ताजगी लेने के लिए घूमना आदि लगा ही रहता है। इस तरह विद्यालय के खेल मैदान से उनके अनेक अनुभव जुड़े रहते हैं, जो जिन्दगीभर अविस्मरणीय बन जाते हैं।
प्रश्न 2.
निम्नांकित विषयों में से किसी एक विषय पर फीचर लिखिए
(अ) जंक फूड की बढ़ती घुसपैठ
(ब) कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और विकासशील देश
(स) राष्ट्रीय पुरस्कारों में राजनीति।
उत्तर :
(अ) जंक फूड की बढ़ती घुसपैठ वर्तमान भौतिकतावादी यान्त्रिक जीवन में अनेक कुप्रचलन बढ़ रहे हैं। जंक-फूड भी ऐसा ही गलत चलन है। जंक अर्थात् अनुपयोगी वस्तु, स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद, उसे ही भोज्य पदार्थ रूप में अपनाना कहाँ तक ठीक है! परन्तु डिब्बा बन्द तैयार भोज्य-पदार्थों, रसदार चीजों के साथ ही पिज्जा-बर्गर आदि नये मिलावटी उत्पादों का बाजार निरन्तर फैल रहा है। बाजारों में तरह-तरह के पैक्ड खाद्य-पदार्थों की खपत निरन्तर बढ़ रही है।
इस तरह जंक फूड की बढ़ती घुसपैठ से आम जनता, विशेषकर युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। जंक फूड़ से लोगों में मोटापे की समस्या बढ़ती जा रही है। घर की तरह बाहर का भोजन साफ-स्वच्छ नहीं होता है। वह गली-सड़ी सब्जियों से बनाया जाता है और उसे खाकर हम बीमार पड़ जाते हैं। इसमें कैलेस्ट्रोल की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है जिससे हृदय से जुड़े रोग हो जाते हैं।
(ब) कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और विकासशील देश विश्व के तेल उत्पादक देश आर्थिक जगत् में अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए कच्चे तेल को हथियार रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। वे कच्चे तेल की कीमतें निरन्तर बढ़ा रहे हैं, इससे कच्चा तेल आयात करने वाले विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। उन देशों में महँगाई बढ़ रही है, घाटे की अर्थव्यवस्था चल रही है और विकास-दर नहीं बढ़ रही है।
विश्व बैंक तथा विकसित देशों से ऋण लेकर वे अपना काम चला रहे हैं। सारे देश भारत में भी कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से बुरा असर पड़ रहा है। देश में महँगाई बढ़ने का प्रमुख कारण भी यही है। कच्चे तेल की कीमतें ऐसे ही बढ़ती रहीं तो सरकार को पेट्रोलियम और डीजल पर करों में कटौती करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है। अतः राजकोषीय सन्तुलन बिगड़ सकता है और मुद्रास्फीति में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
(स) राष्ट्रीय पुरस्कारों में राजनीति भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, पद्मभूषण, भारतरत्न अथवा खेल-सम्बन्धी विविध पुरस्कार दिये जाते हैं। इन पुरस्कारों के लिये योग्यता के मानदण्ड निर्धारित हैं, परन्तु राजनीति इनमें भी चलती है। किसी को मरणोपरान्त भी विशिष्ट पुरस्कार विलम्ब से दिये जाते हैं और किसी को तुरन्त दिये जाते हैं।
सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद तथा मेजर ध्यानचन्द जैसे प्रतिष्ठित लोग राष्ट्रीय पुरस्कार-वितरण में राजनीति के शिकार हुए हैं। इसी प्रकार अन्य कई लोग राष्ट्रीय पुरस्कारों से उपेक्षित हैं । राजनीति का ऐसा स्वार्थी-अन्यायी रूप असहनीय है। अगर राष्ट्रीय, साहित्यिक और फिल्म पुरस्कारों में भी राजनीतिकरण होने लगा तो इनका रहा-सहा महत्त्व भी जाता रहेगा। राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्वायत्तता पर विचार किया जाना चाहिए।
प्रश्न 3.
निम्न विषयों में से किसी एक पर फीचर लिखिए-
(अ) उपभोक्तावाद और मध्यम वर्ग
(ब) राष्ट्र उत्थान में युवाओं की भूमिका
(स) कटते जंगल घटते मंगल।
उत्तर :
(अ) उपभोक्तावाद और मध्यम वर्ग इस अर्थ-प्रधान युग में बाजारवाद और उपभोक्तावाद का खूब प्रसार हो रहा है। इसने भारतीय संस्कृति और मानवता को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया है। इससे क्रय-शक्ति रखने वाला उच्च वर्ग भले ही प्रसन्न है, परन्तु मध्यम-निम्न वर्ग ठगा और ठगाया जा रहा है। प्रतिवर्ष पन्द्रह मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस आयोजित होता है और उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए कानूनी व्यवस्था भी है, परन्तु बाजार का जादू ही कुछ ऐसा है कि उससे मध्यम वर्ग बच नहीं पाता है।
वह तो बैंक से या अन्य स्रोतों से ऋण लेकर भौतिक सुविधाओं की सामग्री जुटाने के लिए लालायित हो जाता है। लोक-लुभावन विज्ञापनों से उपभोक्तावाद बढ़ता जा रहा है और मध्यम वर्ग पिस रहा है। वर्तमान काल में मध्यम-निम्न वर्ग की यह नियति बन गई है। इनका अतिरिक्त धन जो सेवाकार्यों में खर्च हुआ करता था, उपभोक्तावाद के चलते अब वह निजी दिखावे में खर्च हो रहा है। उपभोक्तावाद मध्यम निम्न वर्ग में महँगी और गैर जरूरी वस्तुओं की भख जगाता है, जिन्हें हासिल करने के लिए व्यक्ति कुछ भी कर गुजरता है।
(ब) राष्ट्र उत्थान में युवाओं की भूमिका युवा देश के कर्णधार होते हैं, समाज का भविष्य उन्हीं पर निर्भर होता है। जिस राष्ट्र के नवयुवक जागरूक, कर्तव्यपरायण, चरित्रवान्, नैतिकता से मण्डित और मानवीय मूल्यों के पक्षधर होते हैं, वह देश या राष्ट्र समुन्नत हो जाता है। राष्ट्र-उत्थान में युवाओं की अहम भूमिका रहती है। वे क्रान्ति, जोश, साहस, त्याग-बलिदान और आत्मशक्ति से सम्पन्न होते हैं। युवा न केवल आज का साथी है बल्कि कल का नेता भी है। युवा सीखने, कार्य करने और प्राप्त करने के लिए ऊर्जा और उत्साह से भरा है।
वे सामाजिक अभिनेता हैं जो समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन और सुधार लाने के लिए प्रदर्शन कर सकते हैं। विश्व के जिन देशों के नव-निर्माण एवं उन्नति में युवाओं का प्रमुख योगदान रहा है, वे देश। आज वैभव-सम्पन्न हैं, परन्तु चरित्रहीन, आलसी, अनुद्यमी, अनुत्तरदायी एवं भौतिकता से विमुग्ध युवा न तो अपना और न अपने समाज एवं राष्ट्र का भला कर पाते हैं।
(स) कटते जंगल घटते मंगल जंगल का आशय है प्राकृतिक सुषमा, वृक्षावली, हरीतिमा का प्रसार, नाना जाति के पशु-पक्षी तथा शुद्ध प्राणवायु। जंगल का सम्बन्ध पर्यावरण-रक्षा से है, परन्तु वर्तमान में अतिशय जनसंख्या वृद्धि से, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की प्रवृत्ति से जंगल तीव्र गति से कट रहे हैं। इमारती लकड़ी, ईंधन तथा कच्चे माल की खातिर, यातायात के साधनों और आवास-विकास के कारण जंगल काटे जा रहे हैं।
जंगलों के पेड़ जहरीली गैसों को सोखने की क्षमता रखते हैं। जैसे-जैसे जंगल कटते जाएँगे वैसे-वैसे वायु विषैली होती जाएगी। फलस्वरूप पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ने लगा है, प्राकृतिक सौन्दर्य मिट रहा है, धरती पर तापमान बढ़ रहा है, वन्य-जीवों का जीवन समाप्त हो रहा है और मानव-मंगल का ह्रास दिखाई दे रहा है। नाना कारणों से कटते जंगल मानव जीवन के लिए अमंगलकारी बन रहे हैं। यह चिन्तनीय एवं ज्वलन्त समस्या है। जंगल काट कर हम मनुष्य अपने विनाश को स्वयं बुला रहे हैं। अभी भी समय है कि हम सचेत हो जाएँ।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर फीचर लिखिए -
1. भारत में किसानों की दुरवस्था
अथवा
कृषकों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति
2. शैक्षणिक भ्रमण
3. राष्ट्र-विकास में काले धन का उपयोग।
उत्तर :
1. भारत में किसानों की दुरवस्था
अथवा
कृषकों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति हाथों में कुदाली-फावड़ा, दुबला-पतला, उदास, निराशाग्रस्त और खेत की मेंढ़ पर बुत-सा खड़ा - यही है किसान, जिसका साहूकार, जमींदार, अनाज के व्यापारी एवं भूमाफिये शोषण-उत्पीड़न करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं और अवर्षण, बाढ़, फसली रोग आदि जिसके जीवन को हताशा से आक्रान्त करते हैं, तब सब ओर से निराश किसान आत्महत्या को विवश हो जाता है।
किसानों की दुरवस्था का समाधान किसी के पास नहीं है। कर्ज पर कर्ज की मार और सरकारी-गैर सरकारी स्तर पर पनप रहा भ्रष्टाचार किसान को इतना व्यथित कर देता है कि वह आत्महत्या करना ही अन्तिम उपाय मानता है। इस तरह किसानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है।
2. शैक्षणिक भ्रमण व्यावहारिक ज्ञानार्थ विद्यालयों में शैक्षणिक भ्रमण का विशेष महत्त्व है। इस निमित्त विद्यालयों के छात्र-समूह, कक्षाध्यापकों के मार्गदर्शन में ऐसे स्थानों पर भ्रमण करने जाते हैं, जहाँ उन्हें व्यावहारिक ज्ञान भी मिले और मनोरंजन भी हो सके। इसके अतिरिक्त छात्रों में समूह में रहने की प्रवृत्ति, नायक बनने की क्षमता तथा आत्मविश्वास एवं भाईचारे की भावना प्रबल होती है। शैक्षणिक भ्रमण के लिए हमारी कक्षा के सभी छात्र रणथम्भौर अभयारण्य में गये।
रणथम्भौर के अभयारण्य में शेर बहुतायत में देखे जाते हैं। उनके अलावा नील गायें, बारहसिंगा, जंगली सुअर, काले हिरण, मोर आदि पशु-पक्षी यहाँ काफी तादाद में हैं। रणथम्भौर के मध्य भाग में ऐतिहासिक किला तथा महलों के अवशेष राजस्थानी शौर्य और संस्कृति के परिचायक हैं। इस प्रकार रणथम्भौर अभयारण्य का भ्रमण हमारे लिए काफी ज्ञानवर्द्धक एवं उत्साहजनक रहा।
3. राष्ट्र-विकास में काले धन का उपयोग गाँधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और योगगरु बाबा रामदेव के आन्दोलनों से यह रहस्योदघाट कि देश में काला धन राष्ट्रीय सम्पदा से भी अधिक है। कुछ काला धन देश में ही छिपाकर रखा गया है तो ज्यादा काला धन विदेशी बैंकों में रखा गया है। यह काला धन उन राजनीतिज्ञों, धनपतियों तथा बड़े नौकरशाहों का है, जिन्होंने भ्रष्टाचार से रातोंरात असीमित धनार्जन किया है।
यदि यह सारा काला धन देश में वापस आ जाये और इसका उपयोग जन-हित में किया जाये, तो भारत की गरीबी तत्काल दूर हो सकती है, महँगाई पर पूरा नियन्त्रण लग सकता है और समस्त विकास योजनाओं का सुचारु संचालन हो सकता है। वर्तमान में सरकार काला धन अधिनियम, बेनामी लेनदेन (संशोधन) अधिनियम, आय घोषणा योजना, विमुद्रीकरण, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसे कदमों के माध्यम से काला धन सृजन रोकने के प्रयास कर रही है।
प्रश्न 5.
निम्न में से किसी एक विषय पर फीचर-लेखन कीजिए -
1. मोबाइल केन्द्रित जीवन
2. शहर में बढ़ता प्रदूषण
उत्तर :
1. लोगों से लेकर रिक्शे-टेम्पों वाले, ट्रक-बस-कार वाले, सामान्य वर्ग की महिलाएं, छात्र एवं कामगर आदि सभी मोबाइल का उपयोग जीवन के अभिन्न अंग की तरह करने लगे हैं। चाहे शिक्षा-क्षेत्र हो, खेलकूदों के समाचार जानने हों, मनचाहे गाने सुनने हों, फोटो खींचना या सन्देश भेजना हो, सब काम मोबाइल से सध जाते हैं।
अब इन्टरनेट, ई-मेल शापिंग, बैंकिंग आदि अनेक कार्य मोबाइल से हो जाते हैं । इस तरह वर्तमान में सारी जीवनचर्या मोबाइल केन्द्रित हो गई है। मोबाइल का आविष्कार हमें सशक्त बनाने के उद्देश्य से किया गया था लेकिन इसकी लत कई गम्भीर समस्याओं का कारण बनती है जैसे सिरदर्द, आँखों की रोशनी कमजोर होना, नींद न आना, सामाजिक अलगाव, तनाव, रिश्तों में दूरियाँ, वित्तीय समस्याएँ आदि।
2. शहर में बढ़ता प्रदूषण
अथवा
नगरों का दमघोंटू वातावरण नगरों में अनेक रिहायशी बस्तियाँ, कॉलोनियाँ एवं उपनगर, उनमें भव्य बहुमंजिले भवन तथा उनमें घनी आबादी का प्रसार देखकर वहाँ के व्यस्ततम जीवन का पता चल जाता है। सड़कों पर कारों, बसों तथा अन्य यान्त्रिक वाहनों की रेलपेल, उनसे उत्सर्जित विषैली गैस-धुआँ और कर्णकटु ध्वनियाँ, ये सब वहाँ के वातावरण को दमघोंटू बना देती हैं। इस सन्दर्भ में जयपुर नगर के चांदपोल बाजार और अजमेंरी गेट क्षेत्र में जाकर देखिए, वहाँ पर कितना प्रदूषण फैल रहा है तथा कितना दम घुटने लगता है।
कंकरीट से पटी हुई सड़कों एवं गलियों में सब ओर प्रदूषित वायु का फैलाव रहता है। इन सब कारणों से नगरों का वातावरण दमघोटू रहता है। प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार ने आवश्यक कदम उठाए हैं, लेकिन देश की जनता को भी जागरूक रहने की जरूरत है। आस-पास की साफ-सफाई और कूड़े को किसी भी स्थल पर न फेंकना जैसे छोटे कदम हर व्यक्ति को उठाने होंगे। निजी वाहनों का कम से कम उपयोग करें और अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएँ।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर फीचर लिखिए।
उत्तर :
1. बस्ते का बढ़ता बोझ कौन है ऐसा? बढ़ते बस्ते के बोझ से परेशान नहीं है। हाथों की मासूमियत, कन्धों की कोमलता पर लदा पुस्तकों से भरा बैग बेचारे बच्चे की क्या हालत कर देता है? आज जिस गली, मोहल्ले या चौराहे पर सुबह के समय देखिए, हर जगह छोटे-छोटे बच्चों के कन्धों पर भारी बस्ते लदे हुए दिखाई देते हैं। वह आसानी से बस्ते के बोझ को उठाते हुए अपनी रीढ़ की हड्डी को भी सीधा नहीं कर पाता है। आज की पढ़ाई बच्चे पर किताबों का इतना बोझ लाद देती है कि वह खाना और खेलना भी भूल जाता है। उसका भूलना भी जायज है।
एक तो पुस्तकों का बोझ और दूसरी ओर माता-पिता की महत्वाकांक्षाएँ। इन दोनों के बीच एक मासूम का बचपन दब कर रह जाता है। यह स्थिति आज प्रत्येक स्कूली बच्चे की है। बस्ते के बढ़ते बोझ से उसके मानस पर क्या बीतती होगी, यह वे ही जानते हैं। अधिक बोझ के कारण उसका शारीरिक विकास भी कम होता है। छोटे-छोटे बच्चों के नाजुक कन्धों पर लदे भारी-भारी बस्ते उनकी बेबसी को ही प्रकट करते हैं।
2. शिक्षा का बदलता स्वरूप स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद देश में शिक्षा का विकास संस्थागत रूप में और समाज-कल्याण रूप में हुआ, परन्तु पिछले तीन दशकों से शिक्षा का स्वरूप पूर्णतया व्यावसायिक हो गया है। इस कारण बड़े-बड़े संस्थान खड़े हो गये हैं, जिनमें भारी शिक्षण-शुल्क देकर शिक्षा प्राप्त होती है। हर नुक्कड़ एवं चौराहे पर कोचिंग सेण्टर या इन अब शिक्षा का बदलता स्वरूप माध्यमिक कक्षाओं से ही प्रारम्भ हो जाता है।
व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के प्रति आज का शिक्षार्थी अधिक जागरूक हो गया है। शिक्षा की दिशा में हमारी सोच अब इतनी व्यावसायिक और संकीर्ण हो गई है कि हम सिर्फ उसी शिक्षा की मूल्यवत्ता पर भरोसा करते हैं जो हमारे सुख-सुविधा का साधन जुटाने में हमारी मदद कर सके, बाकी चिन्तन को हम ताक पर रखकर चलने लगे हैं। अब शिक्षा का अर्थ रह गया है परीक्षा, अंक प्राप्ति, प्रतिस्पर्धा तथा व्यवसाय।
3. पॉलीथीन अब सहनीय नहीं आज बाजार जाना हो, जेब में पैसा हो तो थैला लेकर जाने की कोई जरूरत ही नहीं। यह झंझट तो पहले थी, जब पॉलीथीन का इतना प्रचलन नहीं था। बाजार पहुँचिए। दुकानदार खरीदी हुई चीज को पॉलीथीन में रखकर दे देगा। हाथ से पकड़कर घर ले आइए। घर पहुँचते ही सामान को पॉलीथीन से बाहर निकालिए और उसे जहाँ चाहे वहाँ फेंकिए।
बाहर फेंका गया पॉलीथीन का बैग नाली में पड़कर पानी को रोकता है। ये बिना बाढ़ के मोहल्ले में बाढ़ का दृश्य उपस्थित कर देते हैं। इससे गन्दगी फैलती है, धरती की उर्वरा-शक्ति खत्म होती है। गाय आदि पशु पॉलीथीन खाकर मर जाते हैं। पानी अशद्ध हो जाता है। यह कैंसर आदि रोगों को फैलाता है। अतः अनेक दुष्प्रभावों के कारण पॉलीथिन हानिकारक और असहनीय हो गया है।
4. महिलाओं के बढ़ते कदम एक तरफ हवाई चप्पल और सूती साड़ी पहने ममता बनर्जी, दूसरी तरफ अनूठी डिजायन वाली साड़ी से सजी सँवरी जयललिता, सबसे बड़े राजनीतिक गठबन्धन की नेता सोनिया गांधी, बसपा की कमान संभालती मायावती, राजस्थान की मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे, ये वे प्रमुख महिलाएँ हैं, जो पुरुषों के वर्चस्व वाली दुनिया की राजनीति को बखूबी सँभाल रही हैं। इसी प्रकार अन्य अनेक महिलाएँ उल्लेखनीय हैं, जो शिक्षा, बैंकिंग, प्रशासनिक तथा व्यावसायिक क्षेत्रों में महिलाओं का सम्मान बढ़ा रही हैं।
अब प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं का वर्चस्व बढ़ रहा है और उनके कदम नये इतिहास की ओर बढ़ रहे हैं। भगवान की मूरत, सहनशक्ति की सूरत और देश दुनिया का अस्तित्व है महिला। आज उच्च से उच्च शिक्षा ग्रहण कर वह पुरुष से आगे कदम बढ़ा रही है। छोटी इकाई पंचायतों में सरपंच पद पर और राष्ट्रपति तक के पद की शोभा बढ़ाई है इसने। चूल्हा-चौका तक सीमित रहने वाली नारी अब अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई है। जिससे एक सशक्त परिवार, समाज और देश का निर्माण हो रहा है।
5. लादेन खत्म हुआ-आतंकवाद नहीं ओसामा बिन लादेन मारा जा चुका है, परन्तु आतंकवाद अभी जीवित है। ओसामा बिन लादेन नृशंस, क्रूर एवं कट्टरतावादी आतंकी था। वह पहले तो सारे पाकिस्तान को अपने कब्जे में करना चाहता था और फिर भारत को। उसकी योजना के अनुसार ही प्रतिदिन पाकिस्तानी सीमा से भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ हो रही थी और यहाँ पर नरसंहार का षड्यन्त्र रचा जा रहा था।
खैर, ओसामा बिन लादेन मारा गया, परन्तु उसकी मौत के बाद भारत में अन्य आतंकवादी संगठन जिस तरह आतंकी हमले करवा रहे हैं, इससे यही कहा जा सकता है कि लादेन का खात्मा भले ही हो गया, परन्तु अभी आतंकवाद खत्म नहीं हुआ, क्योंकि आतंकवाद निरन्तर फैल रहा है।
6. भारतीय संगीत की पहचान : आशा भौंसले कहते हैं प्रतिभाएँ गढ़ी नहीं जातीं, वे स्वयं अवतरित होती हैं। प्रतिभा को जन्मजात ईश्वरीय देन माना जाता है और वह सामान्य व्यक्ति में भी स्वतः उबुद्ध हो जाती है। भारतीय संगीत के क्षेत्र में लता मंगेशकर तथा आशा भौंसले ऐसी उभरीं कि कोई गायक उनके आस-पास नजर नहीं आता।
आशा भौंसले मास्टर दीनानाथ मंगेशकर की पुत्री तथा लता मंगेशकर की छोटी बहिन हैं। महज दस वर्ष की उम्र में ही आशा को गायन का पहला मौका मिला, फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और निरन्तर आगे बढ़ती हुई संगीत की विशिष्ट कलाकार बन गईं। भारतीय संगीत की विशिष्ट पहचान के रूप में आशा भौंसले का अवदान संगीत-प्रेमियों के लिए सदा श्रद्धास्पद रहा है।
7. क्रिकेट का भगवान् : भारतरत्न सचिन तेन्दुलकर। शतकों, अर्द्धशतकों, सर्वाधिक रनों, एक-दिवसीय मैचों एवं लम्बी पारियों का अटूट रिकार्ड बनाने वाले और लगभग दो दशक से क्रिकेट जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले सचिन तेन्दुलकर को लोग क्रिकेट का भगवान् कहते हैं, तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। तेन्दुलकर विश्व क्रिकेट का वह चेहरा है जिसे पिछले बीस सालों से करोड़ों खेल-प्रेमी अपनी आँखों का तारा बनाए हुए हैं, बल्लेबाजी का शायद ही कोई ऐसा रिकॉर्ड हो जो इस महानायक की पहुँच से दूर हो।
सचिन तेन्दुलकर अद्वितीय खिलाड़ी के रूप में सम्मानित एवं प्रशंसित रहे। उन्होंने क्रिकेट से संन्यास लिया, तो संसद के उच्च सदन-राज्यसभा के लिए मनोनीत सांसद बने, खेल-क्षेत्र में महान् योगदान को लेकर सर्वोच्च उपाधि 'भारतरत्न' से नवाजा गया। वस्तुतः अपनी निष्ठा, प्रतिबद्धता एवं सहजता आदि से वे भारत के सच्चे रत्न हैं।
8. भ्रष्टाचार देशद्रोह का पर्याय मनी लाउंडरिंग, करोड़ों रुपये की कर चोरी और आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों से सम्पर्क रखने वाले लोगों को लक्ष्य कर भारत के उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाले ऐसे भ्रष्टाचार को देशद्रोह का अपराध मान लेना चाहिए और ऐसे व्यक्ति पर कठोर दण्डात्मक कार्यवाही होनी चाहिए।
इसी प्रकार सरकारी पद पर रहकर गलत तरीके से धनार्जन कर उसे गुपचुप रूप से विदेशी बैंकों में जमा करना भी देशद्रोह का अपराध है। वर्तमान में भ्रष्टाचार देश के हितों को हानि। है, इस कारण यह देशद्रोह का जघन्य अपराध है। सामान्य जनता भी भ्रष्टाचार की प्रबल विरोधी है। इसलिए भ्रष्टाचार पर दण्डात्मक प्रावधान हो और भ्रष्टाचारियों को देशद्रोही मानकार दण्डित किया जावे।
9. विनाश की कीमत पर बिजली विकसित देशों में परमाणु बिजलीघरों का जाल फैला हुआ है। भारत में भी बड़ी मात्रा में बिजली उत्पादन की दृष्टि से लगभग नये इकतीस परमाणु रिएक्टरों की स्थापना होगी, जो कि अधिकतर समुद्र के किनारे घनी आबादी वाले इलाकों में लगेंगे।
इस तरह बिजली उत्पादन तो बढ़ेगा, परन्तु यदि जापान के फुकुशिमा या रूस के चेर्नोबिल की तरह कोई परमाणु त्रासदी हो गई, तो उससे कितना विनाश होगा। वस्तुतः विकास की अंधी दौड़ में कोई ऐसा महाविनाश नहीं चाहता है। परन्तु परमाणु रेडिएशन से होने वाले विनाश की कल्पना भी जब भयंकर त्रासदी लगती है, तो परमाणु रिएक्टरों की स्थापना कर विनाश की कीमत पर बिजली उत्पादन करना कहाँ तक उचित है।
10. नयी पीढ़ी के घटते संस्कार आज की नयी पीढ़ी अपनी संस्कृति एवं संस्कारों को त्याग कर एकदम मॉडर्न बनकर रहने में ही अपनी शान समझती है। नयी पीढ़ी के सामने पुरानी पीढ़ी के लोग दकियानूस, नासमझ और जिन्दगी का असली मजा न. ले सकने वाले हैं। युवा पीढ़ी माता-पिता का सम्मान नहीं करती, परिवार के बड़े-बूढ़ों का कहना नहीं मानती, सब कामों में अपनी मर्जी और अनियन्त्रित जीवनचर्या को महत्त्व देती है।
युवा पीढ़ी मुन्नाभाई एमबीबीएस की तर्ज पर अच्छे-बुरे सब कामों को जायज मानकर अपना भविष्य ढालना रा दोष उनकी संस्कारहीनता का है, अन्धानुकरण एवं अपसंस्कृति का है। वे अच्छे संस्कार न तो सीखना चाहते हैं और न अपनाना चाहते हैं। नयी पीढी की यह स्थिति अतीव चिन्तनीय है
11. महानगरों में बढ़ते अपराध दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, जयपुर आदि सभी महानगरों में भौतिकता बढ़ रही है। आलीशान इमारतें, बहुमंजिले अपार्टमेंट, चमचमाती कीमती कारें, तो हैं ही, उद्योग-धन्धे तथा आजीविका के भी अनेक साधन हैं । परन्तु सभी तरह की सुविधाओं की वृद्धि के साथ ही इनमें अपराध भी रोजाना बढ़ रहे हैं।
इस कारण इन महानगरों में आये दिन लूट-. पाट, छीना-झपटी, फरेब, काला धन्धा, बच्चों के अपहरण, बलात्कार आदि अपराध आये दिन देखने-सुनने में आ रहे हैं। अब महानगरों में हर अपरिचित आदमी सन्देहास्पद लगता है और सफेदपोश रूप में कौनसा अपराधी घूम रहा है, इसका पता नहीं चलता है। इस तरह महानगरों में नये-नये रूपों में अपराध निरन्तर बढ़ रहे हैं, उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।
12. महँगाई डायन का बढ़ता आतंक
अथवा
महँगाई की निरन्तर वृद्धि वर्तमान में महँगाई सुरसा के मुख की तरह विकराल रूप में फैल रही है। महँगाई डायन के सामने सभी लाचार, असमर्थ और विवश हैं। सरकार की गलत अर्थनीति, माँग के अनुरूप उत्पादन की कमी, कालाबाजारी, मुनाफाखोरी, भ्रष्टाचार और पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि आदि अनेक ऐसे प्रमुख कारण हैं, जिससे महँगाई लगातार बढ़ रही है।
सारे सरकारी प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं और आम जनता की आर्थिक तंगी बढ़ रही है और रोटी कपड़ा-मकान के लिए सब परेशान हैं। सामाजिक जीवन में महँगाई-वृद्धि से आपाधापी मच रही है, अपराधी प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। विषमता की खाई और चौड़ी-गहरी हो रही है। इस तरह महंगाई की मार से आम जन-जीवन अत्यधिक पीड़ित-व्यथित है।
13. बेटों से कम नहीं बेटियाँ वर्तमान में आये दिन समाचार देखने-पढ़ने में आते हैं कि बेटियाँ अब सामाजिक वर्जना एवं रूढ़ परम्परा को तोड़ रही हैं। बेटियाँ बूढ़े माँ-बाप का सहारा बन रही हैं। बेटे न हों, परन्तु बेटियाँ हों तो भी माता-पिता की देखभाल हो जाती है। अभी कुछ दिनों पूर्व कोटपूतली के एक गाँव में पिचहत्तर वर्षीय विधवा का निधन हुआ।
उसके बेटे न थे, चार बेटियाँ हैं। ससुराल में माँ की मृत्यु का समाचार पाकर वे तुरन्त वहाँ गईं और माँ की अर्थी को कन्धा देकर श्मशान ले गईं। उन्होंने भीगी आँखों के बावजूद अन्त्येष्टि और अन्य कर्मकाण्ड किये। चारों बेटियों ने माँ का अन्तिम संस्कार करके साबित कर दिया कि बेटों से बेटियाँ किसी भी मायने में कम नहीं। ऐसे ही कई दृष्टान्त अन्यत्र भी देखे-सुने जाते हैं।
14. देश का विकास गाँवों पर निर्भर भारत कृषि-प्रधान और गाँवों का देश है। यहाँ की सत्तर प्रतिशत आबादी गाँवों में बसती है। गाँवों के विकास के लिए लगभग ढाई लाख ग्राम पंचायतें गठित हैं, परन्तु विकास के लिए स्वीकृत धन न तो समय पर उपलब्ध होता है और न पूरा मिलता है। इससे गाँवों की योजनाएँ कभी पूरी नहीं हो पाती हैं। फलस्वरूप गाँवों से पलायन हो रहा है और शहर बढ़ रहे हैं। गाँव ही प्राथमिक उत्पादों के केन्द्र हैं तथा इन्हीं पर देश की आर्थिकी टिकी हुई है।
गाँवों का स्थायी विकास होने से देश का विकास हो सकता है। इसलिए गाँवों के विकास एवं कल्याण पर विशेष ध्यान रहे, इसके लिए पंचायती एवं ग्रामीण विकास विभाग की सक्रियता नितान्त अपेक्षित है। गाँव में विकास की दृष्टि से शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। किसानों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार अधिक से अधिक छोटे व कुटीर उद्योगों की स्थापना करें। जिससे किसानों की स्थिति में कुछ सुधार हो सके।
15. आदिवासियों का जादुई संसार राजस्थान प्रदेश के उदयपुर-डूंगरपुर-बाँसवाड़ा के आदिवासी क्षेत्र अपनी विशिष्ट सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान रखते हैं। आदिवासियों के जीवन में लोककथाओं, भूत-भैरों और भूम्या देवताओं का खासा स्थान है। इसे अन्धविश्वास या रूढ़ परम्परा कहा जावे अथवा उनकी जातीय विशेषता, परन्तु इनके सामान्य जीवन में अनेक मानवेतर जीवों का विवरण मिलता है।
खासकर लोकदेवताओं और ऊपरी हवाओं को लेकर अन्धविश्वासों से भरी अनेक कथाएँ इनमें प्रचलित हैं । सुदूर वन्य-वीरान भागों में बसे लोगों की मानसिकता एवं सामाजिकता की जो स्थिति है, जो जादुई संसार है, उससे मुक्ति दिलाना अतीव कठिन कार्य है।
16. युवाओं में बढ़ती फैशनपरस्ती वर्तमान में भौतिकवादी प्रवृत्ति के व्यामोह में फैशनपरस्ती बढ़ती जा रही है। युवाओं में इसका विशेष लगाव है। वक्त के साथ बदलते फैशन पर यह पीढ़ी न सिर्फ नजर रखती है बल्कि उसे अपनाने में भी देर नहीं करती। वे फैशन के चक्कर में जायज एवं नाजायज सब सही मान रहे हैं। परम्परागत मान्यताओं एवं वर्जनाओं को त्यागकर युवा वर्ग फिल्मी हीरो या हीरोइन जैसे बन-ठन कर चलते हैं।
सौन्दर्य प्रसाधनों तथा विविध उत्पादक कम्पनियों के विज्ञापनों से भी फैशनपरस्ती को बढ़ावा मिल रहा है। कुछ लोग तो फैशन हेतु धनार्जन के गलत तरीके अपनाने से भी नहीं हिचकते हैं। सारे मानवीय आदर्श, उच्च संस्कार एवं आचार-विचार फैशनपरस्ती में दब गये हैं। समय के अनुसार स्वयं को ढालना ठीक है, परन्तु कोरे फ़ैशन के मोह में पड़कर स्वयं को अंधपतन की ओर धकेलना ठीक नहीं है।
17. दूरदर्शन और अपसंस्कृति। दूरदर्शन या टेलीविजन मनोरंजन का श्रेष्ठ साधन है। वर्तमान समय में देश में दूरदर्शन का महत्त्व काफी बढ़ गया है। इसके कारण भारतीय समाज दूरदर्शन का अनुसरण कर पश्चिमी संस्कृति या अपसंस्कृति की तरफ तीव्र गति से . आकर्षित हो रहा है। दूरदर्शन पर समाचारों के अतिरिक्त अनेक धारावाहिक, विज्ञापन एवं चलचित्र प्रदर्शित होते हैं।
अधिकतर विज्ञापनों और सीरियलों में जो दृश्य दिखाये जाते हैं, पात्रों की जो वेशभूषा दिखाई जाती है, वे सब भारतीय संस्कृति को हानि पहुंचा रहे हैं। नग्न एवं कामुक दृश्य, मारधाड़ एवं हिंसा के प्रसंग और मनगढन्त कथानकों के आचाररहित अभिनय आदि से ऐसा लगता है कि अब मानवीय मूल्य मर चुके हैं, भारतीय संस्कृति को पाश्चात्यानुकरण ने पूरी तरह दबा दिया है। दूरदर्शन पर प्रायोजकों की स्वार्थी व्यावसायिकता बढ़ने से नयी संस्कृति नहीं एक अपसंस्कृति ही फैल रही है।