RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

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RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 Notes धर्मनिरपेक्षता

→ परिचय 
लोकतांत्रिक राज्य में जब विभिन्न संस्कृतियाँ और समुदाय एक साथ रहते हों तो प्रत्येक के लिए समानता की गारंटी देना एक चुनौती बन जाता है। 'धर्मनिरपेक्षता' इसी चुनौती से निबटने का प्रयास है। 

→ धर्म निरपेक्षता क्या है?
वर्तमान में यूरोप के अनेक हिस्सों में गैर ईसाइयों के प्रति भेदभाव बरकरार है। भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी धार्मिक अल्पसंख्यकों की बदतर स्थिति ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।

→ धर्मों के बीच वर्चस्ववाद
भारतीय संविधान में सभी भारतीय नागरिकों को देश के सी भी भाग में आजादी और प्रतिष्ठा के साथ रहने का अधिकार दिया गया है, फिर भी वास्तविकता में आज भी यहाँ कई भेदभाव बरकरार हैं। धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के दो पक्ष हैं। इसका प्रथम पक्ष यह है कि यह अन्तर-धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है। द्वितीय पक्ष यह है कि यह अंत:धार्मिक वर्चस्व अर्थात् धर्म के अंदर छुपे हुए वर्चस्व का विरोध करता है।

RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता 

→ धर्म के अंदर वर्चस्व

  • कुछ लोग धर्म को जनसमुदाय के लिए अफीम मानते हैं। इनका मानना है कि जिस दिन सभी लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाएंगी वे खुशहाल हो जाएंगे तो धर्म स्वतः ही विलुप्त हो जाएगा।
  • हमारे सभी दुःख-दर्द हमारे हाथ में नहीं हैं। इनमें धर्म ही हमें सहारा और हिम्मत देता है। धर्मनिरपेक्षता इस बात को स्वीकार करती है। 
  • हमारे पास आज धर्मनिरपेक्षता की आम धारणा मौजूद है। यह धारणा धर्म से जुड़ी समस्याओं और भेदभावों के निदान में बहुत उपयोगी है। 
  • धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा नियामक सिद्धान्त है जो धर्म के भीतरी और बाहरी दोनों ही वर्चस्वों से रहित समाज का निर्माण करना चाहता है।

→ धर्म निरपेक्ष राज्य

  • धार्मिक भेदभाव रोकने का एक रास्ता यह हो सकता है कि हम आपसी जागरूकता के लिए एक साथ मिलकर कार्य करें।
  • एक राष्ट्र में धार्मिक वर्चस्व व भेदभावों को रोकने के लिए यह जरूरी होता है कि राज्यसत्ता किसी विशेष धर्म के प्रमुखों द्वारा संचालित नहीं होनी चाहिए।
  • यदि हमारे लिए शान्ति, स्वतन्त्रता और समानता का कोई महत्व है, तो धार्मिक संस्थाओं और राज्यसत्ता की संस्थाओं के बीच दूरी अवश्य होनी चाहिए।
  • वास्तव में धर्मनिरपेक्ष होने के लिए राज्यसत्ता को न केवल धर्म-संचालित होने से इंकार करना होगा बल्कि उसे किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से भी परहेज करना होगा।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य को उन सिद्धान्तों के प्रति ज्यादा झुका हुआ होना चाहिए, जो किसी धार्मिक स्रोत से उत्पन्न न हुए हों। इन सिद्धान्तों में शान्ति, धार्मिक स्वतन्त्रता इत्यादि को शामिल किया जा सकता है।

→ धर्म निरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल 

  • सभी धर्मनिरपेक्ष राज्यों में एक बात सामान्य होती है कि वे किसी भी विशेष धर्म की स्थापना से बचते हैं और धार्मिक कानूनों से संचालित नहीं होते हैं।
  • 20वीं सदी के प्रारम्भ में तुर्की में 'कमाल अतातुर्क' ने धर्मनिरपेक्षता के नये रूप को प्रस्तुत किया। यह धर्मनिरपेक्षता संगठित धर्म से दूरी बनाने की बजाय धर्म में हस्तक्षेप करके उसके विनाश का पक्ष प्रस्तुत करती थी।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य किसी धार्मिक संस्था एवं धर्म के आधार पर संचालित शिक्षण संस्थाओं को कोई वित्तीय मदद भी नहीं दे सकता।
  • यहूदियों को छोड़ दिया जाए तो बाकी अधिकांश पश्चिमी समाज काफी हद तक धार्मिक रूप से सजातीय थे।

→ धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल

  • पं. जवाहरलाल नेहरू ने भारत में धर्मनिरपेक्षता का आशय स्पष्ट करते हुए कहा था कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मतलब 'सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण' दिया जाना है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की नकल होने का आरोप लगाया जाता है। लेकिन वास्तव में भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप में भिन्न है। यह धर्म और राज्य के आपसी सम्बन्धों के विच्छेद के साथ-साथ सभी धर्मों के साथ समान आचरण पर भी बल देती है। धार्मिक विविधता के चलते भारत में पहले से ही अन्तर-धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति विद्यमान थी। यह धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है। 
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में विशिष्ट है क्योंकि पहले से व्याप्त भारतीय धार्मिक विविधता और पश्चिम से आए विचारों का इसमें उचित मिश्रण विद्यमान है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए यह सदैव जरूरी नहीं होता है कि वह धर्म की हर बात को एक जैसा सम्मान प्रदान करे। यदि कुछ बातें अमानवीय या गलत हैं तो धर्मनिरपेक्ष राज्य उनमें हस्तक्षेप कर सकता है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म से सैद्धान्तिक दूरी कायम रखने पर चलती है, जो हस्तक्षेप की सम्भावना भी उत्पन्न करती

RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

→ भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनाएँ
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना करने वाले इसे धर्म-विरोधी, पश्चिम से नकल की गई, अल्पसंख्यकों को अधिक बढ़ावा देने वाली, बहुत अधिक हस्तक्षेप करने वाली आदि बताते हैं परन्तु वास्तविकता में ये आलोचनाएँ अनुचित प्रतीत होती हैं।

→ धर्म - किसी व्यक्ति या वस्तु में सदा रहने वाली उसकी मूल वृत्ति, प्रकृति, स्वभाव, मूल गुण अथवा किसी जाति, वर्ग, पद आदि के लिए निश्चित किया हुआ कार्य या व्यवहार, कर्त्तव्य; धर्म कहलाता है।

→ धर्मनिरपेक्षता - किसी भी धर्म विशेष से दूर रहते हुए सभी धर्मों का समान आदर करना ही 'धर्मनिरपेक्षता' कहलाती है।
   
→ धार्मिक राष्ट्रवादी -वे लोग जो किसी धर्म के आधार पर पूरे राष्ट्र को संगठित करने और पहचान देने की बात करते हैं धार्मिक राष्ट्रवादी कहलाते हैं। जैसे पाकिस्तान को धार्मिक राष्ट्रवादियों द्वारा 'इस्लामिक राष्ट्र' के रूप में महिमामंडित किया जाता है।

→ धार्मिक अल्पसंख्यक - किसी राष्ट्र में विविध धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। जैसे— ईसाई, सिक्ख, हिन्दू, मुसलमान आदि। इनमें से कुछ अन्य की तुलना में कम संख्या में होते हैं। इन्हें ही धार्मिक अल्पसंख्यक कहते हैं। जैसे—भारत में ईसाई, सिक्ख, मुसलमान, जैन इत्यादि हिन्दुओं की तुलना में धार्मिक अल्पसंख्यक हैं।

→ धार्मिक वर्चस्व - धर्म की श्रेष्ठता को सभी पर थोपने की स्थिति, धार्मिक वर्चस्व कहलाती है।

→ रूढ़िवाद - वह वैचारिक एवं बर्ताव की स्थिति जिसमें सदियों से चली आ रही गलत/सही सभी प्रथाओं, रीतियों, परम्पराओं को ही सही माना जाता है। इनमें समय व आवश्यकता के अनुसार अपेक्षित बदलावों को भी स्वीकार नहीं किया जाता है।

→ अन्तर-धार्मिक - विविध धर्मों से सम्बन्धितं।

→ अंतः धार्मिक - एक ही धर्म के अन्दर के विविध पक्षों से सम्बन्धित होना।

→ अन्तर-सामुदायिक टकराव - विभिन्न समुदायों के बीच होने वाले टकराव।

→ धर्मतांत्रिक राष्ट्र - वह राष्ट्र जिसमें शासन व्यवस्था का संचालन पुरोहित वर्ग द्वारा किया जाये या धार्मिक नियमों के आधार पर शासन किया जाए, धर्मतांत्रिक राष्ट्र कहलाता है।

→ सर्व-धर्म-समभाव - सभी धर्मों के प्रति समान आदर सर्व-धर्म-समभाव कहलाता है। 

→ अल्पसंख्यकवाद - अल्पसंख्यकों को बहुत अधिक महत्व प्रदान किया जाना तथा ऐसा करते समय बहुसंख्यक लोगों के हितों की अनदेखी करना अल्पसंख्यकवाद कहलाता है।

RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

→ मुस्तफा कमाल अतातुर्क - तुर्की का तानाशाह शासक, मूल नाम मुस्तफा कमाल पाशा, इन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध के समापन के पश्चात एक तानाशाह के रूप में तुर्की का शासन सम्भाला। इन्होंने तुर्की को आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए आक्रामक कदम उठाए।

→ पं. जवाहरलाल नेहरू - भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े प्रमुख राजनेता एवं भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। पं. नेहरू ने भारतीय धर्मनिरपेक्षता का अर्थ—'सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण' देना बताया था।

Prasanna
Last Updated on Aug. 29, 2022, 3:57 p.m.
Published Aug. 29, 2022