These comprehensive RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 8 स्थानीय शासन will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Political Science Chapter 8 Notes स्थानीय शासन
→ परिचय
लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि स्थानीय स्तर पर स्थानीय मामलों की देखभाल करने वाली एक निश्चित सरकार हो।
→ स्थानीय सरकार क्यों?
- सन् 1993 में स्थानीय शासन की संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। इस कारण सम्पूर्ण भारत में बड़े पैमाने पर बदलाव की लहर चल पड़ी।
- गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन के नाम से जाना जाता है।
- स्थानीय शासन की मान्यता है कि स्थानीय ज्ञान और स्थानीय हित लोकतांत्रिक फैसला लेने के अनिवार्य घटक हैं।
- स्थानीय शासन लोगों के सबसे नजदीक होने के कारण उनकी समस्याओं का समाधान बहुत तीव्र गति से तथा कम खर्चे में हो जाता है। लोकतंत्र का अभिप्राय है सार्थक भागीदारी । जीवंत और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही सुनिश्चित करता है। स्थानीय शासन में आम नागरिक को उसके जीवन से जुड़े मसलों, जरूरतों और उसके विकास के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है।
- लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि स्थानीय स्तर पर किए जाने वाले कार्य स्थानीय लोगों और उनके प्रतिनिधियों के हाथों में रहने चाहिए।
- स्थानीय शासन मजबूत होने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होती है।
→ भारत में स्थानीय शासन का विकास
- प्राचीन भारत में अपना शासन स्वयं चलाने वाले ग्राम समुदाय सभा' के रूप में मौजूद थे।
- बाद में गाँव की इन सभाओं ने पंचायत का रूप ले लिया।
- आधुनिक समय में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद अस्तित्व में आए। उस समय लार्ड रिपन भारत का वायसराय था।
- लार्ड रिपन के समय स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय को मुकामी बोर्ड (Local Board) कहा जाता था।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सरकार से सभी स्थानीय बोर्डों को अधिक कारगर बनाने की मांग की।
- गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1919 के बनने के पश्चात् अनेक प्रांतों में ग्राम पंचायत का निर्माण हुआ।
- यही प्रवृत्ति सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बनने के बाद भी रही। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय महात्मा गाँधी ने आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण पर जोर दिया। गाँधीजी के अनुसार सत्ता का विकेन्द्रीयकरण ग्राम पंचायतों को मजबूत बनाकर ही किया जा सकता है। गाँधीजी के अनुसार आजादी की शुरुआत सबसे नीचे से होने पर प्रत्येक गाँव एक गणराज्य होगा।
- संविधान के 'नीति निर्देशक-सिद्धान्तों में कहा गया है कि देश की प्रत्येक सरकार अपनी नीति में स्थानीय शासन के विषय को एक निर्देशक तत्व मानकर चले।
→ स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन
- सन् 1992 में संविधान के 73वें व 74वें संशोधन के बाद स्थानीय शासन को मजबूत आधार प्राप्त हुआ।
- संविधान का 73वाँ संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से तथा 74वाँ संशोधन शहरी स्थानीय शासन से जुड़ा है।
- सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था त्रि-स्तरीय है। सबसे नीचे ग्राम पंचायत, बीच में मंडल (प्रखंड-Block या तालुका) तथा सबसे ऊपर जिला पंचायत का स्थान है।
- संविधान के 73 वें संशोधन में ग्राम सभा को भी संवैधानिक महत्व प्रदान किया गया।
- प्रत्येक पंचायती निकाय की अवधि पाँच साल की होती है। स्थानीय विकास तथा कल्याण की आवश्यकताओं से सम्बन्धित 29 विषयों को स्थानीय शासन के सुपुर्द किया गया है।
- सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित हैं। पंचायती राज संस्थाओं में तीनों स्तरों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
- भारत के चुनाव आयुक्त के समान प्रदेश का चुनाव आयुक्त भी स्वायत्त (Autonomous) है। प्रदेश का चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र अधिकारी होता है।
- राज्य वित्त आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति की जाँच करता है।
- भारत में ग्रामीण जिला पंचायतों की संख्या लगभग 600, प्रखंड स्तरीय पंचायतों की संख्या 6,000 तथा ग्राम पंचायतों की संख्या 2,40.000 है।
- भारत के 100 से अधिक शहरों में नगर निगम, 1,400 नगरपालिकाएँ तथा 2,000 नगर पंचायत मौजूद हैं।
- पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान के कारण स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ गई है।
→ अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ।
वर्ष
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सम्बन्धित घटनाएँ
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1882 ई.
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भारत में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय अस्तित्व में आए। उस समय लार्ड रिपन (Lord Rippon) भारत का वायसराय था।
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1919 ई.
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गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बनने पर भारत के अनेक प्रांतों में ग्राम पंचायत बने।
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1952 ई.
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स्थानीय शासन के निकाय बनाने के लिए सामुदायिक विकास कार्यक्रम (Community Development Programme) बनाए गए।
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1987 ई.
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स्थानीय शासन की संस्थाओं के गहन पुनरावलोकन का आरंभ हुआ।
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1989 ई.
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पी. के. थंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की।
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1992 ई.
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संविधान के 73वें और 74वें संशोधन (स्थानीय शासन सम्बन्धी) को संसद में पारित किया गया।
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1993 ई.
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संविधान के 73वाँ - 74वाँ संशोधन लागू हुए।
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1994 ई.
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लैटिन अमेरिका के देश बोलिविया में पॉपुलर पार्टिसिपेशन लॉ (जनभागीदारी कानून) के अन्तर्गत विकेन्द्रीकरण करके सत्ता स्थानीय स्तर को सौंपी गई।
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→ स्थानीय शासन - गाँव व जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं।
→ निर्वाचित सरकार - वह सरकार, जिसका निर्वाचन (चुनाव) जनता के वोट (Vote) द्वारा हुआ हो।
→ शासकीय निकाय - वह संस्था समूह या समुदाय, जिसे शासन सम्बन्धी कार्यों और जिम्मेदारियों का अधिकार प्राप्त हो।
→ पर्यावरण - आस-पास की परिस्थिति अथवा परिवेश जिसमें मानव रहता है, वस्तुएँ मिलती हैं तथा उनका विकास होता है। पर्यावरण में प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों के तत्वों का समावेश होता है।
→ अधिग्रहण (एक्विजिशन) - किसी वस्तु (जमीन, मकान आदि) को अधिकार द्वारा ले लेना (कब्जा कर लेना) अधिग्रहण कहलाता है।
→ सत्ता का विकेन्द्रीकरण - शासनाधिकार को केन्द्र से हटाकर स्थानीय पंचायतों को सौंपना सत्ता का विकेन्द्रीकरण है।
→ नीति-निर्देशक सिद्धान्त - भारतीय संविधान में लोक-व्यवहार के निर्वाह के लिए कुछ मत निर्धारित किए गए हैं, जिनका पालन करना सरकार के लिए अनिवार्य है।
→ हस्तांतरण - किसी वस्तु का अधिकार जब एक हाथ से दूसरे के हाथ में दिया जाता है, तो वह हस्तांतरण कहलाता है; जैसे- सत्ता का हस्तांतरण।
→ लार्ड रिपन (Lord Rippon) - सन् 1882 में यह भारत का सराय था।
→ पी. के. डुंगन - ये स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश करने वाली समिति के अध्यक्ष थे।