These comprehensive RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 6 न्यायपालिका will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Political Science Chapter 6 Notes न्यायपालिका
→ परिचय
- सामान्यतया न्यायपालिका (न्यायालय) को विभिन्न व्यक्तियों या निजी संस्थाओं के आपसी विवादों का समाधान करने वाले पंच के रूप में देखा जाता है।
- न्यायपालिका सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय वास्तव में विश्व के सबसे शक्तिशाली न्यायालयों। में से एक है।
- न्यायपालिका ने सन् 1950 से ही संविधान की व्याख्या और सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है।
→ हमें स्वतंत्र न्यायपालिका क्यों चाहिए?
- न्यायपालिका विवादों के निपटारे के साथ-साथ अनेक राजनीतिक कार्यों को भी करती है। प्रत्येक समाज में व्यक्तियों, समूहों तथा सरकार के बीच विवाद उठते रहते हैं। इन सभी विवादों को एक स्वतंत्र संस्था न्यायपालिका द्वारा हल किया जाता है।
- न्यायपालिका का प्रमुख कार्य-'कानून के शासन की रक्षा करना' तथा कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करना है।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता का आशय यह है कि विधायिका तथा कार्यपालिका न्यायपालिका के कार्यों में किसी प्रकार की बाधा न पहुँचाए तथा वह बिना किसी भय के स्वतंत्रतापूर्वक निर्णय दे सके।
- भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए अनेक उपाय किये गये हैं।
- न्यायाधीशों का कार्यकाल निश्चित होता है। इसके अतिरिक्त न्यायपालिका वित्तीय रूप से विधायिका या कार्यपालिका पर निर्भर नहीं है।
- न्यायाधीशों के कार्यों और निर्णयों की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जा सकती है। यदि कोई ऐसा करता है तो वह न्यायालय की अवमानना का दोषी माना जाएगा।
→ न्यायाधीशों की नियुक्ति
- न्यायाधीशों की नियुक्ति सामान्य तथा राजनीतिक रूप से विवादास्पद रही है। मन्त्रिमण्डल, राज्यपाल, मुख्यमन्त्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश ये सभी न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
- भारत के मुख्य-न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सामान्यतया सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाह से कुछ नाम राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तावित करता है उनमें से राष्ट्रपति किसी की भी नियुक्ति कर सकता है।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की तथा उन्हें हटाने में विधायिका की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। न्यायाधीशों को पद से हटाना सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाना बहुत जटिल है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से कदाचार साबित होने अथवा अयोग्यता सिद्ध होने की दशा में संसद के विशेष बहुमत द्वारा ही हटाया जा सकता है।
→ न्यायपालिका की संरचना
- भारतीय न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय हैं।
- भारत में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले सभी अदालतों को मानने होते हैं।
- उच्च न्यायालय निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई कर सकता है।
- जिला अदालत जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करती है।
- अधीनस्थ न्यायालय फौजदारी और दीवानी मुकदमों पर विचार करता है।
→ सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार
- भारत का सर्वोच्च न्यायालय विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली न्यायालयों में से एक है। लेकिन वह संविधान द्वारा तय की गयी सीमा के अन्दर ही कार्य करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकारों में मौलिक क्षेत्राधिकार, रिट सम्बन्धी क्षेत्राधिकार, अपीलीय क्षेत्राधिकार तथा सलाह सम्बन्धी क्षेत्राधिकार शामिल हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय मौलिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत संघ और राज्यों के मध्य के तथा विभिन्न राज्यों के आपसी विवादों का निपटारा करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय जनहित के मामले और कानूनी मामलों पर राष्ट्र पति को सलाह देता है।
→ न्यायिक सक्रियता
- भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जनहित याचिका या सामाजिक व्यवहार याचिका रही है।
- जब पीड़ितों की ओर से कोई अन्य व्यक्ति न्यायालय में याचिका दायर कर न्याय दिलाने की माँग करता है तो उसे जनहित याचिका के नाम से जाना जाता है। यह लोगों के अधिकारों की रक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, लोकहित, गरीबों के हित आदि से सम्बन्धित हो सकती है।
- न्यायिक सक्रियता ने न्याय व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया है तथा कार्यपालिका भी न्यायिक सक्रियता के कारण उत्तरदायी बनने पर बाध्य हुई है।
→ न्यायपालिका और अधिकार
- सर्वोच्च न्यायालय को नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षक तथा संविधान के अनुसार कानूनों की व्याख्या करने का अधिकार प्राप्त है। वह किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर सकता है।
- रिट जारी करने एवं न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को अत्यन्त शक्तिशाली बना देती है।
- न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का आशय यह है कि न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों और संविधान की व्याख्या कर सकती है।
→ न्यायपालिका और संसद
- भारतीय संविधान के अनुसार सरकार के प्रत्येक अंग का एक स्पष्ट कार्य क्षेत्र है। संसद कानून बनाने और संविधान में संशोधन करने के लिए सर्वोच्च है। कार्यपालिका उन्हें लागू करने के लिए सर्वोच्च है तथा न्यायपालिका विवादों को सुलझाने तथा बनाये गये कानून संविधान के अनुकूल हैं या नहीं यह निर्णय करने के लिए सर्वोच्च है।
- सरकार के किन्हीं दो अंगों के मध्य संतुलन बनाये रखना अतिआवश्यक तथा संवेदनशील होता है।
- केशवानन्द भारती के मामले में न्यायालय ने निर्णय दिया कि संविधान का एक मूल ढाँचा है और संसद सहित कोई भी उस ढाँचे में परिवर्तन नहीं कर सकता है। न्यायालय ने आगे कहा कि इस मूल ढाँचे के अन्तर्गत क्या-क्या आता है। इसका निर्णय न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा।
- एक अन्य बात न्यायालय ने कही कि सम्पत्ति का अधिकार संविधान के मूल ढाँचे का भाग नहीं है। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने सन् 1979 में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से ही हटा दिया।
- आज भी कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो अनसुलझे ही हैं, जैसे-विधायिका के विशेषाधिकार हनन का दोषी पाये जाने पर कोई व्यक्ति न्यायपालिका की शरण ले सकता है या नहीं, न्यायाधीशों के आचरण पर संसद में चर्चा हो सकती है या नहीं।
→ अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं
वर्ष
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सम्बन्धित घटनाएँ
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सन् 1973 ई.
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तीन अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़कर न्यायमूर्ति ए. एन. रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
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सन् 1973 ई.
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केशवानन्द भारती मामले का निर्णय आया जिसमें उच्चतम न्यायालय ने संसद और न्यायपालिका के सम्बन्धों का नियमन किया।
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सन् 1975 ई.
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न्यायमूर्ति एच. आर. खन्ना को पीछे छोड़ते हुए न्यायमूर्ति एम. एच. बेग की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर की गयी।
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सन् 1979 ई.
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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सर्वप्रथम जनहित याचिका को स्वीकार कर सुनवाई प्रारम्भ की गयी।
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सन् 1979 ई.
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सरकार द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया।
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सन् 1980 ई.
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तिहाड़ जेल के एक बन्दी ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कृष्णा अय्यर को एक पत्र लिखा। उन्होंने उसी पत्र को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया।
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सन् 1991 ई.
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पहली बार संसद के 108 सदस्यों ने सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए।
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सन् 1992 ई.
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सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की एक समिति ने न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी को पंजाब और हरियाणा के मुख्य न्यायाधीश रहते संवैधानिक नियमों को तोड़ने तथा पद दुरुपयोग का गंभीर दोषी पाया।
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→ कानून का शासन - अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, अगड़े-पिछड़े सभी कानून की नजर में बराबर हैं, यही कानून का शासन कहलाता है।
→ तानाशाही - बिना किसी नियम के अपनी मनमर्जी से कार्य करना तथा संविधान का उल्लंघन करना।
→ स्वतन्त्र न्यायपालिका - एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था जिसमें न्यायपालिका पर विधायिका एवं कार्यपालिका का नियंत्रण न हो तथा ये उसके कार्य में बाधा उत्पन्न न कर सकें।
→ दलगत राजनीति - वह राजनीतिक व्यवस्था जिसमें विभिन्न दल होते हैं।
→ न्यायालय की अवमानना - न्यायाधीशों के कार्यों और निर्णयों की व्यक्तिगत आलोचना करना या उनके आदेश की अवहेलना करना।
→ संविधान - जिसमें किसी देश की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए न्यायालय, विधायिका, कार्यपालिका आदि से सम्बन्धित सभी नियम दिये होते हैं।
→ जनमत - किसी विषय पर आम जनता की राय।
→ मीडिया - सरकार तथा जनता से सम्बन्धित समाचारों को एक-दूसरे तक पहुँचाने का साधन जिसमें समाचार पत्र, टी.वी., इंटरनेट आदि आते हैं।
→ कानून - संसद द्वारा पारित तथा राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत कोई भी विधेयक कानून कहलाता है।
→ विधायिका - विधेयकों को पारित कर कानून बनाने वाली संस्था जैसे संसद, विधानमण्डल आदि विधायिका कहलाते हैं।
→ महाभियोग - राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्च व सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य व अन्य न्यायाधीशों आदि को संविधान का उल्लंघन करने, कदाचार साबित होने एवं अयोग्यता की दशा में उनके पद से संसद द्वारा विशेष बहुमत से हटाये जाने की प्रक्रिया महाभियोग कहलाती है।
→ अनुच्छेद 137 - "उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गये निर्णय या दिये गये आदेश का पुनरावलोकन करने की शक्ति होगी।"
→ अनुच्छेद 144 - 'भारत के राज्य क्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता से कार्य करेंगे।"
→ पुनरावलोकन - अपने ही पूर्व निर्णय को बदलने या उस पर पुनः सुनवाई करने की शक्ति।
→ न्यायिक पुनर्निरीक्षण - अपने अधीनस्थ न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के विरुद्ध अपील स्वीकार कर सुनवाई करने का अधिकार।
→ याचिका - न्याय की माँग करने हेतु किसी न्यायालय में दिया जाने वाला प्रार्थना-पत्र ।
→ जनहित याचिका - पीड़ित लोगों के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति द्वारा जन सामान्य के हित को ध्यान में रखकर दायर की गयी याचिका।
→ न्यायिक पुनरावलोकन - सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी भी कानून की संवैधानिकता की जाँच करने सम्बन्धी शक्ति।
→ अनुच्छेद 32 - यह सर्वोच्च न्यायालय को बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश आदि रिट जारी कर मौलिक अधिकारों को स्थापित करने की शक्ति देता है तथा यही शक्तियाँ उच्च न्यायालयों को अनुच्छेद 226 में दी गयी हैं।
→ अनुच्छेद 13 - सर्वोच्च न्यायालय किसी कानून को गैर-संवैधानिक घोषित कर उसे लागू करने से रोक सकता है।
→ न्यायमूर्ति रामास्वामी - भारत के प्रथम न्यायाधीश जिन पर महाभियोग चलाया गया।
→ न्यायाधीश कृष्णाअय्यर - सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1980) के केस में एक पत्र को ही इन्होंने जनहित याचिका के रूप में स्वीकृति दी।
→ नरसिंह राव - भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री।