These comprehensive RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 4 सामाजिक न्याय will give a brief overview of all the concepts.
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→ परिचय
न्याय का सरोकार समाज में हमारे जीवन और सार्वजनिक जीवन को व्यवस्थित करने के नियमों तथा तरीकों से होता है, जिनके द्वारा समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच सामाजिक लाभ तथा सामाजिक कर्त्तव्यों का बंटवारा किया जाता है।
→ न्याय क्या है?
→ न्याय के सिद्धांत
→ न्यायपूर्ण बँटवारा
→ रॉल्स का न्याय सिद्धांत
→ सामाजिक न्याय का अनुसरण
→ मुक्त बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेप
→ न्याय - प्रत्येक व्यक्ति को उसका उचित हिस्सा देना एवं समाज में सही को बढ़ावा और गलत को दंडित करना न्याय कहलाता है।
→ धर्म - किसी वस्तु या व्यक्ति में सदैव रहने वाली उसकी मूल प्रकृति, स्वभाव या गुण, धर्म कहलाता है।
→ सामाजिक लाभ - समाज के विभिन्न सदस्यों को प्राप्त होने वाले संसाधन, स्थिति, गरिमा इत्यादि संयुक्त रूप से 'सामाजिक लाभ' कहलाते हैं।
→ प्रसंविदाएँ - समाज में लोगों के बीच अथवा राज्य व लोगों के बीच होने वाले समझौते प्रसंविदाएँ कहलाते हैं।
→ कानूनसम्मत - वह कार्य, गतिविधि या बात जो कानूनों के अनुसार या कानूनों के अनुकूल हों कानून सम्मत कहलाती है।
→ उदारवादी जनतन्त्र - ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था जिसमें नागरिकों को स्वतन्त्रता एवं सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त होता है, उदारवादी जनतन्त्र कहलाता है।
→ नागरिक अधिकार - किसी देश का नागरिक होने के नाते व्यक्तियों को जो अधिकार प्राप्त होते हैं, उन्हें नागरिक अधिकार कहते हैं।
→ समानुपातिक न्याय - जब लोगों के साथ उनकी योग्यता, क्षमता आदि की समान तुलना के आधार पर व्यवहार किया जाए और सुविधाएँ व लाभ प्रदान किये जाएँ तो इस स्थिति को समानुपातिक न्याय'
कहते हैं।
→ न्यायपूर्ण बंटवारा/वितरण - जब सर्वाधिक उपेक्षित, दुर्बल व जरूरतमंद लोगों को अधिकतम लाभ तथा सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं, तो इसे ही 'न्यायपूर्ण बंटवारा' कहा जाता है।
→ अज्ञानता का आवरण - हमारे चारों ओर फैला अज्ञानता का दायरा अज्ञानता का आवरण कहलाता है।
→ मुक्त बाजार व्यवस्था - ऐसी व्यवस्था जिसमें आर्थिक गतिविधियों जैसे उद्योग, व्यापार, रोजगार आदि में राज्य के हस्तक्षेप को अत्यधिक सीमित रूप में स्वीकार किया जाता है, मुक्त बाजार व्यवस्था कहलाती है।
→ कन्फ्यूशियस - चीन के महान दार्शनिक, इन्होंने 'न्याय की धारणा' का व्यापक अध्ययन किया था। इनका तर्क था कि गलत करने वालों को दंडित करके और भले लोगों को पुरस्कृत करके ही राजा को न्याय कायम रखना चाहिए।
→ सुकरात - एथेंस (यूनान) के महान दार्शनिक। इन्होंने 'न्याय' के सन्दर्भ में स्पष्ट किया था कि हमें न्याय के अर्थ को स्पष्ट रूप से समझने की जरूरत है ताकि हम यह देख सकें कि न्यायसंगत होना क्यों महत्वपूर्ण है।
→ प्लेटो - यूनान के महान दार्शनिक थे, यह सुकरात के शिष्य थे। प्लेटो ने अपनी पुस्तक 'द रिपब्लिक' में न्याय के मुद्दों पर चर्चा की है।
→ इमैनुएल कांट - जर्मनी के महान राजनीतिक विचारक और दार्शनिक, इन्होंने न्याय के सम्बन्ध में अध्ययन किया था।
→ जॉन रॉल्स - आधुनिक युग के प्रख्यात अमेरिकी राजनीतिक विचारक, इन्होंने सामाजिक न्याय की स्थापना के सम्बन्ध में 'वितरणात्मक न्याय' का सिद्धान्त दिया है।
→ जे. एस. मिल - 'मिल' भी न्याय की धारणा से जुड़े एक प्रमुख विचारक रहे हैं।
→ डॉ. भीमराव अम्बेडकर - डॉ. अम्बेडकर भारत में दलित समाज के लिए सामाजिक न्याय की प्राप्ति हेतु सदैव संघर्षरत रहे।