These comprehensive RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Political Science Chapter 2 Notes भारतीय संविधान में अधिकार
→ अधिकारों का महत्त्व
- किसी व्यक्ति से बेगार या बंधुआ मजदूर के रूप में कार्य कराना नागरिकों को प्राप्त 'शोषण के विरूद्ध मौलिक अधिकार' का उल्लंघन है।
- हमारा संविधान सभी नागरिकों को जीवन और स्वतन्त्रता का अधिकार देता है।
- अधिकार, समाज द्वारा स्वीकृत वे माँगें हैं जिनसे व्यक्ति, समाज तथा राज्य तीनों का हित होता है।
- 'जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार' से आशय है कि प्रत्येक नागरिक को अपने मुकदमे की निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई का अधिकार है।
→ अधिकारों का घोषणा पत्र
- अधिकारों का घोषणा-पत्र सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध कार्य करने से रोकता है एवं उनका उल्लंघन हो जाने पर उपचार सुनिश्चित करता है।
- अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध किया गया है।
- संविधान द्वारा प्रदान किए गए और संरक्षित अधिकारों की सूची को अधिकारों का घोषणा पत्र' कहते हैं।
→ भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार
- 1928 ई. में मोतीलाल नेहरू समिति ने अधिकारों के एक घोषणा पत्र की माँग उठायी थी।
- भारतीय संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक नागरिकों के 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है, उसमें प्रत्येक मौलिक अधिकार के प्रयोग की सीमा का भी उल्लेख है।
- मौलिक अधिकार अत्यन्त महत्वपूर्ण अधिकार हैं। इनकी सुरक्षा हेतु भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किये गये हैं।
- भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकार निम्नलिखित है
- समता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरूद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।
- मौलिक अधिकारों की गारण्टी तथा उनकी सुरक्षा का दायित्व संविधान का होता है।
- मौलिक अधिकारों में साधारणतया निर्धारित संवैधानिक संशोधन प्रक्रिया को छोड़कर अन्य किसी प्रकार से संशोधन नहीं किया जा सकता।
- 44वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटाकर एक सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया है।
1. समता का अधिकार भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित प्रकार की समानता प्रदान की गयी है
- कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण।
- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध ।
- रोजगार में अवसर की समानता
- छुआछूत का अंत
- उपाधियों का अंत।।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समानता के बारे में दो बातों का उल्लेख है
- प्रतिष्ठा की समानता
- अवसर की समानता।
2. स्वतंत्रता का अधिकार
भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्रदान की गयी हैं
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- अपराधों के लिए दोष सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण।
- जीवन की रक्षा और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार
- शिक्षा का अधिकार
- अभियुक्तों और सजा पाए लोगों के अधिकार।
लोकतन्त्र में समता और स्वतन्त्रता सबसे महत्वपूर्ण अधिकार हैं। इनमें से एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती।
स्वतन्त्रता की परिभाषा इस प्रकार है कि व्यक्ति बिना किसी अन्य की स्वतन्त्रता को ठेस पहुँचाए और कानून व्यवस्था का पालन करते हुए अपनी-अपनी स्वतन्त्रता का आनंद ले सकें।
- स्वतन्त्रता के अधिकारों में 'जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार' सबसे महत्वपूर्ण है। किसी भी व्यक्ति को कारण बताए बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
- पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घंटे के अंदर निकटतम न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करे।
- सामान्यतः किसी भी व्यक्ति को तभी गिरफ्तार किया जा सकता है जब उसने अपराध किया हो।
- परन्तु कभी-कभी व्यक्ति को इस आशंका पर भी गिरफ्तार किया जा सकता है कि वह कोई गैर-कानूनी कार्य करने वाला है। इसे निवारक नजरबंदी कहते हैं।
- न्यायालय जब तक किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी नहीं ठहराता, तब तक उसे दोषी नहीं माना जा सकता।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
- भारतीय संविधान में शोषण के विरूद्ध अधिकार के अन्तर्गत दो प्रावधान किये गये हैं
- मानव के दुर्व्यापार और बंधुआ मजदूरी पर रोक ।
- जोखिम वाले कामों में बच्चों से मजदूरी कराने पर रोक।
- किसी भी प्रकार के शोषण पर संविधान प्रतिबंध लगाता है।
- किसी भी प्रकार का शोषण कानून द्वारा दंडनीय है, जैसे-बेगार या बंधुआ मजदूरी।
- संविधान के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी खतरनाक कार्य में नियोजित नहीं किया जा सकता।
- बालश्रम को अवैध बनाकर और शिक्षा को बच्चों का मौलिक अधिकार बनाकर 'शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार' को अर्थपूर्ण बनाया गया है।
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- भारतीय संविधान ने इस मौलिक अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ प्रदान की हैं
- आस्था और प्रार्थना की स्वतंत्रता।
- धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता ।
- किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर अदायगी की स्वतंत्रता।
- कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता।
- संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने का अधिकार है। लोकतन्त्र में धर्म पालन करने की स्वतन्त्रता को बुनियादी स्वतन्त्रता के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे देश का कोई राजकीय धर्म नहीं है। सभी धर्मों को समानता का अधिकार है। समानता के अधिकार के अन्तर्गत देश में | धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
5. सांस्कृतिक और रौलिक अधिकार
भारतीय संविधान में इस मौलिक अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकार उल्लेखनीय है
- अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
- अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार। अल्पसंख्यक वह समूह है जिनकी अपनी एक भाषा या धर्म होता है। पूरे देश में संख्या के आधार पर वे अन्य समूहों से छोटे होते है। संविधान में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों को सुरक्षित रखा गया है।
6. सवैधानिक उपचारों का अधिकार
- 'संवैधानिक उपचारों का अधिकार' वह साधन है जिसके द्वारा संविधान के मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सके और उल्लंघन होने पर मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकारों को 'संविधान का हृदय और आत्मा' की संज्ञा दी है।
- सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार को आदेश या निर्देश दे सकते हैं।
- न्यायालय कई प्रकार के विशेष आदेश जारी करते है जिन्हें प्रादेश या रिट कहते हैं, ये हैं
- बंदी प्रत्यक्षीकरण
- परमादेश
- निषेध आदेश
- अधिकार पृच्छा
- उत्प्रेषण रिट।
- संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका के अतिरिक्त कुछ और संरचनाओं का भी निर्माण किया गया है, जैसेराष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग आदि।
→ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
वर्ष 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' का गठन किया। मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें मिलने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पीड़ित व्यक्ति की याचिका पर जाँच कर सकता है। मानव अधिकार के क्षेत्र में शोध कर सकता है। सरकार या न्यायालय को अपनी जाँच के आधार पर मुकदमा चलाने की सिफारिश कर सकता है।
→ राज्य के नीति निर्देशक तत्व
- संविधान में कुछ नीति निर्देशक तत्वों का समावेश किया गया। नीति निर्देशक तत्व राज्य द्वारा आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीति न्याय को निर्धारित करने वाले सिद्धान्त हैं। भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लिखित नीति निर्देशक तत्व केन्द्र व राज्य सरकारों हेतु निर्देश तो हैं लेकिन इन्हें न्यायपालिका का संरक्षण प्राप्त नहीं है।
- नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के प्रयास में शिक्षा का अधिकार, सम्पूर्ण देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू करना, रोजगार गारंटी योजना के अन्तर्गत काम का सीमित अधिकार, स्कूली बच्चों के लिए दोपहर के भोजन की योजना आदि सम्मिलित हैं।
- नागरिकों के मौलिक कर्तव्य वर्ष 1976 में संविधान का 42वाँ संशोधन किया गया। इस संशोधन में नागरिकों के 10 मौलिक कर्तव्यों का समावेश किया गया।
- इन्हें लागू करने के संबंध में संविधान में कोई उपबंध नहीं किया गया है।
- नागरिक के रूप में हमें अपने संविधान का पालन करना चाहिए, देश की रक्षा करनी चाहिए, सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए और पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।
→ नीति निर्देशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में सम्बन्ध
- मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक तत्वों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जा सकता है। जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबंध लगाते हैं वहीं नीति निर्देशक तत्व आमजन के हित में सरकार को कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं।
- मौलिक अधिकार विशेष रूप से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, पर नीति निर्देशक तत्व सम्पूर्ण समाज के हित की बात करते हैं।
- निष्कर्ष महाराष्ट्र के क्रांतिकारी समाज सुधारक ज्योतिबा राव फुले ने सर्वप्रथम अपनी रचनाओं में बताया था कि अधिकारों में स्वतंत्रता और समानता दोनों ही निहित होते हैं। यह विचार राष्ट्रीय आंदोलन के समय में और स्पष्ट हुआ।
- न्यायपालिका ने अधिकारों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। न्यायिक व्याख्याओं ने अनेक अधिकारों का क्षेत्र विस्तृत किया है।
- अधिकार सरकार के कार्यों पर प्रतिबंध लगाते हैं और देश में लोकतांत्रिक शासन सुनिश्चित करते हैं।
→ अध्याय में दी गयी महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं संबंधित घटनाएँ
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सम्बन्धित घटनाएँ
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1928
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मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा अधिकारों के घोषणा पत्र की माँग करना।
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1973
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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में संपत्ति के अधिकार को संविधान के मूल ढाँचे का तत्व नहीं माना जाना।
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1976
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संविधान में 42वाँ संशोधन किया गया। संविधान में नागरिकों के दस मौलिक कर्तव्यों की सूची का समावेश किया गया।
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1978
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44वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकारों को मौलिक अधिकारों की सूची से बाहर निकाल दिया गया।
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1982
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भारत में एशियाई खेलों का आयोजन।
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1993
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन।
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1996
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दक्षिण अफ्रीका में संविधान लागू किया गया।
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→ व्यक्ति अधिकारों का घोषणा पत्र - संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये गये तथा संरक्षित अधिकारों की सूची को अधिकारों का घोषणा-पत्र कहा जाता है।
→ वारंटी कार्ड - किसी वस्तु को खरीदने पर रापभोक्ता के अधिकारों का घोषणा पत्र। अधिकार
→ अधिकार जीवन की वे आव, शर्ते हैं जिसके बिना कोई भी व्यक्ति पूर्ण, प्रसन्न एवं उद्देश्यपूर्ण जीवन नहीं जी सकता।
→ मौलिक अधिकार - ऐसे अधिकार जो व्यक्ति के लिए मौलिक एवं अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा प्रदान किये जाते हैं तथा जिन अधिकारों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।
→ आरक्षण - भेदभाव के शिकार, वंचित एवं पिछड़े लोगों और समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों एवं शैक्षिक संस्थाओं में पद एवं सीटें आरक्षित करने की नीति आरक्षण कहलाती है।
→ बेगार या बंधुआ मजदूरी - बगैर पारिश्रमिक के कार्य लेना, न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना तथा जबरन कार्य कराना।
→ निवारक नजरबंदी - व्यक्ति को इस आशंका पर गिरफ्तार करना कि वह कोई अपराध या गैर कानूनी कार्य करने वाला है।
→ दास प्रथा - शोषण का एक रूप जिसमें लोगों को खरीदा और बेचा जाता था।
→ बंदी प्रत्यक्षीकरण - न्यायालय द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का आदेश।
परमादेश - सार्वजनिक पदाधिकारी द्वारा कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन न करने पर न्यायालय द्वारा जारी किया जाने वाला आदेश।
→ निषेध आदेश - निचली अदालतों द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर मुकदमे की सुनवाई करने पर ऊपर की अदालतों द्वारा उन्हें रोकने के लिए दिया गया आदेश।
→ अधिकार पृच्छा आदेश - न्यायालय द्वारा ऐसे व्यक्ति को कार्य करने से रोकने का आदेश जो ऐसे पद पर नियुक्त हो गया जिस पर उसका कानूनी हक न हो।
→ उत्प्रेषण रिट - निचली अदालत या सरकारी अधिकारी द्वारा बिना अधिकार के कार्य करने पर न्यायालय द्वारा उनके समक्ष विचाराधीन मामले को ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तांतरित करना।
→ पी. यू. सी. एल. - पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज। (मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए कार्य करने वाली संस्था।)
→ पी. यू. डी. आर. - पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेट्रिक राइट्स । (मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए कार्य करने वाली संस्था।)
→ मोतीलाल नेहरू - प्रसिद्ध वकील, पं. जवाहरलाल नेहरू के पिता। इनके नेतृत्व में गठित समिति ने सन् 1928 में अधिकारों के घोषणा-पत्र की माँग उठायी थी।
→ सोमनाथ लहिड़ी - संविधान सभा के सदस्य, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता। संविधान सभा वाद-विवाद खण्ड तीन में मौलिक अधिकारों की अवधारणा की व्याख्या से सम्बन्धित।
→ सरदार हुकुम सिंह - संविधान सभा के सदस्य, संविधान सभा वाद-विवाद खण्ड आठ पृष्ठ 322 पर, बहुसख्यकों के उत्तरदायित्व की व्याख्या से सम्बन्धित।
→ केशवानन्द भारती - मौलिक अधिकारों के संबंध में एक मुकदमे में चर्चित।
→ ज्योतिबा राव फुले (1827-1890) - महाराष्ट्र के क्रान्तिकारी समाज सुधारक।