Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Political Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Political Science Notes to understand and remember the concepts easily.
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
लोकतांत्रिक राज्य में विभिन्न धर्मों व समुदायों को समानता की गारंटी देती है
(क) धर्मनिरपेक्षता
(ख) धर्मान्धता
(ग) साम्प्रदायिकता
(घ) धार्मिक कट्टरता।
उत्तर:
(क) धर्मनिरपेक्षता
प्रश्न 2.
कुछ लोग 'जनसमुदाय के लिए अफीम' कहते है
(क) अधिकार को
(ख) धर्म को
(ग) आडम्बरों को
(घ) सरकारी नीतियों को।
उत्तर:
(ख) धर्म को
प्रश्न 3.
पुरोहिताई व्यवस्था द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासित राष्ट्र कहलाता है
(क) लोकतांत्रिक
(ख) समाजवादी
(ग) धर्मतांत्रिक
(घ) धर्मनिरपेक्ष।
उत्तर:
(ग) धर्मतांत्रिक
प्रश्न 4.
धर्मनिरपेक्षता का मतलब 'सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण' है। यह विचार दिया
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू
(ख) सुभाष चन्द्र बोस
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) डॉ. भीमराव अम्बेडकर।
उत्तर:
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू
निम्न में सत्य अथवा असत्य कथन बताइए
1. धर्मनिरपेक्षता का भारत के लिए कोई महत्व नहीं है।
2. धर्मनिरपेक्षता में राज्य को धर्म से सदैव दूर रहना चाहिए।
3. धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी धारणा और भारतीय धारणा में कोई अन्तर नहीं है।
4. भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी है।
उत्तर:
1. असत्य
2. असत्य
3. असत्य
4. सत्य
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा-20 शब्द)
प्रश्न 1.
धर्मनिरपेक्षता धर्म के किन वर्चस्वों का विरोध करती है ?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता धर्म के दो प्रकार के वर्चस्वों का विरोध करती है
प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्षता अपने सकारात्मक रूप में धर्म के लिए किन बातों को बढ़ावा देती है ?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता अपने सकारात्मक रूप में धर्मों के अन्दर स्वतंत्रता और विभिन्न धर्मों के बीच समानता को बढ़ावा देती है।
प्रश्न 3.
एक राष्ट्र में धार्मिक समूहों के वर्चस्व को रोकने के लिए सबसे पहले क्या निश्चित किया जाना चाहिए ?
उत्तर:
एक राष्ट्र में धार्मिक समूहों के वर्चस्व को रोकने के लिए सबसे पहले यह निश्चित किया जाना चाहिए कि राज्यसत्ता किसी विशेष धर्म के प्रमुखों द्वारा संचालित न हो। .
प्रश्न 4.
'धर्मतांत्रिक राष्ट्र' किसे कहते हैं ?
उत्तर:
धर्मतांत्रिक राष्ट्र-वह राष्ट्र जिसमें शासन व्यवस्था धर्म को प्रमुखों (पुरोहितों) द्वारा प्रत्यक्ष रूप से संचालित हो, 'धर्मतांत्रिक राष्ट्र' कहलाता है। जैसे-मध्यकालीन यूरोप में 'पोप' की राज्यसत्ता वाले राष्ट्र।
प्रश्न 5.
धर्मतांत्रिक राष्ट्र किस बात के लिए कुख्यात (बदनाम) रहे हैं? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 6.
एक धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता के लिए धर्म और राज्यसत्ता के बीच कैसे सम्बन्ध होने चाहिए?
उत्तर:
एक धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता के लिए धर्म और राज्यसत्ता के बीच उचित दूरी होनी चाहिए।
प्रश्न 7.
सभी धर्मनिरपेक्ष राज्यों में कौन-सी एक बात सामान्य है ?
उत्तर:
सभी धर्मनिरपेक्ष राज्यों में एक बात सामान्य है कि वे न तो धर्म आधारित हैं और न ही किसी विशेष धर्म की स्थापना ही करते हैं।
प्रश्न 8.
धर्मनिरपेक्षता के अमेरिकी मॉडल की प्रमुख विशेषता क्या है ?
उत्तर:
धर्म और राज्यसत्ता के सम्बन्धों को प्रतिबन्धित मानना, धर्मनिरपेक्षता के अमेरिकी मॉडल की प्रमुख विशेषता है।
प्रश्न 9.
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में धर्म व राज्यसत्ता के बीच क्या बात निर्धारित होती है ?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में धर्म के मामलों में राज्यसत्ता हस्तक्षेप नहीं कर सकती और धर्म राज्यसत्ता के मामलों में दखल नहीं देता।
प्रश्न 10.
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में यदि धार्मिक वर्गीकरण के आधार पर सरकारी नीति निर्धारित की जाए, तो इस कार्यवाही को क्या माना जाएगा ?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में यदि धार्मिक वर्गीकरण के आधार पर सरकारी नीति निर्धारित की जाए तो इसे राज्यसत्ता के मामले में धर्म की अवैध घुसपैठ माना जाएगा।
प्रश्न 11.
धर्मनिरपेक्षता के किस प्रतिमान में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई स्थान नहीं है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार के लिए कोई स्थान नहीं है।
प्रश्न 12.
तुर्की में धर्मनिरपेक्षता के अनूठे प्रतिमान को किस शासक ने लागू किया ?
उत्तर:
तुर्की में धर्मनिरपेक्षता के अनूठे प्रतिमान को 'मुस्तफा कमाल अतातुर्क' द्वारा 20वीं सदी के दूसरे दशक में लागू किया गया था।
प्रश्न 13.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की कौन-सी बात इसे विशिष्ट बनाती है ?
उत्तर:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता में विविध धर्मों और उनके भीतर समानता पर बल दिया जाता है। यही बात इसे विशिष्ट रूप प्रदान करती है।
प्रश्न 14.
पं. जवाहरलाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता का मतलब क्या बताया है ?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता का मतलब बताते हुए कहा है "ऐसी स्थिति जिसमें सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण दिया जाए।"
प्रश्न 15.
पश्चिमी आधुनिकता के आगमन से भारतीय धर्मनिरपेक्षता में कौन-सी बात प्रमुख रूप से शामिल हो गयी ?
उत्तर:
पश्चिमी आधुनिकता के आगमन से भारतीय धर्मनिरपेक्षता में सभी धर्मों व इनके भीतर सभी लोगों के प्रति समानता की बात प्रमुखता से शामिल हो गयी।
प्रश्न 16.
भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने के लिए धर्म के साथ कैसे सम्बन्ध बना सकता है?
उत्तर:
भारतीय राज्य धार्मिक अत्याचार का विरोध करने के लिए धर्म के साथ 'निषेधात्मक' सम्बन्ध बना सकता है। इनके तहत वह धार्मिक संस्थाओं को कुछ बातें न करने का निर्देश दे सकता है।
प्रश्न 17.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता विभिन्न धर्मों में राज्यसत्ता के कैसे हस्तक्षेप की अनुमति देती है ?
उत्तर:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता विभिन्न धर्मों में राज्यसत्ता के सैद्धान्तिक हस्तक्षेप की अनुमति देती है।
प्रश्न 18.
भारतीय धर्म निरपेक्षता की कोई दो आलोचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 19.
भारत में धर्मनिरपेक्षता के क्रियान्वयन में कौन-सा प्रश्न महत्वपूर्ण रहा है ?
उत्तर:
भारत में धर्मनिरपेक्षता के क्रियान्वयन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न 'शान्तिपूर्ण-सहअस्तित्व' अर्थात् सभी लोगों के लिए शान्तिपूर्वक अपनी गरिमा व पहचान का जीवन देना रहा है।
प्रश्न 20.
किस स्थिति में लोकतांत्रिक पद्धति के तौर पर मतदान उपयुक्त नहीं होता ?
उत्तर:
वह स्थितियाँ जिनमें बुनियादी हितों के प्रश्न निहित हों, उनमें लोकतांत्रिक पद्धति के तौर पर मतदान उपयुक्त नहीं होता।
प्रश्न 21.
धर्मनिरपेक्ष राज्य सत्ता किस प्रकार धर्म और समाज सुधार में एक सहायक की भूमिका निभा सकती
उत्तर:
धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता प्रत्येक धर्म के अन्दर उदारवादी और लोकतांत्रिक आवाज का समर्थन करके धर्म और समाज सुधार में एक सहायक की भूमिका निभा सकती है।
प्रश्न 22.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता किसका प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है ? .
उत्तर:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता भविष्य की दुनिया का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-40 शब्द)
प्रश्न 1.
"भारत में धर्मनिरपेक्षता का विचार सार्वजनिक वाद-विवादों और परिचर्चाओं में सदैव मौजूद रहा है, फिर भी धर्मनिरपेक्षता की स्थिति को लेकर कुछ मामले काफी पेचीदा हैं।", कैसे ?
उत्तर:
भारत में धर्मनिरपेक्षता का विचार सदैव से सार्वजनिक वाद-विवादों में विद्यमान रहा है। फिर भी यहाँ एक ओर तो आमतौर पर प्रत्येक राजनेता धर्मनिरपेक्ष होने की शपथ लेता है। हर राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करता है। दूसरी ओर अनेक प्रकार की चिन्ताएँ और सन्देह धर्मनिरपेक्षता को घेरे रहते हैं। धार्मिक नेताओं धार्मिक राष्ट्रवादियों, कुछ राजनीतिज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं इत्यादि द्वारा धर्मनिरपेक्षता का विरोध भी किया जाता रहता है। इस प्रकार यहाँ आज भी धर्मनिरपेक्षता एक जटिल (पेचीदा) मसला है।
प्रश्न 2.
धर्मों के बीच वर्चस्व की लड़ाई से सम्बन्धित किसी एक भारतीय उदाहरण को बताइए।
उत्तर:
धर्मों के बीच वर्चस्व की लड़ाई से सम्बन्धित एक भारतीय उदाहरण के रूप में हम हजारों कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से पलायन की समस्या का उल्लेख कर सकते हैं। कश्मीर में 1970-80 के दशक से कश्मीरी पण्डितों के साथ धर्म के आधार पर हिंसा व भेदभाव चरम पर पहुँच गया। इसके चलते हजारों कश्मीरी पण्डितों को कश्मीर छोड़कर अन्य राज्यों में शरण लेनी पड़ी। वे आज भी अपने घरों को वापस लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
प्रश्न 3.
धर्मनिरपेक्षता के दो प्रमुख रूप क्या हैं? बताइए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता प्रमुख रूप से हमें दो रूपों में देखने को मिलती है। धर्मनिरपेक्षता का एक प्रमुख रूप है कि यह
विभिन्न धर्मों के बीच वर्चस्व का विरोध करती है। इसी प्रकार धर्मनिरपेक्षता का दूसरा रूप यह है कि यह धर्म के अन्दर छिपे वर्चस्वों व भेदभावों का विरोध करती है। इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता प्रत्येक धर्मनिरपेक्ष राज्य में इन दोनों रूपों में या किसी एक रूप में दिखाई पड़ती है।
प्रश्न 4.
धर्मों में व्याप्त भीतरी वर्चस्व को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न धर्मों में सदियों से कुछ वर्गों के द्वारा दूसरे वर्गों व समुदायों की उपेक्षा की जाती रही है। इसे ही धर्मों में भीतरी वर्चस्व के रूप में देखा जाता है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में दलितों और महिलाओं को सदियों से उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। यह धर्म में व्याप्त भीतरी वर्चस्व के कारण ही हुआ। वर्तमान में भी धर्मों में भीतरी वर्चस्व कुछ रूपों में बना हुआ है।
प्रश्न 5.
धार्मिक भेदभाव को रोकने में शिक्षा किस प्रकार उपयोगी है ?
उत्तर:
धार्मिक भेदभाव रोकने में शिक्षा की अत्यधिक उपयोगिता है। इसकी मदद से लोगों की धार्मिक कट्टरता वाली सोच को बदला जा सकता है। शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच परस्पर सहयोग व भलाई के उदाहरणों को शामिल करके लोगों को इस ओर प्रेरित किया जा सकता है। परन्तु शिक्षा या भलाई की धार्मिक भेदभाव रोकने में उपयोगिता सीमित है। सरकार की इच्छाशक्ति के बिना धार्मिक भेदभावों को केवल शिक्षा द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 6.
धर्मतांत्रिक राष्ट्र किस बात के लिए कुख्यात (बदनाम) रहे हैं ? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
धर्मतांत्रिक राष्ट्र अपने यहाँ धार्मिक उत्पीड़न, भेदभावों व दूसरे धार्मिक समूहों के सदस्यों की धार्मिक स्वतन्त्रता छीनने के लिए कुख्यात रहे हैं। उदाहरण के लिए मध्यकालीन यूरोप में पोप की राज्यसत्ता या कुछ वर्षों पूर्व अफगानिस्तान में स्थापित रही तालिबानी सत्ता का उल्लेख किया जा सकता है। इन सभी में धर्म व राज्यसत्ता में कोई दूरी नहीं थी। राज्यसत्ता की नीतियाँ और कार्य धार्मिक विद्वेषों पर आधारित थे, जैसे—तालिबान द्वारा बौद्ध प्रतिमाओं का नष्ट किया जाना इत्यादि।
प्रश्न 7.
राज्यसत्ता को वास्तव में धर्मनिरपेक्ष होने के लिए क्या प्रयास करने चाहिए ?
उत्तर:
राज्यसत्ता को वास्तव में धर्मनिरपेक्ष होने के लिए सर्वप्रथम तो धार्मिक कानूनों और धार्मिक नेताओं के शासन से बचना होगा। इसके साथ-साथ राज्यसत्ता को धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से दूर रहना होगा। इन बातों को अपनाने के साथ ही एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए राज्यसत्ता को गैर धार्मिक स्रोतों से निकलने वाले सिद्धान्तों और लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। इन प्रयासों द्वारा वास्तव में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य स्थापित हो सकता है।
प्रश्न 8.
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल (पश्चिमी संकल्पना) में राज्य को क्या-क्या निर्देश प्रदान किए गये हैं ?
अथवा
धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी संकल्पना की कोई चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल (पश्चिमी संकल्पना) में राज्य को निम्न निर्देश प्रदान किए गये हैं
प्रश्न 9.
धर्मनिरपेक्षता की यूरोपीय धारणा व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर आधारित है, कैसे ?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता की यूरोपीय धारणा स्वतन्त्रता और समानता की व्यक्तिवादी संकल्पना पर आधारित है। इसमें स्वतन्त्रता का आशय है व्यक्तियों की स्वतन्त्रता और समानता का आशय है व्यक्तियों के बीच समानता। इस प्रकार इस संकल्पना में यह गुंजाइश नहीं है कि किसी समुदाय को अपनी पसन्द का आचरण करने की स्वतन्त्रता रहे। इसमें समुदाय आधारित अधिकारों अथवा अल्पसंख्यक अधिकारों की कोई गुंजाइश नहीं है।
प्रश्न 10.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप से कैसे भिन्न है ?
उत्तर:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप से बहुत भिन्न है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता, पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की भाँति केवल धर्म और राज्य के बीच सम्बन्ध विच्छेद पर ही बल नहीं देती। भारतीय धर्मनिरपेक्षता में विभिन्न धर्मों के बीच समानता पर भी बल दिया जाता है। इसी प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता में धर्मों में व्याप्त भेदभाव को समाप्त करने के लिए भी राज्य हस्तक्षेप कर सकता है जबकि पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में यह लक्षण मौजूद नहीं है।
प्रश्न 11.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने विभिन्न धर्मों के बीच वर्चस्व व धर्मों में व्याप्त भीतरी वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित किया, कैसे ?
उत्तर;
भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने विभिन्न धर्मों के बीच वर्चस्व व धर्मों में व्याप्त भीतरी वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केन्द्रित किया। इसने हिन्दुओं के अन्दर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अन्दर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न होने वाले खतरों का समान रूप से विरोध किया। इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने धर्मों के बाहरी व भीतरी वर्चस्वों के खिलाफ एक साथ ध्यान केन्द्रित किया।
प्रश्न 12.
"भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य व धर्म के बीच सकारात्मक सम्बन्ध स्थापित किये गये हैं।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
भारत में संविधान द्वारा अनेक धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी स्वयं की शिक्षण संस्थाएँ खोलने और चलाने का अधिकार दिया गया है। राज्यसत्ता अल्पसंख्यक संस्थाओं को अन्य संस्थाओं की भाँति सहायता प्रदान कर सकती है। भारत में राज्यसत्ता शान्ति, स्वतन्त्रता और समानता की स्थापना के लिए धार्मिक मामलों में सकारात्मक हस्तक्षेप भी कर सकती है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य व धर्म के बीच सकारात्मक सम्बन्ध स्थापित किये गये हैं।
प्रश्न 13.
धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में तुर्की शासक मुस्तफा कमाल अतातुर्क के क्या विचार थे ?
उत्तर;
धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में तुर्की शासक मुस्तफा कमाल अतातुर्क का मानना था कि सार्वजनिक जीवन में धार्मिक खिलाफत को समाप्त किये बिना धर्मनिरपेक्षता की स्थापना नहीं की जा सकती। वे मानते थे कि परम्परागत सोच-विचार और अभिव्यक्तियों से सम्बन्ध समाप्त किए बिना धर्मनिरपेक्षता की स्थापना नहीं की जा सकती। अतातुर्क के विचार में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना के लिए राज्यसत्ता को कठोर कदम उठाने चाहिए। इस प्रकार अतातुर्क के धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी विचार अत्यधिक अनूठे और आक्रामक थे।
प्रश्न 14.
पं. जवाहरलाल नेहरू धार्मिक बहुसंख्यक समुदाय की साम्प्रदायिक हिंसा की कठोरता से आलोचना क्यों करते थे ?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू सामान्यतया प्रत्येक मामले में लचीला रुख अपनाते थे परन्तु वे धार्मिक बहुसंख्यक समुदाय की साम्प्रदायिक हिंसा की कठोरता से आलोचना करते थे। इसका कारण यह था कि वे इसे राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के लिए खतरा मानते थे। इसी कारण उनके लिए धर्मनिरपेक्षता केवल एक सैद्धान्तिक मामला नहीं था, उनके लिए यह भारत की एकता और अखण्डता की एकमात्र गारंटी भी था।
प्रश्न 15.
अल्पसंख्यकवाद क्या है ?
उत्तर:
अल्पसंख्यकवाद-अल्पसंख्यकों को बहुत अधिक महत्व प्रदान किया जाना तथा ऐसा करते समय बहुसंख्यक लोगों के हितों की अनदेखी करना 'अल्पसंख्यकवाद' कहलाता है। यह धारणा भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना के रूप में प्रचलित हुई है। इसके समर्थकों का मानना है कि भारत में सरकार का पूरा ध्यान अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के हितों व उन्हें सन्तुष्ट करने पर लगा रहता है। इसे वे अल्पसंख्यकवाद कहते हैं।
प्रश्न 16.
धर्मनिरपेक्षता को एक असम्भव परियोजना कहा जाता है, क्यों ?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता को एक असम्भव परियोजना कहा जाता है। इसका कारण यह है कि कुछ लोगों का मानना है कि यह बहुत अधिक दिनों तक नहीं चल सकती क्योंकि यह बहुत कुछ करना चाहती है। यह ऐसी समस्या का हल खोजना चाहती है जिसका समाधान है ही नहीं। यह समस्या ये है कि गहरे धार्मिक मतभेद वाले लोग कभी भी शान्ति से एक साथ नहीं रह सकते। इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता के आलोचक ‘एक असम्भव परियोजना' कहते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-100 शब्द)
प्रश्न 1.
भारत में धर्मों के बीच वर्चस्ववाद से जुड़े कुछ उदाहरणों का उल्लेख करें। इनमें क्या बात सामान्य है?
उत्तर:
भारत में संविधान द्वारा सभी भारतीय नागरिकों को देश के किसी भी भाग में आजादी और प्रतिष्ठा के साथ रहने का अधिकार है। इसके बावजूद देश में धार्मिक भेदभाव के अनेक रूप अभी भी बरकरार हैं। यह धर्मों के बीच वर्चस्ववाद से जुड़े मसले हैं। इस प्रकार के कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं
(i) 1984 ई. में दिल्ली और देश के बाकी हिस्सों में लगभग 2700 से अधिक सिक्ख मारे गए। पीड़ितों के परिवारीजनों का मानना है कि दोषियों को आज तक सजा नहीं मिली।
(ii) हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना घर छोड़ने के लिए विवश किया गया। वे दो दशकों के बाद भी अपने घर नहीं लौट सके।
(iii) सन् 2002 ई. में गुजरात में गोधरा दंगों के पश्चात लगभग 1000 से अधिक लोग मुख्यतः मुसलमान मारे गए। इन परिवारों के जीवित बचे हुए बहुत से सदस्य अभी भी अपने गाँव वापस नहीं जा सके, जहाँ से वे उजाड़ दिए गए थे। उपर्युक्त तीनों ही उदाहरणों का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि इन सभी में एक बात सामान्य है। वह बात है कि प्रत्येक मामले में किसी एक धार्मिक समुदाय के लोगों को लक्ष्य करके उनकी धार्मिक पहचान के कारण उन्हें सताया गया है।
प्रश्न 2.
धर्म को महज 'जनसमुदाय के लिए अफीम' किस आधार पर कहा जाता है ? क्या यह उचित है ?
उत्तर:
धर्म को 'जनसमुदाय के लिए अफीम' के समान भी कुछ लोगों ने माना है। ऐसा कहने के पीछे उनका आधार यह है कि जिस दिन सभी लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाएँगी और वे खुशहाल तथा सन्तुष्ट जीवन-यापन करने लगेंगे, उस दिन धर्म स्वतः ही विलुप्त हो जाएगा। वास्तव में धर्म की तुलना जनसमुदाय के लिए अफीम से किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता। ऐसा विचार लोगों की मानव क्षमता के बारे में गलत सोच को दर्शाता है। यह सम्भावना से परे है कि मनुष्य कभी भी प्रकृति को पूरी तरह जान पाने और इसे नियन्त्रित करने में समर्थ हो जाएगा। हम अपना जीवनकाल तो बढ़ा सकते हैं मगर अमर कभी नहीं हो सकेंगे। न तो रोगों का कभी पूरी तरह उन्मूलन हो सकता है और न हम अपनी जिन्दगी में दुर्घटना और भाग्य के तत्व से छुटकारा ही पा सकते हैं। अलगाव और हानि मानव स्थिति के अभिन्न अंग हैं। ऐसे में धर्म के विलुप्त होने की कल्पना करना पूर्णतया काल्पनिक बात प्रतीत होती है।
प्रश्न 3.
धर्म कई सामाजिक समस्याओं को जन्म देता है, कैसे ?
उत्तर:
समाज में आज जिन समस्याओं ने गहरी जड़ जमा रखी है, उनमें धर्म का भी कुछ योगदान है। उदाहरण के लिए हम शायद ही किसी ऐसे धर्म के बारे में सोच पाएँ जो पुरुष और स्त्री को समान नजर से देखता हो। हम देखते हैं कि हिन्दू धर्म में कुछ वर्ग भेदभाव से स्थायी तौर पर पीड़ित रहे हैं तथा मुस्लिम धर्म में महिलाओं को समान अधिकार नहीं दिये जाते हैं। जब कोई धर्म एक संगठन में बदलता है तो सामान्यतया इसका सर्वाधिक रूढ़िवादी हिस्सा इस पर हावी हो जाता है, जो किसी किस्म की असहमति बर्दाश्त नहीं करता। संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ हिस्सों में धार्मिक रूढ़िवाद बड़ी समस्या बन गया है जो देश के अन्दर भी शान्ति के लिए खतरा पैदा कर रहा है और बाहर भी। कई धर्म अक्सर सम्प्रदायों में भी टूट जाते हैं और निरन्तर आपसी हिंसा तथा भिन्न मत रखने वाले अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न में लगे रहते हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि धर्म कई सामाजिक समस्याओं के मूल में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान रहा है।
प्रश्न 4.
"केवल संगठित धर्म और राज्यसत्ता के बीच के सम्बन्धों को समाप्त करने भर से धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती।" इस कथन का उचित उदाहरणों सहित विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए केवल इतना पर्याप्त नहीं है कि संगठित धर्म और राज्यसत्ता के बीच के सम्बन्धों को समाप्त कर दिया जाए। अनेक ऐसे राज्य हैं जो स्वयं को धार्मिक कानूनों या पुरोहितों के राज्य से अलग होने का दावा करते हैं। फिर भी ये राज्य किसी खास धर्म के साथ गठजोड़ बनाए रखते हैं। उदाहरण के लिए 16वीं सदी में इंग्लैण्ड का राज्य पुरोहित वर्ग द्वारा संचालित नहीं होता था, फिर भी स्पष्ट रूप से आंग्ल चर्च और इसके सदस्यों का पक्षधर बना रहता था। इंग्लैण्ड में स्थापित आंग्ल चर्च का सुस्थापित ईसाई धर्म ही राष्ट्र का अधिकाधिक धर्म भी था। इसी प्रकार हम देखते हैं कि वर्तमान पाकिस्तान में सुन्नी इस्लाम अधिकारिक राज्यधर्म माना जाता है। अतः इस प्रकार स्पष्ट होता है कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना केवल धर्म व राज्यसत्ता के बीच दूरी बनाने भर से नहीं हो जाती। यदि वास्तव में राज्य को धर्मनिरपेक्ष बनना है तो उसे धर्म से अलग रहने के साथ-साथ धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी समझौते से दूर रहना होगा। इस प्रकार धर्म और राज्यसत्ता के बीच दूरी धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए आवश्यक तो है परन्तु पर्याप्त नहीं है।
प्रश्न 5.
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल की प्रमुख विशेषताएँ-धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं
(i) धर्म व राज्यसत्ता में दूरी यूरोपीय मॉडल में धर्म और राज्यसत्ता को अलग-अलग रहने पर बल दिया जाता है। इन दोनों के बीच एक स्पष्ट दूरी को स्वीकार करते हुए राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सदैव इसका पालन करे।
(ii) राज्यसत्ता की धार्मिक मामलों के प्रति तटस्थता-धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में यह माना जाता है कि राज्य को धार्मिक मामलों के प्रति बिल्कुल तटस्थ (निष्क्रिय) रहना चाहिए। राज्यसत्ता को धर्म के अन्दरूनी या बाहरी किसी भी मामले में पड़ने का अधिकार नहीं है और उसे ऐसा करना भी नहीं चाहिए।
(iii) राज्य का धार्मिक संस्थाओं व समुदायों से अलग रहना-धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में यह भी माना जाता है कि राज्य को धार्मिक संस्थाओं और समुदायों की किसी भी प्रकार की सहायता से स्वयं को अलग रखना चाहिए। राज्य उन्हें आर्थिक सहायता भी नहीं दे सकता। यदि कोई धार्मिक समुदाय दूसरे धार्मिक समुदाय के लोगों का बहिष्कार करता है तो राज्य को इस मामले में भी उदासीन बने रहना चाहिए।
प्रश्न 6.
कमाल अतातुर्क कौन थे ? उन्होंने अपनी धर्मनिरपेक्षता को किस प्रकार लागू करने का प्रयास किया ?
उत्तर:
कमाल अतातुर्क–मुस्तफा कमाल अतातुर्क प्रथम विश्वयुद्ध के बाद तुर्की की सत्ता संभालने वाले एक आधुनिक विचारों वाले शासक थे। इन्हें आधुनिक तुर्की का निर्माता माना जाता है। कमाल अतातुर्क का वास्तविक नाम मुस्तफा कमाल पाशा था। इनका जन्म 1891 ई. में तथा मृत्यु 1938 ई. में हुई थी। उन्होंने शासक बनने पर अपनी धर्मनिरपेक्षता के क्रियान्वयन में अपने उपनाम 'पाशा' को बदलकर 'अतातुर्क' कर लिया था। इसका मतलब होता है 'तुर्कों का पिता'। कमाल अतातुर्क द्वारा धर्मनिरपेक्षता को लागू करने के प्रयास कमाल अतातुर्क ने तुर्की को धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक राष्ट्र बनाने के लिए आक्रामक ढंग से कड़े कदम उठाए।
उन्होंने 'हैट कानून' के जरिये मुसलमानों द्वारा पहनी जाने वाली परम्परागत 'फैज' टोपी को प्रतिबन्धित कर दिया। उन्होंने स्त्रियों और पुरुषों के लिए पश्चिमी पोशाकों को बढ़ावा दिया। तुर्की पंचांग की जगह पश्चिमी (ग्रिगेरियन) पंचांग लागू कराया। उन्होंने इससे भी ज्यादा कड़ा कदम उठाते हुए 1928 ई. में तुर्की वर्णमाला को संशोधित करके 'लैटिन रूप' में बनवाया और इसे लागू कराया। वास्तव में कमाल अतातुर्क तुर्की के सार्वजनिक जीवन में खिलाफत को समाप्त कर देने के लिए वचनबद्ध थे। इस प्रकार कमाल अतातुर्क ने अपनी अनूठी धर्मनिरपेक्षता को कठोरता के साथ तुर्की में लागू कराया।
प्रश्न 7.
"पं. जवाहरलाल नेहरू भारतीय धर्मनिरपेक्षता के महान दार्शनिक थे।" कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू भारत के महान राजनेता व प्रथम प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ भारतीय धर्मनिरपेक्षता के महान दार्शनिक भी थे। उनके धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी विचार दूरगामी भविष्य की चिन्ता व निर्माण से प्रेरित थे। नेहरू का धर्मनिरपेक्षता के सन्दर्भ में मानना था कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह है कि हम सभी धर्मों की सुरक्षा करें। नेहरू स्वयं किसी धर्म का अनुसरण नहीं करते थे। ईश्वर में उनका विश्वास ही नहीं था। लेकिन उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म के प्रति किसी प्रकार का विद्वेष नहीं था। साथ ही साथ वे धर्म और राज्य के बीच पूर्ण सम्बन्ध विच्छेद के पक्ष में भी नहीं थे।
उनके धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी विचार के अनुसार समाज में सुधार के लिए धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है। वास्तव में उनके लिए धर्मनिरपेक्षता ऐसी चीज थी जिसके मामले में वे बिल्कुल लचीले व समझौतावादी नहीं थे। वे धर्मनिरपेक्षता को भारत की एकता और अखण्डता के लिए एक अति आवश्यक तत्व मानते थे। अतः स्पष्ट रूप से पं. नेहरू भारतीय धर्मनिरपेक्षता के महान दार्शनिक थे।
प्रश्न 8.
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय प्रतिमान की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय मॉडल के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय प्रतिमान (मॉडल) की विशेषताएँ। (लक्षण)-धर्मनिरपेक्षता का भारतीय प्रतिमान अपने आप में विशिष्ट है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) प्राचीन भारतीय सभ्यता व आधुनिक पाश्चात्य सभ्यताओं के गुणों का मिश्रण-भारतीय धर्मनिरपेक्षता में प्राचीन भारतीय सभ्यता की 'सहनशीलता' और आधुनिक पाश्चात्य सभ्यता की 'समानता' जैसी धारणाओं का मिश्रण पाया जाता है। यह अन्य धर्मों के प्रति सहनशील होने के साथ-साथ विभिन्न धर्मों के बीच तथा धर्मों के भीतर सभी सम्प्रदाय के लोगों के लिए समानता की भी पक्षधर है।
(ii) विभिन्न धर्मों को समानता की स्थिति प्रदान करना भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर विभिन्न धर्मों के बीच समानता की स्थिति प्रदान करने पर भी है। इसके लिए राज्य को यह अधिकार भी प्राप्त है कि वह धार्मिक दृष्टि से अल्पसंख्यक समुदायों को सहायता प्रदान करे तथा उनके हितों का संरक्षण करे।
(iii) धर्म में राज्य के सकारात्मक हस्तक्षेप को स्वीकार करना-भारतीय धर्मनिरपेक्षता की यह भी विशेषता है कि यह धर्म में राज्य के सकारात्मक हस्तक्षेप को स्वीकार करती है। यह समाज सुधार व धर्म में व्याप्त असमानताओं को समाप्त करने के लिए राज्य को कानून बनाने की अनुमति भी देती है। इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता के तहत राज्य को धर्म से हर परिस्थिति में अलग नहीं रखा गया है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा-150 शब्द)
प्रश्न 1.
धर्मनिरपेक्ष राज्य से आप क्या समझते हैं ? धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की अनिवार्य शर्ते क्या
उत्तर:
धर्मनिरपेक्ष राज्य-वह राज्य जिसमें सभी धर्मों का समान आदर किया जाए तथा राज्यसत्ता किसी भी धर्म विशेष से स्वयं को अलग रखे, धर्मनिरपेक्ष राज्य कहलाता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी धर्मों के व्यक्तियों को अपने-अपने धर्म को मानने तथा उससे जुड़े रीति-रिवाजों व परम्पराओं को मनाने की पूरी स्वतन्त्रता होती है। उदाहरण के लिए भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं।
धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की अनिवार्य शर्ते धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की निम्नलिखित अनिवार्य शर्ते हैं
(i) राज्यसत्ता और धर्म में उचित दूरी-धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए पहली अनिवार्य शर्त यह है कि राज्यसत्ता और धर्म के बीच में उचित दूरी स्थापित की जाए। राज्यसत्ता के निर्णयों, कानूनों, नीतियों इत्यादि पर धर्म का प्रभाव नहीं होना चाहिए।
(ii) राज्यसत्ता की गैर धार्मिक सिद्धान्तों व मूल्यों में आस्था-धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए यह भी आवश्यक है कि राज्यसत्ता की गैर धार्मिक स्रोतों से उत्पन्न सिद्धान्तों व मूल्यों के प्रति आस्था व विश्वास होना चाहिए। राज्यसत्ता की प्रत्येक कार्यवाही कम या ज्यादा रूप में इन्हीं सिद्धान्तों व मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए।
(iii) नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार दिया जाए-धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए यह भी आवश्यक है कि सभी नागरिकों को समान रूप से अपने अन्त:करण के अनुसार धर्म को मानने तथा उससे जुड़े रीति-रिवाजों को अपनाने की पूरी स्वतन्त्रता प्रदान की जाए। ऐसा करने से राज्य में धार्मिक भाईचारा व शान्ति बनी रहती है तथा सभी धर्मों के लोगों को पूरा सम्मान मिलता है।
(iv) धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा-धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए यह भी आवश्यक है कि उसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों व हितों की रक्षा की जाए। अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए राज्य विशेष नीतियों व कानून भी बना सकता है।
प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान से आप क्या समझते हैं ? इसके गुण व दोषों का वर्णन कीजिए।
अथवा
धर्म निरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय प्रतिमान (मॉडल)-आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की धारणा का उदय 18वीं-19वीं सदी में यूरोपीय देशों में हुआ। इसे ही धर्मनिरपेक्षता की धारणा का यूरोपीय प्रतिमान (मॉडल) कहा जाता है। इसका ज्वलन्त उदाहरण हमारे सामने 'अमेरिका' में अपनायी गयी धर्मनिरपेक्षता की धारणा और इसका क्रियान्वयन है।
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान के गुण-धर्म-निरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान के दोष-यूरोपीय प्रतिमान के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं
(i) राज्य का उदासीन बने रहना-यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता का सबसे बड़ा दोष है कि यह राज्य को प्रत्येक स्थिति में उद पीन बनाए रखती है। धार्मिक सुधारों या कुरीतियों के मामले में भी राज्य हस्तक्षेप नहीं कर सकता। धार्मिक समुदायों द्वारा यदि दूसरे समुदायों का बहिष्कार किया जाए तो भी राज्य कुछ नहीं कर सकता।
(ii) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर अत्यधिक बल-यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता का यह भी दोष है कि यह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर अत्यधिक बल देती है। इसमें विविध धर्मों के बीच तथा धर्म के भीतर विभिन्न समुदायों, वर्गों व लोगों की समानता की उपेक्षा की गई है। इस प्रकार यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता अत्यधिक व्यक्तिवादी प्रतीत होती है। यह सामाजिक सुधारों व धार्मिक सुधारों के क्षेत्र में राज्य को सकारात्मक कदम उठाने से रोकती है।
प्रश्न 3.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता से विभिन्नताओं पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता, यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप में भिन्न है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता केवल धर्म और राज्य के बीच दूरी पर बल नहीं देती, बल्कि यह विभिन्न धर्मों के बीच समानता को भी महत्वपूर्ण मानती है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता की यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता से निम्नलिखित विभिन्नताओं का उल्लेख किया जा सकता है
(i) विशिष्ट स्वरूप-भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में विशिष्ट स्वरूप की है। इसमें भारतीय सभ्यता की सहनशीलता और पाश्चात्य सभ्यता की स्वतन्त्रता व समानता जैसी संकल्पनाओं का मिश्रण मौजूद है। यह सम्मिश्रण भारतीय धर्मनिरपेक्षता को अपने आप में विशिष्ट पहचान प्रदान करता है।
(ii) व्यक्तियों के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी पर बल-भारतीय धर्मनिरपेक्षता यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता से इस मामले में भी भिन्न है। यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता हाँ व्यक्तियों की धार्मिक स्वतन्त्रता पर ही पूरा ध्यान केन्द्रित किये हुए है वहीं, भारतीय धर्मनिरपेक्षता में व्यक्तियों की धार्मिक स्वतन्त्रता के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी पर भी समान रूप से बल दिया जाता है। इसके अन्तर्गत धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम रखने का अधिकार प्राप्त है।
(iii) राज्य समर्थित धार्मिक सुधार-भारतीय धर्मनिरपेक्षता और यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता के बीच यह भी एक बड़ी भिन्नता है। यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता जहाँ राज्य के धार्मिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करती है वहीं भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य के सामाजिक सुधारों व धार्मिक सुधारों के लिए भी पूरी सम्भावनाएँ मौजूद हैं। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान ने छुआछूत (अस्पृश्यता) पर प्रतिबन्ध लगाया है। हिन्दू धर्म में अन्य जाति में विवाह को गलत माना जाता था, इसे भारतीय कानूनों के तहत सही माना गया है। इस प्रकार भारत में राज्य धार्मिक व सामाजिक सुधारों के लिए धार्मिक मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता उपर्युक्त आधारों पर यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता से काफी हद तक भिन्न है।
प्रश्न 4.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:भारतीय धर्मनिरपेक्षता तीखी आलोचनाओं का विषय बनी हुई है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित प्रमुख आलोचनाओं का उल्लेख किया जा सकता है-
(i) धर्म-विरोधी होना भारतीय धर्मनिरपेक्षता के आलोचक इसे धर्मविरोधी बताते हैं। ऐसा आरोप शायद इसलिए लगाया जाता है कि यह किसी भी प्रकार के संस्थागत धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है। परन्तु व्यावहारिकता में देखा जाए तो यह धर्म विरोधी होने का कोई आधार नहीं है। लोगों का तर्क है कि यह धार्मिक पहचान के लिए खतरा पैदा करती है। लेकिन वास्तविकता में यह सत्य नहीं है क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता धार्मिक स्वतन्त्रता और समानता को बढ़ावा देती है।
(ii) पश्चिम की नकल होना-भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की नकल होने का भी आरोप लगाया जाता है। आलोचकों का मानना है कि धर्मनिरपेक्षता ईसाइयत से जुड़ी हुई वस्तु है इसलिए यह भारतीय स्थितियों के लिए उपयुक्त नहीं है। परन्तु यह आलोचना भी झूठी प्रतीत होती है क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जन्म भारतीय स्थितियों के अनुकूल ही हुआ
(iii) अल्पसंख्यकों को अधिक प्रोत्साहन-भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर अल्पसंख्यकों को अधिक प्रोत्साहन देने का भी आरोप लगाया जाता है। आलोचकों का मत है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक अधिकारों की ज्यादा ही पैरवी करती है। यह भी सत्य प्रतीत नहीं होता क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक वर्गों को भी समान धार्मिक आजादी देती है। इसे सुनिश्चित करने के लिए ही कुछ विशेष कानूनों व नीतियों को बनाया जाता है। यह हमारे देश की एकता और अखण्डता को बनाए रखने में बहुत उपयोगी है।
(iv) एक असम्भव परियोजना-भारतीय धर्मनिरपेक्षता की एक आलोचना यह भी की जाती है कि यह एक असम्भव परियोजना है। यह गहरे धार्मिक मतभेद वाले लोगों को एक साथ सदैव शान्ति से रखना चाहती है जो असम्भव है। वास्तविकता में यह आलोचना भी व्यर्थ प्रतीत होती है। भारतीय सभ्यता का इतिहास बताता है कि इस तरह साथ-साथ रहना बिल्कुल सम्भव है। अन्त में हम कह सकते हैं कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में विशिष्ट और महत्वपूर्ण है। हमारे देश की एकता और अखण्डता में इसका बहुत बड़ा योगदान है। अतः इसकी विभिन्न आलोचनाएँ जल्दबाजी में या आवेश में निकाले गये निष्कर्ष मात्र ही हैं। इनमें वास्तविक तथ्यों का अभाव है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसका तात्पर्य है
(अ) नागरिक कानून के सामने सभी समान हैं
(ब) उसका राज्य स्तर पर कोई धर्म नहीं है
(स) सभी वयस्कों को चुनाव में मत देने का अधिकार है
(द) सभी नागरिकों को भाषण देने की स्वतंत्रता है।
उत्तर:
(ब) उसका राज्य स्तर पर कोई धर्म नहीं है
प्रश्न 2.
भारत का संविधान मान्यता प्रदान करता है
(अ) केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों को
(ब) केवल भाषायी अल्पसंख्यकों को
(स) धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को
(द) धार्मिक, भाषायी एवं नृजातीय अल्पसंख्यकों को।
उत्तर:
(स) धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को
प्रश्न 3.
प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिन्तकों के अनुसार धर्म का अर्थ है
(अ) परम्परा तथा विधि
(ब) कर्तव्य
(स) समग्र अध्ययन
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(ब) कर्तव्य
प्रश्न 4.
नागरिक समाज की संकल्पना की उत्पत्ति हुई
(अ) धर्म सुधार से
(ब) फ्रांसीसी क्रांति से
(स) अमेरिकी क्रांति से
(द) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर:
(अ) धर्म सुधार से
प्रश्न 5.
भारत में साम्प्रदायिकता की वृद्धि का प्रमुख उत्तरदायी तत्व है
(अ) अनेक धर्मों को उपस्थिति
(ब) साम्प्रदायिक संघर्ष के पुराने इतिवृत्त
(स) समूह आधारित राजनीतिक संघटन
(द) संविधान की विभेदीकरण प्रकृति।
उत्तर:
(स) समूह आधारित राजनीतिक संघटन
प्रश्न 6.
धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में नीचे दिए गए कथनों पर विचार कीजिए
1. यह धार्मिक दर्शन का संवर्धन करती है।
2. यह धर्म को राजनीति से पृथक करती है।
3. यह धार्मिक संगठनों को राज्य के समर्थन का निषेध करती है।
4. यह धार्मिक विचार और विचारधारा का विरोध करती है। उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
(अ) केवल 2
(ब) 1 और 3
(स) 2 और 3
(द) 1, 2, 3 और 4
उत्तर:
(स) 2 और 3
प्रश्न 7.
समानता के मुख्य लक्षण हैं
1. विशेषाधिकारों का अभाव।
2. सभी व्यक्तियों को अपनी क्रियात्मक शक्तियों के विकास के समान अवसर।
3. जाति, धर्म तथा रंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव न करना।
4. संसाधनों तथा सम्पत्ति का समान वितरण। निम्न कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर का चयन कीजिए
(अ) 1, 2 और 3
(ब) 2, 3 और 4
(स) 1, 3 और 4
(द) 1, 2 और 4
उत्तर:
(अ) 1, 2 और 3
प्रश्न 8.
स्वतंत्रता और समानता का सर्वश्रेष्ठ सामंजस्य प्राप्त करना सम्भव है
(अ) उदारवादी व्यवस्था के अन्तर्गत
(ब) समाजवादी व्यवस्था के अन्तर्गत
(स) लोकतांत्रिक समाजवाद के अन्तर्गत
(द) आदर्शवाद के अन्तर्गत।
उत्तर:
(स) लोकतांत्रिक समाजवाद के अन्तर्गत