Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 8 स्थानीय शासन Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्न में से किस वर्ष स्थानीय शासन की संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया था
(क) सन् 1993
(ख) सन् 1994
(ग) सन् 2002
(घ) सन् 2012.
उत्तर:
(क) सन् 1993
प्रश्न 2.
ग्राम पंचायत का कार्यकाल कितना होता है ?
(क) एक वर्ष
(ख) दो वर्ष
(ग) चार वर्ष
(घ) पाँच वर्ष।
उत्तर:
(घ) पाँच वर्ष।
प्रश्न 3.
पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया है
(क) 22%
(ख) 27%
(ग) 33%
(घ) 45%.
उत्तर:
(ग) 33%
प्रश्न 4.
पंचायती राज व्यवस्था में एकरूपता संविधान के किस संशोधन द्वारा लाई गई ?
(क) 42वें संशोधन द्वारा
(ख) 46वें संशोधन द्वारा
(ग) 74वें संशोधन द्वारा
(घ) 73वें संशोधन द्वारा
उत्तर:
(घ) 73वें संशोधन द्वारा
प्रश्न 5.
नगर निगम के अध्यक्ष को कहा जाता है
(क) मेयर (महापौर)
(ख) सभापति
(ग) अध्यक्ष
(घ) सरपंच।
उत्तर:
(क) मेयर (महापौर)
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (शब्द सीमा-20 शब्द)
प्रश्न 1.
गीता राठौड़ कौन है ?
उत्तर:
गीता राठौड़ मध्यप्रदेश के जिला सिहोर के जमनिया तालाब ग्राम पंचायत की रहने वाली है।
प्रश्न 2.
गीता राठौड़ कितनी बार सरपंच चुनी गईं और क्यों ?
उत्तर:
गीता राठौड़ पहली बार 1995 ई. में तथा दूसरी बार 2000 ई. में लगातार दो बार अपने अच्छे कामों के लिए सरपंच चुनी गईं।
प्रश्न 3.
गीता राठौड़ ने जनशक्ति का उपयोग किस प्रकार किया ?
उत्तर:
गीता राठौड़ ने अपनी पंचायत की जनशक्ति का उपयोग तालाब को पक्का बनवाने, स्कूल की इमारत और गाँव की सड़क बनवाने में किया।
प्रश्न 4.
सन् 1997 में तमिलनाडु की सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को क्या आवंटित की ?
उत्तर:
सन् 1997 में तमिलनाडु की सरकार ने अपने 71 सरकारी कर्मचारियों को वेंगैवसल ग्राम पंचायत की 2-2 हेक्टेयर जमीन आवंटित की।
प्रश्न 5.
कलेक्टर द्वारा जमीन अधिग्रहण आदेश के विरोध में वेंगैवसल ग्राम पंचायत ने क्या किया ?
उत्तर:
कलेक्टर द्वारा जमीन अधिग्रहण आदेश के विरोध में वेंगवसल ग्राम पंचायत ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की।
प्रश्न 6.
मद्रास उच्च न्यायालय की एकल खंडपीठ ने जमीन अधिग्रहण के संबंध में क्या फैसला दिया ?
उत्तर:
एकल खंडपीठ ने कलेक्टर के आदेश को जायज बताते हुए फैसला दिया कि जमीन अधिग्रहण के संबंध में ग्राम पंचायत की अनुमति आवश्यक नहीं है।
प्रश्न 7.
स्थानीय शासन की संस्थाओं को कब संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ?
उत्तर:
स्थानीय शासन की संस्थाओं को सन् 1993 में संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया, जिससे पूरे भारत में बदलाव की लहर चल पड़ी।
प्रश्न 8.
स्थानीय शासन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
गाँव और जिला स्तर का वह शासन जो आम आदमी के सबसे निकट होता है, स्थानीय शासन कहते हैं।
प्रश्न 9.
स्थानीय शासन का विषय क्या है ?
उत्तर:
स्थानीय शासन का विषय आम नागरिकों की समस्याओं के साथ-साथ उनकी रोजमर्रा (दैनिक) की जिन्दगी है।
प्रश्न 10.
जीवंत और मजबूत स्थानीय शासन क्या सुनिश्चित करता है ?
उत्तर:
जीवंत और मजबूत स्थानीय शासन वहाँ के लोगों की सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
प्रश्न 11.
ग्राम समुदाय प्राचीन भारत में किस रूप में मौजूद थे ?
उत्तर:
ऐसी मान्यता है कि अपना शासन खुद चलाने वाले ग्राम समुदाय प्राचीन भारत में 'सभा' के रूप में मौजूद थे।
प्रश्न 12.
आधुनिक भारत में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय कब अस्तित्व में आए ?
उत्तर:
आधुनिक भारत में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद अस्तित्व में आए।
प्रश्न 13.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय गाँधीजी ने सत्ता के विकेन्द्रीकरण के सन्दर्भ में क्या कहा था ?
उत्तर:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय गाँधीजी ने जोर देकर कहा था कि आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण . होना चाहिए।
प्रश्न 14.
गाँधीजी किसे सत्ता के विकेन्द्रीकरण का कारगर साधन मानते थे ?
उत्तर:
गाँधीजी ग्राम पंचायतों को अधिक मजबूत बनाना सत्ता के विकेन्द्रीकरण का कारगर साधन मानते थे।
प्रश्न 15.
स्थानीय शासन को किस संविधान संशोधन के बाद मजबूत आधार प्राप्त हुआ?
उत्तर:
स्थानीय शासन को संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बाद मजबूत आधार प्राप्त हुआ।
प्रश्न 16.
1952 के सामुदायिक विकास कार्यक्रम के पीछे क्या सोच थी ?
उत्तर:
1952 के सामुदायिक विकास कार्यक्रम के पीछे यही सोच थी कि स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हो।
प्रश्न 17.
स्थानीय विकास की गतिविधियों में जनता की भागीदारी हेतु कैसे पंचायती राज की व्यवस्था की सिफारिश की गई?
उत्तर:
स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हेतु ग्रामीण इलाकों के लिए एक त्रि-स्तरीय पंचायती राज-व्यवस्था की सिफारिश की गई।
प्रश्न 18.
स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश किसने और कब की ?
उत्तर:
स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश पी. के. डुंगन समिति ने सन् 1989 में की।
प्रश्न 19.
सन् 1989 में केन्द्र सरकार के दो संविधान संशोधनों का लक्ष्य क्या था ?
उत्तर:
केन्द्र सरकार के दो संविधान संशोधनों का लक्ष्य स्थानीय शासन को मजबूत बनाकर देशभर में इसके कामकाज तथा बनावट में एकरूपता लाना था।
प्रश्न 20.
स्थानीय शासन से सम्बन्धित संविधान के किन संशोधनों को संसद में पारित किया गया और ये कब लागू हुए ?
उत्तर:
सन् 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन संसद में पारित किए गए और सन् 1993 में लागू हुए।
प्रश्न 21.
संविधान के 73वें संशोधन में किस बात का प्रावधान है ?
उत्तर:
संविधान के 73वें संशोधन में इस बात का प्रावधान किया गया है कि ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनाई जाए।
प्रश्न 22.
पंचायती हलके (ग्राम पंचायत) में ग्राम सभा का सदस्य कौन होता है ?
उत्तर:
पंचायती हलके में मतदाता के रूप में दर्ज (अंकित) प्रत्येक वयस्क व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है।
प्रश्न 23.
पंचायती राज संस्थाओं की समयावधि बताइए।
उत्तर-:
पाँच वर्ष।
प्रश्न 24.
संविधान के 73वें संशोधन के पहले जिला पंचायती निकायों में चुनाव की रीति क्या थी?
उत्तर:
संविधान के 73वें संशोधन के पहले कई प्रदेशों में जिला पंचायती निकायों के चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से होते थे।
प्रश्न 25.
संविधान की 11वीं अनुसूची में अंकित 29 विषयों का संबंध किनसे है ?
उत्तर:
संविधान की 11वीं अनुसूची में अंकित 29 विषयों का संबंध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कार्यों से है।
प्रश्न 26.
राज्य चुनाव आयुक्त की क्या जिम्मेदारी है ?
उत्तर:
पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराना।
प्रश्न 27.
2001 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या का कितना प्रतिशत शहरी क्षेत्र में रहता है ?
उत्तर:
2001 की जनगणना के अनुसार भारत की 31 प्रतिशत जनसंख्या शहरी या नगरपालिका क्षेत्र में रहती है।
प्रश्न 28.
स्थानीय निकाय वित्तीय मदद के लिए किन पर निर्भर करते हैं और क्यों ?
उत्तर:
स्थानीय निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश और केन्द्र सरकार पर निर्भर होते हैं, क्योंकि उनके पास धन की बहुत कमी होती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-40 शब्द)
प्रश्न 1.
स्थानीय शासकीय निकायों का महत्व स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर;
स्थानीय शासकीय निकायों का महत्व यह है कि स्थानीय शासन गाँव और जिला स्तर पर स्थानीय लोगों द्वारा होता है। स्थानीय शासन लोगों के सबसे निकट होता है। इस कारण आम लोगों की समस्याओं का समाधान बहुत तेजी से तथा कम खर्च में हो जाता है। स्थानीय शासन लोगों के स्थानीय हितों की रक्षा में अत्यन्त कारगर सिद्ध होता है।
प्रश्न 2.
स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना है, कैसे ?
उत्तर;
स्थानीय स्तर पर किए जाने वाले कार्य स्थानीय लोगों और उनके प्रतिनिधियों के हाथों में ही रहने चाहिए। यह लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि स्थानीय शासन के कार्यकलापों का अधिक संबंध आम जनता के दैनिक जीवन से होता है। इस प्रकार, स्थानीय शासन को मजबूत करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना है।
प्रश्न 3.
आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण के संबंध में गाँधीजी की क्या मान्यता थी?
उत्तर:
आर्थिक और राजनीतिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण के संबंध में गाँधीजी की मान्यता थी, ग्राम पंचायत को मजबूत बनाने के लिए सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। स्थानीय विकास के हर प्रयास में वहाँ के लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। गाँधीजी के अनुसार पंचायत सहभागी लोकतंत्र को स्थापित करने का साधन है।
प्रश्न 4.
गाँधीजी के अनुसार आजादी की शुरुआत कहाँ से होनी चाहिए और क्यों ?
उत्तर:
गाँधीजी के अनुसार भारत की आजादी की शुरुआत सबसे नीचे अर्थात् ग्रामीण स्तर से होनी चाहिए। ऐसा होने से हर गाँव एक गणराज्य होगा अर्थात् हर गाँव को आत्मनिर्भर और अपने मामले खुद निपटाने में सक्षम होना होगा। जीवन एक पिरामिड की तरह होगा जिसका शीर्ष (सबसे ऊपर का भाग अर्थात् प्रदेश एवं केन्द्र) आधार (सबसे नीचे के भाग-ग्राम पंचायत) पर टिका होगा।
प्रश्न 5.
संविधान के 'नीति निर्देशक-सिद्धांत' में स्थानीय शासन के विषय में क्या कहा गया है ?
उत्तर:
संविधान बनने के बाद स्थानीय शासन के विषय प्रदेशों को सौंप दिए गए। संविधान के 'नीति-निर्देशक सिद्धान्तों' में कहा गया है कि देश की हर सरकार अपनी नीति में इसे एक निर्देशक तत्व मानकर चले। राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों का अंग होने के कारण संविधान का यह प्रावधान न्यायालयी वाद की सीमा में नहीं आता।
प्रश्न 6.
स्थानीय शासन की समस्याओं को संविधान में यथोचित महत्व क्यों नहीं मिला ?
उत्तर:
स्थानीय शासन की समस्याओं को संविधान में यथोचित महत्व नहीं मिला, इसके कई कारण थे। इसका पहला कारण था कि देश-विभाजन की घटना के कारण संविधान का झुकाव केन्द्र की मजबूती की ओर था। दूसरा, डॉ. बी. आर. अंबेडकर का कहना था कि अभी ग्रामीण भारत में जाति-पाँति और आपसी फूट का बोलबाला है। ऐसे वातावरण में स्थानीय शासन का उद्देश्य नष्ट हो जाएगा।
प्रश्न 7.
संविधान सभा के सदस्य विकास योजनाओं में जन-भागीदारी को महत्वपूर्ण मानते थे, फिर भी उन्हें किस बात की चिन्ता थी?
उत्तर:
संविधान सभा के सभी सदस्य-विकास योजनाओं में जन-भागीदारी को महत्वपूर्ण मानते थे। संविधान सभा के बहुत-से सदस्य चाहते थे कि भारत में लोकतंत्र का आधार ग्राम पंचायत हो, किन्तु इस बात की गहरी चिन्ता थी कि गाँवों में गुटबाजी तथा अन्य बुराइयाँ भी हैं। ऐसी स्थिति में जन-भागीदारी शायद ठीक नहीं होगी।
प्रश्न 8.
संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के पहले स्थानीय शासन के निकाय बनाने के लिए किए गए प्रयासों की सोच क्या थी ?
उत्तर:
संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के पहले स्थानीय शासन के निकाय बनाने के लिए कुछ प्रयास किए गए थे। उस प्रयास में पहला नाम 1952 के 'सामुदायिक विकास कार्यक्रम' (Community Development Programme) का आता है। इस कार्यक्रम के पीछे यही सोच थी कि स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी हो।
प्रश्न 9.
पी. के. डुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों के लिए क्या सिफारिश की ?
उत्तर:
सन् 1989 में पी. के. थंगन समिति द्वारा स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की गई। उस समिति की सिफारिश थी कि स्थानीय शासन की संस्थाओं के चुनाव समय-समय पर कराए जाएँ, उनके समुचित कार्यों की सूची तय की जाए तथा उन्हें धन प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाए।
प्रश्न 10.
1992 के 73वें और 74वें संविधान संशोधन का संबंध किन से है ?
उत्तर:
सन् 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन संसद में पारित किए गए। संविधान के इन संशोधनों में 73वाँ संशोधन गाँव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका संबंध पंचायती राज व्यवस्था की संस्थाओं से है। संविधान का 74वाँ संशोधन शहरी स्थानीय शासन (नगरपालिका) से जुड़ा है। ये दोनों संशोधन 1993 में लागू हुए।
प्रश्न 11.
प्रदेशों को स्थानीय शासन के बारे में अपनी तरह का कानून बनाने की छूट होने के बावजूद उन्हें अपने कानून क्यों बदलने पड़े ?
उत्तर:
स्थानीय शासन को राज्य सूची में रखकर प्रदेशों को इस बात की छूट दी गई कि वे स्थानीय शासन से संबंधित अपनी तरह का कानून बनाएँ। किन्तु संविधान में संशोधन हो जाने के कारण प्रदेशों को संशोधित संविधान के अनुरूप बनाने के लिए अपने कानून बदलने पड़े। 1993 में लागू इन संविधान संशोधनों के आलोक में प्रदेशों को स्थानीय शासन के अपने कानूनों में जरूरी बदलाव के लिए एक वर्ष का समय दिया गया।
प्रश्न 12.
राज्य सूची के 29 विषय जो अब संविधान की 11वीं अनुसूची में अंकित कर लिए गए हैं, किन्हें हस्तांतरित किया जाना है ?
उत्तर:
29 ऐसे विषय जो पहले राज्य सूची में थे, अब संविधान की 11वीं अनुसूची में अंकित कर लिए गए हैं। इन विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाना है। अधिकांश मामलों में इन विषयों का संबंध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास तथा कल्याण के कार्यों से है। इन कार्यों का वास्तविक हस्तांतरण राज्य के कानून पर निर्भर है कि इन विषयों में से कितने को स्थानीय निकायों को सौंपना है।
प्रश्न 13.
राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है और उसकी जिम्मेदारी क्या है ?
उत्तर:
राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार करती है। प्रदेशों के लिए राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति आवश्यक है। इस आयुक्त की जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की है। भारत के चुनाव आयुक्त के समान प्रदेश का चुनाव आयुक्त भी स्वायत्त (Autonomous) है। वह एक स्वतंत्र अधिकारी है। उसका अथवा उसके कार्यालय का संबंध भारत के चुनाव आयोग से नहीं होता।
प्रश्न 14.
राज्य वित्त आयोग के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
प्रदेश सरकार के लिए प्रत्येक पाँच वर्ष पर एक राज्य वित्त आयोग बनता है। यह आयोग प्रदेश के स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक दशा की जाँच-पड़ताल करता है। यह आयोग एक ओर प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के बीच और दूसरी ओर शहरी तथा ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के बीच राजस्व के बँटवारे का पुनरावलोकन करता है।
प्रश्न 15.
शहरी इलाका किसे कहते हैं अथवा भारत की जनगणना के अनुसार शहरी क्षेत्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर;
भारत की जनगणना के अनुसार शहरी क्षेत्र वह हैं। जिसमें
प्रश्न 16.
संविधान में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण प्रावधान का स्थानीय निकायों पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर:
संविधान में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का प्रावधान होने से स्थानीय निकायों की सामाजिक संरचना में भारी बदलाव आए हैं। ये निकाय जिस सामाजिक सच्चाई के बीच काम कर रहे हैं अब उस सच्चाई का प्रतिनिधित्व इन इकाइयों के द्वारा अधिक हो रहा है। कभी-कभी इससे तनाव पैदा हो जाता है। क्योंकि सामाजिक रूप से प्रभावशाली वर्ग गाँव पर अपना नियंत्रण और दबदबा छोड़ना नहीं चाहता। इससे सत्ता के लिए संघर्ष बढ़ जाता है।
प्रश्न 17.
स्थानीय निकाय वित्तीय अनुदान देने वालों पर क्यों निर्भर करते हैं ?
उत्तर:
स्थानीय निकायों के पास अपने धन की बहुत कमी होती है। इस कारण ये राज्य और केन्द्र की सरकारों पर वित्तीय (धन संबंधी) सहायता के लिए निर्भर होते हैं। इससे यह कारगर ढंग से काम करने में अक्षम होते हैं। शहरी स्थानीय निकायों की राजस्व से कुल उगाही 0.24 प्रतिशत होती है जबकि सरकारी खर्च 4 प्रतिशत होता है। इस प्रकार से कमाते कम और खर्च अधिक करते हैं। अत: ये अनुदान देने वाले पर निर्भर होते हैं।
लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-100 शब्द)
प्रश्न 1.
स्थानीय शासन का क्या अर्थ है? स्थानीय सरकार की आवश्यकता क्यों पड़ती है, बताइए।
उत्तर:
स्थानीय शासन से आशय- गाँव एवं जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं। सरल शब्दों में स्थानीय शासन का अर्थ है- स्थानीय कार्यों के लिए चुना गया निकाय जो विशिष्ट सीमा तक स्वायत्त होता है। और एक प्रशासनिक इकाई के रूप में कार्य करता है।
स्थानीय सरकार की आवश्यकता- हमें स्थानीय सरकार की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से पड़ती है।
प्रश्न 2.
भारत में स्थानीय शासन का विकास कैसे हुआ ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में स्थानीय शासन का विकास-भारत में स्थानीय शासन के विकास के संबंध में माना जाता है कि अपना शासन खुद चलाने वाले ग्राम समुदाय प्राचीन भारत में सभा' के रूप में उपस्थित थे। समय परिवर्तन के साथ ही गाँवों की इन सभाओं ने पंचायत का रूप ले लिया। समय में बदलाव के साथ-साथ पंचायतों की भूमिका और कार्य में भी बदलाव आते रहे। आधुनिक समय में स्थानीय शासन के निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद अस्तित्व में आए। भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड रिपन ने इन निकायों को बनाने की दिशा में प्रयास किया। उस समय इन निकायों को मुकामी बोर्ड (Local Board) कहा जाता था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा सभी स्थानीय बोर्डों को अधिक कारगर बनाने की माँग सरकार से की गई। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1919 के बनने पर अनेक प्रांतों में ग्राम पंचायत बनी। सन् 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बनने के बाद भी यह प्रवृत्ति बनी रही।
प्रश्न 3.
स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन की स्थिति-संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के पहले स्थानीय शासन निकाय बनाने के प्रयासों में पहला प्रयास था 1952 के सामुदायिक विकास कार्यक्रम। इस कार्यक्रम के पीछे स्थानीय विकास की विभिन्न गतिविधियों में जनता की भागीदारी होने की सोच थी। इसी संदर्भ में ग्रामीण इलाकों के लिए एक त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की गई। कुछ प्रदेशों ने सन् 1960 में निर्वाचन द्वारा बने स्थानीय निकायों की प्रणाली अपनाई लेकिन अनेक प्रदेशों के स्थानीय निकाय अपनी शक्तिहीनता के कारण स्थानीय विकास की देखभाल नहीं कर सके ।
वे निकाय वित्तीय सहायता के लिए प्रदेश तथा केन्द्र सरकारों पर बहुत अधिक निर्भर थे। कई प्रदेशों ने निर्वाचन द्वारा स्थानीय निकाय स्थापित करने की आवश्यकता ही नहीं समझी। कई प्रदेशों में स्थानीय निकायों के अप्रत्यक्ष रीति से चुनाव हुए और अनेक प्रदेशों में समय-समय पर चुनाव स्थगित होते रहे। सन् 1989 में पी. के. थंगन समिति द्वारा स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान कर समय-समय पर चुनाव कराने तथा उन्हें धन प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन करने की सिफारिश की गई।
प्रश्न 4.
सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था की बनावट का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायती राज व्यवस्था की बनावट-सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था की बनावट त्रि-स्तरीय है। ग्राम पंचायत पहली पायदान पर अर्थात् सबसे नीचे है। ग्राम पंचायत की सीमा में एक या एक से अधिक गाँव होते हैं। मध्यवर्ती स्तर अर्थात् बीच का पायदान मंडल का है, जिसे खंड (Block) या तालुका भी कहा जाता है। इस स्तर पर कायम (स्थित) स्थानीय शासन के निकाय का मंडल या तालुका पंचायत कहा जाता है। छोटे प्रदेशों में मंडल या तालुका पंचायत अर्थात् मध्यवर्ती स्तर बनाने की आवश्यकता नहीं है। सबसे ऊपर वाले पायदान (स्तर) पर जिला पंचायत का स्थान है। इसकी सीमा में जिले का पूरा ग्रामीण क्षेत्र आता है। संविधान के 73वें संशोधन में प्रावधान है कि ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनाई जानी चाहिए। पंचायती क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज हर वयस्क व्यक्ति ग्राम सभा का सदस्य होता है। ग्राम सभा की भूमिका और कार्य का फैसला प्रदेश के कानूनों के अनुसार होता है।
प्रश्न 5.
73वें संविधान संशोधन के प्रावधानों में पंचायती राज की संस्थाओं में चुनाव की क्या प्रक्रिया है ?
उत्तर-पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव की प्रक्रिया- 73वें संविधान संशोधन के प्रावधान के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं की तीनों स्तरों के चुनाव सीधे जनता करती है। हर पंचायती निकाय की अवधि पाँच वर्ष की होती है। यदि प्रदेश की सरकार पाँच वर्ष की अवधि पूरी होने के पहले पंचायत को भंग कर देती है, तो किसी भी स्थिति में छह माह के अन्दर नए चुनाव हो जाने चाहिए। निर्वाचित स्थानीय निकायों के अस्तित्व को सुनिश्चित रखने वाला यह महत्वपूर्ण प्रावधान है। संविधान के 73वें संशोधन से पहले कई प्रदेशों में जिला पंचायत निकायों (संस्थाओं) के चुनाव अप्रत्यक्ष रीति से होते थे। किन्तु पंचायती संस्थाओं को भंग करने के बाद तत्काल चुनाव कराने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था। यह प्रावधान संविधान के 73वें संशोधन से हुआ।
प्रश्न 6.
73वें संविधान संशोधन में पंचायती संस्थाओं में आरक्षण के प्रावधान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पंचायती संस्थाओं में आरक्षण का प्रावधान-73वें संविधान संशोधन के प्रावधान के अनुसार सभी स्तर के पंचायती संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीट आरक्षित है। पंचायत के तीनों स्तरों पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। आवश्यकता समझने पर प्रदेश की सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दे सकती है। यह आरक्षण पंचायत के मात्र साधारण सदस्यों तक ही सीमित न होकर तीनों ही स्तरों पर अध्यक्ष पद तक दिया गया है। सामान्य श्रेणी की सीटों पर ही महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण नहीं दिया गया है बल्कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट पर भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की व्यवस्था है। तात्पर्य यह कि कोई सीट महिला और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए साथ-साथ आरक्षित की जा सकती है। इस प्रकार, सरपंच का पद कोई दलित महिला अथवा आदिवासी महिला पा सकती है।
प्रश्न 7.
11वीं अनुसूची में दर्ज प्रमुख विषयों की सूची बनाइएँ।
उत्तर:
11वी अनुसूची में दर्ज प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 8.
किस अधिनियम के प्रावधानों के तहत आदिवासी समुदायों को अपने रीति-रिवाज की रक्षा के अधिकार दिए गए हैं ? इस अधिनियम के मूल विचार क्या हैं ?
उत्तर:
भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों पर संविधान के 73वें संशोधन के प्रावधान लागू नहीं होते थे। सन् 1996 में अलग से एक अधिनियम बनाकर पंचायती व्यवस्था के प्रावधानों के दायरे में इन क्षेत्रों को शामिल कर लिया गया। अनेक आदिवासी समुदायों में जंगल और जल-जोहड़ जैसे साझे संसाधनों की देख-रेख के रीति-रिवाज मौजूद हैं। इस कारण से नए अधिनियम में आदिवासी समुदायों के इस अधिकार की रक्षा की गई है। आदिवासी अपने रीति-रिवाज के अनुसार संसाधनों की देखभाल कर सकते हैं। इस उद्देश्य से ऐसे क्षेत्रों की ग्राम सभा को अपेक्षाकृत अधिक अधिकार दिए गए हैं। निर्वाचित ग्राम पंचायत को कई मामलों में ग्राम सभा की अनुमति लेनी पड़ती है। इस अधिनियम का मूल विचार स्व-शासन की स्थानीय परंपरा की रक्षा करना तथा आधुनिक ढंग से निर्वाचित निकायों से ऐसे समुदायों को परिचित कराना है।
प्रश्न 9.
संविधान के 74वें संशोधन का संबंध किससे है ? भारत की जनगणना में उन क्षेत्रों की क्या परिभाषा दी गई है ?
उत्तर;
संविधान के 74वें संशोधन का संबंध शहरी स्थानीय शासन के निकाय अर्थात् नगरपालिका से है। शहरी इलाके गाँव और नगर के बीच के होते हैं। भारत की जनगणना में शहरी क्षेत्रों की परिभाषा में माना गया है कि ऐसे इलाके, जहाँ (क) कम-से-कम 5,000 की जनसंख्या हो, (ख) इस इलाके के कामकाजी पुरुषों में कम-से-कम 75 प्रतिशत खेती-बाड़ी के काम से अलग माने जाने वाले पेशे में हों तथा (ग) जनसंख्या का घनत्व कम-से-कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की 28 प्रतिशत जनसंख्या शहरी क्षेत्र में रहती है। कई रूपों में संविधान के 74वें संशोधन में 73वें,संशोधन को दुहराया गया है। 73वें संशोधन के सभी प्रावधान; जैसे-प्रत्यक्ष चुनाव, आरक्षण विषयों का हस्तांतरण, प्रादेशिक चुनाव आयुक्त तथा प्रादेशिक वित्त आयोग 74वें संशोधन में शामिल हैं जो नगरपालिकाओं पर लागू होते हैं।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-150 शब्द)
प्रश्न 1.
संविधान के 73वें संशोधन के कारण पंचायती राज व्यवस्था में क्या बदलाव आए ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संविधान के 73वें संशोधन के कारण पंचायती राज व्यवस्था में प्रमुख बदलाव- संविधान के 73वें संशोधन के कारण पंचायती राज व्यवस्था में निम्नलिखित प्रमुख बदलाव आए
1. त्रि-स्तरीय बनावट-73वें संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में त्रिस्तरीय संगठनात्मक संरचना सम्बन्धी प्रावधान किए गए हैं। प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर, मध्यवर्ती स्तर और जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं के गठन के सम्बन्ध में अधिनियम बनाकर प्रावधान करने की स्वतन्त्रता भी दी गई है। इस अधिनियम में इस बात का भी प्रावधान है कि ग्राम सभा अनिवार्य रूप से बनाई जाए।
2. चुनाव व्यवस्था अधिनियम के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तर के चुनाव सीधे जनता करती है। प्रत्येक पंचायती निकाय का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। यदि प्रदेश सरकार किसी कारणवश अवधि पूरी होने से पहले पंचायत को भंग करती है, तो छह माह के अन्दर इसके नए चुनाव करा लेने होंगे। निर्वाचित स्थानीय निकायों के अस्तित्व को सुनिश्चित रखने वाला यह महत्वपूर्ण प्रावधान है।
3. आरक्षण-73वें संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण किया गया है। महिलाओं के लिए प्रत्येक पंचायती राज संस्था में कुल स्थानों के सापेक्ष एक-तिहाई स्थान आरक्षित किए गए हैं। इसमें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिए भी आरक्षण है। संविधान संशोधन में यह भी प्रावधान है कि ग्राम पंचायत व पंचायती राज की अन्य इकाइयों के अध्यक्षों के पद भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे।
4. विषयों का हस्तांतरण-29 विषय जो पहले राज्य सूची में थे अब संविधान की 11वीं अनुसूची में अंकित कर उन्हें पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित कर दिया गया है। इन विषयों का सम्बन्ध स्थानीय स्तर पर होने वाले विकास और कल्याण के कामकाज से है।
5. राज्य चुनाव आयुक्त-प्रदेशों में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है। प्रदेश का चुनाव आयुक्त भी भारत के चुनाव आयुक्त के समान स्वतंत्र अधिकारी है।
6. राज्य वित्त आयोग-राज्य वित्त आयोग का गठन हर पाँच वर्ष पर होता है। यह आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शासन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति की जाँच-पड़ताल करेगा। यह आयोग एक ओर प्रदेश और स्थानीय शासन की व्यवस्थाओं के मध्य तो दूसरी ओर शहरी और ग्रामीण स्थानीय शासन की संस्थाओं के मध्य राजस्व के बँटवारे का भी पुनरावलोकन करता है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर।
प्रश्न 1.
73वें संशोधन का सम्बन्ध किससे हैं?
(अ) नगरपालिका निगम से
(ब) मकान किराया अधिनियम से
(स) पंचायती राज अधिनियम से
(द) सांसदों के वेतन एवं महँगाई भत्ता में वृद्धि से
उत्तर:
(स) पंचायती राज अधिनियम से
प्रश्न 2.
भारत में निम्नलिखित में से किसके अन्तर्गत पंचायती राज प्रणाली की व्यवस्था की गई है?
(अ) मौलिक अधिकार
(ब) मौलिक कर्त्तव्य
(स) नीति निर्देशक सिद्धांत
(द) चुनाव आयोग अधिनियम
उत्तर:
(स) नीति निर्देशक सिद्धांत
प्रश्न 3.
पंचायत के चुनाव कराने हेतु निर्णय किसके द्वारा लिया जाता है
(अ) केन्द्र सरकार
(ब) राज्य सरकार
(स) जिला न्यायाधीश
(द) चुनाव आयोग
उत्तर:
(ब) राज्य सरकार
प्रश्न 4.
भारत सरकार द्वारा सामुदायिक विकास योजना की शुरूआत की गई 2 अक्टूबर-
(अ) 1950 को
(ब) 1951 को
(स) 1952 को
(द) 1953 को
उत्तर:
(द) 1953 को
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौनसा संविधान संशोधन यह कहता है कि ग्राम पंचायत में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होनी चाहिए
(अ) 81वाँ
(ब) 84वाँ
(स) 71वाँ
(द) 73वाँ
उत्तर:
(द) 73वाँ
प्रश्न 6.
पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है
(अ) अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत
(ब) अनुच्छेद 243 के अन्तर्गत
(स) अनुच्छेद 239 के अन्तर्गत
(द) अनुच्छेद 219 के अन्तर्गत।
उत्तर:
(ब) अनुच्छेद 243 के अन्तर्गत