Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 6 नागरिकता Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
नागरिक अधिकारों के लिए फ्रांस में हिंसक क्रान्ति हुई थी
(क) 1788 ई.
(ख) 1789 ई.
(ग) 1790 ई.
(घ) 1791 ई.
उत्तर:
(ख) 1789 ई.
प्रश्न 2.
1950 के दशक में काले लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए आन्दोलन चलाने वाले प्रमुख नेता थे
(क) मार्टिन लूथर किंग जूनियर
(ख) अब्राहम लिंकन
(ग) नेल्सन मंडेला
(घ) आंग सान सू की
उत्तर:
(क) मार्टिन लूथर किंग जूनियर
प्रश्न 3.
प्रसिद्ध समाजशास्त्री टी. एच. मार्शल की नागरिकता सम्बन्धी पुस्तक का नाम है
(क) नागरिकता और समाज
(ख) नागरिकता और सामाजिक वर्ग
(ग) नागरिक और राष्ट्र
(घ) नागरिकता
उत्तर:
(ख) नागरिकता और सामाजिक वर्ग
प्रश्न 4.
मुम्बई में ओल्गा टेलिस द्वारा किन लोगों के लिए हक की आवाज उठाई गई ?
(क) झोंपड़पट्टी वालों की ।
(ख) डब्बे वालों की
(ग) कुलियों की
(घ) कारीगरों की।
उत्तर:
(क) झोंपड़पट्टी वालों की ।
निम्नलिखित में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. नागरिकता एक राजनीतिक समुदाय की................और.................सदस्यता है।
2. शरणार्थी और अवैध प्रवासियों को कोई राष्ट्र अपनी...................देने के लिए तैयार नहीं है।
3. राष्ट्र-राज्य की सम्प्रभुता और नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों का दावा सर्वप्रथम 1789 ई. में.................ने किया था।
4. .......................का अधिकार कामगारों के लिए विशेष महत्व का है।
उत्तर:
1. पूर्ण, समान
2. सदस्यता
3. फ्रांस के क्रांतिकारियों
4. गमनागमन।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा 20 शब्द)
प्रश्न 1.
नागरिकता की सुप्रसिद्ध परिभाषा क्या है ?
उत्तर:
नागरिकता एक राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता है।
प्रश्न 2.
नागरिकता के लोकतांत्रिक सिद्धान्तों में छिपा मूल अर्थ क्या है ?
उत्तर:
नागरिकता के लोकतांत्रिक सिद्धान्तों में छिपा मूल अर्थ है कि नागरिकता सार्वभौम (सभी जगह सबको प्राप्त) होनी चाहिए।
प्रश्न 3.
शरणार्थी किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वे लोग जो किसी प्राकृतिक आपदा, युद्ध या संघर्ष की स्थितियों अथवा आजीविका की तलाश में एक देश की राजनीतिक सीमा से दूसरे देश की राजनीतिक सीमा में आकर शरण ले लेते हैं, उन्हें शरणार्थी कहा जाता है।
प्रश्न 4.
किन लोगों को कोई राष्ट्र अपनी सदस्यता देने के लिए तैयार नहीं है ?
उत्तर:
शरणार्थी एवं अवैध प्रवासियों को कोई राष्ट्र अपनी सदस्यता देने के लिए तैयार नहीं है।
प्रश्न 5.
वह कौन-सा लक्ष्य है जिसके लिए शरणार्थी लोग संघर्ष करने को तैयार हैं ?
उत्तर:
वह लक्ष्य जिसके लिए शरणार्थी लोग संघर्ष करने को तैयार हैं, है-"अपने मनपसन्द राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता प्राप्त करना।"
प्रश्न 6.
किसे नागरिकता के बुनियादी अधिकारों में से एक माना जाता है ?
उत्तर:
अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता को नागरिकता के बुनियादी अधिकारों में से एक माना जाता है।
प्रश्न 7.
आज भी विश्व में नागरिकता से सम्बन्धित किन बातों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष जारी हैं ?
उत्तर:
आज भी विश्व में नागरिकता के क्षेत्र में पूर्ण सदस्यता और समान अधिकार पाने के लिए संघर्ष जारी है।
प्रश्न 8.
नागरिकता किन के आपसी सम्बन्धों का भी निर्धारण करती है ?
उत्तर:
नागरिकता नागरिकों के आपसी सम्बन्धों का भी निर्धारण करती है।
प्रश्न 9.
नागरिकता में समाज के प्रति क्या दायित्व सम्मिलित है ?
उत्तर:
नागरिकता में समाज के सहजीवन में भागीदार होने एवं योगदान करने का नैतिक दायित्व सम्मिलित है।
प्रश्न 10.
नागरिकों को देश की किन चीजों का उत्तराधिकारी और संरक्षक माना जाता है ?
उत्तर:
नागरिकों को किसी देश के सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों का उत्तराधिकारी और संरक्षक माना जाता है।
प्रश्न 11.
भारत में 'मुम्बई-मुम्बई वालों की' का नारा किस संघर्ष से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
भारत में 'मुम्बई-मुम्बई वालों की' का नारा भीतरी बनाम बाहरी लोगों के नागरिकता सम्बन्धी अधिकारों के संघर्ष । से सम्बन्धित है।
प्रश्न 12.
लोकतंत्र का नागरिकता के सम्बन्ध में बुनियादी सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर:
लोकतंत्र का नागरिकता के सम्बन्ध में बुनियादी सिद्धान्त यह है कि-"नागरिकता सम्बन्धी विवादों का समाधान बल प्रयोग की अपेक्षा संधि वार्ता और विचार-विमर्श से होना चाहिए।"
प्रश्न 13.
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर ने 1950 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में किन लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया ?
उत्तर:
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर ने 1950 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका के काले लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
प्रश्न 14.
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर ने गोरे बनाम काले लोगों के अलगाव की भावना को क्या संज्ञा दी है ?
उत्तर:
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर ने गोरे बनाम काले लोगों के अलग-अलग माने जाने की भावनाओं को 'राजनीति के चेहरे पर सामाजिक कोढ' की संज्ञा दी है।
प्रश्न 15.
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा काले लोगों को अधिकार दिये जाने के पक्ष में क्या महत्वपूर्ण तर्क दिया गया?
उत्तर:
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा काले लोगों को अधिकार दिये जाने के पक्ष में यह महत्वपूर्ण तर्क दिया गया कि"आत्म-गौरव व आत्म-सम्मान के मामले में विश्व की प्रत्येक जाति या वर्ण का मनुष्य बराबर है।"
प्रश्न 16.
पूर्ण और समान नागरिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
पूर्ण और समान नागरिकता का यह अर्थ है कि राजसत्ता द्वारा सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के बुनियादी अधिकारों और जीवन की गारंटी दी जानी चाहिए।
प्रश्न 17.
भारतीय शहरों में झोंपड़पट्टियों में रहने वाले बाहरी लोगों पर क्या आरोप लगाया जाता है ?
उत्तर:
भारतीय शहरों में झोंपड़पट्टियों में रहने वाले बाहरी लोगों पर सामान्यतया यह आरोप लगाया जाता है कि वे शहर के संसाधनों पर बोझ होते हैं और शहर में अपराध और बीमारियाँ फैलाते हैं।
प्रश्न 18.
भारत में फुटपाथी दुकानदारों के नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कब और कौन-सी नीति बनाई गई ?
उत्तर:
भारत में फुटपाथी दुकानदारों के नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए जनवरी, 2004 ई. में एक 'राष्ट्रीय नीति' बनाई गई।
प्रश्न 19.
झोंपड़पट्टी वालों को वोट देने जैसे बुनियादी नागरिक अधिकार का प्रयोग कठिन क्यों होता है ?
उत्तर:
झोंपड़पट्टी वालों को वोट देने जैसे बुनियादी नागरिक अधिकार का प्रयोग कठिन होता है, क्योंकि मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए स्थायी पते की आवश्यकता होती है। उनके लिए यह पता उपलब्ध ही नहीं होता।
प्रश्न 20.
टी. एच. मार्शल ने नागरिकता के सम्बन्ध में क्या तर्क दिया है ?
उत्तर:
टी. एच. मार्शल ने नागरिकता के सम्बन्ध में तर्क दिया है कि नागरिकता मात्र एक कानूनी धारणा नहीं है। इसका समानता और अधिकारों के व्यापक उद्देश्यों से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है।
प्रश्न 21.
टी. एच. मार्शल ने सामाजिक वर्ग को किस व्यवस्था के रूप में प्रदर्शित किया है ?
उत्तर:
टी. एच. मार्शल ने सामाजिक वर्ग को 'असमानता की व्यवस्था' के रूप में प्रदर्शित किया है।
प्रश्न 22.
मार्शल की नागरिकता की धारणा में मूल रूप से कौन-सी संकल्पना मौजूद है ?
उत्तर:
मार्शल की नागरिकता की धारणा में मूल रूप से 'समानता' की संकल्पना मौजूद है।
प्रश्न 23.
टी. एच. मार्शल नागरिकता में किन अधिकारों को शामिल मानते हैं ?
उत्तर:
टी. एच. मार्शल नागरिकता में तीन प्रकार के अधिकारों को शामिल मानते हैं
प्रश्न 24.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में नागरिकों को जीवन जीने के अधिकार की गारंटी दी गई है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में नागरिकों को जीवन जीने के अधिकार की गारंटी दी गई है।
प्रश्न 25.
राष्ट्र-राज्य की धारणा कब विकसित हुई ?
उत्तर:
राष्ट्र-राज्य की धारणा आधुनिक (19वीं-20वीं सदी) काल में विकसित हुई।
प्रश्न 26.
किसी देश में राष्ट्रीय पहचान को किन साधनों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है ?
उत्तर:
किसी देश में राष्ट्रीय पहचान को एक झंडा, एक राष्ट्रगान, एक राष्ट्रभाषा आदि साधनों द्वारा व्यक्त किया जा सकता
प्रश्न 27.
'फ्रांस' नागरिकता के मामले में स्वयं को किस प्रकार का देश होने का दावा करता है?
उत्तर:
'फ्रांस' नागरिकता के मामले में स्वयं को सभी धर्मों को समान मानने वाला तथा सभी देशों के नागरिकों को अपनाने वाला (समावेशी) देश होने का दावा करता है।
प्रश्न 28.
इजराइल तथा जर्मनी में नागरिकता प्रदान करते समय किन तत्वों को अधिक महत्व दिया जाता है ?
उत्तर:
इजराइल तथा जर्मनी में नागरिकता प्रदान करते समय धर्म व जाति जैसे तत्वों को अधिक महत्व दिया जाता है।
प्रश्न 29.
भारत में नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख कैसे किया गया है ?
उत्तर:
भारत में नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख संविधान के दूसरे भाग में तथा संसद द्वारा बनाये गये कानूनों द्वारा किया गया है।
प्रश्न 30.
भारत में किस प्रकार नागरिकता प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तर:
भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, देशीकरण या किसी भू-क्षेत्र के राज्य क्षेत्र में सम्मिलित होने से नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न 31.
शरणार्थियों के किन्हीं दो रूपों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 32.
विश्व नागरिकता की धारणा का एक प्रमुख आकर्षण (लुभावनी बात) क्या है ?
उत्तर:
विश्व नागरिकता की धारणा का प्रमुख आकर्षण यह है कि इससे राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का सामना करना आसान हो सकता है, जिनमें दोनों राष्ट्रों का मिला-जुला प्रयास जरूरी है।
प्रश्न 33.
देश के भीतर की समान नागरिकता को किन समस्याओं से खतरा हो सकता है ?
उत्तर:
देश के भीतर की समान नागरिकता को सामाजिक-आर्थिक असमानता जैसी समस्याओं से खतरा हो सकता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-40 शब्द)
प्रश्न 1.
नागरिकता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
नागरिकता से अभिप्राय किसी देश की राजनीतिक-भौगोलिक सीमाओं में निवास करने वाले लोगों को उस देश द्वारा एक निश्चित राजनीतिक पहचान और कुछ अधिकार दिये जाते हैं। इस स्थिति को ही 'नागरिकता' कहते हैं। नागरिकता के द्वारा लोगों को विभिन्न प्रकार के नागरिक अधिकार व राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। नागरिकता एक प्रकार से किसी निश्चित भू-भाग में रहने वाले लोगों को राजा द्वारा प्रदत्त बुनियादी पहचान भी है। जैसे-भारतीय, अमेरिकी इत्यादि।
प्रश्न 2.
लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को कौन-कौन से राजनीतिक अधिकार दिये गये हैं ?
उत्तर:
वर्तमान में अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को कई प्रकार के राजनीतिक अधिकार दिये गये हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं
प्रश्न 3.
"नागरिकों द्वारा आज जिन अधिकारों का प्रयोग किया जा रहा है, वे लम्बे संघर्षों के बाद मिले हैं।" कथन स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनता ने नागरिकता व इससे जुड़े अधिकारों को प्राप्त करने के लिए लम्बा संघर्ष किया है। सबसे पहले ये संघर्ष शक्तिशाली राजाओं के शासन के खिलाफ प्रारम्भ किये गये। अनेक यूरोपीय देशों में भी ऐसे ही संघर्ष हुए। इनमें कुछ हिंसक संघर्ष भी हुए, जैसे-फ्रांस की 1789 ई. की क्रांति। एशिया और अफ्रीका के अनेक उपनिवेशों में समान नागरिकता की माँग औपनिवेशिक शासकों से स्वतन्त्रता प्राप्त करने के संघर्ष का हिस्सा रही। इसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका में भी लम्बे समय तक लोगों ने संघर्ष किया। इस प्रकार स्पष्ट है कि नागरिकों को आज जो अधिकार प्राप्त हैं, वे लम्बे संघर्षों के बाद मिले हैं।
प्रश्न 4.
एक देश में नागरिकों को सम्पूर्ण और समान सदस्यता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
एक देश में नागरिकों को सम्पूर्ण और समान सदस्यता से यह तात्पर्य है कि एक देश में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से जरूरी अधिकार दिये जाने चाहिए। देश में नागरिकों के साथ नागरिकता देने में धर्म, जाति, रंग, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव न किया जाए। इसी प्रकार सम्पूर्ण और समान सदस्यता की माँग यह भी दर्शाती है कि किसी देश में सभी नागरिकों को अपने विकास के समान अवसर दिये जाएँ।
प्रश्न 5.
नागरिकता की धारणा में बाहरी बनाम भीतरी का विवाद क्या है ?
उत्तर:
नागरिकता की धारणा में आज बाहरी बनाम भीतरी का विवाद ज्वलन्त मुद्दा बन चुका है। देश में समान नागरिकता के अधिकार के तहत रोजगार की तलाश में कुछ विशेष शहरों में लोगों का ज्यादा आवागमन हो जाता है। वे वहीं रहकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने लगते हैं। इन्हें स्थानीय लोग 'बाहरी' मानकर इनका विरोध करते हैं तथा स्वयं को भीतरी मानते हुए उस स्थान के रोजगारों और संसाधनों पर अपना दावा करते हैं। यही स्थिति कई बार हिंसक संघर्षों में बदल जाती है।
प्रश्न 6.
स्थानीय लोगों द्वारा सहनागरिक बाहरी लोगों का विरोध किन कारणों से किया जाता है ?
उत्तर:
स्थानीय लोगों द्वारा सहनागरिक बाहरी लोगों का विरोध निम्नलिखित कारणों से किया जाता है
प्रश्न 7.
लोकतांत्रिक देशों के नागरिकों को यदि किसी बात का विरोध करना हो तो उन्हें कौन-से साधन अपनाने चाहिए ?
उत्तर:
लोकतांत्रिक देशों में नागरिकता एवं अन्य मुद्दों को लेकर कई विवाद उठते रहते हैं। अतः लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों द्वारा किसी बात का विरोध करने के कुछ निश्चित तरीके भी निर्धारित किये गये हैं। इसके लिए नागरिक समूह बनाकर, प्रदर्शन करके, संचार के साधनों (मीडिया) का उपयोग करके, राजनीतिक दलों से अपील एवं न्यायालय की सहायता इत्यादि तरीकों को अपना सकते हैं। ये तरीके लोकतंत्रात्मक शासन व समाज के अनुकूल हैं।
प्रश्न 8.
नागरिकता के प्रमुख दायित्व बताइए।
उत्तर:
नागरिकता के प्रमुख दायित्व-नागरिकता के साथ कई दायित्व जुड़े होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं
प्रश्न 9.
भारत के शहरी क्षेत्रों से यदि बाहरी मजदूर वापस लौट जाएँ तो शहर के अमीर लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेंगे?
उत्तर:
भारत के शहरी क्षेत्रों से यदि बाहरी मजदूर वापस लौट जाएँ तो शहर के अमीर लोगों का दैनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित होगा। इसके कई प्रभाव पड़ेंगे, जैसे
प्रश्न 10.
शहरी गरीबों के जीवन की स्थितियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शहरी गरीबों के जीवन की स्थितियाँ शहरी गरीबों की बस्तियों की हालत बहुत दयनीय होती है। छोटे-छोटे कमरों में कई-कई लोग रहने को मजबूर होते हैं। इनके घरों में न शौचालय होता है, न जल की सही व्यवस्था होती है। इनकी बस्तियों में सफाई पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है। इन गंदी बस्तियों में इनका जीवन और सम्पत्ति दोनों ही असुरक्षित होते हैं। इस प्रकार शहरी गरीबों के जीवन की स्थितियाँ बहुत ही दयनीय हैं।
प्रश्न 11.
भारत में सरकार द्वारा फुटपाथी दुकानदारों के लिए राष्ट्रीय नीति क्यों बनाई गई है ?
उत्तर:
भारत में सरकार द्वारा फुटपाथी दुकानदारों के लिए जनवरी, 2004 ई. में एक राष्ट्रीय नीति बनाई गई है। देश का नागरिक होने के नाते इन दुकानदारों को भी अपनी आजीविका अपने अनुसार कमाने का पूरा अधिकार प्राप्त है। बड़े शहरों में ऐसे लाखों दुकानदार हैं। इन्हें सामान्यतया पुलिस और नगर प्रशासन के अधिकारियों, कर्मचारियों के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था। इसी कारण भारत सरकार ने इन दुकानदारों के नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनायी।
प्रश्न 12.
हमारे समाज में नागरिकता की दृष्टि से आदिवासियों और वनवासियों की क्या स्थिति है?
उत्तर:
हमारे समाज में नागरिकता की दृष्टि से आदिवासियों और वनवासियों की स्थिति बहुत ही खराब और चिन्ताजनक है। बढ़ती जनसंख्या और संसाधनों की कमी के चलते इन लोगों का जीवनयापन ही खतरे में पड़ता जा रहा है। नागरिकता की बात इनके लिए कल्पनीय-सी लगती है। ये नाम के लिए नागरिक भले ही हों पर ये इस स्थिति में नहीं हैं कि अपने नागरिक अधिकारों का सही ढंग से प्रयोग कर सकें।
प्रश्न 13.
नागरिकों के लिए समान अधिकार का वास्तविक मतलब (अर्थ) क्या होता है ?
उत्तर:
नागरिकों के लिए समान अधिकार का वास्तविक मतलब (अर्थ) यह होता है कि सभी लोगों के लिए समान नीतियाँ बनाने की बजाय विभिन्न समूहों की जरूरतों को ध्यान में रखकर ही नीतियाँ बनाई जाएँ। नीतियाँ बनाने का प्रयोजन सब पर एक समान लागू होने की बजाय सब लोगों को अधिक से अधिक बराबरी पर लाना होना चाहिए। इस प्रकार नागरिकों के लिए समान अधिकार का मतलब (अर्थ) केवल सभी लोगों पर समान रूप से लागू होने वाली नीतियाँ बनाना ही नहीं होता है।
प्रश्न 14.
टी. एच. मार्शल के विचारों के आधार पर नागरिकता को समझाइए।
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री टी. एच. मार्शल ने अपनी पुस्तक 'नागरिकता और सामाजिक वर्ग' में नागरिकता सम्बन्धी विचार रखे हैं। मार्शल के विचारों में नागरिकता किसी समुदाय के सभी सदस्यों को प्राप्त होने वाली समान प्रतिष्ठा है। मार्शल के अनुसार नागरिकता रूपी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने वाले सभी लोग इस प्रतिष्ठा में निहित अधिकारों और कर्तव्यों के मामले में बराबर होते हैं। इस प्रकार मार्शल ने नागरिकता को समानता से जोड़ा है।
प्रश्न 15.
भारत में नागरिकता से जुड़े ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई (वर्तमान में मुम्बई) नगर निगम मामले पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मामला-मुम्बई में झोंपड़पट्टी में रहने वाले लोगों के हक के लिए समाजसेवी ओल्गा टेलिस ने सर्वोच्च न्यायालय में 1980 के दशक में जनहित याचिका दायर की। इस याचिका पर 1985 ई. में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बम्बई नगर निगम को निर्देश दिया कि वह झोंपड़पट्टी में रहने वाले लोगों को दूसरी जगह आवास उपलब्ध कराये तभी झोंपड़पट्टियों को हटाया जा सकता है। इसी प्रकरण को 'ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम मामला' के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 16.
'राष्ट्र-राज्य' की अवधारणा क्या है ?
उत्तर:
राष्ट्र-राज्य की अवधारणा-19वीं, 20वीं सदी में छोटे-छोटे विभक्त राज्यों के स्थान पर शक्तिशाली व संगठित विशाल राज्यों की स्थापना पर बल दिया गया। इसे ही राष्ट्र-राज्य की अवधारणा कहा जाता है। इसके अन्तर्गत राष्ट्रीयता के आधार पर ऐसे शक्तिशाली देशों के निर्माण पर बल दिया गया जिनमें कई छोटे-छोटे राज्य संगठित हों तथा जो उस राष्ट्र की राष्ट्रीयता का सम्मान करें। भारत, इंग्लैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि राष्ट्र-राज्य ही हैं।
प्रश्न 17.
राष्ट्र-राज्यों का प्रमुख दावा क्या है ? ।
उत्तर:
राष्ट्र-राज्यों का प्रमुख दावा यह है कि उनकी सीमाएँ सिर्फ राज्यक्षेत्र को ही नहीं, बल्कि एक अनोखी संस्कृति और साझा इतिहास को भी दर्शाती हैं। इनका मानना है कि राष्ट्रीय पहचान को कई राष्ट्रीय प्रतीकों व चीजों से व्यक्त किया जा सकता है। इन राष्ट्रीय पहचान के प्रमुख प्रतीकों में एक राष्ट्रीय झंडा, राष्ट्रगान, राष्ट्रभाषा, राष्ट्रीय त्यौहार इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता
प्रश्न 18.
फ्रांस में नागरिकता सम्बन्धी सरकारी नीतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
फ्रांस में सरकार की नागरिकता सम्बन्धी नीतियाँ बहुत उदार हैं। फ्रांस ऐसा देश है जो यूरोपीय लोगों को ही नहीं, बल्कि उत्तर अफ्रीका जैसे अन्य क्षेत्रों से आए लोगों को भी उदारता से नागरिकता प्रदान करता है। फ्रांस में नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने जीवन की सार्वजनिक गतिविधियों में फ्रांसीसी भाषा-संस्कृति के प्रति निष्ठा रखें। वे अपने निजी जीवन में अपनी आस्थाओं और रीति-रिवाजों को बनाए रख सकते हैं।
प्रश्न 19.
भारतीय संविधान ने विविधतापूर्ण समाज को किस प्रकार एक साथ लाने का प्रयास किया है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान ने समाज के विभिन्न विविधतापूर्ण समुदायों को पूर्ण और समान नागरिकता देकर एक साथ लाने का प्रयास किया है। भारतीय संविधान ने भारत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह जैसे दूर-दराज के आदिवासी समुदायों इत्यादि को पूर्ण और समान नागरिकता प्रदान की है। इस प्रकार भारतीय संविधान ने विविध समुदायों में व्याप्त विभिन्नताओं को भारत के नागरिक के तौर पर समान करके, कम करने का प्रयास किया है।
प्रश्न 20.
"भारतीय संविधान द्वारा नागरिकता की लोकतांत्रिक और सबको एक साथ लाने (समावेशी) की धारणा को अपनाया गया है"-कैसे ?
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान किये गये हैं, उन पर ध्यान दें तो हम पाते हैं कि भारत में जन्म, वंश-परम्परा, पंजीकरण, किसी भू-क्षेत्र के राज्य में शामिल होने से नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। संविधान में यह भी लिखा है कि राज्य धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि में से किसी भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करेगा। संविधान द्वारा धर्म और भाषा की दृष्टि से समाज में बहुत कम संख्या में मौजूद लोगों के अधिकारों को भी सुरक्षा दी गई है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-100 शब्द)
प्रश्न 1.
किसी राष्ट्र का नागरिक होना महत्व की बात है, इस महत्व को हम कब ज्यादा अच्छे से समझ पाते हैं ? बताइए।
उत्तर:
किसी राष्ट्र के सम्पूर्ण सदस्य (नागरिक) होने का महत्व तब हम अच्छे से समझ पाते हैं, जब हम दुनिया भर में उन हजारों लोगों की स्थिति के बारे में सोचते हैं, जो दुर्भाग्यवश दूसरे देशों में शरण लेने को मजबूर हैं। इसी प्रकार बहुत से लोग अपनी पहचान छिपाकर दूसरे देशों में छिपकर अवैध रूप से मजबूरी में रह रहे हैं। इन लोगों की समस्या एवं दुर्भाग्य यह है कि कोई भी राष्ट्र इन्हें अपनी नागरिकता देने को तैयार नहीं है। ऐसे लोगों को कोई राष्ट्र अधिकारों की गारंटी भी नहीं देता।
ऐसे में इनका जीवन आमतौर पर अधिकारहीन और असुरक्षित होता है। इन लोगों को चूँकि कोई राष्ट्र अपना नागरिक नहीं मानता इस कारण इन लोगों को मानव होने के नाते मिलने वाले बुनियादी अधिकारों जैसे-भोजन, आवास, चिकित्सा, शिक्षा इत्यादि से भी अधिकांशतया वंचित ही रहना पड़ता है। इन लोगों के जीवन की जब नागरिकता प्राप्त लोग अपने जीवन से तुलना करते हैं तब हमें यह पता चलता है कि 'नागरिकता' हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण स्थिति है।
प्रश्न 2.
नागरिकता का सम्बन्ध नागरिकों के आपसी रिश्तों से भी होता है, कैसे ?
उत्तर:
नागरिकता एक व्यापक स्थिति व अधिकार है। इसका सम्बन्ध केवल किसी राज्य में लोगों को प्राप्त पूर्ण व समान सदस्यता से ही नहीं बल्कि इसके साथ-साथ नागरिकों के आपसी सम्बन्धों से भी होता है। नागरिकता के अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व भी निहित होता है कि वे एक-दूसरे के प्रति सहयोग करें तथा समाज के विकास में अपना भरपूर योगदान करें। इसी प्रकार नागरिकता में केवल राज्य द्वारा लागू किये गये अनिवार्य कानूनी नियम ही नहीं, बल्कि समुदाय के मिल-जुलकर रहने में भागीदार होने और अपना योगदान करने का नैतिक दायित्व भी शामिल होता है। इस प्रकार नागरिकता का सम्बन्ध नागरिकों के आपसी रिश्तों और समाज के प्रति व्यवहार से भी है। नागरिकों को देश की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत व संसाधनों का उत्तराधिकार (वारिस) एवं संरक्षक माना जाता है। अतः स्पष्ट रूप से नागरिकता की स्थिति नागरिकों के आपसी सम्बन्धों से बहुत गहरे रूप से जुड़ी हुई है।
प्रश्न 3.
नागरिकों में भीतरी और बाहरी का विभाजन कैसे उभर आता है ? उचित उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर:
नागरिकों में भीतरी और बाहरी का विभाजन साझा हितों के आधार पर व अन्य कारणों जैसे भाषा, क्षेत्र, संस्कृति इत्यादि के आधार पर उभर आता है।
उदाहरण के लिए हम भीड़ भरे रेल के डिब्बों में यात्रा करते समय इस बात को आये दिन देखते रहते हैं। जब लोग गाड़ी के बाहर होते हैं तो डब्बे में चढ़ने के लिए संघर्ष करते हैं। यहाँ तक कि कभी-कभी तो लड़ने भी लगते हैं। परन्तु जब डब्बे में प्रवेश कर जाते हैं तो जल्दी ही हम पहले से भीतर मौजूद लोगों के साथ ही बाहरी लोगों के डिब्बे में घुसने से रोकने के साझा स्वार्थ में शामिल हो जाते हैं। बस इसी प्रकार नागरिकता में भी भीतरी और बाहरी का विभाजन एक ही देश में उभर आता है।
जहाँ कहीं भी संसाधनों व रोजगार की सम्भावनाएँ व उपलब्धता होती है। ऐसे शहरों की ओर लोगों का आना प्रारम्भ हो जाता है। ऐसे में स्थानीय लोग स्वयं को भीतरी मानते हुए इन बाहर से आने वाले लोगों का विरोध करने लग जाते हैं। स्थानीय लोग संसाधनों पर अपना हक जताते हैं जबकि बाहरी लोग उसी देश का नागरिक होने के नाते इन पर अपना भी बराबर का अधिकार मानते हैं। यहीं से बाहरी बनाम भीतरी का विभाजन पैदा हो जाता है।
प्रश्न 4.
हमारे देश में नागरिकता से सम्बन्धित विवादों का समाधान किस प्रकार हो सकता है ?
उत्तर:
प्रत्येक लोकतांत्रिक देश की तरह हमारे देश में भी नागरिकता व इससे जुड़े अधिकारों और इनके प्रयोग को लेकर कई विवाद दिन-प्रतिदिन उठते रहते हैं। जब हम इन विवादों के समाधान के उपाय खोजते हैं तो हम देखते हैं कि हमारे संविधान द्वारा नागरिकों को किसी बात का प्रतिवाद करने के कई अधिकार दिये गये हैं। नागरिकों को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है बशर्ते वे अपनी बात रखते समय दूसरे लोगों या राज्य के जन-जीवन तथा सम्पत्ति को कोई नुकसान न पहुँचाएँ। इसके लिए नागरिक समूह बनाकर भी अपनी बात रख सकते हैं। नागरिक शान्तिपूर्ण प्रदर्शन, मीडिया का उपयोग, राजनीतिक दलों का सहयोग, न्यायालय में याचिका इत्यादि तरीकों से भी विवादों के निपटारे का प्रयास कर सकते हैं। यह प्रक्रिया देखने में धीमी लगती है परन्तु इससे शान्तिपूर्वक विवादों के निदान की सम्भावनाएं अधिक दिखाई पड़ती हैं। इसी प्रकार यदि राज्य द्वारा सभी नागरिकों को पूर्ण व समान नागरिकता उपलब्ध कराने वाले दिशा-निर्देशों को ढंग से लागू किया जाए तो भी समाज में समय-समय पर उत्पन्न होने वाली समस्याओं के लिए सर्वमान्य समाधान की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं।
प्रश्न 5.
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर ने गोरे लोगों की सामाजिक विभाजन की नीतियों को स्वयं उनके लिए हानि पहुँचाने वाला कैसे सिद्ध किया ?
उत्तर:
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर ने 1950 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में गोरे लोगों द्वारा काले लोगों के प्रति चलाई जा रही सामाजिक विभाजन व अलगाव (दूर करना) की नीतियों को गोरे लोगों के समुदाय की गुणवत्ता कम करने वाली बताया। किंग ने इस बात को प्रमाणित करने के लिए कई उदाहरण प्रस्तुत किये। उनका पहला उदाहरण था कि गोरे समुदाय ने कुछ सार्वजनिक उद्यानों में काले लोगों को प्रवेश की इजाजत देने की अपेक्षा उन्हें बन्द करने का फैसला किया। इससे काले लोगों के साथ-साथ गोरों को भी उद्यान में घूमने के लाभ से वंचित होना पड़ा। इसी प्रकार वह दूसरा उदाहरण देते हैं कि देश में कई बेसबॉल की टीमें टूट गईं, क्योंकि अधिकारी काले खिलाड़ियों को स्वीकार ही नहीं करना चाहते थे।
इसमें भी काले लोगों के अधिकारों के हनन के साथ-साथ गोरे लोगों के भी खेलने का अवसर समाप्त हुआ। इस प्रकार किंग ने प्रस्तुत उदाहरणों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि यदि गोरे लोग काले लोगों से इसी तरह दूरी बनाते रहे तो इससे स्वयं गोरे लोगों की क्षमताओं, प्रतिभा व सामाजिक विकास को भी गहरा नुकसान होगा। उनकी गुणवत्ता निःसन्देह कम होती चली जायेगी।
प्रश्न 6.
"सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर देना किसी सरकार के लिए आसान मसला नहीं होता है।" इस कथन की उचित उदाहरणों की सहायता से पड़ताल करें।
उत्तर:
वर्तमान युग लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का युग है। ऐसे में सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर उपलब्ध कराए। यह बात विचारों के स्तर पर जितनी आसान लगती है, क्रियान्वयन के स्तर पर इसमें उतनी ही कठिनाई आती है। इसीलिए सरकार के सामने यह एक जटिल मसला होता है कि वह विभिन्न नागरिकों को किस प्रकार समान अधिकार उपलब्ध कराए। उदाहरण के लिए हम आदिवासियों और वनवासियों का मसला लें। ये लोग अपने जीवनयापन के लिए जंगल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं।
सरकार के सामने चुनौती यह है कि वह देश के विकास के लिए उद्यमियों को इन क्षेत्रों में दखल का अधिकार दे या वनवासियों व आदिवासियों के लिए वन क्षेत्रों को आरक्षित कर दे। इस प्रकार सरकार के सामने यह कठिनाई है कि देश के विकास को खतरे में डाले बिना इन लोगों और इनके रहवास की सुरक्षा कैसे करें ? स्पष्ट है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर देने का मसला किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं होता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि विभिन्न समूह के लोगों की जरूरत और समस्याएँ अलग-अलग हो सकती हैं और एक समूह के अधिकार दूसरे समूह के अधिकारों के प्रतिकूल हो सकते हैं।
प्रश्न 7.
प्रसिद्ध समाजशास्त्री टी. एच. मार्शल द्वारा नागरिकता में शामिल बताए गए अधिकारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री टी. एच. मार्शल द्वारा नागरिकता में तीन प्रकार के अधिकारों को शामिल माना गया है। ये तीन अधिकार निम्नलिखित हैं
(i) नागरिक अधिकार-मार्शल नागरिकता में नागरिक अधिकारों को शामिल मानते हैं। मार्शल के अनुसार व्यक्ति के जीवन, आजादी और जमीन व सम्पत्ति की सुरक्षा नागरिक अधिकार ही करते हैं। अतः नागरिकता के तहत अनिवार्य रूप से इन अधिकारों को दिया जाना चाहिए।
(ii) राजनीतिक अधिकार-मार्शल ने नागरिकता में शामिल दूसरा महत्वपूर्ण अधिकार राजनीतिक अधिकारों को माना है। मार्शल के अनुसार राजनीतिक अधिकार नागरिकों को शासन प्रक्रिया में सहभागी बनने की शक्ति प्रदान करते हैं। इन अधिकारों में वोट डालना, राजनीतिक दल बनाना, स्वयं चुनाव लड़ना इत्यादि जैसे अधिकार शामिल हैं।
(iii) सामाजिक अधिकार-मार्शल नागरिकता में शामिल तीसरी प्रकार के अधिकारों के रूप में 'सामाजिक अधिकारों' की चर्चा करते हैं। मार्शल का मानना है कि सामाजिक अधिकार लोगों को शिक्षा और रोजगार को उपलब्ध कराना आसान बनाते हैं। सामाजिक अधिकारों में शिक्षा का अधिकार, समानता का अधिकार इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है।
प्रश्न 8.
भारत में 1985 ई. में 'ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम' मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया वह शहरी गरीबों के समान नागरिक अधिकारों की किस प्रकार रक्षा करता है ?
उत्तर:
भारत में 1980 के दशक में मुम्बई में समाजसेवी ओल्गा टेलिस द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई। इसमें मुम्बई में झोपड़पट्टियों में रहने वाले लोगों के नगर-निगम द्वारा हटाये जाने का विरोध करते हुए उनके लिए वैकल्पिक आवासों की मांग की गई थी। सन् 1985 ई. में इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। याचिका में कार्यस्थल के निकट रहने की वैकल्पिक जगह उपलब्ध नहीं होने के कारण फुटपाथ या झोपड़पट्टियों में रहने के अधिकार का दावा किया गया था।
याचिका में कहा गया था कि यदि यहाँ रहने वालों को हटने के लिए मजबूर किया गया तो उन्हें आजीविका भी गवानी पड़ेगी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि-"संविधान की धारा-21 में सभी लोगों को जीवन जीने की गारंटी दी गई है, जिसमें आजीविका का अधिकार शामिल है। अत: यदि फुटपाथ पर रहने वालों को हटाना है तो उन्हें आश्रय के अधिकार के अन्तर्गत सर्वप्रथम वैकल्पिक जगह उपलब्ध करानी होगी।" इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला शहरी गरीबों के अमीरों के समान ही नागरिक अधिकारों की रक्षा और इन्हें प्रोत्साहन देने वाला रहा।।
प्रश्न 9.
"भारत नागरिकता के मामले में एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है।" हम यह बात किन आधारों पर कह सकते हैं ? विवेचना करें।
उत्तर:
"भारत नागरिकता के मामले में एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है।" इस बात के हमारे पास कई आधार उपलब्ध हैं। इस सन्दर्भ में हम भारतीय संविधान के प्रावधानों का भी उल्लेख कर सकते हैं। हमारे संविधान द्वारा सभी नागरिकों को धर्म, जाति, भाषा इत्यादि के भेदभाव किये बिना समान अधिकार प्रदान किये गये हैं। इसके साथ-साथ हमारे संविधान द्वारा देश में सभी नागरिकों के धर्म, रीति-रिवाजों, भाषा, संस्कृति इत्यादि की रक्षा की गारंटी भी प्रदान की गई है। इसी प्रकार भारत में सरकार की नीतियाँ भी सभी नागरिकों की आवश्यकताओं और हितों को पूरा करने के उद्देश्य से बनायी जाती हैं। इनमें धर्म या ऊँच-नीच जैसे भेदभावों को स्थान नहीं दिया जाता। भारत में सभी धर्मों, वर्गों, जातियों के नागरिकों को एक समान वोट डालने का अधिकार प्राप्त है। समाज में छुआछूत के भेदभाव को कानूनों द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। अत: इन समस्त आधारों पर निश्चित रूप से हम कह सकते हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और धर्मनिरपेक्षता इसकी महत्वपूर्ण विशेषता है।
प्रश्न 10.
'विश्व-नागरिकता' क्या है ? विश्व-नागरिकता के समर्थन की दलीलों एवं इसके प्रमुख आकर्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
विश्व-नागरिकता आधुनिक युग में नागरिकता के सम्बन्ध में यह माना जाने लगा है कि पूरी दुनिया एक है और व्यक्ति दुनिया के किसी भी स्थान पर रहता हो, वह किसी भी जाति का हो, सभी को विश्व का 'नागरिक' माना जाना चाहिए। इसे ही 'विश्व-नागरिकता' का नाम दिया जाता है। विश्व-नागरिकता : समर्थन में दलीलें व प्रमुख आकर्षण-विश्व-नागरिकता के समर्थक इसके समर्थन में दलील देते हैं कि चाहे भले ही अभी तक एक विश्व समाज नहीं बन सका है लेकिन फिर भी राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार लोग आज एक-दूसरे से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
उदाहरण के लिए एशिया में सुनामी जैसी भीषण आपदा के समय पूरा विश्व एक हो गया था। अत: हमें इस सहयोग और एक होने की भावना को मजबूत करना चाहिए और एक विश्व की नागरिकता की अवधारणा की दिशा में सक्रिय होना चाहिए। विश्व-नागरिकता की धारणा का प्रमुख आकर्षण यह है कि इससे देशों की सीमाओं के दोनों ओर उन समस्याओं का समाधान आसान हो जाएगा जिसमें कई देशों की सरकारों और लोगों की मिली-जुली कार्यवाही की आवश्यकता होती है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा 150 शब्द)
प्रश्न 1.
नागरिकता से आप क्या समझते हैं ? नागरिकता के प्रमुख पक्षों की चर्चा करें।
उत्तर:
नागरिकता से अभिप्राय-नागरिकता से हमारा अभिप्राय किसी देश की सीमा में सभी व्यक्तियों को प्राप्त उस स्थिति और पहचान से है, जिसमें लोगों को उस देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था में सहभागिता मिलती है। इस प्रकार नागरिकता किसी देश के रहने वाले लोगों का विशिष्ट अधिकार होता है, जिसमें कई प्रकार के अधिकार शामिल रहते हैं। नागरिकता के प्रमुख पक्ष-नागरिकता की परिभाषा कई पक्षों के आधार पर की जाती है। इनमें से कुछ प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं
(i) नागरिकता राजनीतिक समुदाय की पूर्ण व समान सदस्यता के रूप में इस पक्ष में यह माना जाता है कि"नागरिकता किसी राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में मिलने वाला लोगों का एक अधिकार व पहचान है।" नागरिकता का यह पक्ष सर्वाधिक प्रचलित है। इस पक्ष में यह माना जाता है कि समकालीन विश्व के राष्ट्रों ने अपने सदस्यों को एक सामूहिक राजनीतिक पहचान दी है। इस पहचान के साथ कुछ अधिकार जुड़े हैं। इसीलिए हम अपने सम्बन्धित राष्ट्र के आधार पर स्वयं को भारतीय, जापानी, जर्मन इत्यादि मानते हैं।
(ii) नागरिकता लोगों के आपसी सम्बन्धों के रूप में नागरिकता का एक दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह एक देश में रहने वाले लोगों के आपसी सम्बन्धों का भी निर्धारण और नियमन करती है। इसमें नागरिकों के एक-दूसरे के प्रति कुछ निश्चित दायित्व शामिल होते हैं। इसी प्रकार नागरिकता में नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे समाज के प्रति एक नागरिक के रूप में सौंपी गई जिम्मेदारियों का भली प्रकार से पालन करें। नागरिकता का यह पक्ष बताता है कि नागरिकता में केवल राष्ट्र द्वारा लागू कानूनी बाध्यताएँ ही शामिल नहीं होती हैं, इसमें नागरिकों के सामाजिक और सामुदायिक जीवन में भागीदार होने और योगदान करने का नैतिक दायित्व भी शामिल होता है।
प्रश्न 2.
1950 के दशक तक संयुक्त राज्य अमेरिका में नागरिकों की क्या स्थिति थी ? मॉर्टिन लूथर किंग (जूनियर) द्वारा नागरिकों को विषम स्थितियों से मुक्ति दिलाने के लिए चलाए गए आन्दोलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1950 के दशक तक संयुक्त राज्य अमेरिका में नागरिकों की स्थिति-1950 के दशक तक संयुक्त राज्य अमेरिका में नागरिकों के बीच भारी असमानताएँ फैली हुई थीं। गोरे लोगों द्वारा काले लोगों को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा था। कई ऐसे कानून लागू थे जो समाज में गोरे और काले लोगों को अलग-अलग करने वाले थे। इन कानूनों के द्वारा गोरे व काले लोगों के लिए नागरिक सुविधाओं जैसे रेल, बस, रंगशाला, आवास, होटल इत्यादि में अलग-अलग स्थान निर्धारित किये गये थे। इस प्रकार 1950 के दशक तक अमेरिका में नागरिकों की स्थिति बेहद चिन्ताजनक थी। इनमें बहुत ही भेदभाव व असमानताएँ व्याप्त र्थी।
मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर द्वारा नागरिकों को विषम परिस्थितियों से निजात दिलाने के लिए चलाया गया आन्दोलनमॉर्टिन लूथर किंग जूनियर संयुक्त राज्य अमेरिका में गोरे व काले लोगों के बीच भेदभाव करने वाले कानूनों का विरोध करने वाले प्रमुख व अग्रणी नेता थे। उन्होंने एक ही देश के नागरिकों के बीच इस भेदभाव के खिलाफ कई प्रभावी तक रखे। उनका पहला तर्क था कि- “आत्म-गौरव व आत्म-सम्मान के मामले में विश्व की हर जाति या वर्ण का मनुष्य बराबर है। इसी प्रकार उनका दूसरा तर्क था कि-"यह भेदभाव हमारी राजनीति के चेहरे पर 'सामाजिक कोढ़' की तरह है, क्योंकि यह लोगों को गहरे भा नात्मक जख्म देता है जो इन कानूनों का शिकार बनते हैं।"
इस प्रकार किंग के तर्क ऐसे थे जिन्हें सरकार और समाज झुठला नहीं सकता था। किंग ने यह भी दलील दी कि यह भेदभाव की प्रथा गोरे समुदाय के जीवन की गुणवत्ता भी कम करती है। उन्होंने इस बात को स्पष्ट करने के लिए कई उदाहरण भी दिए। जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका में कई बेसबॉल की टीमें केवल इसलिए बिखर गईं कि अधिकारी काले खिलाड़ियों को टीम में नहीं लेना चाहते थे। किंग ने भेदभाव करने वाले कानूनों के खिलाफ जनता से शान्तिपूर्ण और अहिंसक विरोध का आह्वान भी किया। इस प्रकार मॉर्टिन लूथर किंग (जूनियर) ने संयुक्त राज्य अमेरिका में जारी गोरे व काले लोगों में भेदभाव की नीतियों का जोरदार विरोध किया। किंग का आन्दोलन संयुक्त राज्य अमेरिका में काले लोगों के नागरिक अधिकारों को उठाने वाला महत्वपूर्ण आन्दोलन सिद्ध हुआ।
प्रश्न 3.
"शहरों में रहने वाले गरीब लोगों के लिए नागरिकता की बातें आज भी बेमानी लगती हैं।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
शहरों में रहने वाले गरीब लोगों के लिए नागरिकता की बातें आज भी बेमानी लगती हैं। यह बात केवल एक आवेश में कहा गया तर्क नहीं है। शहरी गरीबों के नागरिक अधिकारों से सम्बन्धित समस्या आज उन अति-आवश्यक समस्याओं में से एक है, जो सरकार के सामने चुनौती के रूप में खड़ी हैं। भारत के हर शहर में बहुत बड़ी आबादी झोंपड़पट्टियों और अवैध कब्जे की जमीन पर बसे लोगों की है। यद्यपि ये लोग कई जरूरी व उपयोगी काम अक्सर कम मजदूरी पर ही करते रहते हैं फिर भी शहर की शेष जनसंख्या इन्हें बिना बुलाए मेहमान की तरह देखती है। इन लोगों पर शहर के संसाधनों पर बोझ बनने या अपराध और बीमारी फैलाने का आरोप मढ़ा जाता है।
इन लोगों की बस्तियों की हालत बहुत दयनीय होती है। छोटे-छोटे घरों में कई लोग हुँसे रहते हैं। यहाँ न निजी शौचालय होता है, न जलापूर्ति और न सफाई की व्यवस्था होती है। गंदी बस्तियों में जीवन और सम्पत्ति असुरक्षित होती है। झोंपड़पट्टी के निवासी अपनी मेहनत से शहर की अर्थव्यवस्था में काफी योगदान देते हैं। ये झोंपड़पट्टियों में बेंत बनाना, कपड़ों की रंगाई-छपाई करना, सिलाई करना इत्यादि जैसे कार्य करते हैं। फिर भी इतनी मेहनत और योगदान के बावजूद इन लोगों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है।
इन लोगों को देश का नागरिक होने के नाते जो अधिकार मिलने चाहिए, उनसे भी इन्हें वंचित रहना पड़ता है। झोंपड़पट्टियों के निवासियों को सफाई और जलापूर्ति जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर कोई भी शहर अन्य नागरिकों की तुलना में कम ही खर्च करता इस प्रकार इनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय होने के कारण वे नागरिकता और इससे जुड़े अधिकारों को न तो प्राप्त कर पाते हैं और न इनका प्रयोग करने की स्थिति में हैं। कई बार तो इन्हें देश का नागरिक होने का प्रमाण जुटाना तक मुश्किल हो जाता है। अतः निःसन्देह शहरों में रहने वाले अधिकांश गरीबों के लिए नागरिकता और इससे जुड़े अधिकारों की बात करना आज भी बेमानी प्रतीत होता है।
प्रश्न 4.
"प्रसिद्ध समाजशास्त्री टी. एच. मार्शल की दृष्टि में नागरिकता महज एक कानूनी अवधारणा नहीं है।"कथन के आधार पर मार्शल के नागरिकता सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
टी. एच. मार्शल के नागरिकता, समानता एवं अधिकार सम्बन्धी विचारों की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
20वीं सदी के प्रसिद्ध समाजशास्त्री टी. एच. मार्शल ने अपनी पुस्तक 'नागरिकता और सामाजिक वर्ग' में नागरिकता
की विस्तार से व्याख्या की है। मार्शल ने नागरिकता सम्बन्धी अपने विचारों में यह बताने का प्रयास किया है कि नागरिकता मात्र एक कानूनी धारणा नहीं है। मार्शल ने नागरिकता को समानता और अधिकारों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित बताया है। मार्शल के अनुसार"नागरिकता किसी समुदाय के पूर्ण सदस्यों को प्रदान की जाने वाली समान प्रतिष्ठा है।" मार्शल का मानना है कि इस समान प्रतिष्ठा को ग्रहण करने वाले सभी लोग प्रतिष्ठा में निहित अधिकारों और कर्तव्यों के मामले में बराबर होते हैं। इस प्रकार मार्शल द्वारा नागरिकता की जो संकल्पना दी गई है वह मूल रूप से 'समानता' पर आधारित है। इस धारणा में मार्शल के अनुसार दो बातें निहित हैंपहली यह कि नागरिकों को दिये गये अधिकारों और कर्तव्यों की गुणवत्ता बढ़े और दूसरी यह कि उन लोगों की संख्या बढ़े जिन्हें वे दिए गए हैं। मार्शल नागरिकता में तीन प्रकार के अधिकारों को शामिल करते हैं
मार्शल के अनुसार नागरिक अधिकार व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति की सुरक्षा करते हैं। राजनीतिक अधिकार व्यक्ति को शासन-प्रक्रिया में सहभागी बनने की शक्ति प्रदान करते हैं। सामाजिक अधिकार व्यक्ति के लिए शिक्षा और रोजगार को सुलभ बनाते हैं। मार्शल का मानना है कि कुल मिलाकर ये अधिकार नागरिक के लिए सम्मान के साथ जीवन जीना सम्भव बनाते इस प्रकार मार्शल नागरिकता को समाज में व्याप्त भेदभावों को समाप्त करने वाला तथा समानता की स्थापना करने वाला प्रमुख तत्व मानते हैं। अतः उपर्युक्त विचारों के आधार पर हम कह सकते हैं कि मार्शल की नजर में नागरिकता महज एक कानूनी अवधारणा नहीं है। यह इससे बढ़कर एक सामाजिक धारणा भी है जो कि 'समानता' की स्थापना के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 5.
"विश्व-नागरिकता की धारणा एक कोरा आदर्श है, व्यवहार में इसे लागू किया जाना बहुत मुश्किल है।" कथन के आधार पर विश्व-नागरिकता की धारणा के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
विश्व-नागरिकता की धारणा आधुनिक युग में अस्तित्व में आयी। यह 'समस्त विश्व एक परिवार' (वसुधैव कुटुम्बकम) के आदर्श पर आधारित है। परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इसे लागू कर पाना बहुत ही मुश्किल है। सभी देशों के अपने-अपने अलग स्वार्थ हैं। ऐसे में कोई भी देश अपनी पहचान त्यागकर एक दुनिया का सदस्य बनने को बिल्कुल तैयार नहीं होगा। अतः विश्व-नागरिकता की धारणा को लागू करने के मार्ग में आने वाली बाधाओं का वर्णन निम्न प्रकार है
(i) कट्टर राष्ट्रीयता की भावना वर्तमान में सभी देशों के नागरिक अपने राष्ट्र की पहचान को अधिक अच्छा मानते हैं। कोई भारतीय होने पर गर्व करता है तो कोई अमेरिकी होना अपना सौभाग्य मानता है। ऐसे में नागरिकों और देशों से यह उम्मीद करना कि वे अपनी राष्ट्रीय पहचान को त्यागकर केवल दुनिया का एक सदस्य बन जाएंगे, पूरी तरह काल्पनिक लगती है। अतः राष्ट्रीयता की यह प्रबल भावना विश्व नागरिकता के मार्ग की बड़ी बाधा है।
(ii) धनी राष्ट्रों के स्वार्थ-विश्व के धनी राष्ट्र सदैव अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगे रहते हैं। इनके प्रत्येक कार्य में स्वार्थ होता है। ये निर्धन देशों की सहायता करने का दावा तो करते हैं परन्तु वास्तव में इसमें इनका अपना स्वार्थ होता है। अतः ऐसे में विश्व-नागरिकता की धारणा को लागू करने में धनी राष्ट्रों की स्वार्थी प्रवृत्ति भी एक बड़ी बाधा है।
(ii) विश्व-नागरिकता की धारणा का व्यावहारिक न होना-विश्व-नागरिकता की धारणा सुनने में अच्छी लगती है। यह लोगों के हितों के लिए अच्छी भी है। परन्तु यह कोरी काल्पनिकता पर आधारित है। आज हर राष्ट्र के नागरिकता सम्बन्धी अपने अलग-अलग प्रावधान है। ऐसे में यदि विश्व-नागरिकता को लागू करना है तो इन सभी भिन्न प्रावधानों को समाप्त करके एक जैसे प्रावधान बनाने होंगे। यह एक ऐसी व्यावहारिक समस्या है जिसका समाधान खोज पाना लगभग असम्भव सा है। अतः विश्व-नागरिकता की धारणा का कोई व्यावहारिक आधार न होना भी इसे लागू करने में बड़ी बाधा है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोतर
प्रश्न 1.
विश्व नागरिकता की संकल्पना के द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सा एक सुझाव दिया गया है-
(अ) सभी व्यक्तियों के लिए समान अधिकार
(ब) सभी नागरिकों के लए समान अधिकार
(स) सभी के लिए सामान्य अधिकारों के साथ अलपसंख्यकों के लिए कुछ विशेषाधिकार
(द) विश्व में एकल नागरिकता।
उत्तर:
(ब) सभी नागरिकों के लए समान अधिकार
प्रश्न 2.
टी.एच.मार्शल नागरिकता के लिए एक व्यक्ति एक वोट को किससे जोड़ता है-
(अ) पूँजीवाद के संदर्भ में सामाजिक वर्ग और इसका उपोत्पाद बाजार
(ब) 19वीं शताब्दी का नारीमातार्थी आन्दोलन
(स) मार्क्सवाद का उद्भव
(द) राजनीतिक दलों का प्रादुर्भाव।
उत्तर:
(द) राजनीतिक दलों का प्रादुर्भाव।
प्रश्न 3.
नागरिकता की नागरिक गणतंत्रीय दृष्टि किसका समर्थन करती है।
(अ) सक्रिय, दायित्वयुक्त एवं सद्गुणीय नागरिकता का
(ब) आत्मनिर्भरता का और कल्याणकारी राज्य की आलोचना करती है
(स) इस दृष्टि का कि वर्ग विभाजित समाज में समान नागरिकता का विचार एक दिखावा है।
(द) सभी के लिए समान अधिकारों और समान अधिगम का।
उत्तर:
(अ) सक्रिय, दायित्वयुक्त एवं सद्गुणीय नागरिकता का
प्रश्न 4.
भारतीय संविधान निम्नलिखित में से कौन-सी नागरिकता प्रदान करता है?
(अ) एकल नागरिकता
(ब) दोहरी नागरिकता
(स) उपयुक्त दोनों
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) एकल नागरिकता
प्रश्न 5.
भारत में एकल नागरिकता की अवधारणा अपनायी गई है
(अ) हालैण्ड से
(ब) यू.एस.ए. से
(स) कनाडा से
(द) फ्रांस से।
उत्तर:
(अ) हालैण्ड से
प्रश्न 6.
नागरिकता निम्नलिखित में से किन विधियों द्वारा प्राप्त की जा सकती है?
(1) जन्म द्वारा
(2) आनुवांशिकता द्वारा
(3) पंजीयन द्वारा
(4) अनुरोध द्वारा।
कूट:
(अ) 1 और 2
(ब) 1, 2 और 3
(स) 2 और 3
(द) 2, 3 और 4
उत्तर:
(ब) 1, 2 और 3
प्रश्न 7.
टी. एच. मार्शल का नागरिकता का सिद्धांत निम्नलिखित में से किसके अध्ययन से लिया गया है?
(अ) ग्रेट ब्रिटेन
(ब) विकासशील विश्व
(स) यू.एस.ए.
(द) पश्चिमी यूरोप।
उत्तर:
(अ) ग्रेट ब्रिटेन
प्रश्न 8.
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
'सार्वभौम नागरिकता के आदर्श का आशय है कि
1. एक राष्ट्र के सारे नागरिकों के साथ एक जैसा व्यवहार होना चाहिए और उन्हें समान अधिकार दिये जाने चाहिए।
2. व्यक्तियों को विश्व का नागरिक समझा जाना चाहिए।
3. देश में रहने वाले सभी व्यक्तियों को नागरिक समझा जाना चाहिए।
4. नागरिकता के अधिकार हमें प्रकृति द्वारा दिए गए हैं। उपरोक्त कथनों में से कौनसा/से सही है/हैं?
(अ) 1 और 2
(ब) 2 और 3
(स) केवल 1
(द) केवल 4
उत्तर:
(अ) 1 और 2