Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 4 सामाजिक न्याय Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्न में से 'द रिपब्लिक पुस्तक' के लेखक हैं
(क) प्लेटो
(ख) अरस्तू
(ग) कौटिल्य
(घ) जॉन रॉल्स।
उत्तर:
(क) प्लेटो
प्रश्न 2.
'हर मनुष्य की अपनी गरिमा होती है'-इस विचार के प्रतिपादक हैं
(क) इमैनुएल कांट
(ख) हीगल
(ग) रूसो
(घ) रॉल्स।
उत्तर:
(क) इमैनुएल कांट
प्रश्न 3.
'अज्ञानता के आवरण' का विचार किसने दिया ?
(क) प्लेटो
(ख) अरस्तू
(ग) जॉन रॉल्स
(घ) रूसो।
उत्तर:
(ग) जॉन रॉल्स
प्रश्न 4.
"न्यायपूर्ण समाज वह है, जिसमें परस्पर सम्मान की बढ़ती हुई भावना और अपमान की घटती हुई भावना मिलकर एक करुणा से भरे समाज का निर्माण करें।" यह कथन है
(क) जे. एस. मिल का
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर का
(ग) महात्मा गाँधी का
(घ) प्लेटो का।
उत्तर:
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर का
निम्न में सत्य अथवा असत्य कथन बताइए-
(क) प्लेटो ने अपनी कृति 'द रिपब्लिक' में न्याय के मुद्दों पर चर्चा की है।
(ख) न्याय का एकमात्र सिद्धान्त 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' का सिद्धान्त है।
(ग) अज्ञानता का कल्पित आवरण ओढ़ना उचित कानूनों एवं नीतियों की प्रणाली तक पहुँचने का प्रथम कदम है।
(घ) मुक्त बाजार व्यवस्था के समर्थक यह मानते हैं कि बाजारी वितरण का जो भी परिणाम हो, वह न्यायसंगत होगा।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) सत्य
(घ) सत्य।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा 20 शब्द)
प्रश्न 1.
'न्याय' क्या है ?
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति को उसका उचित हिस्सा देना तथा समाज में सही को बढ़ावा और गलत को दण्डित करना ही 'न्याय'
प्रश्न 2.
प्राचीन भारतीय समाज में न्याय की अवधारणा क्या थी?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा हुआ था तथा धर्म या न्यायोचित सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना राजा का प्राथमिक कर्त्तव्य माना जाता था।
प्रश्न 3.
प्राचीन भारतीय समाज में 'न्याय' किस धारणा के साथ जुड़ा हुआ था ?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज में 'न्याय' धर्म के साथ जुड़ा हुआ था।
प्रश्न 4.
न्याय के सम्बन्ध में चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का क्या तर्क था?
उत्तर:
न्याय के सम्बन्ध में चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस का तर्क था कि गलत करने वाले लोगों को दंडित करके एवं भले लोगों को पुरस्कार प्रदान करके राजा को न्याय स्थापित रखना चाहिए।
प्रश्न 5.
इमैनुएल कांट ने न्याय के लिए किस स्थिति को जरूरी बताया है ?
उत्तर:
इमैनुएल कांट ने न्याय के लिए उस स्थिति को जरूरी बताया है, जिसमें हम समस्त व्यक्तियों को समुचित और बराबर का महत्व प्रदान करें।
प्रश्न 6.
वर्तमान में लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को जीवन, स्वतन्त्रता, सम्पत्ति जैसे अधिकार न्याय के किस सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रदान किये गये हैं ?
उत्तर:
वर्तमान में लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को जीवन, स्वतन्त्रता, सम्पत्ति जैसे अधिकार न्याय के 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' के सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रदान किये गये हैं।
प्रश्न 7.
न्याय के 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' के सिद्धान्त के लिए क्या जरूरी है ?
उत्तर:
न्याय के 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' के सिद्धान्त के लिए यह जरूरी है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाए।
प्रश्न 8.
'लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत करना' न्याय के किस सिद्धान्त का आधार है ?
उत्तर:
'लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत करना' न्याय के 'समानुपातिक न्याय सिद्धान्त' का आधार है।
प्रश्न 9.
न्याय के 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' सिद्धान्त में क्या मुख्य बात निहित है ?
उत्तर:
न्याय के विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' सिद्धान्त में निहित प्रमुख बात यह है कि जो लोग कुछ महत्वपूर्ण सन्दर्भो में समान नहीं हैं, उनके साथ भिन्न ढंग से बरताव किया जाए।
प्रश्न 10.
भारत में सरकारी नौकरियों में 'आरक्षण' की व्यवस्था न्याय के किस सिद्धान्त का प्रतीक है ?
उत्तर:
भारत में सरकारी नौकरियों में 'आरक्षण' की व्यवस्था न्याय के विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' सिद्धान्त का प्रतीक है।
प्रश्न 11.
समाज में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए सरकारों को क्या सुनिश्चित करना होता है ?
उत्तर:
समाज में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और · ग्याँ सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू हों।
प्रश्न 12.
समाज में न्याय के लिए न्याय के किन दो सिद्धान्तों में सन्तुलन स्थापित करने की आवश्यकता है ?
उत्तर:
समाज में न्याय के लिए न्याय के समान बरताव के सिद्धान्त' तथा समानुपातिक न्याय सिद्धान्त' में सन्तुलन स्थापित करने की आवश्यकता है।
प्रश्न 13.
न्याय के किस सिद्धान्त को सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है ?
उत्तर:
न्याय के 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' को सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता
प्रश्न 14.
न्याय के विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' में हमारे लिए किस बात पर सहमत होना आसान नहीं होता ?
उत्तर:
न्याय के 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' में हमारे लिए इस बात पर सहमत हो पाना आसान नहीं होता कि लोगों को विशेष सहायता देने के लिए उनकी किन असमानताओं को मान्यता दी जाए।
प्रश्न 15.
भारत में आमतौर पर लोगों की अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि सुविधाओं तक पहुँच का अभाव किस प्रकार के भेदभाव से जुड़ा दिखाई पड़ता है ?
उत्तर:
भारत में आमतौर पर लोगों की अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि सुविधाओं तक पहुँच का अभाव जाति आधारित सामाजिक भेदभाव से जुड़ा दिखाई पड़ता है।
प्रश्न 16.
न्याय का कौन सा सिद्धान्त कभी-कभी योग्यता को उचित प्रतिफल देने के खिलाफ खड़ा प्रतीत होता
उत्तर:
न्याय का 'समान बरताव के सिद्धान्त' पर अमल कभी-कभी योग्यता को उचित प्रतिफल देने के खिलाफ खड़ा प्रतीत होता है।
प्रश्न 17.
भारत में संविधान द्वारा छुआछूत की प्रथा की समाप्ति किस समानता को बढ़ावा देने के लिए की गयी है ?
उत्तर:
भारत में संविधान द्वारा छुआछूत की प्रथा की समाप्ति 'सामाजिक समानता' को बढ़ावा देने के लिए की गयी है।
प्रश्न 18.
भारत में राज्य सरकारों ने जमीन के अधिक न्यायपूर्ण वितरण के लिए क्या कदम उठाए हैं ?
उत्तर:
भारत में राज्य सरकारों ने जमीन के अधिक न्यायपूर्ण वितरण के लिए भूमि सुधार' लागू करने जैसे कदम उठाए हैं।
प्रश्न 19.
जॉन रॉल्स ने अपने न्यायोचित वितरण के सिद्धान्त में क्या तर्क दिया है ?
उत्तर:
जॉन रॉल्स ने अपने 'न्यायोचित वितरण' के सिद्धान्त में यह तर्क दिया है कि समाज के न्यूनतम सुविधा प्राप्त सदस्यों को सहायता देने की जरूरत स्वीकार करना बेशक युक्तिपूर्ण औचित्य हो सकता है।
प्रश्न 20.
जॉन रॉल्स ने न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए किस विचार का प्रतिपादन किया है?
उत्तर:
जॉन रॉल्स ने न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए 'अज्ञानता के आवरण' के विचार का प्रतिपादन किया है।
प्रश्न 21.
रॉल्स द्वारा प्रतिपादित 'अज्ञानता के आवरण' वाली स्थिति की प्रमुख विशेषता क्या है ?
उत्तर:
रॉल्स द्वारा प्रतिपादित 'अज्ञानता के आवरण' वाली स्थिति की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील मनुष्य बने रहने की उम्मीद बंधती है।
प्रश्न 22.
रॉल्स द्वारा प्रतिपादित 'अज्ञानता का आवरण' को किन तक पहुँचने का पहला कदम माना जाता है?
उत्तर:
रॉल्स द्वारा प्रतिपादित 'अज्ञानता का आवरण' को उचित कानूनों और नीतियों की प्रणाली तक पहुँचने का पहला कदम माना जाता है।
प्रश्न 23.
रॉल्स के अनुसार कौन सा चिन्तन हमें समाज में लाभ और भार के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार करने को प्रेरित करता है ?
उत्तर:
रॉल्स के अनुसार विवेकशील चिन्तन हमें समाज में लाभ और भार के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार करने को प्रेरित करता है।
प्रश्न 24.
किसी न्यायपूर्ण समाज द्वारा अपने सदस्यों को कौन-सी स्थितियाँ जरूर उपलब्ध करवानी चाहिए ?
उत्तर:
किसी न्यायपूर्ण समाज द्वारा अपने सदस्यों को न्यूनतम बुनियादी स्थितियाँ जरूर उपलब्ध करवानी चाहिए।
प्रश्न 25.
मुक्त बाजार के समर्थक मुक्त बाजार को किस प्रकार के समाज का आधार मानते हैं ?
उत्तर:
मुक्त बाजार व्यवस्था के समर्थक मुक्त. बाजार को 'उचित' और 'न्यायपूर्ण' समाज का आधार मानते
प्रश्न 26.
मुक्त बाजार के पक्ष में दिये जाने वाले किसी एक तर्क को बताइए।
उत्तर:
मुक्त बाजार हमें ज्यादा विकल्प प्रदान करता है।
प्रश्न 27.
मुक्त बाजार व्यवस्था का क्या दुष्परिणाम हो सकता है ?
उत्तर:
मुक्त बाजार व्यवस्था का यह दुष्परिणाम हो सकता है कि यह कमजोर और सुविधाहीन लोगों के लिए अवसरों का विस्तार करने के बजाय उन्हें अवसरों से वंचित भी कर सकता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA.) (उत्तर सीमा-40 शब्द)
प्रश्न 1.
“सामाजिक न्याय" से क्या आशय है?
उत्तर:
सामाजिक न्याय से आशय है कि समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति समान हैं एवं मनुष्य के परस्पर सामाजिक संबंधों में किसी प्रकार का भेदभाव न हो। मनुष्यों के साथ जाति, धर्म, लिंग, रंग के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। सामाजिक समानता, सामाजिक न्याय का आधार है। सभी नागरिकों को 'धिकार और स्वतंत्रता समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए।
प्रश्न 2.
प्राचीन भारतीय समाज में न्याय को किस रूप में वर्णित किया जाता था ?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा हुआ था। तत्कालीन समाज में न्याय के अनुसार आचरण करना धर्म माना जाता था। इसी प्रकार धर्म का पालन करना न्याय माना जाता था। प्राचीन भारतीय समाज में धर्म और न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था कायम रखना राजा का प्राथमिक कर्तव्य माना जाता था। इस प्रकार प्राचीन भारतीय समाज में न्याय को धर्म के साथ जोड़कर एक आदर्श माना जाता था।
प्रश्न 3.
चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस के न्याय के सम्बन्ध में क्या विचार थे ? ।
उत्तर:
चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस के न्याय के सम्बन्ध में विचार थे कि गलत करने वालों को दंडित करना और भले लोगों को पुरस्कृत करना ही न्याय है। कन्फ्यूशियस का मानना था कि राजा को न्याय स्थापित करने के लिए गलत लोगों को दण्ड देना चाहिए तथा भले व अच्छा कार्य करने वाले लोगों की रक्षा करनी चाहिए और प्रोत्साहन देना चाहिए। इस प्रकार कन्फ्यूशियस ने न्याय की व्याख्या दण्डनीति के रूप में की है।
प्रश्न 4.
सुकरात ने न्याय के सम्बन्ध में क्या विचार व्यक्त किये हैं ?
उत्तर:
सुकरात का न्याय के सम्बन्ध में मानना है कि न्याय का मतलब सिर्फ अपने मित्रों का भला करना और शत्रुओं का नाश करना नहीं होता है। सुकरात के अनुसार न्याय में समस्त लोगों की भलाई निहित रहती है। सुकरात के विचारों में न्यायसंगत शासक या सरकार को भी जनता की भलाई की चिन्ता करनी चाहिए। इस प्रकार सुकरात ने न्याय के सम्बन्ध में व्यापक एवं महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये हैं।
प्रश्न 5.
इमैनुएल कांट के न्याय सम्बन्धी विचारों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट ने न्याय को व्यक्ति की गरिमा से जोड़ा है। उनके अनुसार हर मनुष्य की गरिमा होती है। अगर सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकृत है, तो उनमें से हर एक का यह हक होगा कि उन्हें अपनी प्रतिभा के विकास और लक्ष्य की पूर्ति के लिए अवसर प्राप्त हों। न्याय के लिए यह जरूरी है कि हम समस्त व्यक्तियों को समुचित और बराबर का महत्व प्रदान करें।
प्रश्न 6.
न्याय के 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' की प्रमुख मान्यता क्या है ?
उत्तर:
न्याय के समान लोगों के प्रति समान बरताव की प्रमुख मान्यता है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों की कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इस कारण सभी मनुष्यों को समान अधिकार मिलने चाहिए और उनके साथ समान बरताव किया जाना चाहिए। इस प्रकार न्याय का समान बरताव का सिद्धान्त यह मानता है कि सभी मनुष्यों के साथ बिना किसी भेदभाव के समान बरताव किया जाना चाहिए।
प्रश्न 7.
'समानुपातिक न्याय' से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
समानुपातिक न्याय-समानुपातिक न्याय का अभिप्राय उस न्याय से है जिसमें लोगों के साथ उनकी योग्यता व उनके प्रयास के अनुपात में व्यवहार किया जाए। समानुपातिक न्याय समानता के अन्धे अनुकरण के खिलाफ है। इसके अन्तर्गत यह माना जाता है कि समाज में हर व्यक्ति की योग्यता और क्रियाशीलता अलग-अलग है। अतः उनके साथ अलग-अलग बरताव होना चाहिए और उनकी योग्यताओं के अनुपात में ही उन्हें लाभ मिलने चाहिए।
प्रश्न 8.
न्याय के 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' का औचित्य क्या है ? '
उत्तर:
न्याय के 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' की आवश्यकता के समाज में कई औचित्य हैं। समाज में कई ऐसे वर्ग हैं जो कि शारीरिक और सामाजिक दृष्टि से दुर्बल व पिछड़े हैं। ऐसे में इन पर 'समान बरताव का नियम' या 'समानुपातिक न्याय' का नियम लागू करना अन्यायपूर्ण होगा। अतः विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त द्वारा ही इन वर्गों को समाज में अपना हक प्राप्त करने योग्य बनाया जा सकता है।
प्रश्न 9.
भारत में सरकारी नौकरियों तथा शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण की व्यवस्था न्याय के किस . . सिद्धान्त के अन्तर्गत लागू की गई और क्यों ?
उत्तर:
भारत में सरकारी नौकरियों में तथा शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में 'आरक्षण' की व्यवस्था न्याय के विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' सिद्धान्त के अन्तर्गत लागू की गई है। इसे लागू करने का प्रमुख कारण समाज के अति पिछड़े, शोषित व वंचित वर्गों को समाज में उनका उचित हक व हिस्सेदारी प्रदान करना है। ऐसा किये बिना समाज में सामाजिक न्याय की स्थिति को प्राप्त करना अत्यधिक कठिन हो जाएगा।
प्रश्न 10.
किसी देश में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए कौन-कौन सी बातें आवश्यक होती हैं?
उत्तर:
किसी देश में सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि लोगों के साथ समाज के कानूनों और नीतियों के सम्बन्ध में समान बरताव किया जाए। इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि लोग जीवन की स्थितियों और अवसरों के मामले में भी बुनियादी समानता का उपभोग करें। इसी प्रकार सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए यह भी जरूरी माना गया है कि लोग अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें तथा स्वयं को अभिव्यक्त भी कर सकें।
प्रश्न 11.
'रॉल्स का न्याय सिद्धान्त' क्या है ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के राजनीतिक विचारक जॉन रॉल्स ने सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए संसाधनों के उचित वितरण के सम्बन्ध में अपने विचारों का प्रतिपादन किया है। इन विचारों को ही 'रॉल्स का न्याय सिद्धान्त' कहा जाता है। इस सिद्धान्त द्वारा रॉल्स ने समाज के अधिकतम वंचित वर्गों को अधिकतम लाभों के वितरण की तार्किक व्यवस्था का प्रतिपादन किया है तथा इसके औचित्य को भी सिद्ध किया है।
प्रश्न 12.
रॉल्स द्वारा प्रतिपादित 'अज्ञानता का आवरण' के विचार को समझाइए।
उत्तर:
रॉल्स द्वारा प्रतिपादित 'अज्ञानता का आवरण' रॉल्स का मानना है कि हमारे लिए निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यह है कि हम खुद को ऐसी परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाए। हमें इस स्थिति में यह भी ज्ञात नहीं है कि उस समाज में हमारी जगह क्या होगी। इसे ही रॉल्स ने अज्ञानता के आवरण का नाम दिया है। रॉल्स ने न्यायपूर्ण वितरण सम्बन्धी अपने विचारों को आगे बढ़ाने में इसी विचार की मदद ली है।
प्रश्न 13.
अधिक देर होने से न्याय का औचित्य समाप्त हो जाता है, क्यों ?
उत्तर:
न्याय के सम्बन्ध में समय व आवश्यकता का बड़ा महत्व होता है। इसी कारण ऐसा माना जाता है कि न्याय मिलने में अधिक देरी हो तो न्याय का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। जब भी हमारे साथ कुछ गलत होता है तो हम न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं परन्तु यदि न्याय मिलने में अधिक देरी होती है तो हमारा हौसला पस्त हो जाता है। हम अपने साथ हुए अन्याय को या तो स्वीकार कर लेते हैं, या कोई गैरकानूनी कदम उठा लेते हैं। इस कारण ही यह कहा जाता है कि अधिक देर होने से न्याय का औचित्य समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 14.
रॉल्स की नजर में 'अज्ञानता के आवरण' की क्या उपयोगिता है ? ।
उत्तर:
रॉल्स के अनुसार अज्ञानता का कल्पित आवरण ओढ़ना उचित कानूनों और नीतियों की प्रणाली तक पहुँचने का पहला कदम है। इससे यह प्रकट होता है कि विवेकशील मनुष्य न केवल सबसे बुरे सन्दर्भ में चीजों को देखेंगे, बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि उनके द्वारा निर्मित नीतियाँ सम्पूर्ण समाज के लिए लाभदायक हों। रॉल्स की नजर में अज्ञानता के आवरण के अन्तर्गत एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सकता है। यही इसकी उपयोगिता है।
प्रश्न 15.
हम किस समाज के सम्बन्ध में यह कह सकते हैं कि वहाँ सामाजिक न्याय का अभाव है?
उत्तर:
यदि किसी समाज में अमीर वर्ग और गरीब वर्गों के बीच बहुत ज्यादा दूरी और स्थायी विभाजन मौजूद हो तो हम ऐसे समाज के सम्बन्ध में यह कह सकते हैं कि वहाँ सामाजिक न्याय का अभाव है। ऐसे समाज में विभिन्न जरूरी संसाधनों पर अमीर वर्ग का स्वामित्व होता है, जबकि गरीब व वंचित वर्ग शोषण का शिकार होता रहता है। जिन समाजों में यह भेद गहरा व स्थायी हो जाता है, वहाँ सामाजिक न्याय का अभाव होता है।
प्रश्न 16.
एक न्यायपूर्ण समाज में किन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए ?
उत्तर:
एक न्यायपूर्ण समाज में अग्रलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए
प्रश्न 17.
एक न्यायपूर्ण समाज में किन न्यूनतम बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने पर लगभग सभी सहमत
हैं ?
उत्तर:
एक न्यायपूर्ण समाज में सामान्य रूप से कई न्यूनतम बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर सभी लोग सहमत हैं। इन सुविधाओं में स्वस्थ रहने हेतु आवश्यक पोषक तत्व एवं आहार, शुद्ध पेयजल की सभी को आपूर्ति, शिक्षा, न्यूनतम मजदूरी, आवास इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। वर्तमान विश्व में अधिकांश राज्यों में इन सुविधाओं को उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी माना जाता है।
प्रश्न 18.
मुक्त बाजार की धारणा क्या है ?
उत्तर:
मुक्त बाजार की धारणा-मुक्त बाजार की धारणा के अन्तर्गत यह माना जाता है कि जहाँ तक सम्भव हो, सभी व्यक्तियों को सम्पत्ति अर्जित करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। सभी व्यक्तियों को मूल्य निर्धारण, मजदूरी तथा लाभ के मामले में दूसरों के साथ अनुबंध और समझौतों में शामिल होने की स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए। सभी लोगों को अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने की पूरी छूट होनी चाहिए। इस प्रकार मुक्त बाजार की धारणा खुली व स्वतन्त्र प्रतिस्पर्धा द्वारा न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करना चाहती है।
प्रश्न 19.
मुक्त बाजार व्यवस्था का प्रमुख दोष क्या है ?
उत्तर:
मुक्त बाजार व्यवस्था का प्रमुख दोष यह है कि मुक्त बाजार आमतौर पर पहले से ही सम्पन्न लोगों के हक में काम करने का रुझान दिखाते हैं। इस कारण यह व्यवस्था अपेक्षाकृत कमजोर और सुविधाहीन लोगों के लिए अवसरों का विस्तार करने की बजाय उन्हें अवसरों से वंचित कर सकती है। अतः मुक्त बाजार व्यवस्था को पूरी तरह से अपनाया जाना न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए बड़ी रुकावट बन सकता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-100 शब्द)
प्रश्न 1.
न्याय के 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' सिद्धान्त को उचित उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
न्याय का 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' सिद्धान्त–आधुनिक युग में प्रत्येक व्यक्ति को उसका उचित हक दिलाने के उद्देश्य से न्याय के कई सिद्धान्त अस्तित्व में आये हैं। इन्हीं में से एक प्रमुख सिद्धान्त 'समान लोगों के साथ समान बरताव' का सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त की यह मान्यता है कि मनुष्य होने के नाते सभी व्यक्तियों में कुछ समान चारित्रिक विशेषताएँ होती हैं। इसीलिए वे समान अधिकार और समान बरताव के अधिकारी हैं। इस मान्यता के आधार पर लोगों को कई प्रकार के अधिकार दिये गये हैं जो कि सभी लोगों को समान रूप से प्राप्त हैं।
वर्तमान में अधिकांश लोकतंत्रों में कुछ महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं। इनमें जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति के अधिकार जैसे नागरिक अधिकार शामिल हैं। समान अधिकारों के अलावा समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धान्त के लिए जरूरी है कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाए। 'समान बरताव का सिद्धान्त' यह कहता है कि लोगों को उनके काम और क्रियाकलापों के आधार पर जाँचा जाना चाहिए, इस आधार पर नहीं कि वे किस समुदाय के सदस्य हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी विद्यालय में पुरुष शिक्षक को महिला शिक्षक से अधिक वेतन मिलता है, तो 'समान बरताव के सिद्धान्त' के अनुसार यह भेद न्यायसंगत नहीं माना जाता।
प्रश्न 2.
समानुपातिक न्याय के सिद्धान्त की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समानुपातिक न्याय का सिद्धान्त-समाज में न्याय की स्थापना हेतु प्रत्येक परिस्थिति में समान बरताव के सिद्धान्त को लागू नहीं किया जा सकता। कई बार ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिसमें हर व्यक्ति के साथ समान बरताव किया जाना अन्याय होगा। इन्हीं स्थितियों में समानुपातिक न्याय' का सिद्धान्त लागू किया जाता है। इस सिद्धान्त में यह माना जाता है कि लोगों को उनके प्रयास के पैमाने और अर्हता के अनुपात में पुरस्कृत किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर आपके विद्यालय में यह फैसला किया जाए कि परीक्षा में शामिल होने वाले समस्त विद्यार्थियों को बराबर अंक दिये जाएंगे, क्योंकि सभी एक ही विद्यालय के विद्यार्थी हैं और सभी ने एक ही परीक्षा दी है, तो यह आपको कदापि उचित नहीं लगेगा।
अच्छा तो यह होगा कि विद्यार्थियों को उनकी उत्तर-पुस्तिकाओं की गुणवत्ता और सम्भव हो तो इसके लिए उनके द्वारा किए गए प्रयास के अनुसार अंक दिए जाएँ। अतः समानुपातिक न्याय का सिद्धान्त लोगों के साथ उनकी योग्यता, प्रतिभा के अनुपात में बरताव करने पर जोर देता है। 'समानुपातिक न्याय का सिद्धान्त' इस बात पर बल देता है कि समान अधिकार की दौड़ में एक ही शुरूआती रेखा निर्धारित करने के बावजूद लोगों के साथ उनके प्रयास और योग्यता के अनुपात में व्यवहार किया जाना चाहिए।
प्रश्न 3.
'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। क्या यह सिद्धांत औचित्यपूर्ण है?
उत्तर:
विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त की विशेषताएँ-न्याय के 'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल' सिद्धान्त की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त की औचित्यपूर्णता–हाँ, विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त काफी हद तक औचित्यपूर्ण है। इसका औचित्य इस आधार पर है कि समाज में सभी लोग समान सुविधाओं को प्राप्त नहीं कर पाते। वे शारीरिक रूप से भी समान नहीं होते। अतः ऐसे में उन्हें सक्षम लोगों के समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें कुछ विशेष रियायतें दी जाएँ तथा विशेष सहायता प्रदान करके सक्षम लोगों के बराबर बनाया जाए।
प्रश्न 4.
सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में लागू 'आरक्षण' की व्यवस्था के औचित्य की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में लागू 'आरक्षण' की व्यवस्था को विशेष जरूरतों के विशेष ख्याल सिद्धान्त के अन्तर्गत औचित्यपूर्ण माना जाता है। इसके औचित्य का परीक्षण निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है।
(i) समाज में व्याप्त विभिन्न असमानताएँ व भेदभाव-समाज में सदियों से कुछ वर्ग व्यापक असमानताओं व भेदभाव का शिकार होते रहे हैं। ऐसे में इन्हें समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए इनके लिए कुछ विशेष प्रावधान आवश्यक हैं।
(ii) शारीरिक असमानताएँ समाज में विकलांग, स्त्री, अस्वस्थ इत्यादि वर्ग के लोग भी रहते हैं। ये अन्य लोगों के समान नहीं माने जाते। इनके साथ भेदभाव किया जाता है। अतः इन्हें समाज में समान अवसर उपलब्ध कराने के लिए विशेष रियायतें दिया जाना ही न्यायपूर्ण होगा।
(iii) संसाधनों का समान वितरण सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह सभी संसाधनों का जितना सम्भव हो समान वितरण करे। ऐसा करते समय वे वर्ग जो प्रतियोगिता की बुनियादी तैयारी से पीछे हैं, वे इनका लाभ नहीं ले पाएँगे। अतः इनके लिए कुछ विशेष रियायतें दिया जाना न्यायपूर्ण है।
प्रश्न 5.
'न्यायपूर्ण बँटवारा' से आप क्या समझते हैं ? उचित उदाहरणों की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
न्यायपूर्ण बँटवारा समाज में कई प्रकार के संसाधन होते हैं। सरकार व समाज का कर्तव्य होता है कि इनका लाभ सभी लोगों को प्राप्त कराये। ऐसे में जिस प्रक्रिया को अपनाया जाता है, वह 'न्यायपूर्ण बँटवारा' कहलाती है। न्यायपूर्ण बँटवारा संसाधनों के वितरण की वह प्रक्रिया है जिसमें अधिकतम वंचित व्यक्तियों व वर्गों को अधिकतम लाभ पहुँचाने का प्रयास किया जाता उदाहरण के लिए समाज में अभी भी अधिकांश लोग भूख से मरते हैं। ऐसे लोगों को अनाज की सख्त जरूरत है।
अतः न्यायपूर्ण बँटवारे के अनुसार सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इन्हें भोजन उपलब्ध कराने हेतु निःशुल्क या रियायती दरों पर अनाज का वितरण सुनिश्चित करे। 'न्यायपूर्ण बँटवारा' सामाजिक न्याय की स्थापना का महत्वपूर्ण एवं प्रमुख तत्व है। जब संसाधनों और वस्तुओं का न्यायपूर्ण बँटवारा किया जाता है तो समाज में लोगों के बीच असमानताओं और भेदभावों में कमी आती है। इस प्रकार सामाजिक न्याय की स्थिति को प्राप्त करना सरल हो जाता है।
प्रश्न 6.
रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धान्त में निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का क्या रास्ता बताया है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
जॉन रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धान्त में निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता 'अज्ञानता के आवरण' को बताया है। रॉल्स के अनुसार निष्पक्ष और न्यायसंगत नियम तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम स्वयं को ऐसी परिस्थिति में होने की कल्पना करें जहाँ हमें यह निर्णय लेना है कि समाज को कैसे संगठित किया जाए। जबकि हमें यह ज्ञात नहीं है कि उस समाज में हमारी क्या जगह होगी अर्थात् हम यह नहीं जानते कि किस किस्म के परिवार में हम जन्म लेंगे, हम 'उच्च' जाति के परिवार में पैदा होंगे या 'निम्न' जाति के, धनी होंगे या गरीब, सुविधासम्पन्न होंगे या सुविधाहीन।
इस स्थिति को रॉल्स 'अज्ञानता के आवरण' में सोचना कहते हैं। रॉल्स का तर्क है कि यदि हमें यह नहीं मालूम हो कि हम कौन होंगे और भविष्य के समाज में हमारे लिए कौन से विकल्प खुले होंगे, तब हम भविष्य के उस समाज के नियमों और संगठनों के बारे में जिस निर्णय का समर्थन करेंगे, वह तमाम सदस्यों के लिए अच्छा होगा। इस प्रकार रॉल्स के अनुसार निष्पक्ष और न्यायसंगत नियमों तक पहुँचने और न्यायसंगत समाज के निर्माण हेतु यही रास्ता (अज्ञानता का आवरण) ही एकमात्र मार्ग है। इस मार्ग पर चलकर ही हम एक समानतापूर्ण व न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर पाएंगे।
प्रश्न 7.
'सामाजिक न्याय' से क्या अभिप्राय है ? सामाजिक न्याय की स्थापना किस प्रकार की जा सकती है ?
उत्तर:
सामाजिक न्याय से अभिप्राय-सामाजिक न्याय वह स्थिति है जिसमें समाज के सभी वर्गों को समान अवसर प्राप्त हों तथा किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए। इस प्रकार सामाजिक न्याय का सीधा सा अभिप्राय यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों की अपनी गरिमा हो तथा उन्हें अपने विकास के समान अवसर बिना किसी भेदभाव के प्राप्त हों। अतः एक अच्छे समाज का निर्माण सामाजिक न्याय द्वारा ही किया जा सकता है।
सामाजिक न्याय की स्थापना किस प्रकार की जाए–सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए कई तरीके अपनाये जा सकते हैं। सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु समाज में न्याय के विभिन्न सिद्धान्तों जैसे समान बरताव का सिद्धान्त, विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त, समानुपातिक न्याय सिद्धान्त इत्यादि को उचित सन्तुलन में लागू किया जा सकता है। इसी प्रकार सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु रॉल्स के वितरणात्मक न्याय सिद्धान्त को भी विशेष रूप से लागू किया जा सकता है। सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु इन समस्त प्रयासों को एक साथ उचित रूप में लागू किया जाना आवश्यक होता है।
प्रश्न 8.
सामाजिक न्याय के अनुसरण में आने वाली बाधाओं की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक न्याय के अनुसरण में कई बाधाएँ आती हैं। पहली बाधा यह आती है कि लोगों की जिंदगी के लिए जरूरी न्यूनतम बुनियादी स्थितियों का निर्धारण हम कैसे कर सकते हैं ? हालांकि इस सन्दर्भ में विभिन्न सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे कई संगठनों ने कई तरीके सुझाये हैं। लेकिन फिर भी सभी मामलों पर सहमति नहीं बन पायी है। सामाजिक न्याय के अनुसरण (क्रियान्वयन) में दूसरी बाधा यह है कि हम सब इस बात पर सहमत भी हो जाएँ कि राज्य को समाज के सबसे वंचित सदस्यों की मदद करनी चाहिए, जिससे वे भी अन्य लोगों के समान अवसरों का लाभ उठा सकें, तब भी इस बात पर असहमति हो सकती है कि इस लक्ष्य को पाने का सर्वोत्तम तरीका क्या होगा। इस प्रकार सामाजिक न्याय का अनुसरण करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। आज हमारी सरकारों की प्रमुख जिम्मेदारी यही है कि वे समाज में बड़ी ही सावधानी और कुशलता के साथ विभिन्न नीतियों और सिद्धान्तों को ऐसे लागू करें कि अधिक से अधिक मात्रा में सामाजिक न्याय की प्राप्ति की जा सके।
प्रश्न 9.
मुक्त बाजार बनाम राज्य का हस्तक्षेप की बहस पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
वर्तमान विश्व में सामाजिक न्याय की स्थापना के क्षेत्र में मुक्त बाजार बनाम राज्य के हस्तक्षेप की बहस एक प्रमुख
चर्चा का विषय बन चुकी है। मुक्त बाजार के समर्थकों का मानना है कि जहाँ तक सम्भव हो, सभी व्यक्तियों को सम्पत्ति अर्जित करने के लिए तथा मूल्य व मजदूरी और मुनाफे के निर्धारण के मामले में दूसरों के साथ समझौता करने की स्वतंत्रता रहनी चाहिए। उन्हें लाभ की अधिक से अधिक मात्रा हासिल करने की आजादी होनी चाहिए। इस मामले में राज्य को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। परन्तु आज इसके दुष्परिणामों को देखते हुए मुक्त बाजार के समर्थक भी राज्य के हस्तक्षेप को जरूरी मानने लगे हैं। इस बहस का यही आधार है कि राज्य को मुक्त बाजार में हस्तक्षेप करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। वर्तमान में इस बहस का निष्कर्ष इस रूप में निकाला गया है कि राज्य को अनिवार्य रूप से सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु मुक्त बाजार में उचित हस्तक्षेप करना ही होगा। ऐसा न होने पर मुक्त बाजार सामाजिक असमानता को बढ़ावा दे सकता है तथा वंचित और उपेक्षित वर्गों को अवसरों से दूर कर सकता है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा-150 शब्द)
प्रश्न 1.
न्याय से आप क्या समझते हैं ? विभिन्न दार्शनिकों द्वारा न्याय की व्याख्या किस प्रकार की गई है ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
न्याय से अभिप्राय न्याय एक व्यापक स्थिति एवं धारणा है। न्याय उस स्थिति, व्यवहार, प्रक्रिया एवं धारणा का नाम है जिसमें सभी व्यक्तियों को उनका हक दिया जाए तथा उनके हकों की रक्षा की जाए। इस प्रकार न्याय उचित को प्रोत्साहित करने और अनुचित को रोकने की प्रक्रिया है। न्याय की विभिन्न दार्शनिकों द्वारा व्याख्या न्याय प्राचीन काल से ही राजनीतिक सिद्धान्त में चर्चा का मुख्य विषय रहा है। प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने न्याय को धर्म से जोड़कर एक आदर्श धारणा के रूप में इसकी व्याख्या की। इसी प्रकार चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने भी न्याय पर विचार करते हुए कहा कि "गलत करने वालों को दण्डित करके और भले लोगों को पुरस्कृत करके राजा को न्याय स्थापित करना चाहिए।" ईसा पूर्व चौथी सदी के एथेंस (यूनान) में प्लेटो नामक प्रख्यात दार्शनिक ने भी अपनी पुस्तक 'द रिपब्लिक' में न्याय के मुद्दों की चर्चा की है।
प्लेटो ने सुकरात और उनके युवा मित्रों ग्लाउकॉन, एडीमंटस इत्यादि के बीच लम्बी वार्ता के द्वारा दिखाया कि हमारा न्याय से अनिवार्य रूप से सरोकार होना चाहिए। प्लेटो ने सुकरात के जरिए कई बातें समझाने का प्रयास किया है। प्लेटो द्वारा वर्णित बातचीत में सुकरात कहते हैं कि "हमारा दीर्घकालिक (लम्बी अवधि का) हित यही है कि हम कानूनों का पालन करें और न्यायी बनें।" इसी प्रकार सुकरात ने आगे स्पष्ट किया है कि "हमें न्याय के अर्थ को स्पष्ट रूप से समझने की जरूरत है ताकि हम यह देख सकें कि न्यायसंगत होना क्यों महत्वपूर्ण है।" इसी प्रकार जर्मन दार्शनिक इमैनुएल कांट ने न्याय को हर व्यक्ति की गरिमा के अनुसार उसे मिलने वाला हक बताया है।
प्रश्न 2.
न्याय के 'समान लोगों के प्रति समान बरताव' तथा 'समानुपातिक न्याय' सिद्धान्त में क्या भेद दिखाई पड़ते हैं ? दोनों एक दूसरे के पूरक हैं या विरोधी ? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर:
'समान लोगों के प्रति समान बरताव' तथा 'समानुपातिक न्याय' सिद्धान्त में भेद-यह दोनों ही सिद्धान्त न्याय के महत्वपूर्ण सिद्धान्त माने जाते हैं। दोनों सिद्धान्तों के उद्देश्य समाज में व्यक्ति को उसका हक दिलाना ही है। इसके बावजूद इनमें निम्नलिखित भेद हैं
(i) समान लोगों के प्रति समान व्यवहार का सिद्धान्त सभी मनुष्यों को एक समान मानते हुए उनके साथ समान व्यवहार किये जाने की बात करता है जबकि समानुपातिक न्याय का सिद्धान्त व्यक्तिगत भेदों को स्वीकार करते हुए लोगों के साथ उनकी योग्यता या क्रियाशीलता के अनुपात में व्यवहार करने को उचित मानता है।
(ii) समान व्यवहार का सिद्धान्त सभी लोगों को मानव होने के नाते समान मानता है जबकि समानुपातिक न्याय का सिद्धान्त लोगों की शारीरिक, मानसिक क्षमताओं व योग्यताओं के भेद स्वीकार करते हुए उन्हें अलग-अलग मानता है। समान बरताव का सिद्धान्त व समानुपातिक न्याय सिद्धान्त एक-दूसरे के पूरक हैं दोनों सिद्धान्तों का उचित रूप से विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं कि दोनों परस्पर विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं।
इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते-
प्रश्न 3.
'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' समान बरताव के सिद्धान्त का विरोधी प्रतीत होता है, फिर भी इसे लागू किये जाने के क्या औचित्य है ?
उत्तर:
'विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त' सामान्य तौर पर न्याय के समान बरताव के सिद्धान्त का विरोधी प्रतीत होता है। इसके बावजूद अधिकांश लोकतांत्रिक विकासशील देशों में इसे लागू किया गया है। इसके लागू किये जाने के निम्नलिखित औचित्य हैं
(i) समाज में सभी व्यक्ति मानव होने के नाते समान हक पाने के हकदार हैं परन्तु कुछ व्यक्ति अन्य की तुलना में शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पिछड़े और दुर्बल हैं। ऐसे में सभी के साथ आँख बन्द करके समान बरताव किया जाना अन्यायपूर्ण होगा।
(ii) समाज में सभी को समान अवसर प्राप्त होने ही चाहिए। परन्तु ऐसे वर्ग व व्यक्ति जो कि जिन्दा रहने के लिए ही संघर्ष कर रहे हों, भोजन की व्यवस्था में ही उनका पूरा जीवन बीत जाता हो तो ऐसे में वे अवसरों का लाभ उठाने की स्थिति में ही नहीं होते। अतः उन्हें भी समान रूप से अवसरों का लाभ लेने लायक बनाने हेतु कुछ रियायतें दिया जाना ही न्याय होगा।
(iii) समाज में सदियों से कुछ सामाजिक भेदभाव जैसे ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष इत्यादि बने हुए हैं। ऐसे में केवल समान अधिकार दे देने से ही काम नहीं चलता बल्कि अधिकारों का समान क्रियान्वयन भी सुनिश्चित करना होता है। अतः यह कार्य विशेष जरूरतों के विशेष ख्याल सिद्धान्त द्वारा किया जाता है, जो कि पूरी तरह से न्यायपूर्ण एवं औचित्यपूर्ण प्रतीत होता है।
(iv) समाज में सभी व्यक्तियों को समान तभी माना जा सकता है जब सभी व्यक्ति इस स्थिति में हों कि वे समान रूप से मिलने वाले अवसरों का समान रूप से लाभ उठा सकें जबकि वास्तव में समाज में ऐसा नहीं होता कि सभी व्यक्ति इस स्थिति में हों। अतः ऐसे वर्गों व व्यक्तियों तक अवसरों का लाभ पहुँचाने के लिए उन्हें कुछ विशेष रियायतें दिया जाना ही एकमात्र विकल्प बचता इस प्रकार उपर्युक्त आधारों पर विशेष जरूरतों का विशेष ख्याल सिद्धान्त, समान बरताव के सिद्धान्त का विरोधी प्रतीत होते हुए भी पूर्णतया औचित्यपूर्ण है।
प्रश्न 4.
जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धान्त की सविस्तार विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धान्त–समकालीन अमेरिकी राजनीतिक चिन्तक व विचारक जॉन रॉल्स ने सामाजिक न्याय की स्थापना के सन्दर्भ में अपना न्याय का सिद्धान्त प्रस्तुत किया है। रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धान्त के प्रतिपादन में यह तर्क दिया है"समाज के न्यूनतम सुविधा प्राप्त सदस्यों को सहायता देने की जरूरत स्वीकार करने के लिए बेशक युक्तिसंगत (तार्किक आधार पर उचित) औचित्य हो सकता है।" जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धान्त की मूल मान्यता यह है कि समाज में जो वर्ग सर्वाधिक वंचित हैं, जिन्हें विभिन्न संसाधनों और लाभों की सर्वाधिक आवश्यकता है उन्हें समाज व सरकार द्वारा अधिक से अधिक लाभ पहुँचाये जाने चाहिए। रॉल्स ने इसे 'वितरणात्मक न्याय' कहा है। रॉल्स ने अपने सिद्धान्त में न्यायपूर्ण वितरण के औचित्य को सिद्ध करने और अपने विचार को आगे बढ़ाने के लिए 'अज्ञानता के आवरण' की मदद ली है।
रॉल्स का मानना है कि हमें एक ऐसे काल्पनिक आवरण की कल्पना करनी होगी जिसमें हम यह महसूस करें कि हमारी कोई हैसियत नहीं है और पूरे समाज का निर्माण हमें दोबारा करना है। इस समाज में हमारा क्या स्थान होगा, हमें यह भी पता नहीं है। इसे रॉल्स 'अज्ञानता' के आवरण में सोचना कहते हैं। रॉल्स इसके माध्यम से यह आशा करते हैं कि समाज में अपने सम्भावित स्थान और हैसियत के बारे में पूर्ण अज्ञानता की हालत में प्रत्येक आदमी, आमतौर पर जैसे सभी करते हैं, अपने स्वयं के हितों को ध्यान में रखकर फैसला कर सकेगा। इस प्रकार रॉल्स का अपने न्याय सिद्धान्त में यह मानना है कि नैतिकता नहीं बल्कि विवेकशील सोच हमें समाज में लाभ और जिम्मेदारियों के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार करने की ओर प्रेरित करती है। रॉल्स का न्याय सिद्धान्त निष्पक्ष एवं न्याय की स्थापना का एक प्रमुख साधन प्रतीत होता है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
यूनानी दार्शनिकों ने न्याय के किस पहलू पर बल दिया?
(अ) सामाजिक
(ब) नैतिक
(स) विधिक
(द) राजनीतिक
उत्तर:
(ब) नैतिक
प्रश्न 2.
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएजॉन रॉल्स अपने न्याय सम्बन्धी सिद्धांत में
1. राजनीतिक वाध्यता की उदारवादी संकल्पना का सामाजिक न्याय की पुनर्वितरणात्मक संकल्पना से समाधान स्थापित करता है।
2. क्या शुभ और वांछनीय है, इसके निर्धारण के लिए उपयोगितावादी सिद्धांत की अभिपुष्टि करना है।
3. न्याय सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक संविदा के उपकरण का प्रयोग करता है।
4. यह मानता है कि पुनर्वितरण का सरोकार वैयक्तिक स्वतंत्रता को पराभूत करना है। उपरोक्त स्थानों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(अ) केवल 3
(ब) 1 और 2
(स) 1 और 3
(द) 2 और 4
उत्तर:
(स) 1 और 3
प्रश्न 3.
रॉल्स की न्याय की धारणा है
(अ) समाजवादी
(ब) उपयोगितावादी
(स) समुदायवादी
(द) उदारवादी
उत्तर:
(स) समुदायवादी
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा एक प्लेटो के न्याय की धारणा का मूल तत्व है?
(अ) समानता
(ब) स्वतंत्रता
(स) बन्धुता
(द) सामंजस्य।
उत्तर:
(स) बन्धुता
प्रश्न 5.
रॉल्स के न्याय सिद्धांत में 'मूल स्थिति में व्यक्ति द्वारा विवेकपूर्ण चयन का सिद्धांत अधिकीकरण करता है
(अ) अपेक्षित उपयोगिता का
(ब) न्यूनतम का
(स) अधिकतम का
(द) आकांक्षाओं का, उस विकल्प को छोड़कर जिसकी सदभावना बहुत बुरी मानी जा सकती है।
उत्तर:
(द) आकांक्षाओं का, उस विकल्प को छोड़कर जिसकी सदभावना बहुत बुरी मानी जा सकती है।
प्रश्न 6.
भेद सिद्धांत (रॉल्स का न्याय सिद्धांत) से तात्पर्य है
(अ) व्यक्तियों के गुणों और उनकी प्राकृतिक प्रतिभा के आधार पर आय और सम्पदा के भेद उचित हैं।
(ब) उपयोगिताओं को अधिकतम बनाने के आधार पर आय और सामाजिक स्थिति के भेदों को उचित ठहराया जा सकता है।
(स) आय और सम्पदा की असमानता उसी स्थिति में उचित मानी जा सकती हैं, यदि वे न्यूनतम लाभान्वित के लिए अधिकतम लाभकारी हो।
(द) असमानताओं का औचित्य पैरेटो के इष्टतमता के सिद्धांत के अनुसार सिद्ध किया जा सकता है।
उत्तर:
(स) आय और सम्पदा की असमानता उसी स्थिति में उचित मानी जा सकती हैं, यदि वे न्यूनतम लाभान्वित के लिए अधिकतम लाभकारी हो।
प्रश्न 7.
न्याय का अभिप्राय है कि
(अ) किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हो सकता
(ब) औचित्य के आधार पर भेदभाव हो सकता है
(स) बहुसंख्यक दृष्टिकोण की संगति से भेदभाव हो सकता है
(द) राज्य की इच्छा के अनुसार भेदभाव हो सकता है।
उत्तर:
(अ) किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हो सकता
प्रश्न 8.
व्यापक सन्दर्भो में सामाजिक न्याय का सिद्धांत किसने दिया?
(अ) प्लेटो
(ब) मिल
(स) रॉल्स
(द) वार्कर।
उत्तर:
(स) रॉल्स
प्रश्न 9.
सामाजिक न्याय का लाभ है
(अ) राष्ट्रीय हित
(ब) सामाजिक हित
(स) गरीब का हित
(द) जाति का हित
उत्तर:
(ब) सामाजिक हित
प्रश्न 10.
'ए' थ्योरी ऑफ जस्टिस' नामक पुस्तक के लेखक हैं
(अ) जॉन लॉक
(ब) जॉन रॉल्स
(स) जॉन ऑस्टिन
(द) प्लेटो।
उत्तर:
(ब) जॉन रॉल्स