RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
फ्रांसीसी क्रान्ति का नारा था
(क) स्वतन्त्रता, समानता, भाईचारा
(ख) स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र, समानता 
(ग) समानता, भाईचारा, लोकतन्त्र
(घ) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(क) स्वतन्त्रता, समानता, भाईचारा

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता  

प्रश्न 2.
किसी समाज में लोगों में निहित प्रतिभा का विशाल खजाना निम्न के अभाव में बर्बाद हो जाता है
(क) आर्थिक समानता
(ख) अवसरों की समानता 
(ग) राजनीतिक स्वतन्त्रता
(घ) प्राकृतिक असमानता। 
उत्तर:
(ख) अवसरों की समानता 

प्रश्न 3. 
जन्मजात विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम होती है
(क) प्राकृतिक असमानता
(ख) आर्थिक समानता 
(ग) राजनीतिक समानता
(घ) सामाजिक समानता। 
उत्तर:
(क) प्राकृतिक असमानता

प्रश्न 4. 
स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धान्त है
(क) उदारवाद
(ख) नारीवाद 
(ग) समाजवाद 
(घ) पूँजीवाद। 
उत्तर:
(ख) नारीवाद 

निम्न में सत्य/असत्य कथन बताइए-
(क) समानता का दावा है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्व और सम्मान पाने योग्य हैं। 
(ख) समाज में सहज कार्य-व्यापार के लिए कार्य विभाजन की कोई आवश्यकता नहीं है। 
(ग) राजनीतिक सिद्धान्त में प्राकृतिक असमानताओं और समाजजनित असमानताओं में अन्तर किया जाता है। 
(घ) उदारवादी सिद्धान्तों में विरोधी दृष्टिकोण पाया जाता है।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) सत्य
(घ) सत्य 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (शब्द सीमा-20 शब्द)

प्रश्न 1. 
समानता किन रूपों में शताब्दियों से मानव समाज को प्रेरित और निर्देशित करती रही है?
उत्तर:
समानता एक शक्तिशाली, नैतिक और राजनीतिक आदर्श के रूप में शताब्दियों से मानव समाज को प्रेरित और निर्देशित करती रही है।

प्रश्न 2. 
समानता का प्रमुख दावा क्या है ?
उत्तर:
समानता का प्रमुख दावा है- 
'समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्व और सम्मान पाने योग्य हैं।'

प्रश्न 3. 
वर्तमान में समानता की माँग समाज के किन वर्गों द्वारा लगातार उठाई जा रही है ? 
उत्तर:
वर्तमान में समानता की माँग समाज के पिछड़े और उपेक्षित वर्गों, जैसे—महिलाओं, दलितों आदि द्वारा उठाई जा रही

प्रश्न 4. 
वर्तमान में व्यापक रूप से स्वीकृत आदर्श कौन-सा है ? 
उत्तर:
वर्तमान में समानता व्यापक रूप से स्वीकृत आदर्श है। 

प्रश्न 5. 
'समानता' का हमारा ‘आत्म-बोध' क्या कहता है ?
उत्तर:
समानता का हमारा आत्म-बोध कहता है कि साझी मानवता के कारण सभी मनुष्य बराबर सम्मान और ध्यान दिये जाने के हकदार हैं।

प्रश्न 6. 
क्या कोई भी समाज अपने सभी सदस्यों के साथ सभी स्थितियों में पूर्णतया एक समान व्यवहार कर सकता
उत्तर:
नहीं, कोई भी समाज अपने सभी सदस्यों के साथ सभी स्थितियों में पूर्णतया एक समान व्यवहार नहीं कर सकता है। 

प्रश्न 7. 
असमानता के किन आधारों को स्वीकार नहीं किया जा सकता ? 
उत्तर:
धर्म, नस्ल, जाति या लिंग के आधार पर की जाने वाली असमानता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। 

प्रश्न 8. 
अवसरों की समानता से क्या आशय है ? 
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसरों का मिलना ही अवसरों की समानता है।

प्रश्न 9. 
राजनीतिक सिद्धान्त में हम किन दो असमानताओं में भेद करते हैं ? 
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त में हम 'प्राकृतिक असमानता' एवं 'समाजजनित असमानता' में अन्तर करते हैं। 

प्रश्न 10. 
प्राकृतिक असमानताएँ किन कारणों से पैदा होती हैं ? 
उत्तर:
प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती

प्रश्न 11. 
समाजजनित असमानताएँ क्या होती हैं ? अथवा सामाजिक असमानताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
समाजजनित (सामाजिक) असमानताएँ वे असमानताएँ होती हैं जो समाज में अवसरों की असमानता होने या किसी समूह द्वारा दूसरे समूह के शोषण किए जाने से पैदा होती हैं।

प्रश्न 12. 
प्राकृतिक असमानताएँ किन बातों का परिणाम मानी जाती हैं ? 
उत्तर:
प्राकृतिक असमानताएँ लोगों की जन्मगत विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती हैं। 

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 13.
प्राकृतिक एवं समाजमूलक असमानताओं में अन्तर करना क्यों उपयोगी होता है ?
उत्तर:
प्राकृतिक एवं समाजमूलक असमानताओं में अन्तर करना उपयोगी होता है क्योंकि इससे स्वीकार करने योग्य असमानताओं और अन्यायपूर्ण असमानताओं को अलग-अलग किया जा सकता है।

प्रश्न 14. 
'समानता' के तीन 'आयाम' कौन-से हैं ? 
उत्तर:
समानता के तीन आयाम हैं

  1. राजनीतिक समानता
  2. सामाजिक समानता
  3. आर्थिक समानता। 

प्रश्न 15. 
राजनीतिक समानता किस प्रकार के समाज.के गठन के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है ? 
उत्तर:
राजनीतिक समानता न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के गठन के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है। 

प्रश्न 16. 
नागरिकों को समान 'मताधिकार' दिया जाना किस प्रकार की समानता का प्रतीक है ? 
उत्तर:
नागरिकों को समान मताधिकार दिया जाना 'राजनीतिक समानता' का प्रतीक है।

प्रश्न 17. 
'सामाजिक समानता' के अन्तर्गत किन बातों को पूरा करने का प्रयास किया जाता है ?
उत्तर:
सामाजिक समानता के अन्तर्गत समाज के सभी सदस्यों को समुचित स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषक आहार आदि सुविधाएँ प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 18. 
भारत में सामाजिक रीति-रिवाज समानता के किन आयामों के मार्ग में बाधक हैं ?
उत्तर:
भारत में सामाजिक रीति-रिवाज, सामाजिक समानता एवं राजनीतिक समानता के मार्ग में बाधक हैं। 

प्रश्न 19. 
'सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव करना मना है' यह वाक्य समानता के किस आयाम से सम्बन्धित है ? 
उत्तर:
'सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव करना मना है' यह वाक्य 'सामाजिक समानता' के आयाम से सम्बन्धित है। 

प्रश्न 20. 
आर्थिक असमानता के मापन का कोई एक तरीका बताइए।
उत्तर:
आर्थिक असमानता के मापन का एक तरीका है-गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या का आकलन किया जाए।

प्रश्न 21. 
हमारे समाज की आधुनिक युग की समानता से सम्बन्धित दो प्रमुख धारणाएँ कौन सी हैं? 
उत्तर:
'मार्क्सवाद' और 'उदारवाद' हमारे समाज की आधुनिक युग की समानता से सम्बन्धित दो प्रमुख धारणाएँ हैं।

प्रश्न 22. 
'मार्क्सवादी' और 'समाजवादी' किन बातों को सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाला महसूस करते हैं?
उत्तर:
'मार्क्सवादी' और 'समाजवादी' आर्थिक असमानताओं (जैसे-
सामाजिक प्रतिष्ठा, विशेषाधिकार इत्यादि) को सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देने वाला महसूस करते हैं।

प्रश्न 23. 
उदारवादी समाज में संसाधनों और लाभांश के वितरण के सर्वाधिक कारगर और उचित तरीके के रूप में किस सिद्धान्त का समर्थन करते हैं ?
उत्तर:
उदारवादी समाज में संसाधनों और लाभांश के वित के सर्वाधिक कारगर और उचित तरीके के रूप में प्रतिद्वंद्विता के सिद्धान्त' का समर्थन करते हैं।

प्रश्न 24. 
समाजवादियों के विपरीत' उदारवादी किन असमानताओं को आपस में अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ नहीं मानते ?
उत्तर:
समाजवादियों के विपरीत 'उदारवादी' राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को एक-दूसरे से अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ नहीं मानते हैं।

प्रश्न 25. 
'नारीवाद' किन के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला सिद्धान्त है ? 
उत्तर:
नारीवाद', स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला सिद्धान्त है। 

प्रश्न 26. 
नारीवादियों के अनुसार स्त्री-पुरुष असमानता किस प्रकार के समाज का परिणाम है ?" 
उत्तर:
नारीवादियों के अनुसार स्त्री-पुरुष असमानता 'पितृसत्तात्मक समाज' का,परिणाम है। 

प्रश्न 27. 
समानता को बढ़ावा देने वाले किन्हीं दो उपायों के नाम लिखिए। 
उत्तर:
समानता को बढ़ावा देने वाले दो उपाय हैं-

  • औपचारिक समानता की स्थापना 
  • विभेदक बरताव द्वारा समानता। 

प्रश्न 28. 
वंचित समुदाय के छात्र/छात्राओं को छात्रवृत्ति दिया जाना किस प्रकार का विभेदीकरण (भेद-भाव) है?
उत्तर:
वंचित समुदाय के छात्र/छात्राओं को छात्रवृत्ति दिया जाना 'सकारात्मक विभेदीकरण' है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-40 शब्द)

प्रश्न 1. 
'समानता ' क्या है ? 
उत्तर:
समानता-'समानता' वह स्थिति है जिसमें सभी मनुष्यों को साझी मानवता के तहत बराबर और गरिमापूर्ण माना जाता है। 'समानता' के अन्तर्गत प्रत्येक प्रकार के अनुचित और अन्यायपूर्ण भेदभावों की समाप्ति पर बल दिया जाता है। 'समानता' व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास एवं गरिमा की रक्षा के लिए एक अनिवार्य स्थिति और अधिकार है। 'समानता' के अन्तर्गत कुछ सकारात्मक भेदभावों को भी स्वीकार किया जाता है।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 2. 
समानता का राजनैतिक आदर्श क्या है ?
उत्तर:
समानता की अवधारणा एक राजनैतिक आदर्श के रूप में उन विशिष्टताओं को महत्व प्रदान करती है जिसमें सभी मनुष्य रंग, लिंग, वंश, अथवा राष्ट्रीयता के अंतर के बावजूद भी साझेदार होते हैं। जैसे-सार्वभौमिक मानवाधिकार अथवा मानवता के प्रति अपराध।

प्रश्न 3. 
सार्वभौमिक मानवाधिकार क्या है ?
उत्तर:
सार्वभौमिक मानवाधिकार सार्वभौमिक मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को एक मानव होने के नाते प्राप्त होते हैं। इन कारों को प्रत्येक परिस्थिति में प्रत्येक स्थान पर स्वीकार किया जाता है। उदाहरणतया-'जीवन का अधिकार' एक 'सार्वभौमिक मानवाधिकार' है। विश्व के किसी भी देश में किसी भी व्यक्ति से यह अधिकार नहीं छीना जा सकता। 'सार्वभौमिक मानवाधिकारों' को केवल विशेष परिस्थितियों (देशद्रोह, आतंकवाद) में ही छीना जा सकता है।

प्रश्न 4. 
'मानवता के प्रति अपराध' से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
'मानवता के प्रति अपराध' से तात्पर्य उन कार्यों, स्थितियों एवं गतिविधियों से है जो कि मानव होने के नाते किसी भी व्यक्ति के साथ किया जाना अनुचित और अन्यायपूर्ण होता है। समाज में विभिन्न व्यक्तियों या वर्गों द्वारा एवं कभी-कभी राज्यों एवं सरकारों द्वारा भी ऐसे कार्य किये जाते रहे हैं। उदाहरण के लिए ब्रिटिश शासन में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड' मानवता के प्रति एक गम्भीर अपराध था।

प्रश्न 5. 
आधुनिक काल में सभी मनुष्यों की समानता' का एक नारे के रूप में प्रयोग किन संघर्षों में किया जा रहा है ?
उत्तर:'
आधुनिक काल में 'सभी मनुष्यों की समानता' का एक नारे के रूप में प्रयोग 'राजसत्ता' और विशेषाधिकार प्राप्त सामाजिक संस्थाओं के विरुद्ध समानता के लिये किये जाने वाले संघर्षों में किया जा रहा है। इस नारे का उद्देश्य इन संघर्षों में एकजुटता लाना है। इस नारे के तहत ही कई बड़े राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन (क्रान्तियाँ) हुए, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका की क्रान्ति, फ्रांस की क्रान्ति इत्यादि।

प्रश्न 6. 
समानता की धारणा में क्या निहितार्थ है :
उत्तर:
'समानता' की धारणा में यह बात निहित है कि समाज में सभी लोगों के साथ समान परिस्थितियों में समान व्यवहार किया जाना चाहिए। वे सभी असमानताएँ जोकि अन्यायपूर्ण और समाप्त किये जाने योग्य हैं, उनको समाप्त किया जाना चाहिए। 'समानता' में यह बात भी निहित है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायपूर्ण एवं उचित भेदभाव भी किया जा सकता है।

प्रश्न 7. 
समानता की धारणा में सबसे बड़ा विरोधाभास क्या है ?
उत्तर;
समानता की धारणा में सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि एक तरफ हर कोई समानता के आदर्श को स्वीकार करता है। दूसरी तरफ हमें समाज में हर तरफ असमानता के दर्शन होते हैं। हम एक ऐसी जटिल दुनिया में रहते हैं जिसमें धन-सम्पदा, अवसर, कार्य, स्थिति और शक्ति की भारी असमानता है। यह दोनों ही बातें परस्पर विरोधाभासी हैं।

प्रश्न 8. 
क्या समाज में सभी सदस्यों के साथ सभी परिस्थितियों में पूर्णतया समान बरताव किया जा सकता है ? :
उत्तर-नहीं, समाज में सभी सदस्यों के साथ सभी परिस्थितियों में पूर्णतया समान बरताव नहीं किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि समाज के सहज व व्यवस्थित कार्य-व्यापार के लिए कार्य का विभाजन जरूरी है। जब ऐसा विभाजन समाज या सरकार द्वारा किया जाता है तो समाज में असमानता और भेदभाव आ ही जाता है। परन्तु यह असमानता न्यायपूर्ण होती है।

प्रश्न 9. 
समानता के आदर्श से जुड़े होने का आशय किस बात से है ?
उत्तर:
समानता के आदर्श से जुड़े होने का आशय यह है कि लोगों से जो भी व्यवहार किया जाता है और जो अवसर प्रदान किये जाते हैं वे केवल जन्म या सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए। जब हम समानता की बात करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं होता कि समाज में सभी प्रकार के अन्तरों का उन्मूलन कर दिया जाए।

प्रश्न 10. 
'प्राकृतिक असमानता' को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
'प्राकृतिक असमानता' ऐसी असमानता होती है, जो लोगों की जन्मजात परिस्थितियों से पैदा होती है। उदाहरण के तौर पर कोई जन्म से उच्च कुल का, अमीर और साधन सम्पन्न होता है तो कोई जन्म से कमजोर और गरीब होता है। यह 'प्राकृतिक असमानता' है, जो व्यक्ति को जन्म से प्राप्त होती है। परन्तु इन असमानताओं को अन्तिम सत्य मानकर पिछड़े, उपेक्षित और दुर्बल लोगों को उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता।

प्रश्न 11. 
समाज द्वारा उत्पन्न की गई असमानताएँ क्या होती हैं ?
उत्तर:
समाज में व्याप्त वे असमानताएँ जिन्हें सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं द्वारा उत्पन्न किया गया है, समाज द्वारा उत्पन्न असमानताएँ कहलाती हैं। उदाहरण के तौर पर वंश, रंग, जाति या लिंग के आधार पर विभिन्न लोगों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करना समाजजनित असमानता है। इसी प्रकार छुआछूत, ऊँच-नीच इत्यादि असमानताएँ भी समाज ने ही पैदा की हैं।

प्रश्न 12. 
सामाजिक असमानताएँ कैसे प्राकृतिक असमानता का रूप धारण कर लेती हैं ?
उत्तर:
समाज में जब लोगों के बरताव में कुछ असमानताएँ लम्बे समय तक बनी रहती हैं, तो ये प्राकृतिक विशेषताओं पर आधारित लगने लगती हैं। इस प्रकार सामाजिक असमानताएँ प्राकृतिक असमानताओं का रूप धारण कर लेती हैं। उदाहरणस्वरूप अनादि काल से स्त्री को 'अबला' समझा जा रहा है। धीरे-धीरे स्त्री को पुरुषों पर आश्रित प्राणी मान लिया गया। इसे प्राकृतिक आधार पर सही ठहराने का भी प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 13. 
'राजनीतिक समानता' में सम्मिलित प्रमुख बातों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
राजनीतिक समानता में सम्मिलित प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

  • सभी वयस्क नागरिकों को समान मताधिकार प्राप्त हो। 
  • नागरिकों को समान रूप से अपने-अपने धार्मिक विश्वासों को मानने की स्वतंत्रता हो। 
  • नागरिकों को विचार और स्वयं को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता हो। 
  • संविधान और कानूनों द्वारा नागरिकों के अधिकारों की औपचारिक घोषणा व रक्षा की जाए।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 14. 
'सामाजिक समानता' की जरूरत समाज में व्यक्ति के विकास के मार्ग की किन बाधाओं को दूर करने के लिए होती है ?
उत्तर:
सामाजिक समानता की जरूरत समाज में व्यक्ति के विकास के मार्ग की निम्नलिखित बाधाओं को दूर करने के लिए होती है

  1. समाज में व्याप्त रंग-भेद, वर्ग-भेद, छुआछूत इत्यादि। 
  2. समाज में दुर्बल वर्गों का शोषण। 
  3. समाज में लोगों की गरिमा के प्रतिकूल बरताव किया जाना इत्यादि।

प्रश्न 15. 
लोकतन्त्र में आर्थिक समानता की स्थापना हेतु 'अवसरों की समानता' उपलब्ध कराने का प्रयास क्यों किया जाता है ?
उत्तर:
वर्तमान में अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में आर्थिक समानता की स्थापना हेतु 'अवसरों की समानता' उपलब्ध कराने का प्रयास यह मानकर किया जाता है कि समान अवसर देकर पिछड़े एवं निर्धन वर्गों को अपनी स्थिति को सुधारने का मौका दिया जा सकता है। इन मौकों से अधिकांश प्रतिभावान व लगनशील व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकते हैं।

प्रश्न 16. 
'मार्क्सवाद' निजी स्वामित्व का विरोध क्यों करता है ?
उत्तर:
'मार्क्सवाद' निजी स्वामित्व का विरोध करता है क्योंकि मार्क्सवादियों का मानना है कि निजी स्वामित्व, सम्पन्न व मालिक वर्ग को सिर्फ अमीर ही नहीं बनाता है, यह उन्हें राजनीतिक शक्ति भी देता है। यह राजनीतिक शक्ति इन मालिकों को राज्य की नीतियों और कानूनों को प्रभावित करने में सक्षम बनाती है। इस प्रकार निजी स्वामित्व सामाजिक, राजनीतिक असमानता को भी जन्म देता है।

प्रश्न 17. 
"उदारवादियों द्वारा प्रतिद्वंद्विता के सिद्धान्त का समर्थन किया जाता है।" इसका आधार क्या है ?
उत्तर:
उदारवादी प्रतिद्वन्द्विता के सिद्धान्त अर्थात् लोगों में खुली प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा का समर्थन करते हैं। इसके पीछे वह लोगों की योग्यता व क्षमता को आधार मानते हैं। उदारवादी मानते हैं कि स्वतन्त्र और निष्पक्ष परिस्थितियों में लोगों के बीच प्रतिस्पर्धा ही समाज में लाभांशों के वितरण का न्यायपूर्ण उपाय है। जो योग्य होंगे वह स्वतः ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेंगे।

प्रश्न 18. 
'पितृसत्ता' से क्या आशय है ?
उत्तर:
पितृसत्ता से आशय एक ऐसी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था से है, जिसमें पुरुष को स्त्री से अधिक महत्व और शक्ति दी जाती है। 'पितृसत्ता' इस मान्यता पर आधारित है कि पुरुष और स्त्री प्रकृति से भिन्न हैं। इस प्रकार 'पितृसत्तात्मक' व्यवस्था समाज में स्त्री-पुरुष असमानता को प्राकृतिक आधार पर न्यायोचित ठहराती है।

प्रश्न 19. 
समाजवाद क्या है ? इसका मुख्य सरोकार किन-किन बातों से है ?
उत्तर:
समाजवाद असमानताओं के जवाब में उपजे कुछ राजनीतिक विचारों का समूह है। समाजवाद का मुख्य सरोकार वर्तमान असमानताओं को न्यूनतम करना और संसाधनों का न्यायपूर्ण बंटवारा करना है। इस प्रकार समाजवाद समाज में सामाजिक एवं आर्थिक समानता की स्थापना पर अत्यधिक बल देता है। समाजवाद बुनियादी सुविधाओं में सरकारी नियमन और नियन्त्रण का पक्षधर है।

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-100 शब्द) 

प्रश्न 1. 
समानता की धारणा का हमारे लिए क्या महत्व है ?
अथवा 
समानता की धारणा हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण क्यों है ? 
उत्तर:
समानता की धारणा हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसके महत्व को निम्न आधारों पर बताया जा सकता है।
(i) हमारे सर्वांगीण विकास का साधन–समानता की धारणा हमारे सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण साधन है। 'समानता' के अभाव में समाज में हम अपनी गरिमा और अपने अधिकारों को खो देंगे और इससे हमारा शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक विकास रुक जाएगा।

(ii) समानता' लोकतन्त्र की स्थापना की अनिवार्य शर्त है—समानता की स्थापना के द्वारा ही लोकतन्त्र के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। समाज के सभी सदस्य व्यवस्था में सहभागी तभी हो पाएंगे जब सभी सदस्यों को समान अवसर प्राप्त हों। अतः लोकतन्त्र की स्थापना की अनिवार्य शर्त के रूप में भी 'समानता' की धारणा अत्यन्त महत्वपूर्ण है। .

(iii) न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु आवश्यक किसी भी समाज में न्यायपूर्ण स्थिति तब तक नहीं लायी जा सकती है जब तक कि समाज के सदस्यों के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार न किया जाए। अतः समाज में सही को बढ़ावा देने और गलत को रोकने के लिए 'समानता' की धारणा महत्वपूर्ण साधन है।

प्रश्न 2. 
'अवसरों की समानता' से आप क्या समझते है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
अवसरों की समानता–समानता की धारणा में अवसरों की समानता का महत्वपूर्ण स्थान है। अवसरों की समानता का अर्थ यह है कि समाज में प्रत्येक सदस्य को समान रूप से अपने विकास व समाज एवं व्यवस्था में सहभागिता के लिए समान अवसर प्रदान किये जायें। अवसरों की समानता, समानता के तीनों आयामों-राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक समानता हेतु आवश्यक एवं महत्वपूर्ण तथ्य है। राजनीतिक समानता में सभी नागरिकों को समान रूप से मताधिकार, स्वतन्त्रताएँ एवं लोक सेवाओं में आने के समान अवसर इत्यादि बातें 'अवसर की समानता' का ही प्रतीक हैं। इसी प्रकार आर्थिक क्षेत्र में सभी लोगों को अपनी योग्यतानुसार रोजगार करने, अपना आर्थिक विकास करने इत्यादि के जो अवसर प्रदान किये जाते हैं। यह भी 'अवसर की समानता' का प्रतीक हैं। अवसर की समानता समाज में विभिन्न लोगों के साथ भेद-भाव न करना, विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर सब को जाने की स्वतन्त्रता इत्यादि के रूप में भी दिखाई पड़ती है। अत: 'अवसर की समानता' अत्यधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं।

प्रश्न 3. 
"प्राकृतिक और सामाजिक असमानताओं में अन्तर करना उपयोगी होता है परन्तु इन दोनों असमानताओं में हमेशा अन्तरं साफ और स्पष्ट नहीं होता।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक असमानता एवं सामाजिक असमानता में अन्तर करना उपयोगी होता है। इसकी उपयोगिता यह है कि ऐसे अन्तर द्वारा हम आसानी से स्वीकार की जा सकने वाली असमानता और स्वीकार न की जा सकने वाली असमानता को अलग-अलग कर सकते हैं। हम स्वीकार न की जा सकने वाली असमानताओं को समाप्त करके न्यायपूर्ण समाज की स्थापना कर सकते हैं। परन्तु यह बात जितनी आसान लगती है, उतनी है नहीं।

इसका कारण यह है कि प्राकृतिक असमानता और सामाजिक असमानता में हर स्थिति में भेद कर पाना अत्यन्त कठिन है। समाज में ऐसी तमाम असमानताएँ दिखाई पड़ती हैं जिनकी पहचान प्राकृतिक असमानता या सामाजिक असमानता के रूप में करना बहुत ही कठिन होता है। उदाहरण के तौर पर समाज में स्त्रियों को अनादि काल से 'अबला' माना जाता रहा है। इसे प्राकृतिक असमानता का रूप दे दिया गया। अब आज यह बात दावे से कह पाना मुश्किल है कि यह एक प्राकृतिक असमानता है या समाज द्वारा उत्पन्न असमानता। दिया गया कथन इसी दुविधा और व्यथा को दर्शाता है।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 4. 
'प्राकृतिक विशिष्टता' की धारणा से क्या समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं ?
उत्तर:
जब हम प्राकृतिक स्थितियों एवं स्वाभाविक परिस्थितियों के आधार पर कुछ असमानताओं और विशेषाधिकारों को स्वीकार कर लेते हैं तो यह 'प्राकृतिक विशिष्टता' की धारणा बन जाती है। 'प्राकृतिक विशिष्टता' की धारणा से एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है। यह समस्या है कि प्राकृतिक मानी गयी कुछ भिन्नताएँ अब अपरिवर्तनीय नहीं रहीं।  उदाहरणस्वरूप-चिकित्सा विज्ञान और तकनीकी प्रगति ने विकलांग व्यक्तियों का समाज में प्रभावी ढंग से काम करना सम्भव बना दिया है। आज कम्प्यूटर नेत्रहीनों की मदद कर सकते हैं। पहियादार कुर्सी एवं कृत्रिम पैर शारीरिक अक्षमता के निराकरण में सहायक हो सकते हैं। अतः यदि वर्तमान समय में प्राकृतिक विशिष्टता की धारणा के तहत विकलांग व्यक्तियों को महत्वहीन समझा जाए या रोजगार व पारिश्रमिक से वंचित रखा जाए तो यह अन्यायपूर्ण होगा। अतः आधुनिक समाज में 'प्राकृतिक विशिष्टता' की धारणा को भी यथावत् न तो स्वीकार किया जा सकता है और न ही लागू किया जा सकता है। इस प्रकार 'प्राकृतिक विशिष्टता' की धारणा की भी अपनी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

प्रश्न 5. 
राजनीतिक समानता को संक्षेप में समझाइए। क्या समतामूलक समाज की स्थापना हेतु यह आवश्यक है ?
उत्तर:
राजनीतिक समानता–समानता का वह आयाम जो कि समाज के सदस्यों का राजनीतिक क्षेत्र में समानता के अधिकार से सम्बन्धित होता है, 'राजनीतिक समानता' कहलाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामान्यतया सभी सदस्यों को समान नागरिकता प्रदान करना 'राजनीतिक समानता' में शामिल माना जाता है। इसी प्रकार 'राजनीतिक समानता' के अन्तर्गत नागरिकों को उनके विकास व राज्य के कार्यों में सहभागी बनाने हेतु कई अधिकारों की भी वकालत की जाती है। इस प्रकार के अधिकारों में निर्बाध (बिना रोक-टोक) भ्रमण, विचार और स्वयं को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता, धार्मिक विश्वासों के पालन की स्वतन्त्रता इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है।

'राजनीतिक समानता' में सभी नागरिकों को राज्य की विभिन्न सेवाओं (पुलिस प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि) में बिना किसी भेदभाव के समान अवसरों को प्रदान करने की भी बात की जाती है। राज्य के संसाधनों का समान रूप से एवं उचित वितरण भी राजनीतिक समानता के अन्तर्गत आता है। हाँ, समतामूलक समाज की स्थापना हेतु 'राजनीतिक समानता' अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि 'राजनीतिक समानता' के बिना सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में समानता का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6. 
सामाजिक समानता की स्थापना किन उपायों द्वारा की जा सकती है ?
उत्तर;
सामाजिक समानता की स्थापना के उपाय-सामाजिक समानता की स्थापना निम्नलिखित उपायों को अपनाकर की जा सकती है
(i) समाज में भाईचारे की भावना का विकास समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच भाईचारे की भावना का विकास करके समानता पर आधारित समाज का निर्माण किया जा सकता है। इससे समाज के विभिन्न वर्ग तथा सदस्य पास आएँगे और ईर्ष्या तथा द्वेष का अन्त होगा।

(ii) सामाजिक कुप्रथाओं का अन्त किया जाना-सामाजिक समानता की स्थापना के मार्ग की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक सामाजिक कुप्रथाएँ हैं। इन प्रथाओं में समाज के कुछ वर्गों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता है। उदाहरण के तौर पर छुआछूत, ऊँच-नीच आदि इसी प्रकार की कुप्रथाएँ हैं। अतः इन गलत प्रथाओं को समाप्त किया जाना अति आवश्यक है।

(iii) कानूनों का व्यावहारिकता में क्रियान्वयन अधिकांश व्यवस्थाओं में सामाजिक समानता से सम्बन्धित कानून तो होते हैं परन्तु इनका व्यावहारिकता में पालन नहीं हो पाता। इस कारण भी सामाजिक समानता की स्थापना नहीं हो पाती। अतः सामाजिक समानता की स्थापना हेतु बनाये गये कानूनों का व्यावहारिकता में क्रियान्वयन भी किया जाना चाहिए।

प्रश्न 7. 
'आर्थिक समानता' के सम्बन्ध में 'मार्क्सवादी' धारणा किस प्रकार के परिवर्तन लाना चाहती है ?
उत्तर:
'आर्थिक समानता' के सम्बन्ध में 19वीं सदी में 'मार्क्सवादी' धारणा का उदय हुआ। 'मार्क्सवादी' समाज में सभी असमानताओं की जड़ 'आर्थिक असमानता' को मानते हैं। अत: 'मार्क्सवादी' सम्पत्ति और संसाधनों (जल, जंगल, जमीन या तेल इत्यादि) पर से कुछ लोगों के स्वामित्व को समाप्त करके सबका स्वामित्व स्थापित करना चाहते हैं। मार्क्सवादियों का मानना है कि ऐसा करके समाज में 'अमीरों' और 'गरीबों' के बीच के भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है। 'मार्क्सवादी' मानते हैं कि इस भेदभाव व अन्तर को मिटाकर 'आर्थिक समानता' की स्थापना की जा सकेगी। मार्क्सवादी यह भी मानते हैं कि आर्थिक असमानताएँ विभिन्न सामाजिक असमानताओं जैसे सामाजिक रुतबा, विशेषाधिकार इत्यादि को भी बढ़ावा देती हैं। अतः 'आर्थिक समानता' की स्थापना द्वारा ही समतामूलक समाज की स्थापना की जा सकती है। 'मार्क्सवादी' आर्थिक समानता की स्थापना के लिए सभी को समान अवसर उपलब्ध कराने की वकालत करते हैं। 'मार्क्सवादी' विभिन्न महत्वपूर्ण संसाधनों एवं सम्पत्ति पर जनता के नियन्त्रण को लागू करने और इसे सुनिश्चित करने को 'आर्थिक समानता' की स्थापना हेतु आवश्यक मानते हैं।

प्रश्न 8. 
'समानता' से सम्बन्धित उदारवादी सिद्धान्तों में विरोधी दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
'समानता' की धारणा के सन्दर्भ में उदारवादियों में परस्पर विरोधी दृष्टिकोण पाया जाता है। उदारवादी एक ओर तो सबके लिए समुचित जीवनयापन के निश्चित न्यूनतम स्तर उपलब्ध कराने के लिए राज्य के हस्तक्षेप की बात करते हैं। वहीं दूसरी . ओर वे समाज में प्रतिस्पर्धात्मक माहौल बनाए रखना चाहते हैं और इस प्रतिस्पर्धा में राज्य के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करते। इस प्रकार यहाँ एक विरोधाभास पैदा हो जाता है कि राज्य को समाज की गतिविधियों में हस्तक्षेप करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। उदारवादियों का मानना है कि जब तक समाज में स्वतन्त्र और खुली प्रतिस्पर्धा नहीं होगी तब तक समाज में असमानता की खाइयाँ बनी रहेंगी। उदारवादी नौकरियों में नियुक्ति और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा को एकमात्र कारगर उपाय मानते हैं। यहाँ वे सभी के लिए नौकरी या शिक्षा के समान अवसरों की बात नहीं करते। वे केवल सबको प्रतिस्पर्धा करने लायक बनाने तक ही समानता की बात करते हैं। इस प्रकार उदारवादी सिद्धान्त समानता का पक्ष भी लेते हैं और खुद ही असमानता को बढ़ावा देने की वकालत भी कर बैठते हैं।

प्रश्न 9. 
समानता को बढ़ावा देने वाले उपाय के रूप में 'औपचारिक समानता की स्थापना' की विवेचना करें।
उत्तर:
समानता को बढ़ावा देने वाले उपायों के रूप में औपचारिक समानता की स्थापना' एक महत्वपूर्ण एवं कारगर उपाय है। समानता की स्थापना करने के लिए सर्वप्रथम समाज में व्याप्त असमानता और विशेषाधिकारों की औपचारिक व्यवस्था को समाप्त किया जाना आवश्यक है। विश्व में समस्त देशों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं को कुछ रीति-रिवाजों और कानूनी व्यवस्थाओं से संरक्षित रखा गया है।

इस प्रकार के रीति-रिवाजों और प्रावधानों को औपचारिक समानता की स्थापना' द्वारा रोका एवं समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए देश के संविधान एवं कानूनों द्वारा विभिन्न असमानताओं पर औपचारिक रोक लगा दी जाती है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान द्वारा 'अस्पृश्यता (छुआछूत) के अन्त' की औपचारिक घोषणा की गई है। इससे छुआछूत रूपी असमानता को समाप्त करने हेतु कानूनी बल मिलता है। अतः देश के संविधान व कानूनों एवं विभिन्न प्रावधानों द्वारा जिस औपचारिक समानता की स्थापना की जाती है वह समानता की स्थापना का प्रथम एवं महत्वपूर्ण कदम है।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 10. 
'विभेदक बरताव' द्वारा समानता की स्थापना किस प्रकार की जा सकती है ?
उत्तर:
'विभेदक बरताव' (उचित भेद-भाव) द्वारा भी समानता की स्थापना की जा सकती है। इसका कारण यह है कि कभी-कभी यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोग समान अधिकारों का उपभोग कर सकें, उनसे अलग-अलग बरताव करना आवश्यक होता है। 'विभेदक बरताव' का मूल उद्देश्य सभी को समान अवसर उपलब्ध कराना ही होता है। उदाहरण के लिए एक विकलांग व्यक्ति सीढ़ीदार झीनें पर नहीं चढ़ पायेगा। अतः सार्वजनिक भवनों में यदि उसके लिए ढालदार रास्ता (Ramp) बना दिया जाए तभी वह समाज के अन्य लोगों की भाँति उस कार्यालय से अपने कार्य करा पायेगा। अतः इस प्रकार 'विभेदक बरताव' उचित व न्यायसंगत भेदभावों द्वारा समानता की ही स्थापना करता है। इसी प्रकार यदि कल्पना की जाए कि एक स्वस्थ व्यक्ति और रोगी व्यक्ति के बीच दौड़ लगवा दी जाए तो क्या यह उचित होगा ? नहीं बल्कि दौड़ तब होनी चाहिए जब रोगी व्यक्ति को अतिरिक्त देखभाल द्वारा स्वस्थ बना दिया जाए। बस इसी प्रकार 'विभेदक बरताव' भी समानता की स्थापना करने का एक प्रभावी उपाय है।

प्रश्न 11. 
'समानता' की धारणा के सम्बन्ध में समाजवादी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समानता की धारणा से सम्बन्धित 'समाजवादी' विचार 19वीं सदी में महत्वपूर्ण रूप से दुनिया में उभरे। वास्तव में 'समाजवाद' असमानताओं के जवाब में उपजे कुछ राजनीतिक विचारों का ही समूह है। 18वीं, 19वीं सदी में आर्थिक प्रतिस्पर्धा व स्वतन्त्रता का युग सा आ गया था। इसमें समाज में अमीर और गरीब की दूरी अत्यधिक बढ़ने लगी। इन्हीं असमानताओं के खिलाफ समाजवादियों ने आवाज उठाई। 'समाजवादी' विचारों में यह माना जाता है कि समाज के विभिन्न संसाधनों और सम्पत्ति पर सबका अधिकार होना चाहिए। 'समाजवादी' समाज में समानता की स्थापना हेतु सभी संसाधनों का न्यायपूर्ण बंटवारा किये जाने की वकालत करते हैं। 'समाजवादी' बाजार व्यवस्था का सीमित समर्थन करते हैं तथा वे शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि सेवाओं में सरकारी नियमन एवं नियंत्रण को आवश्यक मानते हैं। समाजवादी विचार इस बात पर बल देते हैं कि समाज में 'समानता' की स्थापना अधिक महत्वपूर्ण है। इसके लिए स्वतन्त्रता को सीमित किया जाना कतई गलत नहीं है।

प्रश्न 12. 
सकारात्मक कार्यवाही से क्या आशय है ? यह समानता स्थापित करने के उपाय के रूप में कहाँ तक उपयोगी है ?
उत्तर:
सकारात्मक कार्यवाही से आशय-समाज में सदियों से चली आ रही असमानताओं और इनके दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए सरकार द्वारा औपचारिक समानता से आगे बढ़ते हुए कुछ ठोस सकारात्मक कदम उठाये जाते हैं। इन्हें ही 'सकारात्मक कार्यवाही' कहा जाता है। 'सकारात्मक कार्यवाही' के अन्तर्गत अधिकांशतया ऐसी नीतियों का निर्माण किया जाता है, जिनसे अतीत की असमानताओं के द्वारा उत्पन्न दुष्प्रभावों को कम किया जा सके अथवा समाप्त किया जा सके।

उदाहरणस्वरूप हमारे देश में अनुसूचित जातियों/जनजातियों को 'आरक्षण' की सुविधा एक प्रकार की सकारात्मक कार्यवाही ही है। इसके द्वारा सदियों से शोषित होती रही इन जातियों को मुख्य धारा में समान स्थिति दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। समानता की स्थापना में सकारात्मक कार्यवाही की उपयोगिता–समाज में समानता की स्थापना हेतु सकारात्मक कार्यवाही अत्यन्त ही कारगर व उपयोगी उपाय है। इसके द्वारा समाज के दबे-कुचले दुर्बल वर्गों को विशिष्ट लाभ व सुविधाएँ प्रदान करके समाज में विकास व योगदान करने योग्य बनाया जा सकता है। अतः यह अत्यधिक उपयोगी उपाय है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा-150 शब्द)

प्रश्न 1. 
समानता से आप क्या समझते हैं ? समानता के विभिन्न प्रकारों को बताइए।
अथवा 
समानता से क्या तात्पर्य है ? समानता के राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक आयामों का वर्णन कीजिए।
अथवा समानता क्या है? समानता के आयामों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समानता–समानता वह स्थिति है जिसमें सभी व्यक्तियों के साथ समान परिस्थितियों में समान बर्ताव किया जाए। प्रत्येक व्यक्ति के सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक विकास के लिए 'समानता' अत्यन्त ही महत्वपूर्ण अधिकार एवं स्थिति है। राजनीतिक सिद्धान्त में 'समानता' से हमारा अभिप्राय सभी प्रकार के भेदभावों और असमानताओं के अन्त से नहीं होता है। बल्कि समानता के अन्तर्गत हम उचित और न्यायपूर्ण भेदभावों को भी स्वीकार करते हैं। समानता के आयाम (प्रकार)-समानता के विभिन्न विचारकों द्वारा तीन आयामों की खोज की गई है-

  1. राजनीतिक समानता 
  2. सामाजिक समानता 
  3. आर्थिक समानता। 

इनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. राजनीतिक समानता-समाज में व्यक्ति के राजनीतिक पहलुओं से जुड़ी समानता को 'राजनीतिक समानता' कहते हैं। राजनीतिक समानता के अन्तर्गत राज्य में सभी नागरिकों को समान रूप से विभिन्न राजनीतिक अधिकार प्रदान किये जाते हैं। इन अधिकारों में समान मताधिकार, मौलिक अधिकार, संगठन बनाने का अधिकार, समान नागरिकता इत्यादि आते हैं।

2. आर्थिक समानता-समाज में व्यक्ति के आर्थिक क्षेत्र से जुड़े विविध समान अधिकारों व स्थिति को 'आर्थिक समानता' कहा जाता है। आर्थिक समानता के अन्तर्गत सभी व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुरूप रोजगार के समान अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है। समाज में अमीर और गरीब के बीच की खाई को भरने का प्रयास भी 'आर्थिक समानता' में किया जाता
3. सामाजिक समानता-समाज में विभिन्न वर्गों व सदस्यों के मध्य सामाजिक स्थिति, रीति-रिवाजों इत्यादि के क्षेत्र में समानता को 'सामाजिक समानता' कहा जाता है। सामाजिक समानता के अन्तर्गत समाज के विभिन्न वर्गों व व्यक्तियों को सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं, धर्म, जाति, भाषा, लिंग इत्यादि के आधार पर होने वाले भेदभावों से मुक्त कराने का प्रयास किया जाता

प्रश्न 2. 
नारीवाद क्या है ? 'समानता' से सम्बन्धित 'नारीवादी' विचारों की विस्तार से विवेचना कीजिए।
उत्तर:
नारीवाद-वे सभी राजनीतिक एवं सामाजिक विचार जो महिला अधिकारों की बात करते हैं तथा स्त्री-पुरुष समानता पर बल देते हैं, सामूहिक तौर पर नारीवाद कहलाते हैं। समानता से सम्बन्धित नारीवादी विचार-नारीवाद' स्त्री-पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला प्रमुख सिद्धान्त है। नारीवादी विचारों के अन्तर्गत स्त्री व पुरुषों के मध्य प्रचलित विभिन्न भेदभावों का विरोध किया जाता है। इनका मानना है कि स्त्रियों और पुरुषों के बीच फैली अनेक असमानताएँ न तो उचित हैं और न ही आवश्यक हैं। 'नारीवादी' यह मानकर चलते हैं कि स्त्री-पुरुष भी एक समतापूर्ण जीवन जी सकते हैं।

इनके बीच उत्पन्न विभिन्न असमानताओं को समाप्त किया जा सकता है। 'नारीवाद' के अनुसार स्त्री-पुरुष असमानता, पुरुष प्रधान समाज (पितृसत्तात्मक समाज) का परिणाम है। इस प्रकार के समाज में स्त्रियों को कमजोर और आश्रित समझा जाता है वहीं पुरुषों को शक्तिशाली, योग्य व आश्रय प्रदान करने वाला समझा जाता है। नारीवादी' इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए स्त्री-पुरुष के शारीरिक विभेद और समाज में उनकी भूमिकाओं में विभेद को अलग-अलग करने का प्रयास करते हैं। उनका तर्क है कि मनुष्य का स्त्रीलिंग या पुल्लिंग के रूप में जन्म होना प्राकृतिक है परन्तु स्त्री और पुरुष को जिन सामाजिक भूमिकाओं में हम देखते हैं, उन्हें समाज गढ़ता है।

इस प्रकार नारीवादियों ने हमें यह समझाया है कि स्त्री-पुरुष असमानता का ज्यादा भाग प्रकृति ने नहीं बल्कि समाज ने पैदा किया है। 'नारीवादी' विचारकों का मानना है कि घरेलू क्षेत्र और बाहरी क्षेत्र में स्त्री व पुरुष की भूमिकाओं का अन्तर समाज द्वारा पैदा किया गया है। अतः इस असमानता को समाप्त किया जाना चाहिए और स्त्रियों को भी पुरुषों के साथ मिलकर सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक गतिविधियों एवं क्रियाकलापों में भागीदारी करने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 3. 
समानता को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कौन-कौन से उपाय किये जा सकते हैं ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
वर्तमान युग में समानता को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई उपाय किये जा रहे हैं। इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाय है-

  1. औपचारिक समानता की स्थापना, 
  2. विभेदक बरताव द्वारा समानता एवं 
  3. सकारात्मक कार्यवाही। इनका वर्णन निम्नलिखित है

1. औपचारिक समानता की स्थापना-औपचारिक समानता द्वारा भी सरकार समानता को बढ़ावा दे सकती है। इसके अन्तर्गत देश के संविधान व कानूनों के द्वारा विभिन्न असमानताओं को कानूनन समाप्त कर दिया जाता है। इससे व्यावहारिकता में भी तीव्र गति से असमानताओं की समाप्ति होने लगती है। जैसे-'सतीप्रथा' विरोधी कानून द्वारा स्त्रियों के खिलाफ अमानवीय भेदभाव को रोका गया था। आज यह प्रथा समाज में समाप्त हो चुकी है। अतः निःसन्देह असमानताओं को समाप्त करने का पहला कदम 'औपचारिक समानता' की स्थापना ही है।

2. विभेदक बरताव द्वारा समानता–समानता को बढ़ावा देने वाला दूसरा प्रमुख उपाय न्यायसंगत भेद-भाव करने वाली सरकारी नीतियाँ भी हो सकती हैं। इन्हें 'विभेदक बरताव' कहा जाता है। इसके तहत समानता की स्थापना के लिए कमजोर, दुर्बल वर्गों को कुछ विशेष सुविधाएँ और रियायतें दी जाती हैं, ताकि वे भी समाज में सभी लोगों के समान अपने विकास के अवसरों का लाभ उठा सकें। उदाहरण के लिए-मूकबधिरों के लिए अलग विशेष विद्यालयों की स्थापना, एक प्रकार का विभेदक बरताव है ताकि उन्हें भी अन्य पढ़े-लिखे लोगों के समान शिक्षित व योग्य बनाया जा सके।

3. सकारात्मक कार्यवाही सरकार द्वारा कुछ ठोस कदम उठाया जाना 'सकारात्मक कार्यवाही' कहलाता है। समाज में अति पिछड़े, शोषित, पीड़ित वर्गों को समान दर्जा दिलाने के लिए सरकार उनके लिए कुछ विशेष नीतियाँ बना सकती है। जैसेभारत में आरक्षण की नीति इस प्रकार के वर्गों के सन्दर्भ में एक सकारात्मक कार्यवाही ही है।

प्रश्न 4. 
प्रमुख भारतीय समाजवादी चिन्तक डॉ. राममनोहर लोहिया के समानता से सम्बन्धित विचारों का वर्णन
कीजिए।
उत्तर:
डॉ. राममनोहर लोहिया के समानता सम्बन्धी समाजवादी विचार-डॉ. राममनोहर लोहिया भारत के प्रमुख समाजवादी विचारक एवं स्वतंत्रता सेनानी है। इन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। उन्होंने समाज में समानता की स्थापना के लिए असमानताओं की पहचान और इनके खिलाफ संघर्ष की वकालत की। उन्होंने पाँच तरह की असमानताओं की पहचान की। ये असमानताएँ थीं

  • स्त्री-पुरुष असमानता। 
  • रंग आधारित असमानता। 
  • जाति आधारित असमानता। 
  • आर्थिक असमानता। 
  • शक्तिशाली देशों का दुर्बल देशों पर शासन।

डॉ. लोहिया ने उपर्युक्त पाँच असमानताओं को समाज में समानता स्थापित करने के मार्ग की सबसे बड़ी बाधाएँ बताया। उन्होंने इन पाँचों असमानताओं के खिलाफ मिलकर संघर्ष करने के लिए जनता का आह्वान किया। लोहिया का कहना था कि इन असमानताओं में से प्रत्येक की अलग-अलग जड़ें हैं और उन सबके खिलाफ अलग-अलग लेकिन एक साथ संघर्ष शुरू करना होगा। उनके उक्त पाँच असमानताओं के खिलाफ संघर्ष का अर्थ था-'पाँच क्रान्तियाँ'। बाद में उन्होंने इस सूची में दो और क्रान्तियों को शामिल किया। ये थीं-

  1. व्यक्तिगत जीवन की सुरक्षा हेतु नागरिक स्वतन्त्रता के लिए क्रान्ति और 
  2. अहिंसा व सत्याग्रह के पक्ष में शस्त्रत्याग के लिए क्रान्ति। इस प्रकार सात असमानताओं के खिलाफ सात क्रान्तियों को उनकी 'सप्तक्रान्ति' की धारणा का नाम दिया जाता है।

लोहिया के अनुसार ये 'सप्तक्रान्तियाँ' ही समाजवाद का आदर्श हैं। इस प्रकार लोहिया के समानता सम्बन्धी समाजवादी विचार असमानताओं के विरोधी एवं इनके खिलाफ 'सप्तक्रान्तियों' के विचार हैं। यह आज भी काफी हद तक प्रासंगिक हैं।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
निम्नलिखित में से कौन से कथन सही हैं?
(1) उदारवादी नारी अधिकारवाद का अर्थ है, सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में समान अधिकार और अवसर। 
(2) समाजवादी नारी-अधिकारवाद, महिला आश्रितता और उत्पादन के पूँजीवादीरूप के बीच संलग्नता पर विशेष बल देता है। 
(3) उग्र नारी-अधिकारवाद उद्घोषणा करता है कि जो व्यक्तिगत है, वह राजनीतिक है। 
(4) उत्तर नारी अधिकारवाद मानता है कि परिवार का उन्मूलन हो जाना चाहिए। नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिएकूट: 

(अ) 1,3 और 4
(ब) केवल 2 और 3 
(स) केवल 1 और 2
(द) 1, 2 और 3 
उत्तर:
(द) 1, 2 और 3 

प्रश्न 2. 
उदारवाद का आधारभूत सिद्धान्त है
(अ) वैयक्तिक स्वतंत्रता
(ब) सामाजिक न्याय 
(स) समानता
(द) राष्ट्रवाद। 
उत्तर:
(अ) वैयक्तिक स्वतंत्रता

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 3 समानता

प्रश्न 3. 
जो दर्शन उदारवाद के बिल्कुल विपरीत है, वह है
(अ) व्यक्तिवाद
(ब) पूँजीवाद 
(स) मार्क्सवाद
(द) फासीवाद। 
उत्तर:
(स) मार्क्सवाद

प्रश्न 4. 
समानता का सर्वोत्तम अर्थ है
(अ) व्यवहार की पहचान
(ब) परिश्रमिक की समता 
(स) न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति
(द) नियमों का पालन। 
उत्तर:
(अ) व्यवहार की पहचान

Prasanna
Last Updated on Sept. 5, 2022, 5:27 p.m.
Published Sept. 5, 2022