Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वर्तमान समय में प्रत्यक्ष लोकतंत्र का निकटतम उदाहरण है-
(क) ग्राम सभा
(ख) ग्राम पंचायत
(ग) जिला परिषद्
(घ) नगरपालिका।
उत्तर:
(क) ग्राम सभा
प्रश्न 2.
भारत में मताधिकार की निर्धारित आयु है
(क) 18 वर्ष
(ख) 21 वर्ष
(ग) 25 वर्ष
(घ) 30 वर्ष।
उत्तर:
(क) 18 वर्ष
प्रश्न 3.
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रमुख गुण है
(क) अल्पमतों की उपेक्षा
(ख) राज्य के हितों की पूर्ति
(ग) श्रेष्ठ व्यक्तियों का चयन
(घ) अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व।
उत्तर:
(घ) अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व।
प्रश्न 4.
राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल होता है
(क) चार वर्ष
(ख) पाँच वर्ष
(ग) छ: वर्ष
(घ) सात वर्ष।
उत्तर:
(ग) छ: वर्ष
प्रश्न 5.
हमारे लोकतांत्रिक जीवन के अंग बन गये हैं
(क) चुनाव
(ख) सेना
(ग) राज्यपाल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) चुनाव
प्रश्न- निम्न को सुमेलित कीजिए
(i) फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट-सिस्टम |
(अ) इजराइल |
(ii) समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली |
(ब) भारत |
(iii) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार |
(स) 6 वर्ष |
(iv) मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल |
(द) 18 वर्ष |
उत्तर:
(i) फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट-सिस्टम |
(ब) भारत |
(ii) समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली |
(अ) इजराइल |
(iii) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार |
(द) 18 वर्ष |
(iv) मुख्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल |
(स) 6 वर्ष |
प्रश्न- रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
प्रश्न- निम्नलिखित में से प्रत्येक कथन सत्य है अथवा असत्य, बताइए
उत्तर:
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-20 शब्द)
प्रश्न 1.
'जो खेल के बारे में सत्य है, वही चुनाव के बारे में सत्य है' इससे क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
खेल शुरू करने से पहले हमें नियमों तथा अंपायर के बारे में सहमति बनानी पड़ती है। इसी प्रकार चुनाव सम्पन्न कराने के भिन्न-भिन्न नियम और व्यवस्थाएँ हैं।
प्रश्न 2.
चुनाव महत्वपूर्ण क्यों हो जाता है ?
उत्तर:
लोकतंत्र में कोई भी निर्णय लेने में सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते। इसलिए लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। अतः चुनाव महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
प्रश्न 3.
लोकतंत्र से क्या आशय है? अथवा प्रजातंत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रजातंत्र (लोकतंत्र) उस धारणा को कहा जाता है जिसमें जनता को राजसत्ता का अंतिम स्रोत समझा जाता है और जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या अपने प्रतिनिधियों द्वारा सरकार के कार्यों में भाग लेती है।
प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
प्रत्यक्ष लोकतंत्र के अन्तर्गत नागरिक दिन-प्रतिदिन के फैसलों और सरकार चलाने में सीधे भाग लेते हैं।
प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष लोकतंत्र का एक उदाहरण लिखिए।।
उत्तर:
प्राचीन यूनान के नगर-राज्य प्रत्यक्ष लोकतंत्र के उदाहरण माने जाते हैं।
प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में कोई दो अंतर लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
जनता के शासन का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
जनता के शासन का अर्थ है- जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलने वाला शासन।
प्रश्न 8.
चुनाव या निर्वाचन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जनता द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनने की विधि को चुनाव या निर्वाचन कहते हैं।
प्रश्न 9.
लोकतंत्र में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में नागरिकों की भूमिका किस प्रकार की होती है ?
उत्तर:
लोकतंत्र में महत्वपूर्ण निर्णय लेने तथा प्रशासन चलाने में नागरिकों की सीमित भूमिका होती है।\
प्रश्न 10.
क्या सभी चुनाव लोकतांत्रिक होते हैं ?
उत्तर:
अनेक गैर लोकतांत्रिक देशों में भी चुनाव होते हैं, पर इनमें इनके शासक इस प्रकार चुनाव करवाते हैं कि उनके शासन को खतरा उत्पन्न न हो। अतः इस प्रकार के सभी चुनाव लोकतांत्रिक नहीं होते।
प्रश्न 11.
लोकतांत्रिक चुनाव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव हों तो ऐसे चुनाव को लोकतांत्रिक चुनाव कहते हैं।
प्रश्न 12.
किस प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जाता है ?
उत्तर:
जिस प्रत्याशी को अन्य सभी प्रत्याशियों से अधिक वोट मिल जाते हैं उसे ही निर्वाचित घोषित किया जाता है।
प्रश्न 13.
फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली किसे कहते हैं? अथवा बहुलवादी व्यवस्था क्या है?
उत्तर:
'फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट' प्रणाली (बहुलवादी व्यवस्था) का अर्थ यह है कि चुनावों में जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, वह विजयी घोषित किया जाता है।
प्रश्न 14.
भारत में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को किस रूप में अपनाया गया है ?
उत्तर:
भारत में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को केवल अप्रत्यक्ष चुनावों के लिए ही सीमित रूप में अपनाया गया है।
प्रश्न 15.
इजराइल में चुनावों के लिए किस प्रणाली को अपनाया गया है?
उत्तर:
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को।।
प्रश्न 16.
इजराइल में विधायिका को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
नेसेट के नाम से।
प्रश्न 17.
'एकल संक्रमणीय मत प्रणाली' का प्रयोग भारत में किन चुनावों में देखने को मिलता है ?
उत्तर:
भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा एवं विधानसभाओं के चुनावों में 'एकल संक्रमणीय मत प्रणाली' का प्रयोग देखने को मिलता है।
प्रश्न 18.
भारत में 'सर्वाधिक वोट से जीत' की प्रणाली क्यों स्वीकार की गई ?
उत्तर:
भारत में यह प्रणाली इसलिए स्वीकार की गई क्योंकि इस पूरी चुनाव व्यवस्था को समझना अत्यन्त सरल है तथा इसमें मतदाताओं के पास स्पष्ट विकल्प होते हैं।
प्रश्न 19.
चुनाव की किस प्रणाली में मतदाताओं को किसी एक दल को चुनने का विकल्प दिया जाता है ?
उत्तर:
'समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली' में मतदाताओं को किसी एक दल को चुनने का विकल्प दिया जाता है, परन्तु प्रत्याशियों का चुनाव पार्टी द्वारा जारी की गई सूची के अनुसार होता है।
प्रश्न 20.
'समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली' के विषय में संविधान निर्माताओं की राय क्या थी ? .
उत्तर:
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के बारे में संविधान निर्माताओं की राय थी कि इस प्रणाली पर आधारित चुनाव संसदीय प्रणाली में सरकार के स्थायित्व के लिए उपयुक्त नहीं होंगे।
प्रश्न 21.
सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली की एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली एक निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न सामाजिक वर्गों को एकजुट होकर चुनाव जीतने में मदद करती है।
प्रश्न 22.
भारत जैसे विविधताओं वाले देश में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हो सकती है?
उत्तर:
भारत जैसे विविधताओं वाले देश में, समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली प्रत्येक समुदाय को अपनी एक राष्ट्रव्यापी पार्टी बनाने को प्रेरित करेगी।
प्रश्न 23.
चुनाव के विषय में कौन-सी प्रणाली मतदाता के लिए अधिक उपयोगी रही?
उत्तर:
चुनाव के विषय में सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली मतदाता के लिए सबसे सरल और सबसे अधिक उपयोगी रही है। .
प्रश्न 24.
भारतीय दलीय प्रणाली की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर:
भारतीय दलीय प्रणाली की एक विशेषता है कि गठबंधन सरकारों के आने से नये तथा छोटे दलों को सबसे ज्यादा मत से जीत वाली प्रणाली के रहते हुए भी चुनावी प्रतियोगिता में प्रवेश का अवसर प्राप्त हुआ है।
प्रश्न 25.
परिसीमन आयोग क्या है?
उत्तर:
परिसीमन आयोग चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन करने हेतु गठित एक स्वतंत्र संस्था है जो यह भी तय करती है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कौन से क्षेत्र आरक्षित होंगे।
प्रश्न 26.
चुनाव प्रणाली किस प्रकार की होनी चाहिए ?
उत्तर:
चुनाव प्रणाली निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए ।
प्रश्न 27.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर:
18 वर्ष और इससे ऊपर के समस्त भारतीय नागरिकों को चुनावों में मत देने का अधिकार जिसमें धर्म, नस्ल, लिंग, जाति व जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव न हो, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहलाता है।
प्रश्न 28.
लोकसभा या विधानसभा चुनाव में खड़े होने के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम उम्र क्या होनी चाहिए?
अथवा
भारत में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कितनी आयु चाहिए?
उत्तर:
25 वर्ष।
प्रश्न 29.
चुनाव में खड़े होने के लिए कौन-सा प्रमुख कानूनी प्रतिबंध है ?
उत्तर:
यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दो या दो से अधिक वर्षों की जेल हुई है, तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता।
प्रश्न 30.
भारत में चुनाव प्रक्रिया को स्वतंत्र व निष्पक्ष बनाने के लिए किस आयोग की स्थापना की गयी है?
उत्तर:
निर्वाचन आयोग की ।
प्रश्न 31.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 में क्या वर्णित है?
उत्तर:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचनों के लिए मतदाता सूची तैयार कराने और चुनाव के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन व नियंत्रण का अधिकार एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग को देता है।
प्रश्न 32.
भारत के निर्वाचन आयोग में कौन-कौन पदाधिकारी होते हैं ?
उत्तर:
भारत के निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य निर्वाचन आयुक्त होते हैं। प्रश्न 33. निर्वाचन आयोग की अध्यक्षता कौन करता है? उत्तर-मुख्य निर्वाचन आयुक्त।
प्रश्न 34.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल कितना होता है ?
उत्तर:
मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों को 6 वर्षों के लिए अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले समाप्त हो) के लिए नियुक्त किया जाता है।
प्रश्न 35.
भारत के निर्वाचन आयोग के अधिकारों में से एक अधिकार लिखिए।
उत्तर:
भारत के निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए निर्णय लेने का अधिकार है।
प्रश्न 36.
निर्वाचन आयोग को चुनाव कराने में कई बार अनेक कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ा। किसी एक कठिन समस्या का वर्णन कर बतायें कि उसका निर्वाचन आयोग ने क्या हल निकाला?
उत्तर:
गुजरात विधान सभा भंग हो जाने पर अप्रत्याशित हिंसा के कारण स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं थे, तब निर्वाचन आयोग ने राज्य में कुछ माह के लिये चुनावों को स्थगित करने का निर्णय लिया।
प्रश्न 37.
चुनाव सुधार हेतु एक सुझाव दीजिए।
उत्तर:
संसद और विधानसभाओं में एक तिहाई सीटों पर महिलाओं को चुनने के लिए विशेष प्रावधान बनाए जाएँ।
प्रश्न 38.
भारत में चुनाव व्यवस्था की सफलता अनेक आधारों पर मापी जा सकती है। किसी एक का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हमारी चुनाव व्यवस्था ने मतदाताओं को न केवल उनके प्रतिनिधियों को चुनने की स्वतंत्रता दी है, बल्कि उन्हें केन्द्र और राज्यों में शांतिपूर्ण ढंग से सरकारों को बदलने का अवसर भी दिया है।
लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-40 शब्द) (S.A. Type 1)
प्रश्न 1.
चुनावों के बारे में भारतीय संविधान कौन-कौन से नियमों की चर्चा करता है?
उत्तर:
चुनावों के बारे में भारतीय संविधान मुख्य रूप से निम्न नियमों की चर्चा करता है
(अ) कौन व्यक्ति मत देने के योग्य है ?
(ब) कौन व्यक्ति चुनाव लड़ने के योग्य है ?
(स) कौन चुनाव की देखरेख करेगा ?
(द) मतगणना किस प्रकार से होगी तथा प्रतिनिधियों का चुनाव कैसे होगा ?
प्रश्न 2.
'फस्ट-पास्ट-व-पोस्ट' प्रणाली से आप क्या समझते है?
उत्तर:
चुनावों में जो सबसे आगे वही जीते प्रणाली को 'फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट' प्रणाली कहते हैं। अन्य शब्दों में, कहा जा सकता है कि जो प्रत्याशी अन्य उम्मीदवारों की अपेक्षा सर्वाधिक वोट पाने में सफल रहता है, उसे ही विजयी माना जाता है। इसे बहुलवादी व्यवस्था की संज्ञा भी दी जा सकती है। हमारे संविधान द्वारा इसी व्यवस्था को स्वीकृति प्रदान की गई है।
प्रश्न 3.
समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से क्या आशय है ?
उत्तर:
जिस चुनाव व्यवस्था में प्रत्येक पार्टी चुनावों से पूर्व अपने प्रत्याशियों की एक प्राथमिकता सूची जारी कर देती है तथा अपने उतने ही प्रत्याशियों को उस प्राथमिकता सूची से चुन लेती है जितनी सीटों का कोटा उसे मतगणना के पश्चात् प्राप्त वोटों के अनुपात के हिसाब से दिया जाता है, चुनावों की इस व्यवस्था को समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 4.
'सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत' चुनाव व्यवस्था के बारे में संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस चुनाव व्यवस्था में पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट देते हैं, जिसे निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है। उस निर्वाचन क्षेत्र में जिस प्रत्याशी को सर्वाधिक वोट मिलता है उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। विजयी उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक नहीं कि उसे वोटों का बहुमत (50% + 1) मिले। यह व्यवस्था भारत और यूनाइटेड किंगडम में है।
प्रश्न 5.
एकल संक्रमणीय मत प्रणाली क्या है ? इसमें चुनाव कोटा का कौन-सा सूत्र प्रयुक्त किया जाता है ? उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
प्रतिनिधित्व को आनुपातिक बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मतदान की एक पद्धति ही एकल संक्रमणीय मत प्रणाली कहलाती है। इसमें निश्चित मत संख्या अर्थात् चुनाव कोटा का निम्नलिखित सूत्र प्रयुक्त किया जाता है
प्रश्न 6.
सर्वाधिक वोट से जीत की व्यवस्था' क्यों सफल है ?
अथवा
सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली को भारत में क्यों स्वीकार किया गया ?
उत्तर:
'सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली' की सफलता का मुख्य कारण इस व्यवस्था का लोकप्रिय होना है। वे सामान्य मतदाता जो कम शिक्षित या अशिक्षित हैं तथा जिन्हें चुनावों के बारे में अधिक जानकारी भी नहीं है, इस चुनाव व्यवस्था को सरलता से समझ लेते हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में अशिक्षा व चुनावों के बारे में कम जानकारी के कारण इस व्यवस्था को स्वीकार किया गया।
प्रश्न 7.
सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली के लाभ बताइये।
उत्तर:
यह प्रणाली एक निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न सामाजिक वर्गों को एक साथ मिलकर चुनाव जीतने में सहायता करती है। भारत जैसे विविधताओं वाले देश में यह प्रणाली हर समुदाय को स्वयं की एक राष्ट्रव्यापी पार्टी बनाने की प्रेरणा भी देती है।
प्रश्न 8.
भारत में बहुदलीय गठबंधन की प्रणाली कब से चालू हुई ? इसकी क्या विशेषता है ?
उत्तर:
भारत में सन् 1989 के बाद से बहुदलीय गठबंधन की प्रणाली भी प्रचलन में आ गई है। गठबंधन सरकारों के आने से नये व छोटे दलों को सर्वाधिक मत से जीतने वाली प्रणाली के रहते हुए चुनावी प्रतियोगिता में प्रवेश का सुअवसर प्राप्त हुआ है। इस प्रकार नये और छोटे दलों का भी महत्व बढ़ गया है।
प्रश्न 9.
'पृथक निर्वाचन मंडल' का अर्थ समझाते हुए बताइए कि क्या यह भारतीय समाज के लिए उपयुक्त था?
उत्तर:
स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने 'पृथक निर्वाचन मण्डल' की स्थापना की थी जिसके अनुसार किसी समुदाय के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी समुदाय के ही व्यक्ति वोट डाल सकेंगे, पर हमारे संविधान के निर्माताओं ने इस भारतीय समाज के लिए उपयुक्त नहीं पाया। अतः उन्होंने आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था को अपनाया।
प्रश्न 10.
परिसीमन आयोग किसे कहते है? इसका गठन क्यों किया गया है?
उत्तर:
परिसीमन आयोग वह आयोग है, जो यह तय करता है कि कौन-से क्षेत्र आरक्षित होने के लिए उपयुक्त है। इस आयोग का गठन राष्ट्रपति करता है। परिसीमन आयोग चुनाव आयोग के साथ विचार-विमर्श कर अपना काम करता है। इसका गठन सम्पूर्ण देश में निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारित करने के लिए किया गया है।
प्रश्न 11.
'लोकतंत्र की सफलता का राज निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव होते हैं। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव ही सच्चे लोकतंत्र की आधारशिला है। चुनाव प्रणाली जितनी पारदर्शी होगी लोकतंत्र उतना ही मजबूत और भव्य होगा। चुनाव प्रणाली से मतदाताओं की भावनाएँ चुनाव परिणामों में न्यायपूर्ण तरीके से व्यक्त हों, तभी लोकतंत्र की जड़ें अधिक गहरी होती जायेंगी।
प्रश्न 12.
स्वतंत्र निर्वाचन आयोग के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
भारत में चुनाव प्रक्रिया को स्वतंत्र व निष्पक्ष बनाने के लिए स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की स्थापना की गई है। इसे चुनावों को सम्पन्न कराने के लिए व उनकी देखरेख करने के लिए बनाया गया है। निर्वाचनों के लिए मतदाता सूची तैयार कराने तथा चुनाव के संचालन, अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार स्वतंत्र निर्वाचन आयोग को प्राप्त है।
प्रश्न 13.
भारत में निर्वाचन आयोग कितने सदस्य वाला होता है ?
उत्तर:
भारत में निर्वाचन आयोग सन् 1989 तक एक सदस्यीय था । 1989 के आम चुनावों के पहले दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति कर इसे बहु-सदस्यीय बना दिया, पर चुनावों के बाद इसे पुनः एक सदस्यीय बना दिया। सन् 1993 में पुनः दो निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति से यह फिर एक बार बहु-सर पीय हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार बहु-सदस्यीय निर्वाचन आयोग ही अधिक उपयोगी है।
प्रश्न 14.
क्या मुख्य चुनाव आयुक्त को अन्य निर्वाचन आयुक्तों की तुलना में अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं ?
उत्तर:
मुख्य चुनाव आयुक्त निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है, परन्तु अन्य दोनों निर्वाचन आयुक्तों की तुलना में उसे अधिक शक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं। चुनाव से सम्बन्धित सभी निर्णयों के लेने में मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य दोनों निर्वाचन आयुक्तों की शक्तियाँ समान हैं।
प्रश्न 15.
मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों की नियुक्ति कौन करता है तथा कौन हटा सकता है ?
उत्तर:
मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद् की सलाह पर की जाती है। इन्हें 6 वर्षों के लिए अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले समाप्त हो) के लिए नियुक्त किया जाता है। निर्वाचन आयुक्तों को भारत का राष्ट्रपति एक विशेष प्रक्रिया द्वारा हटा सकता है।
प्रश्न 16.
भारत के निर्वाचन आयोग के पास बहुत सीमित कर्मचारी होते हैं फिर भी वह चुनाव जैसे कार्य को कैसे सफलतापूर्वक सम्पन्न कराता है?
उत्तर:
यह सच है कि निर्वाचन आयोग के पास बहुत सीमित कर्मचारी होते हैं, पर एक बार चुनाव प्रक्रिया प्रारम्भ होते ही आयोग का पूरी प्रशासनिक मशीनरी पर अधिकार प्राप्त हो जाता है। चुनाव प्रक्रिया के समय राज्य और केन्द्र सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों को चुनाव से सम्बन्धित काम दे दिए जाते हैं। इन अधिकारियों पर चुनाव के दौरान चुनाव आयोग का पूरा नियंत्रण भी होता है। इन सबके सहयोग से ही निर्वाचन आयोग चुनाव जैसे बड़े काम को बड़ी कुशलता से कर लेता है।
प्रश्न 17.
भारत में चुनाव प्रक्रिया में सुधार हेतु कोई दो सुझाव दीजिए। .
उत्तर:
प्रश्न 18.
राष्ट्रीय मतदाता दिवस प्रतिज्ञा को लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय मतदाता दिवस प्रतिज्ञा-हम, भारत के नागरिक, लोकतंत्र में अपनी पूर्ण आस्था रखते हुए यह शपथ लेते हैं कि हम अपने देश की लोकतांत्रिक परम्पराओं की मर्यादा को बनाए रखेंगे तथा स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण निर्वाचन की गरिमा को अक्षुण्ण रखते हुए, निर्भीक होकर, धर्म, वर्ग, जाति, समुदाय, भाषा अथवा अन्य किसी भी प्रलोभन से प्रभावित हुए बिना सभी निर्वाचनों में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।
लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-100 शब्द) (S.A. Type 2)
प्रश्न 1.
समानुपातिक प्रतिनिधित्व के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए। उत्तर-समानुपातिक प्रतिनिधित्व के दो प्रकार होते हैं यथा
(i) कुछ देशों जैसे इजराइल तथा नीदरलैंड में पूरे देश को एक निर्वाचन क्षेत्र माना जाता है और प्रत्येक पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में प्राप्त वोटों के अनुपात में सीटें दे दी जाती हैं।
(ii) दूसरा तरीका अर्जेंटीना व पुर्तगाल में देखने को मिलता है जहाँ पूरे देश को बहु-सदस्यीय क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक पार्टी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए अपने प्रत्याशियों की एक सूची जारी करती है जिसमें उतने ही नाम होते हैं, जितने प्रत्याशियों को उस निर्वाचन क्षेत्र से चुना जाना होता है।
प्रश्न 2.
इजराइल की समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
इजराइल में मतगणना के पश्चात् प्रत्येक राजनीतिक दल को संसद में उसी अनुपात में स्थान आवंटित किए जाते हैं, जिस अनुपात में उन्हें मतों (वोट) में हिस्सा मिलता है। देश में प्रत्येक राजनीतिक दल चुनावों से पूर्व अपने उम्मीदवारों की एक प्राथमिकता सूची जारी करता है तथा अपने उतने ही प्रत्याशियों को उस प्राथमिकता सूची में से चयनित कर लेता है। जितनी सीटों (स्थानों) का कोटा उसे दिया जाता है। इजरायली चुनावों की यह व्यवस्था समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत आती है। इसमें किसी राजनीतिक दल को उतने ही प्रतिशत स्थान (सीट) मिलते हैं, जितने प्रतिशत उसे मत (वोट) मिलते हैं। इस प्रणाली से इजराइल में सीमित जनाधार वाले छोटे राजनीतिक दलों को भी विधायिका में कुछ प्रतिनिधित्व मिल जाता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विधायिका में स्थान पाने के लिए कम-से-कम 3.5 प्रतिशत मत मिलने अति आवश्यक होते हैं। इससे प्रायः बहुदलीय गठबन्धन सरकारें गठित होती हैं।
प्रश्न 3.
'समानुपातिक प्रतिनिधित्व' व 'सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत' चुनाव प्रणाली की तुलना कीजिए।
उत्तर:
समानुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली |
'सर्वाधिक वोट पाने वाले की जीत' चुनाव प्रणाली |
1. इस चुनाव व्यवस्था में किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को एक निर्वाचन क्षेत्र मान लिया जाता है। सम्पूर्ण देश ही एक निर्वाचन क्षेत्र समझा जाता है। |
1. इस चुनाव व्यवस्था में सम्पूर्ण देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट देते हैं, जिसे निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं। |
2. एक निर्वाचन क्षेत्र से अनेक प्रतिनिधि चुने जाते हैं। |
2. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से मात्र एक प्रतिनिधि ही चुना जाता है। |
3. वोट देने वाला (मतदाता) पार्टी को वोट देता है। |
3. वोट देने वाला (मतदाता) प्रत्याशी को वोट देता है। |
4. प्रत्येक पार्टी को मिले मत के अनुपात में विधायिका में सीरें प्राप्त होती हैं। |
4. पार्टी को कुल मिले वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायिका में मिल सकती हैं। |
5. विजयी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत मिलता है। |
5. विजयी उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक नहीं कि वोटों का बहुमत (50 \%+1) उसे मिले। |
6. इजराइल और नीदरलैण्ड इस चुनाव व्यवस्था के उदाहरण हैं। |
6. भारत तथा यूनाइटेड किंगडम इस चुनाव व्यवस्था के उदाहरण हैं। |
प्रश्न 4.
बताइए कि भारतीय संविधान ने यह कैसे सुनिश्चित किया है कि निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करेगा?
अथवा
भारतीय चुनाव आयोग की स्थिति को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
निर्वाचन (चुनाव) आयोग को भारतीय चुनाव प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व निर्वाचन आयोग पर है। वास्तव में चुनाव आयोग चुनाव मशीनरी की धुरी है जिसके चारों तरफ चुनाव मशीनरी घूमती है। चुनाव आयोग संसदीय कानूनों की उपज नहीं है बल्कि यह एक संवैधानिक संस्था है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने की पूरी जिम्मेवारी चुनाव आयोग की है। लोकतंत्र की सफलता काफी हद तक चुनाव आयोग पर निर्भर करती है। चुनाव आयोग के निरीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण में 17 आम चुनाव हो चुके हैं। चुनाव आयोग ने जिस जिम्मेदारी और कार्यकुशलता से ये चुनाव करवाए हैं, वह नि:संदेह सराहनीय है। जब कभी भी किसी राजनीतिक दल, उम्मीदवार या नागरिक ने चुनाव आयोग के पास कोई शिकायत की है तो उसने यथासंभव निष्पक्षतापूर्ण ढंग से उसे दूर करने का प्रयास किया है।
प्रश्न 5.
भारतीय निर्वाचन आयोग के गठन/ संरचना को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय निर्वाचन आयोग का गठन/संरचना-भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचनों के लिए मतदाता सूची तैयार कराने और चुनावों के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग को प्रदान करता है। भारत का निर्वाचन आयोग पहले एक सदस्यीय था। 1 अक्टूबर 1993 को राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी कर निर्वाचन आयोग को तीन सदस्यीय बनाने का महत्वपूर्ण कदम उठाया। 20 दिसम्बर 1993 को संसद ने निर्वाचन आयोग को बहुसदस्यीय बनाने वाले विधेयक को स्वीकृति दे दी। वर्तमान में भारतीय निर्वाचन आयोग के तीन सदस्य हैं। इनमें से एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो अन्य निर्वाचन आयुक्त हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति 6 वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले खत्म हो) के लिए की जाती है। इन्हें एक विशेष प्रावधान द्वारा कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व भी राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त आयोग की अध्यक्षता करता है।
प्रश्न 6.
भारत में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति और पदच्युति किस प्रकार होती है? बताइए।
उत्तर:
नियुक्ति-भारत में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य दो निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिपरिषद के परामर्श पर की जाती है। . मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति 6 वर्ष की अवधि के लिए अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो पहले खत्म हो) के लिए की जाती है। पदच्युति की प्रक्रिया (हटाने की प्रक्रिया)-संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को निश्चित कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व उसी विधि से पदच्युत किया जा सकता है जिस विधि से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जा सकता है अर्थात् यदि संसद के दोनों सदन पृथक-पृथक अपने कुल सदस्यों के बहुमत से और उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से मुख्य निर्वाचन आयुक्त के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दें तब राष्ट्रपति मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटा देता है। निर्वाचन आयुक्तों को भी भारत का राष्ट्रपति हटा सकता है।
प्रश्न 7.
भारतीय निर्वाचन आयोग के किन्हीं चार प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। उत्तर-भारतीय निर्वाचन आयोग के कार्य-भारतीय निर्वाचन आयोग के चार प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(1) मतदाता सूचियों को तैयार करना-भारतीय निर्वाचन आयोग का एक महत्वपूर्ण कार्य संसद तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार कराना होता है। प्रत्येक जनगणना के पश्चात् और आम चुनाव से पहले मतदाताओं की सूची में संशोधन किए जाते हैं।
(2) चुनाव के लिए तिथि निश्चित करना-निर्वाचन आयोग विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है। निर्वाचन आयोग नामांकन पत्रों के दाखिले की अंतिम तिथि निश्चित करता है तथा नामांकन पत्रों की जाँच करने की तिथि घोषित करता है।
(3) चुनाव का निरीक्षण, निर्देश तथा नियंत्रण-निर्वाचन आयोग को चुनाव संबंधी सभी मामलों पर निरीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है। निर्वाचन आयोग चुनाव सम्बन्धी सभी समस्याओं का हल करता है। स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव करवाना निर्वाचन आयोग का कर्तव्य है।
(4) चुनाव सम्पन्न कराना-निर्वाचन आयोग का एक महत्वपूर्ण कार्य चुनाव सम्पन्न करवाना है। निर्वाचन आयोग न केवल आम चुनाव बल्कि उप चुनाव भी करवाता है। निर्वाचन आयोग संसद, राज्य विधानसभाएँ, राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति आदि के चुनाव की
प्रश्न 8.
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए निर्वाचन आयोग को कौन-कौन से कदम उठाने चाहिए? उत्तर-स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए निर्वाचन आयोग को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए
प्रश्न 9.
वर्तमान में निर्वाचन आयोग के समक्ष कौन-कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं ?
उत्तर:
वर्तमान में निर्वाचन आयोग के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ-चुनाव प्रक्रिया को सम्पन्न कराने के लिए निर्वाचन आयोग शासकीय कर्मचारियों पर निर्भर होता है। अनेक बार कुछ सरकारी कर्मचारी निर्वाचन आयोग के प्रति समर्पित न होकर सत्तारूढ़ सरकार के प्रति झुकाव व्यक्त करते हैं। चुनावी अनियमितताओं पर अंकुश लगाने में आयोग की असमर्थता, चुनावों में बाहुबल, हिंसा, मतदान स्थलों पर कब्जा तथा फर्जी मतदान कराने की प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है। ऐसी विषम परिस्थिति में भारतीय निर्वाचन आयोग अपने आप को असहाय महसूस करता है। चुनावों में बढ़ते काले धन का प्रभाव तथा निर्धारित सीमा से अधिक व्यय, चुनावी उत्तेजना का बढ़ता स्वरूप, चुनावों के दौरान आपराधिक प्रवृत्ति की बढ़ती भूमिका, राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों द्वारा आचार-संहिता का उल्लंघन, दिनों-दिन निर्दलीय प्रत्याशियों की बढ़ती हुई संख्या इत्यादि चुनौतियों ने भारतीय निर्वाचन आयोग को घेर रखा है। परन्तु आयोग ने समय-समय पर इन चुनौतियों पर नियन्त्रण लगाने के लिए विभिन्न कारगर उपाय भी किए हैं।
प्रश्न 10.
भारत में चुनाव सुधार हेतु प्रमुख सुझाव दीजिए। उत्तर-भारत में चुनाव सुधार हेतु प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं
निबन्धात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-150 शब्द)
प्रश्न 1.
भारतीय चुनाव प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय चुनाव प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ-भारतीय चुनाव प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) वयस्क मताधिकार-भारत में चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होते हैं। 18 वर्ष या इससे अधिक आयु के प्रत्येक भारतीय नागरिक को मत डालने का अधिकार है।
(2) संयुक्त निर्वाचन-भारत में चुनाव अब पृथक निर्वाचन के आधार पर नहीं होते बल्कि संयुक्त निर्वाचन के आधार पर होते हैं। एक चुनाव क्षेत्र में रहने वाले सभी मतदाता चाहे. वे किसी भी जाति या धर्म से सम्बन्ध रखते हैं, अपना एक प्रतिनिधि चुनते हैं। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित किए जाने की व्यवस्था तो है, लेकिन प्रतिनिधि सभी मतदाताओं के द्वारा चुने जाते हैं।
(3) गुप्त मतदान व्यवस्था-भारत में मतदान गुप्त रूप से होता है। गुप्त मतदान की व्यवस्था निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव के लिए आवश्यक है। मत डालने वाले मतदाता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को इस बात का पता नहीं लगता कि उसने अपना मत किसको दिया है।
(4) प्रत्यक्ष चुनाव-भारत में लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं, पंचायतों और नगरपालिकाओं आदि के चुनाव जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होते हैं। ये संस्थाएँ ही शक्ति का वास्तविक प्रयोग करती हैं इसलिए इनके सदस्य प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं, लेकिन राज्यसभा, राज्य विधान परिषदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति आदि के चुनाव प्रत्यक्ष न होकर अप्रत्यक्ष रूप से होते हैं।
(5) कुछ वर्षों के लिए स्थानों का आरक्षण-भारत में कुछ वर्गों जैसे अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए संसद, राज्य विधानसभाओं, पंचायतों और नगरपालिकाओं में कुछ स्थान आरक्षित रखे जाते हैं।
(6) एक-सदस्यीय चुनाव क्षेत्र-भारत में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र हैं अर्थात् भारत या राज्य को बराबर जनसंख्या वाले चुनाव क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है एवं प्रत्येक क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
(7) निर्वाचन आयोग की स्थापना-चुनावों के सुचारू रूप में संचालन के लिए एक निर्वाचन आयोग की व्यवस्था है जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य दो निर्वाचन आयुक्त होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 6 वर्षों के लिए अथवा 65 वर्ष की आयु तक (जो पहले खत्म हो) के लिए नियुक्त किया जाता है।
(8) चुनाव याचिका-चुनाव सम्बंधी झगड़ों के लिए चुनाव याचिका की भी व्यवस्था है। पहले चुनाव याचिकाएँ निर्वाचन आयोग के पास जाती थी। वह किसी न्यायाधीश को इन्हें सुनने के लिए नियुक्त करता ५., लेकिन अब सभी याचिकाएँ सीधे उच्च न्यायालय के पास जाती हैं। यदि किसी प्रतिनिधि ने चुनाव जीतने के लिए भ्रष्ट साधन अपनाए हों तो उनका चुनाव रद्द घोषित कर दिया जाता है।
प्रश्न 2.
लोकतंत्र में चुनावों के महत्व को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र में चुनावों का महत्व-लोकतंत्र में चुनावों का बहुत महत्व है। जनता प्रत्यक्ष रूप से सरकार के कार्यों में ग नहीं ले सकती, लेकिन नागरिक चुनाव द्वारा प्रशासन और राजनीति में भाग लेते हैं। चुनाव द्वारा नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं एवं गलत व्यक्तियों को विधानमण्डल में जाने से रोकते हैं। चुनाव द्वारा नागरिक सरकार पर नियंत्रण रखते हैं। यदि कोई सरकार जनता और राष्ट्र के हित में शासन नहीं करती तो जनता चुनाव द्वारा उस सरकार को बदल देती है। नागरिकों को लोकतंत्र में कई तरह के अधिकार प्राप्त होते हैं एवं उन अधिकारों की रक्षा के लिए चुनाव का बहुत महत्व है। चुनाव से व्यक्ति राजनीतिक कार्यों में रूचि लेता है जिससे राजनीतिक जागृति उत्पन्न होती है और राजनीतिक शिक्षा मिलती है। लोकतंत्र में चुनावों के महत्व का वर्णन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(1) मतदाताओं और प्रतिनिधियों में प्रत्यक्ष संपर्क-मतदाताओं व प्रतिनिधियों के बीच सीधा सम्बन्ध रहता है क्योंकि प्रतिनिधि चुनाव द्वारा चुने जाते हैं। परस्पर संपर्क से प्रतिनिधि एवं मतदाता एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों को समझते हैं।
(2) लोगों को राजनीतिक शिक्षा की प्राप्ति-चुनावों द्वारा लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है। चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ एवं कार्यक्रम जनता के समक्ष रखते हैं एवं उनका पर्याप्त प्रचार-प्रसार करते हैं। इससे लोगों को भी भिन्न राजनीतिक दलों की नीतियों और देश की समस्याओं का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। मतदाता वोट डालने से पहले प्रत्येक उम्मीदवार के गुणों एवं दोषों के बारे में सोचता है और दलों की नीतियों पर भी विचार-विमर्श करता है। इस प्रकार मतदाताओं के अंदर राजनीतिक जागृति उत्पन्न होती है।
(3) प्रतिनिधियों में अधिक उत्तरदायित्व की भावना-लोकतंत्र में प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। जब प्रतिनिधियों का चुनाव होता है तब प्रतिनिधियों में अधिक उत्तरदायित्व की भावना पाई जाती है। प्रतिनिधि मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी रहते है क्योंकि चुनाव के दिनों में उन्होंने मतदाताओं से प्रत्यक्ष रूप से वोट माँगे होते हैं। .
(4) राजनीति में रूचि-चुनावों के कारण लोगों की राजनीति में रूचि बनी रहती है, क्योंकि मतदाता यह जानने का इच्छुक भी रहता है कि उसकी पसंद का प्रतिनिधि चुना गया है या नहीं। जब उनका कोई प्रतिनिधि मंत्री बनता है तब लोगों की राजनीति में रूचि और बढ़ जाती है।
(5) मतदाता की प्रतिष्ठा में वृद्धि-चुनावों के समय प्रत्येक उम्मीदवार को चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, धनी-निर्धन सभी के पास जाकर वोट के लिए निवेदन करना पड़ता है। इससे लोग यह समझने लगते हैं कि उनका शासन में हिस्सा है। सरकार को बनाने में उनका योगदान है, इस तरह मतदाताओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
(6) अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान-चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दल एवं उनके उम्मीदवार मतदाताओं को उनके अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान देते हैं। इस तरह प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में मतदाता को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान मिलता
(7) समानता की भावना-चुनावों से प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से मताधिकार प्रयोग करने का अवसर मिलता है, जिसके फलस्वरूप सभी नागरिकों में समानता की भावना पैदा होती है।
(8) मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं की रक्षा-लोकतंत्र में चुनावों का एक महत्व यह है, कि नियमित चुनाव होने से लोगो के मौलिक अधिकार एवं स्वतंत्रताएँ सुरक्षित रहती हैं।
प्रश्न 3.
भारत में राज्यसभा के चुनावों में समानुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली लागू की गयी है। इसे उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राज्य सभा के चुनावों में समानुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली-समानुपातिक प्रतिनिधित्व का एक तीसरा । स्वरूप हमें भारत में राज्य सभा चुनावों में देखने को मिलता है, इसे 'एकल संक्रमणीय मत प्रणाली' कहते हैं, प्रत्येक राज्य को राज्य सभा में सीटों का निश्चित कोटा प्राप्त है। राज्यों की विधान सभा के सदस्यों द्वारा इन सीटों के लिए चुनाव किया जाता है। इस राज्य के विधायक ही मतदाता होते हैं। मतदाता चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों को अपनी पसंद के अनुसार एक वरीयता क्रम में मत देता है। जीतने के लिए किसी प्रत्याशी को मतों एक कोटा प्राप्त करना पड़ता है। जो निम्नलिखित फार्मूला के आधार पर निकाला जाता है।
जब मतगणना होती है तब उम्मीदवारों को प्राप्त प्रथम वरीयता' वोट गिना जाता है। प्रथम वरीयता वोटों की गणना के पश्चात् यदि प्रत्याशियों की वांछित संख्या वोटों का कोटा नहीं प्राप्त कर पाती तो पुनः मतगणना की जाती है। ऐसे में उस प्रत्याशी को मतगणना से निकाल दिया जाता है, जिसे प्रथम वरीयता वाले सबसे कम वोट मिले हों। उसके वोटों को अन्य प्रत्याशियों में बाँट दिया जाता है, ऐसा करने में प्रत्येक मतपत्र पर अंकित द्वितीय वरीयता वाले प्रत्याशी वह मत हस्तांतरित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को तब तक जारी रखा जाता है जब तक वांछित संख्या (4) के बराबर प्रत्याशियों को विजयी घोषित नहीं कर दिया जाता।
प्रश्न 4.
भारत में सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली को क्यों स्वीकार किया गया? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर-भारत में सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली को स्वीकार करने के कारण-भारत में सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली को स्वीकार करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(1) सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली को सामान्य मतदाता भी आसानी से समझ सकते हैं जिन्हें राजनीति और चुनाव का कोई विशेष ज्ञान नहीं है।
(2) चुनाव के समय मतदाताओं के पास स्पष्ट विकल्प होते हैं। मतदाताओं को वोट करते समय किसी प्रत्याशी या दल को केवल स्वीकृति प्रदान करनी होती हैं। राजनीति की वास्तविकता को ध्यान में रखकर मतदाता किंसी उम्मीदवार को भी प्राथमिकता दे सकता है और किसी दल को भी। वह चाहे तो इन दोनों में, मतदान के समय संतुलन बनाने की कोशिश भी कर सकता है। यह प्रणाली मतदाताओं को केवल दलों में ही नहीं बल्कि उम्मीदवारों में भी चयन का स्पष्ट विकल्प देती है।
(3) इस प्रणाली पर आधारित निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता जानते हैं कि उनका प्रतिनिधि कौन है और उसे उत्तरदायी ठहरा सकते
(4) हमारे संविधान निर्माताओं ने माना कि समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली पर आधारित चुनाव संसदीय प्रणाली में सरकार के स्थायित्व के लिए उपयुक्त नहीं होंगे। इस व्यवस्था की माँग है कि कार्यपालिका को विधायिका में बहुमत प्राप्त हो।
(5) सर्वाधिक वोट से जीत वाली प्रणाली में सामान्यतया बड़े दलों पर गठबंधनों को बोनस के रूप में कुछ अतिरिक्त सीटें मिल जाती हैं। ये सीटें उन्हें प्राप्त मतों के अनुपात से अधिक होती है। अत: यह प्रणाली एक स्थायी सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर संसदीय सरकार को सुधारक और प्रभावी ढंग से कार्य करने का अवसर प्रदान करती है।
(6) यह प्रणाली एक निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न सामाजिक वर्गों को एकजुट करके चुनाव जीतने में सहायता करती है।
(7) यह प्रणाली आम भारतीय मतदाता के लिए सरल और सुपरिचित सिद्ध हुई है। इसने केन्द्र और राज्यों में बड़े दलों को स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने में सहायता की है।
(8) इस प्रणाली ने उन राजनीतिक दलों को भी हतोत्साहित किया है जो किसी जाति या समुदाय से ही अपने समस्त वोट प्राप्त करते हैं।
(9) सामान्य तथा सर्वाधिक वोट से जीत वाली प्रणाली में द्विदलीय व्यवस्था उभरती है। इसका आशय यह है कि सत्ता के लिए
दो प्रमुख प्रतियोगी हैं और यही बारी-बारी से सत्ता प्राप्त करते हैं। नये दलों या किसी तीसरे दल को सत्ता प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इस संदर्भ में भारत में इस प्रणाली का अनुभव कुछ अलग है। स्वतंत्रता के पश्चात यद्यपि हमने यह प्रणाली अपनायी फिर भी एक दल का वर्चस्व उभर कर सामने आया। इसके साथ-साथं अनेक छोटे दल भी अस्तित्व में रहे। 1989 ई. के पश्चात भारत में बहुदलीय गठबन्धनों की कार्य प्रणाली को देखा जा सकता है। इसी के साथ अनेक राज्यों में धीरे-धीरे द्विदलीय प्रतियोगिता उभर रही है।
प्रश्न 5.
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार-भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हमारे देश में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। लोकतंत्र में अंतिम शक्ति जनता के हाथ में होती है। जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है एवं ये प्रतिनिधि संसद तथा विधानमण्डलों में पहुँचकर जनता की इच्छानुसार कानून बनाते हैं। भारत में समय-समय पर संसद, विधानमण्डलों व स्थानीय संस्थाओं के चुनाव होते रहते हैं। भारत में लोकतंत्र को निरंतरता प्रदान करने के लिए नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया गया है। यह अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 326 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे। भारत में प्रत्येक उस व्यक्ति को जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक है, मताधिकार प्रदान किया गया है।
1989 से पहले मताधिकार की आयु 21 वर्ष थी। 61वें संविधान संशोधन द्वारा मताधिकार की न्यूनतम आयु घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है। भारत में प्रत्येक नागरिक को जाति, धर्म, जन्म-स्थान, सामाजिक अथवा आर्थिक भेदभाव के बिना मतदान का अधिकार प्राप्त है। कुछ विशेष परिस्थितियों में नागरिक को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है। उदाहरण के रूप में पागल, दिवालिया एवं अवयस्क आदि को मताधिकार से वंचित रखा जा सकता है। छूआछूत के अपराध में सजा प्राप्त व्यक्ति संसद एवं विधानमण्डल के लिए चुनाव नहीं लड़ सकता। भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की यह व्यवस्था सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक दूरगामी महत्व वाला कदम माना जाता है।
भारत में वयस्क मताधिकार के संदर्भ में एक बात अत्यन्त महत्वपूर्ण है, पश्चिमी देशों में व विश्व के अन्य देशों में वयस्क मताधिकार धीरे-धीरे करके लम्बे समय पश्चात नागरिकों को प्रदान किया गया है जैसे- स्विट्जरलैण्ड में सार्वभौम वयस्क मताधिकार 1971 में प्रदान किया गया था। लेकिन भारत ने अपने नागरिकों को यह अधिकार 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होते ही प्रदान कर दिया था। यह अधिकार भारत में केवल राजनीतिक अधिकार मात्र नहीं है, बल्कि इस अधिकार को सामाजिक न्याय, राजनीतिक समानता, राजनीतिक सहभागिता और उत्तरदायी व जवाबदेह सरकार के संदर्भ में भी समझा जा सकता है।
प्रश्न 6.
भारतीय निर्वाचन आयोग के कार्य एवं शक्तियों पर प्रकाश डालिए। इसे स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष बनाने से सम्बन्धित विविध प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय निर्वाचन आयोग के कार्य एवं शक्तियों को संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) चुनाव क्षेत्र का परिसीमन-भारत में प्रत्येक जनगणना के बाद निर्वाचन आयोग अपनी अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग गठित करता है। यह परिसीमन आयोग निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करने का महत्वपूर्ण कार्य क्रियान्वित करता है।
(2) मतदाता सूचियों का निर्माण करना-समय-समय पर भारत में सम्पन्न होने वाले चुनावों से पूर्व निर्वाचन आयोग मतदाता सूचियों का निर्माण कराता है। इस दौरान सम्बन्धित क्षेत्र में वयस्कता की आयु पूर्ण कर चुके नागरिकों के नाम जोड़े जाते हैं तथा जिन मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है अथवा चुनाव क्षेत्र बदल गया है, उनके नाम इन मतदाता सूचियों से हटा दिए जाते हैं। वर्तमान में फोटोयुक्त मतदाता सूचियाँ निर्मित कराई जाती हैं। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा ही मतदाताओं के पहचान पत्र जारी किए जाते हैं।
(3) राजनीतिक दलों को मान्यता तथा चुनाव चिह्नों का आवंटन-भारतीय निर्वाचन आयोग देश के राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने के साथ विविध राजनीतिक दलों तथा निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव चिह्नों का आवंटन करने का कार्य करता है।
(4) चुनाव कार्यक्रम का निर्धारण एवं घोषणा-देश में कौन-से चुनाव किस समय होंगे, इसका निश्चय तो भारत सरकार करती है, लेकिन चुनाव की तिथियाँ एवं विस्तृत चुनाव कार्यक्रम निर्वाचन आयोग से परामर्श के पश्चात् ही निश्चित किया जाता है। चुनाव आयोग निर्वाचन कार्यक्रम की अधिसूचना जारी करके चुनावी प्रक्रिया का शुभारम्भ करता है, जिसमें वह नामांकन पत्र भरने, उसकी जाँच तथा नाम वापस लेने की तिथि की घोषणा करता है।
(5) भेदभाव रहित चुनावों का संचालन-देश में होने वाले प्रत्येक चुनाव को निष्पक्ष रूप से सम्पन्न कराना निर्वाचन आयोग का महत्वपूर्ण कार्य है। इस प्रयोजन हेतु निर्वाचन आयोग देश के सभी राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों को चुनाव-प्रचार की एक जैसी सुविधाएँ दिए जाने की व्यवस्थाएँ करता है। भारतीय निर्वाचन आयोग बिना किसी भेदभाव के चुनाव आचार-संहिता बनाता है तथा निर्वाचनों की प्रक्रिया के दौरान खर्च होने वाली धनराशि की सीमा का निर्धारण करता है।
(6) विविध कार्य-निर्वाचन आयोग निर्वाचन में हुई अनियमितताओं के आधार पर सम्बन्धित चुनाव को रद्द करके वहाँ फिर से वोट डाले जाने के आदेश देता है। वह जहाँ फर्जी मतदान को रोकने हेतु विविध प्रावधान करता है, वहीं देश के राजनीतिक दलों को उनके संगठनात्मक चुनाव समय पर करवाने हेतु निर्देश देता है।
प्रश्न 7.
यदि आपको चुनाव में सुधार के लिए बनी समिति में सदस्य बना दिया जाए तो आप निर्वाचन सुधार हेतु क्या सुझाव देंगे?
उत्तर:
चुनाव सुधार हेतु सुझाव -समय-समय पर भारतीय चुनाव व्यवस्था में सुधार हेतु निर्वाचन आयोग के माध्यम से प्रयास किए गए हैं। अभी तक देश में संथानम समिति, टी. एन. शेषन के सुझाव तथा इन्द्रजीत गुप्त समिति इत्यादि गठित की जा चुकी हैं। चुनाव सुधार समिति का सदस्य बनने पर हम निर्वाचन सुधार हेतु निम्नलिखित सुझाव देंगे
(1) चुनावी व्यय पर अंकुश-वर्तमान में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी अत्यधिक धनराशि व्यय करते हैं, जिससे राजनीतिक प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। इस पर प्रभावी अंकुश लगाने हेतु कठोर नियमावली बनाई जानी चाहिए।
(2) हिंसा एवं बाहुबल पर नियन्त्रण-आज के चुनावों में बाहुबली मतदाताओं में भय उत्पन्न करने हेतु हिंसा का सहारा लेते हैं। अत: बाहुबलियों की पहचान करके उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए।
(3) आचार-संहिता का कड़ाई से पालन-विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव आचार-संहिता का सख्ती से पालन कराया जाना चाहिए।
(4) अपराधी तथा दण्डित लोगों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध-अपराधी लोगों की चुनाव आयोग द्वारा चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए जो आदतन अपराधी प्रवृत्ति के हैं तथा किसी भी रूप में न्यायपालिका द्वारा दण्डित किए गए हैं।
(5) मतदान केन्द्रों पर कब्जे पर नियन्त्रण-देश के कुछ राजनीतिज्ञ किसी भी प्रकार से चुनावी जीत के लिए ओछी हरकतें करने से बाज नहीं आते हैं। इसके लिए प्रत्येक मतदान केन्द्र पर भारी संख्या में सैन्यबल आधुनिक हथियारों के साथ लगाए जाने चाहिए जिससे मतदाता निर्भय होकर अपना वोट डाल सकें और स्वार्थी राजनीतिज्ञों के मंसूबों पर पानी फिर जाए।
(6) मतदाताओं को मताधिकार का प्रयोग करने हेतु प्रेरित करना-आजादी से लेकर आज तक मतदाता मतदान के प्रति उदासीनता के भाव रखते हैं। सामान्यतया लगभग 45 प्रतिशत मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं। अतः ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे शत-प्रतिशत मतदाता मतदान करें। मतदान न करने वाले लोगों का मताधिकार का अधिकार भी छीनकर उन्हें दण्डित किया जा सकता है।
(7) निर्दलीय (स्वतन्त्र) प्रत्याशियों की संख्या पर नियन्त्रण-भारतीय चुनाव प्रणाली की सबसे बड़ी संख्या निर्दलीय प्रत्याशियों की बढ़ती हुई संख्या है। इसके समाधान हेतु यह व्यवस्था की जानी चाहिए कि निर्धारित संख्या में मत प्राप्त नहीं कर पाते तो उन्हें अगला चुनाव लड़ने से प्रतिबन्धित कर दिया जाना चाहिए।
(8) प्रत्याशियों द्वारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मतदाताओं को लाभ पहुँचाने पर प्रतिबन्ध-वर्तमान में कुछ राजनीतिक दल एवं उनके प्रत्याशी चुनावी जीत हासिल करने हेतु मतदाताओं को प्रत्यक्ष अपना परोक्ष रूप से आर्थिक लाभ पहुँचाते हैं। चुनाव आयोग द्वारा ऐसे प्रत्याशियों अथवा राजनीतिक दलों की पहचान करके उन्हें सदैव के लिए चुनावों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए तथा ऐसे राजनीतिक दलों की तो मान्यता तक रद्द कर दी जानी चाहिए।
प्रश्न 8.
चुनाव आयोग को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाने के प्रावधान पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
चुनाव आयोग को स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष बनाने सम्बन्धी प्रावधान भारतीय संविधान सभा ने चुनाव आयोग की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्षता कायम रखने हेतु पूर्ण सजगता तथा दूरदर्शिता का परिचय दिया है। अनेक ऐसे संवैधानिक प्रावधान हैं जिनसे देश का चुनाव आयोग न्यायालयों की तरह कार्यपालिका के बिना किसी हस्तक्षेप के निष्पक्ष रूप से अपने दायित्वों को सम्पादित कर पाने में सक्षम हो पाया है। संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग को महत्वपूर्ण मानकर इसे व्यवस्थापिका अथवा कार्यपालिका की इच्छा पर नहीं छोड़ा। संविधान के 15वें भाग में एक अलग अध्याय में अनुच्छेद 324 से 329 तक राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद तथा राष्ट्रों की विधान सभाओं के चुनाव हेतु 'निर्वाचन आयोग के गठन, कार्य तथा दायित्वों' को उल्लिखित किया गया है। भारतीय चुनाव आयोग को स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष बनाने से सम्बन्धित विविध प्रावधानों को संक्षेप में निम्नांकित बिन्दुओं से सरलतापूर्वक स्पष्ट किया जा सकता है
प्रश्न 9.
भारत में चुनाव व्यवस्था की सफलता किन-किन आधारों पर मापी जा सकती है? विस्तारपूर्वक बताइए। उत्तर- भारत में चुनाव व्यवस्था की सफलता निम्नलिखित आधारों पर मापी जा सकती है
1. हमारी चुनाव व्यवस्था ने मतदाताओं को न केवल अपने प्रतिनिधियों की चुनने की स्वतंत्रता दी है, बल्कि उन्हें केन्द्र और राज्यों में शांतिपूर्ण ढंग से सरकारों को बदलने का अवसर भी दिया है।
2. मतदाताओं ने चुनाव प्रक्रिया में निरन्तर रुचिपूर्वक भाग लिया है। चुनावों में भाग लेने वाले उम्मीदवारों और दलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
3. चुनाव व्यवस्था में सभी को स्थान मिला है तथा यह सभी को साथ लेकर चली है। हमारे प्रतिनिधियों की सामाजिक पृष्ठभूमि भी धीरे-धीरे बदली है। अब हमारे प्रतिनिधि विभिन्न सामाजिक वर्गों से आते हैं; जबकि इनमें अभी महिलाओं की संख्या में संतोषजनक वृद्धि नहीं हुई है।
4. देश के अधिकांश भागों में चुनाव परिणाम चुनावी अनियमितताओं एवं धाँधली से प्रभावित नहीं होते यद्यपि चुनाव में धाँधली करने के अनेक प्रयास किए जाते हैं। हम चुनावों में हिंसा, मतदाता सूचियों से वोटरों के नाम गायब होने की शिकायतें, डराए-धमकाए जाने आदि की शिकायतें सुनते रहते हैं। फिर भी, ऐसी घटनाओं से शायद ही कोई चुनाव परिणाम प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है।
5. चुनाव हमारे लोकतांत्रिक जीवन के अभिन्न अंग हो गए हैं। कोई इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि कभी कोई सरकार चुनावों में जनादेश का उल्लंघन भी करेगी। इसी प्रकार कोई यह भी कल्पना नहीं कर सकता कि बिना चुनावों के कोई सरकार बन सेगी। वास्तव में, भारत में निश्चित अंतराल पर होने वाले नियमित चुनावों को एक महान लोकतांत्रिक प्रयोग के रूप में प्रसिद्धि मिली है ।
6. इन सभी बातों से हमारी चुनाव व्यवस्था को देश-विदेश में आदर के साथ देखा जाता है। भारत में मतदाता के अंदर आत्मविश्वास बढ़ा है। मतदाताओं की नजर में भारतीय निर्वाचन आयोग के कद में वृद्धि हुई है। यह हमारे संविधान निर्माताओं के मूल निर्णयों को उचित ठहराता है। यदि चुनाव प्रक्रिया को कुछ और दोषरहित बनाया जा सके तो हम मतदाता और नागरिक के रूप में लोकतंत्र के इस महोत्सव का और अच्छी तरह आनंद उठा सकेंगे तथा इसे और अर्थपूर्ण बना सकेंगे।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भारत में किसके चुनाव में अनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली अपनायी जाती है?
(अ) राज्यसभा सदस्य
(ब) विधान परिषद सदस्य
(स) उपराष्ट्रपति
(द) राष्ट्रपति।
उत्तर:
(द) राष्ट्रपति।
प्रश्न 2.
लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक व्यक्ति की न्यूनतम आयु होनी चाहिए।
(अ) 21 वर्ष
(ब) 25 वर्ष
(स) 30 वर्ष
(द) 35 वर्ष
उत्तर:
(ब) 25 वर्ष
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में निर्वाचन आयोग का वर्णन है?
(अ) अनुच्छेद 286
(ब) अनुच्छेद 324
(स) अनुच्छेद 356
(द) अनुच्छेद 382
उत्तर:
(ब) अनुच्छेद 324
प्रश्न 4.
भारत के निर्वाचन आयोग के कार्य है
1. संसद एवं राज्य विधानमण्डलों के सभी चुनाव कराना।
2. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए चुनाव कराना।
3. किसी राज्य में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए अनुकूल दशा न होने पर राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की संस्तुति करना।
4. निर्वाचन सूचियाँ तैयार करने के कार्य का निरीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण करनाः
(अ) 1, 2, 3
(ब) 1, 2, 4
(स) 1, 3, 4
(द) सभी चारों।
उत्तर:
(ब) 1, 2, 4
प्रश्न 5.
भारत में मतदान की आयु सीमा को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कब किया गया?
(अ) 1988 ई.
(ब) 1989 ई.
(स) 1990 ई.
(द) 1998 ई.
उत्तर:
(ब) 1989 ई.
प्रश्न 6.
भारत में मतदान की न्यूनतम निर्धारित आयु है
(अ) 18 वर्ष
(ब) 21 वर्ष
(स) 25 वर्ष
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) 18 वर्ष
प्रश्न 7.
चुनाव आयोग के निम्नलिखित कार्यों पर विचार कीजिए
1. स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों, का अधीक्षण, निर्देशन तथा संचालन।
2. सांसद, राज्यों की विधायिकाओं, राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनावों की निर्वाचक नामावली तैयार करना।
3. चुनाव लड़ने वाले व्यक्तियों तथा राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न देना तथा राजनीतिक दलों को मान्यता देना।
4. चुनाव विवादों में अंतिम निर्णय की उद्घोषणा। सही उत्तर का चयन कीजिए
(अ) 1, 2 और 3
(ब) 2, 3 और 4
(स) 1 और 3
(द) 1, 2 और 4
उत्तर:
(अ) 1, 2 और 3
प्रश्न 8.
भारत के सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को समान अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु मिलने वाले वेतन में असमानता है।
2. मुख्य चुनाव आयुक्त वही वेतन पाने का हकदार है, जितना उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को दिया जाता है।
3. मुख्य चुनाव आयुक्त को उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने के तरीके और कारणों के अतिरिक्त किसी अन्य तरीके और कारण से उनके पद से नहीं हटाया जा सकता।
4. चुनाव आयुक्त का कार्यकाल उसके पदभार संभालने की तारीख से पाँच वर्ष अथवा उनके 62 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के दिन तक, जो भी पहले हो, होता हैं।
इनमें से कौन-कौन से कथन सही है?
(अ) 1, 2 और 3
(ब) 2 और 3
(स) 1 और 4
(द) 2 और 4
उत्तर:
(ब) 2 और 3
प्रश्न 9.
मुख्य चुनाव आयुक्त को पदच्युत किया जा सकता है
(अ) मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय द्वारा
(ब) राष्ट्रपति द्वारा
(स) संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रभावित कदाचार के आधार पर
(द) मंत्रिमण्डल के प्रस्ताव द्वारा।
उत्तर:
(स) संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रभावित कदाचार के आधार पर
प्रश्न 10.
निर्वाचन आयुक्त की सेवा-शर्त और कार्यकाल निश्चित करता है।
(अ) संविधान
(ब) संसद
(स) राष्ट्रपति
(द) सरकार
उत्तर:
(अ) संविधान