Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 स्वतंत्रता Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्न में से किसने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति का आजीवन विरोध किया
(क) महात्मा गाँधी ने
(ख) नेल्सन मण्डेला ने
(ग) आंग सान सू ने
(घ) वाल्टेयर ने।
उत्तर:
(ख) नेल्सन मण्डेला ने
प्रश्न 2.
'आंग सान सू की' (म्यांमार) की कृति का नाम है
(क) फ्रीडम अंगेस्ट फीयर
(ख) फ्रीडम फाइट
(ग) फ्रीडम फ्रॉम फीयर
(घ) फ्रीडम।
उत्तर:
(ग) फ्रीडम फ्रॉम फीयर
प्रश्न 3.
गाँधी जी ने 'हिन्द स्वराज' नामक कृति लिखी थी
(क) 1910 ई. में
(ख) 1909 ई. में.
(ग) 1907 ई. में
(घ) 1906 ई. में।
उत्तर:
(ख) 1909 ई. में.
प्रश्न 4.
निम्न में से स्वतन्त्रता से सम्बन्धित हानि सिद्धान्त के प्रतिपादक हैं
(क) जॉन स्टुअर्ट मिल
(ख) वाल्टेयर
(ग) रूसो
(घ) महात्मा गाँधी।
उत्तर:
(क) जॉन स्टुअर्ट मिल
प्रश्न 5.
"तुम जो कहते हो मैं उसका समर्थन नहीं करता। लेकिन मैं मरते दम तक तुम्हारे कहने के अधिकार का बचाव करूँगा।" यह कथन है
(क) वाल्टेयर का
(ख) रूसो का
(ग) सुकरात का
(घ) हेगेल का।
उत्तर:
(क) वाल्टेयर का
निम्नलिखित में 'सही' अथवा 'गलत' कथन बताइए -
(क) 'आँग सान सू की' के लिए गाँधीजी के अहिंसा सम्बन्धी विचार प्रेरणा स्रोत रहे हैं।
(ख) स्वतन्त्रता बन्धनों के पूर्णतया अभाव का नाम है।
(ग) स्वतन्त्रता का हानि सिद्धान्त अन्य लोगों को हानि पहुँचाने की छूट देता है।
(घ) लोकतांत्रिक सरकार नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा हेतु आवश्यक है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत
(घ) सही।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा-20 शब्द)
प्रश्न 1.
किस अवस्था की प्राप्ति हेतु लोग सदैव संघर्ष करते रहे हैं ?
उत्तर:
'स्वतन्त्रता' की प्राप्ति हेतु लोग सदैव संघर्षशील रहे हैं।
प्रश्न 2.
20वीं शताब्दी में स्वतन्त्रता के दो प्रमुख आदर्श बताइए।
उत्तर:
20वीं शताब्दी में स्वतन्त्रता के दो प्रमुख आदर्श हैं
प्रश्न 3.
नेल्सन मण्डेला ने किस पुस्तक में अपने स्वतन्त्रता हेतु संघर्ष की कहानी का वर्णन किया है ?
उत्तर:
नेल्सन मण्डेला ने अपनी कृति 'लाँग वॉक टू फ्रीडम' में अपने स्वतन्त्रता हेतु किये गये संघर्ष की सम्पूर्ण कहानी का वर्णन किया है।
प्रश्न 4.
नेल्सन मंडेला एवं उसके साथियों के लिए 'लांग वॉक टू फ्रीडम' क्या था ?
उत्तर:
नेल्सन मंडेला एवं उसके साथियों के लिए दक्षिण अफ्रीका की रंग भेद सरकार द्वारा लगाए गए पूर्ण प्रतिबंधों एवं स्वतंत्रता के मार्ग की रुकावटों को दूर करने का संघर्ष 'लॉग वाक टू फ्रीडम' था।
प्रश्न 5.
'आँग सान सू की' के लिए किस महापुरुष के कौन से विचार प्रेरणास्रोत रहे हैं ?
उत्तर:
'आँग सान सू की' के लिए महात्मा गाँधी जी के 'अहिंसा' सम्बन्धी विचार प्रेरणास्रोत रहे हैं।
प्रश्न 6.
'स्वतन्त्रता' क्या है ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता व्यक्ति एवं समाज के सर्वांगीण विकास की अपरिहार्य अवस्था एवं प्राधिकार है।
प्रश्न 7.
स्वतन्त्रता के दो महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं ? उत्तर-बाहरी प्रतिबन्धों का
अभाव
एवं आत्मविकास की स्थितियों की प्राप्ति, स्वतन्त्रता के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं।
प्रश्न 8.
'स्वराज' के सन्दर्भ में बाल गंगाधर तिलक ने कौन-सा क्रान्तिकारी नारा दिया था ?
उत्तर:
स्वराज के सन्दर्भ में बाल गंगाधर तिलक का क्रान्तिकारी नारा था-"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।"
प्रश्न 9.
'स्वराज' की कौन सी समझ गाँधीजी के 'हिन्द स्वराज' में प्रकट हुई ? उत्तर-'स्वराज का आशय अपने ऊपर राज भी है', स्वराज की यही समझ गाँधी जी के 'हिन्द स्वराज' में प्रकट हुई।
प्रश्न 10.
स्वतंत्र समाज को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्र समाज वह होता है जिसमें व्यक्ति न्यूनतम प्रतिबंधों के मध्य अपने हित संवर्धन करने में समर्थ हो।
प्रश्न 11.
स्वतंत्रता को बहुमूल्य क्यों माना जाता है?
उत्तर:
स्वतंत्रता को इसलिए बहुमूल्य माना जाता है क्योंकि इसमें हम निर्णय और चयन कर पाते हैं।
प्रश्न 12.
व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध किससे लग सकते हैं ?
उत्तर:
व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध प्रभुत्व और बाहरी नियन्त्रण से लग सकते हैं।
प्रश्न 13.
यदि सरकार लोकतांत्रिक हो तो शासकों और नागरिकों के मध्य कैसा सम्बन्ध हो सकता है ?
उत्तर:
यदि सरकार लोकतांत्रिक हो तो नागरिकों का अपने शासकों पर कुछ मात्रा में नियन्त्रणकारी सम्बन्ध हो सकता है।
प्रश्न 14.
जाति व्यवस्था में स्वतन्त्रता पर आरोपित होने वाले प्रतिबन्धों का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर:
जाति व्यवस्था में स्वतन्त्रता पर आरोपित होने वाले प्रतिबन्धों का प्रमुख कारण 'सामाजिक असमानता' है।
प्रश्न 15.
क्या हम पूर्णतया प्रतिबन्धों से मुक्त विश्व में रह सकते हैं ?
उत्तर:
नहीं, हम ऐसे विश्व में कदापि नहीं रह सकते जिसमें कोई प्रतिबन्ध ही न हों।
प्रश्न 16.
आदर्श रूप में एक मुक्त समाज में हमें किन बातों में समर्थ होना चाहिए ?
उत्तर:
आदर्श रूप में एक मुक्त समाज में हमें अपने विचारों की रक्षा, जीवन पद्धति के तरीके विकसित करने एवं इच्छा पालन में समर्थ होना चाहिए।
प्रश्न 17.
सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य क्या हो सकता है ?
उत्तर:
सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।
प्रश्न 18.
हानि सिद्धांत के प्रतिपादक कौन हैं ?
उत्तर:
जॉन स्टुअर्ट मिल।
प्रश्न 19.
जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपनी किस पुस्तक में हानि सिद्धांत का प्रतिपादन किया था ?
उत्तर:
ऑन लिबर्टी' नामक पुस्तक में।
प्रश्न 20.
जॉन स्टुअर्ट मिल ने व्यक्ति के कार्यों को कितने भागों में विभाजित किया है?
उत्तर:
जॉन स्टुअर्ट मिल ने व्यक्ति के कार्यों को दो भागों में विभाजित किया है ये हैं
प्रश्न 21.
जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार स्वसम्बद्ध कार्य कौन से हैं ?
उत्तर:
'मिल' के अनुसार स्वसंबद्ध कार्य वे हैं जिनके प्रभाव केवल इन्हें करने वाले व्यक्तियों पर पड़ते हैं।
प्रश्न 22.
मिल ने अनुसार परसंबद्ध कार्य कौन से हैं?
उत्तर:
ल के अनुसार परसंबद्ध कार्य वे हैं जो कर्ता के साथ-साथ अन्य लोगों पर भी प्रभाव डालते हैं। प्रश्न 23. जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार किन्हीं कार्यों पर कानूनी प्रतिबन्ध कब लगाये जाने चाहिए ?
उत्तर:
जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार किन्हीं कार्यों पर कानूनी प्रतिबन्ध केवल तभी लगाये जाने चाहिए जब वे निश्चित रूप से व्यक्तियों को गम्भीर नुकसान पहुँचाएँ।
प्रश्न 24.
स्वतन्त्रता से जुड़े मामलों में राज्य किसी व्यक्ति को कौन-से कार्य करने से रोक सकता है ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता से जुड़े मामलों में राज्य किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य करने से रोक सकता है जो किसी अन्य को नुकसान पहुँचाते हों।
प्रश्न 25.
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध विशेष स्थिति में ही लगाए जा सकते हैं, क्यों ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध विशेष स्थिति में ही लगाए जा सकते हैं क्योंकि 'स्वतन्त्रता' मानव समाज के केन्द्र में है और गरिमापूर्ण मानव जीवन हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 26.
कौन-सी आदत स्वतन्त्रता को खतरे में डाल देती है ?
उत्तर:
अधिक प्रतिबन्ध लगाने की आदत स्वतन्त्रता को खतरे में डाल देती है।
प्रश्न 27.
स्वतन्त्रता के दो प्रमुख आयाम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के दो प्रमुख आयाम हैं
प्रश्न 28.
नकारात्मक स्वतन्त्रता किस क्षेत्र को बचाने का प्रयास करती है ?
उत्तर:
नकारात्मक स्वतन्त्रता उस क्षेत्र को बचाने का प्रयास करती है जिसमें व्यक्ति अनुलंघनीय हो।
प्रश्न 29.
सकारात्मक स्वतन्त्रता के तर्क किस विचार की व्याख्या के साथ जुड़े हुए हैं ?
उत्तर:
सकारात्मक स्वतन्त्रता के तर्क 'कुछ करने की स्वतन्त्रता' के विचार की व्याख्या के साथ जुड़े हुए हैं।
प्रश्न 30.
व्यक्ति को अपनी क्षमताओं के विकास हेतु किन स्थितियों का लाभ अवश्य ही मिलना चाहिए ?
उत्तर:
व्यक्ति को अपनी क्षमताओं के विकास हेतु भौतिक, राजनीतिक एवं सामाजिक जगत में समर्थ एवं सकारात्मक स्थितियों का लाभ मिलना ही चाहिए।
प्रश्न 31.
सकारात्मक स्वतन्त्रता के पक्षधर क्या मानते हैं ?
उत्तर:
सकारात्मक स्वतन्त्रता के पक्षधर यह मानते हैं कि व्यक्ति केवल समाज में ही स्वतन्त्र हो सकता है, समाज से बाहर नहीं।
प्रश्न 32.
'अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' का मुद्दा किस क्षेत्र से जुड़ा हुआ माना जाता है ?
उत्तर:
'अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' का मुद्दा 'अहस्तक्षेप के लघुत्तम क्षेत्र' से जुड़ा हुआ माना जाता है।
प्रश्न 33.
ओब्रे मेनन की 'रामायण रिटोल्ड' पर प्रतिबन्ध किस प्रकार की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध का उदाहरण है ?
उत्तर:
ओब्रे मेनन की 'रामायण रिटोल्ड' पर प्रतिबन्ध 'अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' पर प्रतिबन्ध का उदाहरण है।
प्रश्न 34.
'मिल' ने अपनी पुस्तक 'ऑन लिबर्टी' में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की वकालत किन लोगों के लिए की
उत्तर:
मिल ने 'ऑन लिबर्टी' में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की वकालत उन लोगों के लिए की है जिनके विचार आज की स्थितियों में गलत या भ्रामक लगते हों।
प्रश्न 35.
स्वतन्त्रता हमारे भीतर की किन योग्यताओं में छिपी होती है ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता हमारे भीतर सही विकल्प चुनने की सामर्थ्य और क्षमताओं में छिपी होती है।
प्रश्न 36.
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष लोगों की किस आकांक्षा को प्रदर्शित करता है?
उत्तर:
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष लोगों की इस आकांक्षा को प्रदर्शित करता है कि वे अपने जीवन और नियति का नियंत्रण स्वयं करें एवं उनका अपनी इच्छाओं व गतिविधियों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का अवसर बना रहे।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-40 शब्द)
प्रश्न 1.
मानव इतिहास में किस बात के लिए संघर्ष होते रहे हैं ?
उत्तर:
मानव इतिहास में शक्तिशाली समूहों द्वारा निर्बलों पर स्थापित वर्चस्व के खिलाफ सदैव संघर्ष होते रहे हैं। लोग अपनी स्वतन्त्रता की प्राप्ति व इसे बनाए रखने के लिए हमेशा से संघर्ष करते रहे हैं। सम्पूर्ण मानव इतिहास में ऐसे संघर्षों के अनेक गरिमामयी उदाहरण विद्यमान हैं, जोकि आज भी मानव मात्र के लिए प्रेरणास्रोत का कार्य कर रहे हैं।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के अभिप्राय को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
बाह्य तौर पर बन्धन मुक्त अवस्था को ही स्वतन्त्रता कहा जाता है। परन्तु यह स्वतन्त्रता का अप्रासंगिक कार्य है। वास्तविक अर्थों में स्वतन्त्रता उस अवस्था एवं प्राधिकार का नाम है जिसमें अनुचित प्रतिबन्धों के स्थान पर न्यायोचित व विधिसम्मत प्रतिबन्धों को प्रोत्साहित किया जाता है। इस सन्दर्भ में स्वतन्त्रता मानव के सर्वांगीण विकास एवं गरिमामयी जीवन की प्राप्ति हेतु अपरिहार्य अवस्था व प्राधिकार है।
प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष क्यों होते रहे हैं ? उत्तर-स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष निम्नलिखित कारणों से होते रहे हैं
प्रश्न 4.
सामाजिक जीवन में कुछ नियमों और कानूनों की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर:
सामाजिक जीवन में कुछ नियमों और कानूनों की आवश्यकता होती है क्योंकि समाज में सदैव भिन्न-भिन्न प्रकृति व दृष्टिकोणों के व्यक्ति साथ-साथ रहते हैं। कुछ व्यक्ति व समूह शान्तिपूर्वक अपनी स्वतन्त्रता का उपभोग करते हैं जबकि कुछ व्यक्तियों व समूहों द्वारा सदैव दूसरों की स्वतन्त्रता का अतिक्रमण किया जाता रहता है। अतः मानवीय व्यवहार के नियमन हेतु कुछ नियमों व कानूनों का होना अति आवश्यक है।
प्रश्न 5.
राजनीतिक सिद्धान्त में 'स्वतन्त्रता' के विषय में चर्चा के मुख्य विषय क्या हैं ?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त में 'स्वतन्त्रता' के विषय में अधिकतर चर्चा ऐसे नियमों को विकसित करने पर केन्द्रित रही है, जो सामाजिक रूप से आवश्यक सीमाओं और शेष प्रतिबन्धों के बीच अन्तर स्पष्ट करते हैं। राजनीतिक सिद्धान्त में इस बात पर भी वाद-विवाद होता रहा है कि स्वतन्त्रता की सीमाएँ क्या होनी चाहिए।
प्रश्न 6.
नेल्सन मंडेला का संघर्ष किन-किन बातों के खिलाफ था ?
उत्तर:
नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में लम्बे समय तक स्वतन्त्रता व समान अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उनका संघर्ष सरकार की 'रंगभेद नीति' एवं गोरे लोगों के शासन की अलगाववादी नीतियों के खिलाफ था। मंडेला व उनके साथियों ने विशेष रूप से शासन की इन्हीं नस्लीय भेदभावपूर्ण एवं अलगाववादी नीतियों के खिलाफ संघर्ष किया।
प्रश्न 7.
नेल्सन मंडेला ने व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्रता के लिए क्या कीमत चुकाई ?
उत्तर:
नेल्सन मंडेला को व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्रता हेतु संघर्ष में भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने अपने जीवन के 28 वर्ष जेल की कोठरियों में बिताए। उन्हें अपने प्रियजनों, मित्रों के सान्निध्य से अलग रहना पड़ा। उन्हें अपने प्रिय खेल (बॉक्सिंग), संगीत, कपड़े इत्यादि से भी दूर रहना पड़ा। इस प्रकार व्यक्तिगत रूप से नेल्सन मंडेला ने स्वतन्त्रता के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया।
प्रश्न 8.
'आँग सान सू की' का स्वतन्त्रता के सन्दर्भ में क्या मत है ?
उत्तर:
'आँग सान सू की' का स्वतन्त्रता के सन्दर्भ में यह मत है कि मेरी आजादी मेरे देश के लोगों की आजादी से जुड़ी हुई है। उनके अनुसार, "मेरे लिए वास्तविक मुक्ति (स्वतन्त्रता) भय से मुक्ति है। भय से मुक्त हुए बिना आप गरिमापूर्ण मानवीय जीवन नहीं जी सकते।" इस प्रकार 'सू की' का मानना है कि हमें अपनी स्वतन्त्रता के क्रियान्वयन में अन्य लोगों के विचारों, सत्ता आदि किसी से भी नहीं डरना चाहिए।
प्रश्न 9.
'आँग सान सू की' एवं 'नेल्सन मंडेला' की पुस्तकों से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर:
आँग सान सू की एवं नेल्सन मण्डेला की पुस्तकों (फ्रीडम फ्रॉम फीयर, लाँग वॉक टू फ्रीडम) से हमें स्वतन्त्रता हेतु कटिबद्धता एवं संघर्ष की महान प्रेरणा प्राप्त होती है। इन पुस्तकों में इन दोनों स्वतन्त्रता के महानायकों के संघर्ष व त्याग की दास्तान का उल्लेख है। यह उल्लेख हमें स्वतन्त्रता हेतु संघर्ष की नवीन ऊर्जा एवं त्याग व समर्पण की महान प्रेरणा प्रदान करता है। 20वीं, 21वीं सदी में ये दोनों ही कृतियाँ स्वतन्त्रता का महान आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
प्रश्न 10.
स्वतन्त्रता के अभिप्राय में कौन से दो पहलू अति महत्वपूर्ण हैं ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता के अभिप्राय में सर्वाधिक महत्वपूर्ण दो पहलू हैं
प्रश्न 11.
'स्वतंत्रता ऐसी स्थितियों का होना है कि जिनमें लोग अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें।' इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन का आशय यह है कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए समाज को उन बातों को विस्तार देना चाहिए जिससे व्यक्ति समूह, समुदाय अथवा राष्ट्र अपने भाग्य, दिशा एवं स्वरूप को निर्धारित करने में समर्थ हो सके। अतः स्वतंत्रता वह स्थिति है जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता एवं क्षमताओं का पर्याप्त विकास कर सकें।
प्रश्न 12.
क्या समाज में व्यक्ति को प्रत्येक प्रकार के प्रतिबन्धों की अनुपस्थिति की आशा करनी चाहिए ? यदि 'नहीं' तो क्यों ?
उत्तर:
नहीं, समाज में व्यक्ति को प्रत्येक प्रकार के प्रतिबन्धों की अनुपस्थिति की आशा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि
प्रश्न 13.
भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष के सन्दर्भ में स्वराज क्या है ?
उत्तर:
भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष के सन्दर्भ में स्वराज राजनीतिक और संवैधानिक स्तर पर स्वतन्त्रता की माँग है और सामाजिक तथा सामूहिक स्तर पर यह एक मूल्य है। भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में 'स्वराज' को इन्हीं सन्दर्भो में उल्लिखित किया गया और इसी कारण 'स्वराज' स्वतन्त्रता आन्दोलन का महत्वपूर्ण नारा बन गया।
प्रश्न 14.
स्वराज के विषय में गाँधीजी का क्या मानना था ?
उत्तर:
'स्वराज' के विषय में गाँधीजी ने अपनी पुस्तक 'हिन्द स्वराज' में लिखा है कि "जब हम स्वयं पर शासन करना सीखते हैं तभी स्वराज है।" उनका स्वराज के सन्दर्भ में मानना था कि स्वराज केवल स्वतन्त्रता नहीं, अपितु ऐसी संस्थाओं से मुक्ति भी है, जो मनुष्य को मनुष्यता से वंचित करती हैं। उनके मतानुसार स्वराज में मानव को यंत्रवत बनाने वाली संस्थाओं से मुक्ति पाना निहित है।
प्रश्न 15.
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों के स्रोतों की बात की जाए तो ये मुख्यतया 'प्रभुत्व' और 'बाह्य नियन्त्रण' पर आधारित होते हैं। स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध बलपूर्वक या सरकारी कानूनों (जोकि शासकों की ताकत का प्रतिनिधित्व करे) द्वारा लगाये जा सकते हैं। इसी प्रकार स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों का एक स्रोत 'सामाजिक असमानता' भी हो सकती है। समाज में अत्यधिक 'आर्थिक असमानता' के कारण भी स्वतन्त्रता पर अंकुश लग सकते हैं।
प्रश्न 16.
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों का होना क्यों आवश्यक होता है ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों का होना आवश्यक होता है क्योंकि
प्रश्न 17.
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों के सन्दर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सवाल कौन-से हैं ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों के सन्दर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सवाल हैं
प्रश्न 18.
राजनीतिक विचारधारा के रूप में 'उदारवाद' को किस मूल्य के साथ जोड़कर देखा जाता है ?
उत्तर:
एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में उदारवाद को सहनशीलता के मूल्य के साथ जोड़कर देखा जाता है। इसके अन्तर्गत यह माना जाता है कि एक उदारवादी चाहे किसी व्यक्ति या विचार से कितना ही असहमत क्यों न हो, वह सदैव उन विचारों के प्रकटीकरण व प्रदर्शन में सहनशीलता का पक्षधर होता है। अतः उदारवाद का पूरा आधार 'सहनशीलता' पर टिका हुआ है।
प्रश्न 19.
वर्तमान में उदारवादी किन बातों को स्वीकार करते हैं ?
उत्तर:
वर्तमान में उदारवादी 'मुक्त बाजार' व पूँजीवाद के दुष्परिणाम देख लेने के बाद यह स्वीकार करने लगे हैं कि राज्य को 'कल्याणकारी राज्य' की भूमिका का भी निर्वाह करना चाहिए। वर्तमान उदारवादी सामाजिक समानता व लोककल्याण की दृष्टि से उचित व न्यायसंगत प्रतिबन्धों पर भी अपना समर्थन देने लगे हैं। इनका मानना है कि आज 'सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने वाले उपायों की अति आवश्यकता है।
प्रश्न 20.
मिल का हानि सिद्धांत क्या है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
"किसी के कार्य करने की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का एकमात्र लक्ष्य आत्मरक्षा है। सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के विरुद्ध शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।" यही मिल का हानि सिद्धान्त है।
प्रश्न 21.
जॉन स्टुअर्ट मिल के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचारों में कार्य-पृथक्करण' पर.प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचारों में कार्यों को दो भागों में बाँटा है
प्रश्न 22.
'मिल' के अनुसार किन परिस्थितियों में स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाए जाने चाहिए ?
उत्तर:
'मिल' के अनुसार निम्नलिखित परिस्थितियों में स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाए जाने चाहिए-
प्रश्न 23.
आप स्वतन्त्रता के किस पहलू को श्रेष्ठ मानते हैं और क्यों ?
उत्तर:
हम स्वतन्त्रता के 'सकारात्मक पहलू' अर्थात् सकारात्मक स्वतन्त्रता को श्रेष्ठ मानते हैं, क्योंकि
प्रश्न 24.
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के निहितार्थ बताइए। उत्तर—अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के प्रमुख निहितार्थ हैं
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-100 शब्द)
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के दो मुख्य समकालीन आदर्शों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के दो मुख्य समकालीन आदर्श विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मण्डेला द्वारा किया गया संघर्ष एवं म्यांमार में 'आँग सान सू की' द्वारा जारी संघर्ष माने जा सकते हैं। नेल्सन मण्डेला ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति एवं गोरों की सरकार द्वारा आरोपित अलगाववादी नीतियों के खिलाफ दीर्घकालिक कठिन संघर्ष किया। इस संघर्ष का प्रमुख उद्देश्य स्ट के साथ-साथ समस्त अश्वेतों को वास्तविक स्वतन्त्रता की प्राप्ति कराना रहा।
इस हेतु मण्डेला ने अपना सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर कर दिया और अन्ततः सरकार को अपनी गलत नीतियों को वापस लेना पड़ा। इसी प्रकार म्यांमार में 'आँग सान सू की' ने भी स्वतन्त्रता हेतु संघर्ष छेड़ा था। इसका प्रमुख उद्देश्य जनता को उस भय से मुक्त कराना था, जोकि सैनिक शासन व शक्तिशाली वर्गों द्वारा आम जनता में स्वतन्त्रता के प्रति बैठाया गया था। अतः उपर्युक्त दोनों ही वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्वतन्त्रता के महत्वपूर्ण आदर्श प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के सन्दर्भ में स्वराज के अभिप्राय की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन के सन्दर्भ में स्वराज का अभिप्राय-भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में स्वराज का मुख्य अभिप्राय राजनीतिक और संवैधानिक स्तर पर स्वतंत्रता की एक माँग के रूप में लगाया गया है। इसे इस सन्दर्भ में सामाजिक और सामूहिक स्तर का एक महत्वपूर्ण मूल्य भी माना गया है। 'स्वराज' भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण नारा भी बन गया था। महात्मा गाँधी जब भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ें तो उन्होंने स्वराज के अभिप्राय को और .. व्यापक तरीके से स्पष्ट किया।
उन्होंने स्वराज को स्वशासन या अपने ऊपर स्वयं के शासन को माना। उनका मानना था कि स्वराज में आत्म-सम्मान, दायित्वबोध और आत्मसाक्षात्कार को पाना भी शामिल है। उनका यह भी मानना था कि 'स्वराज' के फलस्वरूप होने वाले बदलाव न्याय के सिद्धान्त से निर्देशित होकर, व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों तरह की सम्भावनाओं को अवमुक्त करेंगे। इस प्रकार भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में स्वराज एक क्रान्तिकारी नारा भी है और एक व्यापक सुधारात्मक राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रम भी है।
प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों की क्या आवश्यकताएँ हैं ? स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों का निर्धारण कैसे किया जाता है ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों की आवश्यकताएँ–स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों की निम्नलिखित प्रमुख आवश्यकताएँ हैं
स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों का निर्धारण-स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों का निर्धारण कई प्रकार से किया जाता है। स्वतन्त्रता पर प्रभुत्व व बाह्य नियन्त्रण से प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। उपनिवेशवादी शासकों द्वारा ऐसे ही प्रतिबन्ध लगाए गए थे। सरकार कई बार अपनी जरूरतों के हिसाब से भी स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा देती है। इसी प्रकार सामाजिक असमानता, सामाजिक रूढ़ियाँ व मान्यताएँ भी स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध आरोपित कर देती हैं। समाज में छुआ-छूत, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष इत्यादि भेदभाव इसी प्रकार के प्रतिबन्धों पर आधारित हैं।
प्रश्न 4.
जॉन स्टुअर्ट मिल के स्वतन्त्रता सम्बन्धी 'हानि सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जॉन स्टुअर्ट मिल का स्वतन्त्रता सम्बन्धी हानि सिद्धान्त-जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक 'ऑन लिबर्टी' में स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों के अध्यारोपण की दशाओं व उद्देश्यों का विश्लेषण करते हुए जिन विचारों का प्रतिपादन किया है, उन्हें ही 'मिल' का स्वतन्त्रता सम्बन्धी 'हानि सिद्धान्त' कहते हैं। मिल ने अपने हानि सिद्धान्त में यह बताने का प्रयास किया है कि किन परिस्थितियों में स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाए जाने चाहिए और यह प्रतिबन्ध व्यक्ति के किन कार्यों पर लगाये जाने चाहिए ? मिल के हानि सिद्धान्त के अनुसार-"किसी व्यक्ति के कार्य करने की स्वतन्त्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का एकमात्र लक्ष्य आत्मरक्षा है। सभ्य समाज में किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि' से बचाना हो सकता है।" इस प्रकार मिल का हानि सिद्धान्त एक व्यक्ति के कार्यों से दूसरों को हानि पहुँचने व हानि की प्रकृति गम्भीर होने पर कानूनी व सामाजिक प्रतिबन्धों के अध्यारोपण की दशाओं का विश्लेषण करता है।
प्रश्न 5.
सकारात्मक और नकारात्मक स्वतन्त्रता में भेद (अंतर) बताइए।
उत्तर:
नकारात्मक और सकारात्मक स्वतन्त्रता में भेद (अंतर)-स्वतन्त्रता के दो प्रमुख पहलुओं को ही हम नकारात्मक और सकारात्मक स्वतन्त्रता के नाम से जानते हैं। इनमें निम्नलिखित प्रमुख भेद (अंतर) हैं-
नकारात्मक स्वतन्त्रता |
सकारात्मक स्वतन्त्रता |
1. इसके अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार व क्रियाकलापों पर किसी भी प्रतिबन्ध को स्वीकार नहीं किया जाता है। |
इसके अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार व क्रियाकलापों पर युक्तियुक्त, न्यायसंगत प्रतिबन्धों को अनिवार्य रूप से स्वीकार किया जाता है। |
2. यह प्रतिस्पर्द्धात्मक समाज की रचना को प्रोत्साहन प्रदान करती है। |
सकारात्मक स्वतन्त्रता सहयोगी व सौहार्द्रपूर्ण समाज की रचना की पोषक है। |
3. नकारात्मक स्वतन्त्रता राज्य के हस्तक्षेप को स्वीकार नही करती। |
इसमें राज्य के सकारात्मक व रचनात्मक हस्तक्षेप को स्वीकार किया जाता है। |
4. नकारात्मक स्वतन्त्रता व्यक्ति को ही सर्वाधिक महत्व देती है। |
सकारात्मक स्वतन्त्रता में व्यक्ति के साथ-साथ समाज के हितों का भी ध्यान रखा जाता हैं। |
प्रश्न 6.
'अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' के सन्दर्भ में सीमाओं और प्रतिबन्धों के औचित्य का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मानव के सर्वांगीण शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु अति महत्वपूर्ण है। व्यक्ति अपने भावों, इच्छाओं, प्रतिक्रियाओं इत्यादि का प्रदर्शन व प्रकटीकरण अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के माध्यम से ही करता है। अतः अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों के अध्यारोपण एवं सीमाओं के निर्धारण का औचित्यपूर्ण व तार्किक होना अति आवश्यक है। स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों की आदत हमें दीर्घकालिक सामाजिक विकास से वंचित करती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगते रहते हैं, जैसे सलमान रूश्दी की पुस्तक 'द सेटेनिक वर्सेस', समाज के कुछ हिस्सों में विरोध के पश्चात प्रतिबंधित कर दी गई।
इसी प्रकार 'द लास्ट टेम्पेटशन ऑफ क्राइस्ट' नामक फिल्म और 'मी नाथूराम बोलते' नामक नाटक, ओबे मेनन की 'रामायण रिटोल्ड' इत्यादि को प्रतिबन्धित कर दिया गया है। यह प्रक्रिया हमें नये विचारों से वंचित करती है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का उद्देश्य समाज में एक साथ एक ही समय पर कई प्रकार के विचारों का स्वागत करना एवं इनकी सहायता से समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान खोजना होता है। प्रतिबन्धों व सीमाओं की तार्किक श्रृंखला इस उद्देश्य को गौण कर देती है। अतः अतिविशिष्ट परिस्थितियों में ही प्रतिबन्ध व सीमाएँ औचित्यपूर्ण हैं, सामान्य परिस्थितियों में नहीं।
प्रश्न 7.
स्वतंत्रता के बारे में नेताजी सुभषचन्द्र बोस के विचारों को बताइए।
उत्तर:
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के स्वतंत्रता सम्बन्धी विचार-उन्होंने स्वतन्त्रता के सन्दर्भ में अपने विचारों को 19 अक्टूबर, 1929 ई. में लाहौर में आयोजित छात्र सम्मेलन में अध्यक्षीय भाषण के दौरान विस्तार से प्रकट किया था। इस उद्बोधन में उन्होंने स्वतन्त्रता के सन्दर्भ में अपने चिन्तन को बड़े ही ओजपूर्ण व तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि "यदि हम विचारों में क्रान्ति लाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमारे सामने एक ऐसा आदर्श होना चाहिए जो हमारे जीवन को उमंग से भर दे। यह आदर्श स्वतन्त्रता का है।" उनका यह भी मानना था कि स्वतन्त्रता एक ऐसा शब्द है, जिसके बहुत सारे अर्थ हैं। हमारे देश में भी स्वतन्त्रता की अवधारणा विकास की प्रक्रिया से गुजर रही है।
उन्होंने स्वतन्त्रता से अपना आशय स्पष्ट करते हुए कहा था कि "जो व्यक्ति और समाज की हो, अमीर और गरीब की हो, स्त्रियों और पुरुषों की हो तथा सभी लोगों और वर्गों की हो। इस स्वतन्त्रता का मतलब न केवल राजनीतिक गुलामी से मुक्ति होगा अपितु सम्पत्ति का समान बँटवारा, जातिगत अवरोधों और सामाजिक असमानताओं का अन्त तथा साम्प्रदायिकता और धार्मिक असहिष्णुता का सर्वनाश भी होगा।" इस प्रकार नेताजी के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार व्यापक सामाजिक, राजनीतिक चिन्तन व सुधारों को प्रतिबिम्बित करते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा-150 शब्द)
प्रश्न 1.
एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में 'उदारवाद' का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
'उदारवाद' पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
उदारवाद उदारवाद 18वीं-19वीं शताब्दी में उदित हुई एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में उदारवाद को सहनशीलता के मूल्य के साथ जोड़कर देखा जाता है। उदारवादी चाहे किसी व्यक्ति से असहमत हों, तब भी वे उसके विचार और विश्वास रखने तथा व्यक्त करने के अधिकार का पक्ष लेते हैं। इस प्रकार उदारवाद को सहनशीलता एवं व्यापक मानसिकता का पर्याय माना जाता है। परन्तु उदारवाद इतना भर ही नहीं है और न ही उदारवाद एकमात्र आधुनिक विचारधारा है, जो सहिष्णुता का समर्थन करती है।
आधुनिक उदारवाद की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसका केन्द्रीय चिन्तन बिन्दु 'व्यक्ति' है। उदारवाद के लिए परिवार, समाज या समुदाय जैसी इकाइयों का तब तक कोई महत्व नहीं है, जब तक व्यक्ति इन्हें महत्व न दे और ये व्यक्ति के लिए उपयोगी न हों। ऐतिहासिक रूप से उदारवाद ने मुक्त बाजार और राज्य की न्यूनतम भूमिका का पक्ष लिया है। परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उदारवादी कल्याणकारी राज्य की भूमिका को भी स्वीकार करने लगे हैं। आज उदारवाद इस बात पर बल देता है कि सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने वाले उपायों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इस प्रकार स्पष्टतया यह कहा जा सकता है कि उदारवाद एक सुनिश्चित विचारधारा नहीं अपितु मानव मस्तिष्क में स्थित व्यापक विचार मात्र है। यह देश, काल व वातावरण के अनुसार परिवर्तनशील है।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के विविध पहलुओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।'
उत्तर:
स्वतन्त्रता के विविध पहलू-स्वतन्त्रता के दो प्रमुख पहलू माने जाते हैं
नकारात्मक स्वतन्त्रता-'नकारात्मक स्वतन्त्रता' स्वतन्त्रता का वह पहलू है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रत्येक प्रकार के बाह्य प्रतिबन्धों को स्वीकार नहीं किया जाता है। सकारात्मक स्वतंत्रता-'सकारात्मक स्वतन्त्रता' स्वतन्त्रता का वह पहलू है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर अनुचित प्रतिबन्धों के स्थान पर युक्तिसंगत एवं तार्किक प्रतिबन्धों को सामाजिक एवं राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से अनिवार्य रूप से स्वीकार किया जाता है। आलोचनात्मक परीक्षण-'नकारात्मक स्वतन्त्रता' का आलोचनात्मक परीक्षण करते हुए हम पाते हैं कि यह पहलू अपने आप में तर्कसंगत व स्वीकार्य नहीं है।
व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रत्येक प्रकार के बन्धनों का अभाव होने का सीधा-सा तात्पर्य होगा, अव्यवस्था व अराजकता को जन्म। इस सन्दर्भ में स्वतन्त्रता केवल शक्तिशाली वर्गों, व्यक्तियों, शासकों के हाथ का खिलौना बन जाएगी और सामान्य व्यक्ति स्वतन्त्र होते हुए भी पराधीन व शोषित होगा। परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर सीमा से अधिक प्रतिबन्ध लगा दिये जाएँ। सकारात्मक स्वतन्त्रता का आलोचनात्मक परीक्षण करते हुए हम पाते हैं कि यह पहलू व्यक्ति को स्वतन्त्रता व विकास की परिस्थितियों की प्राप्ति को प्रोत्साहित व सुनिश्चित करता है परन्तु इसका दोष यह है कि कभी-कभी बन्धनों की अधिकता स्वतन्त्रता के अर्थ को ही नष्ट कर देती है। अतः वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दोनों ही पहलुओं के मध्य समुचित सन्तुलन का नाम ही स्वतन्त्रता है और यह अत्यन्त अपरिहार्य
प्रश्न 3.
आपके अनुसार स्वतन्त्रता व्यक्ति के सर्वांगीण विकास हेतु किस प्रकार उपयोगी है ? तार्किक उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
हमारे अनुसार 'स्वतन्त्रता' व्यक्ति के सर्वांगीण विकास हेतु कई प्रकार से उपयोगी है। स्वतन्त्रता जहाँ एक ओर मनुष्य को वास्तविक मनुष्यता के उपयोग का अवसर प्रदान करती है तो वहीं दूसरी ओर स्वतन्त्रता द्वारा ही व्यक्ति अपना मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक विकास सुनिश्चित कर पाता है। स्वतन्त्रता ही वह अवस्था एवं अधिकार है जोकि व्यक्ति को विवेकशील प्राणी बनाए रखता है। स्वतन्त्रता के अभाव में व्यक्ति मात्र यन्त्रवत् होकर रह जाता है। उसमें बुद्धि व विवेक का होना या न होना महत्वहीन हो जाता है। स्वतन्त्रता ही व्यक्ति को अपने इच्छित कार्यों को करने, इच्छित स्थान पर बसने, इच्छित उद्देश्यों की पूर्ति करने हेतु पर्याप्त स्थितियों को उपलब्ध कराती है।
उदाहरणस्वरूप-हमारे परिवार में यदि किसी निर्णय में हमारे विचारों का सम्मान होता है तो हम अपने आपको परिवार से जुड़ा हुआ मानते हैं इसके विपरीत यदि हमें केवल आदेश पालन तक सीमित कर दिया जाये तो हम कुण्ठित व उपेक्षित महसूस करते हैं। अतः इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि स्वतन्त्रता ही वह सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है जिसके चलते व्यक्ति अपने परिवार, समुदाय, राज्य में सहभागी व सक्रिय या निष्क्रिय और कुण्ठित महसूस करता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति स्वतः संचालित होने योग्य होकर भी ऐसा करने से रोक दिया जाए, पराधीनता में जकड़ दिया जाए तो या तो वह एकाकी हो जाएगा या विद्रोही। अतः स्वतन्त्रता इस दृष्टि से भी व्यक्ति के सर्वांगीण विकास हेतु अति आवश्यक अवस्था एवं अधिकार है। ..
प्रश्न 4.
"अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता व्यक्ति व समाज के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
'अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' वर्तमान लोकतांत्रिक राज्यों की महत्वपूर्ण विशेषता होने के साथ-साथ व्यक्ति व समाज के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थिति एवं प्राधिकार है। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के महत्व को निम्नलिखित आधारों पर विवेचित किया जा सकता है
(i) नवीन विचारों का उदय अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का महत्व इसलिए भी है कि इससे समाज में निरन्तर नवीन विचारों का उदय होता रहता है और किसी समस्या के समाधान में विकल्पों की उपलब्धता में भी वृद्धि होती है।
(ii) मानवीय अस्मिता व विवेक की पोषक अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मानवीय अस्मिता एवं विवेक की भी पोषक है। मानव एक विवेकशील प्राणी है और प्रत्येक मुद्दे पर अपना चिन्तन करता है। ऐसे में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता द्वारा वह अपने विचारों का प्रकटीकरण कर पाता है और उसके 'आत्म' का विकास होता है।
(iii) व्यवस्था में उथल-पुथल का समाधान-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होने से किसी भी व्यवस्था में किसी भी प्रकार की उथल-पुथल का समाधान निम्न या प्रारम्भिक स्तर पर ही हो जाता है। नागरिक किसी नीति, निर्णय या कार्यक्रम के सम्बन्ध में अपनी असन्तुष्टि प्रकट कर पाते हैं और इससे सरकार व शासकों को जनाकांक्षाओं का पता चल जाता है और वे अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए ऐसे निर्णयों, नीतियों इत्यादि को परिवर्तित कर लेते हैं। इस प्रकार व्यवस्था को स्थायित्व प्राप्त होता रहता है।
(iv) लोकतांत्रिक व्यवस्था का विकास-विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से लोकतांत्रिक व्यवस्था का विकास होता है। नागरिकों में अहिंसात्मक परिवर्तनों के प्रति लगाव उत्पन्न होता है। शासक, राजनेता व सरकार अधिक जनोभिमुख बनती है। इस प्रकार निश्चित ही 'अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' लोकतांत्रिक व्यवस्था की प्रबल पोषक है।
प्रश्न. 5.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में जॉन स्टुअर्ट मिल के विचारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
"मिल ने अभिव्यक्ति व विचार तथा वाद-विवाद की स्वतंत्रता का अपनी पुस्तक 'ऑन लिबर्टी' में बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष प्रस्तुत किया है।" कथन को विस्तार से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जॉन स्टुअर्ट मिल ने बताया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विषय अहस्तक्षेप के लघुत्तम क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बुनियादी मूल्य है और जो लोग इसे सीमित करना चाहते हैं, उनसे बचने के लिए समाज को कुछ असुविधाओं को सहन करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उन्होंने अपनी पुस्तक 'ऑन लिबर्टी' में अभिव्यक्ति व विचार तथा वाद-विवाद की स्वतंत्रता का बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें भी होनी चाहिए जिनके विचार वर्तमान परिस्थितियों में गलत या भ्रामक लगते हैं। अपने विचार के समर्थन में उन्होंने चार तर्क दिए जो निम्नलिखित हैं
(i) प्रत्येक विचार में सत्यता का तत्व-मिल का मत है कि कोई भी विचार पूर्णतः गलत नहीं होता। जो हमें गलत लगता है उसमें भी सत्यता का तत्व होता है। यदि हम गलत विचार को प्रतिबन्धित कर देंगे तो इसमें छुपे हुए सच्चाई के अंश को भी खो देंगे।
(ii) सत्य विरोधी विचारों के टकराव से उत्पन्न होता है मिल का मत है कि सत्य स्वयं में उत्पन्न नहीं होता है। यह परस्पर विरोधी विचारों के टकराव से उत्पन्न होता है। जो विचार आज हमें गलत प्रतीत होता है, वह सही तरह के विचारों के जन्म में भी सहायक हो सकता है।
(iii) विचारों के संघर्ष का सदैव महत्व-मिल का मत है कि विचारों का संघर्ष केवल अतीत में ही मूल्यवान नहीं था बल्कि इसका प्रत्येक समय में महत्व रहा है। सत्य के बारे में खतरा यह रहता है कि वह एक विचारहीन एवं रूढ़ उक्ति में परिवर्तित हो जाता है। जब हम इसे विरोधी विचार के समक्ष रखते हैं तभी इस विचार का विश्वसनीय होना सिद्ध होता है।
(iv) सत्य के बारे में निश्चित नहीं कहा जा सकता-मिल का मत है कि हम इस बात को लेकर भी निश्चित नहीं हो सकते कि जिसे हम सत्य समझते हैं वही सत्य है। कई बार जिन विचारों को किसी समय सम्पूर्ण समाज ने गलत समझा एवं उनका दमन किया था बाद में वे ही विचार सत्य पाए गए। कुछ समाज ऐसे विचारों का दमन करते हैं जो आज उन्हें अच्छे नहीं लगते हैं लेकिन ये विचार भविष्य में मूल्यवान हो सकते हैं। विचारों का दमन करने वाले समाज ऐसे सम्भावनाशील ज्ञान के लाभों से वंचित रह जाते हैं।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न. 1.
सूची I को सूची II से सुमेलित कीजिए और नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनएि
सूची I |
सूची II |
(A) जे. एस. मिल |
1. लैक्चर्स ऑन प्रिन्सिपल ऑफ पॉलिटिकल ऑब्लीगेशन |
(B) टी. एच. ग्रीन |
2. ए थ्योरी ऑफ जस्टिस |
(C) एच. जे. लास्की |
3. ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स |
(D) जॉन रॉल्स |
4. ऑन लिबर्टी |
कूट :
|
A |
B |
C |
D |
(अ) |
4 |
1 |
3 |
2 |
(ब) |
1 |
2 |
3 |
4 |
(स) |
4 |
3 |
2 |
1 |
(द) |
1 |
3 |
4 |
2 |
उत्तर:
(अ) 4,1,3,2.
प्रश्न. 2.
निम्नलिखित में से महात्मा गाँधी के स्वराज्य की अवधारणा का क्या अंग था-
(अ) स्वशासन
(ब) सर्वहित की खोज
(स) नैतिक रूप से श्रेष्ठ व्यक्ति का शासन
(द) विधि का शासन
उत्तर:
(द) विधि का शासन
प्रश्न. 3.
नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा निम्नलिखित में से किस एक पर बल देती है?
(अ) समानता
(ब) स्वायत्तता
(स) हस्तक्षेप की अनुपस्थिति
(द) पसंद की स्वतंत्रता।
उत्तर:
(स) हस्तक्षेप की अनुपस्थिति
प्रश्न. 4.
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
(1) हिंद स्वराज में महात्मा गाँधी व्यक्ति के साथ ही समाज के लिए भी, सद्जीवन की संकल्पना निरूपित करते हैं।
(2) हिंद स्वराज भारत में औपनिवेशिक राज्य के विरूद्ध महात्मा गाँधी के एक लम्बे संघर्ष के अनुभव का परिणाम था। उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/सही है, कौनसा सही नहीं है?
(अ) केवल 1
(ब) केवल 2
(स) 1 व 2 दोनों
(द) न तो 1 और न ही 2
उत्तर:
(अ) केवल 1
प्रश्न. 5.
जे. एस. मिल के अनुसार स्वतंत्रता का महत्व किस तथ्य में निहित है?
(अ) स्वार्थ सिद्धि
(ब) व्यक्तित्व का विकास
(स) समाज का उत्थान
(द) उत्तरदायी व्यक्ति की सहज आस्था की अभिव्यक्ति।
उत्तर:
(ब) व्यक्तित्व का विकास
प्रश्न. 6.
उदारवाद का मूल सिद्धांत है
(अ) सामाजिक न्याय
(ब) समानता
(स) व्यक्तिगत स्वतंत्रता
(द) राष्ट्रवाद
उत्तर:
(स) व्यक्तिगत स्वतंत्रता
प्रश्न. 7.
सकारात्मक स्वतंत्रता का अभिप्राय है
(अ) सभी प्रकार के प्रतिबन्धों का न होना
(ब) राष्ट्रीय मुक्ति
(स) औपनिवेशिक प्रशासन से स्वतंत्रता
(द) अन्यायपूर्ण प्रतिबन्धों का न होना।
उत्तर:
(द) अन्यायपूर्ण प्रतिबन्धों का न होना।
प्रश्न. 8.
हिन्द स्वराज के रचयिता कौन हैं
(अ) वी. डी. सावरकर
(ब) एम. के. गाँधी
(स) बीजी. तिलक
(द) गोपाल गोडसे।
उत्तर:
(ब) एम. के. गाँधी