Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 विकास Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है
(क) विकास
(ख) धर्म
(ग) समाज
(घ) सरकार।
उत्तर:
(क) विकास
प्रश्न 2.
केन सारो वीवा ने ओगोनी प्रान्त के लोगों के हितों की रक्षा के आन्दोलन प्रारम्भ किया
(क) सन् 1993
(ख) सन् 1992
(ग) सन् 1994
(घ) सन् 1990.
उत्तर:
(घ) सन् 1990.
प्रश्न 3.
भारत में हिमालय के वन क्षेत्र को बचाने के लिए चलाया गया आन्दोलन था
(क) चिपको आन्दोलन
(ख) वृक्ष बचाओ आन्दोलन
(ग) हिमालय सुरक्षा संघर्ष
(घ) वन विकास संघर्ष।
उत्तर:
(क) चिपको आन्दोलन
प्रश्न 4.
लोकतंत्र और विकास दोनों का सरोकार है
(क) आधुनिकीकरण से
(ख) औद्योगीकरण से
(ग) आम लोगों की बेहतरी से
(घ) तकनीकी विकास से।
उत्तर:
(ग) आम लोगों की बेहतरी से
प्रश्न 5.
सरदार सरोवर बाँध परियोजना का सम्बन्ध है
(क) नर्मदा नदी से
(ख) कावेरी नदी से
(ग) गंगा नदी से
(घ) ब्रह्मपुत्र नदी से।
उत्तर:
(क) नर्मदा नदी से
निम्न में सत्य अथवा असत्य कथन बताइए1. विकास पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहा है।
2. विकास की प्रक्रिया में केवल आर्थिक प्रगति शामिल है।
3. हिमालय के वन क्षेत्रों की रक्षा के लिए 'चिपको आन्दोलन' चलाया गया।
4. विकास की प्रक्रिया समाज व पर्यावरण दोनों को प्रभावित करती है।
उत्तर:
1. असत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. सत्य।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा 20 शब्द)
प्रश्न 1.
'विकास' शब्द अपने व्यापक अर्थ में किन बातों को प्रकट करता है ?
उत्तर:
विकास शब्द अपने व्यापक अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की उम्मीदों व स्थितियों को व्यक्त करता है।
प्रश्न 2.
कोई समाज विकास के बारे में अपनी समझ के द्वारा क्या स्पष्ट करता है ?
उत्तर:
कोई समाज विकास के बारे में अपनी समझ के द्वारा यह स्पष्ट करता है कि विकास के लिए पूर्ण रूप से उसकी दृष्टि क्या है और उसे प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है।
प्रश्न 3.
विकास शब्द के संकीर्ण अर्थ में प्रयोग किये जाने के दो उदाहरण बताइए।
उत्तर:
विकास शब्द के संकीर्ण अर्थ में प्रयोग किये जाने के दो उदाहरण हैं-
प्रश्न 4.
विकास की धारणा का तेजी से प्रसार होना कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर:
विकास की धारणा का तेजी से प्रसार होना 20वीं सदी के मध्य से होना प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 5.
20वीं सदी में नए स्वतन्त्र हुए देशों का मुकाबला विकास के मामले में किन देशों से था?
उत्तर:
विकास के मामले में 20वीं सदी में नए स्वतन्त्र हुए देशों का मुकाबला पश्चिमी यूरोप के अमीर देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका से था।
प्रश्न 6.
1950 और 1960 के दशक में जब अधिकतर एशियाई और अफ्रीकी देश स्वतन्त्र हुए तो उनके सामने विकास से सम्बन्धित सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या थे ?
अथवा
नव-स्वतंत्र हुए अविकसित या विकासशील देशों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या थीं?
उत्तर:
1950 और 1960 के दशक में जब अधिकतर एशियाई और अफ्रीकी देश स्वतन्त्र हुए तो उनके सामने सबसे महत्वपूर्ण कार्य गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी, निरक्षरता जैसी समस्याओं का समाधान करना था।
प्रश्न 7.
नए स्वतन्त्र हुए देशों में विकास के मामले में प्रारम्भिक जोर किस बात पर था ?
उत्तर:
नए स्वतन्त्र हुए देशों में विकास के मामले में आरम्भ के वर्षों में सर्वाधिक जोर आर्थिक उन्नति और समाज के आधुनिकीकरण के रूप में पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुँचने पर था।
प्रश्न 8.
विकासशील देशों ने प्रारम्भ में किन उपायों के जरिए तीव्र आर्थिक उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया था ?
उत्तर:
विकासशील देशों ने प्रारम्भ में औद्योगीकरण, कृषि और शिक्षा के आधुनिकीकरण एवं विस्तार के जरिए तीव्र आर्थिक उन्नति का लक्ष्य निर्धारित किया था।
प्रश्न 9.
विकास का जो मॉडल भारत और अन्य विकासशील देशों द्वारा अपनाया गया उसने किन बातों के बारे में पुनः सोचने के लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
विकास के भारतीय व अन्य विकासशील देशों में अपनाये गये मॉडल ने आज विकास के लक्ष्यों और प्रक्रियाओं के बारे में पुनः सोचने के लिए प्रेरित किया है।
प्रश्न 10.
विकास का पश्चिमी मॉडल विकासशील देशों के लिए महँगा क्यों साबित हुआ ?
उत्तर:
विकास का पश्चिमी मॉडल विकासशील देशों के लिए महँगा साबित हुआ क्योंकि इसमें इन देशों की वित्तीय लागत बहुत अधिक रही और वे दीर्घकालिक कर्जे से भी दब गए।
प्रश्न 11.
क्या विकास के नाम पर विस्थापित किये जाने वाले लोग हमेशा चुपचाप सब कुछ सह लेते हैं ?
उत्तर:
नहीं, विकास के नाम पर विस्थापित किये जाने वाले लोग हमेशा निष्क्रिय नहीं रहते। वे इसका विरोध भी करते हैं, जैसे 'नर्मदा बचाओ आन्दोलन' इसी प्रकार के विरोध का एक उदाहरण है।
प्रश्न 12.
विकास का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर:
विकास की वजह से अनेक देशों में पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है। विकास ने पर्यावरण प्रदूषण तथा असन्तुलन को जन्म और बढ़ावा दिया है।
प्रश्न 13.
आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है, क्यों ?
उत्तर:
वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के तीव्र औद्योगीकरण से तेज होने वाले उत्सर्जन के कारण आर्कटिक और अंटार्कटिक ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है।
प्रश्न 14.
नाइजीरिया के ओगोनी प्रान्त में केन सारो वीवा द्वारा चलाये गये आन्दोलन का क्या नाम था ?
उत्तर;
नाइजीरिया के ओगोनी प्रान्त में केन सारो वीवा द्वारा चलाये गये आन्दोलन का नाम 'मूवमेंट फॉर सरवाइबल ऑफ ओगोनी पीपल' (ओगोनी लोगों के अस्तित्व के लिए आन्दोलन) था।
प्रश्न 15.
जब विकास में आर्थिक उन्नति और संसाधनों का दुबारा वितरण साथ-साथ नहीं चलते तो किस बात की सम्भावना अधिक रहती है ?
उत्तर:
जब विकास में आर्थिक उन्नति और संसाधनों का दुबारा वितरण साथ-साथ नहीं चलते तब पहले से ही समृद्ध लोगों द्वारा लाभ पर कब्जा जमाने की सम्भावना अधिक रहती है।
प्रश्न 16.
वर्तमान में विकास को व्यापक अर्थों में किस प्रक्रिया के रूप में देखा जाने लगा है ?
उत्तर:
वर्तमान में विकास को व्यापक अर्थों में ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जाने लगा है, जो सभी लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करे।
प्रश्न 17.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (U.N.D.P.) द्वारा विकास को मापने के लिए प्रतिवर्ष कौन-सा दस्तावेज प्रकाशित किया जाता है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (U.N.D.P.) द्वारा विकास को मापने के लिए 'मानव विकास प्रतिवेदन' नामक दस्तावेज का प्रतिवर्ष प्रकाशन किया जाता है।
प्रश्न 18.
विकास के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को रोकने के लिए पर्यावरण संगठन क्या प्रयास करते हैं ?
उत्तर:
विकास के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को रोकने के लिए पर्यावरण संगठन पर्यावरण उद्देश्यों की रोशनी में सरकार की औद्योगिक एवं विकास नीतियों को बदलने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 19.
विकास से सम्बन्धित बुनियादी आवश्यकता पर आधारित दृष्टिकोण क्या है ?
उत्तर:
विकास से सम्बन्धित बुनियादी आवश्यकता पर आधारित दृष्टिकोण विकास के सम्बन्ध में वह नजरिया है जिसमें आहार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आश्रय जैसी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति पर भी बल दिया जाता है।
प्रश्न 20.
यदि किसी देश में बच्चे विद्यालय जाने के बजाय काम कर रहे हैं, तो यह विकास के मामले में किस बात का प्रतीक है?
उत्तर:
यदि किसी देश में बच्चे विद्यालय जाने की बजाय काम कर रहे हैं तो यह विकास के मामले में उस देश के पिछड़े (अविकसित) होने का प्रतीक है।
प्रश्न 21.
न्यायपूर्ण व टिकाऊ विकास के बारे में विकास के वैकल्पिक तरीकों के कौन से मुद्दे शामिल किये गये
उत्तर:
न्यायपूर्ण और टिकाऊ विकास के बारे में विकास के वैकल्पिक तरीकों में अधिकार, समानता, आजादी, न्याय और लोकतंत्र जैसे मुद्दे शामिल किये गये हैं।
प्रश्न 22.
नैसर्गिक संसाधनों पर अधिकार का मुद्दा किन लोगों द्वारा उठाया जाता है ?
उत्तर:
नैसर्गिक संसाधनों पर अधिकार का मुद्दा आदिवासी व वनवासी समुदायों द्वारा उठाया जाता है।
प्रश्न 23.
लोकतंत्र और विकास का मिलाजुला और सामान्य लक्ष्य क्या है ?
उत्तर:
लोकतंत्र और विकास का मिलाजुला और सामान्य लक्ष्य आम जनता की बेहतरी को सुनिश्चित करना है।
प्रश्न 24.
विकास का वैकल्पिक मॉडल किस सोच से दूर होने की कोशिश करता है ?
उत्तर:
विकास का वैकल्पिक मॉडल विकास की महंगी, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली और प्रौद्योगिकी से संचालित होने वाली सोच से दूर होने की कोशिश करता है।
प्रश्न 25.
वास्तविक विकास लोगों के जीवन की किस गुणवत्ता को नापे जाने पर बल देता है ?
उत्तर:
वास्तविक विकास लोगों के जीवन की गुणवत्ता को नापे जाने पर बल देता है, जो उनकी प्रसन्नता, सुख-शान्ति और बुनियादी जरूरतों के पूरा होने में झलकती है।
प्रश्न 26.
विकास का विचार हमारी किस कामना से जुड़ा है ?
उत्तर:
विकास का विचार हमारे बेहतर जीवन की कामना से जुड़ा है।
प्रश्न 27.
विकास के लक्ष्यों का अनुसरण करने के दौरान उठे मसले क्या बताते हैं ?
उत्तर:
विकास के लक्ष्यों का अनुसरण करने के दौरान उठे मसले हमें बताते हैं कि हमारे चयन का बाकी मनुष्यों और दुनिया के अन्य जीवों पर भी प्रभाव पड़ता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा 40 शब्द)
प्रश्न 1.
हम विकास के लिए कोई मार्ग कैसे चुनते हैं ?
उत्तर:
हम विकास के लिए प्रायः या तो किसी दूसरे देश में प्रयोग किए गए मॉडल का यांत्रिक रूप से पालन करने लगते हैं या पूरे समाज की भलाई और विकास की परियोजनाओं से प्रभावित लोगों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए योजना बना सकते हैं। विकास का मार्ग चुनते समय नेतागण लोगों के विरोध की परवाह न करते हुए विकास परियोजनाओं को पूरा करने का निर्णय भी कर सकते हैं या वे लोगों को साथ लेते हुए लोकतांत्रिक तरीके से भी आगे बढ़ने का मार्ग अपना सकते हैं।
प्रश्न 2.
विकास शब्द का व्यापक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
विकास शब्द अपने व्यापक अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की स्थितियों को सुनिश्चित करने वाली प्रक्रिया है। प्रत्येक समाज विकास के बारे में अपनी समझ के द्वारा यह स्पष्ट करता है कि समाज के लिए पूर्ण रूप से उसकी दृष्टि क्या है और उसे प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका क्या है। इस प्रकार अपने व्यापक अर्थ में विकास हमारे सपनों के समाज के निर्माण को सुनिश्चित करने वाली प्रक्रिया है।
प्रश्न 3.
विकास शब्द का प्रयोग संकुचित अर्थों में किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
वर्तमान में प्रायः विकास शब्द का प्रयोग आर्थिक प्रगति की दर और समाज के आधुनिकीकरण के रूप में किया जाता है। यह विकास शब्द के संकुचित अर्थों में प्रयोग को दर्शाता है। इसमें विकास को आमतौर पर पहले से निर्धारित लक्ष्यों या बाँध, उद्योग, अस्पताल जैसी परियोजनाओं को पूरा करने वाली प्रक्रिया के रूप में माना जाता है। इस प्रक्रिया में समाज के कुछ हिस्से लाभ प्राप्त करते हैं और शेष लोग अपने घर, जमीन, जीवन शैली से भी बिना किसी भरपाई के वंचित हो जाते हैं।
प्रश्न 4.
विकास की अवधारणा ने 20वीं सदी के मध्य व इसके बाद के वर्षों में किस प्रकार महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की थी?
उत्तर:
विकास की अवधारणा ने 20वीं सदी के मध्य से महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करना शुरू किया। उस समय एशिया और अफ्रीका के बहुत से देशों ने राजनीतिक आजादी हासिल की थी। अधिकतर देश कंगाल थे और उनके निवासियों का जीवन स्तर निम्न था। इनके पास शिक्षा, चिकित्सा और अन्य सुविधाओं का अभाव था। अतः ये तेजी से आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त करना चाहते थे। इसके लिए इन्होंने विकास की प्रचलित धारणा को ही अपनाना शुरू कर दिया। इस प्रकार 20वीं सदी के मध्य से विकास की धारणा ने महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करना प्रारम्भ कर दिया।
प्रश्न 5.
विकास के पश्चिमी मॉडल को बिना सोचे-समझे अपनाना विकासशील देशों के लिए किस प्रकार नुकसानदायक साबित हुआ? उदाहरण भी दें।
उत्तर:
विकास के पश्चिमी मॉडल को बिना सोचे-समझे अपनाना विकासशील देशों के लिए कई प्रकार से नुकसानदायक साबित हुआ है। इस प्रक्रिया में उनकी वित्तीय लागत बहुत महंगी रही और अनेक देश भारी कर्ज के नीचे दब गये। उदाहरण के लिए अफ्रीका अभी तक अमीर देशों से लिए गए भारी कर्जे की भरपाई कर रहा है। इन देशों में विकास के रूप में उपलब्धि लिए गए कर्जे के अनुरूप नहीं रही और गरीबी एवं रोगों ने अभी भी इन देशों का पीछा नहीं छोड़ा है।
प्रश्न 6.
विकास परियोजनाओं के नाम पर विस्थापित होने वाले लोगों के जीवन पर क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं ?
उत्तर:
विकास परियोजनाओं के नाम पर विस्थापित होने वाले लोगों के जीवन पर कई बुरे प्रभाव पड़े हैं। जब ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परम्परागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होते हैं, तो वे समाज के हाशिए पर चले जाते हैं। इनके लम्बी अवधि में अर्जित कौशल नष्ट हो जाते हैं। इनकी संस्कृति का भी विनाश हो जाता है क्योंकि जब लोग नई जगह पर जाते हैं तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवनपद्धति खो बैठते हैं। इस प्रकार विकास परियोजनाओं के नाम पर विस्थापित लोगों का पूरा जीवन तहस-नहस हो जाता है।
प्रश्न 7.
विकास के नाम पर नदियों में बनने वाले बड़े-बड़े बाँधों के समर्थन में क्या दावे किये जाते हैं ?
उत्तर:
विकास के नाम पर नदियों में बनने वाले बड़े-बड़े बांधों के समर्थन में कई लुभावने दावे किये जाते हैं। इनके समर्थकों का दावा है कि इनसे बिजली पैदा होती है। काफी बड़े इलाके में जमीन की सिंचाई करने में मदद मिलती है। अनेक शहरी और रेगिस्तानी इलाकों को पेयजल की आपूर्ति आसानी से हो जाती है। इस प्रकार बड़े-बड़े बाँधों के समर्थन में अनेक लोक लुभावने दावे किये जाते हैं लेकिन वास्तव में इनसे होने वाले नुकसान इन दावों से ज्यादा बड़े व दुखदायी हैं।
प्रश्न 8.
विकास के पर्यावरण पर प्रभाव के रूप में आजकल 'पारिस्थितिकी संकट' की बात की जा रही है, यह क्या है ?
उत्तर:
हम पृथ्वी पर अपने चारों ओर एक ऐसी प्राकृतिक व्यवस्था को देखते हैं जिसमें पौधे, वनस्पतियाँ, जीव व मानव सभी एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। इस व्यवस्था को 'पारिस्थितिकी तंत्र' का नाम दिया जाता है। इसके जरिये प्रकृति में एक सन्तुलन बना रहता है। परन्तु विकास की अंधाधुन्ध प्रक्रिया से इस तन्त्र को नुकसान पहुंच रहा है। वनों की कटाई, जल-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण इत्यादि ने पारिस्थितिकी सन्तुलन बिगाड़ दिया है। इसे ही हम 'पारिस्थितिकी संकट' के नाम से जानते हैं।
प्रश्न 9.
विकास का प्रचलित मॉडल अत्यधिक ऊर्जा खपत पर आधारित है, यह हमारे लिए किस प्रकार खतरे की बात है ?
उत्तर:
विकास का प्रचलित मॉडल अत्यधिक ऊर्जा खपत पर आधारित है। यह हमारे लिए कई प्रकार से खतरे की बात है। प्रथम खतरा यह है कि ऊर्जा जरूरत का अधिकांश भाग कोयला, खनिज तेल जैसे प्राकृतिक संसाधनों से पूरा होता है और ये संसाधन बहुत सीमित हैं। अतः आने वाली पीढ़ियों के लिए इनके समाप्त हो जाने का संकट पैदा हो गया है। इसी प्रकार दूसरा खतरा पर्यावरण क्षति का है। ऊर्जा-पूर्ति के लिए विभिन्न ईंधनों का दोहन पर्यावरण में अनेक खतरनाक गैसों को छोड़ रहा है। इससे मौसम में असमय परिवर्तन, धरती के तापमान में वृद्धि आदि जैसे भीषण खतरे पैदा हो गये हैं।
प्रश्न 10.
नाइजीरिया के ओगोनी प्रान्त में सन् 1950 के बाद से विकास के नाम पर क्या समस्या पैदा हो गयी थी ?
उत्तर:
नाइजीरिया के ओगोनी प्रान्त में सन् 1950 में तेल पाया गया। इससे वहाँ पर कच्चे तेल से प्राप्त होने वाले लाभों की बन्दरबांट प्रारम्भ हो गयी। अधिकतर तेल कम्पनियाँ वहाँ पहुँची और लोगों की जमीनें हथियाकर तेल संयंत्र लगाए। एक तरफ ये कम्पनियाँ अत्यधिक लाभ कमा रही थी तो दूसरी ओर तेल के वास्तविक मालिक स्थानीय लोगों का बेतहाशा उत्पीड़न एवं शोषण भी कर रही थीं। इस प्रकार सन् 1950 के बाद से ओगोनी प्रान्त में विकास के नाम पर स्थानीय लोगों के बुनियादी अधिकारों के हनन की समस्या पैदा हो गयी थी।
प्रश्न 11.
विकास को मापने के तरीके के रूप में 'मानव विकास सूचकांक' पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक-'संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम' द्वारा आधुनिक विश्व में विकास को मापने के एक नये तरीके की खोज की है। यह नया तरीका ही 'मानव विकास सूचकांक' के नाम से जाना जाता है। इसमें विकास को मापने के लिए साक्षरता और शैक्षिक स्तर, आयु सम्भावना, जन्म और मृत्यु दर जैसे विभिन्न सामाजिक संकेतों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार 'मानव विकास सूचकांक' विकास को व्यापक व वास्तविक अर्थों में मापने वाला महत्वपूर्ण उपकरण है।
प्रश्न 12.
विकास के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को रोकने के लिए जन्मे 'पर्यावरणवाद' का मतलब स्पष्ट करें।
अथवा
'पर्यावरणवाद' क्या है? इसका प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
पूरी दुनिया में विकास से पर्यावरण को होने वाले नुकसानों के प्रति लोगों की जागरूकता व संवेदनशीलता में वृद्धि हुई है। लोगों द्वारा आज इस सम्बन्ध में पर्यावरण के बचाने से सम्बन्धित विभिन्न विचार और तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं तथा सक्रिय विरोध के प्रयास किये जा रहे हैं। इन समस्त विचारों, तर्कों व प्रयासों को ही संयुक्त रूप में पर्यावरणवाद' की संज्ञा दी जाती है। पर्यावरणवाद का प्रमुख उद्देश्य विकास की प्रक्रिया से पर्यावरण को होने वाले नुकसानों को रोकना है।
प्रश्न 13.
विकास के बुनियादी आवश्यकता पर आधारित दृष्टिकोण' में किन-किन बातों पर बल दिया जाता है ?
उत्तर:
विकास के 'बुनियादी आवश्यकता पर आधारित दृष्टिकोण' में प्रमुख रूप से जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति को सुनिश्चित करने वाली बातें शामिल हैं। इसमें यह माना जाता है कि विकास की प्रक्रिया में लोगों की आहार, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि जैसी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति होनी चाहिए। इसमें 'रोटी, कपड़ा, मकान', 'गरीबी हटाओ', 'बिजली, सड़क, पानी' जैसे लोकप्रिय नारे भी शामिल हैं जो यह दर्शाते हैं कि बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के बगैर किसी व्यक्ति के लिए गरिमामय जीवन गुजारना और अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना असम्भव है।
प्रश्न 14.
विकास के सम्बन्ध में लोकतांत्रिक सहभागिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
विकास के सम्बन्ध में आज यह दावा किया जाने लगा है कि विभिन्न विकास परियोजनाओं पर निर्णय से पहले इनसे प्रभावित होने वाले लोगों की राय भी ली जाये। उनके मत व हितों का ध्यान रखा जाए। इसे ही विकास के सम्बन्ध में लोकतांत्रिक सहभागिता' की संज्ञा दी जाती है। इस स्थिति में विकास को ऐसी प्रक्रिया बनाने का प्रयास किया जाता है जिसमें प्रभावित लोग भी शामिल हों तथा सभी के हितों का समान संरक्षण हो।
प्रश्न 15.
विकास के लिए वर्तमान में वैकल्पिक मॉडलों की तलाश की जा रही है। यह वैकल्पिक मॉडल विकास में किन बातों को शामिल करने पर बल देता है ?
उत्तर:
विकास के लिए वर्तमान में वैकल्पिक मॉडलों की तलाश की जा रही है। यह वैकल्पिक मॉडल विकास की महंगी, पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली और मशीनी सोच से दूर होने की कोशिश करता है। इसका मानना है कि विकास को देश में मोबाइल फोनों की संख्या, आधुनिक हथियारों के निर्माण इत्यादि से नहीं बल्कि लोगों के जीवन की उस गुणवत्ता से नापा जाना चाहिए जो उनकी प्रसन्नता, सुख-शान्ति और बुनियादी जरूरतों के पूरा होने में झलकती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा 100 शब्द)
प्रश्न 1.
"किसी समाज में विकास से जुड़ी बातें तय करना ठीक वैसे ही है, जैसे छात्रों के लिए एक पत्रिका के सम्पादन की बातें तय करना" -विवेचना करें।
उत्तर:
किसी समाज में विकास से जुड़ी बातों को तय करना अत्यधिक जटिल मामला है। यह ठीक वैसे ही प्रतीत होता है जैसे किसी कक्षा के छात्रों को पत्रिका के सम्पादन का पूरा दायित्व सौंप दिया जाए। इस कार्य में छात्रों को लेखन से लेकर सम्पादन तक अनेक बातें स्वयं तय करनी पड़ती हैं। ऐसे में कई प्रकार से कार्यों का वितरण करके एक पत्रिका तैयार की जाती है। ठीक इसी प्रकार समाज में विकास के पैमाने तय करना भी एक जटिल कार्य होता है। इसमें समाज को सबसे पहले यह सोचना होता है कि वे भविष्य में किस रूप में दिखना चाहते हैं।
वे अपने सदस्यों को किस तरह का जीवन देना चाहते हैं इत्यादि। इन बातों के निर्धारण के बाद दूसरी समस्या यह आती है कि इनकी पूर्ति के लिए कौन-सा तरीका अपनाया जाये। यह तरीका चुनते समय अक्सर हम पहले से प्रचलित मॉडलों का पालन करने लगते हैं या फिर अपनी परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप एक नये तरीके को अपनाते हैं। परन्तु दोनों ही स्थितियों में विकास की प्रक्रिया और इसके लाभों का जो आकलन किया गया था उसमें कई बार भेद बना रहता है। इसी कारण यह कार्य ठीक वैसा हो प्रतीत होता है जैसा अनभिज्ञ छात्रों द्वारा एक पत्रिका का सम्पादन कार्य करना।
प्रश्न 2.
20वीं सदी में नये स्वतन्त्र हुए देशों के सामने विकास की कौन-कौन सी चुनौतियाँ मौजूद थीं? बताइए।
उत्तर:
20वीं सदी में सन् 1950 के बाद से अनेक देशों को औपनिवेशिक शासन से स्वतन्त्रता का सिलसिला प्रारम्भ हुआ। इन देशो के सामने विकास के मामले में निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियाँ मौजूद थीं
(i) गरीबी एवं कुपोषण-यह देश उपनिवेश बने रहने के कारण अत्यधिक गरीब हो चुके थे। जनता की आर्थिक स्थिति भी दयनीय थी। लोगों को भरपेट भोजन तक उपलब्ध नहीं था। ऐसे में इन देशों के सामने विकास के मामले में गरीबी और कुपोषण से छुटकारा पाना एक बड़ी चुनौती थी।
(ii) अशिक्षा एवं बेकारी-इन देशों में उपनिवेशीय शासन के दौरान शिक्षा का प्रसार भी अच्छी प्रकार से नहीं हो पाया था। फलस्वरूप समाज में अधिकांश लोग अशिक्षित थे। वे पढ़ना, लिखना तक नहीं जानते थे। ये लोग बेकारी की समस्या से भी जूझ रहे थे। ऐसे में इन देशों के सामने यह चुनौती थी कि वे विकास की प्रक्रिया में इस अशिक्षा व बेकारी को भी दूर करें।
(iii) तीव्र आर्थिक विकास–जब ये देश स्वतन्त्र हुए तब इनके सरकारी खजाने खाली थे। ऐसे में बड़े शासन व प्रशासन को चलाने में अनेक समस्याएँ आ रही थीं। इसका एकमात्र उपाय तीव्रगति से आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त करना ही भा। अत: इन देशों के सामने अनेक बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त करने की भी चुनौती थी।
प्रश्न 3.
भारत में विकास के लिए अपनाये गये कार्यक्रम 'पंचवर्षीय योजना' पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
पंचवर्षीय योजना -भारत में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद 1950 के दशक से विकास के लिए एक सुनियोजित कार्यक्रम के रूप में पंचवर्षीय योजना' की शुरूआत की गयी। यह योजना कभी न रुकने वाला कार्यक्रम है और इनमें नदियों पर बाँधों, देश के विभिन्न हिस्सों में इस्पात संयंत्रों की स्थापना, खनन, उर्वरक उत्पादन और कृषि तकनीकों में सुधार जैसी अनेक व्यापक परियोजनाओं को शामिल किया गया। इन पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से यह उम्मीद की गई कि यह बहुपक्षीय रणनीति आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा प्रभावकारी होगी जिससे देश की आर्थिक सम्पदा में बढ़ोत्तरी होगी।
पंचवर्षीय योजनाओं से यह उम्मीद भी की गई थी कि देश की सम्पदा में बढ़ोत्तरी से आने वाली सम्पन्नता धीरे-धीरे समाज के सबसे गरीब वर्ग तक पहुँच जायेगी और यह असमानता को कम करने में सहायक सिद्ध होगी। वास्तव में देखा जाए तो भारत में विकास की प्रक्रिया में पंचवर्षीय योजनाओं से आर्थिक सम्पन्नता और आधारभूत संरचनाओं (सड़कों, नहरों, बाँधों इत्यादि) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। परन्तु वहीं दूसरी ओर गरीब और अमीर के बीच अन्तर कम होने की बजाय और बढ़ा है। समाज में आर्थिक असमानता की गहरी खाई उत्पन्न हुई है। अतः पंचवर्षीय योजनाएँ अपनी ही उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पायी हैं।
प्रश्न 4.
विकास की समाज को क्या कीमत चुकानी प. है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
विकास की जिस प्रचलित प्रक्रिया को विभिन्न देशों में अपनाया गया है उसकी समाजों को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। इस प्रक्रिया में समाज के नैतिक पतन, प्रतिद्वन्द्विता इत्यादि में वृद्धि हुई है। इसी प्रकार बड़े-बड़े बाँधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और खनन कार्यों की वजह से बड़ी संख्या में लोगों को उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापित होना पड़ा।
इस विस्थापन का परिणाम उन्हें अपनी रोजी-रोटी खोने व दरिद्रता में वृद्धि के रूप में भुगतना पड़ा। इस प्रक्रिया में ग्रामीण खेतिहर समुदायों को अपने परम्परागत क्षेत्र व पेशे से दूर जाना पड़ा।
इस कारण ये लोग समाज में सबसे पीछे चले गए। बाद में रोजी-रोटी के संघर्ष में ये लोग शहरी और ग्रामीण गरीबों की विशाल आबादी में शामिल हो गये। इसके फलस्वरूप इनके लम्बी अवधि में अर्जित परम्परागत कौशल नष्ट हो गये। इससे इनकी संस्कृति का भी विनाश हुआ है। इन विस्थापनों ने समाज में असमानता और अनेक संघर्षों को भी जन्म दिया है। कई बार ये संघर्ष हिंसक भी हो जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि विकास की समाज को भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
प्रश्न 5.
विकास की प्रक्रिया से पर्यावरण को होने वाले नुकसानों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
विकास की प्रक्रिया से अधिकांश देशों में पर्यावरण को निम्नलिखित नुकसान पहुंचे हैं
(i) प्रदूषण में वृद्धि विकास की प्रक्रिया ने बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना पर बल दिया। इसी के साथ नयी-नयी तकनीकों और सुख-सुविधा के साधनों (जैसे-मोटरसाइकिल, कार आदि) का विकास हुआ। इनसे अनेक प्रकार के प्रदूषण बढ़े हैं। उद्योगों से निकलने वाला जहरीला धुआँ वायु को प्रदूषित करता है तो इनसे निकलने वाला जहरीला पानी, भूमि एवं जल दोनों को प्रदूषित करता है। इसी प्रकार गाड़ियों से निकलने वाला धुआँ भी वायु को प्रदूषित करता है। नई तकनीक पर आधारित उपकरण ध्वनि प्रदूषण को भी बढ़ाते हैं। इस प्रकार विकास की प्रक्रिया ने भूमि, जल व वायु जैसे बुनियादी संसाधनों को प्रदूषित किया है।
(ii) वर्षा व मौसम चक्र पर दुष्प्रभाव विकास के नाम पर वनों की अंधाधुन्ध कटाई की गयी। इसके फलस्वरूप विभिन्न देशों में वर्षा व मौसम का चक्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसने कई प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान व खतरे को भी बढ़ाया है।
(iii) पृथ्वी के तापमान में वृद्धि विकास के नाम पर बड़े-बड़े उद्योगों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला, खनिज तेल इत्यादि संसाधनों का दोहन किया गया। इससे निकलने वाली गैसों व तापमान ने पृथ्वी के तापमान में वृद्धि करना प्रारम्भ कर दिया है। यह भी विकास या पर्यावरण को पहुँचाया गया एक बड़ा नुकसान है।
प्रश्न 6.
विकास को केवल आर्थिक उन्नति के सूचकांक की दर के जरिए मापना पर्याप्त नहीं है, इसके लिए नये वैकल्पिक तरीके खोजने की आवश्यकता है इस कथन के आलोक में 'मानव विकास सूचकांक' की विवेचना करें।
उत्तर:
जब हम विकास को ऐसी प्रक्रिया मानते हैं जिसमें लोगों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि हो तो हमें इसके लिए विकास के मापने वाले नये तरीकों को खोजना होता है। इस सन्दर्भ में केवल आर्थिक सम्पन्नता को मापना पर्याप्त नहीं है। अतः विकास को इस सम्बन्ध में मापने के वैकल्पिक तरीकों की खोज आवश्यक हो जाती है। इसी खोज के रूप में एक महत्वपूर्ण प्रयास 'मानव विकास सूचकांक' है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा इसका प्रतिवर्ष प्रकाशन किया जाता है।
इस सूचकांक में साक्षरता और शैक्षिक स्तर, आयु सम्भावना और मृत्यु दर जैसे विभिन्न सामाजिक संकेतों के आधार पर देशों में विकास का मूल्यांकन किया जाता है। इसके अन्तर्गत यह माना जाता है कि विकास की ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए, जो अधिकाधिक लोगों को उनके जीवन में अर्थपूर्ण तरीके से विकल्पों को चुनने की अनुमति दे। इसमें बुनियादी जरूरतों की पूर्ति को विकास की अनिवार्य शर्त माना जाता है। इसमें यह भी माना जाता है कि यदि किसी देश में लोग भोजन के अभाव में भूख से मरते हैं, बच्चे स्कूल जाने की बजाय काम करते हैं, तो यह उसके अविकसित व पिछड़े होने का सूचक है।
प्रश्न 7.
विकास की वैकल्पिक धारणा की आवश्यकता क्यों महसूस की जा रही है ? विवेचना करें।
उत्तर:
विकास के वर्तमान मॉडल के क्रियान्वयन के लिए मानव और पर्यावरण, दोनों की दृष्टि से हमें भारी कीमत चुकानी पड़ी है। विकास की नीतियों के कारण जो कीमत चुकानी पड़ी है उसका और विकास के लाभों का वितरण भी लोगों के बीच असमान रूप से हुआ है। अधिकतर देशों में विकास की 'ऊपर से नीचे की रणनीतियाँ अपनाई गई हैं अर्थात् विकास की प्राथमिकताओं व रणनीतियों का चयन और परियोजनाओं के वास्तविक क्रियान्वयन के सभी फैसले आमतौर पर राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही के उच्चतर स्तरों पर होते हैं।
जिन लोगों के जीवन पर विकास योजनाओं का तत्काल असर पड़ता है, आमतौर पर उनसे बिल्कुल भी सलाह नहीं ली जाती। न तो सदियों से हासिल उनके अनुभवों और ज्ञान का उपयोग किया जाता है, न ही उनके हितों का ध्यान रखा जाता है। यह लोकतांत्रिक देशों तथा तानाशाही एवं साम्यवादी देशों सभी के लिए समान रूप से सत्य है। अतः इन्हीं कारणों से विकास की वैकल्पिक धारणा की आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि समाज में समानता व भाईचारे को बढ़ाया जा सके।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा 150 शब्द)
प्रश्न 1.
विकास से सम्बन्धित 'पर्यावरणवाद की धारणा' को विस्तारपूर्वक समझाइए।
अथवा
"विकास तथा पर्यावरण एक सिक्के के दो पहलू हैं" इस कथन के सन्दर्भ में पर्यावरणवाद पर टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
विकास और पर्यावरणवाद–विकास के वर्तमान प्रतिमान ने पर्यावरण के सामने कई खतरे पैदा कर दिये हैं। इन खतरों को टालने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा से सम्बन्धित अनेक तर्कों व विचारों का आगमन हुआ। इन्हें संयुक्त रूप से पर्यावरणवाद' की संज्ञा दी जाती है। हम अक्सर प्रदूषण, अवशिष्ट प्रबन्धन, टिकाऊ विकास, दुर्लभ प्राणियों का संरक्षण और भूमण्डलीय ताप वृद्धि जैसे शब्द अक्सर सुनते रहते हैं। ये पर्यावरणवाद से ही जुड़े प्रमुख शब्द हैं। यह प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने में कारगर होते हैं।
पर्यावरणवादियों का मानना है कि "मानव को पारिस्थितिकी के साथ अनुकूलन करते हुए जीना सीखना चाहिए और पर्यावरण में अपने तात्कालिक हितों के लिए छेड़छाड़ करना बन्द करना चाहिए।" पर्यावरणवाद में यह माना जाता है कि पृथ्वी का इस सीमा तक उपभोग किया जा रहा है और प्राकृतिक साधनों को इस तरह नष्ट किया जा रहा है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल उजाड़ धरती, जहरीली नदियों और प्रदूषित हवा ही छोड़कर जायेंगे। इस प्रकार पर्यावरणवाद की जड़ें औद्योगीकरण के खिलाफ 19वीं सदी में विकसित हुए विद्रोह के रूप में देखी जा सकती हैं।
वर्तमान में पर्यावरणवाद एक विश्वव्यापी मामला बन गया है और इसके गवाह दुनियाभर में फैले वे हजारों गैर सरकारी संगठन और बहुत सी 'ग्रीन' पार्टियाँ इत्यादि हैं जो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहे हैं और आज भी इनका संघर्ष जारी है। इस तरह के कुछ जाने माने पर्यावरण संगठनों में 'ग्रीनपीस' और वर्ल्ड वाइल्ड-लाइफ फंड का उल्लेख किया जा सकता वास्तव में पर्यावरणवाद के अन्तर्गत काम करने वाले ये समूह पर्यावरण को सुरक्षित करने के उद्देश्यों की रोशनी में सरकार की औद्योगिक एवं विकास नीतियों को बदलने के लिए दबाव डालने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार पर्यावरणवाद आज विकास से पर्यावरण की सुरक्षा का प्रबल प्रतीक बन गया है।
प्रश्न 2.
लोकतांत्रिक सहभागिता क्या है ? विकास के सम्बन्ध में लोकतांत्रिक सहभागिता की आवश्यकता और महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लोकतांत्रिक सहभागिता–लोकतांत्रिक सहभागिता वह स्थिति है जिसमें सरकारी निर्णयों और नीतियों के निर्धारण व क्रियान्वयन में जनता की उम्मीदों का ध्यान रखा जाए तथा कोई भी निर्णय करने से पहले प्रभावित लोगों की राय जानकर इसे महत्व भी दिया जाए। विकास के मामले में लोकतांत्रिक सहभागिता विभिन्न परियोजनाओं के प्रारम्भ से पहले उससे प्रभावित होने वाले लोगों की राय लेने को प्रदर्शित करती है। विकास के सम्बन्ध में लोकतांत्रिक सहभागिता की आवश्यकता एवं महत्व-आज हमें विकास की प्रक्रिया से होने वाले नुकसानों विशेषकर सामाजिक नुकसानों को कम करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है।
इस जरूरत की पूर्ति हम लोकतांत्रिक सहभागिता द्वारा कर सकते हैं। यदि हमें एक बेहतर और समतामूलक समाज का निर्माण करना है तो विकास की प्रक्रिया में प्रत्येक व्यक्ति की साझेदारी को अनिवार्य रूप से सुनिश्चित करना होगा। दूसरे की बनाई योजना का अनुसरण करने और अपनी योजना तैयार करके उसमें भागीदार होने में बड़ा अन्तर होता है। जब हमें मजबूरन राज्य की बनाई योजनाओं का पालन करना पड़ता है तो हमारे मन में द्वेष, निराशा और अनेक प्रकार की शिकायतें गहरी पैठ बना लेती हैं। वहीं यदि हमें इनमें सहभागी होकर अपने हितों के अनुरूप इन्हें बनवाने व लागू करने का मौका मिले तो हम उत्साह और पूरी तन्मयता से इनका पालन करते हैं।
इस प्रकार निर्णय-प्रक्रिया में भागीदारी हमें अधिकार सम्पन्न बनाती है। इस प्रकार लोकतांत्रिक सहभागिता की विकास के मामले में बहुत अधिक आवश्यकता एवं अत्यधिक महत्व स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है। यह तरीका अपनाकर हम विकास की प्रक्रिया से होने वाले विविध सामाजिक नुकसानों को न्यूनतम कर सकते हैं और साथ ही साथ हम विकास की प्रक्रिया के लाभों को समाज के हर वर्ग तक समान रूप से पहुँचा सकते हैं। वास्तव में लोकतांत्रिक सहभागिता हमें विकास और समानता के साथ-साथ बनाए रखने का बहुमूल्य अवसर उपलब्ध करा सकती है। लोकतांत्रिक सहभागिता आज के विकास के दुष्परिणामों को देखते हुए हमारे राज्य तथा समाज की अनिवार्य और महत्वपूर्ण आवश्यकता प्रतीत होती है।
प्रश्न 3.
विकास का हमारी जीवन-शैली से क्या सम्बन्ध है ? हम उचित विकास के लिए जीवन-शैली में क्या महत्वपूर्ण परिवर्तन कर सकते हैं ?
उत्तर:
विकास का हमारी जीवन-शैली से सम्बन्ध विकास का हमारी जीवन-शैली से गहरा सम्बन्ध होता है। विकास की प्रक्रिया में हम जिस पायदान पर होते हैं उसी के अनुपात में हमारी जीवन-शैली में उल्लेखनीय परिवर्तन आते हैं। हम दैनिक जीवन में अधिकतर ऐसी चीजों का प्रयोग करने लगे हैं जो विकास के कारण हमारे सामने आयी हैं। उदाहरण के लिए हम आज बाजार से सामग्री लाने में प्रचुर मात्रा में पॉलीथीन का प्रयोग करने लगे हैं जबकि आज से 20-30 वर्ष पूर्व इसी कार्य के लिए कपड़े का थैला या कागज के लिफाफे प्रयोग किये जाते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विकास का सम्बन्ध हमारी जीवन-शैली से भी उतना ही है जितना कि देश की आर्थिक सम्पन्नता के लिए।
उचित विकास के लिए जीवन-शैली में किये जा सकने वाले परिवर्तन विकास का व्यापक अर्थ हमें यह बताता है कि विकास में लोगों के जीवन की वह गुणवत्ता नापी जानी चाहिए जो उनकी प्रसन्नता, सुख-शान्ति और बुनियादी जरूरतों के पूरा होने में झलकती है। अतः हमें एक स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। हमें इसके लिए वर्षा जल-संचयन, सौर एवं जैव गैस संयंत्र, लघु पनबिजली परियोजना, जैव कचरे से कम्पोस्ट खाद बनाने जैसे कार्यों में अधिक से अधिक लोगों को संलग्न करने की आवश्यकता है।
हम अपने जीवन स्तर को बदलकर उन साधनों की आवश्यकताओं को भी कम कर सकते हैं जिनका भण्डार सीमित है और इन्हें पुनः उत्पन्न नहीं किया जा सकता। यद्यपि यह एक जटिल मसला है, क्योंकि लोगों को ऐसा लग सकता है कि उनकी व्यक्तिगत आजादी को छीना जा रहा है, फिर भी यह जरूरी है। मसलन हम पानी की बर्बादी कम से कम करें, बिजली बचाएँ, कागजों की बर्बादी न करें, आवागमन के लिए अपने निजी वाहनों का कम से कम प्रयोग करें तो निश्चित तौर पर विकास से होने वाले नुकसानों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इस प्रकार हम अपनी जीवन-शैली में परिवर्तन करके विकास को उचित स्वरूप प्रदान कर सकते हैं।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जलवायु परिवर्तन का कारण है
(अ) ग्रीन हाउस गैसें
(ब) ओजोन परत का क्षरण
(ब) प्रदूषण
(द) ये सभी।
उत्तर:
(द) ये सभी।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित लक्षणों में से कौन मानवीय विकास का माप नहीं है?
(अ) साक्षरता
(ब) जीवन प्रत्याशा
(स) प्रति व्यक्ति आय
(द) उपभोक्ता व्यय।
उत्तर:
(द) उपभोक्ता व्यय।
प्रश्न 3.
एक प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक उन्नयन का महत्वपूर्ण सूचक है
(अ) महिला साक्षरता
(ब) प्रति व्यक्ति आय
(स) निम्नस्थ मृत्यु दर
(द) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 4.
मानव संसाधन का विकास मुख्य रूप से आवश्यक है, क्योंकि लोग
(अ) अधिक पारिश्रमिक पा सकते हैं.
(ब) उनके कार्य के लिए प्रवसन कर सकते हैं
(स) छोटे परिवार के मानक को अपना सकते हैं
(द) प्राकृतिक संसाधनों को विकसित कर सकते हैं।
उत्तर:
(द) प्राकृतिक संसाधनों को विकसित कर सकते हैं।