Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 10 संविधान का राजनीतिक दर्शन दस्तावेज़ Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के दर्शन का मुख्य तत्व है
(क) सामाजिक न्याय
(ख) धर्म निरपेक्षता
(ग) उदारवाद
(घ) उक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उक्त सभी।
प्रश्न 2.
किस संवैधानिक संशोधन द्वारा 'धर्म निरपेक्ष' शब्द भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया ?
(क) 42वाँ संविधान संशोधन
(ख) 52वाँ संविधान संशोधन
(ग) 73वाँ संविधान संशोधन
(घ) 86वाँ संविधान संशोधन।
उत्तर:
(क) 42वाँ संविधान संशोधन
प्रश्न 3.
अनुच्छेद 371 द्वारा विशेष दर्जा प्रदान किया गया
(क) जम्मू-कश्मीर राज्य को
(ख) नागालैण्ड को
(ग) उत्तराखण्ड को
(घ) राजस्थान को।
उत्तर:
(ख) नागालैण्ड को
प्रश्न 4.
निम्नांकित में धर्म निरपेक्ष राज्य का अभिप्राय है
(क) राज्य द्वारा धर्म का विरोध किया जाता है
(ख) ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जाता
(ग) राज्य विभिन्न धर्मों में किसी के साथ पक्षपात न करे
(घ) राज्य व्यक्तियों को नास्तिक बनने हेतु प्रोत्साहित करे।
उत्तर:
(ग) राज्य विभिन्न धर्मों में किसी के साथ पक्षपात न करे
प्रश्न 5.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जिस प्रकार के न्याय की बात की गयी है वह है
(क) सामाजिक
(ख) आर्थिक
(ग) राजनीतिक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न-रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) हमारा संविधान ................ के लिए प्रतिबद्ध है।
(ii) ................ को अपनी शिक्षा संस्था स्थापित करने और चलाने का अधिकार है।
(iii) ................ में समस्त भारतीय जनता की एक राष्ट्रीय पहचान पर निरन्तर जोर दिया गया है।
(iv) ............ हर तरह से पूर्ण और त्रुटिहीन दस्तावेज है।
उत्तर:
(i) व्यक्ति की स्वतंत्रता
(ii) धार्मिक समुदाय
(iii) संविधान
(iv) भारत का संविधान।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (शब्द सीमा-20 शब्द)
प्रश्न 1.
संविधान के अंतर्निहित नैतिक तत्वों को जानने और उनके मूल्यांकन के लिए किस प्रकार के दर्शन का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है ?
उत्तर:
संविधान के अंतर्निहित तत्वों को जानने और उनके दावे के मूल्यांकन के लिए संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
प्रश्न 2.
संविधान किन-किन चीजों से मिलकर बनता है? इसके प्रति कौनसा नजरिया रखना चाहिए?
उत्तर:
संविधान कानूनों आदर्श विचारों और नैतिक मूल्यों से मिलकर बनता है। इसके प्रति कानूनी नजरिया रखना चाहिए।
प्रश्न 3.
देश का सर्वोच्च कानून किसमें निहित है? क्या हम कानून की अवहेलना कर सकते हैं?
उत्तर:
देश का सर्वोच्च कानून संविधान में निहित है। हम कानूनों की अवहेलना नहीं कर सकते क्योंकि कानूनों का संरक्षण न्यायालयों द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 4.
संविधान को अंगीकार करने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
संविधान को अंगीकार करने का सबसे बड़ा कारण है-सत्ता को निरंकुश होने से रोकना।
प्रश्न 5.
संविधान किस प्रकार के लोगों के लिए राजनीतिक आत्म-निर्णय का उद्घोष है ?
उत्तर:
औपनिवेशिक दासता में रह रहे लोगों के लिए संविधान राजनीतिक आत्म-निर्णय का उद्घोष है।
प्रश्न 6.
संविधान सभा के बारे में पं. जवाहर लाल नेहरू का क्या कथन था ?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू का कथन था कि संविधान सभा की माँग पूर्ण आत्म-निर्णय की सामूहिक मांग का प्रतिरूप है।
प्रश्न 7.
जापान के संविधान का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
'1947 ई. में।
प्रश्न 8.
शांति संविधान किस देश के संविधान को कहा जाता है? उत्तर-जापान के संविधान को शांति संविधान कहा जाता है।
प्रश्न 9.
जापान के संविधान का दर्शन किस पर आधारित है?
उत्तर:
जापान के संविधान का दर्शन शांति पर आधारित है।
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान का राजनीतिक दर्शन क्या है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान का राजनीतिक दर्शन है-स्वतन्त्रता, समानता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति प्रतिबद्धता।
प्रश्न 11.
संविधान में किस बुनियादी बात पर बल दिया जाता है ?
उत्तर:
संविधान में इस बात पर बल दिया जाता है कि उसके दर्शन पर शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीके से अमल किया जाये।
प्रश्न 12.
किस महापुरुष ने प्रेस की स्वतन्त्रता पर लगाये जा रहे प्रतिबन्धों का विरोध किया ?
उत्तर:
राजा राममोहन राय ने प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाये जा रहे प्रतिबन्धों का विरोध किया।
प्रश्न 13.
अंग्रेजों के किस कुख्यात एक्ट ने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अपहरण का प्रयास किया था ?
उत्तर:
ब्रिटिश शासन के दौरान कुख्यात रौलेट एक्ट ने हमारी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अपहरण का प्रयास किया था।
प्रश्न 14.
रौलेट एक्ट का विरोध किस प्रकार किया गया ?
उत्तर:
रौलेट एक्ट के विरुद्ध राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम ने जम कर लोहा लिया और लम्बे संघर्ष के परिणामस्वरूप इससे मुक्ति प्राप्त हुई।
प्रश्न 15.
भारतीय संविधान का चरित्र किस बुनियाद पर प्रतिष्ठित है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान का चरित्र मजबूत उदारवादी बुनियाद पर प्रतिष्ठित है।
प्रश्न 16.
हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण क्या है ?
उत्तर:
हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है, इसका सर्वोत्तम उदाहरण अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान है।
प्रश्न 17.
भारतीय उदारवाद की दो धाराएँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
भारतीय उदारवाद की पहली धारा व्यक्ति के अधिकारों विशेषकर महिलाओं के अधिकारों पर बल तथा दूसरी धारा सामाजिक न्याय की स्थापना एवं पुनर्जागरण है। .
प्रश्न 18.
अल्पसंख्यकों के अधिकारों के सम्मान के लिए भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था की गयी?
उत्तर:
भारतीय संविधान में इस बात पर बल दिया गया कि कोई समुदाय दूसरे समुदाय पर प्रभुत्व न जमाए। अल्पसंख्यकों के अधिकारों के सम्मान के लिये उन्हें अपने शिक्षण संस्थान स्थापित करने का अधिकार दिया गया।
प्रश्न 19.
पारस्परिक निषेध शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
पारस्परिक निषेध का अर्थ है-धर्म और राज्य दोनों एक-दूसरे के आंतरिक मामलों से दूर रहेंगे। धर्म और राज्य परस्पर एक-दूसरे से अलग होने चाहिए।
प्रश्न 20.
धर्म और राज्य को अलग रखने की मुख्य धारा के इस नजरिये का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
धर्म और राज्य को एक-दूसरे से अलग रखने के इस नजरिए का उद्देश्य है व्यक्ति की स्वतन्त्रता की सुरक्षा।
प्रश्न 21.
राज्य के लिए धर्म से सम्मानजनक दूरी बनाए रखना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
यदि राज्य जैसी शक्तिशाली संस्था धार्मिक संगठनों को यह बताने लगे कि उन्हें अपना कार्य कैसे करना चाहिए तो उनकी धार्मिक स्वतन्त्रता बाधित होती है। इसलिए राज्य को चाहिए कि न तो वह धर्म की मदद करे और न उनके कार्यों में बाधा पहुँचाए।
प्रश्न 22.
धर्म और राज्य के बीच गठबंधन को तोड़ना क्यों आवश्यक था ?
उत्तर:
विविधता भरे समाज में धार्मिक असमानता से बचने के लिए धर्म और राज्य के बीच गठबंधन को तोड़ना आवश्यक था। राज्य को प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म का हो।
प्रश्न 23.
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों को अपने शिक्षा संस्थानों को स्थापित करने और चलाने का अधिकार किस लिए प्रदान किया गया ?
उत्तर:
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार इसलिए प्रदान किया गया कि इन समुदायों में आजादी, आत्म सम्मान और समानता का भाव उत्पन्न हो सके।
प्रश्न 24.
संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य-योजना कब प्रारम्भ हुई।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य योजना सन् 1964 के नागरिक अधिकार आंदोलन के बाद प्रारम्भ हुई।
प्रश्न 25.
भारतीय संविधान के समूहगत अधिकार से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान के समूहगत अधिकार से तात्पर्य, सांस्कृतिक विशिष्टता की अभिव्यक्ति के अधिकार से है। इसे बहु-संस्कृतिवाद के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 26.
अनौपचारिक रूप से संविधान तैयार करने का पहला प्रयास कब हुआ?
उत्तर:
अनौपचारिक रूप से संविधान तैयार करने का पहला प्रयास कांस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया बिल' के नाम से सन् 1895 में हुआ।
प्रश्न 27.
अमेरिकी संघवाद की संवैधानिक बनावट कैसी है?
उत्तर:
अमेरिकी संघवाद की संवैधानिक बनावट समतोल है।
प्रश्न 28.
भारतीय संघवाद की संवैधानिक बनावट कैसी है?
उत्तर:
भारतीय संघवाद की संवैधानिक बनावट असमतोल है।
प्रश्न 29.
धर्म के आधार पर पृथक निर्वाचन मंडल बनाने की बात भारतीय संविधान में क्यों नकार दी गई।
उत्तर:
भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर पृथक निर्वाचन मण्डल बनाने की बात इसलिए नकार दी गई कि इससे राष्ट्रीय जीवन की सहजता में बाधा पहुँच सकती थी।
प्रश्न 30.
भारतीय संविधान की तीन प्रमुख आलोचनाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 31.
आज देश के कोने-कोने पर हाथ में संविधान लिए अंबेडकर की प्रतिमा क्या संकेत करती है ?
उत्तर:
यह प्रतिमा डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति महज सांकेतिक शृद्धांजलि न होकर दलितों की इस भावना को व्यक्त करती है कि संविधान में उनकी अनेक आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति हुई है।
प्रश्न 32.
हम किस आधार पर कह सकते हैं कि भारतीय संविधान विदेशी संविधानों की नकल नहीं है ?
उत्तर:
हमारे संविधान में परम्परागत भारतीय और पश्चिमी मूल्यों का स्वस्थ मेल है। अत: हमारा संविधान सचेत चयन और अनुकूलन का परिणाम है न कि पश्चिमी संविधानों की नकल।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-40 शब्द)
प्रश्न 1.
संविधान के प्रति राजनैतिक दर्शन का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर:
संविधान के अर्न्तनिहित नैतिक मूल्यों को जानने और उसके दावे के मूल्यांकन के लिए संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन का दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। ऐसा करना इस कारण से भी आवश्यक है ताकि हम अपनी शासन व्यवस्था के बुनियादी मूल्यों को अलग-अलग व्याख्याओं की एक कसौटी पर जाँच सकें।
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान को अंगीकार करने का कारण संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान को अंगीकार करने का एक बड़ा कारण सत्ता को निरंकुश होने से रोकना है। संविधान हमें बड़े सामाजिक परिवर्तनों हेतु शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक साधन प्रदान करता है। औपनिवेशिक गुलामी में रह रहे लोगों के लिए संविधान आत्म-निर्णय का उद्घोष है। इसलिए इसे अंगीकार करना परम आवश्यक था।
प्रश्न 3.
कानून और नैतिक मूल्यों के बीच गहन संबंध है। आपका क्या दृष्टिकोण है ?
उत्तर:
यह सत्य है कि हर कानून में नैतिक तत्व नहीं होता किन्तु बहुत से कानून ऐसे हैं जिनका हमारे मूल्यों और आदर्शों से गहन संबंध है। कोई कानून भाषा अथवा धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता। इस तरह का कानून समानता के विचार से जुड़ा है। हम लोग समानता को मूल्यवान समझते हैं। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि कानून और नैतिक मूल्यों के बीच गहन सम्बन्ध है।
प्रश्न 4.
आज संविधान के बहुत से आदर्शों को चुनौती मिल रही हैं। क्या हम कह सकते हैं कि हमारा संविधान इन चुनौतियों को हल करने में पंच की भूमिका का निर्वाह कर सकता है ?
उत्तर:
आज संविधान के बहुत से आदर्शों को चुनौती मिल रही हैं। इन पर बार-बार अदालतों में बहस होती है। मीडिया में भी सवाल उठाए जाते हैं। संविधान के आदर्श बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन आदर्शों की व्याख्या अगर अलग-अलग ढंग से की जाए तो व्याख्याओं के बीच विरोध पैदा होता है। इन विरोधों की जाँच-परख में संविधान के आदर्शों का प्रयोग एक कसौटी के रूप में होना चाहिए। इस दृष्टिकोण से हमारा संविधान पंच की भूमिका निभा सकता है।
प्रश्न 5.
जापान के संविधान की प्रस्तावना में क्या कहा गया है?
उत्तर:
जापान के संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है "हम जापान के लोग हमेशा के लिए शांति की कामना करते हैं और हम लोग मानवीय रिश्तों का नियंत्रण करने वाले उच्च आदर्शों के प्रति सचेत हैं।"
प्रश्न 6.
संविधान लोकतांत्रिक बदलाव का साधन है, स्पष्ट करें।
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू के अनुसार भारतीय संविधान का निर्माण परंपरागत सामाजिक ऊँच-नीच के बंधनों को तोड़ने और स्वतन्त्रता, समता तथा न्याय के नये युग में प्रवेश के लिय हुआ है। संविधान की मौजूदगी सत्तासीन लोगों की शक्ति पर अंकुश नहीं लगाती बल्कि जो लोग परंपरागत तौर पर सत्ता से दूर रहे हैं उनका सशक्तीकरण भी करती है। संविधान कमजोर लोगों को अपना अधिकार सामुदायिक रूप से हासिल करने की ताकत देता है। इस दृष्टिकोण से संविधान लोकतांत्रिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण साधन है।
प्रश्न 7.
क्या हम कह सकते हैं कि हमारे संविधान का इतिहास अब भी हमारे वर्तमान का इतिहास है ?
उत्तर:
हमारे देश में जिस समय संविधान निर्मित हुआ; संविधान निर्माताओं के समय जो स्थिति थी और आज हम लोग जिन स्थितियों में रह रहे हैं उनमें कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं आया है। मूल्यों, आदर्शों और अवधारणाओं के लिहाज से आज भी हम लोग संविधान सभा की सोच और समय से अलग नहीं हो पाये हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे संविधान का इतिहास अब भी हमारे वर्तमान का इतिहास है।
प्रश्न 8.
हमारे संविधान का राजनीतिक दर्शन क्या है ?
उत्तर:
संविधान के राजनीतिक दर्शन की एक शब्द में व्याख्या करना कठिन है। हमारा संविधान, उदारवादी, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, संघवादी, सामुदायिक जीवन मूल्यों का समर्थक, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के साथ-साथ ऐतिहासिक रूप से अधिकार वंचित वर्गों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील तथा एक सर्वमान्य राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। संक्षेप में संविधान का राजनीतिक दर्शन स्वतन्त्रता, समानता, लोकतन्त्र, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रश्न 9.
व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के संबंध में राजा राममोहन राय का तर्क क्या था ? उन्होंने प्रेस की आजादी की काट-छाँट का विरोध किस प्रकार किया ?
उत्तर:
19वीं सदी के प्रारम्भ में ही राजा राममोहन राय ने प्रेस की आजादी की काट-छाँट का विरोध किया। अंग्रेजी सरकार प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगा रही थी। राजा राममोहन राय का तर्क था कि राज्य के लिए आवश्यक है कि वह प्रकाशन को असीमित आजादी प्रदान करे। वे ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय प्रेस की आजादी की माँग निरंतर उठाते रहे। उनके अनुसार राज्य को चाहिए कि वह व्यक्ति को अपनी जरूरतों की अभिव्यक्ति का साधन प्रदान करे। राजा राममोहन राय के सद्प्रयासों के कारण ही आज अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हमारे संविधान का अभिन्न अंग है।
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान के उदारवादी दृष्टिकोण का सर्वोत्तम उदाहरण क्या है ? बताइए।
उत्तर:
भारत का संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। संविधान निर्माताओं का विश्वास था कि मात्र समता का अधिकार दे देना इन वर्गों के साथ सदियों से हो रहे अन्याय से मुक्ति के लिए अथवा इनके मताधिकार को वास्तविक अर्थ देने के लिए पर्याप्त नहीं है। इनके हितों को बढ़ावा देने के लिए विशेष संवैधानिक उपायों की आवश्यकता है। संविधान के विशेष प्रावधानों के कारण ही सरकारी नौकरियों में इनको आरक्षण देना सम्भव हो सका। इस प्रकार आरक्षण का यह प्रावधान उदारवादी दृष्टिकोण का सर्वोत्तम उदाहरण है।
प्रश्न 11.
धर्म निरपेक्ष राज्य से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
धर्म निरपेक्ष राज्य उस राज्य को कहा जाता है जो समस्त धर्मों को एक समान आदर देता है। धामिक आधार पर लोगों से भेदभाव नहीं करता। ऐसा राज्य लोगों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करता है। राज्य कोई भी ऐसा कर नहीं लगाता जिसकी धनराशि किसी विशेष धर्म पर व्यय की जाए। भारतीय संविधान सदैव से ही धर्म निरपेक्ष रहा है। धर्म निरपेक्ष राज्य धर्म को निजी मामले के रूप में स्वीकार करते हैं।
प्रश्न 12.
भारतीय संविधान में पारस्परिक निषेध (mutual exclusion) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान में पारस्परिक निषेध शब्द का अर्थ है, धर्म या राज्य दोनों एक-दूसरे के अन्दरूनी मामलों से दूर रहेंगे। राज्य के लिए परम आवश्यक है कि वह धार्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप न करे। ठीक इसी तरह धर्म को भी राज्य की नीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अर्थात् राज्य तथा धर्म परस्पर एकदम अलग होने चाहिए। इसका उद्देश्य व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा करना है। राज्य के लिए धर्म से एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखना आवश्यक है।
प्रश्न 13.
भारतीय संविधान में धार्मिक समूहों को क्या अधिकार दिये गये हैं ?
उत्तर:
भारतीय संविधान सभी धार्मिक समुदायों को शिक्षा-संस्थान स्थापित करने और संचालन का अधिकार देता है। भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता का अर्थ व्यक्ति और समुदाय दोनों की धार्मिक स्वतन्त्रता से होता है। संविधान निर्माता विभिन्न समुदायों के बीच बराबरी के रिश्ते को उतना ही आवश्यक मानते थे जितना विभिन्न व्यक्तियों के बीच बराबरी को। किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता और आत्म सम्मान का भाव सीधे-सीधे उसके समुदाय की हैसियत पर निर्भर करता है। इसलिए इन समुदायों के सम्मान और आजादी के भाव को सुरक्षा प्रदान करने के लिए धार्मिक समुदायों को अपने शिक्षा-संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार प्रदान किया गया।
प्रश्न 14.
सार्वभौम मताधिकार का अर्थ बताते हुए भारत में इसकी आवश्यकता बताइए।
उत्तर:
सार्वभौम मताधिकार का अर्थ सबको समान रूप से मताधिकार देने से है। भारत में इसे इसलिए अपनाया गया क्योंकि भारत में लोकतंत्र की स्थापना करनी थी। लोकतंत्र में जनता की भागीदारी आवश्यक होती है। वहीं दूसरी ओर हमारे देश में परम्परागत आपसी ऊँची-नीच का व्यवहार बहुत अधिक था और इसे समाप्त कर पाना लगभग असम्भव था। इसलिए भारत में सार्वभौम मताधिकार को अपनाया गया ।
प्रश्न 15.
भारत के लिए अनौपचारिक रूप से संविधान तैयार करने का प्रथम प्रयास कब हुआ ? संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारत के लिए अनौपचारिक रूप से संविधान तैयार करने का पहला प्रयास कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया बिल' के नाम से 1895 ई. में हुआ। इस पहले प्रयास में इसके लेखक ने घोषणा की कि प्रत्येक नागरिक अर्थात् भारत में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को देश के मामलों में भाग लेने तथा सरकारी पद हासिल करने का अधिकार है। सन् 1928 में मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट में इसी धारणा की पुष्टि की गयी। इस रिपोर्ट में प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को नागरिक का दर्जा प्रदान किया गया जो राष्ट्र की भू-सीमा में पैदा हुआ है।।
प्रश्न 16.
भारतीय संविधान में असमतोल संघवाद' अवधारणा को क्यों अपनाया गया ?
उत्तर:
भारतीय संविधान में 'असमतोल संघवाद' जैसी अवधारणा को अपनाने का. मुख्य कारण भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों की कानूनी हैसियत और विशेषाधिकार में महत्वपूर्ण अंतर है। पश्चिमी देशों के संविधान जैसे अमेरिका के संविधान की बनावट समतोल है लेकिन भारतीय संघवाद की बनावट असमतोल है। कुछ एक इकाइयों की विशेष जरूरतों का ख्याल रखते हुए संविधान की रचना में बराबर इस बात का ख्याल रखा गया कि इन इकाइयों के संबंध अनूठे रहें अथवा इन्हें विशेष दर्जा प्रदान किया गया। इसलिए भारतीय संविधान ने 'असमतोल संघवाद' की धारणा को अपनाया।
प्रश्न 17.
भारतीय संविधान में राष्ट्रीय पहचान को वरीयता प्रदान की गयी है, स्पष्ट करें।
उत्तर:
भारतीय संविधान में एक राष्ट्रीय पहचान पर निरंतर जोर दिया गया है। हमारी एक राष्ट्रीय पहचान का भाषा या धर्म के आधार पर बनी पहचान से कोई विरोध नहीं है। भारतीय संविधान में इन दोनों पहचानों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है। फिर भी किन्हीं विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रीय पहचान को वरीयता प्रदान की गयी है। इसका उदाहरण है कि धर्म के आधार पर पृथक निर्वाचन मंडल बनाने की बात भारतीय संविधान में नकार दी गयी। इसको नकारने का कारण यह था कि इससे राष्ट्रीय जीवन की सहजता में बाधा पहुँचती है और राष्ट्रीय पहचान धूमिल होती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-100 शब्द)
प्रश्न 1.
संविधान के प्रति राजनैतिक दर्शन के नजरिए में शामिल तीन प्रमुख बातों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संविधान के प्रति राजनैतिक दर्शन में शामिल तीन प्रमुख बातें निम्न प्रकार हैं
(1) संविधान कुछ प्रमुख अवधारणाओं के आधार पर बना है। इन अवधारणाओं की व्याख्या अति आवश्यक है, जैसे कि अधिकार, नागरिकता, अल्पसंख्यक या लोकतन्त्र।
(2) संविधान का निर्माण जिन आदर्शों की बुनियाद पर हुआ है उन पर हमारी गहरी पकड़ होनी चाहिए। हमारे सामने समाज और शासन व्यवस्था की तस्वीर एकदम स्पष्ट होनी चाहिए जो संविधान की बुनियादी अवधारणाओं एवं हमारी व्यवस्था से मेल खाती हो।
(3) भारतीय संविधान को स्पष्ट रूप से समझने के लिए उसे संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए ताकि सैद्धान्तिक रूप से हम समझ सकें कि यह आदर्श कहाँ तक और क्यों ठीक है। भविष्य में इन आदर्शों में कौन-कौन से सुधार किए जा सकते हैं।
प्रश्न 2.
सन् 1947 के जापानी संविधान को 'शांति संविधान' क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
सन् 1947 के जापानी संविधान को 'शांति संविधान' कहने का आशय यह है कि जापानी संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि-"हम जापान के लोग हमेशा के लिए शांति की कामना करते हैं और हम लोग मानवीय रिश्तों का नियंत्रण करने वाले उच्च आदर्शों के प्रति सचेत हैं।" जापान के संविधान का दर्शन शांति पर आधारित है। जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 में कहा गया है-न्याय और सुसंगत व्यवस्था पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की ईमानदारी से कामना करते हुए जापान के लोग राष्ट्र के सम्प्रभु अधिकार के रूप में युद्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने हेतु धमकी अथवा बल प्रयोग से दूर रहेंगे। इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए थल सेना, वायु सेना तथा युद्ध के सामान कभी भी नहीं रखे जायेंगे।
अतः स्पष्ट है कि जापानी संविधान का दर्शन शांति पर आधारित है। प्रश्न 3. क्या संविधान सत्ता को निरंकुश होने से रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है ? स्पष्ट करें। उत्तर-बल प्रयोग और दंड शक्ति पर राज्य का एकाधिकार माना जाता है। राज्य के पास अपार शक्ति होती है। यदि ऐसे राज्य की संस्थाएँ गलत हाथों में पड़ जाएं तो व्यक्ति अथवा समूहों के हितों को नुकसान पहुँच सकता है। सम्पूर्ण विश्व में राज्य की शक्ति का अनुभव हमें यह बताता है कि अधिकांश राज्य शक्ति का दुरुपयोग कर व्यक्ति अथवा समूहों के हितों को नुकसान पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं।
इसके लिए एकमात्र उपाय है कि हमें सत्ता के नियमों को इस प्रकार बनाना चाहिए कि राज्य की इस प्रकृति पर अंकुश लग सके। संविधान राज्य को निरंकुश बनने से रोकता है, उसके अधिकारों को सीमित करता है। संविधान की मौजूदगी सत्तासीन लोगों की शक्ति पर अंकुश ही नहीं लगाती बल्कि जो लोग परंपरागत सत्ता से दूर रहे हैं उनका सशक्तीकरण भी करती है। कमजोर वर्गों की सुरक्षा के साथ-साथ उनका उचित अधिकार प्राप्त करने की शक्ति भी संविधान द्वारा प्राप्त होती है।
प्रश्न 4.
राजनीति के विद्यार्थी के लिए संविधान निर्माताओं के सरोकार और उनकी इच्छाओं को जानना क्यों आवश्यक
उत्तर:
राजनीति के विद्यार्थी के लिए संविधान निर्माताओं के सरोकार और उनकी इच्छाओं को जानना इसलिए आवश्यक है कि उसे यह जानना चाहिए कि संविधान निर्माताओं की कानूनी और राजनैतिक विचारधाराओं का आधार कहाँ छुपा है? हम अपने को अतीत से बाँधकर क्यों रखें ? क्या हमें वर्तमान की बदली हुई परिस्थितियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए ? इन समस्त प्रश्नों का उत्तर हम संयुक्त राज्य अमेरिका के उदाहरण से दे सकते हैं। वहाँ का संविधान 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में लिखा गया। उस युग की परिस्थितियों और 21वीं सदी की परिस्थितियों में व्यापक बदलाव है। हमारे देश की परिस्थितियाँ भी संयुक्त राज्य अमेरिका से अलग हैं। ऐसी स्थिति में संविधान के मूल्य और अर्थ को समझने के लिए संविधान निर्माताओं के सरोकार और उनकी इच्छाओं को जानना अति आवश्यक है। संविधान के मूल में निहित राजनैतिक दर्शन को बार-बार याद करना और टटोलना राजनीति के विद्यार्थी के लिए आवश्यक हो जाता है।
प्रश्न 5.
भारतीय संविधान को उदारवादी क्यों कहा जाता है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान है। संविधान निर्माताओं का विश्वास था कि मात्र समता का अधिकार दे देना इन वर्गों के साथ सदियों से हो रहे अन्याय का प्रतिकार नहीं है। इन वर्गों के हितों को बढ़ावा देने के लिए विशेष संवैधानिक उपायों के अन्तर्गत आरक्षण का प्रावधान किया गया। हमारे संविधान का उदारवाद सामुदायिक जीवन मूल्यों का पक्षधर है। ऐसे ही संविधान के एक उदारवादी दृष्टिकोण का अन्य उदाहरण धार्मिक समुदायों को अपने शिक्षा संस्थान स्थापित करने का अधिकार है। भारतीय संविधान की यह उपलब्धि महत्वपूर्ण इसलिए. कही जा सकती है कि यह ऐसे समाज में किया गया जहाँ बहुत से धार्मिक और भाषाई समुदाय हैं।
प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में धार्मिक समूहों के अधिकारों को किस प्रकार सुनिश्चित किया गया ?
उत्तर:
संविधान निर्माता विभिन्न समुदायों के बीच बराबरी के रिश्तों को उतना ही जरूरी मानते थे जितना कि विभिन्न र स्तयों के बीच बराबरी को। इसका कारण यह था कि किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता और आत्मसम्मान का भाव सीधे-सीधे उसके समुदाय की हैसियत पर निर्भर करता है। यदि एक समुदाय दूसरे समुदाय के प्रभुत्व में हो तो उसके सदस्य भी कम स्वतन्त्र होंगे। दूसरी ओर यदि दो समुदायों के बीच बराबरी का संबंध है, एक का दूसरे पर प्रभुत्व न हो तो इन समुदायों के सदस्य आत्म सम्मान और आजादी के भाव से भरे होंगे। इसलिए भारतीय संविधान सभी धार्मिक समुदायों को अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है। भारत के संविधान में धार्मिक स्वतन्त्रता का अर्थ व्यक्ति और समुदाय दोनों की स्वतन्त्रता से है।
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की तीन महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ क्या हैं ? बताइए। उत्तर- भारतीय संविधान की तीन महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ निम्न प्रकार से हैं
1. भारतीय संविधान की प्रथम उपलब्धि यह है कि हमारे संविधान ने उदारवादी व्यक्तिवाद की अवधारणा पर बल देकर उसे मजबूत किया है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
2. दूसरी उपलब्धि, हमारे संविधान में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर आँच आए बगैर सामाजिक न्याय के सिद्धान्त को स्वीकार किया है। जाति आधारित सकारात्मक कार्य योजना के प्रति संवैधानिक वचनबद्धता से स्पष्ट होता है कि भारत दूसरे राष्ट्रों की तुलना में कहीं आगे है। संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य योजना सन् 1964 के नागरिक अधिकार आंदोलन के बाद प्रारम्भ हुई जबकि भारत ने इसे दो दशक पूर्व ही अपना लिया था।
3. तृतीय उपलब्धि, भारतीय संविधान के समूहगत अधिकः । विभिन्न समुदायों के आपसी तनाव और झगड़े की पृष्ठभूमि के बावजूद भारतीय संविधान ने समूहगत अधिकार जैसे सांस्कृतिक विशिष्टता की अभिव्यक्ति का अधिकार आदि प्रदान किये हैं। संविधान निर्माताओं ने बहु-संस्कृतिवाद को ध्यान में रखते हुए समूहगत अधिकारों का पूर्ण ध्यान रखा।
प्रश्न 8.
सार्वभौम मताधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
सार्वभौम मताधिकार-18 वर्ष और इसके ऊपर के सभी व्यक्तियों को मत देने का अधिकार जिसमें धर्म, नस्ल, जाति, लिंग एवं जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर कोई भेदभाव न हो सार्वभौम मताधिकार कहलाता है। भारतीय राष्ट्रवाद की धारणा में सार्वभौम मताधिकार के प्रति वचनबद्धता एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। ऐसी स्थिति में जहाँ परंपरागत आपसी ऊँच-नीच का परंपरागत व्यवहार बहुत मजबूत है, सार्वभौम मताधिकार को अपनाना अति महत्वपूर्ण है।
सार्वभौम मताधिकार का विचार भारतीय राष्ट्रवाद के मूल विचारों में से एक है। कान्स्टीट्यूशन ऑफ इंडिया बिल में इसके लेखक ने घोषणा की थी कि भारत में जन्मे प्रत्येक नागरिक को देश के मामलों में भाग लेने तथा सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार है। मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट में भी इसी धारणा की पुष्टि की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार हर व्यक्ति जो राष्ट्र की भूमंडल की सीमा में पैदा हुआ है और किसी अन्य देश की नागरिकता नहीं ग्रहण की है, मताधिकार का अधिकार प्रदान किया जाएगा। सार्वभौम मताधिकार को महत्वपूर्ण वैधानिक साधन माना गया जिसके सहारे राष्ट्र की जनता अपनी आकाक्षाओं को व्यक्त करती है।
प्रश्न 9.
भारतीय संविधान में असमतोल संघवाद' की धारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों की कानूनी हैसियत और विशेषाधिकार में महत्वपूर्ण अंतर है। उदाहरण के लिए भारतीय संघ में जम्मू और कश्मीर राज्य का विलय इस आधार पर किया गया था कि संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत इस प्रदेश की स्वायत्तता की रक्षा की जाएगी। वर्तमान में अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया गया है। इसी प्रकार अनुच्छेद 371 (A) के तहत पूर्वोत्तर प्रदेश नागालैण्ड को विशेष दर्जा प्रदान किया गया। यह अनुच्छेद न सिर्फ नागालैण्ड में पहले से लागू नियमों को मान्यता प्रदान करता है बल्कि आप्रवास पर रोक लगाकर स्थानीय पहचान की रक्षा करता है। बहुत . से अन्य प्रदेशों को भी ऐसे विशेष प्रावधानों का लाभ मिला है। इस आधार पर भारतीय संविधान में असमतोल संघवाद की धारणा स्पष्ट होती है।
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान की तीन प्रमुख आलोचनाओं की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की तीन प्रमुख आलोचनाएँ निम्न प्रकार से हैं-
1. यह संविधान अस्त-व्यस्त है। भारतीय संविधान को अस्त-व्यस्त या ढीला-ढाला बताया जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि यह संविधान कसे हुए दस्तावेज के रूप में नहीं है।
2. इसमें सबका प्रतिनिधित्व नहीं हो सका है। इसका कारण यह है कि संविधान सभा के सदस्य सीमित मताधिकार से चुने गए थे न कि सार्वभौम मताधिकार से इसलिए इसमें समाज के प्रत्येक वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं हो सका।
3. भारतीय संविधान पश्चिमी संविधानों की नकल है। संविधान सभा में बहुत से सदस्यों ने यह बात उठायी थी कि इसका प्रत्येक अनुच्छेद पश्चिमी संविधानों की नकल है और भारतीय सांस्कृतिक भाव बोध से इसका कोई मेल नहीं बैठता। इस दृष्टि से भारतीय संविधान भ्रामक है।
प्रश्न 11.
भारतीय संविधान की सीमाओं की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की बहुत-सी बातें समय के दबाव में पैदा हुईं इसलिए हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं।
1. भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत ही केन्द्रीकृत है। इसमें लिंगगत-न्याय के महत्वपूर्ण मामलों विशेषकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर भली-भाँति ध्यान नहीं दिया गया।
2. यह बात स्पष्ट नहीं है कि भारत जैसे गरीब और विकासशील देश में सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों का हिस्सा बनाने की अपेक्षा उन्हें नीति-निर्देशक तत्वों के खण्ड में क्यों डाल दिया गया। संविधान की इन सीमाओं के कारणों को समझना और दूर करना संभव है। परन्तु फिर भी ध्यान देने की बात यह है कि संविधान की यह सीमाएँ इतनी गम्भीर नहीं है कि भारतीय संविधान के दर्शन के लिए कोई खतरा उत्पन्न कर दें। आज संविधान की इन सीमाओं के पुनरावलोकन की आवश्यकता है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-150 शब्द)
प्रश्न 1.
संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के दृष्टिकोण से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन का दृष्टिक..ण-संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के दृष्टिकोण को समझने के लिए हमें निम्न बातों पर ध्यान देना होगा
संविधान के अंतर्निहित नैतिक तत्वों को जानने और उनके दावे के मूल्यांकन के लिए संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन का नजरिया अपनाने की जरूरत है। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है, ताकि हम अपनी शासन व्यवस्था के बुनियादी मूल्यों की अलग-अलग व्याख्याओं को एक कसौटी पर जाँच सकें। यह बात स्पष्ट है कि आज संविधान से बहुत से आदर्शों को चुनौती मिल रही है। इन आदर्शों की व्याख्या अलग-अलग ढंग से की जाती है और कभी-कभी अल्पकालिक क्षुद्र स्वार्थों के लिए इनके साथ चालबाजी भी की जाती है।
इसी कारण से इस बात की परीक्षा की जरूरत पैदा होती है कि संविधान के आदर्शों और अन्य क्षेत्रों में इन आदर्शों की अभिव्यक्ति के बीच कहीं कोई गम्भीर खाई तो नहीं ? कभी-कभी विभिन्न संस्थाएँ एक ही आदर्श की व्याख्या अलग-अलग ढंग से करती हैं। हमें इन व्याख्याओं की आपसी तुलना की जरूरत पड़ती है। संविधान के आदर्श अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। मूल्यों या आदर्शों की व्याख्या अलग-अलग ढंग से की जाती तो इन व्याख्याओं के बीच विरोध पैदा होता। यह जाँचने की जरूरत आ पड़ती कि कौन-सी व्याख्या सही है। इस जाँच-परख में संविधान के आदर्शों का इस्तेमाल एक कसौटी के रूप में होना चाहिए। इस दृष्टिकोण से हमारा संविधान एक पंच की भूमिका का निर्वहन कर सकता है। यही हमारे संविधान का राजनीतिक दर्शन है।
प्रश्न 2.
हमारे संविधान के राजनीतिक दर्शन के प्रमख बिन्दुओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हमारे संविधान के राजनीतिक दर्शन के प्रमुख बिन्दु-भारतीय संविधान के राजनीतिक दर्शन के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं
1. व्यक्ति की स्वतंत्रता-भारतीय संविधान व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान का अभिन्न अंग है। इसी प्रकार मनमानी गिरफ्तारी के विरूद्ध हमें स्वतंत्रता प्रदान की गई है। भारतीय संविधान ने नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान कर व्यक्ति की स्वतंत्रता को बहुत महत्व प्रदान किया है।
2. सामाजिक न्याय-हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। हमारे संविधान निर्माताओं का मानना था कि मात्र समता का अधिकार प्रदान कर देने से इन वर्गों के साथ सदियों हो रहे अन्याय से मुक्ति के लिए अथवा इनके मताधिकार को वास्तविक अर्थ देने के लिए पर्याप्त नहीं है। इन वर्गों के हितों को बढ़ावा देने के लिए विशेष संवैधानिक उपायों की जरूरत थी। इस कारण संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा के लिए अनेक उपाय किए गए। इसका सर्वोत्तम उदाहरण है अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विधायिका में सीटों का आरक्षण/संविधान में विशेष प्रावधान के कारण ही राजकीय सेवाओं में इन वर्गों को आरक्षण देना सम्भव हो सका।
3. विविधता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान-हमारा संविधान विभिन्न समुदायों के मध्य बराबरी के रिश्ते को बढ़ावा देता है। हमारे सविधान निर्माताओं के समक्ष इस बात की कठिन चुनौती थी कि ऊँच-नीच और प्रतिद्वंद्विता की स्थिति के बीच समुदायों में बराबरी का रिश्ता कैसे स्थापित किया जाए। हमारे देश में अनेक भाषाई व धार्मिक समुदाय हैं। कोई समुदाय दूसरे पर प्रभुत्व न जमाए इस बात को भी सुनिश्चित करना आवश्यक था। इस कारण हमारे संविधान के लिए समुदाय आधारित अधिकारों को मान्यता देना आवश्यक हो गया। ऐसे ही अधिकारों में एक है धार्मिक समुदाय का अपनी शिक्षा संस्था स्थापित करने और चलाने का अधिकार। ऐसी संस्थाओं को सरकार धन दे सकती है। इस प्रावधान से पता चलता है कि भारतीय संविधान धर्म को केवल व्यक्ति का निजी मामला नहीं मानता।
4. धर्म निरपेक्षता-भारतीय संविधान धर्म निरपेक्ष है। यह सभी धर्मों को समान आदर देता है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और न ही राज्य नागरिकों को कोई धर्म विशेष को अपनाने की प्रेरणा देता है। नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता प्रदान की गयी है और समस्त व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार अपने इष्टदेव की पूजा करने का अधिकार है।
प्रश्न 3.
इस कथन की विवेचना कीजिए कि "भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।"
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य भारत में प्राचीनकाल से ही धर्म की बहुत उपयोगिता रही है तथा भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन धर्म से ओत-प्रोत रहा है। वर्तमान में भारत लोकतान्त्रिक गणराज्य के रूप में नैतिकता, आध्यात्मिकता तथा मानव धर्म पर आधारित है। हमारे देश भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य को सुदृढ़ करने हेतु संविधान में निम्नलिखित व्यवस्थाएँ की गई हैं
(1) राज्य का अपना कोई धर्म नहीं-भारतीय संविधान के अनुसार धर्म और राज्य दोनों ही एक-दूसरे के आंतरिक मामलों से दूर रहेंगे। राज्य की दृष्टि से सभी धर्म एक समान हैं। .
(2) धार्मिक आधार पर भेदभाव समाप्त-भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को यह विश्वास दिलाया गया है कि धार्मिक आधार पर उनके साथ किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
(3) कानून की दृष्टि से सभी व्यक्ति समान-संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार भारतीय राज्य क्षेत्र में सभी व्यक्ति कानून की दृष्टि से समान होंगे तथा धर्म, जाति अथवा लिंग के आधार पर उनके साथ किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
(4) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार-भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को अपने अन्त:करण के अनुसार किसी भी धर्म का पालन करने, छोड़ने, प्रचार करने इत्यादि का पूर्ण अधिकार है। किसी भी नागरिक को किसी धर्म विशेष का पालन करने अथवा न करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
(5) धार्मिक संस्थाओं की स्थापना तथा धर्म प्रचार की स्वतन्त्रता-इसके अनुसार प्रत्येक नागरिक को धार्मिक तथा परोपकारी उद्देश्य के लिए संस्थाएँ स्थापित करने का पूर्ण अधिकार है।
(6) धार्मिक शिक्षा का निषेध-अनुच्छेद 28 के अनुसार सरकारी तथा अन्य सभी गैर सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती।
(7) धार्मिक कार्यों हेतु किया जाने वाला व्यय कर मुक्त-संविधान के अन्तर्गत धार्मिक कार्यों के लिए किए जाने वाले व्यय को भी कर मुक्त घोषित किया गया है। भारतीय संविधान देश की एकता एवं अखण्डता को बनाए रखने तथा सार्वजनिक हित के दृष्टिकोण से धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार पर कुछ प्रतिबंध भी आरोपित करता है। उक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि हमारे देश में सच्चे धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
धर्म निरपेक्ष का अर्थ है
(अ) जिस देश का अपना कोई धर्म न हो
(ब) सरकार द्वारा धर्म का संरक्षण
(स) सभी धर्मों का महत्व स्वीकार करना
(द) राष्ट्र धर्म का विशेष संवैधानिक महत्व
उत्तर:
(स) सभी धर्मों का महत्व स्वीकार करना
प्रश्न 2.
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, इसका मतलब है कि भारतीय राज्य
(अ) धर्मविरोधी नागरिकों का समर्थन करता है।
(ब) बहुसंख्यक समुदाय के धर्म का समर्थन करता है।
(स) अल्पसंख्यक समुदाय के धर्म का समर्थन करता है।
(द) किसी निश्चित धर्म का समर्थन नहीं करता है।
उत्तर:
(द) किसी निश्चित धर्म का समर्थन नहीं करता है।
प्रश्न 3.
कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य है
(अ) अधिकतम संख्या का अधिकतम कल्याण सुनिश्चित करना
(ब) कमजोर वर्गों के कल्याण का प्रबन्ध करना
(स) सभी नागरिकों को स्वास्थ सुविधाएँ प्रदान करना
(द) उपर्युक्त में कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) कमजोर वर्गों के कल्याण का प्रबन्ध करना
प्रश्न 4.
किस वर्ष भारत एक प्रभुत्व सम्पन्न प्रजातान्त्रिक गणराज्य बना ?
(अ) 1947 में
(ब) 1951 में
(स) 1935 में
(द) 1950 में।
उत्तर:
(द) 1950 में।
प्रश्न 5.
प्रस्तावना का वह प्रावधान जो सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान करता है, कहलाता है
(अ) पंथ निरपेक्षता
(ब) प्रजातंत्र
(स) समाजवाद
(द) गणतंत्र
उत्तर:
(ब) प्रजातंत्र
प्रश्न 6.
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में इनमें से कौन-सा सर्वोच्च है?
(अ) सर्वोच्च न्यायालय
(ब) संविधान
(स) संसद
(द), धर्म।
उत्तर:
(ब) संविधान
प्रश्न 7.
भारत का संविधान मान्यता प्रदान करता है
(अ) केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों को
(ब) केवल भाषायी अल्पसंख्यकों को
(स) धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को
(द) धार्मिक, भाषायी एवं नृजातीय अल्पसंख्यकों को।
उत्तर:
(स) धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को
प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों को मान्यता किस आधार पर दी गई है?.
(अ) धर्म
(ब) जाति
(स) रंग
(द) कुल जनसंख्या के साथ उस वर्ग की जनसंख्या का अनुपात ।
उत्तर:
(द) कुल जनसंख्या के साथ उस वर्ग की जनसंख्या का अनुपात ।