Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धांत - एक परिचय Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Political Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Political Science Notes to understand and remember the concepts easily.
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त की जड़ें निहित हैं
(क) मानव अस्मिता के पहलुओं में
(ख) राजनीति विज्ञान में
(ग) राजनीति में
(घ) राज्यों में।
उत्तर:
(क) मानव अस्मिता के पहलुओं में
प्रश्न 2.
राजनीतिक पदाधिकारियों की दृष्टि में राजनीति है
(क) नेताओं के क्रियाकलाप
(ख) एक प्रकार की जनसेवा
(ग) झूठे वायदे करना
(घ) घोटाले करना।
उत्तर:
(ख) एक प्रकार की जनसेवा
प्रश्न 3.
"राजनीति ने हमें सांप की कुण्डली की तरह जकड़ रखा है।" यह अभिमत है
(क) कौटिल्य का
(ख) एम. एन. राय का
(ग) महात्मा गाँधी का
(घ) विनोबा भावे का।
उत्तर:
(ग) महात्मा गाँधी का
प्रश्न 4.
आधुनिक काल में सर्वप्रथम निम्न में से किस पाश्चात्य विचारक ने यह सिद्ध किया कि स्वतंत्रता मानव मात्र का मौलिक अधिकार है
(क) कार्ल मार्क्स ने
(ख) सुकरात ने
(ग) महात्मा गाँधी का
(घ) प्लेटो ने।
उत्तर:
प्रश्न 5.
महात्मा गाँधी द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक है
(क) पॉलिटिक्स
(ख) माई एक्सपेरिमेन्ट विद स्ट्रगल
(ग) गीता-सार।
(घ) हिन्द-स्वराज
उत्तर:
(घ) हिन्द-स्वराज
निम्नलिखित में सही या गलत कथन बताइये
(क) राजनीतिक सिद्धान्तों का व्यावहारिक उपयोग नहीं होता है।
(ख) जनता का सामूहिक गतिविधियों में भाग लेना राजनीति का हिस्सा है।
(ग) रूसो ने 'समानता' पर अधिक बल दिया।
(घ) प्लेटो सुकरात का शिष्य था।
उत्तर:
(क) गलत
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा-20 शब्द)
प्रश्न 1.
मनुष्य किन दो मामलों में अद्वितीय है?
उत्तर:
मनुष्य 'विवेक' एवं 'भाषा व संवाद' के मामले में अद्वितीय है।
प्रश्न 2.
राजनीतिक सिद्धान्त किस प्रकार के प्रश्नों का विश्लेषण करता है। किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
राजनीतिक सिद्धान्त का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त का प्रमुख उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के विषय में तार्किक विश्लेषण एवं राजनीतिक घटनाओं के सही आंकलन का प्रशिक्षण देना है।
प्रश्न 4.
राजनीतिक सिद्धान्त किस प्रकार के मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है ?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त राजनीतिक जीवन को अनुप्राणित करने वाले स्वतंत्रता, समानता व न्याय जैसे मूल्यों के बारे में सुव्यवस्थित रूप से विचार करता है।
प्रश्न 5.
राजनीति की किसी भी समाज में क्या स्थिति होती है?
उत्तर:
राजनीति प्रत्येक समाज का एक महत्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है क्योंकि राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णयम के ढाँचे के बिना कोई समाज जीवित नहीं रह सकता है।
प्रश्न 6.
राजनीति में दर्शाने वाली महत्वपूर्ण बातें क्या हैं?
उत्तर:
सरकारें कैसे बनती हैं और कैसे कार्य करती हैं, यह राजनीति में दर्शाने वाली महत्वपूर्ण बातें हैं।
प्रश्न 7.
राजनीति का जन्म किस तथ्य से होता है?
उत्तर:
राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि "हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं।" इस विषय में विभिन्न दष्टिकोण होते हैं।
प्रश्न 8
हमारी नीतियों को निर्देशित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
हमारी नीतियों को निर्देशित करने वाले प्रमुख कारक निश्चित मूल्य एवं सिद्धान्त हैं।
प्रश्न 9.
किन-किन निश्चित मूल्य और सिद्धान्तों ने जनता को प्रोत्साहित किया ?
उत्तर:
प्रश्न 10.
गाँधी जी ने 'स्वराज' शब्द की व्याख्या किस पुस्तक में की थी?
उत्तर:
'हिन्द स्वराज' नामक पुस्तक में।
प्रश्न 11.
गाँधी जी के किस सिद्धान्त को नीति निर्देशक तत्व में सम्मिलित किया गया है ?
उत्तर:
छुआछूत निषेध के सिद्धान्त को।
प्रश्न 12.
राजनीतिक सिद्धान्त किन अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त स्वतन्त्रता, समानता, न्याय, लोकतन्त्र एवं धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता
प्रश्न 13.
राजनीतिक सिद्धान्त किन विचारों व नीतियों को व्यवस्थित रूप से प्रतिबिम्बित करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान के आकार ग्रहण करने से सम्बन्धित विचारों और नीतियों को व्यवस्थित रूप से प्रतिबिम्बित करता है।
प्रश्न 14.
राजनीतिक सिद्धान्त के जांच के प्रमुख विषय क्या हैं?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त मुख्यतया कानून के शासन, अधिकारों का विभाजन एवं न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जांच करता है।
प्रश्न 15.
न्यायिक पुनरावलोकन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विधायिका द्वारा बनाये गये कानूनों व सरकारी क्रियाकलापों की न्यायपालिका द्वारा की जाने वाली पुनः वैधानिक समीक्षा को न्यायिक पुनरावलोकन कहते हैं।
प्रश्न 16.
सरकारी नीतियाँ क्यों बनाई जाती हैं?
उत्तर:
सरकारी नीतियाँ नई समस्याओं का मुकाबला करने के लिए बनाई जाती हैं।
प्रश्न 17.
'नेटिजन' किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
आधुनिक विश्व में इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों के लिए अंग्रेजी भाषा में 'नेटिजन' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 18.
संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों की निरन्तर पुनर्व्याख्या क्यों की जाती है?
उत्तर:
समय के साथ बदलती परिस्थितियों, आवश्यकताओं व अपेक्षाओं के चलते संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों की निरन्तर पुनर्व्याख्या की जाती है।
प्रश्न 19.
राजनीतिक अवधारणाओं के अर्थ को राजनीतिक सिद्धान्तकार किस दृष्टिकोण से स्पष्ट करते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्तकार राजनीतिक अवधारणाओं के अर्थ को यह देखते हुए स्पष्ट करते हैं कि आम भाषा में इसे कैसे समझा और बरता जा सकता है।
प्रश्न 20.
राजनीतिक सिद्धान्तकार किस प्रकार सामाजिक समस्याओं के समाधान में सरकार का मार्गदर्शन करते हैं?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्तकार शिक्षा, रोजगार, श्रम आदि सम्बन्धी नीतियों के निर्माण में मार्गदर्शन प्रदान करते हुये सरकार की विभिन्न सामाजिक समस्याओं के समाधान में सहायता करते हैं।
प्रश्न 21.
क्या राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन प्रासंगिक है ? यदि हाँ तो क्यों?
उत्तर:
हाँ, राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन प्रासंगिक है, क्योंकि यह हमारे जीवन के विविध व्यावहारिक पहलुओं से सम्बन्धित मूल्यों, विचारों व धारणाओं का समुचित ज्ञान प्रदान करता है।
प्रश्न 22.
राजनीतिक सिद्धान्त भविष्य में अपनाये जाने वाले व्यवसायों हेतु किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त हमें राज्य, सरकार एवं मानवीय समस्याओं व इनके संभावित निदानों सम्बन्धी जानकारी प्रदान करता है, जो कि भविष्य में वकील, पत्रकार, राजनेता आदि व्यवसायों हेतु उपयोगी है।
प्रश्न 23.
राजनीतिक सिद्धान्त हमें किन बातों के लिए प्रोत्साहित करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त हमें राजनीतिक धारणाओं सम्बन्धी विचारों तथा भावनाओं के परीक्षण हेतु प्रोत्साहित करता है।
प्रश्न 24.
राजनीतिक सिद्धान्त हमारे किन कौशलों को परिपक्व करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में तार्किक व प्रभावी सम्प्रेषण करने के कौशलों को परिपक्व करता है।
प्रश्न 25.
प्लेटो ने अपनी पुस्तक 'द रिपब्लिक' में सुकरात के नाम से एक चरित्र (पात्र) गढ़कर किस सवाल की जाँच पड़ताल की ?
उत्तर:
प्लेटो ने 'द रिपब्लिक' में सुकरात के नाम से एक चरित्र गढ़कर इस सवाल की जांच पड़ताल की थी कि 'न्याय क्या है?'
प्रश्न 26.
'द रिपब्लिक' का प्रारम्भ किनके मध्य संवाद से होता है?
उत्तर:
'द रिपब्लिक' का प्रारम्भ सुकरात और सेफलस के मध्य संवाद से होता है।
प्रश्न 27.
सेफलस की दृष्टि में न्याय क्या है?
उत्तर:
सेफलस की दृष्टि में 'सत्य बोलना और अपना ऋण चुकाना' ही न्याय है।
प्रश्न 28.
सुकरात के अनुसार कौन सा व्यक्ति अच्छा होता है?
उत्तर:
सुकरात के अनुसार न्यायपूर्ण व्यक्ति ही अच्छा होता है।
प्रश्न 29.
सुकरात न्याय की किस व्याख्या पर पॉलिमार्कस को सहमत कर लेते हैं?
उत्तर:
'किसी को भी चोट पहुँचाना किसी भी स्थिति में न्यायपूर्ण नहीं हो सकता', इस निष्कर्ष पर सुकरात, पॉलीमार्कस को सहमत कर लेते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा 40 शब्द)
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त की जड़ें कहाँ निहित होती हैं?
अथवा
राजनीतिक सिद्धान्त की जड़ें मानव अस्मिता के किन-किन पहलुओं में निहित हैं?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त की जड़ें या आधार मानवीय अस्मिता के पहलुओं में निहित होती हैं। मानव के पास 'विवेक' होता है और वह अपनी प्रत्येक गतिविधि में इसका प्रयोग करता है। इसी प्रकार मानव अपने मनोभावों को भाषा का प्रयोग करके दूसरों के समक्ष व्यक्त करना भी जानता है। मानव इन दोनों ही लक्षणों में अन्य प्राणियों की तुलना में अद्वितीय है। विशेष रूप से मानव अस्मिता के इन्हीं पहलुओं में राजनीतिक सिद्धान्त की जड़ें निहित हैं।
प्रश्न 2.
राजनीतिक सिद्धान्त किस प्रकार के प्रश्नों की पड़ताल (छानबीन) करता है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त कुछ विशेष एवं बुनियादी प्रश्नों का विश्लेषण करता है। इन प्रश्नों में विशेष रूप से, समाज को कैसे संगठित होना चाहिए? हमें सरकार की जरूरत क्यों है? सरकार का श्रेष्ठ रूप कौन-सा है? क्या कानून हमारी स्वतन्त्रता को सीमित करता है? राजसत्ता की नागरिकों के प्रति क्या जवाबदेही है? नागरिक के रूप में हमारी परस्पर जवाबदेही और दायित्व क्या हैं? इत्यादि प्रश्नों का उल्लेख किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
'राजनीति' के वास्तविक अर्थ की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अपने वास्तविक अर्थ में राजनीति राज्य, सरकार व विविध सरकारी संस्थाओं की गतिविधियों एवं इनके अध्ययन को कहा जाता है। इसी प्रकार जनता के सामाजिक विकास व सामाजिक समस्याओं के निदान हेतु की जाने वाली गतिविधियों एवं इनके अध्ययन को भी राजनीति के वास्तविक एवं व्यापक अर्थों में सम्मिलित किया जाता है। अतः वास्तविक अर्थ में राजनीति जनता, सरकार, राज्य व विविध संस्थाओं की सार्वजनिक गतिविधियों का समुच्चय है।
प्रश्न 4.
'सरकार' किन परिस्थितियों में हानिकारक हो सकती है? बताइए।
उत्तर:
सरकार निम्नलिखित परिस्थितियों में हानिकारक हो सकती है-
प्रश्न 5.
राजनीति का जन्म किस तथ्य से होता है? बताइए। .
उत्तर:
राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे व हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं? इस सम्बन्ध में आपस में बातचीत करके निर्णय लेना। एक तरह से इन वार्ताओं से जनता और सरकार दोनों जुड़ी होती है।
प्रश्न 6.
राजनीतिक सिद्धान्त की प्रमुख विषय-वस्तु (अध्ययन क्षेत्र) क्या है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त में मुख्यतया सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान के अस्तित्व में आने सम्बन्धी विचारों व नीतियों का व्यवस्थित विश्लेषण किया जाता है। इसी प्रकार इसके अन्तर्गत स्वतन्त्रता, समानता, न्याय, लोकतन्त्र, धर्मनिरपेक्षता आदि धारणाओं का अर्थ भी स्पष्ट किया जाता है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक सिद्धान्त विधि के शासन, अधिकारों के बंटवारे और न्यायिक पुनरावलोकन जैसी नीतियों की सार्थकता की जांच भी करता है।
प्रश्न 7.
राजनीतिक सिद्धान्त क्यों प्रासंगिक है? कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त इसलिए प्रासंगिक है, क्योंकि इसकी अवधारणाओं से संबंधित मुद्दे वर्तमान सामाजिक जीवन में अनेक मामलों में उठते हैं और इन मुद्दों की निरन्तर वृद्धि हो रही है। दूसरे जैसे-जैसे हमारी दुनियाँ बदल रही है, हम स्वतंत्रता और उस पर संभावित खतरों के नए-नए आयामों की खोज कर रहे हैं।
प्रश्न 8.
भारत में आज भी स्वतन्त्रता और समानता जैसे प्रश्नों का उठना बन्द नहीं हुआ है, क्यों?
उत्तर:
एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बावजूद आज भी भारत में बहुसंख्यक जनसंख्या के लिए स्वतन्त्रता व समानता जैसे विचार कल्पना मात्र हैं। लोग अधिकांश समय रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा, आवास जैसी बुनियादी सुविधाएँ जुटाने में ही लगे रहते हैं, और शोषण का भी शिकार होते हैं। अत: भारत में आज भी स्वतन्त्रता और समानता जैसे प्रश्न उठते रहते हैं।
प्रश्न 9.
संविधान की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता क्यों होती है? बताइए।
उत्तर:
'देश, काल व परिस्थिति के अनुसार मानवीय आवश्यकताओं, अपेक्षाओं तथा सम्बन्धों के प्रारूपों में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। संविधान का सम्बन्ध मानवीय सम्बन्धों के नियमन से होने के कारण संविधान में भी संशोधनों की आवश्यकता पड़ती रहती है। यही कारण है कि नवीन परिवर्तित परिस्थितियों में भी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए संविधान की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 10.
भारत में प्राथमिक शिक्षा प्राप्ति' का अधिकार महज औपचारिकता बना हुआ है, क्यों?
उत्तर:
भारत में आज भी ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों की संख्या अधिक है। इन क्षेत्रों में लोग भोजन, वस्त्र आदि बुनियादी सुविधाओं तक से वंचित हैं। अतः ऐसी स्थिति में माता-पिता चाहकर भी अपने बालक/बालिकाओं को विद्यालय नहीं भेज पाते हैं। यही कारण है कि प्राथमिक शिक्षा प्राप्ति का अधिकार भारत में महज एक औपचारिकता प्रतीत होती है। इसका एक अन्य कारण प्राथमिक विद्यालयों एवं गांवों का परिवेश भी है।
प्रश्न 11.
हमारे लिए समानता के मायने (अर्थ) क्यों बदलते रहते हैं?
उत्तर:
हमारे लिए समानता के मायने निम्नलिखित कारणों से बदलते रहते हैं
प्रश्न 12.
राजनीतिक सिद्धान्तकारों को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है? बताइए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्तकारों को दैनिक जीवन के विचारों से उलझना पड़ता है, संभावित अर्थों पर विचार-विमर्श करना पड़ता है और नीतिगत विकल्पों को सूत्रबद्ध करना पड़ता है। स्वतंत्रता, समानता, नागरिकता अधिकार, विकास न्याय, राष्ट्रवाद तथा धर्म निरपेक्षता आदि अवधारणाओं पर विचार-विमर्श के दौरान उन्हें विवादकर्ताओं से उलझना भी पड़ता है।
प्रश्न 13.
हमें राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन क्यों करना चाहिए?
अथवा
हमें राजनीतिक सिद्धान्त क्यों पढ़ना चाहिए ? उत्तर-हमें राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन निम्नलिखित कारणों से करना चाहिए
प्रश्न 14.
एक छात्र के लिए राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता बताइए।
उत्तर:
एक छात्र के रूप में हम राजनेता, नीति बनाने वाले नौकरशाह, राजनीतिक सिद्धान्त पढ़ाने वाले अध्यापक में से किसी एक पेशे को चुन सकते हैं। इसलिए परोक्ष रूप से यह अभी हमारे लिए प्रासंगिक है। दूसरे एक नागरिक के रूप में कार्य निर्वहन के लिए भी हमारे लिए राजनीतिक सिद्धान्तों का अध्ययन प्रासंगिक है। तीसरे, राजनीतिक सिद्धान्त हमें न्याय व समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच से अवगत कराते हैं।
प्रश्न 15.
राजनीतिज्ञों को जनोभिमुख बनाने में राजनीतिक सिद्धान्त का क्या उपयोग है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त हमें समाज, राज-व्यवस्था, राज्य व विभिन्न सार्वजनिक संस्थाओं के क्रियाकलापों का व्यापक ज्ञान प्रदान करते हैं। इस ज्ञान के आधार पर जनता राजनीतिज्ञों की गतिविधियों, नीतियों व इनके प्रभावों का आकलन तार्किक आधार पर करने योग्य हो जाती है। इस प्रकार जनता के जागरूक व सचेत होने पर राजनीतिज्ञ स्वाभाविक रूप से जनोभिमुख होने लगते हैं। अतः राजनीतिज्ञों को जनोभिमुख बनाने में राजनीतिक सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी प्रतीत होते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा 100 शब्द)
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर-राजनीतिक सिद्धान्त के प्रमुख उद्देश्य-राजनीतिक सिद्धान्त के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं
(अ) विविध राजनीतिक-सामाजिक प्रश्नों की खोजबीन-राजनीतिक सिद्धान्त का मुख्य उद्देश्य समाज, सरकार, राज्य, कानून, अधिकार इत्यादि सम्बन्धी विविध प्रश्नों की खोजबीन करना है। जैसे समाज को कैसे संगठित होना चाहिए, राजसत्ता का नागरिकों के प्रति क्या दायित्य है ? आदि।
(ब) विभिन्न परिभाषाओं का स्पष्टीकरण-राजनीतिक सिद्धान्त का एक अन्य उद्देश्य प्राचीन व वर्तमान काल के मुख्य राजनीतिक चिन्तकों के विचारों के आधार पर विभिन्न अवधारणाओं को परिभाषित करना एवं इन्हें स्पष्ट करना भी है।
(स) नागरिकों में राजनीतिक प्रश्नों पर तार्किकता व समझ का विकास-राजनीतिक सिद्धान्तों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य नागरिकों में राजनीतिक प्रश्नों के विषय में तार्किक रूप से सोचने एवं सम-सामयिक घटनाओं को सही प्रकार से समझने के सही तरीके का विकास करना भी है।
प्रश्न 2.
'राजनीति एक अतिव्यापक, बहुअर्थी अवधारणा है।' कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीति एक अति व्यापक व बहुअर्थी अवधारणा है । इसके समाज में विभिन्न अर्थ दिखाई पड़ते हैं। मुख्यतया राजनीति को निम्नलिखित दो सन्दर्भो में समझा जा सकता है
(1) नकारात्मक सन्दर्भ में-नकारात्मक सन्दर्भ में लोग राजनीति के अपने-अपने अर्थ लगाते हैं। राजनेता व राजनीतिक पदाधिकारी राजनीति को एक प्रकार की जनसेवा कहते हैं। वहीं नीति से जुड़े अन्य लोग राजनीति को दाँवपेंच की कला मानते हैं। कई अन्य लोगों के मत में जो नेता करते हैं, वही राजनीति है। इस प्रकार नकारात्मक सन्दर्भ में राजनीति मुख्य रूप से येन-केन प्रकारेण स्वार्थपूर्ति की एक कला, गतिविधि या प्रक्रिया प्रतीत होती है।
(2) सकारात्मक सन्दर्भ में सकारात्मक सन्दर्भ में राजनीति को राज्य, सरकार व सार्वजनिक संस्थाओं की गतिविधियों के रूप में माना जाता है। इस सन्दर्भ में जनता की सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु संगठित होकर की जाने वाली सार्वजनिक गतिविधियों को भी राजनीति के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। अपने सकारात्मक सन्दर्भ में राजनीति नीतियों के निर्धारण, क्रियान्वयन एवं विविध सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु की जाने वाली सार्वजनिक (सरकारी) गतिविधियों को माना जाता है। राजनीति विज्ञान में हमारा सरोकार 'राजनीति' के सकारात्मक अर्थ से ही होता है।
प्रश्न 3.
“राजनीति ने हमें साँप की तरह जकड़ रखा है"-कथन की व्याख्या करें।
अथवा
"राजनीति ने हमें साँप की कुंडली की तरह जकड़ रखा है।" यह कथन किसका है ? इस कथन की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यह कथन महात्मा गाँधी जी का है। महात्मा गाँधी ने राजनीति के बहुआयामी व अपरिहार्य पक्षों की ओर इशारा करते हुए ही यह कहा था कि-"राजनीति ने हमें साँप की तरह जकड़ रखा है।" वस्तुतः इस कथन की व्याख्या करते हुए हम कह सकते हैं कि राजनीति हमारे परिवार, समाज, राज्य व विभिन्न सार्वजनिक संस्थाओं का अनिवार्य हिस्सा है। हम चाहें या न चाहें राजनीति से हम स्वयं को पृथक नहीं कर सकते। हम अपने परिवार से लेकर विद्यालयों, अस्पतालों, कार्यालयों इत्यादि प्रत्येक स्थान पर अपने साथ किये जाने वाले बर्ताव का निरन्तर विश्लेषण करते रहते हैं ।
समानता, स्वतन्त्रता व लोकतांत्रिक प्रकृति का व्यवहार हमें प्रसन्नता प्रदान करता है, जबकि भेदभाव, असमानता, शोषण इत्यादि से हम उद्वेलित हो उठते हैं और इसके निदान और प्रतिकार के उपाय खोजने लगते हैं। इस प्रकार दोनों ही परिस्थितियों में हमारी गतिविधि, व्यवहार व प्रतिक्रियाएँ राजनीति का ही हिस्सा होती हैं। इसी प्रकार प्रत्येक सरकारी नीति, कार्यक्रम या योजना अथवा निर्णय का भी हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। जैसे मंहगाई का बढ़ना या कम होना, आय में वृद्धि अथवा बेरोजगारी इत्यादि। अतः अनिवार्य रूप से राजनीति ने हमें साँप की कुण्डली की तरह पूर्णतया जकड़ रखा
प्रश्न 4.
जनता की गतिविधियाँ किस प्रकार राजनीति का हिस्सा हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"जनता की गतिविधियाँ राजनीति का एक महत्वपूर्ण भाग हैं।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनता की गतिविधियाँ राजनीति का हिस्सा हैं क्योंकि राजनीति का जन्म इस तथ्य से होता है कि हमारे और हमारे समाज के लिए क्या उचित एवं वांछनीय है और क्या नहीं। इस विषय में हमारी दृष्टि अलग-अलग होती है। अतः इसमें समाज में चलने वाली बहुविधि वार्ताएँ शामिल हैं, इनके माध्यम से ही सामूहिक निर्णय किए जाते हैं। एक स्तर से इन वार्ताओं में सरकारी कार्यों और इनका जनता से जुड़ा होना सम्मिलित है, तो दूसरे स्तर से जनता का संघर्ष और उसके निर्णय लेने पर संघर्ष का प्रभाव भी निहित है। वस्तुत: जब जनता आपस में वार्ता करती है और उन सामूहिक गतिविधियों में भाग लेती है जो सामाजिक विकास को बढ़ावा देने और सामान्य समस्याओं के समाधान में मदद करने के उद्देश्य से तैयार की गई होती हैं, तब यह कहा जाता है कि जनता राजनीति में संलग्न है। इस प्रकार जनता की गतिविधियाँ राजनीति का हिस्सा बन जाती हैं।
प्रश्न 5.
वैश्विक संचार तकनीक के विकास से होने वाले लाभों व हानियों का उल्लेख करें।
उत्तर:
वैश्विक संचार तकनीक का वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रचुर मात्रा में विकास हुआ है। यह विकास कई सन्दर्भो में लाभदायक सिद्ध हुआ है तो कई सन्दर्भो में हानिकारक भी बनता जा रहा है। वैश्विक संचार तकनीक के विकास के प्रमुख लाभ व हानियाँ निम्नलिखित हैं
लाभ :
(i) सामाजिक समस्याओं का जोरदार ढंग से उठना-संचार तकनीक के चलते विविध सामाजिक समस्थाओं को जोरदार ढंग से प्रसारित व प्रचारित किया जा सकता है। इससे सरकार पर इनके निदान का दबाव पड़ता है और जनमत भी प्रबुद्ध होता है।
(ii) पिछड़े, उपेक्षित वर्गों के हितों का संरक्षण-संचार तकनीक के चलते समाज के पिछड़े व उपेक्षित वर्गों के हितों के संरक्षण हेतु व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा सकता है। इसके पा रामस्वरूप अनेक सक्रिय लोगों का समूह शीघ्र ही बन जाता है, जो इस हेतु आवाज उठाते हैं।
हानियाँ-
(i) आतंकवाद व अपराधों में वृद्धि-वैश्विक संचार तकनीक ने आज आतंकवादियों व अपराधियों को अधिक सक्रिय व तेज कर दिया है। संचार तकनीक जैसे इंटरनेट, मोबाइल इत्यादि द्वारा ये अपना विशाल नेटवर्क बनाकर समन्वय से कार्य करने लगे हैं, जो प्रायोजित आतंकवाद व संगठित अपराध को बढ़ा रहे हैं।
(ii) व्यक्तिगत गोपनीयता की समाप्ति-संचार तकनीकों के विकास ने व्यक्ति की वैयक्तिक गोपनीयता पर भी कुठाराघात किया है। व्यक्ति की निजी गतिविधियों का भी सार्वजनीकरण होने लगा है, जो हानिकारक है।
प्रश्न 6.
"कितना नियमन न्यायोचित है एवं किसको नियमन करना चाहिए, सरकार को अथवा कुछ स्वतंत्र नियामकों को ?" उक्त कथन के सन्दर्भ में राजनीतिक सिद्धान्त की वर्तमान प्रासंगिकता को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हम जिस दुनिया में रहते हैं, वह तीव्रता के साथ परिवर्तित हो रही है। आज हम स्वतंत्रता एवं स्वतंत्रता पर संभावित खतरों के नये-नये आयामों की खोज में लगे हुए हैं। उदाहरण के रूप में वैश्विक संचार तकनीक विश्वभर में आदिवासी संस्कृति या वनों की सुरक्षा के लिए क्रियाशील कार्यकर्ताओं का परस्पर सम्पर्क सुगम बना रही है। वहीं दूसरी ओर इसने आतंकवादियों एवं अपराधियों को भी अपना संगठन स्थापित करने की क्षमता भी प्रदान की है। इसी प्रकार यदि हम इंटरनेट के बारे में जानते हैं तो इससे भविष्य में व्यापार में वृद्धि होना सुनिश्चित है। इसका आशय यह है कि वस्तुओं और सेवाओं के क्रय के लिए हम अपने बारे में ऑनलाइन सूचना दें, उसकी सुरक्षा होनी चाहिए।
यद्यपि इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोग राजकीय नियमन नहीं चाहते हैं लेकिन वे भी वैयक्तिक सुरक्षा व गोपनीयता को बनाये रखने के लिए किसी न किसी प्रकार का नियमन अति आवश्यक मानते हैं। इसलिए यह प्रश्न उठता है कि इंटरनेट का उपयोग करने वालों को कितनी स्वतंत्रता प्रदान की जावे ताकि वे उसका सदुपयोग कर सकें एवं उसका कितना नियमन न्यायोचित है जिससे कि उसका दुरुपयोग न हो सके तथा यह नियमन करने वाली संस्था कौन होनी चाहिए- सरकार या अन्य कोई स्वतंत्र संस्था ? राजनीतिक सिद्धान्त इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने में हमारी बहुत सहायता प्रदान कर सकता है। इसलिए इसकी वर्तमान में बहुत अधिक प्रासंगिकता
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा-150 शब्द)
प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धान्त में हम क्या पढ़ते हैं? सविस्तार विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त में हम क्या पढ़ते हैं ? इस प्रश्न का सीधा सम्बन्ध राजनीतिक सिद्धान्त के विषय एवं अध्ययन क्षेत्र से है। इस सन्दर्भ में विश्लेषण किया जाए तो हम कह सकते हैं कि राजनीतिक सिद्धान्त में हम निम्नलिखित विषय-वस्तुओं को पढ़ते हैं
(अ) विभिन्न राजनीतिक मूल्य व धारणाएँ-राजनीतिक सिद्धान्त के अन्तर्गत हम विभिन्न राजनीतिक मूल्यों व धारणाओं का अध्ययन करते हैं । इन मूल्यों में मुख्य रूप से लोकतन्त्र, स्वतन्त्रता, समानता इत्यादि का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है।
(ब) राजनीतिक चिन्तन-राजनीतिक सिद्धान्त में हम विभिन्न विचारकों द्वारा प्रतिपादित राजनीतिक चिन्तन का भी अध्ययन करते हैं। इसके अन्तर्गत प्लेटो, अरस्तू, मनु, कौटिल्य आदि प्राचीन विचारकों से लेकर महात्मा गाँधी, अरविन्द घोष, भीमराव अम्बेडकर, रूसो आदि आधुनिक विचारकों के विचारों का अध्ययन किया जाता है। यह चिन्तन ही किसी व्यवस्था के स्वरूप के विश्लेषण एवं वांछित परिवर्तनों की पहचान का मार्ग प्रशस्त करता है।
(स) विभिन्न राजनीतिक परिवर्तनों के सन्दर्भ में क्यों ? क्या ? कैसे ? जैसे प्रश्नों का विश्लेषण-राजनीतिक सिद्धान्त में हम समय-समय पर हुए उन राजनीतिक परिवर्तनों का विश्लेषण भी करते हैं जो अतीत में होते रहे हैं अथवा वर्तमान में हो रहे हैं। इन परिवर्तनों के सन्दर्भ में क्यों ? क्या ? कैसे ? जैसे प्रश्नों का विश्लेषण किया जाता है तथा परिवर्तनों के औचित्य व आवश्यकता का पता लगाया जाता है।
(द) सरकार की नीतियों का अध्ययन-राजनीतिक सिद्धान्त में हम इस बात का भी अध्ययन करते हैं कि किन विचारों और नीतियों के चलते हमारे सामाजिक जीवन, सरकार तथा संविधान ने आकार ग्रहण किया है। इसके साथ-साथ यह भी पता लगाया जाता है कि वर्तमान में सरकार की नीतियों का समाज व व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ रहा है तथा इनमें क्या परिवर्तन अपेक्षित
प्रश्न 2.
हमारे लिए राजनीतिक सिद्धान्त के क्या व्यावहारिक उपयोग हैं? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त का व्यावहारिक उपयोग-राजनीतिक सिद्धान्त के हमारे दैनिक जीवन में विभिन्न व्यावहारिक उपयोग दृष्टिगोचर होते हैं। हम जब भी परिवार, कार्यालय, विद्यालय, अस्पताल इत्यादि स्थानों पर होते हैं या जाते हैं तो हमारी यह अपेक्षा होती है कि हमें प्राथमिकता दी जाए तथा हमारे साथ समानता का व्यवहार हो। यह अपेक्षा ही हमें, राजनीतिक प्राणी बना देती है। अपनी इसी अपेक्षा की पूर्ति हेतु हम जिन गतिविधियों को करते हैं, वे राजनीति कहलाती हैं। ये गतिविधियाँ बिना किसी सैद्धान्तिक आधार के प्रभावशून्य होती हैं। अतः हमें अपनी गतिविधियों को प्रभावी बनाने के लिए राजनीतिक सिद्धान्तों की आवश्यकता होती राजनीतिक सिद्धान्त ही हमें स्वतन्त्रता, समानता, अधिकार, पंथनिरपेक्षता इत्यादि धारणाओं के सन्दर्भ में तार्किक आधार व चिन्तन उपलब्ध कराते हैं।
राजनीतिक सिद्धान्तों का समुचित ज्ञान हमें व्यवस्था व समाज के प्रति जागरूक व संवेदनशील बनाता है। इससे एक अन्य व्यावहारिक उपयोग दृष्टिगोचर होता है, जो राजनेताओं का जनोभिमुखीकरण है। जब हम राजनीतिक सिद्धान्तों की जानकारी व ज्ञान से तार्किक तथा सारगर्भित आंकलन करने योग्य हो जाते हैं तथा अपने मतों का इसी आधार पर प्रयोग करते हैं तो राजनेता भी हमारी बात पर ध्यान देते हैं। वे जनसमस्याओं के निस्तारण पर भी ध्यान देने लगते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि राजनीतिक सिद्धान्त हमारे लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यावहारिक रूप से उपयोगी हैं।
प्रश्न 3.
राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन का औचित्य बताइए।
अथवा
राजनीतिक सिद्धान्तों के अध्ययन की प्रासंगिकता को विस्तार से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन का औचित्य (प्रासंगिकता)-राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन की प्रासंगिकता अथवा औचित्य निम्न प्रकार से हैं
(i) विभिन्न समूहों के लिए प्रासंगिक-राजनीतिक सिद्धान्त के अध्ययन का एक औचित्य यह है कि इसका अध्ययन वकील, जज, राजनीतिक कार्यकर्ता, पत्रकार इत्यादि विभिन्न समूहों हेतु समान रूप से प्रासंगिक है। यह गणित के सामान्य अध्ययन व जानकारी की भांति ही इन सभी समूहों को अपने कार्य में प्रयुक्त होने वाली सामान्य जानकारी व ज्ञान प्रदान करता है।
(ii) नागरिकों को जागरूक व सहभागी बनाने में उपयोगी-राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन इसलिए भी उपयोगी है कि यह नागरिकों को विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं, संगठनों इत्यादि की उत्पत्ति व क्रिया-कलापों से अवगत कराता है। राजनीतिक व्यवस्था में नागरिकों की स्थिति व महत्व का ज्ञान प्रदान करता है। अतः इस ज्ञान के आधार पर नागरिक अधिक जागरूक, सक्रिय व व्यवस्था में सहभागी बनते हैं।
(iii) सुव्यवस्थित व तार्किक सोच का विकास-राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन इसलिए भी औचित्यपूर्ण है कि यह हमें न्याय, समानता, स्वतन्त्रता इत्यादि के विषय में सुव्यवस्थित चिन्तन से अवगत कराता है। इस चिन्तन के ज्ञान से हम अपने विचारों को परिष्कृत व सार्वजनिक हित के लिए उपयोगी बना पाते हैं। इस प्रकार राजनीतिक सिद्धान्त का अध्ययन सुव्यवस्थित व तार्किक सोच के विचार में उपयोगी होने के कारण भी औचित्यपूर्ण है।
(iv) जीवन के विविध महत्वपूर्ण मामलों में उपयोगी-स्वतन्त्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता हमारे जीवन के अमूर्त मसले नहीं हैं, हमें प्रतिदिन परिवार, विद्यालय, कार्यालय, प्रतीक्षालय आदि प्रत्येक स्थान पर इनसे रूबरू होना पड़ता है अर्थात् इनका सामना करना पड़ता है। इस सन्दर्भ में राजनीतिक सिद्धान्त ही हमें अपने अधिकारों व कर्तव्यों के सही रूप से क्रियान्वयन व प्राप्ति के तरीकों का ज्ञान प्रदान करता है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अरस्तु के यह घोषणा करने में कि “मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक प्राणी है'' उसका कौनसा एक आशय नहीं था?
(अ) मनुष्य केवल राजनीतिक समुदाय में ही अच्छा जीवन' जी सकता है।
(ब) राजनीति एक नैतिक क्रिया है जिसका सरोकार एक न्यायपूर्ण समाज की रचना है।
(स) राज्य और सिविल समाज के बीच विभेद है।
(द) राजनीति एक श्रेष्ठ विज्ञान है जो अनिवार्यतः एक अच्छे समाज की रचना का प्रयास है।
उत्तर:
(स) राज्य और सिविल समाज के बीच विभेद है।
प्रश्न 2.
निर्देशक तत्वों में समान नागरिक संहिता का सुझाव सुनिश्चित करता/करती है
(अ) आर्थिक समानता
(ब) राष्ट्रीय सुरक्षा
(स) राष्ट्रीय एकीकरण
(द) समाज के कमजोर वर्ग की सहायता।
उत्तर:
(स) राष्ट्रीय एकीकरण
प्रश्न 3.
कल्याणकारी राज्य मूलतः संश्लेषण है
(अ) उदारवाद और समाजवाद का
(ब) समाजवाद और साम्यवाद का
(स) समाजवाद और आदर्शवाद का
(द) व्यक्तिवाद और फासीवाद का।
उत्तर:
(स) समाजवाद और आदर्शवाद का
प्रश्न 4.
कल्याणकारी राज्य के उत्थान के साथ निम्न में से किसी एक तथ्य पर अधिक बल दिया जाने लगा
(अ) निजी सम्पत्ति के सम्पूर्ण अधिकार पर
(ब) समाज के हित में निजी सम्पत्ति का नियमन
(स) निजी सम्पत्ति के अधिकार की समाप्ति
(द) सम्पत्ति का समान बँटवारा।
उत्तर:
(ब) समाज के हित में निजी सम्पत्ति का नियमन
प्रश्न 5.
गाँव का गणतंत्र गाँधी जी ने कल्पित किया
(अ) भारतीय प्रणाली की तीसरी पंक्ति
(ब) राज्य के निर्भर अंग
(स) केन्द्र और राज्यों में कड़ी
(द) एक स्वतंत्र इकाई।
उत्तर:
(द) एक स्वतंत्र इकाई।
प्रश्न 6.
वोट देने का अधिकार एक
(अ) सामाजिक अधिकार है
(ब) व्यक्तिगत अधिकार है
(स) राजनीतिक अधिकार है
(द) विधिक अधिकार है।
उत्तर:
(स) राजनीतिक अधिकार है
प्रश्न 7.
भारतीय संविधान का कौन-सा भाग कल्याणकारी राज्य का आदर्श घोषित करता है?
(अ) प्रस्तावना
(ब) मौलिक अधिकार
(स) राज्य नीति के निर्देशक तत्व
(द) मौलिक कर्त्तव्य
उत्तर:
(स) राज्य नीति के निर्देशक तत्व
प्रश्न 8.
प्रथम व्यवस्थित भारतीय राजनीतिक सिद्धांत इसमें पाया जा सकता है
(अ) वेद
(ब) अर्थशास्त्र
(स) शुक्र की नीति
(द) भगवद् गीता।।
उत्तर:
(ब) अर्थशास्त्र