These comprehensive RBSE Class 11 Home Science Notes Chapter 9 अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से संबंध और मेल-जोल will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Home Science Chapter 9 Notes अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से संबंध और मेल-जोल
→ परिवार
परिचय:
परिवार समाज की मूल इकाई है। बच्चों और वयस्क दोनों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परिवार जरूरी है। परिवार किसी भी समाज की संस्कृति को बनाए रखने में भी सहायता करता है। यह सभी बच्चों की देखभाल और परवरिश द्वारा उनके सम्पूर्ण विकास में योगदान देता है।
→ परिवार की परिभाषा:
हम परिवार को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं-व्यक्तियों का एक समूह जो विवाह के बंधन, खून के रिश्ते या गोद लिए जाने से बँधकर एक परिवार का निर्माण करते हैं, जो पति और पत्नी, माता और पिता, पुत्र और पुत्री, भाई और बहन की अपनी-अपनी सामाजिक भूमिकाओं में एक-दूसरे के साथ परस्पर व्यवहार करते हैं और एक समान संस्कृति का सृजन करते हैं।
→ परिवार के प्रकार:
परिवारों का वर्गीकरण निम्न आधारों पर किया जाता है
(अ) वंश के आधार पर इन्हें पितृवंशीय और मातृवंशीय परिवारों में,
(ब) निवास स्थान के आधार पर इन्हें पितृस्थानिक और मातृस्थानिक परिवारों में तथा
(स) परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर इन्हें एकल, विस्तृत तथा संयुक्त परिवारों में वर्गीकृत किया जाता है।
यथा-
(अ) पितृवंशीय एवं मातृवंशीय परिवार-जो परिवार पहचान के लिए पिता के नाम का उपयोग करते हैं, वे पितृवंशीय कहलाते हैं और जो माता के नाम का उपयोग करते हैं, वे मातृवंशीय कहलाते हैं । पितृवंशीय/मातृवंशीय होना सुनिश्चित करता है कि निर्णायक कौन है पिता या माता । इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि उत्तराधिकार के नियम भी इन्हीं से बने होते हैं।
(ब) पितृस्थानिक और मातृस्थानिक परिवार-पितृस्थानिक परिवार वे हैं जो पिता के मूल घर में और मातृस्थानिक परिवार वे हैं जो माता के मूल घर में रहते हैं।
(स) एकल, विस्तृत एवं संयुक्त परिवार-एक साथ रहने वाले व्यक्तियों के आधार पर ही परिवार की पहचान की जा सकती है कि वह एकल परिवार है या विस्तृत परिवार । यदि आप अपने माता-पिता और अविवाहित भाई-बहनों के साथ रहते हैं तब यह एकल परिवार कहलाता है। आप में से कुछ के दादा-दादी या चाचा-चाची आपके साथ रहते हैं जो विस्तृत परिवार कहलाता है। संयुक्त परिवार वह परिवार है जहाँ कई पीढ़ियों के सदस्य एक साथ रहते हैं, विशेष रूप से विवाहित दंपत्ति (सामान्यतः बेटे) और उनके विवाहित, अविवाहित बच्चे तथा उनके भी बच्चे एक साथ रहते हैं। इसका आकार बहुत बड़ा हो सकता है और बहुधा एक ही पेशे के होते हैं।
→ परिवार के कार्य-परिवार अपने सदस्यों, विशेष रूप से बच्चों के लिए कुछ अनिवार्य कार्य प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध है जो निम्नलिखित हैं
- पालन-पोषण करना-सभी परिवार अपने बच्चों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उनका पालनपोषण करते हैं। एक किशोर लड़के को भी देखभाल करने वाले स्नेहपूर्ण परिवार की आवश्यकता होती है। इस तरह से परिवार हर उम्र में विभिन्न अनुभवों और परिस्थितियों द्वारा अपने सदस्यों को महत्वपूर्ण प्यार और देखभाल देने का प्रयास करता है।
- समाजीकरण-यह दैनिक पारस्परिक क्रियाओं द्वारा युवा पीढ़ी को सामाजिक प्रक्रियाओं से अवगत कराने की प्रक्रिया है। जो मूल्य परिवार बच्चों को देते हैं वह बहुधा रूपातंरित हो जाते हैं और उन्हें समुदाय, क्षेत्र और राष्ट्र के सामान्य सामाजिक परिदृश्य से लेकर अपनाया जाता है। यद्यपि बहुत-सी प्रथाएँ सामान्य होती हैं लेकिन प्रत्येक परिवार इन्हें अपने विशिष्ट तरीके से अपनाता है।
- परिवार के सदस्यों को दर्जा प्रदान करना और उनकी भूमिका-किशोर लड़का पुत्र, भाई या देवर/ साले की भूमिका में हो सकता है। प्रत्येक भूमिका की कुछ जिम्मेदारी और विशेषताएँ होती हैं जो सामाजिक रूप से परिभाषित होती हैं।
- आर्थिक कार्य-पूरे विश्व में माता-पिता परिवार की व्यवस्था करने हेतु जीविका उपार्जन में व्यस्त रहते हैं। परिवार अपने बच्चों, अन्य वयस्कों, वृद्ध व्यक्तियों और विकलांग बच्चों/वयस्कों के लिए व्यवस्था करते हैं जो अस्थायी रूप से अनुत्पादक हो सकते हैं।
- मनोवैज्ञानिक सहारे की आवश्यकता को पूरा करना-अपने सभी सदस्यों के लिए सामंजस्यपूर्ण संबंध और सहयोगात्मक भूमिका बनाए रखना परिवार के सभी सदस्यों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। परिवार में सदस्य एक-दूसरे की देखभाल करने वाले होने चाहिए और उनमें पारस्परिक संबंध सौहार्द्रपूर्ण होना चाहिए। अधिकांश समाज प्रेमपूर्ण सम्बन्धों के लिए परिवार पर निर्भर करते हैं।
- अन्य कार्य-परिवार अन्य कार्य भी करता है जो मनोरंजक, धार्मिक और सामाजिक हैं और समाज की निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण हैं। परिवार सामान्यतः सामाजिक उत्सव जैसे-जन्मदिवस, पूजा, समारोह तथा अन्य ऐसे कार्यकलापों के लिए एक-दूसरे के घर जाते हैं। परिवार अपने बच्चों को सामाजिक दायित्वों को निभाने के लिए तैयार करता है। परिवार नागरिक मूल्यों की पाठशाला है।
→ पारिवारिक जीवन चक्र-वस्तुतः सम्पूर्ण पारिवारिक जीवन चक्रीय है, इसलिए यह 'पारिवारिक जीवन चक्र' कहलाता है। पारिवारिक जीवन चक्र में साधारणतः सात अवस्थाएँ होती हैं, ये हैं
- विवाहित दंपत्ति (बिना बच्चों के)
- बच्चों वाला परिवार
- पूर्व विद्यालयी. बच्चों वाला परिवार
- विद्यालय जाने वाले बच्चों और किशोरों वाला परिवार
- उच्चतर शिक्षा/रोजगार के लिए तैयार युवाओं वाला परिवार
- बड़े/विवाहित बच्चों वाले अधेड़ आयु के माता-पिता
- वृद्ध दंपत्ति सेवानिवृत्ति से मृत्यु तक दोनों पति-पत्नी।
→ पारिवारिक विकासात्मक कार्य-माता-पिता परिवार के लिए विभिन्न कार्य करते रहे हैं। माता-पिता द्वारा किए जाने वाले कार्यों की भिन्नताएँ बच्चों के आयु वर्ग पर निर्भर करती हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि पारिवारिक विकासात्मक कार्य ऐसी जिम्मेदारियाँ हैं जो परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं से विशिष्ट रूप से संबंधित हैं।
→ पारिवारिक क्रियाकलाप-परिवार के सदस्य एक-दूसरे के साथ पारस्परिक क्रिया करते समय अपनीअपनी भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक परिवार का पारस्परिक क्रियाओं का अपना पैटर्न होता है। ये पैटर्न पारिवारिक क्रियाकलाप कहलाते हैं। माता-पिता को समझना और उनके साथ अच्छे संबंध बनाना परिवार की सबसे महत्वपूर्ण क्रियाओं में से एक है। माता-पिता का बच्चों के व्यक्तित्व और भावी जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
→ परिस्थितियों से निपटना-व्यवसाय का चुनाव, युवाओं द्वारा पहने जाने वाले परिधान, मित्रों का चुनाव, घर की जिम्मेदारियों में शामिल होना, टेलीविजन देखना आदि परिवार के सदस्यों के बीच असहमति और विरोध के कुछ क्षेत्र हैं। प्रत्येक परिवार का ऐसे विरोधों से निपटने का अलग-अलग तरीका होता है। दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण को समझना परिवार में विरोध से निपटने का प्रभावी तरीका है।
→ सदस्यों को सहारा देना और उनका मनोबल बढ़ाना-कठिन परिस्थितियों के दौरान युवकों और बच्चों की समझदारी और सहयोग को कम नहीं आंका जाना चाहिए। बच्चों की उपस्थिति और उनका साथ विकट स्थितियों में भी परिवारों को सहायता प्रदान करने की क्षमता रखता है।
→ परिवार में आपसी संप्रेषण-पारिवारिक संप्रेषण परिवार के सदस्यों के बीच शाब्दिक और गैर-शाब्दिक सूचना/जानकारी के आदान-प्रदान का तरीका है। परिवार में आपसी संप्रेषण (बातचीत) बहुत अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सदस्यों को अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं और सरोकारों को एक-दूसरे के साथ बाँटने और सामाजिक एवं भावात्मक सहायता प्रदान करने के योग्य बनाता है।
संप्रेषण की चार शैलियाँ निम्नलिखित हैं
- स्पष्ट और प्रत्यक्ष संप्रेषण-यह तब होता है जब बात को परिवार के उपयुक्त सदस्य से सरल और प्रत्यक्ष रूप से कहा जाता है।
- स्पष्ट और अप्रत्यक्ष संप्रेषण-इसमें संदेश तो स्पष्ट होता है परंतु यह उस व्यक्ति को लक्षित नहीं होता जिसके लिए यह कहा जाता है।
- प्रच्छन्न और प्रत्यक्ष संप्रेषण-इसमें संदेश अस्पष्ट होता है परंतु परिवार के उपयुक्त सदस्य को लक्षित होता है।
- प्रच्छन्न और अप्रत्यक्ष संप्रेषण-यह तब होता है जब संदेश और लक्षित प्राप्तकर्ता दोनों ही अस्पष्ट होते हैं।
→ प्रभावी पारिवारिक संप्रेषण के विकास के लिए मुख्य बातें-अधिक प्रभावी संप्रेषणकर्ता बनने के लिए परिवार कई तरीके अपना सकते हैं और बदले में अपने सम्बन्ध की गुणवत्ता सुधार सकते हैं। प्रभावी पारिवारिक संप्रेषण बनाने के लिए कुछ निम्नलिखित सुझाव हैं
- संप्रेषण बढ़ाना-परिवार के सदस्यों के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि नियमित और प्रत्यक्ष रूप से बातचीत के लिए समय निकाला जाए। परिवार में बड़ों के साथ समय बिताना परिवार के बंधन को सुदृढ़ करेगा और उनके साथ बातचीत करने पर घर के सदस्यों को अच्छा लगेगा और बुजुर्गों के महत्व का अहसास दिलाएगा। इस प्रकार यह पारस्परिक प्रेम और आदर की भावना को प्रेरित करेगा।
- स्पष्ट रूप से संप्रेषण करना-खुशहाल परिवार साधारणतः अपने विचार और अनुभव स्पष्ट तरीके से व्यक्त करते हैं। परिवार के सदस्यों के बीच उत्पन्न समस्याओं का समाधान करने में यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है।
- सक्रिय श्रोता बनना-प्रभावी संप्रेषण का अनिवार्य पहलू है दूसरे जो कह रहे हैं उसे सुनना। सक्रिय श्रोता बनने के लिए दूसरे व्यक्ति के विचारों को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास करना शामिल है। सक्रिय सुनने में दूसरे व्यक्ति के विचार को स्वीकार करना और उसका सम्मान करना शामिल है। इस प्रकार, परिवार व्यक्ति के लिए हमेशा महत्वपूर्ण संदर्भ बना रहेगा। परिवार के बाद, अधिकांश बच्चों के लिए विद्यालय दूसरा महत्वपूर्ण संदर्भ होता है जो दूसरे लोगों के साथ पारस्परिक क्रिया करने का अवसर प्रदान करता है।
→ विद्यालय-समकक्षी और शिक्षक
(1) पाठशाला-यह एक ऐसी जगह है जहां आप अपने मित्रों से मिलते हैं। आप अध्यापकों की भूमिका में वयस्कों से भी मिलते हैं और उनमें से अधिकांश जीवन के प्रति आपके रवैये को निर्धारित करते हैं। विद्यालय हमारे जीवन में शैक्षिक कार्य करने के अलावा सामाजिक संबंधों के नेटवर्क के रूप में भी कार्य करते हैं जो हमारे मूल्य, व्यवहार और सोच को अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया द्वारा प्रत्यक्ष रूप से और विद्यालय में समकक्षों और शिक्षकों के साथ अन्तःक्रिया करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। दूसरे शब्दों में यह समाजीकरण का एक माध्यम है।
(2) हम उम्र वालों के साथ संबंध
- छः माह के शिशु भी दूसरे शिशुओं में रुचि दिखाते हैं। जब उन्हें एक साथ रखा जाता है तो वे एक-दूसरे को छूने का प्रयास करते हैं, एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं और एक-दूसरे को देखते हैं।
- एक से तीन वर्ष की आयु के बीच बच्चा दूसरे बच्चों के साथ सामाजिक अंतःक्रिया करना आरंभ करते हैं।
- पाठशाला पूर्व वर्षों में बच्चा अधिक स्थायी तरीके से दूसरों से संबंध बनाना शुरू करता है।
- विद्यालय पूर्व बड़े बच्चे एक-दूसरे के साथ खेलते हैं, सहयोग करते हैं और खेल के दौरान अपनी बारी लेते हैं।
- मध्य बचपन के वर्षों के आरंभ तक बच्चा यह महसूस करने लगता है कि मित्र वे हैं जिनके साथ वे सामान्य रुचि और भावना का आदान-प्रदान करते हैं। इस दौरान बच्चे की मित्रता का दायरा साधारणतः बढ़ता है, बच्चा मित्रों के साथ अधिक समय बिताता है और उनका प्रभाव अधिक शक्तिशाली हो जाता है।
- किशोरावस्था तक यह मित्रता गहरी हो जाती है और मित्र एक-दूसरे से अंतर्विचार और अनुभव साझा करते हैं। किशोरों का जिगरी दोस्तों का समूह गुट/टोली 'क्लिक' कहलाता है।
→ मित्रता का महत्व-मित्रता प्रत्येक आयु में महत्व रखती है क्योंकि इसमें यह भावना होती है कि जो उसे पसंद करते हैं वे उसे स्वीकार करते हैं। यह बच्चे को भावात्मक सुरक्षा प्रदान करती है जो वयस्क जीवन में सामाजिक और भावात्मक संबंध विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है। वस्तुतः जिन भावनाओं और अनुभवों को किशोर घर पर व्यक्त नहीं कर पाते उन्हें मित्रों के समक्ष व्यक्त करना किशोरों को सामान्य' और अकेले न होने की अनुभूति कराने में सहायता करता है, क्योंकि वे महसूस करते हैं कि उनके मित्रों की भी इसी तरह की चिंताएँ और अनुभव हैं।
→ अध्यापकों का प्रभाव:
- विद्यालय में अध्यापकों का बहुत अधिक प्रभाव होता है। वे माता-पिता के समान सीमाएँ निर्धारित करते हैं, अपेक्षाएँ रखते हैं, मूल्यों से अवगत कराते हैं और विकास को बढ़ावा देते हैं।
- अध्यापक शक्तिशाली 'रोल मॉडल' यानि 'आदर्श' होते हैं और बहुधा बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं। बच्चे अध्यापकों के उस व्यवहार का अनुकरण करते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं और महत्व देते हैं। वे अपने पसंदीदा अध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए विषयों में आनंद का अनुभव करते हैं। अध्यापकों की अपेक्षाएँ अक्सर छात्रों के निष्पादन और व्यवहार पर मुख्य प्रभाव डालती हैं। ये छात्र की उपलब्धि, प्रेरणा, आत्मसम्मान, सफलता की आशा और वास्तविक उपलब्धि को प्रभावित करती हैं। ... शिक्षक अपने छात्रों की शिक्षा में बहुत ही रचनात्मक भूमिका निभाते हैं और भविष्य के लिए उनके मार्गदर्शक और परामर्शदाता के रूप में कार्य करते हैं।
→ समुदाय और समाज
(1) परिचय:
मानव एक सामाजिक प्राणी है। हम अपने जीवन में अन्य लोगों के साथ निकट संपर्क में रहते हैं। मिलनसारिता मानव जीवन का एक सहज गुण है। हमें अन्य लोगों के बीच रहना अच्छा लगता है, हम दूसरों को सुनकर और हमारे बारे में उनकी प्रतिक्रियाएँ देखकर अपने बारे में अपनी राय बनाते हैं, हम अपने आस-पास के लोगों के साथ मिलकर अपने समाज तथा संस्कृति के बारे में सीखते हैं । हम अपने इर्द-गिर्द देखकर सही और गलत की धारणा बनाते हैं। अनुभवों का हमारे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ता है, अन्य लोगों के साथ हमारा व्यवहार हमारे जीवन पर प्रमुख प्रभाव डालता है।
(2) समुदाय:
- समुदाय की धारणा एक समूह की धारणा है जो साझे मूल्यों, विश्वासों, स्थानों, हितों तथा एक साझी विरासत को बाँटता है। समूह के आकार से कोई फर्क नहीं पड़ता। समुदाय लोगों का एक छोटा समूह हो सकता है जिनकी कोई साझी गतिविधि हो, या लोगों का कोई समूह भी जो अस्थायी रूप से किसी साझे उद्देश्य के लिए एकत्र हुए हों, जैसे-इंटरनेट पर गप-शप करने वाला समुदाय या मैदान में नियमित खेल खेलने के लिए एकत्र होने वाले बच्चों का समूह । एक तरह से, किसी देश में रहने वाले लोगों को, और वस्तुतः संसार के लोगों को भी एक समुदाय माना जा सकता है।
- इस प्रकार समुदाय लोगों के किसी समूह की एक निरपेक्ष धारणा है और किसी एक साझे अभिलक्षण तक सीमित नहीं है। परिवार और रिश्तेदारी समुदायों के उदाहरण हैं जिनमें बड़ी मात्रा में साझा ज्ञान और अनुभव, विश्वास तथा मूल्य होते हैं।
समुदायों के विभिन्न प्रकार
- पड़ौस-परिवार के बाद शुरू करने वाला निकटतम प्रसंग पड़ोस का है। पड़ोस एक महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई है क्योंकि यही लोग हैं जिनके बीच में हम रहते हैं, जिनके साथ हम अपने दैनिक क्रियाकलाप बाँटते हैं।
- शहर, कस्बा व गाँव-अन्य सामुदायिक तथा सामाजिक संस्थाओं में शामिल हैं-शहर, कस्बा व गाँव। जो अलग-अलग पारिस्थितिक वातावरण में भिन्न-भिन्न होते हैं। इनमें घरों, सेवाओं और समाज की व्यवस्था के तरीकों में अंतर होता है। हम देखते हैं कि किसी बड़े शहर में पड़ोस के घर काफी दूर हो सकते हैं और अक्सर अनेक लोग आपस में बातचीत भी नहीं करते और एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते भी नहीं। इसके विपरीत, गाँवों तथा कस्बों में पड़ोसियों के बीच अपनत्व और घनिष्ठता की अधिक भावना होती है। एक गाँव के लोग प्रायः अपने इलाके में रहने वाले सभी परिवारों से परिचित होते हैं, यदि गाँव छोटा हो तो वे वहाँ रहने वाले सभी परिवारों को भी जानते होंगे।
- अन्य समुदाय-पड़ोस, गाँव, कस्बे या शहर के अलावा अन्य प्रकार के समुदाय भी होते हैं, जैसे पंडाल, आयोजन स्थल। समुदायों के कार्य-समुदाय किसी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, किंतु यह भी सच है कि लोगों के बिना समुदायों का अस्तित्व नहीं हो सकता। इस प्रकार व्यक्ति और उनके समुदाय के बीच एक सक्रिय सह-रचनात्मक संबंध होता है। समुदाय व्यक्ति को पहचान, सहयोग, सामाजिक नियंत्रण, लक्ष्य तथा गतिविधियाँ प्रदान करता है, किंतु घटनाओं को क्रियान्वित करने के लिए वास्तविक कार्य, समुदाय के व्यक्ति ही करते हैं।
(3) समाज और संस्कृति-समुदाय की तुलना में समाज की अवधारणा अधिक लचीली है। समाज को विशिष्ट स्वरूपों के आदान-प्रदान की धारणा के बिना, समुदाय की भाँति सामान्यतः एक समूह के रूप में देखा जा सकता है। तथापि, साधारण भाषा में इन दोनों शब्दों का प्रयोग एक-दूसरे के स्थान पर भी किया जा सकता है। संस्कृति शब्द मूलतः किसी जाति की जीवन शैली की द्योतक है। संस्कृति के अंतर्गत किसी व्यक्ति या किसी समूह के परिवेश के सभी मूर्त और अमूर्त तत्व समाहित होते हैं, जो लोगों द्वारा स्वयं अपने प्रयोग के लिए बनाए गए हैं। कई बार 'संस्कृति' का प्रयोग 'उच्च समाज' के अर्थ में किया जाता है, जैसे किसी व्यक्ति को 'सुसंस्कृत' कहना।
(4) मीडिया और समाज:
- मीडिया आधुनिक समाज का एक महत्वपूर्ण कारक है। मीडिया वह साधन है जिसके द्वारा संगठित एवं सामूहिक स्तर पर संचार होता है। मीडिया हमें हमारे एवं अन्य समाजों की स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं, हस्तियों तथा प्रजाति की जानकारी देता है। आधुनिक समाज में अपने प्रतिदिन के जीवन में जिन मीडिया के साथ हमारा वास्ता पड़ता है उनमें से कुछ हैं-टेलीविजन, समाचार-पत्र, रेडियो और इंटरनेट। मीडिया हमें अतीत और वर्तमान, निकट और दूर की जानकारी उपलब्ध कराता है। वह सामाजिक प्रवृत्तियों पर भी प्रभाव डालता है और साथ ही हमें शिक्षा और कैरियर से सम्बन्धित घटनाओं के बारे में भी जानकारी देता है। व्यक्तियों पर पड़ने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण प्रभाव फिल्मों का है। फिल्में सामाजिक वास्तविकता को निरूपित और प्रभावित भी करती हैं।
- इस प्रकार, विभिन्न मीडिया हमें संसार की झलकियाँ उपलब्ध कराते हैं। अतः यह सामाजिक वास्तविकता और सांस्कृतिक प्रवाह का एक महत्वपूर्ण आयाम है।
(5) बच्चे, समुदाय और समाज:
- बच्चे संसार में अनेक सदस्यों के साथ प्रवेश करते हैं जिनसे एक परिवार बनता है। परिवार सामाजिक जीवन की प्राथमिक इकाई है जो वृहत् समाज की वास्तविकता, सामुदायिक जीवन और व्यक्ति के बीच का समागम बिंदु है। कई बार ऐसी घटनाएँ घटित हो जाती हैं जब कोई परिवार कठिन परिस्थितियों के कारण बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ होता है। ऐसी स्थितियों में बच्चे की समुचित देखभाल की व्यवस्था का उत्तरदायित्व राज्य या सरकार का है। यह भारतीय समाज का एक दुःखद तथ्य है कि प्रौद्योगिकी तथा शैक्षिक विकास के क्षेत्र में सफलता की अनेक उपलब्धियों के बावजूद, हम यह सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं कि सभी बच्चों को पर्याप्त भोजन मिल सके और प्रत्येक बच्चे को स्कूली शिक्षा तथा स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा प्राप्त हो सके।
- भारत में समुदाय को संगठित करने और कठिन परिस्थितियों में लोगों की देखभाल अधिक प्रभावी ढंग से कर सकने योग्य बनाने के लिए हमें अभी लंबा सफर तय करना है। यदि कोई समुदाय हमें सुरक्षा प्रदान करता है और यदि किसी समुदाय/देश ने हमें अधिकार प्रदान किए हैं, तो हमारे भी उनके प्रति वैयक्तिक और सामूहिक उत्तरदायित्व होते हैं। व्यक्तियों की इच्छा तथा भागीदारी के बिना समुदायों का अस्तित्व नहीं बना रह सकता। इसलिए आपको अपने परिवार, समुदाय, समाज, देश तथा संसार का सक्रिय सदस्य बनने का संकल्प लेना होगा ताकि आप आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभा सकें।