Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 17 वस्त्रों की देखभाल तथा रखरखाव Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वस्त्रों का भंडारण करने से पहले निम्न में से कौनसा कार्य किया जाना आवश्यक है
(अ) वस्त्रों को झाड़ना
(ब) धोना
(स) प्रेस करना तथा तह लगाना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
प्रश्न 2.
कपड़े रखने के लिए चुनी गई अलमारी होनी चाहिए
(अ) नमी युक्त
(ब) साफ, शुष्क तथा कीटमुक्त
(स) धूल भरी
(द) सूक्ष्म जीवाणुओं से युक्त
उत्तर:
(ब) साफ, शुष्क तथा कीटमुक्त
प्रश्न 3.
वस्त्रों के रख-रखाव को प्रभावित करने वाला कारक है
(अ) धागे की संरचना
(ब) रेशे का अंश
(स) वस्त्र की बुनाई
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 4.
कपड़े की मरम्मत में शामिल नहीं है
(अ) बटनों को पुनः लगाना
(ब) सिलाई करना
(स) तुरपाई करना
(द) दाग-धब्बे हटाना
उत्तर:
(द) दाग-धब्बे हटाना
प्रश्न 5.
निम्न में से कौनसा धब्बा खनिज धब्बा है
(अ) चाय का धब्बा
(ब) सब्जियों का धब्बा
(स) तारकोल का धब्बा
(द) तेल का धब्बा
उत्तर:
(स) तारकोल का धब्बा
प्रश्न 6.
दाग-धब्बे हटाने के पायसीकारक अभिकर्मक हैं
(अ) साबुन तथा डिटर्जेंट
(ब) तारपीन तथा मिट्टी का तेल
(स) टेलकम पाउडर तथा चॉक
(द) नींबू तथा सिरका
उत्तर:
(अ) साबुन तथा डिटर्जेंट
प्रश्न 7.
विरंजक अभिकर्मक है
(अ) बोरेक्स
(ब) धूप
(स) बेकिंग सोडा
(द) अमोनिया
उत्तर:
(ब) धूप
प्रश्न 8.
जब वस्त्रों की सफाई विलायकों या अवशोषकों द्वारा की जाती है, तो उसे कहते हैं
(अ) पानी से धुलाई
(ब) साबुन से धुलाई
(स) गीली धुलाई
(द) ड्राईक्लीनिंग
उत्तर:
(द) ड्राईक्लीनिंग
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिए
उत्तर:
निम्नलिखित स्तंभों का सही मिलान कीजिए-
1. पायसी कारक |
(अ) सिरका, गीय, दही |
2. आम्लीय अभिकर्मक |
(ब) अमोनिया, बोरेक्स |
3. क्षारीय अभिकर्मक |
(स) शूप |
4. अंक्सीकारक विरंजक |
(द) सोहिषम थायोसल्फेट |
5. अषचयनकारी विरंजक |
(य) सायुन तथा डिटजैट |
उत्तर:
1. पायसी कारक |
(स) शूप |
2. आम्लीय अभिकर्मक |
(अ) सिरका, गीय, दही |
3. क्षारीय अभिकर्मक |
(ब) अमोनिया, बोरेक्स |
4. अंक्सीकारक विरंजक |
(स) शूप |
5. अषचयनकारी विरंजक |
(द) सोहिषम थायोसल्फेट |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वस्त्रों की उचित देख-रेख के कोई दो लाभ लिखिये।
उत्तर:
वस्त्रों की उचित देख-रेख से
प्रश्न 2.
कपड़े की मरम्मत कब करना आवश्यक है?
उत्तर:
कपड़े की मरम्मत धुलाई से पूर्व ही कर लेना आवश्यक है क्योंकि धुलाई की रगड़ से कपड़े को और अधिक क्षति पहुंच सकती है।
प्रश्न 3.
वस्वों की मरम्मत में कौन-कौन सी बातें सम्मिलित हैं?
उत्तर:
वस्त्रों की मरम्मत में-
प्रश्न 4.
कपड़ों की दैनिक देखभाल में सामान्यतः कौन-कौनसी बातें शामिल हैं?
उत्तर:
कपड़ों की दैनिक देखभाल में सामान्यतया दाग-धब्बे हटाना, धुलाई करना तथा इस्तरी करना शामिल .
प्रश्न 5.
दाग-धब्बे को कब हटाना सर्वोत्तम है?
उत्तर:
दाग-धब्बे को तभी हटाना सर्वोत्तम है जब वह ताजा-ताजा लगा हो।
प्रश्न 6.
धुलाई की विधियों के प्रकार अताइए।
उत्तर:
धुलाई की विधियों के प्रमुख प्रकार ये हैं-
प्रश्न 7.
नील का प्रयोग किसलिए किया जाता है?
उत्तर:
कपड़ों के पीलेपन को दूर करने के लिए तथा सफेदी को वापस लाने के लिए नील का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 8.
नील बाजार में किन-किन रूपों में मिलती है?
उत्तर:
नील बाजार में दो रूपों
प्रश्न 9.
किसी वस्त्र पर फ्लूरोसेंट चमक लाने वाले अभिकर्मक का प्रयोग करने से उस वस्त्र पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
किसी वस्त्र पर फ्लूरोसेंट चमक लाने वाले अभिकर्मक के प्रयोग करने से उसमें गहन चमकदार सफेदी आ जाती है।
प्रश्न 10.
वस्व को कड़ा तथा चिकना एवं चमकीला बनाने की सर्वाधिक आम तकनीक क्या है?
उत्तर:
वस्व को कड़ा तथा चिकना एवं चमकीला बनाने की सर्वाधिक आम तकनीक स्टार्च लगाना है।
प्रश्न 11.
स्टार्च किससे प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
स्टार्च मैदा, चावल, अरारोट तथा कसावा आदि से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 12.
स्टार्च का घोल लगाते समय क्या सावधानी बरती जानी चाहिए?
उत्तर:
स्टार्च का घोल लगाते समय यह सावधानी बरती जानी चाहिए कि स्टार्च को सही मात्रा में लिया जाए तथा कपड़ा पूर्णतया गीला हो, किन्तु पानी न टपक रहा हो।
प्रश्न 13.
कोयले की इस्तरी में क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
प्रश्न 14.
कपड़े रखने के लिए चुनी गई अलमारी कैसी होनी चाहिए।
उत्तर:
कपड़े रखने के लिए चुनी गई अल्मारियाँ साफ, सूखी तथा कीटमुक्त होनी चाहिए। उनमें धूल तथा गदंगी नहीं होनी चाहिए।
प्रश्न 15.
कपड़ों का चयन, प्रयोग तथा देखभाल किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
कपड़ों का चयन, प्रयोग तथा देखभाल,
(i) कपड़े में रेशे का अंग, धागे की संरचना, रंग अनुप्रयोग तथा कपड़े का अंतिम रूप आदि कारकों पर निर्भर करता है।
प्रश्न 16.
देखभाल सम्बन्धी लेबल से क्या आशय है?
उत्तर:
देखभाल संबंधी लेबल एक स्थायी लेबल या टैग होता है जिसमें नियमित देखभाल, जानकारी तथा अनुदेश दिए जाते हैं।
प्रश्न 17.
लेबल को वस्त्र के साथ किस प्रकार जोड़ा जाता है?
उत्तर:
देखभाल सम्बन्धी लेबल को वस्त्र के साथ इस प्रकार जोड़ा गया होता है कि वह उत्पाद से अलग नहीं होता तथा वस्त्र के उपयोग में आने की अवधि के दौरान पढ़ने योग्य रहता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वस्त्रों की मरम्मत पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वस्त्रों की मरम्मत-मरम्मत शब्द का प्रयोग हम कपड़े को उसके सामान्य प्रयोग के दौरान अथवा आकस्मिक क्षति से मुक्त रखने के प्रयास में करते हैं। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं
यह नितान्त आवश्यक है कि धुलाई करने से पूर्व ही मरम्मत कर ली जाए क्योंकि धुलाई की रगड़ से कपड़े को और अधिक क्षति पहुँच सकती है।
प्रश्न 2.
कपड़ों की धुलाई क्यों की जाती है? धुलाई के अन्तर्गत कौन-कौन सी बातें शामिल होती हैं?
उत्तर:
कपड़ों को साफ रखने के लिए, अकस्मात लगे दाग हटाने, मटमैला होने से बचाने के लिए उनकी धुलाई की जाती है। धुलाई में ये समस्त बातें शामिल हैं-दाग धब्बे हटाना, धुलाई के लिए कपड़ों को तैयार करना, धुलाई द्वारा कपड़ों की गंदगी हटाना, नील लगाना तथा स्टार्च लगाना, सुखाना तथा आकर्षक रूप देने के लिए उन पर इस्तरी करना ताकि उन्हें प्रयोग में लाने के लिए तैयार करके रखा जा सके।
प्रश्न 3.
दाग-धब्बे हटाने के साधनों (अभिकर्मकों) का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
दाग-धब्बे हटाने के साधनों (अभिकर्मकों) को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है
(क) ऑक्सीकारक विरंजक-धूप, जैवल पानी, सोडियम पारवोरेट, हाइड्रोजन पर-ऑक्साइड।
(ख) अपचयनकारी विरंजक-सोडियम हाइड्रोसल्फाइट, सोडियम बाइसल्फेट, सोडियम थायोसल्फेट।
प्रश्न 4.
साबुन तथा डिटरजेंट में क्या अन्तर है?
उत्तर:
साबुन तथा डिटरजेंट में अन्तर-साबुन तथा डिटरजेंट में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं
प्रश्न 5.
'नील' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
नील-वस्त्र के पीलेपन को दूर करने के लिए तथा सफेदी को वापस लाने के लिए नील का प्रयोग किया जाता है। नील बाजार में अत्यधिक बारीक पाउडर वर्णक के रूप में तथा तरल रासायनिक रंजक के रूप में मिलती है।
कपड़े को अंतिम बार खंगालते समय नील की सही मात्रा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
(i) पाउडर वाला नील-पाउडर वाले नील में पानी की थोड़ी सी मात्रा मिलाकर पेस्ट बना लिया जाता है तथा फिर उसे और अधिक पानी में मिला दिया जाता है। इस घोल का प्रयोग तत्काल किया जाता है क्योंकि रखे रहने से यह पाउडर तल पर जमा हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप कपड़े पर धब्बे पड़ सकते हैं।
(ii) तरल नील-तरल नील का प्रयोग अपेक्षाकृत आसान है और इससे अधिक एकसार प्रभाव पड़ता है।
नील के प्रयोग की विधि-नील का प्रयोग वस्त्र पर पूर्णतया गीली स्थिति में, लेकिन टपकती हुई स्थिति में नहीं किया जाना चाहिए जो निचोड़ने की सलवटों से मुक्त हो। वस्त्र को कुछ समय के लिए नील के घोल में घुमाएँ, अधिक नमी को निकाल दें तथा उसे सूखने डाल दें।
प्रश्न 6.
वस्त्र को धोने के पश्चात् सुखाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
वस्त्रों को धोने के पश्चात् सुखाना-कपड़ों को धोने, उन पर नील तथा स्टार्च लगाने के पश्चात् सुखाया जाना आवश्यक है। यथा
प्रश्न 7.
कपड़ों पर स्टार्च का घोल लगाते समय कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए?
उत्तर:
कपड़ों पर स्टार्च का घोल लगाते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वस्त्रों की धुलाई की विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वस्त्रों की धुलाई की विधियाँ
वस्व के कुछ हिस्सों पर ऐसी गंदगी लगी होती है जो उसके साथ चिपकी होती है। धुलाई की विधियाँ वस्त्र के साथ चिपकी गदंगी को अलग करने और उसे निलंबित रखने के कार्य में सहायता करती हैं। धुलाई की विधियों को निम्नलिखित रूप से वर्गीकृत किया गया है
(1) घिसकर रगड़ना-यह धुलाई की सर्वाधिक प्रचलित विधि है। सफाई की यह विधि मजबूत सूती वस्त्रों के लिए उपयुक्त है। रगड़ वस्व के एक भाग को वस्त्र के दूसरे भाग के साथ हाथ से रगड़-रगड़कर उत्पन्न किया जा सकता है। वैकल्पिक रूप से हाथ की हथेली पर या किसी स्क्रबिंग बोर्ड पर वस्त्र के गंदे भाग को रखकर ब्रश से रगड़ा जाता है। लेकिन रेशम तथा ऊन जैसे नाजुक कपड़ों पर तथा पाइल छल्लेदार वस्त्र अथवा कढ़ाई किए गए वस्त्रों की सतहों पर रगड़ाई नहीं की जाती।
(2) मलना तथा निचोड़ना-इस विधि में कपड़े को साबुन के घोल में हाथों से धीरे-धीरे मला तथा मसला जाता है। चूंकि इस विधि में बहुत कम जोर लगाया जाता है, इसलिए यह विधि कपड़े के तंतुओं, रंग या बुनाई को हानि नहीं पहुंचाती। अतः ऊन, रेशम, रेयॉन तथा रंगदार वस्वों जैसे नाजुक कपड़ों को साफ करने के लिए इस विधि का सहजता से प्रयोग किया जा सकता है।
लेकिन अत्यधिक गंदे कपड़ों के लिए यह विधि प्रभावपूर्ण नहीं रहती है।
(3) चूषण पंप द्वारा धुलाई-इस विधि का प्रयोग तौलिये जैसे कपड़ों के लिए किया जाता है जिन पर ब्रश का प्रयोग नहीं किया जाता तथा जब वस्व इतना बड़ा या भारी हो कि उस पर मलने व दबाने की तकनीक का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इस तकनीक के अन्तर्गत कपड़े को एक टब में साबुन के घोल में डाला जाता है तथा चूषण पंप को बारबार दबाया तथा उठाया जाता है। दबाने के कारण उत्पन्न हुआ निर्वात गंदगी के कणों को ढीला कर देता है।
(4) मशीन से धुलाई-धुलाई मशीन मेहनत को बचाने वाली युक्ति है जो विशेष रूप से बड़ी संस्थाओं, जैसे-अस्पतालों तथा होटलों के लिए उपयोगी है। आजकल बाजार में विभिन्न कम्पनियों की विविध धुलाई मशीनें उपलब्ध हैं। प्रत्येक मशीन में धुलाई की तकनीक एक ही है-वह है गदंगी को निकालने के लिए वस्यों को मसलना। इन मशीनों में धुलाई के लिए, दबाव या तो मशीन में टब के घूमने से उत्पन्न किया जाता है या मशीन के साथ जुड़ी केन्द्रीय छड़ के दोलन से उत्पन्न होता है। धुलाई का समय, वस्त्र की किस्म तथा गंदगी की मात्रा के अनुसार, भिन्न होता है। धुलाई मशीनें हस्तचालित, अर्द्धस्वचालित तथा पूर्णतया स्वचालित होती हैं।
प्रश्न 2.
धुलाई करने के बाद वस्त्र को कड़ा, चिकना व चमकीला बनाने के लिए क्या किया जाता है। वस्त्र को कड़ा व चमकीला बनाने वाले किन्हीं तीन अभिकर्मकों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
वस्त्र को कड़ा, चिकना व चमकीला बनाने वाले अभिकर्मक बार-बार धुलाई करने से वस्व के ताने-बाने को नुकसान पहुंचता है जिससे इसकी चमक व चटक कम हो जाती है। वस्व को कड़ा, चिकना व चमकीला बनाने के लिए स्टार्च, बबूल का गोंद, बोरेक्स, जिलेटन आदि अभिकर्मकों का प्रयोग करते हैं। इनके प्रयोग से न केवल कपड़े के रूप-रंग तथा बुनावट में सुधार आता है बल्कि वस्य पर गंदगी के सम्पर्क से भी बचाव होता है। यथा
(1) स्टार्च-
(2) बबूल का गोंद या अरेबिक गोंद
(3) बोरेक्स-
प्रश्न 3.
वस्त्रों पर इस्तरी क्यों की जाती है? अच्छी तरह से इस्तरी करने के लिए किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
इस्तरी करने की आवश्यकता-वस्त्रों को धोने के बाद उन पर सलवटें तथा अवांछित तहें बन जाती हैं। इस्तरी करने से इन सलवटों तथा तहों को दूर करने में तथा इच्छानुसार तह बनाने में सहायता मिलती है। इस्तरी करने के लिए आवश्यक चीजें-अच्छी तरह इस्तरी करने के लिए निम्नलिखित चीजों की आवश्यकता होती है
(1) तापमान-इस्तरी करने के लिए उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। कोयले की इस्तरी या विद्युत इस्तरी का इस हेतु प्रयोग किया जाता है।
(अ) कोयले की इस्तरी-कोयले की इस्तरी सस्ती होती है, पर इसमें निम्न कमियाँ भी होती हैं
(ब) विद्युत इस्तरी-विद्युत इस्तरी में तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके द्वारा विभिन्न रेशा समूहों के कपड़ों पर उनके विशिष्ट तापमानों के अनुसार इस्तरी की जा सकती है। इसलिए, यदि बिजली की समस्या न हो तो स्वचालित विद्युत इस्तरी सर्वोत्तम विकल्प है।
(2) नमी-अच्छी इस्तरी के लिए दूसरी आवश्यकता नमी है। यथा
(3) दबाव-अच्छी इस्तरी करने के लिए तीसरी आवश्यकता दबाव की है। इसकी व्यवस्था हस्तचालित रूप से इस्तरी किए जाने वाले वस्त्र पर इस्तरी को चला कर की जाती है। यथा-
(4) इस्तरी करने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली मेज-यह मेज अच्छी प्रकार की गद्देदार किन्तु ठोस होनी चाहिए। इसकी ऊपरी सतह समतल होनी चाहिए तथा इसका आकार तथा ऊंचाई ऐसी होनी चाहिए कि वह इस्तरी करने वाले के लिए आरामदायक हो। आजकल गद्देदार इस्तरी करने वाले बोर्ड बाजार में उपलब्ध हैं। यदि ये उपलब्ध न हों तो किसी भी समतल सतह पर किसी मोटे कपड़े की तीन-चार तह करके उसका प्रयोग इस्तरी करने के लिए किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
वस्त्रों के उचित भंडारण पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वस्त्रों के उचित भंडारण की आवश्यकता हमारे देश में मौसम पूरे वर्ष एक समान नहीं रहता। इसलिए हमारे पास सभी तापमानों के अनुरूप वस्त्र होते हैं। विशिष्ट मौसम सम्बन्धी स्थितियों के लिए विशिष्ट कपड़ों की आवश्यकता के कारण यह आवश्यक हो जाता है कि उन वस्त्रों को संभालकर रख दिया जाए जिनकी आवश्यकता उस खास समय पर नहीं है
दूसरे, शादी-समारोहों, विशिष्ट पार्टियों व त्यौहारों पर पहने जाने वाले अधिक मूल्यवान कपड़ों को किसी भी परिवार के लिए आए दिन खरीदना संभव नहीं है। अतः इन वस्त्रों का भी उचित भंडारण करना आवश्यक है। तीसरे, कपड़ों की सुंदरता को बनाए रखने तथा उनको जीवन अवधि बढ़ाने के लिए भी उनका उचित संग्रहण करना आवश्यक है।
कपड़ों के उचित भंडारण के लिए ध्यान रखने योग्य बातें कपड़ों के उचित भंडारण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
उदाहरण के लिए जरी के कपड़ों में फिनाइल की गोलियाँ नहीं डालनी चाहिए क्योंकि इससे जरी काली पड़ जाती है, जबकि फिनाइल की गोलियाँ ऊनी वस्त्रों में डालने से ऊनी वस्त्र सुरक्षित रहते हैं।
प्रश्न 5.
कपड़ों की देखभाल को प्रभावित करने वाले कारकों पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
वस्त्रों की देखभाल को प्रभावित करने वाले कारक वस्त्रों का चयन, प्रयोग तथा देखभाल कई कारकों पर निर्भर करता है।
जैसे:
प्रत्येक प्रकार के कपड़े की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं।
इसलिए इनके लिए विशिष्ट देखभाल की आवश्यकता होती है।
यथा-
(1) कपड़े में रेशे का अंश-जिन रेशों से वस्त्र निर्मित होते हैं, वे उनकी देखभाल सम्बन्धी आवश्यकताओं को प्रभावित करते हैं। इसे निम्न सारणी के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है
सारणी-रेशों की विशेषताएँ जो कपड़ों की देखभाल तथा रखरखाव को प्रभावित करती हैं
रेशा विशेषताएँ-
देखभाल संबंधी आवश्यकताएँ सूत तथा | मजबूत रेशे, गीले होने पर अधिक मजबूत, लिनन कठोर घर्षण का सामना कर सकते हैं।
क्षार प्रतिरोधी, सशक्त डिटर्जेंटों का प्रयोग कर आसानी से धोए जा सकते हैं। उच्च तापमान को सह सकते हैं, आवश्यकता पड़ने पर उबाले भी जा सकते हैं।
रेशा |
विशेषताएँ |
टेसभाल संबंधी आवश्यकताएँ |
सूत तथा लिनन |
मजबूत रेशे, गीले होने पर अधिक मजबूत, कठोर घर्षण का सामना कर सकते हैं। |
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क्षार प्रतिरोधी, सशक्त डिटर्जेंटों का प्रयोग कर आसानी से धोए जा सकते हैं। |
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उच्च तापमान को सह सकते हैं, आवश्यकता पड़ने पर उबाले भी जा सकते हैं। |
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जैव विलायक तथा विरंजक प्रतिरोधी, भम्लीय पदार्थ वस्त्र को कमलोर बना सकते है। |
प्रयुक्न किए गए अम्सीय अभिकर्मक खंगाल कर प्रभावहींग किस कने चाहिए। |
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शीध्र सलवर्टे पढ़ जती है, सुलवट्टे हटने के लिए इन पर उचित छंग से इस्तरी करना पड़ता है। |
इन पर इस्तरी करते सभय ये नम होने चहिए अन्यथा इन पर जलने के दाग पड़ सकते हैं। |
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इन पर फफ्फूंदी तथा फंगस लग सकती है। |
पूर्णातथा सूखे होने चाहिए, तथा कम नामी बाले घाताभफण में इनका भंद्यारण किया जाना चाहिए। |
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यदि इनमें अधिक स्टर्ष लगाई ज्ञाए तो इनमें सिलवर फिश नामक कीड़ा लग सकता है। |
यदि इन्हें लंबी अवणि के लिए संभाल कर रखा जाना है को छन्है स्टर्ष रहित किया कना आवस्प्पक है। |
ऊन |
कमजोर रेशो तथा गीला होने पर और भी कमयोर हो जाते हैं। |
कुलाई के दौरान हलके हार्थों की इस्सेमाल किया जाना चहिए। |
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भारीय घदार्थौ से जल्दी हतिश्नस्त हो जते हैं। |
प्रबल हिटर्जेटों या साधुन्नें का प्रयोग नहर्डों किया जाना बाहिए। |
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इ्राइक्लीनिंग विलायकों तथा दाग-बख्ने हदाने वाले अभिकर्मंकों का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पक्षिता। |
विरंजक का प्रयोंग सावधानीपूर्वक किया जाना आवश्यक है। |
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जब कनी वांखों पर प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, जैसे-धुलाई के द्वैरान छिलाते-कुलाते हैं तो उनमें सिकुड़ने की प्रबृति होती है। |
कम-सो-कम शिलाते हुए तंडे पानी में धोने की सलाह दी आती है। |
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ऊन से बुनी गई वस्तुओं का आकार धुलाई के दौरान फैल कर बिगाय सकता है। |
भुलाई से पक्षेत्रे बस्व की रुनरेखा बनाई जाती है उया धुलाई के बाद वस्त्र को उसी रूपरेख पर फैला दिया जाता है । |
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इसमें अच्छी लोच क्षमता है तथा इसमें सलवरें नर्ही पक़ती, इस्तारी करना आवश्यक नहीं। |
कपष़् पर सीधी इस्बी नहीं की बानी चारिए यदि आवश्यक हो तो स्टीम ऐ्रेस कराएँ। |
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ऊनी प्रोटीन के कारण कीटों द्वारा भ्षति के प्रति विशेष रूप प्रवण हैं जैसे कपड़े के कीड़े तथा कारपेट बीटल। |
भंध्रारण के दौरान संघटक रसायनों का आवर्ती डिद्रकाय क्ले क्षति से बचा जा सकला है। कीज लगने से रोकधाय के लिए नेफथिलीन की गोलियाँ प्रभावपूर्न होती है। |
रेशम |
मजबूत रेशा, किंतु गीले होने के दौरान यह कानोर हो कतो हैं। रेशम की धुलाई में सापथानी बरतना आवश्यक है। |
घुलाई के समय केबल हल्की रणन्ड का प्रयोच करे। |
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प्रयल क्षारों से नुकसान पहुँचता है, ऑंतिम छुलाई में बैव अम्लों का प्रयोग किया जाता है। |
जुलाई के लिए हल्के डिटबंट का प्रदोग किया खाना चहिए। |
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इ्राइ-कलीनिंग विलायक तथा तत्सण धढ्या ह्टाने वाले अभिकर्मक रेशम को क्षति नहीं पहुँचाते। |
विरंजक का प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। |
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धोने पर फैलता या सिकुक्षता नाती, इसमें सिकुझ्ड़ से बचाव की क्षेत्रा घध्यग है स्रिसके कारण प्रयोंग के दौरान इसमें सिलकटे पहु जारी हैं। |
इसे इस्तरी किया आना आवशयक है। |
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कपड़े पर पानी का धिड़काव करे बगैर उष्ष ताप्ममान पर इस्तरी कराने से जल्दी जल जाता है। |
यह पूर्णततया नम होना चाहिए तथा इस पर निम्न कापमान पर इस्तरी की जानी चाहिए। |
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पसीने से भी कपड़े को हानि पढ़ँचती है। |
रखने से पहले ड्राइक्लीन किया जाना तथा अचछी प्रकार हवा लगवाना आवश्पक है। |
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अधिक समय तक कूप में रखने से रेशमकमजोर हो जाता है। |
दूप में नर्ही सुखाया जाना चाहिए। |
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फफूंदी तथा बैक्टीरिया के आक्रम कर लेता है किंतु कारपेट बीटल |
यदि गंदे हों को अंदर नहीं रखना चाहिए। |
रेयान |
अधिकांश रेयान सापेक्षिक रूप सं हैं तथा उनकी मजबूती गीला हो कम हो जाती है। |
धुलाई के बौरान सावधानी बरतना अपेक्षित हैं। |
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रासायनिक रूप से सूत के समान क्षार इसे हानि पहुँथा सकते हैं। |
हल्के साबुन स्था क्षिटरेंट का प्रयोग करना सुर्रक्षित है। |
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यह ड्राई-क्लीनिंग विलायकों तथा दाग-धब्बे हटाने वाले अभिकर्मकों को सह सकते हैं। |
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धोने पर रेयान सिकुड़ जाते हैं। |
धुलाई के दौरान सावधानी बरती जानी अपेकित है। |
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रेखान से बने वस्गों में सलकरें शींत्र पड़ जाती है तथा खे सहजल से फैल भी जते हैं क्योंकि उनकी लोच एवं लोच के पुनः स्थिति में आने की क्षमता कम होती है। |
इसे इस्तरी करना सरल है। |
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फफूंदी तथा सिल्वर फिश, रेयान को हानि पहुँचाते है, इसे सक्षाने-गालाने वाले बीवाणु भी नुकसना पहुँचा सकते है। |
इनें पूर्णतया स्वफ्त तथा शुष्क स्थिति में भंडारित किया जाना चाहिए। |
नायलॉन |
काफी मजबूत, गीला होने पर भी काफी मजयूत राहता है। |
इसके लिए किसी चिशेष देखभाल की आवरचकत्री नहीं है। |
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क्षार इसे प्रभावित नहीं करते किंतु अभ्लों से रेशे नथ हो सकते हैं। |
यदि अन्लीय अभिकर्नंक प्रयुक्त किए जाते है तो इनै अध्डी प्रकार खंगाला आना चातिए। |
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क्राइ-क्लीनिंग विलायक, दाग धैंबो हटने वाले अभिक्र्मक, निटर्जैट तथा चिएंगक का प्रयोग करना हुरदिक होता है। |
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ये अन्य गंदी वस्तुओं की गंद्षती को ग्रहण कर सकतो। |
इन्हें अलग से धोया जाना चाहिए। |
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ये कल को अवसोषित नहीं करते और हसलिए जल्यी सूख्ध जाते है। |
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थूप नायलॉन को लानिं पर्धँचाती है तथा ज्यादा समय त्रक धूप में रखने से इनकी मथयूती में स्पष रूप से कमी आ जती है। |
खिड़की के पद्धौ के लिए यह उपयुक्त नहीं है। |
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नायलॉन अधिकांश कीटों तथा सूस्स नीवाणुओं के आकमण का अन्यदिक प्रतिरोथी है। |
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पोलिएस्टर |
गौला होने पर पोलिएटर की मखयूती कम नहीं होती (इसे आसानी से घोया जा सकता है)। |
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दूसमें उच्छा इलास्टिक, पुनः सुथार तथा शोच क्षमत होती है। |
इसे गर्म इस्तरी की आवश्यकता नर्हीं है। |
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इसकी सत्क पर होटी-छोटी रेशोनुमा ग्रोलियाँ बन जाती है किने हटाया नहीं जा सकता। |
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पोलिएस्टर की नयी स्सेखने की क्षमता बहुल कम होती है अर्थव्त् यह सहलता से पानी नहीं सोखता। |
गर्म जलवायु में आरामप्षायक नहीं हैं। |
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यदि इस कपढ़े पर त्वेल टपक काष् का गिर आए, |
तैलीय दागों के प्रति सावधानी बरतनी चाएिए। |
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हो उसका दाग इससे क्षता नहीं। यह सक्ष्म जौयाणु तथा कौट प्रतिरोधी है। |
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एक्रेलिक |
इसकी मजधूती सूले वस्त्रों के समान है। |
बिना किसी विश्रेष देखभाल के इसे आखानी से धोखा जा सकता है। |
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अच्की इलास्टिक, पुनः बहाली सहित यह अधिक पढ़ती । |
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एक्रेलिक में नयी बहुत्त कम ठहरती है तथा |
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खस्ब जल्वी सूख्य काते है। |
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अधिरंश धार तथा अम्लों का यह अच्ञा प्रतिरोषी है तथा अंकांश उद्रवजलीनिंग विलायक इसके रेशों को हानि नहीं पहुँचाते। |
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इन रेश्रों में घूप, सथी प्रकार के सायुन, संश्लिष्ट दिटवेट तथ विरंजक के प्रति उत्लृ प्रतिरोष क्षमल है। कीड़े इसे हांचे नहीं पहुँचाते। |
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यह आग को जल्दी पकन्द सेता है तथा अन्य संस्लिए रेशों के वियरीत अधिक समन तक पिषलता तथा जलता रहता है। |
साबधानी बरती जानी आवाखसक है। बच्यों के लिए खतरनाक हो सकता है। |
इन रेशों में धूप, सभी प्रकार के साबुन, संश्लिष्ट | डिटर्जेट तथा विरंजक के प्रति उत्कृष्ट प्रतिरोध क्षमता है। कीड़े इसे हानि नहीं पहुंचाते। यह आग को जल्दी पकड़ लेता है तथा अन्य | सावधानी बरती जानी आवश्यक है। बच्चों के संश्लिष्ट रेशों के विपरीत अधिक समय तक लिए खतरनाक हो सकता है। पिघलता तथा जलता रहता है।
(2) धागे की संरचना-धागे की संरचना (धागे की किस्म तथा मोड़) रख रखाव को प्रभावित कर सकती है। उदाहरण के लिए, अधिक मुड़े हुए धागे सिकुड जाएंगे तथा नये व जटिल धागे उलझ या खुल सकते हैं। मिश्रित धागों में दोनों प्रकार के रेशों की देखभाल की जानी आवश्यक है। यदि सूत के साथ पोलिएस्टर को मिश्रित किया गया है तो अधिक गर्म जल का प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि वह सिकुड़ जायेगा।
(3) वस्त्र निर्माण-वस्त्र निर्माण का देखभाल या रखरखाव के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। सादा महीन बुने हुए वस्खों का रखरखाव करना सरल है। फैंसी बुनाइयाँ, जैसे-साटिन, पाइल तथा लम्बे फ्लोट वाले वस्त्र धुलाई के दौरान उलझ सकते हैं, बुने हुए वस्त्रों का आकार बिगड़ सकता है तथा उनकी पुनः स्लाकिंग (आकार देना) किया जाना आवश्यक होता है। शियर फेब्रिक, लेस तथा जालियों के साथ-साथ फेल्ट तथा बिना बुनाई वाले वस्त्रों के प्रति सावधानी बरतना आवश्यक है।
(4) रंग अनुप्रयोग-रंग भी देखभाल का एक महत्वपूर्ण पहलू है। रंगे हुए तथा प्रिंटेड वस्त्रों का सफाई के दौरान रंग निकल सकता है तथा उनके रंग का दाग अन्य वस्वों पर लग सकता है। प्रयोग किये जाने से पहले वस्त्र के रंग का परीक्षण कर लिया जाना चाहिए तथा इनके प्रयोग के दौरान उचित देखभाल की जानी आवश्यक है। रंगीन कपड़ों को छाया में सुखाना चाहिए।
(5) कपड़े का अंतिम रूप-वस्त्र पर की गई परिसज्जा का प्रभाव भी उसकी देखभाल पर पड़ता है, जैसेकलफ लगे हुए कपड़े धोने के पश्चात् अपना आकार खो देते हैं। अतः उन्हें दोबारा कलफ लगाकर ही प्रयोग करना चाहिए।
(6) देखभाल सम्बन्धी लेबल-देखभाल सम्बन्धी लेबल कपड़े पर लगा एक स्थायी लेबल या टैग होता है जिसमें नियमित देखभाल सम्बन्धी जानकारी और अनुदेश दिये जाते हैं। इसे वस्त्र के साथ इस प्रकार जोड़ा गया होता है कि वह उत्पाद से अलग नहीं होता। यह लेबल वस्व के उपयोग में आने की अवधि के दौरान पढ़ने योग्य रहता है।