Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 11 उत्तरजीविता, वृद्धि तथा विकास Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धि का सम्बन्ध है
(अ) परिमाणात्मक परिवर्तन से
(ब) गुणात्मक परिवर्तन से
(स) प्रकार्यात्मक परिवर्तन से
(द) मानसिक परिवर्तन से
उत्तर:
(अ) परिमाणात्मक परिवर्तन से
प्रश्न 2.
विकास का सम्बन्ध है
(अ) परिमाणात्मक परिवर्तन से
(ब) गुणात्मक परिवर्तन से
(स) भौतिक परिवर्तन से
(द) संरचनात्मक परिवर्तन से
उत्तर:
(ब) गुणात्मक परिवर्तन से
प्रश्न 3.
निम्न में जो वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाला कारक नहीं है, वह है
(अ) वातावरण
(ब) पोषण
(स) व्यवहार
(द) आनुवंशिकता
उत्तर:
(स) व्यवहार
प्रश्न 4.
बच्चों के जन्म से लेकर सोचने-विचारने की क्षमताओं के प्रकट होने तक के विकास को कहते हैं
(अ) शारीरिक विकास
(ब) क्रियात्मक विकास
(स) संवेदनात्मक विकास
(द) संज्ञानात्मक विकास
उत्तर:
(द) संज्ञानात्मक विकास
प्रश्न 5.
मानव की जन्म से 2 वर्ष तक की अवधि को कहा जाता है
(अ) शैशवावस्था
(ब) आरंभिक बाल्यावस्था
(स) मध्य बाल्यावस्था
(द) किशोरावस्था
उत्तर:
(अ) शैशवावस्था
प्रश्न 6.
निम्न में कौनसी प्रतिवर्ती क्रिया है
(अ) आँख के संरक्षण हेतु स्वतः ही पलक झपका लेना
(ब) सक्रियतापूर्वक प्रकाश की खोज करना
(स) किसी गतिशील वस्तु का आँखों से पीछा करना
(द) ध्वनि के प्रति अनुक्रिया करना
उत्तर:
(अ) आँख के संरक्षण हेतु स्वतः ही पलक झपका लेना
प्रश्न 7.
नवजात शिशु अपनी आवश्यकताओं को बताने की चेष्टा करते हैं
(अ) पलक झपका कर
(ब) हाथ उठाकर
(स) रो कर
(द) मल-मूत्र त्यागकर
उत्तर:
(स) रो कर
प्रश्न 8.
निम्न में कौनसा शिशु के स्थूल विकास की श्रेणी में आता है
(अ) लम्बाई में वृद्धि
(ब) घुटनों के बल चलना
(स) हाथ से गिलास पकड़ना
(द) डगमगाते हुए चलना
उत्तर:
(अ) लम्बाई में वृद्धि
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
(1) आयामों
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिए
उत्तर:
निम्नलिखित स्तंभों का सही मिलान कीजिए
1. संवेदी क्रियात्मक अवस्था |
(अ) 18 वर्ष तथा उससे अधिक की आयु |
2. पूर्व-प्रचालनात्मक अवधि |
(ब) 11-18 वर्ष की आयु |
3. ठोस प्रचालनात्मक अवस्था |
(स) 2-7 वर्ष की आयु |
4. औपचारिक प्रचालनों की अवस्था |
(द) जन्म से लेकर 2 वर्ष तक की आयु |
5. वयस्कावस्था |
(य) 7-11 वर्ष की आयु |
उत्तर:
1. संवेदी क्रियात्मक अवस्था |
(द) जन्म से लेकर 2 वर्ष तक की आयु |
2. पूर्व-प्रचालनात्मक अवधि |
(स) 2-7 वर्ष की आयु |
3. ठोस प्रचालनात्मक अवस्था |
(य) 7-11 वर्ष की आयु |
4. औपचारिक प्रचालनों की अवस्था |
(ब) 11-18 वर्ष की आयु |
5. वयस्कावस्था |
(अ) 18 वर्ष तथा उससे अधिक की आयु |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
समय के साथ-साथ शारीरिक संरचनाओं, मनोवैज्ञानिक लक्षणों, व्यवहारों, सोचने के तरीकों तथा जीवन की मांग के अनुसार स्वयं को ढालने की पद्धतियों को विकास कहते हैं।
प्रश्न 2.
विकासोन्मुख से क्या आशय है?
उत्तर:
विकासोन्मुख से आशय उन परिवर्तनों से है जो बच्चों को ऐसे कौशल तथा क्षमता हासिल करने में सहायक होते हैं जो उन्हें पूर्ववर्ती कौशल व क्षमताओं से अधिक दक्ष करते हैं।
प्रश्न 3.
क्रमागत से क्या आशय है?
उत्तर:
क्रमागत से आशय है कि विकास में एक क्रम होता है।
प्रश्न 4.
विकास कहलाने के लिए परिवर्तन कैसे होने चाहिए?
उत्तर:
विकास कहलाने के लिए परिवर्तन पर्याप्त रूप से दीर्घकालिक होने चाहिए, अल्पकालिक परिवर्तन को विकास नहीं कहा जाता है।
प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाले विभिन्न विकासों के प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ये विभिन्न विकासों के प्रकार हैं-
प्रश्न 6.
शारीरिक विकास को समझाइए।
उत्तर:
शारीरिक विकास का संबंध गर्भधारण के समय से लेकर आगे तक शरीर की संरचना तथा अनुपात में . भौतिक परिवर्तनों से है।
प्रश्न 7.
क्रियात्मक विकास से क्या आशय है?
उत्तर:
क्रियात्मक विकास का सम्बन्ध शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण से है जिसके कारण शरीर के विभिन्न भागों के बीच समन्वयन बेहतर होता जाता है।
प्रश्न 8.
संवेदनात्मक विकास को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संवेदनात्मक विकास का सम्बन्ध देखने, सुनने, सूंघने, स्पर्श करने तथा स्वाद महसूस करने की संवेदी क्षमताओं के विकास से है।
प्रश्न 9.
संज्ञानात्मक विकास से क्या आशय है?
उत्तर:
संज्ञानात्मक विकास का संबंध बच्चों के जन्म से लेकर सोचने-विचारने की क्षमताओं के प्रकट होने तक से है।
प्रश्न 10.
भाषा सम्बन्धी विकास को समझाइए।
उत्तर:
भाषा सम्बन्धी विकास का सम्बन्ध उन परिवर्तनों से है जो शिशु को दूसरों की भाषा समझने तथा जटिल वाक्यों को बोलने में समर्थ बनाते हैं।
प्रश्न 11.
भावनात्मक विकास क्या है?
उत्तर:
भावनात्मक विकास का संबंध भावनाओं के उभरने तथा उन्हें व्यक्त करने के समाज-स्वीकृत तौर-तरीकों को सीखने से हैं।
प्रश्न 12.
व्यक्तिगत विकास को समझाइए।
उत्तर:
व्यक्तिगत विकास का सम्बन्ध स्वयं से है। इसमें उसके अपने विचार का विकास शामिल है कि वह कौन है तथा उसके गुण व कौशल क्या हैं आदि।
प्रश्न 13.
बाल्यावस्था की आहार संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर बाल्यावस्था के वर्षों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं के आधार पर बाल्यावस्था के वर्गीकरण के तीन चरण हैं-
प्रश्न 14.
जीवनकाल की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
जीवनकाल की विभिन्न अवस्थाएँ ये हैं-
प्रश्न 15.
नवजात से क्या आशय है?
उत्तर:
'नवजात शब्द का प्रयोग हाल ही में जन्में बच्चे के जीवन के प्रथम माह के संदर्भ में होता है।
प्रश्न 16.
नवजात की कोई तीन प्रतिवर्ती क्रियाएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 17.
नवजात शिशुओं की कोई दो संवेदनात्मक क्षमताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 18.
बच्चों के संप्रेषण का जन्मजात स्वरूप क्या है? उत्तर-रोना बच्चों के संप्रेषण का जन्मजात स्वरूप है। प्रश्न 19. शिशु का लगाव सामान्यतः सबसे पहले माता के साथ क्यों हो जाता है?
उत्तर:
चूँकि अधिकांश मामलों में, माता ही मुख्य रूप से बच्चे की देखभाल करती है, इसलिए शिशु का लगाव सबसे पहले उसी के साथ हो जाता है।
प्रश्न 20.
प्रतिबंधात्मक माता-पिता से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रतिबंधात्मक माता-पिता वे होते हैं जो अपने बच्चों पर अनेक नियम थोपते हैं तथा उनकी सावधानीपूर्वक निगरानी करते हैं।
प्रश्न 21.
अनुमतिदाता माता-पिता से क्या आशय है?
उत्तर:
अनुमतिदाता माता-पिता केवल थोड़े से ही नियम लगाते हैं तथा अपने बच्चों को अक्सर अपने निर्णय स्वयं करने की अनुमति देते हैं।
प्रश्न 22.
बच्चों के लालन-पालन में माता-पिता द्वारा प्रयुक्त अनुशासनात्मक तकनीकों के दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 23.
पीयाजे के अनुसार बच्चे का संज्ञानात्मक विकास कितने चरणों से गुजरता है?
उत्तर:
पीयाजे के अनुसार बच्चे का संज्ञानात्मक विकास चार चरणों से गुजरता है-
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्तरजीविता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्तरजीविता शब्द से आशय है-'जीवित बने रहना' और मूलभूत स्तर पर 'जीवन सम्बन्धी अनिवार्य कार्य करते रहना' है। जब बच्चों की उचित देखभाल की जाती है और उन्हें पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराया जाता है तथा रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं से उनकी सुरक्षा की जाती है तो वे जीवित रहते हैं और अपने बुनियादी कार्य करने में सक्षम होते हैं। पोषक तत्वों की कमी होने पर अथवा संक्रमणों से ग्रस्तता उनकी उत्तरजीविता के लिए संकट है।
प्रश्न 2.
बाल-मुत्यु को रोकने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बाल-मृत्यु रोकने के उपाय
(1) बाल मृत्यु का निर्धनता से घनिष्ठ सम्बन्ध है। दक्षिण एशिया के देशों में एक तिहाई से अधिक बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण होती है। अतः निम्न आय वाले परिवारों के बच्चों के लिए अतिरिक्त भोजन की व्यवस्था करना और उन्हें सही मात्रा में पर्याप्त पोषक तत्व देना आवश्यक है।
(2) शैशवावस्था तथा बाल्यावस्था के जानलेवा रोगों, जैसे-तपेदिक, काली खाँसी, डिफ्थीरिया, पोलियो, टिटनेस, मलेरिया, न्यूमोनिया आदि, से उनकी प्रतिरक्षा करना आवश्यक है।
(3) स्वच्छ जल, बेहतर स्वच्छ सफाई, शिक्षा, विशेषकर लड़कियों को शिक्षा, आय की वृद्धि आदि भी बच्चों के जीवन को बचाने में सहायक होंगे। जरूरतमंद लोगों तक इनकी पहुँच का होना आवश्यक है।
प्रश्न 3.
शिशु के क्रमिक गुणात्मक परिवर्तनों के कोई पाँच उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
शिशु के गुणात्मक परिवर्तन
प्रश्न 4.
व्यक्ति के क्रियात्मक विकास से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
क्रियात्मक विकास-क्रियात्मक विकास का सम्बन्ध शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण से है जिसके कारण शरीर के विभिन्न भागों के बीच समन्वय बेहतर होता जाता है। क्रियात्मक विकास में शरीर का सहज, नियंत्रित तथा प्रभावी विकास होता है। गतिविधियों पर नियंत्रण का अर्थ शरीर की पेशियों की गतिविधि पर नियंत्रण से है।
प्रश्न 5.
क्रियात्मक विकास कितने प्रकार के होते हैं? समझाइए।
उत्तर:
क्रियात्मक विकास दो प्रकार के होते हैं-
1. स्थूल क्रियात्मक विकास-स्थूल क्रियात्मक विकास का सम्बन्ध शरीर की बड़ी मांसपेशियों की गतिविधियों पर नियंत्रण से है, जैसे-कंधे, जांघों, ऊपरी भुजा, निम्न भुजा, उदर तथा पीठ की पेशियों की गतिविधियाँ आदि। इस नियंत्रण के परिणामस्वरूप हम बैठ सकते हैं, झुक सकते हैं, चल सकते हैं तथा अपनी पूरी भुजा को हिला सकते हैं।
2. सूक्ष्म क्रियात्मक विकास-सूक्ष्म क्रियात्मक विकास का सम्बन्ध शरीर की छोटी पेशियों पर नियंत्रण से है; जैसे-कलाई, अंगुलियाँ या अंगूठे की पेशियाँ। इस नियंत्रण के परिणामस्वरूप हम लिख सकते हैं, पुस्तक के पन्ने पलट सकते हैं, सिलाई तथा बुनाई कर सकते हैं।
प्रश्न 6.
नवजात शिशु की प्रतिवर्ती क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रियाओं से आशय ऐसी अनसीखी अनुक्रियाओं से है जो कुछ प्रकार के उद्दीपनों के परिणामस्वरूप स्वतः ही घटित हो जाती हैं। नवजात शिशु की प्रतिवर्ती क्रियायें हैं
प्रश्न 7.
नवजात शिशु की संवेदनात्मक क्षमताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नवजात शिशु की संवेदनात्मक क्षमताएँ
प्रश्न 8.
'मानव अनगिनत संख्या में 'मूल वाक्यों' का उच्चारण कर सकते हैं।' यहाँ मूल से क्या आशय है?
उत्तर:
मानव अनगिनत संख्या में 'मूल वाक्यों' का उच्चारण कर सकते हैं। इस कथन में मूल से तात्पर्य हैऐसे वाक्य जो नकल किए गए या अन्तर्जात नहीं हैं बल्कि व्यक्ति द्वारा स्वयं उच्चरित किए गए हैं।
प्रश्न 9.
बच्चों में भाषा का विकास किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मानव शिशु को अन्तर्निहित रूप से भाषा सीखने का वरदान प्राप्त है तथा वह इसे सीख सकता है। शिशु की भाषा अधिगम परिवेश द्वारा प्रभावित होती है। सभी बच्चे, चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों, समान अवस्थाओं में तथा क्रम में भाषा का विकास करते हैं।
यथा-
प्रश्न 10.
भाई-बहनों के सम्बन्ध किस प्रकार किसी बच्चे के सामाजिक-भावात्मक विकास में योगदान देते हैं?
उत्तर:
भाई-बहनों के साथ सम्बन्ध-हमारे देश में अधिकांश परिवारों में एक से अधिक बच्चे होते हैं तथा कई बार बड़े बच्चों को छोटे बच्चे की देखभाल करनी पड़ती है। भाई-बहन काफी सीमा तक एक-दूसरे के विकास को प्रभावित करते हैं। यथा
प्रश्न 1.
जन्म से लेकर दस वर्ष तक की आयु के लड़के व लड़कियों के वजन के विकास क्रम का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वजन में वृद्धि-जन्म के समय शिशु का वजन लगभग 2.5 से 3 कि.ग्रा. का होता है। जब तक शिशु छः माह का होता है, उसका वजन दुगुना हो गया होता है तथा जब वह एक वर्ष की आयु पर पहुँचता है तो उसका वजन जन्म के वजन की तुलना में तीन गुना हो गया होता है। अधिकांश शिशुओं का वजन एक वर्ष की आयु में लगभग 8 से 9 कि.ग्रा. के बीच होता है।
सारिणी-आयु के अनुसार वजन-
आयु सीमा |
लड़कियाँ (कि.ग्रा.) |
लड़के (कि.ग्रा. ) |
0 - 2 वर्ष |
3.2 - 11.5 |
3.3 - 12.2 |
2 - 5 वर्ष |
11.7 - 18.2 |
12.4 - 18.3 |
5 - 6 वर्ष |
18.3 - 20.2 |
18.5 - 20.5 |
6 - 7 वर्ष |
20.3 - 22.4 |
20.7 - 22.9 |
7 - 8 वर्ष |
22.6 - 25.0 |
23.1 - 25.4 |
8 - 9 वर्ष |
25.3 - 28.2 |
25.6 - 28.1 |
9- 10 वर्ष |
28.5 - 31.9 |
28.3 - 31.2 |
प्रश्न 2.
जन्म से लेकर 19 वर्ष तक की आयु के लड़के व लड़कियों की शारीरिक लम्बाई के विकास क्रम का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शारीरिक लम्बाई-जन्म के समय एक सामान्य शिशु की लम्बाई लगभग 45 से.मी. से 50 से.मी. होती है। चार माह की आयु में उसकी लम्बाई 56 से.मी. से 60 से.मी. के बीच हो जाती है। आठ माह की औसत लम्बाई 65 से.मी. से 70 से.मी. तक होती है तथा एक वर्ष में 70 से.मी. से 75 से.मी. तक होती है। 2 वर्ष में उसकी लम्बाई 80 से 85 से.मी. तक हो जाती है। प्रायः लड़के लड़कियों से लम्बे होते हैं तथा उनकी लम्बाई माता-पिता की आनुवांशिकता पर निर्भर करती
सारिणी-आयु के अनुसार कद-
आयु सीमा |
लड़कियाँ (से.मी.) |
लड़के (से.मी.) |
2 - 5 वर्ष |
85.7 - 109.4 |
87.1 - 110.0 |
5 - 8 वर्ष |
109.6 - 126.6 |
110.3 - 127.3 |
8 - 11 वर्ष |
127.0 - 145.0 |
127.7 - 143.1 |
11 - 14 वर्ष |
145.5 - 159.8 |
143.6 - 163.2 |
14 - 17 वर्ष |
160.0 - 162.9 |
163.7 - 175.2 |
17 - 19 वर्ष |
162.9 - 163.2 |
175.3 - 176.5 |
प्रश्न 3.
बच्चों में भाषा के विकास की अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बच्चों में भाषा विकास की अवस्थाएँ बच्चों में भाषा विकास की अवस्थाओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) रोना-रोना बच्चों के संप्रेषण का पहला स्वरूप है। यह जन्मजात होता है अर्थात् बच्चे को रोना सीखने की आवश्यकता नहीं होती। संजीव पास बुक्स शिशु का रोना वयस्कों तथा बच्चों में शारीरिक अनुक्रिया उत्पन्न करता है जो उन्हें शिशु की तरफ ध्यान देने और उनके कष्ट को दूर करने के लिए प्रेरित करता है। बच्चे का रोना अनेक प्रकार की आवश्यकताओं को सूचित करता है। विभिन्न शारीरिक स्थितियों-भूख, पीड़ा, बीमारी में बच्चे का रोना अलग-अलग प्रकार का होता है।
(2) कूकू करना-दूसरे माह तक बच्चे 'कूकू' करना शुरू कर देते हैं। यह ध्वनि भी अन्तर्जात (जन्मजात) स्वर किस्म की होती है। आह, ऊह जैसे स्वर शिशु तब निकालते हैं जब वे संतुष्ट होते हैं तथा आनंद का अनुभव कर रहे होते हैं। जब शिशु कूकू करता है तो माता-पिता बोलकर, हँसकर अथवा उस आवाज की नकल करके अनुक्रिया दर्शाते हैं और फिर बच्चे के पुनः कूकू करने की प्रतीक्षा करते हैं। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है मानो माता-पिता बातचीत कर रहे हों।
इस कूकू करने की ध्वनि में लगभग 8 माह तक उल्लेखनीय कमी आ जाती है तथा छः महीने में बच्चा तुतलाने लगता है।
(3) तुतलाना-तुतलाना व्यंजन स्वर का एक संयोजन होता है जिसमें शिशु दा, मा या पा संयोजन को दोहराता है और इससे माम्मा, पापा, दाददा जैसी ध्वनियाँ निकलती हैं। तुतलाना मानव भाषा की तरह प्रतीत होता है तथा तुतलाना अन्तर्जात है। शिशु सभी मानव भाषाओं में निहित सभी ध्वनियाँ निकालने में सक्षम होता है। एक बहरा बच्चा भी तुतलाता है। धीरे-धीरे, वे ध्वनियाँ जिन्हें बच्चा अपने परिवेश में नहीं सुनता, भूल जाता है। इससे पता चलता है कि परिवेश भाषा सीखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(4) एक वर्ण या दो वर्णों के शब्दों का उच्चारण-लगभग एक वर्ष के पश्चात् शिशु पहले शब्द का उच्चारण करता है तथा वह उसका प्रयोग निरंतर एक ही तात्पर्य के लिए करता है। पहले शब्द अत्यन्त संक्षिप्त होते हैं जिनमें एक या दो वर्ण ही होते हैं। जैसे-पापा, मामा आदि। - 18 माह की आयु तक बच्चा लगभग दो दर्जन शब्द बोलने लगता है। 2 वर्ष की आयु तक वह लगभग 250 शब्द सीख लेता है तथा उसके पश्चात् प्रत्येक वर्ष इनमें सैकड़ों शब्द जुड़ते जाते हैं।
(5) वाक्य उच्चारण (टेलीग्राफिक भाषा)-दो वर्ष की आयु के पश्चात् बच्चा दो शब्द वाले वाक्य बोलने के लिए शब्द जोड़ना आरंभ कर देता है। बच्चे के शुरुआती शब्द संज्ञा, क्रियात्मक शब्द अभिव्यक्तात्मक शब्द, जैसेबाय-बाय, नहीं, नमस्ते, मामा-पापा आदि होते हैं।
बच्चे के एक शब्द या दो शब्दों के उच्चारण उन सम्पूर्ण अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं जो पूर्ण शब्दों में निहित होते हैं। इसे टेलीग्राफिक भाषा कहा जाता है।
(6) व्याकरणयुक्त भाषा-दो से तीन वर्ष के बीच की आयु में बच्चे व्याकरणयुक्त भाषा सीख लेते हैं। वाक्य बनाने की उनकी क्षमता का विस्तार होने लगता है और उसमें वे शब्द शामिल होने लगते हैं जो टेलीग्राफिक भाषा में विद्यमान नहीं थे, जैसे-क्रियायें, संयोजक, संबंधवाचक शब्द आदि।
चार वर्ष की आयु तक बच्चे की भाषा काफी सुव्यवस्थित हो जाती है। बच्चे लम्बी बातचीत कर सकते हैं, प्रश्न पूछ सकते हैं तथा बारी-बारी से बातचीत कर सकते हैं। 7 से 9 वर्ष की आयु तक वे यह समझने लग जाते हैं कि शब्दों के अनेक अर्थ हो सकते हैं तथा वे ऐसे चुटकलों तथा पहेलियों का आनंद लेने लगते हैं जो भाषा पर आधारित होते हैं।
प्रश्न 4.
छोटे बच्चों द्वारा दर्शाए जाने वाले मनोभावों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बाल मनोभाव-यद्यपि हमें बच्चे के चेहरे के भावों तथा अंदरूनी भावनाओं के बीच एकदम सही सम्बन्ध की जानकारी नहीं है, तथापि शिशु उन मनोभावों का अनुभव करते हैं जिन्हें हम प्रसन्नता, दुःख, परेशानी, क्रोध या रोष कहते हैं। धीरे-धीरे ये भाव प्रसन्नता, रुचि, उत्तेजना, दुःख, अस्वीकरण तथा भय में अलग-अलग हो जाते हैं। यथा
(1) अजनबी को देखने पर होने वाली उत्सुकता-लगभग छः माह की आयु के आस-पास बच्चा अपरिचित के प्रति भय दर्शाता है तथा उसके पास आने पर परेशान भी हो जाता है तथा रोने लगता है। ऐसा इस कारण होता है कि बच्चे में अपरिचित चेहरों से एक बार डर जाने पर लोगों को पहचानने की क्षमता विकसित हो जाती है। इसे 'अजनबी को देखने पर होने वाली उत्सुकता' कहा जाता है। परेशानी की यह भावना 8 से 12 माह की आयु के आस-पास अपनी चरम सीमा पर होती है तथा 15-18 माह की आयु में यह भावना लुप्त हो जाती है।
(2) बिछुड़ने की चिंता-अजनबी को देखने पर उत्सुकता उभरने के कुछ समय पश्चात् शिशु में 'बिछुड़ने की चिंता' विकसित हो जाती है अर्थात् उन देखभाल करने वालों से बिछुड़ जाने का भय, जिनके साथ उसका लगाव है। वे उस समय परेशान हो जाते हैं जब माता उनकी दृष्टि से ओझल हो जाती है। यह भय 12 माह से 18 माह की आयु के दौरान अपनी चरम सीमा पर होता है और लगभग 2 वर्ष की आयु में दूर हो जाता है।