RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 10 विविध संदर्भो में सरोकार और आवश्यकताएँ

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RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 10 विविध संदर्भो में सरोकार और आवश्यकताएँ

बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
रोग का अर्थ है
(अ) शारीरिक स्वास्थ्य की क्षति 
(ब) शरीर के किसी भाग या अंग के कार्य में विक्षिप्तता 
(स) मानसिक स्वास्थ्य की क्षति
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 10 विविध संदर्भो में सरोकार और आवश्यकताएँ  

प्रश्न 2. 
स्वास्थ्य की परिभाषा में निम्न में से कौनसा आयाम समाहित होता है? 
(अ) शारीरिक आयाम
(ब) मानसिक आयाम 
(स) सामाजिक आयाम
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 3. 
स्वास्थ्य से जुड़ा सामाजिक निर्धारक है
(अ) रोजगार की स्थिति
(ब) कार्यस्थलों में सुरक्षा 
(स) स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 4. 
जिस व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है वह
(अ) स्वयं को असमर्थ और असक्षम महसूस करता है। 
(ब) उसके सम्बन्ध असंतोषप्रद होते हैं। 
(स) वह स्वतंत्र जीवन बिता सकता है।
(द) वह किन्हीं बातों से डरता है। 
उत्तर:
(स) वह स्वतंत्र जीवन बिता सकता है।

प्रश्न 5. 
स्वास्थ्य के सूचकों में शामिल है
(अ) मृत्यु-दरं
(ब) रुग्णता (बीमारी) 
(स) जीवन की गुणवत्ता
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 6. 
भोजन में कितने पोषक तत्व होते हैं? 
(अ) सिर्फ 50
(ब) 50 से अधिक
(द) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(ब) 50 से अधिक

प्रश्न 7. 
अच्छा स्वास्थ्य और पोषण कैसे सहायक तथा लाभप्रद होता है?
(अ) अच्छे स्वास्थ्य वाले लोग प्रायः अधिक प्रसन्नचित्त होते हैं। 
(ब) स्वस्थ माता-पिता अपने बच्चों की अच्छी देखभाल कर पाते हैं। 
(स) स्वस्थ बच्चे प्रायः खुश रहते हैं तथा पढ़ाई में अच्छा परिणाम देते हैं।
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 8. 
इष्टतम पोषणात्मक स्तर महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह
(अ) शरीर का वजन घटाता है। 
(ब) अशक्तता के जोखिम को बढ़ाता है 
(स) पेशी की सुदृढ़ता बनाए रखता है
(द) रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। 
उत्तर:
(स) पेशी की सुदृढ़ता बनाए रखता है

प्रश्न 9. 
अच्छे पोषण का दृष्टि के सकारात्मक प्रभाव से जो संबंधित है वह है
(अ) स्मृति बढ़ाना 
(ब) दृष्टिहीनता के जोखिम को कम करना 
(स) एकाग्रता बढ़ाना
(द) ध्यान देने की अवधि का बढ़ना 
उत्तर:
(ब) दृष्टिहीनता के जोखिम को कम करना 

प्रश्न 10. 
बेहतर कार्यस्थल किस प्रकार सहायक है?
(अ) इससे काम की दक्षता बढ़ती है। 
(ब) इससे थकान तथा स्वास्थ्य की अन्य समस्याओं से भी बचाव होगा। 
(स) ऊर्जा और समय की बचत होती है।
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 11. 
निष्पादित कार्य गुणवत्तापूर्ण होगा यदि
(अ) कार्यकर्ता लक्ष्य को अच्छी तरह समझता हो।
(ब) कार्यकर्ता अपने व्यक्तिगत संतोष के लिए कुछ मानक निर्धारित कर ले। 
(स) कार्य को लक्ष्य के अनुसार आयोजित किया जाए।
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

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प्रश्न 12. 
निम्न में से कौनसा कारक कार्य को प्रभावित करता है? (अ) समय
(ब) ध्यान सम्बन्धी आवश्यकता 
(स) दोनों 
(अ) व (ब)
(द) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(स) दोनों 

प्रश्न 13. 
कार्य में निम्न पहलू निहित होता है
(अ) शारीरिक
(ब) संज्ञानात्मक 
(स) रुचि
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 14. 
कार्यकर्ता की मनोवैज्ञानिक विशेषता है
(अ) अभिवृत्ति
(ब) कुशलता 
(स) ज्ञान
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 15. 
निम्न में से किसका उपयोग लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है? 
(अ) संपत्ति
(ब) द्रव्य 
(स) निधि
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 16. 
हमारी दैनिक गतिविधियों में शामिल है
(अ) खाना पकाना
(ब) स्कूल की फीस देना 
(स) यात्रा पर जाना
(द) ये सभी
उत्तर:
(अ) खाना पकाना

प्रश्न 17. 
हमारी ऐच्छिक गतिविधि है
(अ) स्कूल जाना
(ब) यात्रा पर जाना  
(स) खाना पकाना
(द) विश्राम करना 
उत्तर:
(ब) यात्रा पर जाना  

प्रश्न 18. 
कारगर समय-प्रबन्धन हेतु निम्न में से क्या करना चाहिए?
(अ) किए जाने योग्य कार्यों की सरल सूची बनाएँ। 
(ब) दैनिक/साप्ताहिक योजना सारणी बनाएँ।
(स) दीर्घावधि योजना-सारणी बनाएँ। 
(द) उपर्युक्त सभी। 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी। 

प्रश्न 19.
निम्न में कौनसी स्थिति समय के प्रभावी प्रबन्धन में मदद करती है? 
(अ) चरम भार अवधि
(ब) कार्य वक्र 
(स) विश्राम की अवधि
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 20. 
कार्य का सरलीकरण कैसे करते हैं?
(अ) हाथ और शरीर की गति में परिवर्तन करके 
(ब) कार्य में कुशलता विकसित करके 
(स) कार्य के क्रम में सुधार लाकर
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

प्रश्न 21. 
बाहरी एकांतता से संबंधित है
(अ) कमरों की स्थिति
(ब) लॉबी की व्यवस्था 
(स) प्रवेश द्वार
(द) दरवाजों पर परदे लगाना 
उत्तर:
(स) प्रवेश द्वार

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प्रश्न 22. 
अधिगम (सीखना) निम्न में से किसका आधार है?
(अ) ज्ञान
(ब) बोध 
(स) व्यवहार
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 23. 
निम्न शिक्षा उपलब्ध कराने में विद्यालय एक महत्वपूर्ण शिक्षा है
(अ) औपचारिक शिक्षा
(ब) अनौपचारिक शिक्षा 
(स) प्रौढ़ शिक्षा
(द) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(अ) औपचारिक शिक्षा

प्रश्न 24. 
अनौपचारिक शिक्षा के दौरान तंत्र का कठोर वर्गीकरण (कक्षा आदि का) नहीं किया जाता है क्योंकि
(अ) शिशु आयु शैक्षिक अनुभव और लक्ष्य में भिन्न-भिन्न होते हैं। 
(ब) पाठ्यक्रम पूर्व निर्धारित होता है। 
(स) सभी छात्रों के साझे लक्ष्य होते हैं।
(द) इसमें शिक्षा प्राथमिक उच्चतर माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर तक क्रमानुसार होती है। 
उत्तर:
(अ) शिशु आयु शैक्षिक अनुभव और लक्ष्य में भिन्न-भिन्न होते हैं। 

प्रश्न 25. 
व्यक्ति कौशल का अर्जन किस प्रकार करता है? 
(अ) ज्ञान प्राप्ति द्वारा
(ब) निजी विकास द्वारा 
(स) शिक्षा में प्रक्रियाओं के माध्यम से
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 26. 
दृश्य-श्रव्य साधन की पहचान कीजिए
(अ) रेडियो
(ब) चलचित्र 
(स) टेलीविजन
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

प्रश्न 27. 
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की शुरुआत कब हुई? 
(अ) जनवरी 1999 में
(ब) फरवरी 1999 में 
(स) मार्च 1999 में
(द) अप्रैल 1999 में
उत्तर:
(द) अप्रैल 1999 में

प्रश्न 28.
संजीव पास बुक्स 28. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना की शुरुआत किस दिन की गई? 
(अ) 1 अप्रैल 1999 को
(ब) 3 अप्रैल 1999 को 
(स) 1 दिसम्बर 1999 को
(द) 3 दिसम्बर 1999 को
उत्तर:
(अ) 1 अप्रैल 1999 को

प्रश्न 29. 
मानव को वस्त्र निर्माण का ज्ञान कब से है?
(अ) 20000 वर्ष पूर्व से 
(ब) 5000 वर्ष पूर्व से
(स) 15वीं शताब्दी से 
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) 20000 वर्ष पूर्व से 

प्रश्न 30. 
भारतीयों के कुशल रंगरेज़ होने का प्रमाण कहाँ से प्राप्त होता है?
(अ) ऋग्वेद व उपनिषदों से
(ब) मोहनजोदाड़ो में खुदाई के स्थलों से 
(स) ग्रीक और लैटिन साहित्यों से
(द) ईस्ट इंडिया कंपनियों के इतिहास से 
उत्तर:
(स) ग्रीक और लैटिन साहित्यों से

प्रश्न 31. 
भारतीय कपड़े का उत्पादन मुख्यतः किस रेशे से सम्बन्धित है? 
(अ) कपास से
(ब) रेशम से 
(स) ऊन से
(द) ये सभी 
उत्तर:
(द) ये सभी 

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प्रश्न 32. 
कपास की खेती और बुनाई में उसका प्रयोग कब से विदित है? 
(अ) वैदिक काल से
(ब) प्रागैतिहासिक काल से 
(स) ऐतिहासिक काल से
(द) आधुनिक काल से 
उत्तर:
(ब) प्रागैतिहासिक काल से 

प्रश्न 33. 
किन लोगों ने प्रथम बार कपास को देखकर उसे पेड़ों पर उगने वाली ऊन समझा? 
(अ) रोमन और ग्रीक लोगों ने
(ब) अंग्रेजों ने 
(स) बैबिलोन निवासियों ने
(द) चीनियों ने 
उत्तर:
(अ) रोमन और ग्रीक लोगों ने

प्रश्न 34. 
सबसे बारीक कपड़ा-मलमल खास या शाही मस्लिन को कहाँ बनाया गया? 
(अ) ढाका में
(ब) चीन में 
(स) आगरा में
(द) सूरत में 
उत्तर:
(अ) ढाका में

प्रश्न 35.
रेशम का मूल कहाँ था? 
(अ) ढाका (बांग्लादेश)
(ब) चीन 
(स) वाराणसी
(द) तंजावुर
उत्तर:
(ब) चीन 

II. रिक्त स्थान वाले प्रश्न

क.

निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिएक. 
1. सभी लोगों को जीवन भर पूर्ण ............ रहने का अवसर मिलना चाहिए।
2. जो लोग सामाजिक रूप से अच्छी तरह ........... बनाए रखते हैं वे लम्बे समय तक जीते हैं और बीमारी से भी जल्दी राहत पा लेते हैं।
3. अच्छा ........... व्यक्ति तथा परिवार के गुणवत्तापूर्ण जीवन और अच्छे जीवन स्तर की बुनियाद होता
4. ........... जीवन वृद्धि विकास तथा तंदुरुस्ती के लिए भोजन एवं पोषक तत्वों तक उसकी उपलब्धता और उपयोग से सम्बन्धित है।
5. यदि व्यक्ति भूखा और ........... का शिकार है तो उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं हो सकता।

उत्तर:
1. स्वस्थ 
2. तालमेल 
3. स्वास्थ्य 
4. पोषण विज्ञान 
5. कुपोषण। 

ख. 

1. यह जरूरी है कि ............ को असुविधानजक ............ पर काम करने के लिए मजबूर करने के बजाय कार्य का वातावरण स्वस्थ बनाया जाए।
2. कार्य को कुछ करने या बनाने के लिए निर्देशित ............ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। 
3. एक विद्यार्थी का अपने स्कूल का काम करना और गृहिणी द्वारा घर की सफाई करना ............ के उदाहरण हैं
4. .......... या .......... पहलू में कार्यकर्ता की मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ शामिल होती हैं। 
5. कार्यस्थल में विशिष्ट रूप से अनेक भौतिक और रासायनिक ........... कारक होते हैं।
उत्तर:
1. कार्यकर्ता कार्यस्थल 
2. गतिविधि 
3. 'कार्यकर्ता', 
4. संज्ञानात्मक मानसिक 
5. पर्यावरण। 

ग. 

1. अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि सभी उपलब्ध ............ का समुचित ............ किया जाए।
2. समय ........... का सिद्धान्त है-व्यस्त होने की बजाय परिणामों पर ध्यान देना। 
3. किसी छात्र की समय ........... उस व्यक्ति से बहुत भिन्न होगी जो काम करने के लिए बाहर जाता
4. दीर्घावधि योजना सारणी आपके लिए समय की ........... योजना बनाने हेतु याद दिलाने के लिए भी । काम करेगा।
5. काम करने के लिए ............ एक संतुलित सधी हुई स्थिति है।
उत्तर:
1. संसाधनों प्रबंधन 
2. प्रबंधन 
3. योजना 
4. रचनात्मक 
5. बैठने की उत्तम मुद्रा।

घ. 

1. हम पैदा होते ही ............ शुरू कर देते हैं।
2. ........... हमारे भौतिक भावात्मक संज्ञानात्मक और इंद्रियातीत अनुभवों के माध्यम से हमें संसार का बोध कराती है।
3. हर औपचारिक शिक्षा में विषयवस्तु होती है जिसे ........... कहते हैं।
4. अनेक प्रणालियों में छात्र दसवीं कक्षा के बाद ग्यारहवीं तथा बारहवीं कक्षाओं के लिए ............ में प्रवेश लेते हैं।
5. विस्तार का अर्थ है ज्ञान को ज्ञात से अज्ञात तक ............। 

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उत्तर:
1. सीखना 
2. शिक्षा 
3. पाठ्यक्रम 
4. महाविद्यालय 
5. फैलाना। 

1. मानव 20000 वर्ष पूर्व भी ............ बनाने की कला जानता था। 
2. भारत में परिष्कृत वस्त्रों का उत्पादन उतना ही प्राचीन है जितनी 
3. पारम्परिक रूप से भारतीय कपड़े का उत्पादन तीन मुख्य ............ रेशों के साथ जुड़ा हुआ है। 
4. तमिलनाडु में कांचीपुर प्राचीन काल से दक्षिण भारत में ............ बुनाई का एक प्रसिद्ध केन्द्र है। 
5. 11वीं सदी का ............ साहित्य उस अवधि के बहुरंगी ऊनी कपड़ों की बुनाई की पुष्टि करता है।
उत्तर:
1. वस्त्र 
2. भारतीय सभ्यता 
3. प्राकृतिक 
4. ब्रोकेड 
5. कश्मीरी। 

III. सत्य/असत्य वाले प्रश्न

निम्नलिखित कथनों में से सत्य/असत्य कथनों की पहचान कीजिएक. 

1. अनेक पर्यावरणीय परिस्थितियाँ और हमारी अपनी जीवन शैली हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
2. मनुष्य में रोगों का अभाव होने का मतलब उसका स्वस्थ होना है। 
3. पोषक तत्वों उनके उपापचय एवं स्रोतों तथा कार्यों के बारे में जानकारी होना महत्वपूर्ण नहीं है।
4. सर्वे सन्तु निरामया में रोग का निवारण और रोग हो जाने पर उसका इलाज शामिल है। 
5. अतिपोषण भी अच्छा नहीं होता।
उत्तर:
1. सत्य 
2. असत्य 
3. असत्य 
4. सत्य 
5. सत्य। 

ख. 

1. हम सभी प्रतिदिन घंटों काम करते हैं-बच्चे पढ़ते हैं तथा अन्य जरूरी काम करते हैं।
2. गतिविधि को सरल शायद अधिक रोचक बनाना जरूरी नहीं होता है। 
3. हम सभी को जीने और काम करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। 
4. उपकरण ऐसे बनाने चाहिए कि वे सभी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुकूल हों। 
5. कार्यस्थल के उदाहरणों में स्कूल अध्ययन कक्ष रसोई आदि शामिल नहीं हैं।
उत्तर:
1. सत्य 
2. असत्य 
3. सत्य 
4. सत्य
5. असत्य। 

ग. 

1. संसाधनों का सामयिक और कुशल प्रबंधन उनके इष्टतम उपयोग को बढ़ाता है।
2. हमें हर रोज 24 घंटे का समय मिलता है जिसका प्रयोग हम अपनी इच्छानुसार नहीं कर सकते हैं। 
3. पूरे दिन के लिए उपयुक्त समय सारणी बनाएँ जिसमें फुरसत के समय को शामिल नहीं करें। 
4. 'कार्य वक्र' समयानुसार कार्य देखने का एक साधन है। 
5. शारीरिक भार कंकाल की अस्थियों के समर्थन द्वारा वहन किया जाता है।
उत्तर:
1. सत्य 
2. असत्य 
3. असत्य 
4. सत्य 
5. सत्य। 

घ. 

1. अनुसंधान से स्पष्ट हुआ है कि भ्रूण माता की कोख में भी सीखता है।
2. शाब्दिक शिक्षा में लिखित या वाचिक गद्य से अर्थगत ज्ञान या प्रक्रियात्मक ज्ञान शामिल नहीं होता है। 
3. रटकर सीखने का प्रयोग विविध क्षेत्रों में किया जाता है गणित से लेकर संगीत और धर्म तक। 
4. एक मानसिक छवि किसी चीज के बारे में एक सामान्यीकृत विचार व्यक्त करती है। 
5. समस्या समाधान का आशय निम्नस्तरीय अधिगम से है।
उत्तर:
1. सत्य 
2. असत्य 
3. सत्य 
4. सत्य 
5. असत्य। 

ङ. 

1. उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से पहले रंग केवल प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किए जाते थे।
2. रंग के साथ डिजाइन बनाने का सबसे पुराना रूप रंगरोधी रंगाई है। 
3. इकत का कारीगर रंगाई की कला में निपुण नहीं होता बल्कि उसे बुनाई का तकनीकी ज्ञान होता है। 
4. आंध्र प्रदेश में पोचमपल्ली और किराला में सूती इकत कपड़े बनाने की परम्परा है। 
5. कशीदाकारी को सामान्यतः एक घरेलू हस्तशिल्प माना जाता है।
उत्तर:
1. सत्य 
2. सत्य 
3. असत्य 
4. सत्य 
5. सत्य। 

IV. मिलान करने वाले प्रश्न

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निम्नलिखित 'समूह-I' को 'समूह-II' से मिलाइए। 
1. 

क. समूह-I

समूह-II

1. स्वास्थ्य-व्यवसायी

(i) जीवन की गुणवत्ता

2. सामाजिक स्वास्थ्य

(ii) भावात्मक स्वस्थता

3. मानसिक स्वास्थ्य

(iii) समाज का स्वास्थ्य

4. शारीरिक स्वास्थ्य

(iv) स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित व्यक्ति

5. स्वास्थ्य का सूचक

(v) रोग के प्रति पर्याप्त प्रतिरोध शक्ति

उत्तर:

क. समूह-I

समूह-II

1. स्वास्थ्य-व्यवसायी

(iv) स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित व्यक्ति

2. सामाजिक स्वास्थ्य

(iii) समाज का स्वास्थ्य

3. मानसिक स्वास्थ्य

(ii) भावात्मक स्वस्थता

4. शारीरिक स्वास्थ्य

(v) रोग के प्रति पर्याप्त प्रतिरोध शक्ति

5. स्वास्थ्य का सूचक

(i) जीवन की गुणवत्ता

2. 

ख. समूह-I

समूह-II

1. कार्य

(i) गृहिणी द्वारा घर की सफाई करना

2. कार्यकर्ता

(ii) कुछ करने या बनाने की गतिविधि

3. कार्यस्थल

(iii) उद्भासन की अवधि के आधार पर प्रभाव डालते हैं।

4. विकिरण

(iv) व्यक्ति की स्थिर निश्चल क्रियाओं पर प्रभाव डालते हैं।

5. कार्य-धरातल

(v) जहाँ कोई कार्यकर्ता किसी काम को निष्पादित करे।

उत्तर:

ख. समूह-I

समूह-II

1. कार्य

(ii) कुछ करने या बनाने की गतिविधि

2. कार्यकर्ता

(i) गृहिणी द्वारा घर की सफाई करना

3. कार्यस्थल

(v) जहाँ कोई कार्यकर्ता किसी काम को निष्पादित करे।

4. विकिरण

(iii) उद्भासन की अवधि के आधार पर प्रभाव डालते हैं।

5. कार्य-धरातल

(iv) व्यक्ति की स्थिर निश्चल क्रियाओं पर प्रभाव डालते हैं।

3. 

ग. समूह-I

समूह-II

1. संसाधन

(i) स्कूल जाना

2. समय-प्रबंधन

(ii) घर की सफाई करना

3. नियमित दिनचर्या

(iii) एक व्यवस्थित समय योजना बनाना

4. दैनिक कार्य.

(iv) लक्ष्य प्राप्ति हेतु उपयोगी

5. साप्ताहिक कार्य

(v) कार्य निष्पादन हेतु तय समय


RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 10 विविध संदर्भो में सरोकार और आवश्यकताएँ

उत्तर:

ग. समूह-I

समूह-II

1. संसाधन

(iv) लक्ष्य प्राप्ति हेतु उपयोगी

2. समय-प्रबंधन

(iii) एक व्यवस्थित समय योजना बनाना

3. नियमित दिनचर्या

(v) कार्य निष्पादन हेतु तय समय

4. दैनिक कार्य.

(i) स्कूल जाना

5. साप्ताहिक कार्य

(ii) घर की सफाई करना

4. 

घ. समूह-I

समूह-II

1. अधिगम (सीखना)

(i) पेशियों का प्रयोग करना

2. यांत्रिक अधिगम

(ii) राष्ट्रीय विकास का एक साधन

3. शिक्षा

(iii) ज्ञान, बोध और व्यवहार का आधार

4. विस्तारण

(iv) संसार का बोध करने में सहायक

5. चलचित्र

(v) देखने तथा सुनने के साथ-साथ अनुभव प्राप्त होना

उत्तर:

घ. समूह-I

समूह-II

1. अधिगम (सीखना)

(iii) ज्ञान, बोध और व्यवहार का आधार

2. यांत्रिक अधिगम

(i) पेशियों का प्रयोग करना

3. शिक्षा

(iv) संसार का बोध करने में सहायक

4. विस्तारण

(ii) राष्ट्रीय विकास का एक साधन

5. चलचित्र

(v) देखने तथा सुनने के साथ-साथ अनुभव प्राप्त होना

5. 

ङ. समूह-I

समूह-II

1. कपास

(i) इसका मूल चीन में था

2. रेशम

(ii) शीतल प्रदेशों से संबंधित है

3. उन्न

(iii) भारत से सारे संसार में फैल गया

4. कपड़ा टाई एंड डाई

(iv) इन्हें इकत कपड़ा कहते हैं

5. धागा टाई एंड डाई

(v) एक विशिष्ट डिजाइन बंधेज है

उत्तर:

ङ. समूह-I

समूह-II

1. कपास

(iii) भारत से सारे संसार में फैल गया

2. रेशम

(i) इसका मूल चीन में था

3. उन्न

(ii) शीतल प्रदेशों से संबंधित है

4. कपड़ा टाई एंड डाई

(v) एक विशिष्ट डिजाइन बंधेज है

5. धागा टाई एंड डाई

(iv) इन्हें इकत कपड़ा कहते हैं

V. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ कितने स्तरों पर उपलब्ध कराई जाती हैं? ।
उत्तर
स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ तीन स्तरों पर उपलब्ध कराई जाती हैं-प्राथमिक देखभाल, द्वितीयक देखभाल और तृतीयक देखभाल स्तर।

प्रश्न 2. 
प्राथमिक देखभाल सेवाएँ कौन उपलब्ध करवाता है? 
उत्तर:
किसी गाँव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र प्राथमिक देखभाल सेवाएँ उपलब्ध करवाता है। 

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प्रश्न 3. 
द्वितीयक देखभाल सेवाएँ कौन उपलब्ध करवाता है?
उत्तर:
जिला अस्पताल द्वितीयक देखभाल सेवाएँ उपलब्ध करवाता है। 

प्रश्न 4. 
तृतीयक देखभाल सेवाएँ कौन उपलब्ध करवाता है?
उत्तर:
दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (ए.आई.आई.एम.एस.) जैसा अस्तपाल तृतीयक देखभाल सेवाएँ उपलब्ध करवाता है।

प्रश्न 5. 
पोषक तत्वों का वर्गीकरण कीजिए। 
उत्तर:
पोषक तत्वों को मोटे तौर पर वृहत् पोषक और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों में वर्गीकृत किया जाता है। 

प्रश्न 6. 
कुपोषण क्या है?
उत्तर: 
जब पोषक तत्त्वों का अंतर्ग्रहण शरीर द्वारा अपेक्षित मात्रा से कम या अधिक हो, तो उसे कुपोषण कहते हैं

प्रश्न 7. 
कुपोषण हानिकारक कैसे है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
यदि व्यक्ति भूख और कुपोषण का शिकार है तो उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं हो सकता और वह समाज का उत्पादक, मिलनसार एवं सहयोगी सदस्य नहीं बन सकता।

प्रश्न 8. 
अल्पपोषण व अतिपोषण में अन्तर करें।
उत्तर:
पोषक तत्वों के अधिक अंतर्ग्रहण (सेवन) से अतिपोषण होता है, जबकि अपर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों के अंतर्ग्रहण (सेवन) से अल्पपोषण होता है।

प्रश्न 9. 
पोषणात्मक स्वस्थता को प्रभावित करने वाले चार कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पोषणात्मक स्वस्थता को प्रभावित करने वाले चार कारक हैं

  1. आहार और पोषक तत्वों की सुरक्षा, 
  2. संवेदनशील लोगों की देखभाल, 
  3. सर्वे सन्तु निरामया और 
  4. सुरक्षित पर्यावरण।

प्रश्न 10.
संक्रमण का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
संक्रमण के दौरान शरीर में पोषक तत्वों के आरक्षित भंडार की काफी क्षति होती है (वमन तथा अतिसार द्वारा), जबकि पोषक तत्वों की जरूरतें वस्तुतः बढ़ जाती हैं।

प्रश्न 11. 
संचारी रोगों के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर
अनेक संक्रामक तथा संचारी रोग खराब पर्यावरणीय सफाई, खराब घरेलू हालत तथा निजी एवं खाद्य अस्वच्छता के कारण होते हैं।

प्रश्न 12. 
हम प्रतिदिन कौनसी सामान्य गतिविधियाँ करते हैं? कोई चार गतिविधियाँ लिखिए।
उत्तर:
हम सभी प्रतिदिन 

  1. सोना
  2. कपड़े पहनना
  3. खाना-पीना और 
  4. स्नान करना आदि सामान्य गतिविधि करते हैं।

प्रश्न 13. 
इष्टतम कार्य निष्पादन हेतु क्या जरूरी है?
उत्तर
इष्टतम कार्य निष्पादन के लिए जरूरी है कि कार्य को परिवेश, कार्यस्थल और कार्यकर्ताओं के संदर्भ में समझा जाए।

प्रश्न 14.
किसी विद्यार्थी हेतु कार्य क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी विद्यार्थी के सन्दर्भ में, कार्य का प्रमुख रूप से अर्थ है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए अध्ययन किया जाए।

प्रश्न 15. 
कार्य को गुणवत्तापूर्ण कैसे बना सकते हैं? 
उत्तर
निष्पादित कार्य गुणवत्तापूर्ण होगा यदि- कार्यकर्ता लक्ष्य को अच्छी तरह समझता हो, . कार्यकर्ता अपने व्यक्तिगत संतोष के लिए कुछ मानक निर्धारित कर ले, । कार्य को लक्ष्य के अनुसार आयोजित किया जाए। 

प्रश्न 16. 
कार्य के सरलीकरण से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर
निर्धारित समय तथा ऊर्जा में अधिक कार्य निष्पादित करना, कार्य का सरलीकरण कहलाता है।

प्रश्न 17. 
कार्यकर्ता के शारीरिक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यकर्ता का शारीरिक पहलू कार्यकर्ता के शरीर से सम्बन्धित है। इसमें मानव ऊर्जा, शारीरिक गतिविधि और वृद्धि शामिल हैं।

प्रश्न 18. 
उपकरणों के अनुकूलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उपकरणों के अनुकूलन से आशय है उपकरण ऐसे बनाने चाहिए कि वे सभी कार्यकर्ताओं की सुरक्षा आवश्यकताओं के अनुकूल हों।

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प्रश्न 19. 
भौतिक और रासायनिक पर्यावरण कारकों से बचाव का कोई एक उपाय बताइए।
उत्तर:
हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि हम भौतिक और रासायनिक पर्यावरण के कारकों के सम्पर्क में इतना न आएँ कि उनका हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़े।

प्रश्न 20. 
कार्यस्थल का निर्माण करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
कार्यस्थल का निर्माण करते समय हमें 'कौन से'?, 'कैसे'?, 'कितने'? तथा 'किस क्रम में? काम किये जाने हैं, को ध्यान में रखना चाहिए।

प्रश्न 21. 
कार्य, कार्यकर्ता और कार्यस्थल के आपसी सम्बन्ध को सुदृढ़ कैसे कर सकते हैं?
उत्तर:
कार्य, कार्यकर्ता और कार्यस्थल के बीच आपसी सम्बन्धों को समय और स्थान जैसे संसाधनों के विवेकपूर्ण प्रयोग द्वारा सुदृढ़ किया जा सकता है।

प्रश्न 22. 
संसाधन का अर्थ प्रकट करें।
उत्तर:
संसाधन वे सम्पत्ति, द्रव्य या निधियाँ होती हैं, जिनका उपयोग लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। धन, समय, स्थान और ऊर्जा आदि संसाधन हैं।

प्रश्न 23. 
समय प्रबन्धन क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर:
जो लोग समय का प्रबन्धन करके जीवन यापन करते हैं, वे सभी प्रकार के व्यवसायों और निजी जीवन तक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 24. 
समय योजना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तय अवधि में निष्पादित की जाने वाली गतिविधियों की अग्रिम सूची तैयार करने की प्रक्रिया को समय योजना कहते हैं।

प्रश्न 25. 
ऐसे कार्यों का एक उदाहरण दीजिए जिन्हें कम प्रयास से पूरा कर सकते हैं।
उत्तर:
बाजार से अपेक्षित सामान अलग-अलग खरीदने के बजाय सूची बनाकर एक साथ खरीदने से कम प्रयास करना पड़ेगा।

प्रश्न 26. 
कार्य के क्रम में सुधार लाकर कार्य का परिणाम सुधारा जा सकता है, कैसे?
उत्तर:
एक जैसे कामों को एक साथ करना जैसे, घर की सफाई करते समय, झाड़ने, बुहारने तथा पोंछा लगाने की सभी क्रियाएँ सभी कमरों में एक साथ निरंतरता में की जाएँ, न कि हर कमरे में अलग-अलग। 

प्रश्न 27. 
उत्तम गृहयोजना कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
उत्तम गृहयोजना के अन्तर्गत किसी भवन में भोजन क्षेत्र, रसोई के निकट होना चाहिए और शौचालय रसोई से दूर होना चाहिए।

प्रश्न 28. 
शहरी आवास व्यवस्था कैसी उत्तम होती है?
उत्तर
अधिकांश शहरी मध्यमवर्गीय घरों में एक बैठक, एक या उससे अधिक शयनकक्ष, रसोईघर, भंडारघर, स्नानागार, शौचालय और बरामदा/आँगन (ऐच्छिक) होते हैं।

प्रश्न 29. 
घरों में दरवाजे तथा खिड़कियाँ किस तरह उपयोगी हैं?
उत्तर:
घरों में दरवाजों तथा खिड़कियों से उसमें रहने वाले प्राकृतिक देन-धूप, हवा तथा दृश्य आदि का आनंद उठा सकें।

प्रश्न 30. 
कमरे में खुलापन कैसे लाया जा सकता है? कोई एक उदाहरण दीजिए। 
उत्तर:
गहरे रंगों की अपेक्षा हल्के रंगों के प्रयोग से भी कमरा बड़ा और खुला होने का अहसास देता है। 

प्रश्न 31.
घर में रोशनी का क्या महत्व है?
उत्तर
रोशनी का दोहरा महत्त्व है-यह प्रकाश देने के साथ-साथ स्वस्थ वातावरण बनाए रखने में भी मदद करती है।

प्रश्न 32. 
अधिगम (सीखना) का क्या महत्व है?
उत्तर:
अधिगम हमारे ज्ञान, बोध और व्यवहार का आधार है। अतः यह हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

प्रश्न 33. 
शाब्दिक शिक्षा में किस तरह का ज्ञान शामिल होता है?
उत्तर
इसमें लिखित या वाचिक गंध से अर्थगत ज्ञान या प्रक्रियात्मक ज्ञान शामिल है, जैसे किसी पाठ्यपुस्तक से पाठ पढ़कर सीखना।

प्रश्न 34. 
यांत्रिक अधिगम के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
यांत्रिक अधिगम के कुछ उदाहरण हैं-तैरना, ड्राइव करना, सिलाई, बुनाई, टाइपिंग, संगीत वाद्य बजाना, साइकिल चलाना, आरेखन, चित्रकारी, नृत्य आदि।

प्रश्न 35. 
संकल्पना अधिगम को किसी उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब हमने कुत्ता नामक किसी जानवर की संकल्पना विकसित कर ली हो, तब हर बार 'कुत्ता' शब्द उच्चरित होने पर कुत्ते के सभी अभिलक्षणों वाली एक मानसिक छवि हमारे मन में बनती है।

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प्रश्न 36. 
समस्या-समाधान अधिगम हेतु किस तरह की योग्यताएँ अनिवार्य हैं?
उत्तर:
इसके लिए संज्ञानात्मक योग्यताओं की आवश्यकता होती है, जैसे-चिंतन, तर्क, विवेक, सामान्यीकरण, कल्पना, अवलोकन करने, अनुमान लगाने तथा निष्कर्ष निकालने की क्षमता।

प्रश्न 37. 
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य मानव मन तथा आत्मा की शक्तियों का निर्माण करना है। 

प्रश्न 38. 
अध्यापन कैसे सार्थक होता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अध्यापन तभी सार्थक होता है जब छात्राएँ सीख लें और सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है जो सीखने वाले पर थोपी नहीं जाती बल्कि छात्रा स्वयं अनुभव करती है।

प्रश्न 39. 
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के कोई दो उद्देश्य बताइए। 
उत्तर:

  1. ग्रामीण गरीबों को स्थायी आय उपलब्ध कराना। 
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लघु उद्यम स्थापित करना जो गरीबों की क्षमता पर आधारित हो। 

प्रश्न 40. 
ग्राम स्तर पर टिकाऊ परिसंपत्तियाँ क्यों बनाई जाती हैं?
उत्तर:
ग्राम स्तर पर टिकाऊ परिसंपत्तियाँ (जैसे प्रशिक्षण केन्द्र) ग्रामीण गरीबों को दीर्घकालिक रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए बनाई जाती हैं।

प्रश्न 41.
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत कौनसे कार्य किए जाते हैं? कोई दो कार्य।
उत्तर

  1. विद्यालयों, छात्रावासों, पुस्तकालयों के लिए भवनों का और 
  2. वृद्ध/विकलांग लोगों के लिए आवास का निर्माण।

प्रश्न 42. 
मानव वस्त्र बनाने की कला कब से जानता था?
उत्तर:
दीवार पर बने अथवा मूर्तियों पर कपड़े पहने हुए मानव चित्र दर्शाने वाले पुरातत्वीय अभिलेखों से पता चलता है कि मानव 20,000 वर्ष पूर्व भी वस्त्र बनाने की कला जानता था।

प्रश्न 43. 
मोहनजोदाड़ो में खुदाई के दौरान वस्त्र से सम्बन्धित कौनसी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं?
उत्तर:
मोहनजोदाड़ो में खुदाई के स्थल पर कपड़े के टुकड़े और टैरा-कोटा तकले तथा कांस्य की सूइयाँ मिली हैं।

प्रश्न 44. 
भारतीय कपड़ों का उत्पादन किन प्राकृतिक रेशों से सम्बन्धित है?
उत्तर:
पारम्परिक रूप से भारतीय कपड़े का उत्पादन तीन प्राकृतिक रेशों के साथ जुड़ा हुआ है-कपास, रेशम . तथा ऊन।

प्रश्न 45. 
ढाका के शाही मस्लिन को कौन-कौन से काव्यात्मक नाम दिए गए थे?
उत्तर:
ढाका के शाही मस्लिन को निम्नलिखित काव्यात्मक नाम दिए गए थे

  1. बत हवा (बुनी हुई वायु), 
  2. आबे खाँ (बहता हुआ पानी),
  3. शबनम (शाम की ओस)।

प्रश्न 46. 
फाइबर के द्रव्य के आधार पर ब्रोकेड कितने प्रकार के हो सकते हैं?
उत्तर:
पैटर्न बनाने के लिए प्रयुक्त फाइबर के द्रव्य के आधार पर सूती ब्रोकेड, रेशमी ब्रोकेड या ज़री (धात्विक धागा) ब्रोकेड हो सकते हैं।

प्रश्न 47. 
रेशम की बुनाई हेतु प्रारम्भिक केन्द्र कहाँ विकसित हए?
उत्तर:
प्रारम्भ में रेशम के बुनाई केन्द्र राज्यों की राजधानियों, तीर्थस्थलों और व्यापार केन्द्रों के निकट विकसित हुए। बुनकरों के प्रवास से अनेक नए केन्द्र विकसित और स्थापित हुए।

प्रश्न 48. 
टेपस्ट्री बुनाई में किस तरह के बाने के सिद्धान्त को प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
टेपस्ट्री बुनाई असमतल बाने के सिद्धान्त का प्रयोग करती है, जिसमें बहुरंगी धागों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रश्न 49. 
कश्मीर की शालों के डिजाइन कैसे होते हैं? 
उत्तर:
कश्मीर की शालों के डिजाइन यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य को चित्रित करते हैं। 

प्रश्न 50. 
हिमाचल प्रदेश की शालें कैसी डिजाइन में बनी होती हैं?
उत्तर
यहाँ की शालें अधिकांशतः सीधी क्षैतिज पंक्तियों, बैंडों तथा धारियों में, जिनमें एक-दो खड़ी धारियाँ भी होती हैं, समूहित कोणीय ज्यामितीय मोटिफों में बुनी जाती हैं।

प्रश्न 51. 
कुल्लू घाटी क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
कुल्लू घाटी, विशिष्ट रूप से शालों और अन्य अनेक ऊनी वस्त्रों की बुनाई-पटू और दोहरू (पुरुषों के लिए लबादे) के लिए प्रसिद्ध है। 

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VI. लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
स्वास्थ्य को परिभाषित करें।
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है-"वह स्थिति जिसमें मनुष्य मानसिक, शारीरिक व सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ रहता है। मनुष्य में रोगों का अभाव होने का मतलब उसका स्वस्थ होना नहीं है।"

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य व्यवसायी का स्वास्थ्य के सम्बन्ध में क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर:
हर स्वास्थ्य-व्यवसायी (स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित व्यक्ति) का उद्देश्य उत्तम स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है अर्थात् दूसरे शब्दों में तंदुरुस्ती और जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करना

प्रश्न 3. 
रोग से क्या आशय है?
उत्तर
रोग का अर्थ है-शारीरिक स्वास्थ्य की क्षति, शरीर के किसी भाग या अंग के कार्य में परिवर्तन/विघटन/ विक्षिप्तता, जो सामान्य कार्य करने में बाधा डाले और पूर्णरूप से स्वस्थ न रहने दे।

प्रश्न 4. 
स्वास्थ्य एक मौलिक मानव अधिकार है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य एक मौलिक मानव अधिकार है। अर्थात् सभी लोगों को, चाहे उनकी आयु, जेंडर, जाति, पंथ/ धर्म, निवास (शहरी, ग्रामीण, आदिवासी) तथा राष्ट्रीयता कोई भी हो, जीवन भर पूर्ण स्वस्थ रहने का अवसर मिलना चाहिए। वर्ष 1948 में मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा में कहा गया है-"हर व्यक्ति को अपने और अपने परिवार के लिए आहार की पर्याप्तता के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य तथा कल्याण के लिए अच्छा जीवन स्तर पाने का अधिकार है।" 

प्रश्न 5. 
सामाजिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित सामाजिक निर्धारक बताइए।
उत्तर:
सामाजिक स्वास्थ्य से जुड़े कुछ सामाजिक निर्धारक हैं

  1. रोजगार की स्थिति 
  2. कार्यस्थलों में सुरक्षा
  3. स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच
  4. सांस्कृतिक/धार्मिक आस्थाएँ, वर्जित कर्म और मूल्य-प्रणाली । 
  5. सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण सम्बन्धी परिस्थितियाँ। 

प्रश्न 6. 
मानसिक स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
मानसिक स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण/विशेषताएँ निम्नलिखित हैं. 

  1. वह स्वयं को समर्थ और सक्षम महसूस करता है। 
  2. वह दैनिक जीवन में सामने आने वाले सामान्य स्तर के तनावों से निबट सकता है। 
  3. उसके सम्बन्ध संतोषप्रद होते हैं। 
  4. वह स्वतंत्र जीवन बिता सकता है।
  5. यदि किसी मानसिक या भावात्मक तनाव की परिस्थितियों का सामना करना पड़े तो वह उनका मुकाबला कर सकता है और उनसे सहज रूप से उभर सकता है। | 
  6. वह किन्हीं बातों से डरता नहीं है।
  7. जीवन में आने वाली छोटी-मोटी कठिनाइयों एवं समस्याओं से सामना करते हुए अनावश्यक रूप से लंबी अवधि तक परास्त या अवसाद महसूस नहीं करता है।

प्रश्न 7. 
शारीरिक स्वास्थ्य से क्या आशय है?
उत्तर:
शारीरिक स्वास्थ्य-शारीरिक स्वास्थ्य के अन्तर्गत शारीरिक तन्दरुस्ती और शरीर की क्रियायें व क्षमताएँ शामिल हैं। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सामान्य गतिविधियाँ कर सकता है असाधारण रूप से थकान महसूस नहीं करता तथा उसमें संक्रमण और रोग के प्रति पर्याप्त प्रतिरोधक शक्ति होती है।

प्रश्न 8. 
स्वास्थ्य की देखभाल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्वास्थ्य की देखभाल में वे सभी विभिन्न सेवाएँ शामिल हैं जो स्वास्थ्य को संवर्धित करने, बनाए रखने, मॉनिटरिंग करने या पुनःस्थापित करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य सेवाओं के एजेंटों या व्यवसायियों द्वारा व्यक्तियों अथवा समुदायों को उपलब्ध कराई जाती हैं । इस प्रकार स्वास्थ्य की देखभाल में निवारक, संवर्द्धक तथा चिकित्सकीय देखभाल शामिल हैं। स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ तीन स्तरों पर उपलब्ध कराई जाती हैं-प्राथमिक देखभाल, द्वितीयक देखभाल और तृतीयक देखभाल स्तर।

प्रश्न 9. 
निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए

  1. स्वास्थ्य के सूचक 
  2. पोषण और स्वास्थ्य।

उत्तर:
1. स्वास्थ्य के सूचक-स्वास्थ्य के अनेक आयाम हैं जो कि अनेकानेक कारकों द्वारा प्रभावित होते हैं। अतः स्वास्थ्य के आकलन हेतु सूचकों को प्रयुक्त किया जाता है। सूचकों में मृत्यु-दर, रुग्णता (बीमारी एवं रोग), अशक्तता दर, पोषण स्तर, स्वास्थ्य देखभाल वितरण, उपयोग, परिवेश, स्वास्थ्य नीति व जीवन की गुणवत्ता आदि शामिल हैं।

2. पोषण और स्वास्थ्य-पोषण और स्वास्थ्य के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है। 'सबके लिए स्वास्थ्य' के विश्वव्यापी अभियान में पोषण को बढ़ावा देना एक प्रमुख घटक है। पोषण का सम्बन्ध शरीर के अंगों तथा ऊतकों की संरचना एवं कार्य के रखरखाव तथा शरीर की वृद्धि और विकास के साथ है। अच्छा पोषण व्यक्ति को इस योग्य बनाता है कि वह अच्छे स्वास्थ्य का आनंद ले सके, संक्रमण का विरोध कर सके, उसमें ऊर्जा का पर्याप्त स्तर हो और उसे दैनिक कामकाज करते हुए थकान महसूस न हो। किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति उसकी पोषक तत्वों की आवश्यकताओं और आहार ग्रहण को निर्धारित करती है।

प्रश्न 10.
पोषण विज्ञान के संदर्भो पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पोषण विज्ञान जीवन, वृद्धि, विकास तथा तंदुरुस्ती के लिए भोजन एवं पोषक तत्वों तक पहुँच, उसकी उपलब्धता और उपयोग से सम्बन्धित है। पोषणविद् असंख्य पहलुओं पर ध्यान देते हैं जिसमें वे जैविक और उपापचयी पहलू से लेकर रोग की अवस्था में क्या होता है और शरीर का पोषण कैसे होता है (क्लीनिकल पोषण) तक आते हैं। पोषण विज्ञान एक विषय के रूप में लोगों की पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं और पोषक तत्वों (जनस्वास्थ्य पोषण), उनकी पोषण सम्बन्धी समस्याओं का सामना करता है, जिसमें पोषक तत्वों की कमी से पैदा होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ, जैसे-हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर, उच्च रक्तदाब आदि और इन रोगों का निवारण भी शामिल है।

RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 10 विविध संदर्भो में सरोकार और आवश्यकताएँ

प्रश्न 11. 
इष्टतम पोषणात्मक स्तर महत्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर:
इष्टतम पोषणात्मक स्तर महत्वपूर्ण निम्नलिखित कारणों से है

  1. यह शरीर का वजन बनाए रखता है। 
  2. यह पेशी की सुदृढ़ता बनाए रखता है। 
  3. यह अशक्तता के जोखिम को कम करता है। 
  4. यह संक्रमण से बचने के लिए प्रतिरोध क्षमता प्रदान करता है। 
  5. यह शारीरिक और मानसिक तनाव से निपटने में मदद करता है।
  6. यह उत्पादकता को बेहतर बनाता है। 

प्रश्न 12. 
उत्पादकता के लिए अपेक्षित स्वास्थ्य और पोषणात्मक योगदान को चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
उत्पादकता के लिए अपेक्षित स्वास्थ्य और पोषणात्मक योगदान

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प्रश्न 13. 
कुपोषण क्या है? इसके विभिन्न रूप कौन से हैं?
उत्तर:
सामान्य पोषण में किसी भी प्रकार का बदलाव कुपोषण कहलाता है। जब पोषक तत्वों का अंतर्ग्रहण शरीर द्वारा अपेक्षित मात्रा से कम हो, या अपेक्षा से अधिक हो, तो उसका परिणाम कुपोषण होता है। कुपोषण अतिपोषण संजीव पास बुक्स का रूप भी ले सकता है और अल्प पोषण का भी। पोषक तत्वों के अधिक अंतर्ग्रहण (सेवन) से अतिपोषण होता है, अपर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों के अंतर्ग्रहण (सेवन) से अल्पपोषण होता है।

प्रश्न 14. 
पोषणात्मक स्वस्थता को प्रभावित करने वाले कारक कौनसे हैं? 
उत्तर:
पोषणात्मक स्वस्थता को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं

  1. आहार और पोषक तत्वों की सुरक्षा-एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पर्याप्त आहार तथा पोषक तत्वों को वर्ष भर पाने की पहुँच हो और वह उन्हें प्राप्त कर सके।
  2. संवेदनशील लोगों की देखभाल-प्रत्येक को स्नेहपूर्ण देखभाल तथा ध्यान की जरूरत है जो देखभाल करने के व्यवहार से झलकती हो।
  3. सर्वे संतु निरामया-इसमें रोग का निवारण और रोग हो जाने पर इसका इलाज शामिल है। हर नागरिक को स्वास्थ्य की थोड़ी-बहुत देखभाल मिलनी ही चाहिए। क्योंकि स्वास्थ्य एक आधारभूत मानव अधिकार है।
  4. सुरक्षित पर्यावरण-इसमें स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ भोजन और पर्यावरणीय प्रदूषण तथा निम्नीकरण की रोकथाम शामिल हैं।

प्रश्न 15. 
अल्पपोषण सम्बन्धी समस्याएँ कौनसी हैं?
उत्तर:

  • अल्प पोषण की एक प्रमुख समस्या है-शरीर का वजन कम हो जाना। बहुत बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएँ इस समस्या की शिकार हैं और इसी कारण वे कम वजन वाले बच्चों को जन्म देती हैं।
  • अल्पपोषण के बच्चों के मानसिक विकास व प्रतिरक्षा पर भी विनाशकारी प्रभाव पड़ते हैं और फलस्वरूप बच्चे अशक्त भी हो सकते हैं।
  • अल्प-पोषण से सम्बन्धित अन्य कमियाँ भी हैं, जैसे-लौह तत्व की कमी से खून की कमी का होना, विटामिन ए की कमी से अंधापन का शिकार हो जाना और आयोडीन की कमी से घेघा रोग का होना।

प्रश्न 16. 
अतिपोषण क्या है? इसके कारण किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
अतिपोषण-अतिपोषण कुपोषण का एक रूप है। अतिपोषण अपेक्षा से अधिक भोजन करने के कारण पैदा होता है। इसके कारण निम्न प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ता है

  • कुछ पोषक तत्त्वों के मामले में अतिपोषण से विषाक्तता हो सकती है।
  • इससे मोटापा भी हो सकता है और मोटापे से मधुमेह, हृदय रोग तथा उच्च रक्तचाप जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। हमारे देश में शहरी क्षेत्रों में 28.9 प्रतिशत पुरुष और 22.2 प्रतिशत महिलाएं मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं।

प्रश्न 17. 
पोषण और संक्रमण का क्या सम्बन्ध है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पोषण और संक्रमण का घनिष्ठ पारस्परिक सम्बन्ध है। खराब पोषण की स्थिति प्रतिरोधक शक्ति तथा प्रतिरक्षा को कम करती है और इस प्रकार संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। दूसरी ओर, संक्रमण के दौरान शरीर में पोषक तत्वों के आरक्षित भंडार की वमन तथा अतिसार द्वारा काफी क्षति होती है, जबकि पोषक तत्वों की जरूरतें वस्तुतः बढ़ जाती हैं। यदि पोषण का अंतर्ग्रहण आवश्यकता की तुलना में कम हो तो संक्रमण पोषण की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे। इससे दूसरे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और सभी व्यक्तियों के लिए, विशेषतः बच्चों, बुजुर्गों तथा अल्पपोषितों के लिए अन्य संक्रमणों एवं रोगों का खतरा पैदा हो जाता है।

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प्रश्न 18. 
कार्य के इष्टतम निष्पादन हेतु क्या जरूरी है? उदाहरण द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
किसी भी कार्य के इष्टतम निष्पादन के लिए जरूरी है कि कार्य को परिवेश, कार्यस्थल और कार्यकर्ताओं के संदर्भ में समझा जाए। यह जानकारी काम के लिए प्रयुक्त ऊर्जा और बिताए गए समय को कम करने में सहायक होती है। इस प्रकार काम की दक्षता बढ़ती है। साथ ही. इससे थकान तथा स्वास्थ्य की अन्य समस्याओं से भी बचाव होगा। उदाहरण के तौर पर आपकी माता रसोई में काम करती हैं। उन्हें रसोई के काउंटर से दूर रखे बर्तन उठाने के लिए बार-बार झुकना पड़ता है। इस स्थिति में, बर्तन उठाने के लिए उन्हें अधिक ऊर्जा का प्रयोग करना पड़ेगा और अधिक समय भी लगेगा तथा थकान एवं कमर दर्द भी महसूस करेंगी। इसके विपरीत, यदि बर्तन काउंटर के निकट और उचित ऊँचाई पर रखे हों तो वे अधिक सुविधापूर्वक काम कर पाएँगी और कार्य की भी दक्षता बढ़ेगी। 

प्रश्न 19. 
कार्य से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
कार्य से आशय-स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से गतिविधि से संलग्न करके कुछ करना या निष्पादित करना, विशेषतः कोई कर्त्तव्य, काम या कोई गतिविधि, कार्य कहलाता है। किसी विद्यार्थी के संदर्भ में, कार्य का प्रमुख रूप से सही अर्थ है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए अध्ययन किया जाए। कार्य में अनेक छोटे कार्य या उपकार्य भी शामिल होते हैं। 

प्रश्न 20. 
निष्पादित कार्य कब गुणवत्तापूर्ण होगा? 
उत्तर:
निष्पादित कार्य गुणवत्तापूर्ण तब होगा जब
(क) कार्यकर्ता लक्ष्य को अच्छी तरह समझता हो। 
(ख) कार्यकर्ता अपने व्यक्तिगत संतोष के लिए कुछ मानक निर्धारित कर ले। 
(ग) कार्य को लक्ष्य के अनुसार आयोजत किया जाये। 
(घ) कार्य का सरलीकरण किया जाये अर्थात् निर्धारित समय और ऊर्जा में अधिक कार्य निष्पादित किया जाये। 

प्रश्न 21.
कार्यस्थल पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
कार्यस्थल-यह वह स्थान है जहाँ कोई कार्यकर्ता किसी काम को निष्पादित करते हुए कार्य करता है। कार्यस्थल के कुछ उदाहरण हैं स्कूल, अध्ययन कक्ष, रसोई आदि। कार्य करने की खराब परिस्थितियों से सम्बन्धित स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम के लिए तथा कार्य का निष्पादन एवं उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए समुचित डिजाइन वाला कार्यस्थल  महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक कार्यस्थल का कार्यकर्ता और काम दोनों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाना चाहिए ताकि कम-से-कम ऊर्जा खर्च करते हुए कार्य को सुविधापूर्वक, सुचारु ढंग से और कुशलतापूर्वक निष्पादित किया जा सके।

प्रश्न 22. 
संसाधन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
संसाधन-संसाधन वे संपत्ति, द्रव्य या निधियाँ होती हैं, जिनका उपयोग लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। धन, समय, स्थान और ऊर्जा आदि संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं। ये संसाधन किसी व्यक्ति के लिए संपत्तियाँ होती हैं। उनकी प्रचुर मात्रा में आपूर्ति विरले ही हो पाती है, और ये हर किसी को समान रूप से उपलब्ध भी नहीं होते। अतः अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि सभी उपलब्ध संसाधनों का समुचित प्रबंधन किया जाए। इन संसाधनों को बेकार गँवा देने या उचित रूप से प्रयोग न करने से हम अपने लक्ष्यों तक पहुँचने में पिछड़ सकते हैं। संसाधनों का सामयिक और कुशल प्रबंधन उनके इष्टतम उपयोग को बढ़ाता है। 

प्रश्न 23. 
समय प्रबंधन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समय सीमित है और उसे पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। समय का प्रयोग हम इच्छानुसार कर सकते हैं। इसलिए कम से कम समय में अधिकतम परिणाम प्राप्त करने की योजना बनाना एवं उसके अनुरूप कार्य करना समय प्रबंधन कहलाता है। समय प्रबंधन का सिद्धान्त है व्यस्त होने की बजाय परिणामों पर ध्यान देना। लोग प्रायः अधूरे काम के बारे में चिंतित होकर दिन बिता देते हैं, जिससे उपलब्धि कम होती है, क्योंकि वे समय प्रबंधन पर ध्यान नहीं देते। संजीव पास बुक्स समय प्रबंधन की शुरुआत व्यवस्थित नियोजन से होती है। इसलिए एक व्यवस्थित समय योजना जरूरी है। तय अवधि में निष्पादित की जाने वाली गतिविधियों की अग्रिम सूची तैयार करने की प्रक्रिया को समय योजना कहते हैं।

प्रश्न 24. 
समय की अनिवार्य व ऐच्छिक गतिविधियों को सूचीबद्ध कीजिए। 
उत्तर:
RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 10 विविध संदर्भो में सरोकार और आवश्यकताएँ 2

प्रश्न 25. 
कारगर समय-प्रबंधन के लिए कुछ सुझाव दीजिए। 
उत्तर:
कारगर समय-प्रबंधन हेतु कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं

  1. किए जाने योग्य कार्यों की सरल सूची बनाएँ। इससे आपको गतिविधियों के करने के कारणों और उन्हें पूरा करने के समय-सीमा की पहचान करने में मदद मिलेगी।
  2. दैनिक/साप्ताहिक योजना सारणी बनाएँ। यह आपके तनाव को कम कर सकती है। साथ ही उचित योजना सारणी आपको यह जानने को मन की शांति प्रदान करती है कि आपने एक व्यवहार्य कार्य योजना तैयार की है और आपके लक्ष्य प्राप्य हैं।
  3. दीर्घावधि योजना सारणी बनाएँ। एक मासिक चार्ट का प्रयोग करें ताकि आप आगे की योजना बना सकें। दीर्घावधि योजना सारणी आपके लिए समय की रचनात्मक योजना बनाने हेतु याद दिलाने के लिए भी काम करेगी।

प्रश्न 26. 
खड़े होने की उत्तम मुदा एवं बैठने की उत्तम मुद्रा का अर्थ प्रकट करें।
उत्तर:
खड़े होने की उत्तम मुद्रा-खड़े होने की उत्तम मुद्रा वह होती है जिसमें सिर, गर्दन, वक्ष तथा उदर एकदूसरे के ऊपर संतुलित हों ताकि बोझ मुख्यतः अस्थियों के ढाँचे द्वारा उठाया जाए और पेशियों तथा स्नायुओं पर न्यूनतम तनाव पड़े। बैठने की उत्तम मुद्रा-काम करने के लिए बैठने की उत्तम मुद्रा एक संतुलित सधी हुई स्थिति है। शारीरिक भार कंकाल की अस्थियों के समर्थन द्वारा वहन किया जाता है और पेशियाँ तथा तंत्रिकाएँ तनाव से पूरी तरह मुक्त रहती हैं। इस प्रकार संतुलन का उतना ही समायोजन किया जाता है जितना काम के लिए जरूरी हो।

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प्रश्न 27. 
अधिगम क्या है? यह कब प्रारंभ होता है? इसके घटक कौनसे हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुभव के परिणामस्वरूप नया व्यवहार प्राप्त करना या पहले वाले व्यवहार में सुधार करना अथवा उसे छोड़ देना अधिगम (सीखना) कहलाता है। इसकी हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। यह हमारे ज्ञान, बोध और व्यवहार का आधार है। हम पैदा होते ही सीखना शुरू कर देते हैं। अनुसंधान से स्पष्ट हुआ है कि भ्रूण माता की कोख में भी सीखता है या यूं कहें कि सीखना जीवन की शुरुआत के साथ ही शुरू हो जाता है।
अधिगम प्रक्रिया में तीन मुख्य घटक होते हैं

  • सीखने वाला, जिसके व्यवहार में बदलाव आता है। 
  • व्यवहार में बदलाव के लिए अपेक्षित प्रशिक्षण। 
  • संसाधन, मानव और सामग्री। 

प्रश्न 28. 
अधिगम कितने प्रकार से हो सकता है? उदाहरण सहित बताइए। 
उत्तर:
अधिगम पाँच प्रकार से हो सकता है, जो कि निम्नलिखित हैं

  • शाब्दिक अधिगम, जैसे-नई भाषा सीखना। 
  • रटकर सीखना, जैसे-कविताएँ, गुणा के पहाड़े, धार्मिक गीत याद करना। 
  • मोटर (यांत्रिक) अधिगम, जैसे-ड्राइव करना, टाइप करना, सिलाई करना, साइकिल चलाना, तैरना। 
  • संकल्पनात्मक अधिगम, जैसे-राष्ट्रीय ध्वज, स्वतंत्रता, भावुकता। 
  • समस्या समाधान अधिगम, जैसे-गणित के सवाल, पहेलियाँ, भीड़ वाली सड़क को पार करना। 

प्रश्न 29. 
शिक्षा की भूमिका स्पष्ट कीजिए। इसके विभिन्न घटक कौनसे हैं? चित्रात्मक दर्शाइए।
उत्तर:
शिक्षा की भूमिका-शिक्षा हमारे भौतिक, भावात्मक, संज्ञानात्मक और इंद्रियातीत अनुभवों के माध्यम से हमें संसार का बोध कराती है। यह मानवों की अंतःशक्ति को प्रकट करने में भी मदद करती है। शिक्षा विभिन्न रूपों में हो सकती है, औपचारिक भी और अनौपचारिक भी।
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प्रश्न 30. 
शिक्षा और परिवार के आपसी सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हर औपचारिक शिक्षा में विषयवस्तु होती है जिसे पाठ्यक्रम कहते हैं। शिक्षा के विभिन्न चरणों के दौरान, प्राथमिक से तृतीयक तक, अनेक पाठ तथा विषय होते हैं जो हमें परिवार के बारे में बताते हैं। किसी प्राथमिक कक्षा में अपना पहला निबंध लिखने तथा परिवार का चित्र बनाने से शुरू करके आप परिवार की व्यापक संकल्पना बनाने लगते हैं। सामाजिक अध्ययन पाठ्यक्रम के अनेक पहलुओं ने भी संसार में परिवार की विविधता के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई है। समाज विज्ञान और अब मानव पारिस्थितिकी तथा परिवार विज्ञान जैसे विषय इस क्षेत्र में आपके ज्ञान को और बढ़ाते हैं। समाजीकरण में बालिका को परिवार के जीवन के तरीकों, उसके मूल्यों, विश्वासों तथा मनोवृत्तियों के बारे में शिक्षित करना शामिल है। इस प्रकार बालिका न केवल परिवार की भाषा बोलना सीखती है, बल्कि यह भी सीखती है कि आगंतुकों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए और वह ऐसा क्या न करे कि माता-पिता तथा अन्य लोग अप्रसन्न हो जाएँ।

प्रश्न 31. 
शिक्षा का समुदाय और समाज के प्रति क्या उत्तरदायित्व है? शिक्षा की प्रक्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बच्चों, युवाओं तथा वयस्कों को जो शिक्षा मिलती है, उससे उन्हें अंततः हमारे इर्द-गिर्द समुदाय एवं समग्र समाज के विकास में मदद करनी चाहिए। ज्ञान प्राप्ति, निजी विकास और शिक्षा में प्रक्रियाओं के माध्यम से व्यक्ति कौशल अर्जित करते हैं, जो उन्हें राष्ट्र निर्माण में एवं वैश्विक स्तर पर मानव विकास में योगदान करने की शक्ति देते हैं। इस शक्ति का यथोचित उपयोग किया जाना चाहिए। अधिगम (सीखना) के अतिरिक्त शिक्षा में तीन महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

  • अनुसंधान के माध्यम से नए ज्ञान का सृजन, 
  • अध्यापन द्वारा ज्ञान का प्रसार, 
  • ज्ञान को व्यवहार में लाना और विस्तार द्वारा उसका अनुप्रयोग।

प्रश्न 32. 
विस्तार और विस्तार शिक्षा से क्या अर्थ प्रकट होता है? ..
उत्तर:
विस्तार का अर्थ है-ज्ञान को ज्ञात से अज्ञात तक फैलाना। यह ज्ञान तथा अनुभव बाँटने की दुतरफा प्रक्रिया है, जिसके द्वारा निजी तथा सामुदायिक विकास हेतु व्यक्तियों और समूहों को प्रेरित किया जाता है।
दूसरी ओर, जब शिक्षा तथा ज्ञान को व्यवहार में लाया जाता है और समुदाय तक उसका विस्तार किया जाता है, तब उसे विस्तार शिक्षा कहते हैं। विस्तार शिक्षा एक संपूर्ण विषय है। इसका अपना दर्शन, उद्देश्य, सिद्धांत, विधियाँ तथा तकनीक हैं। - 

प्रश्न 33. 
विस्तार शिक्षा में समाज सुधारकों का क्या योगदान रहा है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर नजर डालने से स्पष्ट होता है कि विस्तार शिक्षा का क्षेत्र समाज सुधारकों के प्रयासों से उभरा है। समाज सुधारकों ने प्रयोगों द्वारा ग्रामीण जीवन के पुनर्निर्माण के लिए पुनर्रचना का प्रयास किया। उदाहरण के लिए

  1. आधारभूत शिक्षा उपलब्ध कराने और आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए सन् 1920 में महात्मा गाँधी द्वारा महाराष्ट्र में सेवाग्राम की स्थापना
  2. ग्रामवासियों को अपनी घोर समस्याएं हल करने में मदद के लिए सन् 1921 में रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा बंगाल में शांति निकेतन की स्थापना, जहाँ बाद में विश्व भारती जैसा सम्पूर्ण विश्वविद्यालय बना।

प्रश्न 34. 
भारतीय वस्त्र कला की प्राचीनता की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
दीवार पर बने अथवा मूर्तियों पर कपड़े पहने हुए मानव चित्र दर्शाने वाले भारतीय पुरातत्वीय अभिलेखों से पता चलता है कि मानव 20,000 वर्ष पूर्व भी वस्त्र बनाने की कला जानता था। भारतीय प्राचीन साहित्य के संदर्भो में गुफाओं तथा भवनों में दीवारों पर चित्रकारी से भी हमें उनके बारे में जानकारी मिलती है। प्राचीन समय में लोगों ने भारतीय प्रदेश में उपलब्ध कच्ची सामग्री के उपयोग के लिए तकनीकें एवं प्रौद्योगिकियाँ .. विकसित की थीं। उन्होंने स्वयं अपने विशिष्ट डिजाइनों की भी रचना की और अलंकृत डिजाइनों वाले उत्पाद पैदा किए।

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प्रश्न 35. 
भारत में वस्त्रों के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में परिष्कृत वस्त्रों का उत्पादन उतना ही प्राचीन है, जितनी भारतीय सभ्यता। 
(i) ऋग्वेद तथा उपनिषदों में विश्व की सृष्टि का वर्णन करते हुए कपड़े का प्रयोग एक प्रतीक के रूप में किया गया है। इन ग्रंथों में विश्व को 'देवताओं द्वारा बुना गया कपड़ा' कहा गया है।

(ii) कपड़े के टुकड़े और टेरा-कोटा तकले तथा कांस्य की सूईयाँ आदि मोहनजोदाड़ो में खुदाई के स्थल पर मिली हैं, जो कि इस बात का प्रमाण हैं कि भारत में सूत की कताई, बुनाई, रंगाई और कशीदाकारी की परंपराएँ कम से कम 5000 वर्ष पुरानी हैं। 

(iii) रंग का पता लगाने वाले और वस्त्र सामग्री पर, विशेषतः सूती सामग्री पर उसके प्रयोग की तकनीक में निपुणता हासिल करने वाला, प्राचीन सभ्यताओं में पहला भारत ही था। (iv) भारतीय अपने कपड़ों की विशिष्टताओं के लिए और बुनाई, पक्की रंगाई, छपाई तथा कशीदाकारी द्वारा उन पर बनाए गए डिजाइनों के लिए भी प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 36. 
मुगल सम्राटों द्वारा वस्त्र कला को किस तरह का योगदान दिया गया?
उत्तर:
कश्मीर की सर्वोत्तम शालों-पश्मीना व शाहतूस की बुनाई कला को प्रोत्साहित करने का श्रेय मुगल सम्राटों को जाता है। कहा जाता है कि जामावार शालों की शैली अकबर ने शुरू की थी। ये लंबी शालें इस प्रकार डिजाइन की गई थीं कि वे पोशाक बनाने के लिए भी उपयुक्त हों (जामा अर्थात् लबादा और वार अर्थात् लंबाई)। विभिन्न संग्रहालयों में चित्रकारी और पुस्तकों के चित्रों में अक्सर दिखाई दे जाता है कि मुगल शासक प्रायः पेचीदा डिजाइनों में चौड़े कंधों वाले परिधान पहनते थे।

प्रश्न 37. 
'इकत' के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर:
इकत' धागा टाई एंड डाई डिजाइन वाले कपड़े बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में बनाए जाने वाले वस्त्र के लिए अपेक्षित ताने और बाने के धागे की मात्रा की गणना करनी होती है। धागे को बाँधने और रंगाई के बाद उसकी बुनाई के लिए प्रवीणता की आवश्यकता होती है, ताकि डिजाइन बनाने के लिए ताने और बाने के धागों का मेल बैठे। इकत' कपड़ों के निर्माण की परंपराएँ भारत के प्रदेशों में प्रचलित हैं

  • गुजरात में इकत बुनाई की सबसे समृद्ध परंपरा है। पटोला रेशम में बनाई गई दोहरे इकत की रंग-बिरंगी साड़ी है।
  • उड़ीसा में सूत तथा रेशम की इकत साड़ियाँ और कपड़े बनाए जाते हैं। यहाँ इस प्रक्रिया को बंध कहते हैं जो एकल या संयुक्त इकत हो सकती है।
  • आंध्र प्रदेश में पोचमपल्ली और किराला में सूती इकत कपड़े बनाने की परंपरा है, जिन्हें तेलिया रुमाल कहते हैं।

प्रश्न 38. 
"गुजरात के कशीदे की बहुत समृद्ध परंपरा है।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुजरात मूलतः खानाबदोश जनजातियों का प्रदेश रहा है, जो विभिन्न संस्कृतियों के डिजाइनों तथा तकनीकों के सम्मिश्रण के लिए प्रख्यात है। यहाँ कशीदे का प्रयोग जीवन के सभी पहलुओं के लिए किया जाता है, जैसे तोरण या पच्ची पट्टियों के साथ द्वारों की सजावट और चकलों या चंदोवों के साथ दीवारों की तथा गणेश स्थापना आदि। विभिन्न जनजातियों की विशिष्ट शैलियों में पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों की पोशाक, पशुओं, घोड़ों, हाथियों के लिए आवरण भी बनाए जाते हैं। अनेक कशीदों को जनजातियों के नाम से जाना जाता है। जैसे-महाजन, राबरी, मोचीभारत, कन्बीभारत और सिंधी। इन कशीदों में प्रयोग किए जाने वाले अधिकांश रंग चटकीले और शोख़ होते कशीदे के उदाहरण के अंतर्गत, गुजरात में एप्लीक काम की अपनी ही शैली है। यह एक पैच वर्क है, जिसमें डिजाइन वाले कपड़ों के टुकड़े अलग-अलग आकारों तथा आकृतियों में काटे जाते हैं और प्लेन पृष्ठभूमि पर सिल दिए जाते हैं।

प्रश्न 39. 
भारतीय वस्त्र उत्पादन की परंपरा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय वस्त्र उत्पादन की परंपरा.. भारत में विशिष्ट भौगोलिक प्रदेशों की, कपड़ा उत्पादन के साथ जुड़ी हुई युगों पुरानी परम्पराएँ हैं। यह विभिन्न रेशा-वर्गों के रूप में हैं-सूत, रेशम, ऊन और विभिन्न निर्माण प्रक्रियाओं के रूप में-कताई, बुनाई, रंगाई तथा छपाई और पृष्ठ अलंकरण प्रमुख हैं। बदलते हुए समय के साथ, उत्पादन केंद्रों ने रंग, डिजाइन तथा अलंकरण और विशिष्ट उत्पादों के लिए उनके उपयोग की दृष्टि से स्वयं अपने सिद्धांत बना लिए हैं। ऐसे अनेक केंद्र सामाजिक और आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण बने हुए हैं। वे उत्पाद विविधीकरण और पारंपरिक वस्त्रों के वैकल्पिक प्रयोग की ओर जाने का एक प्रयास कर रहे हैं। धीरे-धीरे जोर भी ग्राहक-आधारित उत्पादों से हटकर थोक उत्पादन की ओर जा रहा है। वर्तमान में भी भारतीय वस्त्रों की लगभग सभी परंपराएँ बनी हुई हैं। 

VII. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
रोग का क्या अर्थ है? स्वास्थ्य के विभिन्न आयामों की चर्चा करें।
उत्तर:
रोग से आशय-रोग का अर्थ है-शारीरिक स्वास्थ्य की क्षति, शरीर के किसी भाग या अंग के कार्य में परिवर्तन/विघटन/विक्षिप्तता, जो सामान्य कार्य करने में बाधा डाले और पूर्ण रूप से स्वस्थ न रहने दे। स्वास्थ्य के आयाम-स्वास्थ्य के तीन प्रमुख आयाम हैं, जो कि निम्नलिखित हैं
(1) सामाजिक स्वास्थ्य-इसका आशय व्यक्तियों और समाज के स्वास्थ्य से है। जब हम किसी समाज से जुड़ते हैं तो इसका आशय उस समाज से होता है जिसमें सभी नागरिकों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य वस्तुओं तथा सेवाओं को उपलब्ध करने के समान अवसर और पहुँच प्राप्त हो। जब हम व्यक्तियों का उल्लेख करते हैं, तब हमारा आशय हर व्यक्ति की कुशलता से होता है-वह व्यक्ति दूसरे लोगों और सामाजिक संस्थाओं के साथ कितनी अच्छी तरह व्यवहार करता है। इसमें हमारे सामाजिक कौशल और समाज के सदस्य के रूप में कार्य करने की क्षमता शामिल है। यह सामाजिक सहयोग हमारी समस्याओं तथा तनाव से निपटने और इन्हें हल करने में हमारी मदद करता है। सामाजिक सहयोग देने वाले उपाय बच्चों तथा वयस्कों में सकारात्मक समायोजन करने में योगदान देते हैं और व्यक्तिगत विकास को प्रोत्साहित करते हैं।

(2) मानसिक स्वास्थ्य-इसका आशय भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक स्वस्थता है। जिस व्यक्ति ने स्वस्थता की अनुभूति को अनुभव किया है, वह अपनी संज्ञानात्मक तथा भावात्मक क्षमताओं का उपयोग कर सकता है, समाज में सुचारु रूप से कार्य कर सकता है और दैनिक सामान्य जरूरतों को पूरा कर सकता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति खुशहाल, शांत, प्रफुल्लित रहता है। उसे स्वयं पर नियंत्रण होता है। ऐसा व्यक्ति भय, गुस्से, प्रेम, ईर्ष्या से शीघ्र प्रभावित नहीं होता है और हर समस्या को चुनौती समझकर हल करने की कोशिश करता है।

(3) शारीरिक स्वास्थ्य-स्वास्थ्य के इस पहलू में शारीरिक तंदुरुस्ती और शरीर की क्रियाएँ एवं क्षमताएँ शामिल हैं। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सामान्य गतिविधियाँ कर सकता है, असाधारण रूप से थकान महसूस नहीं करता तथा उसमें संक्रमण और रोग के प्रति पर्याप्त प्रतिरोधक शक्ति होती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपनी आनुवांशिकता के अनुरूप पूर्ण रूप से विकसित होता है। उसके शरीर का भार एवं ऊँचाई सामान्य होते हैं तथा वह चुस्त, फुर्तीला, कुशल व प्रसन्न रहता है और अपनी आयु के अनुरूप कार्यों में पूर्ण रुचि लेता है।

प्रश्न 2. 
पोषक तत्वों के महत्व को स्पष्ट कीजिए। अच्छा स्वास्थ्य और पोषण कैसे सहायक तथा लाभप्रद होता है? बच्चों की शिक्षा के लिए अच्छी पोषणात्मक स्थिति के लाभों को चित्रित कीजिए।
उत्तर:
पोषक तत्वों का महत्व-भोजन में 50 से अधिक पोषक तत्व होते हैं जिन्हें मानव शरीर के लिए अपेक्षित मात्राओं के आधार पर वृहत् पोषक (अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में अपेक्षित) और सूक्ष्म पोषक (कम मात्रा में अपेक्षित) में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये सभी पोषक तत्व महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। यथा

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  1. कुछ पोषक तत्व शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी प्रतिक्रियाओं में सह-कारक तथा सह-एन्जाइम के रूप में कार्य करते हैं।
  2. पोषक तत्व जीन-अभिव्यक्ति तथा प्रतिलेखन को भी प्रभावित कर सकते हैं।
  3. ये विभिन्न अंग तथा तंत्र, पोषक तत्वों के पाचन, अवशोषण, उपापचय, भंडारण एवं उत्सर्जन में तथा उनके चपापचय के अंतिम उत्पादों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वस्तुतः शरीर के सभी अंगों की प्रत्येक कोशिका को पोषक तत्व की जरूरत होती है।

अच्छा स्वास्थ्य और पोषण निम्न प्रकार से सहायक तथा लाभप्रद होता है-अच्छे स्वास्थ्य वाले लोग प्राय अधिक प्रसन्नचित्त होते हैं और दूसरों से अधिक कार्य कर सकते हैं। स्वस्थ माता-पिता अपने बच्चों की अच्छी देखभाल कर पाते हैं और स्वस्थ बच्चे प्रायः खुश रहते हैं तथा पढ़ाई में अच्छा परिणाम देते हैं। इस प्रकार, जब कोई स्वस्थ होता है, तब वह अपने लिए अधिक रचनाशील होता है और समुदाय स्तर पर गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि यदि व्यक्ति स्वस्थ एवं पोषणयुक्त है तो वह समाज का उत्पादक, मिलनसार एवं सहयोगी सदस्य बन सकता है।

बच्चों की शिक्षा के लिए पोषणात्मक स्थिति के लाभ निम्नलिखित हैं
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प्रश्न 4. 
आहार जन्य बीमारियाँ किन कारकों के कारण होती हैं? उन्हें सूचीबद्ध कीजिए। 
उत्तर:
आहार जन्य बीमारियों के कारक
आहार जनित बीमारियाँ तब होती हैं जब हम ऐसा भोजन खाते हैं जिसमें रोगजनक सूक्ष्मजीवं विद्यमान हों। आहार जन्य बीमारियों के विभिन्न कारक निम्नलिखित हैं

  1. खाए गए भोजन में जीव या विषैले पदार्थों का मौजूद होना। 
  2. रोगजनक सूक्ष्मजीवों का काफी संख्या में होना।
  3. संदूषित आहार का सेवन काफी मात्रा में किया जाना।
  4. दूषित/संक्रमित/असुरक्षित खाद्य पदार्थों का प्रयोग जिनमें दूषित जल, अनुचित मसाले, खाना स्वादिष्ट बनाने वाले कृत्रिम पदार्थ आदि के मिश्रण शामिल होते हैं।
  5. अनुचित भंडारण का ढंग जिससे रोगजनक सूक्ष्मजीव पनपते हैं। 
  6. कीट और कृमि नियंत्रण नहीं करना। 
  7. संदूषित उपकरणों, बर्तनों, प्लेटों, चमचों, गिलासों का प्रयोग। 
  8. भोजन का अपर्याप्त रूप से पका होना।
  9. खाद्य पदार्थों का ऐसे तापमान पर भंडारण जो सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के लिए अनुकूल हो (जैसे 4 से 600 से.)।
  10. अनुचित ढंग से भोजन को ठंडा करना। 
  11. पके हुए या बचे हुए भोजन को अनुचित एवं अपर्याप्त रूप से गर्म करना, बार-बार गर्म करना। 
  12. परस्पर संदूषण होना। 
  13. भोजन को बिना ढके खुला छोड़ देना। 
  14. भोजन की सजावट हेतु संदूषित पदार्थों को प्रयोग करना।
  15. भोजन पकाने वाले लोगों द्वारा स्वास्थ्य विज्ञान के नियमों तथा स्वच्छता का ध्यान न रखना, जैसे-मैले कपड़े को प्रयोग में लाना, हाथ न धोना, या गंदे नाखूनों का होना।

प्रश्न 5.
कार्यकर्ता कौन है? उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कार्यकर्ता-कार्यकर्ता वह व्यक्ति होता है जो उत्पाद के परिणाम प्राप्त करने के लिए किसी विशिष्ट काम या गतिविधि को निष्पादित करता है। एक विद्यार्थी का अपने स्कूल का काम करना और गृहिणी द्वारा घर की सफाई करना कार्यकर्ता के उदाहरण हैं। कार्यकर्ता द्वारा किए जाने वाले कार्यों के पहलू-कार्यकर्ता द्वारा किए जाने वाले किसी भी कार्य में निम्नलिखित पहलू निहित होते हैं
(1) शारीरिक पहलू यह कार्यकर्ता के शरीर से सम्बन्धित पहलू है, जिसमें मानव ऊर्जा, शारीरिक गतिविधि और वृद्धि शामिल हैं। यथा

  • ऊर्जा-हम सभी को जीने और काम करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। ऊर्जा उस भोजन से मिलती है, जो हम खाते हैं। आहार-ऊर्जा की आवश्यकताएँ अनेक कारकों पर निर्भर करती हैं जिनमें आयु, लिंग, शरीर का प्रकार, कार्य का प्रकार और कार्य की अवधि शामिल हैं।
  • शारीरिक गतिविधि-काम में जितना अधिक पेशियों का प्रयोग होगा और काम की अवधि जितनी ज्यादा लंबी होगी, उतनी ही अधिक ऊर्जा की माँग या ऊर्जा की आवश्यकता होती है। किसी व्यक्ति द्वारा कोई काम करने के लिए अपेक्षित ऊर्जा की मात्रा गतिविधि के प्रकार, कार्य की तीव्रता तथा अवधि, व्यक्ति की आयु तथा लिंग पर निर्भर करती है।
  • वृद्धि-वृद्धि हेतु भी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जीवन की जिस अवस्था में वृद्धि तीव्र गति से होती है उस अवस्था में ऊर्जा की जरूरत भी अधिक हो जाती है। अतः शिशुओं, बच्चों तथा किशोरों को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 

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(2) संज्ञानात्मक पहलू-
इस पहलू में कार्यकर्ता की मनोवैज्ञानिक विशेषताएं शामिल होती हैं, जो कि हैं-अभिवृत्तियाँ, कुशलताएँ और ज्ञान। अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमें योग्यता और अभिरुचि की जरूरत होती है। साथ ही, हमें विषय सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करने, औपचारिक प्रशिक्षण लेने तथा बार-बार अभ्यास द्वारा कौशल विकसित करने की और निष्पादनअभिवृत्ति को सुधारने के लिए इच्छा की जरूरत होती है। इन सभी तथ्यों को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता कोई प्रतिभावान व्यक्ति है जिसमें सृजनशील कल्पना और चित्रकला की कुशलता है, तो वह कलाकार बनना तय कर सकता है। सर्वप्रथम उसे एक पाठ्यक्रम में नामांकन करवाना चाहिए जहाँ अपने कौशलों को सुधारकर अपने लक्ष्य तक पहुँचने हेतु अपेक्षित ज्ञान प्राप्त करे। तत्पश्चात् अपने प्रयासों, कठोर परिश्रम तथा उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से वह एक सफल कलाकार बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। 

(3) रुचि सम्बन्धी पहलू-
इसमें कार्य के प्रति कार्यकर्ता की रुचियाँ, अरुचियाँ तथा प्राथमिकताएँ शामिल हैं जो गतिविधि के बारे में कार्यकर्ता की निजी भावनाओं से सम्बन्धित हैं और लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में योगदान करती हैं। काम के प्रति संतोष कार्य की दक्षता में योगदान करता है। 

(4) काल सूचक पहलू-
यह समय के प्रबंधन से सम्बन्धित है। कई बार किसी व्यक्ति द्वारा एक निश्चित समय में निष्पादित की जाने वाली गतिविधियों की संख्या बहुत अधिक होती है। इसके लिए समय का उत्तम प्रबंधन करना पड़ता है। निष्कर्षतः उपर्युक्त पहलू स्पष्ट करते हैं कि हर कार्यकर्ता दूसरे से भिन्न होता है और प्रत्येक की शारीरिक, संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा सामाजिक संरचनाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं।

प्रश्न 6. 
कार्य-धरातल से आप क्या समझते हैं? उत्तम कार्यस्थल का निर्माण करते समय किन बातों को ध्यान में रखें? किसी विद्यार्थी हेतु कार्यस्थल कैसा हो? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कार्य-धरातल-भौतिक और रासायनिक पर्यावरण के अलावा, कार्य-धरातल का डिजाइन भी कार्यकर्ता की सुविधा तथा स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। कार्य-धरातल की संकल्पना कार्यस्थल की ऊँचाई, चौड़ाई तथा गहराई से/सम्बन्धित है। उपयुक्त भंडारण डिजाइन और उपकरण डिजाइन भी महत्वपूर्ण कारक हैं जो कार्य-धरातल की डिजाइन को प्रभावित करते हैं। कौनसा काम, किस तरह से, कितनी मात्रा में और किस क्रम में किया जाना है, आदि के आधार पर कार्यस्थल का डिजाइन कार्य स्टेशन, उपकरणों और कार्यकर्ता के शरीर की स्थितियों से सम्बद्ध होता है। यदि कार्यस्थल का डिजाइन समुचित होगा तो व्यक्ति की निश्चल स्थिर क्रियाओं, बार-बार हिलने-डुलने से और अनुपयुक्त स्थिति से बचा जा सकता है, और इस प्रकार कार्य की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। उत्तम कार्यस्थल का निर्माण हेतु ध्यान में रखने योग्य बातें-उत्तम कार्यस्थल का निर्माण करते समय अग्रलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

  • उपकरणों या औजारों को ऐसे स्थानों तथा स्थितियों में रखना चाहिए जहाँ कार्यकर्ता उन तक सरलता से पहुँच सके। 
  • भारी कार्य की अपेक्षा जिस कार्य में विस्तार की जरूरत हो, उसका कार्य-स्लैब थोड़ा नीचा होना चाहिए।
  • हाथ से प्रयोग किए जाने वाले उपकरण तथा अन्य उपकरण प्रयोग करने में सुविधाजनक हों और क्षति पहुँचाने वाले न हों।
  • काम करते समय कार्यकर्ता को लंबी अवधि तक कष्टदायी स्थिति में नहीं रहना चाहिए, जैसे-बार-बार उठना या बहुत देर तक झुकना।

विद्यार्थी हेतु उत्तम कार्यस्थल-किसी भी विद्यार्थी के लिए अच्छे डिजाइन वाला कार्यस्थल वही होगा जिसमें समुचित प्रकाश वाला अध्ययन क्षेत्र के साथ-साथ यदि हो सके तो एक मेज भी हो। कमरे का तापमान सुविधाजनक हो और कमरे में शोर भी कम होना चाहिए। यदि कुर्सी का प्रयोग कर रहे हों तो कुर्सी की ऊँचाई न तो बहुत अधिक होनी चाहिए और न ही बहुत कम होनी चाहिए, बल्कि अध्ययन वाली मेज की ऊँचाई के अनुसार ही होनी चाहिए। पुस्तकों तथा लेखन सामग्री आदि की अलमारियाँ भी रखी जाएँ जहाँ विद्यार्थी की पहुँच सरल हो।।

प्रश्न 7. 
समय प्रबंधन की विभिन्न स्थितियाँ कौन सी हैं? कार्य-पद्धति में परिवर्तन लाने हेतु तीन महत्वपूर्ण स्तरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समय प्रबंधन की विभिन्न स्थितियाँ-निम्नलिखित स्थितियाँ समय के प्रभावी प्रबंधन में मदद करती हैं-
1. चरम भार अवधि-किसी निर्दिष्ट अवधि में काम के अधिकतम बोझ को चरम भार अवधि कहते हैं। जैसे, प्रात:काल का समय या रात्रि के भोजन का समय।
2. कार्य वक्र-यह समयानुसार कार्य देखने का एक साधन है, जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है

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चित्र में a से b कार्य के लिए स्फूर्ति पैदा करने की अवधि है, c काम करने की अधिकतम क्षमता की स्थिरता की स्थिति है और d थकान के कारण अधिकतम गिरावट है।
3. विश्राम एवं अंतराल की अवधि-काम करने के समय के दौरान कई अनुत्पादक रुकावटें आती हैं, जिन्हें अंतराल की अवधि कहते हैं। इसकी आवृत्ति तथा मियाद बहुत महत्वपूर्ण होती है। अतः यह न तो बहुत लंबी होनी चाहिए न ही बहुत छोटी।

4. कार्य का सरलीकरण-किसी कार्य को करने की सबसे सरल, आसान और अतिशीघ्र विधि से करने की चेतन कोशिश को कार्य का सरलीकरण कहते हैं। इसका आशय समय और मानव ऊर्जा के सही मिश्रण एवं प्रबंधन से है। इसका उद्देश्य समय तथा ऊर्जा को निर्दिष्ट मात्रा में अधिक से अधिक काम निष्पादित करना या निर्धारित काम को पूरा करने के लिए समय या ऊर्जा या दोनों की मात्रा घटाना-बढ़ाना होता है। 

कार्य-पद्धति में परिवर्तन लाने हेतु तीन महत्वपूर्ण स्तर-कार्य-पद्धति में परिवर्तन लाने और उसे सरल बनाने के लिए परिवर्तन के तीन महत्वपूर्ण स्तर निम्नलिखित हैं
1. हाथ और शरीर की गति में परिवर्तन-इसका आशय कार्य के उपकरणों और उत्पादों को यथावत् रखते हुए, हाथ और शरीर की गति में परिवर्तन लाना है। इस हेतु अग्र कार्यविधियों को अपनाया जा सकता है
(i) अनेक ऐसे काम हैं जिन्हें कुछ प्रक्रियाओं को छाँटकर और कुछ को जोड़कर अनेक काम कम प्रयास से ही पूरे किये जा सकते हैं, जैसेना - बर्तनों को रैक पर सूखने देने से उन्हें पोंछकर सुखाने की आवश्यकता नहीं रहती।
- बाजार से अपेक्षित सामान अलग-अलग खरीदने के बजाय सूची बनाकर एक साथ खरीदने से समय की बचत होती है।

(ii) विभिन्न कार्यों के क्रम में सुधार लाकर उनके परिणाम में सुधार लाया जा सकता है, जैसे-घर की सफाई करते समय, झाड़ने, बुहारने तथा पोंछा लगाने की सभी क्रियाएँ सभी कमरों में एक साथ की जाएँ, न कि अलग-अलग। इससे क्रम बनाए रखने में मदद मिलती है और समय भी बचता है।

(iii) कार्य में कुशलता विकसित करके, काम को अच्छी तरह जानने और सीख लेने से समय और गति निरर्थक नहीं जाती, अर्थात् समय तथा उर्जा दोनों की बचत होती है।

(iv) शरीर की मुद्रा सुधार कर, शरीर की सही और उत्तम मुद्रा बनाए रखकर, पेशियों का प्रभावी प्रयोग कर, शरीर के अंगों को एक सीध में रखकर, अधिकतम भार अस्थियों के ढाँचे पर डालकर पेशियों को सभी तनावों से मुक्त रखा जा सकता है और बेहतर कार्यक्रम प्राप्त किया जा सकता है। जैसे-झुककर झाडू लगाने की बजाय लंबे हैंडल वाले झाडू का प्रयोग करने से स्थिर मुद्रा बनी रहती है और देर तक काम किया जा सकता है।

RBSE Class 11 Home Science Important Questions Chapter 10 विविध संदर्भो में सरोकार और आवश्यकताएँ 8

2. कार्य, भंडारण स्थान और प्रयुक्त उपकरणों में परिवर्तन-इस कार्य हेतु निम्नलिखित बातें अपेक्षित हैंभंडारण स्थानों की व्यवस्था, रसोई के उपकरणों को पुनर्व्यवस्थित करना, कार्य स्लैब की ऊँचाई तथा चौड़ाई उपयोगकर्ता के अनुसार सही बनाना, श्रम बचाने वाले साधनों यथा प्रेशर कुकर, वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव ओवन आदि का प्रयोग। इन सभी उपायों से समय तो बचेगा ही, साथ ही हाथ को इधर-उधर हिलाना-डुलाना भी कम पड़ेगा।3. अंतिम उत्पाद में परिवर्तन-ये परिवर्तन निम्न कारणों से आ सकते हैं-

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  • भिन्न-भिन्न कच्ची सामग्री-साबुत मसालों की जगह पिसे हुए मसालों का प्रयोग, उत्पाद पैदा करने के लिए ऑर्गेनिक बीजों का प्रयोग करना आदि।
  • कच्ची सामग्री से भिन्न-भिन्न उत्पाद तैयार करना-आइसक्रीम की जगह कुल्फी बनाना और रसदार कोफ्ता । की जगह लौकी के पराठे बनाना, आदि।
  • कच्ची सामग्री और तैयार उत्पाद में परिवर्तन-स्याही वाली कलम की जगह बॉल पेन से लिखना, आदि।

प्रश्न 8. 
स्थान प्रबंधन से क्या अभिप्राय है? घर के संदर्भ में स्थान नियोजन कैसा होना चाहिए? स्थान नियोजन के सिद्धांतों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
स्थान प्रबंधन से आशय-स्थान प्रबंधन में शामिल हैं, स्थान का नियोजन, योजनानुसार उसकी व्यवस्था, उसके उपयोग के अनुसार योजना का क्रियान्वयन और कार्यकारिता तथा सौंदर्यबोध की दृष्टि से उसका मूल्यांकन। सुप्रबंधित स्थान न केवल काम करते समय आराम देता है, बल्कि आकर्षक भी दिखता है। विदित है कि उत्तम डिजाइन वाला कमरा खुलेपन का एहसास दिलाता है, जबकि वैसे ही आयामों वाला कमरा सुव्यवस्थित न हो तो देखने में छोटा और अस्त-व्यस्त प्रतीत होता है। स्थान नियोजन और घर-बैठना, सोना, पढ़ना, पकाना, नहाना, धोना, मनोरंजन आदि घर में की जाने वाली प्रमुख गतिविधियाँ हैं।

इनमें से प्रत्येक गतिविधि और उनसे सम्बन्धित क्रियाओं को चलाने के लिए घर में प्रायः विशिष्ट क्षेत्र निर्धारित किए जाते हैं। जहाँ भी स्थान उपलब्ध हो, इन गतिविधियों को चलाने के लिए विशिष्ट कमरों का निर्माण किया जाता है। अधिकांश शहरी मध्यमवर्गीय घरों में एक बैठक, एक या उससे अधिक शयनकक्ष, रसोईघर, भंडारघर, स्नानागार, शौचालय और बरामदा एवं आँगन (ऐच्छिक) होते हैं। इसके अलावा, कुछ घरों में अतिरिक्त कमरे भी हो सकते हैं जैसे-भोजन कक्ष, अध्ययन कक्ष, मनोरंजन कक्ष, शृंगार कक्ष, अतिथि कक्ष, बाल कक्ष, गैराज (स्कूटर या कार हेतु), सीढ़ियाँ, गलियारे, पूजा घर, बगीचा, बालकनी आदि। स्थान नियोजन के सिद्धांत स्थान के सर्वोत्तम उपयोग हेतु उसकी योजना बनाना जरूरी है। घर में कार्यक्षेत्र की डिजाइन तैयार करने के लिए स्थान नियोजन के सिद्धांत निम्नवत् हैं

(i) स्वरूप-'स्वरूप' भवन की बाहरी दीवारों में दरवाजों तथा खिड़कियों की व्यवस्था का द्योतक है, जिनसे उसमें रहने वाले प्राकृतिक देन-धूप, हवा तथा दृश्य आदि का आनंद उठा सकें।

(ii) प्रभाव-'प्रभाव' सही अर्थ में वह छाप है जो घर को बाहर से देखने वाले व्यक्ति पर पड़ सकता है। इसमें प्राकृतिक सौंदर्य का सही इस्तेमाल, दरवाजों तथा खिड़कियों की सही स्थिति और अप्रिय दृश्यों को ढंक कर मनोहर आकृति प्राप्त करने का उद्यम शामिल है।

(iii) एकांतता-स्थान नियोजन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत है एकांतता। एकांतता के दो पहलुओं पर विचार करना होता है-भीतरी एकांतता-एक कमरे से दूसरे कमरे की एकांतता को भीतरी एकांतता कहते हैं। बाहरी एकांतता-इसका अर्थ पड़ोसी के घरों, सार्वजनिक सड़कों तथा उप-मार्गों से घर के सभी भागों की एकांतता है।

(iv) कमरे की स्थिति-इसका आशय कमरों के एक-दूसरे के साथ भीतरी संबंध से है। जैसे किसी भवन में भोजन क्षेत्र, रसोई के निकट होना चाहिए और शौचालय रसोई से दूर होना चाहिए।

(v) खुलापन-उपलब्ध स्थान का उपयोग पूरी तरह करना चाहिए। जैसे, आप दीवारों में अलमारियाँ, शेल्फ तथा भंडारण क्षेत्र बना सकते हैं, ताकि कमरे का फर्श विभिन्न गतिविधियों के लिए खाली रहे। इसके अतिरिक्त, कमरे के आकार तथा आकृति, फर्नीचर की व्यवस्था और प्रयुक्त रंग योजना का भी उसके खुलेपन पर प्रभाव पड़ता है। सही अनुपात वाला आयताकार कमरा उसी आयाम के वर्गाकार कमरे की अपेक्षा अधिक खुला दिखाई देता है। गहरे रंगों की अपेक्षा हल्के रंगों के प्रयोग से भी कमारा बड़ा और खुला होने का आभास देता है।

(vi) फर्नीचर की आवश्यकताएँ-कमरों की योजना बनाते समय वहाँ रखे जाने वाले फर्नीचर पर यथोचित विचार किया जाए। ध्यान रहे कि केवल अपेक्षित फर्नीचर ही रखा जाए। फर्नीचर इस प्रकार व्यवस्थित किया जाए कि चलने-फिरने के लिए खुली जगह उपलब्ध रहे।

(vii) स्वच्छता-स्वच्छता का आशय है-मकान में भरपूर रोशनी, हवादारी और सफाई तथा स्वच्छता की सुविधाएँ। ये इस तरह हैं
रोशनी-रोशनी का दोहरा महत्व है। एक, यह प्रकाश देती है और स्वस्थ वातावरण बनाए रखने में मदद भी करती है। किसी भवन में रोशनी प्राकृतिक या कृत्रिम स्रोतों से उपलब्ध करायी जा सकती है। खिड़कियाँ, बल्ब, ट्यूबलाइट रोशनी के कुछ महत्त्वपूर्ण साधन हैं। वायु-संचार-इससे भवन में सारा कुछ खुशनुमा लगता है। सामान्यतः इसके लिए खिड़कियों, दरवाजों तथा रोशनदानों को इस प्रकार बनवाया जाता है कि अधिक से अधिक हवा का आवागमन हो सके।

खिड़कियाँ यदि एक-दूसरे के सामने हों तो हवा का आवागमन अच्छा होता है। हवा का आवागमन प्राकृतिक भी हो सकता है, या यांत्रिक (एक्जोस्ट पंखे का प्रयोग करके) भी। सफाई और स्वच्छता सविधाएँ-योजना में सफाई की सुविधा और धूल को रोकने के प्रावधान जरूरी हैं। भवन में स्नानागारों तथा शौचालयों का प्रावधान भी स्वच्छता सुविधाओं में शामिल है। ग्रामीण घरों में शौचालय तथा स्नानागार अलग यूनिट के रूप में बनाए जाते हैं, जो प्रायः घर के पिछवाड़े या आगे, अन्य कमरों से दूर जाते हैं, ताकि सफाई बनी रहे।

(viii) वायु का परिसंचरण-कमरा-दर-कमरा भी वायु परिसंचरण संभव होना चाहिए। उत्तम परिसंचरण का अर्थ है कि घर के प्रत्येक कमरे का स्वतंत्र प्रवेश द्वार हो। इससे सदस्यों की एकांतता भी बनी रहती है।

(ix) व्यावहारिक बातें-स्थानों की योजना बनाते समय कुछ व्यावहारिक बातों का ध्यान रखना चाहिए। संरचना की मजबूती तथा स्थिरता, परिवार के लिए सुविधा और आराम, सरलता, सौंदर्य और भविष्य में विस्तार का प्रावधान। किफायत के लिए कमजोर संरचना नहीं बनानी चाहिए।

(x) रमणीयता-योजना के सामान्य विन्यास द्वारा रमणीयता पैदा की जाती है। मितव्ययिता पर समझौता किए बिना, स्थान की योजना सुरुचिपूर्ण होनी चाहिए। उपर्युक्त सिद्धांत स्थान के नियोजन और प्रबंधन में काफी सहायक हैं। 

प्रश्न 9. 
विस्तार अध्यापन में किन विधियों को प्रयुक्त किया जाता है? प्रत्येक की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
विस्तार अध्यापन हेतु निम्नलिखित विधियों को प्रयुक्त किया जाता है
(i) फार्म और घर में जाना-यह विस्तार कार्यकर्ता द्वारा किसी एक व्यक्ति या परिवार के सभी सदस्यों के साथ प्रत्यक्ष या आमने-सामने संपर्क का कार्य है, ताकि जानकारी का आदान-प्रदान हो और उनकी समस्याओं का पता चले।

(ii) परिणाम प्रदर्शन-परिणाम प्रदर्शन सुझाई गई रीतियों के लाभ सिद्ध करने और स्थानीय परिस्थितियों में उनकी उपयोगिता दर्शाने के लिए एक शैक्षिक परीक्षण है। अतः इस विधि का प्रयोग कुछ रीतियों की श्रेष्ठता दिखाने के लिए किया जा सकता है, जैसे-खेती में उर्वरकों, कीटनाशकों, पीड़कनाशकों तथा बीजों की उच्च उत्पादी किस्मों का प्रयोग। 

(iii) विधि प्रदर्शन-इसका प्रयोग काम करने की तकनीक या नयी रीतियाँ अपनाने की तकनीक दिखाने के लिए किया जाता है, जैसे-नर्सरी की क्यारी तैयार करना, बीजों का कीटनाशकों तथा कवकनाशकों से उपचार करना, रेखाबुआई, मृदा का नमूना लेना, फलों के पेड़ों में कलम लगाना, आदि।

(iv) समूह चर्चाएँ-विस्तार कार्यकर्ता सभी किसानों के साथ अलग-अलग संपर्क नहीं कर सकता क्योंकि किसानों की संख्या बहुत अधिक होती है। उनके साथ समूहों में संपर्क करना सुविधाजनक एवं व्यवहार साध्य होता है। इस विधि को प्रायः समूह चर्चा कहते हैं।

(v) प्रदर्शनियाँ-प्रदर्शनी में एक तर्कसंगत अनुक्रम में जानकारी दी जाती है। नमूनों, मॉडलों, पोस्टरों, चित्रों तथा चार्टी का सुव्यवस्थित प्रदर्शन होता है। यह प्रदर्शित चीजों में आगंतुकों की रुचि पैदा करने के लिए आयोजित की जाती है। प्रदर्शनियों का प्रयोग विविध विषयों के लिए किया जाता है, यथा आदर्श गाँव की योजना बनाना या सिंचाई की उन्नत रीतियाँ दिखाना।

(vi) साधारण बैठकें-लोगों को भविष्य की कार्यवाही हेतु कुछ जानकारी देने के लिए अक्सर बैठकें आयोजित की जाती हैं। उदाहरणतः, वन महोत्सव, राष्ट्रीय उत्सव आदि मनाने के लिए समुदाय को तैयार करना।

(vii) अभियान-लोगों का ध्यान किसी समस्या-विशेष पर केंद्रित करने के लिए अभियान चलाया जाता है, जैसेचूहा नियंत्रण, गाँव की स्वच्छता तथा पादप संरक्षण, रबी फसलों का उत्पादन और परिवार नियोजन। इससे समुदाय में आत्मविश्वास बढ़ता है और लोग भावनात्मक रूप से कार्यक्रम के साथ जुड़ते हैं।

(viii) दौरा एवं इलाकों की यात्रा-किसानों को विश्वास दिलाने के लिए, नयी रीतियों, प्रदर्शन कौशलों, नए उपकरणों आदि के परिणाम देखने का एक अवसर उपलब्ध कराने के लिए उनके दौरों और यात्राओं का आयोजन किया जाता है। इससे उन्हें अपने क्षेत्र में इनकी उपयुक्तता तथा अनुप्रयोग के बारे में राय बनाने में मदद मिलती है।

(ix) दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग, जैसे-

  • मुद्रित सामग्री (साहित्य)-बड़ी संख्या में साक्षर लोगों को जानकारी देने के लिए समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, बुलेटिन, लीफलेट, फोल्डर, पेम्फलेट और दीवारी समाचार-शीट आदि का प्रयोग इसमें शामिल है। 
  • रेडियो-यह संचार का सार्वजनिक माध्यम है जो बहुत कम खर्च में किसी भी समय लोगों की एक बड़ी संख्या तक बातें पहुँचा सकता है।
  • टेलीविजन-यह सचार का शक्तिशाली माध्यम है। यह श्रव्य तथा दृश्य दोनों प्रभावों को मिलाता है और हर प्रकार की जानकारी के प्रसार के लिए बहुत उपयुक्त है।
  • चलचित्र (सिनेमा)-लोगों में रुचि पैदा करने के लिए चलचित्र एक प्रभावी साधन है क्योंकि उसमें देखने तथा सुनने के साथ-साथ अनुभव भी होता है।

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प्रश्न 10. 
सरकार द्वारा संचालित ग्रामीण रोजगार उत्पादन तथा अन्य योजनाओं की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ बनाई गई हैं। उनमें से कुछ का वर्णन निम्नलिखित है

1. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एस.जी.एस.वाई.)-यह कार्यक्रम अप्रैल, 1999 में शुरू किया गया था। यह स्वरोजगार के सभी पहलुओं को शामिल करने वाला एक संपूर्ण कार्यक्रम है। इसमें गरीबों के स्वावलंबी समूहों का गठन, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी, आधारिक संरचना और विपणन आता है। एस.जी.एस.वाई. का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों को स्थायी आय उपलब्ध कराना है। कार्यक्रम का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लघु उद्यम स्थापित करने का है जो गरीबों की क्षमता पर आधारित हो। इरादा यह है कि एस.जी.एस.वाई. के अंतर्गत सहायता प्राप्त हर परिवार को गरीबी रेखा से ऊपर लाया जाए।

2. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (जे.जी.एस. वाई.)-यह पुरानी जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुकर और विस्तृत रूप है। गरीबों के जीवन में सुधार के लिए तैयार जे.जी.एस.वाई. 1 अप्रैल, 1999 को शुरू की गई थी। इसका मूल उद्देश्य माँग-आधारित सामुदायिक गाँव की आधारिक संरचना का सृजन करना है, इसमें ग्राम स्तर पर टिकाऊ परिसंपत्तियाँ (जैसे प्रशिक्षण केंद्र) शामिल है। ये परिसंपत्तियाँ ग्रामीण गरीबों को दीर्घकालिक रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए बनाई जाती हैं। दूसरा उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार गरीबों के लिए पूरक रोजगार पैदा करना है।

3. सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम-एम.पी.एल.ए.डी.पी. दिसंबर 1993 में एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में शुरू की गई थी ताकि लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य इस उद्देश्य के लिए दिशा-निर्देशों के भीतर अपनी पसंद की उन योजनाओं को क्रियान्वित कर सकें, जो विकासात्मक हों और स्थानीय जरूरतों पर आधारित हों। इस योजना के अंतर्गत निम्न काम किए जा सकते हैं-विद्यालयों, छात्रावासों, पुस्तकालयों के लिए भवनों का और वृद्ध/विकलांग लोगों के लिए आवास का निर्माण, संपर्क/पहुँच मार्गों, पुलियाओं/पुलों, सार्वजनिक सिंचाई तथा सार्वजनिक जल-निकास सुविधाओं आदि का निर्माण ।

प्रश्न 11. 
"भारतीय कपड़े का उत्पादन तीन मुख्य प्राकृतिक रेशों के साथ जुड़ा हुआ है।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पारंपरिक रूप से भारतीय कपड़े का उत्पादन तीन मुख्य प्राकृतिक रेशों के साथ जुड़ा हुआ-कपास, रेशम और ऊन। जिनका विस्तृत विवेचन निम्नलिखित है
1. कपास
भारत कपास का घर है। कपास की खेती और बुनाई में उसका प्रयोग प्रागैतिहासिक काल से विदित है। कपास का चलन भारत से सारे संसार में फैल गया। इस बात की जानकारी बेबीलोन के प्राचीन देश में पुरातात्विक खुदाई से मिली हड़प्पा की मोहरों से प्राप्त हुई। जब रोमन और ग्रीक लोगों ने कपास को पहली बार देखा, तो उन्होंने इसे पेड़ों पर उगने वाली ऊन समझा। जामदानी या बंगाल तथा उत्तर भारत के भागों के कपास के उपयोग से पारंपरिक रूप से बुनी जाने वाली अलंकृत मलमल भारतीय बुनाई का सर्वोत्तम ब्रोकेड उत्पाद है। 

सूती कपड़ा बनाने में निपुणता के अतिरिक्त, भारत की सर्वोत्तम वस्त्र उपलब्धि चटकीले पक्के रंगों के साथ सूती कपड़े में पैटर्न बनाने की थी। 17वीं शताब्दी तक, केवल भारतीय ही सूत को रंगने की जटिल प्रक्रिया में पारंगत थे, वे पक्के और स्थायी रंग बनाते थे। यूरोपीय फैशन तथा बाजार में भारतीय छींट (छपाई और चित्रकारी वाला सूती कपड़ा) ने क्रांति ला दी थी। वस्तुतः भारतीय शिल्पकार संसार के सर्वोत्तम रंगरेज थे। वर्तमान में सूत की बुनाई सारे भारत में होती है। अनेक स्थानों पर अब भी बहुत बारीक धागा काता जाता है, लेकिन थोक उत्पादन मोटे धागों का ही होता है। विविध उत्पाद अलग-अलग डिजाइनों तथा रंगों में बनाया जाता है और देश के विभिन्न भागों में उसका विशिष्ट प्रयोग होता है। 

2. रेशम
भारत में रेशम के कपड़े प्राचीन काल से बनाए जाते हैं। वैसे तो रेशम का मूल चीन में था। परंतु, कुछ रेशम का प्रयोग भारत में भी किया जाता था। भारतीय तथा चीनी रेशम में भेद किया गया है। रेशम के बुनाई केंद्र राज्यों की राजधानियों, तीर्थ स्थलों और व्यापार केंद्रों के निकट विकसित हुए। बुनकरों के प्रवास से अनेक नए केंद्र विकसित और स्थापित हुए। भारत के विभिन्न प्रदेशों में रेशम की बुनाई की विशिष्ट शैलियाँ हैं, जो कि निम्नलिखित हैं

1. उत्तर प्रदेश में वाराणसी की विशेष शैलियों में बुनाई की एक प्राचीन परंपरा है। उसका अत्यंत लोकप्रिय उत्पाद ब्रोकेड या किनख्वाब है। किनख्वाब का अर्थ है-ऐसी वस्तु जिसका आदमी सपना भी नहीं देख सकता या ऐसा कपड़ा जो प्रायः सपने में भी दिखाई नहीं देता या स्वर्णिम (किनख्वाब)।

2. पश्चिम बंगाल अपनी रेशम की बुनाई के लिए पारंपरिक रूप से प्रसिद्ध है। पश्चिम बंगाल के बुनकर जामदानी बुनकर जैसे करघे का प्रयोग कर रेशमी ब्रोकेड वाली साड़ी बुनते हैं, जिसे बालुचर बूटेदार कहते हैं। यह शैली मुर्शिदाबाद जिले में बालुचर नामक स्थान से शुरू हुई थी, अब वाराणसी में भी इसे बनाया जा रहा है। . . गुजरात ने किनख्वाब की अपनी शैली विकसित की है। भडौच और खंबात में बहुत बारीक वस्त्र बनाए गए। अहमदाबाद की अशावली साड़ियाँ अपनी सुंदर ब्रोकेड किनारियों और पल्लुओं के लिए प्रसिद्ध हैं।

3. तमिलनाडु में कांचीपुर प्राचीन काल से दक्षिण भारत में ब्रोकेड बुनाई का एक प्रसिद्ध केंद्र है।

4. महाराष्ट्र में औरंगाबाद के समीप एक प्राचीनतम नगर पैठन स्थित है। यह मोटिफों तथा किनारियों के लिए सोने की जड़ाऊ बुनाई वाली रेशम की विशेष साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। पैठन में प्रयुक्त टेपेस्ट्री बुनाई सजावटी बुनाई की प्राचीनतम तकनीक है।

5. सूरत, अहमदाबाद, आगरा, दिल्ली, बुरहानपुर, तिरुचिरापल्ली और तंजावुर जरी ब्रोकेड बुनाई के पारंपरिक रूप से प्रसिद्ध केंद्र हैं।

3. ऊन-
ऊन का विकास शीतल प्रदेशों के साथ जुड़ा हुआ है। जैसे-लद्दाख की पहाड़ियाँ, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल की पहाड़ियाँ, कुछ उत्तर-पूर्वी राज्य, पंजाब, राजस्थान और मध्य तथा पश्चिम भारत के कुछ स्थान। भारत में विशेषतः बालों का प्रयोग किया गया है, अर्थात् भेड़ तथा अन्य जानवरों (पहाड़ी बकरियों, खरगोशों तथा ऊँटों) के बाल। ऊन के सबसे पुराने संदर्भ में पहाड़ी बकरियों और कुछ हिरण जैसे जानवरों से प्राप्त बहुत बारीक बालों का उल्लेख मिलता है। 11वीं सदी का कश्मीरी साहित्य उस अवधि के बहुरंगी ऊनी कपड़ों की बुनाई की पुष्टि करता है। सर्वोत्तम शालें पश्मीना और शाहतूस-पहाड़ी बकरियों के बालों से बनाई गईं।

इस कला को मुगल सम्राटों ने प्रोत्साहित किया और कश्मीर की शालें विश्व-विख्यात हो गईं। बाद में, शालों पर कशीदाकारी भी की जाने लगी। शालों के डिजाइन कश्मीर के प्राकृतिक सौंदर्य को चित्रित करते हैं। हिमाचल प्रदेश की शालें अधिकांशतः सीधी क्षैतिज पंक्तियों, बैंडों तथा धारियों में समूहित कोणीय ज्यामितीय मोटिफों में बुनी जाती हैं, जिनमें एक-दो खड़ी धारियाँ भी होती हैं। कुल्लू घाटी विशिष्ट रूप से शालों, पटू और दोहरु (पुरुषों का लबादा) के लिए प्रसिद्ध है। हाल के वर्षों में अन्य स्थानों पर भी शालों की बुनाई को महत्व दिया जाना लगा है, जैसे-पंजाब में अमृतसर व लुधियाना, उत्तराखंड तथा गुजरात।

प्रश्न 12. 
रंगाई की व्याख्या करें। रंगरोधी रंगाई वाले वस्त्र कौनसे हैं? परिचय दीजिए।
उत्तर:
रंगाई-भारत में रंगाई का इतिहास बहुत पुराना है। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से पहले रंग केवल प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किए जाते थे। प्रयोग किए जाने वाले अधिकांश रंग पादपों की जड़, छाल, पत्ते, फूल और बीज आदि से लिए जाते थे। कुछ कीटों तथा खनिजों से भी रंग मिलता था। भारतीयों को रंगों के रसायन, और पक्के रंग की विशिष्टता तथा विख्यात वस्त्रों के उत्पादन में रंग के अनुप्रयोग की तकनीकों का गहरा ज्ञान था। रंगरोधी रंगाई वाले वस्त्र रंग के साथ डिजाइन बनाने का सबसे पुराना रूप रंगरोधी रंगाई है। रोध की सामग्री धागा, कपड़े के टुकड़े, या मृदा तथा 'मोम जैसे पदार्थ हो सकते हैं, जो भौतिक प्रतिरोध करते हैं। रोध की सबसे अधिक प्रचलित विधि धागे से बाँधने की है।

भारत में बनाए जाने वाले टाई एंड डाई कपड़ों की दो विधियाँ हैं-फेब्रिक टाई एंड डाई और धागा टाई एंड डाई। दोनों ही मामलों में जिस भाग पर डिजाइन बनाना हो, उसके चारों ओर कसकर धागा लपेटकर बाँध देते हैं और रंगते हैं। रंगाई की प्रक्रिया के दौरान, बँधा हुआ अंश अपना मूल रंग बनाए रखता है। सूखने पर, बँधे हुए कुछ भाग को खोल दिया जाता है तथा अन्य भाग को बाँध दिया जाता है, उसके बाद फिर से रंगा जाता है। टाई एंड डाई का आनुष्ठानिक महत्त्व भी है, जैसे हिंदुओं में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान से पहले कलाई पर बाँधा जाने वाला धागा टाई एंड डाई से सफेद पीला और लाल रंगा जाता है। विवाह समारोह में टाई एंड डाई वाले कपड़ों को शुभ माना जाता है, क्योंकि दुल्हन की पोशाक और पुरुषों की पगड़ी प्रायः इन कपड़ों की ही बनी होती है। 

रंगरोधी रंगाई वाले दो मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं-
(i) कपड़ा टाई एंड डाई-बंधनी, चुनरी, लहरिया आदि कुछ इस डिजाइन वाले वस्त्रों के नाम हैं जिनमें कपड़े . को बुनने के बाद टाई-डाई द्वारा पैटर्न बनाए जाते हैं। टाई एंड डाई का एक विशिष्ट डिजाइन 'बंधेज' है, जिसमें पैटर्न में असंख्य बिंदु होते हैं। गुजरात और राजस्थान इस प्रकार के कपड़ों के घर हैं।

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(ii) धागा टाई एंड डाई-(इकत) धागा टाई एंड डाई डिजाइन वाले कपड़े बनाने की एक जटिल प्रक्रिया है, इन्हें इकत कपड़े कहते हैं। ये कपड़े एक विशेष तकनीक द्वारा बनाए जाते हैं, जिसमें ताने के धागों को या बाने के धागों को या दोनों को बुनाई से पहले टाई एंड डाई कर लिया जाता है। इस प्रकार जब कपड़े को बुना जाता है, . तब धागे के रंगे हुए स्थानों के आधार पर एक विशिष्ट पैटर्न बन जाता है। यदि केवल एक ही धागे, अर्थात् केवल ताने या बाने के धागे की टाई-रंगाई की गई हो तो उसे एकल इकत कहते हैं; यदि दोनों धागों को इस प्रकार रंगा गया हो तो यह संयुक्त इकत या दोहरा इकत कहलाता है।

भारत में गुजरात में इकत बुनाई की सबसे समृद्ध परम्परा है। पटोला रेशम में बनाई गई दोहरे इकत की रंग-बिरंगी साड़ी है। उड़ीसा में भी सूत एवं रेशम की इकत साडियाँ व कपड़े बनाए जाते हैं। इसे बंध कहते हैं। यह एकल या दोहरा इकत हो सकती है। इसके डिजायन कोमल और वक्र रेखीय होते हैं। इसी प्रकार आंध्र प्रदेश में पोचमपल्ली और किराला में सूती इकत कपड़े बनाने की परम्परा है जिसे तेलिया रुमाल कहते हैं। इसका प्रयोग मछुआ समुदायों द्वारा लुंगियों, साफे या लंगोट के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 13. 
कशीदाकारी से क्या अभिप्राय है? इसकी विभिन्न शैलियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कशीदाकारी-सूई या सूई जैसे औजारों का प्रयोग करके रेशम, सूत, स्वर्ण या चांदी के धागों से कपड़ों की सतह को अलंकृत करने की कला कशीदाकारी है। कशीदाकारी को सामान्यतः एक घरेलू हस्तशिल्प माना जाता है, यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसे महिलाएं अपने खाली समय के दौरान मुख्यतः परिधान या घरेलू उपयोग की वस्तुओं को अलंकृत करने या सजाने के लिए करती हैं। तथापि, कुछ कशीदाकारियाँ देश के भीतर और संसार के विभिन्न भागों में भी व्यापार की वस्तुएँ बन गईं। आज वाणिज्यिक स्तर पर बनाई जा रही कशीदाकारी की विभिन्न शैलियाँ निम्नलिखित हैं

  1. फुलकारी 
  2. कसूती 
  3. कान्था 
  4. कसीदा 
  5. चिकनकारी। 

(नोट-उपर्युक्त कशीदाकारी की शैलियों के विस्तृत वर्णन हेतु, पाठ्यपुस्तक के प्रश्न 23 का उत्तर देखें।)

Prasanna
Last Updated on Aug. 26, 2022, 5:16 p.m.
Published Aug. 26, 2022