Rajasthan Board RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 7 कंपनी निर्माण Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक निजी कम्पनी के निर्माण के लिए कम से कम सदस्यों की संख्या-
(क) 2
(ख) 3
(ग) 5
(घ) 7
उत्तर:
(क) 2
प्रश्न 2.
एक सार्वजनिक कम्पनी के निर्माण के लिए कम से कम सदस्यों की संख्या-
(क) 5
(ख) 7
(ग) 12
(घ) 21
उत्तर:
(ख) 7
प्रश्न 3.
कम्पनी के नाम के अनुमोदन के लिए आवेदन किया जाता है-
(क) SEBI
(ख) कम्पनी रजिस्ट्रार को
(ग) भारत सरकार को
(घ) उस राज्य की सरकार को जिसमें कम्पनी का पंजीयन कराया गया है।
उत्तर:
(ख) कम्पनी रजिस्ट्रार को
प्रश्न 4.
कम्पनी का प्रस्तावित नाम अवांछनीय माना जायेगा यदि-
(क) यह किसी वर्तमान कम्पनी के नाम से मिलता हो।
(ख) यह किसी वर्तमान कम्पनी के नाम से मिलता-जुलता हो।
(ग) यह भारत सरकार या संयुक्त राष्ट्र आदि का प्रतीक चिन्ह हो।
(घ) उपर्युक्त में कोई एक
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त में कोई एक
प्रश्न 5.
प्रविवरण-पत्र को जारी करता है-
(क) एक निजी कम्पनी
(ख) जनता से निवेश चाहने वाली सार्वजनिक कम्पनी
(ग) एक सार्वजनिक उद्यम
(घ) एक सार्वजनिक कम्पनी
उत्तर:
(ख) जनता से निवेश चाहने वाली सार्वजनिक कम्पनी
प्रश्न 6.
एक सार्वजनिक कम्पनी के निर्माण के विभिन्न चरणों का क्रम-
(क) प्रवर्तन, व्यापार प्रारम्भ, समामेलन, पूँजी अभिदान
(ख) समामेलन, पूँजी अभिदान, व्यापार प्रारम्भ, प्रवर्तन
(ग) प्रवर्तन, समामेलन, पूँजी अभिदान, व्यापार प्रारम्भ
(घ) पूँजी अभिदान, प्रवर्तन, समामेलन, व्यापार प्रारम्भ
उत्तर:
(ग) प्रवर्तन, समामेलन, पूँजी अभिदान, व्यापार प्रारम्भ
प्रश्न 7.
प्रारम्भिक प्रसंविदों पर हस्ताक्षर किये जाते हैं-
(क) समामेलन से पहले
(ख) समामेलन के उपरान्त परन्तु पूँजी अभिदान से पूर्व
(ग) समामेलन के उपरान्त परन्तु व्यापार प्रारम्भ से पूर्व
(घ) व्यापार प्रारम्भ करने के उपरान्त
उत्तर:
(क) समामेलन से पहले
प्रश्न 8.
एक कम्पनी के निर्माण की प्रथम स्थिति है-
(क) प्रवर्तन
(ख) समामेलन
(ग) पूँजी अभिदान
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) प्रवर्तन
प्रश्न 9.
प्रवर्तक का सबसे पहला कार्य है-
(क) प्रारम्भिक प्रसंविदे करना
(ख) कम्पनी के व्यवसाय का निर्धारण करना
(ग) व्यवसाय के अवसर की पहचान करना
(घ) समामेलन का प्रमाण-पत्र प्राप्त करना
उत्तर:
(ग) व्यवसाय के अवसर की पहचान करना
प्रश्न 10.
प्रवर्तक कम्पनी के समामेलन के लिए आवेदन करते हैं-
(क) केन्द्रीय सरकार को
(ख) कम्पनी रजिस्ट्रार को
(ग) कम्पनी प्राधिकरण को
(घ) स्कन्ध विनिमय केन्द्र को
उत्तर:
(ख) कम्पनी रजिस्ट्रार को
प्रश्न 11.
प्रवर्तक कम्पनी का होता है-
(क) एजेण्ट
(ख) स्वामी
(ग) प्रन्यासी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 12.
कम्पनी के सीमानियम में पहला खण्ड होता है-
(क) पंजीकृत कार्यालय खण्ड
(ख) दायित्व खण्ड
(ग) नाम खण्ड
(घ) उद्देश्य. खण्ड
उत्तर:
(ग) नाम खण्ड
प्रश्न 13.
न्यूनतम अभिदान की राशि शुद्ध निर्गमन मूल्य का होती है-
(क) कम से कम 90 प्रतिशत
(ख) शत प्रतिशत
(ग) कम से कम 50 प्रतिशत
(घ) कम से कम 95 प्रतिशत
उत्तर:
(क) कम से कम 90 प्रतिशत
प्रश्न 14.
कम्पनी के नाम का अनुमोदन के लिए कम्पनी रजिस्ट्रार को दिये गये प्रार्थना पत्र (आईएनसी-1) में कितने नाम प्राथमिकता दर्शाते हुए दिये जाते हैं-
(क) एक नाम
(ख) दो नाम
(ग) तीन नाम
(घ) चार नाम
उत्तर:
(ग) तीन नाम
प्रश्न 15.
अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के पार्षद सीमा नियम का प्रारूप किसके अनुरूप होता है-
(क) सारणी ए
(ख) सारणी बी
(ग) सारणी सी
(घ) सारणी डी
उत्तर:
(क) सारणी ए
प्रश्न 16.
प्रत्येक व्यक्ति जो किसी कम्पनी के निदेशक के रूप में नियुक्त होना चाहता है, उसे निदेशक पहचान संख्या प्राप्त करने के लिए आवेदन करना होता है-
(क) कम्पनी रजिस्ट्रार को
(ख) राज्य सरकार को
(ग) केन्द्रीय सरकार को
(घ) कम्पनी अधिकरण को
उत्तर:
(ग) केन्द्रीय सरकार को
प्रश्न 17.
वह प्रलेख जिसके द्वारा एक निगमित संस्था अपनी प्रतिभूतियाँ खरीदने के लिए जनता से प्रस्ताव आमंत्रित करती है, कहलाता है-
(क) पार्षद सीमा नियम
(ख) पार्षद अन्तर्नियम
(ग) स्थानापन्न प्रविवरण
(घ) प्रविवरण
उत्तर:
(घ) प्रविवरण
रिक्त स्थान की पूर्ति वाले प्रश्न-
निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. .................... कम्पनी के निर्माण का कार्य करता है। (प्रवर्तक/संचालक)
2. कम्पनी का .................... कम्पनी का प्रमुख प्रलेख होता है। (संस्थापन प्रलेख/पार्षद अन्तर्नियम)
3. कम्पनी के पंजीकृत कार्यलय के पते की सूचना समामेलन के .................... के भीतर कम्पनी रजिस्ट्रार को देनी होती है। (45 दिन/ 30 दिन)
4. कम्पनी के पार्षद सीमा नियम की परिभाषा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा ................... में दी गई है। [2(56)/2(5)]
5. एक सार्वजनिक कम्पनी जो मित्रों/सगे सम्बन्धियों (जनता से नहीं) से धन जुटा रही है। अंशों के आबंटन से कम से कम .................... पूर्व कम्पनी रजिस्ट्रार के पास स्थानान्तरण विवरण जमा करायेगी। (3 दिन/30 दिन)
6. .................... कम्पनी को निगम पहचान नम्बर का आबंटन करता है। (केन्द्र सरकार/कम्पनी रजिस्ट्रार)
उत्तर:
1. प्रवर्तक
2. संस्थापन प्रलेख
3. 30 दिन
4. 2(56)
5. 3 दिन
6. कम्पनी रजिस्ट्रार
सत्य/असत्य वाले प्रश्न-
निम्न में से सत्य/असत्य कथन बतलाइये-
1. यदि कोई व्यक्ति अपनी पेशेवर हैसियत से सलाह, निर्देश या अनुदेश देता है तो उसे प्रवर्तक माना जायेगा।
2. कम्पनी के नाम के अनुमोदन के लिए जिस राज्य में कम्पनी का पंजीकृत कार्यालय होगा उस राज्य के कम्पनी रजिस्ट्रार के यहाँ ही आवेदन पत्र जमा कराना होगा।
3. सामान्यतः जो लोग संस्थापन प्रलेख पर हस्ताक्षर करते हैं वे ही कम्पनी के प्रथम निदेशक होते हैं।
4. पार्षद सीमा नियम के पंजीकृत कार्यालय खण्ड में उस राज्य का नाम ही देना होता है जिसमें कम्पनी का प्रस्तावित पंजीकृत कार्यालय होगा।
5. कम्पनी के पार्षद सीमा नियम के पूँजी खण्ड में जिस अधिकतम पूँजी का वर्णन किया जाता है वह कम्पनी की निर्गमित पूँजी कहलाती है।
6. कम्पनी के पंजीयन के लिए प्रस्तुत वैधानिक घोषणा पर कोई भी व्यक्ति हस्ताक्षर कर सकता है।
7. कम्पनी के समामेलन के प्रमाणपत्र को कम्पनी के जन्म का प्रमाण पत्र कहा जाता है।
8. एक व्यक्ति कम्पनी में कोई अवयस्क लाभप्रद हित के अंश का धारण कर सकता है।
उत्तर:
1. असत्य,
2. सत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. असत्य,
6. असत्य,
7. सत्य,
8. असत्य
मिलान करने वाले प्रश्न-
निम्न को सुमेलित कीजिए-
उत्तर:
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक निजी कम्पनी के निर्माण की किन दो अवस्थाओं को पूरा करना होता है?
उत्तर:
एक निजी कम्पनी के निर्माण के लिए दो अवस्थाओं को पूरा करना अनिवार्य होता है-(1) प्रवर्तन (2) समामेलन।
प्रश्न 2.
प्रवर्तक से क्या आशय है?
उत्तर:
प्रवर्तक वह है जो दिये गये प्रयोजन के सन्दर्भ में एक कम्पनी के निर्माण का कार्य करता है एवं उसे चालू करता है तथा उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक कदम उठाता है।
प्रश्न 3.
एक सार्वजनिक कम्पनी के निर्माण की विभिन्न अवस्थाओं को बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 4.
प्रवर्तन के कोई दो कार्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 5.
प्रवर्तक के रूप में कौन-कौन कार्य कर सकते हैं?
उत्तर:
एक व्यक्ति, एक परिवार, एक फर्म, एक कम्पनी अथवा इसी प्रकार की कोई संस्था प्रवर्तक के रूप में कार्य कर सकते हैं।
प्रश्न 6.
प्रवर्तकों का कम्पनी के साथ कैसा सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
प्रवर्तक का कम्पनी के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है। उसके कम्पनी के साथ न्यासी की तरह के सम्बन्ध होते हैं जिनका उसे दुरूपयोग नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 7.
प्रवर्तकों का कम्पनी के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होने के कारण वह कौन से दो कार्य नहीं कर सकता है?
उत्तर:
प्रश्न 8.
क्या एक कम्पनी प्रवर्तकों को प्रारम्भिक व्यय चुकाने के लिए बाध्य है?
उत्तर:
एक कम्पनी के अस्तित्व में आने के बाद प्रवर्तक के साथ प्रारम्भिक व्यय चुकाने का अनुबन्ध करने के पश्चात ही प्रारम्भिक व्यय चुकाने के लिए बाध्य है अन्यथा नहीं।
प्रश्न 9.
प्रवर्तकों के पारिश्रमिक का भुगतान किस रूप में किया जा सकता है?
उत्तर:
प्रवर्तकों के पारिश्रमिक का भुगतान एकमुश्त नकद राशि के रूप में, कमीशन एवं लाभ के प्रतिशत के रूप में अथवा अंशों एवं ऋण-पत्रों का आबंटन करके कर सकती है।
प्रश्न 10.
प्रवर्तक प्रविवरण में कपट के लिए किसके प्रति उत्तरदायी होते हैं?
उत्तर:
प्रविवरण में कपट के लिए प्रवर्तक अंशधारियों के प्रति दायी होते हैं।
प्रश्न 11.
सामान्यतः कम्पनी के प्रथम निदेशक कौन होते हैं?
उत्तर:
जो लोग कम्पनी के सीमानियम के उद्देश्य पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं वे ही कम्पनी के प्रथम निदेशक होते हैं।
प्रश्न 12.
आबंटन विवरणी किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी विवरणी जिसमें अंशधारियों के नाम और उनके पते तथा आबंटित अंशों की संख्या लिखी होती है और जो कम्पनी रजिस्ट्रार के यहाँ प्रस्तुत की जाती है, आबंटन विवरणी कहलाती है।
प्रश्न 13.
कम्पनी के समामेलन के लिए कम्पनी रजिस्ट्रार को प्रस्तुत किये जाने वाले दो प्रलेखों के नाम लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 14.
क्या एक निजी कम्पनी की दशा में कम्पनी समामेलन के समय प्रथम निदेशकों की सूची कम्पनी रजिस्ट्रार को प्रस्तुत करना अनिवार्य है?
उत्तर:
एक निजी कम्पनी के लिए समामेलन के समय रजिस्ट्रार के सम्मुख प्रथम संचालकों की सूची प्रस्तुत करना अनिवार्य नहीं है।
प्रश्न 15.
प्रारम्भिक प्रसंविदे किसे कहते हैं?
उत्तर:
कम्पनी के प्रवर्तन के समय प्रवर्तक कम्पनी की ओर से बाहर के लोगों से कुछ प्रसंविदा कर सकते हैं, उन्हें प्रारम्भिक प्रसंविदे कहा जाता है।
प्रश्न 16.
किस प्रकार की कम्पनी के लिए अन्तर्नियम बनाना अनिवार्य नहीं है?
उत्तर:
अंशों द्वारा सीमित सार्वजनिक कम्पनी के लिए अन्तर्नियम बनाना अनिवार्य नहीं है।
प्रश्न 17.
कम्पनी के पार्षद सीमां नियम के उद्देश्य खंड में उलेखित मुख्य उद्देश्यों से आपका क्या तात्पर्य है।
उत्तर:
मुख्य उद्देश्य वे उद्देश्य होते हैं जिनको प्राप्त करने के लिए कम्पनी का निर्माण किया जाता है।
प्रश्न 18.
संस्थापन प्रलेख की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
संस्थापन प्रलेख से आशय एक कम्पनी के ऐसे संस्थापन प्रलेख से है जो इस अधिनियम या किसी पूर्व कम्पनी अधिनियम के अनुसरण में मूलरूप से बनाया गया हो या समय-समय पर परिवर्तित किया गया हो। [कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(56)]
प्रश्न 19.
पार्षद अन्तर्नियम की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
एक कम्पनी का पार्षद अन्तर्नियम वह है जो इस अधिनियम या किसी पूर्व कम्पनी अधिनियम के अनुसरण में मूल रूप से बनाये गये हों या समय-समय पर संशोधित किये गये हों। [धारा 2(5)]
प्रश्न 20.
निदेशक पहचान संख्या (DIN) से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति कम्पनी में निदेशक बनने के लिए केन्द्रीय सरकार से अपनी पहचान के लिए आवेदन करता है, जब केन्द्रीय सरकार उसे जो संख्या आवंटित करती है वह निदेशक पहचान संख्या कहलाती है।
प्रश्न 21.
एक व्यक्ति कम्पनी की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
'एक व्यक्ति कम्पनी से आशय ऐसी कम्पनी से है जिसका कोई एक व्यक्ति ही सदस्य होता है।' [धारा 2(62)]
प्रश्न 22.
एक व्यक्ति कम्पनी के कोई दो लक्षण बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 23.
क्या कम्पनी के समामेलन से पूर्व कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय के स्थान की सूचना कम्पनी के रजिस्ट्रार को देना आवश्यक है? यदि नहीं तो इसकी सूचना बाद में कब दी जा सकती है?
उत्तर:
समामेलन के पूर्व कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय के स्थान की सूचना रजिस्ट्रार को देना आवश्यक नहीं है। इसकी सूचना समामेलन होने के 30 दिन के भीतर देना आवश्यक है।
प्रश्न 24.
रजिस्ट्रार प्रवर्तकों द्वारा कम्पनी के समामेलन हेतु प्रस्तुत प्रलेखों की जाँच में क्या देखता है?
उत्तर:
रजिस्ट्रार यह देखता है कि प्रस्तुत प्रलेख कम्पनी विधान के अनुसार हैं अथवा नहीं तथा इनमें किसी
प्रश्न 25.
कम्पनी के समामेलन की तिथि कौनसी मानी जायेगी?
उत्तर:
समामेलन के प्रमाण-पत्र पर अंकित तिथि ही समामेलन की तिथि मानी जाती है।
प्रश्न 26.
पूँजी अभिदान के सामान्यतया कौन से दो विकल्प हैं?
उत्तर:
पूँजी अभिदान के सामान्यतया दो विकल्प हैं-
प्रश्न 27.
एक निजी कम्पनी कब अपना व्यापार प्रारम्भ कर सकती है?
उत्तर:
एक निजी कम्पनी समामेलन का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के तुरन्त पश्चात् अपना व्यापार प्रारम्भ कर सकती है।
प्रश्न 28.
समामेलन का प्रमाण-पत्र किस बात का निश्चयात्मक प्रमाण है?
उत्तर:
समामेलन का प्रमाण-पत्र इस बात का निश्चयात्मक प्रमाण है कि कम्पनी का समामेलन उचित प्रकार से हुआ है और कम्पनी ने पंजीयन की सभी वैधानिक औपचारिकताओं को पूरा कर लिया है।
प्रश्न 29.
किस कम्पनी को स्कन्ध विनिमय केन्द्र/स्टॉक एक्सचेंज से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है?
उत्तर:
जो कम्पनी जनता को अंशों का निर्गमन करना चाहती है उसे स्कन्ध विनिमय केन्द्र से अनुमति लेनी होती है।
प्रश्न 30.
भारत में कबसे कम्पनी रजिस्ट्रार कम्पनी को निगम पहचान नम्बर का आबंटन करता है?
उत्तर:
1 नवम्बर, 2000 से कम्पनी रजिस्ट्रार कम्पनी को सी. आई. एन. (निगम पहचान नम्बर) का आवंटन करता है।
प्रश्न 31.
कम्पनी का जन्म कब से हुआ माना जाता है?
उत्तर:
कम्पनी के समामेलन के प्रमाण-पत्र पर लिखी गई तिथि व समय पर ही कम्पनी का जन्म हुआ माना जाता है।
प्रश्न 32.
प्रविवरण क्या है?
उत्तर:
प्रविवरण कोई भी ऐसा प्रलेख है जिसे प्रविवरण के रूप में वर्णित या जारी किया गया है जो किसी कम्पनी/समामेलित संस्था की प्रतिभूतियों के क्रय के लिए जनता को आमंत्रित करता है।
प्रश्न 33.
स्थापनापन्न प्रविवरण कम्पनी रजिस्ट्रार के यहाँ कब प्रस्तुत करना पड़ता है?
उत्तर:
अंश क्रय के लिए जनता को आमन्त्रित नहीं करने वाली सार्वजनिक कम्पनी द्वारा अंश आबंटन से कम से कम तीन दिन पूर्व रजिस्ट्रार को स्थानापन्न प्रविवरण प्रस्तुत करना आवश्यक है।
प्रश्न 34.
कम्पनी के जन्म का प्रमाण-पत्र किस प्रलेख को माना जाता है?
उत्तर:
'समामेलन प्रमाण-पत्र' को कम्पनी के जन्म का प्रमाण-पत्र माना जाता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्रवर्तक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रवर्तक से आशय-सामान्य शब्दों में, ऐसे कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह अथवा एक कम्पनी, कम्पनी की स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाती है तो उन्हें कम्पनी का प्रवर्तक कहा जाता है। प्रवर्तक संसाधनों को एकत्रित करता है, आवश्यक अभिलेखों को तैयार करता है तथा कम्पनी का पंजीयन कराने तथा प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए दूसरी अन्य क्रियाएँ करता है अर्थात् कम्पनी को अस्तित्व में लाने के लिए प्रवर्तक विभिन्न कार्य करता है।
प्रवर्तक वह है जो दिये गये प्रयोजन के सन्दर्भ में एवं कम्पनी के निर्माण का कार्य करता है एवं इसे चालू करता है तथा उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक कदम उठाता है। इस प्रकार से प्रवर्तक व्यवसाय के अवसर कल्पना करने के अतिरिक्त इसकी सम्भावनाओं का विश्लेषण करता है तथा व्यक्ति, माल, मशीनरी, प्रबन्धकीय योग्यताओं तथा वित्तीय संसाधनों को एकजुट करता है तथा संगठन तैयार करता है। यथार्थ में प्रवर्तक संसाधनों को एकत्रित करता है, आवश्यक अभिलेखों को तैयार करता है तथा कम्पनी का पंजीयन कराने तथा प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए दूसरी अन्य क्रियाएँ करता है अर्थात् कम्पनी को अस्तित्व में लाने के लिए प्रवर्तन विभिन्न कार्य करता है।
प्रश्न 2.
कम्पनी अधिनियम, 2013 में प्रवर्तक शब्द को किस प्रकार परिभाषित किया गया है?
उत्तर:
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 92 के अनुसार एक प्रवर्तक वह है-
प्रश्न 3.
कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत विभिन्न कम्पनियों के लिए निर्धारित किये गये पार्षद सीमा नियम के प्रारूपों को बतलाइये।
उत्तर:
पार्षद सीमा नियम के विभिन्न प्रारूप-
प्रश्न 4.
क्या प्रवर्तक कम्पनी के एजेण्ट होते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रवर्तक कम्पनी के निर्माण सम्बन्धी समस्त कार्य करता है, परन्तु फिर भी वह कम्पनी का एजेण्ट नहीं होता है। एजेन्सी के अनुबन्ध के लिए नियोक्ता अथवा प्रधान का होना आवश्यक होता है। प्रवर्तक कम्पनी के लिए जिस समय कार्य करता है, उस समय कम्पनी अस्तित्व में नहीं होती है। इसलिए प्रवर्तक कम्पनी का एजेण्ट नहीं होता है। केलनर एवं बेक्सटर के विवाद के निर्णय में लिखा गया है कि, "जो व्यक्ति अस्तित्व में नहीं है, उसका कोई भी व्यक्ति एजेण्ट नहीं हो सकता है। अतः जब तक कम्पनी का समामेलन नहीं हो जाता, तब तक वह अस्तित्व में नहीं आती है। फलतः कोई भी व्यक्ति उसका एजेण्ट नहीं हो सकता है।"
प्रश्न 5.
प्रवर्तक को कम्पनी का प्रन्यासी क्यों नहीं माना जाता है?
उत्तर:
प्रवर्तक कम्पनी के लिए पूर्व सद्विश्वास एवं निष्ठा के साथ कार्य करता है और कम्पनी के हित में कार्य करता है। परन्तु वह कम्पनी का प्रन्यासी नहीं होता है। इसका कारण यह है कि प्रवर्तक के कार्य करते समय प्रन्यास जैसी कोई संस्था अस्तित्व में नहीं होती है। अत: उसका प्रन्यासी होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता है। कम्पनी जब तक के रूप में कोई दायित्व उत्पन्न नहीं हो सकते हैं । कम्पनी विधान में प्रवर्तक पर कुछ प्रन्यासी जैसे कर्त्तव्य डाले गये हैं। परन्तु फिर भी वह कम्पनी का प्रन्यासी नहीं होता है।
प्रश्न 6.
कम्पनी के नाम के अनुमोदन की क्या प्रक्रिया है?
उत्तर:
कम्पनी का समामेलन करवाने के लिए कम्पनी का नाम निश्चित करना आवश्यक होता है। प्रवर्तक अपनी पसन्द का कोई भी नाम कम्पनी का रख सकते हैं लेकिन नाम निश्चित करने से पूर्व सम्बन्धित कम्पनी रजिस्ट्रार से नाम के अनुमोदन अर्थात् वैधता एवं उपलब्धता के बारे में पूछताछ करनी पड़ती है। नाम के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रवर्तकों द्वारा एक निर्धारित फार्म (फार्म-आईएनसी-1) में निर्धारित शुल्क जमा करवाकर कम्पनी रजिस्ट्रार को आवेदन करना होता है। इस आवेदन-पत्र में तीन नाम प्राथमिकता दर्शाते हुए लिखने होते हैं। यह आवेदन-पत्र प्राप्त होने के सात दिन में रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा नाम की वैधता एवं उपलब्धता की सूचना भेज दी जाती है। कम्पनी रजिस्ट्रार द्वारा अनुमोदित नाम छः महीने तक आरक्षित एवं उपलब्ध रहता है।
प्रश्न 7.
कम्पनियों के सन्दर्भ में एक नाम को किन मामलों में अवांछनीय माना जाता है?
उत्तर:
एक नाम को निम्न मामलों में अवांछनीय माना जाता है-
(1) यदि कम्पनी का वह नाम पहले से ही विद्यमान कम्पनी का नाम नहीं हो अर्थात् उससे बहुत अधिक मिलता नाम हो।
(2) नाम यदि गुमराह करने वाला हो। ऐसा तभी माना जायेगा जबकि नाम से ऐसा लगता है कि कम्पनी एक व्यवसाय विशेष में है अथवा एक विशेष प्रकार का संगठन है जबकि यह सत्य नहीं है।
(3) यदि यह नाम तथा चिन्ह (अनुपयुक्त उपयोग निरोधक) एक्ट, 1950 की अनुसूची में दिये गये प्रावधानों का उल्लंघन करता हो। इस अनुसूची में अन्य के अतिरिक्त विशेष रूप से यू.एन.ओ. एवं इसके अंग जैसे W.H.O., यूनेस्को आदि, भारत सरकार, राज्य सरकार, भारत के राष्ट्रपति अथवा किसी भी राज्य के राज्यपाल, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के नाम, चिन्ह अथवा सरकारी मुद्रा को सम्मिलित किया है। यह अधिनियम ऐसे नाम के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाता है ज सरकार अथवा किसी राज्य सरकार या फिर स्थानीय प्राधिकरण के संरक्षण का आभास देता है।
प्रश्न 8.
कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत विभिन्न कम्पनियों के लिए निर्धारित किये गये. पार्षद अन्तर्नियमों के प्रारूपों को बतलाइये?
उत्तर:
पार्षद अन्तर्नियमों के विभिन्न प्रारूप-
प्रश्न 9.
समामेलन का प्रमाण-पत्र किसे कहते हैं?
अथवा
समामेलन प्रमाण-पत्र से क्या तात्पर्य है? इसका उपयोग बतलाइए।
उत्तर:
समामेलन का प्रमाण-पत्र-जब कम्पनी रजिस्ट्रार इस बात से सन्तुष्ट हो जाता है कि कम्पनी के पंजीयन के लिए निर्धारित सभी कार्यवाहियाँ पूरी कर ली गई हैं और प्रस्तावित कम्पनी इस अधिनियम के अन्तर्गत रजिस्ट्रेशन किये जाने योग्य हैं तो वह कम्पनी का पंजीयन कर देता है और पंजीयन के लिए प्रस्तुत किये गये आवेदन पत्र एवं अन्य प्रपत्रों को फाइल कर दिया जाता है। कम्पनी का नाम कम्पनियों के रजिस्टर में लिख दिया जाता है। तत्पश्चात् रजिस्ट्रार अपने हस्ताक्षरों एवं कार्यालय की मोहर के साथ एक प्रमाण-पत्र देता है जिसे 'समामेलन का प्रमाण-पत्र' कहा जाता है। इस समामेलन के प्रमाण-पत्र में कम्पनी का नाम, कम्पनी के सदस्यों का दायित्व, समामेलन का प्रमाण-पत्र जारी करने की तिथि, मुद्रांक की राशि, कार्यालय की सील तथा रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर आदि का उल्लेख होता है।
उपयोग-समामेलन का प्रमाण-पत्र इस बात का निश्चयात्मक प्रमाण होता है कि कम्पनी का पंजीयन विधिवत् हुआ है।
प्रश्न 10.
"कम्पनी के समामेलन का प्रमाण-पत्र एक अकाट्य प्रमाण-पत्र है।" क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक कम्पनी को जब उसके द्वारा समामेलन के प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने सम्बन्धी सभी वैधानिक औपचारिकताओं को पूरा कर दिया जाता है तो उसे समामेलन का प्रमाणपत्र प्राप्त हो जाता है। यह प्रमाण-पत्र इस बात का अकाट्य अथवा निश्चयात्मक प्रमाण है कि कम्पनी का पंजीयन विधिवत् हुआ है और कम्पनी के पंजीयन से सम्बन्धित विषयों के सम्बन्ध में अधिनियम की सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। वह संस्था कम्पनी के रूप में रजिस्टर्ड होने की अधिकारी है और संस्था की इस प्रकार रजिस्ट्री कर दी गई है। यह प्रमाण-पत्र निम्न बातों के सम्बन्ध में अकाट्य प्रमाण है-
प्रश्न 11.
निदेशक पहचान संख्या (DIN ) पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
निदेशक पहचान संख्या (DIN)-प्रत्येक व्यक्ति जो किसी कम्पनी के निदेशक के रूप में नियुक्त होना चाहता है, तो उसे निदेशक पहचान संख्या प्राप्त करनी होती है। इस निदेशक पहचान संख्या के आवंटन हेतु विहित फार्म पर आवश्यक शुल्क सहित केन्द्रीय सरकार को आवेदन करना होता है। केन्द्रीय सरकार आवेदन प्राप्त होने के एक महीने के भीतर आवेदक को निदेशक पहचान संख्या (DIN) आवंटित कर देती है। कोई भी व्यक्ति जिसे निदेशक पहचान संख्या आवंटित हो चुकी हो वह इसके लिए पुनः आवेदन नहीं कर सकता है। .
प्रश्न 12.
ऐसे कोई दो उदाहरण दीजिए जो कम्पनी के समामेलन प्रमाण-पत्र निर्णायक होने के प्रभाव को दर्शाते हैं?
उत्तर:
उदाहरण-1-कम्पनी के पंजीयन के लिए 6 जनवरी को आवश्यक प्रलेख कम्पनी रजिस्ट्रार के यहाँ जमा कराये गये। समामेलन प्रमाण-पत्र 8 जनवरी को जारी किया गया लेकिन प्रमाण पत्र पर तिथि 6 जनवरी लिखी गई थी। यह निर्णय दिया गया कि कम्पनी का अस्तित्व था। इसीलिए 6 जनवरी को जिन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे, वे न्यायोचित थे।
उदाहरण-2-एक व्यक्ति ने कम्पनी के संस्थापन प्रलेख अर्थात् पार्षद सीमा नियम पर दूसरे व्यक्ति के जाली हस्ताक्षर कर लिए। फिर भी कम्पनी का समामेलन वैधानिक माना गया। क्योंकि कम्पनी का विधिवत सभी औपचारिकताएँ पूरी कर लेने के पश्चात समामेलन हुआ था।
प्रश्न 13.
प्रवर्तक के कोई दो कार्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रवर्तक के कार्य
1. कम्पनी का नाम निर्धारित करना-प्रवर्तक प्रस्तावित नयी कम्पनी के नाम का निर्धारण करता है। कम्पनी अधिनियम के अनुसार कम्पनी का नाम किसी विद्यमान कम्पनी से मिलता-जुलता नहीं होना चाहिए। इसके लिए प्रवर्तक को निर्धारित शुल्क जमा करवाकर कम्पनी रजिस्ट्रार कार्यालय में कम्पनी के नाम के लिए आवेदन करना पड़ता है और कम्पनी के नाम सम्बन्धी 'अनापत्ति प्रमाण-पत्र' प्राप्त करना होता है।
2. प्रथम निदेशकों की नियुक्ति-कम्पनी के प्रथम निदेशकों के रूप में कार्य करने वाले एवं सीमानियम तथा अन्तर्नियम आदि पर हस्ताक्षर करने के लिए निजी कम्पनी की दशा में दो तथा सार्वजनिक कम्पनी की दशा में तीन निदेशकों की नियुक्ति प्रवर्तकों द्वारा की जाती है।
प्रश्न 14.
प्रवर्तकों के पारिश्रमिक का भगतान किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
प्रवर्तक कम्पनी के निर्माण के लिए अनेक कार्य करते हैं तथा कठिन परिश्रम करते हैं। प्रवर्तकों को उनके द्वारा किये गये कार्यों एवं सेवाओं के प्रतिफल के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार होता है। यदि कम्पनी ने अस्तित्व में आने के बाद प्रवर्तकों को पारिश्रमिक चुकाने का अनुबन्ध कर लिया है तो बाद. में प्रवर्तक कम्पनी पर वाद प्रस्तुत करके भी पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है। प्रवर्तकों को पारिश्रमिक का भुगतान अनेक रूप से किया जा सकता है। यह पारिश्रमिक एकमुश्त राशि के रूप में या कमीशन एवं लाभ के प्रतिशत के रूप में दिया जा सकता है। पारिश्रमिक का भुगतान कम्पनी अपने अंश एवं ऋण-पत्रों का आवंटन करके भी कर सकती है।
प्रश्न 15.
प्रवर्तकों के कोई दो दायित्व समझाइये।
उत्तर:
प्रवर्तकों के दायित्व-
(1) गुप्त लाभ को प्रकट करने का दायित्व-कम्पनी के निर्माण के पश्चात् यदि प्रवर्तकों ने किसी भी प्रकार का कोई भी गुप्त लाभ प्राप्त किया है तो प्रवर्तकों का यह दायित्व है कि वे कम्पनी को इसका पूर्ण हिसाब समझाकर लाभ दें। इसके विपरीत यदि कम्पनी के निर्माण के पूर्व कोई लाभ प्राप्त किया है तो प्रवर्तक कम्पनी के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।
(2) प्रविवरण में कपट के लिए दायित्व-जो प्रवर्तक कम्पनी के प्रविवरण के निर्गमन में भाग लेता है तो वह कपट या कर्त्तव्यभेद, वैधानिक पूर्ति के अभाव में अंशधारियों को होने वाली हानि या मिथ्या वर्णन एवं असत्य कथन या गलत विवरण के प्रति दायी होगा।
प्रश्न 16.
प्रारम्भिक प्रसंविदा किसे कहते हैं? समझाइये।
उत्तर:
कम्पनी के प्रवर्तन के समय प्रवर्तक कम्पनी की ओर से कम्पनी के लिए बाहर के लोगों से कुछ प्रसंविदा करते हैं। ये कम्पनी के समामेलन से पूर्व ही किये जाते हैं। इन्हें ही प्रारम्भिक प्रसंविदा कहा जाता है। वैधानिक रूप से कम्पनी इनसे बाध्य नहीं होती है क्योंकि ये कम्पनी के अस्तित्व में आने से पहले ही कम्पनी के लिए किये जाते हैं। कम्पनी के अस्तित्व में आने के पश्चात् यदि कम्पनी चाहे तो प्रवर्तकों द्वारा किये गये प्रसंविदों की पुष्टि कर सकती है और उन्हीं शर्तों पर नये प्रसंविदे कर एक पक्षकार बन सकती है। प्रवर्तक इन प्रारम्भिक प्रसंविदों के लिए दूसरे लोगों के प्रति व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी रहते हैं।
दीर्घउत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
कम्पनी के निर्माण की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
कम्पनी के निर्माण की अवस्थाएँ
1. प्रवर्तन अवस्था-कम्पनी के निर्माण में प्रवर्तन प्रथम स्थिति है। इस अवस्था में व्यवसाय के अवसरों की खोज एवं कम्पनी की स्थापना के लिए पहल करना सम्मिलित है जिससे कि व्यवसाय के प्राप्त अवसरों को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया जा सके। इस प्रकार से प्रवर्तन का कार्य किसी के द्वारा सशक्त व्यवसाय के अवसर की खोज करने से इसका प्रारम्भ होता है।
यथार्थ में प्रवर्तन कम्पनी के निर्माण के लिए किये जाने वाले कार्यों की सम्पूर्ण श्रृंखला है जिसके अन्तर्गत कम्पनी की स्थापना का विचार उत्पन्न होने से लेकर कम्पनी का व्यापार प्रारम्भ करने तक की समस्त क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं।
2. समामेलन की अवस्था-कम्पनी का प्रवर्तक व्यवसाय के अवसर की पहचान करने और उसकी तकनीकी, वित्तीय एवं आर्थिक सम्भाव्यता की जाँच-पड़ताल करने के बाद यदि सकारात्मक परिणाम निकलते हैं तो कम्पनी के नाम का अनुमोदन करवाने, उद्देश्य पत्र तैयार करवाने, कुछ पेशेवर लोगों की नियुक्ति करने, आवश्यक प्रलेखों को तैयार करने जैसे सीमानियम, अन्तर्नियम, प्रस्तावित निदेशकों की सहमति प्राप्त करने, महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से समझौता करने, पंजीयन सम्बन्धी समस्त औपचारिकताओं को पूरा करने सम्बन्धी वैधानिक घोषणा करने तक फीस का भुगतान करने सम्बन्धी औपचारिकताओं को पूरा कर लेने के पश्चात् प्रवर्तक कम्पनी के समामेलन के लिए आवेदन-पत्र तैयार करते हैं।
इस आवेदन-पत्र को उस राज्य के रजिस्ट्रार के पास जमा किया जाता है जिस राज्य में कम्पनी का पंजीकृत कार्यालय स्थापित किया जायेगा। इस आवेदन-पत्र के साथ कुछ अन्य प्रलेख भी जमा कराये जाते हैं। ये प्रलेख हैं-कम्पनी का पार्षद सीमानियम; कम्पनी के अन्तर्नियम; प्रस्तावित निदेशकों की निदेशक बनने की लिखित सहमति; प्रस्तावित प्रबन्ध निदेशक, प्रबन्धक अथवा पूर्णकालिक निदेशक के साथ समझौते की प्रतियाँ; कम्पनी के नाम के अनुमोदन का पत्र; वैधानिक घोषणा तथा पंजीयन शुल्क के भुगतान की रसीद आदि।
जब कम्पनी रजिस्ट्रार कम्पनी के पंजीयन से सम्बन्धित सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के सम्बन्ध में सन्तुष्ट हो जाता है तो वह कम्पनी को समामेलन का प्रमाण-पत्र जारी कर देता है जिसका अर्थ है कि कम्पनी अस्तित्व में आ गयी है। कम्पनी के इस समामेलन के प्रमाण-पत्र को कम्पनी के जन्म का प्रमाण-पत्र भी कहा जाता है। समामेलन का प्रमाण-पत्र कम्पनी रजिस्ट्रार अपने हस्ताक्षर एवं मोहर लगाकर जारी करता है । कम्पनी इसी तिथि से वैधानिक अस्तित्व ग्रहण कर लेती है।
3. पूँजी अभिदान अवस्था-एक निजी कम्पनी एवं ऐसी सार्वजनिक कम्पनी जिसमें अंश पूँजी नहीं है, समामेलन का प्रमाण-पत्र प्राप्त करते ही अपना व्यापार प्रारम्भ कर सकती है। किन्तु अंश पूँजी वाली सार्वजनिक कम्पनी समामेलन का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के पश्चात् आवश्यक पूँजी की व्यवस्था करती है। इसके लिए उसे प्रविवरण-पत्र जनता को जारी करना होता है, जो आम जनता को कम्पनी की पूँजी के अभिदान के लिए असम्भव है एवं अन्य औपचारिकताएँ पूरी करनी होंगी।
इसके लिए सार्वजनिक कम्पनी को जो कार्य करने होंगे वे इस प्रकार हैं-भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड से अनुमति लेना; प्रविवरण पत्र कम्पनी रजिस्ट्रार के यहाँ जमा कराना; बैंकर, ब्रोकर एवं अभिकर्ताओं की नियुक्ति करना; न्यूनतम अभिदान की राशि प्राप्त करना; स्कन्ध विनिमय केन्द्र/केन्द्रों से अंशों के क्रय विक्रय की अनुमति लेना; अतिरिक्त राशि आवेदनकर्ताओं को वापस लौटाना, सफल आवंटनकर्ताओं को आवंटन पत्र भेजना तथा आबंटन विवरणी कम्पनी रजिस्ट्रार के यहाँ प्रस्तुत करना आदि।
4. व्यापार प्रारंभ करने के प्रमाण-पत्र को प्राप्त करने की अवस्था-एक अंश पूँजी वाली सार्वजनिक कम्पनी के लिए समामेलन के पश्चात् व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र प्राप्त करना भी आवश्यक होता है। कम्पनी रजिस्ट्रार द्वारा व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र तभी जारी किया जाता है जबकि कम्पनी कम्पनी विधान के प्रावधानों को पूरा कर लेती है।
प्रश्न 2.
प्रवर्तक की स्थिति का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
प्रवर्तक की स्थिति
प्रवर्तकों की क्या स्थिति होती है, इसके बारे में कम्पनी अधिनियम में कोई उल्लेख नहीं किया गया है, परन्तु वास्तविकता यह है कि प्रवर्तक कम्पनी का जन्मदाता होता है। प्रवर्तकों के कम्पनी के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होते हैं। प्रवर्तक कम्पनी के अस्तित्व में लाने के लिए तथा चालू करने के लिए केवल कल्पना ही नहीं करते हैं अपितु कम्पनी की स्थापना के विचार को साकार रूप भी प्रदान करते हैं। प्रवर्तक कम्पनी के सर्वेसर्वा होते हैं, परन्तु कानून की दृष्टि में प्रवर्तक न तो कम्पनी के एजेण्ट होते हैं और न ही वे कम्पनी के प्रन्यासी होते हैं । कम्पनी में प्रवर्तकों की स्थिति निम्न प्रकार से स्पष्ट की जा सकती है-
1. प्रवर्तक कम्पनी का एजेण्ट नहीं है-यद्यपि प्रवर्तक कम्पनी के निर्माण सम्बन्धी समस्त कार्य करता है, फिर भी वह कम्पनी का एजेण्ट नहीं हो सकता है। एजेन्सी के अनुबन्ध के लिए नियोक्ता का अस्तित्व में होना आवश्यक है, परन्तु जब प्रवर्तक कम्पनी के निर्माण सम्बन्धी कार्य करता है, अथवा बाह्य पक्षकारों के साथ अनुबन्ध करता है, तब कम्पनी का अस्तित्व ही नहीं होता है। इसलिए प्रवर्तक कम्पनी का एजेण्ट नहीं होता है।
2. प्रवर्तक कम्पनी का स्वामी नहीं है-प्रवर्तक के कार्यों से ऐसा लगता है कि जैसे वह कम्पनी का स्वामी हो। वह अपनी इच्छानुसार कम्पनी का नाम, उद्देश्य, व्यवसाय, स्थान तथा पूँजी आदि का निर्धारण करता है, कम्पनी के निर्माण के सम्बन्ध में आवश्यकतानुसार सभी प्रकार के खर्चे वह स्वयं करता है और जब तक कम्पनी का समामेलन नहीं हो जाता है, समस्त हानियाँ उसी की होती हैं। इतना होते हुए भी प्रवर्तक कम्पनी का स्वामी नहीं होता है। कम्पनी के वास्तविक स्वामी तो वे अंशधारी ही होते हैं जिनके द्वारा कम्पनी में पूँजी लगायी जाती है।
3. प्रवर्तक कम्पनी का प्रन्यासी नहीं होता है-कम्पनी अधिनियम, 2013 में प्रवर्तक पर कुछ प्रन्यासी जैसे कर्त्तव्य डाले गये हैं, फिर भी वह कम्पनी का प्रन्यासी नहीं होता है। इसका कारण यह है कि प्रवर्तक के कार्य करते समय प्रन्यास जैसी कोई संस्था अस्तित्व में नहीं होती है। अतः उसकी प्रन्यासी होने जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती है, कम्पनी जब तक अस्तित्व में नहीं आ जाती है, तब तक वह अपने प्रन्यासी नियुक्त नहीं कर सकती है।
4. प्रवर्तक का कम्पनी के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है-प्रवर्तक उसके द्वारा निर्मित कम्पनी का न तो एजेण्ट होता है और न प्रन्यासी होता है। उसका कम्पनी के साथ केवल विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है। परिणामस्वरूप वह कम्पनी के निर्माण के सम्बन्ध में किये गये कार्यों के लिए उत्तरदायी होती है। विश्वासाश्रित सम्बन्ध होने के कारण ही प्रवर्तकों के अनेक कर्त्तव्य एवं दायित्व उत्पन्न होते हैं। विश्वासाश्रित सम्बन्ध होने के कारण प्रवर्तक का यह कर्त्तव्य होता है कि वह कम्पनी के निर्माण के सम्बन्ध में सभी महत्त्वपूर्ण तथ्यों को प्रकट करे।
5. प्रवर्तकों का अंशधारियों के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है-प्रवर्तकों का अंशधारियों के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है किन्तु इस सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रवर्तकों का उन अंशधारियों के प्रति ही विश्वासाश्रित सम्बन्ध पाया जाता है जिन्होंने प्रवर्तकों द्वारा जारी प्रविवरण के आधार पर सीधे कम्पनी से अंश खरीदे हैं। यदि किसी अंशधारी ने बाजार से अथवा किसी अन्य व्यक्ति से अंश खरीदे हैं तो प्रवर्तकों का ऐसे अंशधारी के प्रति विश्वासाश्रित सम्बन्ध नहीं होता है। अंशधारियों के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होने से प्रवर्तक अंशधारियों के प्रति उत्तरदायी ठहराये जा सकते हैं, यदि उन्होंने प्रविवरण में मिथ्या कथन या कपट किया हो तथा अंशधारियों को गलत ढंग से अंश खरीदने के लिए प्रेरित किया हो।
प्रश्न 3.
कम्पनी के समामेलन की विधि का संक्षेप में विवेचन कीजिये।
उत्तर:
कम्पनी के समामेलन की विधि
कम्पनी का विधिवत् पंजीयन कराने को ही कम्पनी का समामेलन करना कहते हैं। जब तक कम्पनी का समामेलन नहीं हो जाता है, कम्पनी वैधानिक रूप से अपना अस्तित्व ग्रहण नहीं करती है, कम्पनी के समामेलन की विधि या प्रक्रियाओं को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
I. प्रारम्भिक क्रियाएँ-कम्पनी के समामेलन से पूर्व प्रवर्तकों द्वारा निम्नलिखित प्रारम्भिक क्रियाएँ करनी पड़ती हैं-
1. पंजीकृत कार्यालय का निर्धारण-कम्पनी के प्रवर्तकों द्वारा सबसे पहले उस राज्य का नाम निश्चित किया जाता है जहाँ कम्पनी का रजिस्टर्ड कार्यालय स्थापित किया जायेगा।
2. कम्पनी के नाम का निर्धारण-समामेलन से पूर्व प्रस्तावित कम्पनी का नाम निर्धारित किया जाता है। कम्पनी का नाम ऐसा हो जो केन्द्रीय सरकार को राज्य में अवांछनीय नहीं हो तथा किसी पंजीकृत कम्पनी से मिलता जुलता नहीं हो । कम्पनी के नाम के लिए रजिस्ट्रार से अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त किया जाता है।
3. पार्षद सीमानियम एवं अन्तर्नियम तैयार करना-कम्पनी के प्रवर्तकों द्वारा इन दोनों प्रलेखों को निर्धारित प्रारूप में तैयार करवाकर छपवाया जाता है। सामान्यतया सभी प्रकार की कंपनियों के लिये ये दोनों प्रलेख तैयार किये जाते हैं; परन्तु अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के लिए अन्तर्नियम बनाना अनिवार्य नहीं है। सीमानियम पर निजी कम्पनी की दशा में कम से कम दो तथा सार्वजनिक कम्पनी की दशा में सात सदस्यों के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं।
4. प्राथमिक सदस्यों का निर्धारण-कम्पनी के प्रलेखों पर हस्ताक्षर करने के लिए प्राथमिक सदस्यों का निर्धारण किया जाता है। एक निजी कम्पनी की दशा में न्यूनतम सात सदस्य होने आवश्यक हैं। ये प्राथमिक सदस्य सीमानियम पर हस्ताक्षर करके यह घोषणा करते हैं कि वे कम्पनी के निर्माण के इच्छुक हैं।
5. महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों से समझौता करना-कम्पनी की स्थापना तथा कारोबार में सहायता करने वाले वैधानिक सलाहकारों, अंकेक्षकों, दलालों, वकीलों, अभिगोपकों, इंजीनियरों आदि के साथ समझौता किया जाता है।
II. प्रपत्रों को कम्पनी रजिस्ट्रार को सुपुर्द करना-जब कम्पनी के समामेलन के सम्बन्ध में उपर्युक्त कार्यवाहियाँ पूरी हो जाती हैं तो कम्पनी रजिस्ट्रार को कम्पनी के समामेलन से सम्बन्धित निम्नलिखित आवश्यक प्रलेख प्रस्तुत किये जाते हैं-
III. कम्पनी रजिस्ट्रार द्वारा प्रपत्रों की जाँच-कम्पनी रजिस्ट्रार कार्यालय में जब उपर्युक्त सभी प्रलेख प्राप्त हो जाते हैं तो वह इनकी प्राप्ति की रसीद दे देता है। रजिस्ट्रार द्वारा पंजीयन के आवेदन में दिये गये तथ्यों तथा संलग्न किये गये सभी प्रपत्रों की गहनता से जाँच की जाती है। वह सभी प्रपत्रों की विधिवत् जाँच करके यह देखता है कि समामेलन के लिए आवश्यक सभी प्रकार की वैधानिक औपचारिकताओं को पूरा कर लिया गया है और सभी आवश्यक प्रपत्र ठीक प्रकार से तैयार किये गये हैं।
IV. समामेलन का प्रमाण-पत्र निर्गमित करना-जब कम्पनी रजिस्ट्रार इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि कम्पनी के पंजीयन के लिए निर्धारित सभी कार्यवाहियाँ पू चुकी हैं और वह कम्पनी इस अधिनियम के अधीन पंजीकरण किये जाने योग्य है तो वह कम्पनी का पंजीयन कर देता है । कम्पनी का नाम कम्पनियों के रजिस्टर में लिख देता है। तत्पश्चात् कम्पनी रजिस्ट्रार अपने हस्ताक्षरों तथा कार्यालय की मोहर के साथ एक प्रमाण-पत्र जारी कर देता है, जिसे कम्पनी में समामेलन का प्रमाण-पत्र कहा जाता है। समामेलन के प्रमाण-पत्र पर कम्पनी का पूरा नाम, सदस्यों का दायित्व, प्रमाण-पत्र जारी करने की तिथि, मुद्रांक की राशि, पंजीकृत कार्यालय की सील तथा कम्पनी रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर आदि का उल्लेख होता है।
प्रश्न 4.
एक सार्वजनिक कम्पनी की पूँजी अभिदान की विधि को समझाइये।
उत्तर:
सार्वजनिक कम्पनी की पूँजी अभिदान की विधि
I. निजी स्रोतों से पूँजी अभिदान-एक सार्वजनिक कम्पनी निजी स्रोतों से भी पूँजी की व्यवस्था कर सकती है। यदि वह अपने प्रवर्तक एवं प्राथमिक संचालकों, अपने निकट के सम्बन्धियों एवं मित्रों से पूँजी प्राप्त कर लेती है तो ऐसी स्थिति में जनता को कम्पनी के अंश क्रय करने के लिए आमन्त्रित नहीं करती है तथा कम्पनी के प्रविवरण का निर्गमन भी नहीं करना पड़ता है। ऐसी दशा में कम्पनी को अपने अंश आबंटन के कम से कम तीन दिन पूर्व रजिस्ट्रार के पास स्थानापन्न प्रविवरण प्रस्तुत करना पड़ता है। इस स्थानापन्न प्रविवरण पर उन सभी संचालकों अथवा उनके अधिकृत प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं जो संचालक के रूप में नामांकित अथवा प्रस्तावित किये गये हैं।
II. जनता से पूँजी आमन्त्रित करना-जब सार्वजनिक कम्पनी जनता से पूँजी आमन्त्रित करती है तो उसे पूँजी अभिदान प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कार्य करने होते हैं-
1. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) से अनुमोदन प्राप्त करना-किसी भी सार्वजनिक कम्पनी को जनता से पूँजी आमन्त्रित करने से पहले सेबी (SEBI) की पूर्वानुमति लेनी पड़ती है।
2. प्रविवरण का पंजीयन-कम्पनी को एक निर्धारित प्रारूप में प्रविवरण तैयार करके कम्पनी रजिस्ट्रार के सम्मुख प्रस्तुत करना पड़ता है। इस प्रविवरण पर उन सभी व्यक्तियों के हस्ताक्षर होने चाहिए जिनके नाम अन्तर्नियमों में संचालकों अथवा प्रस्तावित संचालकों के रूप में दिये गये हैं।
3. अभिगोपकों, दलालों एवं बैंकरों की नियुक्ति करना-कम्पनी अंशों का निर्गमन करने से पहले अभिगोपकों, दलालों तथा बैंकरों की नियुक्ति की जाती है और इनके नाम एवं पते प्रविवरण में प्रकाशित किये जाते हैं। अंश क्रय करने वाले लोग अपने आवेदन पत्र आवेदन राशि के साथ बैंकर्स के माध निश्चित तिथि के बाद कम्पनी जनता से प्राप्त सभी आवेदन पत्रों को अपने बैंक से प्राप्त कर लेती है।
4. न्यूनतम अभिदान की प्राप्ति-सार्वजनिक कम्पनी तब तक अपने अंशों का आबंटन नहीं कर सकती है जब तक कि प्रविवरण में उल्लेखित न्यूनतम अभिदान राशि प्राप्त नहीं हो जाती है। यह न्यूनतम अभिदान की राशि प्रवर्तकों द्वारा प्रारम्भिक कार्यों, कार्यशील पूँजी तथा अन्य वित्तीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती है। 'सेबी' के दिशा-निर्देशों के अनुसार शुद्ध निर्गमन मूल्य के 90 प्रतिशत के बराबर राशि न्यूनतम अभिदान के रूप में प्राप्त करनी पड़ती है। जब तक न्यूनतम अभिदान की राशि प्राप्त नहीं हो जाती है, कम्पनी अंशों का आबंटन नहीं कर सकती है।
5. आवेदन राशि बैंक में जमा कराना-अंशों को क्रय करने के लिए जनता से प्राप्त आवेदन पत्रों के साथ आवेदन राशि भी प्राप्त होती है। इस आवेदन राशि को कम्पनी द्वारा अनुसूचित बैंक में खाता खोलकर जमा करवायी जाती है। यह राशि तब तक बैंक के खाते में जमा रहती है जब तक कि (i) कम्पनी को व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र नहीं मिल जाता है। (ii) यदि व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिया है तो न्यूनतम अभिदान की राशि प्राप्त नहीं हो जाती है। (iii) स्कन्ध विपणि से अनुमति प्राप्त कर अंशों का आवंटन नहीं कर दिया जाता है।
6. स्कन्ध विनिमय केन्द्र से अनुमति-जो सार्वजनिक कम्पनी जनता को अंशों का निर्गमन करना चाहती है, उसे अपने अंशों का क्रय-विक्रय न करने के लिए किसी मान्यता प्राप्त स्कन्ध विपणि से अनमति प्राप्त करनी होती है। इसके लिए अंशों के निर्गमन से पूर्व कम्पनी को किसी मान्यता प्राप्त स्कन्ध विपणि में आवेदन करना पड़ता है जिसमें वह अपने अंशों एवं ऋण-पत्रों के लेन-देन की इच्छा रखता है। इस स्कन्ध विनिमय केन्द्र का नाम कम्पनी के प्रविवरण में दिया जाता है।
7. अंशों का आबंटन करना-जब न्यूनतम अभिदान की राशि प्राप्त हो जाती है तो संचालक मण्डल को सभा में अंश आबंटन हेतु आवश्यक प्रस्ताव पारित किया जाता है। संचालक मण्डल द्वारा प्रस्ताव पारित करने के पश्चात् आवेदकों को अंशों का आबंटन कर दिया जाता है। अंश आबंटन के बाद इन अंशधारियों के नाम कम्पनी के सदस्य रजिस्टर में लिख दिये जाते हैं तथा उनको अंश प्रमाण-पत्र निर्गमित कर दिये जाते हैं।
8. अधिक धनराशि लौटाना-जब कम्पनी का अधिक संख्या में आवेदन प्राप्त होते हैं तो सभी आवेदनकर्ताओं को अंशों का आबंटन करना संभव नहीं है। जिन आवेदकों को अंशों का आबंटन नहीं किया जाता है उन्हें उनकी राशि आवेदकों को भी आबंटित अंशों के हिसाब से राशि काटकर शेष धनराशि लौटा दी जाती है।
9. आबंटन विवरणी प्रस्तुत करना-अंशों के आबंटन करने की तिथि से 30 दिन के भीतर कम्पनी रजिस्ट्रार के पास निर्धारित प्रारूप में आबंटन विवरणी प्रस्तुत करनी होती है।
प्रश्न 5.
एक कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियम में किन-किन बातों का उल्लेख किया जाता है, संक्षेप में बतलाइये।
उत्तर:
कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियम में उल्लेखित की जाने वाली बातें-एक कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियम में समान्यतः निम्नलिखित बातों (विषय-सामग्री) का उल्लेख किया जाता है-
प्रश्न 6.
अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के पार्षद सीमा नियम के प्रारूप का खाका तैयार कीजिए।
उत्तर:
अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के पार्षद सीमा नियम का प्रारूप
सारणी 'ए'
1. कम्पनी का नाम "................ लिमिटेड/प्राइवेट लिमिटेड" है।
2. कंम्पनी का पंजीकृत कार्यालय ................... राज्य में स्थित होगा।
3. (क) कम्पनी के समामेलन से पूरे किये जाने वाले उद्देश्य हैं-
................................................................
...............................................................
(ख) उप वाक्य 3(क) में विशिष्टीकृत किये गये उद्देश्यों की सहायता हेतु आवश्यक विषय हैं-
..............................................................
..............................................................
4. सदस्यों का दायित्व सीमित होगा तथा यह दायित्व उनके द्वारा धारित अंशों पर अदत्त राशि, यदि कोई है, तक सीमित होगा।
5. कम्पनी की अंश पूँजी ............... रुपये है जो ............... रुपये प्रत्येक वाले ................. अंशों में बँटी है।
6. हम विभिन्न व्यक्ति जिनके नाम तथा पते उल्लेखित हैं, इस पार्षद सीमा नियम के अनुसरण में एक कम्पनी बनाने के इच्छुक हैं तथा कम्पनी की अंश पूँजी में हम क्रमशः अपने नामों के सामने उल्लेखित अंशों को लेने पर सहमत हैं:
7. मैं,जिसका नाम तथा पता नीचे दिया गया है, इस पार्षद सीमा नियम के अनुसरण में एक कम्पनी बनाने का इच्छुक हूँ तथा इस कम्पनी की पूँजी के सभी अंश लेने को सहमत हूँ।
(एक व्यक्ति कम्पनी के मामले में लाग)
अभिदाता का नाम, व्यवसाय अभिदाता के हस्ताक्षर साक्षी का नाम, पता विवरण तथा व्यवसाय
8. एकल सदस्य की मृत्यु की घटना में श्री/श्रीमती .............. पुत्र/पुत्री श्री .................... निवासी ................... आयु .................... वर्ष नामांकित होंगे।
दिनांक :....................... की ................... तिथि
प्रश्न 7.
एक व्यक्ति कम्पनी पर एक लेख लिखिए।
अथवा
भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 में एक व्यक्ति कम्पनी के सम्बन्ध में क्या प्रावधान हैं? संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक व्यक्ति कम्पनी-भारत में जे.जे. ईरानी विशेषज्ञ समिति ने सन् 2005 में एक व्यक्ति कम्पनी के निर्माण की सलाह दी थी। समिति का यह सुझाव था कि छूटों के माध्यम से एक सहज कानूनी व्यवस्था वाली ऐसी इकाई उपलब्ध करायी जाये ताकि छोटे उद्यमियों को जटिल कानूनी व्यवस्था हेतु विवश नहीं होना पड़े। परिणामस्वरूप कम्पनी अधिनियम, 2013 में यह व्यवस्था की गई है कि कोई भी व्यक्ति एक एक व्यक्ति कम्पनी' बना सकता है।
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (62) के अनुसार, 'एक व्यक्ति कम्पनी का आशय ऐसी कम्पनी से है जिसका सदस्य केवल एक व्यक्ति हो।'
इस प्रकार एक सदस्य के रूप में केवल एक व्यक्ति की कम्पनी 'एक व्यक्ति वाली कम्पनी' कहलाती है। वह एक व्यक्ति ही कम्पनी का अंशधारी होगा। इस कम्पनी को एक निजी सीमित दायित्व वाली कम्पनी के सभी लाभ प्राप्त होंगे। इस कम्पनी का पृथक वैधानिक अस्तित्व होगा। व्यवसाय के दायित्वों से सदस्य निजी सम्पत्ति सुरक्षित रहेगी तथा इसे स्थायी उत्तराधिकार अर्थात शाश्वत उत्तराधिकार प्राप्त होगा।
कम्पनी (समामेलन) नियम, 2014 में एक व्यक्ति कम्पनी सम्बन्धी अग्र नियमों का उल्लेख है-