Rajasthan Board RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 3 निजी, सार्वजनिक एवं भमंडलीय उपक्रम Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Business Studies in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Business Studies Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Business Studies Notes to understand and remember the concepts easily.
बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक सरकारी कम्पनी वह कम्पनी है जिसमें सरकार की उस कम्पनी की चुकता अंश-पूँजी में हिस्सेदारी से कम नहीं है।
(क) 49%
(ख) 51%
(ग) 50%
(घ) 25%
उत्तर:
(ख) 51%
प्रश्न 2.
बहुराष्ट्रीय कम्पनी में केन्द्रीकृत नियन्त्रण इसके द्वारा किया जाता है।
(क) शाखाएँ
(ख) सहायकी
(ग) मुख्यालय
(घ) संसद।
उत्तर:
(ग) मुख्यालय
प्रश्न 3.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम वे संगठन हैं, जिनका स्वामित्व........का है।
(क) संयुक्त हिन्दू परिवार
(ख) सरकार
(ग) विदेशी कम्पनियाँ
(घ) निजी उपक्रम।
उत्तर:
(ख) सरकार
प्रश्न 4.
सार्वजनिक क्षेत्र की बीमार इकाइयों की पुनर्रचना......के द्वारा की जाती है।
(क) एम.ओ.एफ.ए.
(ख) एम.ओ.यू.
(ग) बी.आई.एफ.आर.
(घ) एन.आर.एफ.।
उत्तर:
(ग) बी.आई.एफ.आर.
प्रश्न 5.
सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में विनिवेश से तात्पर्य है।
(क) निजी/सार्वजनिक क्षेत्र को समता अंशों की बिक्री
(ख) परिचालनों को बन्द करना
(ग) नए क्षेत्रों में निवेश करना
(घ) सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के अंशों को खरीद कर।
उत्तर:
(क) निजी/सार्वजनिक क्षेत्र को समता अंशों की बिक्री
प्रश्न 6.
समता आधारित संयुक्त उपक्रम मे क्या सम्मिलित नहीं है?
(क) सहयोग समझौता
(ख) कंपनी
(ग) साझेदारी
(घ) सीमित दायित्व साझेदारी
उत्तर:
(क) सहयोग समझौता
प्रश्न 7.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की प्रमुख विशेषता हो सकती है-
(क) स्वामित्व पूर्ण रूप से राज्य या केन्द्रीय सरकार के पास होना
(ख) उपक्रम किसी मन्त्रालय के अधीन होना
(ग) संसद द्वारा पारित विशेष अधिनियम द्वारा स्थापना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 8.
सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश पर विचार किया गया-
(क) सन् 1948 की औद्योगिक नीति में
(ख) सन् 1956 की औद्योगिक नीति में
(ग) सन् 1991 की औद्योगिक नीति में
(घ) उपर्युक्त में से किसी में नहीं।
उत्तर:
(ग) सन् 1991 की औद्योगिक नीति में
प्रश्न 9.
सार्वजनिक उपक्रम है-
(क) सहकारी संगठन
(ख) संयुक्त पूँजी कम्पनी
(ग) सरकारी कम्पनी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) सरकारी कम्पनी
प्रश्न 10.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का सबसे पुराना एवं परम्परागत स्वरूप है-
(क) विभागीय उपक्रम
(ख) वैधानिक निगम
(ग) सरकारी कम्पनी
(घ) साझेदारी।
उत्तर:
(क) विभागीय उपक्रम
प्रश्न 11.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के किस स्वरूप के अंशों को भारत के राष्ट्रपति के नाम से क्रय किया जाता है-
(क) विभागीय उपक्रम
(ख) सरकारी कम्पनी
(ग) वैधानिक (लोक) निगम
(घ) सार्वजनिक कम्पनी।
उत्तर:
(ख) सरकारी कम्पनी
प्रश्न 12.
वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या है-
(क) 3
(ख) 6
(ग) 8
(घ) 17
उत्तर:
(क) 3
प्रश्न 13.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के किस स्वरूप की स्थापना विशुद्ध रूप से व्यवसाय करने व निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा करने के लिए की जाती है-
(क) विभागीय उपक्रम
(ख) वैधानिक निगम
(ग) सरकारी कम्पनी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) सरकारी कम्पनी
प्रश्न 14.
संविदात्मक संयुक्त उपक्रम में क्या सम्मिलित है-
(क) सहयोग समझौता
(ख) साझेदारी
(ग) कम्पनी
(घ) सीमित दायित्व साझेदारी
उत्तर:
(क) सहयोग समझौता
प्रश्न 15.
लघु प्रचालन आवश्यकता वाली पूँजी परियोजना हेतु उपयुक्त रहता है-
(क) विभागीय उपक्रम
(ख) सार्वजनिक निजी भागीदारी प्रतिरूप
(ग) वैधानिक निगम
(घ) सरकारी कम्पनी
उत्तर:
(ख) सार्वजनिक निजी भागीदारी प्रतिरूप
रिक्त स्थानों की पूर्ति वाले प्रश्न
निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. ...................... में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश पर विचार किया। (सन् 1956 की औद्योगिक नीति/सन् 1991 की औद्योगिक नीति)
2. ..............मन्त्रालय के एक विभाग के रूप में स्थापित किया जाता है। (लोक निगम/विभागीय उपक्रम)
3. राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से सबसे अधिक उपयुक्त स्वरूप .........................है। (सार्वजनिक निगम/विभागीय उपक्रम)
4. वर्तमान में सरकारी कम्पनी की स्थापना ............ के अन्तर्गत की जाती है। (कम्पनी अधिनियम 2013/ कम्पनी अधिनियम 1956)
5. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या.........है। (8/3)
6. सार्वजनिक निजी भागीदारी प्रतिरूप में ................ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। (निजी क्षेत्र/सार्वजनिक क्षेत्र)
7. ................. में नई आर्थिक नीतियों ने उदारीकरण, निजीकरण एवं भूमण्डलीकरण पर अधिक जोर दिया। (90 के दशक के पूर्वार्द्ध/90 के दशक के उत्तरार्द्ध)
उत्तर:
1. सन् 1991 की औद्योगिक नीति,
2. विभागीय उपक्रम,
3. विभागीय उपक्रम,
4. कम्पनी अधिनियम, 2013,
5. 3,
6. सार्वजनिक क्षेत्र,
7. 90 के दशक के उत्तरार्द्ध।
सत्य/असत्य वाले प्रश्न-
निम्न में से सत्य/असत्य कथन बतलाइये-
1. विभागीय उपक्रमों के लिए धन सरकारी खजाने से सीधे नहीं आता है। (सत्य/असत्य)
2. सार्वजनिक निगमों की स्थापना संसद के विशेष अधिनियम के द्वारा की जाती है। (सत्य/असत्य)
3. सरकारी कम्पनी की स्थापना विशुद्ध रूप से व्यवसाय करने के लिए की जाती है। (सत्य/असत्य)
4. सरकारी कम्पनियाँ लेखांकन एवं अंकेक्षण नियमों से मुक्त नहीं रहती हैं। (सत्य/असत्य)
5. विगत दस वर्षों में एम.एन.सी. ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभायी है। (सत्य/असत्य)
6. भारत में संयुक्त उपक्रमों को घरेलू आन्तरिक कम्पनी के समकक्ष रखा जाता है। (सत्य/असत्य)
7. सार्वजनिक निजी भागीदारी प्रतिरूप लघु प्रचालन आवश्यकता वाली पूँजी परियोजनाओं हेतु उपयुक्त होता है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
1. असत्य,
2. सत्य,
3. सत्य,
4. असत्य,
5. असत्य,
6. सत्य,
7. सत्य
मिलान करने वाले प्रश्न
निम्न को सुमेलित कीजिए-
उत्तर:
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
भारतीय अर्थव्यवस्था को किन क्षेत्रों में वर्गीकत किया गया है?
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था को निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है।
प्रश्न 2.
सन् 1991 की औद्योगिक नीति पिछली औद्योगिक नीतियों से किस अर्थ में भिन्न थी?
उत्तर:
सन् 1991 की औद्योगिक नीति में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र में विनिवेश पर विचार किया, निजी क्षेत्र को और अधिक स्वतन्त्रता दी गई तथा विदेशी निवेश को आमन्त्रित किया गया।
प्रश्न 3.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के प्रमुख स्वरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 4.
विभागीय संगठनों की कोई दो विशेषताएँ बतलाइए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
विभागीय उपक्रमों के दो प्रमुख दोष बतलाइए।
उत्तर:
प्रश्न 6.
वैधानिक निगम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वैधानिक निगम वे सार्वजनिक उपक्रम हैं जिनकी स्थापना संसद के विशेष अधिनियम द्वारा होती है और इस विशेष अधिनियम द्वारा ही ये शासित होते हैं।
प्रश्न 7.
वैधानिक निगमों के दो लाभ बतलाइए।
उत्तर:
प्रश्न 8.
वैधानिक निगमों की दो कमियाँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 9.
सरकारी कम्पनियों की स्थापना क्यों की जाती है?
उत्तर:
प्रश्न 10.
सन् 1991 की औद्योगिक नीति के दो प्रमुख तत्त्व लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 11.
वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 12.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के दो मुख्य प्राथमिक उद्देश्य बतलाइए।
उत्तर:
प्रश्न 13.
भारत सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय नवीनीकरण कोष के उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र की बीमार इकाइयों में सेवानिवृत्त औद्योगिक मजदूरों को सेवा में लगाये रखना या दुबारा सेवा में रख लेना तथा जो स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होते हैं उन्हें क्षतिपूर्ति का भुगतान करना।
प्रश्न 14.
समझौता विवरणिका क्या है?
उत्तर:
इस प्रणाली के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम में प्रबन्ध को अधिक स्वायत्तता प्रदान की जाती है, परन्तु निर्धारित परिणामों के लिए उसे उत्तरदायी भी ठहराया जाता है।
प्रश्न 15.
भूमण्डलीय उपक्रमों से आपका क्या तात्पर्य है?
अथवा
बहुराष्ट्रीय कम्पनी किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूमण्डलीय उपक्रम अथवा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वे विशाल औद्योगिक संगठन हैं जिनकी औद्योगिक एवं विपणन क्रियाएँ उनकी शाखाओं के तन्त्र के माध्यम से अनेक देशों में फैली हुई हैं।
प्रश्न 16.
संयुक्त उपक्रम का अर्थ बतलाइए।
उत्तर:
संयुक्त उपक्रम का अर्थ है दो या दो से अधिक व्यावसायिक इकाइयों के द्वारा एक निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संसाधनों एवं विशेषज्ञता को एक साथ मिला लेना।
प्रश्न 17.
संयुक्त उपक्रम के प्रमुख प्रकार बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 18.
समता आधारित संयुक्त उपक्रम से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
यह वह उपक्रम है जिसमें एक अलग व्यावसायिक इकाई, जिसमें दो या अधिक पक्षों का संयुक्त स्वामित्व हो, का निर्माण पक्षों के बीच समझौते से होता है।
प्रश्न 19.
पी.पी.पी. प्रतिरूप की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 20.
पी.पी.पी. प्रतिरूप का कोई एक उदाहरण बतलाइये।
उत्तर:
कुंडली मानेसर एक्सप्रेस-वे लिमिटेड।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रमुख विशेषताएं बतलाइए।(कोई चार)
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की प्रमुख विशेषताएँ-
1. सरकारी स्वामित्व-सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का सम्पूर्ण या कम-से-कम 51 प्रतिशत स्वामित्व केन्द्र सरकार या राज्य सरकार या दोनों के हाथों में होता है।
2. सरकारी नियन्त्रण-सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबन्ध एवं संचालन पर पूर्ण नियन्त्रण सरकार का ही रहता है। इन उपक्रमों में प्रबन्ध संचालक, अध्यक्ष एवं संचालक मण्डल की नियुक्ति सरकार ही करती है।
3. वित्त व्यवस्था-सार्वजनिक उपक्रमों की पूँजी सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। इनकी आय भी सरकारी खजाने में जमा होती है। यद्यपि कुछ उपक्रम जैसे लोक निगम एवं सरकारी कम्पनी अपनी वित्त व्यवस्था के लिए पूर्णतया स्वतन्त्र हैं।
4. जनता के प्रति जवाबदेय-सार्वजनिक उपक्रमों में जनता या देश का धन विनियोजित होता है। अतः ये उपक्रम अपने आर्थिक परिणामों एवं कार्य-संचालन के लिए जनता के प्रति जवाबदेय होते हैं। जनता का कोई भी प्रतिनिधि इन उपक्रमों के कार्यों एवं गतिविधियों के सम्बन्ध में संसद में प्रश्न पूछ सकता है।
प्रश्न 2.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा किन क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता प्रदान की गई?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा जिन क्षेत्रों में निवेश किया गया. वे थे-
(1) मूल क्षेत्र के लिए आधारभूत ढाँचा तैयार करना जिसके लिए भारी पूँजी निवेश की, जटिल एवं आधुनिक तकनीक कि बड़े एवं प्रभावी संगठन ढाँचों जैसे कि लौह एवं इस्पात संयन्त्र, बिजली उत्पादन संयन्त्र, नागरिक उड्डयन, रेल, पेट्रोलियम, राज्य व्यापार, कोयला आदि की आवश्यकता होती है।
(2) उस मूल क्षेत्र में निवेश करना जहाँ निजी क्षेत्र के उद्यम अपेक्षित दिशा में कार्य नहीं कर रहे हों, जैसे-रासायनिक खाद, दवा उद्योग, पेट्रो-रसायन, अखबारी कागज, मध्यम एवं भारी इंजीनियरिंग।
(3) भावी निवेश को दिशा देना जैसे परियोजना प्रबन्ध, होटल, सलाहकार एजेन्सी, वस्त्र उद्योग तथा ऑटोमोबाइल आदि।
प्रश्न 3.
सन् 1991 की नई औद्योगिक नीति के चार प्रमुख तत्त्व बतलाइए।
उत्तर:
नई औद्योगिक नीति के प्रमुख तत्त्व-
प्रश्न 4.
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के प्राथमिक उद्देश्य बतलाइए।
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के निजीकरण के उद्देश्य-
प्रश्न 5.
समझौता विवरणिका (Memorandum of Understanding) क्या है?
उत्तर:
समझौता विवरणिका एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के निष्पादन में सुधार किया जा सकता है। इसके अनुसार प्रबन्धन को अधिक स्वायत्तता प्रदान की जा सकती है परन्तु साथ ही उसे निर्धारित परिणामों के लिए उत्तरदायी भी ठहराया जाता है। वस्तुतः यह एक ऐसा ज्ञापन है जो किसी सार्वजनिक क्षेत्र की विशेष इकाई एवं उसके प्रशासनिक मन्त्रालय के बीच आपसी सम्बन्धों एवं स्वायत्तता को परिभाषित करता है।
प्रश्न 6.
भूमण्डलीय उपक्रमों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भूमण्डलीय उपक्रम-भूमण्डलीय उपक्रम या बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ वे विशाल निगम हैं, जिनका कारोबार अनेक देशों में फैला हुआ है। इनका विशाल आकार, उत्पादों की बड़ी संख्या, उन्नत तकनीक, विपणन की रणनीतियाँ एवं पूरे में फैला व्यवसाय इनकी प्रमुख विशेषता है। इस प्रकार भूमण्डलीय उपक्रम वे विशाल औद्योगिक संगठन हैं जिनकी औद्योगिक एवं विपणन क्रियाएँ उनकी शाखाओं के तन्त्र के माध्यम से अनेक देशों में फैली हुई हैं। इन शाखाओं को बहस्वामित्व विदेशी सम्बद्ध कहते हैं। ये संगठन अनेक क्षेत्रों में व्यवसाय करते हैं। इनका प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।
प्रश्न 7.
विभागीय उपक्रम तथा वैधानिक निगम में तीन अन्तर बताइये।
उत्तर:
विभागीय उपक्रम तथा वैधानिक निगम में अन्तर
अन्तर का आधार |
विभागीय उपक्रम |
वैधानिक निगम |
1. स्थापना |
किसी मंत्रालय के विभाग के रूप में स्थापना की जाती है। |
वैधानिक निगम संसद के विशेष अधिनियम द्वारा स्थापित किये जाते हैं। |
2. वित्त व्यवस्था |
इनकी वित्त व्यवस्था सीधे सरकारी खजाने से की जाती है। |
ये अपनी वित्त व्यवस्था प्रायः स्वयं करते हैं। |
3. कर्मचारी |
विभागीय उपक्रम के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी कहलाते हैं। इनकी सेवा शर्ते वही होती हैं जो सरकार के सीधे तौर पर अधीन कर्मचारियों की होती हैं। |
इनके कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं होते हैं। इनकी सेवा शर्ते निगम के अधिनियम के अनुसार होती हैं। |
प्रश्न 8.
संयुक्त उपक्रम का अर्थ बतलाइए।
उत्तर:
संयुक्त उपक्रम का अर्थ-व्यापक अर्थ में संयुक्त उपक्रम का अर्थ है दो या दो से अधिक व्यावसायिक इकाइयों के द्वारा एक निश्चत उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संसाधनों एवं विशेषज्ञता को एक-साथ मिला लेना। इसमें व्यावसायिक जोखिमों एवं प्रतिफल को भी परस्पर आपस में बाँट लिया जाता है। ऐसे उपक्रमों की स्थापना सामान्यतः व्यवसाय का विस्तार करने, नये उत्पादों का विकास करने या फिर नये बाजारों, विशेषकर अन्य देशों के बाजारों में कार्य करना आदि के लिए की जाती है । वस्तुतः संयुक्त उपक्रम में दो या दो से अधिक (जनक) कम्पनियाँ एक नई इकाई, जिस पर उन सभी का नियन्त्रण हो, का निर्माण करने के लिए पूँजी, तकनीकी, मानव संसाधन, जोखिम एवं प्रतिफल में हिस्सा बँटाने के लिए सहमत होते हैं।
प्रश्न 9.
भारत में संयुक्त उपक्रम कम्पनी की स्थापना किस प्रकार होती है?
उत्तर:
भारत में संयुक्त उपक्रम कम्पनी की स्थापना निम्न तरीकों से हो सकती है-
(1) दो पक्ष (व्यक्ति या कम्पनियाँ) भारत में संयुक्त उपक्रम की स्थापना कर सकते हैं। इसमें एक पक्ष अपना व्यवसाय नई कम्पनी को हस्तान्तरित कर सकता है। इसके लिए नई कम्पनी अंश जारी करती है जिन्हें वह पक्ष स्वीकार कर लेता है। दूसरा पक्ष इनको नकद खरीदता है।
(2) दोनों पक्ष संयुक्त उपक्रम कम्पनी के अंशों को आपस में पूर्व निश्चित अनुपात में नकद खरीद कर नया व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
(3) एक विद्यमान भारतीय कम्पनी का प्रवर्तक अंशधारक एवं कोई दूसरा पक्ष (व्यक्ति या कम्पनी), उस कम्पनी के व्यवसाय को मिलकर चलाने के लिए भागीदार बन सकते हैं। दूसरा पक्ष प्रवासी अथवा अप्रवासी हो सकता है तथा वह अंशों को नकद भुगतान कर प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 10.
संविदात्मक संयुक्त उपक्रम के आवश्यक तत्व बतलाइये।
उत्तर:
संविदात्मक संयुक्त उपक्रम के आवश्यक या मुख्य तत्त्व-संविदात्मक संयुक्त उपक्रम के प्रमुख या आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 11.
समता आधारित संयुक्त उपक्रम की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
समता आधारित संयुक्त उपक्रम की प्रमुख विशेषताएँ-
दीर्घउत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
सार्वजनिक उपक्रम की कमियों को दूर करने के उपाय बतलाइये।
उत्तर:
सार्वजनिक उपक्रम की कमियों को दूर करने के उपाय-
सार्वजनिक उपक्रमों की कमियों को दूर करने के लिए निम्न कुछ उपाय किये जा सकते हैं-
प्रश्न 2.
विभागीय उपक्रम से आप क्या समझते हैं? इसके लाभ एवं सीमाएँ बतलाइए।
उत्तर:
विभागीय उपक्रम का अर्थ-सार्वजनिक क्षेत्र के इस सबसे पुराने एवं परम्परागत स्वरूप में उपक्रम को किसी मन्त्रालय के एक विभाग के रूप में स्थापित किया जाता है एवं यह मन्त्रालय का ही एक भाग या फिर उसका विस्तार माना जाता है। ये उपक्रम सरकारी स्वामित्व में होते हैं। इनके लिए धन सरकारी खजाने से आता है, अर्जित राजस्व सरकारी खजाने में ही जमा होता है। इसका नियोजन सरकार के द्वारा बजट में किया जाता है।
सरकार इन्हीं विभागों के माध्यम से कार्य करती है तथा ये सरकार की गतिविधियों के महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये सरकार के अधिकारियों के माध्यम से कार्य करते हैं तथा इनके कर्मचारी सरकारी कर्मचारी होते हैं जिन पर सरकारी सेवा नियम लागू होते हैं। ये अपने कार्यों के लिए सम्बन्धित मन्त्रालय के प्रति जवाबदेय होते हैं। इनका प्रबन्धन सीधे सम्बन्धित मन्त्रालय द्वारा किया जाता है। विभागीय उपक्रम के प्रमुख उदाहरण हैं डाक एवं तार विभाग, रेलवे, रक्षा विभाग आदि।
लाभ-विभागीय उपक्रमों के कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
सीमाएँ-विभागीय उपक्रमों की कुछ प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 3.
वैधानिक निगम क्या हैं? इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
लोक निगमों से आपका क्या तात्पर्य है? लोक निगमों के लक्षण बतलाइए।
उत्तर:
वैधानिक (लोक) निगमों का अर्थ-वैधानिक या लोक निगम वे सार्वजनिक उपक्रम हैं जिनकी स्थापना संसद के विशेष अधिनियम के द्वारा ही की जाती है। यह विशेष अधिनियम ही ऐसे निगमों के अधिकार एवं कार्य, इनके कर्मचारियों से सम्बन्धित नियम एवं कानून तथा सरकार के विभिन्न विभागों से इसके सम्बन्धों को परिभाषित करता है अर्थात् ये निगम इन विशेष अधिनियमों से ही शासित होते हैं।
लोक निगम वित्त मामलों में स्वतन्त्र होते हैं, निर्धारित क्षेत्र पर तथा विशेष प्रकार की वाणिज्यिक क्रियाओं पर इनका स्पष्ट नियन्त्रण रहता है। इन निगमों के पास जहाँ एक ओर सरकारी अधिकार होते हैं वहीं दूसरी तरफ निजी उपक्रमों के समान ही परिचालन में पर्याप्त लचीलापन होता है।
विशेषताएँ या लक्षण-वैधानिक निगमों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 4.
लोक निगमों के गुण एवं दोष बतलाइए।
उत्तर:
लोक निगमों के गुण-लोक निगमों के कुछ प्रमुख गुण निम्नलिखित बतलाये जा सकते हैं-
1. स्वतन्त्र-लोक निगम अपने कार्य-संचालन में पूर्णतया स्वतन्त्र होते हैं। इनके कार्य-संचालन में पर्याप्त लोच भी पायी जाती है। सरकार के कायदे-कानून इन पर लागू नहीं होते हैं।
2. वित्तीय मामलों में सरकार का हस्तक्षेप नहीं-लोक निगमों के लिए धन की व्यवस्था केन्द्रीय बजट में नहीं होती इसीलिए इनकी आय एवं प्राप्तियों पर सरकार का कोई अधिकार भी नहीं होता है। इस प्रकार इन निगमों के वित्तीय मामलों में सरकार का हस्तक्षेप नहीं रहता है।
3. पर्याप्त स्वायत्तता-बँकि ये स्वायत्त संगठन होते हैं इसलिए ये अधिनियम द्वारा प्रदत्त अधिकारों की परिधि में रहकर ही अपनी नीतियों एवं प्रक्रियाओं का निर्धारण करते हैं, तथापि कुछ मुख्य विषयों पर सम्बन्धित मन्त्रालय की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होता है।
4. आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण उपकरण-लोक निगम देश के आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण उपकरण माने जाते हैं। इनके पास एक ओर तो सरकार के अधिकार होते हैं तो दूसरी तरफ निजी उपक्रम की पहल क्षमता भी होती है।
5. कुशल प्रबन्धकों तथा विशेषज्ञों की सेवाओं का लाभ-लोक निगम वित्तीय मामलों में स्वतन्त्र रहने के कारण कुशल प्रबन्धकों तथा विशेषज्ञों की सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।
6. स्थायित्व एवं निरन्तरता-लोक निगमों का पृथक् वैधानिक अस्तित्व होने के कारण उपक्रम में स्थायित्व एवं निरन्तरता बनी रहती है।
7. सार्वजनिक सम्पत्ति का दुरुपयोग नहीं-लोक निगमों पर भी संसद का पर्याप्त नियन्त्रण रहता है जिससे सार्वजनिक सम्पत्ति के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
दोष-लोक निगम स्वरूप के कुछ प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 5.
सरकारी कम्पनी से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ बतलाइए।
उत्तर:
सरकारी कम्पनी का अर्थ-सरकारी कम्पनियों की स्थापना भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत की जाती है। इनका पंजीकरण एवं संचालन कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार होता है। इनकी स्थापना विशुद्ध रूप से व्यवसाय करने के लिए की जाती है। ये निजी कम्पनियों से प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में होती हैं।
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(45) के अनुसार एक सरकारी कम्पनी व कम्पनी है जिसकी कम से कम 51 प्रतिशत चुकता अंश पूँजी या केन्द्र सरकार के पास है या फिर राज्य सरकारों के पास है या फिर कुछ केन्द्र सरकार के पास और शेष एक या सबसे अधिक राज्य सरकारों के पास है तथा उसमें वह कम्पनी भी सम्मिलित है जो किसी सरकारी कम्पनी की सहायक कम्पनी है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सरकारी कम्पनी की चुकता पूँजी पर सरकार का नियन्त्रण होता है। चूंकि सरकार ही इन कम्पनियों की बड़ी अंश धारक होती है। इनके प्रबन्ध पर भी सरकार का ही नियन्त्रण रहता है। इसीलिए इन्हें सरकारी कम्पनी कहा जाता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सरकारी कम्पनियों के अंशों को भारत के राष्ट्रपति के नाम से ही क्रय किया जाता है।
विशेषताएँ-सरकारी कम्पनी की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 6.
सरकारी कम्पनी के लाभ-दोष बतलाइए।
उत्तर:
सरकारी कम्पनी के लाभ-सरकारी कम्पनी के प्रमख लाभ निम्नलिखित हैं-
दोष-सरकारी कम्पनी के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
1. प्रत्यक्ष रूप से संसद के प्रति जवाबदेय नहीं-सरकारी कम्पनियों का एक दोष यह है कि ये कम्पनियाँ अपने संवैधानिक दायित्व से बचती हैं जबकि सरकारी वित्त वाली कम्पनी होने के कारण इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। ये संसद के प्रति प्रत्यक्ष रूप से जवाबदेय नहीं होती हैं।
2. प्रबन्ध एवं प्रशासन सरकार के हाथ में-सरकारी कम्पनियों में एकमात्र अंशधारक सरकार ही होती है। सरकार ही इनका प्रबन्ध एवं प्रशासन करती है। इस प्रकार अन्य कम्पनियों के समान पंजीकृत होने के बावजूद कम्पनी होने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
3. सरकारी हस्तक्षेप-व्यवहार में सरकारी कम्पनी की स्वायत्तता एवं लोच मिथ्या है क्योंकि कम्पनी के संचालकों तथा अधिकारियों की नियुक्ति में सरकार का हस्तक्षेप रहता है।
4. गोपनीयता-सरकारी कम्पनियाँ खुलेआम कार्य नहीं करतीं। इसी गोपनीयता के कारण जनता में इनके प्रति सन्देह बना रहता है।
प्रश्न 7.
संयक्त उपक्रम से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमख प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त उपक्रम का अर्थ-जब निजी, सरकारी एवं विश्व का कोई भी व्यावसायिक संगठन यदि पारस्परिक लाभ के लिए अन्य व्यावसायिक संगठनों से हाथ मिलाकर संचालित होता है तो यह संयुक्त उपक्रम कहलाता है। वस्तुतः जब दो व्यावसायिक इकाइयाँ समान उद्देश्य एवं पारस्परिक लाभ के लिए मिलती हैं तो संयुक्त उपक्रम का उदय होता है। ये दो भिन्न देशों की दो व्यावसायिक इकाइयों के बीच समझौते का परिणाम हो सकते हैं। व्यापक अर्थ में संयुक्त उपक्रम का अर्थ दो या दो से अधिक व्यावसायिक इकाइयों द्वारा एक निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संसाधनों एवं विशेषज्ञता को एक साथ मिला लेने से है।
इसमें व्यवसाय की जोखिमों एवं प्रतिफल को आपस में बाँट लिया जाता है। व्यवसाय का विस्तार करने, नये उत्पादों का विकास या फिर नये बाजारों विशेषकर अन्य देशों के बाजारों में कार्य करने के लिए इन उपक्रमों की स्थापना की जाती है। वर्तमान में इन उपक्रमों की स्थापना एक आम बात होती जा रही है। सार रूप में कहा जा सकता है कि संयुक्त उपक्रम में दो या अधिक कम्पनियाँ या व्यावसायिक संगठन एक नई इकाई जिसमें उन सभी का नियन्त्रण हो, का निर्माण करने के लिए नी, तकनीकी, मानव संसाधन, जोखिम एवं प्रतिफल में हिस्सा बँटाने के लिए सहमत होते हैं।
संयुक्त उपक्रमों के प्रकार-
1. संविदायुक्त संयुक्त उपक्रम-संविदायुक्त संयुक्त उपक्रम में संयुक्त स्वामित्व वाली इकाई का निर्माण नहीं करके केवल साथ-साथ कार्य करने का समझौता किया जाता है। वे व्यवसाय में स्वामित्व को नहीं बाँटते, बल्कि संयुक्त उपक्रम में नियन्त्रण के कुछ तत्त्वों का उपयोग करते हैं। संविदायुक्त संयुक्त उपक्रम में इकाइयों के बीच फ्रेंचाइजी सम्बन्ध होते हैं। ऐसे सम्बन्ध के मुख्य तत्त्व निम्न प्रकार के होते हैं-
2. समता आधारित संयुक्त उपक्रम-यह वह उपक्रम होता है जिसमें एक अलग व्यावसायिक इकाई जिसमें दो अथवा अधिक पक्षों का संयुक्त स्वामित्व हो, का निर्माण पक्षों के बीच समझौते से होता है। समता आधारित संयुक्त उपक्रम कम्पनी, साझेदारी फर्म, ट्रस्ट, सीमित दायित्व साझेदारी फर्म, उपक्रम, पूँजी निधि आदि स्वरूपों में हो सकते हैं। इसमें या तो ' एक नई इकाई बनाने का या वर्तमान इकाई में किसी एक पक्ष द्वारा स्वामित्व ग्रहण करने का समझौता होता है। संबद्ध पक्षों द्वारा सहभाजित स्वामित्व होता है, सहभाजित प्रबन्धन होता है। पूँजी निवेश तथा अन्य वित्तीय व्यवस्थाओं के बारे में सहभाजित उत्तरदायित्व होता है। साथ ही समझौते के अनुसार सहभाजित लाभ और हानि होती है।
प्रश्न 8.
सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) के बारे में विस्तार से अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक निजी भागीदारी (पी.पी.पी.)-सार्वजनिक निजी भागीदारी प्रतिरूप में सार्वजनिक तथा निजी भागीदारों के बीच सर्वोत्कृष्ट तरीके से कार्यों, दायित्वों तथा जोखिमों का बँटवारा किया जाता है। इस प्रतिरूप में सार्वजनिक भागीदारों में सरकारी इकाइयाँ जैसे मंत्रालय, विभाग, नगरनिगम अथवा सरकारी स्वामित्व वाले उपक्रम आदि मुख्य रूप से होते हैं जबकि निजी भागीदारों में तकनीकी अथवा वित्तीय विशेषज्ञता वाले व्यवसायी अथवा निवेशकों सहित स्थानीय या विदेशी भागीदार सम्मिलित होते हैं। यथार्थ में, सार्वजनिक निजी भागीदारी में गैर-सरकारी संगठन तथा समुदाय आधारित संगठन, जो परियोजना से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने वाले पक्षकार (हितधारी) हों, वे सम्मिलित होते हैं। इसीलिए इस प्रतिरूप को आधारभूत संरचना एवं अन्य सेवाओं के सन्दर्भ में सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की इकाइयों के बीच एक सम्बन्ध के रूप में परिभाषित किया जाता है।
पी.पी.पी. प्रतिरूप में सार्वजनिक क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह क्षेत्र यह सुनिश्चित करता है कि इस प्रतिरूप द्वारा सामाजिक उत्तरदायित्व निभाये जा रहे हैं, क्षेत्र सुधार व सार्वजनिक निवेश सफलता से पूरे किये जा रहे हैं। इस प्रकार पी.पी.पी. में सरकार का योगदान निवेश हेतु पूँजी तथा सम्पत्तियों के हस्तान्तरण के रूप में होता है। यह सामाजिक उत्तरदायित्व, पर्यावरण जागरूकता और स्थानीय जानकारी के अतिरिक्त भागीदारी की सहायता करता है। इस प्रतिरूप में निजी क्षेत्र प्रचालनों में अपनी विशेषज्ञता का प्रयोग करने, कार्यों का प्रबन्धन करने तथा प्रभावी तरीके से व्यवसाय संचालन हेतु नवप्रवर्तन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में ऊर्जा उत्पादन एवं वितरण, जल एवं सफाई व्यवस्था, कचरा निस्तारण, पाइप लाइनें, अस्पताल, विद्यालय भवन व शिक्षण संस्थाएँ, स्टेडियम, हवाई यातायात नियन्त्रण, जेलें, रेलवे, सड़कें, बिलिंग व अन्य सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली तथा आवास आदि क्षेत्रों में पी.पी.पी. प्रतिरूप लागू किया जा रहा है। वास्तव में यह प्रतिरूप वर्तमान में लघु प्रचालन आवश्यकता वाली पूँजी परियोजना के लिए उपयुक्त माना जा रहा है। यह उन पूँजी परियोजनाओं के लिए भी उपयुक्त माना जाता है, जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र प्रचालन उत्तरदायित्व अपने पास रखना चाहता है।
पी.पी.पी. प्रतिरूप का एक गुण यह होता है इसमें अभिकल्प तथा निर्माण जोखिम का हस्तान्तरण सम्भव होता है तथा परियोजना के तेजी से आगे बढ़ने की भी सम्भावना रहती है। लेकिन इस प्रतिरूप में सार्वजनिक तथा निजी भागीदारों के बीच पर्यावरणीय मुद्दों पर मतभेद पैदा हो सकते हैं। ये प्रतिरूप निजी पूँजी को भी आसानी से आकर्षित नहीं करते हैं।