Rajasthan Board RBSE Class 11 Business Studies Important Questions Chapter 1 व्यवसाय, व्यापार और वाणिज्य Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौनसी क्रिया व्यावसायिक गतिविधि का चरित्र-चित्रण नहीं करती है-
(क) वस्तुओं एवं सेवाओं का सृजन
(ख) जोखिम की विद्यमानता
(ग) वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री अथवा विनिमय
(घ) वेतन अथवा मजदूरी।
उत्तर:
(घ) वेतन अथवा मजदूरी।
प्रश्न 2.
तेल शोधक कारखाने तथा चीनी मिलें किस उद्योग की विस्तृत श्रेणी में आती हैं-
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) किसी में नहीं
उत्तर:
(ख) द्वितीयक
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसे व्यापार के सहायक की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है-
(क) खनन
(ख) बीमा
(ग) भण्डारण
(घ) यातायात
उत्तर:
(क) खनन
प्रश्न 4.
ऐसे धन्धे को किस नाम से पुकारते हैं जिसमें लोग नियमित रूप से दूसरों के लिए कार्य करते हैं और बदले में पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं?
(क) व्यवसाय
(ख) रोजगार
(ग) पेशा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) रोजगार
प्रश्न 5.
ऐसे उद्योगों को क्या कहते हैं जो दूसरे उद्योगों को सहायक सेवा सुलभ कराते हैं?
(क) प्राथमिक उद्योग
(ख) द्वितीयक उद्योग
(ग) तृतीयक उद्योग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) तृतीयक उद्योग
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसको व्यावसायिक उद्देश्य की श्रेणी में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता-
(क) विनियोग
(ख) उत्पादकता
(ग) नवप्रवर्तन
(घ) लाभदायकता
उत्तर:
(क) विनियोग
प्रश्न 7.
व्यावसायिक जोखिम होने की सम्भावना नहीं होती है-
(क) सरकारी नीति में परिवर्तन से
(ख) अच्छे प्रबन्ध से
(ग) कर्मचारियों की बेईमानी से
(घ) बिजली गुल होने से
उत्तर:
(ख) अच्छे प्रबन्ध से
प्रश्न 8.
एक आर्थिक क्रिया है-
(क) प्यारवश व सहानुभूतिवश की जाने वाली क्रिया
(ख) देशभक्ति के लिए की जाने वाली क्रिया
(ग) जीवन-यापन के लिए धन कमाने के लिए की गई क्रिया
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(ग) जीवन-यापन के लिए धन कमाने के लिए की गई क्रिया
प्रश्न 9.
उद्योग में सम्मिलित किया जाता है-
(क) वस्तुओं का उपभोग
(ख) वस्तुओं का क्रय-विक्रय
(ग) वस्तुओं का संग्रहण
(घ) वस्तुओं का निर्माण
उत्तर:
(घ) वस्तुओं का निर्माण
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में सही है-
(क) व्यापार वाणिज्य का एक अंग है
(ख) व्यवसाय व्यापार का अंग है
(ग) वाणिज्य व्यापार का एक अंग है
(घ) व्यापार और वाणिज्य एक-दूसरे के अंग हैं।
उत्तर:
(क) व्यापार वाणिज्य का एक अंग है
प्रश्न 11.
जोखिम का सम्बन्ध किस व्यावसायिक घटना से है-
(क) उपभोक्ताओं की पसन्द या फैशन में परिवर्तन
(ख) उत्पादन विधियों में परिवर्तन
(ग) बाजार प्रतिस्पर्धा
(घ) उपर्युक्त सभी से
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी से
प्रश्न 12.
प्राथमिक उद्योग का सम्बन्ध है-
(क) प्राकृतिक संसाधनों के खनन एवं उत्पादन तथा पशु-धन वनस्पति के विकास से
(ख) भवन, बाँध, पुल आदि के निर्माण से
(ग) कच्चे माल के विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजर कर पक्के माल के निर्माण से
(घ) विभिन्न पुों को जोड़कर उत्पाद तैयार करने से।
उत्तर:
(क) प्राकृतिक संसाधनों के खनन एवं उत्पादन तथा पशु-धन वनस्पति के विकास से
प्रश्न 13.
माध्यमिक या द्वितीय उद्योग में सम्मिलित नहीं है-
(क) विश्लेषणात्मक उद्योग
(ख) निष्कर्षण उद्योग
(ग) प्रक्रियायी उद्योग
(घ) सम्मिलित उद्योग
उत्तर:
(ख) निष्कर्षण उद्योग
रिक्त स्थानों की पूर्ति वाले प्रश्न
निम्न रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. प्राचीनकाल में ..................... ने मुद्रा एवं उधार साख पत्रों के माध्यम से घरेलू और विदेशी व्यापार के वित्त पोषण में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। (स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली/हुण्डी और चित्ति)
2. .................... प्राचीन काल में लोगों के आर्थिक जीवन के महत्त्वपूर्ण घटक थे। (व्यापार/कृषि और पशुपालन)
3. भारत सरकार द्वारा ..................... को मेक इन इण्डिया की पहल की गई। (25 सितम्बर, 2014/25 सितम्बर, 2015)
4. आजादी के बाद भारत ..................... में आर्थिक उदारीकरण पर सहमत हुआ। (सन् 1992/सन् 1991)
5. ...................... उद्योग विभिन्न संघटकों को एकत्रित करके प्रक्रिया द्वारा एक नये उत्पाद का रूप देते हैं। (निष्कर्षण/ कृत्रिम)
6. एक पुराना सिद्धान्त है जोखिम नहीं तो .................... नहीं। (हानि/लाभ)
उत्तर:
1. स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली,
2. कृषि और पशुपालन,
3. 25 सितम्बर, 2014
4. सन् 1991,
5. कृत्रिम,
6. लाभ
सत्य/असत्य वाले प्रश्न
निम्न में से सत्य/असत्य कथन बतलाइये-
1. प्राचीन भारत में ताम्रलिप्ति पश्चिमी और सुदूरपूर्व के साथ समुद्री और थलमार्गों से जुड़े सबसे बड़े बन्दरगाहों में से एक था।
2. प्राचीन भारत में जगत सेठ जैसी संस्था का विकास हुआ था।
3. भारतीय अर्थव्यवस्था आज दुनिया की सबसे तेज बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक नहीं है।
4. एक गृहिणी द्वारा अपने परिवार के लिए भोजन पकाना एक आर्थिक क्रिया है।
5. व्यवसाय की व्युत्पत्ति व्यस्त रहने से हुई है।
6. सहायक क्रियाएँ पूरे व्यवसाय का, विशेष रूप से वाणिज्य का अभिन्न अंग है।
7. तृतीयक उद्योग प्राथमिक तथा द्वितीयक उद्योगों को सहायक सेवाएँ सुलभ कराने में संलग्न नहीं रहते हैं।
8. व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है।
उत्तर:
1. सत्य,
2. सत्य,
3. असत्य,
4. असत्य,
5. सत्य,
6. सत्य,
7. असत्य,
8. सत्य
मिलान करने वाले प्रश्न
निम्न को सुमेलित कीजिए-
उत्तर:
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार क्या था?
उत्तर:
भूमिगत और सामुद्रिक अन्तर्देशीय व विदेशी व्यापार तथा वाणिज्य ही प्रमुख आधार था।
प्रश्न 2.
प्राचीन भारत में लोगों की अतिरिक्त आय के साधन बतलाइये (कोई दो)।
उत्तर:
प्रश्न 3.
हुण्डी के कोई दो लक्षण बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 4.
पन्द्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दक्षिणी या कोरोमण्डल तट पर प्रमुख बन्दरगाह कौनसा था?
उत्तर:
पुलिकट प्रमुख बन्दरगाह था।
प्रश्न 5.
प्राचीन भारत में प्रमुख व्यापारिक केन्द्र कौन-कौन से थे? (कोई चार)
उत्तर:
प्रश्न 6.
प्राचीन भारत में निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ कौन-कौन सी थीं?
उत्तर:
मसाले, गेहूँ, चीनी, नील, अफीम, तिल का तेल, कपास, रेशम, जीवित मवेशी और पशु-उत्पाद।
प्रश्न 7.
प्राचीन भारत में प्रमुख आयात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ कौन-कौन सी थीं?
उत्तर:
घोड़े, पशु-उत्पाद, चीनी, सिल्क, मणि, सोना, चाँदी, टिन, ताँबा, सीसा, माणिक, पुखराज, मूंगा, काँच और एम्बर आदि।
प्रश्न 8.
भारत सरकार की हाल की पहलों में मुख्य-मुख्य क्या हैं?
उत्तर:
'मेक इन इण्डिया', 'स्किल इण्डिया', 'डिजिटल इण्डिया' तथा नवनिर्मित आयात और व्यापार विदेशी व्यापार नीति।
प्रश्न 9.
'मेक इन इंडिया' पहल का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
मेक इन इंडिया के मुख्य उद्देश्यों में अर्थव्यवस्था के मुख्य उद्देश्यों में अर्थव्यवस्था के 25 चयनित क्षेत्रों में रोजगार सृजन एवं कौशल विकास को बढ़ावा देना है।
प्रश्न 10.
आर्थिक क्रियाएँ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
आर्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं, जिनके द्वारा हम अपने जीवन-यापन के लिए धन कमाते हैं।
प्रश्न 11.
आर्थिक क्रियाओं के कोई दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 12.
अनार्थिक क्रियाओं के कोई दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 13.
आर्थिक क्रियाओं को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है? नाम लिखिए।
उत्तर:
तीन श्रेणियों में-
प्रश्न 14.
व्यवसाय क्या है?
उत्तर:
व्यवसाय एक ऐसी आर्थिक क्रिया है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन व विक्रय तथा सेवाओं को प्रदान करना सम्मिलित है जिनका उद्देश्य लाभ कमाते हुए सामाजिक सन्तुष्टि प्रदान करना है।
प्रश्न 15.
व्यवसाय की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 16.
व्यवसाय के संचालन हेतु उद्यमी कौन-कौनसे कार्य करता है?
उत्तर:
प्रश्न 17.
विपणन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
विपणन का तात्पर्य उन सभी क्रियाओं से है, जो वस्तुओं तथा सेवाओं के आदान-प्रदान से, उत्पादक से उन व्यक्तियों तक, उस स्थान व समय पर तथा उस कीमत पर उपलब्ध कराने से है जो वे चुकाने को तैयार हों एवं जिन्हें उनकी आवश्यकता हो।
प्रश्न 18.
जोखिम क्या है?
उत्तर:
जोखिम एक अनिश्चितता है, जो व्यावसायिक हानि की ओर इंगित करती है।
प्रश्न 19.
पेशे से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पेशे में वे क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनमें विशेष ज्ञान व दक्षता की आवश्यकता होती है और व्यक्ति इनका प्रयोग अपने धन्धे में आय अर्जन हेतु करता है।
प्रश्न 20.
रोजगार से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रोजगार का अभिप्राय उन धंधों से है जिनमें लोग नियमित रूप से दूसरों के लिए कार्य करते हैं और बदले में पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 21.
व्यवसाय में क्या-क्या सम्मिलित हैं?
उत्तर:
व्यवसाय में उत्पत्ति, निष्कर्षण, निर्माणी व सेवा उद्योग तथा वाणिज्य अर्थात् व्यापार एवं व्यापार की सहायक क्रियाएँ सम्मिलित हैं।
प्रश्न 22.
वाणिज्य से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वाणिज्य से अभिप्राय उन क्रियाओं से है जो वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय में आने वाली व्यक्ति, स्थान, समय, वित्त एवं सूचना सम्बन्धी बाधाओं को दूर करती है।
प्रश्न 23.
वाणिज्य की कोई दो विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 24.
पेशे के दो प्रमुख लक्षण बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 25.
उद्योग से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उद्योग से तात्पर्य उन आर्थिक क्रियाओं से है, जिनका सम्बन्ध संसाधनों को यान्त्रिक उपकरणों एवं तकनीकी कौशल आदि के द्वारा उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तन करना है।
प्रश्न 26.
प्राथमिक उद्योगों को वर्गीकृत कर दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 27.
द्वितीयक या माध्यमिक उद्योग के कोई दो उदाहरण बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 28.
निष्कर्षण उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति की गोद में से मानवीय प्रयत्नों द्वारा प्राप्त की गई वस्तुएँ जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग में लायी जायें, निष्कर्षण उद्योग कहलाते हैं।
प्रश्न 29.
तृतीयक या सेवा उद्योग से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सेवा उद्योग वे उद्योग हैं जो उद्योगों को सहायक सेवाएँ सुलभ कराने में संलग्न रहते हैं तथा व्यापारिक क्रियाकलापों को सम्पन्न कराते हैं।
प्रश्न 30.
आन्तरिक या देशी व्यापार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह व्यापार जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय एक ही देश की भौगोलिक सीमाओं के अन्दर किया जाता है, आन्तरिक या देशी व्यापार कहा जाता है।
प्रश्न 31.
बाह्य या विदेशी व्यापार किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाह्य या विदेशी व्यापार वह व्यापार है जिसमें वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय दो या दो से अधिक देशों के व्यक्तियों या संस्थाओं के बीच किया जाता है।
प्रश्न 32.
पुनर्निर्यात व्यापार किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब वस्तुओं का आयात किसी अन्य देश को निर्यात करने के लिए किया जाता है, तो उसे पुनर्निर्यात व्यापार कहते हैं।
प्रश्न 33.
व्यापार की सहायक क्रियाओं की उपयोगिता बतलाइये।
उत्तर:
व्यापार की सहायक क्रियाएँ माल के स्थानान्तरण, संग्रहण, वित्तीयन, जोखिम से सुरक्षा एवं माल की बिक्री संवर्द्धन को सम्भव बनाती हैं।
प्रश्न 34.
व्यवसाय के संचालन हेतु उद्यम कौन-कौन से कार्य करते हैं?
उत्तर:
प्रश्न 35.
मानव संसाधन प्रबन्धन क्या है?
उत्तर:
मानव संसाधन प्रबन्धन उद्यम में विभिन्न प्रकार के कार्यों को पूरा करने का कौशल रखने वाले व्यक्तियों की उपलब्धता को सुनिश्चित करता है।
प्रश्न 36.
व्यापार की सहायक क्रियाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
परिवहन एवं सम्प्रेषण, बैंकिंग एवं वित्त, बीमा, भण्डारण, विज्ञापन, पैकेजिंग आदि।
प्रश्न 37.
लाभ व्यवसाय का आवश्यक उद्देश्य क्यों माना जाता है? दो कारण बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 38.
नव प्रवर्तन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
नव प्रवर्तन से तात्पर्य नये विचारों का समावेश या जिस विधि से कार्य किया जाता है उसमें कुछ नवीनता लाने से है।
प्रश्न 39.
व्यावसायिक जोखिम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक जोखिम से आशय अपर्याप्त लाभ या फिर हानि होने की उस सम्भावना से है जो नियन्त्रण से बाहर अनिश्चितताओं या आकस्मिक घटनाओं के कारण होती है।
प्रश्न 40.
व्यावसायिक जोखिम उत्पन्न होने के कोई चार आर्थिक कारण लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 41.
व्यावसायिक जोखिमों से बचने के कोई दो उपाय बतलाइये।
उत्तर:
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्राचीन भारत में स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली क्यों अपनायी गई थी?
उत्तर:
प्राचीन भारत में स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली अपनाई गई क्योंकि इस प्रणाली ने मुद्रा उधार एवं साख पत्रों के माध्यम से घरेलू और विदेशी व्यापार के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। बैंकिंग के विकास के साथ लोगों ने बैंकरों के रूप में काम करने वाले व्यक्तियों या सेठों के पास मूल्यवान एवं कीमती धातुओं को जमा करना शुरू किया और यह पैसा निर्माताओं को अधिक वस्तुओं का उत्पादन करने हेतु संसाधनों की आपूर्ति करने के लिए एक साधन बन गया है।
प्रश्न 2.
प्राचीन भारत में कौन-कौनसी हुण्डियाँ मुख्य रूप से प्रचलन में थीं और उनके क्या कार्य थे?
उत्तर:
प्राचीन भारत में प्रचलित मुख्य-मुख्य हुण्डियाँ और उनके कार्य
प्रश्न 3.
'मर्चेण्ट कारपोरेशन' पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मर्चेण्ट कारपोरेशन-प्राचीनकाल में व्यापारिक समुदाय ने गिल्ड से अपनी प्रतिष्ठा और ताकत प्राप्त की, जो अपने हितों की रक्षा के लिए स्वायत्त निगम थे। ये निगम औपचारिक रूप से संगठित हुए, अपने स्वयं के सदस्यों के लिए नियम और व्यावसायिक आचार-संहिता बनायी जिसे राजा भी स्वीकार करते और सम्मान करते थे।
राजा या कर संग्रहकों से गिल्ड प्रमुख का सीधा व्यवहार हुआ करता था तथा वे अपने साथी व्यापारियों की तरफ से निश्चित राशि पर मार्केट टोल का समाधान कर लिया करते थे। गिल्ड व्यवसायी धार्मिक हितों के संरक्षक के रूप में कार्य करते थे। अपने सदस्यों पर निगम कर लगाकर उन्होंने मन्दिर निर्माण का कार्य किया। इस प्रकार मर्चेन्ट कॉरपोरेशन बड़े व्यवसायों को समाज में सत्ता हासिल करने में सक्षम बनाया।
प्रश्न 4.
प्राचीन भारत के किन्हीं दो प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए।
उत्तर:
1. तक्षशिला-यह भारत और मध्य एशिया के बीच महत्त्वपूर्ण भूमि-मार्ग पर एक प्रमुख केन्द्र के रूप में कार्य करता था। यह वित्तीय वाणिज्यिक बैंकों का शहर भी था। बौद्धकाल में यह एक महत्त्वपूर्ण बौद्धिक केन्द्र था। प्रसिद्ध तक्षशिला विश्वविद्यालय यहाँ विकसित हुआ।
2. उज्जैन-सुमेलानी और कार्नेलियन पत्थर, मलमल और मालों का कपड़ा उज्जैन से विभिन्न केन्द्रों में निर्यात किया जाता था। तक्षशिला और पेशावर के थल मार्गों से इसके पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध भी थे।
प्रश्न 5.
व्यवसाय की कोई दो विशेषताएँ समझाइये।
उत्तर:
1. लाभार्जन-व्यवसाय में प्रत्येक क्रिया लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती है। ऐसी कोई भी क्रिया जिसका उद्देश्य लाभ कमाने का नहीं हो वह व्यवसाय में सम्मिलित नहीं की जा सकती है क्योंकि लाभ कमाये बिना कोई भी व्यवसाय लम्बे समय तक अपने अस्तित्व को बनाये नहीं रख सकता है।
2. प्रतिफल की अनिश्चितिता-व्यवसाय में प्रतिफल अर्थात् लाभ की अनिश्चितता होती है। इसमें लाभ हो भी सकता है और नहीं भी। वस्तुतः व्यवसाय में विनियोजित पूंजी पर लाभ प्राप्त होने की आशा तो होती है लेकिन यह निश्चित नहीं होता है कि लाभ कितना होगा या होगा भी कि नहीं।
प्रश्न 6.
उद्यम स्तर पर एक व्यवसायी के कर्त्तव्य बतलाइये।
उत्तर:
उद्यम स्तर पर व्यवसायी के कर्त्तव्य-
प्रश्न 7.
व्यवसाय, पेशे तथा रोजगार में कोई तीन अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यवसाय, पेशे तथा रोजगार में अन्तर
प्रश्न 8.
'मेक इन इण्डिया' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
'मेक इन इण्डिया' के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
मेक इन इण्डिया-देशीय एवं विदेशी कम्पनियों को भारत में निर्माण कार्य में प्रोत्साहित करने हेतु भारत सरकार द्वारा 25 सितम्बर, 2014 को 'मेक इन इण्डिया' की पहल की गई। 'मेक इन इण्डिया' पहल के मुख्य उद्देश्यों में अर्थव्यवस्था के निम्न 25 क्षेत्रों में रोजगार सृजन एवं कौशल को बढ़ावा देना है-ऑटोमोबाइल, ऑटोमोबाइल पुर्जे, विमानन, जैव प्रौद्योगिकी, रसायन, विनिर्माण, रक्षा, विद्युत मशीनरी, इलेक्ट्रानिक तंत्र, खाद्य संस्करण, सूचना एवं प्रौद्योगिकी एवं व्यापार प्रक्रिया प्रबन्धन, मीडिया एवं मनोरंजन, खनन, तेल एवं गैस, औषधि, बन्दरगाह एवं जहाजरानी, रेलवे, नवीकरणीय ऊर्जा, सड़क एवं राजमार्ग, अंतरिक्ष एवं खगोल विज्ञान, वस्त्र एवं परिधान, तापीय शक्ति, पर्यटन एवं ईमानदारी, कल्याण तथा चमड़ा उत्पाद।
इस प्रकार 'मेक इन इण्डिया' उपरोक्त 25 क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करता है।
प्रश्न 9.
वाणिज्य, उद्योग एवं व्यापार में पारस्परिक सम्बन्ध है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वाणिज्य, उद्योग एवं व्यापार में पारस्परिक सम्बन्ध-वाणिज्य, उद्योग एवं व्यापार का अलग-अलग अस्तित्व होते हुए भी ये एक-दूसरे से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में आश्रित हैं । वाणिज्य के अन्तर्गत वस्तुओं के क्रय-विक्रय अर्थात् व्यापार तथा व्यापार की सहायक क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। उद्योग के बिना वाणिज्य और व्यापार करना असम्भव है क्योंकि वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय तभी सम्भव हो सकता है जबकि उनका उत्पादन हो। इसी तरह व्यापार और वाणिज्य के अभाव में उद्योग बेकार हैं। क्योंकि उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुएँ या सेवाएँ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँचे तो उत्पादन का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। उद्योगों का अस्तित्व ही नहीं रह पायेगा। व्यापार तथा व्यापार की सहायक क्रियाओं अर्थात् वाणिज्य द्वारा यह कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
वाणिज्य की कोई चार विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
वाणिज्य की विशेषताएँ-
प्रश्न 11.
व्यापार को वाणिज्य का महत्त्वपूर्ण अंग क्यों माना जाता है?
उत्तर:
व्यापार वाणिज्य का महत्त्वपूर्ण अंग है-वाणिज्य में हम वस्तुओं के व्यापार अर्थात् क्रय-विकय तथा व्यापार की सहायक क्रियाओं जैसे यातायात, बैंकिंग एवं वित्त, बीमा, भण्डारण, सम्प्रेषण, विज्ञापन तथा पैकेजिंग आदि को सम्मिलित करते हैं। जबकि व्यापार वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय, उपभोक्ताओं को सन्तुष्टि प्रदान करने तथा लाभार्जन के लिए किया जाता है। वाणिज्य के अभिन्न अंग व्यापार के द्वारा वस्तुओं के विनिमय में आने वाली व्यक्ति सम्बन्धी बाधाओं को दूर किया जाता है। प्रो. थॉमस ने लिखा है कि, "वाणिज्यिक धन्धे माल के क्रय-विक्रय, वस्तुओं के विनिमय तथा माल के वितरण से सम्बन्धित होते हैं।" इस प्रकार स्पष्ट है कि व्यापार वाणिज्य का अभिन्न अंग है।
प्रश्न 12.
व्यापार की सहायक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यापार की सहायक क्रियाएँ-व्यापार की सहायक क्रियाएँ उद्योग एवं व्यापार में सहायक होती हैं। इन क्रियाओं में यातायात, बैंकिंग एवं वित्त, बीमा, भण्डारण, सम्प्रेषण, विज्ञापन तथा पैकेजिंग आदि को सम्मिलित करते हैं। ये क्रियाएँ वस्तुओं के उत्पादन एवं वितरण में आने वाली विभिन्न बाधाओं यथा स्थान, समय, वित्त, विनिमय आदि को दूर करने में सहायक होती हैं। परिवहन, माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में सहायक होता है। बैंकिंग, व्यापारियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। बीमा विभिन्न प्रकार की जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करता है। भण्डारण, संग्रह व्यवस्था द्वारा समय की उपयोगिता का सृजन करता है। विज्ञापन के द्वारा सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। अन्य शब्दों में ये सहायक क्रियाएँ माल के स्थानान्तरण, संग्रहण, वित्तीयन, जोखिम से सुरक्षा एवं माल की बिक्री, संवर्द्धन को सरल बनाती हैं।
प्रश्न 13.
व्यापार का क्षेत्र संक्षेप में बतलाइये।
उत्तर:
I. व्यापार का क्षेत्र-
1. स्थान के आधार पर-
2. वस्तु की मात्रा के आधार पर-
प्रश्न 14.
निर्यात हेतु आयात व्यापार से क्या आशय है?
उत्तर:
निर्यात हेतु आयात व्यापार-निर्यात व्यापार के अन्तर्गत जब कोई देश किसी अन्य दूसरे देश से आयात दूसरे देश को निर्यात करने के उद्देश्य से करता है तो उसे निर्यात हेतु आयात व्यापार कहते हैं। उदाहरण के लिए, भारत का व्यापारी अमेरिका से वस्तुएँ आयात कर पाकिस्तान को वस्तुओं का निर्यात करता है तो यह निर्यात हेतु आयात व्यापार कहलाता है। इस प्रकार के व्यापार में विकसित देशों से व्यापारी माल का आयात करके विकासशील एवं पिछड़े देशों के व्यापारियों को निर्यात किया जाता है।
प्रश्न 15.
जोखिम विश्लेषण का महत्त्व समझाइये।
उत्तर:
जोखिम विश्लेषण का महत्त्व-मनुष्य का व्यवसाय सम्पत्ति, धनोपार्जन, उत्पादन, विनियोग, क्रय-विक्रय, अनुसन्धान, बाजार-निर्णय, पारिवारिक-जीवन, उद्योग संचालन आदि सभी जोखिमों व अनिश्चितताओं से परिपूर्ण है। यही कारण है कि व्यवसायी निरन्तर अपने विनियोगों, क्रय एवं सम्पत्ति में निहित जोखिम का विश्लेषण करके ही कोई निर्णय लेता है।
सामान्यतः एक व्यवसायी को धन की रक्षा करने, गतिशील वातावरण सम्बन्धी अनिश्चितताओं व जोखिमों को कम करने, आन्तरिक जोखिमों के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करने, व्यावसायिक संस्था की लाभदायकता व तरलता बनाये रखने, आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने, वित्तीय सम्पत्तियों में वृद्धि करने तथा संस्था की ख्याति व छवि बनाये रखने के लिए जोखिमों का विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है। जोखिमों का सही विश्लेषण करके ही व्यवसायी अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 16.
व्यवसाय में जोखिमों के कारण बतलाइये।
उत्तर:
व्यवसाय में जोखिमों के कारण-
प्रश्न 17.
व्यवसाय में जोखिमों से किस प्रकार निबटा जा सकता है? संक्षेप में बतलाइये।।
उत्तर:
जोखिमों से निबटने की विधियाँ-निम्नलिखित विधियों या तरीकों से व्यवसाय में जोखिम भरी परिस्थितियों से आसानी से निबटा जा सकता है-
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्राचीन काल में व्यापार और वाणिज्य में स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीनकाल में व्यापार और वाणिज्य में स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली का योगदान-प्राचीनकाल में आर्थिक जीवन में प्रगति के साथ, मुद्रा के रूप में अन्य वस्तुओं के उपयोग को धातुओं ने अपनी विभाजकता और स्थायित्व के गुणों के कारण प्रतिस्थापित किया। इस काल में जैसे ही मुद्रा ने मापन की इकाई और विनिमय (क्रयविक्रय) के माध्यम के रूप में काम किया, धात्विक मुद्रा की शुरुआत हुई। फलतः इसके उपयोग से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई।
हुण्डी और चित्ति जैसे दस्तावेजों का उपयोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को द्रव्य के लेन-देन में होने लगा। इस प्रकार प्रमुख विनियम के साधन के रूप में उप-महाद्वीप में हुण्डी ने काम किया। यह स्थानीय भाषा में होती थी। उस समय धनी जोग, शाहजोग, फमान जोग, देखनहार, फरमान जोग तथा जोखिमी हुण्डी मुख्य रूप से प्रचलन में थीं।
यथार्थ में स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली ने मुद्रा उधार एवं साख पत्रों के माध्यम से घरेलू और विदेशी व्यापार के वित्त पोषण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। लोगों ने बैंकरों के रूप में कार्य करने वाले व्यक्तियों अर्थात् सेठों के पास कीमती वस्तुओं को जमा कराना शुरू किया और यह पैसा निर्माताओं को अधिक वस्तुओं का उत्पादन करने हेतु संसाधनों की आपूर्ति करने के लिए एक साधन बन गया।
कृषि और पशुपालन प्राचीन लोगों की आय के प्रमुख साधन थे। इसके अतिरिक्त सूती वस्त्रों की बुनाई, रंगाई, बर्तन, मिट्टी के बर्तन बनाना, कला और हस्तशिल्प, मूर्तिकला, कुटीर उद्योग, राजगीरी, यातायात के साधनों (गाड़ियाँ, नौकाएँ और जहाज) का निर्माण आदि उनकी आय के अतिरिक्त साधन थे। इनसे ही वे बचत और आगे निवेश कर पाते थे।
परिवार आधारित प्रशिक्षुता प्रणाली प्रचलन में थी और उसका व्यापार हेतु विशिष्ट कौशल प्राप्त करने में विधिवत पालन किया जाता था। कारीगर, शिल्पकार और विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के कुशल श्रमिक कौशल और ज्ञान को विकसित कर उसे एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित करते जाते थे। इससे व्यापार और वाणिज्य के वित्तपोषण हेतु वाणिज्यिक और औद्योगिक बैंक बने तथा कृषकों को ऋण देने के लिए कृषि बैंक भी अस्तित्व में आये।
प्रश्न 2.
प्राचीन भारत के प्रमुख-प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों की संक्षेप में व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
प्राचीन भारत के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र-
1. पाटलीपुत्र-प्राचीन भारत में यह केवल व्यापारिक नगर ही नहीं था वरन् नगीनों के निर्यातक केन्द्र के रूप में भी विख्यात था। वर्तमान में इसे पटना के नाम से जाना जाता है।
2. पेशावर-प्रथम शताब्दी ईसवी में पेशावर का भारत, चीन और रोम के बीच वाणिज्यिक लेन-देनों में बहुत बड़ा हिस्सा था। यह घोड़ों के आयात और ऊन निर्यात का एक प्रमुख केन्द्र था।
3. तक्षशिला-यह भारत और मध्य एशिया के बीच महत्त्वपूर्ण भूमि मार्ग पर एक प्रमुख केन्द्र था। यह वित्तीय वाणिज्यिक बैंकों का शहर भी था। बौद्धकाल में यह महत्त्वपूर्ण विद्वता केन्द्र भी था। यहाँ तक्षशिला विश्वविद्यालय नाम से विख्यात शिक्षा केन्द्र पर चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया से अध्येता आते थे।
4. इन्द्रप्रस्थ-इन्द्रप्रस्थ शाही सड़क पर वाणिज्यिक जंक्शन था जहाँ पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में जाने वाले अधिकांश मागौं का एकीकरण हुआ था।
5. मथुरा-मथुरा व्यापार का विक्रय केन्द्र था। दक्षिण भारत को जाने वाले कई मार्ग मथुरा से होकर ही जाते थे।
6. वाराणसी-यह गंगा मार्ग और पूर्व के साथ उत्तर को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित होने के कारण कपड़ा उद्योग के एक बड़े केन्द्र के रूप में उभरा और सुन्दर सुनहरे रेशम के कपड़े और चन्दन की कारीगरी के लिए प्रसिद्ध था। यह तक्षशिला, भरूच और कांजीवरम के मार्गों से भी जुड़ा हुआ था।
7. मिथिला-मिथिला ही एक ऐसा व्यापारिक केन्द्र था जिसने प्रथम शताब्दी ईसवी के प्रारम्भिक वर्षों में दक्षिण चीन में और विशेष रूप से यूनान में व्यापारिक कालोनियों की स्थापना की। यहाँ के व्यापारी बंगाल की खाड़ी में नाव से समुद्र पार करके दक्षिण चीन सागर एवं जावा-सुमात्रा और बोर्निया के द्वीपों पर बन्दरगाहों के साथ कारोबार करते थे।
8. उज्जैन-यहाँ से सुमेलानी व कार्नेलियन पत्थर, मलमल का कपड़ा विभिन्न व्यापारिक केन्द्रों को निर्यात किया जाता था। तक्षशिला और पेशावर के थल मार्गों से इसके पश्चिमी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध भी थे।
9. सूरत-मुगलकाल में यह पश्चिमी व्यापार का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था। सूरत का कपड़ा जरी के सुनहरी बॉर्डर के लिए विख्यात था। यहाँ की हुण्डियाँ मिस्र, ईरान और बेल्जियम के दूरदराज के बाजारों में भी चलती थीं।
10. कांची-कांची अर्थात् कांजीवरम में चीनी व्यापारी विदेशी जहाजों में मोती, काँच और दुर्लभ पत्थरों को खरीदने के लिए आया करते थे और बदले में सोना और रेशम बेच जाते थे।
11. मदुरै-यह मोती, गहने और फैन्सी कपड़े का प्रमुख निर्यातक केन्द्र था। इसने सामुद्रिक व्यापार को चलाने के लिए विदेशी व्यापारियों विशेषकर रोम के लोगों को आकर्षित किया था।
12. भरूच-प्राचीनकाल में नर्मदा नदी के किनारे स्थित यह शहर पश्चिमी भारत का एक महानतम वाणिज्यिक शहर था। यह सड़क मार्ग से सभी महत्त्वपूर्ण मंडियों से जुड़ा हुआ था।
13. कावेरीपट्ट-कावेरी पटनम् के नाम से विख्यात यह शहर अपनी बनावट में काफी विख्यात था। माल की ढुलाई इत्यादि के लिए उत्तम सुविधाएँ प्रदान करने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। मलेशिया, इंडोनेशिया, चीन और सुदूर पूर्व से व्यापार करने के लिए यह एक सुविधाजनक स्थान था। यह सौन्दर्य प्रसाधन, इत्र, पाउडर, रेशम, ऊन, कपास, मोली, मूंगा, सोने और कीमती नगीनों के लिए व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र था। यह शहर जहाज निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध था।
में से एक था। यह सड़क मार्ग से वाराणसी और तक्षशिला से तथा सुसा के माध्यम से सुदूर देशों के साथ कालासागर तक जुड़ा हुआ था।
प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में व्यापार और वाणिज्य के इतिहास पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन भारत में व्यापार और वाणिज्य के इतिहास-प्राचीनकाल में व्यापार और वाणिज्य ने भारतीय उप-महाद्वीप जिसका विस्तार उत्तर में हिमालय और दक्षिण में हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी तक था, को आर्थिक जगत में एक महान निर्यातक केन्द्र बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। पुरातात्विक प्रमाणों से यह मालूम चलता है कि प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार भूमिगत और सामुद्रिक अन्तर्देशीय व विदेशी व्यापार और वाणिज्य ही था। इस काल में राजनैतिक अर्थव्यवस्था और सैनिक सुरक्षा में अधिकांश संयुक्त भारतीय उप-महाद्वीप और व्यापार नियमों को ध्यान में रखकर योजनाएँ बनायी गई थीं। फलतः एक सामान्य अर्थव्यवस्था बनी, मापन में एकरूपता आयी तथा मुद्रा के रूप में सिक्कों के उपयोग ने व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाया और बाजार को विस्तारित किया।
स्वेदशी बैंकिंग प्रणाली-प्राचीन भारत में स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली प्रचलन में थी। इस काल में मुद्रा ने मापन की इकाई और विनिमय के माध्यम के रूप में काम किया और धात्विक मुद्रा की शुरुआत हुई। हुण्डी और चित्ति जैसे दस्तावेजों का उपयोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को द्रव्य के लेन-देन में होने लगा। स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली ने मुद्रा उधार एवं साख पत्रों के माध्यम से घरेलू और विदेशी व्यापार के वित्त पोषण में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। बैंकिंग के विकास के साथ-साथ निजी बैंकरों (सेठों, जगत सेठों) आदि का विकास हुआ। कृषि और पशुपालन के अतिरिक्त अन्य धन्धे प्राचीन लोगों की अतिरिक्त आय के मुख्य साधन थे। अतिरिक्त आय के साधनों से वे बचत और आगे निवेश कर पाते थे। प्रसिद्ध वर्कशॉप (कारखाने) थे। परिवार आधारित प्रशिक्षुता प्रणाली प्रचलन में थी। व्यापार और वाणिज्य के वित्त पोषण हेतु वाणिज्यिक और औद्योगिक बैंक बने तथा कृषकों को ऋण देने के लिए कृषि बैंक भी अस्तित्व में आये।
मध्यस्थों का उदय-व्यापार के विकास में मध्यस्थों की प्रमुख भूमिका रही। उन्होंने व्यापार और विशेषकर विदेशी व्यापार का जोखिम वहन करने की जिम्मेदारी लेकर निर्माताओं को वित्तीय सुरक्षा प्रदान की। इसमें कमीशन एजेन्ट, दलाल और फुटकर दोनों प्रकार के माल के वितरक शामिल थे। 'जगत सेठ' जैसी संस्था का विकास हुआ और मुगल काल तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में इनका अत्यधिक प्रभाव रहा। बैंकरों ने न्यासों और अक्षयनिधि के निष्पादन के रूप में कार्य करना शुरू किया। उधार सौदों के अभ्युदय तथा ऋण व अग्रिमों की उपलब्धता ने व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। स्वदेशी बैंकिंग प्रणाली ने भी इसमें अत्यधिक सहयोग प्रदान किया।
परिवहन-प्राचीनकाल में जल और स्थल परिवहन दोनों ही लोकप्रिय था। व्यापार जमीन और समुद्र दोनों के माध्यम से होता था। संचार के साधन के रूप में सड़कें स्थल और अन्तर्देशीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती थीं। उत्तरी सड़क मार्ग असम से तक्षशिला तक फैला माना जाता था। दक्षिण में भी पूर्व से पश्चिम तक फैले व्यापारिक मार्ग संरचनात्मक रूप से व्यापक थे और गति व सुरक्षा के लिए भी उपयुक्त थे। सामुद्रिक व्यापार, वैश्विक व्यापार नेटवर्क की एक अन्य महत्त्वपूर्ण शाखा थी। मलाबार तट का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में पुराना इतिहास रहा है। कालीकट बन्दरगाह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक व्यस्ततम विक्रय केन्द्र था। 15वीं व 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में दक्षिणी या कोरामण्डल तट पर पुलिकट प्रमुख बन्दरगाह था। यहाँ से दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए कपड़ा प्रमुख निर्यात की वस्तु थी।
मजबूत व्यापारी समुदाय-देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग व्यापारी समुदाय व्यवसाय में आगे आये। उत्तरी क्षेत्र में पंजाबी और मुलतानी व्यापारियों ने कारोबार संभाला, भट्ट ने गुजरात और राजस्थान में व्यापार का प्रबन्धन किया। पश्चिमी भारत में ये महाजन कहलाये। अहमदाबाद जैसे शहरी क्षेत्रों में व्यवसायियों को सामूहिक रूप से मुखिया 'नगर सेठ' के नाम से जाना जाता था। अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग में हकीम और वैद्य, विधिवक्ता (वकील), पंडित या मुल्ला (शिक्षक), चित्रकार, संगीतकार, सुलेखक आदि शामिल थे।
मर्चेण्ट कॉरपोरेशन-व्यापारिक समुदाय ने गिल्ड से अपनी प्रतिष्ठा और ताकत प्राप्त की, जो अपने हितों की रक्षा के लिए स्वायत्त निगम थे। इन्होंने अपने सदस्यों के लिए नियम और व्यापारिक आचार संहिता बनायी जिसे राजा भी स्वीकारते और सम्मान करते थे। उद्योग और व्यापार पर कर भी राजस्व के प्रमुख साधन थे। व्यापारियों को चुंगी करों का भुगतान करना होता था। वस्तुओं के अनुसार सीमा शुल्कों में भिन्नता पायी जाती थी। इनकी दरें विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग थीं। नौका कर आय का एक अन्य स्रोत था। श्रम कर वसूलने का अधिकार सामान्यतः स्थानिकों को प्राप्त था। राजा या कर संग्रहकों से गिल्ड प्रमुख का सीधे व्यवहार हुआ करता था। गिल्ड व्यवसायी धार्मिक हितों के संरक्षक संजीव पास बुक्स थे। इसके लिए ये निगम कर लगाते थे। इस प्रकार, वाणिज्यिक गतिविधियों ने बड़े व्यापारियों को समाज में सत्ता हासिल करने में सक्षम बनाया।
प्रमुख व्यापारिक केन्द्र-प्राचीन भारत में पाटलीपुत्र, पेशावर, तक्षशिला, इन्द्रप्रस्थ, मथुरा, वाराणसी, मिथिला, उज्जैन, सूरत, काँची, मदुरै, भरूच, कावेरीपट्ट तथा ताम्रलिप्ति प्रमुख व्यापारिक केन्द्र थे।
प्रमुख निर्यात और आयात-प्राचीन काल में निर्यात में मसाले, गेहूँ, चीनी, नील, अफीम, तिल का तेल, कपास, रेशम, तोते, जीवित मवेशी और पशु उत्पाद-खालें, फर, सींग, चमड़ा, कछुआ कवच, मोती, नीलमणि, चमकीले पत्थर, क्रिस्टल, लैपेस-लाजुली, ग्रेनाइट, फिरोजा और ताँबा आदि शामिल थे। आयातों में घोड़े, पशु-उत्पाद, चीनी, सिल्क, फ्लेक्स और लेनिन, मणि, सोना, चाँदी, टिन, ताँबा, सीसा, मणिक, पुखराज, मूंगा, काँच और एम्बर शामिल थे।
भारतीय उप-महाद्वीप की विश्व-अर्थव्यवस्था में स्थिति (1 ई. से 1191 ई. तक)-पहली और सत्रहवीं शताब्दी के मध्य भारतवर्ष के प्राचीन और मध्ययुगीन दुनिया की लगभग तिहाई या चौथाई दौलत को नियन्त्रित करने वाली सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का अनुमान था। मेगस्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग, अलबरूनी, इब्नबतूता (11वीं शताब्दी), फांसीसी फ्रेकोइस (17वीं शताब्दी) और अन्य लोग जो भारत में आये जिन्होंने देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, वाणिज्यिक और राजनैतिक संरचना और समृद्धि की बात की और उन्होंने इसे स्वर्ण भूमि और स्वर्ण द्वीप कहा।
पूर्व औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था को स्वर्णयुग माना जाता है और इसी ने यूरोपियों को यात्रा के लिए आकर्षित किया। बढ़ते वाणिज्यिक क्षेत्र के बावजूद 18वीं शताब्दी का भारत प्रौद्योगिकी, नवाचार और विचारों में पश्चिमी यूरोप के पीछे था। इस शताब्दी के मध्य में भारत में ब्रिटिश शाही साम्राज्य का उत्थान आरम्भ हुआ। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने नियमों के अधीन प्राप्तों द्वारा उत्पन्न राजस्व का उपयोग भारतीय कच्चे माल, मसालों व वस्तुओं को खरीदने में किया। फलतः विदेशी व्यापार से होने वाले सोने-चाँदी और बहुमूल्य धातुओं का सतत् प्रवाह रुक गया। इससे भारत जो पहले तैयार माल का निर्यातक था वह कच्चे माल का निर्यातक व विनिर्मित माल का खरीददार बन गया। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा ही बदल गई।
प्रश्न 4.
'भारत में पुनरौद्योगीकरण' पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में पुनरौद्योगीकरण-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई और भारत में केन्द्रीकृत नियोजन की शुरुआत हुई। सन् 1952 में प्रथम पंचवर्षीय योजना लागू की गई। इसके बाद ही पंचवर्षीय योजनाओं को कार्यान्वित किया गया। इन योजनाओं में आधुनिक उद्योगों, आधुनिक प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक संस्थानों, अन्तरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों की स्थापना को महत्त्व दिया गया। इन प्रयासों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित नहीं हो सकी। पूँजी निर्माण में कमी, जनसंख्या में वृद्धि, रक्षा पर भारी व्यय, अपर्याप्त बुनियादी संरचना इसके प्रमुख कारण थे। फलतः भारत विदेशी स्रोतों से उधार लेने पर अत्यधिक निर्भर था।
अन्त में भारत में सन् 1991 में आर्थिक उदारीकरण की नीति को लागू किया गया। भारत सरकार के प्रयासों से भारतीय अर्थव्यवस्था आज विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में से एक है। बढ़ती आय, बचत, निवेश के अवसर, घरेलू खपत में वृद्धि और युवा जनसंख्या को मिलाकर आने वाले दशकों में विकास सुनिश्चित करेंगे। उच्च विकास के क्षेत्रों की पहचान की गई। ये तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत सरकार द्वारा हाल में की गई पहलों जैसे 'मेक इन इण्डिया', 'स्किल इण्डिया', 'डिजिटल इण्डिया', नवनिर्मित विदेश व्यापार नीति आदि से भारतीय अर्थव्यवस्था को निर्यात व आयात व्यापार सन्तुलन में मदद मिलने की उम्मीद है।
प्रश्न 5.
आर्थिक क्रियाओं तथा अनार्थिक क्रियाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक क्रियाओं तथा अनार्थिक क्रियाओं में अन्तर
1. अर्थ-आर्थिक क्रियाएँ वे मानवीय क्रियाएँ हैं जो धन के उत्पादन, विनिमय, वितरण से सम्बन्ध रखती हैं, जबकि अनार्थिक क्रियाएँ वे मानवीय क्रियाएँ हैं जो सेवाभाव तथा जन-कल्याण से सम्बन्ध रखती हैं। .
2. उद्देश्य-आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य धन कमाना होता है, जबकि अनार्थिक क्रियाओं का उद्देश्य जन-सेवा तथा जन-कल्याण करना है।
3. वैधानिकता-आर्थिक क्रियाओं का वैधानिक होना आवश्यक है अर्थात् ये क्रियाएँ कानून के अनुसार होनी चाहिए, जबकि अनार्थिक क्रियाएँ वैधानिक एवं अवैधानिक दोनों ही हो सकती हैं।
4. प्रेरणा स्रोत-आर्थिक क्रियाओं को करने का प्रेरणा स्रोत धन तथा लाभ कमाना होता है, जबकि अनार्थिक क्रियाओं को करने का प्रेरणा स्रोत जन-सेवा, सहानुभूति, देश भक्ति, जन-कल्याण की भावना आदि है।
5. उदाहरण-एक श्रमिक द्वारा कारखाने में काम करना, एक डॉक्टर द्वारा अपने दवाखाने में कार्य करना, एक प्रबन्धक द्वारा अपने कार्यालय में कार्य करना तथा एक शिक्षक द्वारा विद्यालय में अध्यापन कार्य करना आदि आर्थिक क्रियाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। जबकि एक गृहिणी द्वारा अपने परिवार के लिए भोजन पकाना, एक वृद्ध व्यक्ति को सड़क पार करवाने में एक बालक द्वारा सहायता करना,अध्यापक द्वारा अपने बेटे को पढ़ाना आदि अनार्थिक क्रियाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
6. मापदण्ड-आर्थिक क्रियाओं को मुद्रा रूपी मापदण्ड से मापा जा सकता है, जबकि अनार्थिक क्रियाओं को मुद्रारूपी मापदण्ड से नहीं मापा जा सकता है।
7. वर्गीकरण-आर्थिक क्रियाओं को तीन श्रेणियों यथा व्यवसाय, पेशा तथा रोजगार में विभाजित किया जा सकता है जबकि अनार्थिक क्रियाओं को इस प्रकार से विभाजित नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 6.
आर्थिक क्रियाओं को विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
आर्थिक क्रियाएँ-आर्थिक क्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं जिनके द्वारा हम अपने जीवन-यापन के लिए धन कमाते हैं। हम इन क्रियाओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं-
1. व्यवसाय-व्यवसाय का अभिप्राय उन आर्थिक क्रियाओं से है जिनका सम्बन्ध लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं का उत्पादन या क्रय-विक्रय या सेवाओं की पूर्ति से है। व्यवसाय करने वाले व्यक्ति द्वारा अपनी आय लाभ के रूप में दर्शायी जाती है । व्यवसाय में वाणिज्य व उद्योग सम्बन्धी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है । वाणिज्य में भी व्यापार तथा व्यापार की सहायक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। ये सभी आर्थिक क्रियाओं के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।
2. पेशा-पेशा में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनमें विशेष ज्ञान व दक्षता की आवश्यकता होती है और व्यक्ति इनका प्रयोग अपने धन्धों में आय अर्जन करने हेतु करता है। पेशे सम्बन्धी क्रियाओं के लिए पेशेवर संस्थाओं द्वारा कुछ मार्गदर्शिकाएँ व आचार संहिताएँ बनायी जाती हैं। पेशे में जो व्यक्ति संलग्न होते हैं वे पेशेवर व्यक्ति कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, चिकित्सक, चिकित्सा पेशे में 'भारतीय चिकित्सा परिषद्' के नियमानुसार कार्य करते हैं। वकील 'भारतीय बार काउन्सिल' के अनुरूप वकालत के पेशे में कार्यरत होते हैं। चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स लेखांकन पेशे से सम्बन्धित हैं अतः वे 'भारतीय चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स इन्स्टीट्यूट' के नियमों के अनुसार कार्य करते हैं।
3. रोजगार-आर्थिक क्रियाओं में रोजगार भी सम्मिलित है। रोजगार का अभिप्राय उन धन्धों से है जिनमें लोग नियमित रूप से दूसरों के लिए कार्य करते हैं और बदले में पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं। वे व्यक्ति जो अन्य व्यक्तियों द्वारा नियुक्त किये जाते हैं, कर्मचारी कहलाते हैं। वे व्यक्ति जो कारखाने में काम करते हैं और बदले में वेतन या मजदूरी पाते हैं, कारखानों के कर्मचारी कहलाते हैं। इसी प्रकार बैंकों, बीमा कम्पनियों या सरकारी कार्यालयों में विभिन्न पदों यथा प्रबन्धकों, सहायकों, क्लर्कों, चौकीदार व चपरासियों आदि के पद पर कार्य करते हैं वे रोजगार के अन्तर्गत काम करने वाले व्यक्तियों में आते हैं।
प्रश्न 7.
व्यवसाय तथा रोजगार में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
व्यवसाय तथा रोजगार में अन्तर
1. मुख्य उद्देश्य-व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करना तथा उन्हें लाभ पर विक्रय करना है, जबकि रोजगार का मुख्य उद्देश्य रोजगार की शर्तों के अनुरूप अपने नियोक्ता का कार्य करना है।
2. प्रतिफल-व्यवसाय को व्यावसायिक गतिविधियों को सम्पन्न करने के परिणामस्वरूप जो प्रतिफल प्राप्त होता है वह लाभ कहलाता है, जबकि किसी रोजगार के अन्तर्गत कार्य करने वाले व्यक्ति को जो प्रतिफल प्राप्त होता है वह वेतन या मजदूरी कहलाता है।
3. योग्यता-व्यवसाय करने के लिए कोई विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि रोजगार प्राप्त करने के लिए रोजगार के अनुकूल उपयुक्त योग्यता एवं प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
4. हित-हस्तान्तरण-व्यवसाय में व्यवसायी अपने हित को हस्तान्तरित कर सकता है, जबकि रोजगार में लगा व्यक्ति अपनी नौकरियाँ रोजगार को हस्तान्तरित नहीं कर सकता है।
5. जोखिम-व्यवसाय में जोखिम तत्त्व विद्यमान रहता है क्योंकि व्यवसाय जोखिम का ही खेल है। व्यवसायी जितनी अधिक जोखिम उठायेगा, लाभ की सम्भावनाएँ उतनी ही अधिक रहेंगी। रोजगार या नौकरी में जोखिम तत्त्व का अस्तित्व नहीं होता है।
6. पूँजी का विनियोग-व्यावसायिक क्रियाओं को करने के लिए व्यवसायी को इसमें कुछ न कुछ पूँजी अवश्य लगानी पड़ती है, जबकि रोजगार या नौकरी करने के लिए नौकरी करने वाले को कोई पूँजी नहीं लगानी पड़ती है। नौकरी में तो नौकरी करने वाले की मेहनत, ज्ञान, योग्यता एवं कौशल का उपयोग ही उसकी पूँजी मानी जाती है।
7. नियम-व्यवसाय में व्यवसायी द्वारा नैतिक नियमों का पालन किया जाता है, जबकि रोजगार में नियोक्ता द्वारा निर्धारित सेवा नियमों का पालन किया जाता है।
प्रश्न 8.
व्यापार, वाणिज्य व उद्योग के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार, वाणिज्य व उद्योग के मध्य अन्तर
प्रश्न 9.
व्यवसाय का क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यवसाय का क्षेत्र-व्यवसाय के क्षेत्र में सम्मिलित होने वाली समस्त क्रियाओं को निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है-
I. उद्योग-संकुचित अर्थ में, उद्योग का अर्थ उन आर्थिक क्रियाओं से है जिनके द्वारा प्रकृति प्रदत्त भौतिक पदार्थों के रूप में परिवर्तन करके उत्पाद या वस्तु को बनाया जाता है। विस्तृत अर्थ में, उद्योग के अन्तर्गत केवल वस्तुओं के उत्पादन को ही सम्मिलित नहीं किया जाता है, अपितु उन विभिन्न क्रियाओं को भी सम्मिलित किया जाता है, जिनके द्वारा वस्तुएँ अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचायी जाती हैं । इस प्रकार उद्योग वस्तु में रूप उपयोगिता का सृजन करता है और विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता एवं पूँजीगत वस्तुएँ तैयार करके उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने में सहायता प्रदान करता है। उद्योगों को उनकी प्रकृति के अनुसार जननिक उद्योग, निष्कर्षण उद्योग, निर्माणी उद्योग, विनिर्माणी उद्योग, रचनात्मक उद्योग तथा सेवा उद्योग में वर्गीकृत किया जा सकता है।
II. वाणिज्य-वाणिज्य व्यावसायिक क्रियाओं का वह महत्त्वपूर्ण अंग है, जो उत्पादक और उपभोक्ता के बीच की दूरी को समाप्त करने का कार्य करता है। वस्तुतः उत्पादक द्वारा उत्पादित माल को उत्पादक से विक्रय करने के उद्देश्य से क्रय करना तथा उपभोक्ता की सन्तुष्टि के अनुरूप उसे प्रदान करना ही वाणिज्यिक कार्य है। वाणिज्य एक व्यापक शब्द है जिसके अन्तर्गत व्यापारिक क्रियाओं के साथ-साथ वे सब क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं जो विभिन्न प्रकार की उपयोगिताओं का सृजन करके ग्राहक सन्तुष्टि के आधार पर वस्तुओं और सेवाओं को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचाती हैं। उत्पादक से उपभोक्ता तक के मार्ग में आने वाली बाधाओं को वाणिज्यिक क्रियाओं द्वारा ही दूर किया जाना सम्भव होता है। वाणिज्य में व्यापार तथा व्यापार की सहायक क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं। इन्हें निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. व्यापार-व्यापार से तात्पर्य वस्तुओं और सेवाओं के क्रय-विक्रय द्वारा धन कमाने से है। जिन व्यक्तियों द्वारा यह कार्य किया जाता है उन्हें व्यापारी तथा उनके इस कार्य को व्यापार के नाम से जाना जाता है। इस क्रय-विक्रय की प्रक्रिया के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को सुविधाजनक तरीके से वस्तुएँ या उत्पाद प्राप्त हो जाती हैं तथा विक्रेता (व्यापारी) को लाभ। इस प्रकार व्यापार द्वारा उत्पादक और उपभोक्ता की दूरी को समाप्त करके दोनों के बीच विनिमय में आने वाली बाधाओं को दूर किया जाता है।
व्यापार के प्रकार-स्थान के आधार पर व्यापार देशी तथा विदेशी हो सकता है। देशी व्यापार स्थानीय, राज्यीय तथा अन्तर्राज्यीय व्यापार के रूप में हो सकता है, जबकि विदेशी व्यापार आयात व्यापार, निर्यात व्यापार तथा निर्यात हेतु आयात व्यापार के रूप में हो सकता है। वस्तु की मात्रा के आधार पर व्यापार थोक व्यापार तथा फुटकर व्यापार के रूप में हो सकता है।
2. व्यापार की सहायक क्रियाएँ-व्यापारिक क्रियाओं का सफलतापूर्वक संचालन व्यापार की सहायक क्रियाओं के बिना नहीं हो सकता है। व्यापार में उत्पादन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सही समय पर भेजना, सूचनाओं का आदान-प्रदान करना एवं जोखिम उठाना आदि कार्यों को करने पर ही व्यापार सम्भव है। ये सभी कार्य यातायात, बैंकिंग एवं वित्त, भण्डारण, विज्ञापन, सम्प्रेषण तथा पैकेजिंग आदि सेवाओं के माध्यम से सम्पन्न किये जाते हैं। ये सभी कार्य व्यापार में स्थान, समय एवं अधिकार उपयोगिता का सृजन करने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 10.
"वाणिज्य उन समस्त क्रियाओं का योग है जो वस्तुओं के विनिमय में आने वाली व्यक्ति (व्यापार), स्थान (यातायात एवं बीमा) तथा समय (संग्रहण तथा बैंकिंग) की बाधाओं को दूर करने में संलग्न है।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वाणिज्य के अन्तर्गत व्यापार तथा व्यापार की सहायक क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। ये सभी क्रियाएँ वस्तुओं में व्यक्ति, स्थान, समय, स्वामित्व उपयोगिता का सृजन करती हैं और निम्नलिखित बाधाओं को दूर करने में सहायक होती हैं-
1. व्यक्ति सम्बन्धी बाधा-वस्तुओं के उत्पादक तथा उपभोक्ता अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं। व्यापारी उत्पादकों से वस्तुएँ प्राप्त कर उन्हें उपभोक्ताओं को उनके उपभोग करने के स्थान पर पहुँचाकर व्यक्ति सम्बन्धी बाधा को दूर करते हैं।
2. स्थान सम्बन्धी बाधा-सामान्यतया वस्तुओं का उत्पादन कहीं होता है और उनका उपभोग कहीं दूसरी जगह होता है। इस प्रकार वस्तुओं का उत्पादन उनके उपभोग करने के केन्द्र से दूर होता है। यातायात एवं पैकेजिंग सम्बन्धी व्यापार की सहायक क्रिया इस दूरी या स्थान सम्बन्धी बाधा को दूर करती है।
3. समय सम्बन्धी बाधा-वस्तुओं का उत्पादन अलग-अलग समय पर होता है जबकि उनकी आवश्यकता वर्ष-भर रहती है। भण्डारण सम्बन्धी क्रिया समय सम्बन्धी बाधा को दूर करने में सहायक होती है।
4. जोखिम सम्बन्धी बाधा-व्यापारी वस्तुओं का विक्रय करता है। इसके लिए वह उत्पादकों से या थोक व्यापारियों से वस्तुएँ क्रय करता है। व्यापारी के द्वारा अपने व्यापार के लिए वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने तथा उनके संग्रहण (भण्डारण) के दौरान अग्नि, भूकम्प, बाढ़, चोरी इत्यादि के कारण उनके नष्ट होने का भय रहता है। इससे व्यापारी की जोखिम में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। बीमा इस जोखिम सम्बन्धी बाधा को दूर करने में सहायक होता है।
5. विनिमय सम्बन्धी बाधा-व्यापार में वस्तुओं तथा सेवाओं के क्रय-विक्रय में भुगतान के लिए आसान तथा जोखिम रहित माध्यम की आवश्यकता होती है। बैंक विनिमय सम्बन्धी बाधा को दूर करके वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय-विक्रय को सरल बनाते हैं।
6. ज्ञान सम्बन्धी बाधा-उपभोक्ताओं को वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदने से पहले उनके सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। उपभोक्ताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं के सम्बन्ध में अधिक से अधिक जानकारी विज्ञापन द्वारा ही प्रदान की जाती है। इस प्रकार विज्ञापन व्यापार में आने वाली ज्ञान सम्बन्धी बाधा को दूर करता है।