Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिकार्यम् Questions and Answers, Notes Pdf.
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[ध्यातव्यः - नवीन पाठ्यक्रमानुसार निर्धारित सन्धियों में से पदों की सन्धि/सन्धि-विच्छेद करना अपेक्षित है। यहाँ विषय-वस्तु को सरलता से हृदयंगम कराने के उद्देश्य से हिन्दी-भाषा में सन्धियों का ज्ञान कराकर अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तर संस्कृत-भाषा में ही दिये जा रहे हैं।]
सन्धि शब्द की व्युत्पत्ति - सम् उपसर्ग पूर्वक डुधाञ् (धा) धातु से "उपसर्गे धोः किः" सूत्र से कि प्रत्यय करने पर 'सन्धि' शब्द निष्पन्न होता है।
सन्धि की परिभाषा - वर्ण सन्धान को सन्धि कहते हैं। अर्थात् दो वर्गों के परस्पर के मेल अथवा सन्धान को सन्धि कहा जाता है।
पाणिनीय परिभाषा-"परः सन्निकर्षः संहिता" अर्थात् वर्गों की अत्यधिक निकटता को संहिता कहा जाता है। जैसे-'सुधी + उपास्य' यहाँ 'ई' तथा 'उ' वर्गों में अत्यन्त निकटता है। इसी प्रकार की वर्गों की निकटता को संस्कृत-व्याकरण में संहिता कहा जाता है। संहिता के विषय में ही सन्धि-कार्य होने पर 'सुध्युपास्य' शब्द की सिद्धि होती है।
सन्धि के भेद-संस्कृत व्याकरण में सन्धि के तीन भेद होते हैं। वे इस प्रकार हैं -
1. स्वर सन्धि-जिसमें परस्पर मिलने वाले दोनों वर्ण स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ) हों, जैसे - विद्या + आलयः = विद्यालयः, रमा + ईशः = रमेशः, पो + अनम् = पवनम्।
2. व्यंजन सन्धि-जिसमें प्रथम शब्द का अन्तिम वर्ण और द्वितीय शब्द का प्रथम वर्ण दोनों व्यंजन होते हैं या एक स्वर और एक व्यंजन होता है, जैसे-जगत् + ईशः = जगदीशः, सत् + चरित्र = सच्चरित्र, महत् + दानम् = महद्दानम्।
3. विसर्ग सन्धि-जिसमें प्रथम शब्द के अन्त में विसर्ग रहे और वह बाद के शब्द के प्रथम अक्षर से मिल जाये, जैसे-हरिः + अवदत् = हरिरवदत्, मनः + रथः = मनोरथः।
[विशेष-कक्षा-X के नवीन पाठ्यक्रमानुसार केवल व्यञ्जन एवं विसर्ग सन्धियों का ही ज्ञान अपेक्षित है। अतः यहाँ नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार सन्धियों का ज्ञान कराया जा रहा है।]
व्यञ्जनसन्धिः
परिचय-व्यञ्जन के पश्चात् स्वर या व्यञ्जन वर्णों के परस्पर व्यवधान-रहित सामीप्य की स्थिति में जो व्यञ्जन या हल वर्ण का परिवर्तन होता है, वह व्यञ्जन सन्धि कही जाती है।
भेद-व्यञ्जन सन्धि के अनेक भेद होते हैं। नवीन पाठ्यक्रम के अनुसार व्यञ्जन सन्धि के निम्नलिखित भेदों का ज्ञान आवश्यक है (1) श्चुत्व सन्धि-स्तोः श्चुना श्चुः।
श्चुत्व सन्धि-स् अथवा त्, थ्, द्, ध्, न् (तवर्ग) के बाद श् वर्ण, अथवा च्, छ्, ज, झ, ञ् (चवर्ग) आए तो स् (वर्ण) का श् (वर्ण) हो जाता है, तथा त्, थ्, द्, ध्, न् (तवर्ग) का च्, छ्, ज, झ, ञ् (चवर्ग) क्रमशः हो जाता है। जैसे -
अन्य उदाहरण -
ष्टुत्व सन्धिः - ष्टुना ष्टुः।
ष्टुत्व सन्धिः - स् अथवा त् थ् द् ध् न् (तवर्ग) के पहले अथवा बाद में ष् (वर्ग) अथवा ट्, ठ, ड्, द, ण् (टवर्ग) हो तो स् का ष् हो जाता है और त् थ् द् ध् न् का क्रमशः ट्, त्, ड्, द, ण् (टवर्ग) हो जाता है। जैसे -
जश्त्व सन्धिः-झलां जशोऽन्ते।
जश्त्व सन्धि-इस सन्धि के दो भाग हैं-प्रथम भाग पद के अन्त में तथा द्वितीय भाग पद के मध्य में होने वाली जश्त्व सन्धि है।
प्रथम भाग - यदि वर्गों के प्रथम अक्षर (क्, च्, ट्, त्, प्) के बाद घोष-वर्णों (ङ् ञ्, ण, न्, म्, य, र, ल, व्, ह) को छोड़कर कोई भी स्वर या व्यंजन वर्ण आता है तो वह प्रथम अक्षर (क्, च्, ट्, त्, प्) अपने वर्ग का तीसरा अक्षर (ग, ज, ड्, द्, ब्) हो जाता है। जैसे -
द्वितीय भाग-यदि पद के मध्य में किसी भी वर्ग के चौथे (घ्, झ, द, धू, भ) व्यंजन वर्ण के ठीक बाद किसी वर्ग का चौथा वर्ण आता है तो वह पूर्व वाला चौथा व्यंजन वर्ण अपने ही वर्ग का तीसरा व्यंजन वर्ण हो जाता है। जैसे -
जश्त्व सन्धि के अन्य उदाहरण -
चर्व सन्धिः - खरि च।
चव सन्धि - यदि ङ् ण् न् म् ञ् तथा य् र् ल् व् को छोड़कर कोई अन्य व्यंजन के बाद खर् ख् फ् छ् ठ् थ् च् ट् त् प् क् श् ष् स् आवे तो झल् के स्थान पर चर् (उसी वर्ग का प्रथम अक्षर) हो जाता है। जैसे -
वृक्षाद् + पतति = (द् का त् होने पर) वृक्षात्पतति।
तद् + फलम् = (द् का त् होने पर) तत्फलम्।
शरद् + कालः = (द् का त् होने पर) शरत्कालः।
इसी प्रकार अन्य उदाहरण -
अनुस्वार-सन्धिः -मोऽनुस्वारः।
अनुस्वार सन्धि - यदि शब्द के अन्त में 'म्' आये और उसके बाद कोई व्यंजन आये तो 'म्' का अनुस्वार। हो जाता है। लेकिन स्वर आने पर वह उसमें मिल जाता है। जैसे -
अन्य उदाहरण -
विसर्गसन्धिः
विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यञ्जन वर्ण के आने पर विसर्ग के स्थान पर होने वाले परिवर्तन को विसर्ग सन्धि कहते हैं।
विसर्ग सन्धि के भी अनेक भेद होते हैं। नवीन पाठ्यक्रमानुसार विसर्ग सन्धि के निम्नलिखित भेदों का ज्ञान आवश्यक है -
विसर्गस्य लोपः, उत्वं, रत्वं विसर्गस्थाने स्, श, ष् (सत्व)
(क) विसर्गलोपः
(क) यदि विसर्ग से पहले 'अ' (अः) हो तथा बाद में 'अ' से भिन्न स्वर हो तो, वहाँ विसर्ग का लोप हो जाता है।
यथा-
(ख) यदि विसर्ग' (:) से पहले 'अ' हो तथा उसके पश्चात् भी 'अ' हो तो विसर्ग के स्थान पर रु, रु को 'उ' आदेश दोनों का गुण अ + उ = ओ तथा ओ + अ का पूर्वरूप एकादेश 'ओ' ही रहता है। 'ओ' के बाद 'अ' की स्थिति अवग्रह के चिह्न (ऽ) द्वारा दिखाई जाती है।
यथा -
यथा वा -
(ख) विसर्गस्य उत्वम्
परिचय: -
उदाहरणानि -
रामः + अस्ति = अः + अ = रामोऽस्ति।
कृष्णः + अपि = अः + अ = कृष्णोऽपि।
यथा वा -
(ग) विसर्गस्य रुत्वम्
परिचयः -
(क) जिन पदों के अन्त में अ/आ भिन्न स्वर हैं, वहाँ विसर्ग के स्थान पर 'र' होता है।
यथा-
(ख) प्रातः, पुनः आदि विसर्गयुक्त अव्ययपद हो तो विसर्ग के स्थान पर ओ नहीं होता, सर्वत्र र् ही होता है।
यथा -
विसर्गस्य श, ष, स (सत्व)
परिचय: -
यथा: -
अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तराणि
बहुविकल्पात्मकप्रश्नाः
प्रश्न 1.
श्चुत्वसन्धेः उदाहरणम् अस्ति
(अ) पेष्टा
(ब) सच्चित्
(स) जगदीशः
(द) मनोहरः
उत्तरम् :
(ब) सच्चित्
प्रश्न 2.
जश्त्वसन्धेः उदाहरणम् अस्ति
(अ) तट्टीका
(ब) रामश्शेते
(स) वागीशः
(द) हरिवन्दे
उत्तरम् :
(स) वागीशः
प्रश्न 3.
'नमस्ते' इति शब्दे सन्धिः अस्ति
(अ) व्यंजनसन्धिः
(ब) अच्सन्धिः
(स) विसर्गलोपसन्धिः
(द) विसर्गसन्धिः
उत्तरम् :
(द) विसर्गसन्धिः
प्रश्न 4.
'शिवो. वन्द्यः' इति शब्दे सन्धिः अस्ति
(अ) ष्टुत्वसन्धिः
(ब) चर्वसन्धिः
(स) उत्वसन्धिः
(द) सत्वसन्धिः
उत्तरम् :
(स) उत्वसन्धिः
प्रश्न 5.
विसर्गसन्धेः उदाहरणम् अस्ति -
(अ) हरिः शेते
(ब) बालो हसति
(स) सच्चित्
(द) इतस्ततः
उत्तरम् :
(अ) हरिः शेते
प्रश्न 6.
'दिगम्बरः' पदस्य सन्धिविच्छेदं भवति
(अ) दिश् + अम्बरः
(ब) दिग + अम्बरः
(स) दिगम् + बरः
(द) दिक् + अम्बरः
उत्तरम् :
(द) दिक् + अम्बरः
प्रश्न 7.
चर्वसन्धेः उदाहरणमस्ति
(अ) उज्ज्वलः
(ब) उत्पन्न:
(स) सुबन्तः
(द) इष्टः
उत्तरम् :
(ब) उत्पन्न:
प्रश्न 8.
'मनः + रथः' इत्यस्य सन्धियुक्तपदं किम् ?
(अ) मनोरथः
(ब) मनरथः
(स) मनारथः
(द) मर्नरथः
उत्तरम् :
(अ) मनोरथः
प्रश्न 9.
'कश्चित्' पदे प्रयुक्तसन्धेः नाम किम्?
(अ) ष्टुत्वसन्धिः
(ब) सत्वसन्धिः
(स) श्चुत्वसन्धिः
(द) चवसन्धिः
उत्तरम् :
(स) श्चुत्वसन्धिः
प्रश्न 10.
'यशः + दा' इत्यस्य सन्धियुक्तपदं किम्?
(अ) यशस्दा
(ब) यशश्दा
(स) यशोर्दा
(द) यशोदा
उत्तरम् :
(द) यशोदा
प्रश्न 11.
उत्वसन्धेः उदाहरणं किम्?
(अ) अजन्तः
(ब) मनोहरः
(स) हरिं वन्दे
(द) दिग्गजः
उत्तरम् :
(ब) मनोहरः
प्रश्न 12.
'उच्चारणम्' इति पदे का सन्धिः ?
(अ) श्चुत्व
(ब) ष्टुत्व
(स) सत्व
(द) चर्व
उत्तरम् :
(अ) श्चुत्व
प्रश्न 13.
अनुस्वारसन्धेः उदाहरणं किम्?
(अ) सत्कारः
(ब) नमो नमः
(स) धर्मं चर
(द) सज्जनः
उत्तरम् :
(स) धर्मं चर
प्रश्न 14.
'मनः + तापः' इत्यस्य सन्धियुक्तं पदं किम् ?
(अ) मनोतापः
(ब) मनस्तापः
(स) मनश्चापः
(द) मनोरागः
उत्तरम् :
(ब) मनस्तापः
प्रश्न 15.
'निश्छलः' इति पदे का सन्धिः?
(अ) श्चुत्व
(ब) ष्टुत्व
(स) उत्व
(द) सत्व
उत्तरम् :
(द) सत्व
प्रश्न 16.
ष्टुत्वसन्धेः उदाहरणं किम् ?
(अ) राष्ट्रम्
(ब) दिग्गजः
(स) निःशेषः
(द) सत्कारः
उत्तरम् :
(अ) राष्ट्रम्
(ब) अतिलघूत्तरात्मकप्रश्नाः
प्रश्न 1.
समुचितं सन्धिविच्छेदरूपं पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 2.
समुचितं सन्धिपदं चित्वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 3.
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानां यथापेक्षं सन्धिम् अथवा सन्धिविच्छेदं कृत्वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 4.
समुचितं सन्धिपदं चित्वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 5.
सन्धिविच्छेदं कृत्वा लिखत
उत्तरम् :
प्रश्न 6.
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु सन्धिविच्छेदं कृत्वा लिखत
उत्तरम् :
प्रश्न 7.
निम्नलिखितपदानां सन्धि-विच्छेदं कृत्व सन्धेः नाम अपि लिखत।
उत्तरम् :
प्रश्न 8.
निम्नलिखितशब्दानां सन्धिं कृत्वा सन्धेः नाम अपि लिखत।
उत्तरम् :
प्रश्न 9.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नामापि लेखनीयम् -
(i) सच्छात्रः
(ii) तट्टीका
(iii) जगदीशः।
उत्तरम् :
(i) सत् + छात्रः = श्चुत्व सन्धि।
(ii) तत् + टीका = ष्टुत्व सन्धि।
(iii) जगत् + ईशः = जश्त्व सन्धि।
प्रश्न 10.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कृत्वा तस्य नामापि लिखत
(i) बहिः + गच्छ
(ii) बालकः + गच्छति
(iii) नमः + ते।
उत्तरम् :
(i) बहिर्गच्छ = विसर्ग, रुत्वसन्धि।
(ii) बालको गच्छति = विसर्ग, उत्वसन्धि।
(iii) नमस्ते = विसर्ग, सत्वसन्धि।
प्रश्न 11.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नामापि लेखनीयम् -
(i) इष्टः
(ii) सत्पुत्रः
(iii) यस्तु।
उत्तरम् :
प्रश्न 12.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कृत्वा तस्य नामापि लिखत -
(i) दिक् + गजः
(ii) यशः + दा
(iii) निः + चलः।
उत्तरम् :
(i) दिग्गजः, जश्त्वसन्धिः।
(ii) यशोदा, उत्वसन्धिः।
(iii) निश्चलः, सत्वसन्धिः
प्रश्न 13.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नामापि लेखनीयम् -
(i) उज्ज्वलः
(ii) दिगम्बरः
(iii) हरिं वन्दे।
उत्तरम् :
प्रश्न 14.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कृत्वा तस्य नामापि लिखत
उत्तरम् :
प्रश्न 15.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धि-विच्छेदं कृत्वा सन्धेः नामापि लिखत -
(i) दिग्गजः
(ii) उच्चारणम्
(iii) तत्फलम्।
उत्तरम् :
प्रश्न 16.
अधोलिखितेषु पदेषु सन्धिं कृत्वा तस्य नाम निर्देशनं कुरुत -
उत्तरम् :
प्रश्न 17.
अधोलिखितेषु वाक्येषु स्थूलाङ्कितपदानां सन्धिं सन्धिच्छेदं वा कृत्वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 18.
निम्नलिखितवाक्येषु स्थूलपदानां सन्धिं सन्धिच्छेदं वा कृत्वा लिखत
उत्तरम् :
प्रश्न 19.
निम्नलिखितवाक्येषु स्थूलपदानाम् सन्धिं सन्धिच्छेदं वा कृत्वा लिखत
उत्तरम् :
प्रश्न 20.
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानां सन्धिं सन्धिच्छेदं वा कृत्वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 21.
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कृत्वा लिखत -
उत्तरम् :