Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 8 लौहतुला Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत -
(क) वणिक्पुत्रस्य किं नाम आसीत्?
(ख) तुला कैः भक्षिता आसीत्?
(ग) तुला कीदृशी आसी?
(घ) पुत्र. क्रेन हृतः इति जीर्णधनः वदति?
(ङ) विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ?
उत्तराणि :
(क) जीर्णधनः।
(ख) मूषकैः
(ग) लौहघटिता।
(घ) श्येन
(ङ) राजकुलम्।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत्?
(दूसरे देश में जाने की इच्छा करते हुए व्यापारी पुत्र ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत्-'यत्र पूर्वं भोगाः भुक्ताः तत्र विभवहीनः सन् न वसेत्।'
(व्यापारी पुत्र ने सोचा "जहाँ पहले ऐश्वर्यों का उपभोग किया गया, वहीं पर निर्धन होने पर नहीं रहना चाहिए।")
(ख) स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किं अकथयत्?
(अपनी तराजू को माँगने वाले जीर्णधन से सेठ ने क्या कहा?)
उत्तरम् :
जीर्णधनं श्रेष्ठी अकथयत्"भोः! नास्ति तुला सा तु मूषकैः भक्षिता।"
(जीर्णधन से सेठ ने कहा- "अरे! तराजू नहीं है, उसे तो चूहों ने खा लिया।")
(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः।।
(जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को किससे ढककर घर आ गया?)
उत्तरम् :
जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं महत्या शिलया आच्छाद्य गृहमागतः।
(जीर्णधन पर्वत की गुफा के द्वार को बहुत बड़ी शिला से ढककर घर आ गया।)
(घ) स्नानानतरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् अवदत्?
(स्नान के बाद पुत्र के विषय में पूछे जाने पर व्यापारी-पुत्र ने सेठ से क्या कहा?)
उत्तरम् :
वणिक्पुत्रः अवदत्-"भोः! तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः"।
(व्यापारी,पुत्र ने कहा-"अरे! तुम्हारे पुत्र का नदी के किनारे से बाज द्वारा अपहरण कर लिया गया।")
(ङ) धर्माधिकारिणः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं तोषितवन्तः?
(धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और सेठ को किस प्रकार सन्तुष्ट किया?)
उत्तरम् :
धर्माधिकारिणः तौ परस्परं तुला-शिशु-प्रदानेन तोषितवन्तः।
(धर्माधिकारियों ने उन दोनों को परस्पर में तराजू और बालक देकर सन्तुष्ट किया।)
प्रश्न 3.
स्थलपदान्यधिकत्य प्रश्ननिर्माणं करुत
(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
उत्तरम् :
कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्?
(ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः।
उत्तरम् :
श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः?
(ग) वणिक् गिरिगुहां बृहच्छिलया आच्छादितवान्।
उत्तरम् :
वणिक् गिरिगुहां कया आच्छादितवान्?
(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।
उत्तरम् :
सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य कथं सन्तोषितौ?
प्रश्न 4.
अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तम् पूरयत -
(क) यत्रं देशे अथवा स्थाने ...... भोगाः भुक्ता ........ विभवहीनः यः ........... स पुरुषाधमः।
(ख) राजन्! यत्र लौहसहनस्य ......... मूषकाः .......... तत्र श्येनः .......... हरेत्, अत्र संशयः न।
उत्तरम् :
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ता तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः।
(ख) राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति तत्र श्येनः बालकं हरेत् अत्र संशयः न।
प्रश्न 5.
तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र -
(क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति
स्य, लौहसहस्रस्य, संबोध्य, आदाय।
उत्तरम् :
लौहसहस्रस्य।
(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति -
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्वरम्, कार्यकारणम्
उत्तरम् :
सत्वरम्।
(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति
पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः सभ्यानाम्
उत्तरम् :
स्ववीर्यतः।
प्रश्न 6.
सन्धिना सन्धिविच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
(क) श्रेष्ठ्याह = .......... + आह
(ख) ......... = द्वौ + अपि
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + ...........
(घ) ............ = यथा + इच्छया
(ङ) स्नानोपकरणम् = ................ + उपकरणम्
(च) ............ = स्नान + अर्थम्
उत्तरम् :
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी + आह
(ख) द्वावपि = द्वौ + अपि
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्
प्रश्न 7.
समस्तपदं विग्रहं वा लिखत -
विग्रहः समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = ............
(ख) ......... ........... = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = .............
(घ) ............ ........... = विभवहीनाः
उत्तरम् :
विग्रहः समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = स्नानोपकरणम्
(ख) गिरेः गुहायाम्। = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = धर्माधिकारी
(घ) विभवेन हीनाः = विभवहीनाः
(अ) यथापेक्षम् अधोलिखितानां शब्दानां सहायतया 'लौहतुला' इति कथायाः सारांशं संस्कृतभाषया लिखत -
वणिक्पुत्रः स्नानार्थम्
लौहतुला अयाचत्
वृत्तान्तं ज्ञात्वा
श्रेष्ठिनं प्रत्यागतः
गतः प्रदानम्
उत्तरम् :
कस्मिंश्चिद् नगरे एक: वणिक्पुत्रः आसीत्। निर्धनो भूत्वा सः स्वस्य लौहतुलां कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं गतः। ततः सुचिरं भ्रान्त्वा पुनः स्वनगरमागत्य श्रेष्ठिनं तुलाम् अयाचत्। श्रेष्ठी अवदत्-सा तुला तु मूषकैः भक्षिता। ततः सः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठीपुत्रेण सह नद्यां स्नानार्थं गत्वा तत्र च गिरि-गुहायां तस्य श्रेष्ठिनः पुत्र प्रक्षिप्य सत्वरं गृहमागतः। यदा सः वणिक्पुत्रः एकाकी प्रत्यागतः तदा श्रेष्ठी स्वपुत्रविषये पृष्टवान्। तेन कथितं यत् "नदीतटात् सः श्येनेन हृत! तौ विवदमानौ राजकुलं गतौ। तत्र धर्माधिकारिणैः सर्वं वृत्तान्तं ज्ञात्वा तौ संबोध्य परस्परं तुला-शिशु-प्रदानेन च सन्तोषितौ।"
प्रश्न 1.
'स च देशान्तरं गन्तुम् इच्छन् व्यचिन्तयत्।'
रेखाङ्कितपदे कः प्रत्ययः?
(अ) शतृ
(ब) शानच्
(स) क्त
(द) तव्यत्
उत्तर :
(अ) शतृ
प्रश्न 2.
"त्वदीया तुला......... भक्षिता।"
रिक्तस्थाने पूरणीयपदं वर्तते...
(अ) मूषकः
(ब) मूषकाः
(स) मूषकैः
(द) मूषकानाम्
उत्तर :
(स) मूषकैः
प्रश्न 3.
'पितृव्योऽयं तव स्नानार्थं यास्यति।'
रेखांकितपदे प्रयुक्तलकारः वर्तते
(अ) लट्
(ब) लृट्
(स) लोट
(द) लङ्
उत्तर :
(ब) लृट्
प्रश्न 4.
"असौ तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः।"
रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तविभक्तिः वर्तते -
(अ) सप्तमी
(ब) पंचमी
(स) चतुर्थी
(द) तृतीया
उत्तर :
(द) तृतीया
प्रश्न 5.
"शिशमेनं........... सह प्रेषय।"
रिक्तस्थाने पूरणीयं समुचितं पदं किम्?
(अ) मया
(ब) माम्
(स) मम
(द) मत्
उत्तर :
(अ) मया
लघूत्तरात्मक प्रश्न :
(क) संस्कृत में प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जीर्णधनः कस्मात् कारणात् देशान्तरं गन्तुमिच्छति?
(जीर्णधन किस कारण दूसरे देश में जाना चाहता था?)
उत्तर :
जीर्णधनः विभवक्षयाद्देशान्तरं गन्तुमिच्छति।
(जीर्णधन धन नष्ट हो जाने के कारण दूसरे देश में जाना चाहता था।)
प्रश्न 2.
जीर्णधनस्य गृहे कीदृशी तुला आसीत्?
(जीर्णधन के घर में कैसी)
उत्तर :
जीर्णधनस्य गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुलासीत्।
(जीर्णधन के घर में लोहे से निर्मित पूर्वजों की तराजू थी।)
प्रश्न 3.
जीर्णधनेन स्वस्य लौहतुला कुत्र निक्षेपभूता कृता?
(जीर्णधन ने अपनी लोहे की तराजू कहाँ धरोहर के रूप में रखी थी?)
उत्तर :
जीर्णधनेन स्वस्य लौहतुला कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेप भूता कृता।
(जीर्णधन ने अपनी लोहे की तराजू किसी सेठ के घर धरोहर के रूप में रखी थी।)
प्रश्न 4.
लौहतुलाः कैः भक्षिता?
(लोहे की तराजू को कौन खा गये थे?)
उत्तर :
लौहतुला मूषकैः भक्षिता।
(लोहे की तराजू को चूहे खा गये थे।)
प्रश्न 5.
श्रेष्ठिनः पुत्रस्य किन्नाम आसीत्?
(सेठ के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तर :
श्रेष्ठिनः पुत्रस्य नाम धनदेवः आसीत्।
(सेठ के पुत्र का नाम धनदेव था।)
प्रश्न 6.
वणिक्शिशः स्नानार्थं केन सह प्रस्थित:?
(बनिये का पुत्र स्नान करने के लिए किसके साथ गया?)
उत्तर :
वणिक्शिशुः अभ्यागतेन जीर्णधनेन सह स्नानार्थ प्रस्थितः।
(बनिये का पुत्र अतिथि जीर्णधन के साथ स्नान करने गया।)
प्रश्न 7.
जीर्णधनः श्रेष्ठिनः शिशुं कुत्र प्रक्षिप्य सत्वरं गृहमागतः?
(जीर्णधन सेठ के पुत्र को कहाँ फेंककर शीघ्र ही घर आ गया?)
उत्तर :
जीर्णधनः श्रेष्ठिनः शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य सत्वरं गृहमागतः।
(जीर्णधन सेठ के पुत्र को पर्वत की गुफा में फेंककर शीघ्र ही घर आ गया।)
प्रश्न 8.
जीर्णधनानुसारेण वणिक्शिशुः केन अपहृतः?
(जीर्णधन के अनुसार बनिये के पुत्र का किसने अपहरण कर लिया?)
उत्तर :
जीर्णधनानुसारेण वणिक्शिशुः नदीतटात् श्येनेन अपहृतः।
(जीर्णधन के अनुसार बनिये के पुत्र का नदी-तट से बाज द्वारा अपहरण कर लिया गया।)
प्रश्न 9.
विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ?
(विवाद करते हुए वे दोनों कहाँ गये?)
उत्तर :
तौ द्वावपि राजकुलं गतौ।
(वे दोनों राजदरबार में गये।)
प्रश्न 10.
राजकले श्रेष्ठी तारस्वरेण किं प्रोवाच?
(राजदरबार में सेठ ऊँची आवाज में क्यों बोला?)
उत्तर :
सः तारस्वरेण प्रोवाच-"अब्रह्मण्यम्! मम शिशुरनेन चौरेणापहृतः।"
(वह ऊँची आवाज में बोला-"बड़ा अन्याय! मेरे पुत्र को इस चोर ने चुरा लिया।")
प्रश्न 11.
श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे किम् निवेदयामास?
(सेठ ने सभासदों के सामने क्या निवेदन किया?)
उत्तर :
श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्वं वृत्तान्तं निवेदयामास।
(सेठ ने सभासदों के सामने आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त कह दिया।)
प्रश्न 12.
धर्माधिकारिभिः तौ केन प्रकारेण सन्तोषितौ?
(धर्माधिकारियों द्वारा उन दोनों को किस प्रकार सन्तुष्ट किया गया?)
उत्तर :
धर्माधिकारिभिः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।
(धर्माधिकारियों ने उन दोनों को आपस में समझाकर तराजू और बालक दिलाकर सन्तुष्ट किया।)
प्रश्न 13.
वणिक्पुत्रस्य किं नाम आसीत्? (वणिक् पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तर :
वणिक्पुत्रस्य नाम जीर्णधनः आसीत्।
(वणिक् पुत्र का नाम जीर्णधन था।)
प्रश्न 14.
जीर्णधनानुसारेण कः पुरुषाधमः?
(जीर्णधन के अनुसार अधम पुरुष कौन है?)
उत्तर :
जीर्णधनानुसारेण यस्मिन् देशेऽथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् सः पुरुषाधमः।
(जीर्णधन के अनुसार जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से ऐश्वर्यों को भोगा गया, वहीं पर धनहीन होकर जो रहता है वह पुरुष अधम है।)
प्रश्न 15.
तुलां निक्षिप्य जीर्णधनः कुत्र अगच्छत्?
(तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन कहाँ चला गया?)
उत्तर :
तुलां निक्षिप्य जीर्णधनः देशान्तरम् अगच्छत्।
(तराजू को धरोहर रखकर जीर्णधन परदेश चला गया।)
प्रश्न 16.
कुत्र किञ्चिदपि शाश्वतं नास्ति?
(कहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है?)
उत्तर :
संसारे किञ्चिदपि शाश्वतं नास्ति।
(संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है।)
प्रश्न 17.
जीर्णधनः स्नानार्थं कुत्र गच्छति?
(जीर्णधन स्नान के लिए कहाँ जाता है?)
उत्तर :
जीर्णधनः स्नानार्थं नद्यां गच्छति।
(जीर्णधन स्नान के लिए नदी पर जाता है।)
प्रश्न 18.
जीर्णधनः स्नात्वा किम् कृत्वा च गृहमागतः?
(जीर्णधन स्नान करके और क्या करके घर आ गया?)
उत्तर :
जीर्णधनः स्नात्वा वणिक्शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य च गृहमागतः।
(जीर्णधन स्नान करके और सेठ के पुत्र को पर्वत की गुफा में फेंककर घर आ गया।)
प्रश्न 19.
श्येनः कम् हर्तुं न शक्नोति?
(बाज किसका अपहरण नहीं कर सकता?)
उत्तर :
श्येनः शिशुं हर्तुं न शक्नोति।
(बाज बालक का अपहरण नहीं कर सकता।)
प्रश्न 20.
कः सभ्यानामग्रे आदितः सर्वं वृत्तान्तं निवेदयामास?
(किसने सभासदों के सामने आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त निवेदन किया?)
उत्तर :
श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्वं वृत्तान्तं निवेदयामास।
(सेठ ने सभासदों के सामने आरम्भ से सम्पूर्ण वृत्तान्त निवेदन किया।)
(ख) प्रश्न निर्माणम्
प्रश्न 1.
रेखाङ्कितपदान्यधिकृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत
उत्तर :
प्रश्न-निर्माणम्
(ग) कथाक्रम-संयोजनम्
प्रश्न 1.
अधोलिखितक्रमरहितवाक्यानां कथाक्रमानुसारेण संयोजनं कुरुत
उत्तर :
वाक्यानां क्रमपूर्वकं संयोजनम्
प्रश्न 2.
निम्नलिखितक्रमरहितवाक्यानां क्रमपूर्वकं संयोजनं कृत्वा लिखत -
उत्तर :
पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ विष्णुशर्मा द्वारा रचित 'पञ्चतन्त्रम्' नामक कथा-ग्रन्थ के 'मित्रभेद' नामक तन्त्र से सङ्कलित है। इसमें विदेश से लौटकर जीर्णधन नामक व्यापारी अपनी धरोहर (तराजू) को सेठ से माँगता है। 'तराजू चूहे खा गये हैं' ऐसा सुनकर जीर्णधन उसके पुत्र को स्नान के बहाने नदी तट पर ले जाकर गुफा में छिपा देता है। सेठ द्वारा अपने पुत्र के विषय में पूछने पर जीर्णधन कहता है कि 'पुत्र को बाज उठा ले गया है।' इस प्रकार विवाद करते हुए दोनों न्यायालय पहुँचते हैं जहाँ धर्माधिकारी उन्हें समुचित न्याय प्रदान करते हैं।
पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या -
1. आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः। स च विभवक्षयाद्देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् -
यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥
तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुलासीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरमागत्य तं श्रेष्ठिनमुवाच "भोः श्रेष्ठिन्! दीयतां मे सा निक्षेपतुला।" स आह-"भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता" इति।
कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत कथांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) के 'लौहतुला' नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ संस्कृत के सुप्रसिद्ध कथा-ग्रन्थ 'पञ्चतन्त्रम्' के 'मित्रभेद' नामक तन्त्र से संकलित किया गया है। इस अंश में नष्ट हुए धन वाले किसी व्यापारी द्वारा धन कमाने हेतु दूसरे देश में जाते समय अपनी पुस्तैनी लोहे की तराजू को धरोहर रूप में रखने का तथा वापस आकर माँगने पर सेठ द्वारा बहाना बनाकर तुला लौटाने से मना करने का वर्णन हुआ है।
हिन्दी-अनुवाद : किसी स्थान पर जीर्णधन नाम का कोई व्यापारी (बनिया का पुत्र) रहता था। धन के नष्ट हो जाने के कारण दूसरे देश में जाने की इच्छा करते हुए उसने सोचा कि जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम द्वारा अत्यधिक ऐश्वर्य का भोग किया हो, उसी स्थान पर जो मनुष्य धनहीन होकर रहता है तो वह अधम (नीच) मनष्य माना जाता है।
और उसके घर में पूर्वजों द्वारा अर्जित एक लोहे से बनी हुई तराजू थी। और उस तराजू को किसी सेठ के घर में धरोहर के रूप में रखकर वह दूसरे देश में चला गया। इसके बाद बहुत समय तक दूसरे देश में इच्छानुसार भ्रमण करके वह फिर से अपने नगर में आकर सेठ से बोला - "हे सेठजी ! मेरी वह धरोहर रूप में रखी हुई तराजू दीजिए।" वह बोला-"अरे! वह तराजू तो नहीं है, तुम्हारी तराजू को चूहे खा गए।"
सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -
प्रसङ्गः - प्रस्तुतकथांशः अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य 'शेमुषी-प्रथमो भागः' इत्यस्य 'लौहतुला' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः पाठोऽयं पं. विष्णुशर्माविरचितस्य 'पञ्चतन्त्रम्' इति कथाग्रन्थस्य 'मित्रभेद' इति तन्त्रात् सङ्कलितः।
अंशेऽस्मिन् निर्धनजीर्णधनस्य वणिक्पुत्रस्यः आत्मग्लानिपूर्णविचाराणां, स्वस्य लौहतुलां कस्यचिद् श्रेष्ठिनः पार्वे निक्षेपं कृत्वा देशान्तरं गमनस्य प्रत्यावर्तनानन्तरं लोभविष्टेन श्रेष्ठिना असत्यकथनस्य च वर्णनं वर्तते।
संस्कृत-व्याख्या - कुत्रचित् स्थाने जीर्णधनाभिधः व्यापारिसुतः अवर्तत। असौ च धनाभावात् अन्यस्थानं प्रयातुकामः चिन्तितवान् यस्मिन् स्थाने स्वपराक्रमेण भोग्यानि वस्तूनि उपभुक्तानि तस्मिन् एव स्थाने धनाभावपीडितः भूत्वा यो वसति असौ नीचः जनः भवंति।
तस्य जीर्णधनस्य च निकेतने पूर्वजैः समुपार्जिता लौहनिर्मिता तुला आसीत्। तां च तुलां सः कस्यचित् धनिकस्य आवासे न्यासरूपेण धृत्वा अन्यस्मिन् देशे प्रस्थानम् अकरोत्। तदनन्तरं विदेशे बहुकालं स्वेच्छया भ्रमणं कृत्वा भूयः स्वस्य ग्राममागत्य सः जीर्णधनः तं धनिकम् अवदत्'हे धनिक ! मदीया सा न्यासरूपा तुलां ददातु।" सः श्रेष्ठी अवदत् "अरे ! सा तुला तु न वर्तते, यतोहि तव लौहतुला मूषकैः खादिता" इति।
व्याकरणात्मक टिप्पणी
2. जीर्णधन अवदत्-"भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैक्षितेति। ईदृगेवायं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वमात्मीयं शिशुमेनं धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय" इति।
स श्रेष्ठी स्वपुत्रमुवाच-"वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् गम्यतामनेन सार्धम्" इति।
अथासौ वणिक्शिशुः स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमनाः तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। तथानुष्ठिते स वणिक् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तदद्वारं बृहच्छिलयाच्छाद्य सत्त्वरं गृहमागतः।
कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) के 'लौहतुला' नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस अंश में लोहे की तराजू को चूहों द्वारा खाया जाना बताकर सेठ द्वारा लौटाने से मना करने पर जीर्णधन द्वारा बुद्धि-बल से बिना किसी विकार को प्रकट करके उस सेठ के पुत्र को अपने साथ स्नान हेतु नदी तट पर ले जाने का तथा वहाँ पर्वत की गुफा में उस बालक को छिपा देने का वर्णन किया गया है।
हिन्दी-अनुवाद : जीर्णधन बोला-"हे सेठजी ! तुम्हारा दोष नहीं है, यदि चूहों के द्वारा तराजू को खा लिया गया है तो। यह संसार इसी प्रकार का ही है। यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं है। किन्तु मैं नदी पर स्नान करने के लिए ज। इसलिए तुम अपने इस पुत्र धनदेव नाम वाले को मेरे साथ स्नान की सामग्री के साथ भेज दीजिए।"
वह सेठ अपने पुत्र से बोला "पुत्र! तुम्हारे चाचा स्नान के लिए जायेंगे, इसलिए तुम भी इनके साथ जाओ।"
इसके बाद वह व्यापारी का पुत्र स्नान की सामग्री को हाथ में लिए हुए प्रसन्न मन से उस अतिथि के साथ चला गया। वैसा ही होने पर उस व्यापारी ने स्नान करके उस बालक को पर्वत की गुफा में फेंककर (छोड़कर), उसके दरवाजे को एक बड़े शिलाखण्ड से ढककर शीघ्र ही वह घर आ गया।
सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -
प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'लौहतुला' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे लौहतुला मूषकैक्षितेति श्रेष्ठिनः कथनस्य समर्थनं कृत्वा जीर्णधनः तस्य श्रेष्ठिनः पुत्रं स्नानव्याजेन नदीतटं प्रति नयति, तत्र च तं शिशं गिरिगहायां प्रक्षिप्य गृहं प्रत्यागच्छतीति वर्णितम्।
संस्कृत-व्याख्या - जीर्णधनः अवदत्-हे धनिक! तव अपराधः न वर्तते, चेत् लौहतुलां आखुभिः खादितेति। एतत् भुवनं एतादृशमेव वर्तते। अत्र न किमपि स्थिरं वर्तते। किन्तु अधुना अहं स्नानाय सरितातटे यास्यामि। तस्मात् भवान् स्वस्य इमं बालकं धनदेवाभिधानं मया साकं स्नानसामग्रीहस्तं प्रेषयतु।" इति।
सः धनिकः स्वसुतम् अकथयत्-"पुत्र! एषः पितृतुल्यः त्वदीयः, स्नानाय गमिष्यति, तस्मात् अनेन जीर्णधनेन सह गच्छ।"
अनन्तरं सः धनिकपुत्रः स्नानसामग्री गृहीत्वा प्रसन्नचेतः तेन आगन्तुकेन जीर्णधनेन सार्धं प्रस्थानं करोति। तथैव कृते सति सः वणिक् जीर्णधनः स्नानं कृत्वा तं बालं पर्वतकन्दरायां निक्षिप्य, तस्याः गुहायाः द्वारं विशालशिलाखण्डेन आच्छाध शीघ्रमेव निकेतनमागतवान्।
व्याकरणात्मक टिप्पणी -
3. सः श्रेष्ठी पृष्टवान्-"भोः! अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र मे शिशुर्यस्त्वया सह नदीं गतः"? इति।
स आह - "नदीतटात्स श्येनेन हृतः" इति। श्रेष्ठ्याह-"मिथ्यावादिन्! किं क्वचित् श्येनो बालं हर्तुं शक्नोति? तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।" इति।
स आह - "भोः सत्यवादिन्! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति। तदर्पय मे तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।" इति।
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण प्रोवाच-"भोः! अब्रह्मण्यम्! अब्रह्मण्यम्! मम शिशुरनेन चौरेणापहृतः" इति।
कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) के 'लौहतुला' नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ 'पञ्चतन्त्र' के 'मित्रभेद' नामक तन्त्र से संकलित किया गया है। लोहे की तराजू को देने से मना करने पर अतिथि (व्यापारी) सेठ के पुत्र को नदी तट पर स्नान कराने के बहाने से ले जाकर पर्वत की गुफा में छिपा देता है, लौटने पर जब सेठ अपने पुत्र के विषय में पूछता है तो वह उसे बाज पक्षी द्वारा उठा ले जाने की बात कहता है, जिस पर सेठ विश्वास नहीं करता एवं दोनों झगड़ा करते हुए राजदरबार में पहुँच जाते हैं, इसी घटना का प्रस्तुत अंश में वर्णन किया गया है -
हिन्दी-अनुवाद : और उस व्यापारी ने पूछा - "हे अतिथि! कहो, मेरा पुत्र कहाँ है, जो कि तुम्हारे साथ नदी पर गया था?"
वह बोला, "नदी के तट से उसे बाज पक्षी हरण करके (उठाकर) ले गया।" सेठ बोला-"अरे झूठे! क्या
तक का हरण कर सकता है? इसलिए मेरे पत्र को लौटा दो. अन्यथा मैं राजदरबार में निवेदन करूँगा।" वह बोला - '"हे सत्यवादि! जिस प्रकार बाज बालक को नहीं ले जाता है, उसी प्रकार चूहे भी लोहे से बनी हुई तराजू को नहीं खाते हैं। इसलिए मेरी तराजू लौटा दीजिए यदि तुम्हें पुत्र से कोई प्रयोजन है तो।"
इस प्रकार झगड़ा करते हुए वे दोनों ही राजदरबार में चले गये। वहाँ सेठ जोर से बोला-"अरे! घोर अन्याय, घोर अन्याय ! मेरे बालक का इस चोर ने अपहरण कर लिया है।"
सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -
प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'लौहतुला' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे श्रेष्ठिनः स्वस्य पुत्रविषये जीर्णधनस्य च लौहतुलाविषये विवादं वर्णितम्।
संस्कृत-व्याख्या - तेन श्रेष्ठिना जीर्णधनम् अपृच्छत् - 'भोः! आगन्तुक! वदतु, कुत्र मम बालः, यः भवता साकं सरितां स्नानाय गतवान्?" इति।
सः जीर्णधनः अवदत्-"तं शिशुं तु सरितातटात् श्येनः इति पक्षिविशेषः अपहृतवान्।" धनिकः अकथयत् "अरे असत्यवक्ता! किं कुत्रापि श्येनः पक्षि :विशेषः शिशो: अपहरणं कर्तुं शक्यते? तस्मात् मम पुत्र अर्पय, अन्यथा राजद्वारे (न्यायालये) निवेदनं करिष्यामि।"
सः जीर्णधनः अवदत्-“हे सत्यवक्ता! येन प्रकारेण श्येनखग-विशेषः बालकं नेतुं न शक्नोति, तेनैव प्रकारेण लौहनिर्मितां तुलामपि मूषकाः खादयितुं न शक्नुवन्ति। तस्मात् मदीयां तुलां ददातु, चेत् स्वपुत्रं वाञ्छति।"
एनेन प्रकारेण विवादं कुर्वन्तौ तौ धनिकजीर्णधनौ द्वावपि राजकुलं (न्यायालयं) अगच्छताम्। तत्र राजकुले धनिकः उच्चस्वरेण अवदत्-"अरे! अन्यायरूपम् अनुचितम्! अन्यायम्! मदीयबालकस्य अनेन चौरेण जीर्णधनेन अपहरणं कृतम्।"
व्याकरणात्मक टिप्पणी -
4. अथ धर्माधिकारिणस्तमूचुः-"भोः! समर्म्यतां श्रेष्ठिसुतः"।
स आह-"किं करोमि? पश्यतो मे नदीतटाच्छ्येनेन अपहृतः शिशुः"। इति। तच्छ्रुत्वा ते प्रोचुः भोः! न सत्यमभिहितं भवता-किं श्येनः शिशुं हर्तुं समर्थो भवति?
स आह-भोः भोः! श्रूयतां मद्वचः -
तलां लौहसहस्त्रस्य यत्र खादन्ति मषकाः।
राजन्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं नात्र संशयः॥
ते प्रोचुः-"कथमेतत्"।।
ततः स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्व वृत्तान्तं निवेदयामास। ततस्तैर्विहस्य द्वावपि तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन तोषितवत्।
कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत कथांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) के 'लौहतुला' शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो मूलतः पञ्चतन्त्र' के 'मित्रभेद' से संकलित किया गया है। इस अंश में व्यापारी और सेठ दोनों के द्वारा कलह करते हुए राजकुल में पहुँच कर एक-दूसरे पर आरोप लगाने का तथा व्यापारी की उक्ति से यथार्थ जानकर धर्माधिकारी द्वारा व्यापारी को उसकी लोहे की तराजू तथा सेठ को उसका पुत्र लौटाकर सन्तुष्ट किये जाने का वर्णन हुआ है।
हिन्दी-अनुवाद - इसके बाद न्यायाधीशों ने उस व्यापारी से कहा कि-'अरे! इस सेठ का पुत्र दे दीजिए।' वह बोला-'मैं क्या करता? मेरे देखते-देखते नदी के किनारे से बाज बालक को उठा ले गया।' - यह सुनकर वे न्यायाधीश बोले-अरे! आपने सत्य नहीं कहा है, क्या बाज बालक का अपहरण करने में समर्थ होता है?
वह बोला-हे सभ्यजनो! मेरी बातें सुनिए -
जहाँ एक टन (हजार किलोग्राम) की लोहे की तराजू को चूहे खा सकते हैं, हे राजन् ! वहाँ पर बाज भी बालक का अपहरण कर सकता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
वे बोले-"यह कैसे सम्भव है?"
इसके बाद उस सेठ (व्यापारी पुत्र) ने धर्माधिकारियों के सामने आरम्भ से लेकर सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया। तब उन धर्माधिकारियों ने हँसते हुए उन दोनों को आपस में समझाकर तथा परस्पर में तुला एवं बालक को प्रदान करके सन्तुष्ट कर दिया।
सप्रसङ्गः संस्कृत-व्याख्या -
प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'लौहतुला' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे धनिकस्य पुत्रविषये जीर्णधनस्य च लौहतुलाविषये विवादस्य, राजकले च तयोः निर्णयस्य वर्णन रोचकतया वर्तते।
संस्कृत-व्याख्या - एतदनन्तरं न्यायाधिकारिणः तं जीर्णधनं प्रति अवदत् "अरे! अस्य धनिकस्य पुत्रः अर्पयताम्।" स जीर्णधनः अवदत् "किं करोमि? मम अवलोकयतः सरितातटाद् श्येनः पक्षिविशेषः बालकस्य अपहरणं कृतवान्।"
तस्य वचनमाकर्ण्य ते अवदन् - अरे! त्वया असत्यं कथितम्, किं श्येनः पक्षिविशेषः बालकस्य अपहरणं कर्तुं समर्थः भवति?
असौ जीर्णधनः अवदत्-रे! मम वचनानि आकर्ण्य -
दशशतलौहनिर्मितं तोलनयन्त्रं यस्मिन् स्थाने आखवः भक्षयन्ति, तस्मिन् स्थाने श्येनः शिशुं नयेत् नास्मिन् सन्देहः वर्तते।
ते न्यायाधिकारिणः अवदन-"इदं केन प्रकारेण?"
तदनन्तरं तेन जीर्णधनेन तेषां धर्माधिकारिणां सम्मुखे प्रारम्भतः सकलं घटनाचक्रं यथार्थतया वर्णितम्। तत्पश्चात् यथार्थ ज्ञात्वा तैः धर्माधिकारिभिः हसित्वा तौ धनिकजीर्णधनौ द्वावपि मिथः संबोध्य तथा जीर्णधनाय तस्य लौहतुलां प्रदाय, धनिकाय च तस्य पुत्र प्रदाय सन्तुष्टौ कृतवन्तौ।
व्याकरणात्मक टिप्पणी -