RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम् Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

RBSE Class 9 Sanskrit जटायोः शौर्यम् Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
एकपदेन उत्तरं लिखत 
(क) आयतलोचना का अस्ति? 
(ख) सा कं ददर्श? 
(ग) खगोत्तमः कीदृशीं गिरं व्याजहार? 
(घ) जटायुः काभ्यां रावणस्य गात्रे व्रणं चकार? 
(ङ) अरिन्दमः खगाधिपः कति बाहून् व्यपाहर? 
उत्तराणि :
(क) सीता। 
(ख) गृध्रम् (जटायुम्)।
(ग) शुभाम्। 
(घ) तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्याम्। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

प्रश्न 2. 
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-) 
(क) "जटायो! पश्य" -इति का वदति?
("जटायु! देखो"-ऐसा कौन कहती है?) 
उत्तरम् :
"जटायो! पश्य" - इति वैदेही वदति। 
("जटायु ! देखो" - ऐसा सीता कहती है।) 

(ख) जटायुः रावणं किं कथयति?
(जटायु रावण से क्या कहता है?) 
उत्तरम् : 
"रावण! परदाराभिमर्शनात् नीचां मति निवर्तय" इति। 
("रावण! पराई स्त्री के स्पर्श से दुष्ट बनी हुई दुर्बुद्धि को छोड़ो।") 

(ग) क्रोधवशात रावणः किं कर्तम उद्यतः अभवत? 
(क्रोध के कारण रावण क्या करने को तत्पर हो गया?) 
उत्तरम् : 
क्रोधोन्मत्त रावणः जटायुं तलेन अभिजधान। 
(क्रोध से पागल हुए रावण ने जटायु को थप्पड़ से ही मार डाला।) 

(घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभज? 
(पक्षिराज ने रावण के किस प्रकार के धनुष को बाण सहित तोड़ डाला?) 
उत्तरम् :
पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणि विभूषितं सशरं चापं बभञ्ज। 
(पक्षिराज ने रावण के मुक्तामणियों से सुसज्जित बाण सहित धनुष को तोड़ डाला।)

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(ङ) जटायुः केन वामबाहुं दंशति? 
(जटाय किससे बायीं भुजा को काटता है?) 
उत्तरम् : 
जटायुः तुण्डेन वामबाहुं दंशति। 
(जटायु चोंच से बायीं भुजा को काटता है।) 

प्रश्न 3. 
उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत 
यथा - गुण + णिनि - गुणिन् (गुणी) 
दान + णिनि - दानिन् (दानी) 
(क) कवच + णिनि - _________ 
(ख) शर + णिनि - ________
(ङ) दश। + णिनि - ________
(ग) कुशल + णिनि - _________
(घ) धन + णिनि - ___________
(ङ) दण्ड + णिनि - ___________
उत्तरम् : 
(क) कवचं + णिनि - कवचिन् (कवची) 
(ख) शर + णिनि - शरिन् (शरी) 
(ग) कुशल + णिनि - कुशलिन् (कुशली)
(घ) धन + णिनि - धनिन् (धनी)
(ङ) दण्ड + णिनि - दण्डिन् (दण्डी) 

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(अ) रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक् कृत्वा लिखत - 
युवा, सशरः, वृद्धः, हताश्वः, महाबलः, पतगसत्तमः, भग्नधन्वा, महागृधः, खगाधिपः, क्रोधमूर्च्छितः, पतगेश्वरः, सरथः, कवची, शरी। 
यथा - 
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम् 1
उत्तरम :
रावणः - जटायुः
सशरः - महाबलः
हताश्वः - पतगसत्तमः
भग्नधन्वा - महागृध्रः
क्रोधमूर्च्छितः - खगाधिपः
सरथः - पतगेश्वरः
कवची - शरी

प्रश्न 4. 
'क' स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः 'ख' स्तम्भे लिखिताः। तान् यथासमक्षं योजयत -
क - ख 
कवची - अपतत्
आशु - पक्षिश्रेष्ठः
विरथः - पृथिव्याम्
पपात - कवचधारी
भुवि - शीघ्रम्
पतगसत्तमः - रथविहीनः
उत्तरम् :
क - ख 
कवची - कवचधारी
आशु - शीघ्रम्
विरथः - रथविहीनः
पपात - अपतत् 
भुवि - पृथिव्याम् 
पतगसत्तमः - पक्षिश्रेष्ठः 

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प्रश्न 5. 
अधोलिखितानां पदानां/विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत - 
मन्दम् पुण्यकर्मणा हसन्ती अनार्य अनतिक्रम्य देवेन्द्रेण प्रशंसेत् दक्षिणेन युवा 
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम् 2
उत्तरम् :  
पदानि  विलोमशब्दाः 
(क) विलपन्ती - हसन्ती 
(ख) आर्य - अनार्य 
(ग) राक्षसेन्द्रेण - देवेन्द्रेण 
(घ) पापकर्मणा - पुण्यकर्मणा 
(ङ) क्षिप्रम् - मन्दम् 
(च) विगर्हयेत् - प्रशंसेत् 
(छ) वृद्धः - युवा 
(ज) वामेन - दक्षिणेन 
(झ) अतिक्रम्य - अनतिक्रम्य 

प्रश्न 6. 
(अ) अधोलिखितानि विशेषणपदानि प्रयुज्य संस्कृतवाक्यानि रचयत 
(क) शुभाम् _________
(ख) खगाधिपः _______
(ग) हतसारथिः __________
(घ) वामेन ___________
(ङ) कवची ___________
उत्तरम् : 
विशेषणम्       वाक्यम् 
(क) शुभाम् - सः शुभां कन्याम् अपश्यत्। 
(ख) खगाधिपः - खगाधिपः जटायुः शौर्यं प्रकटितवान्। 
(ग) हतसारथिः - हतसारथिः सेनापतिः भुवि अपतत्। 
(घ) वामेन - स: वामेन हस्तेन कार्यं करोति। 
(ङ) कवची - संग्रामे कवची सैनिक: युद्धं करोति। 

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(आ) उदाहरणमनुसृत्य समस्तं पदं रचयत -
यथा - 
त्रयाणां लोकानां समाहारः - त्रिलोकी 
(क) पञ्चानां वटानां समाहारः 
(ख) सप्तानां पदानां समाहारः 
(ग) अष्टानां भुजानां समाहारः 
(घ) चतुर्णा मुखानां समाहारः 
उत्तरम् :
(क) पञ्चानां वटानां समाहारः - पञ्चवटी। 
(ख) सप्तानां पदानां समाहारः - सप्तपदी। 
(ग) अष्टानां भुजानां समाहारः - अष्टभुजी। 
(घ) चतुर्णा मुखानां समाहारः - चतुर्मुखी। 

RBSE Class 9 Sanskrit जटायोः शौर्यम् Important Questions and Answers

प्रश्न 1. 
"सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती....." 
रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तप्रत्ययः कः? 
(अ) शतृ 
(ब) क्तिन् 
(स) क्त 
(द) तरप् 
उत्तर :
(अ) शतृ 

प्रश्न 2. 
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा।" 
रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तसन्धेः नाम वर्तते 
(अ) यण् 
(ब) दीर्घ 
(स) गुण 
(द) वृद्धि 
उत्तर :
(स) गुण 

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प्रश्न 3. 
"निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः।" 
रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तप्रकृति-प्रत्ययं वर्तते 
(अ) निर् + ईक्ष् + यत् 
(ब) निर् + ईक्ष् + ल्यप् 
(स) निरी + क्ष्य 
(द) नि + रीक्ष् + ल्यप् 
उत्तर :
(ब) निर् + ईक्ष् + ल्यप् 

प्रश्न 4. 
"वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार ........."गिरम्।" 
रिक्तस्थाने पूरणीयं विशेषणपदं वर्तते 
(अ) शुभं 
(ब) शुभस्य 
(स) शुभेन 
(द) शुभां 
उत्तर :
(द) शुभां 

प्रश्न 5. 
"वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी ...... " 
उपर्युक्तवाक्ये 'त्वम्' पदस्य प्रयोगः कृतः 
(अ) रावणस्य कृते 
(ब) जटायोः कृते 
(स) सीतायाः कृते 
(द) रामस्य कृते 
उत्तर :
(अ) रावणस्य कृते 

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लघूत्तरात्मक प्रश्न :

(क) संस्कृत में प्रश्नोत्तर :

प्रश्न 1.
'जटायोः शीर्यम' पाठः मलतः कतः संकलितः? 
('जटायोः शौर्यम्' पाठ मूलतः कहाँ से संकलित है?) 
उत्तर : 
'जटायोः शौर्यम्' पाठः मूलत: वाल्मीकिविरचितात् 'रामायणात्' संकलितः। 
('जटायोः शौर्यम्' पाठ मूलतः वाल्मीकि विरचित 'रामायण' से संकलित है।) 

प्रश्न 2. 
विलपन्ती सीता वनस्पतिगतं कं ददर्श? 
(विलाप करती हुई सीता ने वृक्ष पर किसे देखा?) 
उत्तर : 
विलपन्ती सीता वनस्पतिगतं गृधं (जटायुं) ददर्श। 
(विलाप करती हुई सीता ने वृक्ष पर गिद्ध (जटायु) को देखा।) 

प्रश्न 3. 
सीतायाः हरणं केन कृतम्? (सीता का हरण किसने किया था?) 
उत्तर : 
सीतायाः हरणं राक्षसेन्द्रेण रावणेन कृतम। 
(सीता का हरण राक्षसराज रावण ने किया था।) 

प्रश्न 4. 
अवसुप्तः जटायुः किम् शुश्रुवे? 
(सोते हुए जटायु ने क्या सुना?) 
उत्तर : 
अवसुप्तः जटायुः सीतायाः करुणं शब्दं शुश्रुवे।
(सोते हुए जटायु ने सीता के करुण वचन सुने।) 

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प्रश्न 5. 
जटायुः कं निरीक्ष्य क्षिप्रं कम् ददर्श?
(जटायु ने किसे देखकर शीघ्र ही किसको देखा?) 
उत्तर :
जटायुः रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं वैदेहीं ददर्श। 
(जटायु ने रावण को देखकर शीघ्र ही सीता को देखा।)

प्रश्न 6. 
वनस्पतिगतः कः शुभां गिरं व्याजहार? 
(वृक्ष में स्थित कौन शुभ वाणी बोला?) 
उत्तर : 
वनस्पतिगतः जटायुः शुभां गिरं व्याजहार। 
(वृक्ष में स्थित जटायु शुभ वाणी बोला।) 

प्रश्न 7. 
धीरः किम् न समाचरेत? 
(धैर्यवान् को कैसा आचरण नहीं करना चाहिए?) 
उत्तर :
धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्। 
(धैर्यवान् को वैसा आचरण नहीं करना चाहिए जिसकी दूसरे लोग निन्दा करें।) 

प्रश्न 8. 
जटायुः रावणं कीदृशीं मतिं निवर्तयितुं कथयति? 
(जटायु रावण से कैसी बुद्धि को छोड़ने के लिए कहता है?) 
उत्तर : 
सः परदाराभिमर्शनात् नीचां मतिं निवर्तयितुं कथयति। 
(वह पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी हुई बुद्धि को छोड़ने के लिए कहता है।) 

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प्रश्न 9. 
रावणः किम् आदाय भुविः पपात? 
(रावण क्या लेकर भूमि पर गिर पड़ा?) 
उत्तर : 
रावणः वैदेहीम् अङ्केन आदाय भुविः पपात। 
(रावण सीता को गोद में लेकर भूमि पर गिर पड़ा।) 

प्रश्न 10. 
क्रोधमूर्छितः रावणः किम् कृतवान्? 
(क्रोध से वशीभूत रावण ने क्या किया?) 
उत्तर : 
सः आशु जटायुं तलेन अभिजधान। 
(उसने शीघ्र ही जटायु पर थप्पड़ से प्रहार करके उसे मार दिया।) 

प्रश्न 11. 
कीदृशी सीता गृधं ददर्श? (किस प्रकार की सीता ने गिद्ध को देखा?) 
उत्तर :
सुदुःखिता करुणा वाचो विलपन्ती आयतलोचना सीता गृभं ददर्श। 
(अत्यन्त दुःखी करुण वाणी से विलाप करती हुई विशाल नेत्रों वाली सीता ने गिद्ध को देखा।) 

प्रश्न 12. 
सीता गृधं जटायुं कुत्र ददर्श? 
(सीता ने गिद्ध जटायु को कहाँ देखा?) 
उत्तर : 
सीता वनस्पतिगतं गृधं जटायुं ददर्श। 
(सीता ने वृक्ष पर बैठे हुए गिद्ध जटायु को देखा।) 

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प्रश्न 13. 
जटायुः कीदृशः आसीत्? 
(जटायु कैसा था?) 
उत्तर : 
जटायुः खगोत्तमः, पर्वतशृङ्गाभः तीक्ष्णतुण्डश्चासीत्। 
(जटायु पक्षियों में सर्वश्रेष्ठ, पर्वतशिखर की कान्तिवाला तथा तेज (तीक्ष्ण) चोंच वाला था।) 

प्रश्न 14. 
'जटायोः शौर्यम्' पाठे जटायुना रावणस्य काः विशेषताः वर्णिता:?
('जटायोः शौर्यम्' पाठ में जटायु ने रावण की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?) 
उत्तर : 
रावणः युवा, धन्वी, सरथः, कवची शरी च वर्णितः। 
(रावण युवा, धनुषधारी, रथयुक्त, कवचधारी और बाणधारी वर्णित है।) 

प्रश्न 15. 
जटायुः रावणस्य गात्रे किं चकार? 
(जटायु ने रावण के शरीर पर क्या किया?) 
उत्तर : 
जटायुः रावणस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार। 
(जटायु ने रावण के शरीर पर बहुत से घाव किये।) 

प्रश्न 16. 
रावणस्य चापं केन विभूषितम् आसीत्? 
(रावण का धनुष किससे सुशोभित था?) 
उत्तर : 
रावणस्य चापं मुक्तामणिविभूषितम् आसीत्। 
(रावण का धनुष मोतियों और रत्नों से सुशोभित था।) 

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प्रश्न 17. 
जटायुः रावणस्य महद्धनुः काभ्यां बभञ्ज? 
(जटायु ने रावण के महान् धनुष को किनसे तोड़ दिया?) 
उत्तर : 
जटायुः रावणस्य महद्धनुः चरणाभ्यां बभञ्ज। 
(जटायु ने रावण के महान् धनुष को पञ्जों के प्रहार से तोड़ दिया।) 

प्रश्न 18. 
वैदेहीं अङ्केनादाय भुवि कः पपात? 
(सीता को गोद में लेकर भूमि पर कौन गिर पड़ा?) 
उत्तर : 
वैदेहीम् अलेनादाय भूवि रावणः पपात। 
(सीता को गोद में लेकर भूमि पर रावण गिर पड़ा।) 

प्रश्न 19. 
रावणः कम् अभिजघान? 
(रावण ने किसको मार डाला?) 
उत्तर : 
रावणः जटायुम् अभिजघान। 
(रावण ने जटायु को मार डाला।)

प्रश्न 20. 
खगाधिपः जटायुः रावणस्य किम् व्यपाहर? 
(पक्षिरांज जटायु ने रावण का क्या उखाड़ दिया?) 
उत्तर : 
खगाधिपः जटायुः रावणस्य वामान् दशबाहून् व्यपाहरत्। 
(पक्षिराज जटायु ने रावण की बायीं ओर की दश भुजाओं को उखाड़ दिया।) 

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(ख) प्रश्न निर्माणम् :

प्रश्न 1. 
रेखातिपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत - 

  1. तदा सुदुःखिता सीता करुणा वाचो विलपति। 
  2. आयतलोचना सीता वनस्पतिगतं गृधं ददर्श। 
  3. आर्य जटायो! ह्रियमाणां मां पश्य। 
  4. अवसुप्तः जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे। 
  5. जटायुः रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं वैदेहीं ददर्श। 
  6. ततः खगोत्तमः शुभां गिरम् व्याजहार। 
  7. त्वं नीचां मतिं निवर्तय। 
  8. धीरः न तत् समाचरेत् यत्परोऽस्य विगर्हयेत्। 
  9. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः असि। 
  10. त्वं वैदेहीम् आदाय न गमिष्यसि। 
  11. जटायुः तस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार। 
  12. ततः जटायुः रावणस्य महद्धनुः बभञ्ज। 
  13. रावणः वैदेहीं अङ्केनादाय भुवि पपात। 
  14. क्रोधमूर्च्छितः रावणः जटायुं तलेनाभिजघान। 
  15. तदा खगाधिपः रावणस्य दशवामबाहून् व्यपाहरत्। 

उत्तर :
प्रश्न-निर्माणम् :

  1. तदा का करुणा वाचो विलपति? 
  2. आयतलोचना सीता वनस्पतिगतं कम् ददर्श? 
  3. आर्य जटायो ! कीदृशीं मां पश्य? 
  4. कीदृशः जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे? 
  5. जटायुः रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं काम् ददर्श? 
  6. ततः खगोत्तमः किम् व्याजहार?
  7. त्वं कीदृशीं मतिं निवर्तय? 
  8. धीरः किम् न समाचरेत्? 
  9. वृद्धोऽहं त्वम् कीदृशः असि? 
  10. त्वं काम् आदाय न गमिष्यसि? 
  11. जटायुः तस्य गात्रे किम् चकार? 
  12. ततः जटायुः रावणस्य किम् बभञ्ज? 
  13. रावणः कम् अङ्केनादाय भुवि पपात? 
  14. कीदृशः रावणः जटायुं तलेनाभिजधान? 
  15. तदा खगाधिपः रावणस्य किम् व्यपाहर?

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जटायोः शौर्यम् Summary and Translation in Hindi

पाठपरिचय - प्रस्तुत पाठ्यांश आदिकवि वाल्मीकि-प्रणीत रामायणम् के अरण्यकाण्ड से उद्धृत किया गया है जिसमें जटायु और रावण के युद्ध का वर्णन है। पंचवटी कानन में सीता का करुण विलाप सुनकर पक्षिश्रेष्ठ जटायु उनकी रक्षा के लिए दौड़े। वे रावण को परदाराभिमर्शनरूप निन्द्य एवं दुष्कर्म से विरत होने के लिए कहते हैं। रावण की अपरिवर्तित मनोवृत्ति को देख वे उस पर भयावह आक्रमण करते हैं। महाबली जटायु अपने तीखे नखों तथा पञ्जों से रावण के शरीर में अनेक घाव कर देते हैं तथा पञ्जों के प्रहार से उसके विशाल धनुष को खंडित कर देते हैं। 

टे धनुष, मारे गये अश्वों और सारथी वाला रावण विस्थ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ता है। कुछ ही क्षणों बाद क्रोधांध रावण जटायु पर प्राणघातक प्रहार करता है परन्तु पक्षिश्रेष्ठ जटायु उससे अपना बचाव कर उस पर चञ्चु-प्रहार करते हैं, उसके बायें भाग की दसों भुजाओं को क्षत-विक्षत कर देते हैं। 

पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद - 

1. सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता। 
वनस्पतिगतं गधं ददर्शायतलोचना॥ 

अन्वय-तदा सा आयतलोचना करुणा वाचः विलपन्ती सुदु:खिता वनस्पतिगतं गृधं ददर्श। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • आयतलोचना = बड़े-बड़े नेत्रों वाली (विशालनेत्रा)। 
  • वाचः = वाणी। 
  • विलपन्ती = विलाप करती हुई (विलापं कुर्वन्ती)। 
  • वनस्पतिगतम् = वन-पक्तियों में स्थित।
  • ददर्श = देखा। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' के अरण्यकाण्ड से संकलित है। इस श्लोक में रावण द्वारा अपहरण करके लंका की ओर ले जाती हुई सीता की करुण दशा का तथा उसके द्वारा पञ्चवटी में स्थित जटायु नामक गिद्ध को देखे जाने का वर्णन हुआ है - 

हिन्दी-अनुवाद : तब उस बड़े-बड़े नेत्रों वाली, करुणामय वाणी से विलाप करती हुई अत्यन्त दु:खी सीताजी ने पंचवटी के वनों में स्थित जटायु नामक गिद्ध को देखा। 

2. जटायो पश्य मामार्य हियमाणामनाथवत्। 
अनेन राक्षसेन्द्रेण करुणं पापकर्मणा।। 

अन्वय - आर्य जटायो! अनेन राक्षसेन्द्रेण पापकर्मणा अनाथवत् हियमाणां करुणं माम् पश्य। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • राक्षसेन्द्रेण = राक्षसराज (रावण) के द्वारा (दानवपतिना)। 
  • पापकर्मणा = पाप कर्म से। 
  • अनाथवत् = अनाथ के समान। 
  • हियमाणाम् = अपहरण की जाती हुई (नीयमानाम्)। 
  • पश्य - देखो। 

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प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत. है, जो मूलतः महर्षि वाल्मीकि विरचित 'रामायण' से संकलित है। इस श्लोक में रावण द्वारा अपहृत सीता करुण विलाप करती हुई वन में स्थित जटायु नामक गिद्ध को देखकर अपनी रक्षा हेतु उसे आवाज लगाती है, इसका वर्णन किया गया है - 

हिन्दी-अनुवाद : 
हे पूजनीय जटायु! इस राक्षसराज़ (रावण) के द्वारा पापकर्म से अनाथ के समान अपहरण करके ले जाई जाती हुई, शोकग्रस्त मुझे (सीता को) देखो। 

3. तं शब्दमवसुतस्तु जटायुरथ शुभ्रवे। 
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श सः॥ 

अन्वय-अथ अवसुप्तः तु जटायुः तं शब्दं शुश्रुवे। सः च रावणं निरीक्ष्य क्षिप्रं वैदेहीं ददर्श। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • अवसुप्तः = अल्पनिद्रा में सोए हुए। 
  • शुश्रुवे = सुना। 
  • निरीक्ष्य = देखकर (अवलोक्य)।
  • क्षिप्रम् = शीघ्र ही। 
  • वैदेहीम् = सीता को (सीताम्)। 
  • ददर्श = देखा। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' के 'अरण्य-काण्ड' से संकलित है। इस श्लोक में वन में अल्प निद्रा में स्थित जटायु द्वारा रावण द्वारा अपहृत एवं करुण विलाप करती हुई सीताजी को एवं रावण को देखे जाने का वर्णन किया गया है -

हिन्दी-अनुवाद : इसके बाद (सीता द्वारा आवाज दिये जाने पर) अल्प निद्रा में सोए हुए जटायु ने सीताजी के उन करुण शब्दों को सुना और उसने रावण को देखकर शीघ्र ही सीताजी को भी देखा। 

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4. ततः पर्वतशृगाभस्तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः। 
वनस्पतिगतः श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम्॥ 

अन्वय-ततः पर्वतशृङ्गाभः, तीक्ष्णतुण्डः खगोत्तमः वनस्पतिगतः श्रीमान् शुभां गिरं व्याजहार। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • पर्वतशृङ्गाभः = पर्वत के शिखर के समान कान्ति वाले (गिरिशिखरकान्तः)। 
  • तीक्ष्णतुण्डः = कठोर चोंच वाले। 
  • खगोत्तमः = पक्षियों में श्रेष्ठ (पक्षिश्रेष्ठः)। 
  • गिरम् = वचन। 
  • व्याजहार = कहे (अकथयत्)। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटयोः शौर्यम्' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ महर्षि वाल्मीकि विरचित 'रामायण' के 'अरण्यकाण्ड' से संकलित है। इस श्लोक में जटायु नामक गिद्ध की विशेषताओं का तथा सीता की करुण ध्वनि सुनकर उसके बोलने का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद : उसके बाद पर्वत के शिखर के समान कान्ति वाले, तीक्ष्ण (कठोर) चोंच वाले, पक्षियों में श्रेष्ठ, वनसमूह में रहने वाले, शोभासम्पन्न (जटायु) ने ये शुभवचन कहे। 

5. निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्। 
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत्॥ 

अन्वय - परदाराभिमर्शनात् नीचां मति निवर्तय। धीरः तत् न समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्। 
कठिन-शब्दार्थ : 

  • परदाराभिमर्शनात् = पराई स्त्री के स्पर्श से (परस्त्रीस्पर्शात्)। 
  • धीरः = बुद्धिमान्। 
  • न समाचरेत् = आचरण नहीं करते हैं। 
  • परः = दूसरा। 
  • विगर्हयेत् = निन्दा करनी चाहिए (निन्द्यात्)। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु द्वारा रावण को निन्दनीय (सीता-हरण रूपी) कार्य न करने की प्रेरणा दी गई है। वह रावण से कहता है कि 

हिन्दी-अनुवाद : (हे रावण !) पराई स्त्री के स्पर्श से नीच बनी हुई अपनी दुष्ट बुद्धि (दुष्कर्म) को रोको। क्योंकि विवेकी मनुष्य को उस प्रकार का आचरण (दुराचार) नहीं करना चाहिए जिसकी दूसरे लोग निन्दा करते हैं। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

6. वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी। 
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि॥ 

अन्वय - अहं वृद्धः त्वं च युवा धन्वी सरथः कवची शरी (असि), अपि च मे कुशली (त्वं) वैदेहीं आदाय न गमिष्यसि। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • धन्वी = धनुर्धर (धनुर्धरः)। 
  • सरथः = रथ से युक्त। 
  • कवची = कवच धारण किया हुआ (कवचधारी)। 
  • शरी = बाण को लिए हुए (बाणधरः)। 
  • वैदेहीम् = सीता को। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु द्वारा रावण की शक्तिसम्पन्नता को दर्शाते हुए तथा अपने शौर्य को प्रकट करते हुए - 
चेतावनी दिये जाने का वर्णन हुआ है कि रावण जटायु के रहते सीता का अपहरण करके नहीं ले जा सकता है। जटायु रावण से कहता है कि - 

हिन्दी-अनुवाद : (हे रावण) मैं वृद्ध हूँ और तुम युवा, धनुर्धर, रथसहित, कवच धारण किये हुए तथा बाणों से युक्त हो। तो भी मेरे रहते हुए तुम सकुशल सीताजी को लेकर नहीं जा सकते हो। 

7. तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः। 
चकार बहुधा गात्रे व्रणान्पतगसत्तमः॥ 

अन्वय - महाबलः पतगसत्तमः तु तीक्ष्णनखाभ्यां चरणाभ्यां तस्य गात्रे बहुधा व्रणान् चकार। 

कठिन-शब्दार्थ :

  • महाबलः = महान् बलशाली। 
  • पतगसत्तमः = पक्षिराज जटायु (पक्षिशिरोमणिः)। 
  • गात्रे = शरीर पर (शरीरे)। 
  • व्रणान् = प्रहार से होने वाले घावों को (प्रहारजनितस्फोटान्)। 
  • चकार = किया। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित 'रामायण' के 'अरण्यकाण्ड' से संकलित है। इस श्लोक में जटायु के शौर्य को दर्शाते हुए उसके द्वारा रावण को घायल किये जाने का वर्णन हुआ है। 

हिन्दी-अनुवाद : महान् बलशाली पक्षिराज जटायु ने अपने तीक्ष्ण नाखूनों वाले पंजों से उस रावण के शरीर पर अनेक प्रकार से प्रहारजनित घाव कर दिए। 

ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्। 
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जास्य महद्धनुः॥ 

अन्वय - ततः महातेजा चरणाभ्यां अस्य मुक्तामणिविभूषितं सशरं चापं (च) अस्य महद् धनुः बभञ्ज। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • महातेजा = महान् तेजस्वी। 
  • मुक्तामणिविभूषितं = हीरे-मोतियों से सुसज्जित। 
  • सशरम् = बाण सहित। 
  • चापम् = धनुष को (धनुषम्)। 
  • बभज = तोड़ दिया (भग्नं कृतवान्)। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित 'रामायण' के 'अरण्यकाण्ड' से संकलित है। इस श्लोक में पक्षिराज जटायु के पराक्रम का तथा उसके द्वारा रावण के धनुष को तोड़ दिये जाने का वर्णन किया गया 

हिन्दी-अनुवाद : उसके बाद उस महान् तेजस्वी जटायु ने अपने पंजों से उस रावण के मुक्तामणियों से सुसज्जित बाणों से युक्त धनुष को तथा अन्य बड़े धनुष को भी तोड़ दिया। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 10 जटायोः शौर्यम्

9. स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः। 
अड्केनादाय वैदेही पपात भुवि रावणः॥ 

अन्वय - स भग्नधन्वा, विरथः हताश्वः हतसारथिः रावणः वैदेहीं अकेन आदाय भुवि पपात। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • भग्नधन्वा = टूटे हुए धनुष वाला (भग्नः धनुः यस्य सः)। 
  • विरथः = रथहीन (रथहीनः)। 
  • हताश्वः = मारे गए घोड़ों वाला (हताः अश्वाः यस्य सः)। 
  • हतसारथिः = मारे गए सारथि वाला। 
  • वैदेहीं = सीता को। 
  • अङ्केन = गोद में। 
  • आदाय = लेकर (गृहीत्वा)। 
  • भुवि = पृथ्वी पर। 
  • पपात = गिर पड़ा (अपतत्)। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत है। मूलतः यह पाठ आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित 'रामायण' के 'अरण्यकाण्ड' से संकलित है। इस श्लोक में जटायु के प्रहार से घायल हुए रावण को सीता के साथ पृथ्वी पर गिरने का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद : (जटायु के प्रहारों से) वह टूटे हुए धनुष वाला, टूटे हुए रथ वाला, मारे गए घोड़ों तथा मारे गए सारथि वाला रावण सीता को गोद में लेकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। 

10. संपरिष्वज्य वैदेहीं वामेनाकेन रावणः। 
तलेनाभिजघानाशु जटायु क्रोधमूर्च्छितः॥ 

अन्वय-क्रोधमूर्च्छितः रावणः वैदेहीं वामेन अकेन संपरिष्वज्य आशु जटायुं तलेन अभिजघान। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • क्रोधमूर्छितः - क्रोध से मूर्छित हुआ। 
  • वैदेहीम् - सीता को। 
  • वामेनाङ्केन = बाईं भुजा से। 
  • संपरिष्वज्य = पकड़कर। 
  • आशु = शीघ्र ही (शीघ्रम्)। 
  • तलेन = थप्पड़ से। 
  • अभिजघान = प्रहार किया, मार डाला (हतवान्)। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत है। इस श्लोक में जटायु के प्रहारों से घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़े रावण द्वारा क्रोध में आकर जटायु को थप्पड़ मार दिये जाने का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद : 
(जटायु के प्रहारों से घायल होने के कारण) क्रोध से मूर्च्छित हुए रावण ने सीता को बाईं भुजा से पकड़कर शीघ्र ही जटायु को थप्पड़ (प्राणघातक प्रहार करके) मार डाला। 

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11. जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः। 
वामबाहून्दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः॥ 

अन्वय-अरिन्दमः खगाधिपः जटायु तदा तुण्डेन तं अतिक्रम्य अस्य दश वाम बाहून् व्यपाहरत्। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • अरिन्दमः = शत्रुओं को नष्ट करने वाला (शत्रुदमनः, शत्रुनाशकः)। 
  • खगाधिपः = पक्षिराज (पक्षिराजः)। 
  • तुण्डेन = चोंच से (मुखेन, चञ्च्या)। 
  • अतिक्रम्य = आक्रमण करके। वाम बाहून् बाईं भुजाओं को। 
  • व्यपाहरत् = उखाड़ दिया (उत्खातवान्)। 

प्रसंग - प्रस्तुत श्लोक हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'जटायोः शौर्यम्' नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ महर्षि वाल्मीकि विरचित 'रामायण' के 'अरण्यकाण्ड' से संकलित है। इस श्लोक में पक्षिराज जटायु की स्वामिभक्ति एवं शौर्य को दर्शाया गया है। वह सीताजी को रावण के चंगुल से मुक्त कराने के लिए मृत्युपर्यन्त उससे संघर्ष करता है तथा रावण को क्षत-विक्षत कर देता है किन्तु उस राक्षसराज रावण के हाथों उसकी मृत्यु हो जाती है। 

हिन्दी-अनुवाद : शत्रुओं का विनाश करने वाले, पक्षिराज जटायु ने तब (रावण द्वारा प्राणघातक आक्रमण करने पर) अपनी चोंच से उस रावण पर आक्रमण करके उसकी बाईं ओर की दसों भुजाओं को उखाड़ दिया। अर्थात् मरने से पूर्व जटायु ने अन्तिम साँस तक स्वामिभक्ति प्रदर्शित करते हुए रावण को भारी क्षति पहुँचाई।

Prasanna
Last Updated on May 26, 2022, 12:28 p.m.
Published May 25, 2022