Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 13 ग्राम श्री Textbook Exercise Questions and Answers.
प्रश्न 1.
कवि ने गाँव को 'हरता जन मन' क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने गाँव को 'हरता जन मन' इसलिए कहा है, क्योंकि गाँव का प्राकृतिक वातावरण अत्यन्त मनोरम है। खेतों पर चमकीली धूप पड़ रही है। नाना प्रकार की फसलों और खिले हुए फूलों पर रंग-बिरंगी उड़ती हुई तितलियाँ मन को हर लेती हैं। वहाँ पर अनेक प्रकार की सब्जियाँ होती हैं और गंण के तट पर तरबूजों की खेती होती है। पक्षी विहार करते हैं । ये सभी दृश्य मन को आकर्षित करते हैं।
प्रश्न 2.
कविता में किस मौसम के सौन्दर्य का वर्णन है? .
उत्तर :
कविता में शिशिर ऋतु के मौसम का वर्णन है। इस मौसम में आम पर बौर आता है। वातावरण महककर मादकता का प्रसार करता है। ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर खिले फल-फूलों पर तितलियाँ मँडराने लगती हैं।
प्रश्न 3.
गाँव को 'मरकत डिब्बे-सा खुला' क्यों कहा गया है?
उत्तर :
गाँव में चारों ओर हरियाली है, हेमन्त एवं वसन्त की धूप अधिक प्रखर नहीं होती है हरियाली पर पड़कर सुन्दर चमक बिखेर देती है। मरकत मणि भी हरे रंग का होता है, वह सुन्दर चमकता है। गाँव का परिवेश खुला है, इसलिए उसे 'मरकत डिब्बे-सा खुला' कहा गया है।
प्रश्न 4.
अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर :
अरहर और सनई की फसलें जब पक जाती हैं, तो उनकी सुनहरी बालियाँ पककर सूख जाती हैं। तब उनकी फलियाँ हवा के चलने पर करधनियों की तरह बजने लगती हैं।
प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती।'
उत्तर :
गाँव के समीप गंगा का रेतीला तट काफी दूर तक फैला हुआ है । तेज हवा के चलने से रेत-राशि सो की वक्र चाल के समान कुछ आड़ी-तिरछी लकीरों से व्याप्त है। सूर्य की किरणें पड़ने से रेत-राशि पर रंग-बिरंगी चमक फैल रही है। इस कारण वह रेती सतरंगी साँपों से अंकित-सी दिखाई दे रही है।
(ख) हँसमुख हरियाली हिम आतप
सुख से अलसाए-से सोए',
उत्तर :
सर्दियों की मन्द धूप पड़ने से हरियाली हँसती हुई-सी लगती है। गाँव के परिवेश में सर्दियों की धूप एकदम शान्त एवं सहन-योग्य है । ऐसा लगता है कि हरियाली और सर्दियों की धूप दोनों सुख से अलसाकर सो गये हैं। हरियाली तो धूप सेंकने से अलसा गई है, जबकि सर्दियों की धूप स्वयं ऐसी लग रही है।
प्रश्न 6.
निम्न पंक्तियों में कौनसा अलंकार है?
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक।
उत्तर :
सामान्य रूप से इसमें अनेक वर्णों की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है। 'हरे-हरे' में पनरुक्तिप्रकाश अलंकार तथा 'तिनकों के तन' और 'रुधिर' में मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्न 7.
इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है, वह भारत के किस भूभाग पर स्थित है?
उत्तर :
इस कविता में जिस भूभाग का चित्रण हुआ है, वह गंगा नदी के तटवर्ती भूभाग पर स्थित है।
रचना और अभिव्यक्ति -
प्रश्न 8.
भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
इस कविता में ग्रामीण परिवेश का मनोरम चित्रण किया गया है। सारा ग्रामीण परिवेश सुन्दरता एवं समृद्धि से व्याप्त है। ऐसे वर्णन के लिए कवि पन्त ने कोमल एवं मधुर भावों का समावेश किया है तथा अप्रस्तुत विधान से उसे अलंकृति दी है। भाषा इसमें सरल, तत्सम तद्भव-प्रधान, प्रवाहपूर्ण एवं भावानुकूल है। ग्राम्य प्रकृति का यथार्थ चित्रण मधुर कल्पनाओं से युक्त होने से प्रकृति-सौन्दर्य की सुकुमार झाँकी प्रस्तुत की गई है।
प्रश्न 9.
आप जहाँ रहते हैं, उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौन्दर्य को कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।
उत्तर :
मैं टोंक जिले के पास एक छोटे-से गाँव का रहने वाला हूँ। हमारे गाँव के पास बनास नदी बहती है। बनास नदी के रेतीले तट से बजरी-रेत का खूब खनन होता है। शिशिर के प्रारम्भ में यहाँ पर खरबूजे और तरबूजे की बुवाई होती है, जो शिशिर ऋतु आते ही अच्छी फसल देती है। यहाँ खूब तरबूज एवं खरबूजे लगते हैं, जो जयपुर, अजमेर आदि दूर-दूर स्थानों तक भेजे जाते हैं।
प्रश्न 1.
गाँव के खेतों में दूर-दूर तक कोमल हरियाली फैली हुई है -
(क) सूर्य की किरणों की तरह
(ख) मखमल की तरह
(ग) कलियों की तरह
(घ) रेशम की तरह।
उत्तर :
(ख) मखमल की तरह
प्रश्न 2.
छीमियाँ लटक रही हैं -
(क) रेशम के समान
(ख) मक्खन के समान
(ग) मखमली पेटियों के समान
(घ) फलों के डिब्बों के समान।
उत्तर :
(ग) मखमली पेटियों के समान
प्रश्न 3.
पेड़ महक उठा है -
(क) कटहल का
(ख) जामुन का
(ग) पीपल का
(घ) ढाक का।
उत्तर :
(क) कटहल का
प्रश्न 4.
लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं -
(क) काले-काले जामुनों में
(ख) पके बेरों में
(ग) पीले मीठे अमरूदों में
(घ) मटर की फलियों में।
उत्तर :
(ख) पके बेरों में
प्रश्न 5.
गाँव की हरियाली हँसती हुई प्रतीत होती है -
(क) हवा के झोंकों से
(ख) पड़े ओस के कणों से
(ग) सूर्य की धूप से
(घ) चन्द्रमा की चाँदनी से।
उत्तर :
(ग) सूर्य की धूप से
बोधात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
"तिनकों के हरे-हरे तन पर हिल हरित रुधिर है रहा झलक"-इससे कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
प्रातःकाल हरी घास पर पड़ी ओंस की बून्दों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि तिनकों के हरे शरीर पर हरे रंग का रुधिर हिल रहा है। ओस की बून्दों का जल स्वच्छ और पारदर्शी होने के कारण तिनकों पर पड़ा वह हरा दिखाई देता है। कवि कल्पना में हरे रंग का रुधिर उनमें प्रवाहित हो रहा है।
प्रश्न 2.
तितलियों से वातावरण की शोभा कैसे बढ़ रही है? कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
वसन्त ऋतु के आगमन पर बाग-बगीचों तथा खेतों में फूल खिल जाते हैं। उन रंग-बिरंगे फूलों पर पराग आकर्षण के कारण तितलियाँ मंडराती हैं। तितलियाँ भी रंग-बिरंगी होती हैं। वे एक फूल से दूसरे फूल पर मँडराती हुई ऐसी प्रतीत होती हैं कि मानो खिले हुए फूल एक वृन्त से दूसरे वृन्त पर जा रहे हों।
प्रश्न 3.
वसन्त ऋतु के आगमन पर कौन-कौनसे फल एवं सब्जियाँ उग आती हैं? कविता के आधार पर बताइए।
उत्तर :
प्रस्तुत 'ग्राम-श्री' कविता में शीत ऋतु के अन्त तथा वसन्त ऋतु के आरम्भ का चित्रण किया गया है। इस मौसम में जामुन, बेर, आडू, अनार आदि फल उगे। आलू, गोभी, बैंगन, मूली, कटहल आदि सब्जियाँ उगीं।
प्रश्न 4.
'मिरचों की बड़ी हरी थैली' से कवि ने क्या भाव व्यक्त किया है? बताइए।
उत्तर :
मिर्च के पौधों पर छोटे फल आते हैं. फिर उन पर हरी-हरी मिर्चों के गंच्छे लगते हैं। एक छोटे-से पौधे पर एक-साथ कई मिर्चे उग आने से ऐसा लगता है कि कोई बड़ी-सी हरे रंग की थैली लटक रही है, वह हरी मिर्चों से भरी हुई है। इस प्रकार कवि ने मिर्गों के गुच्छों को मिर्चों से भरी हुई बड़ी थैली बताकर सुन्दर कल्पना प्रस्तुत की है।
प्रश्न 5.
गाँव की उस सुन्दरता का वर्णन कीजिए जो जन-मन को हर रही है।
उत्तर :
'ग्राम-श्री' कविता में कवि ने गाँव की सुन्दरता का वर्णन करते हुए बताया है कि खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली, फलों से लदे पेड़, नाना प्रकार की सब्जियाँ आदि अतीव मनोरम दिखाई देती हैं। गंगा नदी के तट पर फैली रेत राशि पर पड़ती सूर्य की किरणें सतरंगी दिखाई देती हैं। हवा के प्रभाव के कारण रेत पर बनी आड़ी-तिरछी लहरें मानो साँप हैं। इस तरह गाँव के प्राकृतिक परिवेश के सभी दृश्य इतने सुन्दर हैं कि वे जन-मन को मानो हर रहे हों।
प्रश्न 6.
गाँव की तुलना कवि ने मरकत मणि के डिब्बे से क्यों की है?
उत्तर :
गाँव के खेतों में सर्वत्र मखमली हरियाली छाई हई है। रंग-बिरंगे फलों की आभा सब जगह फैली हई है। फल और फसलें अपनी-अपनी जगह शोभायमान हैं। फूलों पर विविध रंगों की तितलियाँ मँडरा रही हैं। लहकती और महकती फसलें सुगंध बिखेर रही हैं। सारी धरती विविध रूपों में सजी-धजी है। उसी सज-धज को दर्शाने के लिए ग्राम की तुलना कवि ने मरकत मणि के डिब्बे से की है।
कवि-परिचय - प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले में कौसानी ग्राम में सन् 1900 में हुआ। इनका मूल नाम गुसाईं दत्त था। वाराणसी और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त करते समय ये स्वतन्त्रता आन्दोलन से जुड़ गये। इन्होंने घर पर ही अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत आदि का गम्भीर अध्ययन किया। इन्होंने पद्य और गद्य दोनों विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। इनके दशाधिक काव्य-संग्रह, नाटक, उपन्यास एवं कहानियाँ प्रकाशित हैं। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये छायावादी काव्य के प्रमुख स्तम्भ थे। इनका निधन सन् 1977 में हुआ।
पाठ-परिचय - पाठ में पन्तजी की 'ग्राम-श्री' कविता संकलित है। इस कविता में भारतीय गाँव की प्राकृतिक सुषमा और समृद्धि का मनोहारी वर्णन किया गया है। गाँव में दूर तक खेतों में फसलें लहराती रहती हैं, पेड़-पौधों की डालियाँ फल-फूलों से लदी रहती हैं। नदी-तट पर रंगीन रेत तथा जल-क्रीड़ा करते हुए पक्षी अतीव मनोरम लगते हैं। प्रस्तुत कविता में इन्हीं दृश्यों का चित्रण किया गया है। यह ग्राम्य-प्रकृति पर आधारित कविता है।
भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न
ग्राम-श्री
1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिसमें रवि की किरणें
चाँदी की-सी उजली जाली!
तिनकों के हरे-हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : गाँव की प्राकृतिक सुषमा एवं समृद्धि का मनोहारी वर्णन करते हुए कवि पन्त कहते हैं कि गाँव के खेतों में दर-दर तक मखमल की तरह कोमल हरियाली फैली हई है। उस हरियाली पर सर्य की किरणें चाँदी की जाली की तरह उज्ज्वल एवं चमकीली शोभायमान हो रही हैं। हरी-हरी घास और तिनकों पर किरणें पड़ने से उनकी पत्तियाँ ऐसी चमक रही हैं मानो उनमें हरे रंग का खून बहता हुआ झलक रहा हो। हरियाली से शोभायमान धरती पर नीला स्वच्छ आकाश एक पट या फलक की तरह झुका हुआ है। आशय यह है कि गाँव का प्राकृतिक परिवेश अतीव मनोरम एवं समृद्ध है।
प्रश्न 1. 'ग्राम-श्री' कविता के रचयिता का नाम बताइए।
प्रश्न 2. हरे तिनकों पर सूर्य की किरणों का क्या प्रभाव पड़ता है?
प्रश्न 3. चाँदी की-सी उजली जाली किसे कहा गया है और क्यों?
प्रश्न 4. खेतों में फैली हरियाली की उपमा किससे दी गई है?
उत्तर :
1. 'ग्राम-श्री' कविता के रचयिता का नाम सुमित्रानन्दन पन्त है।
2. हरे तिनकों पर जब प्रातःकालीन सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो वे इस तरह चमकने लगते हैं जैसे तिनकों के तनों से हरे रंग का रुधिर बह रहा हो तथा उनमें सजीवता आ गई हो।
3. चाँदी की-सी उजली जाली प्रात:कालीन सूर्य की चमकती हुई किरणों के लिए कहा गया है, क्योंकि हिलते डुलते पेड़-पौधों पर तथा घास पर धूप चमकने लगती है, किरणों का आड़ा-तिरछा पड़ना चाँदी की उजली जाली के समान लगता है।
4. खेतों में फैली हरियाली की उपमा कोमल मखमल से दी गई है। मखमल अतीव कोमल एवं चमकदार कीमती कपड़ा होता है। हरियाली भी प्रात:काल अतीव आकर्षक एवं कोमल दिखाई देती है।
2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली।
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवि गाँव की प्राकृतिक सुन्दरता एवं समृद्धि का वर्णन करते हुए कहता है कि जौ और गेहूँ में बालियाँ आ गई हैं, इन बालियों पर तीखे तुस के नोक होते हैं। उन्हें देखकर कवि कल्पना करता है कि इससे मानो धरती को रोमांच हो गया है। खेतों में अरहर और सनई फलियाँ पक कर सोने के समान पीली हो गई हैं और उनकी फलियाँ करधनियों की भाँति बजने लगी हैं। खेतों में चारों ओर सरसों पीले-पीले फूलों से लद गई है, जिसकी भीनी तैलीय गन्ध वातावरण में फैल रही है। यह तो, हरी-भरी धरती की सुन्दरता निहारने के लिए अलसी के नीले फूल भी झाँकने लगे हैं और वे नीलम की कलियाँ जैसे प्रतीत हो रहे हैं।
प्रश्न 1. वसुधा कैसे रोमांचित हो रही है?
प्रश्न 2. 'अरहर सनई की सोने की किंकिणियाँ'-इसका आशय क्या है?
प्रश्न 3. 'तीसी की कली' के लिए कवि ने क्या कल्पना की है?
प्रश्न 4. सरसों की फसल की शोभा कैसी बतायी गई है?
उत्तर :
1. धरती पर खड़ी जौ-गेहूँ की फसल पर बालियाँ आ गई हैं। वे बालियाँ तीखे तुस वाली होती हैं जो काँटों की तरह चुभती हैं। मानो इससे धरती रोमांचित हो रही है। अर्थात् पैने तुस वाली बालियों के रूप में धरती के रोंगटे खड़े हो रहे हैं।
2. अरहर और सनई की फसल पक गई है, उनकी फलियाँ हवा में हिलने-डुलने पर मधुर आवाज कर रही हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो धरती ने अपनी कमर में घुघरूदार करधनी बाँध ली है।
3. तीसी अर्थात् अलसी की कलियाँ नीली होती हैं। हरी-भरी धरती में अलसी की नीली कली नीलम नामक रत्न की तरह सुन्दर दिखाई देती है।
4. सरसों की फसल की शोभा इस तरह है कि उसमें सब ओर पीले-पीले फूलों के गुच्छे दिखाई देते हैं। उन 'फूलों से जो गन्ध निकल रही है, वह भीनी तैलीय गन्ध है और वह वातावरण को स्निग्ध बना रही है।
3. रंग-रंग के फूलों से रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी।
फिरती हैं रंग-रंग की तितली
रंग-रंग के फूलों पर सुन्दर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
उड़-उड़ वृन्तों से वृन्तों पर!
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवि पन्त ग्राम्य प्रकृति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि खेतों में अनेक तरह के रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं। उन्हीं के मध्य में खड़े मटर के पौधे मानो हँस रहे हैं। मानो कोई सखी सजी-धजी सखियों को देखकर प्रसन्नता से हँस रही हो। सेम की फलियाँ या गुच्छे मखमल की पेटियों के समान लटकी हुई हैं और उनके अन्दर रंग-बिरंगे बीजों की लड़ियाँ चमक रही हैं। खेतों में रंग-बिरंगे फूलों के समान ही रंगीन तितलियाँ उन पर मण्डरा रही हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो तितलियाँ नहीं, बल्कि फूल ही एक वृन्त से दूसरे वृन्त पर उड़-उड़कर जा रहे हों।
प्रश्न 1. प्रस्तुत काव्यांश किस कविता से लिया गया है? इसके कवि कौन हैं?
प्रश्न 2. छीमियों की तुलना मखमली पेटियों से क्यों की गई है?
प्रश्न 3. फूल स्वयं वृन्तों पर उड़ते-फिरते प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 4. रंग-बिरंगी तितलियाँ किस प्रकार शोभायमान हो रही हैं?
उत्तर :
1. प्रस्तुत काव्यांश 'ग्राम-श्री' कविता से लिया गया है। इसके कवि सुमित्रानन्दन पन्त हैं।
2. मखमली पेटियों में कीमती आभूषण आदि रखे जाते हैं। सेम की फलियों के गुच्छे मखमल के समान कोमल हैं और उन गुच्छों के अन्दर बीजों की रंग-बिरंगी लड़ियाँ छिपी रहती हैं। इसी विशेषता से छीमियों की तुलना मखमली पेटियों से की गई है।
3. खेतों में उड़ने वाली तितलियाँ फूलों की तरह रंगीन पंख वाली हैं। इस कारण वे दूर से फूल जैसी ही दीखती हैं। अतएव कवि कल्पना करता है कि तितलियों के रूप में फूल ही एक वृन्त से दूसरे वृन्त पर उड़ते प्रतीत होते हैं।
4. रंग-बिरंगी तितलियाँ खिले हुए रंग-बिरंगे फूलों पर इस तरह शोभायमान हो रही हैं कि मानो खिले हुए फूलों पर फूल ही मँडरा रहे हों।
4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाडिम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली।
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : वसन्त ऋत के आगमन से गाँव का वातावरण कितना मनोरम बन जाता है. इसी का वर्णन करते हए कवि पन्त कहते हैं कि आम के पेड़ की डालियाँ चाँदी और सोने के समान चमकदार मंजरियों अर्थात् बौरों से लद गई हैं। पतझड़ के आने से ढाक (पलाश) और पीपल के पत्तों का झरना शुरू हो गया है। कोयल बसन्त के प्रभाव से मस्त होकर कूक रही है। कटहल की महक चारों ओर फैलने लगी है और जामुन की डालियों पर अधखिली कलियाँ आ गई हैं। जंगलों में छोटी झरबेरी की डालियाँ झूमने लग गई हैं। ऐसे सुरम्य प्राकृतिक परिवेश में आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि सब्जियों के पौधों पर फूलों की बहार आ गई है। अर्थात् सारा ही ग्राम्य-परिवेश मनमोहक बन गया है।
प्रश्न 1. आम्र तरु की डालियाँ किनसे लद गई हैं?
प्रश्न 2. ढाक और पीपल के दल क्यों झर रहे हैं?
प्रश्न 3. कोयल क्यों मतवाली हो रही है?
प्रश्न 4. ऋतु-परिवर्तन पर ग्राम्य परिवेश कैसा लगता है?
उत्तर :
1. आम के पेड़ की डालियाँ वसन्त ऋतु के आगमन से चाँदी और सोने के समान अर्थात् सफेद-पीली मंजरियों से लद गई हैं। उन पर सुन्दर बौरें आ गई हैं।
2. वसन्त ऋतु के आगमन पर पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनके स्थान पर नये पत्ते आ जाते हैं। ढाक और पीपल के पत्ते भी वसन्त काल के आगमन से झर रहे हैं।
3. वसन्त ऋतु कोयल को अतीव प्रिय है। प्राकृतिक परिवेश में वसन्त का प्रसार देखकर अर्थात् वसन्त का मादक वातावरण देखकर कोयल मतवाली हो रही है और अपनी मधुर कूक छेड़ रही है।
4. ऋतु-परिवर्तन होने पर उसका प्रभाव सभी पेड़-पौधों एवं जीवों पर पड़ता है। इससे ग्रामीण प्रकृति का स्वरूप अतीव मनोरम और आकर्षक लगता है।
5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं
पक गये सुनहले मधुर बेर।
अँवली से तरु की डाल जड़ी।
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ' सेम फली, फैलीं,
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : गाँव के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं समृद्धि को देखकर कवि कहता है कि अमरूद पहले पीले हुए, फिर पूरी तरह पक जाने से उन पर लाल-लाल धारियाँ पड़ गई हैं, अर्थात् वे पककर स्वादिष्ट हो गये हैं। बेर भी पककर सुनहरे अर्थात् पीले रंग के हो गये हैं और आँवले की डालियों पर छोटी-छोटी अँवली के गुच्छे सुन्दर लग रहे हैं। गाँव के खेतों में अब हरा पालक लगातार बढ़ रहा है, लहक रहा है तथा हरा धनिया भी खूब सुगन्ध बिखेर रहा है। लौकी और सेम की बेलें भी चारों ओर फैलकर खूब फलने लगी हैं। टमाटर पककर मखमल की तरह कोमल एवं मुलायम हो गये हैं। पौधों पर गुच्छों के रूप में लगी हरी मिर्चों को देखकर लगता है कि वह थैलियों से भरी पड़ी हैं।
प्रश्न 1. कविता में अमरूदों की क्या विशेषता बताई गई है?
प्रश्न 2. 'अँवली से तरु की डाली जड़ी' का क्या आशय हैं?
प्रश्न 3. 'लहलह पालक महमह धनिया' से क्या आशय है?
प्रश्न 4. बेर की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
1. कविता में बताया गया है कि अमरूद जब पकने लगे, तो पीले रंग के हो गये और पूर्णतया पक जाने पर उन पर लाल-लाल चित्तियाँ पड़ गई हैं। इससे उनका स्वाद अधिकाधिक मीठा हो गया है।
2. अँवली अर्थात आँवले के छोटे-छोटे फल डालियों पर इतनी अधिक मात्रा में आ गये हैं, डालें पूरी तरह ढक गई हैं। आँवलों के गुच्छे डालियों पर ऐसे लग रहे हैं, जैसे टहनियों को फलों से जड़ा गया हो।
3. इससे यह आशय है कि गाँव में खूब पालक उगा हुआ है। पालक के लम्बे-चौड़े पत्ते हवा के चलने से लहराने लगते हैं। धनिया के पौधों से खेतों में खुशबू फैल रही है और सारा वातावरण एकदम सुगन्धित बना हुआ है।
4. बेर पककर पीले हो गये हैं जिससे उनमें और मीठापन आ गया है और वे स्वादिष्ट लगने लगे हैं।
6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती,
सुन्दर लगती सरपत छाई।
तट पर तरबूजों की खेती;
अंगुली की कंघी से बगुले
कलंगी संवारते हैं कोई,
गिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : गाँव के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि गंगा नदी के तट पर रंग-बिरंगी रेती फैली हुई है, उस पर सूर्य की किरणें पड़ने से सातों रंग चमकने लगते हैं और हवा से रेत पर बनी आड़ी-तिरछी लहरें साँपों की तरह चमकती हैं। वहाँ पर लम्बे पत्तों वाली घास छायी हुई है तथा गंगा-तट पर तरबूजों की खेती हो रही है। वहाँ पर कुछ बगुले अपनी अंगुली रूपी कंघी से अपना सिर खुजलाते हैं और कलंगी को सँवारते रहते हैं। वहाँ पानी पर चकवा पक्षी तैरते रहते हैं तथा कहीं पर मुर्गाबी सोयी रहती है अर्थात् गाँव के गंगा-तट का वातावरण अतीव रमणीय। दिखाई देता है।
प्रश्न 1. गंगा नदी के तट पर रेत-राशि किस प्रकार दिखाई देती है?
प्रश्न 2. गंगा-तट पर किसकी खेती की गई है?
प्रश्न 3. सुरखाब पक्षी की क्या विशेषता बतायी गई है?
प्रश्न 4. 'कलंगी संवारते हैं कोई' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
1. गंगा नदी के तट पर रेत-राशि हवा के कारण टेढ़ी-मेढ़ी लहरों वाली बनी हुई है। उस रेत पर सूर्य की किरणें पड़ने से वह रंग-बिरंगी दिखाई देती है तथा ऐसी लगती है कि वहाँ पर रंग-बिरंगे साँप लेटे हुए हों।
2. गंगा-तट पर खरपतवार उगा रहता है तथा उसी के बीच तरबूजों की बेलें फैली रहती हैं। गर्मियों के आने से पहले ही वहाँ पर तरबूजों तथा खीरा, ककड़ी आदि की खेती की जाती है।
3. सुरखाब अर्थात् चकवा पक्षी वन में विचरण करता है तथा पानी में अठखेलियाँ करता हुआ तैरता रहता है। यह उभयचर पक्षी है और ऐसी मान्यता है कि रात में यह अपने जोड़े से बिछड़ जाता है।
4. गंगा किनारे बगुले पानी में बैठकर अपने पंजे की अंगुली से मानो कंघी करते हुए अपनी कलंगी को संवारते एवं खुजलाते रहते हैं। इस तरह बगुले वहाँ पर मस्त रहते हैं।
7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप,
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोए -
मरकत डिब्बे-सा खुला ग्राम
जिस पर नीलम नभ आच्छादन -
निरुपम हिमान्त में स्निग्ध शान्त
निज शोभा से हरता जन मन!
कठिन-शब्दार्थ :
भावार्थ : कवि पन्त गाँव के प्राकृतिक मनोरम वातावरण का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गाँव की हरियाली सूर्य की धूप के कारण हँसती हुई प्रतीत हो रही है। सर्दियों में मनभावन धूप खिली रहती है। ऐसा लगता है कि वहाँ का सारा ही परिवेश सुख से अलसाया और सोया हुआ लगता है। ओस पड़ने से रात भीगी-भीगी-सी लग रही है और रात के अन्धकार में तारे सपनों में खोए हुए-से लगते हैं। वह पूरा गाँव मरकत (हरे रंग के) रत्न के बने हुए डिब्बे के समान ता है। उसके ऊपर नीलम के समान नीले आकाश का आवरण है, नीला आकाश छाया हुआ है। सर्दियाँ बीतने पर इस गाँव में अनुपम शांति छायी हुई है। इस तरह यह गाँव अपनी शोभा से लोगों के मन को हर रहा है।
प्रश्न 1. 'हँसमुख हरियाली' से क्या आशय है?
प्रश्न 2. रात में ग्रामीण परिवेश में तारे कैसे प्रतीत होते हैं?
प्रश्न 3. हँसमुख हरियाली किसके साथ सोई हुई है?
प्रश्न 4. गाँव की कौन-सी शोभा जन-मन को हर रही है?
उत्तर :
1. इससे यह आशय है कि गाँव में चारों ओर हरियाली छायी हुई है। उस पर सूर्य की किरणें अर्थात् सर्दियों की गुलाबी धूप पड़ रही है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि हरियाली मन्द हँसी बिखेर रही है।
2. रात में सर्दियों के कारण ओस पड़ती रहती है, लगता है कि अँधेरा भीग रहा है। उधर अँधेरे में तारे टिमटिमाने लगते हैं मानो सपने में वे खोए हुए हैं।3. हँसमुख हरियाली मानो सर्दियों की हरियाली के साथ सोई हुई है।
4. गाँव की प्राकृतिक शोभा यथा हरियाली, ठंडी भीगी रातें, खड़ी फसलें, नीला आकाश और शान्त वातावरण आदि मिलकर ऐसा वातावरण बनाते हैं कि वह जन-मन को हर लेती है।