Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 1 दो बैलों की कथा Textbook Exercise Questions and Answers.
प्रश्न 1.
कॉजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी?
उत्तर :
काँजीहौस में दूसरों के खेत में घुसकर फसल को हानि पहुंचाने वाले पशुओं को बन्द करा दिया जाता था। बन्द पशुओं का रिकार्ड एक रजिस्टर में दर्ज किया जाता था। यदि किसी पशु का मालिक उसको लेने आता था तो उस रिकार्ड के आधार पर पशु का मालिक उसको लेने आता था तो उस रिकार्ड के आधार पर पशु को जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाता था। परन्तु जिन पशुओं के मालिक नहीं आते थे, उनकी नीलामी की जाती थी। अतः काँजीहौस में पशुओं की सही जानकारी रखने के लिए उनकी हाजिरी ली जाती होगी।
प्रश्न 2.
छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया?
उत्तर :
छोटी बच्ची की माँ मर चुकी थी। उसकी सौतेली माँ उसे मारती थी और उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी। वह माँ के बिछुड़ने का दर्द जानती थी। इसलिए हीरा-मोती की व्यथा देखकर उसके मन में उनके प्रति प्रेम उमड़ आया, क्योंकि उसे लगा कि वे भी उसी की तरह अभागे हैं।
प्रश्न 3.
कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभरकर आए हैं?
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में बैलों के माध्यम से निम्नलिखित नीति-विषयक मूल्य उभरकर सामने आये हैं
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचन्द ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ 'मूर्ख' का प्रयोग न कर किस नये अर्थ की ओर संकेत किया है?
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में प्रेमचन्द ने गधे के लिए रूढ़ अर्थ 'मूर्ख' का प्रयोग न करके उसे सन्तोषी, सहनशील, सुख-दुःख में समान रहने वाला, क्रोधरहित एवं स्थिर व्यवहार वाला बताया है। इस आधार पर उसकी तुलना ऋषि मुनियों के स्वभाव से की है। इस प्रकार कथाकार ने गधे के सहिष्णु, सद्गुणी एवं सन्तोषी स्वभाव वाले अर्थ की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 5.
किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी?
उत्तर :
'दो बैलों की कथा' में कुछ घटनाएँ ऐसी हैं, जिनसे हीरा और मोती की गहरी दोस्ती का पता चलता है। यथा
प्रश्न 6.
"लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।"-हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचन्द के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
हीरा के उक्त कथन के माध्यम से प्रेमचन्द का स्त्री-जाति के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त हुआ है। भारतीय संस्कृति में 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' कथन से नारी को सम्मानित एवं पूज्या माना गया है। हमारे समाज में कुछ लोग स्त्री को केवल भोग्या तथा साधारण जीव मानते हैं, उसका शोषण-उत्पीड़न करते हैं, मारते-पीटते भी हैं, परन्तु प्रेमचन्द का ऐसा दृष्टिकोण नहीं रहा है। उन्होंने स्त्री को समता एवं सम्मान का पात्र बताया है।
प्रश्न 7.
किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी सम्बन्धों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है?
उत्तर :
कहानी में किसान जीवन वाले समाज में मनुष्य और पशु का घनिष्ठ संबंध बताया गया है। वे एक-दूसरे के सहायक और पूरक रहे हैं। किसान पशुओं को घर का सदस्य मानकर उनसे प्रेम करता है और पशु भी अपने स्वामी के लिए जी-जान देने को तैयार रहते हैं। झूरी हीरा-मोती को घर के सदस्यों की तरह स्नेह करता था। इसीलिए हीरा-मोती दो बार उसकी ससुराल से भाग कर अपने थान पर खड़े हुए थे। उन्हें देखकर वह ही नहीं उसकी पत्नी भी आनन्द से भर उठी थी। इससे पता चलता है कि किसान अपने पशुओं से मानवीय व्यवहार करते हैं।
प्रश्न 8.
"इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे"-मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर :
इस कथन से ज्ञात होता है कि मोती स्वभाव से उग्र किन्तु दयालु बैल है। वह अत्याचार का विरोधी, पीड़ितों के प्रति सहानुभूति रखने वाला और आजादी का समर्थक है। इसीलिए वह काँजीहौस की दीवार तोड़कर बन्द पड़े पशुओं को आजाद कर देता है। उसे इस बात पर सन्तोष होता है कि अब चाहे कुछ भी हो। इतना तो हो गया कि मेरे प्रयास से नौ-दस प्राणियों की जान बच गयी।
प्रश्न 9.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित
उत्तर :
आशय-सामान्य पशु होते हुए भी हीरा और मोती एक-दूसरे के मनोभावों को समझ लेते थे तथा मूक भाषा में विचार-विनिमय करते थे। इससे कथाकार का मानना है कि उन दोनों बैलों के पास अवश्य ही कोई गुप्त शक्ति थी जिसके माध्यम से मूक-भाषा में वे एक-दूसरे की मन की भावनाओं को समझ लेते थे। मनुष्य सभी जीवों में श्रेष्ठ है, परन्तु उसके पास ऐसी गुप्त शक्ति का अभाव है, जो बिना बोले ही दूसरों की भावनाओं को स्पष्टतया समझ सके।
(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शान्त होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।
उत्तर :
आशय-गया के घर में हीरा-मोती के साथ अत्याचार होता था। गया उन्हें मारता था और खाने के लिए सूखा भूसा देता था। दोनों बैल इसे अपना अपमान समझते थे। सन्ध्या के समय उसी घर की एक छोटी सी बच्ची ने दो रोटियाँ लाकर उन दोनों को खिलायीं। एक-एक रोटी से उनकी भूख क्या शान्त होती, परन्तु छोटी बच्ची के प्रेमपूर्ण व्यवहार को देखकर उन दोनों में एक शक्ति का संचार हो गया, मानो उन्हें अच्छा भोजन मिल गया और उनके हृदय में यह भाव जागा कि यहाँ पर भी किसी सज्जन का वास है।
प्रश्न 10.
गया ने हीरा-मोती को दोनों बार सखा भूसा खाने के लिए दिया क्योंकि -
(क) गया पराये बैलों पर अधिक खर्च नहीं करना चाहता था।
(ख) गरीबी के कारण खली आदि खरीदना उसके बस की बात न थी।
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुःखी था।
(घ) उसे खली आदि सामग्री की जानकारी न थी।
सही उत्तर के आगे (✓) का निशान लगाइए।
उत्तर :
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुःखी था। (✓)
रचना और अभिव्यक्ति -
प्रश्न 11.
हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही। हीरा मोती की इस प्रतिक्रिया पर तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में हीरा-मोती को स्वतन्त्रता-आन्दोलन के क्रान्तिकारियों के प्रतीक रूप में रखा गया है। इन दोनों ने गया के घर जाने पर मातृभूमि के प्रति अपना प्रेम दर्शाने और अत्याचार-शोषण का विरोध करने में अपनी क्षमता का परिचय दिया। इस संघर्ष में उन्हें वहाँ प्रताड़ना मिली, मार भी खानी पड़ी और भूखा भी रखा गया, फिर भी वे अपने ढंग से उसका विरोध भी करते रहे। इस तरह गुलामी के बदले आजादी की लालसा में उन्होंने संघर्षरत रहने की अपनी बलवती भावना का परिचय दिया।
प्रश्न 12.
क्या आपको लगता है कि यह कहानी आजादी की लड़ाई की ओर संकेत करती है?
उत्तर :
अप्रत्यक्ष रूप से यह कहानी अंग्रेजों की दासता से मुक्ति की कहानी है और इसमें हीरा-मोती क्रान्तिकारियों के प्रतीक हैं। जिस समय यह कहानी लिखी गयी, उस समय भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन चल रहा था। अपनी बात को खुलकर न कह सकने के कारण प्रेमचन्द ने दो बैलों के माध्यम से आजादी की लड़ाई की ओर संकेत किया। हीरा-मोती को लेकर कहानी में जो घटना-क्रम एवं विचाराभिव्यक्ति दर्शायी गई है, वह सब आजादी की लड़ाई से मेल खाती है। जहाँ झूरी का घर स्वराज्य का और गया का घर पराधीनता का प्रतीक है वहीं हीरा अहिंसा का और मोती क्रान्ति का प्रतीक है। अन्त में इन दोनों की विजय बताई गयी है।
भाषा अध्ययन -
प्रश्न 13.
बस इतना ही काफ़ी है।
फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।
'ही''भी' वाक्य में किसी बात पर जोर देने का काम कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को निपात कहते हैं। कहानी में से ऐसे पाँच वाक्य छाँटिये, जिनमें निपात का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर :
प्रश्न 14.
रचना के आधार पर वाक्यभेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भेद भी लिखिए -
(क) दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
उत्तर :
यह मिश्र वाक्य है।
(i) दीवार का गिरना था - प्रधान या मुख्य उपवाक्य
(ii) अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे। - आश्रित क्रिया विशेषण उपवाक्य
(ख) सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया।
उत्तर :
यह मिश्र वाक्य है।
(i) सहसा एक दढ़ियल आदमी आया। - प्रधान उपवाक्य
(ii) जिसकी आँखें लाल थीं। - आश्रित विशेषण उपवाक्य
(iii) और मुद्रा अत्यन्त कठोर। - आश्रित विशेषण उपवाक्य
(ग) हीरा ने कहा-गया के घर से नाहक भागे।
उत्तर :
मिश्र वाक्य है।
(i) हीरा ने कहा। - प्रधान उपवाक्य
(ii) गया के घर से नाहक भागे। - आश्रित संज्ञा उपवाक्य
(घ) मैं बेचूँगा, तो बिकेंगे।
उत्तर :
मिश्र वाक्य है।
(i) तो बिकेंगे। - प्रधान उपवाक्य
(ii) मैं बेचूंगा। - आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य
(ङ) अगर वह मुझे पकड़ता तो मैं बे-मारे न छोड़ता।
उत्तर :
मिश्र वाक्य है।
(i) मैं बे-मारे न छोड़ता। - प्रधान उपवाक्य
(ii) अगर वह मुझे पकड़ता। - आश्रित क्रिया-विशेषण उपवाक्य
प्रश्न 15.
कहानी में जगह-जगह मुहावरों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
कहानी में प्रयुक्त मुहावरे-ईंट का जवाब पत्थर से देना, सिंहनी का रूप धारण करना, सींग मारना, गम खाना, जी तोड़ काम करना, सिर झुकाना, धौल-धप्पा होना, कोर कसर उठा न रखना, पसीना आना, दिल भारी होना, आँख न उठाना, पलट जाना, यल जाना, जान से हाथ धोना, नाकों में नथ डालना, जान जोखिम में डालना, मन फीका होना, अकड़ निकल जाना, खलबली मचना, मन फीका करना, माथा चूमना, काम आना आदि।
वाक्य-प्रयोग :
प्रश्न 1.
भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में मोती प्रतीक है
(क) महात्मा गाँधी का
(ख) सुभाष चन्द्र बोस का
(ग) जवाहरलाल नेहरू का
(घ) प्रेमचन्द का
उत्तर :
(ख) सुभाष चन्द्र बोस का
प्रश्न 2.
भारतवासियों की अफ्रीका और अमेरिका में दुर्दशा होने का कारण था
(क) अकर्मण्यता और आलस
(ख) पारस्परिक ईर्ष्या और द्वेष
(ग) सीधापन और सहनशीलता
(घ) सहिष्णुता और संघर्ष
उत्तर :
(ग) सीधापन और सहनशीलता
प्रश्न 3.
छोटी-सी लड़की उन दोनों के मुँह में रोटियाँ देकर चली गयी थी
(क) उनकी भूख शान्त करने के कारण
(ख) उनके प्रति दया दिखाने के कारण
(ग) उनके प्रति आत्मीयता होने के कारण
(घ) उनके प्रति सज्जनता दिखाने के कारण
उत्तर :
(घ) उनके प्रति सज्जनता दिखाने के कारण
प्रश्न 4.
साँड आदी था
(क) मल्ल युद्ध करने का
(ख) डर कर भागने का
(ग) शत्रुओं को पछाड़ने का
(घ) हिल-मिलकर रहने का
उत्तर :
(क) मल्ल युद्ध करने का
प्रश्न 5.
"इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गयी।" यह कथन है -
(क) हीरा का
(ख) मोती का
(ग) गाय का
(घ) गधे का
उत्तर :
(ख) मोती का
अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न :
निर्देश-निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए :
1. जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है। किंतु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा।
प्रश्न 1. जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन क्यों समझा जाता है?
प्रश्न 2. किसी आदमी को गधा कब और क्यों कह देते हैं?
प्रश्न 3. गधे की कौनसी विशेषताएँ अन्य पशुओं से भिन्न हैं?
प्रश्न 4. 'परले दरजे का बेवकूफ़' से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर :
1. जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन इसलिए समझा जाता है, क्योंकि वह स्वभाव से सीधा और सहनशील होने के कारण न तो अन्याय का विरोध करता है और न कभी किसी पर क्रोध करता है।
2. जब हम किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ समझते हैं, तब हम उस आदमी को गधा कह देते हैं, क्योंकि उसमें गधे जैसे गुण समाये हुए दृष्टिगत होते हैं।
3. गधे की अत्यधिक सहनशीलता, सीधापन, सन्तोषी भाव आदि विशेषताएँ उसे अन्य पशुओं से भिन्न करती हैं।
4. 'परले दरजे का बेवकूफ़' से लेखक का आशय है- बिल्कुल मूर्ख।
2. जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसा खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असन्तोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो; पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप में छाया रहता है। सुख-दुःख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गये हैं। पर आदमी उसे बेवकूफ़ समझता है। सद्गुणों का इतना अनादर नहीं देखा। कदाचित् सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है।
प्रश्न 1. गधे के चेहरे पर कभी असन्तोष की छाया क्यों नहीं दिखाई देती?
प्रश्न 2. कदाचित् सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 3. किस आधार पर गधे में ऋषियों-मुनियों के गुण बताये गये हैं?
प्रश्न 4. आदमी गधे को बेवकूफ समझता है-क्या यह उचित है?
उत्तर :
1. गधे के चेहरे पर कभी असन्तोष की छाया इसलिए दिखाई नहीं देती है, क्योंकि वह स्वभाव से सरल, संतोषी और हर हाल में सन्तुष्ट रहने वाला पशु है।
2. इस संसार में रहने वाले स्वार्थी और दुष्ट लोग सीधापन रखने वालों को अनावश्यक तंग करते हैं और उन्हें बात-बात पर दबाने की चेष्टा करते हैं। सीधापन मनुष्य का एक श्रेष्ठ गुण है। फिर भी दक्षिणी अफ्रीका में भारतवासियों को सीधेपन के कारण अनेक कष्ट उठाने पड़े थे।
3. गधा सुख-दुःख, हानि-लाभ, भूख-प्यास आदि किसी भी स्थिति में सदा समान रहता है। वह असन्तोष, क्रोध या विरोध नहीं करता है। वस्तुतः ये ऋषियों-मुनियों के गुण माने गये हैं, जो कि गधे में भी दिखाई देते हैं।
4. वस्तुतः गधे का सीधा-सरल स्वभाव व अन्याय का विरोध न करने से ऐसा प्रतीत होता है कि वह बेवकूफ़ या मूर्ख है।
3. देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद सभ्य कहलाने लगते। जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
प्रश्न 1. भारतीयों को अमेरिका में क्यों नहीं घुसने दिया जाता?
प्रश्न 2. विदेशों में रहने वाले भारतीय किस तरह का आचरण करते हैं?
प्रश्न 3. किस कारण से जापान को सभ्य और भारतीयों को असभ्य कहकर बदनाम किया गया?
प्रश्न 4. गम खाना का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. भारतीयों को अमेरिका में इसलिए घुसने नहीं दिया जाता, क्योंकि वे सीधे-सादे, सहनशील, बचत करने के पक्षपाती होने के कारण जीवन के आदर्श को नीचा गिराते हैं। उनका जीवन-स्तर घटिया है।
2. विदेशों में रहने वाले भारतीय मदिरा सेवन नहीं करते हैं। कुसमय के लिए पैसा बचाकर रखते हैं। अपना कार्य पूरी मेहनत और लगन के साथ करते हैं। किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते हैं और दूसरों की बातों को सुनकर गम खा जाते हैं।
3. युद्ध में कुशलता दिखाकर विजय प्राप्त कर लेने के कारण जापान को सभ्य मान लिया गया और सरलता सीधेपन और सहनशीलता के कारण भारतीयों को असभ्य कहकर बदनाम किया गया।
4. गम खाना का आशय है - आयी हुई मुसीबत को चुपचाप सहन कर लेना। किसी को कुछ भी नहीं कहना। अमेरिका में रहने वाले भारतीय किसी से न तो लड़ते-झगड़ते थे और चार बातें सुनकर भी गम खा जाते थे।
4. लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है 'बैल'।जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में 'बछिया के ताऊ' का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है और भी कई रीतियों से अपना असन्तोष प्रकट कर देता है; अतएव उसका स्थान गधे से नीचा है।
प्रश्न 1. बैल को गधे का छोटा भाई क्यों कहा गया है?
प्रश्न 2. 'बछिया का ताऊ' किसे कहा जाता है और क्यों?
प्रश्न 3. 'कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे।' इस संबंध में लेखक का विचार भिन्न क्यों
प्रश्न 4. गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. बैल को गधे का छोटा भाई इसलिए कहा गया है, क्योंकि उसमें भी गधे की तरह सरलता-सहनशीलता के गुण पाये जाते हैं लेकिन उसमें ये गुण गधे की अपेक्षा कुछ कम मात्रा में होते हैं।
2. 'बछिया का ताऊ' बैल को कहा जाता है. जिस प्रकार गाय का बच्चा अर्थात् बछड़ा सरल, सीधा और उत्साही होता है, उसी प्रकार बैल भी उन गुणों में उनका ताऊ अर्थात् उससे कहीं आगे होता है। इसलिए उसे बछिया का ताऊ कहा जाता है।
3. बैल गधे की तरह सरल-सहनशील भी है लेकिन उसे बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ इसलिए नहीं कहेंगे, क्योंकि वह गधे के गुणों को त्यागकर कभी-कभी अड़ियल होकर अपने सींगों का प्रयोग मारने के लिए भी करता है।
4. गधे को सीधेपन और सहनशीलता के कारण मूर्ख जानवर माना जाता है। ये गुण बैल में भी विद्यमान होते हैं इसलिए उसे गधे का छोटा भाई कहा जाता है। कुछ लोग बैल को बेवकूफों में सर्वश्रेष्ठ मानते हैं पर लेखक का ऐसा मानना नहीं है, क्योंकि बैल कभी-कभी मारता भी है और अड़ियलपन भी करता है इसलिए उसका स्थान गधे से नीचा है।
5. बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 1. दोनों बैल आपस में किससे विचार-विनिमय करते थे?
प्रश्न 2. इस गद्यांश में किनकी चर्चा है? वे दोनों एक-दूसरे के मन की बात कैसे जान लेते थे?
प्रश्न 3. हीरा और मोती आत्मीयता किस तरह प्रकट करते थे?
प्रश्न 4. 'गुप्त-शक्ति' से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
1. दोनों बैल आस-पास बैठे हुए मूक-भाषा में एक-दूसरे से विचार-विनिमय करते थे।
2. इस गद्यांश में हीरा-मोती नामक दो बैलों की चर्चा है। वे दोनों मूक भाषा में पास-पास बैठकर एक-दूसरे के मन की बात बिना बोले ही समझ जाते थे। लेखक का मानना है कि अवश्य ही उनमें ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे मनुष्य वंचित
3. हीरा और मोती एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर, कभी-कभी आपस में विनोद भाव से सींग मिलाकर तथा परस्पर गरदन हिलाकर अपनी आत्मीयता प्रकट करते थे।
4. मनुष्य अपनी स्पष्ट वाणी से, अपने स्पष्ट संकेतों और व्यवहार से आपस में विचार-विनिमय करते हैं। परन्तु पशुओं के पास 'ऐसी क्षमता नहीं है, फिर भी वे परस्पर विचार-विनिमय मूक-भाषा में ही कर लेते हैं। इससे पता चलता है कि उनके पास कोई गुप्त शक्ति है।
6. अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोई ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता, तो दोनों पीछे को जोर लगाते। मारता तो दोनों सींग नीचे करके हुँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था तो और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेच दिया?
प्रश्न 1. गया कौन था? वह बैलों को क्यों नहीं संभाल पा रहा था?
प्रश्न 2. दोनों बैल क्यों विरोध कर रहे थे?
प्रश्न 3. दोनों बैल झूरी से क्या पूछना चाहते थे?
प्रश्न 4. दोनों बैल गया को जालिम क्यों मान रहे थे?
उत्तर :
1. गया झूरी का साला था। हीरा-मोती झूरी के बैल थे और वे झूरी को छोड़कर गया के साथ नहीं जाना चाहते थे। इसलिए जब गया उन्हें ले जा रहा था तो दोनों कभी दाएँ भागते कभी बाएँ। गया उन्हें संभाल नहीं पा रहा था।
2. दोनों बैलों को लगता था कि झूरी ने उन्हें बेच दिया है। वे इस तरह बिक जाने का विरोध कर रहे थे।
3. से यह पछना चाहते थे कि हमने तुम्हारी सेवा में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता, तो हमसे और काम ले लेते। हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं थी। फिर हमें घर से क्यों निकाल रहे हो?
4. गया उन दोनों बैलों को हल और गाड़ी में जोतता और मारता था और उन्हें खाने के लिए सूखा भूसा देता था। वह बैलों के प्रति कठोरता का व्यवहार कर रहा था। इस कारण वे गया को कसाई और जालिम मान रहे थे।
7. झूरी प्रातःकाल सोकर उठा, तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है। घुटने तक पाँव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है। झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुंबन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था। घर और गाँव के लड़के जमा हो गए और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी। बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनंदन पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी।
प्रश्न 1. झूरी ने प्रातः काल उठते ही क्या देखा?
प्रश्न 2. दोनों बैलों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह क्यों झलक रहा था?
प्रश्न 3. गाँव के इतिहास में कौनसी घटना अभूतपूर्व न होते हुए भी महत्त्वपूर्ण थी?
प्रश्न 4. दोनों पशु-वीरों को अभिनन्दन पत्र देना चाहिए से क्या आशय है?
उत्तर :
1. झूरी ने प्रातः काल सोकर उठते ही देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। उनकी गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है। उन दोनों के पाँव कीचड़ से सने हुए हैं और उनकी आँखों से विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है।
2. दोनों बैलों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह इसलिए झलक रहा था, क्योंकि उन्हें लगा था कि मेरे मालिक झूरी ने उन्हें बेच दिया था। इस कारण उनके मन में झूरी के प्रति नाराजगी थी लेकिन झूरी ने उन्हें देखकर गले से लगा लिया था इसलिए उसके मन में उसके प्रति स्नेह भी था।
3. गाँव के इतिहास में गया के घर से हीरा और मोती का भाग कर झूरी के घर पुनः आना अभूतपूर्व न होते हुए भी महत्त्वपूर्ण घटना थी। उन्हें देखकर गाँव के लड़के एकत्र हो गये थे और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे थे।
4. दोनों पशु हीरा और मोती गया के घर से पगहे तोड़कर भाग आये थे। उनका यह कार्य शूरवीरता से कम नहीं था। गाँव के बच्चे उनकी इस शूरवीरता को देखकर उनका स्वागत करने के लिए अपने-अपने घर से रोटी, चोकर, गुड़, भूसी आदि लेकर आए और तालियाँ बजायीं। ये सब हीरा-मोती के लिए अभिनन्दन पत्र देने के समान था।
8. दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे पर किसी के सामने चारा न था, सब जमीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। कई तो इतने कमजोर हो गए थे कि खड़े भी न हो सकते थे। सारा दिन दोनों मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए ताकते रहे। पर कोई चारा लेकर आता न दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती?
प्रश्न 1. दोनों मित्रों से क्या अभिप्राय है? उनके जीवन में पहली बार क्या हुआ था?
प्रश्न 2. दोनों मित्रों को काँजीहौस के मालिक से 'गया' अच्छा क्यों लगा?
प्रश्न 3. काँजीहौस में पशु जमीन पर मुरदों की तरह क्यों पड़े हुए थे?
प्रश्न 4. दोनों मित्रों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी क्यों शुरू की?
उत्तर :
1. दोनों मित्रों से अभिप्राय हीरा और मोती से है। उनके जीवन में पहली बार यह हआ था कि वे दोनों काँजीहौस में बन्द थे और उन्हें पूरे दिन खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला था जिसके कारण वे भूख से तड़फ रहे थे।
2. दोनों मित्रों को काँजीहौस के मालिक से 'गया' अच्छा इसलिए लगा, क्योंकि वह मार-पीटकर उन्हें खाने के लिए सूखा भूसा तो देता था लेकिन काँजीहौस के मालिक ने तो उन दोनों को खाने के लिए पूरे दिन कुछ भी नहीं दिया था।
3. काँजीहौस में पशु जमीन पर मुरदों की तरह इसलिए पड़े हुए थे, क्योंकि उन्हें कई दिनों से खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं मिला था। जिसके कारण वे इतने कमजोर हो गये थे कि खड़े भी नहीं हो पाते थे।
4. दोनों मित्रों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी इसलिए शुरू की, क्योंकि वे मिट्टी चाट कर अपनी भूख मिटाना चाहते थे। उन्हें कांजीहौस में खाने को कुछ भी नहीं मिला था।
9. नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी काँप रही थी। बेचारे पाँव तक न उठा सकते थे। पर भय के मारे गिरते-पड़ते भागे जाते थे; क्योंकि वह जरा भी चाल धीमी हो जाने पर जोर से डंडा जमा देता था। राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-हरे हार में चरता नजर आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पांगुर करता था।कितना सुखी जीवन था इनका; पर कितने स्वार्थी हैं सब। किसी को चिंता नहीं कि उनके दो भाई बधिक के हाथ पड़े कैसे दुःखी हैं।
प्रश्न 1. दढ़ियल कौन था? उन दोनों की बोटी-बोटी क्यों काँप रही थी?
प्रश्न 2. हीरा-मोती में चलने की सामर्थ्य न होने पर भी भागे क्यों जा रहे थे?
प्रश्न 3. हीरा-मोती और रेवड़ में चरने वाले गाय-बैलों की स्थिति में क्या अन्तर था?
प्रश्न 4. हीरा-मोती को हार में चरने वाला रेवड़ स्वार्थी क्यों प्रतीत हो रहा था?
उत्तर :
1. दढ़ियल कसाई था। वह उन्हें नीलामी में खरीदकर लिये जा रहा था। वे उससे भयभीत थे इसलिए उनकी बोटी-बोटी काँप रही थी।
2. हीरा-मोती कसाई से भयभीत थे इसलिए चलने की सामर्थ्य न होने पर भागे जा रहे थे, क्योंकि धीमे चलने पर वह उनको डंडे से पीट देता था।
3. हीरा-मोती कसाई के द्वारा खरीद लिए जाने के कारण निराश और हताश थे और वे भखे-प्यासे थे। वे मानो दासता से पूरित थे जबकि रेवड़ में चरने वाले गाय-बैल प्रसन्न, मौज-मस्ती से पूरित होकर चर रहे थे। कुछ बैठे हुए जुगाली कर रहे थे। वे स्वतंत्रता के प्रतीक थे।।
4. हीरा-मोती कसाई के हाथों में फंसे हुए थे। वे भूखे-प्यासे और भयभीत थे। इसलिए वे चाहते थे कि हार में वाले पशु उनको सहायता कर उन्हें बचा ले लेकिन वे सब अपनी स्वतन्त्रता में मस्त होकर उछल-कूद कर रहे थे। इसलिए उन्हें पशुओं का रेवड़ स्वार्थी प्रतीत हो रहा था।
10. दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भाँति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आये और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था। झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आँखों से आनन्द के आँसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था। दढ़ियल ने आकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ लीं। झूरी ने कहा-मेरे बैल हैं।
प्रश्न 1. यह गद्यांश कहाँ से उद्धृत एवं किसके द्वारा लिखित है?
प्रश्न 2. दोनों बैल दौड़कर कहाँ आकर खड़े हो गए थे?
प्रश्न 3. झूरी कौन था? वह बैलों के गले क्यों लगा?
प्रश्न 4. दढ़ियल कौन था? उसने बैलों की रस्सियाँ क्यों पकड़ ली?
उत्तर :
1. यह गद्यांश 'दो बैलों की कथा' कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक मुंशी प्रेमचन्द हैं।
2. दोनों बैल दौड़कर (झूरी के घर पर) अपने थान पर आकर खड़े हो गए थे।
3. झूरी हीरा-मोती बैलों का असली मालिक था। अचानक अपने बैलों को पाकर वह प्रसन्नता से उनके गले लगा।
4. दढ़ियल एक कसाई था। उसने इन बैलों को काँजीहौस से नीलामी में खरीदा था। इसलिए वह उनका मालिक बन गया था। वह उन्हें काटने ले जा रहा था। इस कारण उसने बैलों की रस्सियाँ पकड़ लीं।
बोधात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
"नहीं, हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।" यह किसने और किस आशय से कहा?
उत्तर :
यह हीरा ने कहा। दोनों बैल जब हल लेकर भागे, तो गया अपने दो आदमियों के साथ लाठी लेकर आया। उस समय गया को देखकर मोती ने कहा कि मैं भी इसे कछ मजा चखाता हैं। तब हीरा ने कहा कि गया हमारे मालिक का साला है, वह इस समय हमारा मालिक जैसा है। अत: मालिक पर प्रहार करना या उसे शारीरिक नुकसान पहुँचाना हम सेवकों का धर्म नहीं है।
प्रश्न 2.
दोनों बैलों ने आजादी का कब अनुभव किया?
उत्तर :
दोनों बैलों की रस्सियाँ भैंरो की लड़की ने चुपचाप खोल दी थीं। इस कारण वे दोनों वहाँ से भागने लगे। गया ने कुछ दूर तक उनका पीछा किया, परन्तु असफल रहा। तब हीरा और मोती दोनों ही अपनी भूख शान्त करने के लिए मटर के एक खेत में घुस गये। उन्होंने पेट भरकर हरी मटर खायी और मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। उस समय इन दोनों बैलों को आजादी का अनुभव हुआ।
प्रश्न 3.
बेदम होकर गिर पड़े साँड को लक्ष्य कर हीरा-मोती ने कौनसी नीति-विषयक बातें कही?
उत्तर :
बेदम होकर गिरे सांड को लक्ष्य करके हीरा ने कहा कि 'गिरे हुए बैरी पर सींग नहीं चलाना चाहिए।' अर्थात हारे हए शत्र पर शक्ति का प्रयोग करना धर्म-युद्ध के विपरीत माना जाता है। मोती ने फिर कहा कि 'यह सब ढोंग है, बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।' अर्थात् दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए, उसके प्रति सदाशयता या क्षमा भाव नहीं रखना चाहिए। इस प्रकार हीरा-मोती ने साँड को लक्ष्य कर सुन्दर नीति-विषयक बातें कही।
प्रश्न 4.
"जोर तो मारता ही जाऊँगा, चाहे कितने ही बन्धन पड़ते जाएँ।" इस वाक्य के माध्यम से लेखक ने क्या व्यंजना की है?
उत्तर :
यह वाक्य हीरा का कथन है। वह काँजीहौस की दीवार तोड़ने के सम्बन्ध में अपने दृढ़ संकल्प को व्यक्त करता है। उसके माध्यम से लेखक ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में जो क्रान्तिकारी अंग्रेजों की कैद में थे, उनकी भावनाओं की व्यंजना की है। गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए संघर्ष और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है। कष्टों की चिन्ता किये बिना निरन्तर संघर्ष करते रहने से ही गुलामी की जंजीरें टूट सकती हैं।
प्रश्न 5.
हीरा और मोती के स्वभाव में क्या अन्तर दिखाई देता है? कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर :
मोती स्वभाव से कुछ उग्र अन्याय व अत्याचार का विरोध करने में 'जैसे को तैसा' सिद्धान्त को मानने वाला, परोपकारी व दयालु है। हीरा भी अन्याय का विरोधी है लेकिन मोती की तरह उग्र नहीं है। इस तरह हीरा के मुकाबले मोती का स्वभाव अधिक स्वाभाविक प्रतीत होता है।
प्रश्न 6.
"मर जाऊँगा, पर उसके काम न आऊँगा।" यह किसने और किस आशय से कहा?
उत्तर :
यह मोती ने हीरा से कहा, क्योंकि उसकी निगाह में कसाई शोषणकारी और हिंसक था। ऐसे व्यक्ति की गुलामी में रहना, उसकी खातिर अपना जीवन बलिदान करना या अन्याय का विरोध न करना अनुचित है। ऐसे व्यक्ति के काम में आने की बजाय प्राणों का बलिदान करना उचित है।
प्रश्न 7.
हीरा-मोती ने दूसरी बार गया के घर भेजे जाने का किस प्रकार विरोध किया? कहानी के आधार पर बताइए।
उत्तर :
हीरा और मोती गया के घर नहीं जाना चाहते थे लेकिन भेजे जाने पर पहले तो मोती ने गाडी को सडक खाई में गिराना चाहा परन्तु हीरा ने उसे संभाल लिया। गया द्वारा सूखा भूसा डालना उन्होंने अपना अपमान समझा और उसे नहीं खाया। गया द्वारा हीरा की नाक पर डंड़ेर बरसाये जाने पर मोती ने हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब तोड़-ताड़कर बराबर कर दिये। इसके बाद वे फिर से गया के घर से भागे। इस प्रकार उन दोनों ने गया के घर भेजे जाने का विरोध किया।
प्रश्न 8.
'दो बैलों की कथा' पाठ में गुप्त-शक्ति से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
'दो बैलों की कथा' नामक कहानी में मुंशी प्रेमचन्द ने बताया कि जानवरों में गुप्त शक्ति होती है। उनमें दूसरे के मनोभावों को भाँपने की ताकत होती है। इसी कारण जब दड़ियल आदमी ने दोनों बैलों के शरीर को टटोल टटोल कर देखने की चेष्टा की तो वे दोनों बैल उसकी बदनीयत को समझ गये। उन्हें पता चल गया कि यह आदमी हत्यारा है, यह उनका मित्र नहीं हो सकता। इससे हमारा अनर्थ हो सकता है।
प्रश्न 9.
दोनों बैलों के साथ कैसा व्यवहार हो रहा था?
उत्तर :
झूरी अपने दोनों बैलों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करता था, परन्तु उसके घर को छोड़कर अन्य सब जगहों पर उनके साथ शोषण और अन्याय का व्यवहार किया जा रहा था। गया उन्हें अपने खेतों पर जबरदस्ती जोतता था, चारा कम देता था। रास्ते में साँड ने उन पर बेवजह आक्रमण कर दिया था। काँजीहौस में तो अन्य जानवरों के साथ उन पर अन्याय हो रहा था। वहाँ पर चारा-पानी कुछ नहीं दिया जा रहा था। दड़ियल व्यक्ति कसाई था, वह उन्हें काट देना चाहता था। उसका व्यवहार अत्यन्त निर्मम था।
प्रश्न 10.
काँजीहौस में हीरा-मोती ने किस तरह एकता दिखाई थी?
उत्तर :
काँजीहौस के अन्दर अनेक भैंसें, बकरियाँ, घोड़े, गधे आदि पशु बन्द थे। भूख-प्यास के कारण वे बेहाल थे और एकदम मरियल बने हुए थे। ऐसे में हीरा-मोती ने काँजीहौस की दीवार को सींग मार-मार कर तोड़ डाला। इससे वहाँ के सारे पशु आजाद हो गये। गधे वहाँ से भागने को तैयार नहीं थे। तब हीरा-मोती ने उन्हें भी खदेड़कर बाहर कर दिया था। इस तरह काँजीहौस में हीरा-मोती ने एकता और साहस का परिचय दिया, परन्तु अन्ततः वे पूरी तरह सफल नहीं हुए।
प्रश्न 11.
'दो बैलों की कथा' के आधार पर बताइए कि क्या-क्या आरोप लगाकर भारतीयों को अमेरिका में नहीं घुसने दिया जाता था?
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में बताया गया है कि अमेरिका के लोग भारतीयों की सरलता, सहनशीलता, सादगी एवं अहिंसा के कारण नीचा मानते थे। वे केवल संघर्षशील लोगों को तथा खुले दिल से खर्च करने वालों को सम्मान देते थे। भारतीय लोग शराब नहीं पीते थे, चार पैसे कमाकर कुसमय के लिए बचाकर रखते थे और जी-तोड़ काम करते थे। किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं। भारतीयों के ऐसे स्वभाव को देखकर अमेरिकावासी उन्हें वहाँ घुसने नहीं देते थे।
प्रश्न 12.
'दो बैलों की कथा' में लेखक ने सच्चे मित्रों की क्या पहचान बतायी है?
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने हीरा-मोती बैलों के माध्यम से सच्चे मित्रों की यह पहचान बतायी है कि सच्चे मित्र आपस में खूब मेल-जोल से रहते हैं। वे कभी आपस में कुछ धौल-धप्पा, शरारत या कुलेल-क्रीड़ा भी करते हैं, परन्तु उससे उनका प्रेम बढ़ता है। सच्चे मित्र हर समय एक-दूसरे की सहायता-सहयोग करते हैं। जैसे हीरा-मोती एक साथ हल या गाड़ी को खींचते थे, नाँद में खली-भूसा एक साथ खाते थे और विपदा आने पर एक साथ उसका सामना करते थे।
प्रश्न 13.
झूरी की पत्नी ने हीरा-मोती को पहले नमकहराम क्यों कहा? बाद में उनका माथा क्यों चूमा?
उत्तर :
झूरी की पत्नी ने दोनों बैल अपने भाई गया के घर हल चलाने के लिए भिजवाये थे। परन्तु दोनों बैल वहाँ से भाग आये, तो झूरी की पत्नी को अच्छा नहीं लगा और अपने भाई का अपमान मानकर उसने हीरा-मोती को गुस्से में नमकहराम कहा। बाद में कसाई के बन्धन से भागते हुए जब दोनों बैल अपने थान पर पहुंचे, तो झूरी की पत्नी के मन का मैल दूर हो गया। वह हीरा-मोती को सच्चा स्वामिभक्त मानने लगी। कई दिनों के बाद बैलों के लौट आने से उसने खुशी से उनका माथा चूम लिया।
प्रश्न 14.
'दो बैलों की कथा' के आधार पर सिद्ध कीजिए कि एकता में ही शक्ति है।
उत्तर :
गया के घर से दूसरी बार भागने पर हीरा-मोती रास्ता भटक गये। वे दोनों एक खेत में मटर खाने घुसे, तो वहाँ उनका मुकाबला एक बड़े भयानक साँड से हुआ। तब हीरा-मोती ने योजना बनाई कि कैसे साँड का मुकाबला करें। साँड जब एक को आगे से मारता, तो उसी समय दूसरा उस पर पीछे से सींग से प्रहार करता। इस तरह वे दोनों उस साँड का मुकाबला करते रहे। हीरा-मोती ने योजनानुसार साँड के हमले को विफल कर दिया। इससे साँड बेदम होकर गिर पड़ा। तब हीरा-मोती ने उसे छोड़ दिया। यदि वे दोनों मिलकर साँड का मुकाबला नहीं करते, तो जान से हाथ धो बैठते। इससे सिद्ध होता है कि एकता में ही शक्ति है।
प्रश्न 15.
हीरा-मोती किस प्रकार सहयोग एवं प्रेम करते थे? इससे क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
हीरा-मोती एक साथ ही नाँद में मुँह डालते थे, एक साथ खली-भूसा खाते थे और आपस में एक-दूसरे को चाट-सूंघकर या सींग मिलाकर प्रेम प्रकट करते थे। हल या गाड़ी पर जोते जाने पर दोनों की यह चेष्टा रहती थी कि ज्यादा से ज्यादा बोझ मेरी गर्दन पर ही रहे। इसी प्रकार मुसीबत आने पर वे एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते थे। काँजीहौस में मोती हीरा की रस्सी तोड़ने का प्रयास करता रहा, परन्तु वह अकेला वहाँ से बाहर नहीं आया। इस प्रकार हीरा-मोती के परस्पर सहयोग एवं प्रेम को देखकर शिक्षा मिलती है कि आपस में अटूट प्रेम, मित्र चाहिए।
प्रश्न 16.
दोनों बैलों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह क्यों झलक रहा था?
उत्तर :
हीरा-मोती को गया के घर जाना ठीक नहीं लगा। वे वहाँ से विद्रोही बनकर, पगहे उखाड़कर वापस झूरी के घर आ गये थे। तब झूरी ने उन्हें गले लगाया, प्रेमालिंगन एवं चुम्बन किया। उस समय गया के घर मिले अपमान को लेकर तथा झूरी के स्नेह को देखकर हीरा और मोती की आँखों में विद्रोहमय स्नेह अर्थात् मिला-जुला भाव झलक रहा था। उनका गया के प्रति विद्रोह तथा झूरी के प्रति प्रेम व्यक्त हो रहा था।
प्रश्न 17.
'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूले जाते हो'-इस कथन से लेखक ने समाज की किस विडम्बना पर आक्षेप किया है?
उत्तर :
गया के घर में छोटी बच्ची को उसकी सौतेली माँ मारती-पीटती थी। इस बात पर मोती ने लड़की को सताने वाली औरत पर अपना सींग चलाने की इच्छा व्यक्त की। तब उसे हीरा ने ऐसा करना गलत बताया। इस प्रसंग से समाज पर आक्षेप किया गया है कि औरत को कदम-कदम पर पुरुष के हाथों अपमानित होना पड़ता है तथा मार-पीट सहनी पड़ती है। औरत स्वयं को अबला मानकर सब कुछ सहती है। पुरुष-वर्ग द्वारा औरतों के साथ ऐसा आचरण जानवरों से भी बदतर और निन्दनीय है।
प्रश्न 18.
सिद्ध कीजिए कि हीरा नरम विचारों तथा मोती गरम विचारों वाला क्रान्तिकारी है।
उत्तर :
प्रस्तुत कहानी में हीरा और मोती के कार्यों एवं उनकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर हीरा नरम दल का तथा मोती गरम दल का क्रान्तिकारी प्रतीत होता है। हीरा अपने कार्यों से सहनशीलता, अहिंसा, विनम्रता की अभिव्यक्ति करता है, तो मोती उग्रता, प्रतिकार, बदला लेने एवं बलिदानी भावना को व्यक्त करता है। हीरा गया की मार खाकर भी नरम रहने की बात कहता है। काँजीहौस में मोती पूरी ताकत से दीवार गिराकर सभी पशुओं को भागने का मौका देता है। इस प्रकार मोती गरम विचारों का क्रान्तिकारी प्रतीत होता है।
प्रश्न 19.
'स्वतन्त्रता सहज में नहीं मिलती, उसके लिए संघर्ष करना पड़ता है।' 'दो बैलों की कथा' के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'दो बैलों की कथा' का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द ने 'दो बैलों की कथा' के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आजादी बिना संघर्ष के नहीं मिलती है। उसके लिए परस्पर एकता व सहयोग रखकर, संघर्ष एवं बलिदान-त्याग का मार्ग अपनाकर आगे बढ़ना पड़ता है। हीरा और मोती दोनों बैल गया के अत्याचार से, काँजीहौस रूपी जेल से, दढ़ियल कसाई के बन्धन से तभी मुक्त होते हैं, जब वे संघर्ष करते हैं, अनेक कष्ट झेलकर भी वे हार नहीं मानते हैं। देश को पराधीनता से मुक्ति भी एकता, सहयोग एवं संघर्ष से मिल सकी, यही उद्देश्य प्रस्तुत कहानी में व्यजित हुआ है।
प्रश्न 20.
जानवरों में भी मानवीय संवेदनाएँ होती हैं-'दो बैलों की कथा' के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मुंशी प्रेमचन्द ने प्रस्तुत कहानी में हीरा-मोती को ऐसा चित्रित किया है कि वे मनुष्यों की तरह परस्पर सुख-दुःख का अनुभव करते हैं तथा आपस में प्रेम एवं सहयोग रखते हैं। वे गया के घर से भागकर अपने परिचित थान पर आते हैं और रोटियाँ खिलाने वाली छोटी लड़की के स्नेह को भली-भाँति समझते हैं। वे प्यार का बदला प्यार-प्रेम से वे गया और दढ़ियल आदमी के कठोर भावों को अच्छी तरह समझते हैं। उनमें उग्रता, गुस्सा, विद्रोह, आत्मीयता तथा परस्पर सहयोग जैसी सभी मानवीय संवेदनाएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं।
प्रश्न 21.
'दो बैलों की कथा' कहानी का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'दो बैलों की कथा' कहानी के माध्यम से प्रेमचन्द ने भारतीय कृषक समाज और पशुओं के भावात्मक सम्बन्ध का वर्णन किया है। इसका मूल भाव यह है कि सहनशीलता, सरलता, सीधापन आदि गुणों का आज के परिवेश में कोई महत्व नहीं है। भारतीयों का पराधीनता काल में इसी कारण शोषण-उत्पीड़न हुआ। संघर्षशील और शक्तिशाली का सदा सम्मान होता है। जापान और अमेरिका ने इसी आधार पर सम्मान अर्जित किया है। अत्याचार और अन्याय का शिकार न होकर सदा संघर्ष करने से सम्मान भी मिलता है और आजादी भी हासिल होती है।
लेखक-परिचय - महान् कथाकार एवं उपन्यास-सम्राट् मुंशी प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 में बनारस के पास 'लमही' गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राम था। प्रेमचन्द का बचपन अभावों में बीता और अभावों के बीच ही उन्होंने बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा विभाग में नौकरी की, परन्तु असहयोग आन्दोलन में भाग लेने हेतु सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र दिया। ये स्वतन्त्र-लेखन में प्रवृत्त हुए। उन्होंने तीन सौ से अधिक कहानियाँ तथा ग्यारह प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की। इनके साथ ही कुछ पत्रिकाओं का भी सम्पादन किया। सन् 1936 में उनका देहान्त हो गया।
पाठ-सार - दो बैलों की कथा' प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी है। झूरी काछी के दो बैलों के नाम थे-हीरा और मोती, दोनों बैल सीधे-सादे भारतीय लोगों के प्रतीक थे। वे ताकतवर और कमाऊ होते हुए भी अत्याचार सहते थे। कहानीकार ने इनके माध्यम से भारतीय लोगों की परतन्त्रता में होती दुर्दशा का संकेत किया है। पर उन दोनों बैलों में घनिष्ठ मित्रता थी। झूरी उनकी पूरी देखभाल करता था। एक बार झूरी ने उन्हें अपनी ससुराल भेज दिया। तब हीरा-मोती ने समझा कि उन्हें बेच दिया है। इस कारण मौका पाकर वे दोनों बैल वहाँ से भागकर आ गये।
उन्हें फिर झूरी के ससुराल भेजा गया। इस बार भी वे वहाँ से भाग गये। मार्ग में एक खेत में चरते हुए पकड़े जाने पर उन्हें 'काँजीहौस' में लाया गया। वहाँ से उनकी नीलामी की गई और एक कसाई ने उन्हें खरीद लिया। कसाई के साथ चलते-चलते दोनों बैलों को उससे डर लगने लगा। इसलिए वे दोनों भागकर झूरी के घर आ गये। अपने प्यार करने वाले मालिक और अपने थान को पाकर वे खुश हुए। झूरी ने उनके पास चारा डाला तो उसकी पत्नी ने उनके माथे चूम लिये। इस तरह दोनों बैल प्रसन्नता से रहने लगे।
कठिन-शब्दार्थ :