RBSE Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 8 हाशियाकरण से निपटना

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 8 हाशियाकरण से निपटना Textbook Exercise Questions and Answers.

RBSE Class 8 Social Science Solutions Civics Chapter 8 हाशियाकरण से निपटना

RBSE Class 8 Social Science हाशियाकरण से निपटना InText Questions and Answers

पृष्ठ 97

प्रश्न 1. 
आपकी राय में दलितों और आदिवासियों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए आरक्षण इतना महत्त्वपूर्ण क्यों है? इसका एक कारण बताइए। 
उत्तर:
हमारी राय में दलितों और आदिवासियों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए आरक्षण इसलिए इतना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि समाज में इन तबकों को सदियों तक पढ़नेलिखने और नई निपुणताएँ हासिल करने के अवसरों से वंचित रखा गया है, इन्हें आरक्षण प्रदान करके ही समाज में आगे बढ़ाया जा सकता है। असमानता को खत्म करने का आरक्षण एक ठोस कदम है। 

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प्रश्न 2. 
क्या आपको ऐसा लगता है कि रत्नम को परम्परागत रस्म निभाने के लिए जिस तरह मजबूर किया जा रहा था, वह उसके मौलिक अधिकारों का हनन था? 
उत्तर:
हाँ, रत्नम को परम्परागत रस्म (सभी पुजारियों के पैर धोकर उस धोवन के पानी से नहाना) निभाने के लिए जिस तरह मजबूर किया जा रहा था, वह उसके मौलिक अधिकारों का हनन था। 

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प्रश्न 3. 
आपको ऐसा क्यों लगता है कि दलित परिवार शक्तिशाली जातियों के गुस्से की आशंका से डरे हुए थे? 
उत्तर:
दलित परिवार के लोग शक्तिशाली जातियों के गुस्से की आशंका से निश्चित रूप से डरे हुए थे। इसके कई कारण थे-

  • उनमें से बहुत सारे सवर्णों (शक्तिशाली जातियों) के खेत-खलिहानों में दिहाड़ी मजदूर थे। अगर प्रभुत्वशाली जातियाँ उन्हें काम देना बन्द कर दें तो वे क्या खायेंगे? जिन्दगी कैसे चलेगी?
  • उन्हें यह आदेश दिया गया था कि कोई भी रत्नम व उसके परिवार से सम्पर्क नहीं रखे। एक रात को रत्नम के परिवार की झोंपड़ी में आग लगा दी गई। वे डरे हुए थे कि यदि वे मुँह खोलेंगे तो उनकी हालत भी रत्नम जैसी बना दी जाएगी। 

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प्रश्न 4. 
सिर पर मैला उठाने का आप क्या अर्थ समझते हैं?
उत्तर:
बहुत सारे लोग झाड़, टिन और टोकरियों के सहारे पशुओं/इन्सानों के मल-मूत्रे ठिकाने लगाते हैं। वे बिना पानी वाले (सूखे) शौचालयों से गंदगी उठाकर दूर के स्थानों पर फेंककर आते हैं। हाथ से मैला उठाने वाले पीढ़ी दर पीढ़ी यही काम करते हैं। यह काम आम तौर पर दलित औरतें और लड़कियाँ करती हैं। सिर पर मैला उठाने का यही आशय है। 

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प्रश्न 5. 
ऐसे दो मौलिक अधिकारों का उल्लेख करें जिनका सिर पर मैला ढोने की प्रथा के जरिए उल्लंघन हो रहा है। 
उत्तर:
सिर पर मैला ढोने की प्रथा के जरिए-

  • समानता के अधिकार का तथा 
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। 

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प्रश्न 6. 
सफाई कर्मचारी आन्दोलन ने 2003 में जनहित याचिका क्यों दायर की? अपनी याचिका में उन्होंने किस बात पर आपत्ति व्यक्त की थी? 
उत्तर:
सफाई कर्मचारी आन्दोलन ने 2003 में सिर पर मैला ढोने की प्रथा के आज भी चलते रहने के विरुद्ध याचिका दायर की। अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि सिर पर मैला ढोने की प्रथा न केवल आज भी चल रही है, बल्कि रेलवे जैसे सरकारी उपक्रमों में भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है। याचिकाकर्ताओं ने अपने मौलिक अधिकारों को लागू करवाने का आग्रह किया। 

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प्रश्न 7. 
2005 में इस याचिका पर विचार करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने क्या किया? 
उत्तर:
इस याचिका के जवाब में न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि 1993 में पारित किए गए कानून के बाद देशभर में सिर पर मैला ढोने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार के प्रत्येक विभाग/मन्त्रालय को आदेश दिया कि वे 6 माह के भीतर इस बात की सच्चाई का पता लगाएँ। अगर सिर पर मैला ढोने की प्रथा अभी भी प्रचलन में पाई जाती है तो सम्बन्धित सरकारी विभागों को ऐसे लोगों की मुक्ति और पुनर्वास के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम तैयार करना चाहिए। तत्पश्चात् हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 6 दिसम्बर, 2013 से लागू हुआ।

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प्रश्न 1. 
दो ऐसे मौलिक अधिकार बताइये जिनका दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इस सवाल का जवाब देने के लिए पृष्ठ 14 पर दिए गए मौलिक अधिकारों को दोबारा पढ़िये।
उत्तर:
समानता का अधिकार और शोषण के विरुद्ध अधिकार का दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए इस्तेमाल कर सकता है। यथा- 
(1) समानता का अधिकार-समानता के अधिकार के अन्तर्गत यह स्पष्ट कहा गया है कि कानून की नजर में सभी लोग समान हैं अर्थात् सभी लोगों को देश का कानून बराबर सुरक्षा प्रदान करेगा। अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि भारत के किसी भी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। समानता के अधिकार का हनन होने पर दलित इस प्रावधान का सहारा ले सकते हैं। इस अधिकार के अन्तर्गत खेल के मैदान, होटल, दुकान इत्यादि सार्वजनिक स्थानों पर सभी को बराबर पहुँच का अधिकार होगा। अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता या छुआछूत का उन्मूलन किया जा चुका है। इसका अभिप्राय यह है कि अब कोई भी व्यक्ति दलितों को पढ़ने, मन्दिरों में जाने और सार्वजनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करने से नहीं रोक सकता। इस तरह यदि दलित समुदाय को यह लगता है कि सरकार या कोई अन्य समुदाय या व्यक्ति उनके साथ समानता का बर्ताव नहीं कर रहा है तो वह समानता के मौलिक अधिकार का उपयोग कर सकता है। 

(2) शोषण के विरुद्ध अधिकार-संविधान में कहा गया है कि मानव-व्यापार, जबरिया श्रम और 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मजदूरी पर रखना अपराध है। 

प्रश्न 2. 
रत्नम की कहानी और 1989 के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों को दोबारा पढ़िये। अब एक कारण बताइये कि रत्नम ने इसी कानून के तहत शिकायत क्यों दर्ज कराई? 
उत्तर:
रत्नम ने 1989 के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत शिकायत इसलिए दर्ज कराई क्योंकि इस कानून. में शारीरिक रूप से खौफनाक और नैतिक रूप से निन्दनीय अपमानों के स्वरूपों की सूची दी गयी है। इसका मकसद ऐसे लोगों को सजा दिलाना है जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति को कोई अखाद्य अथवा गंदा पदार्थ पीने या खाने के लिए विवश करता है या कोई ऐसा कृत्य करते हैं जो मानवीय प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है। 

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प्रश्न 3. 
सी.के. जानू और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं को ऐसा क्यों लगता है कि आदिवासी भी अपने परम्परागत संसाधनों के छीने जाने के खिलाफ 1989 के इस कानून का इस्तेमाल कर सकते हैं? इस कानून के प्रावधानों में ऐसा क्या खास है जो उनकी मान्यता को पुष्ट करता है? 
उत्तर:
आदिवासी कार्यकर्ता अपनी परम्परागत जमीन पर अपने कब्जे की बहाली के लिए अर्थात् अपने परम्परागत संसाधनों के छीने जाने के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि इस कानून में ऐसे कृत्यों की सूची भी है जिनके जरिये आदिवासियों को उनके साधारण संसाधनों से वंचित किया जाता है। इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई भी व्यक्ति अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के नाम पर आबण्टित की गई या उसके स्वामित्व वाली जमीन पर कब्जा करता है या खेती करता है या अपने नाम पर स्थानान्तरित करवा लेता है, तो उसे सजा दी जायेगी। 

सी.के. जानू और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं को इसी प्रावधान के आधार पर ऐसा लगता है कि आदिवासी भी अपने परम्परागत संसाधनों के छीने जाने के खिलाफ 1989 के कानून का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कानून के उक्त प्रावधान उनकी मान्यता को पुष्ट करते हैं।

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Last Updated on June 6, 2022, 7:29 p.m.
Published June 6, 2022