Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 7 सड.कल्पः सिद्धिदायकः Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 7 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Read कक्षा 7 संस्कृत श्लोक written in simple language, covering all the points of the topic.
प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत - (उच्चारण कीजिए-)
उत्तर :
नोट - अपने अध्यापकजी की सहायता से उपर्युक्त पदों का उच्चारण कीजिए।
प्रश्न 2.
उदाहरणम् अनुसृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत।
(उदाहरण के अनुसार रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।)
उत्तरम् :
प्रश्न 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(प्रश्नों के उत्तर एक पद में लिखिए-)
(क) तपःप्रभावात् के सखायः जाताः?
उत्तरम् :
हिंस्रपशवः।
(ख) पार्वती तपस्यार्थं कुत्र अगच्छत्?
उत्तरम् :
गौरीशिखरम्।
(ग) कः श्मशाने वसति?
उत्तरम् :
शिवः।
(घ) शिवनिन्दा श्रुत्वा का कुद्धा जाता?
उत्तरम् :
पार्वती।
(ङ) वटुरूपेण तपोवनं कः प्राविशत्?
उत्तरम् :
शिवः।
प्रश्न 4.
कः/का कं/कां प्रति कथयति -
(कौन किससे कहता है-)
उत्तरम् :
प्रश्न 5.
प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत -
(प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) पार्वती कुद्धा सती किम् अवदत्?
(पार्वती क्रुद्ध होती हुई क्या बोलीं?)
उत्तरम् :
सा अवदत् यत् जगति न कोऽपि शिवस्य यथार्थं स्वरूपं जानाति।
(वे बोली कि संसार में कोई भी शिव के यथार्थ स्वरूप को नहीं जानता है।)
(ख) कः पापभाग् भवति? (कौन पापी होता है?)
उत्तरम् :
य: निन्दति यश्च निन्दां शृणोति सः पापभाग्श्च भवति।
(जो निन्दा करता है और जो निन्दा को सुनता है, वह पाप का भागी होता है।)
(ग) पार्वती किं कर्तुम् ऐच्छत्? (पार्वती क्या करना चाहती थीं?)
उत्तरम् :
पार्वती शिवं पतिरूपेण प्राप्तुं तपस्यां कर्तुम् ऐच्छत्।
(पार्वती शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या करना चाहती थीं।)
(घ) पार्वती कया साकं गौरीशिखरं गच्छति?
(पार्वती किसके साथ गौरी शिखर पर जाती हैं?)
उत्तरम् :
पार्वती विजयया साकं गौरीशिखरं गच्छति।
(पार्वती विजया के साथ गौरी शिखर पर जाती हैं।)
प्रश्न 6.
मजूषातः पदानि चित्वा समानार्थकानि पदानि लिखत -
(मञ्जूषा से पदों को चुनकर समानार्थक पद लिखिए-)
[माता मौनम् प्रस्तरे जन्तवः नयनानि।]
उत्तरम् :
प्रश्न 7.
उदाहरणानुसारं पदरचनां कुरुत
(उदाहरण के अनुसार पद-रचना कीजिए-)
(i) यथा - वसति स्म = अवसत्
उत्तरम् :
(क) पश्यति स्म = अपश्यत्।
(ख) तपति स्म = अतपत्।
(ग) चिन्तयति स्म = अचिन्तयत्।
(घ) वदति स्म = अवदत्।
(ङ) गच्छति स्म = अगच्छत्।
(ii) यथा - अलिखत् = लिखति स्म।
उत्तरम् :
(क) अकथयत् = कथयति स्म।
(ख) अनयत् = नयति स्म।
(ग) अपठत् = पठति स्म।
(घ) अधावत् = धावति स्म।
(ङ) अहसत् = हसति स्म।
ध्यातव्यम् - 'स्म' इत्यस्य प्रयोगःयदा वर्तमानकालिकैः धातुभिः सह 'स्म' इत्यस्य प्रयोगः भवति तदा ते धातवः भूतकालिकक्रियाणाम् अर्थ प्रकटयन्ति। (जब वर्तमान काल की धातुओं के साथ 'स्म' का प्रयोग होता है, तब धातुएँ भूतकाल का अर्थ प्रकट करती हैं।) यथा-
पठति स्म - पढ़ता था।
गच्छति स्म - जाता था।
पञ्चाग्निव्रतम् - चतसृषु दिक्षु अग्निम् आधाय सूर्यस्य निर्निमेषदर्शनं पञ्चाग्निव्रतम्। (चारों दिशाओं में अग्नि स्थापित करके सूर्य की ओर लगातार देखना पञ्चाग्नि व्रत होता है।)
अपर्णा - तपस्याक्रमे पर्णानामपि भक्षणं पार्वती त्यक्तवती अतः सा अपर्णा नाम्ना प्रसिद्धा। (तपस्या के क्रम में पार्वती ने पत्तों को भी खाना छोड़ दिया था, इसलिए वे 'अपर्णा' नाम से प्रसिद्ध हुईं।)
प्रश्न 1.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि प्रदत्तविकल्पेभ्यः चित्वा लिखत -
(i) पार्वत्याः मातुः नाम किम् आसीत्?
(अ) मेना
(ब) मीना
(स) माया
(द) ममता
उत्तरम् :
(अ) मेना
(ii) पार्वती कया साकं गौरीशिखरं गच्छति?
(अ) रमया
(ब) जयया
(स) विजयया
(द) विद्यया
उत्तरम् :
(स) विजयया
(iii) अपर्णा' इति नाम्ना का प्रसिद्धा आसीत्?
(अ) विजया
(ब) पार्वती
(स) मेना
(द) रम्भा
उत्तरम् :
(ब) पार्वती
(iv) कः कदापि धैर्य न परित्यजति?
(अ) मायावी
(ब) परिश्रमी
(स) बलशाली
(द) मनस्वी
उत्तरम् :
(द) मनस्वी
(v) पार्वती परीक्षितुं वटुरूपधारी क: आगतः?
(अ) शिवः
(ब) विष्णुः
(स) नारदः
(द) इन्द्रः
उत्तरम् :
(अ) शिवः
प्रश्न 2.
कोष्ठकेभ्यः समुचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तराणि :
प्रश्न 3.
मञ्जूषातः उचितम् अव्ययं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
[मञ्जूषा - कदापि, खलु, उच्चैः, अत्रैव, एव, इति]
उत्तराणि-
अतिलघूत्तरात्मकप्रश्ना: -
प्रश्न: - एकपदेन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) पार्वत्याः मातुः किनाम?
(ख) मनीषिताः देवताः कुत्र एव सन्ति?
(ग) तपःप्रभावात् के पार्वत्याः सखायः जाता?
(घ) 'अपर्णा' इति नाम्ना का प्रथिता?
(ङ) आद्यं धर्मसाधनं किम्?
उत्तराणि-
(क) मेना
(ख) गृहे
(ग) हिंसपशवः
(घ) पार्वती
(ङ) शरीरम्।
लघूत्तरात्मकप्रश्ना: -
प्रश्न: - पूर्णवाक्येन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) मनस्वी कदापि किम् न परित्यजति?
उत्तरम् :
मनस्वी कदापि धैर्यं न परित्यजति।
(ख) पार्वती स्वकीयं मनोरथं कस्ये न्यवेदयत्?
उत्तरम् :
पार्वती स्वकीयं मनोरथं मात्रे न्यवेदयत्।
(ग) पार्वती मनसा वचसा कर्मणा च किं करोति स्म?
उत्तरम् :
पार्वती मनसा वचसा कर्मणा च तपः एव तपसि स्म।
(घ) केषाम् अगतिः नास्ति?
उत्तरम् :
मनोरथानाम् अगतिः नास्ति?
(ङ) शिवः वटोः रूपं परित्यज्य कस्य हस्तं गृहणाति?
उत्तरम् :
शिवः वटोः रूपं परित्यज्य पार्वत्याः हस्तं गृहणाति।
पाठ-परिचय/सार - प्रस्तुत पाठ में दृढ़ निश्चय (संकल्प) के महत्त्व को बतलाते हुए प्रेरणा दी गई है कि मनुष्य दृढ़ इच्छाशक्ति के द्वारा कठिन से भी कठिन कार्य में सफलता प्राप्त कर लेता है। इस पाठ में नाट्यांश के रूप में वर्णित कथा के द्वारा बताया गया है कि पार्वती शिव को पति के रूप में प्राप्त करने का संकल्प लेकर कठोर तपस्या करती हैं। उनकी कठोर तपस्या से हिंसक पशु भी उनके मित्र बन जाते हैं।
भगवान् शिव पार्वती के संकल्प की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मचारी के वेष में उसके पास आते हैं और अनेक प्रकार से शिव की निन्दा करते हैं। किन्तु शिव से सच्चा प्रेम करने वाली पार्वती अपने संकल्प से विचलित नहीं होती हैं तथा उस ब्रह्मचारी पर क्रोध प्रकट करती हुई वहाँ से जाना चाहती हैं, तभी शिव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो जाते हैं तथा पार्वती के संकल्प की प्रशंसा करते हैं एवं उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।
पाठ का हिन्दी-अनुवाद -
1. (पार्वती शिवं पतिरूपेण ............................... मेना चिन्ताकुला अभवत्।)
हिन्दी अनुवाद - (पार्वती भगवान् शिव को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने तपस्या करने की इच्छा की। उन्होंने अपने मन की इच्छा को माता से निवेदन किया। वह सुनकर माता मेना चिन्ता से व्याकुल हो गई।)
2. मेना-वत्से! मनीषिता देवताः .................................... साकं गौरीशिखरं गच्छामि। (ततः पार्वती निष्क्रामति)
हिन्दी अनुवाद - मेना-पुत्री ! इच्छित देवता तो घर में ही हैं। तप कठिन होता है। तुम्हारा शरीर सुकोमल है। घर पर ही रहो। यहीं पर तुम्हारी इच्छा सफल हो जायेगी।
पार्वती - माता! वैसी इच्छा तो तपस्या से ही पूर्ण होगी। अन्यथा उस प्रकार का पति कैसे प्राप्त करूंगी। मैं तप ही करूँगी-ऐसा मेरा संकल्प है।
मेना-पुत्री! तुम ही मेरे जीवन की अभिलाषा हो।
पार्वती - सत्य है। किन्तु मेरा मन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्याकुल है। सफलता प्राप्त करके पुनः तुम्हारी ही शरण में आ जाऊँगी। आज ही विजया के साथ गौरी शिखर पर जाती हूँ।
(इसके बाद पार्वती निकल जाती है।)
3. (पार्वती मनसा वचसा ................................................... एकदा विजया अवदत्।)
विजया - सखि! तपःप्रभावात् ................................. तपसः फलं नैव दृश्यते।
हिन्दी अनुवाद - (पार्वती मन, वचन और कर्म से तपस्या ही करती थी। कभी रात में जमीन पर और कभी चट्टान पर सोती थी। एक बार विजया बोली-)
विजया - हे सखी! तपस्या के प्रभाव से हिंसक पशु भी तुम्हारे मित्र जैसे हो गये हैं। पञ्चाग्नि तप भी तुमने तपा है। लेकिन फिर भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण नहीं हुई।
पार्वती - हे विजया! क्या तुम नहीं जानती हो? महापुरुष कभी भी धैर्य नहीं छोड़ते हैं। और भी मनोरथों की गतिहीनता (विफलता) नहीं है।
विजया - तुमने वेद को पढ़ा है। यज्ञ सम्पन्न किया है। तपस्या के कारण संसार में तुम्हारी प्रसिद्धि है। 'अपर्णा' इस नाम से भी तुम प्रसिद्ध हो गयी। फिर भी तपस्या का फल दिखाई नहीं देता है।
4. पार्वती-अयि आतरहृदये! कथं ........................................... प्राप्तुम् अत्र तपः करोति।
हिन्दी अनुवाद - पार्वती-हे व्याकुल हृदय वाली! तुम क्यों चिन्ता कर रही हो.......। (परदे के पीछे से - अरे हे ! मैं आश्रम का ब्रह्मचारी हूँ। जल चाहता हूँ।) (घबराहटपूर्वक) हे विजया! देखो, कोई ब्रह्मचारी आया है। (विजया शीघ्र ही चली गई, अचानक ही ब्रह्मचारी का रूप धारण किए हुए शिव वहाँ प्रवेश करते हैं।)
विजया - हे ब्रह्मचारी! तुम्हारा स्वागत है। आप बैठिये। यह मेरी सखी पार्वती है। शिव को प्राप्त करने के लिए यहाँ तपस्या कर रही है।
5. वटुः- हे तपस्विनि! किं क्रियार्थं ................................ शिवं पतिम् इच्छसि?
हिन्दी अनुवाद - वटु (ब्रह्मचारी)-हे तपस्विनी! क्या तप के लिए पूजा की सामग्री है, स्नान के लिए जल सरलता से प्राप्त है, भोजन के लिए फल हैं? तुम तो जानती ही हो कि निश्चित रूप से शरीर ही धर्म का पहला साधन है।
(पार्वती चुप रहती हैं।)
ब्रह्मचारी - हे तपस्विनी! किसलिए तपस्या कर रही हो? शिव के लिए?
(पार्वती फिर से चुप रहती हैं।)
विजया - (परेशान होकर) हाँ, उन्हीं के लिए तपस्या कर रही है।
(ब्रह्मचारी रूप धारण किये हुए शिव अचानक ही जोर से उपहास करते हैं।
ब्रह्मचारी - हे पार्वती ! वास्तव में क्या तुम शिव को पति रूप में चाहती हो? (उपहास करते हुए) नाम से ही वह शिव है, अन्यथा अशिव अर्थात् अमंगलकारी है। श्मशान में रहता है। जिसके तीन नेत्र हैं, वस्त्र व्याघ्र की चमड़ी है, अङ्गलेप चिता की भस्म है और मित्रगण भूतों का समुदाय है। क्या उसी शिव को पति रूप में चाहती हो?
6. पार्वती-(क्रुद्धा सती) अरे वाचाल! .............................................. तपोभिः क्रीतदासोऽस्मि।
(विनतानना पार्वती विहसति।)
हिन्दी अनुवाद - पार्वती-(क्रुद्ध होती हुई) अरे वाचाल! दूर हट। संसार में कोई भी शिव के यथार्थ स्वरूप को नहीं जानता है। जैसे तुम हो, वैसा ही बोल रहे हो। (विजया की ओर) सखी! चलो। जो निन्दा करता है वह तो पापी होता ही है, किन्तु जो सुनता है वह भी पाप का भागी होता है।
(पार्वती तेजी से निकलती हैं। तभी पीछे से ब्रह्मचारी के रूप को छोड़कर शिव उसका हाथ पकड़ लेते हैं। पार्वती लज्जा से काँपती हैं।)
शिव - हे पार्वती ! मैं तुम्हारे संकल्प से प्रसन्न हूँ। आज से मैं तुम्हारे द्वारा तपस्या से खरीदा हुआ दास हूँ।
(नीचे की ओर मुंह किये हुए पार्वती मुस्कुराती हैं।)
पाठ के कठिन-शब्दार्थ :