Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 3 स्वावलम्बनम् Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 7 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Read कक्षा 7 संस्कृत श्लोक written in simple language, covering all the points of the topic.
प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत-(उच्चारण कीजिए-)
उत्तर :
नोट - उपर्युक्त संख्यावाची पदों का उच्चारण अपने अध्यापकजी की सहायता से स्वयं कीजिए।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि लिखत -
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) कस्य भवने सर्वविधानि सुखसाधनानि आसन्?
(किसके घर में सभी प्रकार के सुख-साधन थे?)
उत्तरम् :
श्रीकण्ठस्य भवने सर्वविधानि सुखसाधनानि आसन्।
(श्रीकण्ठ के घर में सभी प्रकार के सुख-साधन थे।)
(ख) कस्य गृहे कोऽपि भृत्यः नास्ति?
(किसके घर में कोई भी सेवक नहीं है?)
उत्तरम् :
कृष्णमूर्ते: गृहे कोऽपि भृत्यः नास्ति।
(कृष्णमूर्ति के घर में कोई भी सेवक नहीं है।)
(ग) श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् के अकुर्वन्?
(श्रीकण्ठ का अतिथि-सत्कार किन्होंने किया?)
उत्तरम् :
श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् कृष्णमूर्तिः तस्य माता पिता च अकुर्वन्।
(श्रीकण्ठ का अतिथि सत्कार कृष्णमूर्ति और उसके मातापिता ने किया।)
(घ) सर्वदा कुत्र सुखम्?
(हमेशा कहाँ सुख है?)
उत्तरम् :
स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखम्।
(स्वावलम्बन में हमेशा सुख है।)
(ङ) श्रीकण्ठः कृष्णमूर्तेः गृहं कदा अगच्छत्?
(श्रीकण्ठ कृष्णमूर्ति के घर कब गया था?)।
उत्तरम् :
श्रीकण्ठः कृष्णमूर्तेः गृहं एकदा प्रातः नववादने अगच्छत्।
(श्रीकण्ठ कृष्णमूर्ति के घर एक बार सुबह नौ बजे गया था।)
(च) कृष्णमूर्तेः कति कर्मकराः सन्ति?
(कृष्णमूर्ति के कितने सेवक हैं?)
उत्तरम् :
कृष्णमूर्ते: अष्टौ कर्मकराः सन्ति।
(कृष्णमूर्ति के आठ सेवक हैं।)
प्रश्न 3.
चित्राणि गणयित्वा तदने संख्यावाचकशब्द लिखत।
(चित्रों को गिनकर उनके सामने संख्यावाचक शब्द लिखिए।)
[चित्रों के लिए पाठ्यपुस्तक में दिये गये चित्रों को देखें।
उत्तरम् :
प्रश्न 4.
मञ्जूषातः अङ्कानां कृते पदानि चिनुत -
(मञ्जूषा से अंकों के लिए पद चुनिए-)
उत्तरम् :
प्रश्न 5.
चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि च प्रयुज्य वाक्यानि रचयत -
(चित्र देखकर और मञ्जूषा से पद प्रयुक्त करके वाक्यों की रचना कीजिए-)
[नोट-चित्र पाठ्यपुस्तक में दिये गये हैं, वहाँ देखें।]
उत्तरम् :
(क) एषः कृषकः क्षेत्रम् कर्षति।
(ख) एतौ कृषकौ खननकार्यम् कुरुतः।
(ग) एते कृषकाः धान्यम् रोपयन्ति।
प्रश्न 6.
अधोलिखितान् समयवाचकान् अङ्कान् पदेषु लिखत
(अधोलिखित समय वाचक अंकों को पदों में लिखिए-)
यथा - 10.30 सार्धदशवादनम्
उत्तरम् :
प्रश्न 7.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(मञ्जूषा से पद चुनकर रिक्त स्थान पूर्ण कीजिए-)
[षड् त्रिंशत् एकत्रिंशत् द्वौ द्वादश अष्टाविंशतिः]
उत्तरम् :
(क) षड् ऋतवः भवन्ति।
(ख) मासाः द्वादश भवन्ति।
(ग) एकस्मिन् मासे त्रिंशत् अथवा एकत्रिंशत् दिवसाः भवन्ति।
(घ) फरवरी-मासे सामान्यतः अष्टाविंशतिः दिनानि भवन्ति।
(ङ) मम शरीरे द्वौ हस्तौ स्तः।
ध्यातव्यम् - भारतीयवर्षानुसारं मासानां ऋतूनां च नामानि -
(इस प्रकार एक वर्ष में 12 मास और छः ऋतुएँ होती हैं।)
प्रश्न 1.
अधोलिखितप्रश्नानाम् प्रदत्तविकल्पेभ्यः उचितम् उत्तरं चित्वा लिखत -
(i) श्रीकण्ठस्य पिता कीदृशः आसीत्?
(अ) समृद्धः
(ब) निर्धनः
(स) शिक्षक:
(द) कृषकः
उत्तरम् :
(अ) समृद्धः
(ii) श्रीकण्ठः कृष्णमूर्तेः किम् आसीत्?
(अ) शत्रु:
(ब) भ्राताः
(स) मित्रम्
(द) पिता
उत्तरम् :
(स) मित्रम्
(iii) कृष्णमूर्तेः पिता कीदृशः आसीत्?
(अ) धनिकः
(ब) निर्धनः
(स) ग्रामप्रमुखः
(द) शिक्षक:
उत्तरम् :
(ब) निर्धनः
(iv) श्रीकण्ठः कृष्णमूर्तेः गृहं कति वादने अगच्छत्?
(अ) षड्वादने
(ब) सार्धनववादने
(स) दशवादने
(द) नववादने
उत्तरम् :
(द) नववादने
(v) कृष्णमूर्तेः कति कर्मकरा: आसन्?
(अ) अष्टौ
(ब) पञ्च
(स) सप्त
(द) दश
उत्तरम् :
(अ) अष्टौ
प्रश्न 2.
अधोलिखितवाक्येषु रिक्तस्थानानि कोष्ठकेभ्यः उचितपदं चित्वा पूरयत
उत्तराणि :
प्रश्न 3.
मञ्जूषातः समुचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
[मञ्जूषा - अधुना, प्रातः, कदापि, बहवः]
उत्तराणि :
अतिलघूत्तरात्मकप्रश्नाः -
प्रश्न :
एकपदेन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) श्रीकृण्ठस्य मित्रं कः आसीत्?
(ख) कः स्वकार्याय भृत्याधीनः आसीत्?
(ग) कस्मिन् सर्वदा सुखमेव वर्तते?
(घ) श्रीकण्ठस्य पिता कीदृशः आसीत्?
(ङ) कृष्णमूर्तेः कति कर्मकराः सन्ति?
उत्तराणि :
(क) कृष्णमूर्ति:
(ख) श्रीकण्ठ :
(ग) स्वावलम्बने
(घ) समृद्धः
(ङ) अष्टौ।
लघूत्तरात्मकप्रश्नाः -
प्रश्न:-
पूर्णवाक्येन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) श्रीकण्ठस्य भवने कति स्तम्भाः आसन्?
उत्तरम् :
श्रीकण्ठस्य भवने चत्वारिंशत् स्तम्भाः आसन्।
(ख) कृष्णमूर्तेः माता पिता च कीदृशी आस्ताम्?
उत्तरम् :
कृष्णमूर्तेः माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती आस्ताम्।
(ग) कृष्णमूर्तेः गृहं कीदृशम् आसीत्?
उत्तरम् :
कृष्णमूर्ते: गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्।
(घ) कस्मिन् कदापि कष्टं न भवति?
उत्तरम् :
स्वावलम्बने कदापि कष्टं न भवति।
(ङ) कस्य मनसि महती प्रसन्नता जाता?
उत्तरम् :
श्रीकण्ठस्य मनसि महती प्रसन्नता जाता।
निबन्धात्मकप्रश्ना: -
प्रश्न :
'स्वावलम्बनम्' इति कथायाः/पाठस्य सारं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तर-
कथा/पाठ का सार-'स्वावलम्बनम्' नामक पाठ में दो मित्रों के दृष्टान्त द्वारा स्वावलम्बन के महत्त्व को दर्शाया गया है। कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ दो मित्र थे। उनमें श्रीकण्ठ के पिता धनी थे तथा उसके घर में सभी प्रकार के सुख-साधन थे। वहाँ दस नौकर निरन्तर कार्य करते थे। किन्तु कृष्णमूर्ति के माता-पिता निर्धन किसान थे तथा उसका घर आडम्बर-रहित एवं साधारण था। एक बार श्रीकण्ठ अपने मित्र कृष्णमूर्ति के घर गया। वहाँ कृष्णमूर्ति और उसके माता-पिता ने यथाशक्ति श्रीकण्ठ का अतिथि-सत्कार किया। यह देखकर श्रीकण्ठ ने कहा- "मित्र! मैं आपके सत्कार से प्रसन्न हूँ। मुझे केवल यही दुःख है कि तुम्हारे घर में एक भी सेवक नहीं है। मेरे सत्कार के लिए तुम्हें बहुत कष्ट हुआ। मेरे घर में तो बहुत से सेवक हैं।"
तब कृष्णमूर्ति ने कहा-"मित्र! मेरे भी आठ सेवक हैं, और वे दो पैर, दो हाथ, दो नेत्र तथा दो कान हैं। ये हर समय मेरी सहायता करते हैं। किन्तु तुम्हारे सेवक तो हमेशा और सभी जगह उपस्थित नहीं हो सकते हैं। तुम तो अपने कार्यों के लिए सेवकों के अधीन हो। जब-जब वे अनुपस्थित रहते हैं, तब-तब तुम कष्ट पाते हो। स्वावलम्बन में तो हमेशा सुख ही है, कभी भी कष्ट नहीं होता है।" यह सुनकर श्रीकण्ठ के मन में अत्यधिक प्रसन्नता हुई और उसने भी आगे से अपना कार्य स्वयं ही करने की इच्छा प्रकट की। तत्पश्चात् वह अपने घर चला गया।
संख्यावाचिशब्दाः तद्-एतद्-शब्दौ च
पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ में कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ नामक दो मित्रों की कथा के माध्यम से स्वावलम्बन के महत्त्व को बतलाया गया है। साथ ही इस पाठ में संस्कृत में संख्यावाची शब्दों तथा तद् व एतद् सर्वनाम शब्दों का भी. परिचय कराया गया है।
पाठ के गद्यांशों का हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम् -
1. कृष्णमूर्तिः श्रीकण्ठश्च मित्रे .................................................... आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्।
हिन्दी अनुवाद - कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ दो मित्र थे। श्रीकण्ठ का पिता धनी था। इसलिए उसके घर में सभी प्रकार के सुख-साधन थे। उस विशाल भवन में चालीस खम्बे थे। उसके अठारह कमरों में पचास खिड़कियाँ, चवालीस दरवाजे और छत्तीस बिजली के पंखे थे। वहाँ दस सेवक निरन्तर कार्य करते थे। किन्तु कृष्णमूर्ति के माता-पिता निर्धन किसान पति-पत्नी थे। उसका घर आडम्बर (दिखावे) से रहित और साधारण था।
पठितावबोधनम् :
निर्देश: - उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितप्रश्नानाम् उत्तराणि यथानिर्देशं लिखतप्रश्ना :
(क) श्रीकण्ठस्य पिता कीदृशः आसीत? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कस्य माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती आस्ताम्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) कृष्णमूर्ते: गृहम् कीदृशम् आसीत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) 'विशाले' इति विशेषणस्य गद्यांशे विशेष्यपदं किमस्ति?
(ङ) 'कुर्वन्ति स्म' इति क्रियापदस्य गद्यांशे कर्तृपदं किं प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) समृद्धः।
(ख) कृष्णमूर्तेः।
(ग) कृष्णमूर्ते: गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्।
(घ) भवने।
(ङ) सेवकाः।
2. एकदा श्रीकण्ठः तेन सह ............................................. तु बहवः कर्मकराः सन्ति।"
हिन्दी अनुवाद - एक बार श्रीकण्ठ उसके साथ प्रातः नौ बजे उसके घर गया। वहाँ कृष्णमूर्ति और उसके मातापिता ने अपनी शक्ति के अनुसार श्रीकण्ठ का अतिथि सत्कार किया। यह देखकर श्रीकण्ठ ने कहा-“हे मित्र! मैं आपके सत्कार से सन्तुष्ट हूँ। मुझे केवल यही दुःख है कि तुम्हारे घर में एक भी सेवक नहीं है। मेरे सत्कार के लिए आपको बहुत कष्ट हुआ। मेरे घर में तो बहुत से कर्मचारी/सेवक हैं।"
पठितावबोधनम्प्रश्ना :
(क) एकदा श्रीकण्ठः कस्य गृहम् अगच्छत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कस्य गृहे बहवः कर्मकराः आसन्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् के अकुर्वन्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) 'दृष्ट्वा ' इति पदे कः प्रत्ययः?
(ङ) 'सेवकः' इत्यर्थे गद्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तराणि :
(क) कृष्णमूर्तेः।
(ख) श्रीकण्ठस्य।
(ग) श्रीकण्ठस्य आतिथ्यं कृष्णमूर्तिः तस्य माता पिता च अकुर्वन्।
(घ) क्त्वा।
(ङ) भृत्यः।
3. तदा कृष्णमूर्तिः अवदत् .............................................. न कदापि कष्ट भवति।"
हिन्दी अनुवाद - तब कृष्णमूर्ति बोला-"हे मित्र! मेरे भी आठ सेवक हैं। और वे दो पैर, दो हाथ, दो नेत्र तथा दो कान हैं। ये हर समय मेरे सहायक हैं। किन्तु तुम्हारे सेवक हमेशा और सभी जगह उपस्थित नहीं हो सकते हैं। तुम तो अपने कार्य के लिए सेवकों के अधीन हो। जब-जब वे अनुपस्थित रहते हैं, तब-तब तुम कष्ट का अनुभव करते हो। स्वावलम्बन में तो हमेशा सुख ही है, कभी भी कष्ट नहीं होता है।"
पठितावबोधनम्प्रश्ना :
(क) कः स्वकार्याय भृत्याधीनः आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कुत्र सर्वदा सुखमेव भवति? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) कृष्णमूर्तेः अष्टौ कर्मकरा: के सन्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) 'अष्टौ' इति विशेषणपदस्य गद्यांशे विशेष्यपदं किम् अस्ति?
(ङ) 'स्वावलम्बन तु कदापि कष्टं न भवति'- इत्यत्र अव्ययपदं किम्?
उत्तराणि :
(क) त्वम् (श्रीकण्ठः)।
(ख) स्वावलम्बने।
(ग) कृष्णमूर्तेः अष्टौ कर्मकराः सन्ति-द्वौ पादौ, द्वौ हस्तौ, द्वे नेत्रे, वे श्रोत्रे च।
(घ) कर्मकराः।
(ङ) कदापि।
4. श्रीकण्ठः अवदत्-"मित्र! .......................................................... साम्प्रतं गृहं चलामि।
हिन्दी अनुवाद - श्रीकण्ठ बोला-"मित्र! तुम्हारे वचन सुनकर मेरे मन में अत्यधिक प्रसन्नता हुई है। अब मैं भी अपने कार्य स्वयं ही करना चाहता हूँ।" ठीक है, अब साढ़े बारह बजे हैं। अभी मैं घर चलता हूँ।
पठितावबोधनम् -
प्रश्ना :
(क) श्रीकण्ठस्य मनसि महती का जाता? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कः स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छति? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) श्रीकण्ठः कति वादने गृहं गच्छति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) 'इच्छामि' इति क्रियापदस्य गद्यांशे कर्तृपदं किम् अस्ति?
(ङ) 'प्रसन्नता' इति पदस्य गद्यांशात् विशेषणपदं चित्वा लिखत।
उत्तराणि :
(क) प्रसन्नता।
(ख) श्रीकण्ठः।
(ग) श्रीकण्ठः सार्धद्वादशवादने गृहं गच्छति।
(घ) अहम्।
(ङ) महती।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ -